________________
मूल
१. सोरियपुरंमि नयरे आसि राया महिड्डिए । वसुदेवेत्ति नामेण रायलक्खणसंजुए।
२. तस्स भज्जा दुवे आसी रोहिणी देवई तहा । तासि दोन्हं पि दो पुत्ता इट्ठा रामकेसवा ।।
३. सोरियपुरंमि नयरे
आसि राया महिड्डिए । समुद्दविजए नाम रायलक्खणसंजुए ||
४. तस्स भज्जा सिवा नाम तीसे पुत्तो महावसो । भगवं अरिनेमिति लोगनाडे दमीसरे ।। ५. सोरिट्ठनेमिनामो उ
लक्खणस्सरसंजुओ। अट्ठसहस्स लक्खणधरो गोयमो कालगच्छवी ।। ६. वज्जरिसहसंघयणो
समचउरंसो झसोयरो । तस्स राईमई कन्नं भज्जं जायइ केसवो ||
७. अह सा रायवरकन्ना
सुसीला चारुपेहिणी । सव्वलक्खणसंपन्ना विज्जुसोयामणिप्पभा ।।
८. अहाह जणओ तीसे वासुदेवं महिड्डियं । इहागच्छऊ कुमारो जा से कन्नं दलाम हं ।।
Jain Education International
बाइसमं अज्झयणं
रहनेमिज्जं स्थनेमीय
संस्कृत छाया
सोरियपुरे नगरे आसीद्राजा महर्द्धिकः । वसुदेव इति नाम्ना
राजलक्षणसंयुतः ।।
तस्य भार्ये द्वे आस्तां रोहिणी देवकी तथा । तयोर्द्वयोरपि दी पुत्री इष्टौ रामकेशवौ ।।
सोरियपुरे नगरे आसीद्राजा महर्द्धिकः । समुद्रविजयो नाम
राजलक्षणसंयुतः ।।
तस्य भार्या शिवा नाम तस्याः पुत्रो महायशाः । भगवानरिष्टनेमिरिति लोकनाथो दमीश्वरः ।।
सोऽरिष्टनेमिनामा तु स्वरलक्षणसंयुतः ।
अष्टसहस्रलक्षणधरः
:
गौतमः कालकच्छविः ।।
वज्रऋषभसंहननः समचतुरसो झघोदरः । तस्य राजीमतीं कन्यां भायां याचते केशवः ।।
अथ सा रावरकन्या
सुशीला वारुप्रेक्षिणी। सर्वलक्षणसम्पूर्णा विद्युत्सौदामिनीप्रभा ।।
बावीसवां अध्ययन
अथाह जनकस्तस्याः
वासुदेवं महर्द्धिकम् । इहागच्छतु कुमारः येन तस्मै कन्यां ददाम्यहम् ।।
हिन्दी अनुवाद
सोरियपुर नगर में राज- लक्षणों से युक्त वसुदेव नामक महान् ऋद्धिमान् राजा था।
उसके रोहिणी और देवकी नाम दो भार्याएं थीं। उन दोनों के राम और केशव - ये दो प्रिय पुत्र थे ।
सोरियपुर नगर में राज- लक्षणों से युक्त समुद्रविजय नामक महान् ऋद्धिमान् राजा था।
उसके शिवा नामक भार्या थी। उसके भगवान् अरिष्टनेमि नामक पुत्र हुआ। वह लोकनाथ एवं जितेन्द्रियों में प्रधान था।
वह अरिष्टनेमि स्वर लक्षणों से युक्त, एक हजार आठ शुभ लक्षणों का धारक', गौतम गोत्री और श्याम वर्ण वाला था ।
वह वज्रऋषभ संहनन' और समचतुरस्र संस्थान वाला था । उसका उदर मछली के उदर जैसा था। केशव ने उसके लिए राजीमती कन्या की मांग की।
वह राजकन्या सुशील, चारु-प्रेक्षिणी (मनोहर-चितवन बाली), स्त्री- जनोचित सर्व लक्षणों से परिपूर्ण और चमकती हुई बिजली जैसी प्रभा वाली थी।"
उसके पिता उग्रसेन ने महान् ऋद्धिमान् वासुदेव से कहा – “कुमार यहां आए तो मैं उसे अपनी कन्या दे सकता हूं।"
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org