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उत्तरज्झयणाणि
अध्ययन १६ : श्लोक ४७-५५ टि० ३२-३६
नाम
३२. (श्लोक ४७-७३)
किए हैं-१. कुम्भ से बड़ा बर्तन, २. उष्ट्रिका ऊंट के आकार इन श्लोकों में नारकीय वेदनाओं का चित्र खींचा गया है। का बड़ा बर्तन। पहले तीन नरकों में परमाधार्मिक देवताओं द्वारा पीड़ा पहुंचाई ___३४. जलती हुई अग्नि में (हुयासणे) जाती है और अन्तिम चार में नारकीय जीव स्वयं परस्पर वेदना अग्निकायिक जीव दो प्रकार के होते हैं-सूक्ष्म और की उदीरणा करते हैं। परमाधार्मिक देव १५ प्रकार के हैं। उनके बादर। अग्नि के बादर जीव नरक में नहीं होते। यहां जो कार्य भी भिन्न-भिन्न हैं
अग्नि का उल्लेख है, वह सजीव अग्नि के लिए नहीं किन्तु कार्य
अग्नि जैसे तापवान् और प्रकाशवान् पुद्गलों के लिए है।" (१) अंब हनन करना, ऊपर से नीचे गिराना, ३५. वजबालुका जैसी कदम्ब नदी की बालू में (वइरवालुए, बींधना आदि-आदि।
कलम्बवालुयाए) (२) अंबर्षि काटना आदि-आदि।
नरक में वज़बालुका तथा कदम्बबालुका नाम की नदियां (३) श्याम फेंकना, पटकना, बींधना आदि-आदि। हैं। इन नदियों की 'चर' को भी 'वज्रबालुका' व 'कदम्बबालुका' (४) शबल
आंते, फेफड़े, कलेजा आदि निकालना। कहा गया है। (५) रुद्र तलवार, भाला आदि से मारना, शूली ३६. (श्लोक ५०-५१) में पिरोना आदि-आदि।
तुलना के लिए देखें-सूयगडो : ११५३४, ३५॥ (६) उपरुद्र अंग-उपांगों को काटना आदि-आदि।
३७. शाल्मलि वृक्ष पर (सिंबलिपायवे) (७) काल विविध पात्रों में पचाना।
इसके लिए 'कूट शाल्मलि' शब्द का भी प्रयोग होता है। (८) महाकाल शरीर के विविध स्थानों से मांस
देखिए-उत्तरज्झयणाणि, २०३६ । इसका अर्थ है-सेमल का निकालना।
वृक्ष । इसकी त्वचा पर अगणित कांटे होते हैं। (E) असिपत्र हाथ, पैर आदि को काटना। (१०) धनु
३८. (कोलसुणएहिं, पाडिओ, फालिओ, छिन्नो) कर्ण, ओष्ठ, दांत को काटना। (११) कुम्भ विविध कुम्भियों में पचाना।
कोलसुणएहिं कोलशुनक का अर्थ 'सूअर' किया गया (१२) बालुक भूनना आदि-आदि।
है। कोल का अर्थ भी 'सूअर है।' इसलिए शुनक का अर्थ (१३) वैतरणि वशा, लोही आदि की नदी में डालना। 'कुत्ता' किया जा सकता है। (१४) खरस्वर करवत, परशु आदि से काटना।
पाडिओ—पातित । इसका अर्थ है—ऊपर से नीचे गिराना। (१५) महाघोष भयभीत होकर दौड़ने वाले नैरयिकों
फालिओ—फाटित । इसका अर्थ है-वस्त्र की तरह फाड़ना। का अवरोध करना।
छिन्नो-छिन्न। इसका अर्थ है-वृक्ष की तरह दो डाल परमाधार्मिक देवों के ये कार्य इस अध्ययन में वर्णित हैं करना। किन्तु यहां परमाधार्मिकों के नाम उल्लिखित नहीं हैं। विशेष ३९. (असीहि, मल्लीहिं, पट्टिसेहि) वर्णन के लिए देखें समवायांग, समवाय १५, वृत्ति पत्र २८, असीहि तलवारें तीन प्रकार की होती हैं-असि, खङ्ग गच्छाचार, पत्र ६४-६५।।
और ऋष्टि। असि लम्बी, खङ्ग छोटी और ऋष्टि दुधारी ३३. पकाने के पात्र में (कंदुकुंभीसु)
तलवार को कहा जाता है। ___कंदुकुंभीसु'--कंदु का अर्थ है-भट्ठा (भाड़)। कुम्भी का भल्लीहिं भल्ली (बी)। एक प्रकार का भाला। अर्थ है-छोटा घड़ा। कंदु-कुम्भी ऐसे पाक-पात्र का नाम है, पट्टिसेहि पट्टिस के पर्यायवाची नाम तीन हैं-खुरोपम, जो नीचे से चौड़ा और ऊपर से संकरे मुंह वाला हो। लोहदण्ड और तीक्ष्णधार। इनसे उसकी आकृति की जानकारी
बृहवृत्ति में इसका अर्थ लोह आदि धातु से बना हुआ मिलती है। उसकी नोके खुरपा की नोकों के समान तीक्ष्ण होती पाक-पात्र किया है। सूत्रकृतांग के चूर्णिकार ने कुम्भी के दो अर्थ हैं. यह लोहदण्ड होता है और इसकी धार तीखी होती है। १. बृहद्वृत्ति, पत्र ४५६ : कंदुकुम्भीषु-पाकभाजनविशेषरूपासु लोहादिमयीषु । 'कदम्बवालुकायां च' तथैव कदम्बवालुकानदीपुलिने च महादवाग्निसकाश २. सूत्रकृतांग ११५२४ चूर्णि पृ० १३३: कुंभी महंता कुम्भप्रमाणाधिकप्रमाणः इति योज्यत।। कुम्भी भवति, अथवा कुंभी उट्टिगा।
६. वही, पत्र ४६० : 'कोलसुणएहिं' ति सूकरस्वरूपधारिभिः । बृहवृत्ति, पत्र ४५६ : तत्र च बादराग्नेरभावात् पृथिव्या एव तथाविधः ७. वही, पत्र ४६० : 'पातितो' भुवि, 'फाटितो' जीर्णवस्त्रवत्, 'छिन्नो' स्पर्श इति गम्यते।
वृक्षवदुभयदंष्ट्राभिरिति गम्यते। ४. वही, पत्र ४५६ : अग्नी देवमायाकते।
शेषनाममाला, श्लोक १४८-१४: ५. वही, पत्र ४५६ : वज़वालुकानदीसम्बन्धिपुलिनमपि वज़वालुका तत्र यद्वा ...पट्टिसस्तु खुरोपमः।
बजवद्वालुका यरिंमस्त (स्मिन् स त) था तरिमन्नरकप्रदेश इति गम्यते, लोहदण्डस्तीक्ष्णधार...।।
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