Book Title: Chaupannamahapurischariyam
Author(s): Shilankacharya, Amrutlal Bhojak, Dalsukh Malvania, Vasudev S Agarwal
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राकृत ग्रंथ परिषद् ग्रन्थाङ्क : ३ चउपन्नमहापुरिसचरियं प्राकृत ग्रन्थ परिषद अहमदाबाद al Education international For Private Personal use only www.ainelibre Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Prakrit Text Society Series No. 3 CAUPPANNAMAHĀPURISACARIAM BY ĀCĀRYA ŚRĪ ŠĪLĀNKA Edited By Pt. AMRITLAL MOHANLAL BHOJAK Research Pandit, Prakrit Text Society, AHMEDABAD Genral Editors V.S. AGRAWALA Professor, Benaras Hindu University DALSUKH MALVANIA Director Lalbhai Dalpatbhai Bharatiya Sanskriti Vidya Mandir, Ahmedabad PRAKRIT TEXT SOCIETY AHMEDABAD 2006 Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Published by RAMANIK SHAH Secretary PRAKRIT TEXT SOCIETY Shree Vijay-Nemisuriswarji Jain Swadhyay Mandir 12, Bhagatbaug Society, Sharada Mandir Road, Paldi, Ahmedabad-380007. T.No. 26622465 प्रकाशक : रमणीक शाह सेक्रेटरी, प्राकृत टेक्स्ट सोसायटी श्री विजयनेमिसूरीश्वरजी जैन स्वाध्याय मंदिर १२, भगतबाग सोसायटी, शारदा मंदिर रोड, पालडी, अहमदाबाद-३८०००७. फोन नं. २६६२२४६५ . Reprint-November-2006 Price : Rs. 300/ Copy : 400 पुनःमुद्रण-नवेम्बर-२००६ मूल्य रु.३००/ : Available from : 1. MOTILAL BANARASIDAS, DELHI, VARANASI 2.CHOWKHAMBA SANSKRIT SERIES OFFICE,VARANASI-221001 3. SARASWATI PUSTAK BHANDAR, RATANPOLE, AHMEDABAD-1 4. PARSHVA PUBLICATION, RELIEF ROAD. AHMEDABAD-1 : प्राप्तिस्थान : १. मोतीलाल बनारसीदास, वाराणसी, दिल्ही २. चौखम्बा संस्कृत सीरीझ, वाराणसी-२२१००१ ४. सरस्वती पुस्तक भंडार, अहमदाबाद-३८० ००१ ३. पार्श्व प्रकाशन,झवेरीवाड, रिलीफ रोड, अहमदाबाद-३८०००१ Printed By: USHA PRINTARY Near Jain Derasar, Main Bazaar, HALVAD-363330 Mo. : 9825620805 मुद्रक: उषा प्रिन्टरी जैन देरासर के पास, मेइन बजार, हलवद-३६३३३० मो. : ९८२५६२०८०५ Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राकृत ग्रंथ परिषद् ग्रन्थाङ्क : ३ सिरि-सीलंकायरियविरइयं चउप्पन्नमहापुरिसचरियं संशोधक: संपादकश्च पं. अमृतलाल मोहनलाल भोजक (संशोधक पंडित, प्राकृत ग्रन्थ परिषद्, अहमदाबाद) प्रकाशिका प्राकृत ग्रन्थ परिषद् अहमदाबाद वीरसंवत् : २५३३ विक्रमसंवत् : २०६३ ईस्वीसन् : २००६ Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकाशकीय पं. अमृतलाल मोहनलाल भोजक द्वारा संपादित 'चउपन्नमहापुरिसचरियं' प्राकृत टेट सोसायटी द्वारा ई.स.१९६१ में प्रकाशित हुआ था । कइ वर्षों से अप्राप्य इस अति महत्त्वपूर्ण ग्रंथ का पुनःमुद्रण प्रकाशित करते हुए हमें हर्ष का अनुभव हो रहा है ।। प्राकृतभाषाबद्ध चउपन्नमहापुरिसचरियं ईसाकी नवम शताब्दी के प्रसिद्ध श्वेताम्बराचार्य शीलांकसूरि की रचना है । २४ तीर्थंकर, १२ चक्रवर्ती, ९ बलदेव और ९ वासुदेव मिल कर कुल ५४ जैन महापुरुषों के जीवनचरित्रों का इसमें वर्णन परम पूज्य आचार्य श्री विजय नरचन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. और उनके अंतेवासी परम पूज्य मुनिवर्य श्री धर्मतिलकविजयजी म.सा.ने प्राकृत टेट सोसायटी के प्रति जो स्नेह एवं सद्भाव प्रदर्शित किया है तथा प्रकाशन कार्य में सहायभूत बनने के लिए विविध संस्थाओं को प्रेरित किया है उसके लिए हम उनके ऋणी रहेंगे। प्रस्तुत ग्रंथ के प्रकाशनार्थ प.पू.रामचन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. के गच्छाधिपति श्री हेमभूषणसूरिश्वरजी म.सा. की प्रेरणा से जिन आज्ञा आराधक संघ, मध्य मुंबई संस्था द्वारा हमें आर्थिक सहाय प्राप्त हुई है । एतदर्थ हम सहयोगदाता संस्था के ट्रस्टीगण का आभार प्रदर्शित करतें हैं ।। पुन:मुद्रण सुचारु रूपसे संपन्न करने के लिए उषा प्रिन्टरी, जैन देरासर के पास, मेइन बजार, हळवद प्रेस को धन्यवाद । अहमदाबाद दिनांक : १५-११-२००६ - रमणीक शाह मानदमंत्री Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति श्रीमान् डा. राजेन्द्रप्रसाद Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राकृतग्रन्थपरिषद् मायणसएसटमापरिकलियोहरतालिकालकलिलनियाmau मध्यरायस्यियोपासकयलर्कसिामान हाणाधीनगरमा सर परनयनामित Rai RegistsADHeakitaStotide) SanatantansejelattempiegeneralBRDPermijeepjabaleefarengerejama TerejanvouTEHRADICERTeteampadeRCLERKRAattalianteader H MARRAURATRUELECTRIBERATUSHRIRRIGARDPAREBReleaHARA REETINATHARUITMERIERESUP0DCURRER. विधानसनसमारावासयाanananlallanawaniBBBMainik चउप्पन्नमहापुरिसचरिय-'सू' संज्ञक प्रतिका अन्तिम (३७६ वाँ) पत्र 28. PHILORajilbathrahaERE mjeys analitiepte JHNDHESISESAMESSEDigits TRENDraminifoe READIATRICKina 2128 LNandurange INDrEsathARI H BIDOORANDIPES DARKUSHINDE Popme TORRO Ratanegaoवामवासियमावलमकाosane विदसायसरामवासस्वामममायामयिकताना STARTSEIRECTOR EMAINMEISEVARJINDouhitaajaguPJANUATIONDRIDINAYA URISADRISHMARIJIDESHIFADPalacticeTRENARIES IMHANDIRDAMOHIJDESYSEERepHDJAWANIA upaucRIDIRaabtastolarsite AmazingmineKILDIAJBehejiafai हुगासासस्पतिविदितमामानायबालविक्षयाहायला याय पायपीदाबादम्यावे लासर बोध वाममयासावणार जाम्यनिनवसमाजमा JAIADualifiramalaniCANRAIPISSIRCORRihiti AJSATARNANTRATESTHeargyear- TURIERedinue POORDEEPROSSRANASEASE R ATHISROSCARRIEDANDARA NROMANJA AIMERIES CARRESTERR RATE DISASARSHA Dabaletalienstallen चउप्पन्नमहापुरिसचरिय-'जे' संज्ञक प्रतिके. ३२१-२२-२३७ पत्र Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गंथसमप्पणं भारहसतंतगणतंतपढमरहवइपयविभूसाणं । भूसाऽइरेयरहियाण हियाणं धम्मपयईणं ॥१॥ अइकज्जवावडेहि वि रट्ठियदिट्ठीऍ चिंतिउं जेहिं । मागह-पाययभासाणमुन्नई ठावणा विहिया ॥२॥ पाययपोत्थयपरिसाएँ तेसिमेयं महापुरिसचरियं । विश्नूण गुणभूणं बुहयणबहुमाणणिजाणं ॥३॥ करकमलकोसमज्झे राइंदपसायपुण्णणामाणं । भोजककुलउप्पन्नो अणहिलपुरवासिओ अहयं ॥ ४ ॥ मोहनलालस्स सुओ अमओ पंडियउवाहिओ पणओ। अप्पेमि सबहुमाणा विणएणं, भारई जयउ ॥५॥ (पंचहि कुलयं) Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ग्रन्थसमर्पण स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपतिपद को विभूषित करनेवाले, सादगीसे रहनेवाले और धार्मिकस्वभाववालों के हितकारी, अनेक कार्यमें संलग्न होते हुए भी जिन्होंने राष्ट्रीय दृष्टिसे मागधी और प्राकृत भाषा की उन्नति का चिन्तन करके प्राकृत ग्रन्थपरिषद् (प्राकृतटेक्स्टसोसायटी) की स्थापना की,तथा जो विज्ञ हैं, गुणज्ञ हैं और विद्वानोंके बहुमान्य हैं ऐसे पुण्यनाम राजेन्द्रप्रसादजीके करकमलों में यह महापुरुषोंका चरितग्रन्थ, भोजक कुलमें उत्पन्न, अणहिलपुर (पाटण) निवासी मोहनलाल का पुत्र मैं पंडित अमृत नमस्कारपूर्वक विनयावनत होकर बहुमानसे समर्पित करता हूँ । भारतीका जय हो ! Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ २ ३ ४ ८ Preface: General Editors Introduction : Dr. KI. Bruhn ५ २६ चउप्पन्नमहापुरिसचरियं । ७ प्रथमं परिशिष्टम्--- प्रस्तावना : सम्पादक । 'च उत्पन्नमहापुरिसचरिय'स्य विषयानुक्रमः । महापुरगाहाओ । विशेषनाम्नामकारादिवर्णक्रमेणानुक्रमणिका । द्वितीयं परिशिष्टम् - १३ ९ तृतीयं परिशिष्टम् ग्रन्थानुक्रमः विशेषनाम्नां विभागशोऽनुक्रमणिका । १० चतुर्थं परिशिष्टम्--- देश्य-प्राकृतशब्दानां संग्रहः । अपभ्रंशसंग्रहः । ११ पञ्चमं परिशिष्टम् - वर्णकसंग्रहः । १२ षष्टं परिशिष्टम् स्तुति-चन्दनाः । सप्तमं परिशिष्टम् - सुभाषितगाथानामनुक्रमः । १४ अष्टमं परिशिष्टम्-सूक्तिरूपा गाथांशाः । 1-3 1-31 ३३-६२ ६३-६६ ६८ १-३३५ ३३७-४७ ३४८-५६ ३५७-६० ३६१ ३६२ 27 ३६३-७८ ३७९-८० Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ PREFACE The current of Indian literature has flown into three main streams, viz. Sanskrit, Pali and Prakrit. Each of them witnessed an enormous range of creative activity. Sanskrit texts ranging in date from the Vedic to the classical period and belonging to almost all branches of literature have now been edited and published for more than a century beginning with the magpificent edition of the Rigveda by Prof. Max Muller. The Pali literature devoted almost exclusively to the teaching and religion of the Buddha was even mor lucky in that the Pali Text Society of London planned and achieved comprehensive publication in a systematic manner. Those editions of the Pāli Vinaya, Sutta and Abhidhamma Pitakas and their commentaries are well known all the world over. The Prakrit literature presents an amazing phenomenon in the field of Indian literary activity. Prakrit as a dialect may have had its early beginnings about the seventh century B. C. from the time of Mahāvira, the last Tirthankara who reorganised the Jaina religion and church in a most vital manner and infused new life into all its branches. We have certain evidence that he, like the Buddha, made use of the popular speech of his times as the medium of his religious activity. The original Jaina sacred literature or canon was in the Ardhamăgadhi form of Prakrit. It was compiled sometime later, but may be taken to have retained its pristine purity. TW Prakrit language developed divergent local idioms of which some outstanding regional styles became in course of time the vehicle of varied literary activity. Amongst such Sauraseni, Mabärāshtri and Paisachi occupied a place of honour. Of these the Mahārāshțri Prakit was accepted as the standard medium of literary activity from about the first century A. D. until almost to our own times. During this long period of twenty centuries a vast body of religious and secular literature came into existence in the Prakrit languages. This literature comprises an extensive stock of ancient commentaries on the Jaina religious canon or the Āgamic literature on the one hand, and such creative works as poetry, drama, romance, stories as well as scientific treatises on Vyakarana, Kosha, Chhanda etc. on the other hand. This literature is of vast magnitude and the nur l yf works of deserving merit may be about a thousand. Fortunately this literature is of intrinsic value as a perennial source of Indian literary and cultural history. As yet it has been but indifferently tapped and is awaiting proper publication. It may also be mentioned that the Prakrit literature is of abiding interest for tracing the origin and development of almost all the New-Indo-Aryan languages like Hindi, Gujarăti, Marathi, Punjābi, Kasmiri, Sindhi, Bangăli, Upiya, Assamese, Nepāli. A national effort for the study of Prakrit languages in all aspects and in proper historical perspective is of vital importance for a full understanding of the inexhaustible linguistic heritage of modern India. About the eighth century the Prakrit languages developed a new style known as Apabharma which has furnished the missing links between the Modern and the MiddleIndo-Aryan speeches. Luckily several hundred Apabhramsa texts have been recovered in recent yesrs from the forgotten archives of the Jaina temples. With a view to undertake the publication of this rich literature some co-ordinated efforts were needed in India. After the attainment of freedom, circumstances so moulded themselves rapidly as to lead to the foundation of a society under the name of the Prakrit Text Society, which was duly registered in 1952 with the following aims and objects : (1) To prepare and publish critical editions of Prākrit texts and commentaries and other works connected therewith. (2) To promote studies and research in Prākrit languages and literature. (3) To promote studies and research of such languages as are associated with Prākrit. Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (4) (a) To set up institutions or centres for promoting studies and researeh in Indian History and Culture with special reference to ancient Präkrit texts. (b) To set up Libraries and Museums for Prākrit manuscripts, paintings, coins, archaeological finds and other material of historical and cultural importance. (5) To preserve manuscripts discovered or available in various Bhandars throughout India, by modern scientific means, inter alia photostat, microfilming, photography, lamination and other latest scientific methods. (6) To manage or enter into any other working arrangments with other Societies having any of their objects similar or allied to any of the objccts of the Society. (7) To undertake such activities as are incidental and conducive, directly or indirectly, to and in furtherance of any of the above objects. From its inception the Prakrit Text Society was fortunate to receive the active support of His Excellency Dr. Rajendra Prasad, President, Republic of India, who very kindly consented to become its Chief Patron and also one of the six Founder Members The Prakrit Text Society has plainly taken inspiration from the Pali Text Society of London as regards its publication programme, of which the plan is as follows: I Agamic Literature अंग-आचार, सूत्रकृत, स्थान, समवाय, व्याख्याप्रज्ञप्ति, ज्ञातृधर्मकथा, उपासक, अन्तकृत, अनुत्तरोपपातिक, प्रश्नव्याकरण, विपाक । उपांग-औपपातिक, राजप्रश्नीय, जीवाजीवाभिगम, प्रज्ञापना, सूर्यप्रज्ञप्ति, चन्द्रप्रज्ञप्ति, कल्पिका, कल्पावतंसिका, पुष्पिका, पुष्पचूलिका, वृष्णिदशा । मूलसूत्र-आवश्यक, दशवकालिक, उत्तराध्ययन, पिण्डनियुक्ति, ओघनियुक्ति । छेदसूत्र-निशीथ, महानिशीथ, बृहत्कल्प, व्यवहार, दशाश्रुतस्कन्ध, कल्पसूत्र, जीतकल्प । प्रकीर्णक-चतु शरण, आतुरप्रत्याख्यान, भक्तपरिज्ञा, तन्दुलवैचारिक, चन्द्रवेध्यक, देवेन्द्रस्तव, गणिविद्या, महाप्रत्याख्यान, संस्तारक, मरणसमाधि, गच्छाचारप्रकीर्णक, ऋषिभाषित आदि ।। चूलिकासूत्र-नन्दिसूत्र, अनुयोगद्वार । II Agamic Commentaries नियुक्ति, संग्रहणी, भाष्य, चूर्णि, वृत्ति, टीका, बालावबोध आदि । III Agamic Prakaranas समयसार आदि । IV Classical Prakrit Literature काव्य (पउमचरिय आदि), नाटक (कर्पूरमंजरी आदि), आख्यान-कथा (वसुदेवहिण्डी, धम्मिल्लहिण्डी, समराइच्चकहा आदि), पुराण (चउप्पनमहापुरिसचरिय आदि). V Scientific Literature Grammar, Lexicography, Metrics, Rhetorics, Astronomy, Mathematics, Arts and other Sciences. The Society has already published Angavijjā and Präkrita-Pairigalar (Part I) in its Prakrit Text Series. And now an important Classical Prakrit literary work is presented before scholars. It is Cauppannamabapurisacariyam written by Silānkācārya. It is for the first time critically edited by Pandit Other Founder Members are--Shri Muni Punyavijayji, Acharya Vijayendra Suri, V. S. Agrawala, Shri Jainendra Kumar and Shri Fatechand Belaney. • Shri Belaney acted as Society's Secretary from the beginning upto May 1957 and displayed great organising ability in founding the Society. Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Amritlal Mohanlal. He was fortunate enough to have the full guidance of Muniraja Shri Punyavijayji, who not only gave him the Mss. but also helped him in various ways. We thank both of them for their hearty co-operation. We also thank Acāry Jinavijayaji for readily handing over his copy of Cauppannamahapurisacariya to Pt. Amritlal. Dr. A. N. Upadhye suggested that Dr. Klaus Bruhn will be the fittest scholar to write the introduction to the work. On our request Dr. Bruhn readily agreed to it and inspite of his many inconviences, within a short time wrote the introduction which is printed here with the text. We thank Dr. Upadhye for happy suggestion and have no enough words to thank Dr. Bruhn for his kind co-operation in this difficult task. The programme of work undertaken by the Society involves considerable expenditure, towards which liberal grants have been made by the following Governments : Government of India Rs. 10,000 Madras Rs. 25,000 Assam Rs. 12,500 Mysore Rs. 5,000 Andhra Rs. 12,500 Orissa Rs. 12,500 Bihar Rs. 10,000 Punjab Rs. 25,000 Delhi Rs. 4,000 Rajasthan Rs. 15,000 Hyderabad Rs. 3,000 Saurashtra Rs. 1,250 Kerala Rs. 2,500 Travancore-Cochin Rs. 2,500 Madhya Pradesh Rs. 22,500 Uttar Pradesh Rs. 25,000 Medhya Bharat Rs. 10,000 West Bengal Rs. 5,000 To these have been added grants made by the following Trusts and individual philanthrophists :Sir Dorabji Tata Trust Rs. 10,000 Shri Girdhar Lal Chhotalal Rs. 5,000 Seth Lalbhai Dalpatbhai Trust Rs. 20,000 Shri Tulsidas Kilachand Rs. 2,500 Seth Narottam Lalbhai Taust Rs. 10,000 Shri Laharchand Lalluchand Rs. 1,000 Seth Kasturbhai Lalbhai Trust Rs. 8,000 Shri Nahalchand Lalluchand Rs. 1,000 Shri Ram Mills, Bombay Rs. 5,000 Navjivan Mills Rs. 1,000 The Society records its expression of profound gratefulness to all these donors for their generous grants-in-aid to the Society. The Society's indebtedness to its Chief Patron Dr. Rajendra Prasad has been of the highest value and a constant source of guidance and inspiration in its work. Varansi 10th Februari, 1961. VASUDEVA S. AGRAWALA, DALSUKH MALVANIA, General Editors. Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ INTRODUCTION TO SĪLĀNKA’S CAUPPANNAMAHĀPURISACARIYA Klaus Bruhn Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Table of Contents I PRELIMINARY REMARKS $1. Foreword 'S 2. The manuscripts and the text $ 3. Survey of the contents of the monograph on Silānka's Cauppannamahāpurisacariya $ 4. Alterations and additions to the monograph $ 5. Abbreviations od ob 9-97 II SILANKA'S CAUPPAŅŅAMAHĀPURISACARIYA AS A SOURCE FOR THE STUDY OF THE UNIVERSAL HISTORY (SUMMARY AND CONCLUSIONS) $ 6. Introductory remarks $ 7. Comparison of the "main versions" (I): HTr and SC § 8. Comparison of the main versions" (II): SVh and HTr/SC § 9. The Svetämbara-tradition and the Digambara-tradition $10. Comparison of the "sub-versions" (I): HTr/SC and the Avaśyaka-tradition $11. Brief comparison of the Avaśyaka-tradition and of HTr for the final portion of the Mahāvira-biography $12. Comparison of the sub-versions" (II): HTr, SC, and Dutt $13. Comparison of the canonical and of the post-canonical Mahāvira-biography $14. Contamination of the versions I (introduction to the problem ; for II see SC/M pp. 136 f.) $15. The Satrumjayamāhātmya $16. Verbal agreement between the Svetämbara-versions $17. Transformation and preservation of the versions $18. The fusion of Universal History and Mahāvira-biography $19. HTr and SC (comparison with reference to technical details $20. Progress of the study of the Universal History $21. Bibliographical survey of comparative studies in the Universal History III THE DRAMA VIBUDHĀNANDA AND THE SILAVATI-STORY $22. The drama Vibudhānanda $23. Remarks on the drama $24. The Silavati-story $25. Remarks on the Silayatı-story 27-31 Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ INTRODUCTION PRELIMINARY REMARKS § 1. Foreword. The present study is based on my German thesis on Silänka's Cauppannamahapurisacariya which was published in 1954. As it is not intended to give merely a mechanical abstract of that earlier publication, a few words have to be said about the relationship of the thesis and the "Introduction". In the preface to my monograph (henceforth = SC/M) it was pointed out that SC can be studied from two different points of view. Firstly as an original creation of its author, secondly as a source for the study of the Universal History in general. The monograph was however not confined to a study of these two points but dealt also with the wider problems of the growth and composition of the UH and with the religious beliefs and ideas incorporated in the UH. For the present purpose it seemed desirable to reproduce in detail everything that had been said about SC as a source for the study of the UH, while it was found justifiable to restrict the treatment of the other matter to an enumeration of the individual topics discussed in SC/M ($ 3). In SC/M, the chapter on SC as a source for the study of the UH (pp. 31-113 ) was actually divided into two parts. The second part (pp. 44-113 ) consisted of a detailed comparison of SC with Hemacandra's Trişastišalakäpurusacaritra and with some other texts. This comparison was essentially a collection of all matter treated by Silänka in a different way from Hemacandra and of all the pieces found in SC but missing in HTr. Out of this second part, two portions (the drama and one of the three vairăgya-stories) have been reproduced in detail ($9 22-25), while the rest has been referred to only in $ 3 ( survey of the contents). The summary of the comparison and the conclusions drawn from it were incorporated into the first part of the chapter (pp. 31-44 ). This first part is here presented to the reader in a revised and enlarged form ( $$ 6-21). The additions were necessary in order to establish more precisely the position of SC/M in the wider context of Jain studies, past and present. Furthermore I have included in this Introduclion a list of alterations and additions ($ 4). The list is of course far from complete but it may be of some use to those who want to study the German original. The story of this essay cannot be passed over in silence. Early in 1959 Shri Dalsukh Malvania and Dr. A. N. Upadhye asked me whether I would be willing to write an introduction to a forthcoming edition of SC which had been prepared by the Muni Punyavijaya, I was very glad to learn about this undertaking and deemed it a special honour that I was invited to contribute to the publication. When lack of time hampered the progress of my work I was encouraged by my friend Dr. A. N. Jani who expressed his readiness to translate the relevant portions from the original German into English. Although it turned out that the main portion had to be translated by the author himself, Dr. Jani has facilitated my work considerably by rendering the drama and the Silavati-story into English. I also felt that the text of the $$ 6 ff. should be rewritten rather than translated in order that the English version should be as lucid as possible. At last the work was finished, and I feel it a pleasant duty to thank Shri Malvania and Dr. Upadhye for inviting my cooperation and to thank Dr. Jani for his active assistance. I am also indebted to Mr. W. A. J. Steer, who was kind Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 2) PRELIMINARY REMARKS ($ 2 enough to check the English text. But a special tribute is due to Muni Punyavijaya, the editor of the text, whose painstaking work has placed all Jain scholars under a heavy obligation. $ 2. The manuscripts and the text. SC does not only furnish a comparatively independent version of the UH, it is also one of the largest Prakrit texts which has come down to us. One can therefore hardly underrate the usefulness of the present edition. Five manuscripts of the work are known to us : 1. A palm-leaf manuscript, Sam. 1326, from Ahmedabad ("A" in SC/M; "Sū" in SC/E). 2. A paper manuscript, copy of (1), Sam. 1673 ("Sū" in SC/E). 3. A palm-leaf manuscript, Sam. 1127 (1227), from Jaisalmer ("JI” in SC/M; "Je" in SCJE). A paper manuscript, copy of (3), Sam. 1960, from Patan ("III" in SC/M). 5. A paper manuscript, copy of (3), Sam. 1958 (J III" in SC/M). + of a member of the terms and diacritical maris Analysis and texts in SC/M were based on nos. 1 and 3, the text of SC/E is based on nos. 1, 2, and 3. Whereas in no. 1 the leaves 1-11 and 375 are missing, we get in no. 2 the complete text. The abbreviations occuring in no. 1 (see SCM pp. 3 f.) are of course also found in no. 2. Since a few textpieces were included in SC/M it may not be superfluous to mention the differences between the text of SC/M and the text in the present edition. (1) The spelling has been "normalized in SC/M. The rules are given on p. 2 (add on line 15 that anusvāra, not m, is also written in the interior of a word if it is the last letter of a member of a compound : e.g. paranmuha ).-Due to the peculiar process of printing (varityper) some of the letters and diacritical marks in SC/M have not come out well, Sometimes the dot below the letter is missing, and occasionally the ya looks like a va. (2) In doubtful cases SC/M always follows MS. no. 1. SC/E is more eclectic and has therefore included a large number of readings from no. 3. (3) The colophon of the prototype of no. 3 has not been edited in SC/E. It would have appeared after the word samarı hayati in the eighth line from the bottom on p. 335. The text is given on pp. 6 ff. of SC/M. (4) The colophon of no. 3 was published in SC/M and in SC/E. But the text of SC/M was based on C. D. Dalal's Catalogue of Manuscripts in the Jain Bhandars at Jesalmere, while the editor of SC/E had the original at his disposal. See SC/M p. 9 and SC/E p. 335 (11th to 8th line from the bottom ). (5) It was found that in a number of cases the readings prosposed by the editor of SC/E are more satisfactory than those of SC/M. The necessary corrections are given below, but doubtful cases, and cases where we would prefer the reading of SC/M to the reading of SC/E, are not included. The corrections which also include misprints, etc.) refer. only to the text, not to the notes. The page-numbers refer to SC/M if it is not stated otherwise. P.5, 1. 27: I read su di for va di in SCJE (p. 335, 1. 18). The akşara is blurred. p. 9, 1. 36: Cf. SC/E p. 335, 1. 15. samvat 1127 or 1227 ? Here and in the preceding case the reading could be ascertained with the help of the Indian Ephemeris (which is not available to me). p. 139, 1. 17: I would now prefer the reading jāena ("For what purpose is he born who fills (i. e. inhabits) the samsāra but who does not fill the world with his fame?”) 1.27 : Read with SC/E ( 58,1 ) vi bala in two words. p. 139, 1. 28 : mae does not fit into the construction. 1. 41: Read the pāțhāntara 29 of the MS JL with SC/E (58,10 ) as asandiyāe. p. 140, 1. 22: Read with SC/E (58, verse 34 ) juvaihim ävayā. 1. 33 f.: Read with SC/E kunasu ... ruyanti as a gātha. 1. 42: Read with SC/E (59,12) bhaniūna maha. Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -$3] INTRODUCTION [ 3 p. 141, 1. 22: Read kim anga puna-m--annão. 1. 29: Read ukkaitiena (MSS: ukkha-). p. 142, 1. 3 f.: I would now prefer to put the colon after durāyarini. 1. 19 : Put a question-tark at the end of the line. p. 145, v. 2: The MSS have anattham. Since anartha does not seem to have the meaning of "poor" it might be better to read with SC/E (69, v. 160) anadaham (anādhyam). v. 10: Read with SC/E (69, v. 168) bahu = prabhu. v. 13: Read viggha. v. 14: Read vavalthambham. p. 146, v. 6: It is difficult to connect viyajjha with the root dah (SC/E p. 246, note 5), but my reading vimajjha does not seem to make sense. 1. 15: Read -patu - and - jjhallari - 1. 16: Read - kāhalārāva -. 1. 17: Read ahiseya - 1. 18: Read pesiy'. $ 3. Survey of the contents of SC/M. Sections marked with an asterisk are reproduced or added in the present Introduction. In these cases references have been made to the paragraphs (89) of this publication, not to the pages of SCAM. A THE MANUSCRIPTS 1-17 1. Description of the manuscripts (the Jaisalmer MS and the Ahmedabad MS are independent of eacb other, but the latter is on the whole more reliable); description of the gaps and abbreviations in the two MSS 1-5 The colophons of the manuscripts: text, translation, analysis (the most important piece is the colophon of the prototype of the Jaisalmer MS which was copied by the scribe of the present MS) 5-16 3. Concordance of the manuscripts and of HTr 16-17 18-30 18-22 B SILĀNKA AND HIS WORK 1. The author: examination of all the references to writers of the name " Silanka" (Silänka, author of the C, wrote his work in samvat 925, and was probably not identical with Silānka the author of the Acāra -and Sūtrakta - Tika) The grammar of SC (list of forms not found in Pischel's Prakrit Grammar, and remarks on the syntax) 3. The style of SC (parallelismus membrorum etc.) 4. Silänka as a poet (different types of verbal style in SC and elaborations of the text by Silānka) CSC AS A SOURCE FOR THE STUDY OF THE UNIVERSAL HISTORY (summary and conclusions ) *Introductory remarks *Comparison of the "main versions" (I) : HTr and SC 22-25 25-29 29-30 $$ 6-20 Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ PRELIMINARY REMARKS ($ 3 § 8 can con cas *Comparison of the main versions" (II): SVh and HTr/SC *The Svetämbara-tradition and the Digambara-tradition *Comparison of the "sub-versions" (1): HTr/SC and the Avaśyaka-tradition *Brief comparison of the Āvaśyaka-tradition and of HTr for the final portion of the Mahavira-biography *Comparison of the " sub-versions" (II): HTr, SC, and DUtt *Comparison of the canonical and of the post-canonical Mabāvīra-biography *Contamination of the versions I (introduction to the problem ) *The Satrumjayamāhātmya *Verbal agreement between the Svetämbara versions *Transformation and preservation of the versions *The fusion of UH and Mahāvira-biography *HTr and SC (comparison with reference to technical details ) *Progress of the study of the UH *Bibliographical survey of comparative studies in the UH con as an as con cor con cas DSC AS A SOURCE FOR THE STUDY OF THE UNIVERSAL HISTORY (detailed comparison of HTT, SC, etc.) 44-113 Method followed in the comparison 44-45.- Silānka's introduction to the C 46 f.- Rşabha 47-57 ( kulakaras and previous existences of Rşabba 47-53, the *Drama Vibudhānanda $$ 22 f.; the actual Rşabha-carita 53-57 ). - Ajita 57.-Sagara 58-61 (the "Silavati - story $S 24 1. ).-Triprstha 62 - 66.-Dviprstha 66-69 (the Candragupta-story 66-69 ) - Svayambhū 69-73 (the Kanakamati-story 69-73).-Sanatkumāra 74 f. - Sānti 75-77.-Subhūma 77-78. Munisuvrata 79 f. - Nemi-carita cum Hariyamsapurăņa 80-93 (Harivamsa, Kuruvamsa, Vasudeva and Kamsa 80-83 ; Vasudevahindi and subsequent events up to the foundation of Dväravati 83; campaign against Jarasandha 84-86; Nemi-carita, destruction of Dväravati, death of Krsna and Balarāma 86-90; comparison of the versions 90; literary parallels 90-93 ). - Brahmadatta 93-95.- Färsva 95 f. - Mahāvira 96-113 ( incarnation and subsequent events up to the prayrajya 96-98; the chadmasthavihåra 98-105; the kevalajñāna etc. 105 f.; the kevalivihåra 106-112 ; the nirvana 112 f.). E GROWTH AND COMPOSITION OF THE UH 114-131 1. Legend and history in the life-stories of the Tirthamkaras (with special reference to the Mahāvira- biography ) 2. Adaptation of the stories to the exigencies of Jain dogmatics 3. Mabăvira-legend, Krşņa-legend, and Buddha-legend 4. The stories of the previous lives of the Tirthamkaras The life-stories of the Cakravartins 6. The life-stories of the Vasudevas, Baladevas, and Prativāsudevas 7. Jain mythology and Vaisnava mythology 8. Vidyadharas in Jain literature 114-118 118 f. 120-122 123-126 126 f. 127-129 129-130 131 Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [5 132-137 $4] INTRODUCTION F METHODS OF REPRESENTATION 1. Stories introduced by a question 2. First part of the story emboxed in the second part 3. Production of typical narratives by way of assimilation of different stories and multi plication of a single story. 4. Contamination of the versions II ( types of contamination ) 132 f. 133 f. 134 f. 136 f. G EDITION OF SELECTED PIECES FROM SC 138-151 138 138-144 145 145 f. 1. The concluding stanzas of SC 2. The Silavati-story 3. Consolation of King Ságara 4. Description of the wives of King Aravinda 5. Description of the procession of the gods to Mount Meru and description of Rşabha's janmābbişeka 6. Notes on the texts H BIBLIOGRAPHY 146 146-151 152 f. $ 4. Alterations and additions to the monograph (see also § 2). p. 46, l. 8 f. Not only gathas 27-29 but all the găthas 22-29 form a stuti on Sarasvati, more commonly known in Jain literature as the Srutadevatā. The goddess is described as standing on a lotus and holding a lotus and a book in her right and left hand respectively. This description agrees with her earliest representations in art (see U. P. Shah, Iconography of the Jain Goddess Sarasvati, Journal of the University of Bombay, Vol. X, Pt. 2, Sept. 1941, p. 198 f.). Sarasvati is the only member of the Jain pantheon described by Silänka. p. 48, I. 21. Read "two Prakrit-Duvais " for "four Sanskrit-Duvais ". p. 55, I. 21-24; note 1. The following text should be substituted for the wording of the original. "... and that he drove with the permission of Susthita twelve miles into the sea whence he discharged his arrow. But according to HTr and JCū the fasting is directed both here and in the two following episodes (Varadāmatirtha and Prabhāsatirtha ) at the firthakumāra and Susthita is not even mentioned in these two texts. But unlike the later deities (Sindhudevi, etc.), the tirthakumara does not show any reaction. It is possible that Silarka preserves the original motive. In that case we have to conjecture that the person of Susthita was eliminated in the later versions and that the fasting-motive was transferred to the tirthakumara without any attempt being made to adapt it to the new context. Again we read in HTr that Bharata drives into the ocean only up to a point where the water reaches the hubs of the wheels of his chariot. The rest of the distance is covered by his arrow which travels twelve miles. Obviously the long shot is a rationalistic substitute for the drive in the ocean. SC says only mukko (saro )...Samuddähimuho." p. 56, 1. 40 f. Read "Gesamtbericht" instead of "Bericht", "entstanden" instead of "doppelt aufgenommen", "unmittelbar vor dem Hochmut" instead of "vor dem Hochmut". p. 57, . 4 f. According to Hemacandra, the juice congealed into a pillar which touched the sky. Silanka does not seem to know of this miracle. He simply relates palhatthio ... Tasa-kalaso nicchidde karaya-juyale (SC/E p. 41, 1. 8 f.) "The jar with the juice was poured into the hands, which had no holes", Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 6 ] PRELIMINARY REMARKS p. 57, 1. 3.fl. For the motive of the ascetic-standing-in-an-ant-hill refer to Theodor Zachariae's contribution in the Jacobi Felicitation Volume, Bonn 1926, p. 458. p. 62, 1. 19. Read "11-15" instead of " 11-13". p. 68, 1. 38. Read as follows: "In the first part of the story, Candragupta relates his adventures in the third person, but afterwards the third person alternates with the first". P. 76, 1. 36. Read after "Megharatha - carita" "(10th previous existence)" instead of "( 8. Ve.)". P. 80, 1. 10 ff. See V. M. Kulkarni, The Rāmāyana Version of Silācārya as found in the Cauppannamahäpurisacariya (Annals of the Bhandarkar Oriental Research Institute Vol. XXXVI (1955), p. 46 ff.). p. 82, 1. 15. Read "and p. 357" instead of "and p. 375". p. 88, 1. 19 ff. Besides the story of the sons of Devaki which is related in Antagadadasão III 8 (Alsdorf, Harivamśapurāņa pp. 72-75; SC/M pp. 87 f.) we get in chapter V of the same anga an account of Nemi's prophecy aud of the warnings which are issued by Krsna to the citizens (see K. R. Norman's remark in his review of SC/M in the Bulletin of the School of Oriental and African Studies XIX (1957), p. 184; the relevant text was edited by H. Jacobi in the Zeitschrift der Deutschen Morgenlandischen Gesellschaft Vol. 42 (1888), pp. 528 f.). p. 104, 1. 22 ff. The Camara-episode can be compared with the story of Trišanku (Rāmāyaṇa I 57, 10 ff.). p. 110, 1. 12 ff. The Dardurānka-episode can be compared with the story of the frog in Visuddhimagga (PTS ed., Vol. I, pp. 208 f.). p. 117, note 2. The total of all the Indras is 64 (not 63) according to the Svetambara-tradition (see H, von Glasenapp, Der Jainismus, Berlin 1925, p. 363 and p. 477). See also Jambuddivapannatti chapter V. p. 118, 1. 31-38. Read as follows: "In Indian literature we have to distinguish between "attacks with destructive intention" and "temptations" (1. offer of pleasures; 2. demand of a sacrifice; 3. attack). See SCIM pp. 97 f. The motive for the temptation differs from story to story. In Jain literature, the incidents of the first type are different in character, whereas the temptation-stories are always moulded upon the same pattern. In Jainism the tempter is always a minor god (temptations of all the three types); in the Brabmanical literature he is Indra (temptations are mostly of type 1); with the Buddhists the agent is Indra in type 2, and Māra in types 1 and 3. In the Govardhana-episode of the KȚşna-epic Indra starts with a full-blooded attack (Brahmapurāna 188, 1-23), but afterwards he is characterized in his own words as a "tempter" without evil intentions (188, 24-33). The difference of treatment in Jain literature and Buddhist literature is obvious. As a devoted friend of the Jina, Indra could nowhere appear as a tempter. At the same time the Jains felt no need to raise the agent of the more important temptations to the rank of a figure like Māra, who (in spite of some features he shares with Indra) is the counterpart of the great asuras who were defeated by Vişnu. Māra's attacks are a cosmic event, whereas the attacks against the Jinas are normal episodes in their lives without metaphysical implications and without an identical agent. The Buddhists were interested in the Buddha's victory and in the person of the tempter, whereas the Jains emphasized only the steadfastness displayed by the Jina."-A detailed discussion of Māra is found in J. Masson's study on La religion populaire dans le canon bouddhique pali (Louvain 1942), pp. 99 ff. Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -4) INTRODUCTION p. 119, note 2. See H. Lüders, Varuna, Gottingen 1951/59, p. 490, note 3. p. 120, l. 20 f. ( transplantation of Mahāvīra's embryo). The traditional view that this episode was borrowed from the Brahmanical Kṛṣṇa-Balarama-legend has been called in question by W. Kirfel who reviewed SC/M in the Orientalistische Literaturzeitung 52 (1957), columns 262 ff. Kirfel's arguments are as follows: (1) The earliest account of Kṛṣṇa's birth is found in the vamśānucarita-portion of the pañcalakṣaṇasection of the purāņas. Here it is only the latest version, i. e. that contained in the Viṣṇupurāṇa, which records the transplantation of Balarama's embryo (Viṣṇupurāņa IV 15). (2) The story of the transplantation of Mahavira's embryo is already represented on a relief of the 1st century A. D. at Mathura. Kirfel is of the opinion that the derivation of the Jain story from the Brahmanical story is in any case incompatible with the usual chronology of the puranas and of the Jain canon. But in order to settle the question it is important to know whether the dating of the Mathura relief can really be relied upon or not. In the second case, it might become necessary to reexamine our chronology, in the first case it would be better to derive the Brahmanical story from the Jain story and not the other way round (1. c. column 264). [ 7 Kirfel's first argument must be accepted. However, a few details must be added to his representation of the facts. The tradition of the transplantation of Balarama's embryo has also entered into the vamśānucarita-portion of the Brahmaṇḍapurāna and Lingapurana. In the relevant passages Kṛṣṇa is called Devaki's eighth garbha which implies of course that Balarama was the seventh and that his embryo was transferred to Rohini. See Brahmaṇḍapurana II 71,228.232 and Lingapurāņa 69,57.61 (Kirfel in the Jacobi Felicitation Volume, Bonn 1926, pp. 307 f. and pp. 312 f.; Kirfel, Purāņa Pañcalakṣaṇa, Bonn 1927, pp. 475 f. ). But these references may be just as late or even later than the relevant text of the Viṣṇupurāna. Kirfel's second argument, however, does not bear scrutiny. The relief referred to cannot be taken as a representation of the transfer of M.'s embryo (J. Ph. Vogel, La sculpture de Mathurā, p. 52; see also V. S. Agrawala in the Journal of the U. P. Historical Society Vol. XX, Pts. I-II, pp. 68 ff. and ibid. Vol. for the year 1952, pp. 32 ff.; Jain Ant. 1937, pp. 75 ff. and 1944). But even then everbody would agree that the story which occurs for the first time in the Ayaranga is not later than the 1st century A. D. Kirfel has not mentioned the fact that the transplantation is missing in the Digambara-version of the Mahavira-carita (Gunabhadra and Puspadanta) and in the Kṛṣṇa-epic of the Jains (Alsdorf, Harivaṁsapurāņa p. 49). A plain reference to the transplantation of Mahavira's embryo is missing in the Viyahapannatti (W. Schubring. Die Lehre der Jainas, Berlin und Leipzig 1935, p. 26), but all the other Svetambara-texts record the incident. According to one tradition, the embryos of Devanandă and Trisala are exchanged as in the Balarama-legend (Ajaranga, Jinacariya; HTr); other texts merely relate that Devananda's embryo is transferred to Trisala (Malabhasya 51 ff. of the Avasyaka-Niryukti; SC/E p. 270, 1. 10 ff. ). Even though the transplantation is not recorded by the Digambaras, it is perfectly clear that the story occurs in Jain literature much earlier than in the puraņas. It was therefore wrong to derive the story from the Harivamsapurana of the Hindus (SC/M p. 120). On the other hand it is quite possible that the Jains took the story from other Brahmanical sources than the purāņas. According to Gunabhadra, Sită is Rāvana's daughter, and this feature was certainly borrowed from the Hindus, although the Brahmanical versions where it is found are all later than Gunabhadra's Uttarapurana (W. Stutterheim, Rama-Legenden and Rama-Reliefs in Indonesien, Munchen 1925, p. 107). This case, where a borrowing from the Jains is out of the question, clearly shows that the epics (and purāņas) had no monopoly Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 8] PRELIMINARY REMARKS [ $ 5. of Brahmanical stories. Such a remark does not, of course, settle the question once for all. A reexamination of the current thesis that the Jains normally borrowed from the Hindus and not vice versa may be useful (refer also to $ 20,3 ). Quite recently, Kirfel has made a similar observation with reference to the avatāra-concept. According to him, the avatāra-doctrine of the Hindus was evolved in analogy to the universal histories of the Jains and Buddhists (p. 40 of Kirfel's publication on the "Symbolik des Hinduismus und des Jinismus", Stuttgart 1959; ibid. pp. 122 f. a description of the transplantation -legends ). p. 124, 1, 2 f. It is natural that animals should play a less prominent part in the Jain Jātakas. than in the Buddhist Jätakas, because the Jain Jātakas were specially invented as a prelude to the actual biography, whereas the Buddhist Jātakas were simply old stories (often with animal heroes) in a new garb. But even outside the Jatakas we find in Jain literature very few animal-stories, and few stories generally that correspond to the Buddhist Jätaka collection. P. 124, 1. 16 ff. An example of a chain of existences reaching down to the present time is found in the Dürenidāna of the Nidänakathā. p. 130, I. 22 ff. : It would be more correct to say that Sakra and the other Indras are the only Jain gods with a history. The yakşas and yakşīs are also individual deities, but they do not appear as active figures in the UH ( only their iconographic description is given in texts like Dutt and HTT). Conversely, the yakşas and yaksis are a favourite object of popular worship, whereas the Indras are hardly known to the common believer.---Read again "64" for "63" ( Indras ). pp. 132 ff. These four methods of representation are rather wide-spread in Indian literature. The enquiry in SC/M deals only with the peculiar impress they bear in Jain literature. pp. 134 f. The seven devatās of the Kļşņa-epic of the Digambaras should be included in the examples ( Alsdorf, Harivamsaputāna pp. 54 f.). p. 149, 1.45 ff. See also J. J. Meyer, Hindu Tales, London 1909, p. 291, correction of p. 84 note 2. $ 5. Abbreviations. Alsdorf, Hariyamśapurāņa (D) Utt (H) TI (H) TI (J) CÜ (s) C L. Alsdorf, Harivansapurana. Hamburg 1936. (Devendra's ) Uttaradhyayana-Tika (Haribhadra's ) Āvaśyaka-Tikā (Hemacandra's ) Trişașțiśalākāpuruşacaritra (Jinadāsa's ) Āvaśyaka-Cūrņi (Silänka's ) Cauppannaməhāpurisacariya The present edition of SC The author's monograph on SC (Hamburg 1954 ) ( Sanghadāsa's ) Vasudevahiņời The Universal History of the Jains The word is used both for an individual text and for a particular tradition embodied in one or more texts. SC/E SC/M (S)Vh UH Version Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ $6] INTRODUCTION (9 I ount of Rşabha's all as, Lahore 1925 SILANKA'S CAUPPAŅŅAMAHĀPURISACARIYA AS A SOURCE FOR THE STUDY OF THE UNIVERSAL HISTORY (SUMMARY AND CONCLUSIONS) $ 6. Introductory remarks. Up to this time SC aroused the interest of the scholars mainly because it was regarded as the possible source of HTr, which is the most important, most comprehensive and best known version of the Svetämbara UH or rather of the UH as such. As a consequence, the previous discussion was primarily concerned with the question of the relationship between SC and HTr : did Hemacandra use SC as his source or had he to depend on other works ? Peterson was the first European scholar who made reference to SC. On p. 38 of his 3rd Report Report on the Search for Sanskrit MSS in the Bombay Circle, 1884-86 ) he states that SC is "doubtless the origin of Hemachandra's better known Trishashtiśalakāpurushacharitra". But he does not seem to have examined tbe manuscript very carefully. Banarsi Das Jain holds the same view. He believes that the similarity between HTr and SC in the account of Rsabha's previous existences is sufficient evidence of the fact that HTr is dependent on SC (B. D. Jain, Jaina Jatakas, Lahore 1925, pp. IV f.). This view is shared by W. Schubring (Gottinger Gelehrter Anzeiger 1932, No. 7, p. 293 and Orientalistische Literaturzeitung 1939, column 180 f.). According to Schubring, SC is " very similar to” and the " predecessor of " HTT. SC is also mentioned by Jacobi (Das Sanatkumāracaritam, Munchen 1921. p. XIII) and by Winternitz ( A History of Indian Literature Vol. II, p. 506, note 1). In 1939 a manuscript of SC was kindly made available to L. Alsdorf by Muni Punyavijaya. Alsdorf went through a considerable portion of the text and summarized his impressions as follows: That SC is the source of Hemachandra is out of the question. Parts of SC are very condensed and even incomplete; from the point of view of the content it is far inferior to Hemacandra's work." (Or. Lit. Zeitung 1939, column 605, note 3 ). On account of a letter received from Alsdorf, Schubring rectified his earlier statement. He admits that SC can no longer be regarded as the source of Hemacandra. At the same time he thinks it possible that both works stem from the same prototype (G. G. A. 1942, Nos. 8-9, pp. 311 f.). Our examination of the entire text has confirmed Alsdorf's view. But in order to render his judgement more precise we have to make a few amendments: (1) That SC cannot be looked upon as the source of HTr is not only due to the abridged treatment of the subject matter. It is also borne out by the fact that - broadly speaking - one half of the material is presented in a version more or less different from that of HTr. It is for this reason that SC claims greater interest than was expected. To study a new version of the UH is of course inore instructive than to read the somewhat older source of this well-known text. Besides HTr and SVh we have now a third independent source for the study of the UH of the Svetāmbara tradition. -(2) The statement that Silänka's account is incomplete as compared with that of Hemacandra does not hold true for the whole work. Fairly often Silānka's treatment is equally exhaustive, fortunately not only in portions where both versions agree but also where they disagree. In addition to the reasons advanced under (1) against the derivation of HTr from SC we would like to mention a general fact which renders such a theory a priori unlikely. As will be shown later on in greater detail ( 14 ), most works of the narrative literature of the Jains are based not on one but on several sources. The individual work does not represent a single uniform tradition but a cluster of traditions. It is true that we often refer in the singular to "the source " or to "the tradition" of a work, but such convenient expressions should not be taken at their face-value. The singular is justified only in those few cases where the whole text or a greater unit within the text can be derived from a single prototype. Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 10 ] SC AS A SOURCE FOR THE STUDY OF THE UH [$ 7 While comparing the different versions of the Svetāmbaras! we have to distinguish between those texts which give a continuous account of the UH (HT, SC) and those which contain only certain portions (Dutt, Āvasyaka-Cūrņi and -Tikā, SVh). First of all we compare HTr, SC, and SVh which differ quite a lot and which may therefore be called the main versions. Later on we have to study HTT, Dutt. TCu/HTi which are closely related and can be called Sub-versions of a version which is best represented by HTr. In those portions of the UH which are found in Dutt, SC agrees largely with Dutt and HTr (but see note 6 ). It is therefore appropriate to consider the relevant portions of SC as belonging to the sub-versions. A comparison of the different versions shows that agreement and disagreement alternate constantly. If we tried to demonstrate through a diagram the relations of the versions throughout the UH, we would not draw a single line (as a symbol of permanent agreement) nor several parallel lines (as a symbol of permanent distance ), but a bunch of lines separated by unequal distances. HTr, SC, JCā/ HȚI, SVh for example present practically the saine facts in the Rşabha-Bharata-carita ( the biography of the 1st Tirtharkara and of the 1st Cakravartin); but HTr, JCū/HȚI on the one hand and SC on the other differ widely in the Mahāvira-c. (the biography of the last Tirthamkara ). Generally speaking, the irregularity is due to the blending of different versions, but the striking contrast of harmony and disharmony reflects the higher and lesser degree of the canonicity of the stories. The typical elements which recur in each biography were soon brought into their final shape. But in the case of the individual parts ( wbich occur only in one particular biography) the poets were for a long time at liberty to choose between different versions and to create new versions by way of alteration, amplification or blending of the earlier works. In fact the Rşabha-carita consists largely of typical elements, whereas in the Mabăviracarita the individual elements are more dominant. Similarly we can observe that the inserted stories were subject to change for a longer time than the main story. This is for example true of the story which prepares King Sagara for the news of the death of his sons and which was transmitted in a less uniform manner than the Sagara-biography itself. Later on stagnation became universal and all parts of the UH tended to conform to the standard set by works like HTr. $ 7. Comparison of the " main versions" (I): HTY and SC. The most conspicuous difference between HTr and SC is the absence of the parisistaparvan in the latter work. Like the authors of the Digambara versions, Silanka presents the parisistaparvan neither in its entirety (as is done by Hemacandra) nor in parts (as is the case with JCū/HTI, DUtt, SVh). In the earlier texts a clear-cut line of demarcation between the history of the 63 great men and the history of Mahavira's Ganadharas (and the later fathers of the church) does not seem to have existed. But once the idea of a comprehensive biography of the 63 great men (ending with the death of Mahāvīra ) originated, it became necessary to separate the later stories from the main body of the UH. This was probably an innovation by Hemacandra or by one of his predecessors. Silänka does not appear to have known these stories. As they are very intimately connected with the legends of the Mahāvira-carita, one can hardly imagine that our poet would have passed them over in silence if he had known them (see SC/M pp. 108, 111; Valkalacirin: Besides the texts to be mentioned above there exist others which have not yet been translated or analysed. Often they are not even edited. Their names will be found in the Jinaratnakośa ( see in particular pp. 163 ff. and 304 f. of Vol. I). It does not seem that any of these works is earlier than SC. The numerous works consisting only of the biography of a single mahāpuruşa (usually a Tirthamkara ) are as a rule very late. Many of them have been published (W. Schubring, Der Jainismus, Berlin und Leipzig 1935, pp. 210 f. and Jinaratnakosa s. v. ). The Kabăvali, which describes not only the life of the 63 mahāpuruşas but contains also a pariţiştaparvan, was probably composed by an author of the 12th century (Jacobi discusses the work in some detail on pp. XI ff. of his edition of Heracandra's Parisiştaparvan, Calcutta. 1932). Dhanesvara's Satrunjayamabātmya also belongs to the latest phase in the development of the UH. It records a fairly large portion of the history of the 63 mahäpuruşas and has occasionally been utilized for the comparison (infra $ 15). See also 20, 4. Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 11 --$9] INTRODUCTION Hemacandra's Parisistaparvan I 29-266; Vajrasvåmin: ibid. XII). Our suggestion is further supported by the fact that in the Mahavira-carita itself Silanka's version shows very little conformity with the other texts. Silänka omits also the following portions contained in HTr and other texts: the individual parts of the Mahāpadma-carita, the Pradyumna-Sāmba-carita (forming part of the Harivamsapurāņa, see SC/M p. 83, last paragraph), the Krsna-legends contained in HTr VIII 10, a considerable number of legends and inserted stories (as related in the Mahāvica-carita and elsewhere ; see SC/M pp. 122 f. on inserted stories ), and finally all references to events yet to happen (HT. X 13). The Vasudevahindi and Krsna's life-story (up to the foundation of Dväravati) have been condensed into 9+24 gāthas which are preceded by a short piece of prose. In the same way the Rāmāyaṇa has been reduced to a few prose sentences followed by 26 găthās. Almost as exhaustive as Hemacandra's text is Silānka's treatment of Sagara, Sanatkumāra, of the last portion of the Hariyamsapurâna, of Brahmadatta, and of Parsva. These pieces recur in Dutt. Some parts of the account of Rşabha's previous existences missing in DUtt) are also related in great detail. The following pieces are included in SC but missing in the other versions: four lists of things related to culture ( 15 disciplines like dance, medicine, etc.; the alphabets ; the numerals from 5 to 84.00.00028; the varnas and the castes of the children in mixed marriages) and four short pieces which form part of the Mahävira-carita; see SC/M pp. 54, 106, 112. Besides this subject-matter which was no doubt taken from earlier versions, Silanka has incorporated into his work a drama and three stories ( 19 ). A parable related by Mahavira in one of his sermons is also peculiar to SC (SCM p. 110). In those parts which have not been mentioned in this paragraph, Silanka's account is more or less incomplete as compared with HTr. SC differs considerably from HTr in the biographies of Sagara, Triprstha, Dviprstha, Svayambhū, Purusottama, Subhūma, Mahāvīra, and in the Hariyamsapurāna (except the last portion). SC and HTr are rather similar in the biographies of Rşabha/Bharata (for the most part ), of Paruşasimha, Sanatkumara, Malli, Brahmadatla, Pärsva, and in the last portion of the Harivansapuräna. Those parts which recur in Dutt have been put in italics in order to demonstrate the relative agreement in the portions common to all three texts. The remaining parts of SC either differ only slightly from HTT, or they are too condensed to allow a comparison. $ 8. Comparison of the "main versions" (II): SVh and HTY/SC. Besides the Vasudeva-hindi, its proper subject, SVh contains a few small pieces from the Hariyamsapurăņa and the biographies of the following great men (completely or in part): Rşabha/Bharata, Sagara, Triprstha/Acala/Ašvagriva (related twice ). Sanatkumara, Santi, Kunthu, Ara, Purusapundarika (Ananda ) / Balin, Subhūma, Rāma/Laksmana/ Rāvaņa. Others are only mentioned by their names. As a rule Sangbadāsa's account is not less comprehensive than HTr, but in a few cases the text is much condensed (still more than in the corresponding portions of SC). As might be expected, the relation between SVh on the one hand and HTr and SC on the other is different in each part of the text. But it seems that SVh is nearer to HT than to SC; the distance SVh-HTr seems however greater than the distance SC-HTr. 99. The Svetāmbara-tradition and the Digambara-tradition. Sometimes one or several Svetämbaraversions show greater conformity with the Digambara-tradition (Jinasena/Gunabhadra, Puşpadanta ) than the others. But the comparison of the Svetāmbara-versions with the versions of the other sect (which was limited to the Harivamsapurāņa and to a few samples in the rest of the UH) has not led to the conclusion that one of the Svetämbara-versions shows throughout the UH a special similarity with the Digambara-tradition. What has been said on p. 90 of SC/M with reference to the relation of SC and the Digambara-tradition in the Harivamsapurāņa seems to be true for all three Svetāmbaraversions (HTT, SVh, SC) and for the whole of the UH: "There can be no doubt that silanka's Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 12 ] SC AS A SOURCE FOR THE STUDY OF THE UH [ $ 10 Harivarnsapurāna goes together with the Svetămbara-versions (HTT, DUtt, SVh, Satrumjayamahatmya), although in more than one case SC departs from the Svetambara-tradition and follows one (or several) of the Digambara-versions (Guņabhadra, Puşpadanta, Jinasena). But we are no-where forced to conclude that Silanka has adopted a feature which was invented by the Digambaras and did not belong to the common heritage of both sects. A good example is the story of the destruction of Dväravati. SC follows in part the Digambara-tradition and not HTr and Dutt; but the common version of SC and of the Digambaras recurs in the Daśavaikālika-Cůrņi and -Tikā, and it is therefore evident that this version already formed part of the earlier Svetāmbara-tradition (p. 88)." 10. Comparison of the "sub-versions" (7): HTY/SC and the Avasyaka-tradition. A considerable portion of the UH is contained in the Av.-tradition (Āvasyaka-Niryukti, -Cūrņi, -Tikā), and this version is almost identical with HTI. The full story is of course only told in JCū and HT. The Mülabhãşyaverses inserted in the Niryukti give a highly condensed account, and the Niryukti proper presents as a rule little more than an enumeration of the captions of the stories for the Mülabhāsya-verses refer to E. Lcumann in the Zeitschrift der Deutschen Morgenlandischen Gesellschaft XLVI p. 586 ). Stories which are not incorporated in the " Mahavira-biography" (in the wider sense, see below ), whether they belong to the UH or not, are generally not mentioned in the Niryukti. They are merely narrated by JCū and HTI in order to explain and to demonstrate scholastic notions contained in the Niryukti. JCu and HTI contain first of all. what may be called a Mahāvira-biography in the wider sense, starting with Mahavira's previous existence as a grāmacintaka and ending with his attainment of the kevalajñāna (including some events which follow immediately upon the enlightenment). This biography includes besides the other previous existences the life-story of the first Vasudeva Triprstha, who is an earlier incarnation of Mahavira's soul. In addition to that it comprises the Rşabha-Bharata-carita (including Rşabha's previous existences and the history of the kulakaras ). Obviously it was thought desirable to inould these two most important pieces of Jain mythology into one. They were bound together by the person of Marici who figured in the proper Mahavira-biography as a previous existence of Mahavira and in the Rşabha-Bharata-biography as a relative of Rşabha and Bharata. This nucleus of the UI was bound together by reincarnation and relationship, but not by systematic coordination as the later fully developed system. Apart from this Mahăvira-biography in the wider sense (henceforth simply called "Mahāvira-biography"), which is based on a continuous account, however abbreviated, of the Niryukti, and apart from tales not connected with the UH, JCù and HTI contain miscellaneous stories connected with various mahāpuruşas etc.: an almost complete Subhūmna-biography, many stories from the Parisista parvan (see H. Jacobi, Parisista parvan, Calcutta' 1932, pp. VIII-X), and finally various Krsna-legends and Mabävira-legends (HTr VIII 10 and X). According to a rough estimate, the Mahavira-biography comprises rather more than one third of the narrative portions of JCū and ratber less than one fourth of the narrative portions of HTI. (1) Comparison of JCü and HTI. As far as the Mahavira-biography is concerned, we find in HȚI hardly any material not contained in JCů, whereas more than one half of the contents of JCa (mostly the typical "elements which are connected with the various types of mahāpuruşas, not with an individual) are missing or merely outlined. The prolix descriptions found at some places in the Curņi are altogether absent in the Tikā. The text of JCū and HTI being largely identical, we meet only rarely with differences in the contents (see below). Outside the Mahavira-biography most of the stories have the same length in both versions. 