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उत्तरज्झयणाणि
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अध्ययन १२ : श्लोक ४५-४७ ४५.के ते हरए ? के य ते सतितित्थे ? कस्ते हृदः ? किंच ते शांतितीर्थ? (सोमदेव-) “आपका नद (जलाशय) कौन सा है ?
कर्हिसि पहाओ व रयं जहासि? कस्मिन् स्नातो वा रजो जहासि?। आपका शान्तितीर्थ कौन-सा है? आप कहां नहा आइक्ख णे संजय! जक्खपूइया! आचक्ष्व नः संयत ! यक्षपूजित ! कर कर्मरज धोते हैं ? हे यक्ष-पूजित संयत ! हम
इच्छामो नाउं भवओ सगासे।। इच्छामो ज्ञातुं भवतः सकाशे।। आपसे जानना चाहते हैं, आप बताइए।" ४६.धम्मे हरए बंभे संतितित्थे धर्मो इदः ब्रह्म शांतितीर्थ (मुनि-) “अकलुषित एवं आत्मा का प्रसन्न-लेश्या
अणाविले अत्तपसन्नलेसे। अनाविल आत्मप्रसन्नलेश्यः। वाला धर्म मेरा इद (जलाशय) है। ब्रह्मचर्य मेरा जहिंसि पहाओ विमलो विसुद्धो यस्मिन् स्नातो विमलो विशुद्धः शांतितीर्थ है, जहां नहा कर मैं विमल, विशुद्ध और
सुसीइभूओ पजहामि दोसं।। सुशीतीभूतः प्रजहामि दोषम् ।।। सुशीतल होकर कर्म-रज का त्याग करता हूं।"५१ ४७.एयं सिणाणं कुसलेहि दिह्र एतत्स्नानं कुशलैर्दृष्टं
“यह स्नान कुशल पुरुषों द्वारा दृष्ट है। यह महास्नान महासिणाणं इसिणं पसत्थं। महास्नानमृषीणां प्रशस्तम्। है।२ अतः ऋषियों के लिए यही प्रशस्त है। इस जर्हिसि ण्हाया विमला विसुद्धा यस्मिन् स्नाता विमला विशुद्धाः धर्म-नद में नहाए हुए महर्षि विमल और विशुद्ध महारिसी उत्तम ठाण पत्त।। महर्षय उत्तमं स्थान प्राप्ताः।। होकर उत्तम-स्थान (मुक्ति) को प्राप्त हुए।"
—त्ति बेमि।
--इति ब्रवीमि।
-ऐसा मैं कहता हूं।
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