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उत्तरज्झयणाणि
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अध्ययन १७ : श्लोक २१ टि० २६ २६. (श्लोक २०-२१)
खरगोश था। जंगल में शिकार कर वापिस आते समय वह इन दो श्लोकों में दो मार्ग उपदिष्ट हैं—एक कुवत का, मार्ग भूल गया। उसने सामने एक तापस के आश्रम को देखा। दूसरा सुव्रत का।
मार्ग पूछने के लिए वह तापस की कुटिया में आया और पहला अधोगमन का मार्ग है। वह व्यक्ति के वर्तमान बोला-महात्मन् ! मैं भटक गया हूं। मुझे मार्ग बताएं। संन्यासी और भविष्य दोनों को बिगाडता है। दसरा ऊर्ध्वगमन का ने कहा-राजन ! मैं तो दो ही मार्ग जानता हूं-अहिंसा स्वर्ग मार्ग है। वह व्यक्ति के वर्तमान और भविष्य-दोनों को का मार्ग है और हिंसा नरक का मार्ग है। तीसरा मार्ग मैं नहीं सुधारता है
जानता। राजा ने सदा-सदा के लिए अहिंसा का मार्ग चुन किसी अरण्य में एक संन्यासी साधना कर रहा था। एक लिया। यह सुव्रत का मार्ग है। साधना करने वाले व्यक्ति को भी दिन कोई राजा उधर से निकला। उसके हाथ में मरा हुआ सुव्रत का मार्ग चुनना है।
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