2. Malayagiri's Vịtti and the Avaśyakakathă do not seem to depart anywhere from these three texts. The Avasyakakatha is written in Sanskrit ślokas, and the portions of this work which are quoted in the Abhidhāna Rajendra Kosa show that it is very closely related to the Avaśyaka-tradition. Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -§ 11 ] [ 13 (2) Comparison of HTr and JCu/HTI. Generally speaking, differences between HTr and JCũ/HŢI are more numerous outside than inside the Mahavira-biography. In the first case, HTr has occasionally the same version as JCu/HTI (SC/M p. 106: Mṛgavati-story), but often his version is rather different from that of JC/HŢI (SC/M pp. 110 f.: Gautama climbing the Aṣṭapada, minor differences; SC/M p. 112: Daśārṇabhadra-story, greater differences). Within the Mahavira-biography, differences between HTr and JC/HTI are just as infrequent as differences between JCu and HŢi, so that one is tempted to regard JC/HTI as the direct source of HTr. Some cases where HTr and JCu/HTi disagree may however be mentioned. In HTr all the 32 Indras proclaim to Lord Rṣabha's mother that her son will one time become a Tirthamkara; but in JCu/HTI this is done by Sakra alone (the version of HTr is however included in JC/HŢi as a variant: SC/M p. 53). In HTr and JCù the gods fly directly to Mount Meru in order to attend Rṣabha's janmābhiṣeka (this is also the version of Jambuddivapannatti V), whereas according to HTI and SC they always follow Sakra, flying first to the house where the child was born and afterwards to Mount Meru (SC/M p. 54). In HTr, HŢi, and SC Bharata defeats Nami and Vinami in a battle, whereas in JCu both brothers surrender without offering resistence (but JCu mentions the other version as a variant: SC/M: p. 56). In HTr and SC the boy Mahavira is riding on the god (who has transformed himself into a playmate of the Lord) after he has defeated all his companions in a climbing contest, in JCu/HŢi after he has defeated the metamorphosed god in a game of ball (SC/M: p. 97). Degree of completeness within the Mahavira-biography. Some minor features which are related in JCu/HŢi are missing in HTr, but there are just as many cases where it is the other way round. The lengthy descriptions found in JCu (particularly in the "typical" portions) but not recurring in HTI are also missing in HTr. In fact the relation between HIr and JCũ (and between Malayagiri's Vṛtti and JCü, see SC/M p. 137) is always less close in those parts which are missing in HTI. Several such pieces are altogether absent in HTT, some - i.e. descriptive passages - appear in condensed form, and others have been transformed (especially the typical stories, transformed from the "dogmatical" to the historical" form; see § 11, 2). Even then HTr contains practically the whole material of JCu, that is roughly speaking twice as much as we get in HTI. - Stories not belonging to the Mahavira-biography but common to HTr and JC/HŢi have the same length in both versions. INTRODUCTION (3) Comparison of SC, HTr, and JCu/HTI. Within the Mahavira-biography, HTr and JCu/HTI follow almost without exception one and the same version, which is different from that of SC. Cases like example No. 1 in the previous paragraph (prophecy) where SC and JCu/HȚi deviate from HTT, or example No. 4 (the disguised god) where SC and HTT deviate from JCü/HTi, are rare. It is however natural that SC and JCu/HTI sometimes preserve the original version where HTr offers an innovation (e. g. in the history of the Kulakaras: SC/M pp. 47 f.). Outside the Mahavira-biography, the relation between SC, HTr, and JCG/HTI is different in each story. Differences and even discrepancies between JCu/HTI and HTr make it impossible to call JC/HTI the direct source for HTr. But Hemacandra's sources were so closely related to JCu/HTI that these two texts give us a fairly correct idea of the works on which the poet drew. § 11. Brief comparison of the Avatyaka-tradition and of HT for the final portion of the Mahatrabiography. (1) The chadmasthavihāra (Mahavira's ascetic life prior to his enlightenment; Niryukti III 339-IV 68b; HTr, X 3+4). In this part there are no typical elements. JCu/HTI and HTr agree in almost all details, and the order of the episodes is also the same in both versions. Leaving aside a few short pieces which occur only in one of the two versions, one comparatively large portion is missing in HTr as compared with JCu/HTI, and one in JCu/HT as compared with HTr. Hemacandra practically omits those of Samgamaka's upasargas which are related in JCu/HTI on Niryukti IV 50a end - 54a (inclusive); only a short mention is made in HTr X 4, 288 f. In JCa/HŢi the story of the 3. Quoted after Leumann's unpublished left papers. For details see SC/M p. 45. Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 14] SC AS A SOURCE FOR THE STUDY OF THE UH [$ 11old and the young freşthin (HTX 4, 346-371 ) is inissing, which should have been included in the text on IV Cla. - Parts missing in HTi but found in JCu have been treated by Hemacandra as follows. JCu on III 339: a summary of the contents of this section is given in HTr X 3, 46 f.; here it is inserted at the end of a description of Mahāvira's ascetic life which is common to HTr and JCü but appears in HTr somewhat later than in JCu. JCa on IV 1 f. : the discussion of the fourth abbigraha is missing in HT X 3,77. JCa on IV 41: the lengthy stuti recited by Sakra in praise of Mahavira is replaced in HTr by a short eulogy in general terms (HTr X 4,172-175). The text of the stuti found in JCù consists mostly of quotations from the Jinacarita. JC on IV 48: the account of the temptation by the celestial maidens as contained in H I'r X 4,257-280 does not differ in its contents from the description in JCủ; but Hemacandra's version is infinitely shorter and also different in form. As opposed to JCü Hemacandra has inserted this episode after the granting of wishes, not before. (2) The kevalajñana and the subsequent events. This section consists mainly of typical elements and there is little agreement between HTr and JCu/HȚi. The attainment of the kevalajñana is recorded in JCQ/HTI on IV 69 and in HTr X 5,1-1. The account of JCū which is again loaded with quotations from the Jinacarita is far more detailed than the text of HTI and HTr. Here the Mahavira-biography of HȚi ends. In the following portion ( kovalamahiinā etc.; HTr X 5,5-24=JCü on V 13 ff.) both texts are fairly uniform in content and extent. This is the end of the historical Mabāvira-biography of JCū. Next comes the description of the samavasara na (its appearance, the sermon of the Tirthamkara and so on). In JCū this description has the form of a general pattern applicable to each Tirthamkara, not the form of a biographical account of an individual Tirtbamkara. The description is divided into eight dvāras (topics ). Hemacandra gives a normal historical account, but he does not present the matter in great detail because the typical elements were treated comprehensively in the Rşabha-Bharata-carita. From this point on the text of JCū has not been transcribed by E, Leumann, so that we have to compare HTr with the Niryukti itself. Here we get first an historical account of the conversion of the Ganadharas (HTr X 5,60-160 : Niryukti 591-641" ). The topics expounded to the later disciples are the same in HTr and in the Niryukti. While the Niryukti contains only the headings, we find the full story in HTr and especially in the long-winded version of Malayagiri's Vịtti. The information about the families etc. of the Ganadharas, condensed by Hemacandra into the verses X 5,49-59, is far more exhaustive in the Niryukti. It is divided into 11 dvāras and arranged in a statistical form. This account appears in the verses 642-659 of the Niryukti, i.e. later than in HTr and not in its proper context within the narration. Here the Mahavira-biography of the Avasyaka-tradition ends. Miscellaneous Mahavira-legends are however found in the later part of the Avaśyaka-commentaries, and two of them (the genesis of the canon and the consecration of the Ganadharas with celestial powder ) form part of the present section in the Mahavira-biography (HTr X 5,165-180; JCū/HTI on VIII 12). The two versions are fairly similar. Some of the events recorded in HTI X 5 seem to be without parallel in the Āvasyaka-tradition: Sakra's stuti (X 5,25-37), Mabāvira's sermon (38-48), the pravrajya of Aryacandanā (161-164), and her appointment as a ganini (181, Jinacarita 135 ). - SC differs in varying degrees from JCūHȚI and HTr throughout the account of the chadmasthavihāra and of the kevalajñāna. There are no cases where SC agrees with one of these two versions but not with the other (i.e. there are no cases of SC HTr as opposed to JCū/HȚi, or of SCI/JCu/HȚi as opposed to HTr). 4. Quoted after the edition of Malayagiri's Vrtti (Ass No. 60). 5. In order to avoid tedious repetitions, the life-stories of typical persons, i. e. of persons belonging to a common type, were often not given in full but reduced to a statistical account. The author mentions for exemple first all the birthplaces, then all the nakşatras of the birth, and so forth (i, e. classification according to the objective definitions, not according to the persons). The actual tale, which is identical in all cases, appears only once. The later writers abolished this system and gave the full stories together with the inevitable repetitions. Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 14] [15 § 12. Comparison of the sub-versions" (II): HTr, SC, and DUtt. The following parts of the UH are contained in DUtt: Sagara-carita, Sanatkumāra-carita," Sibi-episode" (see below), Nemi-carita (almost complete), story of the destruction of Dvaravati, Brahmadatta-carita, Parsva-carita, and miscellaneous tales from the Mahavira-carita and from the Parisişṭaparvan. DUtt overlaps with JC/HTI mainly in these tales; it overlaps with SVh mainly in the Sagara-carita, Sanatkumara-carita (only a portion of this carita is contained in SVh), and in the "Sibi-episode" (DUtt: Santi's 8th previous existence as Vajrayudha; SVh: Santi's 10th previous existence as Megharatha). SVh overlaps with JC/HT: mainly in the Rṣabha-Bharata-carita, in the Triprstha-carita, in the Subhuma-carita, and in the Prasannacandra-story of the Mahavira-carita. - The statement that SC follows HTr in all those portions which are also contained in DUtt (§ 6 above) requires reexamination (note 6; SC/M p. 36, 1. 27 ff.). INTRODUCTION The comparison of the parts common to HTr, SC, and DUtt shows that the version SC/DUtt is always much less detailed than the version of HTr. This is due to additions by Hemacandra rather than to omissions by Stlänka and Devendra. Nevertheless we also meet with a number of omissions in Dutt (SC/M pp. 75, 58, 95), and this fact alone shows that DUtt cannot be studied any longer without reference to the parallel versions. Material restricted to either SC or DUtt is rarely found and has little importance. In a number of cases SC clearly departs from HTr/DUtt, but instances where HTr departs from DUtt/SC or DUtt from HTr/SC occur only sporadically. In the Sagara-carita DUtt/SVh deviate on one occasion from SC/HTr (story of the Brahman: SC/M p. 61, 1. 16 ff.), and in the Santicarita DUtt/SC differ from HTT/SVh in the "Sibi-story" (SC/M p. 76, 1. 35 ff.). Broadly speaking the difference between DUtt and HTr is greater than the difference between JC/HTi and HTr, and smaller than the difference between SC and HTr. But none of these differences is of the same magnitude as the average difference between the main-versions described earlier. § 13. Comparison of the canonical and of the post-canonical Mahavira-biography. HT and the Avasyaka-tradition agree in most cases with the canonical records of the life of Mahavira as found in the AyAranga, Jipacariya, Viyahapannatti etc. (strictly speaking, the Avasyakaniryukti itself is still a canonical text). Silanka follows a different tradition which cannot be traced in any other text. Only the typical facts are related in SC in more or less the same way as in the other texts. The KandarikaPundarika-story (SC/M p. 111) is the only case where SC shows closer agreement with a canonical version (Naya 19) than HTг. JCù follows in this case the version of Naya 19 (in HTI the story is not included). In a few pieces of historical or semi-historical character SC departs very clearly from the other texts. The description of Gosala's heresy is not in keeping with HTr or the Viyahapannatti (SC/M pp. 106 f.), and three lists of contemporaneous names do not seem to occur outside SC (SC/M pp. 106, 112). Unfortunately, Silanka furnishes very little information about the persons mentioned. § 14. Contamination of the versions I (introduction to the problem); for the second part refer to SC/M pp. 136 f.; see also L. Alsdorf, Der Kumarapalapratibodha, Hamburg 1928, pp. 29 and 33. Our comparison provides many examples where two or more texts are partly identical in their contents or even in their wording. This does not however mean that it is easy to establish a direct connection between such texts. To derive a work, or any larger unit within it, from another work is as a rule impossible because of numerous differences which distinguish the later version from the earlier version and which cannot be explained by the initiative of the younger author. The problem is further complicated by the fact that the admixture of the new ingredient is perfectly arbitrary and incalculable. 6. When the thesis was written I had no access to the Ahmedabad edition (Atmavallabhagranthavali 12). The list was therefore based on the partial editions by Jacobi and others and cannot claim to be complete. 7. The versions are almost identical. See L. Alsdorf, Der Kumarapalapratibodha, Hamburg 1928, p. 27. Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 16 ) SC AS A SOURCE FOR THE STUDY OF THE UH [ $ 16 Theoretically we can explain the difference between an earlier and a later version of a work in three ways. First we can assume that the changes were introduced by the later author. This is unlikely for two reasons : on the one hand because the so-called innovations of the later authors can generally be traced back to some older version; on the other hand because the transition between the different forms in which an incident is related is often not gradual (which it should if the later writers were responsible ). On the contrary, we meet in many cases with two or three well-defined versions of an incident which, as it were, coexist, some authors preferring one type and some preferring the other. - Secondly we can explain the differences by intermediate versions or a common archetype or both. The greater the number of such hypothetical links the smaller the degree of originality with which the individual author must be credited. Thirdly we can assume that the authors contaminated different versions. The advantages of this third explanation are obvious. In view of the fact that the authors followed their sources closely and that we cannot reckon with an unlimited number of lost texts nor with a permanent influx of oral traditions, we have to admit that the third method of explanation, which can do without much hypothetical matter, is preferable to the second. But denying intermediate links altogether is as dangerous as including too many of them. We would therefore not state categorically that JC/HȚI is the direct source of Dutt, or that HTr//JCā/HȚi on the one hand and HTC/SC/Dutt on the other are direct descendants of the respective prototypes. It seems indispensable to develop some exact method of examining the interrelation of our texts, i. e. a method explaining the distinctive features of the texts with the help of the positive evidence contained in parallel versions. Nobody will deny that even in the later stages of the evolution of the texts poctical imagination' ant oral tradition' played an important part, but the effect of these forces should also not be overestimated (see also $ 20, 1). S 15. The Satrunjayamāhātmya. In his essay on this work, A. Weber had assigned to it a date as early as 598 A. D. G. Buhler brought down the date to the 13th or 14th century (Indian Antiquary VI, p. 154, note ), and this correction met with Weber's approval. In a few cases we have compared the $ with HTr. The Sumukha-story is related in almost identical form in both works (SC/M p. 79). The same is true of the Munisuvrata-carita itself (in HTr, the Sumukha-story forms part of the Munisuvrata-carita ); but here the version of $ offers a few additional features (SC/M p. 79 ). Cases of verbal identity between $ and HTr, extending over relatively large portions of the texts, are also not infrequent (Alsdorf, Harivamsapurāņa p. 81; SC/M p. 79). On the other hand we find in the Rāmāyana-version of the Pauracariya and not that of HTI (I owe this information to the kindness of Dr. Hamnm). In many cases the text of the is extremely short. To sum up : S is neither particularly old nor particularly original ; it is neither a representative of some independent Svetāmbaratradition nor in its entirety very closely related to any of the Svetämbara-versions under discussion, $ 16. Verbal agreement between the Svetāmbara-versions. All versions of the UH agree bere and there verbatim. This is particularly true of certain phrases which occupy a sort of key position in a story: they are changed rarely if ever. Even stories which are very vaguely related may occasionally agree verbatim (SC/M p. 67 and 69 ). Nor are striking textual parallels missing in lyric and gnornic portions (SC/M p. 74, 1. 35 f.). Perfect identity of a relatively large portion of the texts is however very rare and will nowhere extend over more than a few dozen granthas. Rare also are those cases where the Svetambara- and Digambara-versions are so closely related that some idea of the common archetype can be formed (Or. Lit. Zeitung 1939, column 608 ff.). In the following survey we shall first examine the parallels between the Prakrit works (1-3) and afterward the parallels between HTr on the one hand and the individual Prakrit works on the other (4-7). Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 17] INTRODUCTION [ 17 (1) SC and Dutt. The textual relationship is as inconsistent and incalculable as the relationship of the contents. Sometimes both texts agree verbatim over an unusally long passage (SC/M p. 74, 1.26 f.; p. 76, 1.39 f.). In many other cases the text of DUtt emerges as the skeleton of Silanka's text. But very often agreement is found only sporadically. (2) SC and JCūHȚI. Cases of verbal agreement are not too common and are restricted to single expressions (SC/M p. 64, 1.20 ). (3) Dutt and JC/HTI see note 6). Wherever a story is found in both Dutt and JCü/HTI we have the impression that Dutt is based on JCü/HTi and follows more or less closely Haribhadra's text. Verbal agreement is not rare. See also note 7, S 14, and L. Alsdorf in New Indian Antiquary 1 p. 286 f. (4) HTr and SC. The number and extent of verbal parallels are different in each part of the texts (c. g. frequent parallels in the first carita and few in the last). This is not surprising since the relationship between the two works is not uniform (either with reference to the contents or with reference to the form). One interesting fact emerges however from the comparison of the works : Hemacandra relied even for his poetical descriptions on earlier sources, as is shown by the numerous parallels in the lyrical parts of HTr and SC (see e. g. SC/M p. 74, 1, 35 f.). (5) HTr and JCū/HTi. The brevity of JCü/HTI in general as well as the prolixity of certain parts of the Cürņi, the difference of language and the difference of form prose-metre ) are at least partly responsible for the rarity of verbal parallels which is somewhat unexpected in the case of so closely related versions. No doubt, in a number of cases Hemacandra's text reads like a free rendering of JCū/H77, but in many other cases there is little or no verbal agreement. The discrepancy between HT and those portions of JCū which are not contained in HTI has already been pointed out in $ 10/(2). (6) HTr and the Āvasyaka-Niryukti. A comparison of the wording is practically out of the question in all those cases where the Niryukti contains only the captions for the story. But whenever a story is narrated in a normal (though condensed ) form we may find verbal parallels between both works. A good example is the story of Marici's heresy. Hemacandra did of course not copy his source but he adopted many expressions found in the Niryukti. Compare especially Niryukti 351-361 with HTr I 6,12-29a (first account of Marici's heresy) and X 1,34-47a ( second account of Marici's heresy). (7) HTr and DUtt. The relationship between Dutt and JCū/HTi is so close that the remarks made in (5) apply also to the relationship of HTr and Dutt. & 17. Transformation and preservation of the versions. An individual feature cannot be attributed to the author of a text unless it can be shown to conform to certain general habits of the writer. Absence of a particular feature in certain earlier or later) parallel versions of a text does not imply that it is an innovation of the author concerned. Hemacandra relates that the lord of the Mägadhatirtha learns from his minister of the shooting of the arrow by Bharata; in the other Svetambara-versions it is the lord of the tirtha himself who takes up the arrow. This feature in HTr is however taken from an earlier source and not an elaboration by Hemacandra, because it recurs in the Digambara-versions (SC/M p. 55; see also W. Schubring in the Gottinger Gelehrter Anzeiger 1932, No. 7, p. 294). However, each of our two works is characterised by a distinct tendency which clearly belongs to the individuality of the author : thus those features which can be related to this tendency may safely be attributed to the initiative of the writer. In Hemacandra the tendency is a disposition towards systematic treatment and in Silanka an inclination to psychological motivation of the stories. We have to remember that the parallelism of the events narrated is the distinguishing feature of the UII (SC/M pp. 134 f.). Casting different stories in the same mould is no doubt a common tendency in Indian literature, as is borne out by the avatāra-theory and similar concepts, but nowhere has this Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 18 ] SC AS A SOURCE FOR THE STUDY OF THE UH (9 18transformation taken place on such a vast scale as in the UH of the Jains. The change took however place by degrees, and it is therefore only natural that Hemacandra who was later in time and more systematic in his approach than Silanka presents the UH in a more regular form. As opposed to Šilānka he never omits the previous existences and always places them at the beginning. He avoids the practice of starting with the later part of the story and supplying the first part subsequently in the form of a relation by one of the heroes (SC/M pp. 133 f.). Figures who owe their existence to the exigencies of the system but who do not belong originally to the stories as such have been brought into relief, while they were neglected by Silānka and others (the Baladeva Acala in the Triprsthacarita ; Srişena in the story of Santi's first previous existence : SC/M p. 77, 1. 7 ff. ). . Hemacandra's account of eyen the least important mahāpuruşas is fairly detailed, whereas Silārka neglects the typical subjectmatter even in the case of the important mahāpuruşas : he describes the janmābhişeka of Rşabha in full detail but says nothing about the funeral rites; in the case of Ariştanemi, Silanka gives a description of the funeral rites but omits the janma-kalyana (puvvakkamena savuani jammanamahimai hoi datthavvam, SC/E p. 183, verse 53). The unsystematic treatment found in SC is certainly to some extent the result of Silānka's lack of method. At the same time it is fairly certain that his irregular version is somewhat nearer to the prototype than the highly regularized version of Hemacandra. Silānka's psychological approach makes itself felt as a tendency to describe in a very detailed manner the reaction of the individual to his experiences and to preface the decisions of the heroes with lengthy deliberations and exhortations. Some examples of such psychological innovations have been listed in the foot-note8 ). The fabric of the drama and of the three vairāgya-stories reveals also the psychological interest of the author. HTr as well as SC contain a few passages (stories etc.) which are not found in the other version(s). The subject matter recorded in SC but missing in HTr etc. has been listed in $ 7. Stories which could not be traced outside HTr (at least not in the same context ) have been collected in the foot-note, In the first case, the very character of the pieces shows that they derive from an old source; probably they formed part of the UH long before Silārka wrote his work. The stories peculiar to HTr were also not invented by Hemacandra. Nor is it likely that he was the first author who used them in their present context. Hemacandra's presentation of the UH is exhaustive, but it seems that he was reluctant to include any matter which was not by tradition connected with it. Such extensions are mostly found in the works of later authors who selected certain caritas from the UH and used them as a framework for a collection of stories. Unoriginal (or secondary) features (e.g. illogical arrangement of the events ) may also be inherited from some immediate predecessor. Examples of unoriginal features have been listed in the foot-notelo). 8. Mababala renounces the world voluntarily, not under the compulsion of a prophecy : SC/M p. 52, 1. 25 ff.-Marudevi's and Nábbi's reflexions on the new-born child Rsabha : SC/M p. 54, 1. 4 ff.Bharata urged by Suşeņa to start for the digvijaya : SC/M p. 55, 1. 16. f.-Bharata collects information from Subuddhi about Bahubalin's disobediance : SC/M p. 56, 1. 17 ff.-Brahmi and Sundari ask Rşabha out of compassion the reason for Bahubalin's unsuccessful penance : SC/E p. 48. 1. 20 #. Rşabba sends Brahmi and Sundari on his own account to Bahubalin : HTI I 5.779 ff.-Varunavarman urged by his brother-in-law Mitravarman to liberate his wife : $ 24.-Conversation between Krona and Balarama about Nemi's Teluctance to marry : SC/M p. 86, 1. 25 ff.-Silänka's version is nowhere supported by Jinasena's Adipuräna or Gunabhadra's Uttarapurāpa. 9. The temple built by the six friends : SC/M p. 53, 1. 12.-Sagara obtains the striratna : SC/M p. 58. 1. 26 ff.-Stories told by Subuddhi and Vacaspati : SC/M p. 61, 1. 35 ff.-Countries conquered by Brahmadatta : SC/M p. 94, l. 37 f. ; see also the following stories (1. 38 ff.) which recur in a different context.-Kurucandra-story: SC/M p. 76, 1. 46: the story is also missing in the Santi-carita of Dutt., Three stories in the Pärsva-carita (HTr IX 4) : SC/M p. 95, last paragraph. 10. The following examples are all taken from the Rşabha-carita. Vimalavāhana : SCAM p. 47, l. 37 ff.-Description of the cosmology and chronology : SC/M p. 47, 1. 16 ff.-Rşabha's kevalajñana : SC/M p. 55, 1. 1 ff.-Marici : SC/M p. 56, 1. 33 ff.Bharata's vairagya : SC/M p. 56, 1. 44 ff. (the unoriginal feature is always found in HTr, only in the last case in SC). Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - 18 ] INTRODUCTION [ 19 Certain transformations are typical of the individual traditions (Svet. and Dig.) or of the UH as such. L. Alsdorf has pointed out that the inclusion of a great number of vidyādhara-stories is typical of the Digambara-tradition (Harivamsapurāņa pp. 65 and 119). Vidyadhara-stories of a somewhat different type are found in increasing number in the later versions of the Svetämbaras (SCM p. 131 ). The comparison of the UH in general with the literature of the Hindus shows that the stories had to undergo certain changes before they could be incorporated into the UH. Miracles and miraculous beings were transformed (SC/M pp. 118 f.); cosmological inconsistencies were not tolerated (SC/M p. 119). The law of ahimsă made also certain changes necessary: the horse-with-inverted-training-motif replaced the hunting--motif (H. Jacobi, Ausgewählte Erzahlungen in Māhārāshiri, Leipzig 1886, PP. XIX f.): animals which had to be killed were sornetinies changed into dough-animals (M. Bloomfield, The Life and Stories of the Jaina Savior Pārsvanātha, Baltimore 1919, pp. 195 f.). "Ideological transformations of this type were carried to an extreme by Vimalasuri, author of the Paumacariya Jaina Ramayana : 6 21.7: V. M. Kulkarni has discussed these changes in detail (Journal of the Oriental Institute, Baroda, Vol. 9 [1959/60 ), pp. 199 ff.). L. Alsdorf has observed in the UH a tendency to knit together events which were originally only loosely connected (Harivaṁsapurăņa, pp. 54 and 56 f.). This tendency is no doubt related to the general trend towards parallelism mentioned at the beginning of this S.-Sometimes we can compare the later, retouched form of a story with a more original version found in one of the parallel texts, or with parallel stories generally which have a more original character (SC/M pp. 117, 124, 131 : absence of vidyadharas in the earlier versions of the UH. - Genuine magic sometimes not avoided in the earlier versions : SC/M p. 119, notes 2 and 3). That the transmission of narratives was regarded as a scientific affair is borne out by the tendency of certain commentators to include literary variants. We read in JCü/HTi that once a cow-herd pushed two sticks into Mahāvira's ears (SC/M pp. 104 f.) The learned authors add however that according to another version one single stick was pierced right through Mabăvira's head ( i.e. from one ear to the other ). Such instances show that 'scientific accuracy was deerned more important than poetical imagination. The later works mentioned of course no longer literary variants but they shared with the earlier texts the conservative approach (SC/M pp. 136 f.). Conservation and transformation should not be regarded as contradictory tendencies. Both are the result of ideological considerations. First a transformation was necessary in order to bring the stories into harmony with the Jinistic doctrine in general and with the system of the UH in particular. But sooner or later the process came to an end ($ 6), and henceforward the stories became as unchangeable as the dogma itself. Transformations of a different character resulted from the production of innumerable parallel versions which are neither really independent, nor anywhere really identical (as is the case with certain portions of the Brahmanical puräņas ). These transformations are of various kinds (see c.g. note 8 above ), but contamination was probably the most common ($ 14). $ 18. The fusion of UH and Mahavira-biography. The relationship between the fully developed UH and the Mahāvira-biography in the wider sense' has been outlined in g 10. Before entering into a more detailed analysis we give a concordance of the three relevant versions of this biography, viz. those of the Āvasyaka-Niryukti, of HTr (1), and of HTr (II). HTr (I) is the description of Mahävira's previous existences as contained in HTr I and IV; HTr (II) is the description of Mahavira's life and previous existences as contained in HTr X. The references to the Rşabha-Bharata-carita have been printed in italics. Our view that the Rşabha-Bharata-carita forms together with the Mabăviracarita proper the so-called Mabăvira-carita in the wider sense' is confirmed by Malayagiri who says in his Vrtti on Niryukti 143 elac ca sarvam bhagavan-Mahāvira-laksana-dravyādhinam. Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 20 ) SC AS A SOURCE FOR THE STUDY OF THE UH (9 18 Niryukti HTT (II) HTr (1) Mahavira's prebirth as a grāmacintaka (+ as a god in Saudharma) 143 f. (+ Bhă 1 f.) X 1,3-24 Kulakaras, Rşabha's prebirths, life of Rsabha and Bharata 145-4396 middle Parvan I (+ Bhā 3-45 ) +Rebirth as Marici 145 f, X 1,25-27 + Marici's dikså 344-347 X 1,28 f. I 3,652 + Marici's heresy 350-361 (+Bhā 36b +37) X 1,30-47a I 6,1-292 + Marici's future incarnations prophesied; his arrogance 422-432 (+ Bhā 44) X 1,49-59 I 6,370-390 + Marici's illness, initiation of Kapila, Marici's death 437-439b middle X 1,60-71a I 6,29b-52 Further incarnations of Mahāvira (including Viśvabhūti and Triprstha) 439b middle-450b middle X 1,71b-284 see next line [Viśvabhūti and Triprstha alone [ 444-447] [X 1,86-180 ] ( in IV 1] Mahāvira's life up to his renunciation 450b middle - 460 x 2 (+Bbā 45-110) chadmastha-vihāra (§ 11) 461-524 (+Bhā 111-115 ) X 3+ 4 kevalajñāna etc. (11) 525-659 (+Bhā 116-132) X 4,658cd+X 5 Those verses of the Niryukti which are printed in italics and which correspond to HTI I comprise also Marici's life-story. The portions which deal with Marici are mentioned separately and marked with a cross. Read Bhā' as Mülabhāşya' ( 10 ). The list shows that the tenth parvan of HTr is a rather faithful representation of the relevant Avaśyaka-tradition. The Rşabha-Bharata-carita was of course extracted in order to occupy its independent place in the arrangement of the UH. The three previous existences of Mahāvira which play a part in the UH outside the Mahavira-carita itself are repeated in their appropriate places : Mahāvira's 3rd previous existence as Rşabha's grandson Marici in the Rşabha-Bharata-carita; his 16th previous existence as Visvabhūti ( = 1st previous existence of the Vasudeva Triprstha ) in the SreyāṁsaTriprstha-carita; bis 18th previous existence as the Vasudeva Triprştha in the Srejämsa-Triptsha-carita. The treatment of the 16th and 18th previous existence is more detailed in the Sreyāṁsa-Triprstha-carita than in the Mabāvira-carita. But the complete account of the 3rd previous existence appears in the Mahāvira-carita, not in the Rşabha-Bharata-carita ( HTr X 1,25-27 [ Marici's birth] and HTr X 1,28 [ Marici betaking himself to the samosarana without parallel in HTr I ). The two Digambara-versions show the same arrangement as HTr. Only the relation of the first and second account of Mahāvira's 3rd, 16th and 18th previous existence is different. The two accounts of Marici do not overlap, and Guņabhadra (not Puspadanta ) gives the more detailed account of the 16th and 18th previous existence in the Mahavira-carita, not in the Triprştha-carita. See SC/M p. 128. Silānka mentions only the previous existences 3-18 (Marici to Triprstha ). 3-17 and the first part of 18 form a continuous account which is recited by a monk and which appears within the Triprștbacarita. The first part of the Triprstha-carita ( events previous to the story of the monk and which were already described by the poet himself) and the Marici-story are therefore related twice (as in the other versions, the Marici-story already appeared in the Rşabha-Bharata-carita ). But the second account of Marici is very short, and the second account of the first part of the Triprştha-carita (also contained in the story of the monk ) is a mere summary which adds only a few particulars to the first Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -$ 19 ] INTRODUCTION [ 21 account. Silanka's version is not only incomplete, but he is also the only author who separates the account of Mahāvira's previous existences from the Mahāvīra-carita itself. See SC/M pp. 62 ff. The difficulties in the composition of the UH which have just been described are due to the collision of two principles of formation, viz. reincarnation and systematic coordination ( 10 ). A shift from the first to the second method probably became necessary when the UH was enlarged to its present proportions. In the avatāra-concept both methods were combined, but this was for obvious reasons impossible in the case of the UH of the Jains. The final form of the UH therefore shows two chains which exist side by side and meet three times : in the life-stories of Marici, Triprstha, and Mahāvira (see also $ 20,2). $ 19. HTY and SC (comparison with reference to technical details ). (1) Division. HTr is divided into 10 parvans. A single parvan contains the biography of a single mabäpuruşa (HTr X: Mabăvira ). of several contemporaneous mahāpuruşas (HIr VIII : Krsna, Balarama, Jarāsandha; Nemi), or of several mahāpuruşas who lived at different times (HTr IV : 22 mahāpuruşas ). The parvans are subdivided into sargas. The biography of a single mahāpuruşa ( Tirthamkara or Cakravartin ) or of a triad (Baladeva/Vasudeva/Prativasudeva ) or of a triad-cum-Tirthamkara covers one or several sargas. See SC/M p. 17.-Silanka makes no effort to divide the material into.equal literary units. His work is simply divided into the biographies of the individual mahāpuruşıs and triads, and while his Mahaviracarita covers 65 pages of the printed edition, he condenses the contents of the Nandimitra-DattaPrahlada-carita into seven lines. Silānka does not connect the life-stories of different mahäpurusas unless they are intimately related to each other (1st carita - Rşabha+Bharata; 37th carita : Nemi + Balarama/Krsna/Jarasandha ). Hemacandra combines also the biographies of the 1st-5th triad with the biographies of the 11th-15th Tirthamkara; Silärka mentions in these cases only the fact that the triad lives at the same time as the respective Jina. Besides, HTr, DUtt, and SVh combine the life-story of the 2nd Cakravartin Sagara with that of the 2nd Tirthamkara Ajita, SC has 40 caritas in all : 24 T. +12 C. +9 triads = 45: minus % (because of the combination in the 1st and 37th carita ). minus 3 (because the Tirtharkaras 16-18 are identical with the Cakravartins 5-7). (2) Particulars of the mahāpuruṣas. Silārka differs with HTr and the two Digambara works, but agrees with Samavāya 54, in so far as he does not count the Prativåsudevas among the mahāpuruşas (see Alsdorf, Harivarsapurāņa, p. 117 note). Hence the title Cauppanna-mahāpurisa-cariya. The names of the Prativasudevas are normally not mentioned in the colophons of the relevant caritas of SC ( the colophons are however pften incomplete ).--The actual number of mahăpuruşas is 51 (or 60 ), because the three mahāpurusas who are at the same time Tirtharkaras and Cakravartins are contained twice in the normal figure. The numbers allotted to the individual groups of mahāpurusas (24, 12,9) are in keeping with the general Indian tradition, but we do .not know why the theologians reduced the actual total of 63 (54) by three (the identity of the Tirthamkaras 16-18 with the Cakravartias 5-7 has no internal reason ) while yet preserving 63 (54) as the official figure. Šilānka gives the following particulars at the beginning of each Tirthamkara-carita : time that has elapsed since the preceding Tirthamkara; name, duration of life, and height of the present Tirthamnkara. The spiritual aspect of the Tirtharkara's life is normally indicated in an introductory gătha. Hemacandra mentions the name in an introductory stuti, but gives the other particulars at the end or in the course of the carita. The name and iconography of the respective Yakşa and Yakşi are regularly given by Hemacandra, but in SC these two figures are nowhere mentioned.-Silānka introduces the caritas of the Cakravartins and of the triads in the same way as those of the Tirthakaras; the introductory part is, however, as a rule less complete. The names of the preceding and following Tirthakaras (or of the contemporaneous Tirthamkara ) are given, but there is no exact reference to Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 22 ] SC AS A SOURCE FOR THE STUDY OF THE UH [ $ 19 the time. The data supplied by Hemacandra are also less complete than in the case of the Tirthamkaras. Moreover, Hemacandra has no stutis, whereas Silanka introduces the caritas of some of the Cakravartins and triads with the usual gathā which alludes to the experiences and actions of the respective mahāpuruşas. The names of the Tirthamkaras and Cakravartins are identical in SC and HTr. But Silanka and the two Digambara-versions have Pondariya (Pundarika ) and Nandimitta (Nandimitra) instead of Hemacandra's forms, Purusapundarika and Nandana (6th Väsudeva and 7th Baladeva ). Tivitthu ( 1st Vasudeva ), Duvitthu (2nd Vasudeva ), and Kedhava (brother of the 4th Prativāsudeva Madhu ) are the usual Prakrit-equivalents of Triprştha, Dviprstha, and Kaitabha. (3) Previous existences of the mahāpurusas. Silanka relates the previous existences of 8 Tirthamkaras (Rşabha, Sambhava, Sumati, Santi, Malli, Nemi, Pārśva, Mahävira ), of 3 Cakravartins (Bharata, Sanatkumăra, Brahmadatta ), and of one Vasudeva ( Triprştha = 18th previous existence of Mabăvira ), In the case of the other 16 Tirthamkaras, Silānka mentions only the heaven 'where the saint dwelt prior to his incarnation. In the case of the 17th Tirthamkara Kunthu even the reference to the heaven is missing. Hemacandra relates in the case of each mahāpuruşa (except the Prativasudevas) at least one human existence and one existence as a god, and in the case of the each Prativasudeva at least one human existence. But in accordance with Silanka he mentions no previous existences of Sagara and Jarasandha. (4) The biographies of the mahäpurusas (Tirthamkaras ). The name of the place of birth, of the father, of the mother, and of the heaven of the preceding existence are normally the same in SC and HTr; occasional differences have been duly noted in the comparison. The place of nirvana is always the same in both works. Silänka narrates the typical events in the lives of the Tirthamkaras in much less detail than Hemacandra; the lack of uniformity in the treatment of this matter has already been mentioned in $ 17. Here we may add that Silänka' tends to neglect the typical events subsequent to the sermon in the samosaraņa. The consequence of this is that the shorter Tirthamkara-caritas end almost immediately after the samosarana-sermon. It is in keeping with the general tendencies of the two works ($ 17) that Hemacandra fills the Tirtharkara-caritas with an account of the typical events and with stutis, wbile Silānka prefers sermons, reflexions, and lengthy descriptions. Sometimes more than one half of the shorter Tirthamkara-caritas in SC is occupied by the sermon. (5) The biographies of the mabāpuruşas (Cakravartins and triads). Occasional omissions in SC and differences in the names of the place of birth and of the parents have been mentioned in the comparison. The digvijaya is described only once ( in the case of Bharata ); a description of the cakryabhiseka is nowhere given. The treatment of the triads is equally incomplete. In the case of the Prativasudevas, Silänka mentions at most the name of the capital. In the triads 2 and 4-7, Väsudeva and Baladeva are full brothers (in the case of the third triad the Baladeva is merely introduced as the elder brother' of the Vasudeva ). In other words Väsudeva and Baladeva have different mothers only in those three cases where the two women play a part in the story. In HTr Vasudeva and Baladeva are always halfbrothers. Sllanka says very little about the Baladeva. As in HTr he is the elder of the two, but he sometimes dies earlier than the Väsudeva, which is never the case in HTr. Silänka's description of the battle between Väsudeva and Prativasudeva always differs from Hemacandra's version. (6) The drama and the three vairāgya-stories. The plan, the didactic tendency, and certain sbortcomings of the composition are more or less the same in all four pieces. The drama and the stories have no parallel, but the individual motifs employed in their composition are partly known from other sources. There can be little doubt that the author of these pieces is Silanka himself. The Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 20] INTRODUCTION ( 23 introduction of the vairāgya-stories is always the same : The brothers ( in the first story the sons of Sagara, in the other two stories Vāsudeva and Baladeva ) meet a monk on their way. They ask him why he abandoned worldly life, and the monk replies by relating his life-story. The hero of these stories and of the drama, which has of course a different beginning) always gains after much suffering and exertion some valuable object (generally a woman) which he loses later on through adverse circumstances. These circumstances are obviously later additions to the original motif (the hero dies, he forsakes the woman because she is not faithful or because he thinks that she is faithless, and so forth ). This plan is repeated six times (the second story is divided into three episodes of similar character ). In all the three stories the hero takes his experience as a lesson about the futility of the samsara and renounces the world, $ 20. Progress of the study of the UH. As an object of modern indological research, the UH of the Jains has shared in many respects the fate of the purānas: both attracted general interest at an early date, both occupy a prominent place in the descriptions of either Hinduism or Jainism, but in spite of their undisputed importance, neither has received the samne attention as other fields of indology. No doubt some of the most important parts of the UH have been studied intensively, and the methods to be employed in the study of the UH have been outlined in precise terms. But these facts cannot remove the impression that there is even now some disproportion between the vastness of the material and the relatively small number of investigations in the subject. (1) The final picture of the growth and structure of the UH as it will eventually emerge from our investigations can be understood as the result of a sixfold comparison : (a) The UH and the tradition of the Hindus and Buddhists. (b) The Svetāmbara-version and the Digambara-version. (c) The canonical and the post-canonical versions of the Svetämbaras. (d) The various post-canonical versions of the Svetămbaras. .! (e) The various Digambara-versions. (1) Different versions of a story found in one and the same work on the UH. This list may appear somewhat formal but it serves to define the gaps in our knowledge. In our opinion, (c) and (d) deserve special attention. A comparison of the post-canonical versions of the Svetāmbaras (= d) could help us to understand the "contamination" described in § 14. Here it would be necessary to devise a new method for the graphical rendering of the interrelation of the versions. Instead of the usual pedigree one would have to apply a scheme of the following type: Episode I Episode 11 Episode III Text 1 version a (a) version b (b) version c (c) Text 2 version a' (a) version b' (b) version c' (c) Text 3 version a'' (a'') version b'' (b) version c'' (c) The small letters outside the brackets represent a case where no contamination has taken place. The small letters in the brackets represent a case of contamination : in Episode I, all three texts differ from one another; in II, text 1 goes with 2 as opposed to 3; in III, text 2 goes with 3 against 1. The stories best suited for such a comparison are those which exist in a relatively large number of versions. If the contents are to be compared, the versions should neither be too different nor too similar; if the Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 24 ] SC AS A SOURCE FOR THE STUDY OF THE UH [ $ 20 SC wording is to be compared, any versions of a particular story will be suitable which are to some extent identical or similar in their text. Below we mention a few such stories along with the works in which they occur. Digambara-versions are not included because they have too little in common with the corresponding Svetämbara-versions; the only exception is Jinasena's Harivamsapurana (JHp) which is closely related to the Svetambara-tradition (Alsdorf, Harivamsapurana, p. 118 ). Mere references to the stories quoted are not included. The first stories are more appropriate for a comparison of the contents, the last stories contain material for a textual comparison. Refer to SC/M pp. 62 ff., 77 f., 88 f., 58 ff.. 74 f. Read Daśavaikälika for "Das" and destruction of Dvåravatt and Krsna's death for "Dväravati". Triprstha SVh (2x) JC0/HTI HTT Subhūma SVh JCü/HȚI DUtt SCHTI Dväravati DUtt DasCu/ HTr JHp Sagara SVh DUtt SC HTT Sanatkumāra SVh DUtt SCHT Large-scale contamination is of course only possible if several parallel-versions exist side by side. The coexistence of such versions depends again on the toleration of diverging traditions. It is superfluous to add that in India different versions of a story or conception could easily be developed and transmitted, and that this growth of diverging traditions was only to a certain degree checked by ideological considerations. -- --. Although we are only dealing with contamination in Tain literature. we would like to mention the latest indological contribution to the study of the problem; it is found in Prahlada, Teil I-II, Mainz 1959, by Paul Hacker (see especially pp. 223 f.). Contamination is only one example of the so-called transformations which have been discussed in 6 17 and on pp. 132 ff. of SC/M in more detail. The common element of these transformations is the fact that tbey reduplicate the stories (and enlarge the existing literary substance) through merely formal procedures (contamination, multiplication, assimilation, ideological correction, etc.). Such processes are not restricted to literature but recur in iconography, although it is not always possible to apply one and the same category to literary and iconographic facts (see $ $ 51-53 of the author's contribution on “Distinction in Indian Iconography" in Vol. XX of the Bulletin of the Deccan College Research Institute). A study of the transformations in literature and in art is of considerable interest. and it often lends importance to a matter which at first sight appears to be unoriginal and monotonous. It seems also appropriate to undertake a comparative study of the transformations (and organizing forces in general) which appear in the different provinces of Indian literature and art. To this belongs for example an examination of the different ways in which stories were evolved and transmitted in the narrative literature of the Hindus,' Jains, and Buddhists. One has ultimately to study, more intensely than before, all the formal differences between the literature, mythology, iconography, metaphysics, and social organization of the different communities (and also of the different periods and provinces ). It would for example be interesting to compare the different character of the AvatāraJina-, and Buddha-concepts and also the different ways in which they are represented in literature. (2) The comparison suggested in (1) furnishes a sort of horizontal section. This could be supplemented by a vertical section, which can be established through a comparison of texts which represent different stages in the evolution of the UH (cf. 'c' in the list given in (1) of this paragraph). A study of the oldest parts of the UH would not only throw some light on the stratification of the works (i. e. on the various layers formed over a basic text), it would also supplement our present knowledge of the relevant portions of the UH, and it might eventually even help to establish a relative chronology. The enquiry would trace the evolution of the UH from the canonical texts (Ayara nga/Jiņacariya, Rāyapasenaijja/Jambuddivapannatti, Viyahapannatti, etc.) to the Āvasyaka Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ INTRODUCTION -§ 21 ] [ 25 tradition (Avasyaka-Niryukti, Mulabhāṣya [§ 10]. JCu/HTI), and from there to the relevant portions of HTr. Any such undertaking would of course have to start with a close study of E. Leumann's published and unpublished contributions on the Avasyaka-literature (see § 21,4). (3) A study of the evolution of the Kṛṣṇa-legends would enable us to coordinate the chronology of the Brahmanical works, of the traditions of the Jains and of the representations in stone. The story of Balarama's birth (with or without transplantation) is found in the vamśänucarita of the pufāņas, in the Kṛṣṇa-epic of the puriņas, [in the Mahavira-legend (transplantation-motif)], and in the Kṛṣṇa-epic of the Jains (see § 4). Kṛṣṇa's adventures in the gokul are related in the Kṛṣṇa-epic of the, puranas, in the Bălacarita, in the Mahavira-legend (single motifs), in the Tripṛṣṭha-carita (single motifs), and in the Kṛṣṇa-epic of the Jains; see SC/M p. 120. Two or more Kṛṣṇa-legends are represented at Mathura, Badami, Pattadakal, Deogarh, Paharpur, and on numerous medieval monuments like Abu etc.11). Comparative studies in individual Kṛṣṇa-legends are rare and deal as a rule only with a few closely related versions (see in particular Kirfel's fundamental article in the Jacobi Felicitation Volume, quoted above in § 4, note on p. 120). (4) It is not certain that the studies in the UH which have been published so far took into account all the important versions which are at present available. It is possible that some works have come down to us which contain valuable information on the subject but have so far escaped our notice. The texts which may furnish such information can be grouped as follows: (a) Canonical texts. (b) Commentaries on canonical works. (c) Works dealing with the entire UH or with a considerable part of it. (d) Works dealing with a single mahapuruşa (or with a few mahāpurusas) and arranged as kathākośas. That we cannot expect any useful information from the works listed under (d) is quite clear., As regards (c) we possess some later texts of this type which have so far not been studied very carefully (e. g. the Kahavali of Bhadreśvara); they are however not likely to contain much material which is not also found in HTr. Earlier texts (except those which are constantly being referred to) have obviously not been found so far. The names of some of them (like "Bhadrabahu's Vasudevacarita ") are however mentioned in our sources. The canonical texts (a) may contain here and there stories related to the UH which have not yet been noticed or not yet been recognized as such. Only recently L. Alsdorf discovered that the description of the janmabhişeka of the Tirthamkara, as contained in Jambuddivapannatti V, is based on the description of the abhişeka of the god Suriyabha narrated in Rayapaseņaijja (§ 21, 1). A few new references to the UH were noticed by A. Sen (§ 21, 3). The commentaries (b) are however most likely to contribute to our present knowledge of the UH. An analysis of the stories contained in the various bhāsyas, curnis, etc. would be extremely useful even if the number of stories dealing with the UH should prove smaller than expected. The reader may consult in connection with this paragraph A. N. Upadhye's Introduction to his edition of Harisena's Brhatkathakośa (Singhi Jain Grantha Mala No. 17, Bombay 1943). The sketch of the narrative literature 11. Mathura: Kala Nidhi Vol. I pp. 133 f.; Badami: Memoirs of the Archaeological Survey of India No. 25 (1928), Pl. XII bcd, XXIII d, XXIV bcd, XXV; Pattadakal: H. Cousens, The Chalukyan Architecture, Calcutta 1926, Pl. XLVI, XLVIII; Deogarh: Memoirs of the ASI No. 70 (1952), Pl. XVIII ff. and Indian Archaeology 1958/59, Pl. LXXV D; Paharpur : Memoirs of the ASI No. 55 (1938), Pl. XXVIII ff. Often only a single episode is shown, and this is in the earlier period almost invariably the uplifting of mount Govardhana; representations of this event are sometimes very rich in details (Maudor-stele; detached slab, Northern Fort Badami; Panca Pandava Mandapa, Mahabalipuram). See also JOI I p. 51 tf. Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 26] SC AS A SOURCE FOR THE STUDY OF THE UH [ § 21 of the Jains which appears on pp. 17 ff. makes no special reference to the UH but contains valuable information on the subject. $ 21. Bibliographical survey of comparative studies in the UH. A "B" or "Br" after the caption of the story indicates that it is compared with Buddhist or Brahmanical parallels. (1) The UH and the tradition of the Hindus and Buddhists. E. Leumann, Transactions of the 6th International Congress of Orientalists, Leyden 1883, III 2 (Leyden 1885), pp. 539 ff. (Draupadi, Br): H. Jacobi, Sacred Books of the East, Vol. XXII, Oxford 1884 (p. XVII : names of Mahavira's relations ( erroneous identification with the names of Buddha's relations refuted ]; p. XXXI : transplantation of Mahavira's embryo, Br; cf. § 4, note on p. 120 ); H. Jacobi, Transactions of the 7th ICO, Vienna 1886, pp. 75 ff. ( the UH and the Brahmanical Kysna-epic); H. Jacobi, Zeitschrift der Deutschen Morgenländischen Gesellschaft Vol. 42 (1888), p. 494 (the UH and the Brahmanical Krsna-epic): R. Fick, Eine jainistische Bearbeitung der Sagara-Sage, Kiel 1888 (Br): E. Leumann, Wiener Zeitschrift fur die Kunde des Morgenlandes Vol. 5 (1891), pp. 111 ff. (Citra and Sambhála, B); E. Leumann, WZKM Vol. 6 (1892), pp. 1 ff. (Citra and Sambhala, B and Br); H. Luders, ZDMG Vol. 58 (1904), p. 691 (destruction of Dväravati, B and Br); W. Stutterheim, Rama-Legenden und Ráma-Reliefs in Indonesien, Munchen 1925, pp. 93 and 107 (Rāmāyana, Br); L. Alsdorf, Transactions of the 19th ICO, Rome 1935, pp. 344 ff. (Vasudevahindi, Br); L. Alsdorf, Harivamśapurāņa, Hamburg 1936 (pp. 40 ff. : Hari-vamsa and Krsna-epic; pp. 79 ff. : Mahābhārata: pp. 109 ff. : Pradyumna: pp. 119 ff. : Harivamsa purana in general, Br); L. Alsdorf, ZDMG 92 (1938), pp. 464 ff. (digvijaya of the Cakravartin, Br); W. Ruben, Krishna, Istanbul 1944, pp. 286 ff. ( Kysna-epic, Br); L. Alsdorf, New Indian Antiquary Vol. 9 (1947), pp. 126 ff. (janmakalyana of the Tirthankara, B); C. Bulcke, Rāma-Kathā. Prayag (1950). $ 612 (Rāmāyana, Br; see also the same author's article in the Bulletin de l'Ecole Française d'ExtrêmeOrient Vol. 46 [1952), pp. 110 ff.): A. L. Basham, History and Doctrines of the Ajivikas, London 1951, pp. 27 ff. (Gośāla, B); H. Zimmer, Philosophies of India, New York 1951, pp. 205 ff. (altacks and temptations, B): SCM (pp. 120 ff. : Mahavira-Biography, B and Br; pp. 129 f. : UH and Vaisnava mythology: single references will be found on pp. 44-113, B and Br); L. Alsdorf, Dr. S. K. Belvalkar Felicitation Volume, Poona 1957, pp. 202 ff. (Citra and Sambhala, B); V. M. Kulkarni, Journal of the Oriental Institute, Baroda, Vol. 9 (1959/60), pp. 193 ff. (Rāmāyana, Br). (2) The Svetārbara-version and the Digambara-version, H. B. Bhide, Indian Antiquary Vol. 48 (1919), p. 127 (Kalki); H. von Glasenapp, Jacobi Felicitation Volume, Bonn 1926, pp. 336 ff. (UH in general); L. Alsdorf, Harivarśapurāņa pp. 116 ff. (Harivamśapurūna ); L. Alsdorf, Orientalistische Literaturzeitung 42 (1939), columns 608 ff. (Rşabha-Bharata-carita ); L. Alsdorf, NIA Vol. 9 (1947), pp. 105 ff. (janmakalyana of the Tirthankara ); SC/E 9 9 (UH in general). . (3) The canonical and the post-canonical versions of the Svetämbaras. E. Leumann, WZKM Vol. 5 (1891), pp. 111 ff. and WZKM Vol. 6 (1892), pp. 1 ff. (Citra and Sambhata ); L. Alsdorf, Harivam apurăņa (pp. 60 and 71 ff. : sons of Devaki and destruction of Dväravali; pp. 76 and 83: Pandavas ); L. Alsdorf, NIA Vol. 9 (1947), pp. 105 ff. (janmakalyana of the Tirthamkara ); SC/M (the following references: p. 37, 1. 