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आमुख
इस अध्ययन का नाम 'मोक्खमग्गगई'--'मोक्ष-मार्ग-गति' प्रज्ञापना (प्रथम पद) में भी मिलता है। वह विभाग यह हैहै। मोक्ष प्राप्य है और मार्ग है उसकी प्राप्ति का उपाय। गति १. निसर्गरुचि
६. अभिगमरुचि व्यक्ति का अपना पुरुषार्थ है। प्राप्य हो और प्राप्ति का उपाय २. उपदेशरुचि
७. विस्ताररुचि न मिले तो वह प्राप्त नहीं होता। इसी प्रकार प्राप्य भी हो और ३. आज्ञारुचि
८. क्रियारुचि प्राप्ति का उपाय भी हो किन्तु उसकी ओर गति नहीं होती तो ४. सूत्ररुचि
६. संक्षेपरुचि वह प्राप्त नहीं होता। मार्ग और गति-ये दोनों प्राप्त हों तभी ५. बीजरुचि
१०. धर्मरुचि। प्राप्य प्राप्त हो सकता है।
. मोक्ष-प्राप्ति का तीसरा साधन चारित्र--आचार है। वे ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप–इन चारों द्वारा मोक्ष की पांच हैं: प्राप्ति होती है, इसलिए इनके समवाय को मोक्ष का मार्ग कहा १. सामायिक चारित्र गया है। जैन दर्शन ज्ञान-योग, भक्ति-योग (श्रद्धा) और २. छेदोपस्थापनीय चारित्र कर्म-योग (चारित्र और तप)-इन तीनों को संयुक्त रूप में ३. परिहार-विशुद्धि चारित्र मोक्ष का मार्ग मानता है, किसी एक को नहीं (श्लो०२)। इस ४. सूक्ष्म-सम्पराय चारित्र चतुरंग मार्ग को प्राप्त करने वाले जीव ही मोक्ष को प्राप्त करते ५. यथाख्यात चारित्र
मोक्ष-प्राप्ति का चौथा साधन तप है। वह दो प्रकार का चौथे से चौदहवें श्लोक तक ज्ञान-योग का निरूपण है—बाह्य और आभ्यन्तर। प्रत्येक के छह-छह विभाग हैं। है-ज्ञान और ज्ञेय का प्रतिपादन है।
दर्शन के बिना ज्ञान नहीं होता और ज्ञान के बिना पन्द्रहवें से इकतीसवें श्लोक तक श्रद्धा-योग का निरूपण है। चारित्र नहीं आता। चारित्र के बिना मोक्ष नहीं होता और मोक्ष बत्तीसवें से चौंतीसवें श्लोक तक कर्म-योग का निरूपण है। के बिना निर्वाण नहीं होता। (श्लो०३०) पैंतीसवें श्लोक में इन योगों के परिणाम बतलाए गए हैं। ज्ञान से तत्त्व जाने जाते हैं।
मोक्ष-प्राप्ति का पहला साधन ज्ञान है। ज्ञान पांच हैं- दर्शन से उन पर श्रद्धा होती है। मति, श्रुत, अवधि, मनःपर्यव और केवल । ज्ञान के विषय हैं
चारित्र से आनव का निरोध होता है। द्रव्य, गुण और पर्याय। धर्म, अधर्म, आकाश, काल, पुद्गल तप से शोधन होता है। (श्लोक ३५) और जीव-ये छह द्रव्य हैं। गुण और पर्याय अनन्त हैं। इस प्रकार प्रस्तुत अध्ययन में इन चार मार्गों का
मोक्ष-प्राप्ति का दूसरा साधन दर्शन है। उसका विषय है निरूपण है। जब आत्म-शोध पूर्ण होता है तब जीव सिद्ध-गति तथ्य की उपलब्धि। वे नौ हैं-जीव, अजीव, पुण्य, पाप, को प्राप्त हो जाता है। आसव, संवर, निर्जरा, बन्ध और मोक्ष । दर्शन को दस रुचियों सूत्रकृतांग के प्रथम श्रुतस्कन्ध के ग्यारहवें अध्ययन का . में विभक्त किया गया है। यह विभाग स्थानांग (१०।१०४) और नाम 'मार्गाध्ययन' है। उसमें भी मोक्ष के मागों का निरूपण है।
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