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उत्तरज्झयणाणि
एक बार उसने मधुघृत संयुक्त पेय पीया और जब रथनेमि आए तब मदन फल खा उल्टी की और रथनेमि से कहा--- " इस पेय को पीएं।" उसने कहा- " वमन किए गए को कैसे पीऊं ?” राजीमती ने कहा- “क्या तुम यह जानते हो ?” रथनेमि ने कहा- “ इस बात को बालक भी जानता है।” राजीमती ने कहा – “यदि यह बात है तो मैं भी अरिष्टनेमि द्वारा वान्त हूं। मुझे ग्रहण करना क्यों चाहते हो ? धिक्कार है तुम्हें जो वमी हुई वस्तु को पीने की इच्छा करते हो ! इससे तो तुम्हारा मरना श्रेयस्कर है।" इसके बाद राजीमती ने धर्म कहा । रथनेमि जागृत हुए और आसक्ति से उपरत हुए। राजीमती दीक्षाभिमुख हो अनेक प्रकार के तप और उपधानों को करने लगी।
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अध्ययन २२ : आमुख
गया। अचानक ही राजीमती ने रथनेमि को देख लिया और शीघ्र ही अपनी बाहों से अपने आपको ढकती हुई वह वहीं बैठ गई । रथनेमि ने कहा- "मै तेरे में अत्यन्त अनुरक्त हूं। तेरे विना मैं शरीर धारण नहीं कर सकता। तू मुझे स्वीकार कर । अवस्था आने पर हम दोनों संयम मार्ग को स्वीकार कर लेंगे।” राजीमती ने विषयों के दारुण-विपाक, जीवन की अस्थिरता और व्रत भंग के फल का निरूपण किया। उसे धर्म कहा। वह संबुद्ध हुआ। राजीमती का अभिनन्द कर वह अपने माण्डलिक साधुओं में चला गया। राजीमती भी आर्यिका के पास चली गई।
भगवान अरिष्टनेमि केवली हुए। देवों ने केवली - महोत्सव किया रथनेमि प्रव्रजित हुए। राजीमती भी अनेक राजकन्याओं के साथ प्रव्रजित हुई। एक बार भगवान् अरिष्टनेमि रैवतक पर्वत पर समवसृत थे। साध्वी राजीमती अनेक साध्वियों के साथ वन्दना करने गई। अचानक ही वर्षा प्रारम्भ हो गई। साथ वाली सभी साध्वियां इधर-उधर गुफाओं में चली गईं। राजीमती भी एक गुफा में गई' उसी गुफा में मुनि रथनेमि पहले से ही बैठे हुए थे। राजीमती को यह ज्ञात नहीं था। गुफा में अन्धकार व्याप्त था। उसने अपने कपड़े सूखने के लिए ये तीन शब्द प्राचीन कुलों के द्योतक हैं। फैलाए । नग्नावस्था में उसे देख रथनेमि का मन विचलित हो
१. उस गुफा को आज भी राजीमती गुफा कहा जाता है। विविध तीर्थकल्प, पृ० ६ ।
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नियुक्तिकार के अनुसार प्रत्येक बुद्ध रथनेमि चार सौ वर्षों तक गृहस्थवास में रहे, एक वर्ष तक छद्मस्थ अवस्था में और पांच सौ वर्ष तक केवली पर्याय में रहे।
संयम को विशुद्ध पालते हुए दोनों— रथनेमि और राजीमती सिद्ध, बुद्ध और मुक्त हो गए। राजीमती का जीवन-काल भी रथनेमि जितना ही रहा।
इस अध्ययन के ४२, ४३, ४४, ४६ और ४६ - ये पांच श्लोक दशवैकालिक के दूसरे अध्ययन में ज्यों-के-त्यों आए हैं 1
इस अध्ययन में आए हुए भोज, अन्धक और वृष्णि
पूरे कथानक के लिए देखें- सुखबोधा, पत्र २७७-२८२ ।
२.
उत्तराध्ययन निर्युक्ति गाथा, ४४६ । ३. वही, गाथा ४४७ ।
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