15 ff. : inserted stories; p. 97, l. 13 ff. : temptation-stories ; p. 104 : Camara; p. 106, 1. 26 ff. and p. 107, 1. 12 ff. : Gośāla ); SC/E 13 (Mahävira-carita ).-A detailed comparison of the Kalpasūtra and the later texts has been prepared for the Parsuanatha-biography (M. Bloomfield, The Life and Stories of the Jaina Savior Pārśyanātha, Baltimore 1919, pp. 17 ff.).Names and incidents from the UH are often mentioned in canonical texts ; see especially the lists of Dames extracted by A. Sen from the Panhāvāgaraņāim (A Critical Introduction to the P., Wurzburg 1936, pp. 42 and 49 f.). Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 221 INTRODUCTION [ 27 (4) The various post-canonical versions of the Svetambaras. E. Leumann, WZKM Vol. 5 (1891), pp. 111 ff. and WZKM Vol. 6 (1892), pp. 1 ff. (Citra and Sambhuta); E. Leumann, Die AvasyakaErzählungen. Leipzig 1897 (edition of a small portion of JCG/HTI along with parallel versions from other works; the edited text includes the beginning of the Rṣabha-Bharata-carita); J. Charpentier, The Uttaradhyayanasutra, Uppsala 1922, pp. 55 ff. (comparison of the narrative portions in the various commentaries on the Utt); L. Alsdorf, Der Kumarapalapratibodha, Hamburg 1928, pp. 26 ff. (Sihalabhadra); E. Leumann, Ubersicht uber die Avasyaka-Literatur, Hamburg 1934, pp. 14 1. (Avasyakacommentaries); L. Alsdorf, Harivamsapurana pp. 116 ff. (Harivamsapurana); L. Alsdorf, NIA I (1938/39), pp. 286 f. (Agadadatta); SC/M p. 88, 1. 20 ff. (destruction of Dvaravati [DaśavaikālikaCu/Ti]); SC/E §§ 6 if. (UH in general). (5) The various Digambara-versions. H. von Glasenapp, Jacobi Felicitation Volume, pp. 337 ff. (UH in general); L. Alsdorf, Harivarśapurana pp. 116 ff. ( Harivamsapurana); SC/E § 18 (Mahavira's 16th and 18th prebirth). (6) Different versions of a story found in one and the same work on the UH. SC/M (p. 85: death of the Prativasudeva; p. 135, 1. 7-27 various references). (7) Jaina versions of the Ramayana. Näthūrām Premi, Jain sahitya aur itihas, Bombay 1956 (pp. 89 ff. and 102 ff. Vimala and Ravisena; pp. 93 ff. Vimala's tradition and Gunabhadra's tradition); V. M. Kulkarni, JOI Vol. 9 (1959/60), pp. 189 f. and 191 (the traditions of Vimala, Sangbadāsa, and Gunabhadra ).-V. M. Kulkarni has discussed the individual versions of the Jaina Rāmāyaṇa in a number of papers most of which appeared in the JOI (refer again to JOI Vol. 9, p. 189 ). THE DRAMA VIBUDHANANDA AND THE SILAVATI-STORY § 22. The drama Vibudhananda (SC/E pp. 17-27). The nandi consists of an invocation of Neminatha recited by the personified Nandi. Then the sutradhara appears, introduces the work as a composition of Šilanka, and asks his wife (whose name is Nați, actress') to cooperate in the performance. He does not accept her objection that she is not in the right mood on account of the fact that an astrologer has prophesied to her the destruction of the family after the marriage of the son '12): such is the course of fate, and therefore she should not neglect her duty because of the prophecy. Now the kañcukin joins in the conversation and with his appearance and the exit of the other two the real action begins. III 4 The kañcukin first of all relates in a monologue the events which have preceded the play. Prince Lakṣmidhara, who departed from home together with his companion the Viduşaka, has come to the court of King Rajasekhara (apparently he had left his father's capital on account of a dispute he had with him); we shall get to know his father's name Candrapiḍa further on). The king is inspired by the prince and decides to give him the princess and half the kingdom '14). During an accidental meeting, the prince and princess have already fallen in love, but (as we shall see later on) the prince has not recognized the king's daughter in the girl. - The kañcukin has been sent to convey the king's offer to the prince. He starts to do this, although an astrologer has prophesied to him that the thing will not end well. But instead of the prince, he first of all meets the Vidūṣaka, who was sent out by 12. This, like the hint at the frustrated marriage of Neminatha and Rajimati in the nandi, is an allusion to the end of the drama. 13. For this motif compare SC/M p. 66, I. 40 f. 14. Bloomfield has discussed the motif on p. 186 of his book on The Life and Stories of the Jaina Savior Parsvanatha (Baltimore 1919). Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 28 ) THE DRAMA VIBUDHĀNANDA ($ 23 his master in order to discover the whereabouts of the king and who had already received the news of the king's offer. With the Vidüşaka and a ceți, who later joins them, a humorous scene arises. After the exit of the kañcukin and the ceți the prince enters, wishing to meet the king. The Vidüşaka suggests that he should first of all rest himself in the picture-gallery of the kanyantahpura (which is where they are at present ). Here, without being aware of it, they are seen by the princess Bandhumati and her maid Candralekha. While Bandbumati draws a picture of the prince at the suggestion of the maid, they both hear the prince telling the Vidüşaka about the girl with whom he has fallen in love. But the princess is afraid that the prince is talking about some other girl. The maid insists that Bandhumati and no one else is the object of the prince's eulogy. The prince in turn wonders whether he is loved by the girl he has seen. The Vidüşaka assures him that he has inferred that with certainty from her gestures. In the meantime the kañcukin makes his appearance to deliver the message of the king and for this purpose requests the prince to come to the upper storey. The two girls who were watching here conceal themselves. The kancukin delivers the offer of the king to the prince but the latter is reluctant to accept it: as regards the proposal that he should take over half the kingdom he wants to wait for instructions from his father, to whom he has sent a massage ; again he feels unable to marry the princess because he has lost his heart to another girl. The watching princess swoons, but Candralekha rightly conjectures that the prince has not recognized the princess in the girl he saw and consoles the princess accordingly. On the exhortation of the Viduşaka the prince ultimately accepts the second offer. The kañcukin goes to convey this reply to the king, The Vidūşaka finds the picture of the prince and shows it to him. He also conjectures that the princess has drawn it and that she is the one with whom the prince has fallen in love. On his advice, the prince draws a picture of the princess beside his own picture. When this has been done both leave. The girls reenter the room and the princess is overjoyed when she finds out that the prince has painted her. At this moment the prince sends back the Vidūşaka to efface the picture he has so rashly drawn. But Candralekha seizes the Vidūsaka, he cries for help, the prince comes - and stands in front of his beloved. After the necessary declarations the hands of prince and princess are joined by Candralekha. At this moment the kañcukin enters, congratulates the prince and requests the two to set off for the marriage-ceremony. In doing so he gives rise to an evil omen : he wants to say it is high time and uses the expression dhaukate kalah which can also mean death is near. He therefore quickly corrects dhaukate kälah into dhaukate lagnam. On this occassion the prince observes that nobody can escape his fate. All go off-stage with the exception of the kañcukin who has to announce the marriage to the citizens and to ask them to decorate the town. Suddenly he hears a noise arising from the palace. He quickly repairs to the palace and is received by mournful cries. The king appears with the queen Citralekha and bursts into lamentations : the prince has succumbed to a snake-bite immediately after the marriage-ceremony. The animal was in a casket of the princess, in which he bad uncautiously placed his hand. When the king has ended his elegy the kañcukin appears with the news that the princess has followed the prince to the funeral pyre. The queen wails loudly and swoons for some moments. The king declares that he will renounce the world and install his son as his successor on the throne. The queen's objection that the son is still too young does not dissuade him. The drama ends with a monologue of the king. $ 23. Remarks on the drama. The play is staged by the minister Vimalamati who in this way induces his royal master Mahābala ( 4th prebirth of Rşabha) to take the pravrajyä. As we learn from Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -- 24 ] INTRODUCTION [ 29 HTr and from Sanghadāsa's Vasudevabindi it was prophesied to the king that he had only another month to live : hence the action of the minister. It is however only in SC that the king is led to vairāgya by a dramatic performance. In the other Svetāmbara and Digambara sources it is a philosophical discussion in the presence of the king which persuades him of the futility of worldly existence ( but compare also JCū/HTI : tattha Subuddhiņā (Subuddhi = Viralamati) ... nag aga-pekkha-akkhitta-wano sambonio Mahabalo] ). The play is constructed in every respect upon the model of the classical drama. But the only language used besides Sanskrit is Prakrit (i.e. the language of SC) with occasional forms in Sauraseni. The metre of the Prakrit verses is the Aryā; Sárdūlavikridita, Āryā, Upajāti, Vasantatilaka, Sragdhara are the metres of the Sanskrit stanzas. It inay seem that the tragic end violates the rules of the Sanskrit draina. But properly speaking the end is only loosely connected with the rest of the piece ; by the performance of the marriage ceremony the happy dénouement (nirvahana ) which marks the end of every drama is secured. The tragic end which counteracts the outcome of the action is an appendix to the body of the story and recurs in a similar form in the three vairāgya-stories. Here as in countless reflections spread over the whole work, Silanka wants to show that fate (particularly in the form of death ) is blind, cruel and ineluctable. $24. The Silavati--story (SC/E : pp. 57-62; text and commentary on pp. 138-144 and 147-150 of SC/M). In a previous existence the narrator was a kşatriya called Varunavarman. His father had married him to Silavati, a girl of good family. Both were children at the time of the marriage, and as they grew up Silavati turned out to be a svairiņi. When V. realized that she would not change her character, he neglected her.-One day the village is looted by the young and good-looking pallipati Simha. Silavati falls in love with the robber and asks him to become her husband. Simha takes her to his palli and makes her his chief queen. V. is glad to be rid of Silavati and no longer thinks of her. One day, however, when he has defeated all the other young men in a military contest, he is challenged by Silavati's brother Mitravarman. Mitravarman observes that V.'s actual prowess and skill can be judged by the fact that he allowed his wife to be kidnapped. A man worthy of his name fears no danger and will rather forego everything dear to him than lose his honour. But the greatest humiliation of all is that a wife should be kidnapped before the husband's eyes. V. takes the affair very seriously, in fact nobody knows Silavati's true character but his disgrace has become manifest to everbody. He decides that now the time has come to rescue Silavati some way or other from the abductor and to hand her over to her relatives. As he has to face the impending dangers all alone he disguises himself as a merchant (? see SC/M p. 139, note 20 ). After marching through a dangerous forest he arrives several days later at a palli called Kālajihvā, difficult of access and furnished with only one entrance. Here he is accommodated by an old woman called Sumitrā who bestows maternal care upon him. From his behaviour she infers that he is worried about something, and when she asks him the reason he tells her the whole story. In order to help him Sumitrā makes friends with Silavati. One day she asks her about her relatives, her former husband, and so on. She concludes by asking Silavati whether she loves the pallipati or her legitimate husband. The perfidious woman pretends to be unhappy and homesick and to long desperately for Varuņavarman. Sumitrā informs V. and he accepts ber words at face value. On the next day, Sumitrā informs Silayati that news from her former husband has come : he is in search of her. Silavati thereupon asks Sumitrā to carry a letter to V. in which she requests him to take her home. At this moment Sumitra informs her that V. is staying with her. The treacherous woman goes into transports of joy. She asks Sumitra to bring her husband to her that very day as the pallipati had left to take part in a yātrā. Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ THE SILAVATI-STORY [ § 24 At nightfall Sumitrā leads V. to his wife. She has to be soothed by Sumitra before she can receive Varunavarman. Eventually V. enters; his wife embraces him and offers him a seat on the sofa. Suddenly the pallipati arrives, summoned (as it later appears) by the wicked Silavati. She feigns utter confusion ond asks V. to conceal himself under the sofa. When the pallipati has entered, both take their seats on that very sofa. Simha asks her in a submissive voice why she had suddenly called him back from the yatra. She replies that she could not control her yearning for him any longer. Then she asks him what he would do if by chance her former husband turned up. He retorts ironically that he would hand her over to him. Silavati is enraged. Although the pallipati hastens to assure her that he would protect her from every danger, she does not grow calm but doubts whether Simha would be a match for Varunavarman. The result of her words is an outburst of wrath on the part of the pallipati. Next she tells him that his enemy lies under the sofa. The pallipati at once draws his sword and seizes Varunavarman. Silavati saves him from instantaneous death as she wants him to be tortured before being put to death. So Simha's men tie him to a post with stripes prepared from his own skin. The couple make love before V.'s eyes and eventually fall asleep. 30] Meanwhile V. is tortured by mental agonies which even surpass his physical pain. While he is engrossed in his thoughts a mouse comes and eats away his fetters. Released, he seizes Simba's sword, challenges him and as soon as he has risen chops off his head. He compells Silavati, who is trembling with fear, to accompany him as he sets out for the homeward journey, keeping clear of the usual path. Unfortunately he does not notice that Silavati, walking behind him, is marking the road with pieces of cloth. This enables Simha's son Vyaghra who has set out in pursuit of them to trace the couple in a thicket where they have taken shelter after sunrise. He nails V. down with pegs of Khadira-wood and carries Silavati back. While V. is wondering how he could be so inattentive, a monkey-chief appears with his herd. Seeing V. in a helpless condition, he hurries onto a mountain, preventing the herd from accompanying him. After a short time he returns and puts on each peg a morsel bitten off from a magical root that he has brought with him. Thereupon the pegs come out. With the help of a second herb he heals V.'s wounds. V. refreshes himself with fruit. Thinking over his position he comes to the conclusion that it would bring disgrace upon him to return home unsuccessfully. Meanwhile the monkey-chief comes again, lays down a cudgel before V.'s feet, and beckons to him with a glance to follow. On reaching the summit of a mountain, the monkey sends forth a thundering roar which fills all the animals of the forest with terror. Thereupon a second monkey-chief appears, utters a similar roar, and rushes upon the first monkey, his rival. Threatened by his enemy the latter once again glances at his companion Varunavarman. V. hits the aggressor on the head with the thorny cudgel so that he falls to the ground and gasps out his life. The first monkey throws the dead body in a pit and expresses by looks his readiness to repay V. his service. V. gently refuses, and the monkey shows him the way to the palli. There in the night he breaks into the house of the pallipati (the preceding phrase jäniuna ya sayalavultantam Sumitta-sayasão does not make any sense), kills his son Vyaghra, catches Silavati and sets out with her on the homeward journey. On the way he is attacked by another pallipati called Viraka, but single-handed he routs his whole gang. Thereupon Viraka remarks that the victory over his gang is no fair test of V.'s courage and challenges him to a hand-to-hand fight. But then he observes that a victory over V. will not add to his (i. e. Viraka's) credit, because V. is alone and from a foreign country (so that there is no proper witness of the fight). The first sentences of V.'s reply are not clear, but they are followed by a eulogy of courage and bravery shown in battle. V. concludes by asking the pallipati to fight or to retreat. Viraka is deeply impressed by these words, asks V. his name and the purpose of his journey, Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ INTRODUCTION [ 31 and unbends (or takes down) his bow. V. follows his example and both sit down under the shade of a tree. V. tells Viraka his story, whereupon the latter advises him to abandon Silavati, confirming him at the same time in his general aversion for woman-folk. He then takes V. as a guest to his palli and afterwards accompanies him till they reach the outskirts of V.'s village. Arriving there he declares that he wants to renounce the world, breaks his bow and goes away. Silavati is sent by V. to her relatives. Thereupon she declares that she has no support except him and starts to hang herself. However she is prevented from doing so by V. who hands her over to her family. Subsequently he renounces the world and after death he is reborn in heaven. Thereafter he is reincarnated in the Andhra country as Asokabhadra, son of King Asokacandra. His father gives him a hundred girls in marriage. One day he meets in a grove a youthful monk, at whose sight he experiences an inexplicable sense of excitement and attraction. When Asokabhadra asks the recluse the reason for his excitement, the latter tells him that he had been helpful to him (i. e. to Varunavarman/Asokabhadra ) in his previous existence as Viraka and tells him the entire Silavati-episode. The story makes a deep impression on Asokabhadra's mind and he takes the pravrajya at the feet of the Acārya Dharmaghoşa. After death he is again reborn in heaven. Next he is reincarnated as Puramdaradatta, son of Indradatta. Wandering on the Sriparvata, he meets the Sadhu Rşabhasena who tells him of his (i. e. of Varunavarman/Purandaradatta's ) past births. Thereupon Puramdaradatta renounces the world under the guidance of Rşabhasena. Wandering with the Sadhu, he comes to the present spot where his companion attains final release. Since that time the Sriparvata is known as "Siddhavada". 25. Remarks on the Silavati-story. After their departure from the royal capital, the sons of Sagara see a recluse while they are resting themselves at some lonely place. They ask him why he has renounced the world, " for such a decision has normally some external reason". The monk replies by relating the Silavati--story summarized above (speaking in the first person ). He concludes his narration by warning the sons of Sagara that they should never place any trust in women. The composition of the story is rather loose. The Viraka-episode in particular is quite superfluous and was probably only inserted as the necessary antecedent to the inevitable jātismarana--episode in the following incarnation. Single features like the liberation of the hero by a mouse, the removal of the pegs with the help of a magical root, and the cooperation with the monkey are known from other works ( magical herb: Sanghadāsa's Vasudevahindi p. 138, 1.12 ff.). Although the name of the female hero (Silavati. i. e. of good character') may be meant ironically, it seems that Silänka's model was some tale where a virtuous woman is kidnapped and later on liberated by her husband. In the present form of the story. V.'s continued efforts to liberate his wife have no proper motivation. Some of the gäthäs are reminiscent of Pancatantra verses (see SC/M pp. 147 ff.), but such parallels are probably not restricted to this part of SC. Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना -००९९०० 'ख' संज्ञक प्रति यह प्रति सूरिसम्राट् आचार्य श्री विजयनेमिसूरीश्वरजी शास्त्रसंग्रह, अहमदाबाद, के भण्डारकी है । धवलक्कक ( घोलका ) में राजा अर्जुनदेव तथा अमात्य मल्लदेवके समयमें खम्भातनिवासी पल्लीवालज्ञातीय लीलादेवीने अपने कल्याणके लिए वि. सं. १३२६ के श्रावण कृष्ण २ और सोमवार के दिन यह पोथी लिखवाई है' । ताड़पत्रके ऊपर लिखी गई इस प्रतिमें कुल ३७६ पत्र हैं । इनमेंसे पत्र १ से ११ तथा ३७५ ( कुल १२ पत्र) पीछेसे नये लिखाये गये हैं। यह प्रति अतिशुद्ध तो नहीं, परन्तु विशेष अशुद्ध भी नहीं कही जा सकती। इस प्रति परसे ही वि. सं. १६७३ के मार्गशीर्ष कृष्ण १३ और गुरुवार के दिन खम्भातनिवासी जोशी नानजीके पुत्र वश्रामके द्वारा लिखी गइ कागज़की प्रति भी उपर्युक्त भण्डारमेंसे उपलब्ध हुई है, जिससे प्रस्तुत 'सू' संज्ञक प्रतिकी वाचना अखण्ड सुरक्षित रह सकी है। प्रतिपरिचय इस प्रतिकी लम्बाई-चौड़ाई २०३" x २ है । प्रत्येक पत्रके प्रत्येक पृष्ठमें अधिक से अधिक आठ और कमसे कम तीन पंक्तियाँ लिखी मिलती हैं, परन्तु अधिकांशतः प्रत्येक पृष्ठ में चारसे छः पंक्तियाँ हैं । इसमें संवच्छरके बदले संवत्सर, पुरंधीके बदले पुरन्ध्री और गोरीके बदले गौरी जैसे संस्कृत शब्द भी कहीं कहीं उपलब्ध होते हैं, जिससे प्रतीत होता है कि प्रतिके लेखकको संस्कृत भाषाका भी ठीक-ठीक परिचय रहा होगा । लेखनकला में सिद्धहस्त कहे जा सके ऐसे लेखक द्वारा यह प्रति लिखी गई है । लिपि सुन्दर एवं सुवाच्य होने पर भी लेखकने लिपि-सौष्ठवका प्रदर्शन करने के लिए लेखनमें अपनी गति मन्द रखी हो ऐसा ज्ञात नहीं होता। प्रतिमें अनेक स्थानों पर 'द्ध' के बदले 'टू' और 'ड' बदले 'दृ' हो गया है तथा कहीं कहीं 'ल'का ण्ण, 'ण्ण'का ल्ल, 'ब'का घ अथवा य और 'व'का घ लिखा गया है, तो एकाघ स्थान पर 'झ'के बदले क भी हो गया है, इससे ज्ञात होता है कि लेखक आदर्श प्रति की लिपिसे अंशत: अनजान है। नकारके स्थानमें कार और जुलके स्थानमें जुवल भी अनेक स्थानों पर मिलता है । चार छः स्थानों पर गद्यपाठ में वर्णके द्विर्भावका एकीभाव भी उपलब्ध होता है; यथा, मोक्ख, सोक्ख, जोग्ग, पच्चूस एवं दुछंधके बदले मोख, सोख, जोग, पचूस एवं दुध आदि । मुद्रित पृ. २११ से ग्रन्थान्त (पृ. ३३५ ) तक 'जे' संज्ञक प्रतिके छः स्थानोंमें* तीनसे पाँच पंक्तिजितना तथा चार स्थानोंमें तो कुल मिलाकर साढ़े तीन फोर्म जितना पाठ अप्राप्य है । ये छोटे-बड़े पाठ सन्दर्भ प्रस्तुत 'सू' संज्ञक प्रतिमें ही उपलब्ध होते हैं। मतलब कि केवल इसी एकमात्र प्रतिसे ही चउप्पन्नमहापुरिसचरियकी वाचना पूर्ण रूपसे प्राप्त हो सकी है। ३ पृ. २८१ टि. १, २९२ टि. ४, ३०२ पाठोंके ऊपर हैं वे पाठ देखें । 5 मुद्रित ग्रन्थ में पृ. २२२ दि. ६, २२४ दि. ९, २२६ दि. ८, २२८ टि. ६, २३१ टि. २, २३४ टि. ४, २३५ टि. १,२३६ टि. १२, २३८ टि. ४ एवं ७, २३९ टि. ११, २४० टि. ४, २४२ टि. ८, २४७ टि. ३. २४८ टि. ३ एवं ५, २५२ दि. १०,२५३ टि. ८, २५७ टि. ५, १ देखो पृ. ३३५, दि. ६ । २ पृ. २११ दि. ११, २४३ टि. ७, २५२ दि. १, २६० टि. ९, २७० टि. १३ और २७६ टि. ७-इन छः पृष्ठों में निर्दिष्ट टिप्पणियाँ जिन मूल पाठोंके ऊपर हैं वे मूल पाठ देखें । टि. ३ और ३२६ टि. १३ इन चार पृष्ठोमें उल्लिखित टिप्पणियां भी जिन मूल २३३ टि. १२, २४१ टि. १७, २५९ दि. ३, Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४ चउप्पन्नमहापुरिसचरिय २६१ टि. ३, २६३ टि. ४, २६४ टि. ४ एवं ९, २६६ टि. ८, २७७ टि. ५, २७८ टि. ५ एवं १० - ये टिप्पणियां जिन पाठों पर दी गई हैं वे 'सू' प्रतिमें अधिक प्राप्त होनेवाले पाठ-सन्दर्भ हैं। इन सन्दर्भोके अभावमें भी अर्थानुसन्धान बराबर सुरक्षित रहा है, अतः उनका यहाँ ख़ास तौर पर अलग उल्लेख किया है। इसके अतिरिक्त शुद्धिकी दृष्टि से भी आदिसे अन्त तक अनेक स्थानों पर इस प्रतिके पाठ महत्त्वके ज्ञात हुए हैं। प्रस्तुत प्रतिकी वाचनाका स्वीकार मुद्रणमें अक्षरशः किया है, और जहाँ जहाँ 'जे' संज्ञक प्रतिके पाठ शुद्ध अथवा वास्तविक लगे वहाँ प्रस्तुत प्रतिके पाठोंको नीचे टिप्पणीके रूपमें रख दिये हैं। इस प्रतिका आकार-प्रकार ज्ञात हो सके इस दृष्टिसे इसके अन्तिम पत्र (३७६ ) का चित्र भी इस ग्रन्थमें दिया गया है। 'जे' संज्ञक प्रति जेसलमेर( राजस्थान )के किलेमें अवस्थित चिन्तामणि-पार्श्वनाथ-जैनमन्दिर के भूमिघरमें स्थित, 'बडाभंडार' के नामसे प्रसिद्ध, खरतरगच्छीय आचार्य श्रीजिनभद्रसूरिसंस्थापित (विक्रमका १५ वा शतक) जैन ज्ञानभंडारकी यह ताड़पत्रीय प्रति है। 'जेसलमेरुस्थ-जैन-ताड़पत्रीय-ग्रन्थभण्डार-सूचिपत्र (जैन श्वेताम्बर कॉन्फन्स, बम्बई द्वारा प्रकाशित) में इसका क्रमांक २३७ है । इसमें कुल ३२४ पत्र हैं । ३२१ ३ पत्रके दूसरे पृष्ठमें मूल ग्रन्थ तथा लेखककी पुष्पिका पूर्ण हो जाती है। पत्र ३२२ से ३२४ तकमें इस प्रतिको लिखानेवाले गृहस्थकी प्रशस्ति आती है । इसकी लम्बाई - चौड़ाई २९४" x २३" है। प्रतिका अधिकांश भाग अशुद्ध लिखा गया है, फिर भी प्रस्तुत सम्पादनमें उपयुक्त 'सू' संज्ञक प्रतिके अनेक पाठोंके स्थान पर अधिक उपयोगी हो सके ऐसे भी सैकड़ों पाठ इस प्रतिमेंसे प्राप्त हुए हैं । इस प्रकार पूरक प्रतिके रूपमें इसका इस सम्पादनमें एक विशिष्ट स्थान है। जिस प्रतिके ऊपरसे प्रस्तुत प्रति लिखी गई है वह बीचमेंसे खण्डित होगी तथा उसका पत्रांक सूचक कोई-कोई भाग भी नष्ट हो गया होगा जिससे एक-दो स्थानों पर पीछेके पन्ने आगेके पन्नोंमें मिल गये होंगे। कारणोसे भाषासे अनभिज्ञ लेखकने मानो ग्रन्थ सम्पूर्ण हो ऐसा समझकर समग्र ग्रन्थकी प्रतिलिपि की है। इसमें अनेक स्थानों पर 'ण'के बदले न और 'चेव'के बदले चेय लिखा मिलता है। ___वि. सं. १२२७के मार्गशीर्ष शुक्ला ११ और शनिवारके दिन गूर्जरेश्वर कुमारपाल और वाधुवल अमात्यके समयमें पालउद्रग्रामके निवासी आनन्द नामक लेखकने यह प्रति लिखी है,' और साधारण नामक पुत्रसे युक्त हौम्बटकुलीन पार्श्वकुमार नामक श्रेष्ठीने अपनी पुत्रवधू शीलमती तथा पौत्र नागदेवके कल्याणके लिए यह प्रति लिखवाई है। प्रति लिखानेवालेकी प्रशस्तिवाला भाग ( पत्र ३२२ से ३२४ ) घिसा हुआ और दुर्वाच्य है तथा अबतक प्रसिद्ध भी नहीं हुआ । संशोधन-क्षेत्रमें अविरत व्यस्त रहनेवाले पूज्यपाद विद्वद्रत्न आगमप्रभाकर मुनिवर्य श्री पुण्यविजयजीने अपने विद्वन्मण्डलके साथ जेसलमेरमें लगभग डेढ़ वर्ष तक रहकर (वि. सं. २००६-७) वहाँके भण्डारोके पुनरुद्धारार्थ जो ज्ञानयज्ञ किया था उस समय उन्होंने प्रस्तुत ग्रन्थ लिखानेवालेकी प्रशस्ति पढ़ी थी और वह 'जेसलमेरुस्थ जैन ताड़पत्रीय प्रन्थभण्डार सूचिपत्र' में छपवाई भी है । प्रस्तुत सूचिपत्रमें प्रकाशित वह सम्पूर्ण प्रशस्ति नीचे उद्धृत की जाती है ............प्येकवद्रे मार्गे सद्यो जडा अपि जनाः परिसश्चरन्ति । अन्तः स्फुरन्ति किल वाङ्मयतत्त्वसारास्तामिन्दुधामधवलां गिरमानतोऽस्मि ॥ १॥ १ देखो पृ. ३३५, टि. ४ । २ जेसलमेरके भण्डारोंको पूर्णरूपसे सुरक्षित एवं सुव्यवस्थित करके वहाँके महत्त्वपूर्ण प्रन्योको माइक्रोफिल्म एवं अनेक ग्रन्थोंकी प्रतिलिपि कराने तथा पाठमेद आदि लेनेके लिए पू. मुनि श्री पुण्यविजयजीकी प्रेरणासे पाटननिवासी सेठ श्री केशवलाल किलाचन्दमाईके अथक प्रयत्नके फलस्वरूप जैन श्वेताम्बर कॉन्मन्सने लगभग पचास हजार रूपयों का प्रबन्ध किया था। इसके परिणामस्वरूप भण्डारों की भत्युत्तम सुरक्षा एवं सुव्यवस्था हो सकी है और सैकड़ों ग्रन्थोंकी प्रतिलिपि एवं उनके पाठभेद आदि भी लिये जा सके हैं। Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना वंशे श्रीमति हौंबटे समभवत् सत्सर्वदेवाभिधः श्राद्धः शङ्करवत् सदागतनयास...... । . विशुद्धाराया जाताः सप्त तयोः सुताः सुचरिता भूमण्डले विश्रुताः ॥ २ ॥ चक्रेश्वर-साधारण- शान्ति-सज्जन-बन्धकाः । सुस्वच्छाऽम्मुक - सिद्धकयुक्ता मिध्यात्वनिर्मुक्ताः ॥ ३ ॥ अत्यन्ताद्भुतदाननिर्जितबलेः सद्बुद्धिवाचस्पतेः गाम्भीर्याम्बुनिधेः प्रतापकलितस्फूर्जत्सुतेजोरवेः । जाता... स्य गृहिणी सम्नायिकाख्या दयादाक्षिण्यादिगुणान्विता गतमदद्वेषादिदोषोत्करा ॥ ४ ॥ कमलिनीवनवत् कमलाश्रया न पुनराश्रितकण्टकविग्रहाः । त्रिनयना इव भूतिविभूषिताः परमसंवरवैरिपराजिताः ॥ ५ ॥ शमि- सन्तुक नेमकुमार - सिद्धधवलाभिधाः सदाचाराः । चत्वारः प्रवरसुता जिनमतनिरतास्तयोर्जाताः ॥ ६ ॥ गाम्भीर्यदाक्षिण्यदयादमाद्यैः शश्वद्गुणैः स्वैरमलैरसंख्यैः । संस्मारयामास जनस्य सम्यगानन्दमुख्यान् सदुपासकान् यः ॥ ७ ॥ सन्तुकश्रेष्ठिनस्तत्र तस्यासीत् प्रेयसी प्रिया । लावण्याढ्यान्विवेलेव शुद्धशीला सलक्षणा ॥ ८ ॥ जातौ तयोः शाठ्यविमुक्तचित्तौ कान्तौ सुतौ धर्मरतौ विनीतौ । सामायिकाद्युत्तमधर्मकृत्यनित्योद्यतौ श्रीजिनसाधुभक्तौ ॥ ९ ॥ मतिविभवविजितसुरगुरुमाहात्म्योऽभय कुमारनामाऽऽयः । अपरः पार्श्वकुमार : सुविचारश्चारुचरितरतः ॥ १० ॥ अभूत् पार्श्वकुमारस्य सुन्दरी नाम गेहिनी । शुद्धसत्पात्रदानेन यत्करे कङ्कणायितम् ॥ ११ ॥ सपुण्यः कोऽपि संजज्ञे साधारणस्तदङ्गजः । हृदये यस्य निःशेषे जिनो वासमसूत्रयत् ॥ १२ ॥ यशोधवलकः कीर्तिवल्लीप्रारोहभूरुहः । विमलो दर्पणः श्रीणां कुसुमं नीतिवीरुधः ॥ १३ ॥ समभूत् पद्मिकासंज्ञा तनया विनयास्पदम् । खानिर्विवेकरत्नस्य जन्मभूः शीलसम्पदः ॥ १४ ॥ अन्या सीताभिधा पुत्री मूर्तिमती कीर्तिरविहतप्रसरा । कुलकमलभानुरन्या समजायत संपिकानाम्नी ॥ १५ ॥ कान्ता साधारणस्याभूद् रोहिणीव हिमधुतेः । इन्द्राणीव सुरेशस्य लक्ष्मीरिव मुरद्विषः ॥ १६ ॥ शीलेन सुलसा सीता रेवती च सुभद्रिका । शीलमत्यभिधानेन चैता उपमिता यया ॥ १७ ॥ तस्यैवान्यतरा भार्या जज्ञरे ( जज्ञेऽथ ) शीलशालिनी । प्रतीता सुहवानाम्नी सुभक्ता निजभर्तरि ॥ १८ ॥ शीलमत्याः सुतो जातः प्रथमः श्रीकुमारकः । द्वितीयो नागदेवाह्नः प्राप्ता साऽथ दिवौकसाम् ॥ १९ ॥ इतश्च चान्द्रे कुले श्रीमति सोमकल्पे समुज्ज्वले शुद्धयशोमयूखे । सद्वृत्तशालिन्य कलङ्कभाजि सदादयानन्दितसज्जने च ॥ २० ॥ गणधर इव साक्षाद्गौतमादिर्व्यहार्षीदतिशयगुणगेहं यो धरायामधृष्यः । स्वपरसमयसिन्धोः पारदृश्वा प्रसिद्धोऽजनि जितमदनश्री ... ॥ २१ ॥ सुविहितशिरोरत्नं श्रीमज्जिनेश्वरसूरिरित्यगणितभयो दुःसंघीयाद् गणाद् गुणसागरः । नृपतिविदितः सत्साधूनां प्रवृत्तिविधायकोऽणहिलनगरे पट्टे तस्याभवद् बुधसम्मतः ॥ २२ ॥ जाता जिनेश्वरमुनीश्वरमुख्य.... सा । आराधनाभिधकृतिं सुरसुन्दरीं च चक्रे क्रमेण हि ययेह नवाङ्गवृत्तीः ॥ २३ ॥ आध: श्रीजिनचन्द्रसूरिरखिलाचारप्रचारे चिरं स्कन्धं विभ्रददभ्र निर्मलयशा धौरेय .. 1 ख्यातः श्रीजिनभद्रसूरिरपरः प्राज्यप्रभावान्वितस्तस्माद्विस्मयकारि चित्रचरितश्चारित्रचूडामणिः ॥ २४ ॥ प्राप्तो नययुगप्रधानपदवीं तैस्तैर्गुणैर्भारतेऽस्मिन् क्षेत्रेऽभयदेवसूरिरभयो निर्नीत जैनागमः । मान्योऽन्यस्तु ततः समस्तजगतः प्रोत्सर्पितार्हन्मतः सङ्घस्याभिमतः समुन्नतिमतः श्रीदेवताध्यासितः ॥ २५॥ पट्टे श्रीहरिभद्रसूरिरभवत् तस्याथ पूज्यक्रमाम्भोजस्याऽभयदेवसूरि सुगुरोर्न-व्याङ्गवृत्तेर्वराम् । यो व्याख्यां विदधेऽल्लिनगरे विद्वन्मुनिष्वग्रतो बिभ्राणेषु घनध्वनिः कपरिकाशीतिं चतुःसंयुताम् ॥ २६ ॥ ३५ For Private Personal Use Only Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६ . बउप्पन्नमहापुरिसचरिय तच्छिष्यः श्रीयशश्चन्द्रसूरिभूरिशमश्रियाम् । जातः पदं पदे तस्य पनदेवमुनीश्वरः ॥ २७॥ श्रीमान् समुज्झितसमप्रधनोऽप्युपात्तधर्मा न शस्त्रकलितः कलिकाममुक्तः । कामाकृतिः खलु कलावपि पूर्णकामः पार्श्वप्रभोरभयसूरिगुरोः प्रसादात् ॥ २८ ॥ बभूव भूमण्डलमण्डनैककीर्तिः स्वमूर्त्या जनयन् जनानाम् । अमन्दमानन्दमिवात्मबन्धुरनन्यलावण्यगुणेन सिन्धुः ॥ २९॥ चरणकमलभृङ्गस्तस्य निर्मुक्तसङ्गः समजनि जिनभद्राचार्यवर्योऽजितश्रीः । इति गुरुजनवंशं शीलका सप्रशंसं स्म कथयति निमित्तं लेखने पुस्तकस्य ॥ ३०॥ ज्ञात्वा ज्ञान प्रबोधोदधिसितकिरणं दुर्गतिद्वाःपिधानं रागद्वेषद्विपेन्द्रांकुशसदृशमुरोरप्रमादस्य हेतुम् । सेतुं दुःखाम्बुराशेः प्रथितसुरसुखश्रीविधानं निधानं कल्याणानां प्रधानं शिवपुरगमने पूर्णकुम्भोपमानम् ॥ ३१ ॥ त्रिदिवप्रयाणसमये शीलमती प्राह श्वसुर-भर्तारौ । मम श्रेयसेऽथ पुस्तकलेखनविषये प्रयतनीयम् ॥ ३२॥ तथा श्रीशान्तिनाथस्य बिम्बमुत्तमकारितम् । यतो जन्मान्तरे बोधिं प्राप्नुयाम् विमले कुले ॥ ३३ ॥ नागदेवस्य श्रेयोऽथ शीलमत्यास्तथैव च । पार्यकुमारकः श्रेष्ठी साधारणसमन्वितः ॥ ३४ ॥ चतुप्पण्णमहापुरुषचरिताख्यां दधद्वराम् । लेखयामास सद्वर्णं सुपत्रं पुस्तकं वरम् ॥ ३५ ॥ जम्बूद्वीपसुमेरुसागरमहानद्यो महीमण्डले यावद् व्योमतले मृगाङ्क-मिहिरौ नक्षत्रमालास्तथा । राजन्ते जिनशासनोन्नतिकरं मोहव्यपोहाय वः स्तात् तावद् वचनामृतं श्रवणयोः मुष्णन्नघं पुस्तकः ॥ ३६ ॥ शीलमत्याः पितृपक्षौ कथ्येते यथा कटुकासनवास्तव्यो अश्वदेवाभिधानकः । वासः समग्रनीतीनां अभूतां हौंबटे कुले ॥ ३७॥ सद्धर्मकर्मसंयुक्तः सर्वदेवस्ततोऽपरः । सर्वदेवो दयाधाम दाक्ष्यदाक्षिण्यवानतः ॥ ३८॥ तृतीयो बाहडो नाम प्रष्ठः श्रेष्ठगुणैः सताम् । दृढधर्मानुरागेण शङ्के यं श्रेणिकात्मजम् ॥ ३९ ॥ अश्वदेवस्य भार्याऽभूत् समग्रगुणशालिनी । सूहवेति प्रविख्याता चन्द्रलेखेव निर्मला ॥ ४० ॥ चत्वारस्तनया चतुर्पु विदिता दिग्मण्डलेश्वेतयोर्जातास्तत्र पवित्रचित्रचरितश्चारित्रिषु प्रीतिमान् । ज्येष्ठः श्रेष्ठतम नयस्य भवनं लक्ष्मीधरो विश्रुतः ख्यातिं बिभ्रददभ्रशुभ्रयशसा श्वेतीकृतस्वान्वयः ॥ ४१॥ मूलदेव-धवलाख्यौ यशश्चन्द्रस्ततस्त्रयः । त्रिकालं पूजयामासुर्ये त्रिकालविदो जिनान् ॥ ४२ ॥ राजीमतीति विख्याता तनया गुणराजिनी । सैव शीलमती जाता पाणिग्रहणादनन्तरम् ॥ ४३ ॥ यादृशं पुस्तके दृष्टं तादृशं लिखितं मया । यदि शुद्धमशुद्धं वा मम दोषो न दीयताम् ।। ४४ ॥ भग्नपृष्टिकटिग्रीवा तथा दृष्टिरधोमुखी । कष्टेन लिखितं शास्त्रं यत्नेन परिपालयेत् ॥ ४५ ॥ शिवमस्तु सर्वजगतः परहितनिरता भवन्तु भूतगणाः । दोषाः प्रयान्तु नाशं सर्वत्र सुखी भवतु लोकः ॥ ४६ ॥ ॥छ । छ । मंगलं महाश्रीः ।। छ । छ । छ । ऊपरकी प्रशस्तिके ३७ वें श्लोकमें उल्लिखित 'कटुकासन' तथा प्रतिके लेखककी पुष्पिकामें आनेवाला 'पालउद्रग्राम' आज भी क्रमशः कटोसन और पालोदरके नामसे प्रसिद्ध हैं। महेसाना (उत्तर गुजरात ) से वीरमगाँव जानेवाले रेलमार्ग पर चौथा स्टेशन कटोसन आता है, जबकि महेसानासे पाटनकी ओर जानेवाले रेलमार्ग पर पहला स्टेशन पाँचोट आता है और उससे एक मीलकी दूरी पर पालोदर गाँव आया हुआ है। ये गाँव जिस प्रदेशमें आये हैं वह प्रदेश आज दण्डाव्य अथवा दण्ढाव्य कहा जाता है। इसका संकेत लेखककी पुष्पिकामें आनेवाला दण्डाज्यपथक से होता है। प्राचीन स्थलनामोंकी शोधका कार्य जो संस्थाएँ और विद्वान् कर रहे हैं उनके लिए ऐसी प्रशस्तियाँ एवं पुष्पिकाएँ महत्त्वकी सामग्री प्रस्तुत कर सकती हैं। Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना ३७ प्रतिके आकार-प्रकारका ख्याल आ सके इस दृष्टि से इसके पृ. ३२१-२२-२३ की एक प्रतिकृति भी इस ग्रन्यमें दी गई है। इन दो प्रतियों के अलावा अन्य मौलिक हस्तप्रत नहीं मिलती। जो मिलती भी हैं वे इन्हीं दो के आधारपर की गई नकलें ही हैं । संशोधन उपर्युक्त दो प्रतियों में से 'सू' संज्ञक प्रतिका पाठ मूलमें रखा है और जहाँ जहाँ 'सू' का पाठ अशुद्धि आदिको दृष्टिसे उपादेय प्रतीत नहीं हुआ वहाँ 'जे'का पाठ मूलमें रखकर 'ख' का पाठ नीचे टिप्पणीमें दे दिया है । इसके अतिरिक्त जहाँ जहाँ 'सू' का पाठ अभ्यासीके लिए भ्रान्तिजनक प्रतीत हुआ वहाँ भी 'जे' का सामान्यरूपसे प्रचलित शब्दवाला पाठभेद मूलमें रखकर 'सू' के पाठका नीचे टिप्पणी में निर्देश किया है । उदाहरणार्थ 'सू' में आनेवाले जयो ( यतः ), सोख, मोखके बदले 'जे' के जओ, सोक्ख, मोक्ख शब्द मूलमें रखे हैं । ऐसे पाठ केवल पाँच-छः स्थानों पर ही आये हैं । जहाँ-जहाँ शब्द अथवा अक्षर योग्य नहीं लगे वहाँ उस शब्द अथवा अक्षरको मूलमें ही रखकर ( ) ऐसे कोष्ठक में शुद्ध प्रतीत होनेवाला पाठ रखा है । दोनोंमेंसे एक भी प्रतिमें जहाँ पाठ न मिलता हो अथवा वह खण्डित प्रतीत होता हो वहाँ [ ] ऐसे कोष्ठक में योग्य पाठकी कल्पना करके वह रखा है । ऐसा होने पर भी दोनों प्रतियोंमें निर्दिष्ट पाठके स्थान में शुद्ध पाठ दूसरा ही ज्ञात हुआ हो वहाँ ज्ञात शुद्ध पाठ मूलमें रखकर दोनों प्रतियोंके समान पाठका अथवा अलग-अलग पाठका उल्लेख नीचे टिप्पणी में किया गया है। मतलब कि जिस टिप्पणीमें 'सू' और 'जे' दोनोंका पाठभेद साथ ही दिया गया है वह टिप्पणी जिस पाठ पर होगी वह पाठ स्वयं इस ग्रन्थके सम्पादक द्वारा सुधारा गया है ऐसा समझना चाहिए। जहाँ केवल एक ही प्रतिका पाठ मिला हो और वह भी पत्रके ऊपर-नीचेका भाग नष्ट होनेसे स्खण्डित हो गया हो वहाँ, यदि अक्षरोकी संख्या अवगत हो सकी हो तो, इस तरह स्थान रिक्त रखा है, और अक्षरसंख्या अवगत न हो सकी हो ऐसे नष्ट पाठोंके स्थान पर.... इस प्रकार रिक्त स्थान रखा है। इन दोनों प्रकार के रिक्तस्थानोंके पाठके लिए जहाँ अनुमान हो सका है वहाँ रिक्त स्थान रखकर उसके पश्चात् ) ऐसे कोष्ठक में संभावित पाठका निर्देश किया है, जब कि शंकित पाठ प्रश्नचिह्नयुक्त कोष्ठक में रखा है। 'कणयरह' (पृ. २५४ ) के बदले 'कणयाह' (पृ. २५५ ) शब्द भी प्रतियों में बराबर मिलता है, अतः उन-उन स्थानोंमें वे शब्द ज्योंके त्यों रखे हैं । यद्यपि लिपिदोष के कारण खड़ी पाई '' के स्थानमें 'र' की कल्पना की जा सकती है ( 'कणयाह' के बदले 'कायरह' किया जा सकता है), फिर भी दोनोमेंसे किसी भी एक प्रति में 'र' के बदले '' ऐसी खड़ी पाई नहीं मिलती तथा 'पउमचरिय' जैसे अतिप्राचीन ग्रन्थमें अनेक स्थानों पर एक ही व्यक्तिके एकाधिक नाम मिलते हैं; अतएव ग्रन्थकारको यहाँ भी दोनों नाम स्वीकार्य होंगे ऐसा मानकर दोनों ही नाम जैसेके तैसे रखे हैं । इसी प्रकार 'जहाई वृग वैसाह' जैसे हिज्जोंके रूप दोनों ही प्रतियों में एकाध स्थान पर समान मिलते हैं। सम्भवतः ग्रन्थकारने स्वयं ही ऐसा रूप लिखा हो यह समझकर हमने सुधारकर 'जहारुह बिग व साह' रूप सूचित नहीं किया है। 'सू' संज्ञक प्रतिको मुख्य रखकर उसकी अक्षरशः वाचना मूलमें रखनेसे उसमें आनेवाले अनुस्वारोंके परसवर्ण. अनुनासिक ज्योंके त्यों रखे हैं । इसमें जहाँ-जहाँ अनुस्वारका परसवर्ण अनुनासिक है वहाँ 'जे' संज्ञक प्रतिमें वैसा नहीं है; वहाँ तो सर्वत्र अनुस्वार ही मिलता है। 'सू' संज्ञक प्रतिमें पदान्त अनुस्वारका भी पश्चाद्वर्ती शब्दके आद्य अक्षरके वर्गका अनुनासिक रूप अनेक स्थानों पर मिलता है; जैसे कि, मेत्तं पि = मेत्तम्पि (पृ. ६९ टि. १०), तेहिं वि = तेहिम्वि (पृ. ६४, टि. ५ ), चित्तं व= चित्तम्व (पृ. ५८, टि. ७), तेहिं ति = तेहिन्ति (पृ. ५३, टि. १०), पत्तयालं वि = पत्तयालन्ति (पृ. ६, टि. १५), सएणं पि = सएणम्पि (पृ. ५२, टि. १७ ) इत्यादि । ऐसे पाठ 'सू' प्रतिके होने पर भी पाठकके मनमें भ्रम पैदा न करे For Private Personal Use Only Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८ च उत्पन्नमहापुरिसचरिय इसलिए सिर्फ उनकी जानकारीके लिए ही मूलमें न रखकर पादटिप्पणी में दिये हैं, और वह भी 'सगरचक्रवर्तिचरित' तक, बाद में वैसा प्रयत्न छोड़ दिया है । ह-भ, क-ग-य, ण-न और तन्द-य-अ- ऐसे बार बार आनेवाले वर्णोंके परिवर्तनोंक पाठभेदोंको उदाहरण के रूपमें ही प्रारम्भमें दे करके बादमें वैसे पाठान्तरोंका निर्देश हमने नहीं किया है । अभ्यासी वाचककी अनुकूलता के लिए 'आऊरिय' के बदले 'आपूरिय' जैसे सभी पाठोंका हमने यथास्थान निर्देश कर दिया है। इसके अलावा जहाँ जहाँ 'ण्ण' के बदले 'ह' मिला है वहाँ भी सभी पाठ लिये हैं; जैसे कि, 'दोणि' के बदले 'दोन्हि', 'गेलपण' के बदले 'गेलण्ह' इत्यादि । 'जे' संज्ञक प्रतिके सर्वथा निरर्थक और मिथ्या पाठान्तरोंका निर्देश करनेसे ग्रन्थका परिमाण पाँच-छः फॉर्म बढ़ जाता । वे पाठ केवल लेखककी भ्रान्ति अथवा उसके सम्मुख जो प्रति रही होगी उसकी अशुद्धिके कारण ही प्रतिमें आये होंगे; अतः उनका निर्देश नहीं किया है । इस बारेमें हमने यथोचित विवेक और सावधानी रखी है; अतः जहाँ-जहाँ मिथ्या पाठोंमें भी यत्किंचित् सन्देह प्रतीत हुआ है वहाँ मिथ्या पाठान्तरोंका भी निरपवाद रूपसे उल्लेख किया है । परिशिष्ट परिचय इस ग्रन्थके अन्तमें आठ परिशिष्ट दिये गये हैं, जिनका संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है प्रथम परिशिष्ट (पृ. ३३७ से ३४७ ) इसमें प्रस्तुत ग्रन्थमें आये हुए विशेष नामोंका, प्रत्येककी पहचान और स्थानसूचकं पृष्ठांकके साथ, अकारादि वर्णक्रमसे निर्देश किया गया है । द्वितीय परिशिष्ट (पृ. ३४८ से ३५६ ) इसमें प्रथम परिशिष्टमें निर्दिष्ट नामोंको कुल पचहत्तर विभागों में बाँटकर वे विभाग अकारादि क्रमसे रखे गये हैं । इसके अनन्तर प्रत्येक विभागमें आनेवाले विशेषनाम उस उस विभागके नीचे दिये गये हैं । तृतीय परिशिष्ट (पृ. ३५७ से ३६० ) इसमें प्रस्तुत ग्रन्थमें आये हुए प्रसिद्ध एवं अप्रसिद्ध सभी देशीय शब्दोंका संग्रह, स्थानसूचक पृष्ठांकों के साथ, दिया गया है । इससे किंस शब्दका किस स्थान में किस रूपसे उपयोग हुआ है यह जाना जा सकता है । इसके अतिरिक्त 'पाइयसदमहण्णवो' (प्राकृत शब्दकोष ) में जिनका उल्लेख नहीं है वैसे प्राकृत शब्द भी इस ग्रन्थमेंसे चुनकर इस परिशिष्ट में सम्मिलित किये गये हैं। देशीय शब्दकी पहचान के लिए उस उस शब्द के आगे कोष्ठकमें (दे०) ऐसा लिखा है; जिन शब्दक आगे कोष्ठक में ' (०) ' का निर्देश नहीं है वे सब प्राकृत शब्द हैं। आज भी लोकभाषामें प्रयुक्त होनेवाले कतिपय शब्दोंके प्राचीन रूप इस परिशिष्ट मेंसे उपलब्ध हो सकेंगे; जैसे कि -अप्फरिय= आफरा (पेटमें होनेवाली बादी) चढ़ा हुआ, अड्डालिय = गु० अडवाळायेलं ( मिश्रित ), खडफडा = खटपट, चमेडा = चपेटा, गु० चमाट, आसपास = आसपास, इत्यादि । चतुर्थ परिशिष्ट (पृ. ३६१ ) प्रस्तुत ग्रन्थमें आये हुए अपभ्रंश पद्योंका संग्रह इस परिशिष्टमें है । एक स्थान पर गद्यात्मक अपभ्रंशमें अटवीवर्णन आता है; उसका भी अवतरण इस परिशिष्ट में किया गया है । पंचम परिशिष्ट (पृ. ३६२ ) इसमें ऋतुवर्णन तथा युद्ध, नगरप्रवेश, रूपमुग्ध-नारीसमूहव्यापार, चन्द्रोदय, सूर्योदय, नग, नगर आदिके वर्णनोंका निर्देश स्थानदर्शक पृष्ठांकके साथ किया गया है । Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना षष्ठ परिशिष्ट (पृ. ३६२) प्रस्तुत ग्रन्थमें श्रुतदेवता ( सरस्वती ) तथा तीर्थंकरोंकी स्तुति-वन्दना जहाँ जहाँ आती है उसका निर्देश इस परिशिष्टमें किया गया है। सप्तम परिशिष्ट (पृ. ३६३ से ३७८) इस ग्रन्थमें आई हुई ६६८'सुभाषित गाथाएँ, उनके विषय एवं स्थाननिर्देशके साथ, अकारादि क्रमसे इस परिशिष्टमें दी गई हैं। अष्टम परिशिष्ट (पृ. ३७९-८०) प्रस्तुत ग्रन्थमें जहाँ-जहाँ मुहावरे एवं लोकोक्तियोंका निर्देश हुआ है उनका उल्लेख स्थान-निर्देशके साथ अकारादि क्रमसे इसमें किया गया है। इन कहावतों और मुहावरोंमेंसे कतिपय आज भी हिन्दी-गुजरात में प्रचलित हैं। उदाहरणार्थ'किंतु विणासकाले विवरीयमई जणो होइ' = विनाशकाले विपरीतबुद्धिः; 'करगहियकंकणे दप्पणेण किं कजं?' = हाथकंगनको आरसी क्या ?, 'किं एकम्मि कयाइ वि कोसे संठाइ खग्गजुयं = एक म्यानमें दो तलवार नहीं रहती; 'मारेइ य मरन्तं' = मरनेवाला मारता है, 'जायइ जं जस्स तं तस्स' = जो जिसका सो उसका, इत्यादि । इन कहावतों एवं मुहावरोंका उद्भव एवं प्रचार मूल ग्रन्थकारसे भी पुराना होना चाहिए । शुद्धिपत्रक यंत्रके ऊपर छपते समय कभी-कभी टाइपके गिर जानेसे अथवा वैसे ही कारणवश किसी-किसी प्रतिमें कुछ अक्षर उड़ गये हैं । वैसे अक्षरोंमें र, क, ,,, ऊ और स मुख्य हैं । ऐसी क्षति प्रायः टिप्पणियोंमें विशेष हुई है । इन अशुद्धियोंको छोड़कर शेष अशुद्धियोका शुद्धिपत्रक अन्तमें (पृ. ३८१ से ३८४ तक ) दिया गया है । शुद्धिपत्रकके छप जानेके बाद भी जो अशुद्धियाँ देखनेमें आई हैं उनका निर्देश नीचे किया जाता हैपत्रांक अशुद्ध शुद्ध २४८ कहि कहि २१४ २१५ २६४ २५४ २५७ २७७ (७० (७१ २७८ (८० (८१ २८१ २९३ २९४ बुण्ण समायरिय समायरियं ३७७ शीर्षके "पकत्रम् पत्रकम् प्रस्तुतग्रंथगत वसुमतीसंविहाणय (पृ. २८९-९२) प्रकरण केवल सूप्रतिमें ही उपलब्ध है, और वह प्रति कोनोंमे त्रुटित होनेके कारण तत्तत्स्थानोंमें........ऐसा अथवा---- ऐसा रिक्त स्थान छोडा है । सद्भाग्यसे श्रीदेवचन्द्राचार्यकृतमूलशुद्धिप्रकरणटीका( रचना सं. ११४४ )गत चन्दनाकथानकके आधारपर उन रिक्त स्थानोंकी पूर्ति निम्नप्रकार होती है पंक्ति २६२ or mr m m occcw ३६० वुण्ण ३८१ Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४० पत्र २८९ २९० २५० 77 २९१ २६२ २९२ २७०-७१ 33 19 19 २९१ २९२ 19 गाथा २३८ २४४ 27 पंक्ति - ११ ८ १० 13 २७३ २७७ २७९ उपन्न महापुरिसरिय (पद्यविभाग ) णाणुरगइ बवएसविहिविदिण्णणपाणेहिं || aaहर अण्णह चिय सुरवरस हत्थ पम्मुक्कविविह्मणिकिरणरंजियदियंता । कत्तो लायण्णुदलणपचलो सोच्चि कालो जायइ तवस्स इह पंडिया पसंसति । सामत्थं जत्थ समत्थवीरिए होइ जंतूणं ॥ २७० ॥ अहिंदियत्थसामत्थयाजुओ वीरियसझो जायइ तवो त्ति तणुमित्तसाह्‌णो णेय । हिययविचितियसरह सपव्वज्जा' एयं पि इमाए चेव होइ ( गद्यविभाग ) सह समागएण अंतेउरम हल्लएण रयणवुट्ठी पुण्णाणुबंधसंसिणी उच्छा मा एवं भणसु इनके अतिरिक्त दृष्टिदोषादिकारणवश अशुद्धि रह गई हो तो उसके लिए में क्षमाप्रार्थी हूँ। आशा है, पाठक उसे सुधारकर पढेंगे । ग्रन्थ और ग्रन्थकार जैनागम समवायांगके सूत्र ५४ में चौवन उत्तम पुरुषोंका जो उल्लेख है वह इस प्रकार है— "भरहेरवसु णं वासेसु एगमेगाए उस्सप्पिणीए ओसप्पिणीए चउवन्नं चउवन्नं उत्तमपुरिसा उप्पजिंसु वा उप्पजंति वा उप्पज्जिस्संति वा । तं जहा - चउवीसं तित्थयरा, बारस चक्कवट्टी, नव बलदेवा, नव वासुदेवा । " अर्थात् भरत और ऐरवत क्षेत्रमें प्रत्येक उत्सर्पिणी और अवसर्पिणीमें ५४-५४ उत्तम पुरुष उत्पन्न हुए हैं, होते हैं और होंगे । वे हैं - २४ तीर्थकर, १२ चक्रवर्ती, ९ बलदेव, और ९ वासुदेव । 1 प्रस्तुतग्रन्थमें वर्तमान अवसर्पिणीके उन ५४ उत्तमपुरुषोंका - महापुरुषोंका चरित वर्णित है । वर्तमान अवसर्पिणीमें शांतिनाथ, कुंथुनाथ और अरनाथ ये तीन व्यक्ति चक्रवर्ती भी है और तीर्थकर भी । अत एव प्रस्तुत ग्रन्थमें वस्तुतः ५१ महापुरुषों का चरित वर्णित है । विषयसूचि देखनेसे ज्ञात होगा कि इन ५१ महापुरुषोंका चरित भी ४० चरितों में समाविष्ट है । इसका कारण यह है कि एक महापुरुषके चरितवर्णन के प्रसंग में पिता-पुत्र या बड़े-छोटे भाईके संबंधसे अन्य महापुरुषका चरित भी आ जाता है । अत एव प्रस्तुत ग्रन्थके मुख्य प्रकरण ५४ नहीं; किन्तु ४० ही है । For Private Personal Use Only Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना ४१ जैनागममें ऐसे महापुरुषोंके लिए 'उत्तमपुरुष' संज्ञा है, किन्तु बादमें 'शलाकापुरुष' संज्ञा विशेष रूढ हुई है। इन शलाकापुरुषोंकी संख्या श्रीमज्जिनसेनाचार्य तथा श्रीमद् हेमचन्द्राचार्यने ६३ दी है । ९ वासुदेवोंके शत्रु प्रतिवासुदेवोंकी ९ संख्या ५४ में जोड़नेसे वह ६३ की संख्या बनती है। श्रीभदेश्वरसूरिने अपनी कहावली( अमुद्रित )में ९ नारदोंकी संख्या जोडकर शलाकापुरुषोंकी संख्या ७२ दी है। श्रीहेमचंद्राचार्य 'शलाकापुरुष'का अर्थ 'जातरेखाः' ऐसा करते हैं, और भद्रेश्वरसूरि 'सम्यक्त्वरूप शलाकासे युक्त' ऐसा अर्थ करते हैं। डॉ. उमाकान्तके मैतके अनुसार भवविरहसूरि (हरिभद्रसूरि ) के कथानकके साथ ही कहावलीका अन्त होता है अत एव कहावलीकार भदेश्वरसूरिका समय हरिभद्राचार्यके निकटवर्ती है । इस मतको माना जाय तब कहावलीको प्रस्तुत चउप्पन्न म० च० से पहलेकी रचना माननी पडेगी, किन्तु डॉ. उमाकान्तके कथनमें जो भ्रान्ति है उसका निवारण आवश्यक है। कहावलीका अन्त हरिभद्राचार्यके कथानकके साथ नहीं होता किन्तु वहाँ कहावलीका प्रथमपरिच्छेद समाप्त होता है भणियाओ य कहाओ रिसहाइजिणाण वीरचरिमाणं । तत्तित्थकहाहिं समं भवविरहो जाव सूरि त्ति । इय पढमपरिच्छेओ तेवीससहस्सिओ सअट्ठसओ । विरमइ कहाबलीए भदेसरसूरिरइउ त्ति॑ि ।। इन गाथाओंसे स्पष्ट होता है कि भदेश्वरसूरिने जब प्रथमपरिच्छेदको ही २३८०० श्लोकप्रमाण बनाया तब उसका शेष परिच्छेद जो अब उपलब्ध नहीं है उसमें हरिभद्राचार्यके बादके कई आचार्योका जीवन भद्रेश्वरसूरिने लिखा होगा या लिखनेका सोचा होगा। इससे यह सिद्ध होता है कि भद्रेश्वरसूरि हरिभद्राचार्यके निकटवर्ती नहीं। तीर्थंकरोंके चरित में यक्ष-यक्षिणिओंका निर्देश कहावली में है जब कि चउप्पन्न० में नहीं है इससे भी कहावली चउप्पन्न० के बाद की रचना सिद्ध होती है। कहावलीकारने चउप्पन्न ० से कथाओंका संदर्भ तथा विबुधानंदनाटक अपना कर यह सिद्ध कर दिया है कि उनके समक्ष चउप्पन्न म० च० मौजुद था । कहाबलीकार पउमचरिय, वसुदेवहिंडी, आवश्यकचूर्णि, तरंगवईकहा-संक्षेप आदि ग्रन्थोंसे शब्दशः उद्भरण लेते हैं जब कि शीलांकाचार्य वैसा नहीं करते । अतएव यह नहीं माना जा सकता कि कहावलीसे शीलांकाचार्यने उद्धरण लिया। इस दृष्टिसे भी कहावलीको चउप्पन्न की परवर्ती रचना मानना चाहिए। अधिक संभव यह है कि कहावलीकी रचना विक्रम सं. १०५० से ११५० के बीच कहीं हुई है। अतएव महापुरुषोंके चरितके वर्णन करनेवाले उपलब्ध ग्रन्थोंमें चउप्पन्न० का स्थान सर्वप्रथम है। यद्यपि श्रीजिनसेनाचार्यका महापुराण शलाकापुरुषोंका चरितवर्णन करनेवाला ग्रन्थ इससे पूर्ववर्ती है किन्तु लेखक उसे पूरा कर नहीं सके और उनके शिष्य गुणभद्राचार्यने उसे पूरा किया है जो संभवतः शीलांकाचार्यके समकालीन होंगे। अत एव एककर्तृकशलाकापुरुष या महापुरुषोंका संपूर्ण ग्रंथ प्रस्तुत शीलांकीय चउप्पन्नमहापुरिसचरिय सर्वप्रथम है ऐसा कहा जा सकता है। १ कहावलीका पाठ इस प्रकार है- चउव'स जिणा, बारस चक्की, णव पडिहरी, णव सरामा । हरिणो, चकि-हरीसु य केसु य णव नारया होंति ॥ उड्ढगई चिय जिण-राम-णारया जंतऽहोगई चेय । सणियाणा चिय पडिहरि-हरिणो दुहओ वि चक्कि त्ति ॥ न य सम्मत्तसलायारहिया नियमेणिमे जो तेण । होति सलाया पुरिसा बहत्तरी...... ॥ २ "त्रिषष्टिः शलाकाभूताः शलाकापुरुषाः, पुरुषेषु जातरेखा इत्यर्थः ।" (यशोविजयग्रन्थमालाप्रकाशित सटीक अभिधानचिन्तामणि पत्र-२८१) ३ देखी 'जैनसत्यप्रकाश'. वर्ष १७, अंक ४. पृ. ९१ वा। ४ देखो पत्तनस्थजैनभाण्डागारीयग्रन्थसूची (ओरीएन्टल इन्स्टीटयूट-बडौदा प्रकाशित ) पत्र-२४४ वा । Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२ उत्पन्न महापुरिसचरिय आम्रकृत चउप्पन्नमहापुरिसचरिय आम्र कविने भी इसी नामक एक ग्रन्थकी रचना की है जो अप्रकाशित है । नाम एवं विषय दोनोंकी दृष्टिसे समान इस रचना का सामान्य परिचय प्राप्त करना यहाँ उपयुक्त होगा इस दृष्टिसे उसका यहाँ संक्षिप्त परिचय दिया जाता है । - मुख्यतः आर्याछन्द में रचित और १०३ अधिकारोंमें विभक्त इस प्राकृतभाषानिबद्ध ग्रन्थकी अनुमानतः १६वीं शती में लिखित एक हस्तलिखित प्रति सूरिसम्राट् श्री विजय नेमिसूरीश्वर - शास्त्र संग्रह, खम्भातमें है । १००५० श्लोक - परिमाणके इस ग्रन्थमें ८७३५ गाथाएँ और १०० इतर वृत्त हैं । चौवन महापुरुषोंके चरित्रकी समाप्तिके उपरान्त नौ प्रतिवासुदेवोंको जोड़ने से त्रेसठ शलाकापुरुष होते हैं, ऐसा उपसंहारमें कहा है । इसमें भी तीर्थंकरोंके यक्ष-यक्षिणिओंका उल्लेख है, जो प्राचीनतम ग्रन्थोंमें नहीं हैं। अतएव संभावना की जा सकती है की यह ग्रन्थ शीलांकीय चउप्पन्नम० च० के बाद रचा गया होगा । विक्रम सं. १९९० में रचित आम्रदेवसूरिकृत आख्यानकमणिकोशकी वृत्तिमें अम्म और आम्रदेवसूरि अभिन्न होनेका कोई आधार मिलता नहीं है । ग्रन्थके प्रारंभ और अन्तमें ग्रन्थकारने अपने लिए अम्म शब्दके अतिरिक्त कोई विशेष परिचायक सामग्री नहीं दी है । भाषा और श्लोक-परिमाण शीलiate प्रस्तुत ग्रन्थ प्राकृत भाषामें लिखा गया है यह बात स्वयं ग्रन्थकारने पृ. ३३५ की दूसरी गाथामें स्पष्ट की है। मुद्रित पृ. १७ से २७ में आया हुआ 'विबुधानन्द नाटक' संस्कृतमें है और कहीं कहीं अपभ्रंश सुभाषित भी आते हैं । इनके अतिरिक्त सम्पूर्ण ग्रन्थ प्राकृतमें है । इसमें 'देशी' शब्दोका प्रयोग भी ठीक-ठीक मात्रामें हुआ है । ग्रन्थके अन्तमें इन अपभ्रंश पाठों और देशी शब्दोंकी सूचि अनुक्रमसे तृतीय एवं चतुर्थं परिशिष्टमें, अभ्यासियोंकी जानकारीके लिए दी गई है। अनुष्टुप् श्लोककी गिनतीके अनुसार प्रस्तुत ग्रन्थका श्लोक-परिमाण १०,८०० है । बृहट्टिप्पनिकामें यह परिमाण दस हजार लोकका बतलाया हैं, जबकि 'जे' संज्ञक प्रतिमें १४,००० लिखा है, तो 'सू' संज्ञक प्रतिमें परिमाणका कोई सूचन ही नहीं है; परन्तु इसी 'सू' संज्ञक प्रतिके आधार पर वि. सं. १६७३ में लिखी गई कागज़की पोथीमें यही संख्या प्रतिके मूल लेखकने १०,८०० दी है। प्रतिके कदसे भी यही प्रतीत होता है कि ग्रन्थकी परिमिति इस संख्यासे अधिक नहीं हो सकती । उपर्युक्त कागज्ञकी पोथी में किसीने बादमें अनुचित रूपसे छेड़छाड़ करके वह संख्या बढ़ाकर अक्षरोंमें तथा अंकों में ११,८०० कर दी है । मूल लेखकने 'अष्टशत्यधिकानुष्टुप्सहस्राणि दशैव च ॥ १०८०० ॥' लिखा था, किन्तु उसे सुधारकर ‘अष्टशत्यधिकानुष्टुप्सहस्राण्येकादशैव च ॥ ११,८०० ॥' किया गया है। इस सुधारमें जो छन्दोभंग है वह बिलकुल स्पष्ट । संभव है किसी व्यवसायी लेखकने उस कागज़की प्रति के आधारसे नकल करते समय लोभवृत्तिसे प्रेरित हो कर ऐसा किया होगा । विषय ग्रन्थका विषय मुख्य रूपसे धर्मकथाका है । ऐसी धर्मकथाओं में शुभ एवं अशुभ कर्मोंके बन्धसे होनेवाले सुख-दुःखके परिपाकरूप देवत्व, महर्धित्व, नीरोगिता, सुरूपता, नरकगति, तिर्यंचगति, दारिद्र्य, रुग्णता, कुरूपता आदि प्राप्त होते हैं - ऐसा सूचित करके अशुभ प्रवृत्तिके परित्याग और शुभ प्रवृत्तिके आचरण आदिका उपदेश दिया जाता है । अपने सम्प्रदायके प्रधान पुरुषोंके जीवनवृत्तकी संकलना भी ग्रन्थका मुख्य विषय है । 1 उद्देश्य वाचक एवं श्रोतागण कल्याणमार्गमें प्रवृत्त हो-यही इस ग्रन्थ-रचनाका मुख्य उद्देश्य है और स्वयं लेखकने भी यही Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना ४३ बात प्रस्तुत ग्रन्थके पृ. ४ पर स्पष्ट की है। परन्तु साथ ही जनताका नैतिक स्तर समुन्नत रखनेकी भी एक आनुषंगिक दृष्टि धर्मकथाकारकी होती है। इसी दृष्टिकोणसे चोरी, माया, क्रोध, जातीय अहंकार तथा हिंसा आदि करनेसे कैसा कटु फल भुगतना पड़ता है इसके निदर्शन देवकी, मल्लिस्वामी, चण्डकौशिक, कटुमुनि एवं कर्षणमुनि तथा श्रमण भगवान् महावीरस्वामीके कथा-प्रसंगोंमें होता है । स्वयं तीर्थंकर होनेवाले जीवोंको भी हिंसा आदिसे उपार्जित दुष्कर्मके कटुविपाक रूप नरकगति आदिकी विडम्बनाएँ सहनी पड़ती हैं और अपने अशुभ कर्मोका फल भोगना ही पड़ता है; बाह्यक्रियाकाण्डोंकी सहायतासे ऐसे दुष्कृत निष्फल नहीं होते यही समझानेका प्रयत्न लेखकने इसमें किया है। कर्मकी दुर्निवारताका निवारण आसक्तिके परित्यागमें है और पुरुषके लिए आसक्तिका प्रमुख केन्द्र नारी है । अतएव उसका आकर्षण कम करनेकी दृष्टिसे इसमें नारी-निन्दा विषयक सुभाषित, नायिकाकी अन्य पुरुषमें आसक्तिके सूचक वरुणवर्मकथानक (पृ. ५७ से ६७) तथा मुनिचन्द्रकथानक (पृ. ११७ से १२७) दिये गये हैं। प्रस्तुत ग्रन्थमें सिर्फ पाँच अवान्तर-कथाएँ आती हैं । इन कथाओंमेंसे उपर्युक्त दो कथाओं का मुख्य प्रतिपाद्य विषय स्त्रीका विश्वासघात है। अवशिष्ट तीन कथाओंमेंसे एक विजयाचार्य-कथानक (पृ. १०६ से ११४ )में एक स्थान पर रानीको दुःशीला बताया है। जहाँ अवसर मिला है, लेखकने दुःशीला नायिकाके कथाप्रसंगको प्राधान्य दिया है; इससे उसके रुझानका हमें पता चलता है । सम एवं शमप्रधान धर्माचार्य किसीके प्रति दुर्भाव नहीं रख सकते, फिर चाहे वह स्त्री हो या अन्य कोई व्यक्ति । उनका तो मूल उद्देश्य आसक्ति के त्यागका है और नरके लिए सबसे बड़ी आसक्ति नारी है । नारीके स्थानमें आसक्तिका कारण अन्य कोई वस्तु होती तो लेखक नारीको छोड़कर उसका प्रतिवाद करता । अतः लेखकका उद्देश्य नारीकी अवहेला नहीं, किन्तु अनासक्तभावका उद्बोधन ही है ऐसा समझना उचित होगा। ___ संक्षेपमें हम कह सकते हैं कि त्याग एवं नीतिके कल्याणमार्ग में वाचक, श्रोता एवं मानवसमाज प्रवृत्ति करे इसी उद्देश्यसे इस ग्रन्थकी रचना हुई है। साथ ही, अन्यान्य ग्रन्थों में आई हुई तथा मुखपरम्परासे चली आती जैन-परम्पराके प्रधानपुरुषोंकी कथाओं को एक ही ग्रन्थमें संकलित करनेका भी लेखकका उद्देश्य अवगत होता है। पूर्वस्रोत जैन परम्परामें ऐसी मान्यता प्रचलित है कि श्रमण भगवान् महावीरके पांचवें शिष्य सुधर्मस्वामीने आर्य जम्बूस्वामीको समग्र कथानुयोग कहा था । यही कथानुयोग प्रथमानुयोग कहलाता है । यह प्रथमानुयोग कालकाचार्यके समय तक आते आते शाब्दिक रूपसे विस्मृत हो गया था, परन्तु अर्थकी दृष्टिसे उसका प्रवाह आचार्य-परम्पराद्वारा बहता रहा। कालकाचार्यने उस अर्थ-प्रवाहके आधार पर 'प्रथमानुयोग' नामक ग्रन्थकी पुनः रचना की। इसके पश्चात् पूर्वका विस्मृत प्रथमानुयोग 'मूल-प्रथमानुयोग' कहा जाने लगा । आज तो आर्य कालकरचित प्रथमानुयोग भी उपलब्ध नहीं है, यद्यपि इसका अस्तित्व रचनाके उपरान्त भी अनेक शताब्दियों तक रेहा । प्रस्तुत ग्रन्थके रचयिताने इसकी कथावस्तुके पूर्वस्रोतके रूपमें आचार्यपरम्परा द्वारा प्राप्त प्रथमानुयोगका निर्देश (पृ. ४ ) किया है। इससे ऐसा निश्चयपूर्वक नहीं कहा जा सकता कि उनके समक्ष आर्य कालकरचित प्रथमानुयोग होगा ही । इसीके साथ ऐसा माननेका भी कोई कारण नहीं है कि आर्य कालकके प्रथमानुयोगकी परम्परा एवं गण्डिकानुयोगगत गण्डिकाओं तथा इतर प्राचीन प्रवाहोंके प्रभावसे यह ग्रन्थ सर्वथा अछूता ही रहा होगा। सामान्य रूपसे इतर ग्रन्थोंमें उपलब्ध कथागत वस्तुकी अपेक्षा यहाँ कहीं-कहीं भिन्नता प्रतीत होती है । इससे यह १ देखो ‘आचार्य श्री वल्लभसूरि स्मारक ग्रन्थ 'में विद्वद्वर्य मुनि श्री पुण्यविजयजीका लेख "प्रथमलनुयोग अने तेना प्रणेता आर्यकालक । " Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४ चउप्पन्नमहापुरिसचरिय निश्चित होता है कि आनुपूर्वीसे चली आती कथा-परम्पराकी अपेक्षा शीलांकाचार्यके सम्मुख मौखिक, लिखित अथवा अन्य प्रकारका कोई दूसरा भी स्रोत रहा होगा । इस विषयमें अन्य ग्रन्थोंके साथ विस्तारपूर्वक तुलना न करके पाठकोंकी जानकारीके लिए प्रचलित परम्परासे भिन्न पड़नेवाले कतिपय स्थानोंका ही मैं यहाँ निर्देश करूँगाप्रस्तुत ग्रन्थमें अन्य ग्रन्थोंमें १. ऋषभस्वामीके दीक्षा-प्रसंगमें पांच मुष्टिसे केशलुंचन (पृ. ४०) १. चार मुष्टिसे केशढुंचन । २. श्रेयांसस्वामीकी माताका नाम सिरी-श्री (पृ. ९३) २-श्रेयांसस्वामीकी माताका नाम विण्हू-विष्णू ३. द्विपृष्ठ वासुदेव-विजय बलदेव, पुरुषोत्तम वासुदेव-सुप्रभ बलदेव, पुरुषसिंह ३. सभी वासुदेव एवं बल वासुदेव सुदर्शन बलदेव, पुण्डरीक वासुदेव-आनन्द बलदेव और दत्त वासुदेव- देवोंकी माताएँ पृथक नन्दिमित्र बलदेव-इन पाँचों वासुदेव बलदेवके युगलोंमेंसे प्रत्येक युगलकी एक पृथक् हैं, अर्थात् वासुदेवही माता कही गई है । अवशिष्ट चार युगलोंमेंसे त्रिपृष्ठ वासुदेव-अचल बलदेवकी बलदेवके युगल सहोदर माताके विषयमें स्पष्टता नहीं की गई है, स्वयम्भू वासुदेव-भद्र बलदेवकी माताके नहीं हैं। नामका सूचक पाठ दोनों प्रतियोंमें छूट गया है, जबकि लक्ष्मण वासुदेव-राम बलदेव तथा कृष्ण वासुदेव-बलदेव बलदेव इन दो युगलोंकी माताएँ भिन्न-भिन्न हैं ऐसा निर्देश है। ४. स्वयम्भू वासुदेव-भद्र बलदेव, लक्ष्मण वासुदेव-राम बलदेव तथा पुण्डरीक ४. प्रत्येक वासुदेव-बलदेवके वासुदेव-आनन्द बलदेव-इन तीनों युगलों से प्रत्येक युगलकी आयु समान युगलमें वासुदेवकी अपेक्षा बतलाई है; शेष युगलोंकी आयुका सूचन ही नहीं है। केवल कृष्ण वासुदेव- बलदेवकी आयु अधिक बलदेव बलदेवके युगलमें वासुदेवकी मृत्युके पश्चात् बलदेवका अस्तित्व बतलाया है। बतलाई गई है। ५. मुनिसुव्रतस्वामीकी जन्मभूमि राजगृह नगर है । (पृ. १७२) ५. कुशाग्रपुर है। किसी भी पत्नीका नाम-निर्देश न करके वर्धमान स्वामीका अनेक कन्याओंके साथ ६. वर्धमान स्वामीकी यशोदा पाणिग्रहण बतलाया है । (पृ. २७२) नामकी केवल एक ही पत्नी है। ७. अपने आवास परसे सौधर्मेन्द्र के विमानको जाते देख चमरेन्द्र क्रुद्ध होता है। ७. चमरेन्द्र के आवासके ऊपर (पृ. २९२) सौधर्मेन्द्रका विमान सदा अवस्थित रहता है। ८. चमरेन्द्र वर्धमानस्वामीकी शरणमें गया है ऐसा जानकर वज्रदेव स्वयं संरम्भसे ८. चमरेन्द्र वर्षमानस्वामीकी विरत होता है। (पृ. १९६) शरणमें गया है यह जानकर 'वज्रदेव चमरके साथ भगवान्को भी मारेगा' इस ख्यालसे सौधर्मेन्द्र सिर्फ चार अंगुल जितना अन्तर जब बाकी रहता Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना है तब वज्रदेवको वापस बुला लेता है-उसे पकड़ लेता है। ९. गोशालक सर्वानुभूति नामक मुनिके ऊपर जब तेजोलेश्या छोड़ता है तब सर्वानु- ९. गोशालककी तेजोलेश्यासे भूति मुनि भी गोशालकके सामने अपनी तेजोलेश्या छोड़ते हैं। दोनों तेजो- सर्वानुभूति मुनि तथा लेश्याओंके बीच युद्ध होता है। उस समय वर्धमानस्वामी शीत लेश्या छोड़ते सुनक्षत्रमुनि मर जाते हैं। हैं, जिससे गोशालककी तेजोलेश्या स्वयं उसीको दुःख देने लगती है । फलतः अन्तन्तः वह वर्धमानगोशालक वर्धमानस्वामीकी शरणमें आता है और उसका दुःख दूर होता है । स्वामीके ऊपर तेजोलेश्या (पृ. ३०६-७) छोड़ता है। तब भगवान्के प्रभावसे वह वापस लौटकर गोशालकको ही पीड़ित करती है। इसीके परिणाम स्वरूप गोशा लककी मृत्यु होती है। १०. त्रिपृष्ठ वासुदेवके सारथि द्वारा पूछे गये प्रश्नके उत्तररूप मुनिकथनमें यद्यपि १०. यह बात अन्य ग्रंथोंमें स्पष्ट निर्देश नहीं है, फिर भी 'त्रिपृष्ठके सारथिका जीव ही मरीचिके शिष्य कपिल अस्पष्ट रूपसे भी परिमुनिका जीव होगा' ऐसी ध्वनि उसमें से निकलती है । (पृ. ९७-१००) लक्षित नहीं होती। ११. अस्थिक सर्पके द्वारा मारे गये मनुष्योंकी हड्डियोंसे बने हुए मन्दिरका तथा ११. बैल मरकर शूलपाणि यक्ष उसके द्वारा वर्धमानस्वामीको किये गये उपसर्गका वर्णन है । (पृ. २७५ ) होता है। उसके द्वारा फैलाई गई महामारीके कारण मृत मनुष्योंकी हड्डियोंसे बने हुए मन्दिर आदिके प्रसंगका उल्लेख मिलता है। वैषम्यसूचक उपर्युक्त घटनाओंमें शायद कहीं लेखकका अनवधान कार्य कर गया हो, परन्तु यदि इतर ग्रन्थ आर्यकालकरचित प्रथमानुयोग पर आधारित हो तो ऐसी कल्पनाके लिए अवकाश रहता है कि प्रस्तुत ग्रन्थके मूल स्रोतके रूपमें कोई दूसरी भी परम्परा रही होगी। प्रस्तुत ग्रन्थका मुख्य मूल स्रोत, जैसा हम पहले कह चुके हैं, प्रथमानुयोग है; तथापि ग्रन्थकारके समक्ष दूसरे भी कथा-ग्रन्थ रहे होंगे। इस प्रतिपादनका समर्थन स्वयं ग्रन्थकारने 'लाइओ तस्स चिरंतणकहासंबंधस्स णाडयस्स य वेरग्गजणणो एको अंको' (पृ. १६) तथा अरिष्टनेमिचरित्रके अन्तमें 'अओ उवरिं जे भणियं १ यह कथा 'विबुधानन्द' नाटकमें आती है। इसकी नायिकाका नाम बन्धुमती है । बन्धुमती-आख्यायिकाका उल्लेख तत्त्वार्थभाष्यानसारिणी टीकामें भी मिलता है। वहां वह उल्लेख इस प्रकार है- 'विकल्पिते ह्य स्मृतिदृष्टा बन्धुमत्याख्यायिकादौ' (भाग १, पृ. ३७६) । तत्त्वार्थटीकामें निर्दिष्ट और यहां नाटकमें उल्लिखित कथा एक ही है या भिन्न इसके बारेमें विशेष सामग्रीके अभावमें निश्चितरूपसे नहीं कहा जा सकता । Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउप्पन्नमहापुरिसच रिय तमण्णासुं सवित्थरकहासुमवगन्तव्यं ति' (पृ. २०९) ऐसा लिखकर तथा 'पउमचरिय'का निर्देश करके (पृ. १७६ ) किया है । इसके अलावा गजसुकुमाल (पृ. २०५), जमाली (पृ. ३३१) एवं कालशौकरिक (पृ. ३१७ तथा ३२०) इन तीनका केवल नामनिर्देश ही किया गया है, जिससे फलित होता है कि ग्रन्थकारके पहलेकी रचनाओंमें ये पात्र तथा प्रसंग सुज्ञात होनेसे उनके विषयमें विशेष विस्तार करनेकी आवश्यकता ग्रन्थकारको प्रतीत न हुई हो। इस लाघवके पीछे ग्रन्थकारकी दृष्टि चाहे जो रही हो, इससे एक बात तो स्पष्टरूपसे प्रतिफलित होती है और वह यह कि उनके सम्मुख पूर्व-स्रोतके रूपमें एकाधिक प्राक्कालीन रचनाएँ रही होंगी। रचना और उसका प्रभाव इस ग्रन्थमें महापुरुषके क्रमांक १-२ ऋषभस्वामि-भरतचक्रवर्ति चरित, ३०-३१ शान्तिस्वामिचरित, ४१ मल्लिस्वा मिचरित और ५३ पार्श्वस्वामिचरित-इन चार चरित्रोंका विस्तार प्रायः कथानायकके पूर्वभवोंके वर्णनसे हुआ है । ७ सुमति स्वामिचरित पूर्वभवकी कथा तथा शुभाशुभकर्मविपाकके विस्तृत उपदेशके कारण कुछ विस्तृत हुआ है । ४ सगरचक्रवर्तिचरित, २९ सनत्कुमारचक्रवर्तिचरित, ३८ सुभूमचक्रवर्तिचरित, ४९-५०-५१ अरिष्टनेमि-कृष्णवासुदेव-बलदेव बलदेवचरित, ५२ ब्रह्मदत्तचक्रवर्तिचरित तथा ५४ वर्धमानस्वामिचरित-ये छ: चरित्र कथानायकोंके विविध प्रसंगोंके द्योतक कहे जा सकते हैं। ३अजितस्वामिचरित, १७-१८ द्विपृष्ठवासुदेव-विजयबलदेवचरित, २०-२१ स्वयंभूवासुदेव-भद्रबलदेवचरित, ३४-३५ अरस्वामिचरित-ये चार चरित्र अवान्तर कथाके कारण कुछ विस्तृत बन गये हैं। १४-१५ त्रिपृष्ठवासुदेव-अचलबलदेवचरित भी सिंहमारणके प्रसंगके अतिरिक्त मुख्य रूपसे पूर्वभवके वृत्तान्तके कारण ही कुछ बडा हो गया है । ५ सम्भवस्वामिचरित, ८ पाप्रभस्वामिचरित और १० चन्द्रप्रभस्वामिचरित-इन तीन चरितोमेंसे क्रमश: कर्मबन्ध, देव-नरकगति तथा नरकस्थान विषयक उपदेशको बाद किया जाय तो ये केवल चरितकी एक तालिका जैसे ज्ञात होते हैं। उपर्युक्त १९ चरितोंके अतिरिक्त अवशिष्ट २१ चरित तो कथाकी अतिसंक्षिप्त नोट जैसे मालूम होते हैं । इन २१ चरितोंमेंसे कोई एक या सवा पृष्टमें समाप्त हो जाता है तो कोई आधे-पौने पृष्ठमें या फिर पाँचसात पंक्तियोंमें ही पूर्ण हो जाता है। १ यहां अन्य कथाओंसे अभिप्रेत विमलसूरि द्वारा सर्वप्रथम रचित हरिवंश तथा उनके उत्तरकालीन पुनाट संघीय आचार्य श्री जिनसेनकृत हरिवंश इन दोनोंके अतिरिक्त शीलांकाचायसे पहलेके स्वतंत्र कथाग्रन्थ अथवा अन्यविषयकग्रन्थान्तर्गत कथाएँ हैं । पउमचरियके कर्ता विमलसूरिका हरिवंश आज उपलब्ध नहीं है, परन्तु उसका कुवलयमालाकार उद्द्योतनसूरि (दाक्षिण्यचिह्न ने जो उल्लेख किया है वह इस प्रकार है बुहयणसहस्सदइयं हरिवसुप्पत्तिकारय पढमं । वंदामि बंदियं पि हु हरिवंसं चेव विमलपयं ॥ अर्थात् हजारों बुधजनोंको प्रिय, प्रथम हरिवंशोत्पत्तिकारक= हरिवंशनामकग्रन्थके रचयिता और हरिवंशकी भांति विमल पद-विमलांक अर्थात् विमलसूरिको वंदित ( इतः पूर्व एक गाथा छोड कर) होने पर भी (यहाँ पुनः) वन्दन करता हूँ। इस परसे स्पष्ट ज्ञात होता है कि कुवलयमालाकार उद्योतनसूरि (वि. सं. ८३५)की दृष्टिमें हरिवंश नामक कृतिके प्रथम रचयिता विमलसूरि हैं । इस गाथाके अपने पहले किए हुए अर्थमें संशोधन करके श्रद्धेय श्री नाथूरामजी प्रेमी लिखते हैं कि “मैं हजारो बुधजनोंके प्रिय हरिवंशोत्पत्तिकारक, प्रथम वन्दनीय और विमलपद हरिवंशकी वन्दना करता हूँ। इसमें जो विशेषण दिये है वे हरिवंश और विमलपद (विमलमूरिके चरण अथवा विमल है पद जिसके ऐसा ग्रंथ) दोनों पर घटित होते हैं। विमलसूरिका यह हरिवंश अभीतक अप्राप्य है। इसके मिलनेपर जिनसेनके हरिवंशका मूल क्या है, इसपर बहुत कुछ प्रकाश पड़नेकी संभावना है। आश्चर्य नहीं जो पद्मचरितके समान यह भी विमलसूरिके प्राकृत हरिवंशकी छाया लेकर ही बनाया गया हो” ('जैनसाहित्य और इतिहास' द्वितीय संस्करण पृ. ११३-१४)। कुवलयमालाके संपादक डॉ. ए. एन. उपाध्येजीने इस गाथाके मूलमें “हरिवरिसं चेय" ऐसा पाठ स्वीकृत किया है, और उसके स्थानमें टिप्पणमें “ हरिवंसं चेव" पाटयंतर रूपसे दिया है। मेरा नम्र मत है कि “हरिवंसं चेव" पाठ मूलमें ग्राह्य होना चाहिए। Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना वरुणवर्मकथानक (पृ. ५७ से ६२), विजयाचार्यकथानक (पृ. १०६ से ११४) और मुनिचन्द्रकथानक (पृ. ११७ से १२७) इन तीन अवान्तर कथाओंकी तथा ब्रह्मदत्तचक्रवर्तिचरित (पृ. २०९ से २४४) के अधिकांश भागकी रचना शैली आत्मकथात्मक है। आज तक उपलब्ध चरितग्रन्थोंमेंसे यदि किसी भी ग्रन्थमें नाटकके रूपमें किसी अवान्तर कथाकी रचना दृष्टिगोचर होती हो तो वह केवल प्रस्तुत ग्रन्थमें ही है' । देवचंद्रसूरिरचित चन्द्रप्रभचरितमें आनेवाली वज्रायुधकथाका उत्तर भागै यद्यपि नाटककी शैलीमें उपलब्ध होता है, तथापि उसे प्रस्तुत ग्रन्थका अनुसरण कहा जा सकता है । विद्याधरी मायाके प्रभावसे निमेषमात्रमें सारे महल और परिजनोंका अदृश्य हो जाना (पृ. २३७) तथा वेतालिनी विद्या द्वारा कृत्रिम मृत्युका होना (पृ. १४७)-ऐसे प्रसंग अरेबियन नाइटस जैसे लगते हैं। हमारे प्रायः सभी प्राचीन कथा ग्रन्थोंमें ऐसे वर्णन आते हैं। देवागमके प्रसंग, नगरमेंसे प्रतिदिन एक मनुष्यका भक्षण करनेवाले राक्षसके प्रसंग तथा अन्य दैवीप्रसंगोमेंसे कोइ न कोइ प्रसंग अल्पाधिक मात्रामें सर्वत्र उपलब्ध होते हैं । अतएव ऐसे वर्णनोंका समावेश तत्काली कथा-रूढ़िके अन्तर्गत ही करना चाहिए। चौलुक्य नरेश जयसिंहदेव एवं कुमारपालके समकालीन आचार्य हेमचन्द्रके गुरु श्री देवचन्द्राचार्य द्वारा रचित ( वि. सं. ११४६ ) मूलशुद्धिप्रकरणटीका (अपर नाम स्थानकप्रकरण टीका )के चौथे एवं छठे स्थानको आनेवाले चन्दनाकथानक तथा ब्रह्मदत्त कथानकको देखनेसे ज्ञात होता है कि इनमें आनेवाली अधिकांश गाथाएँ तथा कतिपय छोटे-बड़े गद्य सन्दर्भ शीलांकाचार्यके चउप्पन्नमहापुरिसचरियमें आनेवाले 'वसुमइसंविहाणय' (पृ. २८९-९२) तथा बंभयत्तचक्कवटिचरिय (पृ. २१०-४४ ) के साथ अक्षरशः मिलते हैं । अतः प्रस्तुत ग्रन्थमें से ही वे सन्दर्भ वहाँ अवतारित प्रतीत होते हैं। इन कथाओंके अवशिष्ट भागोंमेंसे भी कितना ही भाग अल्पाधिक शाब्दिक परिवर्तनके साथ चउप्पन्नमहापुरिसचरियका ही ज्ञात होता है । इन स्थानोंकी विस्तारसे तुलना करना यहाँ शक्य नहीं है । आगामी कुछ वर्षोंमें सिंघी जैन ग्रन्थमालामें उक्त मूलशुद्धिप्रकरणटीका प्रकाशित होनेवाली है। उसमेंसे विशेष जिज्ञासु यह तुलना जान सकेगा । वि. सं. ११६० में रचित श्रीवर्धमानाचार्यकृत प्राकृत ऋषभदेवचरित( अप्रकाशित )के प्रारम्भमें आनेवाली एक गाथाको देखने से ऐसा प्रतीत होता है कि उसकी रचनामें भी इस चप्पन्नमहापुरिसचरियका प्रभाव होगा ही। वह गाथा इस प्रकार है महमुहनिज्झरझरियं चरियं पाएण रिसहनाहस्स । कन्नंजलीहिं पिज्जउ वियसियवयणाए परिसाए ॥ ४५ ॥ ऋ. च. इसकी तुलना करो महमुहकलसपलोटें उत्तिमपुरिसाण चरियसुहसलिलं । कण्णंजलीहिं पिज्जउ वियसियवयणाए परिसाए ॥ पृ. ४. गा. ५३ ॥ च. म. च. उपर्युक्त दो उदाहरण तथा पूर्वोक्त कहावलीके स्थानोंका अवलोकन करनेपर ऐसा स्पष्ट प्रतीत होता है कि उत्तरवर्ती ग्रन्थकारोंके लिए प्रस्तुत ग्रंथ अभ्यसनीय और उपादेय हो चुका था । इस दृष्टि से इतर उत्तरवर्ती ग्रन्थों से भी प्रस्तुत ग्रन्थके प्रभावके प्रमागोंकी उपलब्धि असम्भव नहीं है। १ देखो प्रस्तुत प्रन्थमें 'विबुधानन्दनाटक' पृ. १७ से २७ । यह नाटक दुःखान्त है, इसलिए नाटक साहित्यमें इसका सूचक वैशिष्टय है। २ देखो मुनि श्री चरणविजयजी द्वारा सम्पादित और आत्मानन्द जैन सभा, अंबालासे प्रकाशित 'चन्द्रप्रभचरित' पृ. ६० से ७६ । Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्पन्नमहापुरिसचरिय शीलांकाचार्यने प्रस्तुत ग्रन्थकी रचना अपनी नैसर्गिक प्रतिभाके बलसे की है। भाषाका प्रवाह अस्खलित गति है । ग्रन्थके अध्ययनसे ऐसा प्रतीत होता है कि सम्भवतः ग्रन्थकी रचनाके पश्चात् लेखकको दूसरी बार उसे पढकर संशोधित करनेका अवसर नहीं मिला है। उपर्युक्त दो प्रतियोंके पाठभेदों को देखने पर ऐसी भी कल्पना होती है कि प्रस्तुत ग्रन्थ संशोधन --परिवर्धन हुआ है और वह शायद स्वयं लेखककृत भी हो; तथापि समस्त ग्रन्थ अथवा ग्रन्थका कोई पूरा एक विभाग समग्रतया देखा गया हो ऐसा नहीं लगता । यह बात अधोलिखित अवतरणोंसे अवगत हो सकेगी ४८ १. नाटकों में विदूषककी भाषा प्राकृत होती है । इस प्रणालिकाका अवलम्बन लेखकने भी 'विबुधानन्दनाटक' में किया है । केवल एक ही स्थान पर विदूषक के कथन में 'जयउ जयउ कुमारो' लिखनेके बदले 'जयतु जयतु कुमारः' (पृ. २२) मिलता है । २. पृ. ७९ में गंगा पडिसोएणं' लिखा है । 'तरियव्वा' का अर्थ ऊपर से लगाना पड़ता है । ३. द्विष्ट और विजयके समक्ष विजयाचार्य अपनी आत्मकथा कहते हैं । उस कथानकमें (पृ. १०६-११४) विजयाचार्य अपने आपको लक्षित करके 'मया चितियं' (पृ. १०७ पंक्ति - १३ ), 'तओ अहं' (पृ. ११३. पं. ६,१४ ) इत्यादि प्रयोग करते है और वे संगत प्रतीत होते हैं; परन्तु उसी कथामें अनेक स्थानों पर 'चन्दउत्त', 'कुमार', 'तेण वि' जैसे प्रयोग भी आते हैं, जिससे 'कथाका कथयिता ही कथानायक है' यह बात समझने में भ्रम पैदा हो सकता है। इसके अतिरिक्त इस कथाके प्रारम्भमें पूर्वविदेहक्षेत्र लिखा है (पृ. १०६ ) परंतु उसके स्थानमें भरतक्षेत्र होना चाहिए । यह समग्र कथा कहावलीमें भद्रेश्वरसूरिने प्रायः अक्षरशः ली है । उसमें पूर्वविदेहक्षेत्रके स्थान पर भरतक्षेत्र लिखा है । ४. पृ. १६७ पर आई हुई २८वीं गाथामें 'पडिभणई' शब्द आता है । २९वीं गाथामें यह वाक्य चालू रहता है, फिर भी वहाँ 'इमं भणइ'का प्रयोग किया है, जो न किया जाता तो भी चल सकता था । ५. अरिष्टनेमि-कृष्ण-बलदेवचरितमें जराकुमार अपनी पहचानके लिए 'हलि-केसवाणमेक्कोयरो' (पृ. २०१ ) कहकर अपनेको उनका सहोदर कहता है; परन्तु हली-बलदेव रोहिणीपुत्र है तो केशव कृष्ण देवकीपुत्र है, यह बात पृ. १८३ में आती है । पृ. २०४, गा. २६८ में सिद्धार्थदेव बलदेवके आगे छः महाव्रतका उल्लेख करता है । उनके स्थान में चार कहे होते तो अधिक संगत होता, क्योंकि उस समय चातुर्यामकी ही परम्परा थी । शब्द लिखा है । ६. पृ. २१२ में 'दासा दसण्णए आसी' कहकर पृ. २१४ में 'दसण' देशके स्थानपर 'सुदंसण' ७. त्रिपृष्ठवासुदेवके चरितके अन्तमें 'अओ उड्ढे वज्रमाणतित्थयरचरियाहिगारे कहिस्सामो' (पृ. १०३ ) ऐसा लिखकर वर्धमानस्वामी चरितमें उनके पूर्ववर्ती देवभव ( अर्थात् एक ही भव ) के अतिरिक्त त्रिपृष्ठ और वर्धमानस्वामी इन दो भवोंके बीच के अन्य जन्मोंकी कथा नहीं लिखी । ९. पृ. २३६ पर आई हुई गाथा २०२ के पश्चात् पुष्पवती कहती है कि 'अण्णं च सुमरिज्जउ मुणिवरभणियं', परन्तु मुनिकथनकी जानकारी पुष्पवतीको है ऐसा सूचन कहीं भी ग्रन्थकारने नहीं किया; अतः एकाध स्थान में अध्याहारसे भी सम्बन्ध जोड़ना पड़ता है । १०. पृ. १६ एवं १८ में महाबल राजाके मंत्रीका नाम 'विमलमति' लिखा है, किन्तु पुनः पृ. १८ में ही उस मंत्रीका निर्देश ‘सुबुद्धि' के नामसे किया है । इसी प्रकार पृ. १५९-६० में जिसका नाम 'रयणपभा' आता है उसीको पृ. १६१६२ में 'अनंगमती' कहा । पृ. २५४ में 'कणयरह' और पृ. २५५ में 'कणयाह' नाम आते हैं, परन्तु ये दोनों एक ही व्यक्तिके नाम हैं । Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना ११. प्रतिवासुदेवको पराजित करनेसे पहले ही विजय बलदेवकी प्रव्रज्याका (पृ. ११४ ) निर्देश है। १२. सम्मेतशैल और अष्टापदगिरि एक-दूसरेसे भिन्न हैं यह बात प्राचीन-अर्वाचीन समग्र जैन साहित्यमें विख्यात है। यहाँ भी ग्रन्थकारने इन दोनोंका प्रचलित भिन्न भिन्न नामोंसे उल्लेख किया है, फिर भी एक स्थान पर अष्टापदगिरिक बदले सम्मेतशैल लिखा है । वह पाठ इस प्रकार है- 'एवं विहरमागस्स सम्मेयसेलवंदणणिमित्तमुप्पण्णा मती । पयट्टो सागरदत्तसत्थवाहेण समयं । पणमिऊगं च भगिओ सागरदत्तेग-भयवं! कहिं पुग तुम्हेहि गन्तव्वं ? मुणिणा भणियं-वंदणणिमित्तमहावयगिरि ।' (पृ. २४८) इसके आगे भी पृ. २४९ में मुनिके अष्टापद पर्वत पर जानेकी बात आती ही है । अतः मुनिको अष्टापद पर ही जाना था और वहीं वे गये भी, यह स्पष्ट है; परन्तु ऊपरके पाठमें अष्टापदके ख्यालसे ही 'सम्मेतसेल' लिखा गया है । कहावलीमें इस स्थान पर सम्मेतशैलका ही निर्देश है। इससे रचना किस शीघ्रतासे हुई होगी उसका कुछ आभास मिलता है। साथ ही 'सम्मेयसेल' एवं 'अट्ठावयगिरि इन दो शब्दप्रयोगोंके बीच केवल ६७ अक्षरोंका ही व्यवधान है, जिससे ऐसा अनुमान किया जा सकता है कि ग्रन्थकी रचनाके पश्चात् लेखकको पुनः आद्यन्त पढ़ जानेका अवसर नहीं मिला है। ___ ग्रन्थकी रचना गद्य-पद्यात्मक है । पद्य-भागमें सुभाषित गाथाएँ तो आती ही हैं, परन्तु उनके अतिरिक्त कथा-प्रसंग भी इस विभागमें आते हैं। अधिकांश पद्य-विभाग आर्या छन्दमें है। फिर भी कतिपय पद्य आर्याक विविध प्रकारोंमें तथा दण्डक आदि विभिन्न छन्दोंमें भी निबद्ध हैं। इसमें गद्यका प्रयोग होने पर भी कहीं कहीं पद्यगन्धी गद्य प्रतीत होता है । ऐसे पद्यगन्धी गद्यमें आर्याके एक अथवा एकाधिक चरणके अतिरिक्त दूसरे किसी छन्दके अंशकी प्रतीति नहीं होती । ऐसे गद्यके नमूने नीचे दिये जाते हैं। सुरवर-णररिद्विवण्णणागरुयं । आर्याद्वितीयचरण पृ. ४ पंक्ति ३० लेसुद्देसेण तुह मए सिटुं । २१० उवउत्ता दंसणे य णाणे य । ८९ ....रपंकखुत्ताण भवियसत्ताणं ९४ हाहारवसद्दबहिरियदियंत । एवं च ते वणयरा तीए सव्वायरेण विणिउत्ता। आर्या पूर्वार्ध ३१२ तह परिणओ करिंदो रोसेणायंबिरच्छिवत्तणओ। , २८५ विशिष्ट भाषाप्रयोग ___यहां प्राकृत भाषामें उवृत्तस्वरोंके संधि-लोप-श्रुति-श्रुतिभेदादिप्रयोग, उद्वृत्तस्वरमें 'व' आगमप्रयोग, ऐकारका प्रयोग, समसंस्कृतप्रयोग, सिद्धसंस्कृतप्रयोग, विभक्तिव्यत्यय, विभक्तिलोप और वर्णव्यत्यय आदि अनेक प्रयोग उपलब्ध होते हैं, जिनमेंसे बहुतसे प्रयोग आचार्य श्रीहेमचन्द्रसूरिने अपने प्राकृतव्याकरणमें 'आर्षम्', 'बहुलम्' और मतांतरसे स्वीकृत किये हैं। इन सबकी तालिकाएँ अभ्यासीके अवलोकनार्थ यहाँ दी जाती हैं। उबृ तस्वरसंधिके प्रयोगलोयट्ठी लोयट्टिई लोकस्थितिः पृ. ७३, २७२ पुवट्टिईओ पूर्वस्थितयः ३७ 'स्थितिम् २०५ टि० सहस्सट्ठी सहस्सट्टिई सहस्रस्थितिः १४८ टि० पुबडीओ 'ड्रीं ट्ठिई Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउप्पन्नमहापरिसचरिय आगीओ आगिईओ आकृतयः पृ. १०५ डंडणीओ डंडणीईओ दण्डनीतयः ३७टि० अवीय अविइय अविदित 'प्पर्भि 'प्पभिई प्रभृति ११९ पी-माई पिइ-माई पितृ-मातृ २५६ टि० खिप्पइट्ठिय खिइपइट्ठिय क्षितिप्रतिष्ठित महाल महयाल महाकाल ११३ टि. दुज्जयाए दुज्जययाए दुर्जयतया १३४ भगवा भगवया भगवता ७३ टि० परायणाए परायणयाए परायणतया वल्लहाए वल्लह्याए वल्लभतया ३२० समाओ समायाओ समायातः ३१६ टि० खंधार खंधावार स्कन्धावार २१० अंधार अंधयार अन्धकार १६०,१९४,२३९ कहेणं कहएण कथकेन ११३ टि० उवृत्तस्वरलोपप्रयोग-राहिव राइअहिव रात्र्यधिप (पृ. ३०५ टि.) उवृत्तस्वरश्रुतिप्रयोग-भुअण पृ. ५६ टि.; भइय पृ. ११९ टिः; सुइण पृ. १२० टि., १५३ टि., १७२ टि.; रोइउ पृ. १२५ टि.; पइट्ठो पृ. १३८ टि.; अडईए पृ. १३९ टि., पृ. १६६ टि.; रोइऊण पृ. १६५ टि.; पोइणि पृ. १४६ टि., १७३ टि.; कुइयं पृ. २१४ टि.; विकूइय पृ. १८६ टि.; पलोइउं २१४; कूइयं १४६, २२०; रोइउं २३६ टि.। ___ उद्वृत्तस्वरश्रुतिभेदप्रयोग । (१) 'अ'के स्थानमें अस्पष्ट 'इ'की श्रुति-अणवरइ पृ. ४६ टि; सई पृ. ६३ टि., १४० टि., ३०९ टि.; वाइसो पृ. ६६ टि.; अंतराइं पृ. ८१ टि.; जइभूसण पृ. १४० टि.; पोइणा पृ. १४६ टि.; लाइण्ण पृ. २०८ टि.; खइर पृ. २५० टि.; असुइपुवा पृ. २१९ टि.; जइणेहिं पृ. ३०१ टि.; महिलाइणो पृ. ३११ टि.; मइ पृ. ३१६ टि.। (२) उद्वृत्त 'इ'के स्थानमें अस्पष्ट 'य'की श्रुति-नीय पृ. ४२ टि., सय पृ. ५६ टि., सुयरं पृ. ५८ टि., ६६ टि., १४१, जोयस पृ. ८० टि., णउयं पृ. ८३ टि., तप्पभियं पृ. १५२ टि., कस्सय पृ. १९९ टि., आयम्मि पृ. २१८ टि., गयंद पृ. २६२ टि., २६६ टि., मायंद पृ. ३०१ टि.। उद्वृत्तस्वरमें 'व' आगमप्रयोग । (१) उवृत्त 'अ'में-जोवण पृ. ७३ टि., ८९ टि.; भुवबलं पृ. ९५ टि.; महोवहि पृ. १३५; वहोव पृ. १८६ टि.; भुवलया पृ. १९८ टि.; मरुव पृ. २१६ टि.; हियवय पृ. २३० टि.; भुवईद पृ. २७८ टि.; वियणावेव पृ. ३१० टि.; उवर ३८, ५०, ५५, १८० उम्वेव पृ. ८, २९, टि., ८१ टि.; णिव्वेव पृ. ८ टि; जुवल पृ. ९ टि., १० टि., ५९ टि., ८६, ९५ टि., १८१, १९५, १९५ टि., २१५, २२० टि., २२१, २२१ टि., २२७, २३५, २७०, ३०६, ३०७, ३१२, ३१३ टि., ३१७ टि., ३१९ टि., ३२६; जुव पृ. १९८ टि. । (२) उवृत्त 'इ'में-कूवियं पृ. १४६ टि., २२० टि.; रोविऊग पृ. १६५; जोविओ पृ. १६७ टि.; विकूवियं पृ. १८६; पलोविउं पृ. २१४ टि. रोविडं पृ. २३६ । Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना ५१ 'ऐ'कारका प्रयोग-वैसाह पृ. ९२, २०३ । समसंस्कृतप्रयोग-तया पृ. ३० । सिद्धसंस्कृतप्रयोगतस्सा = तस्याः पृ. २९, भावणया = भावनया पृ. ४८, जससे = यशसे पृ. १०२ । विभक्तिव्यत्यय-किमेएसि पयाणं कयत्थिज्जइ (पृ. १३१, द्वितीयाके अर्थमें षष्ठी), जुवईहिं (पृ. ३८, षष्ठीके अर्थमें तृतीया वा सप्तमी), तेसु घडेसु (पृ. १७३, षष्ठीके अर्थमें सप्तमी) । इनके अलावा द्वितीयाके अर्थमें प्रथमाका प्रयोग जहाँ जहां प्राप्त होता है वे उदाहरण इस प्रकार हैं ___ जम्मो परिणामो जीवाणुयंपयारी पृ. २५५, भिच्छा पृ. ३१३, सहयारमंजरी पृ. २६२, बाहुबलिदेससीमा पृ. ४६, मायाकुडंगी पृ. ९२, आसण्णसमोसरणभूमी पृ. ३२७, गती पृ. १४४, सयलजणमणाणंदयारिणी वाणी पृ. १७३, पुरवरी पृ. १९९, पेच्छणयविही पृ. २०९, आयरियावासभूमी पृ. १४, सयखंडिया पृ. १२, णेवुई पृ. १७५, कुमरी पृ. १०७ टि० ११० टि०, देवया पृ. १२३ टि०, सारही पृ. १९३, परिणई पृ. १९७ टि० ३१० टि०, देसणा पृ. २०५, जंतु पृ. २१८, पेच्छणयविही पृ. २१०, णियपरिणी पृ. २८९, सेट्री पृ. २९१, अण्णा महिला पृ. ३११, एत्तियम्हे = एत्तिया अम्हे पृ. ३२६, धम्मचारिणी पृ. ६६. पाणवित्ती पृ. ७७ टि०, 'किलम्मतो पेलवमही पृ. ८३, वाणी पृ. १०१ टि०, वचंती पृ. १०१, देसविरई पृ. १७७, लच्छी पृ. २४८, मती पृ. १२० टि० । ___ विभक्तिलोप छंदोभंग न हो इस दृष्टि से हुआ है उदाहरण-भिक्खाहिंडमाण (पृ. ३०२, गा० ४३७), अहिमाण (पृ. २२०, गा० ७८), सम्मत्त णाण सण (पृ. ८९, गा० ३७), पंचमि (पृ. १८३, गा० ५१)। ___ वर्णव्यत्ययमें यहाँ 'म'का 'व' हुआ है जैसे कि-चवकार पृ. ३४, भविमो पृ. ५६ टि., पणविऊण पृ. ६२ टि., पसवणेण पृ. १४४ टि., णिक्खवण पृ. १४६ टि., वावगो पृ. १५३ टि., बावणेण पृ. १५४ टि. १६१ टि., परिणवइ पृ. १८३ टि., ससंभव पृ. २०१ टि., संभवु पृ. २०२ टि., सवण पृ. २५६ टि.। स्वरादिशब्दोंमे 'म्' और 'त्' आगम हुआ हो वे स्थान-लाइच्च पृ. ३९, मण्णाओ पृ. ५९, मब्भसंतो पृ. २८२, तच्चंत पृ. ४८। इन स्थानोंमें 'पण'के बदले 'ह' मिलता है-छिण्हं पृ. १७५ टि.; कण्हतेउर पृ. २०० टि.; गेलण्ह पृ. ४९ टि.; दिण्हो पृ. ४ टि.; दिण्हं पृ. ५१ टि., ५९ टि., १२८ टि.; दिण्हेग पृ. ४७ टि., ७८ टि.; दोण्हि पृ. १४ टि., २१ टि., २६ टि., ८९ टि., १२७ टि., १४२ टि., १६८ टि., २०६ टि., २१५ टि.। दो स्थानोंमें 'तए' त्वया के बदले 'तई' (पृ. १५२, २९०) जैसा गौर्जर अपभ्रंशका रूप भी मिलता है। इसमें छन्दका मेल बिठानेके लिए कहीं-कहीं दीर्घस्वरका इस्वस्वर, हस्वस्वरका दीर्घस्वर तथा वर्णविर्भावका एकीभाव भी हुआ है; जैसे कि- दीर्घका हस्व : वरई पृ. ८८, रूवगव्वि पृ. ८१ । हूस्वका दीर्घ : भवियायण पृ. २३५, अप्पाणो पृ. २९९ । द्विर्भावका एकीभाव : उविलण पृ. १९३, उपण्ण पृ. १९३ । आज भी लोग पुत्रीको सम्बोधनमें 'बेटा' कह देते हैं। उसी प्रकार इस ग्रन्थमें भी 'पुत्ती' शब्दके सम्बोधनमें 'पुत्त !! रूपं मिलता है। इसी प्रकार जिस पर वात्सल्य होता है उसे हम बाप या बाबाके नामसे सम्बोधित करते हैं। प्रस्तुत ग्रन्थमें भी छोटे भाईको संबोधन करते समय बड़ा भाई ‘बप्प !' शब्दका प्रयोग करता है । इससे यही फलित होता है कि लोकभाषामें ऐसे शब्दप्रयोगों का प्रवाह प्राचीन है। १ देखो-पृ. २८९ पं. २४, पृ. २२६ पं. १३, पृ. १५९ पं. १७, पृ. १६१ पं. २ । २ देखो-पृ. २०० प. २९ । Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२ चउप्पन्नमहापुरिसचरिय ग्रन्थकार तथा उनका समय ग्रन्थकारने अपनी पहचान तीन नामोंसे दी है : शीलांक (पृ. १७) अथवा सीलंक (पृ. २६९) विमलमति (पृ. १७) तथा सीलायरिय-शीलाचार्य ( ग्रन्थकी समाप्तिमें पृ. ३३५ ) । ग्रन्थके अन्तमें ग्रन्थकारकी संक्षिप्त प्रशस्ति एवं ग्रन्थकी समाप्तिसूचक पाँच गाथाएँ हैं, जो इस प्रकार हैं चउप्प(प)ण्णमहापुरिसाण एथ चरियं समप्पए एयं । सुयदेवयाए पयकमलकंतिसोहाणुहावेणं ॥ १ ॥ आसि जसुजल जोण्हाधवलियनेव्वुयकुलंबराभोओ। तुहिणकिरणो व्व सूरी इहई सिरिमाणदेवो त्ति ॥२॥ सीसेण तस्स रइयं सीलायरिएण पायडफुडथं । सयलजणबोहणत्थं पाययभासाए सुपसिद्धं ॥ ३ ॥ जं एत्थ लक्खण-ऽक्खर-छंदक्खलियं पमायओ मज्झ । लेहअवसउ व्व भवे तं खमियन्वं बुयणेण ॥ ४॥ इय महापुरिसचरियं समत्तं । चउपण्णमहापुरिसाण कित्तणं जो सुणेइ एगग्गो । सो पावइ मुत्तिसुहं बिउलं नत्थेत्थ संदेहो ॥ ५ ॥ अर्थात् यह चौवन महापुरुषोंका चरित्र श्रुतदेवताके चरणकमलकी कान्तिको शोभाके प्रभावसे-सरस्वतौकी कृपासे यहाँ समाप्त होता है ॥ १॥ यशको उज्ज्वल ज्योत्स्नासे निर्वृतिकुलरूपी आकाशके विस्तारको धवलित करनेवाले चन्द्रके समान मानदेवसूरि थे ॥ २ ॥ उनके शिष्य शीलाचार्यने सब लोगोंके बोधके लिए प्रकट एवं स्पष्ट अर्थवाला [अतएव] सुप्रसिद्ध यह-- चउपन्न० म० च०-प्राकृतभाषामें रचा है॥३॥ इसमें लक्षण, अक्षर एवं छन्दके बारेमें मेरे अथवा लेखकके प्रमादवश कोई क्षति हुई हो तो विद्वान् उसे क्षमा करें ॥ ४ ॥ जो कोई चौवन महापुरुषोंका चरित एकाग्र होकर सुनता है उसे मुक्तिका विपुल सुख प्राप्त होता है इसमें सन्देह नहीं ॥ ५ ॥ __प्रस्तुत सम्पादनमें जिन दो प्रतियोंका आधार लिया गया है उनमें से 'जे' संज्ञक प्रतिमें उपर्युक्त पाँच गाथाओंमेंसे प्रारम्भकी तीन गाथाओंके पश्चात् ग्रन्थसमाप्ति एवं लेखककी पुष्पिका उपलब्ध होती है, अर्थात् अन्तिम दो गाथाएँ 'जे' प्रतिमें नहीं हैं। जिनमें ग्रन्थकार तथा उनके कुल एवं गुरुका निर्देश है वे दूसरी और तीसरी गाथाएँ 'सू' संज्ञक प्रतिमें नहीं है; अर्थात् 'जे' प्रतिमें ही ये दो गाथाएँ आती हैं। यहाँ ग्रन्थकारकी परिचायिका दूसरी-तीसरी गाथाएँ प्रक्षिप्त हैं ऐसा.माननेका कोई कारण नहीं है । साथ ही, 'सू' संज्ञक प्रतिके लेखकने ये दो गाथाएँ जानबूझकर नहीं लिखी होंगी ऐसा माननेका भी कोई कारण नहीं है। कभी-कभी गच्छ आदिके दुराग्रहके कारण लेखकके प्रशस्ति-पाठमें छेड़छाड़ करनेका, उसे सुधारनेका अथवा न लिखनेका बनता होगा, और वैसा हुआ भी है; तथापि इन दो गाथाओंमें ऐसी कोई बात नहीं है जिसे लिखकर या न लिखकर कोई भी व्यक्ति अपने गच्छाग्रह या व्यक्तिद्वेषका पोषण कर सके । 'सू' प्रतिके लेखन-समय, लेखन-स्थान १ ऐसी अनधिकार छेड़छाड़को रोकनेके लिए ही विक्रमकी १७ वीं शतीके जैन विद्वान् श्री समयसुन्दरजीने तथा ब्राह्मण विद्वान् श्री गोवर्धनजीने अपनी-अपनी कृतियोंके अन्तमें स्पष्ट सूचना दी है। श्री समयसुन्दर वृत्तरत्नाकर वृत्तिके अंतमें कहते हैं यः कोऽपि मत्सरी मूढः प्रशस्ति न लिखिष्यति । स लोके लप्स्यते निन्दा कुणिर्भावी परत्र च ॥ अर्थात् जो मात्सर्ययुक्त मूढ़ व्यक्ति मेरी प्रशस्ति नहीं लिखेगा वह इस लोकमें निन्दापात्र और परलोकमें कोई भी क्रिया करनेमें असमर्थ हाथवाला होगा । इसी प्रकार गोवर्धनकृत पद्मकोशके अन्तमें एक श्लोक है कि अथास्मिन् पद्मकोशाख्ये योऽभिधानकरः परः । स जारजातको ज्ञेयः यदि त्रिस्कन्धपारगः ॥ अर्थात् इस पद्मकोका नामक ग्रन्थमें यदि कोई अपना नाम घुसेड़ देगा तो वह भले ही त्रिस्कन्धका पारगामी हो, तो भी उसे जारजात ही समझना चाहिए । ये दोनों हस्तलिखित ग्रन्थ राजस्थान के प्राच्यविद्याप्रतिष्ठान (जोधपुर) के अन्थसंग्रहमें संगृहीत है और इनका क्रमांक १९७९ एवं ४०९ है। Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना ५३ एवं लिखानेवाले व्यक्ति आदिको देखने पर इतना तो कहा जा सकता है कि आदर्श प्रतिमें इन दा गाथाओंका अभाव होनेसे ही इस 'सू' प्रतिमें वे उद्धृत नहीं हुई होंगी। सम्भव है कि आदर्श प्रतिमें अथवा उसकी पूर्वपरम्पराकी प्रतिमें किसी प्रकारकी असहिष्णुताके कारण ये गाथाएँ न भी ली गई हों, परन्तु इतना निश्चित है कि ग्रन्थकारका संक्षिप्त परिचय देनेवाली ये गाथाएँ स्वयं ग्रन्थकार द्वारा ही रचित हैं। इस प्रकार निर्वृतिकुलीन मानदेवसूरिके शिष्य शीलाचार्य, शीलांक अथवा विमलमतिने प्रस्तुत ग्रन्थकी रचना की है। ग्रन्थकार एवं उनके गुरुके विषयमें कोई विशेष जानकारी उपलब्ध नहीं होती, फिर भी इस ग्रन्थका सम्पादन करते समय ग्रन्थकारके बारेमें जो कुछ थोड़ी-बहुत सामग्री उपलब्ध हुई है वह मैं नीचे प्रस्तुत करता हूँ आचार्य पद प्राप्त करनेसे पूर्व एवं उसके पश्चात् ग्रन्थकारका नाम क्रमशः विमलमति और शीलाचार्य रहा होगा और 'शीलांक' तो स्वयं ग्रन्थकारके द्वारा अपने लिए पसन्द किया गया उपनाम प्रतीत होता है। यद्यपि प्रस्तुत ग्रंथके अन्तमें 'शील + अंक' द्योतक कोई शब्द प्रयोग तो उपलब्ध नहीं होता, तथापि विबुधानन्द नाटकके अन्तमें (पृ. २७) 'सच्छीलवान् रङ्गः' लिखकर ग्रन्थकारकी वृत्ति शील अंक सूचित करनेकी ज्ञात होती है। केवल इसी एकमात्र स्थानके कारण उनका उपनाम शीलांक पड़ा हो ऐसा नहीं कहा जा सकता । सम्भव है, शीलांक पदसे निर्दिष्ट दूसरी भी रचनाएँ उन्होंने की हों। श्रीहेमचन्द्राचार्य रचित देशीनाममालाकी टीकामें आनेवाले 'कडंभु घटस्यैव कण्ठ इति शीलांकः' (पृ. ८८) तथा 'बोंड चूचुकम् ,बोंटणं इति शीलांकः' (पृ. २५०) इन दो उद्धरणोंसे इतना तो निश्चित होता है कि शीलांक नामके किसी विद्वान्ने या तो देशीनाममाला लिखी थी या फिर किसी देशी शब्दकोशके ऊपर टीका लिखी थी। शीलांक नामके अनेक विद्वान् हुए हैं। आजतकके उपलब्ध साहित्यको देखते हुए ऐसा प्रतीत होता है कि अन्य शीलांकोंकी रचनाका विषय आगम साहित्य है, जबकि प्रस्तुत ग्रन्थकारका विषय कथा, चरित्र, नाटक आदि है। इसके अलावा प्रस्तुत ग्रन्थमें देशी शब्दोंका प्राचुर्य भी है । इससे ऐसा अनुमान किया जा सकता है कि हेमचन्द्राचार्य द्वारा उल्लिखित शीलांक चउत्पन्नमहापुरिसचरियके रचयिता शीलांक ही होने चाहिए। जिस प्रकार उपर्युक्त अवतर गोंसे सूचित शीलांककी कोई देशीनाममाला अथवा उसकी टीका उपलब्ध नहीं होती उसी प्रकार दूसरे ग्रन्थ भी प्रस्तुत ग्रन्थकारने लिखे अवश्य होंगे, परन्तु वे अब मिलते नहीं हैं। यद्यपि शीलांक नामक विद्वान्की अन्य कृतियाँ उपलब्ध होती हैं, किंतु प्रस्तुत ग्रन्थकारसे उन-उन कृतियोंके लेखक अभिन्न हैं यह बतलानेवाला कोई प्रमाणभूत आधार इस समय हमारे पास नहीं है। शीलांक वा शीलाचार्यके सम्बन्धमें भारतीय एवं पाश्चात्य विद्वानोंने कुछ आनुमानिक विचार' प्रदर्शित किये हैं। उसी नामके एक विद्वान् द्वारा रचित प्रस्तुत ग्रन्थका सम्पादन करते समय उपयुक्त पूर्वभूमिकाके आधार पर जो बातें ज्ञात हुई हैं उनका निर्देश करना यहाँ उपयुक्त होगा। इस समय शीलांक अथवा शीलाचार्यने निम्न ग्रन्थोंकी रचना की है- ऐसे उल्लेख मिलते हैंग्रन्थ कर्ता १. विशेषावश्यकभाष्यवृत्ति शीलांक-कोट्याचार्य (निर्देशः प्रभावक चरित्र) २. आचारांग-सूत्रकृतांगटीका शीलाचार्य-तत्त्वादित्य-शीलांक ३. चउम्पन्नमहापुरिसचरिय शीलाचार्य-विमलमति-शीलांक १ डॉ. पिशल सम्पादित और भाण्डारकर ओरिएण्टल इन्स्टिटयूट, पूनासे प्रकाशित । Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४ ४. ५. ६. ७. ८. उपमहापुरिसवरिय शीलांक जीवसमासप्रकरणवृत्ति पूजाविधिप्रकरण (?) शीलाचार्य (निर्देश : बृहट्टिप्पनिका ) अज्ञात अप्राप्य देशीशब्दकोश अथवा देशीशब्दकोशकी वृत्ति शीलांक ( निर्देश : हेमचन्द्र ) शीलांक ( निर्देश प्रभावक चरित्र ) एकादशांगवृत्ति इनके अतिरिक्त विनयचन्द्रीय (विक्रमकी १३ वीं शती) काव्यशिक्षामें शीलांकका निर्देश है । १. इनमें विशेषावश्यकभाष्यके टीकाकार कोट्याचार्यका नाम शीलांक भी है - ऐसा विधान करनेवाले विद्वानोंमेंसे सबने इस विधानके आधारके रूपमें प्रभावकचरित्रके अतिरिक्त दूसरे किसी ग्रन्थका प्रमाण नहीं दिया। उसमें विशेषावश्यकभाष्यकी वृत्तिके रचयिता शीलांकको ही एकादशांगवृत्तिकार भी कहा है। उसमें ऐसा भी उल्लेख आता है कि ग्यारह अंगोंकी वृत्तियोंमेंसे केवल आचारांग एवं सूत्रकृतांगकी वृत्तियों के अतिरिक्त शेष नौ अंगोंकी वृत्तियोंके नष्ट होने पर शासनदेवताने अभयदेवसूरि को उन अंगों की टीका लिखनेके लिए प्रेरित किया । प्रभावकचरित्रकारका शासनदेवतावाला यह निर्देश या तो किसी निर्मूल दन्तकथाके ऊपर आधारित है या फिर स्वयं उनकी अपनी ही कल्पना है । अभयदेवसूरिके समयमें शीलांक अथवा अन्य किसी विद्वान्की अवशिष्ट नौ अंगोंपर वृत्ति होती तो “अर्थरूपी रत्नके साररूप, देवता द्वारा अधिष्ठित तथा विद्या एवं क्रियासे बलवान् होने पर भी किसी पूर्वपुरुषने जिसका उन्मुद्रण ( व्याख्या या टीका) नहीं किया वैसे स्थानांगका व्याख्यामूलक अनुयोग आरम्भ किया जाता है।" इस प्रकार अभयदेवसूरि स्वयं अपनी स्थानांगवृत्तिके प्रारम्भमें न लिखते । इससे तो यही सिद्ध होता है कि शीलांक एकादशांगवृत्तिकार नहीं थे, अपितु आचारांग एवं सूत्रकृतांगके ही वृत्तिकार थे । अतएव प्रभावकचरित्रकारका उपर्युक्त उल्लेख निर्मूल प्रमाणित होता हो, तो प्रभावकचरित्र में इसी स्थानपर शीलांकका जो दूसरा नाम कोट्याचार्य दिया है वह भी विशेष सार्थक प्रतीत नहीं होता। कहनेका तात्पर्य यह है कि विशेषावश्यकभाष्यकी वृत्तिके रचयिता कोट्याचार्यका दूसरा नाम शीलांक नहीं है । पूज्यपाद आगमोद्धारक आचार्य श्रीसागरानन्दसूरिजी ने भी स्वसम्पादित कोट्याचार्यकृत विशेषावश्यक भाष्यकी वृत्तिकी प्रस्तावनामें यह बात स्पष्ट की है। २. आचारांग सूत्रकृतांगके वृत्तिकार शीलाचार्यने अपने नामका निर्देश आचारांग प्रथम श्रुतस्कन्धकी वृत्ति, द्वितीय श्रुतस्कन्धकी वृत्ति तथा सूत्रकृतांगकी वृत्तिके अन्तमें किया है। इन तीनों स्थानों पर आचार्यने अपना नाम शीलाचार्य लिखा है तथा आचारांग प्रथम श्रुतस्कन्धकी वृत्तिके अंतमें 'निर्वृतिकुलीन - शीलाचार्येण तत्त्वादित्यापरनाम्ना वाहरिसाधुसहायेन कृता टीका परिसमाप्तेति' लिखकर अपना दूसरा नाम तत्त्वादित्य भी सूचित किया है । गुप्त या शकसंवत् के विषयमें निश्चय न हो सकनेसे तथा दूसरे विशेष प्रमाणों के अभाव में भिन्न-भिन्न समयके आचार्योंको एक ही व्यक्ति माननेके अनुमान होते रहे हैं, परन्तु अन्तिम निर्णय अभी तक नहीं हो पाया है । आचारांग प्रथम श्रुतस्कन्धकी टीकाके अन्तमें ग्रन्थकारने रचना समय गुप्त संवत् ७७२ लिखा है, जबकि द्वितीय श्रुतस्कंधकी टीकाके अन्त में शकसंवत् ७८४ और प्रत्यन्तर में ७९८ लिखा है । 'यहाँ गुप्त संवत् एवं शकसंवत्को एक मानकर शकको गुप्त लिखा गया है वस्तुतः दोनों संवत् शकसंवत् के अर्थमें होने चाहिए' - ऐसी डॉ. फ्लीट आदि विद्वानोंकी कल्पना युक्तिसंगत प्रतीत होती है । इस दृष्टि से यदि प्रथम श्रुतस्कन्धकी वृत्तिके अन्तमें दिये गये गुप्तसंवत्‌को शकसंवत् ही मान लें, तो वि. सं. ९०७ में प्रथम श्रुतस्कन्धकी और वि. सं. ९१९ में द्वितीय श्रुतस्कन्धकी टीका लिखी गई होगी । बृहट्टिप्पनिकामें चउष्पन्नमहापुरिसचरियका रचनासमय वि. सं. ९२५ दिया है। इस तरह दोनों शीलाचार्योंने, समकालीन होनेके कारण, अपनी अलग-अलग पहचानके लिए दूसरा नाम भी दिया १ " विविधार्थं रत्नसारस्य, देवताधिष्ठितस्य, विद्या- क्रियाबलवतापि पूर्वपुरुषेण कुतोऽपि कारणादनुन्मुद्रितस्य स्थानाशस्योन्मुद्रणमिवानुयोगः प्रारभ्यते । " स्थानांगटीकाके प्रारम्भमें । Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना प होगा, ऐसा अनुमान सर्वथा असंगत नहीं लगता। इन दोनोंकी समकालीनताका और अभिन्नताका मुख्य आधार दोनों ग्रन्थोंके रचनासमयको ही कहा जा सकता है, किन्तु वस्तुतः वे दोनों भिन्न ही हैं। 'विमलांक' विमलसूरि, 'भवविरहांक' हरिभद्रसूरि तथा 'दाक्षिण्यचिह्न' उद्योतनसूरि इत्यादि विद्वानोंने अपने अपरनाम सूचित किये ही हैं, यद्यपि उनके समकालीन उस-उस नामके अन्य विद्वान् ज्ञात नहीं हो सके हैं। यहाँ तो हमें इतना ही सूचित करना है कि आचारांगटीकाकार और चउप्पन्नमहापुरिसचरियके कर्ता शीलाचार्य अपने अपरनाम भिन्न-भिन्न सूचित करते हैं, और इसीलिए वे समकालीन होने पर भी एक नहीं हैं। पुरातत्त्वाचार्य मुनीश्री जिनविजयजीने जीतकल्पसूत्रकी अपनी प्रस्तावनामें डॉ. फ्लीट', डॉ. पिटर्सन, डॉ. लॉयमान तथा डॉ. हर्मन जेकोबीके मन्तव्योंका अनुवाद करते हुए कुवलयमालाकार उद्द्योतनसूरिके गुरु तत्त्वाचार्य एवं आचारांग-सूत्रकृतांगके वृत्तिकार शीलाचार्य-तत्त्वादित्य एक ही हैं ऐसी कल्पना की है। इसी प्रकार इसी प्रस्तावनाके अन्तमें (परिशिष्टमें) आचारांग सूत्रकृतांगके टीकाकार शीलाचार्य एवं प्रस्तुत ग्रन्थ चउप्पन्नमहापुरिसचरियके कर्ता एक हैं ऐसा भी अनुमान किया है। उन्हें प्रस्तुत ग्रन्थकी प्रति उस समय प्राप्त नहीं हुई थी, अतः ऐसी कल्पना करना उनके लिए स्वाभाविक था; परन्तु मैंने उपर असंदिग्धरूपसे सूचित किया ही है कि समकालीन होने पर भी ये दोनों शीलाचार्य एक नहीं किन्तु भिन्न हैं। आगमोद्धारक आचार्यश्री सागरानन्दसूरिजीने विशेषावश्यकभाष्यवृत्तिकी प्रस्तावनामें आचारांगके टीकाकार शीलाचार्यके तत्वादित्य नामको (जो सभी प्रतियोंमें उपलब्ध होता है) कविकृत मानकर उन्हें तथा चउप्पन्नके कर्ता शीलाचार्यको अभिन्न बतलाया है, किन्तु यह विधान संगत प्रतीत नहीं होता । दोनों आचार्योंकी भिन्नताका निषेध करनेके लिये तत्त्वाचार्य के नामके लिए 'कविकृत' विशेषणका प्रयोग करके उसे प्रक्षिप्त माननेका उनका आशय हो या न हो, परन्तु उससे इतना तो फलित होता ही है कि उन्हें आचारांग-सूत्रकृतांगवृत्तिकार शीलाचार्यका दूसरा नाम तत्त्वादित्य स्वीकार्य नहीं है। उनके इस विधानसे कोई ऐसा भी समझ सकता है कि वह नाम स्वयं ग्रन्थकारने नहीं लिखा है ऐसा श्री सागरान्दसूरिजीका मानना है । परन्तु जो नाम आचारांगकी उपलब्ध प्राचीनतम प्रतियों में निरपवाद रूपसे उपलब्ध होता है उसका बिना किसी आधारके निषेध करना उचित नहीं है। किसी भी विद्वान्ने अन्य विद्वान्के ग्रन्थमें अपरनाम कल्पित करके जोड़ दिया हो ऐसा कभी नहीं हुआ। इतना ही नहीं, ऐसा दुस्साहस किसने और किस हेतुसे किया होगा इसका उत्तर जिसका कोई आधार नहीं ऐसे 'कविकृत' शब्दप्रयोगसे नहीं मिलता। मुनिश्री जिनविजयजीको तो चउप्पन्नमहापुरिसचरियकी प्रति नहीं मिली थी, अतः उन्होंने दोनोंके एकत्वका अनुमान किया था; परन्तु श्री सागरानन्दसूरिजीको तो चउप्पनके कर्ता शीलाचार्यका 'विमलमति' नाम मिला है, फीर भी दोनोंकी भिन्नताके बदले एकके अपरनामको व्यर्थ मानकर उनका एकीभाव उन्होंने क्यों किया होगा यह हमारी समझमें नहीं आता । श्री मोहनलाल दलीचन्द देसाईने भी जीतकल्पसूत्रकी उपर्युक्त प्रस्तावनाका अनुसरण करके आचारांगके टीकाकार तथा चउप्पन्नके रचयिताको एक माना है । इसके विषयमें तो कुछ विशेष लिखनेका नहीं है। किंतु जीतकल्पसूत्रकी प्रस्तावनामें कोट्याचार्य शीलांक, अणहिल्लपुरके स्थापक वनराजके विद्यागुरु शीलगुणसूरि, आचारांगके टीकाकार शीलाचार्य और चउप्पन्नके रचयिता शीलाचार्यके एक होनेके जो अनिश्चित अनुमान किये हैं (जो उसी प्रस्तावनामें किये गये परिशिष्टके आधार पर १ डॉ. फ्लीटने आचारांगसूत्रटीकाके रचना-स्थान 'गंभूता' को खम्भात कहा है, किन्तु यह ठीक प्रतीत नहीं होता । महेसाना-पाटन रेल-मार्ग पर आनेवाले धीणोज स्टेशनसे तीन-चार कोस दूर आये हुए गांभू नामक गाँवका प्राचीन नाम गंभूता था । इसके सूचक प्राचीन प्रमाण भी उपलब्ध होते हैं । २ देखो ‘जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास' पृ. १८०-८१ । Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउप्पन्नमहापुरिसचरिय असंगत और अनिर्णीत कहे जा सकते हैं) उनके आधार पर वनराजके गुरु शीलगुणसूरि और दोनो शीलाचार्योंको एक मानकर श्री देसाईने उनकी स्तुतिके रूपमें मुनिरत्नसूरिकृत अममस्वामिचरित्रका जो श्लोक उद्धृत किया है वह भी शीलगुणसूरि या शीलाचार्यकी स्तुतिरूप नहीं है, किन्तु उससे तो श्री हेमचन्द्राचार्यकी स्तुति की गई है । वह श्लोक इस प्रकार है गुरुर्गुर्जरराजस्य चातुर्विथैकसृष्टिकृत् । त्रिषष्टिनरसद्वृत्तकविर्वाचां न गोचरः ।। इसमें आये हुए ‘गुर्जरराज' शब्दका अर्थ कुमारपाल के बदले वनराज करके उसके विद्यागुरु शीलगुणसूरिका तथा त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्रके बदले चउप्पन्नमहापुरिसचरियकी कल्पना करके शीलाचार्यका ऐक्य सूचित करनेका आशय मादम पड़ता है, परन्तु 'चातुर्वि चैकसृष्टिकृत्' विशेषण जितना हेमचन्द्राचार्यके लिए उपयुक्त लगता है उतना शीलगुणसूरि या शीलाचार्यके लिए उपयुक्त प्रतीत नहीं होता । इसके अलावा त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्रके निर्देशका आशय भी इसमें स्पष्ट अवगत होता है । सम्भावनाओंको विधान मानकर किया गया निर्णय कैसा असंगत होता है यह जाननेके लिए उपयुक्त श्लोकका श्रीदेसाईकृत अर्थ एक उदाहरणरूप है । प्रस्तुत विचारके सन्दर्भ में एक बात विशेष सूचक है; अतः अन्तमें इसका निर्देश करना मुझे आवश्यक प्रतीत होता है। आचारांग एवं सूत्रकृतांगके टीकाकार अपना नाम तत्त्वादित्य एवं शीलाचार्य सूचित करते हैं, किन्तु कहीं कहीं प्रत्यंतररूपसे शीलांकका भी निर्देश मिलता है । इस परसे यह संभावना होती है कि उनका मूल नाम शीलाचार्य होगा किन्तु बादमें शीलाचार्य और शीलांकाचार्यका एकीकरण हो जानेके कारण वे शीलांक नामसे भी प्रसिद्ध हुए। ३. चउप्पन्नमहापुरिसचरियके कर्ता शीलाचार्यका परिचय दिया जा चुका है । ४. जीवसमासवृत्तिमें ग्रन्थकार अपना नाम शीलांक सूचित करते हैं। इसके अतिरिक्त अन्य कोई जानकारी इसमें उपलब्ध न होनेसे ग्रन्थके साद्यन्त अवलोकनके अनन्तर ही कुछ कहा जा सकता है। सरसरी निगाहसे मैं सारा ग्रन्थ देख तो चुका हूँ, परन्तु उसके आधारपर किसी निर्णयपर आना इस समय कठिन है । ५. शीलाचार्यरचित पूजाविधिविषयक कोई कृति का जो निर्देश बृहटिपनिकामें आता है वह इस प्रकार है'श्रीशान्तिवेतालीयपर्वपंजिका स्नपनविध्यादिवाच्या श्रीशीलाचार्याया। इस उल्लेख परसे ज्ञात होता है कि इस कृतिका विषय पूजाविधि रहा होगा । अबतक इसकी एक भी प्रति उपलब्ध नहीं हुई, अतः नाममात्रका उल्लेख करनेवाले उपर्युक्त उल्लेखके आधार पर इतनी मात्र संभावना की जा सकती है कि स्नपनविधि आदि विषयक कोई ग्रन्थ शीलाचार्यका था जिस पर वादिवेताल शान्त्याचार्यने पंजिका लिखी थी। ६. हेमचन्द्रीय देशीनाममालाकी टीकामें निर्दिष्ट शीलांक चउप्पनके कर्ता शीलांक होने चाहिए ऐसे अनुमानका निर्देश मैंने ऊपर किया ही है। ७. प्रभावकचरित्रमें निर्दिष्ट शीलांकके बारेमें पहले कहा जा चुका है। ८. लगभग १३वीं शतीके आचार्य विनयचन्द्रने अपनी काव्यशिक्षाके अन्तमें व्यास आदि ब्राह्मण ग्रन्थकारों के नामोंके साथ जैन ग्रन्थकारोंका भी नामनिर्देश किया है । उसमें शीलांकका नाम भी आता है। काव्यशिक्षाका वह पाठ इस प्रकार है-- भद्रबाहुर्हरिभद्रः शीलांकः शाकटायनः । उगस्वातिः प्र........॥' (आगेका पत्र उपलब्ध नहीं) इसमें केवल नामका ही निर्देश होनेसे लेखकको कौनसे शीलांक अभिप्रेत हैं यह जानना कठिन है, तथापि काव्यशास्त्रमें १ देखो ‘पत्तनस्थजैनभाण्डागारीयसूचि ' (ओरिएण्टल इन्स्टिटयूट, बड़ौदा प्रकाशित) पृ. ५० । Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५७ स्मृत शीलांक ऐसे होने चाहिए जो व्याकरण, काव्य, कोश, चरित्र आदिके रचयिताके रूपमें ख्यातनाम हो । यह तर्क हमें ऐसी सम्भावनाकी ओर ले जाता है कि लेखकको शीलांक पदसे शायद चउप्पन्नके रचयिता शीलांक अभिप्रेत हो' । प्रस्तावना ग्रन्थगत सांस्कृतिक सामग्री शालवाहनकी सभा शतशः कवियोंसे शोभित होती होगी, अर्थात् वह अत्यन्त विद्याप्रिय राजा होगा - यह बात पृ. १३८ के अन्तमें आये हुए अटवीवर्णनके श्लिष्ट प्रयोगसे ज्ञात होती है । उसमें कहा है- 'सालवाहनत्थाणि जइ सिय कइसयसंकुल' इसमें अटवीके पक्षमें 'कइसयसंकुल' का अर्थ है कपिशतसंकुला तथा शालवाहनकी सभाके पक्षमें अर्थ कविशतसंकुला । सरस्वती नदीके किनारे पर बसे हुए सिणवल्लिया नामक गाँवके पास ( ' पत्तो सररसईए तीरासण्णं सिणवल्लियाहिहाणं गामं ति' पृ. १८६ ) जरासंघको हराकर यादवोंने विजयके उत्साहमें आकर आनन्द मनाया और उसके स्मारकके रूपमें आनन्दपुर नामक नगर ( आधुनिक वडनगर ) बसाया । वहाँ उन्होंने 'अरहंतासणय' नामक एक चैत्य भी बनवाया था, जो ग्रन्थकार शीलांकके समय में विद्यमान था । वह पाठ इस प्रकार है- “ तओ भत्तिन्भरनिब्भरेहिं जायवणरिंदेहिं तत्थ भयवं निवेसिऊण अरहंतासणयाहिहाणमाययणं कारियं, आणंदपुरं च णिविट्टं । अज्ज वि तत्थ पसिद्धं पञ्चक्रखमुवलक्खिज्जइति ।" पृ. १८९ । वर्धमानस्वामिचरितमें सूचित गोसाल, विसाल, विसाहिल, पारासर (पृ. ३०४ ) आदिके मंत्र, तंत्र, इन्द्रजालमें नैपुण्य से, बिद-यूकातापस (पृ. २८१ ) एवं गोसालकके (पृ. ३०६-७ ) तेजोलेश्याके प्रसंगसे तथा अस्थिकनागराजप्रस्ताव (पृ. २७५ )में आनेवाले हड्डियोंके मन्दिरके उल्लेखसे ऐसा ज्ञात होता है कि आजसे ढाई हजार वर्ष पहले वर्धमानस्वामी के समयमें भारतके विविध परिव्राजकोंमें तांत्रिक विद्याका ठीक ठीक प्रसार होगा । उस समय हरी या सूखी शैवालके अतिरिक्त किसी भी पदार्थका आहार न करनेवाले सैकड़ों तपस्वी विद्यमान थे (पृ. ३२३ ) । सिंहलद्वीप ( श्री लंका) में राज्यधर्म बौद्ध था इसका उल्लेख भी पृ. १५४में मिलता है । इतिहासप्रसिद्ध नालंदा के लिए ग्रन्थकारने यहाँ 'णागलंद' शब्दका प्रयोग किया है। इसके आधार पर नालंदाकी व्युत्पत्ति इस प्रकार बताई जा सकती है- णागलंद ८ णायलंद ८ णाअलंद ८ णालंद ८ णालंदा । पाठान्तर में 'णागलिंद' शब्द भी मिलता है । यह णागलंद राजगृहकी एक बहिर्भूमि थी ऐसा भी इसमें कहा गया है । वह पाठ इस प्रकार है। 'तत्थ णागलंदणामाए पुरबाहिरियाए एकते पेच्छिऊग अवायपरिवज्जियं वसहिं संठिओ सव्वराइयं पडिमं ।' पृ. २८० पृ. १६६ में चिलिस और डोड नामकी जातियोंका उल्लेख आता है । काशीदेशमें खाद्य सामग्रीकी विपुलताका निर्देश इस प्रकार आता है- 'अस्थि इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे कासी णाम जणवओ पउरजण - धणसमाउलो पमुइयगामिणयजणजणियहरबोलो अजत्तसंपजंतसासच्छेत्तरमणिजो । अवि य -- सइ जत्थ व तत्थ व जह व तह व संपडइ भोयणमणग्धं । दारिदघरेसु वि पंथियाण दहि- सालि- कूरेण ॥ (पृ. ८६ ) १ प्रस्तुत उपन्नमहापुरिसचरियके अन्तर्गत जो विबुधानन्द नामक नाटक आता है उसका अलगसे सम्पादन करके प्रो. पुरुषोत्तमदास जैन ने १९५५ ई. में दरियाना बुक डिपो, रोहतकसे प्रकाशित किया है। उसमें भी ग्रन्थकारके विषयमें पुरातत्त्वाचार्य मुनिश्री जिनविजयजी सम्पादित जीतकल्पसूत्रकी प्रस्तावनासे विशेष जानकारी नहीं मिलती । For Private Personal Use Only Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपमहापुरिसचरिय अर्थात् यहाँ जम्बूद्वीपके भरतक्षेत्रमें प्रचुर जन एवं धनसे युक्त, प्रमुदित ग्रामजनोंकी ऊँची आवाजवाला तथा जिसके खेतोंमें बिना प्रयत्नके ही धान्यकी निष्पत्ति होती है ऐसा काशी नामका देश आया हुआ है । उस देशमें सर्वत्र और सब समय दरिद्रोंके घरमेंसे भी मुसाफिरोंको दही-चावलका श्रेष्ठ भोजन निरन्तर मिलता है । ५८ इसके अतिरिक्त कृषिप्रधान भूमिके अर्थमें घटित हो सके ऐसा काशीदेशका दूसरा नाम कासभूमी (पृ. २१२ )भी यहाँ उपलब्ध होता है । इसमें भिन्न भिन्न विषयोंके प्राचीन शास्त्र तथा उनके प्रणेताओंके जो नाम मिलते हैं वे इस प्रकार हैं भरतका नाट्यशास्त्र, समुद्रका पुरुषलक्षणशास्त्र, चित्ररथका संगीतशास्त्र, नग्गइका चित्रकलाशास्त्र, धन्वन्तरिका आयुर्वेदशास्त्र, शालिभद्रका अश्वशास्त्र, विहाणका द्यूतशास्त्र, बुम्बुहका हस्तिशास्त्र, अंगिरसका युद्धशास्त्र, शबरका इन्द्रजालशास्त्र, arrant स्त्रीलक्षणशास्त्र, सेनापतिका शकुनशास्त्र, गजेन्द्रका स्वप्नलक्षणशास्त्र, नलका पाकशास्त्र और विद्याधरका पत्र - छेद्यशास्त्र (पृ. ३८ ) । प्रस्तुत ग्रन्थकार के पूर्व एवं अर्वाक्कालीन अनेक विद्वानोंने पादलिप्तसूरिकृत तरंगवतीकथाको एक सर्वोत्कृष्ट साहित्यिक कृति कहा है । हमारे ग्रन्थकारने भी तरंगवती एवं आदि शब्दसे उस कक्षाकी अन्यान्य कृतियोंका स्मरण नीचेकी गाथामें किया है सा णत्थि कला तं णत्थि लक्खणं जं ण दीसइ फुडत्थं । पालित्तया इविरइयतरंगमइयाइसु कहासु ॥ (पृ. ३८ ) अर्थात् ऐसी कोई कला या लक्षण नहीं है जिसका अर्थ पादलित आदि विद्वानों द्वारा रचित तरंगवती आदि कथाओं में स्फुट न हुआ हो । मतलब कि तरंगवती आदि कथाएँ कलाशास्त्र एवं लक्षणशास्त्र से सर्वांग संपूर्ण थीं । ------ पृ. १०६ में मणि आदिके जलसे सर्व प्रकार के विषोंके मारणका उल्लेख आता है । कुक्कुडसप्प ( कुर्कुटसर्प ) एक ऐसा सर्प है जो उड़ता हो। ऐसे सर्पका उल्लेख २५० वे पृष्ठ पर आता है । उसमें कही गई एक योजनकी लम्बाईको अतिशयोक्ति मानें, तो भी इतना तो कहा जा सकता है कि इस प्रकारके प्राणिविज्ञानकी जानकारी अथवा तो कल्पना प्राचीनकालमें थी । बन्दरमें भी बुद्धिशक्ति और औषधोंके गुण-दोषका ज्ञान होता है यह बात पृ. ६० पर आती है 1 इसे भी प्राणिविज्ञानकी जानकारी कह सकते हैं । ऐसी भी धूप बनती थी जिससे कि सूँघनेवाले मनुष्यकी मृत्यु हो जाय (पृ. ३० ) । वर्ण-परावर्तन एवं चैतन्याच्छादन ( अचेतनकी भाँति निश्चेष्ट हो जाना ) के लिए विविध प्रकारकी गुटिकाओं का उपयोग होता था । यह बात पृ. १५४ तथा २२७-२८ में आती है । जैन आगमों के भाष्यों तथा व्याख्या- ग्रन्थोंमें भी स्वरभेद एवं वर्णभेदकारक गुटिकाओं का उल्लेख प्रचुरमात्रामें मिलता है । सम्पन्न व्यक्तिमें स्वाभाविक रूपसे समुन्नत मानव-सभ्यता के दर्शन होने चाहिए । इस वस्तुका प्रतिपादन धन सार्थवाहके एक प्रसंग पृ. ( ११ ) में उपलब्ध होता है वह प्रसंग इस प्रकार है धन सार्थवाहके एक प्रधान कर्मचारीसे एक वणिक् ईर्ष्यावश पूछता है कि तुम्हारे सार्थवाहके पास कितना धन है ? उसमें कैसे-कैसे गुण हैं ? वह क्या दे सकता है ? तब माणिभद्र अपने सेठका परिचय देते हुए कहता है कि हमारे स्वामिमें एक ही वस्तु है और वह है विवेकभाव और जो एक वस्तु नहीं है वह है अनाचार । अथवा दो वस्तुएँ हैं; परोपकारिता तथा धर्मकी अभिलाषा; जो दो वस्तुएँ नहीं हैं; गर्व एवं कुसंसर्ग । अथवा तीन वस्तुएँ उनमें हैं और तीन नहीं हैं। उनमें कुल, शील एवं रूप हैं, जबकि दूसरेको नीचा दिखाना, उद्धतता और परदारगामित्व नहीं हैं । अथवा उनमें धर्म, अर्थ, काम For Private Personal Use Only Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना और मोक्ष ये चार वस्तुएँ हैं, जबकि फलकी अभिलाषा, बड़प्पनकी भावना, विषयांधता एवं दुःखीको दुःखी करना ये चार बातें नहीं हैं । अथवा उनमें पांच बातें हैं और पांच बातें नहीं हैं । ज्ञान, विज्ञान, विनय, कृतज्ञता और आश्रितोंका पोषण ये पाँच बातें हैं, जबकि दुराग्रह, असंयम, दीनता, अनुचित व्यय और कर्कश भाषा ये पाँच बातें नहीं हैं । बड़े-बड़े व्यापारी जब व्यापारके लिए प्रवास करते तब ऐसी घोषणा करवाते कि जिसको आना हो वह अमुक दिन और अमुक स्थान पर तैयार होकर आ जाय। ऐसा प्रवासी जनसमूह सार्थ और उसका मुख्य पुरुष सार्थवाह कहलाता था । ऐसे सार्थोंमें त्यागी एवं धर्मयात्रा करनेवाले भी जाते थे, छोटे व्यापारी भी जाते थे और उन्हें व्यापारके लिये सहायताकी आवश्यकता होती तो सार्थवाह वैसी सहायता देता भी था । इस प्रकारके सार्थका वर्णन इसके १० वें पृष्ठ पर आता है। इसके ७ वें पृष्ठ पर एक सेठने अपने पुत्रको जो शिक्षा दी है वह अत्यन्त प्रेरक है। वह शिक्षा देते हुए कहता है कि-हे पुत्र, सर्वकलाओंमें कुशल, विनीत तथा सादी वेशभूषावाले तुझको कुछ कहने जैसा नहीं है तथापि अवसर आने पर गुरु जनको सनाथता बतलानी चाहिए-इस उक्तिके आधार पर कहता है कि हे पुत्र, हम कलासे जीनेवाले और अच्छे वेश एवं आचारवाले वणिक हैं। हमारी युवावस्था भी वृद्ध-स्वभाव जैसी होनी चाहिए, सम्पत्ति उद्धट वेशवाली नहीं होनी चाहिए. अन्य लोग जान न सकें ऐसा हमारा रतिसम्भोग होना चाहिए तथा हमारे दानकी खबर बहुत लोगोंको नहीं होनी चाहिए। इस उद्धरणसे प्राचीन समयमें सम्पन्नवर्गकी जीवनकला कैसी होती थी वह ज्ञात होता है । सम्पन्न वर्गके साथ असम्पन्न वर्ग अवैमनस्य, सहयोग एवं पारस्परिक स्नेहसंबंधसे रहे इसके लिये सुखी वर्गकी जीवनपद्धतिके ऊपर यह बात ठीक-ठीक प्रकाश डालती है। दसवें पृष्ठकी २८ वी गाथामें कहा है कि स्वामि, नौकर तथा सामान्य जनताके घर एक जैसे थे। यह बात सर्वोदय अथवा समानवाद का आदर्श सूचित करती है। ____ आजसे लगभग ढाई हजार वर्ष पहले भगवान् बुद्ध और भगवान् महावीरके समयमें अपहृत स्त्रियों का विक्रय होता था और उसमें बेचनेवालेको कोई भी राजकीय अथवा व्यावहारिक नियम बाधक नहीं होता था । मानवदेहके अपहरण एवं विक्रयका एक उदाहरण यहाँ (पृ. २८९) वसुमती-चन्दनबालाके प्रसंग द्वारा प्रस्तत किया गया है। नगरीको विजेताकी आज्ञासे कोई भी लूट सकता था, और इसीलिए रक्षणार्थ भागती धारिणी रानी तथा वसुमती राजकुमारीको एक कुलपुत्रक जबरदस्ती पकड़कर ले जाता है । शोकसे रानीकी तो मृत्यु हो जाती है, किन्तु वसुमतीको कोशांबीमें लाकर वह बेच डालता है। संस्कृतिकी दृष्टिसे यह एक निन्दनीय बात है। पृ. ४७ में उत्तम, मध्यम एवं अधम इस प्रकार तीन तरहके युद्ध बतलाये हैं। दो प्रतिस्पर्धी राजा सैन्यका संहार रोकनेके लिए परस्पर दृष्टियुद्ध अथवा मल्लयुद्ध करते थे। इन दो प्रकारों से प्रथम उत्तम और द्वितीय मध्यम युद्ध कहलाता था। रणभूमिमें दो प्रतिस्पर्धी राजाओंके सैन्य विविध आयुधोंसे जो युद्ध करते वह अधम कोटिका समझा जाता था। संस्कृतिकी दृष्टिसे यह अत्युत्तम प्रथा है। ___आज लोकव्यवहारमें भी प्रथम कन्याको लक्ष्मीरूप मानकर अपनाया जाता है । इस प्रथाका निर्देश इसमें भी है । इसमें कहा है कि-' पढमा य पत्थणा, ता ण जुज्जइ वयणमण्णहाकाउं राइणो' । (पृ. २३) अर्थात् (कन्याके विषयमें ) पहली प्रार्थना है, अतः राजाका (कन्यादान देनेका) वचन अन्यथा करना उचित नहीं है। हाथमें पानी लेकर कन्याकी सगाई करनेकी प्रथा प्राचीन समयमें व्यापक अथवा प्रदेशान्तरमें प्रचलित होगी। यह बात 'जओ अहं अम्मापितीहि तरस पुत्वं उदयदाणेण दिण्णा' (पृ. १४१) से जानी जाती है। Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउप्पन्नमहापुरिसचरिय ब्रह्मदत्तके विवाहके लिए कन्याको वरपक्षके नगरमें लाया गया है । (पृ. २२०) इस परसे सूचित होता है कि कहींकहीं कन्याको वर पक्षके गाँवमें लाकर उसका विवाह करनेकी प्रथा रही होगी। वस्तुतः यह प्रथा अब भी कई जातियोंमें प्रचलित है। योग्य पतिकी प्राप्तिके लिए कामदेवका पूजन (पृ. ११०) तथा यक्षकी आराधना (पृ. २३२) करनेकी प्रणालिका थी ऐसा यहाँ आये हुए वर्णनोंसे ज्ञात होता है। पृ. ३१९ में नगरके द्वारपाल देवताकी यात्राके त्यौहारका उल्लेख आता है। भारतके प्राचीन कथासाहित्यमें कई कथानायक अनेक स्त्रियोंके साथ विवाह करते दिखाये गये हैं। इसी प्रकार यहाँ भी कई कथाओंमें देखा जाता है। ये कथाएँ उस कालमें लिखी गई थीं जब बहु-पत्नीत्व सामाजिक गौरव एवं पुण्यका सुफल माना जाता था। आज इस विचारधारामें परिवर्तन हो गया है। 'अण्णया य वरधणुणो दिवसो त्ति पयप्पियं भोज, भुंजंति बंभणादिणो' (पृ. २३७) तथा 'तुमं बंभणो णिमंतिओ महयालदिवसेसु पुण्णभदेण सेट्ठिणा (पृ. ११३)- इन अवतरणोंसे श्राद्धके दिन ब्राह्मणभोजकी प्रथाकी व्यापकता जानी जा सकती है। 'तत्थ य हट्टमझदेसम्मि चच्चरे कहएणं कहागयं कहतेणं पढियं गाहाजयलं' (पृ. ११३)-इस उद्धरणसे चौक-चौराहों पर रामायण आदिकी कथा कहनेकी जो प्रथा प्राचीन हजारों वर्षों से चली आ रही थी वह ग्रन्थकारके समयमें भी विद्यमान थी और आज भी है। इस ग्रन्थमें यद्यपि खाद्य पदार्थोंके अनेक नाम उपलब्ध नहीं होते, फिर भी कूर, दाली, सालणय, पक्कण्ण और तिम्मण इतने नाम तो मिलते हैं (पृ. ३२५)। पृ. २२८, गाथा १२८-३१ में कापालिकका वर्णन आता है। कापालिक साधु मानव-मुण्डोंकी माला धारण करते थे, भिन्न-भिन्न प्रकारके चीथड़ोंसे उनकी छाती बँकी रहती थी जिससे वे भयंकर मालूम होते थे, मस्तक पर विविध पक्षियोंके पंख रखते थे, हाथसे वे डमरुवादन करते थे और मदिरापानसे उनकी आंखें नशीली लगती थीं। कापालिकोका ऐसा भीमरूप प्राचीन कथासाहित्यमें प्रायः उपलब्ध होता है। आमलखेड्डु नामक बालक्रीडाका तथा खेलमें विजित बालकको पराजित बालक अपनी पीठ पर लेकर घूमे इस प्रकारके खेलका निर्देश पृ. २७१-२ पर आता है। सम्पन्न युवक लाखो रुपयोंकी होड़ लगाकर मुर्गाको लड़ाते थे-इसका उल्लेख पृ. २२९ के कथाप्रसंग परसे जाना जा सकता है। पुष्पमालाके गुच्छोंमें हंस, मृग, मयूर, सारस, कोकिल आदिकी आकृतियोंका गुम्फन किया जाता था- यह बात पृ. २११ को देखनेसे ज्ञात होती है । __ पृ. २० में आये हुए वर्णनसे राजकुमारीकी चित्रकलाकी निपुणता विदित होती है । पृ. ७६ में रानीकी दिनचर्यामें शुक-सारिकाकी सम्भालके अतिरिक्त चित्रकलाका भी उल्लेख है। इसी प्रकार पृ. १५५ में राजकुमारीकी चित्रकला एवं संगीतकी उपासनाका निर्देश है । यह बात उस समयके संभ्रान्त कुलकी महिलाओंकी रुचिकी सूचक है। स्त्रीयोंकी ६४ कलाओंमें इनकी परिगणना की गई है। Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना नृत्ययुक्त गीतके हिन्दोल नामक प्रकारका उल्लेख पृ. १९० में आता है । इसके अतिरिक्त चर्चरी गीत( गुजराती चाचर )का निर्देश भी पृ. १९१ में किया गया है । पुरुष भी सिर पर लम्बे बाल रखते थे (पृ. १२०)। पृ. २८९ में लीलायट्ठी (लीलायष्टि ) शब्द आता है। इससे ज्ञात होता है कि घूमने जाते समय शौकके लिए हाथमें छड़ी रखनेका रिवाज़ काफ़ी प्राचीन है। 'ढोकते कालः' के बदले 'ढोकते लग्नम्' (पृ. २५) बोलना चाहिए-इस कथनसे इस समय भी प्रचलित उस शाब्दिक वहमका सूचन होता है जिसमें किसी शब्द-प्रयोगको अमांगलिक समझकर उसका व्यवहार नहीं किया जाता और उसके स्थानमें उसी भावका सूचक कोई सांकेतिक शब्द रखा जाता है । जैसे गुजरातीमें 'दुकान वधावो' (दुकान बन्द करो), • साचवणुं साचवो' (ताला लगादो), 'दिवाने राणो करो' (दिया बुझा दो) आदि । तीर्थंकरकी माता जब सगर्भा होती है तब गर्भकी रक्षाके लिए देवियाँ आकर भूतिरक्षा, मंत्रौषधि आदि पलंग पर बाँधती हैं ऐसा पृ. २५८ में लिखा है। इस समय भी चाकू रखना, काला धागा बाँधना, यंत्रयुक्त तावीज़ पहनना आदि प्रथा प्रचलित है । इस प्रथाकी प्राचीनता इससे सूचित होती है। सार्थमें ऊँट, भैंसे, गधे आदिका उपयोग होता था (पृ. १६) तथा शीघ्र प्रवासके लिए ऊँटकी सवारी प्रसिद्ध थी (पृ. १३५)। दाम्पत्यजीवनमें विविध प्रहेलिकाएँ (पहेलियाँ ) भी आनन्द-विनोदका साधन बनती थीं। पृ. ११८ तथा १२० । ६४ कलाओंमें इनका भी एक कलाके रूपमें उल्लेख आता है। शकुन (पृ. १०१, १८७ ), मंत्रसाधना (पृ. ११९) तथा निमित्त (पृ. ५९, ६६, १८९ एवं २५८) ये तीनों बातें सामान्य लोकव्यवहारमें प्रचलित थीं। घनरथ राजाकी दो रानियोंमेंसे पउमावती रानीका नाम कहावली (पृ. १४९) में तथा त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरितमें प्रियमती मिलता है। इसी प्रकार त्रिषष्टि में शान्तिस्वामीके पूर्वभवसे सम्बद्ध कपोत-ओवालकका प्रसंग मेघरथके भवमें आता है, जबकि कहावली तथा इसमें (पृ. १४८-९) मेघरथके पूर्ववर्ती वज्रायुधके भवमें आता है। पृ. ७५ में तीर्थंकरके गर्भावतरणके पहले इन्द्र द्वारा गर्भशोधनकी बात आती है, जो नई मालूम होती है । ७८३ पृष्ठ पर आरम्भ-समारम्भवाले गृहस्थको दिया गया दान निरर्थक एवं बन्धहेतुक है ऐसा कहकर उसका कोई अनर्थ न करे इस दृष्टिसे उसी पृष्ठ पर 'अनुकम्पा-दानका तीर्थंकरोंने कहीं भी निषेध नहीं किया' ऐसा सूचित किया है । इसमें ग्रन्थकारकी दीर्घदर्शिता प्रकट होती है । स्वयं तीर्थकर भी एक वर्ष तक आरम्भयुक्त गृहस्थको दान देते हैं । इसका निषेध तो किया ही नहीं जा सकता | अतः गृहस्थको दान न देनेके सूचक वाक्योंके आधार पर कोई निर्णय कर लेना अनुचित है । अनुकम्पा और मानम-प्रेम ही दानको आधारशिला है। बीस स्थानकोंमेंसे किसी एक अथवा एकाधिककी आसेवनासे तीर्थंकर नामकर्मका बन्ध होता है ऐसा सामान्यतः समझा जाता है । यहाँ पर भी उसका निर्देश है, फिर भी एक स्थान पर (पृ. २५६) सोलह स्थानकोंमेंसे अन्यतरकी आसेवनासे तीर्थंकर नामकर्मका बन्ध होता है ऐसा भी लिखा है। भगीरथने नागबलि एवं नागपूजाका प्रारम्भ किया तथा मृत व्यक्तिकी अस्थियोंके विसर्जनकी प्रथा चलाई पृ. ७१ । Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चप्पन्न महापुरिसचरिय ऋणस्वीकार प्रस्तुत ग्रन्थका समर्पण मैंने माननीय राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्रप्रसादजीको किया है । इसके लिये उन्होंने कृपापूर्वक जो अनुमति दी है एतदर्थ मैं उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करता हूँ । ६२ प्रस्तुत संपादनमें प्रयुक्त दूसरी सुसंज्ञक प्रति स्व. सूरिसम्राट् विजयनेमिसूरीश्वरजोके भंडारकी है। जो इनके शिष्य-प्रशिष्य आचार्य श्रीविजयोदयसूरिजी तथा आचार्यश्रीविजयनन्दनसूरिजी की कृपासे हमारे पास लंबे समय तक रही । वि. सं. १९९८ में पुरातत्त्वाचार्य मुनिश्री जिनविजयजीके साथ जेसलमेर में रहकर प्रस्तुत ग्रंथका सर्वप्रथम परिचय प्राप्त करनेका सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ था । जे संज्ञक प्रतिकी पाण्डुलिपि उन्होंने पू. पा. मुनिश्री पुण्यविजयजीको दी थी, जो मुझे मिली । एतदर्थ मैं उक्त आचार्योंके प्रति हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ । पूज्यपाद आगमप्रभाकर मुनिश्री पुण्यविजयजीके विषयमें तो मैं क्या लिखूं ? इस ग्रन्थके सम्पादनमें उद्भूत शंकासमाधानमें तथा प्रूफ आदिके देखनेमें उनकी जो अमूल्य सहायता मुझे मिली है उसके लिए मैं किन शब्दों में उनके प्रति अपना आभार व्यक्त करूँ ? बचपनसे लेकर आज दिन तक मुझ पर उनके अनेक ऋणोंका कोमल-मधुर भार सदैव लदता रहा है । हृदयमें एकमात्र यही आकांक्षा बनी रहती है कि ज्ञानयोगी इन गुरुवरेण्यका ऋणभार सदा वृद्धिंगत होता रहे ! इस भार मैं एक प्रकारके मानसिक हल्केपन और प्रसन्नताका अनुभव करता रहा हूँ । इस प्रस्तावना को सुव्यवस्थित करनेमें भारतीय दर्शनशास्त्रोंके गहरे अभ्यासी पण्डित प्रवर श्रीदलसुखभाई मालवणयाने तत्तत्स्थानों में परामर्श करके मुझे मार्गदर्शन कराया एवं प्रस्तावनाके आखिरी प्रूफ देखनेमें जो कष्ट उठाया है इसके लिए मैं उनका अत्यन्त आभारी हूं। इस प्रस्तावनाका हिन्दी भाषान्तर ( इस पेरग्राफके सिवाय ) जैन शास्त्राचार्य प्राध्यापक श्रीशान्तिलाल भाईने किया है एतदर्थ मैं उनका भी ऋणी हूँ । अन्तमें इसके प्रकाशक प्राकृत टेक्स्ट सोसायटीके प्रति मैं आभार प्रदर्शित करना अपना कर्तव्य समझता हूँ । भारतीय संस्कृति एवं मनीषाके अंगभूत प्राकृत जैन ग्रन्थोंके प्रकाशनका भगीरथ कार्य इस संस्थाने अपने ऊपर लिया है । हमारे राष्ट्रपति पूज्य राजेन्द्रप्रसादजीको सत्प्रेरणा से यह संस्था अपने अभीप्सित कार्यमें अवश्य सफल होगी ऐसी आशा रखता हूँ । ता. २६ जनवरी १९६१ प्राकृत ग्रन्थपरिषद् जैनउपाश्रय, लुणसावाडा अहमदाबाद विद्वज्जनविनेय पं. अमृतलाल मोहनलाल भोजक Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'चउप्पन्नमहापुरिसचरिय'स्य विषयानुक्रमः पत्राङ्कः विषयः कथापीठम् । १-५ मंगलम् । ss occw ३४ ३८ ९-१० सज्जन दुर्जनविवेकः । षड्विधाः पुरुषाः । अभिधेयम् । अलोक-लोकवर्णनम् । कालवर्णनम् । [१] १-२ ऋषभस्वामि-भरतचक्रवर्तिचरितम् । ६-५० सप्त कुलकराः । ६-१० वणिजां जीवनकला । अल्पानुभावकल्पवृक्षवर्णनम् । त्रिविधा दण्डनीतयः । ऋषभस्वामिप्रभृतीनां पूर्वभवाः । १०-३४ ऋषभस्वामिनो धनसार्थवाह-युगलिक सौधर्मदेवात्मकं भवत्रयम् । १०-१६ सार्थगमनोद्घोषणा। सार्थवाहस्य गुणाः । श्रमणानां प्राभातिकी चर्या । १३ साधुसमुदायवर्णनम् । सम्यक्त्वम् । १४-१५ सार्थप्रयाणम् । ऋषभस्वामिनो महाबलाख्यश्चतुर्थो भवः। १६-२८ विबुधानन्दं नाम नाटकम् । १७-२७ ऋषभस्वामिनो ललिताङ्गदेवाख्यः पञ्चमो भवः । २८-३० निर्नामिकाकथानकम् । २९-३० ऋषभस्वामिनो वज्रजङ्घ-सौधर्मदेवभवी षष्ठ-सप्तमौ । ० जीवानन्दवैद्यभवोऽष्टमः । ३१- २ विषयः पत्राङ्कः ऋषभस्वामिनो बज्रनाभचक्रि-सर्वार्थसिद्ध विमानदेवभवौ नवम-दशमौ । ३२-३४ तीर्थकरनामकर्मबन्धनिमित्तभूतानि विंशतिस्थानकानि । ३३ ऋषभस्वामिनो जन्म। ,, जन्मोत्सवः । ३४-३७ इक्ष्वाकुवंशस्थापना । ऋषभस्वामिनो विवाहों राज्याभिषेकश्च । ३७ विनीतानगरीस्थापना, भरत-बाहुबलि-ब्राह्मी सुन्दरीप्रभृतीनां जन्म च । लिपि-कला-लक्षणशास्त्रादीनां प्रादुर्भावः, कालान्तर भूततत्तच्छास्त्रनिर्मातृनामकथनं च । ३८ अष्टादश लिपयः, गणितसंख्याश्च । ३८-३९ द्वि-त्रि-चतुः-विंशतिप्रकारा वर्णाः । ३९ ऋषभस्वामिनो दीक्षा, पञ्चमुष्टिलोचश्च । ४० पारणम् , बाहुबलिकृतं धर्मचक्रं, केवलज्ञानोत्पत्तिश्च । मरुदेव्याः केवलज्ञानं निर्वाणं च । ४२ गणधरस्थापना, बाह्मीप्रवाजना च । भरतस्य विजययात्रा, नव निधयश्च । ४३-४४ भरत-बाहुबलिनोर्युद्धम् । ४६-४७ बाहुबलिनो दीक्षा, केवलज्ञानं च । ४८-४९ मरीचेर्भागवतलिङ्गप्रवर्तापनम् , ऋषभस्वामिनिर्वाणं च । ४९ भरतस्य केवलज्ञानं निर्वाणं च । [२] ३ अजितस्वामिचरितम् । ५१-५४ नरकवर्णनम् । सम्यक्त्वदौर्लभ्यम् । सम्यक्त्वस्थैर्ये मुग्धभट्टकथानकम् । ५३-५४ [३] ४ सगरचक्रवर्तिचरितम् । ५५-७१ चक्रवर्तिनश्चतुर्दश रत्नानि । ४२ ५० ५२ Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૬૪ विषयः दुःशीलभार्याजनितवैराग्ये वरुणवर्म कथानकम् (आत्मकथा ) | सगरपुत्राणां स्वैरविहारः, अष्टापद परिखाखननम्, नागकुमारैर्दहनं च । ६२-६४ ब्राह्मणेन युक्तिपूर्वकं सगरस्य पुत्रमरण कथनम्, तच्छोक-समाश्वासने च । ६५-७० भागीरथेन गङ्गायाः समुद्रनयनम्, गङ्गाया भागीरथी - जाह्नवी नामकरणम्, मृतास्थिजलविसर्जनप्रणालिकाप्रारम्भश्च । [४] ५ सम्भवस्वामिचरितम् । समवसरणरचना | अष्टप्रकार कर्मबन्धकारणानि । [५] ६ अभिनन्दनस्वामिचरितम् । [६] ७ सुमतिस्वामिचरितम् । सुमतिस्वामिनः पूर्वभवः । दानादिचतुर्विधधर्मप्ररूपणा, प्रव्रज्यादौष्कर्यं च । शुभाशुभकर्मबन्धोदयप्ररूपणा । [७] ८ पद्मप्रभस्वामिचरितम् । समवसरणस्थजीवानां वैराभाववर्णनम् । चतुर्विधदेवनिकायवर्णनम् । [८] ९ सुपार्श्वस्वामिचरितम् । अष्टप्रकार कर्मसंक्षिप्तवर्णना । [९] १० चन्द्रप्रभस्वामिचरितम् । वसन्तवर्णनम् । लोकान्तिकदेवप्रबोधनम् । सिद्धिक्षेत्रवर्णनम्, सिद्धस्वरूपं च । [१०] ११ पुष्पदन्तस्वामिचरितम् । [११] १२ शीतलस्वामिचरितम् । [१२] १३ श्रेयांसस्वामिचरितम् । ग्रीष्मवर्णनम् । जीवा - sजीवभेदाः । चउत्पन्नमहापुरिसचरिय पत्राङ्कः ५७-६२ ७१ ७२-७४ ७३ ७३-७४ ७५ ७६-८२ ७६-७९ ७७-७९ ८०-८१ ८३-८५ ८३ ८४-८५ ८६-८७ ८६ ८८-९० ८८ ८८-८९ ८९-९० ९१ ९२ ९३-९४ ९३ ९४ विषयः [१३] १४-१५ त्रिपृष्ठवासुदेव-अचलबलदेवचरितम् । सिंहव्यापादनम् । त्रिपृष्टस्य मरीच्यादि - विशाखनन्द्यन्ताः पूर्वभवाः । अश्वग्रीवेण सह त्रिपृष्ठस्य युद्धम्, अश्वग्रीवपराजयश्च | [१४] १६ वासुपूज्यस्वामिचरितम् । [१५] १७ - १८ द्विपृष्ठवासुदेव-विजयबलदेवचरितम् । [१८] २२ अनन्तजित्स्वामिचरितम् । लोकान्तिक प्रतिबोधना । ९५-१०३ ९६ १०५-११४ विजयाचार्यकथानकम् (आत्मकथा) । १०६ - ११४ [१६] १९ विमलस्वामिचरितम् । मोक्षमार्गप्ररूपणा । ११५-१६ [१७] २० - २१ स्वयम्भुवासुदेवभद्रबलदेवकथानकम् । [१९] २३-२४ पुरुषोत्तमवासुदेव- सुप्रभबलदेवचरितम् । मधु-कैटभाभ्यां पुरुषोत्तमस्य युद्धम् । पत्राङ्कः ९७-१०० १०१-१०२ १०४ ११७-१२८ मुनिचन्द्रमुनिकथानकम् (आत्मकथा) । ११७- १२७ मानवभवदुर्लभता । ११९ १२९-३० १२९ 19 महेन्द्र सिंहस्य सनत्कुमारान्वेषणार्थं परिभ्रमणम । सनत्कुमारेण सार्धं महेन्द्रसिंहस्य मेलापकः, सनत्कुमारयात्रावृत्तान्तश्च । १३१-३२ १३२ १३३ [२०] २५ धर्मतीर्थकरचरितम् । [२१] २६ - २७ पुरुषसिंहवासुदेवसुदर्शनवलदेवचरितम् । [२२] २८ मघवचक्रवर्तिचरितम् । १३४-३६ १३७ [२३] २९ सनत्कुमारचक्रवर्तिचरितम् । १३८ - १४५ विपरीतशिक्षिताश्वकृतं सनत्कुमारापहरणम् । १३८ १३८--४० १४०-४२ Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विषयानुक्रमः ६५ पत्राङ्कः विषयः इन्द्रकृता सनत्कुमाररूपप्रशंसा, अश्रद्दधानदेवागमनम् , रूपभ्रंशात् सनत्कुमारस्य संवेगश्च । १४२-४३ रोगग्रस्तसनत्कुमारमुनि-सौधर्मेन्द्रप्रसङ्गः । १४४ [२४] ३०-३१ शान्तिस्वामितीर्थकर चक्रवर्तिचरितम् । शान्तिस्वामिनः पूर्वभवाः । १४६-४९ ३२-३३ कुन्थुस्वामितीर्थकरचक्रवर्तिचरितम् । १५२ [२६] ३४-३५ अरस्वामितीर्थकरचक्रवर्तिचरितम् । १५३-६३ वीरभद्रकथानकम् । १५३-६२ [२७] ३६-३७ पुण्डरीकवासुदेव-आनन्द बलदेवचरितम् । [२८] ३८ सुभूमचक्रवर्तिचरितम् । १६५-६७ [२९] ३९-४० दत्तवासुदेव-नन्दिमित्रबलदेवचरितम् । १६८ [३०] ४१ मल्लिस्वामिचरितम् । १६९-७१ [३१] ४२ मुनिसुव्रतस्वामिचरितम् । १७२-७३ अश्वस्य सम्यक्त्वग्राप्तिः, तत्पूर्वभववृत्तान्तश्च । १७३ [३२] ४३ महापद्मचक्रवर्तिचरितम् । १७४ [३३] ४४-४५ रामबलदेव-लक्ष्मणवासुदेवचरितम् । १७५-७६ [३४] ४६ नमिस्वामिचरितम् । १७७ [३५] ४७ हरिषेणचक्रवर्तिचरितम् । १७८ [३६] ४८ जयचक्रवर्तिचरितम् । । [३७] ४९-५१ अरिष्टनेमि-कृष्णवासुदेव बलदेवबलदेवचरितम् । १८०-२०९ हरिवंशोत्पत्तिः । १८१ कुरुवंशोत्पत्तिः । १८२ राजनीतेश्चत्वारो नयाः । १८५ युद्धवर्णनम् । १८६-८९ विषयः पत्राङ्क जयोत्साहो नगरप्रवेशोत्सववर्णनं च । १८९-९० वसन्तवर्णनम् । १९०-९२ अरिष्टनेमेदर्दीक्षा-केवलज्ञानावाप्ती, उज्जयन्तवर्णनं च । १९३-९४ वसुदेवस्य पुत्रषट्कवृत्तान्तः । १९५-९८ द्वारिकानिर्णाशः । १९९-२०० कृष्णवासुदेवस्य मृत्युः । २०२ सिद्धार्थदेवकृता बलदेवप्रतिबोधना, बलदेवस्य दीक्षाग्रहणं च । २०३-४ पाण्डवानां प्रव्रज्या, अरिष्टनेमेनिर्वाणं च । २०५-६ सौन्दर्यमुग्धवनितासमूहव्यापाराः। २०७ बलदेव-वनच्छिन्दक-हरिणानां स्वर्गमनम्। २०८ [३८] ५२ ब्रह्मदत्तचक्रवर्तिचरितम् । (आत्मकथा) २०९-४४ ब्रह्मदत्तस्य जातिस्मरणम् । २११ चित्रमुनेर्जातिस्मरणम् । २१२ ब्रह्मदत्त-चित्रमुन्योः पूर्वभवाः । १२-१७ जतुगृहप्रज्वालनम्, ब्रह्मदत्त-वरधन्वोः पलायनम् ।२२० ब्रह्मदत्तस्य बन्धुमत्या सह विवाहः । २२१ " पुष्पवत्या सह गान्धर्व विवाहः । २२४ , श्रीकान्तया सह विवाहः । २२६ कुर्कुटयुद्धम् । २२९ ब्रह्मदत्त-रत्नवत्योर्मेलापकः, मगधापुरं प्रति पलायनं च । ब्रह्मदत्तस्य रत्नवत्या सह विवाहः । , मगधराजपुत्र्या सह विवाहः । २३९ ब्रह्मदत्तस्य श्रीमत्या, वरधनोर्नन्दया च सह विवाहः । २४० , कटकवत्या सह विवाहः २४१ , दीर्घराज्ञा सह युद्धम् , जयः, नगरप्रवेशश्च २४१-४२ [३९] ५३ पार्थस्वामिचरितम् । २४५-६९ पार्श्वस्वामि-कठतापसयोर्मरुभूति कमठादयः पूर्वभवाः २४५-५६ २३२ २३७ Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६ विषयः पत्राङ्कः २५९-६० चतुर्दशस्वप्नवर्णना, पार्श्वस्वामिजन्म च। २५७-५८ जन्माभिषेक-जन्मोत्सववर्णनम् । पार्श्वस्वामिनः प्रभावत्या सह विवाहः । वसन्तक्रीडा, लोकान्तिकदेव २६१ प्रार्थना, सूर्यास्त- चन्द्रोदयसूर्योदयवर्णनम् । 27 २६२-६५ २६६ पार्श्वस्वामिनो दीक्षा | मेघमालिकृतोपसर्गः । २६७-६८ पार्श्वस्वामिनः केवलज्ञानं, निर्वाणं च । २६८-६९ २७०-३३५ [४०] ५४ वर्धमानस्वामिचरितम् । गर्भापहरणम् । मेरुचालनम् । आमलकीक्रीडा । वर्धमानस्वामिनोऽनेक कन्यापरिणयनम् । दीक्षा | ब्राह्मणवस्त्रदानप्रस्तावः । बलिवर्दसमर्पकमूर्खगोपालप्रस्तावः । अस्थिकनागराजोपसर्गप्रस्तावः । उत्पल प्रस्तावः । अच्छन्दकप्रस्तावः । चण्डकौशिकप्रस्तावः । सुदादभुजगेन्द्रप्रस्तावः । पुष्य- पुरन्दरसंवादप्रस्तावः । गोशालानुगमप्रस्तावः । सङ्गमकामरजनितोपसर्गप्रस्तावः । वसुमतिसंविधानप्रस्तावः । चमरोत्पातसंविधानप्रस्तावः । गोवृत्तान्तपृच्छकगोपालकृतोप सर्गप्रस्तावः । केवलज्ञानोत्पत्ति- गणधरप्रवाजनाविधानप्रस्तावः । उत्पन्नमापुरिसच रिय 99 २७० २७१ २७१-७२ २७२ २७३ २७३-७४ २७४-७५ २७५ २७५-७६ २७६ २७६-७८ २७८-७९ २७९-८० २८०-८१ २८१-८९ २८९-९२ २९२-९७ २९७-१९ २९९-३०३ विषयः गणधरोत्पत्ति-मृगावतीप्रव्रज्या विधान प्रस्तावः । उदयनपरिस्थापनप्रस्तावः । शशि- सूर्यागमनप्रस्तावः । गोशाल सम्बोधनप्रस्तावः । प्रसन्नचन्द्रकेवलज्ञानोत्पत्तिप्रस्तावः । नन्दिषेण - मेघकुमारसंविधानप्रस्तावः कनक खलोत्पत्तिप्रस्तावश्च । ३०८-१५ श्रेणिककृतराज्यनिन्दाप्रस्तावो दर्दुराङ्कदेवप्रसङ्गश्च । अभयकुमारकृतश्रमणखििसनानिवारणाप्रस्तावः । गौतमस्वामिकृताष्टापदारोहणप्रस्तावः पुण्डरीकनृपदृष्टान्तश्च । दशार्णभद्रनिष्क्रमणप्रस्तावः । कुणाला व्याख्यानप्रस्तावः । वर्धमानस्वामिनिर्वाणप्रस्तावः । गौतम गणधर निर्वाणप्रस्तावः । ग्रन्थकारप्रशस्तिः । प्रथमं परिशिष्टम् । द्वितीयं तृतीयं चतुर्थ पश्चमं षष्ठं सप्तमं अष्टमं "" 77 " 97 " " 35 शुद्धिपत्रकम् । 卐 परिशिष्टानि पत्राङ्कः ३०३-४ ३०४-५ ३०५-६ ३०६-७ ३०७-८ ३१५-२० ३२०-२२ ३२२-२७ ३२८-३१ ३३१-३२ ३३३-३४ ३३४-३५ ३३५ ३३७-४७ ३४८-५६ ३५७-६० ३६१ ३६२ 17 ३६७-७८ ३७९-८० ३८१-८४ Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सीलंकायरियविरइयं चउप्पन्नमहापुरिसचरियं Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महापुरिसगाहाओ पत्राङ्कः गाथाङ्क: अब्भुद्धरणसमत्था जयम्मि जायंति ते महासत्ता । जेहिं परिगलियपावाई तक्खणं होति भुवणाई ॥ १३३ १ उप्पज्जइ को वि महाणिहि व्य परहियपसाहणुज्जुत्तो । णिद्दलियगरुयविग्योवसग्गवग्गो महासत्तो॥ २४५ १ उपज्जइ भवपकम्मि कोइ परहियणिबद्धववसाओ । तप्पंकंकविमुक्को कमलं पिव णिम्मलच्छाओ ॥ ८८ १ उप्पज्जति पयाणं पुण्णेहि महीए के वि सप्पुरिसा । कप्पतरुणौकुरा इव हियइच्छियदिण्णफलविवरा ॥ ७२ १ उप्पज्जंति पयाणं पुण्णेहिं जणम्मि ते महासत्ता । जे णियजसेण भुवर्ण भरंति णिव्ववियजियलोया ॥ ७६ १ कयसमकरण ण हु होइ णिव्वुई तेयणिज्जियजयाण । वायामेत्तुत्तविओ वि जेण पंचाणणो दलइ ॥ १६५ १ गब्भाहाणाउ च्चिय चिंधेहिं णिवेइया महासत्ता । जायंति केइ ते जेहिं णिव्यं जायइ जयं पि ॥ १५३ १ गुणिणो सुकुलसमुब्भवपरकजसमुज्जया महासत्ता । ते के वि जए जायंति जेहिं भुवणं अलंकरियं ॥ १४६ १ जे संसारालंकारकारणं महियलम्मि ते केइ । उप्पज्जंति सरूवेण पुण्णरासि व्व सप्पुरिसा ॥ ८६ १ जे होति महापुरिसा ते ठिइभंगं कुणंति ण कया वि । उवलद्धो कि केण वि मग्गुत्तिष्णो रहो रविणो ? ॥ ६३ ७२ जे होति महापुरिसा ते परकज्जुज्जया सया होति । णियकजं पुण तं ताण जं परत्थाण णिचहणं ॥ ११२ ६३ णिज्जियसेसुवमाणा परहियसंपाडणेकववसाया । जायंति महापुरिसा पयाण पुण्णेहिं भुवणम्मि ॥ ९२ १ ते केइ होति भुवणोवरम्मि कप्पतरुणो महासत्ता। जेसिं पारोहो वि हु परहियकरणक्खमो धणियं ॥ १८० १ दूरे पञ्चासत्ती दंसणमवि जस्स दुल्लहं होइ । संसारुत्तरणसहं णाम पि हु सो जए जियइ ॥ १२९ १ देवायत्ते जम्मम्मि कह णु गरुयाण फुरइ माहप्पं । ववसायसहाया तं कुणंति ते जं जणब्भहियं ॥ १६९ १ परजणहियत्थकज्जे समुज्जया जणियविविहविग्धा वि । णिव्याहंति च्चिय तं पुणो वि शूणं महापुरिसा ।। २७० परहियकज्जेक्करया चिंतामणिकप्पपायवब्भहिया । उप्पज्जति पयाणं पुण्णेहिं जए महापुरिसा॥ पुण्णेहिं पुण्णरासि व्व केइ कालकमेण जायंति । जाणुप्पत्तीए चिय भरहमिणं जायइ सणाहं ॥ १५२ १ पुबज्जियपुण्णविपच्चमाणवसजायगरुयमाहप्पा । ते केइ जए जायंति जेहिं भुवणं महग्यवियं ॥ ८३ पुव्बज्जियमुकयमहाफलोहसंभारभावियावयवा । ते होति कप्पतरुणो जेसिं छाया वि णिव्यवइ ॥ १७७ १ भुवणोयरम्मि वियडे भुवणऽन्भुद्धरणजायववसाया । उप्पज्जति सई चिय ते जेहि जयं महग्धवियं ॥ १७२ १ मुत्त व्व पुण्णरासी जयम्मि जायंति ते महासत्ता । जम्मेण जाण जायंति णिव्वुया सयलजियलोया ॥ १०४ १ संसारम्मि असारम्मि केइ ते णवर होंति सप्पुरिसा । जाण परमत्थकज्जुज्जयाण जम्मो सलहणिज्जो॥ ७५ १ मुहकम्मकंदवावियविसट्टसुहकिसलयाण गरुयाण । पुरिसाण संभवो ताण जाण उवमा ण संभवइ॥ ९३ १ ror ११५ Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ णमो त्यु णं पढमाणुओगधराणं ॥ सीलंकायरियविरइयं च उप्पन्नम हा पुरिस चरियं [कहापीढं] ॥ नमो अरहंताणं ॥ णमह जयमंगलहरे अणाइणिहणे अणंतवरणाणे । जोईसरे सरण्णे तित्थयरे पंतसुहकलिए ॥ १॥ पणमह णाहिणिमित्तुन्वहंतपमं अणण्णपैडिबुद्धं । कमलालयमजलमउबमुसहममिलाणकमलं व ॥ २ ॥ अवि य धम्मवरचक्कवट्टी पयडियसुर-णरय-मणुयसिवमग्गो । मह सामियो त्ति होही तिहुयणलच्छीए पेंडिबुद्धं ॥ ३ ॥ लच्छी कलाण कलिऊण अत्तणो कालमागयमणग्यं । विप्फुरइ फुरियजयणाहसम्भवे भरहवासम्मि ॥ ४ ॥ चिरयालपीलियाए वि दयाए जिणसम्भवं मुणेऊण । अप्पा आसासिज्जइ सहसा सह जीवलोएणं ॥ ५॥ होही अणण्णसरिसो मम दइओ उवह रायलच्छी वि । महमहइ अपते चिय महिलातरलत्तणगुणेण ॥ ६॥ कलिऊण कवलियमिणं जयमसमंजसविहाइमोहेण । उइओ किल जिणमूरो ति वियसियं णाणलच्छीए ॥ ७ ॥ णीइ-सिरीहि वि सहस ति वियसियं जाणिऊण जयणाहं । होन्तऽवरभरहसंमममणन्तसियदाणदुल्ललियं ॥ ८ ॥ होही तित्थं तित्थाहिवम्मि जायम्मि भरहवासम्मि । हरिमूसुयहिययाए पवयणलच्छीए पडिबुद्धं ॥ ९ ॥ इय कयभवम्मि जम्मि उ भरहम्मि समाउलाहिं लच्छीहिं। ऊससिय ति पयच्छउ सुहाई सो वो जुयादिजिणो ॥१०॥ णमह सइ बद्धमाणं लक्खिज्जइ जस्स सासणं विउँलं । विमलं पि दूसमाए ण चेवे मालिणा वि सा तत्थ (?) ॥११॥ अवि य गब्भभरणीसहा तम्मइ ब्व मुणिऊण जस्स मुहजणणो(?णी)। गम्भंतरसंकमणं कीरइ तुरियं सुरिन्देणं ॥१२॥ दोण्डं मज्झे गम्भाण जेण वसिऊण पयडियं एयं । 'त्थि किल सा अवस्था कम्मवसा जा ण संपडइ' ॥१३ ।। कयतिहुयणगुरुडिम्बम्मि सहइ जम्माहिसेयसँमयम्मि । जस्स मुरिंदासंकाविहाइ चलणग्गदुल्ललियं ॥ १४ ॥ दप्पुखरसुरसमणेण जेण बालतणे ववत्थवियं । वयणं सुराहिवइणो कयजणमणगुरुचमक्कारं ॥ १५ ॥ गहियणियमस्स जस्स य दवाइअभिग्गहे चउवियप्पे । पुण्णम्मि कुसुमवुट्ठी मुक्का तुढेहिं तियसेहिं ॥ १६ ॥ अणुकूलेयरगुरुओषसग्गसहणेण जेण संगमओ । 'कम्मखेमणुज्जमंतस्स मह सहाउ' ति पडिवण्णो ॥ १७ ॥ रक्खंतेण महिंदाउ जेण चमरं पसासियं लोए । 'पायच्छाया वि समत्तसत्तरक्वक्रवमा णिययं ॥ १८ ॥ वरसिद्धिपुरिपवेसम्मि चंद-मूरेहिं सह विमाणेहिं । पीरायणं वे कीरइ पयाहिणं से समोसरणे ॥ १९॥ इय तं गम्भाहाणाइगरुयलोउत्तरऽभुयविहाणं । गुणणि म्मियाहिहाणं पणमह णिच्चं महावीरं ॥ २०॥ सेसे वि य बावीसं बावीसपरीसहोहविद्दवए । पणमह दुत्तरसंसारसीयरुत्तरणसेउवहे ॥ २१॥ सा जयइ जीए कमलं दाहिणहत्थेण वुभइ सयण्हं । जाणउ जणो ससक्खं कमलस्स मुहस्स य विसेसं ॥ २२ ॥ खणमेत्तं पि ण मुच्चइ पोत्थयरयणं पि जीए गुणकलियं । 'सुयणाणे अपमाओ कायवो' देसणत्थं व ॥ २३ ॥ १ औं नमः सर्वज्ञाय ॥ जे । २ मंगलघरे जे । ३ तपह सू, तवम जे । ४-५ पडियुद्ध सू। ६ विप्फुरियफु जे। ७ पीडियाए जे । ८ मह दतिओ जे । ९ उतिओ जे । १० णामल सू । ११ पडियुद्ध सू। १२ सियन्ति पंजे । १३ विपुल जे । १४ चेव मणाणा वि सू । १५ णत्थि सा किल असू । १६ रुडिभम्मि सहति जसू । १७ समयसि जे । १८ तणे वि वित्थरियं सू । १९ Jainखवणु जे । २० ब्व सू । २१ णिज्जियाभिहाणं सू । २२ सेसा जे । २३ सागर जे । Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउप्पन्नमहापुरिसचरिय। वियसियपंकयवयणा कमलदलच्छी ये कलियकरकमला । सियकमलधवलदेहा वियसियसियपंकयणिसण्णा ॥ २४ ॥ जिस्सा कैइसयजीहासु सहइ परिसंठियं गुणग्यवियं । कमलदलोयरदुल्ललियलच्छिसंकाए व जहिच्छं ॥ २५ ॥ ताव ण पावंति कई कइत्तणं दिट्ठसत्थसारा वि । सयलजणवंदैणिज्जे ! जा ण पसण्णा सि तं देवि ! ॥ २६ ॥ सुयदेवयं पणमिमो जीए पसाएम होइ तं कव्वं । जं गुण-दोसवियारे पंचादेसो व्व विउसाण ॥ २७॥ जीए पसाएण सया भुवणभंतरविदत्तमाहप्पो । वियरइ कव्वनिबंधो जसो व्च विउसाऽऽणणुच्छलिओ ॥ २८॥ अंगाई जीए अंगाई तह उवंगाई होन्तुवंगाई । सा सव्वसुयाणुगया देवी मह कुणउ सण्णेझं ॥ २९ ॥ अणुवत्तह णिच्चं पयइसज्जणे दुजणे य तह चेव । णियपयइमणुसरंताण ताण किं कीरइ विसेसो ? ॥३०॥ जइ भसइ तो भसिज्जइ थुव्वइ गुणकित्तणेण य थुर्णेतो । कुणइ सई चिय लोओ खल-सुयणे, ताण को दोसो? ॥३१॥ मुयणस्स होइ सुयणो खलस्स पिसुणत्तणं पि पयडेइ । कर्जावेक्खाए जओ खल-सुयणाणं पइट्ठाणं ॥ ३२॥ जो चिय एकस्स खलो सो च्चिय अण्णस्स सज्जणो होइ । कह सुयणो त्ति थुणिज्जइ ? णिदिज्जइ कह खलो काउं? ॥३३॥ णियजाइपञ्चएणं खलसुणहो भसइ जइ वि अण्णस्स । तह वि णियसुद्धयाए पिसुणं सुयणा ण याणंति ॥ ३४ ॥ ___ गुणगहणेणं सुयणो दोसे परिभाविऊण इयरो वि । जइ दोह वि तुहिकरं कव्वं ता किण्ण पज्जत्तं ? ॥ ३५ ॥ जैइ वि____ कह कह वि दिज्जइ मणो वेवंतुष्पित्थहित्यहियएहिं । खलवेरियाण पुरयो रणे य तह कव्यकरणे य ॥३६॥ तैहा वि ससत्ती पउंजियव्वा चेव । जओ किं तेणिह जाएण वि तणलहुसरिसेण दिगुणटेण । जस्स ण जायइ लोओ गुण-दोसवियारणक्खणिओ ॥ ३७॥ अहवा किमिमीए बुहजणोवहसणिज्जाए इयरजणबहुमयाए पिसुणतणफलाए परवावारचिंताए ? जइ वा अत्तणो हियोवयाराहिलासिणा परचिंता कायया। जओ परोवयारपुचमेव अत्तणो उवयारं पुवायरिया बहुमण्णन्ति । परोक्यारो य विसिट्टोवएस-गोणपयाणेणं कुसलमइपवत्तणं । जओ णाणप्पयाणाओ अवरं विसिट्ठयरमुवारं ण पसंसंति परमत्थचिन्तया तओ जोगा-जोगणिरूवणस्थं परचिंता कायव्वा । कहं पुण समाणे पुरिसत्तणे जोगा-जोगविसेसो ? भण्णइ-इहैं ताव समासेणं छबिहा पुरिसा हवंति । तं जहा-अहमाहमा १ अहमा २ विमज्झिमा ३ मज्झिमा ४ उत्तिमा ५ उत्तिमोतिम ६ ति। तत्य जे अहमाहम ति ते पणधम्म-ऽस्थ-कामाइसण्णा वगयपरलोयज्झबसाया सया सुहज्झवसायरहिया अण्णायमुहलेसा अमुणियपंचविहविसयरसा मूढा कूरकम्मकारिणो पावा पावायारा फुडियकर-चरण-सिरोरुहा अहमकम्मकारिणो, ते य सोयरिया केवट्टा भिल्ला पुलिंदा इंगालदाहया कट्ठच्छिदया खैरवाहया लोद्धयाइणो, एते सव्वे वि पराओ किं पि पाविऊण मैज्ज पि वा पियंति मंसं पि वा खायंति, अण्णं वा अकज्जायरणं किं पि कुणंति, सचजणरिभूया दुहिया दुहियकम्मकारिणो बुहजणउव्वेवणिज्जमवत्थंतरमणुहविऊण परलोए य णरगाइजायणाठाणाणि पावन्ति त्ति १।। ___अहमा उण इहलोयमेत्तपैडिबद्धा अस्थ-कामेक्कदिण्णहियया ववगयपरलोयचिन्ता इन्दियसुहाहिलासिणो जूइयर-रायसेवया बंदियण-णड-गट्ट-कहा(? कहया )इणो । ते" हि उवहसंति धम्मियजणं, णिदंति मोक्रवमग्गं, दुगुंछन्ति धम्मसत्थं, विउस्सन्ति देवकहालावं । भणन्ति य-"केण दिट्ठो “परलोओ ? को वा तओ समागओ ? केण वी उवलद्धो णरओ ? केण वा अवगया जीवसैता ? कहं वा जाणिओ पुण्ण-पावसन्भावो ? किंच लोय-जडा-तिदंडधारणादियं कायकिलेसो, वयगैहणं भोगवंचणा, मूणवयाइयं डम्भो, धम्मुवएसो मुद्धजणपयारणं, देव-गुरुपूयादियं धणक्यो , अओ मीत्तूण १ य धरिय जे । २ कइयणजी जे। ३ कती जे । ४ वदणिज्जा जा जे । ५ पचाएसे व्व सू। ६ °सरन्ताण ताण कह कीरउ वि सू। ७ ग थुञ्चतो जे । ८ विक्खाए जे । ९ सुयणे त्ति थुणिज्जउ ? निदिज्जउ कह सू । १० जह कह वि दिज्जइ जे । ११ पुरओ जे । १२ तह विजे। १३ हिओव' जे । १४ अत्तणोवयारं जे । १५ नाणप्पया जे । १६ °यार ण य संसति सू , यारं पसंसति जे । १७ इय सू । १८ जे ते अहमाहमा ते सू । १९ अणाय जे । २० सा महाफू जे । २१ खडवा सू। २२ भज्ज वा सू । २३ मंस वा सू । २४ परिहूया सू । २५ पडियद्धा सू। २६ ते वि उसू । २७ धम्मत्थसत्थं जे। २८ परलोओ ? केण वा उजे । २९ व सू । ३० केण अव जे । ३. सण्णा ? कह जे। ३२ णातिय जे । ३३ "गणे जे। ३४ क्खओ जे । Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कहापीढे । धण-कामे ण अण्णो पुरिसत्थो अस्थि । जो अत्यो हि णाम पुरिसस्स महन्त देवयं । तहा हि-अत्थवन्तो पूएंज्जए लोएणं, परिवारिज्जइ बंधुयणेणं, सलहिज्जइ बंदियणेणं, बहुमण्णिज्जए संयणवग्गेणं । अवि य तं नत्थि जंण कीरइ धणलवलोहेण जीवलोयम्मि । मूरो वि हु अस्थमणे रहेणे बुड्डो समुहम्मि ॥ ३८ ॥ सयणु परियणु [ ? सयणु परियणु] बंधुवग्गं पि भिच्चयणु सुहि सज्जणु वि घरि कलत्तु आणावडिच्छउं । अत्थुम्ह किल धरइ जाव ताव पुण्णेहिं समग्गल ॥ ३९ ।। गरुएइ णिहिगओ वि हु अत्थो धणइत्तयं न संदेहो । हिययणिलुको वि पिओ ण कारणं किं विलासाण ? ।। ४० ॥ कामो उण अत्थवि णिओओ, तेण विणा अस्थो गिरत्थओ चेव । अवि य मासो वि वरं चत्तारि जस्स गुणरत्तियाओ जायंति । सिंगारेणं च विणा जो अत्थी होति किं तेण ? ॥ ४१ ।। कि'च___ कामेण विणा धणसंपया वि"पुरिसाण जायति अणत्यो । सीलं रक्खंतीए विहवाए जोवणभरो व्व ॥ ४२ ॥ अण्णं च मणीण वि परिच्चइउं दुप्परिअल्लो कामो । जओ वेरम्गमणुसरंता णिदंतु विलासिणीओ वरमुणिणो । किं पुण हियए ताण वि थण-णयणाडंबरं फुरइ ? ॥ ४३ ॥ पिय अणुकूली घरि सरइ, अण्णु अवणि जसवडहउ वज्जइ । एत्य समप्पइ मोक्खमुहूं, मोक्खे सोक्खु किं कवलेहि खज्जइ ? ४॥ पौणं गेयं णटुं मयणाहि घणत्थणीओ महिलाओ । एँयाइं सति जत्थ य सो सग्गो, सेसयं रणं" ॥ ४५ ॥ एवमाइ भासिणो पंचेंदियवसगया अहमबुद्धित्तणओ अहमा सयं णट्ठा परेसि पि असब्भूओवएसप्पयाणेण विणासे पयइंति । अहमबुद्धित्तणं च परमत्थओ तेसिं दुक्खे चे जं सुहाहिमाणो, जओ किं मओ ण मण्णेइ वाहगेयं ? किं वा मीणस्स ण वैड्ढेइ अहिलासाइरेगं गलामिसं ? किं ण तरलेइ विसट्टकमलामोओ महुयरं ? किं ण जैणेइ हरिसं पयंगस्स दीवयसिहा ? किं णाऽऽणंदेइ गणियारी जहाहिवई ? । परमत्थचिंतया उण अत्तणो विणासाय तेसिं वावारमवगच्छंति । जहा य एए तहा अण्णे वि इंदियवसगया दट्ठव्व त्ति । एवं च ते अहमबुद्धित्तणओ अहमा बुहजणगरहणिज्जा इह परलोए य बहुवेयणामु गतीसु गच्छंति त्ति २। विमज्झिमा उण धम्म-ऽस्थ-कामे परोप्परासंबाहेण सेवंति । ते उण बंभणा रायाणो वणिया कुटुंबिया, अण्णे वि इहपरलोयावायदंसिणो विहवा दुभगा पवसियमज्जा( ? त्ता)इणो य दट्टवा । एए सव्वे धैंम्ममवेक्खंति, परलोयविरुद्ध परिहरंति, 'जम्मंतरे वि मुहब-रूवस्सि-बहुधण-बहुपुत्ता भविस्सामो' त्ति तवचरणं कुणंति, दाणादियं सेवन्ति । जे वि मोक्खमग्गाहिलासिणो कुप्पावयणिया णाणऽज्झयण-तैवचरणरया परममिच्छादिहिणो ते वि परमत्थादंसित्तणओ विमज्झिमा । जे वि सम्मदिद्विणो सणियाणा चक्कवहिरूव-विहवाभिलासिणो चित्त-विचित्ताइणो ते वि तबिहा चेव ति ३ । ____ मज्झिमा उण धम्म-ऽत्य-काम-मोक्खेसु पसत्ता, सम्मदिद्विणो मोक्खेक्ककज्जगहियपरमत्था हीणसत्तयाए कालाणुभावेणं पुत्त-कलत्तणेहणियलिया लोहबंधणबद्धा य जाणन्ता वि परमत्थं, पेच्छन्ता वि सम्मईसण-णाण-चरणरूवं मोक्वमगं, अवगच्छंता वि राग-दोसपरिणाम, बुझंता वि संसारासारत्तणं, मुणन्ता वि कडुयविवागत्तणं विसयाणं, अवलोयन्ता वि उम्मम्गपवित्तत्तणं इंदियाणं, तहा वि महुरयाए विसयाणं, अप्पडिहयत्तणओ वम्महस्स, चवलयाए इंदियाणं, अमत्ययाए संसारसहावस्स, अणासन्नयाए “भोक्खमग्गस्स, अचिन्तसत्तित्तणओ कम्मपरिणईए, ण सक्कंति महापुरिससेवियं पन्चज्जमज्झवसिउं । तओ हीणसत्तयाए घरवासं समावति । ते उण सावया सम्मदिद्विणो जहासत्तिगहियव्यया य, अण्णे य पयइभद्दया मोक्रवाहिलासिणो पयतीए सकरुणा खंति-मद्दव-ऽज्जवोववेया दाणसीला वयसीला य। ते इहलोए बहुजणप १ महतं जे । २ पूइज्जइ जे । ३ सलाहिज्जए जे । ४ सज्जण सू । ५°ण पुण्णो स सू । ६ अत्थुम्भ सू । ७ समग्गलो सू. गलितपाठमिद वस्तुच्छन्दः प्रतिभाति । ८ धणतित्तय जे । ९ विणिओयओ जे। १० णिरत्थो चेय सू । ११ "किञ्च' इति जेपुस्तके न स्ति । १२ व जे । १३ "रियालो जे । १४ प्रिय जे । १५ भवणे सू। १६ पाणं ण गेयं मजे। १७ एमाइ सू। १८ परेसिम्पि अॅ सू । १९ चेय सू । २० वद्धति जे । २१ जणइ जे । २२ करेणुगर्भिता गजग्रहणाथै कृता गर्ता । २३ णो अहवा दुजे । २४ धम्मसावक्खे ति पर सू। २५ तवच्चरण सू। २६ ममेन्छा जे। २७ मा य । जे जे । २८ अब्भस्थतयाए जे । २९ मोक्खस्स, जे । JainEd.३. घरवासमावसन्ति सू । Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउप्पन्नमहापुरिसचरियं । संसणिज्जा होइऊण परलोए मुदेवत्तं सुमाणुसतं वा पावेन्ति त्ति ४। उत्तमा उण मोक्खेकदिण्णहियया मोक्खेकगहियपरमत्था न परं परमत्थं मण्णंति ति । ते हि उम्मूलिऊण महामोहवलिं, भंजिऊण विसयपेंडारं, विहाडेऊण अण्णाणतिमिरं, गलत्थेऊण राग-दोसमल्ले, छिदिऊण णेहपासं, "विज्झविय कोहग्गिणो, संचुण्णिय माणपञ्चयं, गिव्वविय मायाफुफुयं, लंघिय लोहारोट्टा, अजिया कामकुंजरेणं, अणोलुग्गा इंदियतुरंगमेहि, अविवाविया भोगतहाए, अजिया परीसहेहिं, अभग्गा उक्सग्गेहि, दुरे महिलाविलासाणं, अणब्भासे सावज्जाणुट्ठाणाणं, देसंतरे असंजमस्स, अणन्तिए कुहम्मस्स, विइयपरमत्था तोलिऊण अप्पाणयं, उज्झिऊण संसारमुहं, अगणिऊण पुत्त-कलनाइयं, चंपिऊण कम्मपरिणाम, आसण्णमोक्खभावत्तणओ महापुरिससेवियं सव्वदुक्रवणिज्जरणहेउभूयं, इयर जणमणोरहाणं पि दरवत्तिणि पव्वज्जमभुवगय त्ति । ते उण साहुणो णाणाविहलद्धिसंपण्णा ओहि-मणपज्जव-केवलणाणिपज्जवसाणा दव्या । ते य सुरा-ऽसुरिंदचकवट्टिपमुहाणं वंदणिज्जा होऊण मोक्खं वा गच्छंति, अणुत्तरविमाणेसु वा; सुरिंदा वा इंदसामाणिया वा वेमाणिया वा भँवन्ति त्ति ५।। "उत्तिमुत्तिमा उण तित्थयरणामकम्मविवागवत्तिणो तित्थयरा उप्पण्णवर केवलणाणा णिट्रियट्ठा परकज्जेक्कदिन्नहियया उत्तमगुणा(ण)रूव-सत्तिसंपण्णा चउतीसाइसयसंपयोववेया अणुदिणं परावबोहणत्थं महिं विहरिऊण आउकावए सिवमयलमरुयमणन्तमक्खयमवावाहमपुणरावत्तयं सिद्धिगइणामधेयं ठाणमवस्सं पाउणंति ति ६।। तओ जोग्गरसेव हियोवएसपयाणेणं कुसलमइपवत्तणं कायव्वं, ण य अजोगस्स, ण य अइक्कतोवएसावत्थस्स त्ति । कुसलमइपवत्तणं चें चरियाइअणुट्टाणदंसणेण मुहं चेव कीरइ । परमत्थाहिगारे य कप्पियकहा ण सज्जणमणाणि रंजेइ, ण हि कोई वालिसो कप्पियमायणिऊण सब्भूयं छड्डेइ । अवि य जइ वि हु दोण्ह वि लोए कुसलमइपवत्तणं फलं सरिसं । तह वि मह कप्पियाओ विहाँइ चरियं विसिट्टयरं ॥ ४६॥ किंच 'सव्वं पि कुसलकप्पिय मेवंवाईण कप्पियकहाए । दिण्णो हत्यऽवलंबो बहस्सतिमयाणुसारीणं ॥ ४७ ॥ एवं च काऊण सव्वहा कप्पियाओ सम्भूयगुंणुक्कित्तणत्तणो य चरियं पहाणयरं । अवि यचउपग्णमहापुरिसाण चरियमभुयविहाणगुणकलियं । भवियस्स जणेइ फुडं रोमंचुच्चाई अंगाई ॥४८॥ कस्स ण जायइ कोऊहलाउलं हिययमभुयुंम्हवियं । रयणायरं व दटुं मुचरियचरियाणि वा सोउं ? ॥ ४९ ॥ किंच धम्ममुइविउलमृलुब्भवस्स मइनेहसलिलसित्तस्स । चारित्तरुंदकंद-क्खमाइसाहप्पसाहस्स ॥ ५० ॥ छठ-ऽट्ठम-दसम-दुवालसाइतवचरणबहलपत्तस्स । णरवइ-मैंरिंदधणसंपयाइकुसुमोहगहणस्स ॥५१॥ उत्तमणरचरियमहादुमस्स गुणमोक्षफलसमिद्धस्स । सवणच्छाया वि फुडं ण होइ पुण्णेहिं रहियस्स ॥ ५२ ॥ जैहा तेलोक्कचूडामणिणा सुरा-ऽसुर-णरिंदमउडमणिमसिणायवीटेणं उप्पण्णवरदिव्वणाणेणं सदेव-मणुया-ऽसुराए परिसाए समक्खं भरहचक्कवट्टिपुच्छिएणं पढमवरधम्मचक्कवट्टिणा उसभसामिणा कहियं, पुणो य रायगिहे णयरे गुणसिलए चेइए जंयुणामस्स सुहम्मसामिणा साहियं, पढमाणुओगाओ त आयरियपरंपराए समागयं सम्मत्तलंभाइमहग्यवियं सुरवर-णररिद्विवण्णणागरुयं तित्थयराइचउप्पन्नमहापुरिसाण चरियं, तहा ससत्तीए किंचि लेसुद्देसेण कैहिज्जतं णिसामेह । अवि य महमुहकलसपलोटं उत्तिमपुरिसाण चरियसुहसलिलं । कण्णंजलीहिं पिजउ वियसियवयणाए परिसाए ॥ ५३॥ ५ ताजे । २ नऽवर जे । ३ बहुमण्यात जे । ४ पडीर जे । ५ विज्झविऊण जे। ६ संचुणिऊण जे । - णिवत्तिय जे। - फुया सू । २. गारोहा जे । १० तपिऊण सू। ११ पुरुस सू । १२ ‘णाणप" जे । १३ होइऊण सू । १७ हवति त्ति जे । १५ उलमुत्तमपुरिरा। उण जे । १६ अवक्कतों सू । १७ च दरिसिज्जइ अणुढा सू । १८ कोवि जे। १९ विहादि जे । २० दिण्हो हत्यालम्बो जे । २१ गुणकित्तण" जे । २२ युभवियं सू । १३ सुरेंद जे । २४ जह य ते" जे । २५ पायपीढेण जे। २६ साहिजतं जे । २७ उत्तम जे । Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कहापीढं । एस्थ य सदा पुव्वपसिद्धा अत्था सिद्धतसायरुच्छलिया। मालागारस्स व होज्ज मज्झ जइ कोइ गोफगुणो ॥ ५४॥ तत्थ य सामण्णेणं दुवे विभागा-अलोओ लोओ य । तत्थ य धम्मत्थिकायाइरहिओ आगासमेत्तसत्तो अलोओ । लोओ उण पंचत्थिकायमइओ, तं जहा-धम्मत्थिकाओ अधम्मत्थिकाओ आगासस्थिकाओ जीवत्थिकाओ पुग्गलत्थिकाओ य । सो य तिहा-अहोलोओ उङ्कलोओ तिरियलोओ य । सब्यो वि चोदसरज्जुप्पमाणो । तत्थ अहोलॉओ-सत्त पुढवीओ रयणप्पभाइयाओ घणोअहि-घणवाय-तणुवायवलयत्तिएणं अहो अहो ट्ठिएणं धरियाओ, पासओ वि वलयत्तिएणेव संगहियाओ। उड्डलोओ उण-सोहम्माइया उवरोवरिं ठिया बारह देवलोया, णव गेवेज्जाणि, पंच महाविमाणाणि, तओ ईसिपम्भाराहिहाणा पुढवी, तत्तो उवरि सिद्धिखेत्तमिति । तिरियलोओ उण समभूमिभायमेरुमज्झे अट्ठपएसाओ रुयगाओ उवरि नव जोयणसयाणि एसो उड्ढं अहो य, अट्ठारसजोयणसयपरिमाणो तिरियलोओ, तिरिच्छी उण एक्किकंतरियदीव-सागराऽसंखेयपरिमाणो। ___ तत्थ जंबुद्दीवो जोयणलकरखं, लवणसमुद्दो दोष्णि, धायइसंडों दीको चत्तारि, कालोओ अट्ट, पुक्खरदीवस्स अद्धे अट्ठ । तेत्य माणुसोत्तरो पचओ । तओ परेण माणुससंभवो पयरो य णत्थि। एवं च माणुसोत्तरपव्वयपरिक्वित्तं अड्ढाइज्जदीवपरिमाणं पणयालीसजोयणलक्ववित्थिण्णं माणुसखेत्तं ति । तत्थ य पण्णरस कम्मममीओ, तीसं अकम्मभूमीओ, छप्पन्नं अंतरदीवया। तत्थ पंचसु भरहेसु, पंचसु य एरवएमु बारसारं कालचक्कं वीससागरोवमकोडाकोडिप्पमाणं । तं जहा-सुसमसुसमा चत्तारि सागरोवमकोडाकोडीओ, सुसमा तिण्णि, सुसमदृसमा दोण्णि, दूसममुसमा बायालीसवाससहस्सूणा एगा कोडाकोडी, दुसमा एगवीसं सहस्सा, दसमदृसमा वि एगवीसं चेव । एवं दस कोडाकोडिप्पमाणा अवसप्पिणी । ऊसप्पिणी वि समदूसमादिया सुसमसुसमपज्जवसाणा दसकोडाकोडिप्पमाणा चेव । एवं वीससागरोवमकोडाकोडिप्पमाणं कालचक्कमण्णस्थ विस्थरेण दहव्वं ति । एत्थ सुसमदूसमाहिहाणे तइए अरए पलिओवमट्ठभागावसेसे कुलगरा समुप्पण्णा । जैहाकम तेसिमुप्पत्ती। । कहापीढं सैम्मत्तं ।। १ तत्थ साम जे । २ 'गा-लोगो अलोगो य सू । ३ तिविहो जे । ४ रज्जप्प सू । ५ लोगे सत्त जे । ६ 'खेत्तं ति जे । ७ एकतारे सू । ८ “डो चत्ता जे । ९ तत्थ य मा जे । १० माणुसुत्तर जे । ११ मा य दोणि जे । १२ ओसप्पिणी जे । १३ जहम जे । १४ ‘सम्मत्तं' इति सूपुस्तके नास्ति । Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१ रिसहसामि-२ भरहचक्कवट्टिचरियं] अत्थि अवरविदेहे अवराजिया णाम णयरी । सा य अमरावह व्व अच्चंतविबुहजणभणाणंदयारिणी अगिंदा य, मयलंछणमुत्ति व्व कलोवचिया अदोसुब्भवा य, बारवइ ब्व वरजण-धणसमिद्धा अक्खारजलोववेया य, लंकापुरि व्ब कंचणमया अबिहीसणा य । जत्थ अगंगसमा पुरिसा, रइसमाओ महिलाओ बिहेस्सइसमा विउसा, असंठवियसुंदराणि रूपाणि, अणलियोश्याराओ अभिजाईओ, असिक्ववियणिउणो परियणो, अकिलेससंपावियाओ धणरिद्धीओ, विणिम्मियउब्भडणाणाविहमणिभित्तिवण्णाई चित्तयम्माइं, सहावसुंदरतुलियचित्तयम्माओ जुवईओ, विणिज्जियजुवइसत्यो महुमओ, ओहामियमहुमयसहावविब्बोयसंधुक्किओ मयणो, मयणुत्तेजवियजयाण(?) त्ति । अवि य वरवाररमणिसम्महतुट्टहारुच्छलन्तमणिनियरं । मणिनियरपहारंजियबहुविहचंचइयगयणवहं ॥ १॥ गयणवहधुमपडलुच्छलन्तमेहावसंकिहंसउलं । हंसउलरचाऊरियणंदणवणभवणउज्जाणं ॥ २॥ भवणुज्जाणवियम्भियपरिमलआयड्ढिओरुभमरउलं । भमरउलमुहलकमलालिदीहियावद्धझंकारं ॥३॥ झंकाररुद्धदि सिपहललिउब्भडसरसपहियसंचारं । संचारविपुलरमणीणियंबसंरुद्धवियडवहं ॥ ४ ॥ इय जं जं पुलइज्जइ णयरीए मंदिरं मणभिरामं । करि-तुरय-तूर-तोरणबहुजणवतणिव्विसेसं तं ॥ ५॥ अह एक्को च्चिय दोसो णयरीए तुलियसग्गसोहाए । सग्गेक्कगमणहेउं धम्म ण कुणंति मं पुरिसा ॥६॥ सा य णयरी अमरावइ ब सुरिंदेणं, अलयापुरि ब्व कुबेरेणं, रहणेउरचक्कवालपुरवरमिव खयरिदेणं, लंकाणयरि व्ब बिहीसणेणं, ईसाणचंदेणं णरवइणा पालिया लालिया विहूसिया य । सो य राया कुम्मुष्णएहि चरणेहिं भुयासिहरेहिं च, सुपरिणाहाहोएहिं जंघेहिं वाहाजुयलेणं च, सुविभत्तेणं तिएणं पिट्टीवंसेणं च, गंभीराए णाहीए चित्तेणं च, विस्थिण्णेणं वच्छत्थलेणं लोयगजुयलेणं च, तिलेहालंकियाए सिरोहराए पिडालनटेणं च, पीवरेहि गंडत्यलेहिं अहरदलेणं च, सिद्धजोगो व्व सोहग्गस्स, पुण्णजम्मदिवहो व्य वम्महस्स, सग्गायासफलं व पयावइणो, कित्तिथंभो व्य रूवस्स । अवि य किं संगो व्य अणंगो सकलो व्य कलाणिही मयविमुक्को । धम्मो व्व दोसरहिओ जणमणतरलत्तणविलासो॥७॥ तत्थ य णयरीए सबजणाणुमओ आयारकुलहरं विणयावासो धणओ व्व बहुधणो चंदणदासो णाम सेट्ठी । तस्स पुत्तो मागरचंदो णाम । सो य णेगमजाती वि उदारसत्तो, सकलकलापारगो वि वणियकलाऽणभिष्णो । अवि य एक च्चिय वणियकला तस्स कलापारगस्स गुणणिहिणो । जुबईण णियंतीणं हरइ मणं जीए रूवेणं ॥ ८॥ अण्णया य सो राइणो ईसाणचंदस्स दंसणत्थं राउलं पविठ्ठो । दिट्ठो य राया सुहासणत्थो। पायवडणुटिओ य सम्माणिओ राइणा आसण-तंबोलाइणा । पुच्छिओ अ वट्टमाणिं राइणा । साहिया च सेहिसुएणं जहा सव्वं देवाणुहावेणं कुसलं ति । एत्थंतरे य राइणो अत्थाणगयस्स पढियं बंदिणा गाहाजुयलं अइमुत्तय-बाण-पियंगु-वियसियासोय-पंकउबिडिमो । वियसइ बालवसंतो कुसुमसरुद्दीवेणसयण्हो ॥९॥ सम्मोहं तं वियरइ वियसियभूयच्छलेण घोरविसं । छैणमंडलाइं पविसउ पहिययणो णऽण्णहा रक्खा ॥ १० ॥ तओ राइणा तमायण्णिऊण सायरचंदमुहं पलोइयं । तेणीवि विष्णत्तो राया जहा-देव ! संपत्तो अविवेयजणमणाणंदयारी महुसमओ । भणियं च राइणा-जाणिओ महुसमओ, "किमित्थ पत्तोलं ? ति पुच्छामि । तओ भणियं सेटिसुएणं-देव ! विष्णवेमि । एत्यंतरे पुणरनि पढियं बंदिणा १ बहस्सइ जे । २ संपाइयाओ जे । ३ संसातु जे । ५ रवापुरिय जे । ५ दिसिवहुललि जे । ६ वालिया जे । ७ चलणेहि जे । ८ पुण्णखाणीजम्म" सू । ९ या सो जे । १. दोरण जे । ११ विकसितवृक्षच्छलेन । १२ थम जे । १३ तेण विष्णत्तो लू। १४ किमेत्थ जे । १५ यालन्ति सू । Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ रिसहसामि- २ भरहचक्कवट्टिचरियं । वियसियचंपयगोरी कुवलयदललोयणाऽलिकुलकेसी । संकेयं पिर छाउ तुह महुलच्छी गउज्जाणे । ११॥ भणियं च सेटिमुएणं-देव ! जं मए विण्णवियध्वं तमणेण चेव वंदिणा विण्णवियं, ता देव ! माहवसिरिसफलयावायणेण उज्जाणगमणेण कीरउ पसाओ । 'एवं भवउ' त्ति भणिऊण राइणा सदिओ पडिहारो, भणिओ य-जोणावेहि एयमत्थं डिंडिमेणं नयरीए जहा-राया रइकुलहरं णाम उज्जाणं कीलानिमित्तं पच्चूसे गमिस्सइ, ता पउरजणवओ वि अत्तत्तणो विहवेणं सबवलेणं गच्छउ त्ति । पडिहारेण य आणासमणंतरमेव 'जं देवो आणवेईत्ति भणिऊण सव्वं संपाडियं । 'तुमए वि पच्चूसे वयमणुगंतव्य' ति भणिऊण विसजिओ सेटिसुओ। पच्चूसे राया अंतेउरसमेओ विसेमुज्जलनेवत्थपरियणपरियरिओ सस्थावेसवुण्णं पिव लायण्णं तरुणियणस्स विक्खिरंतो णिग्गओ णयरीओ । पत्तो रइकुलहरं उजाणं । सायरचंदो वि असोयदत्तवयंसयसमेयो महया रिद्धीए गओ उज्जाणं, अण्णो वि पउरजणवओ अत्तऽत्तणो विहवेणं ति । पवत्तो य कीलिउं । तो पबत्तासु णयरचच्चरीसु, वियंभिए हलबोले, आरूढे णिब्भरे कीडारसे एकाओ आसण्णाओ वणणिगुंजाओ 'परित्तायह परित्तायह' त्ति सणाहो उच्छलिओ महंतो इत्थिजणकोलाहलो। तओ तमायण्णिऊण धाविओ साहससहाओ सायरचंदो । दिट्ठा य पुन्नभद्दस्स धृया पियदसणा णाम कुमारी बंदियाणं मझगया अणिलचलियकयलीपत्तं पिव वेविरसरीरा । तो दक्खभावत्तणओ धीरयाए चित्तस्स, संखुद्धयाए वंदियाणं, मुन्नहत्थपओगेणं एक्कस्स छुरियमवहरिऊण मोयाविया वंदियाणं सेटिधूया । तीए वि तं दठूण चिंतियं-को पुण एसो अकारणवच्छलो महपुण्णरासि व्व आवईए समुवट्ठिओ ? । तीए य उवयारक्खित्तहिययाए रूवालोयणविम्हउप्फुल्ललोयणजुयलाए कालक्कमुम्मिल्लजोव्वणवियाराए पयडिओ तस्सुवरि अॅवत्ताहिलासो । एत्थंतरे पिणा उवलद्धवंदियखुत्तंतेणं णीया सभवणं पियदंसणा, इयरो वि पियदसणारूवक्वित्तहियओ पयडियमयणवियारो मित्तेणं असोगदत्तेणं ति। जाणिओ एस वुत्तंतो पिउणा सामण्णेणं जणपरंपराओ, विसेसेणं सदासचेडीउ ति । सदिऊण य अणुसासिओ पुत्ती जहा-" पुत्त ! सबकलाकुसलस्स विणीयस्स अणुब्भडवेसा-ऽऽयारस्स णत्थि ते उवइसणिज्जं तहा वि 'गुरुयणेणं तुह सणाहत्तणं पयडियव्वं' ति काऊण भण्णसि, पुत्त ! अम्हे ताव वणिया कलोवजीविणो साहु वेससमायारा, अम्हाणं च जोव्वणं पि वुड्ढसहावयाए, संपया वि अणुब्भडवेसरगहणेणं, रइसम्भोगो वि पराऽणुवलक्खो, दाणं पि अवहुजणविण्णायमलंकारो त्ति । किंच सव्वं पि अत्तणोऽणुरूवं कीरमाणं लोयं रंजेइ । अण्णं च जो एस तव वयंसओ सो अतीवमायावी, तुह उज्जुयस्स वि वंको, पयतीए वंचणपरायणो, अवि य___ अणं काऊण मणे अण्णं वायाए भासइ अणज्जो । णिव्वडइ फैलेणऽण्णं तुज्झ अणजस्स मित्तस्स ॥१२॥ सबहा, किं बहुणा? इह-परलोए य अविरुद्धायारेण होयव्वं"। ति वयणावसाणे य चिंतियं सेट्ठिसुएणं जहा-ताएण उवलक्खितो बंदियण-कुमारीवइयरो, फुडऽक्खरं च दृसिओ मह मित्तो, तओ अहमवि तहेव उत्तरं देमि । त्ति चिन्तिऊण भणियं-"जं ताओ आणवेइ तं मए अवितहं तहेव कीरइ त्ति । धण्णा हु गुरूवएसमायणं हवंति, किंतु "देव्वजोएण तं किं पि समावडइ जेण समालोयणावसर एव ण होति त्ति । किं पुण जेण तुम्हे लज्जिया होह तमहं पाणसंसए वि ण करेमि त्ति । जो पुण मेत्तदोसो भणिओ तारण सो महमुवलम्भो च्चिय ण होइ तस्सेवे दोसो गुणो वा । अण्णं च तायस्स केण वि अणज्जेण अणज्जं णिवेइतं, जओ जाणइ ज्जेव ताओ णेहस्स कारणाणि । तं जहा-समाणजाइत्तणं एगणयरनिवासो सहपंसुकीलणं दंसणऽभासो परोप्पराणुरायाकण्णणं परोवयारकरणं समाणसील- वसणया य । एयाणि य सव्वाणि तत्य संति । कइयवकारणं पुण तहाविहं ण किंचि दीसइ । एवं च काऊण तक्केमि 'जारिसो सो तारण संभाविओ तारिसो ण होइ ति मह मई युत्ता। ___ संबंधेइ पयत्थे अन्नो च्चिय को वि अन्तरो हेऊ । परिचयजणणं पुण वज्झकारणं तेण को हो ? ॥१३॥ ताय ! किं वा मायावित्तणेणमा(म)म्हाणं करिस्सइ"। त्ति भणिऊण संठविओ ताओ । सेटिणा वि पुत्तऽभिप्पायं १ जाणावेह जे । २ नामुज्जाणं जे । ३ नेवच्छ जे । ४ अच्चंता जे । ५ पिउणा जे । ६ साहिऊण जे । ७ तुह जे । ८ फले अण्ण जे। ९ तत्तो जे। १० देवजोएण जे। ११ व सो दोसो जे । १२ °णि सव्वा सू । १३ अंतरे जे । १४ °ण करिस्सइ जे। Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउप्पन्नमहापुरिसचरियं । मुणिऊण जाइया पियदसणा । दिग्णा य पुण्णभद्देणं । गणियं लग्गं । उवकयं विवाहोवगरणं । सज्जीकया वेइममी । कयाई कोउयाइं । महया रिद्धीए वत्तो विवाहो । जाया य अतिणिभरा पीती परोप्परं । एवं च विसयमुहमणुहवंताणं वच्चंति दियहा, सरइ कालो। ____ अण्णया य परिहासपुव्वं भणिया पियदसणा असोयदत्तेणं विचित्ते-किं कारणमेस ते दइओ धणदत्तमुण्डाए सह पतिदिणं मन्तेइ ? । पियदंसणाए वि विसुद्धचित्ताए भणियं-एयं तुह मित्तो णिच्छएणं जाणइ तुमं च बीयहिययभूयो, अम्हारिसाणं पुण को साहेइ रहस्सकज्जाइं? । तेण भणियं-अहं जाणामि किं तं, अत्थि पओयणं, किंतु तुह ण साहिज्जति । अवि य णेइ चिसमं पि भूमि मिच्छा वो पियाणि सिक्खेइ । भिंदइ गरुई लज्जं पयोयणं किं ण कारेति ? ॥ १४ ॥ पुण वि तीए भणियं-किं तं पयोयणं ? । तेण भणियं-जं मज्झ तुमए । सुद्धहिययाए जंपियं पियदंसणाए-मए वि किं तुज्झ पओयणमत्थि ? । [ ? तेण भणियं-अत्थि] मुंदरि !, जो जियइ जीवलोए जम्स य तं सुयणु ! गोयरे पडिया। तम्स तए सति कज्जं मोत्तूर्ण गवरि तह दइयं ॥१५॥ तो असंभावियपुव्वं कयाइ असंकणीयं दुव्यवसियपिसुणं अइक्कंतमज्जायं वयणमायण्णिऊण किंचि कालमहोमुही ठोऊया पियदंसणा भणिउमाढत्ता "रे रे निल्लज्ज ! अकज्जसज्ज ! किं तुज्झ जुज्जए एयं । हियएण वि चिंतेउं किं पुण भणिउं मह समक्खं ? ॥१६॥ पुरिसाहमेण तुमए अकज्जववसायमलिणमित्तेण । लजिहिइ महं दइओ एयं मेइ मह हिययं ॥१७॥ किं जुत्तं विमलकुलुब्भवस्स वीसम्भणेहगहियस्स । थेवस्स सुहस्स कए कुलम्मि मसिकुच्चयं दाउं ? ॥१८॥ मुंजेइ जत्थ तं चिय णवरं भिंदेइ मायणमणच्चो( ? जो)। णियचेट्टाए सइ दीवउ व्व णेहक्खयं कुणइ" ॥ १९ ।। तओ ईसीसिलज्जोणयवयणेणं भणियं असोगदत्तेणं-किमेवमाउलीभूया ? सच्चं चेव मं अण्णहा संभावेसि ?, मए एस परिहासो परिकावाणिमित्तं तुह को । तओ ईसद्धसियं काऊण भणियं पियदंसणाए गच्छमु जत्थ च्चलिओ णियवावारं करेमु रे मूढ ! । मह उण कया परिक्रवा जेण सुमित्तो तुमं वरिओ॥२०॥ तो सुण्णदेउलं पिव विवित्ती णिग्गओ मंदिराओ। दिट्ठो य किं पि कि पि चिंतयंतो भग्गमच्छरुच्छाहो सायरचंदेणं, पुच्छिओ य-किमुन्विग्गो विव लक्विज सि ? । तेण भणियं-आमं । केण कारणेणं ? । तओ मायाकूडकवडभरियहियएण दीहं णीससिऊण भणियं-" संसारे वि वसंताणं उव्वेवकारणाणि पुच्छसि ? अह णिब्बंधो, साहेमि किं तं संसारविलसियं, अवि य संसारमावसन्तस्स किं पि तं पडइ माणिणो कज्ज । जं छाइयु ण युजइ ण य कहियु णेय मरिसेउ" ।। २१ ।। एवं मणिऊण वाहोल्ललोयणो अहोमुहो ठिओ । तओ चिंतियं सायरचंदेणं-अहो ! दोण्णिवारया संसारविलसियाणं, जेण एवंविहा वि महापुरिसा संतावस्स गोयरे पडंति, तं महंतं किं पि उव्वेवकारणं मह मित्तस्स, जेण गरुओ दुक्रवावेओ बाहगम्भिणेहिं नीसासेहिं लक्खिजइ, " हि अप्पेणं णिहाएणं चलइ वसुहा, ता पुच्छामि उम्वेवकारणं । ति चिंतऊण पुणरवि भणिओ-वयंस ! साहेहि मे जइ अकहणिज्जंण होइ । तओ भणियं सगग्गयऽक्खरं असोगदत्तेणं-"कि तहाविहं किं पि अस्थि जं तुज्झ वि ण साहिज्जइ ? विसेसेण एस वइयरो त्ति । तत्थ जाणइ चेव पियवयंसो जैहा-सव्वेसिमणत्थाण कारणं महिलाओ, जओ महिला णाम अणग्गी चुडुली, अभोयणा विसइया, अणब्भा विज्जू, अणोसहा वाही, अपज्जवसाणा मेोहे णिद्द त्ति, अवि यचवला मइलणसीला सिणेहपडिपूरिया वि तावेइ । दीवयसिह व्य महिला लद्धप्पसरा भयं देइ ॥२२ ।। १ पुचयं जे । वोत सू । ३ पुणरवि जे! ४ णवर जे। ५ ठाइऊण जे। ६ लज्जेही मम द जे। ७ जत्थ तत्थ यण सू। - धरिओ जे । ९ णिव्वेवकारणाई जे । १० छाइउ जुज्जइ ण य कहिउ जे । ११ एय जे । १२ जह जे । १३ मोहणिद त्ति सू । or Privale & Personal Use Only ___ Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ रिसहसामि- २ भरहचक्वट्टिचरियं ।। एकत्थ कह वि परिमोइया वि अण्णत्थ लग्गइ खणेणं । दरेण होउ मुहिया महिला कॅथारिसाह व्व ॥ २३ ॥ बंधुयणुव्वेवकरी सयलदुहावायकारणमणज्जा । मरणरयणि व्य महिला चिंतिज्जती भयं देइ" ॥ २४ ॥ तो एयमायण्णिऊण सासंकेण भणियं सायरचंदेणं-पयडियं कीए वि महिलाए महिलत्तणं मित्तस्स, का उण सा? विसेसओ जाणिउमिच्छामि । तओ 'तुज्झ बीयहिययभूयस्स एरिसं पि साहिज्जई' ति असोयदत्तो भणिउमाढत्तो-“वयंस ! सुणसु, अत्थि गणियाणि दियहाणि असमंजसाइं भासन्तीए पियदसणाए, मए पुण तुज्झ वि असाहंतेणमवहीरिया 'कयाइ लज्जिऊण सयमेव दुरज्झवसाया उवसमं करिस्सइ'त्ति, णवरंण केवलं ण कओ चैवसमो, सुटुयरं पयहा। अवि य णरसीहेणं सीहो मंतेण फणी तहकुसेण करी । महिलामणो ण तीरइ केणावि णिरंकुसो धरिउं ।। २५ ।। अज्ज पुण तुंह अण्णेसणत्थं घरं गयस्स तं कयमिमीये जं साहिउँ पि ण तीरइ त्ति । तओ महया किलेसेणमप्पाणं मोयावेउं णिग्गओ गेहाओ । तओ चिंतिउमारदो-'किमप्पाणं वावाएमि ?, अहवा ण वावाएमि?, जो सा दुरायारिणी मह मित्तमण्णहा बुग्गाहिस्सइ । किं जहटिय मुद्धमित्तस्स साहेमि ? एयं पि ण जुत्तं, जओ ण पूरिओ मणोरहो तीए, कहमवरं कीरइ खए खारणिवडणं ? ' ति । एवं च एयाणि य अण्णाणि य अट्टदुहट्टाई चिंतयंतो तुमए दिहो । तं एयं मे उव्वेवकारणं" ति । तओ वज्जवडणाइरित्तं एयमायष्णिऊण णसण्णो व्य थंभिओ व्व किंचि कालं भविऊण सायरचंदो भणिउमाढत्तो-" पियवयंस ! सव्वं पि एयं जुज्जइ महिलाणं, जओ बिब्बोयसलिलभरियं कवडमहावत्तवंचणामयरं । महिलामणमयरहरं अज्ज वि पुरिसा ण याति ॥ २६॥ उवहिस्स मुहं रेवा सेययं विझस्स ओप्पइ णियंबं । सचमणायारघुराण मित्त ! महिलाण सम्माइ ॥२७॥ तो" मुंचसु विसीयं, अंगीकरेसु सुहज्झवसायं, कित्तियं च एवं संसारविलसितस्स ?, किं वा सा दुरायारा अम्हाणं करिस्सइ ? त्ति । केवलं तुंह मज्झ वा मणो मा देसिज्ज" । इति भणिऊण सैठेविओ पियमित्तो । वियलिओ य पियदंसणाए उवरि पेमाबंधो. णियत्तो सम्भावपसरो. अवगओय पणयबहमाणो। तहा वि महापरिसयाए अलंघेतेण धुव्वत्थिई उवरोहमेत्तकयकज्जेणं पालिया पियदंसणा। ताए विण एस वृत्तंतो साहिओ पइणो, 'मा मह णिमित्तो चित्तभेदो होउ' त्ति मण्णंतीए पुव्वकमेणेव ववहरियं । सायरचंदो वि पयतीए दाणरुई, उबिग्गो संसारस्स, परम्मुहो घरवासस्स, णिविष्णो विसयाणं, कालेणमाउयमणुपालिऊण मओ समाणो जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे दाहिणद्धस्स मज्झिमखंडे सुसमदुसमाए पलिऔवमड्ढभागावसेसे काले समकालपरिचत्तजीवियाए पियदंसणाए सह जुगलत्तेणं समुप्पण्णो। संवड्ढिऊण य चउरासीर्ति दियहे उवरयं जणयजुयलं । पत्तो य जोव्वणं । अच्छइ य सहयरीए सह भोए मुंजन्तो। ___ इयरो वि आउयं पालिऊण मओ समाणो तत्थेव धवलदेहो चउविसाणो वरलक्खणोववेओ करिवरत्तणेणं समुप्पण्णो। तेण ये इओ तो परिब्भमंतेणं दिट्ठो सो पुव्वभवमित्तो । जाओ य से पुचभवऽब्भासेणं तस्सोवरि हाणुबंधो । उवट्ठियं च तं आभिओगियफलं मौयासंजणियं कम्मं । आरोविओ य सो तेणमणिच्छमाणो विणिए खंधप्पएसे। समुप्पण्णं च तेसि पैरोप्परं दसणऽब्भासेणं जौइस्सरणं । सो य जाइस्सरणप्पभावेणं अच्चतरूवयाए विमलकरिवरवाहणतणेण य सबपुरिसाहिओ जाओ। __ तो य वच्चंतेसु दियहेसु, परिगलंतेसु सुहाणुहावेसु, वियलिओ तारिसोऽणुभावो कप्परुक्खाणं, तहा हि-मत्तंगा घेवविरसीयमाणमज्जरसा । ण सुहासण-सयणा भिंगा । तुडियंगा य ण तारिसाऽऽउज्जसज्जा । दीवसिहा जोइसणामा य ण सम्ममुज्जोवेति । चित्तंगया वि अवगयसुहमल्लोवयारा । ण देंति पुन्वं पिच सुहभोयण-फलरसं चित्तरसा। ववगयविविहभूसणुकरिसा मणियंगा। णट्टसोहाणि विविहमंदिराणि भवणरुक्खेसु । ण पयच्छंति सुकुमारवत्थाणि १ पडिमोतिया जे । २ कंथारसाहि व्व जे । ३ उवसामो जे । ४ तुममण्णेस सू । ५ मोयाविउ जे । ६ बुग्गाहइ जे। ७ ट्ठियमेव मित्त जे। ८ साहेति जे । ९ समयं सू । १० घराणि सू । १ ता जे । १२ य. वित्तिय जे । १३ तुज्झ मह वा जे । १४ सियउ त्ति जे। १५ संथविओ जे । १६ पुवठिई जे । १७ दीवे भा जे । १८ दूसमसुसमाए जे, दुसमदूसमाए सू। १९ जुवलय जे । २० वि जे । २१ मायाजणिय सू । २२ परोप्परद जे । २३-२४ जाईसर जे । २५ तओ व जे । For Private & Personal use only Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउप्पन्नमहापुरिसचरिय। आइएणकप्परुकवा । एवं च परिगलमाणे दसप्पगाररुक्वाणुहावे, ईसीसिउम्मिलं ते कसायप्पसरे जुयलयाणं, पैचड्ढमाणे कापरुग्वममत्ते जाओ परोप्परमैमत्तनगिओ परिहवाहिययावेओ । तओ य मिलिऊण जॅयलपुरिसेहिं अम्हाणमेस बुद्धि-पु? पो)रिस-रूवऽब्भहिओ विमलवाहणो त्ति काऊण पैइहावियविमलवाहणाऽभिहाणो सामिसालत्तणेणं गहिओ । सो य जाइस्सरणुम्मिल्लविवेओ जाणियलोयट्ठिइसहावो तेसिमुवइसिउमाढत्तो । विहत्ता य तेण तेसिं कप्परुकावा । ठविया मजाया। जो य तं मजायमइक्कमड तस्स हकारी त्ति डंडं पाडेइ । कह?-हा! दट्ट तए कयं । सो उँग 'हा' इति डंडडंडिओ मरणाओ वि समन्भहियं दुक्खं मण्णइ ति । एवं च पढमकयववत्थस्स हकारडंडणीइजुत्तस्स पलिओवमदसभागाउयस्स णवणुसयप्पमाणस्स य छम्मासाउअसेसम्स चंदजसाए भारियाए अवरं मिहुणं समुप्पणं । पइटावियं च णामं [पुत्तस्स चक्रखुमं, धूयाए वि चंदकंता। संवहिऊर्ण य ववयं जनयमिहुणं । इयराणि य पत्ताणि जोधणं । मुंजंति भोए । अठ्ठधणुसयपमाणस्स य तस्स णिदुरसँहा पुन्या चेव दंडणीई । "सो वि तहेव तेसिं भैजायऽइक्कमणिरोहकारी राया दंडधरो संवुत्तो । तस्स य असंखेयपलिओवमा गाउयस्स पच्छिमे काले चंदकंताए भारियाए मिहुणं समुप्पण्णं । पइटावियं च णाम एकम्म जसस्मी, बीयाए सुरुवा । पुब्धकमेणेव पत्ताणि जोव्यणं । अहिगओं य मिहुणेहिं रायत्तणेणं जमस्सी। तम्स पुवुत्ता इंडणीई, मकारणीई य । अप्पे अवराहे पढमा. मज्झिमे बीया, महन्ते दो वि । पढम वा कए अवराहे पढमा, बीयकए बीया, तइयवाराए कए दो वि पउंजइ । तस्स य अद्धऽट्ठमधणुसयदेहप्पमाणस्स पच्छिमे काले मिहुणं समुप्पण्णं । पइटावियं च से णामं एगस्स अभिचंदो, बीयाए पडिरूवा । सो य पलिओवमासंखेयभागं पुबकुलगरहीणं आउयमणुपालिऊण भारियाए सह पंचत्तमुक्गओ। इयरमिहुणं च जोव्वणं पत्तं । पत्तं च कुलगरत्तणं । तहेव पुव्वुत्ताओ विस सयराओ दो डंडणीईओ। ___ एवं च एएणं चेव कमेणं अण्णाणि वि तिणि मिहुणाणि । तं जहा-पसेणई राया चक्खुकन्ता य भारिया, धिकाराहियाओ पुव्युत्ताओ दो डंडनीईओ । छैटें मिहुणं मरुदेवो कुलगरो, सिरिकता य भारिया। सत्तमं णाभी कुलगी, मरुदेवी य से भारिया । डंडणीईओ अ विसेसि(? सोयराओ तिण्णि वि । ते य पलिओवमासंखेयभागाउया आणविहीणा आउणा सरीरप्पमाणेणावि । तं जहा-चउत्थस्स सत्त धणुसयाणि, पंचमस्स य छ सयागि, छट्ठरस अद्धवाणि, सनमरस णाभिरस पंचधणुसयाइं पाणवीसाणि । आउयं तु संखेयाणि पुवाणि त्ति । सव्वे वि" य कुलगरा अप्पकमायत्तणओ देवेसु उववण्णा । णाहिकुलगरस्स य मरुदेवीए भारियाए उसभसामी सुमंगला य मिहुणयं जायं । णाही य मरिऊण देवेसु उववण्णो । उसमसामिणा जहा सम्मत्तं पावियं, जेत्तियं कालं जहा वा संसारे हिंडियं तहा भण्णइ अस्थि जंबुद्दीवे दीवे अवरविदेहे वासे खितिपइट्टियं णाम णयरं । तं च गयणविलग्गेणं पायारेणं पायालोयरगंभीराए खाइयाए परियरियं, सुविभत्ततिय-चउक-चच्चरं सयलणयरगुणोववेयं । अह णवर तत्थ दोसो करि-तोरण-तुरय-वाररमणीहिं । जं सामि-भिच्च-जणवयघराण ण हु णज्जइ विसेसो ॥२८॥ तं च राया पसण्णचंदो णाम पालेइ । तत्य य उवह सियकुबेरबिहवो विणिज्जियसुरलोयरूवाइसओ धणो णाम सत्यवाहो । अण्णया य सो गहियभडसारो वसंतपुरं पत्थिी । तेण य डिंडिमेणं घोसावियं णयरे जहा-धणो सत्यवाहो वसंतपुरं पत्थिओ, तेण सह गच्छन्तस्स पच्छयणाइणा सत्यवाहोपडिजागरणं करेइ त्ति, तओ उच्चलंतु कप्पडिया, पयर्टीतु क्वहारिया, सजीभवंतु आणुगामिणो, कुणउ पत्थाणं धम्मियजणो, जस्स जेण कज्जं भेडेमुल्लेण वा वाहणेण वा वत्थेण वा पत्तेण वा अण्णेण वा ओसहाइणा तस्स तं संपाडेइ १ परियड्ढमाणे जे । २ " ममयजणिओ जे । ३ तओ मि जे । . ४ जुवलयपु जे । ५ बुद्धि-रूव जे । ६ पइरठाविओ विमलवादृणो ति णामेण, सामि जे । ७ उण महाड सू । ८ वव जे । ९ भिहुणयं जे । १. सद्दपुव्वा जे। 11 सो वि तेसि सू । १२ मजायमइकमणणि जे । १३ विमेसियराओ सू। १४ छमिहुण जे । १५ वि कुल' जे । १६ जह वा जे । १७ गवरि जे। १८ आणुगामिया जे । १२ भडमोल्लेण जे । २० पच्छेण सू । Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ रिसहसामि-२ भरहचक्कवट्टिचरियं । सत्यवाहो । एवमेयं घोसणमायण्णिऊण एको बहुदेस-णयरदिट्ठसारो परिणयवओ' असूयाए धणस्स सव्वाहिगारचिंतयं माणिभद्दमुवडिओ वणिओ । भणिओ य तेण माणिभद्दो जहा-अहो भदमुह ! किं तुम्ह सत्यवाहस्स अस्थजायमत्थि ?, केरिसा वा गुणा ?, किं पभूयं वित्तं ?, किं वा दाउं समत्थो ? त्ति । तओ एयमायण्णिऊणं विम्हउप्फुल्ललोयणेणं भणियं माणिभद्देणं-भद्द ! अम्ह सत्यवाहस्स किं पि अस्थि, किं पि णस्थि । णणु सामण्णमेयं, विसेसो भाणियन्यो । सुणसु जइ विसेसत्थी-" इह अम्ह सामियस्स एक्कं चेव अस्थि विवेइत्तणं, एक्कं च णत्थि अणायारो । अहवा दुवे अत्थि परोक्यारित्तणं धम्माहिलासो य, दुवे य णत्थि गयो कुसंसग्गी य । तिष्णि अस्थि कुलं सीलं रूवं च, तिण्णि य णत्थि पैराहमदंसित्तणं उत्तुणत्तं परदारपसंगो य । चत्तारि अत्थि धम्म-ऽत्थ-काम-मोकवा, चत्तारि य णस्थि णियाणाणुबंधो इड्ढीगारवो विसयलोलुयत्तण णिस्मुह-दुक बत्तणं च । पंच अस्थि णाणं विष्णाणं विणओ कयण्णुयत्तणं पणइयणमणोरहपूरणं च, पंच य णत्थि असग्गाहो असमंजसकारितगं दीणभावो अत्थाणरिणिओओ फरुससंभासित्तणं च त्ति । ता सोममुह ! एकमाइ अम्ह सामियस्स किंचि अत्थि, किंचि गत्थि । किंच-विमलेसु गुणेसु श्यणबुद्धी, ण पाहाणखंडेसु। सीलमेवाहरणं, ण बज्झो सुवण्णाइअलंकारभारो । दाणकम्मे पैवित्ती, ण कामभोगेमु । जसम्मि लोहो, ण अत्योवजणे त्ति । अवि य सच्छाओ गुणजुत्तो णिलओ सच्चस्स णम्मयाकलिओ। विझगिरि व्य विरायइ महुमित्तो फलसमिद्धो य"॥२९॥ तओ 'अहो से वयणविण्णासो, अहो भावगरुओ समुल्लावो' त्ति चिंतिऊण असूयं उज्झिऊण भणियं वणिएणं-सव्वमेयं जुज्जइ त्ति एवंगुणकलियस्स एवमाघोसणं काउं । ति भणिऊण गओ वणिओ। एत्थन्तरम्मि धम्मघोसायरिएण पेसियं आगयं साहुजुयलयं । वंदियं माणिभद्देणं, पुच्छियं च आगमणप्पओयणं । भणियं साहूहि- 'देवाणुप्पिय ! अम्हे धम्मघोसायरिएण पेसिया धणसत्थवाहसमीवं । सो य किल वसन्तउरं पत्थिओ। तेण सह आयरिया वि गंतुमिच्छन्ति, जइ सत्थवाहो अणुमण्णइ' । तेण भणियं-भयवं! अणुमगहो त्ति, किं पुण आयरिएहिं सयमेव गमणावसरे सत्थवाहो दहब्बो त्ति । एवं भणिऊण वंदिऊण य पेसिया साहुणो, गया य । कहियमायरियाणं-अणुमयं तेसिं। तओ पसत्थे तिहि-करण-णक्वत्ते सोहणे लग्गे कयं पत्थाणं सत्थेणं। आवासिओ बाहिरियाए सस्थवाहो । उच्चलिओ साहुजणपरियरिओ धम्मघोसायरिओ । दिवो य सत्थवाहो । वंदिऊण तेणे भणियं-किं भयवं! तुम्हे वि गंतुमणा?। आयरिएहिं भणियं-तुम्हाणुमईए । तओ सत्यवाहेण सदाविओ सूत्रकारो, भणिओ य-जाए विहीए जीए वाराए जं वा भोयणं आयरियाणं सपरिवाराणं रोयड तीए वाराए तमेसिं तुमए दायव्वं ति। आयरिएहि भणियं-देवाणपिया! ण एस अम्हाणं कप्पो, जैओ अम्हाणं अकयमकारियमसंकप्पियं, गिहत्थेहिं अत्तहा उवकयं, महुयरवित्तीए पाविऊण आहारजायमालोइऊण य गुरुणो; तेहिं जहारिहमणुजोइयं अरत्तदुट्ठाणमणुण्णायं ति। ___एत्यंतरम्मि ढोइयं सस्थवाहस्स परिणयचूयफल पडहत्यं पडलगं । तं च द ठूण हरिसियमणेण भणियं सत्थवाहेणएयाणि तुम्ह जोग्गाणि, गेण्हह, कीरउ अम्हाणमणुग्गहो त्ति । आयरिएहिं भणियं-देवाणुपिया ! संपयमेव भवओ णिवेइयं जहा गिहत्थेहिं अप्पणवा उवको आहारो कप्पइ अम्हाणं, कंद-मूल-फलाइअं तु असत्थोवहयं छिविउं पि ण वट्टइ, किं पुण भविश्वउं ? तो तमायण्णिऊण भणियं सत्यवाहेण-अहो दुकरा पव्वज्जा, विसमंधम्माणुट्ठाणं, अहवाण सुहेण अच्चंताबाहसोक्खो मोक्खो पाविजइ त्ति, एवं च तुम्हाण अम्हेहिं अप्पं पओयणं ति। पसंसिऊण पुणो भणियं-भयवं! सुहेण वच्चह, जेण केणे वि पओयणं तमम्हाण साहेजसु । त्ति भणिऊण वंदिऊण य पेसिया आयरिया । गया य। आवासिया विवित्तदेसे फासुए थंडिले। दिण्णं च पच्चूसे पयाणयं । ____ को य कालो वट्टिउं पयत्तो ?-हिमोलुग्गणलिणिपणइणी दट् ठूण व हिमायलाहिमुहं पत्थिओ दिवसयरो । तओ १ ओ धणस्स सू । २ परा(ह)मदेसित्तणं, सू , पराहम्मदसित्तणं उत्तुणतणं जे । ३ कयन्नत्तण जे । ४ कारितं जे । ५ एवमादीह अम्ह जे । ६ पयत्ती जे । ७ मह मित्तो जे । ८ एवमादिघोसणं जे । ९ ते पसत्थे तिहिणक्खत्तमुहुत्ते सो जे। १० परिवारिओ जे । ११ ण य भ जे ! १२ दायव्वं । आय सू। १३ णुप्पिया जे। १४ जयो अकय सू । १५ अत्तणढाए उव जे । १६ णायन्ति सू । १७ पडहच्छे सू । १८ जोगाणि सू । १९ गुप्पिया जे । २० सोखो मोसु । २१ केणावि जे । २२ हिमालयाहि जे। Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२ चउप्पन्नमहापुरिसचरिय। तचिंताए व झिजिउमाढत्ता स्यणी। तओ सयडिया पेच्छिऊणं रत्तिं झिज्जमाणिं परिओसेणेव वड्ढिउमाढत्ता वासरा, अणुदियहं च कठोरीहोइ धरणिमंडलं, मुम्मरोयमाणधूलीरएण मणोरहाणं पि दुल्लंघणिज्जा जाया पहिययणस्स पहा, उच्छलइ झल्लियाझंकारो गयणबहे, अणुदियहं च मूसंति कमलायरा, सीयंति महाणईसोत्ता(?ता), उत्तम्मति महाकरिणो, जायंति सासाउला मयारिणो । अवि य अवणेतो वि हु दोस देंतो वि जणस्स सइ सुहालोयं । करचंडयाए मित्तो बियणिज्जो जए जाओ ॥३०॥ तवइ महिमंडलमलं सोसइ कमलायरे भयं देइ । णासेइ सरसभावे गिम्हो दुसमाए सेसो व्ब ॥ ३१॥ उत्तरदिसाहिजुत्तं अइभूमिमलंबिओ उ गंतूणं । सुरगिरिसकावलिओ मूरो तेहिं चिय पएहि ॥ ३२ ॥ दियहा उर्बुधुलया, रयबहुलाओ दिसाओ, खरफरुसो । ओवाइमारुओ माउयाओ मारेइ पहियजणं ॥ ३३॥ इय ताविऊण अँवणं कमेण परिवड्ढिऊण य पयावं । कुणरिंदो इच गिम्हो पाउसरायागमे गट्ठो ॥ ३४ ॥ तो वहंति कालंबिणीओ, उच्छलिओ पंमयमहुरकंठमयूरकेयारवो काणणंतरेसु, भग्गो ये पहियसंचारो कयंबामोएणं, महमहइ दिसामुहेसु कुडयकुसुमपरिमलो, णिववियं च गिम्हसंतावतावियं पढमासारेण धरैणियलं । अवि य कालम्बिणीहि समिओ झेलसंतावो समागया दियहा । कयपुग्णाणं ते च्चिय अगणियहाण मिहुणाणं ॥ ३५॥ अंतोगरुयावेयं पिमुणंतं मुयइ पाउसौरंभो। उक्कुइयलोयणं पिव ऐकल्ल पुडिंगयं गयणं ॥३६॥ कालाइक्कमतोरवियपवणपिंडारचालियाइद्धं । झल्लज्झलेइ अहियं मेहउलं मैहिसवंद च ॥३७॥ भेसंतो पहिययणं जलधारासरणिवायपहरेहिं । पसमेइ महीए रयं आसारो गिम्हतचियाए ॥ ३८॥ ओसरइ कालमेहो पडइ व खुडिऊण णहयलाहुत्तं । गजियरवेण फुट्टइ सहसा संघरं धरावलयं ॥३९॥ घणवडलेहिं छज्जतयं पि ओगलइ अंबरं उँयह । धोइज्जतं पि जलेण तह वि कलुसत्तणमुवेइ ॥४०॥ कवलणमणस्स अँयणं पाउसवेयालकालकायस्स । अब्भउडदलंतमुहम्मि फरइ जीह ब्व विज्जुलया ॥४१॥ धारासारं वरिसइ अंतो च्चिय गरुयमंथरं रसैइ । ण तरइ मणयं पि जणो कज्जे वि घरंतरं गंतुं ॥४२॥ इय वरिसिउं पैयत्तो णिच्चलधारातहट्ठियणिवायं । जेण जयैम्मि ण णज्जइ कुओ वि वियरंति धाराओ ? ।। ४३॥ एवं च णिन्भरे पत्ते पाउसे माणिणीहिययं व धाराहि मउईकयं धरणिवढे । पहिययणजायालोयणजुयलं व जलेण पॅव्वालिया वसुहा । ताव य सत्थो वि अणवरयपयाणेहिं पाविऊण महाडवि तीए मज्झयारदेसम्मि दुम्गमत्तणओ मग्गाणं भण्डविणासणभएण य तस्थेव काऊण उडवाइयं वासारत्तणिचहणत्थं ठिओ। तओ जणपडिपुण्णयाए सत्थस्स, अवारियसत्तपयाणेण य सत्थवाहस्स, अइदीहरयाए कालस्स, समत्थसत्थमज्झयारे खीणं जवसं, वगयं पाहेयं, विमूरिउमाढत्ता सत्थिया, पयत्ता य कंद-मूल-फलमण्णेसिउं। णिवेइयं च रयणीए वरपल्लंकगयस्स सत्यवाहस्स माणिभद्देणं जहा-“समाउली ओ सत्यो, खीणसंबलत्तणेण य दीणभावमुँवागया सत्थिया, छुहावेयणापरिगया य कंद-मूलाइयमणुचियमाहारमाहारेंति, किंच छडैइ लज्ज परिहरइ पोरुसं ण हु धरेइ मजायं । दीणतणं पवज्जइ उज्झइ मित्तं कलत्तं च ॥ ४४ ॥ णीयघरेसु वि भिक्ख भैमेइ लंघेइ उइयमायारं । कं कं ण करेइ नरो लोए उयरम्गिणा तविओ?" ॥ ४५ ॥ एयमायण्णिऊण चिंताभरकिलंतदेहो विमूरिउमाढत्तो सत्यवाहो। तओ ईसाएं व समागंतूण णिदाए णोल्लिया चिन्ता । एत्यंतरम्मि रयणीए पच्छिमे जामे बंदुराजामइल्लेणं पढियं दुवैइखंडं १ रायमाणा धूली सू । २ सुसंति जे। ३ तो बहुदोस जे। ४ उव्वयणिज्जो सू। ५ ओवादि जे। ६ मृज्जाताः, मृदादिकर्करिकाः। ७ भुरण जे । ८-९ व्व सू । १० °णिमंडलं जे । ११ कलसंतायो जे । १२ ति जे । १३ °सारंभे जे । १४ °ओकुइय जे । १५ एकल सू । १६ महिसिबंदु ध्व सू । १७ यलद्धंतं जे । १८ सर्वतम् । १९ उवह जे । २० सुयणं जे। २१ फुरुइ सू । २२ चसइ सू । २३ पत्तो जे । २४ जय पि ण जे । २५ पच्चालिया सू । २६ विणासभ सू। २७ ओ जे । २८ मुवगया जे । २९ छइ जे। ३० नेइ सू । ३१ "ए विव ग जे । ३२ 'दुवई' द्विपदी-छन्दोविशेषः, तस्य खण्डम् । Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ रिसहसामि–२ भरहचक्कवचिरियं । चउसु दिसामुहेसु परिघोलिरणिम्मलजसवियाणओ, सुरणर-गाइरेसु केणावि अखंडियगरुयमाणओ। विसमदसागओ वि विमणो वि वियारियकज्जसारओ, पालइ जंपियाई विणओणयओ पर मज्झ नाहओ ॥ ४६॥ तओ णिद्दाविरमम्मि चिंताभरोसियतैहियएण सुणिऊण सत्यवाहेण चिंतियं-अहमिवाणेणोवलम्भिओ, ता को उण मज्झ सत्थे दुहिउ ?। त्ति चिंतयंतस्स सहस त्ति आवडिया हिययम्मि आयरिया जहा "ते महारिसिणो ण वायामेत्तेणावि मए एत्तियं कालं पडिजागरिया, तेसिं च अभक्खं कंद-मूल-फलाइयं, ता ते पर मह सत्थे अच्चन्तदुहिय त्ति, अहो पमाइतणं गिहत्यभावस्स ता पडिजागरेमि पच्चूसे, णेमि अत्तणो जम्मस्स सफलत्तणं ।" एवं च चिंतयंतस्स पुणरवि गीओ जामवालेण दुहेओ संसारे असारए माणुसहो केण वि तेण सहुं घडइ । जम्मडु अणिच्छए दइवहो वि उप्परि सुहरासिहे चैडइ ।। ४७ ।। तओ तमायष्णिऊण चिंतियं सत्यवाहेण-उँवक्वित्तो हुँहएण कल्लाणेकहेऊ मह तेण सह संगमो त्ति तो" गच्छामि पच्चूसे तस्संतियं । ति "चिंतेयन्तस्स पदियं कालनिवेदयएणं । भुवण भूसिउ [?भुवण भूसिउ] कउ सुहालोओ, पह पयडिय दैलियु तमो उइउ मित्तो दोसंतकारओ । पडिबुज्झेवि ठाहि तुहुं, गुणणिहाण ! णियकजसज्जओ ॥४८॥ तओ ‘एवं कीरउ'त्ति भणंतो उढिओ सयणीयाओ । कयं उचियकरणिज्ज । गओ य जत्थ आयरिया आवासिया तमुदेसं । दिहो य मुत्तिमन्तो व पुण्णरासी सयललोयचूडामणिजिणपणीयधम्मो व्य वयणिज्जवज्जिओ, जिणइ समुदं गंभीरयाए, ण केवल मणेणं; कारणावि परिहवइ अणंगं, णिलओ णीईए, कोसो कुसलस्स, पट्टणं पवित्तयाए, साला सीलस्स, ठाणं ठिईए, णिकेयणं करुणाए, संगरहिओ वि सस्सिरीओ, मुत्तो वि संसारालंकारकारणं, दोसासंगरहिओ विसोमो, साहुजणपरिवारिओ धम्मघोसायरिओ त्ति । वंदिओ य हरिसुप्फुल्ललोयणरोमंचकंचुइल्लेणं । पिहप्पिहमंडलिगया साहू य तत्थ केई चरणकरणाणुओगं मूलुत्तरगुणकित्तणप्पहाणं आयारंगाइयं भावन्ति । अण्णे धम्मकहाणुजोगं उत्तिमसत्तमहापुरिसरिसिचरियम्यगं उत्तरज्झयण-णायधम्मकहाइयं चिंतेति । अवरे गणियाणुओगं खिइवलय-दीव-सायर-चंद-सूराइविमाणपमाणादिणिरूवर्ग जंबहीव-चंद-सरपण्णत्तिउवंगाइयं वियारेन्ति । केइ पुण दवाणुओगं धम्मस्थिकायाइदवसरूवावहारणकलियं सम्मं दिद्रिवायाइयं णिरूचेति । तत्थ केइ रयणावलि-मुत्तावलिपमहचंदायणचारिणो, अण्णे चाउम्मासखमणखवियदेहा, अवरे मासखमणाइतवोविसेससोसियकलुसा, केइ संलेहणासंलिहियगत्ता, अण्णे विविहायावणकिलन्तदेहा। एकमेवमादिगुणकलिए वंदिऊण य साहुणो, तओ असेसकम्मोहघायणपडयरेणं धम्मलाहेणं अभिणंदिओ गुरुणा सेससाहहिं य, उवविठ्ठो य गुरुपायमूले । मुहुत्तमच्छिऊण य भणिउमाढत्तो-भयचं ! ण अकयपुण्णाणं घरे वसुहारा णिवडइ, णय थेवोवज्जियकुसलाणं गोयरीभवन्ति णिहिणो, ण हि फुसन्ति मंदभागहेतं सुहाणुभावा, जेण सव्वहा अकारणवच्छलं संसारजलहिपोयभूयं समतण-मणि-लेठ्ठ-कंचणं पाविऊण वि भवन्तं धम्मदेसयं ण सुयममयभूयं वयणं, ण कया जैयसलाहणिज्जा चलणकमलसेवा, ण विहियं पडिजागरणमिइ खमियव्वं पमायाचरणमम्हाणं । ति वयणावसाणे भणियं गुरुणा-गुण-सीलप्पिय ! मा संतप्प, सबमेव कयं भवया, जओ रक्खिया "सिंघा-ऽहिकूरसत्तेहितो, पालिया चोराइभयाओ, आहारं पुण देसकालाणुरूवं जहासंभवं ससत्तीए पयच्छन्ति भवओ सत्थिय त्ति । भयवं ! किमणेणं संठवणवयणेण?, सव्वहा लज्जिओ अहं अत्तणो पमायचरिएणं, ता करेंतु अणुम्गहं मे गुरू, पट्टवेतु साहुणो, जेण पयच्छामि साहुणो जोग्गमाहारं, करेमि पच्चूसागमणसइविलम्बणभूयमत्तणो चेट्टियं ति । गुरुणा भणियं-देवाणुप्पिया! एवं कीरइ त्ति, किं पुण जाणइ चेव सत्यवाहो जमम्हाण कप्पणिज्जं ?। सत्यवाहेण भणियं-भय ! जाणामि जमेव पुवकयमत्यि गेहे तमेव दाहामि । भणिऊण गओ णिययमावासं । अणुमग्गओ य पत्तं साहुजुयलयं । भवियव्वयाए ण किंचि साहुजोग्गमाहारमत्थि । तो विमणदुम्मणेणं सयमेव अण्णेसंतेणं थीणं घयमुवलद्धं । भणियं च-कि कप्पति एवं ? । 'कप्पति' ति भणिऊणं साहहिं उँवट्ठविओ । तओ १ 'सु वि दिसमुजे । २ सरणारएसु के जे। ३ राहओ जे । ४ तदेहेण सुणि जे। ५ णोवालंभिओ जे। ६ चितियतस्स सु । . परं जे । ८ जम्मयफल जे । ९ वालएण जे । १० दुयहओ सू । ११ असारे मा जे । १२ जम्मड जे । १३ वडइ सू । १४ पुम्वक्खित्तो जे । १५ दुयहेण कलाणेकहेऊ सू। १६ ताजे। १७ चितियतस्स जे। १८ निवेदएण जे । १९ दलिय तमोजे । २० पडिबुज्झवि ठाहिं जे । २१ केवि जे । २२ णुओगं जे । २३ वियारंति जे । २४ सम्मइदिठ्ठि सू। २५ ण सा जे। २६ जए सला जे । २७ सिंहाइकू जे । २८ करेतु सू । २९ चेठियन्ति सू । ३. उत्साहितः । For Phale & Personal Use Only Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउप्पनमहापुरिसचरियं । पषड्ढमाणेहिं कंडएहिं उल्लसंतेणं भावेणं कयत्थमत्ताणं मण्णतेणं ताव दिणं जाव साहूहिं दाऊण करयलमन्तरे णिवारियं । तओ पडिलाहिया वंदिया य साहुणो दाऊण धम्मलाहं गया । सत्यवाहेण य देस-कालोचिएणं विसुद्धऽज्झवसायपवड्ढमाणकंडयफायदाणेण उवचियं बोहिबीयं, परित्तीको संसारो, भायणीको अप्पा जहुत्तरमुहाणं । सो य कयत्थमप्पाणं भावयन्तो अइवाहिऊण वासरसेसं रयणीए गओ आयरियावासभूमी। दिट्ठा य साहुणो जिणवयणामयमावणामुइयदेहा णाणासस्थऽत्थवियारणपसत्ता विरया असंजमाओ, परिसेसिया दोहिं बंधणेहि, मण-चइ-कायदंडरहिया तिगुत्तिगुत्ता चउबिहविगहविवज्जिया परिचत्तचउकसाया पंचसमीइसमिया छक्कायरक्षणपरायणा सत्तभयहाणमुक्का परिहरियअहमयट्ठाणा उवगयणवबम्भगुत्तिणो दसविहधम्मज्झाणोवगया विविहाभिग्गहरया य । तत्थ केइ लगंडसाइणो, अवरे गोदोहियाठाणज्झाइणो, अवरे एकपाय-आयावणरया, इयरे पुण पसारियउद्धवाहुणो मलजल्लाविलसरीरा विविहतवचरणपरिसोसियमंस-सोणिया तय-टिहारुसेसदेहा । तत्थ केइ जिणकप्पणिमित्तं पंचहा अप्पाणं तोलन्ति, अण्णे पडिमाओ अम्भसन्ति, अवरे कयसामाइयपढमचारित्ता, अवरे अब्भुक्गयगरुयाभिग्गहा णाणाविहाहिं आयावणाहिं आयावेन्ति, केइ पुण चरिऊण परिहारविमुद्धियं तइयं चारित्तहाणं पुणरवि गच्छसमुदमवगाहेन्ति, एगल्लविहारिणो वा हवन्ति, जिणकप्पं वा पडिवज्जन्ति, पडिमागया वा विहरन्ति । इच्चेश्माइगुणकलियं पेच्छन्तो जतिजणं गओ थेवं भूमिभायं । दिह्रो प णीसेसदोसवन्जिओ असेसगुणरासी तेयपुंजो विव आयरिओ । दट्ठूण य चिन्तियं-अहो गस्थि व्यणिज्जवज्जियं पुहईए रयणं मोत्तूण एवं भयवन्तं पुरिसरैयणं ति। तहा हि विप्फुरियपयावो वि हु भुणन्भिन्तरविद्वत्तमाहप्पो । कुंगरिंदो व्व कुवलयं सूरो करपीडियं कुणइ ॥४९॥ भुवणाणंदो चंदो अमयमओ सरसरयणिमुहतिलओ । उब्भासियगयणवहो विमलेकलंकंकिओ सो वि ।। ५० ॥ वित्थिण्णदलं कमलं घणमयरंदं सिरीए रइभवणं । विहिविलसिएण जायं जलासयं तं पि हु सयंटं ।। ५१ । सेविनंतो फलओ लच्छीए कुलहरं सुहावासो । रयणायरो वि जायइ णिकिवसत्तासओ णिययं ॥५२॥ जाइविसुद्धं धवलं मणोहरं सुइसुवित्तणिप्पंकं । होइ संरंधं वरमोत्तियं पि लोहाणुसंगणं ॥५३॥ तिहुयणपरिओसयरो णिच्चं चिय विबुहसुंदरीकलिओ । अहिलज्जइ णिययं सुरगिरी वि पंगुत्तदोसेणं ॥५४॥ थिरवण्णसुहालोयाण दूरमारूढबहुविहगुणाण । सव्वुत्तिमाण लोए निबंधणं होइ रयणाण ॥ ५५॥ इय जं जं चिय रयणं चिंतिज्जइ गुणवियारणकहाए । तं तं चिय सकलंकं मोत्तूण गुणायरं एयं ॥५६॥ तओ एवं चिंतयंतो गओ आयरियसमीवं । वंदिया गुरुणो। दिष्णो य कॅम्मसेलबज्जासणिभूओ धम्मलाहो गुरूहि । अपिट्ठो चलणतिए। पुच्छिओ निर्रवायमोक्खपहो धम्मो। तओ साहिउमाढत्तो गुरुणा-देवाणुप्पिया ! धम्मस्स मूलं सम्मत्तं । तेण भणियं-भयवं ! तं कहं पाविज्जइ ?, किंरूवं वा? किंगुणं वा ? कहं वा तमुप्पण्णं लक्खिजति ? किंफलं व ? त्ति। गुरुणा भणिय___"गुणायर ! सुणसु, सम्मत्तपडिवत्तीए दोणि कारणाणि, तंजहा-णिसग्गो अहिगमो य । तत्थ णिसग्गो सहावो । सो वरणिज्ज-बेयणिज्ज-ऽन्तरायाणं चउण्हं कम्माणं एगृणतीसं सागरोवमकोडाकोडीओ णाम-गोताणं एगृणवीसं मोहणीयस्स एगुणहत्तर अहापवत्तेणं पढमकरणेणं खवेऊणं सेससागरोवमकोडाकोडीए य देसे खविए अजहण्णुक्कोसाउयबंधपरिणामो गंठिदेसं पावइ । सो उण गंठी इयरकम्मसहाएणं मोहकम्मुणा जणिओ घणराग-दोसपरिणामो कक्खड-घण-रूढगूढगंठि व्य दुब्भेओ । तं पुण कोइ जीवो पाविऊण भग्गो अणन्ताणुबन्धिकम्मोदयओ पुणरवि उक्कोसकम्मटिइं बंधइ । अवरो तप्परिणामपरिणओ कियंतं पि कालं चिट्ठइ । अण्णो उल्लसियवीरियसजोगयाए लहिऊणापुव्वं बीयं करणं, काऊण मोहणीयस्स दवग्गिणो व ऊसराइते देसे उययविक्खंभं, भेत्तूण य कम्मगंठिं, पाविऊण य अणियट्टिकरणं, लहइ अलद्धपुव्वं संसौरुत्तरणसेउभूयं सुहपरंपराकल्लाणकारणं सम्मत्तं ति। तप्परिणामपरिणओ य सुहझवसाओववेओ तिहा करेति मिच्छत्तदलियं, तं जहा-सुद्धं दरसुद्धं असुद्धं ति । तत्थ य होऊण अन्तोमुहुत्तकालं उवसमसम्मदिट्ठी, तओ जया सुद्धं पुंजयमुदीरेइ तओ खाओवसमियसम्मपिट्ठी हवइ । दरसुद्धमुदीरयंतो सम्मामिच्छादिट्ठी । एवं निसग्गसम्मइंसणन्ति । १ अन्ने कय जे । २ रयणन्ति सू । ३ ऽभतर जे । ४ कुरिंदु जे । ५ लमलक किमो जे । ६ सरद्धं सू । ७ कम्मासववजा जे । ८ निरावाय जे । ९ दोहि सू । १० उदय जे। ११ रुतारण जे । १२ तत्थ सू । १३ मिच्छद्दिछि जे । Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ रिसहसामि - २ भरहचक्कवहिचरियं । १५ अगिसम्मतं पुण सुणन्तस्स पवयणं, भावयंतस्स जीवा ऽजीवा ऽऽसव-संवर-बंध - णिज्जरा मोक्खमतिए सत्त पयत्थे, वियारयंतस्स हेउ-दित जुत्तीहिं, गच्छंते य णाणावरणीए खओवसमं, उम्मिलंते य मोहविवरे, पइदिणं सुणंतस्स आयरियाइसगासे, अणवरयखीयमाणकम्मुगो भिष्णकम्मगंठिस्स सुहपरिणामसहावं सम्मत्तमुप्पज्जइति । एयं अहिगमसम्मत्तं । तस्स पुर्ण सम्मत्तस्स पंच रूत्राणि, तं जहा -उनसमं सासायणं खाओवसमियं वेययं खइयं । तत्थ उवसमं भिण्णगठिस्स पढमसम्मत्तलाभे हवइ, उबसम सेडिविहाणेण य उवसंतमोहस्स । खओवसमं गए मोहणीए खाओवसमं, तं पुण सम्मत्तपुग्गलोदयजणियपरिणामस्स हवइति । सासायणसम्मत्तं तु अपरिचत्तसम्मत्तभावस्स मिच्छत्ताहिमुहस्स अउइण्णाताणुबंधि सम्मत्तपरिणामासायणेणं सह वट्टमाणस्स किंचि सम्मत्तमुज्झवसायस् य हव ति । वेययसम्मत्तं पुत्रगसेस खीणाणताणुवंधिमिच्छत्तसम्मामिच्छत्तसम्मत्तदलियगासीकयचरिमकवलरस खाइयसम्मत्ता इति । खाइयसम्मदिट्ठी खीणसत्तगो सहावजणियसुहपरिणामो सेणियो इव दट्ठव्वो । एवमेयं पंचहा सम्मत्तं वैणियं । अपरिवडियसम्मत्तभावो य अणुहविऊण सुहपरंपरमवस्सं पाउणति सव्वदुक्खत्रिमोक्खं मक्खं ति । परिवडिसम्मत्तो वि बंधड़ मंठिदेसाहियं कम्मठिहं ति । तं पुण सम्मत्तं गुणओ तिहा होइ, तं जहा- रोचयं दीवयं कारयं । तत्थ रोचयं जीवा -ऽजीवाइएस पयत्थेसु अरहया पणीएसु हेऊ-आहरणासंभवे वि “ तमेव सच्चं णिस्संकं जं जिणेहिं पवेदिय" न्ति एवं रुई करेति । दीवगं पुण अण्णेसिं पि सम्मत्तं दीवेति । कारयसम्मत्तं तु सम्मं तव -संजमुत्थाणं कारवेइ । तमुप्पण्णं तु एएहिं वेव तिर्हि भावेहिं लक्खिज्जइ । अहवा समेणं संवेगेणं णिव्वेणं अणुयंपाए अस्थिक्कमईए य । तत्थ य समो इंदिय-गोईदिएहिं इंदिओवसमो णाम रूवरस-गंध-सद्द-फासेसु अणुकूल पडिकूलेस अरत्तदुट्टया, गोइंदिओवसमो पुण कोह-माण- माया-लोहवज्जणं, मोहाभिभवो सव्वत्थ अकोउहल्लत्तणं च । संवेगो पुण सुणन्तस्स जिणप्पणीए भावे, भावेन्तस्स संसारासारत्तणं, समालीएंतस्स कम्मपरिण साइए विसry वेरग्गमुप्पज्जइति । गिब्वेओ पुण उप्पन्नविसय वेरग्गो णिब्विज्जर, चारगवांसेणेव संसारवासेण विसमित्र गिविंद भोए, बंधणमित्र मण्णेइ बंधुयणं, गोत्तिघरं पिव चिंतेइ घेरवासं ति । अणुवाओ एगिंदिय-पंचिंदियाणं भवसागरे किलिस्सागाणं दट्ठूण कम्मपरिणामजणियं दुहविवागं करुणापराही हियओ तेहिंतो वि अहिययरं दुक्खं अणुहवइ, पयट्टइ य जहासत्तीए दुक्खपडियारहेऊ त्ति । अस्थिकम संजुओ उण अस्थि जीवादिए पयत्थे, अस्थि पुण्णं पावं बंधी मोक्खो य, जिणप्पणीए भावे सम्मं सद्दह पत्तियइ रोएइ फासेइ ति । तस्स पुण सम्मत्तस्स फलं सुमाणुससुदेवत्ते जहुत्तरमुहं, परंपराए व्वाणमणं ति । " एवं जहाहिं सुणेऊण धणसत्थवाहेण भणियं-सोहणं धम्ममूलं सम्मत्तं ण एयमम्हाण सवणपहंमुवगयं, अवणिय व्त्र मोहणिद्दा भयवया, पयासिया पउणपयत्री सासयपयस्स । त्ति भणिऊण वंदिऊण य भयवन्तं सेससाहू य ग णियमावासं । सुत्तुस्स भावेंतस्स य गुरुवयणं किंचावसेसाए रयणीए पढियं कालणिवेयएणं खलिऊण जणपयारं अइभ रियजलंधयारमहिक्विरो । वासारतो गुणनिहि ! रयणीए भरो व्व परिगलइ ॥ ५७ ॥ जणमणकयववसाओ पयडियपहप हियसत्थमुहजणओ । पच्चूसो व्व वियंभइ हंसउलणिसेविओ सरओ || ५८ ॥ उप्पहगमणणियत्तं सलिलं सरए ठियं सहावम्मि । ववगयजोव्वणकलुसत्तणस्स हिययस्स अणुहरइ ॥ ५९ ॥ सिहिकेयार मुँहलं तडिलयगहणं णिराउलघणेहिं । पाउसमहाडई लंघिऊण मुक्काई चावाई ॥ ६० ॥ होऊण सकलुसाओ आसाओ जलहरार्णैमुण्णमणे । ताण पुण वियलणेणं ताउ पसन्नत्तणमुवेन्ति ॥ ६१ ॥ चलणक्कमन्तमज्झप्पएसपासस्थकद्दमुद्दामो । सीमन्ता इव जाया मग्गा गामन्तरालेसु ॥ ६२ ॥ ठाणा वसन्तकमलसरसलिलपूरियदियन्ता । ईसिवसुयायकद्दमसुहसंचारा पहा जाया ॥ ६३ ॥ १ मुणंतस्स जे । २ विष्णेयं जे । ३ मोक्खन्ति सू । ४ सम्मन्तवं सू । ५ मुक्षणं जे ६ अणुकंपाए जे ७ भावंतस्स जे । ८ लोइतरस जे । ९ वासेण व जे । १० मन्नइ जे । ११ घरे वासं ति सू । १२ गमनन्ति सू । १३ हलन्तडि सू । १४ "राण उन्नमणे जे । Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउप्पन्नमहापुरिसचरियं । इय जायसासहरिसियपामरजणजणियछेत्तहलबोलो। ववसायसहाओ पिहलवच्छ ! समवडिओ सरओ।। ६४॥ तओ एयमायण्णिऊण सत्यवाहेण सदाविओ माणिभद्दो, भणिओ य जहा-गलिओ ववसायणियलबंधो पाउससमओ, उवागी उच्छाहसहाओ सरओ, अज्जेव कीरउ गमणारम्भो त्ति । माणिभद्देणावि 'एवं कीरइ' ति भणिऊण घोसावियं सत्थे पयाणयं । समाउलीभूया सत्थिया । पयत्ता णिएसु वांवारेसु । पउणिज्जंति भंडीओ। संजत्तिज्जन्ति उद्देमंडलीओ। पैल्लाणयंति महिससत्थं थोरिया। आरोविजन्ति लगडाओ रासभेमु । एवं च महारंभेणं पयट्टो सत्थो । गओ अणवरयपैयाणएहिं वसंतरं। आयरिया य लंघिऊण महाडइं दाऊण धम्मलाई सत्यवाहस्स जहासुहेण विहरिउमाढत्ता । सत्यवाहो य विणिओयियभंडो समासाइयजहिट्ठलाहो गहियपडिभंडसारो समागओ खिप्पइटिए णयरे । कालेणमाउमणुवालिऊण मओ समाणो दाणतरुकुसुमुग्गमाणुभावेणं उत्तरकुराए सीयाए उत्तरे कूणे जंबुवरपायवस्स पुत्वेणं तिपलिओवमाऊ तिगव्वुस्सुओ मिहुणर्गत्तेणं समुप्पण्णो त्ति । तत्य कप्पतरुयरेहितो जहिच्छियासेससंपज्जंतसयलिंदियत्यो सुरलोयब्भहिए भुंजिऊण भोए आउसेसयाए मरिऊण साहुदाणाणुहावेणं तिपलिओवमाऊ सोहम्मे कप्पे देवत्तणेणं समुप्पण्णो त्ति ?, अवि य अवियाणियसहयरिविरहवियणगुरुकप्पतरुवरघरम्मि । चिन्तामेत्तुप्पाइयमणहरसयलिंदियत्यम्मि ।। ६५ ।। णिद्दलियपुढविपरिणामदोसवित्थरियसोक्खजलहिम्मि । ईसाविसायविणडियसुरलोय उवहसन्तम्मि ॥६६॥ भोत्तूण तियसणाहो व तस्थ भोए वरम्मि सोहम्मे । उववष्णो दाणफलावसेसपुण्णुजियजसोहो ॥ ६७ ॥ तियसंगणाविसहतसरसमुहकमलभसलकयलीणो । मुंजइ भोए पलिओवमाइं हिट्ठो तहिं तिणि ॥ ६८ ॥ तओ भुंजिऊण भोए आउयमणुवालिऊण चुओ समाणो इहेच जंबुद्दीवे दीवे अवरविदेहे वासे गंधिलावइविजए वेयड्ढपन्चए गंधारजणवए गंधसमिद्धे णयरे सयबलस्स राइणो चंदकंताए भारियाए पुत्तत्तेणं समुप्पण्णो। पइटावियं च से णामं महाबलो। वढिओ य सह कलाहि । परिणाविओ य पिउणा विणयवई मारियं, पत्तो य जोधणं । अण्णया यपिउणा सयबलेणं कुलक्कमागयस्स मंतिणो विमलमइणामस्स सयलकला-सत्यऽस्थपारगस्स भत्तस्स विणीयस्स वीसंभथाणियस्स णिहित्तसयलरज्जभारस्स जिणवयणभावियमणस्स उवलद्धजीवादिपयत्थमइणो विण्णायसंसारसहावस्स समप्पिऊण अहिसित्तो। सयबलो वि तहाविहाणं आयरियाण सगासे पचइओ । मरिऊण य देवलोगं गओ। राया य महाबलो विमलमइमंतिसमेओ रज्जं पालेइ ।। ____ अण्णया य मंतिणा चिंतिय-"एस राया कुलकमागओ पिउणा समप्पिओ अम्होवरि अच्चन्तवीसम्भमुवगओ, ता एयस्स मित्तपुत्तस्स सज्जणस्स बंधुणो अच्चन्तोवयारपरस्स सामिसालस्स अम्हेहिं पाणेहि पि उवगरियव्वं, उवयाराणं च एस परमोवयारो जमविण्णायपरमत्यो दुग्गइमग्गपत्थिओ संसारसहावाऽऽसत्तो परमकल्लाणपरंपराकारणे णिरवायसोग्गइमग्गे जिणवर्यणे बोहिज्जइ । एसो उ अच्चंतभोगासत्तो पेक्खणरुई य । ता वेरग्गजणएणं णाडएणं एवं बोहेमि" । त्ति चिंतिऊण सदाविओ हरगणाभिहाणो नडो । लाइओ तस्स चिरन्तणकहासंबंधस्स णाडयस्स य वेरग्गजणणो एको अंको । विष्णत्तो अवसरं लहिऊण राया जहा-देव ! समागओ अच्चन्तरसभावण्णू सुकयकरणो चउबिहाहिणयपत्तट्ठो हरगणाभिहाणो णडो, तओ तहंसणेणं कुणउ देवो अणुग्गेहं ति । राइणा भणियं-एवं कीरइ त्ति । तओ सज्जिया रंगभूमी उबविट्ठो मन्तिसमेओ राया । गहियाओ जहाजोग्गं भूमियाओ कुसीलवेहिं । दिण्णो य समहत्थो मुरवाणं ति । १ सहावओ जे । २ पल्लाणियति जे । ३ प्पयाण जे । ४ ओइयजे। ५ सीयाए इति सू प्रतौ नास्ति । ६ गत्तणेण जे । ७ मइस्स जे। ८°णे वाहिज्जइ जे । ९ गहन्ति सू । Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [विबुधानन्दं नाम नाटकम्] (ततः प्रविशति नान्दी, परिक्रम्य च-) राजीमत्यवधारय प्रियकथामात्मानमालोचय, किं कोऽपीह जगत्यनिन्धचरिते ! पत्युर्वियोगे मृतः? । इत्याकर्ण्य वचोऽवधार्य च ततो मूर्छा विनोदस्तया, चक्रे यस्य कृते स पातु भवतः श्रीनेमिनाथो जिनः ॥ १॥ निःशङ्कः पादपातैः स्फुटति वसुमती पर्वता मुक्तवन्धा, दोलायन्ते समन्ताद् भ्रमदिव गगनं लक्ष्यते दिग्भ्रमेण । उद्भ्रान्ताः सत्समुद्राः क्षुभितजलचराः शक्रनृत्ये प्रवृत्ते, जातं यजन्मकाले जगदिति भवतः पात्वसौ नेमिनाथः ।।२।। (नान्द्यन्ते) सूत्रधारः-आदिष्टोऽहमद्य साधुजनपर्षदा । यथा-अद्य त्वया कवेः शीलाङ्कस्य विमलमत्यभिधानस्य कृतिः विबुधानन्दं नाम नाटकं एकमङ्काख्यरूपकं नाटयितव्यमिति । यत्सत्यं ममापि विशेषवेदिन्यां पर्षदि प्रयुञ्जानस्य सफलः परिश्रमो भविष्यति, कवेरपि [च । स चेदमुक्तवान् वस्तूपाश्रयसौन्दर्यादपूर्वगुणमाप्नुयात् । स्वच्छं मौक्तिकतामेति शुक्तिमध्यगतं जलम् ॥ ३ ॥ लगति जनमनसि सकृदपि गदितैषा कृतिरसत्यपि सदा । द१ररटितमपि यथा भवति मुदे दृष्टिसूचनकम् ॥४॥ तद् यावद् गृहं गत्वा गृहिणीं विदितवृत्तान्तां करोमि । ( परिक्रम्य विलोक्य च आकाशे ) इदमस्मद्गृहम् , यावद् गृहिणीमाकारयामि-- गुणवत्युपभोगकरि ! प्रधानभूते ! मदर्थमुत्रुक्ते ! । मत्प्रकृतिसदृशर्मिणि ! कार्यादाथै ! द्रुतमुपैहि ॥ ५ ॥ ( प्रविश्य ) नटी-( सास्रम् ) आणवेदु अज्जो, को णिओओ अणुचिट्ट(ट्टी)यदु ? । सूत्रधारः-आर्ये ! सशोकेव लक्ष्यसे !, तत् कथयतु भवती शोककारणम् । नटी-अजउत्त ! कि ममं मंदभायाए सोयकारणेणं पुच्छिएणं ? । ता आणवेदु अंजो, किमणुचिट्ठीयदु ? । सूत्रधारः-आर्ये ! आदिष्टोऽहं साधुजनेन । यथा-अद्य त्वया विबुधानन्दं नाम नाटकं नाटयितव्यमिति । तत् सजा भवतु भवती। नटी-( सास्रम् ) नैच्च तुमं जो निच्चिन्तो । मज्झ पुण पुत्तस्स विवाहसमयाणंतरमेव णेमित्तिएणं कुटुंबभंगो समाइ8ो । तओ एयाए चिंताए भोयणं पि ण रोयइ, किं पुण गैच्चियव्यं । _सूत्रधारः-आर्ये ! कुटुम्बभङ्गः श्रुत इत्युद्विग्नाऽसि !, अलमुद्वेगेन । यतो नह्यपूर्वमसुलभमेतत् संसारान्तर्गतानाम् । अपि च किं दृष्टोऽसौ क्वचिदपि ? शङ्कित इति वा ? श्रुतोऽपि वा लोके ? । योऽनार्यया भविष्यति न खण्डितः कर्मणां गत्या ? ॥६॥ अन्यच्चार्ये ! घटयति विघटयति पुनः कुटुम्बकं स्नेहमर्थमनवरतम् । भवितव्यतैव लोके न खेदनीयं मनस्तेन ॥७॥ भङ्गं पुत्र-कलत्र-बन्धु-सुहृदामर्थस्य रूपस्य बा, संसारेऽपसदे विधानमतुलं पश्यन्नपीहेत ततः । स्वस्मिन् कर्मणि मोहितो हि सततं मूर्खस्तथा पण्डितस्तस्मात् सुभ्र ! विहाय शोकसरणी कार्ये मनो दीयताम् ॥८॥ १ आज्ञापयतु आर्यः, को नियोगोऽनुष्ठीयताम् ? । २ आर्यपुत्र ! किं मम मन्दभागायाः शोककारणेन पृष्टेन ? । तद् आज्ञापयतु आर्यः, किमनुष्ठीयताम् ।। ३ अध्यो जे । ४ नृत्य त्वं यो निश्चिन्तः । मह्यं पुनः पुत्रस्य विवाहसमयानन्तरमेव नैमित्तिकेन कुटुम्बभङ्गः समादिष्टः । तत एतया चिन्तया भोजनमपि न रोचते, कि पुनर्नर्तितव्यम् ? । ५ णच्चियब्वय जे। ६ न्नपीहा ततः जे। Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउप्पन्नमहापुरिसचरिय। (नेपथ्ये) एवमेवैतत् , कः सन्देहः । (उभावाकर्णयतः ।) नटी- अजउत्त ! को उण एसो अज्जउत्तवयणमणुकरेइ ? । सूत्रधारः- (निर्वर्ण्य ) आर्ये ! कञ्चकी स्वकार्यावेदनाकृतहृदय इत एवाभिवर्तते, ततो गच्छावः । (परिक्रम्य निष्क्रान्तौ ।) ॥ प्रस्तावना ॥ (ततः प्रविशति चिन्तां नाटयन् कञ्चुकी ।) कञ्चकी - अहो ! जराजीर्णदेहस्योद्यापि मे सेवाभियोगः, न धर्मोद्यमः। अपि चपिपतिषुरद्य श्वो वा जराघुणोत्कीर्णदेहसारोऽपि । धर्म प्रति नोद्यच्छति वृद्धपशुस्तिष्ठति निराशः ॥९॥ बालेऽस्ति यौवनाशा, स्पृहयति यौवनमपीह वृद्धत्वम् । मृत्यूत्सङ्गगतोऽयं वृद्धः किमपेक्ष्य निधर्मः ? ॥ १०॥ ___ खण्डयतु जरा रूपं, नाशं स्मृति-मेधयोश्च विदधातु । यद् गौरवमपि गच्छति तेनाकालेऽप्यहं पलितः ॥११॥ आदिष्टोऽहं राज्ञा राजशेखरेण, यथा- गच्छ भो माधव ! योऽयमस्मदन्तिकं लक्ष्मीधरकुमारः कोपात् समायातः कुलजः प्रश्रयवान् सर्वकलापारगो ललितललितैरङ्गैरनङ्ग इव लोकमभिभवति, तदस्मै समानवयो-रूप-कुलयोग्याय अस्मदुदुहितरं बन्धुमती राज्याध च नियोजय । कथितं च मे वन्धुमतीसख्या चन्द्रलेखया, यथा-परस्पराऽविदितकुला-ऽभिधानयोरेच वच्छयोः सकृदर्शनेनैव परां कोटिमारूढः प्रेमानुबन्ध इति । निवेदितं च मे राजकुलानिच्छि]तः लब्धप्रत्ययेन सिद्धादेशनाना सांवत्सरिकेण, यथा -- गच्छ भो माधव ! कार्यसिद्धये, तत्र सेत्स्यति भवतः सर्व समीहितम् , किन्त्ववसानविरसमिति, अवश्यम्भाविनश्च भावा न विधिनाऽपि प्रतिकूलयितुं शक्या इति भणित्वा गतोऽसौ । तत्र न विद्मः किं भविष्यति ? इति । यदि वा अवश्यम्भावित्वे किं चिन्ताखेदेन ? । यद् भवति तद् भवतु । निवेदितं च मे दैविक्या वाचा, यथा-"विहाय शोकसरणी कार्ये मनो दीयताम्" [पञ्चम् ८] (इति पुनस्तदेव पठति ।) तत् क्व पुनर्मया लक्ष्मीघरकुमारो द्रष्टव्यः? । ( अग्रतो विलोक्य ) कुतश्चिन्निमित्तात् प्रहृष्टबदनकमलो दिशोऽवलोकयन् तदनुचरो बटुरित एवाभिवर्तते । यावत् प्रतिपालयामि। (ततः प्रविशति हृष्टो विदूषकः ।) विदूषकः-हीही! भो! पेसिओ म्हि जणयसंदेमुत्तेयवियखत्तियवीरिएणं पियवयंसएणं । जहा- गच्छ भो विचित्त ! जाणाहि 'कहिं राया वट्टइ ? ' त्ति। सुयं च मए, जहा- राइणा कुमारस्स दाउमाइ8 रजस्स अद्धं नियसुया य। दिट्ठिया, अण्णहा पिउणो सम्भावणा, अण्णह चिय कुमारपुण्णाणुभावेणं गुण-रूाखित्तहियो जणो अणुचिट्ठइ त्ति। (अग्रतो विलोक्य) एसो हु राइणा पेसिओ कंचुई। ता एयस्स पुरओ लीलायमाणो लीलायमाणो चिहिस्सं । (तथा करोति ।) कचुकी-(उपसृत्य) भो बटो! क्यास्ते त्वदीयो राजा? इति। (विदूषकः ऊर्चमवलोकयति।) कञ्चुकी-(आत्मगतम् ) कथमयमुन्मत्त इव चेष्टते ?। यदि वा ब्राह्मणवटुः, अपरं मूर्खः, पुनश्च राजसुताभाषित इति महत्यनर्थमालेति। भवतु, एवं भणि(लि)ष्ये। (प्रकाशम् ) भो दुष्टबटो! विरूपोऽपि भूत्वा एवं विकुरुषे ?। १ अय्यउत्त ! जे, आर्यपुत्र ! कः पुनरेष आर्यपुत्रवचनमनुकरोति ?। २ स्यापि सू। ३ साम्वत्स सू। ४ हीही! भोः। प्रेषितोऽस्मि जनकसन्देशोत्तेजितक्षत्रियवीर्येण प्रियवयस्येन, यथा-गच्छ भो विचित्र !, जानीहि कुत्र राजा वर्तते ? इति । श्रुतं च मया, यथा-राज्ञा कुमारस्य दातुमादिष्ट राज्यस्यार्ध निजसुता च। दिष्टया, अन्यथा पितुः सम्भावना, अन्यथैव कुमारपुण्यानुभावेन गुण-रूपाक्षिप्तहृदयो जनोऽनुतिष्ठतीति। एष खलु राज्ञा प्रेषितः कञ्चकी, तद् एतस्य पुरतो लीलायमानो लीलायमानः स्थास्यामि । ५ च मे जहा जे। ६ रूवखि(क्खि)त सू...jainelibrary.org Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ रिसहसामि- २ भरहचक्कट्टिचरियं । विदूषकः- अइ ! कयंतअद्विसमं अप्पाणं न पलोएसि उव्वसियदंतमालामुहवेविरसरीरं जेण परं उवहससि ।। कञ्चुकी- भवतु, किं तवानेन ?। तत् कथय क्वास्ते ते राजा ? इति येन तस्मै प्रियं निवेदयामि । विदूषकः-अह बम्भणस्स किमेत्थ भविस्सइ ? ति।। कञ्चुकी-साम्पतमुत्सवः, ततो विशिष्टो लाभः। विदूषकः-संर्पयमूमवो, तयणंतरमणूसवो, तओ हरिस-विसाएहिं चेव होयव्वं । ण पुण एत्थ बम्भणस्स किंचि । कञ्चकी-मूर्ख ! किमादावेवामङ्गलमुच्चारयसि ? । विदूषकः -नों एत्थ वायामेत्तेण किं पि संपज्जइ । जइ पुण तहा ता महं मोयया किं न संपज्जति ? । (ततः प्रविशति गृहीतलड्डकपडलिका चेटी।) चेटी-पेसिय म्मि सामिणीए, जहा-हंजे चउरिए ! वाहि गंतुं इमे मोयए बंधुमइसोभणवरलाभणिमित्तं भयवतीए कुलदेवयाए ढोइय ता अइहिविसेसस्स पयच्छ । कहिं पुण अइहि पेक्खिस्सं १ । कञ्चकी-(विलोक्य ) अये ! राजमहिष्याः सम्बन्धिनी चेटी चतुरिकेयम् । चतुरिके ! कोचलिताऽसि । चेटी-भेयवं ! पणमामि । कञ्चकी-सुभगा भव । चेटी-"पेसिय म्हि सामिणीए०। (पुनस्तदेव पठति ।) कचकी-यधेवमस्मै प्रयच्छ । (विदूषकमुद्दिशति ।) (चेटी तथाकरोति) कञ्चुकी-भो अवितथवादिन् ! इमे मोदकास्त्वदुक्तितः सम्पन्ना इति । विदूषकः-जैइ एवं ता मह वयंसो देवो होही इति । कञ्चकी-आ दुष्टबटो ! अमङ्गलिक ! धिक् त्वाम् । अहं कुमारान्तिकं यास्यामीति । (निष्क्रान्तः) विदूषकः -- (सतोषो मोदकान् नाटयेनावलोक्य ) भौई ! इमेहिं सुसिणिद्धेहिं सुपरिणाहाहोएहिं बहुजणपत्थणिज्जेहि तुह थणकलसेहिं विअ दंसणमुवगएहिं वि तहा परितुट्ठो, ण जहा वयंसलाहपउत्तीए वि । (ततश्चेटी कुपितेवावलोकयति । ) विदूषकः-'भोदि ! पुणो वि रूसिऊण इमेहि घणकसिणबहलपम्हलपक्खउडदरुम्मिल्लंततरलतारयावन्न(नेत्त)णिग्गयधवलजोण्हापवाहविच्छड्डगम्भिणेहिं कडक्खविक्खेवेहिं पलोएसि ! । दढं दढं कोऊहलाउलो म्हि । चेटी-हयास ! जइ ण गेण्हसि ता अण्णत्थ गच्छिस्सं । विदूषकः - अण्णत्थ वि गयाए तुह किमम्ह हियं भविस्सइ ? त्ति । ननु तुह घरे चेव ताव चिट्ठतु । पुणो राउलाओ णिक्खमन्तो"गेण्हिस्सामि। चेटी-तथा । ( इति भणित्वा निष्क्रान्ता।) १ अयि ! कृतान्तार्थिसममात्मानं न प्रलोकयसि उद्वसितदन्तमालामुखवेपितृशरीरं येन परमुपहससि ! । २ किन्तवा सू । ३ अथ ब्राह्मणस्य किमत्र भविष्यति ? इति। ४ साम्प्रतमुत्सवः, तदनन्तरमनुत्सवः, ततो हर्ष-विषादाभ्यामेव भवितव्यम् । न पुनरत्र ब्राह्मणस्य किञ्चित् । ५ नात्र वाङ्मात्रेण किमपि सम्पद्यते। यदि पुनस्तथा तर्हि मम मोदकाः किं न सम्पद्यन्ते ।। ६ वायमें जे। ७ प्रेषिताऽस्मि स्वामिन्या, यथा - हम्जे चतुरिके । बहिर्गन्तुमिमे मोदका बन्धुमतीशोभनवरलाभनिमित्तं भगवत्यै कुलदेवतायै ढौकयित्वा ततोऽतिथिविशेषाय प्रयच्छ । कुत्र पुनरतिथि प्रेक्षिष्ये ? । ८ चतुरिए जे। ९ भगवन् ! प्रणमामि । १० प्रेषिताऽस्मि स्वामिन्या० । ११ यद्येवं तद् मम वयस्यो देवो भविष्यतीति। १२ भवति ! एभिः सुस्निग्धैः सुपरिणाहाभोगै हुजनप्रार्थनीयैस्तव स्तनकलशैरिव दर्शनमुपगतैरपि तथा परितुष्टः, न यथा वयस्यलाभप्रवृत्याऽपि। १३ भवति! पुनरपि रुष्ट्वा एभिर्घनकृष्णबहलपक्ष्मलपक्ष्मपुटेषन्मीलत्तरलतारकनेत्रनिर्गतधवलज्योत्स्नाप्रवाहविच्छर्दगर्मितैः कटाक्षविक्षेपैः प्रलोकयसि!। दृढं दृढं कुतूहलाकुलोऽस्मि। १४ हताश ! यदि न गृणासि तर्हि अन्यत्र गमिष्यामि । १५ अन्यत्रापि गतायास्तव किमस्माकं हृत भविष्यति ? इति। ननु तव गृहे एव तावत् तिष्ठन्तु । पुना राजकुलाद् निष्कामन् ग्रहीध्यामि। १६ गिहिस्सामि जे। Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउप्पन्नमहापुरिसचरियं । विदूषकः - केहें महई वारा णिग्गयस्स ? | जड़ पुण पियवयंसो जणयत्रयणुत्तेयविओ मह पउत्तिमणपेक्खिऊणमिहाऽऽगच्छेज्जा ! | २० ततः प्रविशति संरब्धो यथोदिष्टः कुमारः । ) कुमारः - कथमेतत् सन्दिष्टं तातेन ?, यथा- एकाकी त्वं निर्गतः सामग्रीविकलः, न चैकाकिभिः पृथिवीलाभ - पालने शक्ये विधातुमिति । तत् किं तातेन 'मदपत्यम्' इति न सम्भावितः ?, किं सिंहस्य वने विचरतः सहायैः कृत्यम् ? तथाहिवज्रप्रकोष्टकर जाग्रचपेटवातनिष्पिष्टद न्तिदशनोत्कटमौक्तिकौघः । सिंहः सहायविकलोऽपि दलत्यराती नन्तर्गतं ननु सदैककमेव सच्वम् ।। १२ ।। अपि च rrorist युधि नै शङ्कितमनाः स्वच्छन्दमृत्युर्यतः पार्थोऽपीश्वरकेशवर्षितबलो राधेयरक्षा रवेः । पौलस्त्योऽतिबलो भवादनुगुणा द्रोणादयोऽप्यन्यतो, यद् वीर्यं सहजं हरेरिव सदा तद् वीर्यवान् श्लाध्यते ॥ १३॥ अन्यच्च यदुक्तं तातेन, यथा- अस्मदुच्छादितगतिगम्यः कथं भविष्यति ? इति तत्रापि स्नेहोपचाराधीनस्तातः । यतःदुरचापगुणकर्षकिणिप्रकोष्ठो, वागावशीर्णरिपुचक्रविकीर्णतेजाः । शौर्यानुरागरसको ललितोरुचेष्टो, भ्रूक्षेपमात्रगतिकां वसुधामटामि ॥ १४ ॥ विदूषकः- - (सहसोपसृत्य ) जयतु जयतु कुमारः ( जयउ जयउ कुमारो ) । कुमारः - सखे ! कास्ते राजा ? किंचेष्टो वा ? | विदूषकः - कुमार ! ण सम्ममुवलक्खीयइ । ता मुहुत्तगं इमीए कण्णंतेउरचित्तसालाए बीसमम्ह । पुण इह "य्येव सम्मं जाणिऊण गच्छिस्सामो । कुमारः -- यदि पुनरिहस्थितौ काचित् कन्याऽऽवां पश्येदिति ! | विदूषकः - वैयंस ! अविरुद्धं कण्णादंसणं ति । कुमारः - एवमिति । ( तथा कुरुतः ) (ततः प्रविशति बन्धुमती चन्द्रलेखासमन्विता स्वैभव नवातायनस्थिता । ) चन्द्रलेखा - भट्टिदारिए ! एस ते हिययदइओ, ता वीसत्थं पिच्छउ पियसही, णेउ अत्तणो णयणणिम्माणं सफलत्तणं ति । इमाहिं चित्तवट्टियाहिं आलिहउ एयरूत्रं, पयडेउ विद्धदंसणेणं विष्णाणाइसयं ति । ( ततो बन्धुमती दृष्ट्वा साशङ्केव विस्मयोत्फुल्ललोचना गृहीतवर्तिका लिखितुमारब्धा । ) बन्धुमती - संहि ! णयणाणि रूवदंसणूसुयाणि, सवणा वि सदसवणूसुया, सिज्जिरकरंगुली तग्गयहियया य कह णु णिम्मविस्सं चित्तं ? । अवि य पियदंसण- फंसुप्पित्थहिययसिज्जिरकरग्गदेसाऽहं । पियसहि ! विसमाऽवत्था ण याणिमो कह णु चित्तिस्सं? ॥