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आमुख
इस अध्ययन का नाम 'अकाममरणिज्ज'-'अकाम- (२) अवधि-मरण (२) तद्भव-मरण मरणीय' है। नियुक्ति में इसका दूसरा नाम 'मरणविभत्तीइ'- (३) आत्यन्तिक-मरण (३) अवधि-मरण 'मरणविभक्ति' भी मिलता है।
(४) वलन्मरण
(४) आदि-अन्त-मरण जीवन यात्रा के दो विश्राम हैं-जन्म और मृत्यु । जीवन (५) वशात-मरण (५) बाल-मरण कला है तो मृत्यु भी उससे कम कला नहीं है। जो जीने की कला (६) अन्तःशल्य-मरण (६) पंडित-मरण जानते हैं और मृत्यु की कला नहीं जानते, वे सदा के लिए (७) तद्भव-मरण (७) अवसन्न-मरण अपने पीछे दूषित वातावरण छोड़ जाते हैं। व्यक्ति को कैसा मरण (८) बाल-मरण (८) बाल-पंडित-मरण नहीं करना चाहिए, इसका विवेक आवश्यक है। मरण के (६) पण्डित-मरण (६) सशल्य-मरण विविध प्रकारों के उल्लेख इस प्रकार मिलते हैं...
(१०) बाल-पंडित-मरण (१०) वलाय-मरण मरण के चौदह भेद
(११) छद्मस्थ-मरण (११) व्युत्सृष्ट-मरण भगवती सूत्र में मरण के दो भेद-बाल और पंडित किए (१२) केवलि-मरण (१२) विप्रनास-मरण हैं। बाल-मरण के बारह प्रकार हैं और पंडित-मरण के दो (१३) वैहायस-मरण (१३) गृद्धपृष्ठ-मरण प्रकार । कुल मिलाकर चौदह भेद वहां मिलते हैं
(१४) गृद्धपृष्ठ-मरण (१४) भक्त-प्रत्याख्यान-मरण बाल-मरण के बारह भेद हैं:
(१५) भक्त-प्रत्याख्यान-मरण (१५) प्रायोपगमन-मरण (१) वलय (७) जल-प्रवेश
(१६) इंगिनी-मरण (१६) इंगिनी-मरण (२) वशाल (८) अग्नि-प्रवेश
(१७) प्रयोपगमन-मरण' (१७) केवली-मरण।' (३) अन्तःशल्य (E) विष-भक्षण
समवायांग के तीसरे, दसवें और पन्द्रहवें मरण के नाम (४) तद्भव (१०) शस्त्रावपाटन
उत्तराध्ययन नियुक्ति के अनुसार क्रमशः अत्यन्त-मरण, (५) गिरि-पतन (११) वैहायस
मिश्र-मरण और भक्त-प्रतिज्ञा-मरण हैं। यह केवल शाब्दिक (६) तरु-पतन (१२) गृद्धपृष्ट।
अन्तर है, नामों अथवा क्रम में भी और कोई अन्तर नहीं है। पंडित-मरण के दो भेद हैं:
विजयोदया में क्रम तथा नामों में अन्तर है। वैहायस' के (१) प्रायोपगमन (२) भक्त-प्रत्याख्यान।' स्थान पर 'विप्रनास' तथा 'अन्तःशल्य' और 'आत्यन्तिक' के मरण के सतरह भेद
स्थान पर क्रमशः 'सशल्य' और 'आद्यन्त' नाम उल्लिखित हैं। समवायांग में मरण के सतरह भेद बतलाए हैं। मूलाराधना समवायांग में वशार्त्त-मरण और छद्मस्थ-मरण हैं जबकि में भी मरण के सतरह प्रकारों का उल्लेख है और उनका विजयोदया में अवसन्न-मरण और व्युत्सृष्ट-मरण। भगवती के विस्तार विजयोदयावृत्ति में मिलता है। उक्त परम्पराओं के उपर्युक्त पांचवें से लेकर दसवें तक के ६ भेद विजयोदया के अनुसार मरण के सतरह प्रकार इस तरह हैं:---
'बाल-मरण' भेद में समाविष्ट होते हैं। समवायांग
मूलाराधना (विजयोदयावृत्ति) उक्त सतरह प्रकार के मरणों की संक्षिप्त व्याख्या इस (१) आवीचि-मरण (१) आवीचि-मरण
प्रकार है:
१. उत्तराध्ययन नियुक्ति, गाथा २३३ : सव्व एए दारा मरणविभत्तीइ
वण्णिआ कमसो। भगवई २४६ : दुविहे मरणे पण्णत्ते, तं जहा-बालमरणे य पंडियमरणे य। से कि तं बालमरणे? बालमरणे दुवालसविहे पण्णत्त तं जहावलयमरणे, वसट्टमरणे, अंतोसल्लमरणे, तब्भवमरणे, गिरिपडणे, तरुपडणे,
जलप्पवेसे, जलणप्पवेसे, विसभक्खणे, सत्थोवाडणे, वेहाणसे, गद्धपढे। ३. वही, २४: से कि तं पंडियमरणे? पंडियमरणे दुविहे पण्णते, तं।
जहा...पाओवगमणे य भत्तपच्चक्खाणे य। ४. समवाओ १७।सत्तरसविहे मरणे प०-आवीईमरणे, ओहिमरणे
आयंतियमरणे, वलायमरणे, वसट्टमरणे, अंतोसल्लमरणे, तब्भवमरणे, बालमरणे, पंडितमरणे, बालपंडितमरणे, छउमत्थमरणे, केवलिमरणे,
भत्तपच्चक्खाणमरणे, इंगिणिमरणे पाओवगमणमरणे। ५. (क) मूलाराधना आश्वास १, गाथा २५ :
मरणाणि सत्तरस देसिदाणि तित्थंकरेहिँ जिणवयणे।
तत्थ विय पंच इह संगहेण मरणाणि वोच्छामि।। (ख) विजयोदया वृत्ति, पत्र ८७। ६. उत्तराध्ययन नियुक्ति, गाथा २१२, २१३ :
आवीचि ओहि अंतिय बलायमरणं वसट्टमरणं च। अंतोसल्लं तब्भव बालं तह पंडियं मीसं ।। छउमत्थमरण केवलि देहाणस गिद्धपिट्ठमरणं च। मरण भत्तपरिण्णा इंगिणी पाओवगमणं च।।
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