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नमि-प्रव्रज्या
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अध्ययन ६ : श्लोक ४५-५३ ४५.एयमलैं निसामित्ता एतमर्थं निशम्य
इस अर्थ को सुनकर हेतु और कारण से प्रेरित हुए हेऊकारणचोइओ। हेतुकारणचोदितः।
देवेन्द्र ने नमि राजर्षि से इस प्रकार कहातओ नमि रायरिसिं ततो नमि राजर्षि
देविंदो इणमब्बवी।। देवेन्द्र इदमब्रवीत्।। ४६.हिरण्णं सुवण्णं मणिमुत्तं हिरण्यं सुवर्ण मणिमुक्तां हे क्षत्रिय ! अभी तुम चांदी, सोना २, मणि, मोती,
कंसं दूसं च वाहणं। कांस्यं दूष्यं च वाहनम् । कांसे के बर्तन, वस्त्र, वाहन और भण्डार की वृद्धि कोसं वड्डावइत्ताणं कोशं वर्धयित्वा
करो, फिर मुनि बन जाना। तओ गच्छसि खत्तिया !।।। ततो गच्छ क्षत्रिय!।। ४७.एयमढें निसामित्ता एतमर्थं निशम्य
यह अर्थ सुनकर हेतु और कारण से प्रेरित हुए नमि हेऊकारणचोइओ। हेतुकारणचोदितः।
राजर्षि ने देवेन्द्र से इस प्रकार कहातओ नमी रायरिसी ततो नमिः राजर्षिः
देविंदं इणमब्बवी।। देवेन्द्रमिदमब्रवीत्।। ४८.सुवण्णरुप्पस्स उ पव्वया भवे सुवर्णरूप्यस्य तु पर्वता भवेयुः कदाचित् सोने और चांदी के कैलास के समान
सिया हु केलाससमा असंखया। स्यात खलु कैलाससमा असंख्यकाः। असंख्य पर्वत हो जाएं, तो भी लोभी पुरुष को उनसे नरस्स लुद्धस्स न तेहिं किंचि नरस्य लुब्धस्य न तैः किंचित् कुछ भी नहीं होता, क्योंकि इच्छा आकाश के समान
इच्छा उ आगाससमा अतिया।। इच्छा तु आकाशसमा अनन्तिका।। अनन्त है। ४६.पुढवी साली जवा चेव पृथिवी शालिर्यवाश्चैव
पृथ्वी, चावल, जौ, सोना और पशु-ये सब एक की हिरण्णं पसुभिस्सह। हिरण्यं पशुभिः सह।
इच्छापूर्ति के लिए पर्याप्त नहीं हैं, यह जान कर तप पडिपुण्णं नालमेगस्स प्रतिपूर्ण नालमेकस्मै
का आचरण करे। इइ विज्जा तवं चरे।। इति विदित्वा तपश्चरेत् ।। ५०. एयमझें निसामित्ता एतमर्थं निशम्य
यह अर्थ सुनकर हेतु और कारण से प्रेरित हुए हेऊकारणचोइओ। हेतुकारणचोदितः।
देवेन्द्र ने नमि राजर्षि से इस प्रकार कहातओ नमिं रायरिसिं
ततो नमि राजर्षि देविंदो इणमब्बवी।। देवेन्द्र इदमब्रवीत्।। ५१.अच्छेरगमब्भुदए
आश्चर्यमभ्युदये
हे पार्थिव ! आश्चर्य है कि तुम इस अभ्युदय-काल में भोए चयसि पत्थिवा!। भोगांस्त्यजसि पार्थिव!। सहज प्राप्त भोगों को त्याग रहे हो और अप्राप्त असंते कामे पत्थेसि असतः कामान् प्रार्थयसे काम-भोगों की इच्छा कर रहे हो—इस प्रकार तुम संकप्पेण विहन्नसि ।। संकल्पेन विहन्यसे।।
अपने संकल्प से ही प्रताड़ित हो रहे हो। ५२.एयमझें निसामित्ता एतमर्थं निशम्य
यह अर्थ सुनकर हेतु और कारण से प्रेरित हुए नमि हेऊकारणचोइओ। हेतुकारणचोदितः।
राजर्षि ने देवेन्द्र से इस प्रकार कहातओ नमी रायरिसी
ततो नमिः राजर्षिः देविंदं इणमब्बवी।। देवेन्द्रमिदमब्रवीत्।। ५३.सल्लं कामा विसं कामा
शल्यं कामा विष कामाः काम-भोग शल्य हैं, विष हैं और आशीविष सर्प के कामा आसीविसोवमा। कामा आशीविषोपमाः।
तुल्य हैं। काम-भोगों की इच्छा करने वाले", उनका कामे पत्थेमाणा कामान् प्रार्थयमाना
सेवन न करते हुए भी दुर्गति को प्राप्त होते हैं। अकामा जंति दोग्गई।। अकामा यान्ति दुर्गतिम् ।।
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