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उत्तरज्झयणाणि
अध्ययन १६ : श्लोक ६१-६६
"मुद्गरों, मुसुण्डियों, शूलों और मुसलों से त्राण-हीन दशा में मेरा शरीर चूर-चूर किया गया इस प्रकार मैं अनन्त बार दुःख को प्राप्त हुआ हूं।"
"तेज धार वाले छूरों, छुरियों और कैचियों से मैं अनेक बार खण्ड-खण्ड किया गया, दो टूक किया गया और छेदा गया हूं तथा मेरी चमड़ी उतारी गयी
“पाशों और कूटजालों द्वारा मृग की भांति परवश बना हुआ मैं अनेक बार ठगा गया, बांधा गया, रोका गया और मारा गया हूं।"
६१. मुग्गरेहिं मुसंढीहिं
सूलेहिं मुसलेहि य। गयासं भग्गगत्तेहिं
पत्तं दुक्खं अणंतसो।। ६२.खुरेहिं तिक्खधारेहि
छुरियाहिं कप्पणीहि य। कप्पिओ फालिओ छिन्नो
उक्कत्तो य अणेगसो।। ६३.पासेहिं कूडजालेहिं मिओ वा अवसो अहं। वाहिओ बद्धरुद्धो अ
बहु सो चेव विवाइओ।। ६४.गलेहिं मगरजालेहिं
मच्छो वा अवसो अहं उल्लिओ फालिओ गहिओ
मारिओ य अणंतसो।। ६५.वीदंसएहि जालेहि
लेप्पाहिं सउणो विव। गहिओ लग्गो बद्धो य
मारिओ य अणंतसो।। ६६.कुहाडफरसुमाईहिं
वड्डईहिं दुमो विव। कुट्टिओ फालिओ छिन्नो
तच्छिओ य अणंतसो।। ६७.चवेडमुट्ठिमाईहिं
कम्मारेहिं अयं पिव। ताडिओ कुट्टियो भिन्नो
चुण्णिओ य अणंतसो।। ६८.तत्ताई तंबलोहाई
तउयाइं सीसयाणि य। पाइओ कलकलंताई
आरसंतो सुभेरवं ।। ६६.तुहं पियाई मंसाई
खंडाई सोल्लगाणि य। खाविओ मि समंसाई अग्गिवण्णाई णेगसो।।
३१२ मुद्गरैः 'मुसुंढीहिं' शूलैर्मुसलैश्च। गतांश भग्नगात्रैः प्राप्तं दुःखमनन्तशः।। क्षुरैः तीक्ष्णधारैः क्षुरिकाभिः कल्पनीभिश्च। कल्पितः पाटितश्छिन्नः उत्कृत्त चानेकेशः।। पाशैः कूटजालैः मृग इव अवशोऽहम्। वाहितो बद्धरुद्धश्च बहुशश्चैव विपादितः।। गलैर्मकरजालैः मत्स्य इव अवशोऽहम्। उल्लिखितः पाटितो गृहीतः मारितश्चाऽनन्तशः।। विदंशकैलैिः लेपैः शकुन इव। गृहीतो लग्नो बद्धश्च मारितश्चाऽनन्तशः।। कुठारपरश्वादिभिः वर्धकिभिर्दुम इव। कुट्टितः पाटितश्छिन्नः तक्षितश्चाऽनन्तशः।। चपेटामुष्ट्यादिभिः कर रय इव। ताडितः कट्टितो भिन्नः चूर्णितश्चाऽनन्तशः।। तप्तानि ताम्रलोहानि
पुकानि सीसकानि च। पायितः कलकलायमानानि आरसन् सुभैरवम्।। तव प्रियाणि मांसानि खण्डानि शूल्यकानि च। खादितोऽस्मि स्वमांसानि अग्निवर्णान्यनेकशः।।
"मछली के फंसाने की कंटियों और मगरों को पकड़ने के जालों के द्वारा मत्स्य की तरह परवश बना हुआ मैं अनन्त बार खींचा, फाड़ा, पकड़ा और मारा गया हूं।" “बाज पक्षियों, जालों और वज्रलेपों के द्वारा पक्षी की भांति मैं अनन्त बार पकड़ा, चिपकाया, बांधा और मारा गया हूं।"
“बढ़ई के द्वारा वृक्ष की भांति कुल्हाड़ी और फरसा आदि के द्वारा मैं अनन्त बार कूटा, दो टूक किया, छेदा और छीला गया हूं।"
“लोहार के द्वारा लोहे की भांति चपत और मुट्ठी आदि के द्वारा मैं अनन्त बार पीटा, कूटा, भेदा और चूरा किया गया हूं।"
"भयंकर आक्रन्द करते हुए मुझे गर्म और कलकल शब्द करता हुआ तांबा, लोहा, रांगा और सीसा पिलाया गया।"
"तुझे खण्ड किया हुआ और शूल में खोंस कर पकाया हुआ मांस प्रिय था—यह याद दिलाकर मेरे शरीर का मांस काट अग्नि जैसा लाल कर मुझे खिलाया गया।"
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