१५॥ ( लिखित्वा निर्वर्ण्य ) सहि !, १ कथं महती वारा निर्गतस्य ? | यदि पुनः प्रियवयस्यो जनकवचनोत्तेजितो मम प्रवृत्तिमनपेक्ष्येद्दाऽऽगच्छेत् ।। २ सिंघः जे । ३ वाहित जे । ४ कुमार ! न सम्यगुपलक्ष्यते । तद् मुहूर्तमेतस्यां कन्यान्तःपुरचित्रशालायां विश्राम्यावः । पुनरिहस्थितावेव सम्यग् ज्ञात्वा गमिष्यावः । ५ ज्ञेव सू, एवं प्रस्तुतनाटकपरिसमाप्तिपर्यन्तं 'य्येव स्थाने सूपुस्तके 'जेव' इति पाठो बोद्धव्यः । ६ वयस्य । अविरुद्धं कन्या दर्शनभिति । ७ स्वभुवन सू । ८ भर्तृदारिके ! एष ते हृदयदयितः, तस्माद् विश्वस्तं पश्यतु प्रियसखी, नयत्वात्मनो नयननिर्माण सफलत्वमिति । अभिश्वित्रवर्निकाभिराखित्वेतद्रूपम्, प्रकटयतु विद्धदर्शनेन विज्ञानातिशयमिति । ९ सखि । नयने रूपदर्शनोत्सुके, श्रवणावपि शब्दश्रवणोत्सुकौ, स्वेत्तृकराड्गुली तद्गतहृदया च कथं नु निर्मास्यामि चित्रम् ? अपि च प्रियदर्शन-स्पर्शाऽऽकुलहृदयस्वेत्तृकराय देशाऽहम् । प्रियसखि ! विषमाऽवस्था न जानामि कथं नु चित्रयिष्ये ? ॥ १५ ॥ For Private Personal Use Only सखि! Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ रिसहसामि -२ भरहचक्कवष्टिचरियं । ___ २१ चित्तगओ वि पिययमो किं पि [हु] तरलेइ माणसावेयं । अंगेहिं सरस-पिय-कोमलेहि किं पुण सरूवेण ? ॥१६॥ किंच-णिस्संकं मंतिउमाढत्ता, ता णिहुयाउ सुणम्ह । ( उभे कर्ण दत्त्वा तथा कुरुतः ।) विदूषकः -भो ! सुमरसि तं जणणयण - मनोहारिणी उवहसियरइरूवविन्भमं पयट्टे जणुल्लालमयरहरे जा दिव? त्ति। कुमारः-प्रियवयस्य ! 'स्मरसि' इति न सम्यगभिहितं भवता । यतःप्रतिविम्वितेव हृदये केनाप्युत्कीलितेव लिखितेव । तन्मयमेव मम मनो वयस्य ! तस्याः कथं स्मरणम् ? ॥१७॥ अपि च-वयस्य ! रूपं सा च मनोहरा चतुरता वक्त्रेन्दुकान्तिः स्फुटा, विब्बोका हृदयङ्गमाः स्मितसुधागर्भ च तद्भाषितम् । लावण्यातिशयः सखे ! पुनरसी तत्प्रेक्षितं सस्पृहम् , मुग्धायाश्चरितं नितान्तसुभगं तत् केन विस्मयते ? ॥१८॥ चन्द्रलेखा-सुयं भट्टिदारियाए जं भणियं कुमारेणं ? । तओ जं मए भट्टिदारियाए पुरओ पुव्वं मंतियं जहा 'अणुरायणिभरो सो भट्टिदारियाए उवरि' ति तं सव्वं सञ्चं य्येव । बन्धुमती-अज वि सहि ! संदिद्धं चेव । इतरा-कह चिय?। बन्धुमती-जइ पुण अण्णा का वि तहाविहा दिट्ट त्ति भवे ! । इतरा-सहि ! मा एवं भण । जस्स तुमं एकसि पि गोयरे णिवडिया सो तुमं वज्जिऊणं किं कहिं पि अण्णत्थ चित्तं णिवेसेइ ? | अवि य सहयारमंजरिं वज्जिऊण महमहियपरिमलुग्गारं । अहिलसइ अक्कलियं कहिं पि किं महुयरजुयाणो ? ॥१९।। बन्धुमती-सहि ! एस से मह उवरि पक्खवाओ, मह उण हिययं अज वि संसयावन्नमेव । ता वीसत्था सुणम्ह । कयाइ विसेसावगमो भवे । कुमारः-सखे ! अद्य पुनरहं जाने-- पादावनतं त्यक्त्वा मामतिनिष्ठुरतया रुषोपेता । पुनरपि हृदयमनुगता किं चान्योति नो जाने ॥२०॥ ___ बन्धुमती-(सोद्वेगं दीर्ध निःश्वस्य ) सैंयं सहीए जमणेण पराहीणहियएण मंतियं ?। ता किं अज्ज वि तुम सच्चं य्येव ?, जओ देसणं विहाय पायवडणगोयरं किं कयाइ अयं जणो गओ ? । कुओ अम्हाण एत्तियाणि भागहेयाणि ? । ता अन्ज वि किं तुमं हियय ! जलभरिओ व्व घडओ ण सयहा भेयमुवगच्छसि ? । किं तुह निब्बंधकारणमिति। (भगित्वा मूर्छिता पतति । ) ___ चन्द्रलेखा-सैमस्सस्सउ समस्सस्सउ पियसही । कयाइ तुम येव चिंताणीया सुविणयगया भवे । ता पुणरवि मुणम्ह । (समाश्वस्य तथा कुरुतः ।) चित्रगतोऽपि प्रियतमः किमपि [खलु] तरलयति मानसावेगम् । अझैः सरस-प्रिय-कोमलैः किं पुनः स्वरूपेण ? ॥१६॥ किश निःशवं मन्त्रयितुमारब्धौ, तद् निभृते शृणुवः । १ भो! स्मरसि तां जननयन-मनोहारिणीमुपहसितरतिरूपविभ्रमा प्रवृत्ते जनोच्छलितमकरणहे या दृया ? इति । २ 'अपि च' इति सूपुस्तके नास्ति। ३ साऽतिमनोहरा च जे । ४ श्रुतं भर्तृ दारिकया यद् भणितं कुमारेण ?। ततो यन्मया भर्तृदारिकायाः पुरतः पूर्व मन्त्रित यथा 'अनु. रागनिर्भरः स भर्तृदारिकाया उपरि' इति तत् सबै सत्यमेव । ५ अद्यापि सखि ! सन्दिग्धमेव । ६ कथमिव ? । ७ यदि पुनरन्या काऽपि तथाविधा दृष्टेति भवेत् । । ८ सखि ' मैव भण । यस्य त्वमेकशोऽपि गोचरे निपतिता स त्वा वर्जयित्वा किं कुत्राप्यन्यत्र चित्तं निवेशयति ? । अपि च ___ सहकारमरि वर्जयित्वा मघधितपरिमलोद्गाराम् । अभिलपत्यर्ककलिकां कथमपि कि मधुकरयुवा ? ॥ १९ ॥ ५ सखि ! एष ते ममोपरि पक्षपातः, मम पुनर्हदयमद्यापि संशयापन्नमेव । तद् विश्वस्ते शणुवः । कदाचिद् विशेषावगमो भवेत् । १० श्रुतं सख्या यदनेन पराधीनहृदयेन मन्त्रितम् ? । तत् किमद्यापि तव सत्यमेव ?, यतो दर्शन विहाय पादपतनगोचरं किं कदाप्ययं जनो गतः । कुतोऽस्माकमेतावन्ति भागधेयानि । तदद्यापि कि त्वं हृदय| जलमृत इव घटो न शतधा भेदमुपगच्छसि ?, कि तव निबन्धकारणम् इति । ११ समावस्यता समाश्वस्यता प्रियसखी। कदाचित् त्वमेव चिन्तानीता स्वप्नगता भवेः । तत् पुनरपि शृणुवः । Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२ चउप्पन्नमहापुरिसचरिय। कुमारः --कथं पुनर्लक्षयति भवान् यथाऽसौ सानुरागा? इति । विदूषकः- 'किमेत्थ जाणियवं? अचंतमुक्खो वि जाणइ सहावाइरित्तेहिं विलासेहिं हिययगय पिययमाणुरायं, किं पुण अम्हारिसो पंडियजणो ? । कुमारः- के पुनस्ते विलासाः यैरुपलक्ष्यते स्नेहः । विदूषकः ---- वैयंस ! जइ तुमं पि अप्पणेणं य्येव कूरेणं पंडिओ करियव्यो ता सुणसुणिद्धमहुरा य दिट्ठी अलसं गमणं वियंभणं अहियं । इय एवमादिभावा पियाणुरायं णिवेएंति ॥२१॥ स चिय अंगढवणा स चिय दिट्टी ण होइ महिलाणं । णामे वि तस्स गहिए किं पुण सहसा पिए दिट्टे ? ॥२२॥ ईसिवियसंतणयणं कवोलमूलुल्लसंतसंवियासं । वयणं चिय महिलाणं साहइ हिययट्रियं दइयं ॥२३॥ कुमारः-सत्यमेव पण्डितो भवान् । एतत् तु भवता कुतोऽवसितं यथा 'असौ सानुरागा ?" इति । विदूषकः-किन लक्खियं भवया? । जहा-तीए तुमं दठ्ठणं समे वि खलिया गती, पुणरवि संठवियं ल्हसियमोढगयं :, ता एवमादिवियारेहिं साहिओ हिययावेओ । ण य कमलायां वज्जिऊण अण्णं सरं] रायहंसमाला अहिलसइ । ता छड्डेउ पियवयंसो पेमसुलहं अपए विषयासंकं ति । किंच-भवया दिवो राइणा पेसिओ कंचुई है। कुमार:- न दृष्ट इति । (ततः प्रविशति कन्चुकी।) कञ्चुकी-एप कुमारश्छायासेवनेन स्वस्थस्तिष्ठति । य एषः अगसमेतोऽनङ्ग इव राजते केवलं तु रतिरहितः। साऽपि समीपं यास्यति यद्यनुकूलं भवेद् दैवम् ॥ २४॥ यावदुपसामि । ( उपसृत्य च ) जयतु जयतु कुमारः। कुमार ! राजादेशात् किञ्चिद् वक्तव्यमस्ति, ततोऽस्यामेव चित्रशालिकोपरिभूमिकायां सुखासनस्थो भवतु कुमारः। कुमारः- (विचित्रमुखमवलोक्य ) एवं भवतु । को दोषः ?। आदेशय पन्थानम् । ( इत्यभिधाय शनैः शनैः ससख आरोढुमारब्धः।) कञ्चुकी-आगच्छत्वागच्छतु भवान् । (सर्वेऽपि परिक्राम्यन्ति ।) चन्द्रलेखा-सहि ! इह आरुहिउमाढत्ता। ता गच्छिऊण अण्णत्थ कुड्डन्तरियाओ सुणम्ह। कञ्चुकी-(वातायनस्थां पट्टमस्तरिकामुद्दिश्य) इदमासनम् , आस्थीयतामत्र । (कुमारस्तथा करोति । सुखासनस्थं च कुमारं कञ्चुकी वक्तुमुपचक्रमे ) कुमार ! राजा समाज्ञापयति, यथा-केन न विदितं भवदीयं राष्ट्रकूटं कुलम् ?, केन वा न ज्ञातः सकलपार्थिवचूडामणिः प्रसाधिताशेषदिग्वलयो जनितनिःशेषकमलाकरः अपूर्व इव शरत्समयः चन्द्रापीडाभिधानस्ते पिता ?, रूप-कला-विज्ञान-विनयास्तु प्रत्यक्षीकृता एव, तदिहागमनेन शोभनमकारि भवता, गृह्णातु च अस्मद्धृतये राज्याधैं बन्धुमती च कन्यकामिति। १ किमत्र ज्ञातव्यम् ? । अत्यन्तमूर्योऽपि जानाति स्वभावातिरिक्तैर्विलास हृदयगतं प्रियतमानुरागम् , किं पुनरस्मारशः पण्डितजनः ।। २ व ?। सहाबाई सू। ३ वयस्य! यदि त्वमप्यात्मीयेनैव कूरेण पण्डित. कर्तव्यस्तत् शृण स्निग्धमधुरा च दृष्टिरलसं गमन विज़म्भणमधिकम् । इत्येवमादिभावाः प्रियानुराग निवेदयन्ति ॥ २१ ॥ संवा स्थापना सैव दृष्टिन भवति महिलानाम् । नाम्न्यपि तस्य गृहीते किं पुनः सहसा प्रिये दृष्टे ? ।। २२ ॥ इंद्रिकसन्नयनं कपोलमूलोल्लसत्सविकासम् । वदनमेव महिलानां कथयति हृदयस्थितं दयितम् ॥ २३ ॥ सवियासि जे । ५ किन लक्षित भवता । यथा-तस्याः त्वां दृष्ट्वा समेऽपि स्खलिता गतिः, पुनरपि संस्थापितं स्तमुत्तरीयम्, तदेवमादिविकारैः कथितो हृदयावेगः । न च कमलाकरं वजयित्वाऽन्य राजहंसमालाऽभिलषते। तत् त्यजतु प्रियवयस्यः प्रेमसुलभामपदे विपदाशङ्कामिति । किश्च-भवता दृष्टो राज्ञा प्रेषितः कनकी ?। ६ सखि! इहारोदुमारब्धाः । तत् गत्वाऽन्यत्र कुख्यान्तरिते शणुवः । ७ चण्डापीडाले। Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ रिसहसामि- २ भरहचक्कवट्टिचरियं । २३ चन्द्रलेखा-पियसहि ! दीसइ ते मणोरहतरुणो कुसुमुग्गमो, ता सासंकमिव मह हिययं, ण याणामि किमेस भणिस्सइ ? ति। बन्धुमती-महं पि। कुमार:- कन्चुकिन् ! तिष्ठतु तावद् राज्याम्,ि प्रेषितो मया लेखवाहकः पितुरन्तिकं वार्तान्वेषणार्थ यावदसावागच्छति । कन्या तु युक्ता ग्रहीतुम्, उचित एव सम्बन्धो राज्ञा सह कर्तुम् , किन्तु न शक्यमन्यतः प्रवृत्तं चित्तमन्यतो दातुम् । बन्धुमती- हा ! हय म्हि मंदभाइणी । एवं पि सुणिऊण पियवयणं ण गच्छंति मे पाणा। (मूछौँ नाटयति ।) चन्द्रलेखा-समस्सस्सउ समस्सस्सउ भट्टिदारिया । कयाति तुहाणुगयचित्तो 'एसा पुण अण्ण' त्ति मण्णंतो एवं मंतेइ कुमारो। बन्धुमती-कुओ एत्तियाणि अम्हाणं भागधेयाणि ?। अहवा एयं पि विहिविलसिए सम्माइ त्ति। (ततः समाश्वसिति ।) विदूषकः-वयंस ! अपडिहयसासणो खु राया, पढमा य पत्थणा, ता ण जुज्जइ वयणमण्णहाकाउं राइणो । कुमार:-कञ्चुकिन् ! यधेवं निर्बन्धो भवतः तदानीं निवेदय राज्ञे, यथा- यद् राजा समादिशति तदेव क्रियत इति, सज्जोऽयं जनः। (परिक्रम्य निष्क्रान्तः कञ्चुकी।) विदूषकः-(चित्रं दृष्ट्वा ) भी वयस्स ! तुम पि केणावि लिहिओ। कुमार:- (निर्वर्ण्य ) एवमेवैतत् । तत् केन पुनः किंनिमित्तं वा लिखितः । विदूषकः-सेबमेयमहं जाणामि । कुमारः-महामन्त्रिन् ! कथय यदि जानीषे । विदूषकः-"किमेत्थ जाणियव्वं ?। जा इयं कंचुइणा तुम्ह निवेझ्या रायदुहिया तीए संपर्य य्येव तुमं लिहिओ, जओ चित्तवट्टियासमेओ समुगओ इह य्येव चिटइ । णिमित्तं पुण अणुरायपयडणं । कुमार:--विज्ञानाविष्करणमेतत् । अनुरागस्य तु किमायातमत्रादृष्टपूर्वे जने ?। विदूषकः --- कुमार ! जइ पुग एसा सा चेव भवे जा अम्हेहिं उज्जाणगमगावसरे दिट्ट त्ति । किं न संभाविजइ विहिविलसियस्स ? । जओ जं चिंतिज्जइ हियएण नेव जुजइ ण चेव जुत्तीहिं । विहडण-संघडणपरो तं पि हयासो विही कुणइ ॥२५॥ तो वयंसो वि इमाहिं य्येव चित्तबट्टियाहिं तं हिययगयपडिच्छंदयमवलोययंतो एयस्स समीवे अहिलिहतु, जओ ण कयाइ रेहइ रइरहिओ रइणाहो ति।। कुमारः-यदाह भवान् । ( इति भगित्वा लिखितुमारब्धः ।) चन्द्रलेखा-"पियसहि ! संपयं फुट्टिस्सइ "थिल्लं । णिव्वडिस्सइ जा कावि कयत्या एयस्स हिययगय त्ति। १ प्रियसखि ! दृश्यते तय मनोरथतरोः कुसुमोद्गमः, तत् साशङ्कमिव मम हृदयम् , न जाने किमेष भणिष्यति ? इति । २ ममापि। ३ हा ! इताऽस्मि मन्दभागिनी । एवमपि श्रुत्वा प्रियवचनं न गच्छन्ति मे प्राणाः । ४ समाश्वस्यता समाश्वस्टतां भर्तदारिका । कदाचित् त्वदनुगतचित्तः एषा पुनरन्या' इति मन्यमान एवं मन्त्रयति कुमारः । ५ कुत एतावन्त्यस्माकं भागधेयानि ? । अथवैतदपि विधिविलसिते सम्मातीति । ६ एवं पिजे । ७ वयस्य ! अप्रतिहतशासनः खलु राजा, प्रथमा च प्रार्थना, तन्न युज्यते वचनमन्यथाकतु राज्ञः । ८ भो वयस्य ! त्वमपि केनापि लिखितः । ९ सर्वमेतदहं जानामि । १० मेवमहं जे। ११ किमत्र ज्ञातव्यम् ? । या इयं कञ्चुकिना तव निवेदिता राजदुहिता तया साम्प्रतमेव त्वं लिखितः, यतश्चित्रवर्तिकासमेतः समुद्गक इहैव तिष्ठति । निमित्तं पुनरनुरागप्रकटनम् । १२ कुमार ! यदि पुन रेषा सैव भवेद् याऽऽवाभ्यामुद्यानगमनावसरे दृष्टेति । किं न सम्भाव्यते विधिविलसितस्य ? । यतः यच्चिन्त्यते. हृदयेन नैव युज्यते न चैव युक्तिभिः । विघटन-सङ्घटनपरस्तदपि हताशो विधिः करोति ॥ २५ ॥ तद् वयस्थोऽप्याभिरेव चित्रवर्तिकाभिस्तां हृदयगतप्रतिच्छन्दकामवलोकयन्नेतस्य समीपेऽभिलिखतु, यतो न कदापि राजते रतिरहितो रतिनाथ इति । १३ तो सू । १४ प्रियसखि ! साम्प्रतं स्फुटिष्यति थिल-रहस्यम् । निष्पत्स्यते या काऽपि कृतार्था एतस्य हृदयगतेति । १५ विलंसू Lorary.org Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउप्पन्नमहापुरिसचरियं । - ( अभिलिख्य निर्वर्ण्य च ) वयस्य ! न सम्यक् तस्या रूपानुरूपं विद्धं विधातुम् । पश्य घुणाक्षराकारमदो मतिर्मे मन्ये विधात्राऽपि न शक्यमन्यत् । रूपं विधातुं रुचिराङ्गयष्टेः कुर्यात् कथं तद् भुवि मादृशोऽन्य (१ इ: ) ।। २६ ।। तद् वयस्य ! मा कश्चिदन्यथा सम्भावयेदिति निर्गच्छावः । २४ कुमारः विदूषकः -- एवं करम्ह, एदु एदु भवं । चन्द्रलेखा - पियसहि ! णिग्गया एए । ता पेच्छम्ह का से हिययदइया जा अभिलिहिया ? | (निर्गत्यावलोक्य च ) चन्द्रलेखा --- पियसहि ! तुमं य्येव लिहिया । ता जं मए पुत्रं मंतियं तं सव्वमेव कुमारेण तुमं लिहिऊण सचं कयं । ता समस्ससउ समस्सस पियसही । (बन्धुमती सहर्षा सलज्जेव संवृत्ता । ) कुमारः - सखे ! मा कश्चिदविनयमस्माकं सम्भावयिष्यति, अतो गत्वाऽस्मल्लिखितं चित्रमपनय । विदूषकः - एवं करेमि । ( समारूढः । विधृतश्च चन्द्रलेखया । ततो वातायनस्थः कुमारमाह्वयति, पूत्करोति च ) भो भो पिययंस ! अमेत्थ केणावि धरिओ । ता सई य्येव कुमारो आगंतूणं मं मोयावेउ । ( कुमारस्तथा करोति । पश्यति च समारूढः चन्द्रलेखासमन्वितां बन्धुमतीम् । परस्परानुरागं नाटयतः । ) कुमारः ( आत्मगतम्) अहो ! अतिशयवतां गुणानामेकत्र समवायः । तथा हिकान्त्या चन्द्रमसं जिगाय सुमुखी नीलोत्पलं चक्षुषा, गत्या हंसमशोकपल्लवगुणं पाण्याकृतिर्वाधते । सच्चामीकरचारु कुम्भयुगवत् तन्व्याः स्तनौ राजतः, श्रोणीमन्मथमन्दिरोरुयुगलं स्तम्भायतेऽस्याः स्फुटम् ॥ २७ ॥ अपि च----- नामूर्ती न च कौमारतिपतेन पञ्चमोद्गीतयो, 'ये ते स्तम्भन - मोहनादिकमधु ( घो) र्वाणा जगद्व्यापिनः । नूनं धनुषः कटाक्षवपुषो नेत्रत्रिभावोद्भवास्तेऽमुष्याः कथमन्यथेक्षणगुणा मामाकुलं कुर्वते ? ।। २८ ।। (प्रकाशम) सखे ! केन विवृतः ? | चन्द्रलेखा -- णु अम्हेहिं । बन्धुमती ( अपवार्य) हेला चेंदले हे ! जइ पभवसि अत्तणो सरीरगस्स ता तुमं य्येव जमेत्थ भणियव्वं तं सव्वं भणसुचि । चन्द्रलेखा - भट्टिदारिए । सव्वमहं पत्तावसरं भणिस्सामि । ( प्रकाशम्) किमम्हाणं पियसही लिहिय ? ति 'सावराहो' सिकाऊन धरिओ । कुमारः-- अस्त्ययमपराधः । नास्माभिर्ज्ञातम्, यथा- एषा ते प्रियसखी । इयं त्वस्माकमैतीवचित्तखेदकारिणीति कृत्वा लिखिता । विदूषकः -- अँये असमंजस कारियाओ ! एस अम्हाणं पियवयंसो तुम्हेहिं किं लिहिओ ? । १ तद्विधिमा जे । २ एवं कुर्वः, एतु एतु भवान् । ३ प्रियसखि ! निगतावेतौ । तत् प्रेक्षावहे, का तस्य हृदयदयिता याऽभिलिखिता ? । ४ प्रियसखि ! त्वमेव लिखिता तद् यन्मया पूर्व मन्त्रितं तत् सर्वमेव कुमारेण त्वां लिखिता । सत्यं कृतम् । तत् समाश्वसितु समाश्वसितु प्रियसखी । । ७ नम्वावाभ्याम् । ५ खच्चीकयं सू । ६ एवं करोमि । भो भो प्रियवयस्य ! अहमत्र केनापि घृतः तत् स्वयमेव कुमार आगत्य मां मोचयतु ८ सखि चन्द्रलेखे ! यदि प्रभवस्यात्मनः शरीरकस्य तत् त्वमेव यदत्र भणितव्यं तत् सर्व मण इति । ९ चन्द्रलेहे जे | १० भदा सू, भर्तृदारिके ! सर्वमहं प्राप्तावसरं भणिष्यामि किमस्माकं प्रियसखी लिखिता ? इति 'सापराधः ' इति कृत्वा धृतः । ११ तथैषा जे । १२ मत्यन्तं चित्त जे । १३ अयि असमञ्जसकारिके ! एषोऽस्माकं प्रियवयस्यो युवाभ्यां किं लिखित: ? । *For Private & Personal te Only Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ रिसहसाम - २ भरहचक्कवट्टिचरियं । चन्द्रलेखा - जेणे निमित्तेण अम्ह पियसहि त्ति । विदूषकः -- ती दोन्हं पि सावराहाणं अहं समारणं करेमि । ( इति भणित्वा नायिका - नायकयोः करं करेण लगयति । ) बन्धुमती - अज्जउत्त ! कओ परिहासो, जाणिया उवरोहसीलया तुहं, ता मुंच करं । नायकः- चिरमाशंसितस्पर्शो येन स्वप्ने प्रसारितः । स कथं मुच्यते प्राप्तः परितोषकरः करः ? ।। २९ ।। चन्द्रलेखा कुमार ! न जागामि किं कहिस्सइ कंचुई ? इइ उत्तम्ई मे हिययं । विदूषकः - 'भोदि ! जं कहउ तं कहउ कंचुई, वित्तं खु पाणिग्गहणं । (ततः प्रविशति कचुकी । मुञ्चति च करं कुमारः 1 ) ककी दिष्ट्या वर्धस्व । सर्व यथावस्थितमेव निवेदितं मे राजराजाय । राज्ञाऽपि सहर्षेण सांवत्सरिकः समाहूय पृष्टः । तेनाप्यद्यैवाऽऽसन्नकाल एव लग्नसमयो निवेदितः । ततो राजा सपरिजनः सान्तःपुरो विवाहसामग्री प्रति समाकुलीभूतः । तद् गच्छतु भवान् सवधूकः । भवदागमनोन्मुखोऽविधवस्त्रीज नस्तिष्ठतीति । किञ्च -- राजा समाकुलोऽसौ तिष्ठत्यधुनैव परिजनसमेतः । गन्तव्यं सह वध्वा त्वरतु भवान् ढौकते कालः ॥ ३० ॥ इति । हहहः ! विरूपमापतितम्, 'ढौकते लग्नम् ' ( इति पठति । ) बन्धुमती - हयास ! पडिहयं खु ते वयणं । कुमारः - आयें ! कुतोऽस्य दोषः ? । यतः - अवश्यम्भाविनो भावाः सूचयन्ति यथा तथा । अनागतनिमित्तानि दोषवान् योऽवधीरयेत् ॥ ३१ ॥ किञ्च --.. २५ प्राप्तं दर्शनमुत्सुकेन मनसा यत् काङ्क्षितं सर्वदा, लब्धं सर्वमुरातिशायि विधिवत् स्पर्शोरुसौख्यं ततः । कर्णौ शब्दकुतूहलाकुलतरौ वाक्यामृतापूरितौ, जातं जन्मफलं भवत्वखिलितं यद् भावि सज्जा वयम् ॥ ३२ ॥ कञ्चुकी – कुमार ! किमनेनामङ्गलवचनेन ? । तद् गच्छतु भवान् । स्वमपि वच्छे ! गच्छ, सज्जा भव । ( [ सर्वे ] परिक्रम्य निष्क्रान्ताः । ) कचुकी -- अहमपि राजादेशं पौराणां निवेदयामि । (प्ररिक्रम्य) भो भोः पौराः ! राजा समादिशति, यथा - बच्छाया विवाहसमयो वर्तते, तत उच्च्छ्रुतध्वज पताकं कृतविषणिशोभं पुरं कुरुध्वम् । ( परिक्रम्य अवलोक्य च ) अये ! महती वेला वर्तते, महांच निनादो राजकुले श्रूयते, ततो न विद्मः किमभूद् राजकुले ? | महती च मे वारा निर्गतस्य । ततो राजकुलाभिमुखमेव यास्यामि । (नेपथ्ये ) हा ! कष्टम्, धिगहो ! कष्टम् । कञ्चुकी – ( सराङ्कः ) किमेतद् ? ( इति कर्णं ददाति । पुनरपि कष्ट गर्भमाकर्ण्य ) अये ! राजध्वनिरिव लक्ष्यते, तत् किमेतत् स्यात् ? इति । ततो राजान्तिकमेव यास्यामि । ( इति निष्क्रान्तः । ) १ येन निमित्तेनास्माकं प्रियसखीति । २ तद् द्वयोरपि सापराधयोरहं समास्वनं करोमि । ३ आर्यपुत्र ! कृतः परिहासः, ज्ञातोपरोधशीलता तव, तद् मुञ्च करम् । ४ कुमार ! न जाने किं कथयिष्यति कचुकी ? इत्युक्त्ताम्यति मे हृदयम् । ५ इ मह हि जे । ६ भवति । यत् कथयतु तत् कथयतु कटुकी, वृत्तं खलु पाणिग्रहणम् । ७ हताश ! प्रतिहतं खलु ते वचनम् । ८ विविधस्पर्शो जे । Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउप्पन्नमहापुरिसचरियं । (ततः प्रविशति शोकापन्नः चित्रलेखाभिधानया राजमहिण्या सह राजा विलेपंश्च परिवार ।) __ राजा--- ( दीर्ध निःश्वस्य ) हा ! हतोऽस्मि मन्दभाग्यः । हे विधे ! अनार्य ! सर्वदा अकार्यरतस्यापि ते न युक्तमीदृशं वैशसमस्मिन्नवसरे विधातुम् । यतः नृत्यन्मत्तविमर्दमर्दितमणिमोत्कीर्णचूर्णाकुलं, त्रुटयद्धारलतावितानविगलन्मुक्ताफलैरचितम् । क्षीवस्त्रीजघनस्थलोज्झितपतत्काञ्चीपदामाविलं, जातं मद्भवनं विवाहसमये तत् कं न विस्मापयेत् ? ।। ३३॥ क्षिप्तैर्दिक्षु समन्ततः सुरभिभिर्वासैर्जगत् पूरितं, शृङ्खश्चन्दन-कुङ्कुमोदकभृतैस्तन्मज्जनैः क्षालितम् । आतोद्यध्वनिभिः सन्पुररवैयाप्तं समस्तं तत, इत्थं विस्मितलोकलोचनकरः पुत्र्या विवाहः कृतः ॥ ३४ ॥ अवश्यम्भाविनश्च भावा भवन्तः कार्यविधानोधुक्तया भवितव्यतया समग्रसामग्रीकाः क्रियन्ते, अन्यथा क्वायं कुमारः ?, कुतो वाऽस्मदुहितदानम् ?, कथं वा विवाहानन्तरमेव कृष्णसर्पशिशुगर्भायाः कन्याभरणस्थगितपटलिकाया दास्येहानयनम् ?, कुतो वा चपलतया कुमारहस्तप्रक्षेपः ?, केन वा प्रकारेण तदर्शनानन्तरमेव कुमारस्य पञ्चत्वगमनम् ? इति । अहो ! दुर्निवारता व्यसनोपनिपातानाम् । सर्वथा स्पृशन्ति संसारान्तर्वर्तिनं नियतभाविनो भावाः। चिरयति च तत्संस्कारवान्वेिषणार्थ प्रेषितः कञ्चकी । (ततः प्रविशति कञ्चुकी।) कञ्चकी-- देव ! वत्सयाऽपि कर्पूर चन्दना-ऽगुरुकाष्ठचितायां चितायां सुहुतहुताशननीरन्ध्रभीषणप्रवृद्धज्वालावितानातदेहया लक्ष्मीधरकुमारमालिङ्गयाऽऽत्मा दग्धः। राजा --- कृतशाश्वतयशोमयदेहायास्तस्याः किं दग्धम् ?, वयमेवात्रातर्कितोपनतातिदुःखाशनिवहिना दग्धाः। चित्रलेखा -- हाँ ! हय म्हि मंदभाइणी । हा हयास देव ! णिक्करुण ! ण जुत्तं तुह एरिसं ववहरि । हा पुत्त ! लहिऊण अणुरायणिब्भरं तिहुयणे वि अइदुलहं भत्तारं न पूरिया अम्हाण मणोरहा । हा पुत्त ! कया हं तुमए दुक्खाण भाइणी । ( इति मूर्छिता पतति।) मदनिका--- संमस्ससउ समस्ससउ सामिणी । चित्रलेखा--(समाश्वस्य दीर्ध निःश्वस्य च ) अजउत्त! किं तुमए एक य्येव मह मंदभाइणीए धूया मच्चुमुहं गच्छन्ती ण धरिया ?। राजा -- अल्पमिदमुच्यते, इदमपि वक्तव्यं भवत्या-कुमारः किं न धृतः ?। किं कोऽपि केनचित् कथश्चिद् मृत्युमुखाभिमुखं जिगमिषुर्विधारयितुं शक्यः ? । यतः मन्त्रैर्योगरसायनैरनुदिनं शान्तिप्रदैः कर्मभिर्युक्त्या शास्त्रविधानतोऽपि भिषजा सद्धन्धुभिः पालितः । अभ्यङ्गैर्वसुभिर्नयेन पटुना शौर्यादिभी रक्षितः, क्षीणे त्वायुषि किं क्वचित् कथमपि त्रातुं नरः शक्यते ? ॥३५॥ न शक्नोमि च ईदृशं कारुण्यं दृष्ट्वा क्षणमपि गृहे स्थातुम् । तद् गच्छ त्वम् । अहं तु पूर्वपुरुषगृहीतप्रव्रज्याग्रहणेन स्वकार्यमनुतिष्ठामि । अपि च---- कृत्वा बन्धुमती विवाहसुखितां लक्ष्मीधरस्यानुगां, पुत्रस्यापि समस्तविस्मयकरं राज्याभिषेकं ततः। कर्ताऽस्मीति समीहितं समधिया तत् साम्प्रतं चेष्टयते, आर्य ! किं करवाणि ? यन्न सहते दैवं क्रमेणेप्सितम् ॥३६।। १ विभवतच सू, विभवश्व जे । २ मृत्युन्मत्त जे। ३ 'ना-ऽग जे। ४ हा ! हताऽस्मि भन्दभागिनी, हा हताश देव । निष्करुण ! न युक्तं तवेदशं व्यवहतुभ् । हा पुत्रि । लब्ध्वाऽनुरागनिर्भर त्रिभुवनेऽप्यतिदुर्लभं भर्तारं न पूरिता अस्माकं मनोरथाः । हा पुत्रि ! कृताऽह स्वया दुःखानां भागिनी। ५ समाश्वसित समाश्वसितु स्वामिनी । ६ आर्यपुत्र! कि त्वयकेव मम मन्दभागिन्या दुहिता मृत्युमुख गच्छन्ती न धृता । ७ राजाभि जे । Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १रिसहसामि-२ भरहचक्कवट्टिचरियं । चित्रलेखा-- हो ! हय म्हि मंदभाइणी । ( इति मूर्छिता पतति । ) मदनिका ---- सैमस्ससउ समस्ससउ सामिणी । चित्रलेखा-(सामाश्वस्योत्थाय च ) अजउत्त ! किमणेणं खए खारनिवेद(? वाड )णेणं ?। अज वि मह असंजायबलो पुत्तओ । ता उवरमउ एरिसाओ ववसायाओ अजउत्तो । ( इति रोदिति ।) राजा--- अये ! स्त्रीणां रोदनेनैव स्नेहाविष्करणम् , नानुष्ठानेन । गलता नेत्रेण सदा कोमलमिव लक्ष्यते मनः स्त्रीणाम् । चेष्टासु तदेव पुनः वज्रकणीकायते नियतम् ॥ ३७॥ अपि च आयें ! संसारविलसितमवहिता शृणु एतत् कार्य परुन्मे नियतिपरिणतं चैषमोऽन्यद् विधेयं, एतत् त्व चैव कृत्यं झटिति निपतितं साम्प्रतं कार्यमेतत् । म्पर्धातस्त्यक्तखेदं जगति परिणतानित्थमेतान् पदार्थान् , विस्तीर्ण दीर्घहस्तो लिखति जनमनश्चित्रगुप्तः प्रमार्टि ।। ३८॥ शिशोस्तु --- यदुपात्तमन्यजन्मनि शुभमशुभं वा स्वकर्मपरिणत्या । तच्छक्यमन्यथा नो कर्तु लक्ष्मीधरस्येव ॥३९॥ भद्रं भवतु भवत्यै शिशुरपि कल्याणभाक् सह जनेन । सच्छीलवांश्च रङ्गोऽप्यहमपि मोक्षं प्रति यतिष्ये ॥४०॥ ( इति निष्क्रान्ताः [ सर्वे ]|) ॥ प्रथमोऽङ्कः समाप्तः ॥ [समाप्तमिदं विबुधानन्दं नाम नाटकम् ] १ हा । हताऽस्मि मन्दभागिनी । २ समाश्वसितु समाश्वसितु स्वामिनी । ३ आर्यपुत्र ! किमनेन क्षते क्षारनिपातनेन ? | अद्यापि ममासजातबलः पुत्रकः । तद् उपरमतु ईदृशाद्, व्यवसायाद् आर्यपुत्र । Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउप्पन्नमहापुरिसचरिय । तो राइणा गरुयसंवेगावणहियएणं मंतिणो विमलमइस्स मुहं पलोइयं । तओ लद्धावसरेण भणिय मंतिणामहाराय ! णिसुयं जमणेण संसारसरूवं णिवेइयं ? । राइणा भणियं---किं सुएणं ?, पञ्चक्खं चेव दिट्ठमणुहविजइ य । तओ तमायणिऊण भणियं मंतिणा-देव ! सुणमु-- संसारमहाडइगरुयविसयमायण्हियाए णडिएहिं । इह अमुणियमुहयरसेहिं खिज्जियं जंतुहरिणेहिं ॥६९।। किंच वियसंतदलउडुम्मिल्लमालईसवलकुंतलकलावो । किं नरयवडणधरणेकपञ्चलो जायइ पियाण ? ॥ ७० ॥ ईसीसिवलन्तद्धच्छिपेच्छियं सुंदरीण सवियारं । इह संभाविजइ कि कयाइ णरयग्गिणिव्यवणं ? ॥७१ ॥ जोव्यणमयणुम्मिल्लन्तपंडुगंडयलययणससिविम्बं । णिव्ववणकारणं किं कैयाइ णरयग्गितवियाण ? ॥ ७२ ।। कोमलमुणालवेल्लहलबाहुलइयाजुयं ससिमुहीणं । किं होइ कयाइ वि णरयपडणपडिरुम्भणसमत्थं ? ॥७३॥ उत्तत्तकणयकलसोरुमिलियचक्कलियथोरथणवट्ट । वीसामत्थामं किं कयाइ भवजलधिवुड्डाण ? ।। ७४ ।। मुवित्ततिवलिगंभीरणाहिमज्झो वि सुन्दरंगीण । णियकम्मपरिणईए ताणं मणयं पि किं कुणइ ? ॥७५ ॥ णवघडणकंचिदामोरुभूसिओ वियडरमणपन्भारो । अइघोरणरयपायालवडणरक्खक्खमो किं सो ? ॥ ७६ ॥ रंभोरुगन्भसच्छहजंघाजुयलं पि पंकयमुहीण । कम्मवसयं गरं किं धरेइ णरयम्मि निवडन्तं ? ।। ७७ ।। इय पंकयदलचलणाओ सयलरुइरंगपत्तसोहाओ। किं होन्ति णरयसरणं भवम्मि नरनाह ! महिलाओ ? ॥ ७८ ।। अवि य-- देहमुहत्थं तम्मसि एसो पुण णेय पुच्छइ कयाइ। होइ विरसावसाणो विडम्बणेकवसिओ णेहो ॥ ७९ ॥ किंच अइदुलहं मणुयत्तं विसमा कम्माण परिणइ दुरन्ता । लहिऊण विवेयमओ तं कीरउ जं असामण्णं ।। ८० ।। तओ सुणिऊण वियलियगुरुकम्मभारेण उम्मिल्लंतसुहविवेएणं भणियं राइणा-एवं कीरइ त्ति, किंतुअइविसमा पन्वज्जा विसया वियसंतविसतरुसरिच्छा । चित्तवियाराहारं आहारं ता णिरुंभेमो ॥ ८१ ।। नओ गंतूण आयरियसमी, णिसुणिऊण जिणदेसियं धम्मं, काऊण अदिवसे सव्वाययणेसु अट्ठाहियामहिम, दाऊण अंध-किविणाइयाण महादाणं पडिकन्नो अणसणं ति । ठिओ बावीसई दिवसे पँवद्धमाणसंवेओ अणसणविहिणा । तओ कालं काऊण उप्पण्णो ईसाणे कप्पे सिरिप्पभे विमाणे सत्तपलिओवभाऊ ललियंगयाभिहाणो देवो ति । इयरो वि सुबुद्धी महारायमरणसोगसंवेगावण्ण हियओ सिद्धायरियसमीवे जहुत्तविहारं परिपालियसामायिओ कालं काऊण तत्थेव ईसाणे कप्पे समहियदोसागरोवमाऊ इंदसामाणियत्तणेण समुबवण्णो त्ति । ललिय गयस्स भवियव्ययाणिओएणं सयंपभा णाम महादेवी ठितीखएणं चुया। तथो सो दइयासोयमोहियमई परिचत्तणिययवावारो गुरुसोयसागरावगाढो परिदेवमाणो तेण पुव्वभवमंतिणा इंदसामाणियदेवेणमागंतूर्ण भणिओ जहा-भो महासत्त ! किमेवं महिलथचिंतापिसाइयाए अप्पा आयासिज्जइ ? । तओ तमायण्णिऊण भणियं ललियंगएण-"मित्त ! सुणमु, सयलसंसारसुहाण कारणं महिलाओ, अवि य-- दोगचं पि ण णज्जइ विहवे लीलाण कारणमणग्छ । सयलसुहाण णिहाणं पुण्णेहि जणो जणं लहइ ॥ ८२ ।। अण्णोष्णकज वइयरदूसहसंतावतावियं हिययं । णिव्वाइ णवर दइयासहर(रि?)समवलोयणजलेण ॥ ८३ ।। के व विलासा भुवणम्मि तस्स हिययस्स निव्वुई कत्तो । जस्स ण समसुहसुहिया पिया य घरिणी घरे वसइ ? ॥८४॥ १ इय जे । २ कया वि सू । ३ वट्ठ जे । ४ 'जलाह जे । ५ वे, सुणि सू । ६ ण माहादाणं सू । ७ पवड्ढमाण जे। - महा सामंत ! कि सू। ९ जणं जणोजे । १० वि सू । ११ 'सुहया सू । Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ रिसहसामि-२ भरहचक्कवट्टिचरिय । जस्सऽणुकूला पियदंसाँ [य] मियु-मंजुभासणसयोहा । सयलगुणाहाणं घरसिरि व्व घरिणी सुहं तस्स ॥ ८५ ॥ हिययट्टियदइयवसेण दुग्गओ णेइ दीहरं दियहं । रयणीए पिययमालावमुइयहियओ सुहं सुयइ ॥८६॥ किं बहुणा ? सव्वं चिय संसारसुहं समत्तजियलोओ। महिलायत्तं पत्तियसु मित्त ! मह तेण अणुबंधो ॥ ८७॥ लल्लक्कणिरयवियणाउ घोरसंसारसायरुत्वहमं । जीय कएण तुलिजंति जयइ सा पिययमा लोए ॥८८ ॥ इय णिब्भरगुरुसब्भावपसरवीसम्भवड्ढियमुहल्ली । अण्णोण्णपिएंहिं वि जयम्मि मिहुणाई पावंति ॥ ८९ ।। __ता मित्त ! कत्थ मए एरिसं रइकेलिकुलहरं सयलसुहणिहाणं महिलारयणं पावियचं ? " ति । तओ इंदसामाणिएणं उवओगं दाऊण भणियं-मित्त ! मा विसायं वच्चसु, लद्धा मए तुहं महिला । ललियंगएण भणियं-कहं चिय?। इंदसामाणिएण भणियं-सुणसु, धायइसंडे दीवे पुचविदेहे वासे गंदिग्गामे णाइलो णाम गहबई । सो य अचंतदुग्गओ सयलजणपरिभूओ उयरभरणेकवावारपरायणो परिवसइ । तस्सेव भारियाए उवरोवरिं कुरूवाओ सयलजणाणिहाओ पयईए बहुभक्खिरीओ छ धूयाओ जायाओ । तओ य सो दारिदेणं बहुधृयाजम्मेण सयलजणपरिहवेण य अचंतदुहिओ चिंतेइ-किं करेमि ?, कत्थ वच्चामि ?, किं कयं सुकयं हाँइ ? ति मण्णमा(ण्णुम)णो चिट्ठति । अण्णया य कम्मपरिणइवसेणं आवण्णसत्ता भारिया संवुत्ता । तो तेण चिंतियं-जइ पुणरविध्या इमीए होज्जा तो मए इमीए णाममेत्तेणावि वावारो ण कायदो। जाव य सो एवं चिंतापरायणो चिट्ठइ ताव य पसूया भज्जा। णिवेइयं तस्स धृयाजम्म त्ति । तओ सो वज्जवडणाइरित्तसंपाउप्पित्थहियो णिग्गंतूण घराओ देसन्तरं गओ। णागसिरी[ए] वि पुणरुत्तधृयाजम्मदुक्खियहिययाए पइगमणसोयमोहियमणाए य सा धृया ण सम्म पडियरिज्जति, ण य तीए तँस्सा णामं पि कयं । तओ सा आउसेसयाए संवढिया अच्चन्तक्खिया णिण्णामिय त्ति लोए पसिद्धिं गया। दुहिया य दुहियकम्मकारिणी सयलजणपरिभूया जगणीए वि णयण-मणुव्वेयकारिणी संवुत्ता। अण्णया य सयज्झियाधूयाए हत्थे मोयए पेक्खिऊणं णियजणणी जाइया । तीए भणियं-कय पुण्णा सि तुम, भक्खिहिसि मोयए ?, पिया वि ते एवंविहो चेव सुहिओ आसि, ता मंदभाइणि ! वच्च रज्जु गहाय अंबरतीरं( तिलयं) पन्चयवरं, तत्थ कट्ठाइं समुच्चिणंती पाविहिसि मोयए । तओ सा अकयपुण्णा गिरासा पियवयणमेत्तेणावि अणासासियपुब्बा ओरुण्णमुही गलियवाहसलिला रज्जु घेत्तूण णिग्गया गेहाओ । तओ दीहुण्हणीसासे मुयन्ती तण-कट्ट-पत्तहारेहिं समेया संपत्थिया, पत्ता य तं पव्वयवरं । तस्स य सिहरे जुगंधरस्स अणगारस्स एगराइयं पडिममभुवटियस्स मुहपरिणामस्स मुविसुद्धलेसस्स अपुबकरणाम्हणक्कमेण खवियघणघाइचउक्कस्स उप्पण्णं तीया-ऽणागयर्वत्थुब्भासगं दिव्वं केवलणाणं ति । अहासण्णिहियदेवयाए य पत्थुया केवलमहिमा । समागओ पव्वयासण्णगामणगरजणवओ। तओ सा णिण्णामिया सह तेण जणवएणं तं पचयवरं समारूढा । वंदिओ य भयवं केवली सह जणेणं । भगवया पत्थुया धम्मदेसणा। निदिजइ विसयमुह, पयडिज्जइ संसारासारत्तणं, दंसिजति णरय-तिरिय-मणुय-देवलोयदुक्खाई । तओ लद्धावसराए गरुयदुक्खोहपीडियाए भणियं णिण्णामियाए-किं भयवं ! मज्झ वि सयासायो अण्णो दुक्खिययरो कोइ अत्थि ? । भयवया भणियं-कि तुज्झ दुक्खं ?, तुमं ताव सच्छंदपयारिणी, अण्णे उण सत्ता कम्मपरिणइवसेण सव्वदा परायत्तमहावेयणाभिभूयविग्गहा ण जाणन्ति रत्तिं ण दियहं, परायत्ता एवं कालं गति । एवं बहुप्पयाराओ णरय-तिरियवेयणाओ समायण्णिऊण संवेगमुंवगया। भिष्णो कम्मगंठी, अब्भुवगयं सम्मत्तरयणं, पडिवण्णो भावओ जिणदेसिओ धम्मो, गहियाई जहासत्तिं अणुव्वयाणि । गहियकट्ठा, गया णिययगेहं, कयं तत्कालोचियमाहाराइयं । तओ पवड्ढमाणपरिणामा चिट्ठइ, सरइ य कालो, चरइ य णाणाविहं तवोकम्मं । सा य अञ्चन्तदुभगा कुरूवा य ण य केणेति पत्थिया, पत्ता य जोव्वणं । तओ तीए गरुयसंवेगमावण्णाए पुणरवि अम्बरतिलयं पव्वयं समागयस्स जुगंधराणगारस्स समीवे पडिवण्णमणसणं । ५ मिड जे । २ 'एहिम्बि सू । ३ तुम जे । ४ होउ ? ति जे । ५ 'परिणयव सू । ६ जम्मं ति जे। ७ तस्याः । ८ गुन्वेवका जे । ९ उपण्णन्तीया सू । १० वत्थुभासगं जे । ११ मुवागया जे । १२ केणइ जे। Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३० चउप्पन्नमहापुरिसचरिय ता मित्त ! वच्चमु सिग्धं तीए समीवं । सा तुमं दट्टण णियाणाणुबंधं करिस्सई" त्ति । एवं भणिऊण गओ इंदसामाणिओ णिययविमाणं । ललियंगओ य [? गओ] दाऊण उवओगं अंबरतिलयं पञ्चयवरं। दिट्ठा णिण्णामिया अणसणद्विया, दंसिया देवरिद्धी, कओ णियाणाणुबंधो तया। तो अणसणविहिणा खविऊणमाउयं उववण्णा ललियंग[ यस्स सयंपभा णाम महादेवित्तणेण । तओ रइसागरावगाढस्स ललियंगयस्स कम्हि काले अइक्कते चवणलिंगदंसणेण भयमुप्पण्णं । लक्खिओ य सुष्णहिययत्तणेणं सयंपभाए, पुच्छिओ य-सामि ! किमुव्वेक्कारणं ? । तेण भणियं-सुंदरि ! संसारविलसियं, अवि य 'ये च्चिय णवपल्लवकुसुमगोच्छपेच्छादिया धिर्ति देति। ते चेय कप्पतरुणो उचियणिज्जा महं जाया ॥९॥ जो चिय मणहरकरणंगहारसमतालगेयसंवलिओ। णट्टारम्भो सो चिय उव्वेवं जणइ हिययस्स ॥९१॥ ज चिय हियइच्छियसंपडन्तसयलिंदियत्थसुहमुहया। तियसिंदपुरी स चिय हरियंदपुरं व पडिहाइ ॥ ९२ ॥ इय जं जं चिय पुलएमि सुयणु ! रमणीयगुणगणग्यवियं । सग्गे रइसुहमग्गे तं तं चिय अन्नहा जायं ॥ ९३ ।। तओ तीए भणियं-किंचवणलिंगमुवलक्वियं ?। तेण भणियं-आमं। तीए भणियं-किं चिंताए?, एहि गच्छम्ह जंबुद्दीवधायइसंड-पुक्खरद्धेमु भरहेरवय-विदेहेसु, तित्थयरजम्म-दिक्रवा-णाण-वक्खाण-णेव्वाणभूमीओ वंदम्ह, वक्खारपव्यएमु य बाहिरएमु य गंदीसरवरादिएसु दीवेसु सासयपडिमाओ पुज्जम्ह । तओ ललियंगओ पसंसिऊण सयंपलं सभज्जाओ ओतिण्णो तिरियलोयं, जहाई वंदिउमाढत्तो तित्थयरे तित्थयरचेइयाणि य, काऊण य पूर्य, दंसिऊण य गट्टविहि, गओ णिययत्थामं । तओ कइवयदिवसेसु पेच्छंतीए सयंपभाए इंदधणुं पिव सहसा असणमुवगओ। चुओ य समाणो इहेव जंबुद्दीवे दीवे पुव्वविदेहे वासे सीयाए महाणदीए उत्तरे कूले समुद्दासण्णपुक्खलावइविजए लोहग्गले णयरे सुवण्णजंघस्स राइणो लच्छीए भारियाए कुच्छिसि पुत्तत्तेणं समुप्पण्णो, पइटावियं च णाम वइरजंघो ति। सयंपभा वि तैयणंतरमेव चुया वइरदत्तस्स गरवइणो धारिणीए देवीए धूयत्ताए समुरवण्णा, पइटावियं च णामं सिरिकंत त्ति । पत्ता य जोवणं । पिउणा य सयंवरे दत्ते तीए पुन्वभवन्भासओ जायसणेहाए वइरजंघो वरिओ, वत्तो विवाहो, मुंजति भोए। परिणओ य [? पुच्च भवभा(भा)सेण जिणदेसिओ धम्मो। पिउणा य पुत्तस्स काऊण रज्जाहिसेयं पवजाविहाणेणं सकजमणुचेट्टियं। वइरजंघस्स य सिरिकंताए भारियाए पुत्तो समुप्पणो, वढिओ पत्तो य जोव्वणं ति। ___ अन्नया य धवलहरसत्तमभूमियाए ठियस्स वइरजंघस्स सिरिकताए भारियाए केसे उम्मोयंतीए कण्णासणागयं अवंझसुहऽज्झवसायबीयं समुव्विग्गाए दंसियं एगं पलियं । तओ तं दट्टण वियलियमोहंधयारेण राइणा [ ? भणियं]-सुंदरि ! किमधिग्गासि ?, धम्मतरुवीयमेयं पलियच्छलेणं समागयं ति, जओ-- अवणेइ कलुसभावं सुंदरि ! ससिरोरुहस्स हिययस्स । कारेइ मई धम्मे जराए सरिसो सुही गत्थि ॥ ९४॥ परिहरसु विसयसंगं, उज्झसु असमंजसं, तवं चरम् । इय भैणइ व णिहुयं सुयणु ! कण्णमूलागयं पलियं ॥९५ ॥ मजाइक्कमणरओ जोव्वणमहुबोहिओ जणियराओ । सणियं ओसरइ मओ सुंदरि ! निदाए वि(व) जराए ॥९६॥ ववगयजोव्वणगरुयत्तणेण णिहुयाइं पयइधवलाई । सरसलिलाई व सरए जराए जायंति हिययाई ।। ९७ ॥ इय जातगरुयसंवेगजणियपव्यज्जसज्जववसाओ । अच्छइ राया जा गलियबंधणो सहयरिसमेओ ॥९८॥ ताव य संजायमहामोहेणं अमुणियमहारायचित्तेण संसारसुलहेण दुरऽज्झवसायववसिएणं रजकंखुएण भोगाहिलासिणा पुत्तेण आसुजीवावहारिणा धूयप्पओगेणं रइहरपमुत्तो सह पियाए वावाइओ, मरिऊण उत्तरकुराए तिपलिओवमाऊ तिगव्वुस्सुओ मिहुणत्तणेणं सह पियाए समुववण्णो त्ति । ___ तत्तो य आउयमणुवालिऊण मरिऊण अप्पकसायत्तणओ पुवज्जियपुण्णसम्भारत्तणओ य सोहम्मे कप्पे देवत्तेणं सह भारियाए उववाणो त्ति। १ जि जे । २ तयणन्तर जे । ३ समुप्पण्णा जे । ४ हरे सजे । ५ कहइ जे । ६ मणुपालिऊण जे। Jain Education Internatona Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ रिसहसामि-२ भरहचक्कवहिचरियं । तस्थ य इंजिऊण भोए आउयसेसयाए चइऊण महाविदेहे वासे रसाहिहाणेस्स वेज्जस्स पुत्तत्तेणं समुप्पण्णो, पइहावियं च से णामं जीवाणन्दो त्ति । तीए रयणीए अण्णे वि चत्तारि दारया समुप्पण्णा, तं जहा-राइणो ईसाणचंदस्स कणयमतीए भारियाए महिहराहिहाणो कुमारो, सुणासीरस्स मंतिणो सुणासीराए भारियाए सुबुद्धी, सायरदत्तस्स य सस्थवाहस्स अभयमतीए भारियाए पुण्णभद्दाहिहाणो, अवरो य धणयसेहिस्स सीलवईए भारियाए गुणायराभिहाणो पुत्तो त्ति। एते पंच वि सह वड्ढिया, कलाओ य सह गहियाओ। अण्णो वि सयंपभाजीवो तत्थेव णयरे ईसरदत्तस्स पुत्तो केसवाभिहाणो जाओ, तस्सेव मित्तो छटो ति । जाया ते सहपंसुकीलणेणं परोप्परपीई । वेज्जपुत्तेण य जीवाणंदेण सिक्खिओ अटुंगो आउवेदो । तओ य महावेज्जत्तणेणं पसिद्धो लक्खेइ जहटियं वाहि, उवलहइ णियाणे, पउंजइ जहाजोग्गमोसहं, दिट्टकम्मत्तणेण य ण विसायमुवगच्छइ, उवसमेइ सण्णिवायपमुहे महावाहिणो। एवं च संसरंते संसारे, गच्छतेसु दिवसेसु, बटुंते अण्णोण्ण वीसंभपणयपसरे अण्णया भवियव्ययानिओएणं जीवाणंदस्स वेज्जस्स मंदिरे सुहासणस्थेहिं पंचहिं वि वयंसएहिं गुणायराहिहाणो पुहइपालस्स राइणो पुत्तो दिट्टऽविणियपणइणि व चइऊण रायसिरि उक्वित्तपंचमहव्यबहारो बारसंगविऊ चोद्दसपुची पडिवण्णविविहाभिग्गहो दिट्ठो महारिसि त्ति । सो य किमिकुटुमहावाहिवेयणाभिभूअसरीरो वि णिप्पडिकम्मसरीरयाए णोहिलसइ चिकिच्छं, ण पत्थेइ ओसहं, ण चिंतेइ वाहिसमणोवायं, ण अण्णेसइ वेज्जं, महासत्तयाए य अहियासन्तो विखि(ग)लिंदियवेयणं, छट्ठस्स पारणए कयाभिग्गहो अप्पलेवं चउत्थं भिक्खहाणं गोमुत्तियाँविहाणेणं घरंघरेण अन्नेसंतो आहारट्ठी वेजघरमुवडिओ । तं च दणि जायविवेएणं उम्मिल्लसुहऽज्झवसाएणं महिहरकुमारेणं सपरिहासो भणिओ जीवाणंदो वेज्जपुत्तो जहा-भो जीवाणंद ! सव्वहा तुम्हेहिं दुक्खज्जियऽत्थऽत्थेहिं संपइ विउसेहिं विय परोवगरणेहिं होयचं, ण अत्तणो हियमणुचिट्ठियव्यं, जो तुम्हे सया महुयर व दाणरुइणो, वेसाजणो ब पलोवेह अत्थवन्तं, पच्छिमासादिवायरो व अस्थमणा ण एरिसाणं महामुणीणं संसारालम्बणहेउभूयाए चिगिच्छियाए अप्पाणं सुहपरंपराए भायणं कुणह । तओ पडिबोहिउ व्व ववगयमुच्छाविवेउ व्व दिट्टमहाणिहिकलससमूहो ब वियलन्तकम्ममहाभरपसरो जीवाणंदो भणि(चिंति )उमाढत्तो-अहो ! सोहणविवेओ रायपुत्तो, विम्हिओ अहमेयस्स चरिएण, जओ अरोसणो मुणी, अखलो धणइत्तओ, पियभज्जो अणईसालू , Kसीलओ य जारजाओ, णिरोगो सरीरी, सुही भोगासत्तो, अदरिदो विउसो, अवंचणो. वणिओ, अपसत्यो बम्भणो, सुचरियरओ य रायउत्तो, पयइवियारत्तणेणं उप्पायबुद्धिं जणेइ लोए, ता सोभगमणेण भणियं, करेमि अहं एयस्स महामुणिणो संसारुत्तारणसेउभूयं तिगिच्छं । चिंतिऊण भणियं जीवाणंदेण-करेमि तिगिच्छं जइ तुम्हे ओसहाइसहाया होह । तेहिं भणियं-केण कजं ? भणम् । वेज्जमुएण भणियं-सयसहस्समुल्लेणं तेल्लेणं कम्बलरयणेणं गोसीसचंदणेण य, सयसहस्सपागं तेल्लं तं मह चेवमत्यि, इयराणि "दोन्नि वि महेसरसेटिस्स वीहीए लब्भन्ति । गया ते दोणि लक्खे घेतूण सेहिसमीवं। भणिओ य तेहिं सेट्ठी जहा-तुमं घेत्तूण दोष्णि लक्खे दीणाराणं अम्हाणं कंबलरयणं गोसीसचंदणं पयच्छ । तेण भणियं-किं पओयणं ? । तेहिं जहिं(?ह)द्वियमेव 'साहुतिगिच्छाणिमित्त'मिति कहियं । तेण वि य वियलन्तकम्मुणा उम्मिल्लिजंतसुहऽज्झवसाणेणं चिंतियं-अहो ! एए वि जोव्वणपिसायोलिट्ठहियया अपरिवकमइणो धम्मकरणं पति उवटिया ता किं पुण अहं मच्चुमुहजीहाए व जराए अभिभूयविग्गहो ण करेमि धम्मं ?, ण किणेमि असारेण अथिरेण सारं सासयं पुण्ण सिं? ति । इइ चिंतिऊण भणियं-अहो ! सोहणो तुम्हारिसाणं विवेओ, गिन्हह कंबलरयणं गोसीसचंदणं च, कुणह तस्स महामुणिणो तिगिच्छे', मुल्लं च महं पुण्णमक्खयं, ण बज्झेणं सव्वसाहारणेणं धणेणं पओयणं ति भणिऊण दाऊण य ओसह, पवड्ढमाणसंवेगो य लहुकम्मयाए गंतूण य तहाविहाणं आयरियाणं सगासे, पन्वजिऊण पन्चजं, मिंदिऊण मोहजालं, खविऊण य असेसकम्मं, पत्तो णिराबाहं मोक्खं । इयरे थे पंच वि वयंसया गया साहुसमीवे । दिट्ठो य काउस्सग्गडिओ णग्गोहस्स हेहओ साहू ।आणियं च गोमडयं । 'भयवं! MA पता या "भारी जाणोऽहिल जे। ५ याभिहाणेण साह रायउत्तो जाणवता जे। ८ सुसीलो य जे । ९ चेयम जे । १०-११ दोण्हि सू । १२ यालिद्धदेहा अपरि' जे । १३ सारयं सू । १४ रासिन्ति सू । १५ Jain Edच्छं ति, मुलं सू । १६ विजे। Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२ चप्पन्नमहापुरिसचरियं । अम्हे तुह धम्मविग्धं करिस्सामो' त्ति एवमणुजाणावेऊण तेल्लेण अन्भंगिओ साहू । तओ उन्हयाए तेल्लस्स, अर्चितसत्तित्तणओ ओसहाणं तैयावियलिंदिया सव्वे संखुद्धा । पच्छाइओ कंबलरयणेणं, तर्हि च सीयलभावमुवगया सब्वे लग्गा । गहिऊण य वेज्जपुत्तेणं गोमयकडेवरे पक्खित्ता । गोसीसचंदणविलेवणेण आसासिओ । एवं बीवाराए मंसगया तइयवाराए अगिया सव्वे वि अवणीया विगलिंदिया । आलिंपिओ गोसीसचंदणेणं । जाओ य समासत्थो । अचिन्तसत्तित्तणओ ओसहसामत्थस्स पडणो साहू विहरिउमादत्तो त्ति । इयरेय पवड्ढमाणसुहविवेया गया य सिद्धायरियसमीवं । वंदिओ गुरू, उवविद्या य चलणंतिए, पुच्छिओ य णेव्वागमपच्चलो धम्मो । तओ गुरू साहिउमाढत्तो- “देवाणुप्पिया ! इह जीवेसु पहाणं जंगमत्तं, तत्थ वि पंचिंदियत्तणं, तओ वि मणुयत्तं तहिं पि आरियखित्तं, तत्थ वि सुकुलुप्पत्ती, पुणो वि दीहाउयत्तणं, तर्हि पि आरोग्गं, एत्थ [वि] विसरूवं, रूवे व धम्मबुद्धी, तीए वि सुहगुरुजोगो, तत्थ वि तव्त्रयणासेवणा, पुणो वि विरतिपरिणामी, पुणो वि पवड्ढमाणसंवेगया, तत्थ वि सव्वसंवररूवा पव्वज्जत्ति । अत्रिय अइभीसणबहुविहजोणिलक्ख गुम्मोहभवकडिल्लुम्मि । जइ कहवि कहिं पि कयाइ जंतुणो होइ मणुयत्तं ।। ९९ ।। तंपि अणारियखेत्तम्मि धम्मसुइवज्जियम्मि सँष्णाण । णियकम्मपरिणईए जियाण परिगलइ पसुसरिसं ॥ १०० ॥ आरियखेत्तं जाई कुल-रूवाऽऽरोग्ग-माउयं बुद्धी | धम्मम्मि कहवि जायइ सुहगुरुजोगो उण दुलम्भो ॥ १०१ ॥ लहिऊण महामुणिसँगमं पितव्त्रयण सेवणमहण्हो (ष्णो) । ण हु लहइ कौपि तं पि हु पात्र पुण्णेहिं पुण्णेहिं ॥ १०२ ॥ इय सामग्गि लहिउं सद्धा-संजमविहाणगुणकलियं । आसण्णसिद्धियाणं जायइ बिसएस वेरगं ॥ १०३ ॥ ओ देवाणुपिया ! एसा कल्लाणपरंपरा अणाइणिहणे संसारे ण कयाइ जीवेणं लद्धपुव्वा, लहिऊण य एयं खणं पि खमं पमायारणं"। तओ सुणिऊण गुरुवयणं उवसन्तपञ्चक्खाणावरणतइयकसाएहिं भणियं पंचहि वि जणेहिं सवाहाणेण यछण-भयवं ! जइ एवं ता देहि अम्हाणं कम्मसेलासणिं पव्वज्जं ति । भगवया य ' तह ' त्ति भणिऊण पन्वाविया । विहरिऊण य जहुत्तविहारेणं कालं काऊण वारसमे अच्चुए कप्पे बावीससागरोवमाऊ देवत्तणेणं उववण्ण त्ति । भुंजिऊण य तत्थ भोए चुया समाणा इहेव जंबुद्दीवे दीवे पुच्चविदेहे पुक्खलावइजिए पुंडरिगिणीए णयरीए वरसेणस्स नरवणो धारिणीए देवीए पंच वि क्रमेणं समुववण्णा । तत्थ पढमो वेज्जउत्तो वइरणाहो, बीओ रायकुमारो तइओ मंतिपुत्तो सुबाहू, चउत्थो "सेट्ठिसुओ पीढो, पंचमो सत्थवाहपुत्तो महापीढो । एवं कमेण जाया वड्ढिया कला | विवाह य कुल-रूबजोग्गाओ दारियाओ । केसवाहिहाणो चइऊण वइरनाभस्स सारही जाओ । मुंजंति भोए । सरइ संसारो । बाहू, या सिं पिया वइरसेणो दाऊण पुत्तस्स रज्जं उइण्णतित्थयरणामकम्मैपरिणामो 'सयंबुद्धो कप्पो' त्ति काऊण सारस्यमाच्चाइदस विहलोगंतियप डिबोहिओ ससुरासुर-मणुयपरिसमज्झयारम्मि पंचमहव्वयमहापइण्णामंदिरमारूढो विहरिउमादत्तो । तओ विहरिऊण मोणेणं, लहिऊणापुव्वकरणं, आरुहिऊण य खवगसेटिं उम्मूलिकण णिबिड - कम्मोह जालं उप्पाडियं तीया- ऽणागय-विप्पट्टभावुब्भासणं केवलणाणं वइरसेणेणं । वइरणाभस्त अणुभूयतीस पुब्बलक्खकुमार भावस्स अइकंतसोलसमंडलियराइणो तित्थयर केवलणाणुप्पत्तिदिवसे चैत्र आउहसालाए वइरतुम्बं सहस्सारं जक्खसहस्सेणं परियरियं उप्पण्णं चक्करयणं । जायाणि कमेण चोदस वि जक्खसहस्सपरियरियाई महारयणाणि । उप्पण्णा य रयणसमिद्धा पत्तेयं जक्खसहस्सपरियरिया अक्खया णव महाणिहिणो । ओयवियं च वइरणाभेणं कमेण पुक्खलावइविजयं । कओ चक्कवट्टिरायाभिसेओ । परिणीयाई चउसहिसहस्साई कण्णयाणं । जाओ बत्तीसहस्साणं मउडबद्धाणं राईणं रायाहिराओ । भुंजइ य बाहु- सुबाहु पीढ - महापीढच उस होयरसमेओ अइप्पिय१ तयोर्वि ं सू । २ ‘अवि य' इति पुस्तके नास्ति । ३ प्रमादिनाम् । ४ कोइ जे । ५ सेट्ठिपुत्तो सुपीढो सू । ६ परियरिंडं जे। Jain Educaton रयणाई जे । Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ रिसहसामि- २ भरहचकवटिचरियं । ३३ संपज्जन्तपंचविहे कामभोए । एवं च रइसागरावगाढस्स पसाहियासेसमहिमंडलस्स पूरियपणइयणमणोरहस्स सेवन्तस्स साहुचलणे, करेंतस्स जिणाययणेसु पूया-सकाराइयं, पालेंतस्स दाण-सील-तवो-भावणारूवं चउन्विहं धम्माणुट्ठाणं चक्कवट्टित्तणेणं गया चउवीसइं पुव्वलक्खा । अण्णया य वइरणाहपुण्णाणुभावेण वियसावेतो भवियकमलायरे, अवणितो मोहेणिदं, तेलोक्कपियामहो जगगुरू अरहा सवण्णू सव्वदरिसी पुंडरिगिणीए णयरीए उत्तरदिसाभूभाए समोसरिओ। विरइयं देवेहि समोसरणं तिपागारोववेयं जोयणवित्थिण्णं । वइरणाभो वि उवलद्धतित्थयरागमणो हरिसवसुप्फुल्ललोयणो चउसहोयरसमेओ सह सारहिणा गओ तित्थयरसमीवं, वंदिओ रोमंचकंचुइल्लेण, काऊण तिपयाहिणं उवविट्ठो चलणंतिए। ससुरा-ऽसुरपरिसमज्झयारे सिंघासणम्मि उवविट्ठी जगगुरू धम्मं साहिउमाढत्तो जहा-जंतुणो मिच्छत्ता-ऽविरइ-पमाय-कसाय-जोगेहिं बंधन्ति अट्ठपयारं कम्म, तक्कम्मपरिवागवसेण य हिंडंति संसारकन्तारं, जह य सम्मइंसण-णाण-चरणसामग्गीसमणिया छिदिऊण संसारणिबंधणं कम्मपरिणइं गच्छंति मोक्खं । एवं च छिज्जतेसु संसएसु, पयासिज्जतेसु हिययभावेसु, साहिज्जतेसु पुन्वभवेमु, केइ उवसंताणताणुबंधिणो पडिवज्जंति सम्मत्तं, अण्णे खोवसमगएमु अपच्चक्खाणेसु अब्भुवगच्छंति देसविरई, केइ पुण ववगयपञ्चक्खाणावरणोदया पडिवजंति महापुरिससेवियं पञ्चज्जं ति । ___ तओ लद्धावसरेणं पुव्वभवऽभाससंजायसंवेगेणं परितणुयकसायपरिसेसियकम्मुणा ससहोयरेणं भणियं वइरणाहेणंभगवं ! तुहाणुभावेणं पावियमसेसमिहलोयसंवद्धं मणुयजम्मफलं, कओ य जेट्टपुत्तस्स रज्जाहिसेओ, संपयं भगवया तिहुयणगुरुणा णिज्जामएणं णिविण्णकामभोगा संसारं तरिउमिच्छामो। अमयकलसमुवरिपल्हत्थंतेण विय भणियं भगवयादेवाणुप्पिया ! मा पडिबंध करेहि । त्ति भणिऊण पव्याविया पंच वि जणा वइर[? सेण सामिणा सारहिसमेया णियगैणहरेण ति। तित्थयरो य वइरसेणो सेलेसीविहाणेण खविऊण भवोपग्गाहीणि चत्तारि वि कम्माणि सिद्धो। इयरे वि विहरिउमाढत्ता। वहरणाभेण य अहिज्जियं आयाराइयं मुत्तं, पढियाणि चोइस वि पुन्वाणि, बद्धं च वीसहि ठाणेहिं तित्थयरणामगोत्तं कम्मं । ताणि य इमाणि, तं जहा तित्थयरागमणमायण्णिऊण हरिसियहियओ ससत्तीए दाणाइए पयट्टइ, तित्थयरपडिमाण पडिजागरणं करेति, तित्थयरावण्णवाय च जहासत्तीए णिवारेइ, जहावट्टियतित्थयरपरूवणं करेइ, एवमादि तिस्थयरेसु वच्छल्लं करेइ १ । सिद्धाण य सिद्धखेत्तेसु सिलाइएमु पडिजागरणं करेति, जहावट्टियसिद्धपरूवणेण य सिद्धाणं वच्छल्लं करेइ २। पवयणस्स य बारसंगस्स गणिपिडगस्स तयाहारस्स वा संघस्स अवण्णवायपडियायणे पयट्टइ, तयुब्भासणं वा करेइ, सहइ य जहावढियं, परूवेइ में सब्भावपरूवणाए, इच्चाइ पवयणस्स वच्छल्लं करेइ ३ । गुरूणं च अंजलिपग्गहाइणा आहारोसहाइणा य वच्छल्लं करेइ ४ । पन्चज्जाए वीसइवरिसिओ, वएणं सटिवरिसिओ, सुएणं समवायधरो, एवं तिप्पयारथविराणं जहासनीए पालणाइणा वच्छल्लं करेइ ५। एवं अत्थओ बहुस्सुयाणं वच्छल्लं करेइ ६। तहा तवस्सीणं च उववूहण-विणओसहाइणा वच्छल्लं करेइ ७। अभिक्खणं च णाणे उवओगं करेइ ८। तहा सम्मइंसणे ९ णाणाईए विणए १० अवस्स करणिज्जेसु इच्छामिच्छाकाराइएमु जोएसु ११ मूलुत्तरगुणेसु य जहुत्ताणुट्ठाणेण य अणइयारे वट्टति १२ [? तहा अप्पमाइत्तणेणं खणे खणे सुहज्झाणे वट्टति १३ ।] अणवरयं च जहासत्तीए बारसविहतवविहाणे उज्जमति १४ । जइजणे य फायदाणेणं चायं करेइ १५ । सदा दसविहवेयावच्चरओ १६ । आयरिय-गुरु-थेर- बहुस्सुय तवस्सिप्पभिईणं जहाजोम्गमोसहाइणा समाहिं उप्पाएति १७ । तहा पदिदिणमपुचणाणग्गहणं करेइ १८ । सुए य अञ्चन्तभत्तिं वित्थारेइ १९ । पवयणपभावणं च सव्वत्थामेणं करेइ २० । १ मोहणिदं जे । २ सिंहासणम्मि जे । ३ ण गणहरेण पब्वा सू । ४ सामिसारहिं सू । ५ गणहरेणं ति जे। ६ य जे । ७ सम्वत्थामं कजे। Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउप्पन्नमहापुरिसचरियं । ___ इइ एएहिं वीसहिं ठाणेहिं विमुज्झमाणपरिणामो सयलजणसलाहणिजे तित्ययरणाम-गोत्तं कम्मं बंधइ । एयाणि य वहरणाहेण सव्वाणि वि ठाणाणि फासियाणि । बाहुणा य ओसह-आहाराइणा साहुजणवेयावच्चेणं उबज्जियं चक्कवष्टिफलं कम्मं । सुबाहुणा वि साहुवीसामणापेसत्तेण उवज्जियं अञ्चन्तबाहुबैलं ति। वइरणाभो य पइदिणं वाहु-सुपाहणं पसंसं करेइ । तओ पीढ-महापीदेहिं संपहारियं जहा-जो उवयारपरायणो सो पसंसिज्जइ, अम्हे पुण झाण-ऽज्झयणकिलन्तदेहा ण पसंसिज्जामो ति । एयं च दुव्यवसियं णालोइयं गुरूगं, ण गरहियमप्पणा, बद्धं च मायापञ्चइयं इत्थीविवागफलं कम्मं । एवं च चरिऊण चोद्दसपुचलक्खे पन्चज्जाविहाणेणं दुचरं तवचरणं, पाओवगमणविहिणा पालिऊणमाउयं छ वि जणा सव्वट्ठसिद्ध विमाणे तेत्तीससागरोवमाऊ उववण्ण त्ति। तत्य य गिराबाहं सिद्ध व्व सुहमणुहविऊण कमेण चुया । तत्थ पढमो वहरणाहो चइऊण इहेव जंधुदीवे दीवे भरहस्स दाहिणद्धमज्झिमखंडे तइयाए समाए बहुविकताए चउरासीपुत्रसयसहस्सेसु एगूणणउईए पक्खे य सेसे आसाढबहुलपक्खचउत्थीए उत्तरासाढजोगजुत्ते मियंके णाभिस्स कुलगरस्स 'मरुदेवासामिणीए कुच्छिसि पुत्तत्ताए समुववण्णो त्ति । जीए य रयणीए भगवं समुप्पण्णो तीए चेव रयणीए वरपल्लंकगया रइहरपमुत्ता एए चोइस महामुमिणे मरुदेवी पासइ, तं जहा-मुविहत्ततियं थोरोरुखधं पीवरककुहं खामोयरं पलंबवालहिं सरयऽभधवलदेहं कंचणकिकिणिमालापरियरियं वसहं । एवमण्णे वि गय-सीहाइए चौदस महामुमिणे दळूण मुहविबुद्धा । तो णिदासेसकसायलोयणा मंथरमणहरबहलपम्हलुम्मिल्लंतनेत्तसंपुडा मासरासि व्ब तरणिमंडलं, धणसंपय व्व धणयं, चंदिम व चंदबिम्ब, रइ व्व रइणाई, सइ व्व सुराहिबई, सया सण्णिहिया समणुरत्ता य णाभिकुलयरमुवट्ठिया। कहिया य तीए जहाविहिं बसमाइया चोइस महासुमिणा पिययमस्स । तेणावि हरिससियहियएणं आणंदबाहजलभरियलोयणेणं बहलुच्छलतरोमंचेणं भणियं-मुंदरि! फलियं सुकयपुष्वज्जियतरुणा, समिद्धाओ गुरुयणआसीसाओ, सूइओ ते चोदसहि वि महामुमिणएहिं तेलोकऽच्छेरयभूओ सयलजणसलाहणिज्जो मुरासुर-गरिंदमउडमणिमसिणियपायवीटो पुण्णरासी पुत्तो, ता देवि ! पुष्णा अम्हाण मणोरहा, जाया जयस्स वि णयणणेव्युती। तो तमायष्णिऊण वियलियहिययावेया समूससियसरीर-मणोरहा हरिसवियसियफुल्ललोयणा अभिणंदिऊण पियवयणं पुत्तजम्मुन्भु(? स्मु)यहियया मरुदेवासामिणी पर संतोसमुवगया। एत्यंतरे चलियासणागएणं सोहम्मसुराहिवइणा अहिणंदिओ नाहिकुलगरो जहा-भो रायाहिराय ! सयलजयचूडामणी तेलोकपियामहो पयडियसंसारमोक्खपहो परहियएकरी उज्झिऊण सम्वट्ठविमाणसुहं पणसुहविवेए खिलीभूए मोक्खपहे भरहवासे तुहकुलणहयलमियंको पढमवरधम्मचक्कवट्टी तित्थयरो समुववण्णो। एवमभिणंदिऊण कुलगरं, पसंसिऊण य महुरवग्गूहि थुइसंबद्धाहिं मरुदेवासामिणी गओ सट्टाणं सुराहिवती। मरुदेवासामिणी वि तप्पभिई चेव उदयपव्वयन्तरियचंदबिंबं व पुष्वदिसा समुम्मिलंतकंतिदित्तिपसरा ईसीसिपंडुगंडयला ससीह व गुहा, अमयगब्भ व्व ससिलेहा जाया य सविसेसाभयप्पयाणमणोरहा । अणुदिणं पवड्ढमाणसुहऽज्झवसायजणियधम्माहिलासा पच्छण्णगब्मा गभं वोढुमाढत्वा । णाहिकुलगरी वि मोक्खपायवाऽमोहबीएणं पुत्तसम्भवप्पभावेणं अहिययरं मिहुणपुरिसाहिणंदणीओ जाओ। जाया य सविसेसमुहकप्परुक्खाणुहावा । सव्वत्थोवसन्ततिरिय-मणुयवेराणुबंधा इक्खागभू । तओ वोलीणेसु नवसु मासेसु अहमेमु राइदिएसु चेत्तस्स बहुलष्टमीए अड्ढरत्तसमए उत्तरासाढजोगजुत्ते मियंके अमुणियवेयणाणुभावा तेलोकाणंदहेउभूयं पुनदिस व्व तरणि मंडलं मरुदेवासामिणी सुहंमुहेण दारयं [? दारियं च] पसूया। जायं च तक्खणमेव उवसन्तरयं पसण्णदिसावलयं मणहरसुहालोयं गयणमंडलं । किंकरकरतालणाणवेक्खाओ जायणिग्योसाओ य दुंदुहीओ। किंच जणणयणचवकारकारी विज्जुज्जोयाहिओ सव्वलोए खणमेत्तमुज्जोओ वियम्भिो । तो जर-रुहिर-कलमलकलंकरहिए जाए तिलोयणाहे अहोलोयवत्थयाओ चलियासणाओ अट्ठ दिसाकुमारीओ समागयाओ, तं जहा १ पसत्येण जे । २ बलन्ति सू। ३ दुच्चरन्तवं सू । ४ मरुदेवीसा जे। ५ भास व्य त स । जे । ६ सूसुयहिं सू । ७ सामिणी सू। Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ रिसहसामि-२ भरहचकवट्टिचरियं । भोगंकरा भोगवई, सुभोगा भोगमालिणी । सुवच्छा वच्छमित्ता य, पुष्पमाला अणिदिया ॥१०४ ॥ तओ ‘णमोत्थु ते जगप्पदीवदाइए! इच्चाइमहुरवग्गृहि तिस्थयरजणणी अहिणंदिऊण तित्थयरं च, 'अम्हे देवाणुप्पिए ! अहोलोयवत्थव्वाओ दिसाकुमारीओ तित्थयरजम्माणुहावेणं इहागयाओ, तं भे ण भेतच 'मिइ भणिऊण पासम्मि खंभसहस्वसियं पासायं विउव्वंति। तओ संवट्टगपवणेणं भवणस्साऽऽजोयणं तण-कट्ठ-सकराइयमवणेन्ति । पुणो खिप्पमेव उवसंघरिऊणं, तिस्थयरमभिवंदिऊण तयासण्णटियाओ तित्थयरचरियमेव गायंतीओ चिट्ठति । पुणो उड्ढलोयवस्थव्वामी अट्ट दिसाकुमारीओ आगच्छंति, तं जहा मेहंकरा मेहबई, सुमेहा मेहमालिणी । तोयधारा विचित्ता य, वारिसेणा बलाहगा ॥१०५॥ एयाओ वि तेणेव विहिणा समागंतूणं अब्भवडलयं विउव्वित्ता मंद मंदं समंतओ आजोयणं सलिलेणं स्यपडलमुवसमेन्ति । पुणो पुप्फबद्दलयं विउम्वित्ता जल-थलयवासप्पभूयाणं बिंदु(ट)ट्ठाईणं दसवण्णाणं कुसुमाणं जाणुस्सेहप्पमाणं पुष्फवासं वासंति । तहेव गायमाणीओ चिन्ति । एवं च पुव्व-दक्विणा-चरुत्तररुयगवत्थवाओ अट्रट दिसाकमारीओ गहियायरिस-भिंगार-तालियंट-चामराओ तित्थयरस्स जणणिसहियस्स अप्पऽप्पणेसु दिसाभागेसु गायंतीओ चेटुंति । तओ विदिसिरुयगवत्थव्वाओ चत्तारि विज्जुकुमारीसामिणीओ समागच्छन्ति । ताओ वि दीवगहत्थाओ तहेव चिट्ठन्ति । तओ मज्झरुयगवस्थव्वाओ चत्तारि दिसाकुमारिप्पहाणाओ समागंतूण भगवओ तित्थयरस्स चउरंगुलवनं नाभिं कप्पंति, रयण-वइरगम्भे य वियरए णिहणन्तिं । तओ विउब्वियकयलीहरसीहासणम्मि जणणिसहियस्स भगवओ मज्जणा-ऽलंकाराइयं काऊण कयरक्खाविहाणाओ तहेव गायन्तीओ चेटुंति । एत्यंतरम्मि सोहम्माहिवइणो सोहम्मवडेंसयगयस्स रइसागरावगाढस्स अच्छरसयसहस्सपरिवारस्स सञ्चाए सह रइसुहकेलिमणुहवन्तस्स गरुयभउव्वेवजणणं सीहासणं चलियं । तो चलियसीहासणुप्पित्थहियो दट्ठोभिउडिभासुरुभडगंडयलुल्लसंतमुहमंडलो रोसर्वसातविरुफु (प्फुल्लपासपेसियऽच्छिच्छोहो जायावेओ मुराहिवती दप्पुधुरेण विण्णत्तो बजाउहेणं जहा-देव ! सण्णिहिए वि अम्हारिसे किंकरयणे सिंघासणाकंपावेएणं किमेवं अप्पा आयासिज्जइ ?, ता वियारिऊण देवो देउ ममाऽऽएसं 'कि कीरउ ? ति । तओ सुरिंदेणं पउत्तो ओही। उवलद्धं जंधुहीवे भरहस्स दाहिणखंडे इक्खागभूमीए णाहिकुलगरस्स मरुदेवाए भारियाए पढमतित्थयरस्स जम्मं ति । तओ वियेलियमाणसावेओ पमोयपूरियसरीरो गंतूण सत्तट्ट फ्याणि मिलियकरकमलमउलिणिहियधरणिजाणुत्तिमंगो णमो त्थु देवाहिदेवाणं' ति भणिऊण थुविउमाढत्तो जय णिम्मलगुणवित्थारभरिय ! भुवणुच्चरंतजसणिवह !। भवभीयाण सुरच्चिय ! सरणमसरणाण तं णाह! ॥१०६॥ भरहम्मि संभवन्तेण णाह ! मोहंधयारपडहच्छे । संपइ पयासिया ते चिरस्स संसार-मोक्खपहा ॥१०७॥ जेहिं तुह दंसणं होइ णाह ! पुण्णाई ताई तेई दिटे । ता गुण कहिं पि तुमं दिह्रो किल तेण"दीसिहिसि ॥१०८॥ इय थोऊण सुरिंदो सेसाण सुराण बोहणणिमित्तं । आएसं देइ तओ तुरियं हरिणेगवेसिस्स ॥१०९॥ तो आएसाणंतरमेव घंटाणिणायप्पओगेणं विवा(?बो)हिया विबुहा, समागया य णाणाविहयाण-वाहणारूढा । सक्को य सुराहिबई चविहदेवनिकायसमेओ समागओ इक्खागभूमि। भणिओ य हरिणेगवेसिपडिहारो जहा-दाऊण जणणीए उसोवर्णि आणेहि जिणिदं । तेणावि आएसाणन्तरमेव आणिऊण समप्पिओ सुराहिवइणो। हस्थट्ठियं च जिगिंदं णिव्वण्णिऊण भणियं सुराहिवइणा-भो भो सुरा-ऽसुरा! उवहसियसुरलोयरूवरिद्धिं पेच्छह बालगस्स वि जिगिंदस्स देहसोहं । तओ एवमभिणंदिऊण थुणिउमाढत्तो विहडंति तक्खणुक्खुडियबंधसंधाणेवंदमंदाई । तमपडलाइं रविम्मि व तइं दिढे णाह ! पावाई ॥११॥ १ जणणी सू। २-३ चेट्ठति जे । ४ तालियंद(? ट)गचाम सू । ५ वज्झ सू । ६ वसाकपिफुल्लपास जे। रजणे सिंहास जे । ८ जम्मन्ति सू । ९ विलसिय जे । १० पयाई जे । ११ थुणि जे । १२ या एचिरस्स स । १३ तह दि जे । १४ तो जे । १५ दीसिहसि सू । १६ जाणं जे । १७ सोवणी सू । १८ णपदम जे । Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउप्पन्नमहापुरिसचरिया अणिमिसणयणसहस्सेहिं जिण ! णियन्तस्स तह वि ण हु तित्ती । किं एस गुणो तुह णाह ! 'किं व णयणाण मह दोसो? ॥१११॥ तुह णाह ! दंसणुच्छलियबहलरोमंचकंचुइल्लाइं। हरिसमुयाइं मायंति णेय अंगेसु अंगाई ॥११२ ॥ ज्झत्ति वियलंतगुरुकम्ममारपसरन्तसुहविवेयाण । तुह दंसणं सुराहिवणिबंधणं किंपि भवियाणं ॥ ११३॥ 'णामं पि तुह ण जाणन्ति णाह ! संसारसायरुत्तरणं । बहवे मह उग जिण ! दंसणं पि जायं असामण्णं ॥ ११४ ॥ णिबवइ तुह महायस! कहा वि आसंघिओरुसोक्खाई। हिययाई सइ सुरच्चिय ! दंसणमतुलं ति कह भणिमो?॥११५॥ तइ दिढे ज्झत्ति समूससन्ति वियलन्तपावपसराण । भवियाण भवभउप्पित्थहित्यहिययाई अंगाई ॥११६॥ इय वज्जियबालसहावचरिय ! बालो वि मुणियपरमत्थो । अब्भुद्धरणं भुवणस्स णाह ! दे कुणसु करुणाए ॥ ११७॥ तओ थुणिऊण तियसणाहो 'णेमि अत्तणो विउव्वणलॅद्धिं सफलत्तणं' ति मुणिऊण पंचहा अप्पाणं विउव्वेइ । अवि यगहियजिणचामरा-छ(?ऽऽव)त्त-वजकयपंचदेहणिम्माणो । वच्चइ य सुराहिबई जिणरूवणिरूवणक्खणिओ ॥११८॥ तओ पहयर्पटुपडह-भेरि-ज्झल्लरि-भद्दलुद्दामकंसालमाला-संख-कलकाहलारावबहलगुंदलुद्दामपूरियणहन्तरालसंवदृपयट्टदेवकयकलयलचेलुक्खेवभरिय वणो पयट्टो चउव्विहदेवणिवहो अहिसेयणिमित्तं मंदराभिमुहं, बच्चइ य जिणरूवालोयणस्थसम्मदुद्दामवलियतिय सियाच्छिच्छोहो कहकहवि सञ्चवियसरीरावयवविम्हयुप्फुल्ललोयणो तित्थयरचरियसंबद्धकहालावुच्छलियवहलहलबोलो । पत्तो य णिविसऽद्धद्धेणेव सुरगिरिं। दिहो य गंधमायण-विज्जुप्पभ-मालवंत-सोमणसचउपव्ययगयदन्तयपरियरिओ गाणाविहरयणरासिविच्छरिओ मेरुगिरी । सो य मूले दससहस्सवित्थिण्णो, अहो य जोयणसहस्समवगाढो, णवणवइजोयणसहसु(स्सु)स्सिओ, भूमीए भद्दसालवणपरियरिओ, उवरिं च पंचसु जोयणसएमु गंदणवणसंजुओ, गंदणवणाओ उवरि बासद्विसहस्सेहिं पंचसयाहिएहिं सोमणसाभिहाणवणालंकरिओ, सोमणसाओ छत्तीससहस्सोवलग्गिऊण जोयणसहस्सवित्थिण्णसिहरे पंडगवणमंडिओ। पंडगवणस्स य म(ब)हुमज्झदेसभाए चत्तालीसजोय"सिया, मूले बारसजोयणवित्थिण्णा, उवरि चउजोयणवित्थरा चूलिया । सा य चउसु वि दिसासु पंचसयायामाहिं आयामद्धवित्थिण्णाहिं चंदसंठाणसंठियाहिं कुमुओयरधवलाहिं पंडुकंषल-अइपंडुकम्बल-रत्तकंबल-अइरत्तकंबलाहिहाणाहिं सिलाहिं परियरिया। पुव्वा-ऽवरासु सिलासु. "दोणि दोण्णि सीहासैणाई, दक्षिणुत्तरामु य एक्ककं ।। __ तो गहियतित्थयरा पंडुकम्बलाहिहाणं सिलमल्लीणा सुरणिवहा। अंकणिवेसियतित्थयरो य उवविट्ठो सीहासणे सुराहिबई । तओ पहयबहुविहाउज्जगरुयसैद्दब्भरियमहिहरविवरकुहरुच्छलंतपडिरवावूरियखुहियणीसेसतिहुयणं वेल्लहलणच्चिरऽच्छर सतोसपयट्टकरणंगहारं मिलियलयगेयतालं उच्छलियवेणुवीणाकिन्नरगेयरवं उक्कुटिसीहणायाउलं जयजयसद्दपूरियणहंगणं वसहसिंगुच्छलन्तजलपब्भारावूरियमहिहरकुहरविवरं कयं बत्तीसमुरिंदेहिं पत्तेयं कणयकलसहसहस्सेणं सव्वोसहिसणाहेणं खीरोयवारिणा विहीए मज्जणयं । विलित्ता-ऽलंकिओ य सच्चाए थुणिउमाढत्तो कह कीरउ मंडणयं तुह पहु ! अम्हारिसेहि भत्तीए ?। भूसन्ति तुहंगाई जयभूसण ! भूसणाई पि ॥ ११९॥ जं जं चिय किल कीरइ तं तं चिय तुम्ह देहसोहाए । कणयासण्णट्ठियपित्तलं व ण हु रेहइ जिणिंद ! ।। १२० ।। तओ एवमभिणंदिऊण सव्वालंकारविभूसिओ देवर्दैगुलुच्छाइयसरीरो वरपारिजायकुसुममालॉलंकिओ णिहित्तगुट्ठदिव्वमूहयरसो णीओ जणणिसमीवं जयगुरू । अभिणंदिया य जणणी सुरिंदेण-- १ किम्व सू। २ गामम्पि सू। ३ याणंति जे । ४ तुलन्ति सू। ५ "लदिसर्फ जे । ६ पडुपडह जे । ७ "भुयणो जे । ८ "पेच्छिय जे । ९ वित्थरियो जे । १. सुया जे । ११ दोण्हि दोण्हि सू। १२ सणाणि जे । १३ यसदसदभरि जे सू । १४ "सिंगगुच्छ जे सू। १५ °सएणं सू । १६ दुगुलछाइय सू । १७ लंकरिओ जे । Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७ १ रिसहसामि- २ भरहचक्कवट्टिचरि। धष्णा सि तुमं देविंदवंदिए ! जयसलाहणिज्जा सि । गन्मम्मि जीए तेलोकधम्मधुरधारओ धरिओ ॥१२१ ।। इय सयलजीववच्छल ! जयगुरु ! संसारसायरुद्धरणे । तइ णाहेण सणाहं भरहं अम्हे वि दूरत्था ॥ १२२ ॥ एवमभिणंदिऊण तित्थयरसहियं जणणि, वरिसिऊण रयणवरिसं, गया सहाणेसु तियसा। विउद्धा य मरुदेवा सामिणी, पेच्छई य दिव्वालंकारभूसियं बालयं, पयइत्थं च बालियं। पेच्छन्ती य तं मिहुणगं पुण्णेयरविभागम्यगं जणणी अञ्चन्तविम्हयमुवगया, साहियं च जहाविहमेव दइयस्स । तेगावि भणियं-पुब्वमेव मए तुह साहियं जहा-तेलोकवंदणिजो भविस्सइ ते पुत्तो, पुण्णेयराणं च विभागो मिहुणगेणेव सिट्ठो, जो एक चिय कुच्छी, तिहिणक्खत्ताइयं एकमेव, तहावि देवाण वि विम्हयजणणो विसेसो । पइटावियं च णामं पढमवसहसुइणदंसणेण ऊरुवसहलंछणेण य उसहसामी । सो य तियसंगुट्ठणिहित्तसुहरसासायणेणं बुभुक्खोवसमं करेइ, ण पाययपुरिसो व्व पओहरपएणं। ___ एवं च वड्ढन्तस्स भगवओ णाहिकुलयरुच्छंगगयस्स 'कप्पो' त्ति काऊण गहियईक्खुलट्ठी वंसठवणत्थं समागओ सुरिंदो। भगवया वि ओहिणा मुणिऊण पसारिओ इक्खुलटिगहणत्थं हत्थो। तओ मुरिंदेण समप्पिऊण इक्खुलर्हि वंदिऊण भयवन्तं इक्खुवंसो त्ति कया वंसठवणा।। ___ एवं च सरन्ते संसारे वइते भयवंते अणोवमसरीरे अण्णया एगं मिहुणगं तालरुक्खअहे कीलिउं पयत्तं। ताव य भवियव्ययाणिओएणं परिणयतालफलेणं णिवडिऊण पहओ मम्मपएसे मिहुणगपुरिसो, अकालमच्चुपहावेण य मओ। तम्मि मए सा मुद्धहरिणि व अमुणियकरणिज्जा अवियाणियमरणसहावा किंकायचविमुहिया ठिया, अवराणि य मिहुणगाणि परिवारिऊण ठियाणि । पुचि च मयमिहुणकलेवराणि महाविहंगमेहिं तक्खणमेव समुदमज्झयारे पक्खिपन्ति, संपयं तस्साणुहावस्स वियलणेण अपुव्वकालमच्चुमरणदंसणेण य कोह-भय-विम्हयऽक्खित्तसरीरा अमुणियसब्भावा तं उवहसियरूवतियसंगणारिद्धिं जणमण-णयणुच्छवभूयं मिहुणगा घेत्तूण णाहिकुलगरमुवट्ठिया। तेणावि 'उसहसामिणो पणइणी भविस्सइ ' त्ति संगहिया। अण्णया य समुल्लसंते जोयणे, विभज्जमाणेसु सरीरावयवेसु भोगसमत्थं गाउं भयवन्तं बहुदेवैयणपरियरिओ अच्छरसमूहसंजुओ पालंतो पुवट्टिई विवाहणिमित्तं समागओ सुराहिवई सपरिवारो । सयमेव विवाहकम्मं [? करेइ भयवओ, कारवेइ य] सञ्चपमुहेण य अच्छरायणेण देवीए सुमंगलाए सुणंदाए य । तओ महया विमद्देणं अच्छरगिरुग्गीयमंगलरवेण पहयणाणाविहाउज्जसद्दुच्छलियपडिरवपहरियणहंगणाहोएणं महयारम्भेणं भयवओ सुमंगलाए सुणंदाए सह कारियं पाणिग्गहणं । गओ सट्ठाणं सुराहिबई । मुंजइ य भोए भयवं । अणवरयं हीयमाणेसु सुहाणुभावेसु, पवड्डते कसायपसरे, गच्छंतेसु सढत्तणं पुरिसेसु, विलंपिज्जंतीम तीसु वि डंडनीईसु मिहुणगा उसभसामिमुवटिया । भणियं च तेहिं जहा-देव ! असमंजसीहूया मिहुणायारा, लंघिजन्ति पुंवट्ठीओ, ण गणिज्जति हक्काराइयाओ डंडणीईओ, तओ जमेत्थ पत्तयालं तं देवो सयमेव वियारिऊण उवइसउ । भयवया भणियं-राया डंडधरो मज्जायाइक्कमणिरोहयारओ होइ त्ति, सो य कयाभिसेओ मंतिसमेओ चउरंगबलसमण्णिओ अप्पडिहयसासणो होइ, णऽण्णहा। तेहिं भणियं-तो भयचं! तुम चेव अम्हमणाहाणं णाहत्तणं कुणसु त्ति। भगवया भणियं-कुलगरो तुम्हाणं देहि त्ति । तओ कुलगरसुवट्ठिया। तेणावि रूब-विण्णाणाइसयऽहियएणं 'तुम्हाणमुसहो सामिओ' त्ति भणियं, गच्छह य तस्साविलंबियं रज्जाहिसेयं कुणह । गया य ते उदयणिमित्तं । एत्थंतरे य सुरिंदेणं 'कप्पो' त्ति काऊण महया विभूईए को भगवओ रज्जाभिसेओ, महारायजोग्गो [य] मउडाइअलंकारो। गओ य सट्ठाणं सुराहिवई। समागया य कमलिणीदलपुडगहियसलिला मिहुणगा। पेच्छन्ति य विम्हयऽक्खित्तहियया हरिसभरिजन्तलोयणा कयरज्जाहिसेयं देवदुगुल्लच्छाइयदेहं बहलगोसीसचंदणुद्दामविलित्तसरीरं विविहमउडपट्टबंधाइअलंकारालंकियं भगवन्तं । तो 'अम्हाण एस सामिओ' ति भणिऊण 'ण एयस्स उत्तिमंगजोग्गं सलिल'मिइ चिंतिऊण य पल्हत्थियं भगवओ चलणकमले कमलरयपिंजरियं मज्जणसलिलं । १ई रयणविहूसिय बालय, जे । २'इक्ल(क्खू) वस सू । ३ तम्मि समए सा सू। ४ °देवगण जे । ५ पुव्वत्थीओ जे।६ डडणीओ जे। Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८ चउप्पन्नमहापुरिसचरियं । ___ तओ सकाएसेणं आगंतूण धणाहिवइणा वेसमणेण बारहजोयणायामा णवजोयणविस्थिण्णा 'एस्थ विणीया पुरिस' ति काऊण कयविणीयाभिहाणा सुविभत्ततिय-चउक्क चच्चरा सत्तलपासायमालालंकिया इंदणील-पउमरायाइमणिमयभित्तिप्पभापहयंधयारा मणि-कंचण-धण-कणगसमिद्धा णयरी णिविट्ठा । एत्यंतरे य देवीए सुमंगलाए सबढविमाणाओ बाहु(हू) पीढो य चविऊण कुच्छिसि मिहुणतणेणं सेमुववण्णा। पसूया य सुमंगला णवण्हं मासाणं अट्ठमाणं राइंदियाणं । जायं मिहुणगं । पइहावियं च णामं एकस्स भरहो, बीयाए बम्भी। सुणंदाए य देवीए सुबाहु(इ) महापीढो य चविऊण सव्वदृविमाणाओ मिहुँणत्तणेण समुववण्णा । पइट्टावियं च णाम एकस्स बाहुबली, बीयाए सुंदरी । पुणो वि देवी सुमंगला एगणवणं पुरिसजुयाणि सुहंमुहेण पसूया। __ अण्णया य वरगइंदारूढो भगवं विष्णविओ मिहुणपुरिसेहिं जहा-भगवं ! अब्भुवगयवच्छल ! उवरग्गिणा ण सम्म परिपागमुवेइ कप्पतरुकप्पिओ आहारो । तओ भणियं भगवया जहा-तिम्मिऊण हत्थपुड-कक्खाइसेएण पागं णेऊण कुणह उवओगं । तहा अजीरन्ते पुणरवि विष्णवियं जहा-देव ! किंपि महाभूयं रुक्खघंससमुभूयं रुक्खविणासणकारणं जायं । तओ भगवया तमायण्णिऊण भणियं जहा-एस अग्गी सणिद्धकालाइक्कमणपडिबोहिओ पडिरुक्खकालत्तणजायस(सा)मत्थो तुम्हमाहारपरिवागहेऊ समवट्रिओ, ता पासाणि छिदिऊण गेण्डह एयं. कुणह जुत्तीए एयस्स संगह। गयखंधसमारूढेण भगवया महियं मग्गिऊण करिवरकंभत्थलाहारे णिम्मविओ मट्टियामओ कुंभो, भणिया य मिहणगा जहा-एवमादीणि णिम्मविऊण पुढविपरिणाममयाणि कप्पतरुफलसाहणाणि एएसु य उदयसमणियपक्खित्तफलाइणो जुत्तीए पएऊण अग्गिणा कुणह जहासुहेणमुवओगं । तओ य ते मिहुणगा लधुवएसा तहेव करिउमाढत्ता, जाओ य तेर्सि सुहपरिवागत्तणेणं आहारस्स अञ्चन्तपरिओसो।। एवं च अवस्संभावितणओ तस्स भावस्स रविणेव कमलवियासो, महुमासेण व सहयाराइकुसुमुग्गमो, 'कप्पो' त्ति काऊण उप्पाइयाई सयभेयाइं पंच सिप्पाइं, तं जहा-कुंभयारो चित्तयरो लोहारो तंतुवाओ कासवओ। एयाणि य सिप्पाणि सयभेयाणि पसिद्धिं गयाणि । गहिया य आसा हत्थी गावो रज्जसंगहणिमित्तं । जाया य चउप्पयारा रायाणो, तं जहाउग्गा भोगा राइण्ण(णा) खत्तिया य । दसिया य लोगणीती। पेयट्टाविया य जहाजोग्ग दंडणीईओ। लाइयाओ पट्ट-गेयाइयाओ वाहत्तरिकलाओ भगवया भरहस्स । तेण वि य चउविहबुद्धिगुणोववेएणं भाणिऊण य णिययपुत्ताण य पउत्ताओ। सिक्खविओ य बाहुबली उसभसामिणा गय-तुरय-पुरिसाइलक्खणं । तं च कला-लक्षणाइयं बहुहा विभज्जन्तं परिगलियसेसं संपइ केणावि "किंपि निबद्धं, तं जहा-गडं भरहेणं, पुरिसलक्खणं समुदेणं, गंधव्वं चित्तरहेणं, चित्तयम्मं णग्गइणा, आउवेओ धण्णन्तरिणा, आसलक्षणं सालिभद्देणं, जूयं विहाणेणं, हथिलक्खणं धुब्बुहेणं, णिउद्धं अंगिरसेणं, इंदजालं सवरेणं, इत्थिलक्खणं कच्चायणेणं, सउणजाणं सेणावइणा, सुमिणलक्खणं गइंदेणं, सूयारसत्थं णलेणं, पत्तच्छेजं विज्जाहरेहिं । इच्चेवमाइएहिं अण्णेहि य संपयपुरिसाण सगासमाणीयं कला-पुरिसलक्खणाइ सेसं । अवि य सा णस्थि कला तं णत्थि लक्खणं जं न दीसइ फुडत्यं । पालित्तयाइविरइयतरंगमझ्यासुय(इयाइस) कहासु ॥ १२३ ॥ पुणो भगवया बंभीए दरिसिया अक्खरलिवी । तीए लिवीए 'पढमं बंभीए दरिसिय' त्ति काऊण बंभी चेव नाम जायं । तओ पच्छा बम्भिप्पभिईओ अट्ठारस लिपीओ जायाओ, तं जहा-बंभी हंसी उडी दोमिली जक्खी खसाणिया आयरिसी भूयलिवी गंधव्वी गंदीणयरा सणामत्ता परकम्मी बब्बरी खरोट्ठी खैडवियडा जवणी पोक्खरी लोयपयास ती(त्ति)। वामेण य हत्येणं जगपियामहेणं सुंदरीए गणियमुवइटें । तं च संपयं चउणउयट्ठाणसयणिफण्णं सीसपहेलियापज्जवसाणं संववहाराणुगयं, तं जहा-अक्खं दहं सयं सहस्संदेहसहस्सं लक्खं दसलक्खं कोडी दसकोडीओ कोडिसयं दसकोडिसयं १ समुप्पन्ना जे । २ अट्ठण्हं राई जे। ३ मिहुणत्तेण सू। ४ च से णामं जे। ५ °लाणि सुहेण सुहं पसूया जे सू । ६ आहारगस्स सू । ७ सहमेयाई पंच सिप्पियाई जे । ८ व सु! ९ पयट्टाविया जे। १. डंडजे। ११ किचि निजे। १२ गंदीयरा जे! १३ सदविडा ! १४ दससह जे । Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ रिसहसामि-२ भरहचकवट्टिचरियं । कोडिसहस्सं दसकोडिसहस्संकोडिलक्खं दसकोडिलक्खं । अओ उड्ढे पुव्वंगादीहिं संखा कीरइ । तत्थ चउरासीहि लक्खेहि पुच्वंगं । तं चेव वेग्गियं एकं पुव्वं । तस्स उ परिमाणं सत्तरि कोडिलक्खा छप्पण्णं च सहस्सा कोडीणं। तं चेव चउरासीहिं लक्खेहि गुणियं तुडियंगं भवइ । तस्स इमं परिमाणं-पण्णरस सुण्णा, तओ चउरो, मुग्णं, सत्त, दो, णव, पंच य ठवेज्जा। एवं चउरासीसयसहस्सगुणिया सव्वहाणा कायन्या, तओ तुडियायओ भवंति । तेसिं इमं जहासंखं परिमाणंतुडिए वीसं सुष्णा, तओ छ तिण्णि एको सत्त अट्ट सत्त नव चउरो य ठवेज्जा । एवं पत्तेयं पत्तेयं चउरासीहि लक्खेहि गुणियाणमुत्तरोत्तराणं इमाणि संखाभिहाणाणि दहव्वाणि, तं जहा-अडडंगे अडडे अववंगे अबवे हुहुयंगे हुहुये उप्पलङ्गे उप्पले पउमंगे पउमे णलिणंगे णलिणे अत्थणिउरंगे अत्थणिउरे अउअंगे अउए नउअंगे नउए पउयंगे पउये चूलियंगे चूलिया सीसपहेलियंगे सीसपहेलिया। एवं चउण[3]यं संपयं ठाणसयं संववहारविसयं ति । ___ एवं कएमु सिप्पेसु, उप्पाइयासु य कलासु, पयडिए पुरिसाइलक्खणविहाणे, उवइढे गणिए, पयडिए लोयववहारे पढमरजावसरे एगा मणुस्सजाई दुहा विहत्ता भगवया, तं जहा-जे भयवंतं परिवारेऊण ठिया ते खत्तिया रायाणो, सेसा उण पयतिलोओ। सिप्पुप्पत्तीय तिहा जाया, तं जहा- खत्तिया,कलाजीविणो य वइसा, सेसा सुद्दा । पुणो पच्छा गुणाहियसावय-भरहवइयरेणं माहणुप्पत्तीए चउहा वण्णविभागो संवुत्तो । पुणो एएसिं चेव संजोएणं तिणि वण्णा, तं जहा-माहजेणं खत्तियाणीए पहाणखत्तिओ, एवं खत्तिएणं वइसीए पहाणवइसो, वइसेणं सुद्दीए पहाणसुद्दो । तहा माहणेणं वइसीए संबंधो(? अंबट्टो)। खत्तिएणं सुदीए उग्गो । पुणो माहणेणं सुद्दीए णिसाओ । पुणो वि पच्छाणुपुव्वीए सुद्देणं वइसीए अभव( ? अयोगवं)। वइसेण खत्तियाणीए मागहो । खत्तिएणं माहणीए (सू)ओ। तहा सुदेणं खत्तियाणीए खत्ता। वइसेणं माहणीए वइदेहो । सुदेणं माहणीए चंडालो। उग्गेणं खत्ताए सोवागो। वइदेहेणं खत्ताए वइणवो। अंबट्टीए मुद्दीए वा णिसाएण जाओ बौकसो । निसायु(यी)ए मुद्देण जाओ कक्कडओ। एवं वण्णविभागो पुचि, पच्छा बहुभेदो जाओ। __ एवं च पयट्टे गिहिधम्मे, पत्ते य कुलायारे, पजत्तसंपज्जंतेमु य कामभोगेसु, मुहिए लोए, संसरंते संसारे, परिफुडं लक्खिजंतेसु सव्वेसु उसु, अण्णया भयवं पुत्तपरिवारिओ सयलजणसमेओ सहयारमंजरीरेणुरंजियसयलदिसिमंडले विसट्टकमलायरुच्छलियधूलिपडलपिंजरियणहयले महुमासे कीलानिमित्तमुजाणं गओ। पवत्ता य भरहाइणो सयलकुमारा विचित्तकीलाहिं कीलिउं । किं दोगुंदुगदेवा वि एवं चेव कीलिउं उयाहु अण्णह ? त्ति जाणणत्थं भयवया पउत्तो ओही। परिच्छिदंतेण य ओहिणा उत्तरोत्तरं देवमुहं अवलोइयं अत्तणा उवभुत्तं अणुत्तरविमाणसुहं । तओ वियलियगुरुमोहबंधणो चिंतिउमाढत्तो-“अहो ! कर्ट अण्णाणं, गरुओ मोहप्पसरो, दारुणो कम्मविवागो, विसमा विसयेच्छा, चंचलाणि इंदियाणि, दुन्निवारो चित्तप्पसरो, सव्वंकसो कामो, अपासबंधो णेहाणुबंधो, सव्वहा असारो संसारो, एत्य गया संसारिणो जीवा ण मुणन्ति अत्तणो हियं, ण पेच्छन्ति दारुणं कम्मविवागं विसयमुहलेसाणुगयचित्ता, 'णत्थि इओ अण्णं विसिट्टयर' ति मण्णमाणा दुक्खपडियारेसु चेव कयसुहज्झवसाया इंदियाणुकूलेसु वावारेसु पयट्टति । तेसिं च अण्णोष्णमोहियमतीणं सुहाहिलासीणं दुक्खपरिहरणसीलेणं सव्वा चेट्टा दुक्खेकहेउत्तणेणं परिणमति। अण्णं च अहो ! पहावो संसारविलसियाणं, जेण अहं पि अणुहूयाणुत्तरविमाणमुहो अवियण्हो तुच्छेसु मणुयकामभोगेसु दुक्खपडियारहेउभूएसु तेत्तीसुहं वंछामि । अजायचउसायरसलिलतण्डाछेयस्स पुरिसस्स सिण्हतुसारसलिलेण तण्होवसमो भविस्सति ? ति किं केण संगयं ?, सव्वहा संसारविलसियमेत्थावरज्झति । पणट्ठविवेया संसारिणो" ति । जाव य भगवं संसारपरम्मुहो वियलन्तकम्मरासी संजायमोहविवरो विपञ्चमाणतित्थयरणामकम्मोदओ एवं चिंतेइ ताव य चलियासणाऽऽगया अट्ट(नवाविहा लोगंतिया, तं जहा सारस्सय १ माइचा २ वही ३ वरुणा ४ य गद्दतोया ५ य। तुसिया ६ अव्वाबाहा ७ अम्गिचा ८ चेव रिट्ठा ९ य ॥१२४॥ १ मग्गियं जे । २ खत्तिया[णी]ए सों जे । ३ बुकसो । निसाउ(ई)ए जे । ४ लेसागय जे, लेसाणुराय सू । ५ यरन्ति सू । Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउप्पन्नमहापुरिसचरिय आगंतूण य ते भगवन्तं महुरवग्गृहि थुणिउमाढत्ता-"जय रायाहिराय-तियसिंदमउलिमणिमसिणपायपीढ ! तियसंगणावयंसमंजरीस्यरंजियचलणजुगल ! चिरणभरहवासमोक्खपहुब्भासणसयण्ह ! पढमवरधम्मचक्कपट्टि ! परमेसर ! सिद्धिबहुवरंगणाजणियाणुराय! भयवं! जगपियामह ! कयसयलजयववत्थ ! सब्भावपाक्यितियसिंदरजाहिसेय ! पयासियाऽसेसाऽऽयार-कुलधम्म ! संपइ कुणसु भरहवासदुहियजणऽब्भुद्धरणं । गया य वीसं पुचलक्खा कुमारवासे, रज्जम्मि य तेवट्ठी। 