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सामाचारी
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अध्ययन २६ : श्लोक ४५-५२
४५.पोरिसीए चउब्भाए
वंदिऊण तओ गुरूं। पडिक्कमित्तु कालस्स कालं तु पडिलेहए।।
पौरुष्याश्चतुर्भागे वन्दित्वा तो गुरुम्। प्रतिक्रम्य कालस्य कालं तु प्रतिलिखेत् ।।
चौथे प्रहर के चतुर्थ भाग में गुरु को वन्दना कर, काल का प्रतिक्रमण कर (स्वाध्याय-काल से निवृत्त होकर) काल की प्रतिलेखना करे।
४६.आगए कायवोस्सग्गे
सव्वदुक्खविमोक्खणे। काउस्सग्गं तओ कुज्जा सव्वदुक्खविमोक्खणं ।।
आगते कायव्युत्सर्गे सर्वदुःखविमोक्षणे। कायोत्सर्ग ततः कुर्यात् सर्वदुःखविमोक्षणम्।।
सर्व दुःखों से मुक्त करने वाला काय-व्युत्सर्ग (कायोत्सर्ग) का समय आने पर सर्व दुःखों से मुक्त करने वाला कायोत्सर्ग करे।
४७.राइयं च अईयारं
चिंतिज्ज अणुपुव्वसो। नाणंमि दंसणंमी चरित्तंमि तवम्मि य।।
रात्रिकं चातिचारं चिन्तयेदनुपर्वशः। ज्ञाने दर्शन चरित्रे तपसि च॥
ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप सम्बन्धी रात्रिक अतिचार का अनुक्रम से चिन्तन करे।
कायोत्सर्ग को समाप्त कर, गुरु को वंदना करे। फिर अनुक्रम से रात्रिक अतिचार की आलोचना करे।
४८.पारियकाउस्सग्गो
वंदित्ताण तओ गुरूं। राइयं तु अईयारं आलोएज्ज जहक्कम ।।
पारितकायोत्सर्गः वन्दित्वा ततो गुरुम्। रात्रिकं त्चतिचार आलोचयेद् यथाक्रमम्।।
प्रतिक्रमण से निःशल्य होकर गुरु को वंदना करे, फिर सर्व दुःखों से मुक्त करने वाला कायोत्सर्ग करे।
४६.पडिक्कमित्तु निस्सल्लो
वंदित्ताण तओ गुरूं। काउस्सग्गं तओ कुज्जा सव्वदुक्खविमोक्खणं ।।
प्रतिक्रम्य निःशल्यः वन्दित्वा ततो गुरुम्। कायोत्सर्ग ततः कुर्यात् सर्वदुःखविमोक्षणम् ।।
५०.किं तवं पडिवज्जामि
एवं तत्थ विचिंतए। काउस्सग्गं तु पारित्ता वंदई य तओ गुरूं।।
कि तपः प्रतिपद्ये एवं तत्र चिचिन्तयेत्। कायोत्सर्ग तु पारयित्वा वन्दते च ततो गुरुम्।।
मैं कौन-सा तप ग्रहण करूं२०--कायोत्सर्ग में ऐसा चिन्तन करे। कायोत्सर्ग को समाप्त कर, गुरु को वन्दना करे।
५१. पारियकाउस्सग्गो
वंदित्ताण तओ गुरूं। तवं संपडिवज्जेत्ता करेज्ज सिद्धाण संथवं ।।
पारितकायोत्सर्गः वन्दित्वा ततो गुरुम्। तपः संप्रतिपद्य कुर्यात् सिद्धानां संस्तवम्।।
कायोत्सर्ग पारित होने पर मुनि गुरु को वंदना करे। फिर तप को स्वीकार कर सिद्धों का संस्तव (स्तुति) करे।
यह समाचारी मैंने संक्षेप में कही है। इसका आचरण कर बहुत से जीव संसार-सागर को तर गए।
५२.एसा सामायारी
समासेण वियाहिया। जं चरित्ता बहू जीवा तिण्णा संसारसागरं ।।
एषा समाचारी समासेन व्याख्याता। यां चरित्वा बहवो जीवाः तीर्णाः संसारसागरम्।।
–ति बेमि।
-इति ब्रवीमि।
-ऐसा मैं कहता हूं।
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