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सामाचारी
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अध्ययन २६ : श्लोक १६-२४
१६.जेट्ठामूले आसाढसावणे
छहिं अंगुलेहिं पडिलेहा। अट्ठहिं बीयतियमी तइए दस अट्ठहिं चउत्थे।।।
ज्येष्ठामूले आषाढश्रावणे षड्भिरंगुलैः प्रतिलेखा। अष्टाभिर्द्धितीयत्रिके तृतीये दशभिरष्टभिश्चतुर्थे ।।
ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण इस प्रथम-त्रिक में छह, भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक इस द्वितीय-त्रिक में आठ, मृगशिर, पौष माघ इस तृतीय-त्रिक में दश और फाल्गुन, चैत्र, वैशाख इस चतुर्थ-त्रिक में आठ आंगुल की वृद्धि करने से प्रतिलेखना का समय होता है।१०.११
विचक्षण भिक्षु रात्रि के भी चार भाग करे। उन चारों भागों में उत्तर-गुणों की आराधना करे।
१७. रत्तिं पि चउरो भागे रात्रिमपि चतुरो भागान्
भिक्खू कुज्जा वियक्खणो। भिक्षुः कुर्याद् विचक्षणः। तओ उत्तरगुणे कुज्जा तत उत्तरगुणान् कुर्यात
राइभाएसु चउसु वि।। रात्रिभागेषु चतुर्ध्वपि।। १८. पढमं पोरिसिं सज्झायं प्रथमां पौरुषीं स्वाध्यायं
बीयं झाणं झियायई। द्वितीयां ध्यानं ध्यायति। तइयाए निद्दमोक्खं तु तृतीयायां निद्रामोक्षं तु चउत्थी भुज्जो वि सज्झायं ।। चतुर्थ्यां भूयोपि स्वाध्यायम् ।।
प्रथम प्रहर में स्वाध्याय, दूसरे में ध्यान, तीसरे में नींद और चौथे में पुनः स्वाध्याय करे।
१६.जं नेइ जया रत्तिं
नक्खत्तं तंमि नहचउब्भाए। संपत्ते विरमेज्जा सज्झायं पओसकालम्मि।।
यन्नयति यदा रात्रि नक्षत्रं तस्मिन् नभश्चतुर्भागे। सम्प्राप्ते विरमते स्वाध्यायात् प्रदोषकाले।।
जो नक्षत्र जिस रात्रि की पूर्ति करता हो, वह (नक्षत्र) जब आकाश के चतुर्थ भाग में आए (प्रथम प्रहर समाप्त हो) तब प्रदोष-काल (रात्रि के आरम्भ) में प्रारब्ध स्वाध्याय से विरत हो जाए।
२०.तम्मेव य नक्खत्ते
गयणचउब्भागसावसेसंमि। वेरत्तियं पि कालं पडिलेहित्ता मुणी कुज्जा।।
तस्मिन्नेव च नक्षत्रे गगनचतुर्भागसावशेषे। वैरात्रिकमपि कालं प्रतिलिख्य मुनिः कुर्यात् ।।
वही नक्षत्र जब आकाश के चतुर्थ भाग में शेष रहे तब वैरात्रिक काल (रात का चतुर्थ प्रहर) आया हुआ जान फिर स्वाध्याय में प्रवृत्त हो जाए।१२
पूर्वस्मिन् चतुर्भागे प्रतिलिख्य भाण्डकम्। गुरु वन्दित्वा स्वाध्यायं कुर्याद् दुःखविमोक्षणम् ।।
दिन के प्रथम प्रहर के प्रथम चतुर्थ भाग में भाण्ड-उपकरणों का प्रतिलेखन कर, गुरु को वन्दना कर, दुःख से मुक्त करने वाला स्वाध्याय करे।
२१. पुव्विल्लंमि चउब्भाए
पडिलेहित्ताण भंडयं। गुरुं वंदित्तु सज्झायं
कुज्जा दुक्खविमोक्खणं ।। २२.पोरिसोए चउब्भाए
वंदित्ताण तओ गुरूं। अपडिक्कमित्ता कालस्स भायणं पडिलेहए।।
पौरुष्याश्चतुर्भागे वन्दित्वा ततो गुरुम्। अप्रतिक्रम्य कालस्य भाजनं प्रतिलिखेत्।।
पीन पौरुषी बीत जाने पर गुरु को वन्दना कर, काल का प्रतिक्रमण-कायोत्सर्ग किए बिना ही भाजन की प्रतिलेखना करे।
२३.मुहपोत्तियं पडिलेहित्ता
पडिले हिज्ज गोच्छगं। गोच्छगलइयंगुलिओ वत्थाइं पडिलेहए।।
मुखपोतिको प्रतिलिख्य प्रतिलिखेत् गोच्छकम्। गोच्छकलतिकांगुलिकः . वस्त्राणि प्रतिलिखेत्।।
मुखवस्त्रिका की प्रतिलेखना कर गोच्छग की प्रतिलेखना करे। गोच्छग को अंगुलियों से पकड़ कर भाजन को ढांकने के पटलों की प्रतिलेखना करे।
२४.उड्ढं थिरं अतुरियं
ऊर्ध्वं स्थिरमत्वरितं पुव्वं ता वत्थमेव पडिलेहे। पूर्व तावद् वस्त्रमेव प्रतिलिखेत् । तो बिइयं पप्फोडे
ततो द्वितीयं प्रस्फोटयेत् तइयं च पुणो पमज्जेज्जा।।। तृतीयं च पुनः प्रमृज्यात् ।।
सबसे पहले ऊकडू-आसन पर बैठ, वस्त्र को ऊंचा रखे,६ स्थिर रखे और शीघ्रता किए बिना उसकी प्रतिलेखना करे-चक्षु से देखे। दूसरे के वस्त्र को झटकारे और तीसरे में वस्त्र की प्रमार्जना करे।
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