'दुग्गइगमणहेयवो तुच्छा य इमे कामभोगा' एवं च जाणंतस्स भगवओ खणमवि ण खमं पमायचरणं । ता लेहुं चेव संसारसायरुत्तरणजाणवत्तं तित्थं पवत्तेहि " । एवं थुणिऊणं गया सत्थामं लोगन्तिया। तो एयमायण्णिऊणं अहिययरजायसंवेगो णंदणवणाओ भवणमधिगतो। तत्थत्थेण य आहूया महारायाणो, को भरहस्स रायाहिसेओ, दत्ताणि य पत्तेयं पत्तेयं बाहुबलिपमुहाणं पुत्ताणं विसयखंडाणि। दिण्णं च संवच्छरियं महादाणं । समागओ सपरिवारो तियसाहिवती। कओ मुणिपत्थिवाहिसेओ। सन्जिय सिबियारयणं, आरूढो भुवणगुरू। उक्खित्ता सिबिया पुचि मणुएहि, पच्छा तियसा-ऽसुरिंदेहिं । समाहयाई विविहमंगलतूराई, को जयजयारवो तियसाऽसुर-मणुयवंद्रेहि, समुधुओ चेलुक्खेवाउलो चमरसंघाओ। पत्तो महया सम्मद्देणं सिद्धत्थवणं, ओइण्णो य भुवणणाहो। जयजयरवुक्कुटिगम्भिणो हलबहलगुंदलुद्दामुच्छलियभरियणहन्तरालमहिहरकुहरो खिप्पामेव तियसिंदपडिहाराएसेणं कलयलो उवसंतो। तओ भयवं चेत्तबहुलहमीए परिणयप्पाये वासरे उत्तरासाढाजोगजुत्ते मियंके अवणियकुसुमाभरणो 'णिहियतियसिन्ददेवदूसो कयवजसण्णिहाणपंचमुट्ठिलोओ सकधरियसण्हकिण्हकुडिलग्गकेससेसो सदेव-मणुया-ऽसुररिसमज्झयारम्मि छट्ठभत्तेणं 'सव्वं मे अकरणिज्जं पावं' ति चरित्तमारूढो । तओ पच्छा चत्तारि सहस्सा खत्तियाणं गरुयबहुपसायाऽऽवज्जियहियया णिसिज्झमाणा वि भरहेणं, पंडिकूलिज्जता वि बंधुयणेणं, चइऊण रायसिरिं, उज्झिऊण पुत्तकलत्ताइयं, छिदिऊण य णेहपासे तेलोकगुरुप्पमाणओ 'जा गती भगवओ सा अम्हाणं पि' एवं पइण्णामंदरमारूढा । गओ य विम्हयावृरियहियओ णिक्खमणमहिमं काऊण सोहम्माहिवई। तो भयवं चउसहस्सपरिवारिओ विउलं महिमंडलं विहरिउमाढत्तो। विहरतो य आहारट्ठी अविण्णायभिक्खा-भिक्खयरसरूवेणं लोएणं कण्णा-गय-तुरगादिएहिं णिमंतिज्जमाणो गहियमूणचओ लिंगम्गहणकालमासाइयमणपज्जवणाणो चउणाणी णगर-पट्टणाइयं विहरंतो अदीणमाणसो परिचत्तो छुहावेयणापरिगएहिं आसाइयकंद-मूल-फलाइएहिं भरहभयगहियरण्णणिवासेहिं पवत्तियपढमतावसलिंगेहिं चउहि वि समणसहस्सेहि । तओ भयवं णमि-विणमीहिं कच्छ-महाकच्छपुत्तेहिं अणासाइयसामिपसायपुहइसंविभागेहिं गहियमंडलग्गेहिं सेविउमाढत्तो । अण्णया य धरणिंदो वंदणागओ संजमियजडाकडप्पे गहियफरमंडलग्गे कयवकलोदरुए दट्टणं पुच्छइ-भो किंनिमित्तं भगवन्तं हिस्संगमोलग्गह ? । तेहिं भणियं-भोगत्थिणी । नागिंदेण भणियं-कुओ भगवओ चत्तविसयसुहाओ संपर्य विसयाहिलासो ? । तेहिं भणियं-तहा वि अम्हेहिं ण अण्णो कोइ दिद्वपुलो, एयसयासाओ चेव जं होउ तं होउ।त्ति भणिऊण तुहिक्का ठिया । एयमायणिऊण धरणिंदेण चिंतियं-भयवं ताव वायामेत्तेणापि अकयपरोक्यारो, अमोहा य महापुरिससेवा, विहत्तं सयलं भरहऽद्धं, तो देमि एएसिं पण्णत्तिपमुहाणं महाविजाणं अडयालीसं सहस्सं, कुणंतु एए महाविज्जाबलेणं वेयड्ढस्स पणुवीसइजोयणुच्चस्स पण्णासं वित्थिण्णस्स दसजोयणक्क्खिंभासु दाहिणुत्तरसेढीसु णगरणिवेसं काऊणं विज्जाहरचकवहित्तणं । चिंतिऊण य एयं चे भणिया णमि-विणमी। तेहि य पुणरुत्तं भण्णमाणेहि गमिऊण भगवन्तं गहियाओ विज्जाओ। गओ णिययं च थामं धरणिंदो। ते वि य विज्जाहिं लोभिय गहियजणवया गया वेयड्ढपव्ययवरं । निवेसियाइं च णमिणो णा] दक्खिणसेढीए पण्णासं नगराई, विणमिणा वि उत्तरसेढीए सर्टि। गया य विजाबलेणं विज्जाहरचक्कचट्टित्तणेणं पसिद्धिं । भुंजंति भोए। १ एयं च जाणेतस्स जे । २ लहुयं चव जे। ३ बुकिछि जे । ४ सण्णिहाणं सु। ५ परिसाम जे । ६ पसिक्खलिजे। ७ मि सू। 'लोरिए जे। चेय जे । Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ रिसहसामि- २ भरहचक्कवट्टिचरिय । ४१ इओ य भयवं संपुग्णमियंकवयणो लायण्णजलप्पवाहपूरियमहियलद्धन्तो संवत्स(च्छ)रमणसिओ गओ विहरमाणो गयउरं । पविट्ठो य आहारट्ठी सेज्जंसस्स भवणं । दिट्ठो य सेज्जंसेण । तओ तइंसणसमणंतरमेव ईहापूहं कुणमाणस्स समुप्पण्णं जाइस्सरणं । सुमरियाणि णिण्णामियापमुहाणि भगवया सह गयाणि अट्ठ भवन्तराणि । उबलद्धो य उसहसामी(मि)पुचभवजीवस्स वइरणाभस्स चक्कट्टिणो सारहित्तणेणं अप्पा, तो वियाणिओ तेण सह पव्वजापरियाओ, उवगओ [य] फासुयभिक्खादाणविही । ताव य तप्पुण्णाणुहावेणं उवगया य गहियइक्खुरसभरियकलसा केई कुडुम्बियपुरिसा । तो हरिसभरिज्जन्तलोयणेण णिरंतरुभिण्णरोमंचकंचुइल्लेणं पवड्ढमाणपरिणामकंटएणं कयत्थमप्पाणं मण्णमाणेणं उक्खित्तो भवपंजराओ अप्पणो व्य इक्खुरसकलसो, भणिओ य भयवं-मुज्झति एस आहारो भगवओ, ता गेण्हह एयं, कुणह पारणगविहीए मज्झमणुग्गैहं ति । एवं भणिए भगवया को अंजली । पल्हत्थिओ णिययजसनिवहो ब्व भुवणयले रसकलसो निच्छिद्दे करयलजुयले । जाव य को भगवया पारणगविही ताव य णहयले किंकरकरतालणाणवेक्खाओ वज्जियाओ देवदुंदुहीओ, मुकं कुसुमवरिसं, पडिया रयणवुट्ठी, कओ जयजयारवो मुरा-ऽसुरगणेहि, पसंसिओ सेज्जंसणरवई । अवि य भवणं धणेण, भुवणं जसेण, भयवं रसेण पडहत्थो । अप्पा निरुवमसोक्खे, सुपत्तदाणं महग्यवियं ॥ १२५॥ बद्धो 'तेणेव बली हरिणा जग्णम्मि पुहइदाणेणं । सेज्जंसो उण सिद्धो सुपत्तरसदाणमेत्तेण ॥१२६॥ कयं च भगवओ पारणगुदेसे चाउरतयं । पेयट्टाविओ दाणधम्मो। तहेव लोओ चाउरंताइयं करिउमाढत्तो। भुवणणाहो वि बाहुबलिरायहाणीए तक्खसिलावाहिरियाए एकराइयं पडिमं ठिओ। निवेइयं रयणीए चेव बाहुबलिणो तण्णिओइयपुरिसेहिं भगवओ आगमणं । बाहुबलिणा वि मंतियं-कल्लं सब्बिड्ढीए तेलोक्कपियामहं भुवणगुरु वंदामि त्ति । एवं चिंतयंतस्स पभाया रयणी । कयमुचियकरणिज्ज । महया रिद्धीए वंदणत्थं णिग्गओ। ताव य भुवणगुरू अपडिबद्धत्तणओ अण्णस्थ गओ । भगवंतं अण्णस्थगयं जाणिऊण बाहुबलिणा अप्पाणं णिदिऊण भुवणगुरुचलणकंतपएसे सव्वरयणमयं सहस्सारं धम्मचकं कयं । सामी वि बहली अडम्बइल्लं जोणेगविसयं सुवण्णभूमि चै अण्णे य णाणाविहमेच्छजाइदेसे धम्मसुइविवज्जिए गहियविविहाभिग्गहो णाणाविहतवचरणरओ वरिससहस्सं विहरमाणो संपत्तो पुरिमतालस्स णगरस्स पुव्वुत्तरे दिसौभागे, सगडमुहाभिहाणे उज्जाणे णग्गोहवरपायवच्छायाए अट्ठमेणं भत्तेणं पडिमं ठिओ। तत्थ य ज्झाणंतरियाए वट्टमाणमाण[स]स्स पवड्ढमाणसुहऽज्झवसाणस्स अपुन्यकरणकमेणं आरुहिऊण खवगसेढिं खैवियघणघाइकम्मचउक्कस्स उप्पण्णं दिव्वं केवलणाणं । उप्पण्णे य अणंते णाणे चलियासणागएणं सोहम्मवइणा कया केवलमहिमा । विरइयं समोसरणं । उवविठ्ठो भुवणगुरू । पत्थुया धम्मकहा। परूवियाणि पंच महव्वयाणि । पव्वाविया य चउरासीइं गणहरा। इओ य "णिवेइया भरहस्स चारपुरिसेहिं भगवओ केवलणाणुप्पत्ती। तयणंतरमेव आउहसालावालेणं आउहसालाए णिवेइयं समुप्पण्णं चक्करयणं । तओ भरहो चिंतिउमाढत्तो-कस्स पुण पुव्वयरं महिमा कायव्व ? त्ति । एवं चिंतिऊण सयमेव विलिओ-अहो ! दूरेण विप्पलम्भिओ संसारसहावेणं, जओ कहिं ताओ भुवणगुरू सयलजगऽन्मुद्धरणसमत्थो ?, कहिं चकं अणेगजीवविद्दवणसहावं इहलोयमेत्तपडिबद्धं ?, ता पूएमि तायं, तम्मि पूइए सयलं चक्काइयं पूइयं चेव । एवं चिंतिऊमन्भुटिओ केवलमहिमाकरणणिमित्तं । दिण्णा य आणत्ती महापडिहाराणं । सन्जीकयं जाण-वाहणादियं । विष्णत्ता मैंरुदेवासामिणी इमं-"भयवइ ! तुमं सब्बकालमुवलंभपरायणा महि(ह)मासि जह-'किल मह पुत्तो वासारत्ते आसारधाराजलपव्वालिओ, सिसिरे य हिमकणुच्छित्तसिसिरमारुयाहयवेविरसरीरो, गिम्भँयाले य चंडदिवसयरकरकरालियविग्गहो सयाकालदुक्खमणुहवइ ।' ता आगच्छउ सामिणी, पेच्छउ अत्तणो पुत्तस्स महं च रिद्धिविसेसं"। एवं भणिऊण आरोविया गयवरखंधोवरिं। उच्चलिओ महाचडयरेणं बंधुयणपरियरिओ भरहाहिवो आसण्णत्तणओ य विणीय १ जाईसरणं जे । २ अप्पाणो । वि सू । ३ णकंट जे । ५-६ पारणवि सू । ५ 'ग्गहन्ति सू। ७ णाणुवे जे । ८ तेणेय जे । ९ पारणमुद्देसे जे । १० पयहाविओ जे । ११ यवनविषयम् । १२ 'च' इति सूपुस्तके न । १३ दिसालोए सजे । १४ खविऊण घण जे सू । १५ णिवेइयं सू । १६ ण अन्भुजे। १७ मरुदेवी जे । १८ गिम्हयाले जे । १९ णो सुयस्स मुहं च रिजे । २० उच्चरिओ सू । Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२ चउप्पन्नमहापुरिसचरिय णयरीए पुरिमतालस्स लहुं चेव पत्तो भरहाहिवो तमुद्देसं जत्थ सामी समोसढो। दिट्ठो य दूराओ चेव पणयजणऽभुद्धरणसमत्थो अभयदाणपवत्तो हत्थो व्च भयवओ धम्मद्धओ । अवलोइयं च सहस त्ति कणयकिंकिणीजालमालाकयकोलाहलेणं पवणवसुच्छलियवलियवेविरधयवडसमूहेणं अयत्तपत्तजयणाहसंगमुधुयवेल्लहलभुयासहस्सेणं व णच्चन्तं महिमंडलं तिपायारोववेयं छत्तत्तयसणाहं असोयवरपायवाहिटियं तियसा-ऽसुरविरइयं समवसरणं । दळूण य सहसोवयंततियसा-ऽसुरिंदुविहियभूसणकलावपहासंघाउत्थइयतरणिमंडलं 'विम्भउप्फुल्ललोयणो देहभरुव्वरन्तपरिओसो भरहाहिवो मरुदेवासामिणी सपणयं भणिउमाढत्तो-अम्ब ! पेच्छ भुवणगुरुणो जयभूसणस्स रिदिविसेसं, एयं च मह णियन्तस्स तणाओ तणुअयरी णियसंपया पडिहाइ । णिसुओ य मरुदेवासामिणीए सुरा-ऽसुर-गर-विज्जाहरजयजयारवो, णिसामिया य अमयमती विर्व पल्हायन्ती जणमण-सवगिंदियविसेसे तित्थयरवाणी । तो णिसामिऊण वाणी वियलिओ कम्मरासी, ववगयं मोहजालं, उल्लसिओ सुहाणुभावो, पणटं तिमिरं, पेच्छिउमाढत्ता विम्हयजणए भयवओ अइसयविसेसे । आढत्ता चिंतिउं–“ अवस्सं तिहुयणऽभहिओ मह पुत्तो, कहमण्णहा विवेइणो विबुहा सुस्मुसापरायणा भविस्संति ? ति । एरिसाण य तिहुयणपडिबोहणणिमित्तं करुणावज्जियहिययाणं भवसंभवं कुणंताणं उवगरणणिमित्तं जणणि-जणयाइयं । एवं च ठिए को हपडिबंधावसरो ?, ता दुट्ठ कयं मए पुचि जं णेहमोहियाए विलवियं । संसारे संसरंताणं कम्मवसगाणं जीवाणं सबो सबस्स पिया माया बंधू सयणो सत्तू दुज्जणो मज्झत्थो" त्ति । एयं च चितयंतीए उत्तरुत्तरमुहऽज्झवसायारूढसम्मत्ताइगुणहाणाए सहस त्ति पावियाऽपुचकरणाए पत्ता खवगसेढी, खवियं मोहजालं, पणासियाणि णाण-दंसणावरण-उतरायाणि, समासाइयं केवलणाणं । तयणन्तरमेव सेलेसीविहाणेणं खवियकम्मसेसा गयखंधारूढा चेव आउयपरिक्खए अंतगडकेवलित्तणेणं सिद्धा। 'इमीए ओसप्पिणीए पढमसिद्धो' त्ति काऊण कया देवेहि महिमा । विण्णाओ य एस वुत्तंतो भरहाहिवेणं तियसाऽसुरसयासाओ। तओ विम्हय-सोय-कोऊहलभरियमाणसो दूराओ चेव उज्झियरायचिंधो सपरिवारो य पायचारी पत्तो समोसरणं , पविठ्ठो य पुव्वदुवारेणं । सीहासणोवविठ्ठो दिट्ठो भुवणगुरू । तिपयक्षिणीकाऊण य थुणिउमाढत्तो जय मोक्खपहपयासय ! जय जय संसारजलहिबोहित्थ!। जय घोरणरयपायालवडणपडिरुम्भणसमत्थ ! ॥१२७॥ जय विसयविसमहोसहि ! जय घणकम्मट्टगंठिणिठवण! जय सयलभुवणभूसण! जय वज्जियऽवज्जसब्भाव !।।१२८॥ जय सेजलजलहरोरालिगरुयमुइसुहयमहुरणिग्धोस !। जय सयलछिन्नसंसय ! संसियकयसासयसुहेस! ॥१२९ ॥ जय गरुयभवभयुप्पित्थसत्तसत्ताणदाणदुल्ललिय!। जय भुषणभरियजसगुणणिहाण! जय णिज्जियाणंग! ॥१३०॥ जय झाणाणलॅपयवियणीसेसविसेसपावसब्भाव ! | जय पणयनागवद्धण ! जय जय जयबंधव ! मुणीस ! ॥१३१॥ जय कोहकसण ! जय माणमलण ! जय मायमहण ! मुणिणाह !। __ जय लोहग्गहणिग्गह ! जय मिच्छुच्छायणसयह ! ॥१३२॥ जय तियसा-ऽसुर-णरणाहमउलिमणिणिहसमसिणकयपीढ !! जय कयसयलसुसंगय ! जय धम्मपयासियपयत्थ! ।।१३३॥ इय सो(थो)ऊण ससंभमभत्तिभरुच्छलियबहलरोमंचो। णरणाहो जयणाहस्स चलणजुयलं समल्लीणो ।। १३४ ॥ तओ भगवया पत्थुया धम्मकहा, परुवियाणि पंच महब्धयाणि, पव्वाविया उसभसेणपमुहा चउरासी गणहरा। उसभसेणगणहरेण य भरहस्स पंच पुत्तसयाई, सत्त य, णत्तुयसयाई, बम्भी य, तम्मि चेव समोसरणे पव्वावियाणि । तओ य भगवं वोहंतो भवियकमलायरे विहरिउमाढत्तो। इओ य भरहाहियो समुप्पन्नचोदसमहारयणो अणेयणरणाह-सामन्तचक्कपरियरिओ अत्थाइयामंडवे मुहासणत्यो विष्णत्तो ससेणाहिहाणेणं णर(? सेणा)वडणाजहा-"देव ! विण्णायसयलसत्थऽस्थस्स अवगयलोयववहारस्स परिच्छियरायगीतिसारस्स भँवओ उवएसप्पयाणं चवलत्तणं, तहा वि जं भवओ ममोवरि बहुमाणो तेण भण्णसि-देव ! पदिदिणमखंडियपयावो दसम वि दिसासु वित्थारियतेयप्पसरो सूरोणेइ सुहेण वासरे। तेयरहियस्स उण हरिणहिययस्स पंडरउद्वियस्स मय मंछ १ यधवलिय" जे । २ अपत्तपतं जय जे। ३ सुरिंदनिव्वडियभू जे। ४ विम्ह जे । ५ विसेसो जे । ६ विय जे । ७ एवं जे। ८ °य निज्जिय जे । ९ सयल जे। १. लविहुणियणी जे। ११ यमाणबंधण! सू । १२ लोहग्गनिरुभण ! जय मि जे। १३ परिचियरायनीयसार सू । १४ भगवओ जे सू । Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ रिसहसामि-२ भरहचक्वट्टिचरियं । णस्स विय कत्तो दो वि दियहा तहट्ठिया चेव लच्छी ? । अणवरयसत्यग्गहणेण य करयलाणीव बहलकज्जलवाहसुयपव्वालियाई सामीहवंति सत्तुसीमंतिणीणयणाणि । अन्नं च देव ! मुल्लावज्जियाए एगराइयाए वेसाए वि बीओ णायगो त्ति लज्जायरं, किं पुण कुलक्कमागयगुरुवइटाए सयलजणविण्णायाए पुंहतिलच्छीए बीओ भत्तारो ? त्ति । ता देव ! मत्तमायंगमयजलासारारद्धदुद्दिणाई दप्पुधुरतुरगखरखुराहउच्छलियधूलिधवलाइं णिसियकरवालकरपक्पाइक्कविज्जुच्छडाडोवभामुराई चलियरहवरोहदलियमेइणीवीढजणियणिहायासवाइं पाउसारंभदिणाणि व भरहवासम्मि वियरंतु तुह बलाई, अवि य जाव ण दैप्पुद्धररहियतुरियतोरवियतुरयसंघाया। भरहम्मि पहम्मि उ जंति सूसरा रहबरुग्घाया ॥ १३५ ।। जाव ण गरुयमउब्भिण्णगण्डभित्तुच्छलन्तमयसलिले । पेच्छन्ति दरुम्मिल्लंतलोयणे मत्तमायंगे ॥१३६॥ जाव ण खरखुरखयकयरयपडलुच्छलियमलियससि मरे। वाहिजते तुरए तुरियं सत्तू तुह णियंति ॥ १३७ ॥ इय जावे फारकरवालभासुरे तुज्झ पक्कपाइक्के । भरहम्मि संचरंते णियंति ण हु, ताव तुह सत्तू" ॥ १३८॥ तओ एयमायण्णिऊण काऊण य चकपूयं भरहाहिवेण ताडाविया णीसेसदिसापसाहणत्थं भेरी । उच्चलिओ र्य एकमुइंकियं महिमंडलं काउं चक्कपहपहेणं भरहाहियो । दिग्णं च पुचि पुव्वदिसासाहणुज्जएणं पुन्वदिसाहिहुत्तं पयाणयं । पत्तो अणवस्यपयाणएहिं मागहतित्थाहिटियं गंगामुहालंकरियं पुव्वसागरं । तत्थ य चउत्थेणमाराहिऊण सुठ्ठियं जक्खं, अणुण्णाए य तेणं अवगाहिऊण बारहजोयणाई रहेण समुदं, तत्थहिएणं गहिओ णियणामंकिओ सरो। मुक्को य धणुसंधाणेणं समुद्दाहिमुहो । पडिओ य मागहतित्थाहिवइणो णागकुमारस्स भवणे । दट्टण य तं सरं कुविओ मागहतित्थाहिवई । दट्ठोभिउडीभयंकरेण भणियंणागकुमारेणं-को उण एसो अपत्थुयपत्थओ जो मह भवणे सरपक्खेवं कुणइ ? त्ति । तओ णामंकियसरमवलोवि(इ)ऊण वाइयं णाम । विण्णायं च जहा-समुप्पण्णो पढमभरहाहिवो भरहाहिहाणो चक्कवट्टी । तओ य सचूडारयणं सरं गहेऊण समागओ चकवाटिसमीवं । दिट्ठो य भरहाहिवो । सम्माणिौ अब्भुट्ठाणाइणा । समप्पियं चूडारयणं सरो य । भणियं च तित्थाहिवइणा-अहं तव पुवदिसावालो । तओ अणुमण्णिओ भरहणरिदेणं । कया तस्सऽढदेवसिया पूया। गओ चक्कमग्गाणुलग्गो वरदामाभिहाणं समुद्ददक्खिणतित्थं । तत्थ वि य तेणेव कमेण वरदामतित्थाहिवेणं पूइओ रयणदाणाइणा । पुणरवि गओ पहास(सं) अवरदक्खिणं तित्थं । तो तेणेच विहिणा अवरसमुद्दतित्थाहिवइपूइओ सिंधुदेविं बलभरकत काऊण, बहुरयणसमेयं सिंधुदत्तं कण्णयं सिंधुदेवी [य] ओयवेत्ता, पुणो वेयड्ढगिरिकुमारं देवं वसीकाऊण सुसेणेण सेणावइणा चम्मरयणप्पओएण उत्तारियबल-वाहणो सिंधुणिक्खुडं पसाहेइ। तओ तिमिसगुहाए किरिमालयजक्खाणुमओ सेणावती दंडरयणेणं तिमिसगुहमुहमुग्घाडेउं, कायणिरयणेण एगूणवण्णाससंखाणि मंडलाणि तरुणरविमंडलसण्णिहाणि तमणिण्णासणसमस्थाणि आलिहिउं, उम्मुग्ग-णिमुग्गाओ णदीओ संकमेण लंघेउं पविट्ठो उत्तरखंडं भरहखेत्तस्स जेउं भरहाहिवों । चिलाएहि य सद्धिं पयट्टमाओहणं । ते य पराजिया मेहकुमारे आराहंति । तेहिं आढत्तं वरिसिउं मुसलप्पमाणधाराणिवाएणं । चक्कवट्टिणा य अहो चम्मरयणमुवरि छत्तरयणमभितरे य ठिओ(? ठाविओ) खंधावारो। तत्थ य साली पुच्चण्हे वाविया अवरण्हे पञ्चन्ति, काऊण आहारत्थमुवणमइ । तओ आमिओगियदेवेहि पेल्लिया मेहमुहा । तव्वयणेण य सिद्धा चिलाया। सेणावइणा य साहिओ उत्तरसिंधुणिक्कुडो। तओ बावत्तरि जोयणाणि चुल्लहिमवंते उवरिहत्तं सरं पक्खिवइ । तओ सरविलिहियणामदंसणबोहिओ चुल्लहिमवन्तगिरिकुमारो देवो आगंतूण रेयणाई पयच्छइ । पुणो भरहनाहो उसभकूडे सणामं आलिहिऊण, सुसेणसेणावइणा ओयवियं गंगाणिक्खुडं। तो भरहाहिवो गंगाकूले सेणाणिवेसं काऊण 'गंगदत्तया सह वरिससहस्सं भोगे भुंजमाणो ठिओ। तयणंतरं च बारस वासाई णमि-विणमीहिं सद्धिं पयट्टमाओहणं । पराजिएण विणमिणा इत्थीरयणं, णमिणा वि नाणाविहाणि रयणाणि उवट्टवियाणि । तओ खंडप्पवायगुहासामि णवालयं जक्खं वसे काऊण णीति । खंडप्पवायाए गुहाए णिग्गयस्स बलभरकंतगंगाकच्छप्पएसस्स उवट्ठिया णव महाणिहिणो णागकुमाराहिट्ठिया, तं जहा-णिसप्पो पंडुओ कालो १ वाहमुहं सुहपप्पालियाई सू । २ पुहई जे। ३ दपुर जे । ४ खयधूलिपडलउच्छलिय जे। ५ व पयरकर जे। ६ य चकमुई सू । ७ अहं च तव जे। ८ वो। तिमिसगुहाए चिला जे। ९ रयणाइयं ५ जे। १० गंगदेवया सह जे। Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४ चउप्पन्नमहापुरिसचरियं । महाकालो माणवो संखो सव्वरयणो महापउमो पिङ्गलो। एए आगंतूणं णव विणागकुमारा भरहाहिवं वयंति-भी महासत्त! तुह पुण्णाणुहावावज्जिया अम्हे गंगामुहमागहतित्थाहिवासिणो समागया। ता देसु रमसु मुंजसु जहिच्छियं 'णेव्वुएण हियएण । अम्हे लहिऊण तुमं अक्खयमिहिणो महाभाग! ॥ १३९ ।। ___ पुणो ओयवियं दाहिणं गंगाणिक्खुडं सेणावइणा । तओ एएण कमेण वसीकयछक्खंडभरहसिद्धी सट्ठीवाससहस्सेहि पत्तो य महया सम्मदेणं विणीयणयरीए । बारसहिं वरिसेहिं रायाहिसेओ। तओ णिरूवियं च भरहाहिवेणं-को मम भाउआणमागओ ण व ? त्ति । दिट्ठा य सुंदरी आवंडुरक्खामकवोला । तओ तं दळूण भणियं भरहाहिवेणं-किमेवमवत्था इमीए ?। कंचुइणा भणियं-देव ! आयम्बिलेणं । तओ पयणुराएण मुक्का पन्वइया य भगवओ समीवे । तो णिचत्तियमहारायाहिसेएणं भरहाहिवेणं अट्ठाणउइभाउयाणं पेसिओ दूओ। भणियं च जइ इच्छह रायसिरिं तो मह आणाणुवत्तिणो होह । अह बहुमन्नह तायं ता लग्गह तस्स मग्गेणं ।। १४०॥ तओ सुणिऊण भरहसंदेसं सव्वे जणयं तित्थयरमुवटिया। उसभसामिणा वि समणुसासिऊण पडिवोहिया, पव्वाविया य । पुणरवि भरहाहिवो मंतिसमेओ मंतिउमाढत्तो- 'भरहे' इत्यारभ्य 'किमवसेसं ?' इत्यन्तः पाठ आर्याछन्दो ज्ञेयम् । एत्थंतरम्मि लद्धावसरेण सुबुद्धिणा भणियं-"एवमेयं, किंतुवेरमुवघायजगए उवयारी बंधवो सया होइ । कज्जावेक्खाए जओ मित्ता-मित्तत्तण म(व)वत्था। १४१॥ ता देव! जो एस बाहुबली महाबलपरकमो बलावलेवावमणियासेससप्पुरिससोडीरो सो किं बंधुत्तणेण तुम्ह वट्टइ ?, उयाहु अण्णह ? त्ति । तत्थ जइ ताव पुवपक्खो ता सोहणं, अह अण्णह त्ति तओ कि विजियं भरहस्स?, किं वा रिवूण उच्छाइयं ?, कहं वा अखलियत्तणं आणाए ?, महंतो मह वियप्पो तचिट्ठिएण जणिओ, ता वियारिऊण भणउ देवो"। भणियं भरहाहिवेणं-लक्खिओ तुह भावावेओ, ता पेसिजउ तस्स अज्जेव दूओ, णिव्वडउ तस्स ववसियं । ति भणिऊण सदाविओ सुवेगाभिहाणो दूओ। सिक्खविऊण पेसिओ बाहुबलिसमीवं । तओ [? गओ] गामार्गर-खेड-मडंबाइयाई लंघेऊण तक्खसिलं, पत्तो य बाहुबलि वणस्स दुवारं । महापडिहारजाणाविओ य पविट्ठो अस्थाइयामंडवं । पायवडणुडिओ य उवविठ्ठो भुमयाइढे जहारुहे आसणे। थेववेलाए य भणियं बाहुबलिणा___“जस्स कुसलेण कुसलं सयलस्स वि होइ जीवलोयस्स । किं कुसलं तस्स महाजसस्स मह बंधुणो सययं? ॥१४२॥ जा णिज्जिऊण परमंडलाई एक्कायवत्तविच्छुरिया। सा रजसिरी केणावि अमलिया धरइ तह चेव ? ॥१४३॥ वहुआणा चउसायररसणालंकारधरणिरमणीए। किं तह 'चेव वियम्भइ माल व्व सिरेहिं घेप्पंती ? ॥१४४॥ जस्स कएण तुलिज्जति सील-मायार-कुलववत्थंभा । सो पहुपेमारंभो भण कम्मि सुजायकम्मम्मि ? ॥१४५॥ इय परियणेण जुत्तस्स तस्स दियहा सुहेण वचंति । बहुपत्थणिज्जविहवस्स बंधुणो गुरुपयावस्स ? ॥१४६॥ किंच अज्ज गुणभायणमहं रायसिरी अज्ज णवर मह सफला । जं दुविणीयपत्थुयकहाए णियभाउणा सरिओ ॥१४७॥ ता दूध ! कहसु किमम्हारिसाणं पि सरणकारणं महारायस्स?" । इय भणियावसाणे सुवेगो भणिउमाढत्तो-"किमेवमाइसइ कुमारो ? । जओ देवस्स खणमेत्तं पि ण फिट्टइ कुमारो हिययाओ। 'संगमावसरो' ति कलिऊण पेसिओ ण कोई देवेणं ति । जं पुण आइलैं तुम्हेहिं 'सरीराइकुसलण्णेसणं' ति तत्थ अणवरयं सेविज्जइ सुर-नरपमुहेहिं जस्स पावीढं । तुम्हारिसा य बंधू तस्स [य] कुसलं ? ' ति का संका ?॥१४८॥ 'एक्कायवत्तणं रायलच्छीए, चउसमुद्दपज्जंताऽऽणापरिसक्कणं च' भणंतेहिं तुम्हेहिं अणेयसंकप्पुप्पाइयवियप्पो परमेसरसमीववत्ती पिसुणजणो णिरवयासीकओ उभयसिद्धीए । णेहहाणं पुण सया गुणगणो बंधुयणो य । ता कुमार ! महारायाभिसेयावसरे वि तुम्हे णागय त्ति जैणियउत्कंठेणं देवेणं पेसिओ म्हि अणागमणणिमित्तजाणणत्थं "यवयणावसाणे भणियं बाहुबलिणा-सहवासपरिहवासकाए णागया अम्हे । जं च आणा अम्हारिसेसु खलइ तं अलंकारो, ण परिहवोराइणो, जओ__जा ससुरा-ऽसुर-किण्णर-विज्जाहर-णरसुरेहिं घेप्पन्ती । सा आणा बंधुसु खलइ णवर थेवो अलंकारो ॥ १४९॥ १ निव्वुएण जे । २ री ओपडुरखाम जे । ३ उ अज्जेव सू । ४ गर-णगरा-ऽडइ-मर्ड जे। ५ °भवणस्स जे । ६ चेय जे। ७ संगामा जे। ८ भो कु सू । ९ जणिउकंठेण जे। Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ रिसहसामि- २ भरहचक्कवट्टिचरियं । बंधुणेहो उण भाउयवुत्तंतेणं सचजणपरिगओ । अहवा परमस्थबंधवो सो, जओजो उवएस पावम्मि देइ सो वेरिओ ण संदेहो । जो कुणइ धम्मबुद्धिं सो तस्स जणो परमबंधू ॥१५८ ।। एवं च पियगुणत्तणं पि जइ होइ तो होउ "त्ति बाहुबलिवयणावसाणे भावगरुयं दूओ भणिउमाढत्तो “कुमार ! सोहणमेयं जइ बंधुत्तणेण आणा खलइ तुमम्मि, तहा वि पिसुणजणो अण्णहा वियप्पेइ । युज्जइ य तस्स आणाए वट्टिउं, जओ तुह जेट्ठभाउओ सो। किंच सुचरियचरिओ चाई कयण्णुओ दूरणिग्गयपयावो। णीसेसोवहिकेयारकासओ सत्थणिम्माओ ॥१५१॥ जो सययं रायमहादुमस्स छायाणिसेवणसयण्हो। सो सिरिफलाई भुंजइ परपरिणइणिबियाराइं ॥१५२॥ जं च सहोयरुग्घट्टणं कयं सो महारायस्स दोसो चिय ण होइ । जइ णाम सूरुग्गमेण सेसतारयाण तेओ अवहीरइ किमेस सूरस्स दोसो ?। ते य परमेसरेण भणिया वि 'भुंजह जहिच्छं मज्झ सिरिं'; णवरं ते संपयमसङमाणा सयमेवनिग्गया किं तत्थ महारायस्स ? । अवि य अमयमयसिसिरकिरणं चंदं णिव्ववियसयलजियलोयं । ण सहति हत्थिदसणा कमला वि य गिययदोसेणं ॥१५३ ॥ अण्णं च गुणपियत्तणं महारायस्स दूसंतेणं अप्पा ताव खलत्तणेण ठविओ। जओसंतं पि हि वयणिज्ज परस्स ण भणंति सज्जणा णिययं । इयरे मुत्तूण गुणे दोसमसंतं पि पयडेन्ति ॥ १५४ ॥ अण्णं च जइ णाम तुमए रायगुणा ण णाया, तं णामजइ कहवि णाम जच्चंधएहिं चंदो ण चेव सचविओ । किं तस्स सिरी पयडा भुवणालोयं ण भूसेइ ? ॥१५५ ॥ किंच महाराय ! भाउणा होऊण दोसुग्घट्टणपयडियखलत्तणेणं तुमए लॅज्जाविया अम्हे । जं तस्स भाउओ तं सि कुमर ! एएण किण्ण पज्जत्तं ?। किं फलमिमिणा भणिएणऽणत्यपिसुणत्तणफलेणं?" ॥१५६॥ ति यवयणावसाणे धीरत्तणणमियकोवेण भणियं बाहुबलिणा-"रे दूय ! तस्साहं भाउयत्तणेण सोहणो त्ति तुम्हा रिस च्चिय जाणंति एरिसं जंपिउं जे महारायसंवड्ढिया, ता तुज्झ को दोसो ?, जओ धीरपरिग्गहगरुयं जाणइ चक्कम्मिउं कुलपसूओ। आयार-णयहरे पहुघरम्मि संवढिओ य सया॥१५७॥ विणयपडिभग्गपसरं दूय ! भणंतेण साहियं सीलं । सीलेण णिययजाई पेहुणो य गुणितणं विमलं ॥१५८॥ किंच-महं पि बाहुबलिणो तुम्हारिसेहिं अणत्थो कीरइ त्ति किं केण संगयं ?"। तओ णियसामिपरिहवुत्तेयविओ दूओ भणिउमाढत्तो "सव्वो वि जाणइ हियं अप्पा सन्चस्स वल्लहो होइ । किंतु विणासणकाले विवरीयमई नरो हेवइ ॥१५९॥ तं, जं मह जाई सीलं च दूसियं तत्थ तुज्झ ण हु दोसो, जओ महारायबंधवोतं सि त्ति।जं पुण भरहाहिवस्स दोसुग्घट्टणं कीरति तं सव्वहा तुह ण जुत्तं । किंच तुम्हारिसेहिं गहिया दोसा वा गुणा वा महारायस्स कत्थ लग्गति ?, जी बहुमण्णन्ति सइंदा वि जस्स ससुराऽसुरा णरगणिन्दा । गुणणियरं का गणणा उ तस्स तुम्हारिसजणेणं? ॥१६० ॥ जेणऽहिया होति समा व तेहि किं एत्थ संथुणंतेहिं । णिदंतेहिं व तुम्हारिसेहिं जणपूरणनरेहिं ? ॥१६१ ॥ ___ ता किं बहुणा विगस्थिएणं ?, रज्जं वा मोत्तूण पलायसु, सुर-णर-विज्जाहरपडिच्छियं वा आणं पडिच्छसु ति, ण अण्णहा तुह जीयास ति, अवि य तं बाहुबली णामेण णवर कत्थइ अदिद्वमाहप्पो। जो पुण परबलमलणो सो अण्णो कोइ बाहुबली"॥१६२ ॥ तओ तव्वयणाणन्तरमेव सयलं खुहियं रायचक्कं । भणियं च सुहडेहि-रे रे दुरायार ! दूअ ! अम्ह समक्खं अहिक्खि १ जुजइ जे । २ ण हसति जे। ३ य अत्तदोसेणं जे । ४ मोत्तूण जे । ५ लज्जविया जे । ६ एण? णस्थि पिसु जे। वीरत्तण जे। ८ तस्साहमभाउत्तणेण जे । ९ बहुणो सू । १० होइ जे। ११ जीविताशा । १२ दूय ! जे।। Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउप्पन्नमहापुरिसचरिय। विऊण महारायं अज्ज वि पाणे धारेसि ?, ता संपयं एस ण होसि, करेहि जं करणिज्ज। ति विज्जुच्छडाडोवभासुरं कड्ढियं मंडलग्गं भडेहिं । तओ करवारियकलयलेणं भणियं बाहुबलिणा-किमणेण वावाइएणं ?, अवज्झो किल दूओ । त्ति भणिऊण णीसारिओ अस्थाइयामंडवाओ। संदिटुं च भरहाहिवस्स जहा-"जणयदिण्णमंडलमेत्तसंतस्स मज्झ पंचाणणस्स विय अत्तणो विणासाय ण जुत्तं कोवविबोहैणं ति, तुझं पिउणा चेव दिण्णं विसयखंडं । केवलं तु भत्रया भाउए णिव्यासेऊण मंडलपरिग्गहो कओ, किमेत्तिएण चेव गव्यमुव्वहसि ?। ता जइ इच्छह रज्जं सिरिं च तह जीवियं च कित्तिं च । तो वज्जिय वज्जसमं मह मग्गं वियरसु जहिच्छं ॥१६३॥ अविवाउओ अहं भाउयसिरीए"। भणिऊण विसजिओ दूओ। एत्थन्तरम्मि कालणिवेयएण पैढियंअवरंगणासमागमपयडियराओ दिणक्खए सूरो । कमसोसरन्तकरसंगसामदेहं दिवं मुयइ ॥ १६४॥ उवसंहरइ सई चिय तेयं अबलत्तणं लहइ सूरो। णियचेट्ट चिय धीराण णवर हेउं विणासम्मि ॥१६५ ।। जं आसि दुरालोयं फुरियपयावस्स मंडलं रविणो । उव्यत्तिज्जइ सायम्मि, तेयरक्खा जए गरुई ।। १६६॥ परिछिदिउं ण तीरइ पुचि जो गरुयवढियपयावो । सो चेव आकलिज्जइ सायमवत्थाकलणहेऊ ।।१६७॥ दइयविरहे वि जा धरइ जामिणी तीए मतिलणमणग्धं । इय कलिऊण व दिवसो सह रविणा सायमत्थमिओ॥१६८॥ रविणा विणा तमोहेण णहयलं मइलियं गिरवसेसं । णिहुओ ता होति खलो परस्स खलियं ण जा लहइ ॥१६९ ॥ एक्केण विणा रविणा सायमवत्थंतरं जयं णीयं । लद्धखणेण तमेणं, तेयंसी सव्वहा जयइ ॥ १७०॥ इय वियलियगुरुतेओ जइ जाओ कालपरिणइवसेण । अस्थमइ परं सूरो वि मइलणं ण सहइ पयावी ॥ १७१ ।। तओ बाहुबली विसज्जियसयलसामन्तलोओ उडिओ अत्याणमंडवाओ। दूओ वि भग्गमच्छरुच्छाहो णिग्गंतूण तक्खसिलाओ अणवस्यपयाणएहिं पत्तो भरहाहिवरायहाणि विणीयणयरिं। विष्णायवुत्तंतेणं भरहाहिवेणं घोसियं बाहुबलिहुत्तं पयाणयं । पहया सण्णाहभेरी। रयणीए चरिमजामम्मि य णिदाविरमुट्ठियस्स भरहाहिवस्स पढियं बंदिणाजग्गइ जइ वि पयावो तुज्झ सया भुवणरक्खणसयण्हो । तह वि कालपरस्स व महइ जणो तुज्झ पडिबोहं ।। १७२ ।। सूरुग्गमेण णासन्ति तारया, होइ णिप्पहो चंदो। किं किं ण करेइ जए तेयप्फुरणं वियंभंतं ? ।। १७३॥ एते वि बहुपदीवा मूरुग्गमजायनिप्फुरपयावा । णऽग्यंति, पसिद्धमिणं ‘गुणाहिओ इयरमंतरइ' ॥ १७४॥ वियसंतु पैणयकमलाई देव !, मउलंतु वेरिकुमुयाई । सूरस्स व तुह बोहेण होउ भुवणं पि रमणिज्जं ॥ १७५ ।। इय मागहथुइविरमम्मि णवर सुत्तुटिएण तुरिएण । अग्गक्खंधम्मि गयं पहुणा सम्मदभीएण ॥ १७६ ॥ तयणंतरं च महया सम्मदेणं पयट्टो खंधावारो । अँणवरयपयाणएहिं पत्तो बाहुबलिदेससीमा । इओ य बाहुबली कयसयलकरणिज्जो सोहणदिवसे पयाणाभिमुहो तित्थयरथुणणत्थं पविट्ठो देवहरम्भंतरं, थुणिउमाढत्तो जय [जय तेलोक्केकल्लमल्ल ! परमत्थसत्तुविद्दवण !। लोया-ऽलोयपयासणसमत्थ ! संपत्तवरणाण ! ॥१७७॥ णाहो तुम, तुम चिय सरणं सयलस्स जीवलोयस्स । भवियाण बंधवो तं सि णाह !, तं चेव भवमहणो ॥१७८ ॥ तुम्ह चलणाण जयगुरु ! णीसेसपसत्थलक्खणधराण । भवमहणाण महायस ! मोहमहामाणमलणाण ॥ १७९॥ जयमङ्गलाण मंगलधराण संसारवासमुक्काण । गरुयगरुयाण मुणिवइ ! णमो णमो णिकलंकाण ॥१८०॥ इय गरुयभत्तिभरणिब्भरेण भावेण भुवणणाहस्स । काऊण थुइं णाभेयसामिणो चलइ बाहुबली ॥ १८१॥ १ "णिज्जन्ति सू । २ हणन्ति सू। ३ पत्थिय सू । ५ सय जे। ५ वीराण जे। ६ पणइक जे। ७ अणवरइप जे । ८ तयलोके जे। Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ रिसहसामि-२ भरहचक्कवट्टिचरियं । णिग्गओ य चउरंगबलसमेओ रायहाणीए, पत्तो णिययदेसपजतं । आवासिओ संगामजोग्गपएसासण्णभूमिभागे । सिक्खविऊण पेसिओ भरहाहिवस्स दूओ । तेण य लद्धावसरेण य विष्णत्तो भरहाहिवो जहा-"महाराय ! जेण पंवत्तो सि तुम पहेण सप्पुरिसणिदिओ एस । किच्चावसाणदुहओ, विजयत्थी किं बुहो कुणइ ? ॥ १८२॥ विहवो ता दूरे च्चिय सुपुरिस ! जीयं पि ते णसामण्णं । णरणाह ! इमम्मि तुहं णवरमसाहारणो अयसो ॥१८३॥ किंच ण याणसि एवं पीई जह सजणस्स एक्करया । ढुक्खं विसंघडिज्जइ दुक्खं चिय 'विहडिया घडइ ॥१८४॥ कन्जमवसाणविरसं होही णरणाह ! साहियं तुज्झ । कुसलं गयाहिवइणो सीहविरोहम्मि कि होइ ? ॥१८५॥ जो णिज्जिऊण भरहं कह कहवि समज्जिओ जयपयावो । बाहुबलिगो भडेहिं मा घेप्पउ सो जसो एहिं ॥१८६॥ पिउणा 'दिन्नेणं चिय होइँ कयत्थो बली य बंधू य । किं तुज्झ एत्थ णटुं ?, भरहाहिव ! होसु जसभागी ॥१८७॥ बाहुबलिम्मि गराहिव ! अणुणिज्जतम्मि णिज्जियं भरहं । इहरा बंधुच्छायणमयस चिय केवलं पडियं" ॥१८८॥ इय भणिऊण सविणयं दूओ पुण भणइ सामिसंदिढे । हीणुत्तिमाण मज्झे केणिह जुज्झेण जुज्झामो ? ॥ १८९॥ तओ तब्बयणावसाणे भणियं भरहाहिवेणं “अप्पाणमप्पण च्चिय लहुया सलहन्ति जं तयं जुत्तं । इहरा गुणाणुवेक्खो को अण्णो ते पसंसेउ ? ॥ १९०॥ सुपुरिसमग्गुत्तिष्णं तुह राया णवर भासिउं मुणइ । पडिवयणमण हिआ जं अम्हे ण य झाविया गुरुणा ॥ १९१॥ रे दूय ! वयणमेत्तसारेण किं बहुणा पलविएणं ?, सूर-कायराणं विसेसो फलेणं चेवे णिव्वडइ ति"। पुणो भणियंउत्तिमजुज्झेण जुज्झामो। दूएण भणियं-"जइ एवं ता किमणेण जणक्खएणमफलेणं करणं? । ण तुह बलं मह पुरिसेहि तीरइ ओवग्गिउं, ण य तुह भडेहि मज्झ बैंलं ति । ता तुम पि तायस्स पुत्तो, अहं पि। णिचडउ दोण्ह वि परकमो। पेच्छंतु दो वि वलाई सक्खीभूयाइं । जुज्झं पुण तिविहं दिट्ठीए उत्तम, मज्झिमं तु बाहाहिं तह य वायाए । णिसियासि-तोमराईहि होइ अहमं जणविणासि" ॥१९२॥ तओ तव्वयणाणंतरं भणियं महारायाहिराएणं-दिट्ठीजुज्झातिणा उत्तिमजुज्झेण जुज्झामो । त्ति भणिऊण विसज्जिओ दूओ । साहियं णीसेसं बाहुबलिणो।। अह जयदुप्परियल्लं अग्गक्खंधम्मि दारुणं समरं । सेणावइपमुहाणं भडाण जायं धरेऊण ॥ १९३॥ भरहाहिव-बाहुबलिणो उत्तिमजुज्झेण जुज्झिउं पयट्टा । तत्थ यपढमं दिट्ठीजुझं, वायाजुझं, तहेव बाहाहिं । मुट्ठीहि य डंडेहिं य सव्वत्थ वि जिप्पई भरहो ॥ १९४ ॥ एत्यंतरम्मि गुरुपरिहवाबूरियहियएण चकवट्टित्तणम्मि जणियवियप्पेणं भरहाहिवेण सुमरियं चक्करयणं । सुमरियाणंतरमेव हत्थम्मि ठियं । तओ उभयबलेसु समुट्ठिओ हाहारवसद्दगब्भिणो महंतो कलयलो। मुकं च जालामालाउलीकयणहयलं चक्करयणं । णियगोत्ते ण पहरइ । परिअंचिऊण बाहुबलिं पुणरवि तस्स चे हत्थम्मि ठियं । दिदं च हत्थट्टियं चक्करयणं याहुबलिणा । तओ कोवाणलुब्भिज्जन्तणयणराओ भणिउमाढत्तो बाहुबली "किं चुण्णेमि सचकं णिटुरभुयजन्तदढपरिग्गहियं । सबलं तुम णराहिव ! पयडेउ बलं तु बाहुबली ॥१९५॥ णयमज्जायाचलियम्मि संपयं को गुणो व्व तइ णिहए ?। दाइज्झिताऽहिगहणेण मंतिणो कि पि सामत्थं? ॥१९६॥ धिद्धी अहो ! अकजं जं खेलविसयाण कारणे एस । मुंचइ उइयपरिहवो आयारं पोरुसं सच्चं ॥ १९७॥ ता छड्डेमि सँई चिय हयविसए जाण कारणे लोओ। णियबंधुम्मि वि पहरइ निरवेक्खो मुक्कमज्जाओ ॥१९८॥ विस-विसयाणं दोण्ह वि भणंति अञ्चंतमंतरं विउसा। सइ भुत्तं हणइ विसं विसया सरिया वि बहुसो वि ॥१९९॥ ण गणेइ णिरयवियणाओ णेय लज्ज ण गोरवं ण कुलं । विसयविसमोहियमई कज्जा-कज्जं ण लक्खेइ ॥ २००॥ १ पयत्तो जे। २ जीवं पि सयलसाम सू । ३ दुक्खं पि संपडिजे। ४ वियडिया सू । ५ पयासो। सू। ६ दिण्हेण सू। ७ कोइ जे। ८ बंधूण। जे। ९ चेय जे। १० बलन्ति स । ११ तुमम्पि स । १२ अहम्पि सू । १३ चेय जे। १४ खल विजे। १५ सय जे। Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउप्पन्नमहापुरिसचरियं । पसुसरिसो होइ णरो विसयमुहासापिसायसच्चविओ। मूढो अंधो व्व सया हियमहियं वा ण याणेति ॥ २०१॥ णायरइ धम्मचरणं, गिदइ गुरु-देवयं, भयं मुयइ । ण गणेइ णेह-गोरव-लज्ज, ण य विणय-मज्जायं ॥ २०२॥ जं परलोयविरुद्धं लोओ ववहरइ मुक्कमज्जाओ। तत्थ णिमित्तमणज्जा विसया विसभोयणसमाणा ।। २०३॥ विसयाण पसादो सो दृसियगुरुसीलसज्जणगुणाण । परिहरइ हियं, अहियं बहुमण्णइ जं जणो मूढो" ॥२०४॥ इय एवमादि भणिऊण सुवहुयं गिदिऊण खलविसए । णिब्भच्छिऊण भरहं बाहुबली कुणइ अप्पहियं ॥ २०५॥ तओ णियत्तविसढविसयाहिलासो उम्मिल्लसुहऽज्झवसाओ सयमेव पंचमुट्ठियं लोयं काऊण विहिणा कयसामाइओ 'संजायाइसयं णिययसहोयरपरिसमणइसओ कहं दच्छामि?' ति चिंतिऊण गहियमूणचओ तुलियपंचमहव्वयभारो तत्थेव पडिमं ठिओ बाहुबली । तओ संजायपच्छायावेणं गरुयसंवेगाखित्तहियएणं णियचरियलज्जिएणं पाएमु पडिऊण भरहाहिवेणं भणिउमाढत्तो "मा मुयसु तं महायस ! मज्जायऽकमणलज्जियमणज्ज । चत्तं णियसयलसहोयरेहिं पावाधम पावं ॥२०६।। तइ णिग्गएण सुपुरिस ! णिक्कइयवणेहभावभरिएण । बंधुरहियस्स मज्झं रज्जमकज्जं व पडिहाइ ॥ २०७ ।। मज्झं ण एस दोसो अवराहो एस दोसमूलाए । सव्वाणायारघराए रायलच्छीए पावाए ॥२०८।। पंडिच्चं जाई पोरुसं च कुल-सील-गुणववत्थंभो । विहँडंति जीए संगेण दुक्कयं णवर संठाइ ।। २०९॥ ण सहेइ सीलसारं, बंधुं परिहरई, सुपुरिसं हणइ । गाणापयारवंचणसेंमुज्जया जा सया लोए ॥२१॥ ण गणेइ कयं ण गुणे दक्खिण्णं णावबुज्झइ कयाइ । ण य पोरुसंण विज्ज ण य लज्जं णेय मज्जायं ॥२११॥ जा असमंजसकरणुजया सया जा खलत्तणफला य । सा रायसिरी माणुण्णयाण कह सम्मया होई?" ॥२१२॥ इय णिदिऊण सुइरं रायसिरिं गरहिऊणमप्पाणं । भरहाहिवो सदुक्खं विणीयणयरिं अणुपविट्ठो ॥२१३॥ तओ अणुसोइऊण सुइरं, निदिऊणमप्पाणं, भाविऊण संसारसहावं, गरहिऊण रायलच्छि, संवेगभावणया परितणुइऊण सोगावेयं, मंतिवयणाणुरोहेणं भोए भुंजिउमाढत्तो। ___इओ य संवच्छरं जाव दुक्करं कायकिलेसमणुहवंतस्स बाहुबलिणो पीडियाहिं बंभि-सुंदरीहिं भणिओ कहावसरे तेलोक्कबंधू जगपियामहो भगवं उसभसामी जहा-भगवं! बहूणि दिवसाणि बाहुबलिणो दुक्करं तवचरणं चरन्तस्स, ण य से मोहंधयारखएणमावरणंतरायविहडणेणं केवलणाणं समुप्पजइ, ता साहेउ भगवं किमज्ज वि पुणमंतरायकारणं ? ति । भगवया भणियं-खीणबहुकम्मो बाहुबली, किंतु मोहणीयावयवोदए वट्टइ, ण य तस्सोदये वट्टमाणस्स केवलणाणमुप्पज्जइ, तस्स मोहणीयावयवमाणोदओ वट्टइ, सो य तुम्ह वयणाणंतरमेवोवसमं गच्छइ ति, ता सिग्यं वच्चह बाहुबलिसमीवं । तओ ताओ भगवयाएसेणं गयाओ बाहुबलिसमीवं । भणिओ य ताहिं बाहुबली-भयवं ! वी(वि)इयसंसारसहावस्स समतण-मणि-लेट्छु-कंचणस्स चत्तसयलसंगस्स ण जुत्तं गयवरारोहणं ति, ता सयमेव वियप्पिऊण हत्थीओ ओयरह तुब्भे । त्ति भणिए बम्भि-सुंदरीहिं बाहुबलिणा चिंतियं-कत्तो मे वल्लिलयावियाणावणद्धदेहस्स उभयपामुट्टियुब्भडवम्मियस्स गयारोहणं ? ति, ण य इमीओ भगवयो समीवाओ समागयाओ अण्णहा जंपंति, ता किमेत्य भविस्सइ ? । त्ति चिंतयंतेण सहसम्मुइयाए वियाणियं "माणहत्थी णाम जत्थाहमारूढो। "सो य धम्म-ऽस्थ-काम-विणयाण विग्घहेऊ । कोहुब्भवो वि माणमूलो। माणमहागहगहियस्स पुरिसस्स न विणओ, ण गुरुजणाणुवत्तणं, ण विज्जागमो, ण परमत्थालोयणं, ण संसार-मोक्खचिन्ता, ण परमत्थदंसणं ति । अवि य लायणं रूवं जोवणं च महिलागुणा य सोहग्गं । माणसिणीण माणेण णिययमंगे विलिज्जन्ति ॥२१४॥ माणमहागहगहिओ अवमण्णियलेसपुरिससोडीरो । मरइ रणम्मि परत्यं निरत्ययं कुणइ मणुयत्तं ॥२१५॥ माणमयमोहियमई तं तं चिय कुणइ जेण बहुवियणे । पुरिसद्देसिवसेणं णिरणुसओ घंघले पडइ ॥२१६॥ १°ण एस दोसो दूजे। २ माढतं जे। ३ वियडंति सू। ४ 'इ, पोरस ह जे। ५ समुज्जया सू । ६ गुज्जया सू। ७ होउ जे। ८ अणुवविट्ठो सू । ९ सम्मइयाए जे। १० सो धम्म सू ।। Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अविय १ रिसहसामि-२ भरहचक्कवट्टिचरियं । ण गणेइ गुरू ण गणेइ मायरं णेय गोरवं ण भयं । णं य लज्ज ण य णेहं ण बंधवं णेय मज्जायं ॥२१७॥ ण कयं गावकयं चिय ण य मित्तं णेय कुल-गणायारं । अत्थो निरत्यओ चिय माणचहियस्स पुरिसस्स ॥२१८॥ इय मूलमणत्याणं सव्वाणं होइ एस हयमाणो । तं हयमाणो पुरिसो कल्लाणपरंपरं लहइ ॥२१९॥ जीवाइपयत्यऽन्भासणेकववसायनिच्छियमइत्तं । बहुविहपवित्तसत्थऽत्थवित्थराराहणं होइ ॥ २२० । तं पि पसण्णे गुरुयणमणम्मि बहुविमलसत्थणिम्माए। पयडियसमतण-मणि-लेठु-कंचणे सममुह-दुहम्मि ॥२२१॥ होइ गुरू सुपसण्णो तञ्चित्ताराहणेण विणएण । तस्स विणयस्स विग्धं करेइ माणो वियम्भन्तो ॥ २२२ ॥ माणगहियस्स चित्तं जायइ 'एसो वि माणुसो चेव । ता किं करण एयस्स होइ दीणत्तणफलेणं ?" ॥२२३ ।। एवं चिंतिऊण पुणरवि चिंतियं-किमणेणाऽबुहजणाइण्णेण मग्गेण ? ति, ता गच्छामि भगवओ समीवं, पेच्छामि य विमलुप्पण्णणाणाइसए णिययभाउगो, अणाइणिहणाण जंतूणं कालभूयमहल्लयविवक्ख त्ति । विभाविऊण वियलियगुरुमाणपव्वएण ववगयमोहपडलेणमवणिऊण मायवल्लीए सह वल्लिवियाणं समुच्चलिओ भगवओ समीवं । एत्यंतरम्मि वियलियमहाकम्ममोहजालस्स माणमेत्तावरियदिव्वणाणस्स खवगसेढीए कमेणुप्पण्णं तीया-ऽणागय-[संपय]पयत्युन्मासगं दिव्वं केवलं गाणं । गंतूण सांमिसमीवे केवलिपरिसाए आसीणो ति। ___ अण्णया य भरहपुत्तो मिरीयी दिवसयरकरनियरताविओ मज्झण्हदेसयाले मल-जल्लाविलसरीरो अहिणवलोयपरियाविउत्तिमंगो पदिदिणं जायणापरीसहपराजिओ वायालीसदोसरहियभिक्खासोहिमचयन्तो गिम्हुम्हवालुयकिलामियचलणकमलो भागवयं कुलिंग परिकप्पिऊण अहासुहं विहरिउमाढत्तो। ___ अण्णया य भरहचकवट्टिणा अवसेसतित्थगर-चक्कवटिपण्हकहणावसाणम्मि पुच्छियं-किं भयवं अत्थि कोइ इमीसे परिसाए तहाविहो जो तित्ययरत्तं पाविहि ? त्ति । भगवया भणियं-अस्थि तुह चेव पुत्तो मिरीई, सो य अद्धचक्कवट्टीणं पढमो 'पोयणाहिवई तिविठू णामेणं, पुणो विदेहे चक्कवट्टी, पुणो वि कालेण बंधिऊण तित्थयरणामं अपच्छिमो वद्धमाणाहिहाणो तिस्थयरो भविस्सइ । तो तमायण्णिऊण भरहचक्कवट्टी उवणीयणाणाविहाहारो साहुणो णिमंतेइ । भणिओ य भगवया-साहूणमकप्पणिज्जो एस आहारो, जओ आहाकम्मिओ आहडो रायपिंडो य । तमायण्णिऊण विमणदुम्मणेणं भणियं भरैहाहिवेणं-भयवं! कि मए कायव्वं ?। भणिओ तिलोकगुरुणा-मा संतप्प, गुणाहियाणं देहि त्ति । तओ असमंजसपरिहरणत्यं कागणिरयणेण धिज्जाइयाणमुप्पत्तिं काऊण विणिओइयाहारो अणुण्णायभरहच्छेत्तसाहुपयारो मिरीई(इ)वंदणत्थं गओ। वंदिओ य गुरुर्केहिउग्घट्टणपुव्वं मिरीई। मिरीचिणा वि 'तित्थयरो अपच्छिमो भविस्सामि' ति जाणिऊण कयमुत्तुणत्तणं, गहिओ माणत्थंभेण, तप्पच्चयं च बद्धं णीयागोयं । भगवओ समीवे समइविरइयलिंगो य विहरिउमाढत्तौ । उवसामेइ बहुविहेहिं पयारेहिं पाणिणो । उवसन्ते य पव्वज्जमुवहिए जयणाहस्स सीसत्तणेण उवणेति । अण्णा य भवियव्वयाए तारिसभावस्स गेलण्णावसरे कविलमुणिणा पुच्छिओ-भर्यवं ! कहिं पुण णिरुवाओ मोक्खमग्गो ?। तओ सहसकारण जहटियमेव णिवेइयं-भयवओ समीवे। पुणो वि कविलमुणिणा भणियं-भयवं ! इह पुण किं णत्थि चेव मोक्खो?। तमायण्णिऊण गेलेन्नपडियरणकंखुणा समुइण्णकम्मुणा पणदुविवएणं अणालोइयाऽऽगामियदुइपरंपरेणं भणियं दीहयरसंसारकारणं मिरीइणा-कविला ! एत्थं पि मोक्खमग्गो अस्थि ति । तओ एएण दुम्भासिएणं अप्पा संसारसागरे पवाहिओ ति।। इओ य भयवं विहरमाणो अवणेतो मोहतिमिरं, पेणासेतो संसए, अणुग्गहेंतो पाणिणो, छउमत्थकालवरिससहस्सूर्ण पुन्चलक्खं उप्पण्णदिव्वणाणो चउतीसाइसयसमण्णिओ विहरिऊण गओ अट्ठावयपव्वयवरं । तत्य य माहबहुलतेरसीए दससहस्सपरिवारो चोदसभत्तेणं उवरयमणो-वाय-कायजोगो सेलेसीविहाणेणं खवियभवोपग्गाहिकम्मंसो सिवमयलमणुत्तरं पत्तो। १ पयत्युन्मा सू । २ पूयणा सू । ३ भरहनाहेणं जे। ४ ओइओ आहारो जे। ५ कहिमोग्घट्टणपुब्धि जे। ६ या भवि सू। ७ तारिसस्स भाव स। ८ ! कि पुण स । ९ गेलण्डप स। १. अवर्णतो जे । ११ पयासतो जे । Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउप्पन्नमहापुरिसचरियं । इओ य भरहो पालिऊण जहोचियं रायसिरिं, सुंजिऊण भोए, काऊग अट्ठावए सव्वतित्थयरसरुवसण्णिहाइं चेइयाई, णिम्मविऊण अट्ठपयपरिच्छिण्णं अट्ठावयं, परूवियसकंगुलिमहिंदूसवो, अण्णया उसभसोमिनिव्वाणगमणायण्णणजायसंवेगहिययविणोयणस्थं सह अंतेउरियाजणेणं मजिउं पयत्तो। तओ मज्जिऊण विविहकीलाहि, मोत्तूण सरवरुच्छंगं, सव्वावयवणिरूवणत्थं आयंसहरं पविट्ठो समाणो णिरूविउमाढत्तो सरीरावयवे । सणियं च णिरूवंतस्स वियलियंगुत्थलरयणो समवलोइओ अंगुटुओ । तओ तं असोभमाणं पेच्छिऊण चिंतियं-किमेस अवरावयवो [? व] ण सोहइ ? ति । चिंतयन्तेण 'ववगयाहरणो' त्ति विण्णाय ( ? यं )। तयणंतरं च वियलियं मोहंधयारं, 'विहडियं कम्मवडलं । तओ चिंतिउमाढत्तो"एयस्स हयसरीरस्स पयतीए सन्यासुइपहाणाहारस्स मंस-सोणिय-मज्ज-ऽमेज्झ-मुत्त-पुरि(री)साइमलभरियस्स चिन्तिज्जन्तं ( १ ) किंचि सोहणं ति, आगंतुगकित्तिमाहरणसोहालंकिओ एस छज्जइ, ण अण्णह त्ति । अवि य चिंतिजन्तमणिटुं गब्भाहाणाइ कारणमिमस्स । संवद्धणं पि उवरहियस्स जं तं कहं भणिमो? ॥ २२४ ॥ ण्हाण-विलेवण-भोयण-अच्छायण-पालणेहिं परियरिओ। विहडइ तह वि हु हयदुजणो व्य देहो ण संदेहो ॥२२५॥ णिञ्चमणिच्चे असुइम्मि दुग्गहे मंस-सोणियावासे । देहम्मि वि पडिबंधाउ बिसमा कम्मदंदोली ॥ २२६॥ जस्स करणं तम्मसि णिच्चमकज्जाई कुणसि रे जीव ! । मुत्त-पुरीसाहारस्स रोगणिलयस्स पावस्स ।। २२७ ।। चिन्तिजन्ताऽणिट्ठा तस्सेसा पावपरिणई णिययं । असुइ ब भूइपुंजो व्व होइ किमियाण णिवहो व्व ॥ २२८॥ आगंतुगभूसणभूसियस्स णिचपरिसीलणीयस्स । चिंतिज्जंतं किं किं पि सोहणं हयसरीरस्स ? ॥ २२९॥ पइसमयं चिय विसरइ बल-मेहा-रूव-जोव्वण-गुणेहिं । आउ-बलेणं च तहा तेण सरीरं ति किं भणिमो ? ॥२३०॥ इय णिग्गुणे सरीरम्मि णवरि एसो गुणो जए पयडो। जं सव्वदुक्खमोक्खं सुद्धं धम्म समज्जिणइ" ॥२३१॥ एवमाइवेरग्गभावियमणो णिदिऊण सरीरं, परिहरिऊण रायसिरिं, सणियं सेसालंकारं मोइउमाढत्तो। जओ जओ सरीरावयवाओ अवणेइ भूसणं सो सो ण तहा छज्जइ त्ति सुट्ट्यरं वेरग्गमोइण्णो। तओ पवड्ढमाणसंवेगस्स पइसमयं उत्तरोत्तरासाइयज्झाणाइसयस्स भवन्तरब्भासाऽऽसाइयसुहपरिणामावसेसियकम्मरासिणो अपुचकरणं, खवगसेढी, समुप्पण्णं "केवलनाणं । कया सक्केणं लिंगाइपडिवत्ति त्ति । पुत्तो य आइच्चजसो महया विभूईए अहिसित्तो पिउणो रज्जे। भरहो वि केवली भवोपग्गाहीणि कम्माणि उप जिऊणं सोक्खं कम्मक्खयलक्खणं मोक्खमणुपत्तो। आइच्चजसो वि रयणाणुभावत्तणओ अलद्धचक्कवटिववएसो भुंजिऊग सयलं वसुमति, पालिऊण जिणोवएसियं धम्मं, अहिसिंचिऊण णियसुयं महाजसं कुलक्कमागए रज्जे, सैमासाइयसवण्णुभावो सिद्धिमुवगओ। ___ महाजसो वि तेणेव कमेण रज्जमणुपालिऊण अइबलं रज्जे अहिसिंचिऊण "तेणेव विहिणा सिद्धिपुरिपहिओ संवुत्तो। अतिबलेण य अन्तकाले यलभद्दस्स संकामिऊण रज्जधुरं सकज्जमणुचिट्ठियं । ___ एवं तेयवीरिय-जलणवीरिय-अम्बुवीरिय-सच्चवीरिय-महावीरिया वि परिवालिऊण कुलकमागयं [? पुहई], भुंजिऊण रायसिरिं, अंते चइऊण भोगे सव्वकम्मक्खयं काऊण सिद(द) त्ति। इति महापुरुषचरिते प्रथमतीर्थकरऋषभस्वामिचरितं प्रथमचक्रवर्ति भरतेश्वरचरितं [च] सैंमाप्तम् ॥१-२॥ १ "सामिणो नि सू। २ विलिय जे । ३ सोहणन्ति सू । ४ संवड्ढणं जे । ५ परिचरिओ सू । ६ बंधो उ विसमा कम्मदुद्दोली सू। ७ कएणन्तम्मसि सू । ८ किमिपाण जे । ९ समय च्चिय जे। १० केवल नाणं सु। ११ समासासिय सू । १२ तेणेय जे । ___Jain EducAR नीरिय-महावीरिय-सञ्चवीरिया वि जे । १४ सिद्धि त्ति जे।१५ समाप्तमिति जे। Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ३ अजियसामिचरियं ] अस्थि व जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे दाहिणमज्झिमे खंडे विणीया णाम णयरी । तत्थ य जियसत्तू णाम राया। विजया णाम भारिया । भुंजंति भोए । सरइ संसारी । इओ य उसहसामितित्थयररस अइकन्तस्स अकंता पण्णासं कोडिलक्खा सागरोवमाणं । तओ पुव्वऽज्जियपुण्णपन्भाराइसओ समासाइयतित्थयरणामकम्मो चइऊण मणुयदेहं, उवभुंजिऊण सिद्धिमुहसमागमणुत्तरोववाइयसुहं, विजए माणे अणुपाणि तेत्तीसं सागरोवमाई दीहमाउं, परहिएक्करओ ओहिष्णाणावगयपरमत्थो वैसाहसुद्धतेरसीए चित्ताणक्खत्ते विजयाए कुच्छिसि पुत्तत्ताए उबवण्णो । कयं च सुरिंदेग गब्भाहोणोचियं कज्जं । दिट्ठा विजयाए तीए चेव रयणीए चोदस महासुमिणा । कहिया जहाविहिं दइयस्स । आणंदिया य तेणं पुत्तजम्मेणं ति । तओ पडिपुण्णेसु णवसु मासे अमेसु राईदिएस माहस्स सुद्धट्टमीए रोहिणिणक्खत्तम्मि उवत्रष्णो भगवं । कओ देवेहिं मेरुसिहरम्मि जम्माभिसेओ । भगवम् समुप्पण्णे 'ण केणइ जिओ जणउ' त्ति कलिऊण अम्मा-पितीहिं अजिओ त्तिणामं कथं । वढिओ य सह कलाहिं । विवाहिओ य अणुरूवं कण्णयं । विइयपरमत्थो वि कम्मट्ठि अणुवत्तेन्तो भोगे भुंजिउमादत्तो । तओ अणुपालिऊण कुमारभावं, सिद्धिं गए जणयम्मि पालिऊण रज्जसिरिं पुव्र्व्वगाहिएहिं एगहत्तरिपुव्वलक्खेहिं गएहिं, सयंबुद्धो वि लोयंतियपडिबोहिओ 'दिण्णसंवच्छरियमहादाणो संसारमुहविरत्तहियओ सिद्धिबहुसंगमूसुओ माहस्स सुद्रणवमी मिसिरणक्खत्तम्मि पडिवण्णो सामाइयं सहसंबवणुज्जाणम्मि । अणुक्कमेण य जहुत्तविहारेणं बारस वरिसाई पच्चजापरियायं पाउणिऊणं महसेणवणुज्जाणम्मि सत्तच्छयतरुवरस्स हेट्ठओ पोसस्स सुद्धेक्कारसीए रोहिणिणक्खत्ते झाणंतरिया माणस्स अपुत्रकरण खवगसेढीपक्कमेणं उप्पण्णं केवलं णाणं । चलियासणागरण य महिंदेण कया केवलिमहिमा | विरइयं समोसरणं । परूवियाणि चत्तारि महव्वयाणि । पव्वारिया य भगवया पंचाणउई गणहरा । पत्थुया धम्मकहा, तं जहा पंच गतीओ - णरयगती तिरियगती मणुयगती देवगती मोक्खगति त्ति । तत्थ णिरयगतीए सत्त पुढवीओ, तं जहारयणप्पभा सकरप्पभा वालुयप्पभा पंकप्पभा धूमप्पभा तमप्पहा महातमप्पहा । तत्थ रयणप्पभाए असीउत्तर [? जोयण ] लक्खबाहल्लाए अहोवरिं पत्तेयं मोत्तूण [? जोयण] सहस्सं भवणवासिभवणंतरिया णिरया हवन्ति । तत्थ य तेरस पत्थडा, णिरयाणं च तीसई लक्खा, उस्सेहो सत्त धणूणि तिष्णि रयणीओ छ चेव अंगुलाई ति, सागरोवमं ठिई । ateyare बत्तीसुत्तर ? जोयण ]लक्खबाहल्लाए एकारस पत्थडा, पणुवीसईं लक्खा णिरयाणं, उस्सेहो पण्णरस धणि अभागोय बारस य अंगुलाई, तिष्णि सागरोवमा ठिती । तइयपुढवीए अट्ठावीसुत्तर [ ? जोयण ] लक्खबाहल्लाए व पत्थडा, पण्णरस लक्खा णिरयाणं, उस्सेहो ऍक्कत्तीसं धणूणि धणुयचउभागाहियाणि, सत्त सागरीवमाई ठिती । चउत्थ-yate वीत्तर [? जोयण ] लक्खबाहल्लाए सत्त पत्थडा, दस लक्खा गिरयाणं, उस्सेहो बावद्विधणूणि धणुऽऽमहिया, दस सागरो माई ठिती । पंचमपुढवीए अट्ठारसुत्तर [? जोयण] लक्खबा हल्लाए पंच पत्थडा, तिष्णि लक्खा णिरयाणं, उस्सेहो पणुवीसुत्तरसयं धणूणं, सत्तरस सागरोवमाई ठिती । छपुढवीए सोलसुत्तर [? जोयण ]लक्खबाहल्लाए तिण्णि पत्थडा, पंचूर्ण लक्खं णिरयाणं, उस्सेहो अड्ढाइज्जाणि सयाणि धणूणं, बावीससागरोवमाई ठिती। सत्तमपुढवीए भट्ठुत्तर[? जोयण ] लक्खबाहल्लाए एगो पत्थडो, पंच णिरया, तं जहा - कालो महाकालो रउरवो महारउरवो अपइद्वाणो त्ति, उस्सेहो पंच धणुसयाणि, तेत्तीसं सागरोवमाई भवट्टिती । जं जीए भवधारणिज्जं सरीरं तं चेव दुगुणं उत्तरवेडव्वियं ति । तत्थ गच्छति पंचिंदियतिरिय मणुया महाकूरकम्मकारिणो रोद्दज्झवसाणा तिव्वयरसंकिलिट्ठपरिणामा अणताणुबंधिकसायट्टो १ हाणोचियं करणिज्जं जे । २ दिहं संवच्छरियं महादाण जे सू । ३ च तीस जे ४ °माणि द्विती जे । ५ एकतीसं जे 1 ६ वत्तिणो जे । For Private Personal Use Only Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउम्पन्नमहापुरिसचरिय मिच्छत्त-ऽणा(प्णा)णमोहियमइणो विरइपरम्मुहा मज्जाइपमायाऽऽसेविणो उक्कडजोगा महारंभा महापरिग्गइवत्तिणो पंचिंदियवहपरिणया मंसरसाइसेवणेकरया असुहलेस्सा परवसणाभिणंदिणो त्ति । अवि य जं अणुहवंति दुक्खं तं सीसउ कह णु तुम्ह वायाए ? । तद्दुक्खमुक्खपिसुणो सद्दो चिय तारिसो णत्थि ॥१॥ तत्तो उव्वट्टिऊण चउरासीजोणिलक्खभेएमु तिरिएसु णाणाविहवेयणाहित्थहियया पैरायत्तपाणा अत्ताणा असरणा सी-उण्डवेयणाउरसरीरा छुहा-पिवासाकिलंतदेहा सकयकम्मवत्तिणो संसारकन्तारे अणुपरियट्टन्ति ति । अण्णे वि तिरिय-मणुय-देवा अट्टज्झाणोवगया कोह-माण-माया-लोभवहिणो णिस्सीला णिव्वया सुहपरिणामरहिया संसारसूयरा माया-विति-पुत्त-कलत्तणेहणियलिया तिरिएमु उववज्जति । जे पुण फ्ययीए भद्दया मंदकसाया धम्मरुचिणो दाणसीला ईसीसिमुहज्झवसाया ते मणुएसु उववज्जन्ति । जे उण धम्मज्झाणवसगा महादाणाइपसत्ता सीलव्बयाणुहाणपरायणा अप्पकसाया ते देवेसु उववज्जति । जे उण असेसकम्मक्खयकारिणो ते मोक्खगतिवत्तिणो हवंति त्ति । __ एवं च सुणिऊण के वि संसारजलधिपोयभूयं मोक्खतरुणो अमोहबीयं सम्मत्तरयणं पडिवण्णा, अण्णेहिं देसविरती, अण्णेहिं सव्वसंवररूवचारित्तमभुवगेयं ति । अण्णे उण गरुयकम्मभराऊरियसरीरा लहिऊण वि अकारणबंधवं तेलोकगुरुं सवण्णुनेयारं ण जाणन्ति परमत्थं, ण उम्मूलेंति मोहबल्लिं, ण दलंति मिच्छत्तपडलं ति । अवि य सामण्णे चिय परिणतिवसेण जीवत्तणे अणादीए । आसंसारं बहिया केई भविय चिय ण होन्ति ॥२॥ भवियत्तणरासिगया "केई हयपावपरिणइवसेण । कालमणन्तं पि पुणो तसत्तणं णेय पावंति ॥३॥ तसभावे वटुंता वि केइ पंचिंदियत्तणमपत्ता। किमि-कीड-पयंगाईसु चेय केइत्थ अच्छन्ति ।। ४ ॥ जइ कह वि केइ परिणइवसेण पंचिंदियत्तणमणूणं । पावेंति पावभरगरुयपेल्लिया ण उण मणुयत्तं ॥५॥ मणुयत्तणं पि जायं दुक्कयकम्माण मेच्छजादीसु । आरियखेत्तविहूणाण ताण ताणाय ण हु होइ ॥६॥ आरियखेत्ते कुम्मो व केइ मणुयत्तणं जइ लहेजा। मणुयत्तं तं पि हु मुक्कपण्णपवणुधुयसमाणं ॥७॥ मणुयाउयं पि दीहं णासइ दारिद्ददुक्खतवियस्स । धम्मरहियस्स दुलहं णटुं रयणं पिव समुद्दे ॥ ८॥ कम्मभरपीडियाणं मणुयाणं धम्मपरिणती दुलहा । जइ होइ धम्मबुद्धी सुहगुरुजोगो ण. संपडइ ॥९॥ लद्धे गुरुम्मि पयडे णीसेसपयत्थभासणपतीवे। विरतिपरिणामरूवं विवेयरयणं ण उच्छलइ ॥१०॥ पयइविरसम्मि संसारसायरेऽन्तेल्लिसाररहियम्मि । कह कह वि दिव्बजोएण केइ जीवा जइ लहन्ति ॥११॥ इय लहिऊणे वि एवं सम्मं ण कुणंति जं जहाभणियं । सम्मत्तं "पि हु केई वमंति संसारणिम्महणं ॥१२॥ किं कुणउ कम्मवसगाण पाणिणं देसणा जिणाणं पि ?। अंघलयपयासो णेय होइ दिणयरसँएणं पि ॥ १३ ॥ इय एरिसम्मि संसारसायरे दूरमुज्झियविवेए । केसिंचि सउण्णाणं च गोयरे होइ तित्थयरो ॥१४॥ दछ्ण वि तित्थयरं वयणं आयण्णिऊण तस्स पुणो । काण वि ण होइ विमला तत्तेसु जहिट्ठिया बुद्धी ॥१५॥ इय बहुविचित्तरूवे संसारे संसरन्तपाणिगणे । धण्णाण कह वि जायइ दुलहा सम्मत्तपडिवत्ती ॥१६॥ इय एवं दुलहा सम्मत्तपडिवत्ती, लद्धा विसा पुणो परिवडइ । एवं भयवं देविंद-गरिंदवंदिओ बोहितो भवियकमलायरे, पयडेतो संसार-मोक्खपहे, दरिसेंतो विसमकम्मविवागं, साहेंतो जहट्ठियं धम्मं कोसंबीए णयरीए उत्तरदिसाए समवसरिओ। विरइयं देवेहिं समोसरणं । तम्मज्झम्मि असोयपायवस्स हेटओ उवविट्ठो सीहासणे तिलोयगुरू। सकीसाणकरुधुयचाम पमायसे जे । २ जोगमहा सू । ३ णं चोरासी सू। ४ परपाणा सू । ५ वत्तिणो जे। ६ माया-पिति जे । ७ पयईए जे। ८ धम्मऽज्झवसाण जे । ९ गयन्ति सू । १० केई इह पाव जे । ११ चेव केइत्यइच्छंति सू । १२ जाईसू जे । १३ 'पईवे जे । १४ रेऽन्तिकसार जे । १५ ण य ए सू। १६ पि अ केई सू। १५ °सएणम्पि सू । Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३ अजियसामिचरियं । ५३ रजुयलो सदेव-मणुया-ऽसुराए परिसाए धम्मं कहेइ। ताव य समागयं बम्भणभज्ज-प्पइयं, तिपयाहिणीकाऊण उवविढं चलणंतिए । कहन्तरे पुच्छियं बम्भणेण-भगवं! कह णु एयं ?। भगवया भणियं-देवाणुप्पिया! सम्मत्तप्पभावो। बंभणेण भणियंकहं चिय ? । भगवया भणियं-सोम ! केत्तियं एवं ?, सम्मत्तप्पभावेणं उवसमन्ति वेराइं, पगस्सन्ति वाहिणो, विलिजंति असुहकम्माई, सिज्झइ समीहियं, बज्झइ देवाउयं, सण्णेझं कुणन्ति देवयाओ, सिझंति पाणिणो त्ति । तओ एयमायण्णिऊण भणियं बंभणेण-भयवं ! एवं एयं, ण अण्णह त्ति । भणिऊण बंभणो तुहिको ठिओ। एत्थंतरे य. सेसजणबोहणत्यं पुच्छिओ भयवं गणहारिणा-किमणेण पुच्छियं ?, किं वा भयवया साहियं ? ति । भयघया भणियं-सोम ! सुण, अत्थि इहेव णाइदूरम्मि सालिग्गामो णाम अग्गाहारो। तत्थ दामोयरो णाम बम्भणो परिवसइ ।सोमा से भारिया। ताण पुत्तो मुद्धभट्टो। तेण य विवाहिया सिद्धभधृया सुलक्खणाऽभिहाणा । पत्ताणि जोवणं । भुंजंति अत्तणोणुरूवे भोए। कालंतरेण ताण उवरया जणणि-जणया। ताणं च वियलिओ पुव्वविहवसंचओ। अत्तणो य किलेसाऽसहुत्तणेण दुक्खेण भोयणं संपन्जइ त्ति । तओ एवमेयं सीयंतयं घरं पेच्छिऊण संजायवेरग्गो असाहिऊण घेरिणीए सहवासपरिभवमसहमाणो देसंतरं गओ बंभणो। जाणिओ य एस वुत्तन्तो सुलक्खणाए जणपरंपरेणं । पइगमणेणं अच्चंतसोयारियहियया वेरग्गमग्गोइण्णा निविण्णा संसारवासेणं जाव चिट्ठइ ताव य तप्पुण्णाणुहावेण विय साहुणिपरिवारिया वासारत्तगमणत्थं सुलक्षणाए घरे वसहिं मग्गिऊण विउला णाम गणिणी ठिया। सुलक्षणाए य अणवरयं धम्मदेसणासवणेणं ववगयं मिच्छत्तपडलं, उवगयं सम्मत्तं, पडिवण्णा जीवादिपयत्था जहिट्ठिया, गहिओ य संसारसायरुत्तारणसमत्थो जिणएसिओ धम्मो, जाओ कसायाण उवसमो, उप्पण्णं विसयवेरग्गं, णिविण्णा जम्म-मरणपरंपराए, अणुकंपापरा जीवाणं, परलोयणिच्छियमती जाय त्ति । अणवरयं साहुणिमुस्सूसापराए अइक्तो वासारत्तो गया य अणुव्वयाणि दाऊण गणिणी। उवागओ विढत्तदविणजाओ तीए भत्तारो। कयं जहोचियं । पुच्छिया य-सुंदरि! कहं कहं मह विओए ठिया सि?। तीए भणियं-पिययम ! तुह विरहपीडियाए उवागया गणिणी, दिसणेण य ववगयं तुह विरहदुक्खं, उवलद्धं च जम्मफलं सम्मत्तलाहेण । तेण भणियं-सुंदरि! केरिसं सम्मत्तं ?। तीए वि साहिओ जिणदेसिओ धम्मो। पुण्णाणुहावेण उवगओ तस्स । पडिवण्णं सम्मत्तरयणं तेणावि। उववण्णो य कालक्कमेणं तेसिं पुत्तो । जाओ य लोयवाओ-अहो! साक्गाणि एयाणि, परिचत्तो कुलक्कमागओ धम्मो। अण्णया य मुद्धभट्टो पुत्तं गहेऊण सिसिरे गओ पच्चूसे बंभणपरिसाउलं धम्मम्गिट्टियं । तो तेहि य संपहारिऊण समागओ भणिओ-सावगो तुम, ण तुह अम्ह सयासे अवगासो अस्थि । भणिऊण धम्मगिट्टियं वेढिऊण ठिया। उवहसिओ य सो "तेहिं ति। एत्थंतरम्मि मुद्धभट्टेण संजायाणुसएण विलक्खीभूएणं 'जइ ण जिणएसिओ धम्मो संसारसायरप्पहाणो, णेय अरहा तित्थयरो य सवण्णू, ण य सम्मत्त-णाण-चरणाई मोक्खमग्गो त्ति, ण य सम्मत्तं पुहवीए अत्थि त्ति, ता मह पुत्तो एत्थ डझउ' ति भणिऊण सो पुत्तो तीए चेव खाइरंगारभरियाए वेदियाए पक्खित्तो । तयणंतरं च "उद्धाइओ हाहारवसदगम्भिणो महंतो कलयलो 'हा! दड्ढो दड्ढो त्ति अणज्जेण अप्पणो पुत्तो' त्ति भणमाणा खुहिया बंभणाण परिसा। एत्यन्तरम्मि य अहासण्णिहियवाणमंतरदेवया[ए] सम्मत्ताऽणुहावाखित्तहिययाए कमलसंपुडे छोढूण अवणीयजलणप्पहावाए रक्खिओ ति । तीए विराहियसामण्णाए केवलिणा पुच्छिएण साहियं जहामुलहबोहिया तुमं, किंतु सम्मत्तुन्भावणाए उज्जुत्ताए होयव्वं । तओ सा सम्मत्तुल्भावणपरायणा मुणिऊण ओहिणाणेण इमं वइयरं तयासण्णे ठिया । रक्खिओ तीए एयाण पुत्तो, पयासिओ सम्मत्तप्पहावो। पेच्छिऊण एवं विम्हउप्फुल्ललोयणो उवसंतो समूहो । भणिओ बंभणीए भत्तारो-ण तए सोहणमणुचिट्ठियं, जओ जइ कह वि देवयाए असण्णिहाणेणं पुत्तो १ भार्या पतिकम् । २ साहियन्ति जे । ३ तेण वि सू । ४ घरणीए सू । ५ वसई सू । ६ वरयधम्म जे । ७ रुतरण जे । ८ तद्देसणेण जे । णुभावओ उर्व जे । १० तेहिन्ति सू । ११ उट्ठाइओ सू । Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउप्पन्नमहापुरिसचरियं । उज्झेज्ज ता किं ण होज्ज जिणदेसिओ धम्मो ? ति, ता 'किमणेणं बालचरिएणं ? । ति भणिऊण य उवसन्तजणं भत्तारं च सम्मत्तथिरीकरणत्थं एसा बम्भणी गहिऊण इह मह समीत्रागयति । ५४ ओ एवं देवाणुप्पिया ! बम्भणेण पुच्छियं, मए वि सम्मत्तप्पहावा साहिओ । ऐयं च आयष्णिऊण थिरीभूयं सम्मत्तं । अण्णेहि वि परिसागए हिं पडिवण्णं ति । ari एएण विहिणा पुव्वंगूणं पुव्वलक्खं पालिऊण पव्वज्जापरियायं तं वारसवासूणं केवलपरियागं च अणुपालेत्ता सम्मेयसेलसिहरं गओ । तत्थ य चउसहस्ससमेओ मासं पाओगओ णिधुयभवौवग्गाहिकम्मलेसो सिद्धिमुवगओ ति ॥ इति महापुरिसचरिए तइयमहापुरिसस्स अजियसामिणो चरियं समत्तं ॥ ३ ॥ १ किमिमेण जे । २ तओ देवा जे । ३ एवं सू । ४ सवरिपूणं जे ५ तं ति जे । Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ४ सगरचक्कवट्टिचरियं ] खंडिज्जइ विहिणा ससहरो वि सूरस्स होति अत्थमणं । हयदिव्यपरिणईए कवलिज्जइ को ण कालेणं ? ॥ १ ॥ एकेकमुच्चिणंतो खिण्णो व्ब णराण कालजोएणं । जलणो व्व हयकयंतो जुगवं अह णेउमुज्जुत्तो ॥२॥ अत्थि इहेब जम्बुद्दीवे दीवे भारहे वासे अउज्झा णाम णयरी। विविहवण्णरयणोहभवणुज्जला, सप्पुरिसहियय व्व तुंगपायारोववेया, महिलामणाण वऽगाहखाइयावरिया। अह एक्को चिय एसो दोसो व्य गुणो व्व एत्थ णयरीए । जं जत्थ व तत्थ व जह व तह व वच्चंति सइ दियहा ॥३॥ ___ तत्थ सेसणरवइमउडमणिणिहसमसिणियपायवीढो दरियारिमद्दणो कामिणीकडक्खविक्खेवलक्खो सयलगुणगणाहारो दक्खिण्णमहोयही दाणसीलो धम्मरुई णीसेससत्थणिम्माओ सबकलापारओ आयारकुलहरं विणयावासो मज्जायाणिम्माओ वियक्खणो कयण्णू सव्वस्स मित्तो सुमित्तो णाम णरवई । तस्स य णीसेससुरा-ऽसुर-विज्जाहरिंदसुंदरीवंदस्सरूव-गुण-सीलेोहिं विजयवई विजयवती णामेण भारिया। तीए य सह तस्स समइकंतो कोई कालो। __ अण्णया विजयवतीए रयणीए चरिमजामम्मि दि@ो सीहकिसोरो वैयणेणोवरं पविसंतो। संखुद्ध-हित्यहियया वेविरसरीरा य उद्विया सयणिज्जाओ । भणिया य पिययमेणं-सुंदरि! किमकंड एव विउद्धा खरपवणुधुयदीवयसिह च वेविरसरीरा दिसाओ अवलोएसि ? । तीए साहियं जहटियं पिययमस्स । तेण वि य [? भणिया सुंदरि ! वीसत्था होहि, भविस्सइ ते दप्पुधुराऽरिगइंदकुंभत्यलेकदारणपञ्चलो पुरिससीहो पुत्तो। तओ दइयत्रयणेणं आसासिया आणंदिया य पुत्तलंभेणं ति । तओ पडिपुग्णेसु णवसु मासेसु अट्ठमेसु राइदिएसु सुहंमुहेणं सयललक्षणोववेयं पसविया पुत्तं ति। कयं गरिदेणं तिहुयणच्छेरयभूयं वद्धावणयं । पइटावियं च से णामं सयरो त्ति। सो य पंचधाइपरियरिओ कमेण वड्ढिउं पयत्तो । उवणीओ कलागहणकाले कलायरियस्स । गहियाओ बावत्तरिकलाओ। तओ णीसेसकलाणिम्माओ गहियसयलसत्यऽत्थो विवाहिओ अणंगवइपमुहाओ अट्ट दारियाओ। सुमित्तेग ये सयरं रजे अहिसिंचिऊण परलोयविहाणेणं सकज्जमणुचिट्ठियं । समुप्पण्णं च आउहसालाए जक्खसहस्सपरिवारियं चक्करयणं । णिवेइयं सयरस्स। तेणावि कया अट्ट दिवसे महिमा। उप्पण्णाणि य कमेण चोद्दस वि रयणाणि । तत्थ एगिदियाणि सत्त, तं जहा-चकं छत्तं चम्मरयणं मणिरयणं कागणिरयणं खग्गरयणं दंडरयणं ति । सत्त पंचिंदियाणि, तं जहा-हओ हत्थी सेणावई गहवई पुरोहिओ वड्ढइरयणं इत्थीरयण ति। ओयवियं च पुन्बक्कमेण बत्तीसेहिं वरिससहस्सेहिं भरहखेत्तं । उप्पण्णा य णव णिहिणो। णिव्वत्तिओ रायाहिसेओ। संजाया बत्तीस सहस्सा णरवईणं, चउसही सहस्सा अंतेउरियाणं । उप्पण्णा य सहस्संसु-सहस(स्सोक्ख-सहस्सबाहु-दइच्चयपमुहाणं पुत्ताणं सद्विसहस्सा । एवं च विसयमुहमणुहवंतस्स तस्स चउसहिसहस्संतेउरोवभोगेणं उव्वायतणुणो इत्थीरयणोवभोगेणं पुणण्णवस्स बच्चन्ति दियहा, सरइ संसारो। अण्णया य सुहासणत्यो सहस्संसुपमुहेहि विणतो पुत्तेहिं जहा-"ताय ! वसीको तए पडिवक्खो इंदियगणो य, पसाहियं भरहवासं कामिणीवयणकमलं च, पयासिओ दिसामुहेसु णिम्मलो जसपब्भारो गुणगणो य, णीया कित्तिसरिया मयरहरतीरं आणा य, पणासिओ दोससमूहो पिसुणवग्गो य, णीओ समुण्णई कोसो बंधुयणो य, वित्यारिओ पयइगरुओ १ हिं अविजिय(या) जे । २ विजयमतीए सू । ३ वदनेनोदरम् । ४ य सरज्जे अंजे ५ बत्तीसइसहस्सा जे । Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउप्पन्नमहापुरिसचरियं । ५६ जिणदेसिओ धम्मो पावो य, पात्रिया अत्तणो रूवसिरी सीलसंपया य, तइ णिज्जिए भरहवासम्मि भुंजन्ता तुह सिरी, पयासिंता अत्तणो परकमं, तायाणुष्णाया जहिच्छं विहरामो ति । अवि य सावर सिरी दुक्खज्जिया वि मेहमहइ जीवलोयम्मि । घेतूण बला सुइरं जा भुज्जइ पुत्तवग्गेणं ॥ ४ ॥ भुंजंता वि जहिच्छं तगया अग्घन्ति संपयं पिउनो । जगणीए थणं सुइरं पि सहइ पुत्तो च्चिय पियंतो ॥ ५ ॥ हो जसलहणिजो पिया वि पुत्तेहिं भुंजमाणीए । खरपवणुद्धयधयचंचलाए सइ रायलच्छीए ॥ ६ ॥ तेहिं जस्स भुज्ज रायसिरी मंडलग्गणिम्माया । सो च्चिय णवर कयत्थो कयपुण्णो सो चिय जयम्मि ॥ ७ ॥ गुरुचलणक्कन्ता पाउया वि परिभोगओ जगति णिंदं । लच्छी उण तव्विरहा वयणिज्जं कुणइ जणयस्स ॥ ८ ॥ पुष्णघणाणं धम्मो लच्छी पुत्तेसु गुणमहग्घेसु । इयराणं पुण अयसो वेरं च रिणं च संकमइ ॥ ९ ॥ जा जीवंताणं चिय भुज्जइ पुत्तेहिं बंधुवग्गेहिं । सा लच्छी देइ धिई, मयस्स उण णत्थि उ विसेसो ॥ १० ॥ इय तुझ थिरेंन्यखंभणिमियणी सेस भुयणभारस्स । भुंजामो भुवणसिरिं भमिमो भुवणंतरालेसु ॥ ११ ॥ किंच इय एवं जंपंताण ताणमायण्णिऊण णिम्मविओ । मुक्ककुसुमेहिं समयं सूरसहस्सेहिं जयसद्दो || १२ | विष्णत्तो अत्याट्ठिएहिं सप्पुरिससंकहावसरे । राया विम्यवियसंतणयणवत्तं सपुत्तेर्हि ॥ १३ ॥ तो भइ नरवरिंदो घणो हं जस्स पुत्तपुत्तेहिं । भुज्जइ लच्छी गुणवन्तएहिं पुत्तेहिं य जहिच्छं ॥ १४ ॥ अण्णा उ निंदणिज्जा लच्छी जा पुत्त-बंधुपरिहीणा । अप्यंभरिणो सउणा वि पुत्त ! किं ताण जीएणं ? ।। १५ ।। रमह जहिच्छं भुवणंतरे, भुंजेह संपयमुयारं । को कुणउ तुम्ह विग्घं ?, सिग्धं भरहं परिव्भमह ॥ १६ ॥ इय एवमणुष्णाया पिउणा, काऊण तस्स चलणेसु । पणिवायं महिजायं सुइरं दालिद्ददलणे ॥ १७ ॥ तयणंतरं च गुरुजणाऽणुष्णारहिं सट्ठीहिं पि सहस्सेहिं पहयं पयाणतूरं । उग्घोसियं पच्चूसगमणं । एत्थंतरम्मि उपाया दीसि पत्ता, तं जहा - दाहिणा महासदा, केउस्याउलं तरणिमंडलं, दिट्टमज्झविवरं रयणियरबिम्ब, चलिया वसुमती, जाया दिसादाहा, अवि य ७ केउरगमकयविवयरस बिंबं दिणम्मि दिणमणिणो । लक्खिज्जइ गहसिरिचलणणिवडियं णेउरं व गहे ।। १८ ।। ओदीसइ ससिबिंबं विवरंतररत्तवाहिरावयवं । अत्थक्कफुडियर्णितोहकलिलबंभंडखंड व ॥ १९ ॥ हिंसंति जयतुरंगा य रहर्सनिच्छूढधूममलकलुस । अणवरयद्वियमुहलोहकमलछायाविभिण्णं व ।। २० ।। इय तइया भयजणणा णराण संपट्टियाण भुवणम्मि । सयराहभंगपिसुणा सुदारुणा आसि उप्पाया ॥ २१ ॥ तओ अंगणिऊण अवसउणपरंपरं कयकोउयमंगलोवयारा भवियव्वयाणिओएणं कम्मपरिणइरज्जुसंदाणिया दिसामुहप-साहणत्थं पिउणाऽणुण्णाया थीर यणवज्जं इयररयणोववेया महया चडयरेणं रह-गय-गर-तुरयचउरंगबलोववेया पसत्थे तिहिकरण-णक्खत्ते सोहणे लग्गे चलिया कुमारा । पेसिज्जंति जहारुहं पसाया, कीरन्ति मंगलाई, पढन्ति बंदिणो, गलगज्जंति गयवरा, हिंसंति तुरंगवरा, कलयलन्ति पक्कपाइका । एवं महया हलबोलेणं णिग्गया रायहाणीओ कुमारा । आवासिया विवित्ते भूमिभाए । दिट्ठो य अहाफासुए पए से सज्झायवावडो मुत्तिमंतो व्व पुष्णरासी एगो साहू । सहस्संसुपमुहेहिं वंदिऊण पुच्छिओ-भयवं ! जाणामो संसारासारत्तणं, बुज्झामो कडुयविवागत्तणं विसयाणं, कस्स वा सगणविष्णाणस्स एयम्मि परिवसन्तस्स ण फुरइ विवेयरयणं ? ति, तहा वि पाएण ण बज्झकारणमंतरेण एरिसा विवेयबुद्धी होई ति, ता साहेउ भयवं जइ झाण-ऽज्झयणादीणमइव्व णावरोहो, अम्होवरि वा अणुग्गहो त्ति, किं ते संसारहेउणो णिव्वेयकारणं । ति । अइसयणाणिणा १ दुक्ख पियाविजे । २ सहसहइ सू । ३ सय रां सू । ४ पुष्णवराणं जे । ५ थिरभुयखंभणिम्मिय जे । ६ भविमो भुअणं सू । सूरिस जे ८ निव्वूढ जे ९ अगिणिकण जे । १० होज्ज त्ति, जे । Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४ सगरचक्कवचिरियं । भयवया अकिलिट्टणिसग्गोवएसं परमणलियमकाहलमणवज्जं भणियं सोम ! जइ कोऊहलं ता सुणसु मह णिव्वेयकारणं, णिव्वेयस्स करी भवियाण एसा कह त्ति । भणिऊणं कहिउमादत्तो ५७ भवसायरम्मिणियकम्मजणिय दुक्खोहवसणपडहत्थे । तियसा समत्था होन्ति णेय निवडन्तमुद्धरिउं ॥ २२ ॥ णियचरियावज्जियगरुयकम्मदू सहविवागणिम्मविया | जीवाण पयतिविरसा अइदुक्खपरंपरा होइ ॥ २३ ॥ महाराय ! इओ य अष्णभवंतरम्मि अहं णाण विष्णाणसमेओ वरुणवम्माऽहिहाणो खत्तिओ आसि । मह पिउणो कुल-विहवाणुरूवसीलसारा सीलवई णाम कण्णगा उवणीया, विवाहिया य सा मए । पत्ताणि जोव्वणं । सा य अन्नहकयाभिहाणत्था उकडयाए मोहस्स, उम्मग्गपरयाए जोव्वणस्स, णिरवेक्खयाए वम्महस्स, अचिन्तसत्तित्तणओ कम्मपरिणईए, उभयकुलमइलणपरायणा परलोगपरम्मुहा अगणियकलंकभया अवहत्थियणिययकुलायारा सइरिणी संकुत्ता । तओ मए अइकंतोवएसपयाण तणओ 'अपडियार' त्ति कलिऊण उवेक्खिया । अण्णया य विहिणिओएणं अइबलपरक्कमेण रूवसंपउवेयणवजोव्वणगुणाणुवत्तिणा सीहणामेण पल्लिवइणा अम्ह गामो अवक्खदं दाऊण गहिओ । तओ हयविहए गामम्मि सा दुरायारिणी सीहपल्लिवइमुवद्विया । भणिओ य तीए पगन्भवयणेणं जहा-“अज्जउत्त ! तइ दिट्ठमेत चेव मह समूससियं हियएणं, वियसियं णयणजुयलेणं, फुरियं बाहुलइयाहिं, बूढो णिरंतरं सयल(? लंग)मंगेसु रोमंचो, जाईसराई व लोयणाणि जम्मन्तरणेहमणुसरन्ति ति । अवि य— पेमाणुरायर सिए दिट्ठे गुरुणेहनिन्भरे दइए । किं किं ण करेइ जणो समत्थिओ पंचबाण ? ॥ २४ ॥ ता जइ महोवरि अज्जउत्तो साणुराओ सकोउहल्लो साणुकंपो वा तओ अज्जउत्तमहं सयंवरं वरेमि " । त्ति भती [सा] अवलंबिया सेणावरणा पढमं हियएण, पच्छा करयलेणं । तयणंतरं च गहेऊण सीलवई पडिग्गाहियघण घण्णसुवण्णसारो गओ यियपल्लि पल्लिवई । तत्थ य तेणं सा सव्वन्तेउरपहाणा सव्वस्ससामिणी कया । अणवरयपवड्ढमाणाSणुरायाण तक्कालोचियविसय मुहमणुहवन्ताण वचंति दियहा, सरइ संसारी । सा वि अइमाया क्रूड - कवड - चाडपरायणा हिययमणुपविट्ठा पल्लिवइणो । चिंतियं च णेण तं किंपि माणुस महिलम्मि संपडइ विहिणिओएणं । चिन्ताहियाई जम्मि उ णराण जायंति सोक्खाई ।। २५ ।। हन्भरियं सन्भावणिन्भरं रूय-गुणमहग्घवियं । समसुह- दुक्खं जस्सऽत्थि माणुस सो सुहं जियइ ॥ २६ ॥ इओ य अहं पितीए अवहरियाए ववगैयअंध्यारो व्व संजायविवेउ व्व लद्धि(द्ध ) महाणिहाणो व्व दढमूससिओ । चिंतियं च मए वरमिह ते कत्था ते च्चिय धण्णा य जीवलोयम्मि । जे मोहणोसहीणं रमणीण ण गोयरे पडिया ॥ २७ ॥ तह विहु परिलहुयं चिय जमिमीए पेलवाए संबंधो । ण गओ मोहावत्ते जं अयसकलंकिओ णेय ॥ २८ ॥ ओ अहं महाराय ! ववगयसण्णिवाओ व्व पुणरुत्तलद्धजम्मो व्व जहासुहं संसारसुहमणुहविउमाढत्तो । अण्णया य उद्धमाहप्पो विणिज्जियासेसजुवाणवग्गो विसुमरियसीलवइवइयरो तन्भाउणा मित्तत्वम्मेण दुब्बोलिओ जहा" जाणियं तुह वीरियं, परिण्णायं च सव्वाउहेसु कुसलत्तणं, जेण जियंतस्स चैव तुह भज्जा सत्चुणा अवहरियत्ति । किंच संसारपूरणेणं जाया जाएण एत्थ किं तेण ? । जस्स ण भरेइ भुवणन्तराई कित्ती वियंभंती ॥ २९ ॥ दो भिउडिभासुरकरालधाराफुरन्तकरवाले । पविसन्ति माणखंडणभएण रणसंकडिल्लमि ॥ ३० ॥ पवणुद्धाइयभीसणजालोलिकरालिए हुयवहम्मि | माणन्भंसणभीया सहसा सलहत्तणमुर्वेति ॥ ३१ ॥ पवणुच्छलन्तदूसह महल्लकल्लोलभीसणारावं । मयरहरं पि हु पविसन्ति ण उण माणं विरार्हेति ॥ ३२ ॥ इय पिययमं पि सिढिलेंति अहव अत्थं मुयंति णियदेसं । मागन्भ्रंसं न कुगंति कह वि जे होंति सप्पुरिसा ॥ ३३ ॥ १ वा सील जे । २ दिट्ठमत्ते सू । ३ बाणेहिं ? सू । ४ हऽन्महिय जे । ५ रं रायगु जे । ६ ° गयंधारो व्व जे । ७ णेव जे। Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउप्पन्नमहापुरिसचरियं । परिहवाणं च एस महंतो परिहवो जं जियन्तस्स णियभज्जा वि बला अण्णेण हीरइ" ति । तओ महाराय ! सुणिऊण मए एयं समुप्पण्णा मेहती अरती । चिंतियं च मए-ण तीए कोइ दुस्सीलत्तणं मुणइ, मह परिहवो उण सव्वजणविण्णाओ, ता एयमेत्थ पत्तयालं जं सा दुरायारिणी णियबलपरक्कमेण अण्णेण वा केण वि उवायन्तरेणं मोयावेऊण पल्लिवइसयासाओ समप्पेमि एएसिं । ति चिंतिऊण गहियथेवदविणजाओ णिग्गओ णियभवणाओ। चितियं च मए-अहमेगागी, कूरकम्मकारिणो बहवे चोरा, दुग्गमा अडवी, विसमो पल्लिणिवेसो, ता णियख्वमवलम्बिऊण जेहोचियमणुचिट्ठामि । तओ अहं लंघिऊण संसारविसमं महाडइं थेवदिवसेहिं चेव विसममेगप्पवेसं संपत्तो कैसिणाऽहिवयणदाढं व विसालं, हिमगिरिसिहरं व दुग्गमग्गाहिडियं, मुणिगणचित्तं व कयपरलोगसंपयं, कयंतरायहाणिं व भीसणं, नियई पिच दुलंघ, वेसायणघरं व दुविणीयालयं, दुस्सीलमहिलं व भिण्णमज्जायं, कालजिब्भाऽहिहाणं पल्लिं संपत्तो । पविठ्ठो य अभंतरियं । कया पाणवित्ती । इओ तो भमन्तो एगो(?) विहिवसणिओएण पविट्ठो एकम्मि घरे। दिट्ठा य तत्थ परिणयवया इत्थिया। अब्भुटिओ य तीए, भणिओ य-उवविससु त्ति । अहं पितीए नमिऊण उबविट्ठो आसंदियाए । पुच्छिओ अहं तीएकओ आगओ सि ?। मए भणियं-अहं सयणपरिहवाओ इहं आगओ ति, ता इहइं चेव अच्छिउमिच्छामि । तीए भणियंपुत्त ! चिट्ठसु इहई, अहं ते ण्हाण-भोयणाइणा अक्खूणं करिस्सामि त्ति । णामं च मए णायं सुमित्त त्ति । तओ अहं तीसे घरम्मि भोयणाइणा णिचिंतो पसारयं काऊण ववहरिउमाढत्तो। अण्णया य सुमित्ताए वच्छल्लत्तणेण मह वावारोवउत्ताए सुइरं मं णिज्झाइऊण इंगियागारकुसलाए लक्खिऊण अण्णहिययत्तणं साणुकंपं भणियं-किं पुत्त ! सुमरसि पिट्ठओ माणुसाणं ?, उयाहु वेराणुवंधो हिययसंतावकारि : त्ति, जेण दीहुण्हणीसाससोसियं अहरं ते लक्खेमि, मुंइरं च अंतो किं पि झाइऊण दट्ठोभिउडिभासुरमाउहं पलोएसि, ता साहसु जइ ण रहस्सं, अहं च तुह दुक्खेण दुक्खिया जणणिसमाणा, ता वीसत्यो साहसु, जेण विण्णायकज्जसरूवा जुवइजणोचियमुवयारं करिस्सं । तओ महाराय ! मए तमायण्णिऊण पप्फुल्लवयणकमलेण भणियं-साहु अम्बा !, साहु लक्खिओ मह अहिप्पाओ, तं किं पि णत्थि जं तुहाकहणिज्ज, विसेसेण एस वइयरो तुह साहेयव्यो, किंतु लज्जापराहीणो ण सक्कुणोमि एत्तियं कालं तुह साहिउं, संपइ तुमए मह दुक्खदुक्खियाए सयलमुवलक्खियं ति साहिज्जइ । तओ मए णिरवसेसो सीलवइवइयरो साहिओ । भणियं च तीए-पुत्त ! ण सोहणमणुचिट्ठियं, जओ एगागी तुमं, विसमदुग्गटिया पल्ली, बलवन्तो पल्लिवई, दूरे तुम्ह गामो, माया-कूड-कवडभरिओ पयईए चेव जुवइजणो विसेसेण दुस्सीलो त्ति, तहा वि सोहणमणुचिट्ठियं जं मह साहियं ति, जओ तीए अहमहिप्पायं जाणिस्सामि । त्ति भणिऊण महुरक्खरेहिं बहूहि य हेउ-दिटुंतेहि सम्म ठविऊण आढत्तो सीलवईए सह घरगमणसंबंधो, कीरंति कालोचियाओ कहाओ, 'बुब्भंति लोयवावारा । ___ अण्णया य सुमित्ताए भैणिया सीलवई-कहिं वा तुम्ह णिवासो ?, कहिँ वा सीहसमागमो ?, केरिसो वा तुम्ह बंधुवग्गो ससुरवग्गो वा ?, भत्तारो किं जुवाणो ण व ? त्ति, एयस्स पल्लिवइणो तं पिया उयाहु पुधपइणो ? त्ति । तओ कुडिलसहावत्तणओ महिलाणं, अवि(वी)सासत्तणओ पेम्मसहावाणं, भवियन्चयाए तस्सभावस्स, ण जहट्ठियं कहियं । भणियं च तीए-"किं मुद्धे ! ण याणसि ?, बंधुयणो ससुरहरं जणणी सहपंसुकीलिओ भत्ता। एएहिं जुया जुबईहिमावया संपया चेव ॥३४॥ तो सुमित्ते ! जहा तहा खविजए कालो, किं वा अण्णं करेइ इत्थिजणो परायत्तो असरणो ?" त्ति । सुमित्ताए भणियंअत्थि एयं जइ कहिं पि णिस्सरणोवाओ होइ तओ सोहणं ति । इयरीए वि गोवियवियाराए भणियं-कुओ एत्तियाई भग्गधेयाइं अम्हाणं ? । ति भणिए गया सुमित्ता णिययमुँवणं । कहिओ मह एस वुत्तंतो। मए चिंतियं-एयं पि तीए संभाविज्जइ। १ महती जे । २ लेण पर जे । ३ केणइ जे । ४ बहवो सू । ५ अहोचिय सू । ६ कसणा सू । ७ "चित्तम्व सू । ८ घरम्ब सू । ९ अमित जे। १० तस्यै नत्वा । ११ सुया सू। १२ साहेसु जे। १३ उभन्ति सू। १४ भणिय-सीलवति । कहि सू । १५ तो जे। १६ भवणं जे। Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५९ ४ सगरचक्कवचिरियं । जीवावे मरतं अण्णं मारेइ मरइ सह तेण । को मुगइ जुवइचरियं विसेसओ सीलरहियाणं ? ।। ३५ । अण्ण दिवसम्म सुमित्ताए कवडेण भणियं जहा - आगया तुह ससुरकुलपउत्ती । सीलवईए वियेप्पिऊण कवडयाए जलभरियलोयणजुयलाए भणियं किं सचं ?, साहस केरिस ? ति । सुमित्ताए भणियं - सामण्णेणाऽऽगया जहा - तुह भत्ता सण च । इयरीए भणियं -“ऐयं पि होज्ज जं मह दइओ इहाऽऽगमेज्ज, अहं पि एएहिं चैव लोयणेहिं पेच्छेज्जा, ता सुमिते ! कुणसुभह बंधुकज्जं, लेहं पेसवसु तस्स मह पइणो । जह एसा तुह दइया णिक्किव ! सह चिह्न रुयन्ती ॥ ३६ ॥ विक्खाओ सि तुमं सुहडो, ईंह एरिसी मह अवस्था । एताहे किं भैण्णइ 2, जं जुत्तं तं करेज्जा ॥ ३७ ॥ aa एयमायणिऊण अण्णायपरमत्थाए भणियं सुमित्ताए - सीलवइ ! जइ एवं गरुओ तुह अणुबंधो णियदइए ता पियं ते णिवेमि, चिट्ठा मह घरे तुह हिययदइओ, कुणसु जमुचियं ति । तयणंतरं च सीलवतीए 'चिरं जयसु' ति भणंतीए आलिंगिऊण चलणवडणुट्टियाए ल्हसियं णियंसणं, गलियं उत्तरिज्जं, बाहन्तरियं पप्फुल्लणयणजुयलं । भणियमिमीएदमुकंठिया, आणेह अज्जं "चैव मह दइयं णिव्ववसु विरहाणलपयत्रियं मह हिययं, गओ पल्लिवई जक्खजत्ताणिमित्तं जात्र नागच्छइ । त्ति भणिऊण मह 'दिण्णं पारिओसियं कडयजुयलं । आगंतूण साहिओ मह एस वइयरो सुमित्ताए । अत्थमुवगए वणवे दिवस सुमित्ताणुमग्गलग्गो भयतरलफुरियवामलोयणो पविट्ठो तीए भवणं । इओ य सा महाऽऽगमणहल्लफला परियणं इओ तओ पेसिऊण सदुक्खं णीसदं रोइउमादत्ता, संठविया य सुमित्ताए । कयमुचियकरणिज्जं । गया सुमित्ता । पेसिओ 'हे भवणभंतरं, समालिंगिऊण णिवज्जाविओ महरिहे स्यणिज्जे । एत्थंतरम्मि ती चैव वाहिंतो समागओ वाहिँ पल्लिवई । तओ किल समाउलीभूया भुयंगी 'हा ! कहं हा ! कट्ठे' ति भती भितरमुवगया । भणिओ य अहं तीए दाऊण थणोवरि करयलेण पहरं जहा - हयास ! हओ सि, आगओ पल्लि - वती, ता गत्थि ते सरणं, पविससु य सयणीयस्स हेओ । अहं हित्थहियओ णिलुको सयणीयतले । णिग्गया य सा बाहिं । गहिऊण कंठे पल्लिवई अग्भितरमुवगया । णिसण्णा णियसयणीए । भणिया य सा पल्लिवइणा जहा - सामिणि ! किमकंड एव दासजणो वाहितो ?, जं वा ते दासजणेण कायव्वं तं तत्थद्वियस्सेव किं न आइहं ?, जेण जक्खजत्तं तुज्झ आणre मंजिऊण तुरियमिहागओ म्हि ता आइसउ सामिणी जं मए कायव्वं ति । तओ तीए लद्धपणयाए भणियं - किं यासि तुमं मुद्धो ? जहा अहं विएसाओ समागया तुह वयणामयमुइया जीवामि त्ति, णत्थि मे अण्णं विणोयकारणं ति, कल्ले वि तुमं मए ण दिट्ठो त्ति णागया गिद्दा, सीयन्ति अंगाई, ण रोयए भोयणं, तओ मए तुमं सद्दाविओ । त्ति भणमाणी अवगूढा पल्लिवणा । पुणो वि भणियमिमीए - अज्जउत्त ! जर पुण मह भत्ता णियकम्मरज्जुपासावयासिओ इह आगच्छेज्ज ता किं कुणइ तस्स अज्जउत्तो ? । सीहेण भणियं सह दविणजाएण तुमं समप्पे । ओ तीए कूरकम्मकारिणीए हक्कं दाऊण भणिय - जइ वि ण वल्लहा सि अहं तुज्झ तहा विण जुत्तमणुरत्तजणपरिच्चायं काउं सप्पुरिसाणं, अहवा वला णिन्तस्स समप्पणं जुत्तमेव तुम्हारिसाणं । एयमायण्णिऊण भणियं पल्लि - वणा-सुंदरि ! किमेवं जंपसि ?, किं मेह बलपरकमं ण याणसि ?, तुह वल्लहो काऊण मए एवं भणियं, अण्णहा कयंताओ वि तुमं रक्खिमिच्छामि किमंग पुण मण्णाओ ? । तीए भणियं बद्धमूलस्स वइरतरुणो कारणं महिलाओ, सो य तुहऽश्चंतवेरी, जइ तुमं पावेइ तओ तं नत्थि जं न कुणइ, तं पुण पुरिसोहमत्तणओ एवं जंपसि । तओ संजायमच्छरेण भणियं - जइ पुणो अहं कह वि तं पावेमि तओ जं करेमि तं तुमं चेव पेच्छसि । तयणंतरं लद्धावसराए भणियं - जइ एवं ता एस तुह 'पडिपंथी सेज्जाए हेट्ठओ चिट्ठा त्ति । तओ दट्ठो भिउडिभासुरेण गहियखग्गेणं सहिऊण य पुरिसे कढिओ अहं केसेसु गहिऊण | बाबाइज्जमाणो य धरिओ दुट्ठमहिलाए - अविण्णायदुक्खवावायणं पिं उवयारो चेत्र इमस्स, ता तहा वावाइज्जइ जहा ण पुणो वि भोगाहिलसणं कुणइ ति । तओ अहं महाराय ! पल्लिवइपुरिसेहिं थूणाए सरीरुक्खत्तिएण १ वितव्विऊण जे । २ एयं एयं ( ? ) पि सू । ३ इय जे । ४ भणउ सू । ५ चेय जे ६ दिव्हं सू । ७ जुबल जे । ८ हं महभव जे ९ आगच्छेज्जा जे । १० मह पर सू । ११ साहम्मत्त जे सू । १२ परिपंथी सू । For Private Personal Use Only Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउप्पन्नमहापुरिसचरियं । णिययवम्मेण बद्धो । णिग्गया य पुरिसा। तयणंतरं तम्मि सयणिज्जे मह समक्खं सच्छंदयारीणं अणेयबिब्बोयसमेयं रइसुहमणुहवंताणं वीसंभत्तणओ समागया णिहा । चिंतियं च मए-“एयाणि ताणि विहिणो विलसियाणि, एसा सा कम्मपरिणई, अहवा महिलामोहियाणं केत्तियं एवं ?, जओ णरयदुवारं वसणेककुलहरं सयलपरिहवावासो। महिलायणसंबंधो चारगबंधो ब पुरिसाणं ॥