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प्रवचन-माता
६. कोहे माणे च मायाए लोभे य उवउत्तया । हासे भए मोहरिए विगहासु तहेव च ॥
१०. एयाइं अट्ठ ठाणाई परिवज्जित्तु संजए । असावज्जं मियं काले भासं भासेज्ज पन्नवं ।
११. गवेसणाए गहने य
परिभोगेसणा व जा । आहारोवहिसेज्जाए एए तिन्नि विसोहए ।।
१२. उग्गमुष्यायणं पठमे
बीए सोहेज्ज एसणं । परिभोयंमि चउक्कं विसोहेज्ज जयं जई ।।
१३. ओहोवहोवग्गहियं भंडगं दुविहं मुणी गिण्हंतो निक्खिवंतो य पउंजेज्ज इमं विहिं ।। १४. चक्खुसा पडिलेहित्ता
पमज्जेज्ज जयं जई। आइए निक्खिवेज्जा वा दुहओ वि समिए सया ।।
१५. उच्चारं पासवणं
खेलं सिंघाणजल्लियं । आहारं उवहिं देहं अन्नं वावि तहाविहं ।। १६. अणावायमसंलोए
अणावाए चेव होइ संलोए । आवायमसंलोए आवाए चेय संलोए ।।
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क्रोधे माने च मायायां लोभेोपयुक्तता
हासे भये मौखर्ये विकथासु तथैव च ।।
एतान्यष्टौ स्थानानि
परिवर्ज्य संयतः ।
असावद्यां मितां काले भाषां भाषेत प्रज्ञावान् ।।
गवेषणायां ग्रहणे च परिभोगैषणा च या । आहारोपधिशय्यायां एतास्तिस्मै विशोधयेत् ।।
उद्गमोत्पादनं प्रथमाया द्वितीयायां शोधयेदेषणामु परिभोगे चतुष्कं विशोधयेद्यतं यतिः ।।
ओघोपध्यौपग्रहिकं भाण्डकं द्विविधं मुनिः । गृणन्निक्षिपश्च
प्रयुजीतेमं विधिम् ।।
चक्षुषा प्रतिलिख्य प्रमार्जयेद् यतं यतिः । आददीत निक्षिपेद् वा द्वावपि समितः सदा ।।
उच्चारं प्रस्रवणं क्ष्वेलं सिङ्घाणं जल्लकम् । आहारमुपधि देत अन्यद्वापि तथाविधम् ।।
अनापातमसंलोकम् आनापातं चैव भवति संलोकम् । आपातमसंतोक आपातं चैव संलोकम् ।।
अध्ययन २४ : श्लोक ६-१६
क्रोध, मान, माया, लोभ, हास्य, भय, वाचालता और विकथा के प्रति सावधान रहे—इनका प्रयोग न करे ।
प्रज्ञावान् मुनि इन आठ स्थानों का वर्जन कर यथा समय निरवद्य और परिमित वचन बोले ।
आहार, उपधि और शय्या के विषय में गवेषणा, ग्रहणैषणा और परिभोगेषणा- इन तीनों का विशोधन करे ।
यतनाशील यति प्रथम एषणा ( गवेषणा - एषणा) में उद्गम और उत्पादन दोनों का शोधन करे। दूसरी एषणा ( ग्रहण - एषणा ) में एषणा ( ग्रहण) सम्बन्धी दोषों का शोधन करे और परिभोगेषणा में दोष-चतुष्क ( संयोजना, अप्रमाण, अंगार-धूम और कारण ) का शोधन करे।
मुनि ओघ उपधि ( सामान्य उपकरण) और औपग्रहिक - उपधि (विशेष उपकरण) दोनों प्रकार के उपकरणों को लेने और रखने में इस विधि का प्रयोग करे
सदा सम्यक् प्रवृत्त यति दोनों प्रकार के उपकरणों का चक्षु से प्रतिलेखन कर तथा रजोहरण आदि से प्रमार्जन कर संयमपूर्वक उन्हें ले और रखे।
उच्चार, प्रस्रवण, श्लेष्म, नाक का मैल, मैल, आहार, उपधि, शरीर या उसी प्रकार की दूसरी कोई उत्सर्ग करने योग्य वस्तु का उपयुक्त स्थण्डिल में उत्सर्ग करे ।
स्थण्डिल चार प्रकार के होते हैं
१. अनापात असंलोक जहां लोगों का आवागमन न हो, वे दूर से भी न दीखते हों।
२. अनापात -संलोक जहां लोगों का आवागमन न हो, किन्तु वे दूर से भी न दीखते हों।
३. आपात असंलोक जहां लोगों का आवागमन हो, किन्तु वे दूर से न दीखते हों ।
४. आपात -संलोक-जहां लोगों का आवागमन भी हो, और वे दूर से दीखते भी हों ।
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