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टिप्पण
अध्ययन २० : महानिर्ग्रन्थीय
१. सिद्धों और संयत आत्माओं को भावभरा नमस्कार कर (सिद्धाणं नमो......भावओ)
इस अध्ययन का प्रारम्भ नमस्कार के साथ हुआ है। आगम- साहित्य में मंगल-विधि का प्रयोग विरल ही मिलता है। यहां सिद्धों और संयतों को नमस्कार किया गया है ।
वृत्तिकार ने 'संयत' शब्द से आचार्य, उपाध्याय और होता है। सर्वसाधु का ग्रहण किया है।"
खारवेल का शिलालेख, जो ईस्वी पूर्व १५२ का है, उसमें 'नमो अरहंताणं', 'नमो सब्ब सिधाणं' इन दोनों पदों को नमस्कार किया गया है।
इस प्रकार नमस्कार मंगल की परम्पराएं भिन्न-भिन्न
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रही हैं २. अर्थ और धर्म का ज्ञान कराने वाली तथ्यपूर्ण (अत्यधम्मगई तच्च)
यहां 'अत्थधम्मगई तच्चं' तथा अध्ययन २८ / १ में 'मोक्खमग्गगई तच्च' – इन दोनों में 'गइ' का अर्थ ज्ञान होना चाहिए। आप्टे ने 'गइ' का अर्थ ज्ञान किया है। डॉ० हर्मन जेकोबी ने 'गइ' का अर्थ मोक्ष किया है तथा अर्थ, धर्म और मोक्ष-— इन तीनों की चर्चा करते हुए वे लिखते हैं- “मैं सोचता हूं कि 'अत्थधम्मगई' द्वारा अर्थ, धर्म और मोक्ष की चर्चा की गई है। यद्यपि वृत्तिकार गति का अर्थ ज्ञान करते हैं। 'कामार्थ - धर्ममोक्ष' – इस उक्तिविशेष में से काम को निकाल दिया गया है, क्योंकि साधुओं के लिए काम वर्जनीय है । "५
२८ वें अध्ययन से यह स्पष्ट है कि 'गइ' का अर्थ मोक्ष नहीं है। अर्थ शब्द के अनेक अर्थ हैं। यहां इसका प्रयोग पदार्थ, साध्य या लक्ष्य के लिए किया गया प्रतीत होता है। इस प्रकार मोक्ष और धर्म दो पुरुषार्थ की चर्चा प्रासंगिक है। 'अत्थधम्मगइ' का तात्पर्य होगा—पदार्थ, साध्यभूत मोक्ष और साधनभूत धर्म का ज्ञान ।
'तच्च' शब्द यथार्थवाद का द्योतक है। दर्शन जगत् में १. बृहद्वृत्ति, पत्र ४७२ : 'संयतेभ्यश्च' सकलसावद्यव्यापारोपरतेभ्यः आचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः इति यावत् ।
२. प्राचीन भारतीय अभिलेख, द्वितीय खंड, पृष्ठ २६ ।
३. इसी प्रकार ३० तथा ३५ वें अध्ययन का नाम क्रमशः 'तवमग्गगई', 'अणगारमग्गगई' है।
४. आप्टे संस्कृत-इंग्लिश डिक्शनरी ।
५.
S.B.E, Vol. XLVP. 100 footnote. Atthadhammagaim arthadharmagati.
I think this equal to artha dharma moksha, though the Commentators
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,
दो धाराएं हैं- एक प्रत्ययवाद की दूसरी यथार्थवाद की । प्रत्ययवाद चेतना के अस्तित्व को मूल मानकर पदार्थ को केवल उसी चेतना के प्रत्यय रूप बताता है, जबकि यथार्थवाद प्रत्येक पदार्थ का वस्तुनिष्ठ अस्तित्व निरूपित करता है। 'तच्च' तथ्य या यथार्थ के निरूपण का संकेत है। इससे यथार्थवाद फलित
जैन दर्शन पदार्थ की सत्ता को यथार्थ मानता है । 'अत्यधम्मगई तच्च' का तात्पर्य होगा—यथार्थवाद, जहां अर्थ (पदार्थ) और धर्म का निरूपण है।
२८ / १ में 'मोक्खमग्गगई तच्चं' का तात्पर्य होगायथार्थवाद, जहां मोक्ष मार्ग का निरूपण है।
'अर्थ तत्त्व का' तात्पर्य है-वस्तु का सही रूप या वास्तविक सत्य ।"
३. रत्नों से (... रयणो)
यहां 'रयण' शब्द के दो अर्थ हैं- (१) हीरा, पन्ना आदि रत्न तथा (२) विशिष्ट हाथी, घोड़े । "
राजाओं की ऋद्धि-सिद्धि में विशिष्ट लक्षणयुक्त हाथी-घोड़ों को भी 'रत्न' माना गया है।
४. आश्चर्य कैसा वर्ण और कैसा रूप है (अहो ! वण्णो अहो ! रूवं )
प्रस्तुत श्लोक में अनाथी मुनि की शरीर संपदा के लिए दो शब्दों का प्रयोग हुआ है-वर्ण और रूप । वर्ण का अर्थ है— लावण्य और रूप का अर्थ है-शरीर का आकार । ५. प्रदक्षिणा (पवाहिण)
इस श्लोक में वन्दन के पश्चात् 'प्रदक्षिणा' का कथन आया है । वन्दन के साथ ही 'प्रदक्षिणा' की विधि रही है तो यहां वन्दन के बाद प्रदक्षिणा का कथन कैसे—यह प्रश्न हो सकता है।
बृहद् वृत्तिकार ने इसका समाधान यों दिया है कि पूज्य व्यक्तियों के दीखते ही वन्दना करनी चाहिए। इसकी सूचना
offer a different explanation by making 'gati' mean 'gnana'. The phrase is derived from the typical expression kamartha dharmamoksha by leaving out kama, which of course could not be admitted by ascetics. ६. आप्टे संस्कृत-इंग्लिश डिक्शनरी अर्थ तत्त्व- The real truth, the fact of the matter. 2. The real nature or cause of anything.
बृहद्वृत्ति, पत्र ४७२ रत्नानि मरकतादीनि प्रवरगजाश्वादिरूपाणि वा । वही, पत्र ४७३ 'वर्ण' सुस्निग्धो गौरतादिः, 'रूपम्' आकारः ।
७.
८.
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