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उत्तरयज्झणाणि
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अध्ययन ६ : आमुख
(२) पार्श्वनाथ के तीर्थ में होने वाले प्रत्येक-बुद्ध- कंकण से घर्षण नहीं होता और घर्षण के बिना शब् कहां से १. गाहावती-पुत्र तरुण ६. वर्द्धमान
उठे?" २. दगभाल १०. वायु
राजा नमि प्रबुद्ध हो गया। उसने सोचा सुख अकेलेपन ३. रामपुत्र ११. पार्श्व
में है। जहां द्वन्द्व है—दो हैं—वहां दुःख है। विरक्त भाव से वह ४. हरिगिरि १२. पिंग
आगे बढ़ा। उसने प्रव्रजित होने का दृढ़ संकल्प किया। ५. अम्बड
१३. महाशाल-पुत्र अरुण अकस्मात् ही नमि को राज्य छोड़ प्रव्रजित होते ६. मातंग
१४. ऋषिगिरि
देख उसकी परीक्षा के लिए इन्द्र ब्राह्मण का वेश बनाकर ७. वारत्तक १५. उद्दालक
आता है, प्रणाम कर नमि को लुभाने के लिए अनेक प्रयास ८. आर्द्रक
करता है और कर्त्तव्य-बोध देता है। राजा नमि ब्राह्मण को (३) महावीर के तीर्थ में होने वाले प्रत्येक-बुद्ध
अध्यात्म की गहरी बात बताता है और संसार की असारता का १. वित्त तारायण
६. इन्द्रनाग
बोध देता है। २. श्रीगिरि ७. सोम
इन्द्र ने कहा-“राजन् ! हस्तगत रमणीय भोगों को ३. साति-पुत्र बुद्ध
८. यम
छोड़कर परोक्ष काम-भोगों की वांछा करना क्या उचित कहा जा ४. संजय
६. वरुण
सकता है?" (श्लोक ५१) राजा ने कहा- "ब्राह्मण ! काम त्याज्य ५. द्वीपायन
१०. वैश्रमण
हैं, वे शल्य हैं, विष के समान हैं, आशीविष सर्प के तुल्य हैं। करकण्डु आदि चार प्रत्येक-बुद्धों का उल्लेख इस तालिका काम-भोगों की इच्छा करने वाले उनका सेवन न करते हुए भी में नहीं है।
दुर्गति को प्राप्त होते हैं (श्लोक ५३)।" विदेह राज्य में दो नमि हुए हैं। दोनों अपने-अपने राज्य 'आत्म-विजय ही परम विजय है'—इस तथ्य को स्पष्ट का त्याग कर अनगार बने। एक तीर्थंकर हुए, दूसरे अभिव्यक्ति मिली है। इन्द्र ने कहा----“राजन् ! जो कई राजा प्रत्येक-बुद्ध।' इस अध्ययन में दूसरे नमि (प्रत्येक-बुद्ध) की तुम्हारे सामने नहीं झुकते, पहले उन्हें वश में करो, फिर मुनि प्रव्रज्या का विवरण है। इसलिए इसका नाम नमि-प्रव्रज्या रखा बनना (श्लोक ३२)।" नमि ने कहा---"जो मनुष्य दुर्जेय संग्राम गया है।
में दस लाख योद्धाओं को जीतता है, उसकी अपेक्षा जो व्यक्ति ___ मालव देश के सुदर्शनपुर नगर में मणिरथ राजा राज्य एक आत्मा को जीतता है, यह उसकी परम विजय है। आत्मा करता था। उसका कनिष्ठ भ्राता युगबाहु था। मदनरेखा युगबाहु के साथ युद्ध करना ही श्रेयस्कर है। दूसरों के साथ युद्ध करने की पत्नी थी। मणिरथ ने कपटपूर्वक युगबाहु को मार डाला। से क्या लाभ? आत्मा को आत्मा के द्वारा जीत कर मनुष्य सुख मदनरेखा उस समय गर्भवती थी। उसने जंगल में एक पुत्र को पाता है। पांच इन्द्रियां तथा क्रोध, मान, माया, लोभ और मनजन्म दिया। उस शिशु को मिथिला-नरेश फ्मरथ ले गया। उसका ये दुर्जेय हैं। एक आत्मा को जीत लेने पर ये सब जीत लिये जाते नाम 'नमि' रखा।
हैं (श्लोक ३४-३६)।" पद्मरथ के श्रमण बन जाने पर 'नमि' मिथिला का 'संसार में न्याय-अन्याय का विवेक नहीं है'-इसकी राजा बना। एक बार वह दाह-ज्वर से आक्रान्त हुआ। छह मास स्पष्ट अभिव्यक्ति यहां हुई है। इन्द्र ने कहा-“राजन् ! अभी तक घोर वेदना रही। उपचार चला। दाह-ज्वर को शान्त तुम चोरों, लुटेरों, गिरहकटों का निग्रह कर नगर में शान्ति करने के लिए रानियां स्वयं चन्दन घिसतीं। एक बार स्थापित करो, फिर मुनि बनना (श्लोक २८)।" नमि ने कहासभी रानियां चन्दन घिस रही थीं। उनके हाथों में पहिने हुए “ब्राह्मण ! मनुष्यों द्वारा अनेक बार मिथ्या-दण्ड का प्रयोग किया कंकण बज रहे थे। उनकी आवाज से 'नमि' खिन्न हो उठा। जाता है। अपराध नहीं करने वाले पकड़े जाते हैं और अपराध उसने कंकण उतार लेने को कहा। सभी रानियों ने करने वाले छूट जाते हैं (श्लोक ३०)।" सौभाग्य-चिन्हस्वरूप एक-एक कंकण को छोड़कर शेष सभी इस प्रकार इस अध्ययन में जीवन के समग्र दृष्टिकोण को उतार दिए।
उपस्थित किया गया है। दान से संयम श्रेष्ठ है (श्लोक ४०), कुछ देर बाद राजा ने अपने मन्त्री से पूछा-“कंकण का अन्यान्य आश्रमों में संन्यास आश्रम श्रेष्ठ है (श्लोक ४४), शब्द सुनाई क्यों नहीं दे रहा है ?" मंत्री ने कहा--"स्वामिन् ! सन्तोष त्याग में है, भोग में नहीं (श्लोक ४८-४६) आदि-आदि कंकणों के घर्षण का शब्द आपको अप्रिय लगा था इसलिए सभी भावनाओं का स्फुट निर्देश है। जब इन्द्र ने देखा कि राजा नमि रानियों ने एक-एक कंकण रखकर शेष सभी उतार दिए। एक अपने संकल्प पर अडिग है, तब उसने अपना मूल रूप प्रकट १. उत्तराध्ययन नियुक्ति, गाथा २६७ :
दुन्निवि नमी विदेहा, रज्जाई पयहिऊण पव्वइया। एगो नमितित्थयरो, एगो पत्तेयबुद्धो अ।।
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