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उत्तरज्झयणाणि
६१-६१ अहोरात्र में होने वाला तिथि-क्षय भाद्रव, कार्तिक, पौष, फाल्गुन और वैशाख मास में होता है। ज्योतिष्करण्डक में भी वर्षा ऋतु का प्रारम्भ आषाढ़ मास से मानकर तिथि-क्षय का वर्णन है।
वर्ष
मास
पक्ष
अवम तिथि
पात तिथि
वर्ष
मास
पक्ष
श्रवण तिथि
पात तिथि
३
३
३
४
३
३
३
२
प्रथम चन्द्र वर्ष
आसो मार्ग माघ चैत्र ज्येष्ठ श्रा. आ. मार्ग.
२
अर्ध अभिवर्धित
चैत ज्येष्ठ श्रा.
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कृष्ण कृष्ण कृष्ण कृष्ण कृष्ण कृष्ण कृष्ण ३ ५ ७६ 99 १३ ०
१
४ ६ द १०
१२ १४
पौरुषी छाया - प्रमाण
पाद
अंगुल
२
४
कृ. कृ. कृ.
१
३ ५
६
द
०
१
८
४
१. ओघनियुक्ति, गाथा २८६ ।
१०. ( श्लोक १६)
पौरुषी के बाद अर्थात् भाग कम को पादोन- पौरुषी कहते हैं । पौरुषी की छाया में यंत्र निर्दिष्ट अंगुल जोड़ने से पादोन-पौरुषी की छाया का मान होता है। सरलता के लिए १२ महीनों के तीन-तीन मास के चार त्रिक किए गए हैंपहला त्रिक ज्येष्ट, आषाढ़ और श्रावण । दूसरा त्रिक-भाद्रव, आसोज और कार्तिक ।
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+
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कृ. कृ.
७
६
Τ
युग पूर्वार्ध
४२४
१०
१
अध्ययन २६ श्लोक १६ टि० १०
लोकप्रकाश में युग के प्रथम वर्ष के प्रथम मास श्रावण को प्रधान माना है। उसके अनुसार आसोज, मृगसर, माघ, चैत्र, ज्येष्ठ और श्रावण मास में तिथि क्षय होता है। युग के पांचों वर्षों का यंत्र इस प्रकार है
युग पश्विमार्थ
चन्द्र वर्ष
आ. मार्ग. माघ चैत्र ज्येष्ठ श्रा.
८
て
यह श्लोक ओघनिर्युक्ति का ज्यों का त्यों प्राप्त है । '
८
८
८
१०
१०
१०
Τ
८
अंगुल
६
६
द्वि. चन्द्र वर्ष
माघ चैत्र ज्येष्ठ श्रा.
शु. शु. शु. शु.
२
४
६
३
कृ. कृ. कृ. शु.
११ १३ ० २ १२ १४ १ ३
५
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८
६
तीसरा त्रिकगृगसर, पौष और माघ । चतुर्थ त्रिक— फाल्गन, चैत्र और वैशाख
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प्रथम त्रिक के मासों के पौरुषी प्रमाण में ६ अंगुल जोड़ने से उन मासों के पादोन- पौरुषी का छाया-प्रमाण होता है । इसी प्रकार दूसरे त्रिक के मासों में ८ अंगुल, तीसरे त्रिक के मासों में १० अंगुल और चौथे त्रिक के मासों में ८ अंगुल बढ़ाने से उन उन मासों का पादोन- पौरूषी छाया-प्रमाण आता है। यंत्र इस प्रकार है
पाद
२
२
२
अभिवर्धित वर्ष
आ. मार्ग माघ चैत्र ज्येष्ठ आषाढ़ दूसरा
शु. शु. शु. शु. शु. शुक्ल
४
६ द १० १२ १४ ५ ७ ६ ११ १३
१५
३
३
४
पादोन- पौरुषी छाया-प्रमाण
अंगुल
१०
४
अर्ध अभिवर्धित
आ. मार्ग. पोष दूसरा
शु. शु.
१२ १४
४
शु.
१०
३
99
३
१३ १५
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६
१०
3
१०
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