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चित्र सम्भूतीय
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अध्ययन १३ : आमुख
मुनि ने यह सुना और उसके आगे के दो चरण पूरा “मुझे मत मारो। श्लोक की पूर्ति मैंने नहीं की है।” “तो किसने करते हुए कहाकी है ?" -- सभासदों ने पूछा। वह बोला- “मेरे रहंट के पास खड़े एक मुनि ने की है।” अनुकूल उपचार पाकर सम्राट् सचेतन हुआ। सारी बात की जानकारी प्राप्त कर वह मुनि के दर्शन के लिए सपरिवार चल पड़ा। कानन में पहुंचा। मुनि को देखा । वन्दना कर विनयपूर्वक उनके पास बैठ गया । बिछुड़ा हुआ योग पुनः मिल गया। अब वे दोनों भाई सुख-दुःख के फल- विपाक की चर्चा करने लगे। यही चर्चा इस अध्ययन में प्रतिपादित है।' बौद्ध ग्रंथों में भी इस कथा का प्रकारांतर से उल्लेख मिलता है ।
"एषा नौ षष्ठिका जातिः, अन्योन्याभ्यां वियुक्तयोः ॥ रहंट चलाने वाले उस व्यक्ति ने उन दोनों चरणों को एक पत्र में लिखा और आधा राज्य पाने की खुशी में वह दौड़ा-दौड़ा राज दरबार में पहुंचा। सम्राट् की अनुमति प्राप्त कर वह राज्यसभा में गया और एक ही सांस में पूरा श्लोक सम्राट् को सुना डाला। उसे सुनते ही सम्राट् स्नेहवश मूच्छित हो गया । सारी सभा क्षुब्ध हो गई। सभासद् क्रुद्ध हुए और उसे पीटने लगे। उन्होंने कहा – “तू ने सम्राट् को मूच्छित कर दिया । यह कैसी तेरी श्लोक-पूर्ति ?” मार पड़ी तब वह बोला
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कथा के विस्तार के लिए देखें-सुखवोधा, पत्र १८५-१६७ ।
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२. चित्र-संभूत जातक संख्या ४६८ ।
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