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उत्तरज्झयणाणि
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अध्ययन १० : श्लोक १८-२६ १८.अहीणपंचिंदियत्तं पि से लहे अहीनपंचेन्द्रियत्वमपि स लभेत पांचों इन्द्रियां पूर्ण स्थान होने पर भी उत्तम धर्म" की
उत्तमधम्मसुई हु दुल्लहा। उत्तमधर्मश्रुतिः खलु दुर्लभा। श्रुति दुर्लभ है। बहुत सारे लोग कुतीर्थिकों की सेवा कुतित्थिनिसेवए जणे कुतीर्थिनिषेवको जनो
करने वाले होते हैं, इसलिए हे गौतम ! तू क्षण भर समयं गोयम! मा पमायए।। समयं गौतम! मा प्रमादीः।। भी प्रमाद मत कर। १६.लक्ष्ण वि उत्तमं सुई लब्ध्वाप्युत्तमां श्रुति
उत्तम धर्म की श्रुति मिलने पर भी श्रद्धा होना और सद्दहणा पुणरावि दुल्लहा। श्रद्धानं पुनरपि दुर्लभम् । अधिक दुर्लभ है। बहुत सारे लोग मिथ्यात्व का सेवन मिच्छत्तनिसेवए जणे मिथ्यात्वनिषेवको जनो करने वाले होते हैं, इसलिए हे गौतम ! तू क्षण भर
समयं गोयम! मा पमायए।। समयं गौतम ! मा प्रमादीः ।। भी प्रमाद मत कर। २०.धम्म पि हु सद्दहंतया धर्ममपि खलु श्रद्दधतः
उत्तम धर्म में श्रद्धा होने पर भी उसका आचरण दुल्लहया काएण फासया। दुर्लभकाः कायेन स्पर्शकाः। करने वाले दुर्लभ हैं। इस लोक में बहुत सारे इह कामगुणेहि मुच्छिया इह कामगुणेषु मूछिताः कामगुणों में मूच्छित होते हैं, इसलिए हे गौतम ! तू
समयं गोयम! मा पमायए।। समयं गौतम ! मा प्रमादीः ।। क्षण भर भी प्रमाद मत कर। २१.परिजूरइ ते सरीरयं परिजीर्यति ते शरीरक
तेरा शरीर जीर्ण हो रहा है, केश सफेद हो रहे हैं केसा पंडुरया हवंति ते। केशाः पाण्डुरका भवन्ति ते। और श्रोत्र का पूर्ववर्ती बल क्षीण हो रहा है, इसलिए से सोयबले य हायई तच्छोत्रबलं च हीयते
हे गौतम ! तू क्षण भर भी प्रमाद मत कर। समयं गोयम! मा पमायए।। समयं गौतम ! मा प्रमादीः।। २२.परिजूरइ ते सरीरयं परिजीर्यति ते शरीरक
तेरा शरीर जीर्ण हो रहा है, केश सफेद हो रहे हैं केसा पंडुरया हवंति ते। केशाः पाण्डुरका भवन्ति ते। और चक्षु का पूर्ववर्ती बल क्षीण हो रहा है, इसलिए से चक्खुबले य हायई तच्चक्षुर्बलं व हीयते
हे गौतम ! तू क्षण भर भी प्रमाद मत कर। समयं गोयम! मा पमायए।। समयं गौतम! मा प्रमादीः ।। २३.परिजूरइ ते सरीरयं परिजीर्यति ते शरीरकं
तेरा शरीर जीर्ण हो रहा है, केश सफेद हो रहे हैं केसा पंडुरया हवंति ते। केशाः पाण्डुरका भवन्ति ते। और घ्राण का पूर्ववर्ती बल क्षीण हो रहा है, इसलिए से घाणबले य हायई तद् घाणबलं च हीयते
हे गौतम ! तू क्षण भर भी प्रमाद मत कर। समयं गोयम! मा पमायए।। समयं गौतम! मा प्रमादीः।। २४.परिजूरइ ते सरीरयं परिजीयति ते शरीरकं
तेरा शरीर जीर्ण हो रहा है, केश सफेद हो रहे हैं केसा पंडुरया हवंति ते। केशाः पाण्डुरका भवन्ति ते। और जीहा का पूर्ववर्ती बल क्षीण हो रहा है, इसलिए से जिब्भबले य हायई तज्जिहाबलं च हीयते
हे गौतम ! तू क्षण भर भी प्रमाद मत कर। समयं गोयम! मा पमायए।। समय गौतम! मा प्रमादीः।। २५.परिजूरइ ते सरीरयं
परिजीर्यति ते शरीरकं
तेरा शरीर जीर्ण हो रहा है, केश सफेद हो रहे हैं केसा पंडुरया हवंति ते। केशाः पाण्डुरका भवन्ति ते। और स्पर्श का पूर्ववर्ती बल क्षीण हो रहा है, इसलिए से फासबले य हायई तत् स्पर्शबलं च हीयते हे गौतम ! तू क्षण भर भी प्रमाद मत कर।"
समयं गोयम! मा पमायए।। समयं गौतम ! मा प्रमादीः।। २६.परिजूरइ ते सरीरयं
परिजीर्यति ते शरीरक
तेरा शरीर जीर्ण हो रहा है, केश सफेद हो रहे हैं केसा पंडुरया हवंति ते। केशाः पाण्डुरका भवन्ति ते। और सब प्रकार का पूर्ववर्ती बल" क्षीण हो रहा है, से सव्वबले य हायई तत् सर्वबलं च हीयते
इसलिए हे गौतम ! तू क्षण भर भी प्रमाद मत कर। समयं गोयम! मा पमायए।। समयं गौतम ! मा प्रमादीः।।
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