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टिप्पण
अध्ययन
१. हस्तिनापुर में (हत्थिणपुरम्मि)
वर्तमान में इसकी पहचान हस्तिनापुर गांव से की जाती है । यह मेरठ जिले के मवाना तहसील में मेरठ से बाईस मील उत्तर-पूर्व में स्थित है।
विशेष विवरण के लिए देखें-- परिशिष्ट ५ । २. निदान ( नियाणं)
निदान का अर्थ है - पौद्गलिक पदार्थों की प्राप्ति के लिए किया जाने वाला संकल्प । यह आर्त्तध्यान के चार भेदों में से चौथा भेद है दशाश्रुतस्कंध दशा १० में इसका विस्तृत वर्णन प्राप्त है।
प्रस्तुत प्रसंग में मुनि संभूत द्वारा किए गए निदान का उल्लेख है । नमुचि से पराजित होकर मुनि संभूत ने तेजोलेश्या का प्रयोग किया। सारा नगर अन्धकारमय हो गया। पौरजन भयभीत हो गए। चक्री सनत्कुमार और पौरजन मुनि के पास आए। अनुनय-विनय कर तेजोलेश्या के संहरण की प्रार्थना की। चक्रवर्ती की पत्नी सुनन्दा मुनि के चरणों में गिर पड़ी। उसके केशों के सुखद और कोमल स्पर्श से मुनि विचलित हो गए। उन्होंने निदान किया -- यदि मेरी तपस्या का फल है तो मैं अगले जन्म में चक्रवर्ती बनूं।
पूरे कथानक के लिए देखें – आमुख । ३. कांपिल्य नगर में (कंपिल्ले)
१३ : चित्र - संभूतीय
४. ( श्लोक ६ )
दसणे दशार्ण देश । बुंदेलखंड और केन नदी का प्रदेश दशार्ण माना जाता है। इस नाम के दो देश मिलते हैं—पूर्व दशार्ण और पश्चिम दशार्ण । पूर्व दशार्ण मध्यप्रदेश के छत्तीसगढ़ जिले में माना जाता है। पश्चिम दशार्ण में भोपाल राज्य और पूर्व मालव का समावेश होता है।
उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद जिले में फतेहगढ़ से अठाइस मील उत्तर-पूर्व गंगा के समीप कांपिल गांव है। कांपिल्य की पहचान इसी गांव से की जाती है।
विशेष विवरण के लिए देखें—परिशिष्ट ५ ।
9.
पुरिमताल में ( पुरिमतालम्मि)
मानभूम के पास 'पुरुलिया' नाम का गांव है। यह अयोध्या का शाखा-नगर है। माना जाता है कि यही पुरिमताल है।
विशेष विवरण के लिए देखें—परिशिष्ट ५ ।
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(क) उत्तराध्ययन चूर्णि, पृ० २१५: मतगंगा-हेट्ठाभूमीए गंगा, अण्णमणेहिं मग्गेहिं जेण पुव्वं वोढूणं पच्छा ण वहति सा भतगंगा भण्णति । (ख) सर्वार्थसिद्धि, पृ० २६१ :
गंगा विशति पाथोधिं, वर्षे वर्षे पराध्वना । वाहस्तत्रचिरात् त्यक्तो, मृतगंगेति कथ्यते ।।
कालिंजरे नगे — कालिंजर पर्वत । यह बांदा के पूरब में स्थित एक पहाड़ है। यह तीर्थस्थान भी माना जाता है।
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मयंगतीरे—मृतगंगा के किनारे । चूर्णि और सर्वार्थसिद्धि के अनुसार गंगा प्रति वर्ष नए-नए मार्ग से समुद्र में जाती है। जो मार्ग चिर- त्यक्त हो- बहते - बहते गंगा ने जो मार्ग छोड़ दिया हो उसे मृतगंगा कहा जाता है।'
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कासिभूमि— काशी देश में काशी जनपद पूर्व में मगध, पश्चिम में वत्स, उत्तर में कौशल और दक्षिण में 'सोन' नदी तक विस्तृत था। इसकी राजधानी थी वाराणसी। आज बनारस को ही काशी कहा जाता है। 1
विशेष विवरण के लिए देखें—परिशिष्ट ५ । ५. सत्य और शौचमय (सच्चसोय.... ..)
चूर्णिकार ने सत्य के दो अर्थ किए हैं—सबके 'लिए हितकर और संयम । शौच शब्द के तीन अर्थ प्राप्त हैं— विशुद्धि, मायारहित अनुष्ठान अर्थात् व्रतों का स्वीकरण और तप । *
वृत्ति में सत्य का अर्थ है— मृषा भाषा का परिहार और शौच का अर्थ है—मायारहित अनुष्ठान । ६. (श्लोक १०)
प्रस्तुत श्लोक का वाक्य है—कडाण कम्माण न मोक्ख अस्थि - किए हुए कर्मों का फल भोगे बिना छुटकारा नहीं होता। प्रश्न होता है— क्या सभी कर्मों का फल भुगतना पड़ता है ? चूर्णिकार का मत है कि जो कर्म निधत्ति और निकाचित रूप में बद्ध है, उन्हें भोगना ही पड़ता है। शेष कर्मों को बदला जा सकता है—उनके रस को मंद और स्थिति को कम किया जा सकता है।
उत्तराध्ययन चूर्णि, पृ० २१५ ।
२.
३. बृहद्वृत्ति, पत्र ३८४ ।
४.
उत्तराध्ययन चूर्ण, पृ० २१५: बद्धपुव्वा णिधत्तणिकाइयाणं ण मोक्खो अत्थि ।
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