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महानिर्ग्रन्थीय
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अध्ययन २० : श्लोक १८-२६
"प्राचीन नगरों में असाधारण सुन्दर" कौशाम्बी नाम की नगरी है। वहां मेरे पिता रहते हैं। उनके पास प्रचुर धन का संचय है।"
कौशाम्बी नाम नगरी पुराणपुरभेदिनी। तत्रासीत् पिता मम प्रभूतधनसंचयः।। प्रथमे वयसि महाराज! अतुला मेऽक्षिवेदना। अभूद् विपुलो दाहः सर्वाङ्गेषु च पार्थिव!" शस्त्रं यथा परमतीक्ष्णं शरीरविवरान्तरे। प्रवेशयेदरिः क्रुद्धः एवं मेऽक्षिवेदना।
"महाराज ! प्रथम-वय (यौवन) में मेरी आंखों में असाधारण वेदना उत्पन्न हुई। पार्थिव ! मेरा समूचा शरीर पीड़ा देने वाली जलन से जल उठा।"
"जैसे कुपित बना हुआ शत्रु शरीर के छेदों में अत्यन्त तीखे शस्त्रों को घुसेड़ता है, उसी प्रकार मेरी आखों में वेदना हो रही थी।"
"मेरे कटि, अन्तश्चेतना और मस्तक में परम दारुण वेदना हो रही थी, जैसे इन्द्र का वज लगने से घोर वेदना होती है।"
१८.कोसंबी नाम नयरी
पुराणपुरभेयणी। तत्थ आसी पिया मज्झ
पभूयधणसंचओ।। १६.पढमे वए महाराय !
अउला मे अच्छिवेयणा। अहोत्था विउलो दाहो
सव्वंगेसु य पत्थिवा!।। २०.सत्थं जहा परमतिक्खं
सरीरविवरंतरे। पवेसेज्ज अरी कुद्धो
एवं मे अच्छिवेयणा ।। २१.तियं मे अंतरिच्छं च
उत्तमंगं च पीडई। इंदासणिसमा घोरा
वेयणा परमदारुणा ।। २२.उवट्ठिया मे आयरिया विज्जामंततिगिच्छगा। अबीया सत्थकुसला मंतमूलविसारया।। २३.ते मे तिगिच्छं कुवंति
चाउप्पायं जहाहियं । न य दुक्खा विमोयंति
एसा मज्झ अणाहया ।। २४.पिया मे सव्वसारं पि दिज्जाहि मम कारणा। न य दुक्खा विमोएइ
एसा मज्झ अणाहया।। २५.माया य मे महाराय !
पुत्तसोगदुहट्टिया। न य दुक्खा विमोएइ
एसा मज्झ अणाहया ।। २६.भायरो मे महाराय !
सगा जेट्टकणिट्ठगा। न य दुक्खा विमोयंति एसा मज्झ अणाहया ।।
त्रिकं मे अन्तरिक्षं च उत्तमांगं च पीडयति। इन्द्राशनिसमा घोरा वेदना परमदारुणा।। उपस्थिता मे आचार्याः विद्यामन्त्रचिकित्सकाः।
अद्वितीयाः शास्त्रकुशलाः मंत्रमूलविशारदाः।। ते मे चिकित्सां कुर्वन्ति चतुष्पादां यथाऽऽहृताम् । न च दुःखाद् विमोचयन्ति एषा ममाऽनाथता।।
“विद्या और मन्त्र के द्वारा चिकित्सा करने वाले मन्त्र
और औषधियों के विशारद अद्वितीय शास्त्र-कुशल प्राणाचार्य मेरी चिकित्सा करने के लिए उपस्थित हुए।"१३ “उन्होंने गुरु-परंपरा से प्राप्त आयुर्विद्या के आधार पर मेरी चतुष्पाद-चिकित्सा की, किन्तु वे मुझे दुःख से मुक्त नहीं कर सके—यह मेरी अनाथता है।"
पिता में सर्वसारमपि दद्यान् मम कारणात्। न च दुःखाद् विमोचयति एषा ममाऽनाथता।।
"मेरे पिता ने मेरे लिए उन प्राणाचार्यों को बहुमूल्य वस्तुएं दीं, किन्तु वे (पिता) मुझे दुःख से मुक्त नहीं कर सके—यह मेरी अनाथता है।"
"महाराज ! मेरी माता पुत्र-शोक के दुःख से पीड़ित होती हुई भी मुझे दुःख से मुक्त नहीं कर सकी-यह मेरी अनाथता है।"
माता च मे महाराज! पुत्रशोकदुःखार्ता। न च दुःखाद् विमोचयति एषा ममाऽनाथता।। भ्रातरो मे महाराज! स्वका ज्येष्ठकनिष्ठकाः। न च दुःखाद् विमोचयन्ति एषा ममाऽनाथता।।
"महाराज ! मेरे बड़े-छोटे सगे भाई भी मुझे दुःख से मुक्त नहीं कर सके—यह मेरी अनाथता है।"
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