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अध्ययन २४ : आमुख
यह अध्ययन साधु आचार का प्रथम और अनिवार्य अंग है। कहा गया है कि चदह पूर्व पढ़ लेने पर भी जो मुनि प्रवचन - माता में निपुण नहीं है, उसका ज्ञान अज्ञान है। जो व्यक्ति कुछ नहीं जानता और प्रवचन माताओं में निपुण है, सचेत है, वह व्यक्ति स्व-पर के लिए त्राण है।
होनी चाहिए। ज्यों-त्यों, जहां कहीं वह उत्सर्ग नहीं कर सकता। जहां लोगों का आवागमन न हो, जहां चूहों आदि के बिल न हों, जो त्रस या स्थावर प्राणियों से युक्त न हो ऐसे स्थान पर मुनि को उत्सर्ग करना चाहिए। यह विधि अहिंसा की पोषक तो हैं ही किन्तु सभ्यजन सम्मत भी है । (श्लोक १५, १६, १७, (१८)
मुनि क्या खाए ?, कैसे बाले ?, कैसे चले ?, वस्तुओं का व्यवहरण कैसे करे ? उत्सर्ग कैसे करे ?- इसका स्पष्ट विवेचन इस अध्ययन में दिया गया है।
मुनि जब चले तब गमन की क्रिया में उपयुक्त हो जाए, एकतान हो जाए। प्रत्येक चरण पर उसे यह भान रहे कि “मैं चल रहा हूं।” वह चलने की स्मृति को क्षण मात्र के लिए भी न भूले। युग-मात्र भूमि को देख कर चले । चलते समय अन्यान्य विषयों का वर्जन करे। (श्लो० ६, ७, ८)
प्रवचन -माता
मुनि झूठ न बाले । झूठ के आठ कारण हैं—क्रोध, मान, माया, लोभ, हास्य, भय, मौखर्य और विकथा । मुनि इनका वर्जन करे। यह भाषा समिति का विवेक है।
मानसिक तथा वाचिक संक्लेशों से पूर्णतः निवृत्त होना मनोगुप्ति तथा वचनगुप्ति है।
मनोयोग चार प्रकार का है
१. सत्य मनोयाग । २. असत्य मनोयोग । वचनयोग चार प्रकार का है-१. सत्य वचनयोग । २. असत्य वचनयोग । ४. व्यवहार वचनयोग | काययोग — स्थान, निषीदन, शयन, उल्लंघन, गमन और इन्द्रियों के व्यापार में असत् अंश का वर्जन करना काययोग है,
३. मिश्र वचनयोग ।
मुनि शुद्ध एषणा करे । गवेषणा, ग्रहणैषणा और भोगेषणा कायगुप्ति है । के दोषों का वर्जन करे। (श्लो० ११, १२)
मुनि को प्रत्येक वस्तु याचित मिलती है। उसका पूर्ण उपयोग करना उसका कर्त्तव्य है । प्रत्येक पदार्थ का व्यवहरण उपयोग - सहित होना चाहिए। वस्तु को लेने या रखने में अहिंसा की दृष्टि होनी चाहिए। (श्लोक० १३, १४ ) मुनि के उत्सर्ग करने की विधि भी बहुत विवेकपूर्ण
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३. मिश्र मनोयोग । ४. व्यवहार मनोयोग ।
सम्पूर्ण दृष्टि से देखा जाए तो यह अध्ययन समूचे साधु जीवन का उपष्टम्भ है। इसके माध्यम से ही श्रामण्य का शुद्ध परिपालन संभव है । जिस मुनि की प्रवचन-माताओं के पालन में विशुद्धता है उसका समूचा आचार विशुद्ध है। जो इसमें स्खलित होता है वह समूचे आचार में स्खलित होता है।
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