३८॥ अत्थं वयंति, सेवंति खलयणं, जीवियं पि तोलेन्ति । माणभंसं पि कुणंति माणिणो जुवइसंगेण ॥३९॥ तं णत्थि चिय भुवणे वि सुवुरिसा दूरणिग्गयपयावा । महिलासंगेण सया विडम्बणं जं ण पार्वति" ॥४०॥ तत्थ य मए महाराय ! णायं जहा सरीरवेयणाओ अहिया माणसी पीड ति, जओ तब्बइयरदसणुट्ठियचित्तपीडाए ण विण्णाया सरीरुक्कत्तण-बंधणपीड त्ति । एवं च चिंतयंतस्स बहूणि अट्टदुहट्टाणि भवियन्वयाणिऔरणं मूसएहिं आगंतूण मह भक्खिया बंधणबंधा । मोक्कलो जाओ । उद्धाइओ कोहप्पसरो । गहियं तस्स खग्गं । आकड्ढिऊण हक्किओ पहिाई। तयणंतरं च ससम्भंतो उडिओ सयणीयाओ । पाडियं च मए खग्गप्पहारेण तालफलं व तस्स सिरं । भयसम्भन्ततरललोयणा य भणिया सा मए दुरायारिणी-पु(? धु)त्ति ! तुरियमग्गओ ठासि(? हि) अण्णहा संपयं ण हवसि त्ति । तओ इत्थीसभावत्तणओ वेविरसरीरा अग्गओ ठिया । अहं सदेसाहिमुहं मोत्तूण मम्गलम्गी अडवीए गंतुं । आगच्छइ य सा मह पिट्ठओ वत्थावयवे मग्गसंलक्खणत्थं मुयंती ण मए संलक्खिया । विसमत्तणओ पव्वयस्स, घणतणओ कडयतरूणं, संखुद्धत्तणओ हिययस्स, थेवे चेव भूमिभाए अइक्कंते जीवियासा विय विलिया रयणी । समुग्गओ तीए मणोरहो व भुषणपदीवो दिणयरो। ___ तो तचिंधोवलक्खियमग्गाणुलग्गो सेणासमेओ समागओ वग्घाऽहिहाणो पल्लिवइपुत्तो । दिट्ठाणि य अम्हे एक्कम्मि वणनिगुंजे णिलुक्काणि । भणियं च तेण-अम्ब ! तुह कयाहिणाणाऽणुसारेण समागया इह अम्हे । वावाइज्जमाणो अहं पुणरवि तहेव णिसिद्धो । खाइरेहिं खीलएहि खीलिऊण मं, घेत्तूण तं दुरायारिणि, गओ पल्लिवइपुत्तो। अहं अणावेक्खणीयमवत्थंतरमणुहवंतो चिट्ठामि । चिंतियं च मए-कहं मए अभिण्णाणं कीरमाणं नोवलक्खियं ? ति । अहवा जोयणसयाओ तह समहियाओ लक्खेइ आमिसं सउणो । सो चेव मरणकाले पासाबंध ण लक्खेइ ॥४१॥ जं जेण जहा जइया सुहममुहं वा समज्जियं कम्मं । तं तस्स तहा तइया तयाणुरूवं फलं देह ॥४२॥ किं कस्स केण कीरइ संसारे पयतिणिग्गुणे विरसे ? । परिणमइ सकम्मं चिय अण्णो पर पडइ वयणिजे ॥४३॥ ती अहं महाराय ! तिव्वयरवेयणाउलसरीरो समीहियाऽसंपज्जतमरणो वि जाव तग्गयावत्थो चिट्ठामि ताव य तमुद्देसं वणदवो विव पिंगलप्पभाभासुरो वाणरजूहसमेओ समागओ जूहाहिवई । तेणावि तयावत्थं में पलोविऊण णिसिद्धजहेण एगागिणा चेव तरियतरियं गिरिसिहराभिमहंगमणमणट्रियं । थेववेलाए चेव समागओ। आगंतण यचाविऊण दसणेहि मेलयं सबखीलयदाणेम निच्छदं । तयणंतरं चेव अचिन्तसत्तित्तणओ ओसहिप्पहावस्स णिग्गया सई चेव सव्वे विखीलया। बीएण य ओसहिखंडेण वणरोहणं कयं । अहं च तक्खणमेव निस्सल्लो ववगयवेयणो य जाओ। चिंतियं च मए-वच्चामि सभवणं, अहवा अपुण्णपइण्णस्स ण जुत्तमेयं । कया य महुरेहि फलेहिं पाणवित्ती । समासत्थो य चिंतिउमाढत्तो लल्लक्कमुक्कबुक्कारपहरणिभिन्नसुहडसंघाए । मरणं पि रणम्मि वरं भडाण ण हु खलजणुप्फेसा ॥ ४४ ॥ असमाणियकज्जधुरो कहं णु पेच्छामि मित्तवयणाई ? । णियमज्जायमपत्तो कयाइ किं रविरहो वलइ ? ॥ ४५ ॥ एवं च चिंतयंतस्स थेववेलाए समागओ गहिउग्गकंटयदंडो सो चेव जूहाहिबई। पक्खित्तो य अग्गओ मह डंडो। गहिओ हत्थेण मए । तओ सो मं पलोएऊण गंतुमाढत्तो। लग्गो मग्गओ। आरूढो य सो विसममेगं गिरिसिहरं । तत्थटिएण य तेण महया सद्देण बुक्कारियं । समुच्छलिओ गिरिगुहाविवरभरिउव्वरंतो महंतो पडिरवो, संखुद्धो य समंतओ रण्णुद्देसो, संरद्धा मयारिणो, खुहिया गयजूहाहिवइणो, पणहाणि हरिणवंदागि, संघन्नियाणि वराहेहिं णियतहाणि, १ सुपुरिसा जे। २ सरीरमत्तणपीड जे। ३ एणं आ सू । ४ मोक्खलो जे। ५ मूलिय सव्वस्वीलिय सू । ६ कीलया जे । ७ व्रणरोधनम् । ८ यदंगे चेव जूहवती। जे। ९ खुद्धा गय जे। Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४ सगरचक्कवचिरिय । समुड्डीणा उणसंघाया । एवं च गुरुभयविम्भलपाणिगणे जायम्मि रणुदेस समायणिऊण पडिरवायारं बुकारं मुयंतो वेगुद्धाइयदीहसासाउलो उल्लालियदीहलंगूलो संपत्ती वाणरजूहाहिबई । गहिओ य तेग अवक्खंदं दाऊण मह समीती जहाहिवई । तेण महं मुहं पलोइयं । तओ मे तयणंतरमेव तेण तिक्खकंटग महया दंडेग आहओ उत्तिमं - गम्मि मह जीवियदायगस्स सत्तू । पहाराणंतरं च विणिग्गयगयगजुयलो णीहरंतदीहजीहो बुकारं मुयंतो पडिओ धरणिवट्टे। तयणंतरं च दंडणिवायभीएणेव मुको जियजीविएणं । तं च ववगयपागमत्रलोइऊग वाणरवइणा गहिऊण चलणजुयले पक्खित्तो एक्कम्मि छिटंकाऽयडे । पुणरवि [आ]गंतूण मह समीवे सार्हेतो व हिययपरिओस, सूएन्तो व्त्र पडिदाणुज्जुयमप्पाणं किंपि हियएण विवरंतो अग्गओ चिट्ठिउमाढतो । तओ मए जंपियं - महापुरिस ! कथं तुम जं मह करणिजं, ण य जीविदाणाओ वि अवरदाणमत्थि । एवं च भणिए मया लाइओ अहं ते मग्गे । पत्रिट्टो य पछि । जाणिऊण य सलतं सुमितासयासाओ पविडो अहं रयणीए पल्लित्रइगेहं । वात्राओ य मए पल्लिवपुत्तो वधो । वेण यतं दुरायारिणि पयट्टो सगामाभिमुहं । ܐ ताव य अंतरे समासाइओ वीरयाभिहाणेण अवरेण पल्लिवणा । तत्थ य एग गिगा तस्स बलं सव्वं परम्मुहीकयं । तओ पल्लिवइचीरएणं भजतं गियबलं पेच्छिऊण भणियं - साहु अहो महापुरिस ! साहु, ता किमेएहिं ?, जइ अस्थि पोरुसअहिमाणो तो मह सम्मुहो ठासु एगं मुहुत्तगं, जेग णासेमि ते पोरुसावलेवं, अहवा एगागी तुमं विदेसत्थोय, ता त पराजिणावि णणिव्वडर माहप्पं ति । ऐयं मए समायण्णिऊग भणियं - " सोहणी समुल्लाबो पल्लिवाविरुद्धो, ज‍ फलेणं पि एवं तह च्चेय ता जुज्जइ जंपिउं, अण्णहा लहुयत्तणफलेग किमणेग 2, णिव्त्रडियफलस्स वि किमणेणं ? ति, पुरि xey वीरियं, ण वायाए; पुरिसस्स फुरणं चेत्र अन्तरंगो साओ, किमणेणं बहिरंगेणं सहाएणं ? | अवि य विहडन्त दिव्त्र - जायन्तत्रसण- वियलन्तबंधुवग्गाग । णियकुरणं चिय धीराण होइ वसगम्मि सुसहाओ ॥ ४६ ॥ समुहमिलिएकमेकाण कह णु आसण्णसंसयसहाओ । जायइ रणम्मि विसमे भडाण मोत्तूण णियविरियं ॥ ४७ ॥ णियसत्तिवज्जियाणं घरमहिलापालणे वि संदेहो । किं पुण जयसिरिगहणं हटेग जेऊण पडिवक्खं ? ॥ ४८ ॥ सष्णहणं दुग्गं आउहं च कज्जं कुणंति' धीरस्स । धीरतणरहियाणं णराणमप्पव्यहणिमित्तं ॥ ४९ ॥ इय होइ सहा सुपुरिसाण गियओ परकमो चैव । ता पहरसु जइ सामत्थमत्थि अहवा समोसरसु" ॥ ५० ॥ तओ तमायण्णिऊण वीरएण चिन्तियं - भावगरुओ समुल्लावो, ता पुच्छामि एयं 'किं कारणमिहागओ ?, को वासि तुमं ?' | चिंतिऊण भणियं भी महापुरिस ! आवज्जिओ अहं एएण तुह वीरतणेणं, ता उपसंहर संरंभ, साहसु जहद्वियं को सि तुमं ?, किंवा णिमित्तमिमीए महाडवीए पविट्ठो सि ? । त्ति भणिऊण मुकं पल्लित्रइणा चावं । उवविट्ठो वच्छच्छायाए एसो । अहं पिचा मोयारेऊण तयासण्णे उवविहो । साहियं मए जहट्ठियं चैव वीरस्स । तेण वि य मं पसंसिऊण भणियं'ण तए एसा दुरायारिणी समीवे वि धरियव्त्रा, जओ Trainsलम्म खवइ संसारसायरे महिला । जीवंतं चिय पुरिसं मयं पि गरए दुरुतारे ॥ ५१ ॥ दंसे गरुयसन्भावणिग्भरं पेम्मपरिणई महिला । णियजाइपञ्चएणं अण्णं चिय किं पि चिंते ॥ ५२ ॥ कुणइ वियारं अविणट्ठिया वि हाल व्व महिलिया लोए । जं पुग कुणइ विगट्ठा तं किर कह तीरए वोत्तुं ? ॥ ५३ ॥ इय कूड-कवड-माया-पच-बिब्बोय कामभरियाण । णामं पि जे ग गेव्हंति णवर महिलाण ते घष्णा" ॥ ५४ ॥ इय एवमाइ बहुयं भणिऊण य णीओ पल्लिं दंसिऊण य अत्तणो कुलीणत्तणं एगागिगा पल्लित्रणा थियगामबाहिरियाए । पत्तो सि तुमं गामं, वीससणीयं ण चैव महिलाणं । अहमवि कयववसाओ णियकज्जसमुज्जओ जाओ || ५५ ॥ १चणिग्ग सू । २ एवम्मए सू । ३ क पुण जे सू । ४ °ति वीरस्स । वीरत जे । ५ सृवुरिसाण जे 1 ६ हो म जे । वीरखते जे ८ ट्ठो य च्छायाए सू । 19 For Private Personal Use Only Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउप्पन्नमहापुरिसचरियं । ऐवं भणिऊण सो महाणुहावो ससरं सरासणं भंजिऊण ण याणामि 'कत्थ इ गओ' ति। भणिया य सा मए दुरायारिणी जहा-बच्चसु सबंधूणं गेहे । तीए भणियं-ण तुमं मोत्तूण मह कोइ अस्थि, जइ तुमं मं परिचयसि तो अहं उब्बंधिऊणे अत्ताणं वावाइस्सं । ति भणिऊण य उब्बंधिउमाढत्ता। णिवारिऊण यतं, चिंतियं मए एयं पि अत्थि अण्णं पि अत्थि तं णत्थि जं इहं णत्थि । अण्णोण्णविरुद्धाई पि होन्ति महिलामणे विउले ॥५६॥ तओ एवं चिंतिऊण मए सा समप्पिया णिययबंधूणं । अहं पि तिव्ययरसंवेगावूरियसरीरो पवड्ढमाणसंवेयातिसओ तहाविहाणमायरियाण समीवे गहिऊण सामण्णं, पालिऊण पन्चज्जापरियायं, मरिऊणं देवलोगं गओ। चइऊण तओ अंधविसए असोयचंदस्स राइणो असोयभद्दो णाम पुत्तो समुप्पण्णो । वढिओ सह कलाहिं । परिणाविओ य पिउणा कण्णासयं । अण्णया य उज्जाणगएणं दिट्ठो पढमवए पचइओ । तं च दद्रूण समूससियं हियएण, वियसियं लोयणजुयलेणं, णिवाणिमुवगयाणि अंगोवंगाणि, पणमिऊण य उवविठ्ठो तयासण्णे। पुच्छियं मए-भयवं ! किमंग पुण तुमं दळूण अण्णहाहूओ अहं ? ति, ता साहेउ भयवं जइ ते विण्णाणगोयरो त्ति । भयवया भणियं-सोम ! मुणसु, तुमं मए महिलासहाओ पल्लीओ समासासिऊण णिययगामं पाविओ त्ति । मए भणियं-कहं चिय ? । तओ भयवया जहडिओ सीलवईहरणवइयरो वीरयधणुभंगावसाणो य सव्वो साहिओ। ता महापुरिस ! 'एरिसाणि सच्छंदचारिणो विहिविलसियाणि, विसमा कम्मपरिणई, दुरन्तो रमणीण पसंगो, दारुणो मोहविवागो, संसाराणुवत्तिणो कसा. या, णरयगमणेकहेऊ विसयाहिलासो, दुज्जओ रइणाहो, पावा पावपरिणई, असारं जोवणं, तरलं जीवियं, चंचला सिरी, सुइणयसमो बंधुसमागमो, दारुगो संसारवासो, दुलह मणुयत्तणं, दूरगोयरा पुणो वि एरिसा धम्मसामग्गि' त्ति चिंतिऊण धम्मघोसायरियसमीवे पन्चज्जमणुपालिऊण देवलोगं गओ। पुणरवि इहेव भारहे वासे इंददत्तस्स पुत्तो पुरंदरदत्तो नाम समुप्पण्णो । जोवणगएण य मए सिरिपव्वयमणुचरन्तो उसहसेणाहिहाणो दिट्ठो साहू । तेण य उप्पण्णाऽइसएणे सुणिऊण पुब्वभवमुप्पण्णवेरग्गो चिंतिउमाढत्तो, कहं चिय ? वरमिह खाइरअंगारतावियं लोहणिम्मियावयवं । उवगृहिऊण मुत्तं महिलं ण उणो सरायमिणं ।। ५७ ॥ इच्चेवमहं दिट्ठदोसो विसएसु, विसेसेण महिलासु, मोत्तूण तणं पिव रज्जं तस्संतिए पव्वइओ । ता तुमं पि जइ जाणसि विसयसुहं विरसं, विसमाओ दुट्ठमहिलाओ, संसारं च दुरंतं, ता छड्डसु जा न छड्डेन्ति । तओ अहं संजायवेरग्गो तस्सऽन्तिए पब्बइओ । तेण य सह विहरंतो इहाऽऽगओ। तेण य भगवया उप्पण्णदिव्यणाणेण एत्थ सिद्धवडे पणऽट्ठकम्मेणं सिद्धगती समासाइया । ता तेण सिरिपव्वए सिद्धवडो त्ति भण्णति । ता एयं मह महाभाग ! पचज्जाकारणं ति साहियं तुम्ह । एयं चाऽऽयण्णिऊण तुम्हेहिं पि ण काययो इत्थीसु वीसम्भो। माउं जाति समुद्दो, पुणो पयारेण केण वि सुमेरू । सो णत्थि च्चिय भुवणे वि कोइ जो मिणइ जुवइमणं ॥ ५८॥ तओ एयमायण्णिऊण य पसंसिऊण मुणिं वंदिऊण य गया णिययावासं ति। तत्तो वि दाऊण पयाणयं भारहं वासं विहरिउमाढत्ता । कहं ? उज्जाणेसु सरेसु य पुलिणुच्छंगेसु सोणसरियाणं । विविहेसु काणणेसु य पव्वयसिहरंतरालेसु ॥ ५९॥ गाम-नगरा-ऽडईसुं मडंब-कब्बड-विसालदुग्गेसु । वियरन्ति दिन्ति भुंजन्ति जन्ति भरहं महासत्ता ॥६० ॥ वियरंति धणं, मुंजन्ति संपयं, खलयणं णिसुम्भन्ति । पूरंति तहऽत्थिमणोरहे य भरहे वियम्भन्ता ॥ ६१ ॥ पूएंति पूयणिज्जे गुणिणो धी(वी)। कयण्णुया धीरा। गिति पयावं भुवणंतराइं सइ साहससहाया ॥६२॥ १ एयं जे । २ ण य अं जे । ३ पणविऊण सू । ४ ण मए सू । ५ ण साहिऊण पुंजे सू । ६ खाइरंगार जे सू । ७ केण इ जे । ८ भरह जे । Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६३ ४ सगरचक्कवट्टिचरियं। भुवणुवरंतजसणिवहणिम्मियासेसधवलजिणभवणं । विहरन्त चिय पत्ता तुंगं अट्ठावयं सेलं ।। ६३॥ अह पेच्छिउं पयत्ता गिज्झरझंकारताररवमुहलं । वियडतडुब्भडमणिकिरणरंजियाऽऽसा-धरावलयं ॥ ६४॥ गंदणवणमणहरकयनिवेसविजाहरिंद-सुरकलियं । णाणाविहमणिविरइयबहुविहजिणभवणचंचइयं ॥ ६५ ॥ चारणमुणि-विज्जाहर-सुरा-ऽसुरा-ऽणेयणरवरिंदेहिं । जंतितेहिं सतोसं [च] बंदणऽस्थीहि रुद्धपहं ॥६६॥ डज्मंताऽगरु-कप्पूरबहलधूवुच्छलन्तसंगीयं । पहयपडपडह-मदल-काहल-संखाऽऽउलसणाहं ।। ६७॥ जयजयरव-मंगलगीयसद-थुइ-थोत्तजणियहलबोलं । विम्हयजणणं अट्ठावयं ति पेच्छन्ति सुरसेलं ॥ ६८॥ तओ पेच्छिऊण सयलपेच्छणिज्जाऽऽवासं अट्ठावयं पुच्छियं णायगेहि-को एस पचओ ?, केण वा जिणभवणालंकिओ? ति । तयणंतरं च सवद्धिपमहेणं मन्तिगणेणं जंपियं जहा-एस भरहचकवट्रिणा आदितित्थयरस्स उसभसामिणो पुत्तेणं जिणभवणालंकिओ, 'एत्थ य सिद्धो भयवं जगप्पियामहो उसभसामि' ति कलिऊण तव्वंसपभवेहि अण्णेहिं पि सुरा-ऽसुर-गर-विज्जाहरिंदेहि अणवरयमेस सेविज्जइ, ता दट्टयो एस 'सिद्धिखेत्तं' ति काऊण तुम्हे हिं पि । तओ एयमायष्णिऊण समारूढा पच्चयसिहरं । दिट्ठाणि चउवीसं जिणालयाणि पत्तेयं सबजिणाणं णिययमाण-वण्णपडिमाहिं कलियाणि । ताणि य भत्तिविहवाणुरूवं वंदिऊण पूइऊण य मंतियं तेहि-जमेत्य करणिज्जं तं सव्वं भरहचक्कवट्टिणा सैयं चेव कयं, ता अम्हे वि किंचि एत्थ तहाविहमच्छरियभूयं करेमो । तओ चिंतयंताण समुप्पण्णा बुद्धीजहा-एस पचओ बहुअच्छरियणिवासो सकंचणमओ णाणामणिविरइयजिणभवणो पउमरायमयसाणुणियररझ्यावयवी महोसहिसंकुलो, ता एस 'दूसमादोगचजणेण विलुप्पई त्ति जइ केणइ उवाएण रक्खिज्जइ ता रक्खणत्थमुज्जमं करेमो त्ति, जओ दाणाओ पालणं सेयं । ति चिंतिऊण गहियं दंडरयणं सहस्संसुणा । समंतओ य अट्ठावयस्स खाइयाणिमित्तं खणिउमाढत्तो धरणिमंडलं । तओ अचिन्तसत्तित्तणओ दंडरयणस्स, बहुत्तणओ सयरपुत्ताणं, वजरिसहणारायसंघयणतणओ य तेहिं ताव खयं धरणिमंडलं जाव भवणवइणागकुमाराण भवणभेओ कओ। तयणंतरं च अउव्वधरणिन्भेउप्पित्थहियओ 'किं किं किं ?' ति भणमाणो विब्भमुन्भंतलोयणो सव्वत्थ पेच्छियच्छोहो वसुहाविवरुग्गयवहलणीसासधूमुप्पीलो समाउलीभूओ णागलोओ । तओ त(?स)माउलं पेच्छिऊण णाइणिसमूहं हित्थहिययं विणिग्गओ णागलोयाओ जलणप्पहाहिहाणो णागिंदकुमारो । णिग्गंतूण य तेण रोसवससविसेसाऽरुणलोयणेणावि णियमिऊण कोहप्पसरं भणियं-“भो ! भो ! किमयमाढत्तं तुम्हेहिं ?, जेण भवणवइभवणाई सासयाई पि गुरुविसमवजणिवायसरिच्छेहि दंडघाएहिं जज्जरीकयाणि, जेगाऽहिवियडफणुब्भडमणिकिरणभीय व मंद मंदं पविसंति रवियरा मणिजालगवक्खविवरंतराऽऽलोयणेणं, लद्धावयासो तुम्ह दंडो व्य दीसिउं पयत्तो आयवो, तुम्हे य ठिइलंघणुज्जए पेच्छिऊण रवियरा वि मज्जायाइक्कम काउं ववसिया, ता सव्वहा तुम्हारिसाणं ण जुत्तमेयं । अवि य अपवहाए णिययं होइ बलं उत्तुणाण भुवणम्मि । णियपक्खवलेणं चिय पडइ पयंगो पदीवम्मि ॥६९ ॥ होइ विणीओ गरुओ, गुरुत्तणं संपयाए पढमंगं । अविणीओ वि हु लहुओ, लहुत्तणं आवईए पयं ।। ७० ॥ एसा वि जए लच्छी सोहइ मग्गट्टियाण पुरिसाण । इयराणं पुण सिग्धं णासइ आसयविणासेणं ।। ७१ ॥ ते होति महापुरिसा ते ठिइभंगं कुणंति ण कया वि । उवलद्धो किं केण वि मग्गुत्तिण्णो रहो रविणो ? ॥ ७२॥ जे हाँति सत्तवन्ता ते संतो ते महायसा भुवणे । जे ऐति सिरिं सुपइटिएण सप्पुरिसमग्गेणं ॥ ७३ ॥ सगुणेहिं चिय पुरिसा पयडा चूडामणि व विक्खाया । सयलजणसलहणिज्जा कुम्भंति सिरेण भुवणम्मि ॥ ७४ ॥ इयरे जे किंचि गुणं लहिऊण समुच्छलंति तुच्छप्पा । दुब्बलपक्खपरिग्गहगहिया सलह व्च भुवणम्मि ॥ ७५ ॥ १ जिणाऽऽययणाणि जे । २ सई जे । ३ चितताण जे । ४ तुब्भेहिं जे। ५ राय(s)लोय जे। ६ आवईय जे। ति गफगान जे । ८ च्छलततुच्छप्पा जे । Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४ चउप्पन्नमहापुरिसचरियं । इय णियचरिएहिं चिय पुरिसा णजन्ति कुल-गुणसमेया । मज्जाइक्कमणेणं जेणं लहुएन्ति अप्पाणं ॥ ७६ ॥ अण्णं च तुम्भे सयरस्स चक्कवट्टिणो पुत्ता, ता तुम्हाण ण जुत्तमेयं । जओते पुत्ता जे पिउणो चिण्णेण पहेण सति पवजंति । तेसिं गुणगहणेणं पिया वि सलहिज्जइ जयम्मि ।। ७७ ॥ दुस्सीलेहिं सुएहिं पि लहइ वयणिजयं पिया सययं । किरणा तवंति भुवणं लोओ सूरस्स रूसेइ ॥ ७८॥ इय जाव ण भज्जइ मंदिरस्स चूला उ सासया रम्मा । वीसमउ ताव तुम्हें समुज्जयं दंडरयणमिणं ॥ ७९ ॥ कजं कुणंति गिययं उवरोहं णेय कस्सइ जणंति । गुणवन्तयाण कप्पो भमराण व होइ कमलेसु"॥ ८० ॥ एयं सुणिऊण जण्हुकुमारो भणिउमाढत्तो-ण एस पयासो तुम्ह भवणभंजणणिमित्तं कओ अम्हेहि, किंतु अट्ठावयं फरिहाए रक्खिउं, ता जइ दंडगउरवेणं तुम्ह भवणोवद्दवो जाओ ण एत्थ अम्हाण तणुओ वि दोसभाओ, ता उवसंहरमु संरंभ, ण पुण एरिसं करिस्सामो ति । उपसमिओ जलणप्पहो गओ भवणं ति । तओ गए णागिंदे भणियं जण्हुणा-कओ एस दुल्लंघो अट्ठावओ किं पुण एसा फरिहा पायालोयरगंभीरा रित्ताण सोहइ त्ति, ता कीरउ इमीए जलभरणोवाओ। एवं भणिऊण जण्हुणा गहियं दंडरयणं । दंडरयणेण वियारियं गंगायडं। पयट्टा महल्लकल्लोलमालाउला दंडरयणाणुसारेण गंगा। भरिया य तीए खाइया। तओ संजायविवरंतरे पविटं धाराहिं जलं णागकुमारभवणेसु । तं च तहा णागकुलाउलं णागलोयं पेच्छिऊण भणियमेगेणाहिणा जहा-महाराय ! किमेस जलपब्भारो अविण्णायपुब्बो णागभवणेसु वियंभइ ? त्ति । कह? भयविहडियाण जाओ उब्भडकल्लोलपेल्लियथिराणं । अह णिरवसाणदुसहो कुडुम्बभंगो भुयंगाण ॥ ८१॥ दीसइ पायालयलं जलरयवुभंतणाइणिसमूहं । पुकारुट्ठियजलणुच्छलन्तभीसणजलुप्पीलं ॥ ८२॥ भरियजलभवणविवरं हाहारवणीहरंतपडिसदं । मुणिऊण णागलोयं णागेंदो भणइ तो रुसिओ ॥ ८३॥ "सन्ति सयरस्स पुत्ता दुस्सीला जेहिं दंडरयणेणं । खणिऊण धरावीढं पायालयलं जलाउलियं ॥ ८४॥ सामं कयं चिय मए पुव् िबलगबियाणमणुचिण्णं । तं तेसिमण्णह च्चिय परिणमियं आसयवसेण ।। ८५ ॥ माणुण्णयाण वि फुडं सामं गरुयत्तणं पयासेति । दंडसहाणं इहरा णराण हीणत्तणं कुणति ।। ८६॥ दो चेव णवर णीतीओ होन्ति पुरिसाण गुणमहग्याण । सामं व विणयपिसुणं दंडो व्च पयाववित्थारो ॥ ८७॥ एतेहिं मह समक्खं दिहें सामं ति विणयगुणकलियं । दरिसेमि संपयमहं दंडं पुण जंण पेच्छंति" ॥८८॥ इय भणिऊण सरोसं णयणविसा सदिया महाघोरा । णागकुमारा बहवे भणिया मारेह सयरसुए ॥ ८९॥ Vतेहिं पि तक्खणं चिय णीसरिऊणं जलन्तणयणेहि । तह दिट्ठा सयरसुया जह दीसंत चिय ण दिट्ठा ॥९॥ एवं च जणसमूहाओ भूतिकूडाऽवसेसेसु जाएमु सयरसुएमु हाहारवो समुच्छलिओ कडयसण्णिवेसम्मि । खुहियं सेण्णं, णासंति कावुरिसा, धाव(? र)न्ति सप्पुरिसा, अकंदइ महिलासमूहो, समाउलो मन्तिवग्गो, वुण्णो परियणो, विसण्णो कंचुइयणो । 'किमयं ? किमेयं ?' भणंता सदाविया महासामन्ता। 'किमेत्य करणिज्जं ?, कत्थ वच्चामो ?, किं(क) भणामो ?, केण सद्धिं जुज्झामो ?, कस्स कहेमो ?, कं सरणं पवज्जामो ? । एवं समाउले सयलखंधावारे समुच्छलिओ अंतेउरे महंतो उल्लोलो। कहं ?-- हा हा ! कयन्त ! णिय ! णिचमकज्जुज्जओ सि जइ वि तुमं । तह वि अणज्ज ! न जुज्जइ मग्गुत्तिण्णं इमं काउं॥९१॥ ___ हा देव ! किं व एयं ? एकपए चेव सव्वहा णासो। किं होज एस सुइणो मोहो वा इंद्यालं वा ? ॥ ९२॥ कि सच्चं चिय एवं हवेज मइविभमो व माय व्व ? । इय चिंतिऊण हिययं ण जाणिमो कह णु संठक्मिो ?॥९३॥ इय दुसहदुक्खसंतावतावियं पहयथणहरुच्छंगं । मुच्छाविरमे खिज्जइ सुइरं अंतेउरं सयलं ॥९४॥ अवि य १ मेवं जे । २ जगकु जे । ३ एरेसा परिहा जे। ४ कह चिय ? भयं जे । ५ तेहिम्वि त सू। ६ एत्थ सुसू । ७ इंदजालम्वा सू । ८ याणिमो जे । ९ अपि च-सू । Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६५ ४ सगरचकवट्टिचरियं । तक्खणवेहव्वागयदोब्बल्लपसाहणुज्झियाभरणा । ओमुयइ पुचणिविडं पि काइ चलवलयसंघायं ॥९५ ॥ रसणादामं कीए वि णिच्छुब्भइ तोडिऊण धरणीए। वियडणियंबुन्भडसाहिकामगयसारसंजवणं ॥९६॥ अणवरयकराहयगरुयणिबिडथणवठ्ठसंठिओ हारो । तह तुट्टो जह खुत्ताऽवसेसवरमोतिओ जाओ ॥ ९७ ॥ खिबई चलचलणखेवेण का वि पुणरुत्तजायदोप्पण्णा(ब्बल्ला)। णेउरजुयलं मिउमंजुसिंजिरं हंसमिहुणं च ॥९८ ॥ मुसुमूरिज्जइ कीए वि सहसा ओसारिऊण कंठाओ । विमलमणिपयणिवेसो वि कंठओ रयणणिम्मविओ ।।९९॥ अणवरयणिन्तणीसासदीणमुहबाहधोयतंबोलो । अहरो हिमहयपंकयगयदलकरणिं समुव्वहइ ॥१०॥ पुणरुत्तजायमुच्छागमेण धरणीए कुन्तलकलावो । घोलन्तो कहइ व वेयणाए दुसहत्तणमउव्वं ॥ १०१॥ इय दुसह-गरुयदुक्खोहजणियतावाहिं रायरमणीहि । तह विलवियं सकरुणं जह रुण्णं सावयगणेहिं ॥ १०२ ॥ एवं कयमहारावे अन्तेउरियाजणे, किंकायब्वमूढे मन्तियणे, वैवगययाववसरे महासामंतजणे, वुण्णे परियणे, विसण्णे सेणेंसिबिरे, खुहिए वणियवग्गे, भणियं मंतिणा सुबुद्धिणा-भो भो सेणावइणो ! महासामंता! किमेत्य णिष्फलेणं विलविएणं ?, जमेत्थ कायव्वं तं तेहिं चेव जीवियमोल्लेणं कयं ति, जओ जलभरियखाइयपरिवेसत्तणओ दुग्गमो जाओ अट्ठावओ, तेसिं च महापुरिसाणं अग्गिदाणमेत्तेणावि अम्हे वगयाऽवसरा संवुत्ता, ता खणमवि इह चिहिउं ण खमं, दिज्जउ अज्जेव पयाणयं ति । तओ 'सव्वाणमणुमयं' ति दिण्णं पयाणयं । आवासिया य विवित्ते पएसे । कयभोयणादिवावाराण य सयरसुयविणासचिन्ताए व विच्छायमंडलो पच्छिमाविलम्बी जाओ दिवसयरो। तयणंतरं च पाणियं पिव दाउं णिब्बुड्डो अवरसमुद्दे । तओ मिलिया सामन्त-महासामन्तसमेया सयलमंतिणो मंतिउमाढत्ता-"कहमेयमसम्भावियउव्वं कज्जं णिवेइज्जउ राइणो ?, जो लज्जाकरमेयं पुरिसाणं जं समीक्वत्ती परो वि अण्णेण ण वावाइज्जइ किं पुण सामिसालो?, कहं वा तस्स वावायगं जीवंतेहिं चेव अण्णस्स साहिजति ?, किंच संसारंतरगयाणं एवंविहाणि विहिणिओएणं कज्जाणि समावडन्ति जाणि ण कहिउं, ण गोविउं, ण हियएण धरिउ पि तीरन्ति । तं किं पि पडइ कज्जं पुन्वज्जियदुढदिव्वजोएणं । मरणे वि जेण गरहा जीयं पुण पावपरिणामो ॥ १०३॥ चिंतेउं पि ण तीरइ किं पुण कहिउँ विसालवंसस्स । भरहाहिवस्स एयं कज्जं हेयदिव्वणिम्मवियं ? ॥१०४ ॥ ता अम्हं पि सई चिय जालोलिकरालिए हुयवहम्मि । जुत्तं पयंगमरणं, ण उणो सुयमरणवज्जरणं ॥ १०५॥ अहवा संपइ किं तेण दुटुकालेण बालचरिएणं ?। भवियब्वमेवमेयं तेसिं णासोऽम्ह गरहा य" ॥१०६॥ एवं च मंतयंताण तेसिं समागओ एगो पविब्वाय[य] वेसधारी बंभणो। भणियं च तेण-भो! किमेवमाउलीभूया तुम्हे ?, मुंचह विसायं, अंगीकरेहे ववत्थंभं, संसारगोयराणं जंतूणं कित्तियं एयं ?, अण्णं च किल 'कहं सट्ठिसहस्साणमेगसमयम्मि मरणं ?' ति विम्हिया तुम्हे एवं पि ण जुत्तं, जो विचित्ता कम्मपरिणई, "तं पत्थि संविहाणं संसारे जंण संपडइ", जस्स जेत्तिया पुत्ता तस्स तेत्तिया विवज्जति, को एत्थ विम्हओ ?, ता तहा अहं साहेमि परवइणो जहा सो वि दुक्खसागराओ अप्पाणं संधारेइ । त्ति भणिऊणं णिग्गओखंधावे(वा)रणिवेसाओ। पत्तो य सयररायहाणि । विष्णाओ य तेण भरहाहिवो सयलसामन्तोववेओ अत्याइयामंडवे सुहासणत्यो चिट्ठइ ति। तओ महया सद्देण भणियं बंभणेणं-भो भो विणिज्जियाऽसेसमहीमंडलदूरणिग्गयपयावरियुगइंददलणेककेसरि ! पणयसुरा-ऽसुर-विज्जाहरिंदमसिणियपायपीढ ! तुह भुयारक्खिओ वि भरहे अहयं मुट्ठो मुट्ठो त्ति, अब्बंभण्णं अब्बभण्णं च - १इ गयचल जे। २ हार इत्यर्थः । ३ व्यपगतप्रतापप्रसरे । ४ षयावावसरे सू । ५ णे सिबिरे सू । ६ किमत्थ जे। ७ तेसि तहावि महा जे। ८ साविलम्बी जे स । ९ 'तीयरो वि स । १० अण्णेण वावा जे सु। ११ हयदेव सू । १२ हऽवत्यंभ, सू। Jain Education Interational Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६ चउप्पन्नमहापुरिसचरियं । घोसियं। तो असुयपुग्वं सयलरज्जे वि सदं सोऊण भणियं भरहाहिवेणं-सिग्धं सदावेह बंभणं, पुच्छह य केण मुट्ठो ?, कहिं वा पएसे ?, किं वा गहियं ? ति। तयणंतरमेव उवरोवरि गया पडिहारा, दिट्ठो बम्भणो, भणिओ य-भो महापुरिस! मा कूवेहि, वाहितो तुम सयलतेलोकरक्षणक्खमेण महाराइणा, ता वीसत्यो होहि, संपण्णं ते समीहियं, पुण्णा मणोरहा, सणियं समागच्छसु त्ति । तओ तमायण्णिऊण सदुक्खं विणिवेसियपयणिक्खेवो पव्वायवयणपंकओ पगलियणयणजुयलो विलुलियसिरोरुहो खामकवोलो पराहीणअंगुवंगो पडिहारदेसियमग्गो पविठ्ठो रायत्थाइयामंडवं बंभणी । भणिओ य राइणाउवविससु त्ति । पणमिऊण य चक्कट्टि उवविठ्ठो पुरओ। पुच्छिओ य राइणा-भट्ट ! किमेवमुश्विगो?, वीसत्थो साहसु, किं ते णटुं ?, किं कंचणं ?, उयाहु माणिकं ?, अहो चउप्पयं दुपयं वा ?, केग वा मुट्ठो ?, किं वा केणइ परिहविओ ?, उयाहु छहापरि किंवा दोगचकलंकदासियो?. अहो धम्मचारिणी पत्थेसि संताणणिमित्तभयं पुत्तजम्मं ?, किंवा कोड तुह सरीरवाही ?, सत्तुणा वा केणइ अभिदुओ ?, दाइओ वा कोइ तुमं कयत्थेइ ?, अण्णं वा किं पि समीहियं ण संपज्जइ ? त्ति. ता साहेस जहट्रियं चेव. जेण तुह विण्णायाऽभिप्पाओ अबणेमि तह सरीरपीडं जहासत्तीए ति । तमायणिऊण भणियं बंभणेण-"महाराय ! सुणसु जमहं विण्णवेमि। तुह पंहु ! पयावपालियभुवणयले वसइ णिव्वुओ लोओ। तत्थ ससंका जायन्ति देव ! सइ लोयपाला वि ॥१०७॥ इय एरिसम्मि भरहम्मि पमुइए जणवयम्मि वसमाणो । पत्तो वसणमसज्झं तमहं साहेमि णरणाह ! ॥ १०८ ॥ अत्थि अवंती णाम जणवओ पमुइओ सव्वोवद्दवरहिओ। तत्थ य आसभद्दो णाम गामो सयलगामगुणकलिओ । तत्थाहं जहुत्तयारी वेयऽज्झयणपरायणो अग्गिहोत्ताइगुणजुत्तो णिवसामि । अण्णया य पुत्तं वंभणीए भलावेऊण गामन्तरं वेयज्झयणणिमित्तं गओ। तत्थ य पढन्तस्स चित्ते अरती समुप्पण्णा । चिंतियं च मए-किमेयमरतीए कारणं ? ति, ता गच्छामि सगिहं । गओ य गेहं जाव दुराओ चेव हयविहयं घरं पेच्छामि । चिंतियं च मए-किमेयं ? ति । पवेसे य फुरियं वामलोयणेणं, मुक्करुक्खे य वाहरइ वायसो । तओ अहं पविट्ठो विमणो णिययभवणं । जाव बंभणी में पेच्छिऊण 'हा पुत्त ! हा पुत्त!' त्ति वाहरन्ती धस त्ति पडिया धरणीयले । तओ मए चिंतिय-विणट्ठो मह कुलबद्धणभूओ सुओ । तयणंतरं च अहं विगयपाणो व्य णिवडिओ धरणीयले । मुच्छाविरमे य काऊण हाहापलावं अकयपाणवित्ती चेव रयणीए णिवण्णो। एत्थंतरे य जग्गंतस्स वि मे णामं गहेऊण भणियं देवयाए जहा-भो भट्ट ! किमेवमुन्धिग्गो पुत्तमरणेणं?, ता संपाडेमि ते पुत्तं जइ मह वुत्तं करेसि। मए भणिय-करेमि जं भयवती किंचि सक्कणिज्जमाइसइ। तो देवयाए भणियं-आणेहि तुरिओ अण्णेसिऊण अगि सोहणाओ घराओ जत्थ ण कोइ गेहे वावण्णो। तो अहं अजायविवेओ अमुणियसक्का-ऽसको सव्वत्थऽण्णेसिडं परत्तो। पुच्छामि य पतिगेहं जाव सबो वि संखादीयाई मरणाई साहेइ । तओ मए आगंतूण साहियं देवयाए जहा-णत्थि चेव संसारे तं भवणं जस्थ मरणाई बहुसो ण जायाई ति । पुणरवि भणियं देवयाए-जइ एवं ता जं णिरुवदवं गेहं तओ आणिज्जउ । ताव 'तारिसं पि णत्थि' पुणो वि मए कहियं । भणियं च देवयाए - कि अत्थि कोइ भुवणम्मि जस्स जायंति णेय पावाई । णियकम्मपरिणईए जम्मण-मरणाई संसारे १ ॥१०९॥ मरणम्मि बंधवाणं लोओ शिंदेइ णवर संसारं । परिदेविऊण सब्बो कुणइ पयत्तेण घरकम्मं ॥११०॥ किं कोइ तए दिट्ठो णिसुओ आसंकिओ व्व हियएण । जस्स ण होहेन्ति जए जम्मण-मरणाई पावाई ? ॥ १११ ।। इय एरिसम्मि पयईए णिग्गुणे दूसहम्मि संसारे । किं जायइ कोइ गुणो साइसु परिदेविएणेत्थ ? ।। ११२ ।। इय एवं [म] भणिऊण सा गया देवया णियं ठाणं । अहमवि परिदेवंती समागओ जत्य तं देव ! ॥ ११३॥ तो अहं महाराय ! हयकयन्तेण मुसिओ कत्थइ परित्ताणं अलहंतो भमिऊण भरहवास वुण्णहरिणो व तुह सयासमागओ, तुम्हं च तं णत्थि जण सिज्झइ, संपयं भुवणविवरे परिब्भमइ तुम्ह अखलिओ पयावो, गया कित्ती दिगन्तरेसु, तुम तेलोक सू। २ रक्खगेण मजे। ३ णो य । भजे सू। ४ रायणा सू। ५ संपज्जेइ सू। ६ वहु ! जे। ७ अग्गिहुत्ता जे। ८ वाइसो सू । होहिन्ति जे। १. सं जुण्ण जे। For Privare & Personal Use Only Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४ सगरचक्कवट्टिचरियं । आणं कुणंति ससुरा-ऽसुर-नर-विज्जाहरिंदा, अपडिहयं पोरुसं, महन्तं बलं, अपरिमियं वीरियं, अपडिहओ जसो, अणुवमो चाओ, असाहारणं सरणागयवच्छलत्तणं, अणण्णसरिसा दीणा-ऽणाहसमुद्धरणसीलया, ता देव ! असरणो सरणागओ देवस्स, दीणमब्भुद्धरणं च सहजायं महापुरिसाणं, तओ काऊण करुणं मह देउ देवो पुत्त्रं ति, अवि य जेऊण हयकयंत मज्झ सुयं देसु देव ! सयराहं । तुह पोरुसं महायस ! जेणाऽमलियं पवित्थरइ ॥ ११४॥ कजं विणा वि भुवणे अब्भुद्धरणं कुणंति जे धीरा । ते वंदणिज्जचरिया वैरपहु ! तुम्हारिसा विरला ॥११५॥ दीणाण समुद्धरणं, भयम्मि रक्खा, गुरुम्मि तह विणओ । दप्पुधुराण समणं, दाणं दारिदतवियाण ॥ ११६॥ सव्वस्स पियंवयया, बंधुसिणेहो कयण्णुया सच्चं । सप्पुरिसाण महायस ! सययं चिय होइ, किं भणिमो ? ॥११७॥ ता महाराय ! कुणसु मह परित्तं पुत्तदाणेणं"। ति भणिए [? भणियं राइणा-] "किं गहगहिओ सि, वायच्छंदिओ सि, उम्मत्तो सि, पराहीणो सि, अण्णायपरमत्यो सि, बालो सि, गयचेयणो सि, जेणेवं वाहरसि ? । सो पत्थि चिय भुवणे वि कोवि जो खलइ तस्स माहप्पं । सच्छंदचारिणो सबवेरिणो हयकयन्तस्स ॥११८ ॥ सीयन्ति सव्वसत्थाई तत्थ, ण कमंति मंतिणो मन्ता । अद्दिठ्ठपहपहरणम्मि तम्मि किं पोरुसं कुणइ १ ॥ ११९ ॥ ण बलेण तस्स केणइ पडियारो, णेय तंतजुत्तीए । आसेहिं रहवरेहिं य, अत्यो वि णिरत्थओ तत्थ ॥१२०॥ इय अप्पडियारे हयविहिम्मि संसारवत्तिणो जीवा । वट्टति तस्स आणाए, एत्थ को कीरउ उवाओ ? ॥१२१॥ किंचजइ तस्स होज्ज एकस्स चेय संसारगोयरगयस्स । मरणं ण उणो अण्णस्स जंतुणो हयकयंताओ ॥ १२२॥ ता जुज्जइ रोयण-पिट्टणाइयं काउमस्स लोयस्स । एकस्स जओ मह परिहवो त्ति सयलम्मि जियलोए ॥१२३॥ अह पुण ससुर-णरा-ऽमर-विजाहर-किष्णरिंदपमुहाण । सामण्णं चिय मरणं ता इमिणा किं पलत्तेण ? ॥१२४॥ मज्झं च भरहखेत्ते सहिसहस्सा सुयाण विहरन्ति । को कुणउ ताण ताणं कवलिज्जन्ताण कालेण? ॥ १२५ ॥ मा रुयसु, मुंच सोयं, कज्जं चिंतेहि, कुणसु अप्पहियं । जाच ण तुमं पि एवं कवलिज्जसि कालरत्तीए" ॥ १२६॥ एयमायणिऊण भणियं बंभणेणं-महाराय ! मह पुत्तसोयाऽभिभूयस्स भोयणं पि ण रोयइ किमंग पुण करणिज्जं । राइणा भणियं-"संपयं चेव तुमए णिवेइयं जहा-सव्वो वि लोओ वचगए बंधुयणम्मि णियकज्जपरायणो चिट्ठइ ति, तुमं पुण एगागी चेत्र किमाउलो सि ?, जओ अवहत्थियसयलवावारो एवं विलवसि । अवि य सव्वस्स वि एस गई होही कालेण जीवलोयम्मि । णियकम्मऽज्जियवसगस्स जंतुणो कि थ रुण्णेणं ? ॥ १२७॥ सव्वस्स एस मच्चू विओयकरणम्मि पञ्चलो धणियं । संजोयं ण उ णो कुणइ पालणं पावपरिणामो ॥ १२८॥ दुक्खं अवणेइ फुडं राया जो तस्स गोयरे पडइ । एसो उण देवेहिं वि ण तीरए णिययमवणेउँ" ॥१२९॥ इय एवमाइ बहुयं भणमाणं चक्कवट्टिणं विप्पो । पडिभणइ सच्चमेयं भरहाहिव ! जं तुमे कहियं ॥१३०॥ णाऊण सव्वमेयं णरवइ ! संसारविलसियमसारं । सोयं णऽरिहसि काउं जमहं साहेमि तं देव ! ॥ १३१॥ एयं कह सद्धेयं सौहिप्पंतं मए वि परणाह !। अहवा तं पत्थि च्चिय संसारे जं न संपडइ ॥१३२॥ हय-गयवर-वररहसंजुया वि ते चेय तुम्ह गरणाह ! । पुत्ता जुगवं पत्ता पंचत्तं विहिणिओएणं ॥ १३३ ॥ एत्यंतरम्मि सामन्त-महासामन्त-मन्तिपमुहा महामंतिणो अण्णे य कुमारासण्णवत्तिणी पाडयाप पच्छाइवउत्तिमंगा विमणदुम्मणा भग्गमच्छरुच्छाहा अकयसरीरपडिकम्मा चिंताभरसीयंतदेहा किंकायब्वमूढा पविठ्ठा राइको अत्याइयामंडवं । पणमिऊण य रायं जहारिहं उवविठ्ठा चलणऽन्तिए। तओ राया अणासंकणीयं असंभावियउव्वं तं वयणमायण्णिऊण, दद्रूण य कुमारपरिवारं दुम्मणं थंभिउ ब्व लिहिओ ब्व मूढो व्व संजायमुच्छागमो व्व चरडिउ व्व णिच्चलणयणो पइक्खणं पडिव १ वरबहु । जे। २ साहिय्यतं जे। ३ णो पड(ड)पच्छा जे।। Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउप्पन्नमहापुस्सिचरियं । ज्जतो मुण्णतणं भणिओ बंभणेणं जहा-देव ! पाययपुरिसो च अवीयपरमत्थो व्य णीओ न्च अमुणियसंसारसहावो ब किमेवमवत्थिी ?, संसारे णिवसंताण केत्तियं एयं ?, ता पुच्छमु को एस वुत्तंतो जेण पुत्ताण चेव सविसहस्सा बलमज्झयारम्मि ठिया वणदवेणेव हयकयन्तेण दड्ढा ?, ता महन्तमेयमच्छरियं पुच्छउ महाराओ। तओ तमायण्णिऊण विमुक्कपाडुयहाहारवं कंदन्तअंतेउरजणं रोयन्तपरियणं विलवन्तवारविलासिणिसमूहं मुच्छिज्जन्तकुमारमायरं विरसन्तकंचुइणियरं धाहावेतपडिहारसमूहं ताडिज्जन्तविलासिणिथणहरुच्छंगं तुटुंतहारं वियलंतरसणं गलंतणेउरं पडन्तकडयं भिजन्तवलयं तोडिजंतसिरोरुहं मुसुमूरिजंतअंगयं मुझंतवावण-खुज्जयं समुच्छलियगुरुहाहारच्छलियपडिरवभरियदसदिसं भरहाहिवो सबलवाहणो पाययपुरिसो व विलविउमाढत्तो, कहं ?-- हा हा अहो ! अकज्जं जं मज्झ सुया हयास ! रे दिव्य ! । सव्वे विपदीवा इव दुण्णयपवणेण विज्झविया ॥१३४॥ कि तेसिं समयं चिय आउणिबंधो ? उयाहु हयदिव्य ! । किमकालमरणसंकालुयत्तणं तुज्झ वीसरियं ? ॥ १३५॥ एकम्मि वि मज्झ सुयम्मि तुज्झ हयपण्णगाऽहिव ! ण जाया। करुणा णिक्करुण! कहं सव्वे च्चिय जेण णिट्ठविया ? ॥१३६॥ दठूण सयलरयणाणि णवर रयणाहिवो उवालभइ । तुम्हेहिं वि मह पुत्ता ण रक्खिया दुट्ठभुयगाओ ? ॥१३७॥ सेणावइ ! तुज्झ बलं देवाण वि पचलं रणमुहम्मि । तं कत्थ गयं संपइ अइविसमे मह सुयाऽवसरे ? ॥ १३८॥ किं ण कया चिय तइया संती तुमए पुरोहिय! विसिट्ठा ? । किं रक्खा ण कय च्चिय वड्ढइ ! तुमए वि पुत्ताण ? ॥१३९॥ गयवइ ! तुमं पि कह णिप्फुरो ब्व जाओ सि मह सुयावसरे ?। णागो समुज्जलंतो किं णागेणावि ण हु णिहओ?॥१४०॥ पवणजवेण वि तए आसरयण ! णिवाहिया कह ण पुत्ता ? । किं कागणिरयण ! तैए ण पडिप्फुडिओ विसहरऽग्गी ॥१४१॥ किं किं ण छिण्णमहिणो सीसं तुमए वि खग्ग ! तव्वेलं ? । दंड ! तुमाहिन्तो चिय एस अणत्यो समुप्पण्णो ॥१४२॥ किं चम्मरयण ! तुमए ण छाइओ विसमविसहरो तइया ? । किं छत्त ! परित्ताणं सुयाण ण तए समायरियं ? ॥१४३॥ महि विवरा णिग्गयमेतविसमणयणग्गिसीसमहिवइणो । किं चक्क ! तइ ण छिण्णं जेण सुया मज्झ णिविया ? ॥१४४॥ एवं च रयणाणि गरहन्तं विलवंतं च भरहाहिवं बम्भणो भणइ-किं महाराय ! संपयमेवमेवाऽणुसासेंतो अम्हारिसाण वि अणुसासणिज्जो जाओ?, अवि य परवसणम्मि सुहेणं संसाराणिच्चयं कहइ लोओ। णियबंधुयणविणासे सबस्स चलंति बुद्धीओ ॥ १४५ ॥ धी ! संसारो, जहियं उवइसइ जणो परस्स वसणम्मि । सो च्चिय तव्वेलं चिय रुयइ सकरुणं रुयातो ॥१४६॥ तुम्हारिसा वि पुरिसा जइ [? य] णिसुम्भंति दड्ढसोएणं । ता कत्थ थिरं होही धीरत्तमणिदियं भुवणे ? ॥१४७॥ किं पम्हुट्ठो सि तुमं जं संपइमेव तइ समाइट ? । 'हयविहिवसगेण जए जह सुयसोओ ण काययो' ॥ १४८॥ एक्कस्स वि सुयरयणस्स मरणदुक्खं तु सहिउमसमत्थो । किं पुण सहिसहस्साण सज्झमेयं महाराय ! ? ॥ १४९ ॥ किंतु महावसणेणं णिचं णिव्वडइ सत्तगुणसारो । वज्जणिवाए वि पडिच्छिरस्स गिरिणो व्य माहप्पं ॥१५०॥ वसणम्मि ऊसवम्मि य एकसहावा हवन्ति सप्पुरिसा। जारिसओ च्चिय उयए अत्थमणे तारिसो सूरो॥ १५१ ।। सप्पुरिस च्चिय वसणं सहन्ति गरुयं विणिग्गयपयावा । धरणि चिय सहइ जए वज्जणिवायं ण उण तंतू ॥ १५२ ।। 'होइ गरुयाण वसणं ण उणो इयराण' सुप्पसिद्धमिणं । ससि-मूर च्चिय घेप्पंति राहुणा ण उण ताराओ ॥१५३॥ सप्पुरिसि च्चिय णिव्वडइ आवया ण उण पययपुरिसम्मि । लक्खिज्जइ मलिणं ससहरम्मि ण उणो विडप्पम्मि ।। १५४ ॥ कुणइ वियारं कालो वि णेय पुरिसाण गुणमहग्याण । सिसिरत्तणं ण सिसिरो वि कुणइ जलणस्स पहवन्तो ॥१५५॥ ... १ अविइथपरमत्थो अवीयपरमत्थो, अविदितपरमार्थः । २ कयं जे सू । ३ तए न य पडिखलिओ जे। ४ विवरणि जे सू । ५ सकलुण रुआतो जे। ६ सच्चमेय जे सू । ७ उदए जे। Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४ सगरचक्वट्टिचरियं । ६४ वसणम्मि समावडिए पयई ण हु कह वि सुपुरिसो मुयइ । राहुमुहगहियमुक्को वि तबइ सूरो धरावीदं ॥ १५६॥ इय मुणिऊण महायस ! संसारं विरसदुग्गममसारं । चइऊण सोयपसरं धीरा ! धीरत्तगमुवेहि ॥ १५७ ।। तुम्हारिसाण वरपहु ! सुमुणियसत्थऽत्थवित्थरऽत्थाण । मोत्तूण णियविवेयं को अग्गो देउ उवएसं ? ॥१५८ ॥ इय एवं भणिऊणं बंभणेण भणिओ महामन्ती जहा-साहसु जहट्टियं वुतंतं महारायस्स । तयणंतरं च सुबुद्धिणा उहिऊण विण्णवियं जहा-"देव ! सुणमु विष्णत्तियं' ति भणिऊग साहियं जहट्ठियं गिरवसेसं जहा अट्ठावयस्स खया खाइया, जहा य गंगा पवाहिया, जहा रूसिऊण भुयंगाहिवइणा गयणऽग्गिणा दड्ढा सैहि पि सहस्सा तुम्ह पुत्ताणं, ता महाराय ! तत्थ ण बलं, ण आउहं, ण मन्तो, ण तन्तो, ण विजाइयं अण्णं पि किंपि पहबइ त्ति, एवं च ववत्थिए जमम्हेहि कायव्वं तमाइसउ देवो, जओ देव ! ण जुत्तमम्हाणमेरिसं साहिउं । ण हि मरणमन्तरेगमम्हाणं सुद्धी होइ त्ति । ता केण उण मरणेणमेस कलंको समोसरइ ?, वियारिऊण सयमेव देवो समाइसउ । देवस्स उग सोओ ण काउं जुत्तो, जओ समवत्ती एस जमो, एयस्स ण वल्लहो जए कोइ। वेसो वि णस्थि सुपुरिस ! सदेन- मणुया-ऽसुरे लोए ॥१५९॥ णावेक्खइ एस बलं, ण दुब्बलं, णेय ईसरमणड्ढं । ण य विउसं, ण य मुक्खं, ण य सयणजुयं, ण एगागिं॥१६०॥ ण जुवाणं, ण य बालं, ण परिणयं, णेय मज्झिमं, ण खलं। ण य सजगमवि मुंचइ पावमई रोदपरिणामो ॥१६१॥ संपज्जन्तसमी हियकजाण वि एस सयल देवाण । अवहरइ जीवियं, माणुसेहिं किं कीरइ इमस्स ? ॥१६२ ॥ विहिणो वसेण वटुंति देव ! देवा वि देवलोयम्मि । 'अमर' त्ति णाममेत्तेग, जेण आउक्खयमुवेति ॥ १६३॥ विहडन्ति चंडमारुयपणोल्लिया गजिऊण घगणिवहा । उज्जोविऊग णासइ तव्वेलं चेत्र विज्जुलया ॥१६४ ॥ सुरवइचावं वियलइ खणमेत्तं भूसिऊण गयणयलं । संझा वि तक्रवणं चिय फिट्टइ कालाणुभावेण ॥ १६५ ॥ पयडेइ ससहरो च्चिय अणिच्चयं तिहयणस्स तदियहं । वोलेंति जस्स विवहा एकसरूवेण ण ह दो वि॥१६६॥ सूरस्स वि धरणि-णहंतरालविप्फुरियगरुयतेयस्स । एकदिणे च्चिय णिययं उदय-ऽयमणाई जायंति ॥ १६७ ।। इय जाणिऊण सयलं संसारमणिच्चयाए बहु ! गहियं । उवसमसु मुंचसु धुर्व सोयं भवकारणमणिलं ।। १६८ ॥ किंचजो एस देव ! सोओ सो सोओ सयलपायपमरस्स । अबु हेहि सयाऽऽयरिओ परिहरिओ पंडियजणेणं ॥ १६९ ।। वाहीण परं ठाणं, मूलं अरतीए, सोक्खपडिवावो । अण्णाणपढमचिं, णरयदुवारं गुणविणासो ॥ १७ ॥ बाहेइ सयलकज्जाइं एस, परिहरइ उत्तमविवेयं । धम्म-ऽत्थ-काम-मोक्खाण विग्घहेऊ महापावो ॥ १७१॥ अवहरइ ठिई, परिहरइ पोरुसं, चयइ कुलववत्थम्भं । सोयमहागहगहिओ पुरिसो किं किं ण आयरइ ? ॥१७२॥ धीरत्तणं पिछड्डिन्ति, देन्ति दुक्खस्स णवरमप्पाणं । कज्जा-ऽकजं ण मुणंति सोयगहिया जए पुरिसा ॥ १७३॥ ते णवर महापुरिसा जे य अणजेण सोयपसरेण । ण वसीकया कयाइ वि जाणियसंसारपरमत्था ॥ १७४॥ सोएण समं ण वसंति देव ! लच्छी जसो य कित्ती य । सोक्खं च रई लीला विसएसु मणो णिरावरणो ॥१७५॥ इय चयसु सोयपसरं, णरवति ! चिन्तेसु सयलकम्माइं । सोयावण्णेण तए भरहं दीणतणमुवेइ" ॥ १७६॥ एवं सुबहुमणुसासिऊण मन्तिणा पुणो भणियं जहा-“देव ! तं गस्थि जं ण जाणसि तिलतुसमेत्तं पि तिहुयणे देव !। तह वि किल किं पि भण्णसि ‘सोयावत्थं ति' कलिऊण ॥१७७।। खरपवणपहयकुवलयदलजललवतरलचंचलतरेसु । संजोय-जीय-जोव्वण-धणलव-णेहेसु को सोओ ?" ॥ १७८ ॥ १ सो हणइ जे । २ सटिम्पि सु । ३ जमम्हेयं का सू। ४ सुवुरिस ! जे । ५ 'मणठे जे सू। ६ जुवाणं जे । ७ दियहा जे । ८ "मणादि सू । ९ विधेय सू । १. मेलम्पि सू । Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउप्पन्नमहापुरिसचरियं । तो तमायण्णिऊण भणियं भरहाहिवेणं-" सच्चमेयं जं तुम्हेहि वुत्तं । असारो चेव एस संसारो, जओ सुमिणयसमा बंधुसमागमा, गिरिणइपूरसमाणं जोवणं, छायासमा लच्छी, कुसग्गजललवचंचलं जीवियं, सक्कचावसच्छहो पेमाणुबंधो, माइंदजालसण्णिहो कुडुम्बसण्णिवासो, गयकण्णचंचलो विहवसारो । ता जाव ण उत्थरइ जरपिसाइया, जाव ण वसीकरेइ मच्चुवेयालो, जाव य पयतितरला ण दंसेइ वियारं रायलच्छी, जाँव य ण परिहायइ इंदियप्पसरो, जाव ण छहुँति विसया, जाव य वसे वट्टइ सरीरयं, ताव य विवेइणा चइऊण सयलमण्णं अणवरयं कायव्यमप्पहियं । ण य धम्मऽणुट्ठाणं मोत्तूण अणं अत्थि अप्पहियं, जओ णिग्गुणो एस संसारो, समासण्णाओ आवईओ, सयासण्णिहिओ मच्चू, दारुणो विसयपरिणामो, विसमा कम्मपरिणई, घोराओ गरयवियणाओ । अपरिचत्तविसयाणं च पाणिणं अवस्सं णरय-तिरिएसु वासो, णिस्संगाणं च सग्गा-ऽपवग्गेसु । सबस्स वि अवस्संभावी विओओ रायलच्छीए विसएहि य । ता जाव ण छड्डेति ता वरं मुक्काइं एयाई । परकीएमु य एएसु को पडिबंधो ? । ता ठविऊण भागीरहं रज्जे करेमि महापुरिससेवियं धम्म, चएमि अथिरं असारं अपरिच्चयं रायलच्छि, जाव अम्हे वि अखलियगतिपसरो ण संभालेति मच्चू"। इय एवं जाव वेरग्गमग्गमणुसरंतो णिविण्णसंसारवासो राया अप्पाणमणुसासेंतो संसारसहावं, पणइबग्गस्स 'तुम्हाणं पिवयगहणणं चेव सोही होहि' त्ति भणंतो जाव चिहइ ताव अट्ठावयसमासण्णजणा हाहारवं करेंता संपत्ता रायंगणं । भणियं च तेहि-महाराय ! परित्तायाहि परित्तायाहि । तओ तमायष्णिऊण भणियं राइणा-किमेयंति। तयणंतरं च पडिहारेहिं पवेसिया गामलोया। णिवेइयं च तेहिं पायवडणुट्टिएहिं जहा-देव ! जा सा खाइया कुमारेहिं भरिया उदयस्स तमुदयं तत्थ अमायन्तं पासेसु विसप्पिउमारद्धं, भरिऊण खाइयं थलपहेसु वियंभिउं पयट्ट, तेण य वियम्भमाणेणं खाइयाऽऽसण्णगामणगराइ सव्वमाउलीकयं, तओ तं देवो चेव परं णिवारेइ, ण अण्णो'त्ति कलिऊण आगया देवचलणन्तियं, अणिवारिजंतं च बहुं विणासेइ, तओ दयं काऊण तं णिवारेउ देवो ति। तओ पुत्तपुत्तस्स भागीरहस्स दिण्णो आएसो भरहाहिवेण जहा-वच्छ ! जणाणमाउराणं करेहि परित्ताणं, दंडरयणेणं णेहि जलोहं सायरं, रक्खंतो णगर-णिवेमुजाण-दीहिया-पुक्खरणाइयं भवणवासीणं च भवणाणि, दिट्ठो य पमायाऽऽचरणविवागो वच्छेणं, तओ सव्वकज्जेसु अप्पमाइणा होयव्वं, देवदाणविंदाणं उवरोहपरेण होयचं ति । एवमाइ बहुं अणुसासिऊण पेसिओ भागीरहो। णिम्गओ य भरहाहिवं पणमिऊण, 'महापसायं च भणिऊण, पडिच्छिऊण य आणत्तियं सिरेणं ति । पुणो विणयगाहणत्यं सहाविओ सयरेणं भागीरहो। पविट्ठो रायसयासं । पुणो पणमिऊण उवविठ्ठो चलणन्तिए । भणिओ य सयरेण जहा-"ते वच्छ ! सुकुलुप्पत्ती पहुत्तणं विहवो अहिणवजोन्वणं, अणण्णसरिसा रूवसंपया, कलासु पगरिसो, सस्थऽस्थपारगत्तणं, आउहेसु कुसलत्तणं, दढपहारित्तं, अणुवमं वीरियं, अणण्णसरिसं पोरुसं, णिग्गयपयावत्तणं, एयाणमेगं पि उम्मग्गपवत्तणसमत्थं, किं पुण समवाओ ? । एयाणि ते सव्वाणि समुइयाणि । जहा एएहि ण मुठ्ठ वसीकीरसि तहा जइयव्यं । अवि य उत्तमकुलप्पसई, रूवं रमणीण हिअयमुकुमालं । सत्थऽत्थखेयखिण्णा मती य, भुयबलमलं वच्छ ! ॥ १७९ ॥ तिहुयणसलाहणिज्जा लच्छी, आणा य णरसिरुव्बूढा । एयाणेक्ककं पि हु सुदुजयं, किं पुण समूहो ? ॥१८०॥ सूर-ऽग्गि-रयणतेयाऽविणिजिओ दूरवियरियपयावो । जोव्वणतमो वियम्भइ मोहसहाओ धरणिमग्गे ॥ १८१॥ जो उण सयलणरीसरपरिणामाऽसज्झदारुणो सुवणे । लच्छीमओ महायस ! पुरिसं लहुएइ सयराहं ॥ १८२॥ पुक्कयकम्मपरिणइवसेण विहवो कुलं बलं रूबं । एयाइं कह वि जायन्ति जइ वि गुणिणो गुणा ण उणो ॥१८३॥ चइऊण गरुयदप्पं विणयं सिक्खेसु, णम्मयं भयम् । विणओणयाण पुत्तय ! जायंति गुणा महग्धविया ॥ १८४॥ विणयुज्जुयाण कित्ती विउसाऽऽणणपहयसद्दजयपडहो । धम्मो अस्थो कामो कलाओ विज्जा य विणयाओ ॥१८५ ॥ विणएण लष्भइ सिरी, लद्धा वि षलाइ दुग्विणीयाण । णीसेसगुणाहाणं विणओ चिय जीवलोयम्मि ॥ १८६॥ इंदियजएण विणओ, विणएण गुरू, तओ वि सत्थऽत्यो। तत्तो वि गुरुविवेओ कज्जा-ऽकज्जेसु होइ फुडो॥१८७॥ होन्ति विवेएण गुणा भुवर्णेभितरविढत्तमाहप्पा । गुणवन्तयम्मि जायइ जणाणुराओ असामण्णो ॥१८॥ ५ पेम्मा जे । २ जाव ण सू । ३ यवेयणाओ जे । ५ णा-कि किम जे। ५ णमंतर जे। Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४ सगरचक्रवटिचरियं। तं णस्थि जं ण सिज्झइ जणाणुराएण तिहुयणे सयले । तम्हा सिक्खसु विणयं कल्लाणपरंपरामूलं" ॥१८९॥ एवमादियमणुसासिऊग भागीरहे, गिदिऊण लच्छी, पसंसिऊण विणयं, कहिऊण पमायाचरणविवागं, भरहाहिवेण पेसिओ भागीरहो समप्पिऊग दंडरयणं, भणिओ य-एएण दंडरयणेण काऊण पवाहं णेहि जलसंघायं समुदं ति। तओ काऊण पणाम पडिच्छिऊण आणं णीसरिओ भागीरहो । पत्तो य अणवरयपयागएहिं अहावयं । पणमिओ दूरत्येण चेव अट्ठावओ। दाऊण णागाण बलिविहागाइयमणुजाणाविऊण गंगं दंडं गहेऊण को जलपवाहो । तओ दंडखायाणुसारेण पयट्टो खाइयाभरिउच्चरिओ गंगाजलप्पवाहो सायराभिमुहं । तओ सा गंगा हिमवंतकुलपवयाओ पत्थिया, सेयकूडगिरि भिंदिऊण गिग्गया, गंधमायणमुलंघिऊण पयट्टा दंडकयपहेण भागीरहेण सायरं पराणिया । दछृण य अट्ठिसमूहं णागकोवऽग्गिदड्ढसेसं भागीरहो गंगाजलप्पवाहेण सायरं पराणेऊण चिंतेइ-अहो ! मए सोहणं कयं जं मयसरीराणं अट्ठीणि गंगापवाहेण सायरं पराणियाणि, अण्णहा ढंक-कागाइएहिं चलण-चंचूपहारेहिं असुइट्ठाणेसु बहुएसु घोलन्ताई लैहुत्तणं पियामहस्स संपाडेंति । एवं च चिंतयंतो तण्णिवासिणा जणेणं जलावायविमुक्केणाऽभिणंदिओ। गंगा पढमं जण्हुकुमारेणं आणिय त्ति जण्हवी, तओ भोगीरहेण समुदं पाविय त्ति भागीरही भण्णति । सयरसुयअहिपवाहपसिद्धीए य लोओ तह चेव अट्ठियाई पवाहेइ । सुसायुसलिलत्तणेण य सेवणिजा बहुयाण जाय त्ति । एवं च भागीरहो पाविऊण सायरं गंगाजलपब्भारं, णिवविऊण अट्ठावयपव्ययाऽऽसण्णलोय, काऊण गंगाए लोयपसिद्धिं, समागओ सयरपियामहस्स सयासं। पणमिओ य भरहाहियो। तेण वि य जाणिऊण रजपालणसहं वसुंधराधरणसमत्थं च भागीरहं, मंतिऊण सामन्त-महासामंतेहिं सद्धिं, अहिसित्तो रज्जे भागीरहो। अप्पणा य मुणिऊण संसारासारत्तणं, अवलोइऊण कम्माण विसमत्तणं, बुज्झिऊण कडुयविवागत्तणं विसयाणं, जाणिऊण अथिरतणं रायलच्छीए, सुठियायरियसयासे कुमारसहगयमहासामन्तेहिं सद्धिं गहिया णीसेसकम्मणिज्जरणभूया मोक्खणयरपउणपयवी कुगइगमणमग्गग्गला सग्गारुहणसोवाणपंती मुकुलुप्पत्ति लयाअमोह बीयभूया पधज्जा। अहिजियाणि बारस वि अंगाणि । दसविहं च समणधम्मं अब्भसिऊण तिगुत्तिगुत्तो पंचहि समीहिं समिओ जहुत्तविहारेण विहरिऊण, उप्पाडिऊण तीया-ऽणागयपयस्थुब्भासणं सासयमेगविहं केवलवरणाण-दसणसरूवं दिव्वं गाणं, णाऊण य आउयसमहिआई भवोपग्गाहीणि वेयणीय-णाम-गोत्ताई, तओ गंतूण समुग्घायं आउअसमाणीकाऊण वेयणीयादीणि कम्माणि सेलेसीविहाणेणं अजरअमर-अणाबाह-अणंतसोक्खं मोक्खं पत्तो ति । इति महापुरिसर्चरिए बीयचक्कवहिणो सयराहिहाणस्त चरियं समत्तं ॥४॥ Jain Education intam लच्छि जे । २ णीहरिओ जे । ३ लहुयत्तणं जे । ४ सुसाउस जे । ५ समिईहि-समीहि, समितिभिः । परिते जे । Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [५ संभवतित्थयरचरियं] उप्पजन्ति पयाणं पुण्णेहि महीए के वि सप्पुरिसा। कप्पतरुणोकुरा इव हियइच्छियदिण्णफलणियरा ॥१॥ अत्थि जम्बुद्दीवदाहिणड्भरहमज्झखंडम्मि जणमण-णयणहारिणी फरिहासमेया महासालोक्सोहिया तुंगरयणभवणमालालंकिया सुविहत्ततिय-चउक्क-चच्चरा पगट्टसयलोबद्दवा, अलद्धपसरेहिं कुबुरिसेहिं परिहरिया, सया रयणप्पहोहामियकालवक्खतिमिरपहावत्तणओ कुसीलाहिं दुरुज्झिया, जुवागरूबोहामियमयरद्धयाऽलद्धप्पसरा, अप्पत्तावयासेहिं दोसेहिं अण्णस्थ सावयासेहि वजिया. सयलणायरप्पमाणेण गुणगणेणाऽहिटिया सावत्थी णाम णयरी। तत्थ जहत्थणामो विजियारी णाम गरवई सया मुईओ य परिवसइ सयलमहिमंडलस्स परिपालणसमत्थो । तस्स य पुँहविसवत्ती सेणा गामेण रायवरमहिसी । रूव-गुणाऽऽवज्जियसयलपरियणा भत्तुणो दइया ॥२॥ ताण अण्णोण्णाणुरायवड्ढन्तपेम-धीसम्भ-पणयाणं रायसिरीमणुहवंताण वच्चन्ति दियहा, सरति संसारो। इओ य धायइसंडे दीवे एरवए वासे खेमपुरी णाम णयरी । विउलवाहणो णाम राया। तेण महादुभिक्खम्मि सवालवुड्ढस्स संघस्स असणाइणा उवग्गहं काऊणं उवज्जियं तित्थयरणामकम्मं । पुणो मुणिऊणाऽसारं संसारं, गयकण्णचंचलं जाणिऊण रायलच्छि, उज्झिऊण भोए, सयंपभायरियसमीवे काऊण महापुरिससेवियं कम्मणिज्जरणहेउभूयं फबज्ज, पोसिऊण वीसाए अण्णयरेहिं ठाणेहिं तित्थयरणामकम्मं आउJअवसाणे य आणयकप्पम्मि उववण्णो । तत्य य उवभुंजिऊग भोए आउयमणुवालिऊण फग्गुणसुद्धष्टमीए मिगसिरणक्खत्तेण चुओ सेणाए कुच्छिसि समुववष्णो । तीए चेव रयणीए सेणा महादेवी सुहपसुत्ता पासिऊण गयादिए चोइस महामुमिणे विबुद्धा समाणा साहेइ जहक्कम दइयस्स । विजियारिणा य समासासिया जहा-'पिए! गम्भम्मि तुज्झ पसयच्छि ! पेच्छणिज्जो सुराण वि महप्पा । होही सो णवर सुओ जस्स गुणा जयमहग्यविया' ॥३॥ वड्ढन्तयम्मि गन्मम्मि जम्मि भवणम्मि वरणिहाणाणं । रट्टम्मि पुरवराण य सुहाण तह संभवो जाओ ॥४॥ तओ णवसु मामेसु पडिपुण्णेसु अट्ठमेसु राइदिएमु मग्गसिरसुद्धऽद्यमीए मिगसिरणक्वत्ते सुहंसुहेणं सयललक्खणोववेयं सेणा महादेवी दारयं पसविया। चलियासणागएण य सोहम्माहिवइणा पुनक्कमेण को मेरुसिहरम्मि जम्माहिसेओ महया विच्छड्डेणं ति। काऊण य अहिसेयं देविंदो चउणिकायपरियरिओ। कुंडलजुवलाऽऽहरियं पच्छा जणणीए अप्पेइ ।। ५॥ पेच्छइ य तो जिगिंदं णिद्दाविरमम्मि सा अलंकरियं । तुट्ठा साहइ पइणो रूवा-ऽलंकारविम्हइया ॥६॥ णिज्जियसयलसुरा-ऽसुर-णर-विज्जाहरमणोहरं रूवं । दळूण परं तोसं समागओ जिणवरस्स पिया ॥७॥ तओ पसत्य तिहि-णक्खत्ते गुणणिप्फण्णं भगवओ णामं कुणति । 'गब्भत्थे जिणिंदे णिहाणाइयं बहुयं संभूयं, जायम्मि य रज्जस्स सयलस्स वि सुहं संभूयं' ति कलिऊण संभवाहिहाणं कुणति सामिणो । कयाइं जहोचियाइं करणिज्जाई। १ लजणाऽऽयर सू । २ ओ परि सू । ३ पुहवीसवत्ती सेणा णाम राय जे. सू । ४ गाइउ जे । ५ 'यसा(स्सा)वसाणे सू। ६ मणीरम जे। Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५ संभवतित्थयरचरियं । अह भगवं पि पंचधाइसमेओ वड्ढि पयत्तो । तिहि य णाणेहिं जाणइ जहिट्ठिए सव्वपयत्थे तहा वि 'लोयडी लंघणीय' त्ति काऊण कलायरियं बहुमण्णेइ । परिणाविओ पिउणा रूत्र-कुलोववेयं दारियं । ७३ भगवं पि सम्भवजिणो अजियसामिणो सागरोवमाणं तीसेहिं लक्खेहिं कोडीणमतिगएहिं समुप्पण्णो । तस्स य आउयं सद्धिं पुव्वलक्खा । तस्स य पंचदस पुव्वलक्खे कुमारभावमणुपालेंतस्स पिउणा रज्जं दाऊण सकज्जमणुट्टियं । तओ भंगवया लोगट्ठीमणुपालेन्तेण चोयालीसं पुब्बलक्खे चउरंगहिए रज्जं पालिऊण समुइष्ण तित्थयरणामकम्मुणा लोयंतियपडिबोहिएणं दिष्णसंवच्छरमहादाणेणं लोयहियत्थं मग्गसिरपुण्णिमाए मिगसिरसैमीवचारिणि ससहरे कम्मसे लवज्जासणिभूया सयलसुरासुर गरिंदसमक्खं छट्टभत्तेणं णरवतिसहस्ससमेएणं गहिया पव्वज्जा सहसंबवणुज्जाणम्मि पच्छिमॅपोरुसीए । ओ भगवं गहियमूणओ । जहुत्तविहारेणं चोद्दस वासाई विहरिऊण कत्तियबहुलपंचमीए मिगसिरजोएणं सरलपायवस्स अहे उप्पाडियं दिव्वं गाणं । केरिसं ?-- एगं कप्पियभेयमप्पडिहयं सव्वण्णुचिंधं फुडं, सव्वेसिं च तमाण णासणपरं लोयाण जं लोयणं । जायं पासति बुज्झती य सययं णाणाविहाणि धुयं, उप्पाय-ट्टिइ-णासवंति विउलं दव्वाणि जं केवलं ॥ ८ ॥ तयणंतरं च चलियं सीहासणं सोहम्माहिवइणो । संखुद्धेण पउंजिओ ओही । विष्णायं जहा - भरहवासम्मि संभवजिर्णिदस्स उप्पण्णं दिव्वं गाणं । तओ घंटापओएणं बोहिया सुरा । समागओ य ते घेत्तणं भगवओ समीवं । विरइयं समोसरणं, कहं ? ति तत्थ वाउकुमारेहिं जोयणंतरं भूमिपए से अवणियं तण सक्कराइयं, कओ य समो भूमिभागो । पुणो मेहकुमारेहिं सुरभिणा सलिलेण पसमिओ रयुग्याओ, मुक्का य पंचवष्ण बिंट द्वियकुसुमबुद्धी । विरइयं कलधोय - चामीयर - रयणमयं वरपागारतियं, अंतो य चउम्मुहं सीहासणं । बाहिं च महंतो धम्मज्झओ धम्मवरचकं च । तओ भयवं पविसइ पुव्वदुवारेणं तियसिंदपडिहारपडिहयसम्मद्देणं, पयाहिणीकाऊण सीहासणं, भणिऊण य 'गमो तित्थस्स' उवविसइ पुव्वाभिमुहो । सेसासु य दिसासु तप्पडिरूवाणि हवन्ति तिष्णि रुवाणि । पव्वावियं भगवया दुरुत्तरं सयं गणहराणं । तओ तयणंतरं च पुव्वदुवारेण पविणि पुव्वदाहिणाए अग्गेईए दिसाय पढमगणहरो केवल -मणपज्जव - ओहिणाणिणो चोद्दस पुव्वधरा सेससाहू, तेसिं पिओ कप्पवासिदेवीओ साहुणीओ य हियाओ । पुणो दाहिणदारेण परिसिऊण दाहिणपच्छिमाए रइयदिसाए भवणवइ-जोइसिय-वाणमन्तरसुराणं देवीओ धम्मक हाखित्तहिययाओ ठियाओ । पुंणो अवरदुवारेण पविसि - ऊण पच्छिमुत्तराए वायव्वाए दिसाए भवणवइ - जोइस वाणमंतरदेवा भगवओ वाणिमुइयहियया चिद्वंति । तओ उत्तरदारेण पविसिऊण पुव्युत्तराए ईसाणीए दिसाए कप्पवासिदेवा णरगणेहिं णारीजणेण य धम्मसवणणिमित्तं ठाणमभिगय त्ति । एवं चउसु विदिसासु तियं तियं पट्टियं । तओ भगत्रया पत्थुया धम्मकहा, जहा जीवा मिच्छत्ता-ऽविरति पमाय कसाय- जोगेहिं बंधिऊण अट्ठविहं कम्म संघायं हिंडति चाउरंत संसारकन्तारं, जहा य सम्मत्त णाण- दंसण-चरणेहिं गच्छन्ति गिराबाहलक्खणलक्खियं मोक्खं ति । तमायणिऊण भणियं पढमगणहरेणं- भयवं ! केरिसं मिच्छत्ताइयं संसारकारणं ? ति । तओ भयवया भणियं तत्तेसु मिच्छत्ताभिणिवेसो मिच्छत्तं तच्च अभिगहिया ऽणभिग्गहियभेयभिण्णं, मिच्छत्तपुग्गलोदयजणिओ चित्तपरिणामो । कागमसाइएस विरइपरिणामाभावो अविरती, अपञ्चक्खाणकसाओदयकसायजणिया चित्तपरिणई । पमाओ १ लोयट्ठिई = लोयट्ठी, लोकस्थितिरित्यर्थः । २ भगवा हो सू । ३ लोगट्टिइम जे । ४ समीवेचा सू । ५ पोरिसीए जे । ६ विहाणेण चोदस वाससयाई वि सू ७ चऽसमाण नासणयरं जे । ८ जोवणं जे सू । ९ पुव्वं सू । १० पुण जे । ११ मुत्तरवाय जे सू । For Private Personal Use Only Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउप्पन्नमहापुरिसचरिय पंचहा, तं जहा-मज्जपमाओ विसयप्पमाओ केसाया विगहा णिद्दा । कसाया कोह-माण-माया-लोभा। जोगो तिहा[मणजोगो वइजोगो कायजोगो य । ] मणजोगो चउहा, तं जहा-सच्चमणजोगो असच्चमणजोगो सच्चाऽसच्चमणजोगो असच्चा-ऽसच्चमणजोगो । एवं चिय वइजोगो वि सच्चाइओ चउहा । कायजोगो सत्तविहो, तं जहा-ओरालियकायजोगो ओरालियमिस्सकायजोगो वेउव्वियकायजोगो वेउब्धियमिस्सकायजोगो आहारगकायजोगो आहारगमिस्सकायजोगो कम्मइयकायजोगो त्ति । एवं पण्णरसविहेणं जोगेणं मिच्छत्ताइबंधकारणसमेएणं जीवा बद्ध-पुट्ठ-णिकाइयकैम्म णिवत्तंति । एवं सामण्णपच्चयबंधो। विसेसबंधी उण एसो-णाणीण दंसणीण य पडगीययाए, तहा णाणंतराएणं दंसणंतराएण य, णाणोवधाएणं दंसणोवघाएण य, णाणस्स तह दंसणस्स य णाणीण दंसणीण य पओसयाए, णाण-दंसणणिण्हवणेण य भूयो भूयो कीरमाणेणं णाणदेसणंतराइयाई दुवे वि कम्माइं अचासणाए बंधइ। भूयाण गिरणुकंपो णिस्सील-व्यओ कोहणसीलो दाणज्झवसायरहिओ गुरुपडणीओ अंसायावेयणिज्जं कम्मं समुच्चिणइ । एस एव विवरीयगुणकलिओ सायावेयणिज्ज कम्मं बंधइ । अरहंताणं सिद्धाणं चेइयाणं तबस्सीणं सुयस्स गुरूणं साहूणं संघस्स पडणीययाए देसणमोहणीय कम्मं बंधइ, जस्स उदएणं अणंतं संसारकन्तारं परियति त्ति । तिव्वकसायुक्कडो बहुमोहपरिणओ राग-दोस-कमायमंजुओ चारित्तमोहणीयं कम्मं बंधइ दुविहचरित्तगुणघाति । अचंतमिच्छाइट्ठी महारंभपरिग्गहो तिव्वलोहो 'स्वालवा पावमई महारोद्दपरिणामो णिरयायुयं णिबंधइ । उम्मग्गदेसओ मग्गणासओ गूढहियओ मायावी ससल्लो तिरियाउयं णिबंधइ । पयतीए तणुकसाओ दाणरुती पयइभद्दओ सील-संजमविहूणो मज्झिमगुणेहि कलिओ मणुयाउयं णिबंधइ ति । बालतवेण अकामणिज्जराए अणुव्वयमहव्वएहिं सम्मईसणसमेओ जीवो देवाउयं कम्मं णिवत्तेति त्ति । मण-वयण-कायवंको मायासीलो तिहिं गारवेहि पडिबद्धो असुहणामकम्मं बंधइ त्ति । तप्पडिवक्खेण सुहं बंधइ त्ति । तित्थयर-पवयण-गुरु-साहूणमवण्णवादी माणथद्धो जातीमयपरायणो परपरिभवणसीलो अत्तुकरिसणरुई णीयागोयं कम्मं बंधइ । तप्पडिवक्खसेवणपरायणाए उच्चागोयं कम्म समज्जिणति । पाणवहाइसु रओ सन्चस्स विग्घयारी लाहविग्यायहेउभूयं अंतरायं समज्जिणइ । तस्स पुण अट्ठपयारस्स कम्म[स्स] बंधगा आउqधकालम्मि जीवा हवंति, अण्णया य आउयवजाणं सत्तण्हं कम्माणं बंधगा। मोहस्स बंधे ववगए छबिहबंधगा। केवलिणो उवसंतमोहा खीणमोहा य एगविहबंधगा। __ एवं भगवया परूविऊण कम्मणियाणं, पडिबोहिऊण भवियकमलायरे, विहरिऊण भरहखेत्तं, जणिऊण जंतूण सम्मत्तं, उवसामेऊण चरित्तमोहणीयं, आउयसेसमवगच्छिऊण संपत्तो सम्मेयसेलसिहरं । तत्थ य मासं पाओवगओ सेलेसीविहाणेण खविऊण चत्तारि भवोपग्गाहीणि कम्माणि चेत्तस्स सुद्धपंचमीए मियसिरजोयजुत्ते मियंके समणसहस्ससंजुओ अव्वाबाहं सुहमणुपत्तो त्ति। ववगयभवजालो दुट्टणट्ठाऽवबंधो, सयलजयसमग्गं पत्थिओ सुद्धभावो । विमलगरुयरूवं णाणमासज्जऽणन्तं, विगयसयलदेहो तक्खणेणं पि सिद्धो ॥९॥ त्ति इति महापुरिसचरिए संभवतित्थयरचरियं सम्मत्तं ति ॥५॥ १ कसाय-विगहाओ निद्दा जे । २ गो ति । एजे। ३ कम्म णिव्वतंती जे सू। ४ भूयाणु णि जे सू। ५ असायवे सू। ६ राग-दोस जे। ७ चरित सू । ८ माणबंधो जा सू । ९ पाणिव जे । १. 'तं जे। Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [६ अभिणंदणसामिचरियं ] संसारम्मि असारम्मि केइ ते णवर होति सप्पुरिसा । जाण परमत्थकज्जुज्जयाण जम्मो सलहणिज्जो ॥१॥ अत्थि पुहईए मज्झे पुरी अओज्झ त्ति णाम विक्खाया। सुंदरतुलियसमग्गा लग्गा सम्गा-ऽपवग्गेसु ।।२।। अह वसति तीए लोओ विणयगुणसमजणेकसत्तण्हो । पढमाभासी सरलो पियंवओ णिग्गयपयावो ॥३॥ तत्थ णयरीए जहत्थणामो णराहिवो संवरो णाम । तस्स य मायारहिया सिद्धत्था णाम अम्गमहिसी सयलग णणिहाणं । ताण य रज्जसुहमणुहवन्ताण वचन्ति दियहा, सरइ संसारो। __ अण्णया य महादेवी महरिहे सयणीए सुहपसुत्ता रयणीए चरिमजामम्मि चोद्दस महामुमिणे पासिऊण विउद्ध समाणी साहइ जहाविहिं दइयस्स । तेण वि य पुत्तजम्मेणाऽणुसासिया, तुट्ठा य । तीए चेव रयणीए पुन्वभवज्जियतित्य यरणामकम्मोदयमुहपरिणामो विजयविमाणाओ परहियकरणुज्जओ वइसाहसुद्धछट्ठीए पुणव्वसुणक्खत्ते चुओ तियसिंदसो हियगन्मम्मि संभूओ । जणणीए पीडमकरेन्तो संवढिओ । अइक्तेसु णवसु मासेसु अट्ठमेसु राइंदिएसु माहस्स सुद्ध बीयाए पुणधसुणक्खत्ते उववष्णो जगगुरू । संभवजिणाओ य दसहिं कोडिलक्खेहिं गएहिं समुववण्णो । कओ अहिसेओ सुरिंदेण । 'भगवम्मि गम्भत्थे कुलं रज्जं णगरं अभिणंदइ' त्ति तेण जणणि-जणएहिं वियारिऊण गुणनिष्फण्णं अभिणंदणो त्ति णामं कयं । संवढिओ य विहिणा कमेण तो जोव्वणं समणुपत्तो । भुंजइ य गामघम्मे कयदारपरिग्गहो भयवं ॥४॥ अधुट्टधणुसयाणि य उच्चत्तेणं ति सो महाभागो । निम्मलचरकणगछवी फुल्लुप्पलगंधणीसासो ॥५॥ अद्धत्तेरसलक्खा पुव्वाणऽभिणंदणे कुमारत्तं । छत्तीसा अद्धं चिय अटुंगा चेव रज्जम्मि ॥६॥ तो भुजिऊण भोए, रज्जं परिवालिऊण सो विहिणा । लोगंतिय-मागहघुट्ठकलयलो लेति चारितं ॥७॥ माहस्स सुद्धवारसितिहीए ससुरा-ऽसुरिंदपञ्चक्खं । णिक्खमइ महाभागी सहसम्बवणम्मि उज्जाणे ॥८॥ अह चउणाणसमेओ छउमत्थो अट्ठदस य वासाइं । विहरन्तो संपत्तो पियालतरुणो महाछायं ॥९॥ तत्थट्टियस्स गुरुणो झाणन्तरियाए वट्टमाणस्स । ववगयकम्मचउक्कस्स केवलं अह समुप्पणं ॥१०॥ चलियाऽऽसणागएण य तियससमेएण वरमुरिदेण । विरइज्जइ भत्तीए तिहयणगुरुणो समोसरणं ॥११॥ पव्वावियं च भगवया सोलसुत्तरं सयं गणहराणं । पत्थुया धम्मकहा । बुझंति पाणिणो, छिज्जति संसया, वियलइ कम्मरासी जंतूणं । तओ अटुंगूणं पुव्वलक्खं पव्वजापरियायमणुपालिऊण, पंचासपुव्वलक्खे सव्वाउयमणुपालिऊण, गाऊण आउयसेसमप्पणो पत्तो सम्मेयसेलसिहरं । तत्थ य सुहुमकिरियमप्पडिवातिज्झाणमणुपवेसिऊण पुणो उवरयकिरिपमणियट्टियज्झाणविसेसमासाइऊण खविऊण भवोवग्गाहीणि सिद्धिमणुपत्तो त्ति। इति महापुरिसचरिए अभिणंदणसामिचरियं समत्तं ॥६॥ १ गवरि जे। २ पुहवीए जे। ३ सयाई उजे। ४ स्स बहुलबार जे। ५ ण स्खविऊण भवोव जे। तंति ने। Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [७ सुमतिसामिचरियं] उप्पज्जन्ति पयाणं पुण्णेहिं जणम्मि ते महासत्ता। जे णियजसेण भुवणं भरन्ति णिववियजियलोया ॥१॥ अत्थि इहेव जंबुद्दीवे दीवे पुक्खलावई विजए संखउरं णाम णयरं णिचरमणिजं पमुइयजणावकिण्णं । तस्थ य राया विजयसेणाहिहाणो । तस्स सुदंसणा णाम सयलन्तेउरपहाणा अग्गमहिसी। तस्स य तीऎ सह विसयसुहमणुहवन्तस्स दोगुंदुयदेवस्स विय गच्छंति दियहा, सरइ संसारो। ____ अण्णया य कोलाणिमित्तं अप्पऽप्पणो विहवेणं उज्जाणम्मिणिग्गओ णयरलोओ। तीए य सुदंसणाए करेणुयारूढाए दिट्ठा तण्णयरनिवासिणो णंदिसेणस्स भजा सुलक्षणाहिहाणा अहिं वहूहिं परियरिया। पुच्छिया य तीए-का एस ? त्ति, कस्स वा भजा?, काओ वा एआओ कम्यगाओ जेहिं परियरिया ?। तओ परियाणिऊण कंचुइणा जहिट्ठियं साहियं जहा-सामिणि ! एसा गंदिसेणवणियस्स भज्जा सुलक्षणाहिहाणा, तीए दुवे पुत्ता, तेहि य चत्तारि चत्तारि एकेकेण य विवाहियाओ, तओ एयाहिं परियरिया जहाणुरूवं विसयसुहमणुहबइ। तओ सुदंसणाए तमवलोइऊण अणवञ्चत्तणेण य अत्तणो महन्तवेरग्गमुप्पणं । चिंतियं च णाए किं ताण जए मणुयत्तणेण ?, किं जीविएण विहवेग ? । जाण ण जायइ तगओ गुणनिलओ सइ सुहावासो ॥२॥ जम्मो निरत्थओ तीए जीए महिलाए मम्मणुल्लायो । रमिऊग धूलिधवलो पुत्तो णारुहइ अंकम्मि ॥३॥ अण्णोण्णकजवइयरकज्जभरारुहणेचंपियं हिययं । ऊससइ णवर मणुयाण तणयमुहयंदसञ्चवणे ॥४॥ दोगचं पि ण णज्जइ, ण गणिज्जइ आवई वि गरुययरी । हिययस्स णिचुइकरो जाग सुओ गुणगणाहारो ॥५॥ इय एवमाइबहुआई तणयगयाइं ति सा विचिंतेती । संपत्ता णियभवणं परम्मुहा सयलकज्जेसु ॥६॥ समागंतूण य भवणं पेसियाओ सहीओ, पडिया य णीसहा सयणिजे । ग कुणइ सरीरपडिकम्म, णाऽऽलिहइ चित्तयम्म, ण कुणइ सुय-सारियाण पडिजागरणं । तओ एयावत्थं जाणिऊण समागओ राया। भणिया य-सुंदरि ! किमेवं ठिया सि ?, मइ भिचयणे किं समीहियं तुह ण संपजइ जेणे चिंतापिसाइयाए अप्पा आयासिज्जइ ?, केण खंडिया तुह आणा?, केण वा विरूवं पलोइया सि ?, साह सुंदरि ! कस्स सुमरियं कयंतेणं ? । तओ एयमायण्णिऊण भणियं सुदंसणाए-अजउत्त! तुमम्मि साहीणे को मह आणं खंडइ ? त्ति, किंतु णिबिण्णा अहमप्पणो जम्मेणमकयत्येणं ति । तओ राइणा सदुक्खं वयणमायण्णिऊण चिंतियं-किं पुण अचन्तणिन्वेयकारणं देवीए भविस्सति ? ति पुणो पुच्छामि । सुंदरि ! किमेवं गुरुचिंताए अम्हारिसो परियणो आउलीकीरइ ?, साहेसु किं ते उज्वेवकारणं ? ति । तओ साहिओ उज्जाणगमणवइयरो महारायस्स । साहिऊण य भणियं-जइ महं सन्तेसु विजा-मंतोसहिवेजेसु तुमम्मि अणुकूले ण होइ पुत्तुप्पत्ती ता णिस्संसयं चएमि निरत्ययं सरीरयं ति। संसारसारभूओ पुत्तो च्चिय होइ सयलजियलोए । जस्स ण जायइ एको वि तस्स मणुयत्तणं विहलं ॥ ७ ॥ तओ तमायण्णिऊण भणियं राइणा-सुंदरि ! किमेवमाउलीभूया?, वीसत्था होहि, साहारेसु अप्पयं, कुणसु पाण'वित्तिं, अहं पुण देवयाराहणाइणा तहा तहा करिस्सामि जहा देवीए पुजन्ति मणोरह त्ति । भणिऊण संठविया महादेवी। अण्णया य छटोववासेण ठिओ । आराहिया य कुलदेवया समागया चरिमजामम्मि सुहपसुत्तस्स । भणिओ य देवयाए जहा-महाराय ! किमेवमुचिग्गो सि ?, भविस्सईं सब्बलक्खणधरो दियलोयचुओ तुज्झ पुत्तो। त्ति भणिऊण गया देवया। १°ए खंडउरं सू । २ °ए विसय सू । ३ एयाओ जे। ४ ओ अइसुहा जे। ५ णचप्पियं स । ६ वित्ती जे ७ छट्ठोवासेण जे सू । ८ ते सव्व जे सू । Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७ सुमति सामिचरियं । साहिओ य सुइणओ देवीए । तुट्ठा य सा। अण्णया य सुइपमुत्ता महादेवी रयणीए चरिमजामम्मि वयणेण पविसन्तं सीहकिसोरं पासिऊण भीयभीया तुरियं समुट्ठिया । साहिओ जहाविहिं दइयस्स। तेण वि य समासासिया पुत्तजम्मेण, भणिया य-सुंदरि! पुचि चेव देवयाए साहिओ भविस्सइ ते सीहो व्व उत्तमसत्तिसंपुण्णो पुत्तो, कुणमु सविसेसं गुरु-देवयाण य पूयं ति । तो तीए तदिवसाओ चेव वड्ढिउमाढत्तो गब्भो । समुप्पण्णो य दोहलो जहा-देमि अभयप्पयाणं सबसत्ताणं, घोसावेमि अमारि सव्वरज्जे, करेमि सवाययणेसु अट्ठाहियामहिमं ति । तओ संपाडिओ सविसेसं भत्तुणा दोहलो । पमूया य सा सुहेणं सव्वलक्खणोववेयं दारयं ति । मुक्काई बंधणाई, कयं महावद्धावणयं, दिणं महादाणं ति । पइट्टावियं च से णामं पुरिससीहो त्ति । वढिओ य कालक्कमेणं । गहिओ कलाकलावो। वियाणियाणि सयलसत्थाणि । विवाहिओ अट्ट कण्णगाओ सव्वलक्खणोववेयाओ उत्तमकुलप्पसूयाओ सुरूवाओ सयलकलापारगयाओ। तो अजत्तसंपज्जंतसयलिदियत्थो विसयमुहमणुहवन्तो अणण्णसरिसेणं कुलेणं सीलेणं रूवेणं विण्णाणेणं कलाकलावेणं सत्थत्थपारगत्तणेणं सयलजणमणाणंदणो लोयच्छेरयभूओ णयरचच्चराइएमु परिब्भमंतो रज्जसुहाई अणुहवंतो चिट्ठइ त्ति । अवि य जत्तो च्चिय णिज्जियरूवरइमणाणंदणो परिभमइ । तत्तो च्चिय वज्जियपरियणाओ धावंति रमणीओ ॥८॥ पेसवइ जओ पैम्भल-धवलुज्जल-दीह-वक-सविलासं । दिटिं दिट्टप्पसरो तत्तो चिय धावइ अणंगो ॥९॥ एमेव कह वि गोयरगयं ति जं जं जणं पलोएइ । सो सो च्चिय मण्णति णवर तिहुयणब्भहियमप्पाणं ॥१०॥ ऑणवइ मोरकुल्लाए परियणं कह वि जं पसंगणं । सो जियइ त्ति गणिज्जइ जणेण जगमज्झयारम्मि ॥११॥ कत्तो बच्चइ ?, किं कुणइ ?, के समालवइ ?, कं पलोएइ ?। तव्यावारपरायणमुहीओ दियहं पि रमणीओ ॥ १२ ॥ उसवन्ते उवसन्तं, [च] संचरंतम्मि तम्मि कुहणीसु । हल्लप्फलेइ णयरं सयलं तईसणसयण्हं ॥ १३ ॥ रूवेण रमणिसत्यो, विउसयणो सेमुसीविसेसेण । विणएण गुरू, आराहियाई सीलेण सव्वाइं ॥ १४ ॥ इय अच्छेरयभूओ सलहिज्जइ सो जणेण सुहरासी । सुहपरमाणुविणिम्मियसब्यावयवो पुरिससीहो ॥ १५ ॥ अण्णया य उज्जाणे कीलानिमित्तमुवगएणं दिवो फामुए पएसे विणयणंदणायरिओ साहुयणपरियरिओ। दिढे य तम्मि समूससियं हियएणं, णिव्वुयाणि अंगाणि, आणंदजलभरियाणि लोयणाणि । चिंतियं च ण-को उण एसो महापुरिसो पढमे जोवणे भंजिऊण पसरमखलियपसरस्स कामएवस्स पडिवण्णो समणत्तणं ?, तो पुच्छामि ताव एवं धम्मविसेसं । ति चिंतिऊण समागओ तस्स समीवं । वंदिया गुरू साहुवग्गो य। तेहिं च धम्मलाहिओ उवविठ्ठो गुरुसमीवे । थेववेलाए भणियमणेण-भयवं ! तुह परिचाएणेव वियाणियं जहा-असारो एस संसारो, विसमा कम्मपरिणई, विरसं संसारमुहं ति, ता साहेहि केरिसो संसारुत्तारणसमत्थो धम्मो ? त्ति । भयवया भणियं-"सोम ! सुण धण्णो सि तुमं सुंदर ! जो जोव्वण-रूव-संपयासहिओ । धम्मम्मि कुणसि बुद्धिं पुन्धज्जियपुण्णपब्भारो ॥१६॥ ___ ता किं बहुणा?, सुणसु-चउविहो धम्मोवाओ, तं जहा-दाणं सीलं तवो भावणाओ। तत्थ दाणं चउव्विहं-णाणदाणं अभयदाणं धम्मुवग्गहकरं अणुकंपादाणं च। तत्थ णाणदाणेण जीवा बंध-मोक्खं वियाणंति, हेउवादेयभूए पयत्थे णाऊण त हेयं परिहरन्ति, गेण्हंति गेण्हणिज्जं, किंबहुणा?, इहलोयसुहाण परलोयमुहाण य भायणं जीवो णाणाओ होइ त्ति। तम्हा णाणदाणं देन्त-गेण्हंताणमुभएसिं पि सुहावहं ति । तओ णाणपुव्वतमभयदाणं । तं पुण पुढवि-जल-जलण-मारुय-वणस्सईणमेगिदियाणं तहा विगलिंदिय-पंचिंदियाण पाणिणं सम्ममण-वयण-कायजोगेहिं अहिंसापरिणामो कायव्यो, जओ सव्वजीवा णिब्भरदुहत्ता वि जीविउमिच्छन्ति, तम्हा ताणं जीवियमेव पियं, कुसलेणं तं चेव दायव्वं ति । धम्मोवग्गहकरं च दाणं देयं, १ देवयायणपू जे सू । २ पारगाओ। तओ जहुत्तसं जे । ३ 'त्थो सयलसुह जे। ४ पम्हल जे। ५ आलबइ जे। ६ किं सू । ७ ता जे । ८ हिं चिय धजे। Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउप्पन्नमहापुरिसचरियं । जेण 'दिण्णेण उवटुंभिओ धम्मट्ठाणे पवित्तिं कुणइ । तं पुण असणं पाणं ओसहं वैत्थं पत्तं ति । एवं पुण दायव्वं ति तव-संजमनिरयाणं, जे तेणुवग्गहिया धम्मचरणमविग्घेण कुणंति । तं च दायगसुद्धं गाहगसुद्धं कालसुद्धं भावसुद्धं दायव्यं ति। तत्थ दायगसुद्धं जो दाया सद्धारोमंचियसरीरो देस-काल-भावण्णू अट्ठमयहाणरहिओ णाओवयं असणाइफासुयं इह-परलोयासंसारहिओ एगंतेण णिज्जरावेक्खी दाणं देइ त्ति तं तस्स बीयमित्र सुखेत्ते वावियं बहुफलं होइ त्ति । जो पुण जीवाण पीलाकरं दाणं देइ सो अप्पाणं गाहगं च संसारे अणोरपारे पाडेइ त्ति । तहा गाहगसुद्धं जो परिचत्तगिहावासो खंति-मद्दव-उज्जवोवेओ मण-वयण-कायगुत्तो जिइंदिओ पंचमहन्वयभारदिण्णखंधी गुरुसुस्सूसापरायणो सज्झाय-ज्झाणरओ अममो अकिंचणो कुक्खीसंबलो पंचविहायाररओ इह-परलोयासंसारहिओ सव्वत्थापडिबद्धो परीसहोवसग्गाभग्गो एयारिसम्मि दाणं बहुफलं होइ । जं पुण सारंभाणं गिहत्थाणं दाणं तं णिरत्ययं बंधहेउयं च । कालसुद्धं पुण जं विसिटे काले साहुउवभोगावसरे दिज्जइ तं कालसुद्धं । जहा अवसरे वुटुं किसीवलाण उवयारं करेइ, ण अण्णत्थ, एवं दाणं पि विण्णेयं ति । भावसुद्धं पुण जो दाया दाणं पयच्छंतो कयत्थमप्पाणं मण्णेति । 'देमि' ति तुढे, दिजमाणे वि तुढे, दिण्णे वि तुट्टे, णवकोडीपरिसुद्धं दाणं देतो चिंतेइ-अहो ! अहं कयत्थो जेण मए साहूणमसाँइयं अज पयच्छियं ति । अणुयंपादाणं पुण तित्थयरेहिं वि न कहिंचि पडिसिद्धं । एसो उ दाणमइओ।। सीलमइओ उण धम्मो पंचमहव्ययपरिपालणं खंति-मद्दव-उज्जव-संतोस-चित्तथिरीकरणं खण-लवपडिबुज्झणया सव्वजीवेसु मेत्ती, एगंतेण गिरीह[ ? त्त]णं ति । तवोमइओ उण धम्मो सबाहिर-ऽभितरस्स तबस्स जहासंभवमणुढाणं ति । भावणामइतो उण बारस वि भावणाओ सम्मं भावयव्याओ, तं जहा-सव्वेसु वि ठाणेसु अणिच्चया १, जिणिदसासणेण विणा असरणया २, बंधुवग्गस्स वि एगत्तणं ३, सयण-परियण-सरीराण सयासाओ अण्णत्तणं ४, देहस्सामुइत्तणं ५, संसारासारत्तणं ६, कम्मस्साऽऽसवो ७, संवरो य ८, कम्मस्स निज्जरणं ९, लोगस्स पंचत्थिकायमयत्तणं सण्णिवेसो वा १०, जिणेहि धम्मस्स सुकहियत्तणं जीवादिपयत्थतत्तचिन्ता ११, बोहीए सुदुल्लहत्तणं १२ । ति बारस वि भावणाओ अहोणिसिं चिंतियव्याओ त्ति । इय एसो चउव्विहो धम्मो संसारुत्तारणसमत्थो त्ति । धण्णा पावंति जए चउन्विहं धम्ममासयविसुद्धं । सावय ! जिणपण्णत्तं संसारुत्तारणसमत्यं" ॥१७॥ तओ एयमायण्णिऊण पुरिससीहेण भणियं-भय ! सोहणो धम्मो भयवया कहिओ, ण एस घरवासमणुसरंतेहिं तीरइ सम्ममणुढेउं, ता विरत्तं मे चित्तं भवपंजराओ तुह दंसणेण य विसेसओ धम्मसवणेणं ति, ता अणुग्गहेउ भयवं मं पव्वजादाणेणं ति । भयवया भणियं-सोहणमेयं, किंतु गुरुयणं आपुच्छसु त्ति । पुरिससीहेण भणियं-एवं करेमि ।त्ति भणिऊण गओ णिययभवणं । थेववेलाए चेव आपुच्छिऊण गुरुयणं समागओ गुरुसमीवं । उवविट्ठो गुरुणो पायमूले । [गुरुणा भणियं च-सोम ! दुलहं मणुयत्तं आरियं खेत्तं आरोगया गुरुजणसमागमो धम्मचरणबुद्धी, तं सव्वं पि तुमए पत्तं, किंतु थेवमेत्यत्थि वयणीयसेसं, तं मुणसु । पुरिससीहेण भणियं-भयवं ! भणसु । तओ आयरिया कहिउमाढत्ता संसारविसमसायरभवजलवडियाण संसरन्ताणं । जीवाण कह वि जइ होइ जाणवत्तं व मणुयत्तं ॥ १८॥ तत्य वि बोही जिणदेसियम्मि धम्मम्मि णिक्कलंकम्मि । पन्वज्जापरिणामो उ सुकयपुण्णस्स जति होति ॥ १९ ॥ सा पुण दुप्परियल्ला पुरिसाण सया विवेयरहियाणं । वोढव्वाई जम्हा पंचेव महव्वयवराई ॥२०॥ राईमोयणविरई उ णिम्ममत्तं सए वि देहम्मि। पिंडो उग्गम-उप्पायणेसणाए सया सुद्धो ॥ २१ ॥ १ दिण्हेण सू । २ वत्थ ति ५ जे सू । ३ महावय जे। ४ णाइ अज्ज जे। Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७ सुमतिसामिचरियं । इरियादिपंचसमिईहि तीहिं गुत्तीहिं तवविहाणम्मि । णिच्चुज्जुत्तो अममो अकिंचणो गुणसयावासो ॥ २२ ॥ मासाइया उ पडिमा, अणेयरूवा अभिग्गहा बहुया । दवे खेत्ताणुगया काले भावे य बोद्धव्या ॥ २३ ॥ जावज्जीवममजणमणवरयं भूमिसयणमुदिडं। केसुद्धरणं च तहा, गिप्पडिकम्मत्तणमउव्वं ॥ २४ ॥ गुरुकुलवासो सययं, खुहा-पिवासाइया य सोढव्या । बावीसं पि परीसह तेहोवसम्गा य दिव्यादी ॥ २५ ॥ लगावलद्धवित्ती, सीलंगाणं च तह सहस्सा उ । अट्ठारसेव णिययं वोढव्या आणुपुबीए ॥ २६॥ तरियन्यो य समुदो बाहाहिं इमो महल्लकल्लोलो । णीसायवालुयाए चावेयन्यो सया कवलो ॥ २७ ॥ चंकमियव्वं णिसिउग्गखग्गधाराए अप्पमत्तेणं । पायव्वा य सहेलं हुयवहजालावली णिययं ॥ २८ ॥ गंगा पडिसोएणं [च], तोलणीओ तुलाए सुरसेलो । जइयव्वं तह एगागिणा उ भीमारिदुहवलं ॥ २९ ॥ राहावेहविणिम्मियचक्कट्टियलक्खमग्गपुत्तलिया। विधेययाऽवस्सं उत्सग्ग-परीसहे जेउं ॥ ३० ॥ तिहुयणजयप्पडाया अगहियपुव्वा तहेव गहियन्या । इय एवमाइ साहूण दुक्करा होइ पव्वज्जा ॥ ३१॥ तओ एयमायण्णिऊण भणियं पहढवयणकमलेण पुरिससीहेणं-भयवं ! एवमेयं, किंतु विइयसंसारसहावाणं वेग्गमग्गमणुगयाणं संसारविजोगुज्जयाणं ण किंचि दुकरं ति । भयवया भणियं-एवमेयं, किंतु तं चेव संसारसरुवं 'सुंदरं' ति मण्णमाणो महामोहमोहियमई ण चिंतेइ तस्स सरूवं, ण मण्णेइ आवई, ण गणेइ लज्जं, ण आलोएइ विवागं, ण णिरूवेइ असारयं, ण पेच्छइ कुलं, ण गणेइ सीलं, ण सेवेइ धम्मं, ण बोहेइ अयसस्स, ण रक्खइ वयणिज्ज, सहामहामोहमोहियमती तं तं कुणइ जेण जेण एसो इह-परलोए य किलेसभायणं होइ ति। तमायण्गिऊग भणियं पुरिससीहेणं-भयवं! तस्सेवंविहस्स संसारस्स णिहणणे अयमेवोवाओ जं सबदुक्खणिज्जरणहेउभूया पबज्ज त्ति। भयवया 'एवमेयं ति भणिऊण पसत्थे तिहिणवत्ते पव्वाविओ। अहिज्जिओ आगमो, उवज्जियं च तेण वीसाए अण्णयरेहिं ठाणेहिं तित्थयरणाम-गोयं कम्म ति। तओ काऊण पन्चज्जाविहाणं, विहरिऊण जहुत्तविहारेणं, अणसणविहिणा काऊण कालं उववण्णो वेजयंते विमाणे । ____तत्थ जहासुहमाउयमणुवालेऊण साएए णयरे मेहस्स रण्णो मंगलाए भारियाए सावणसुद्धबीयाए महाणक्खत्ते वेजयंतदाहिणविमाणाओ चओ उवलद्धचोइसमहामविणाए गब्भम्मि उववन्नो। तओ व सु मासेसु अष्टमेसु राइदिएमु वइसाहमुद्धष्टमीए महासु ससहरे वट्टमाणे सुहंसुहेणं सव्वलक्खणोववेयं मंगला दारयं पसूया। को पुचकमेण सरगिरिम्मि सोहम्माहिवाणा जम्माभिसेओ। कयं च भगवओ पिउणा जहत्थं समहति णाम । तओ पंचधाईपरियरिओ वड्ढिउं पयत्तो। पत्तो य कालक्कमेण जोवणं । लोयाणुवत्तीए य कयदारसंगहो अच्छिउमाढत्तो। इओ य अभिणंदणाओ अइकंतेहिं गवर्हि कोडिलक्खेहि सागरोवमाणं सुमती समुप्पण्णो । तओ सुमतिसामी दस पुव्वलक्खे कुमारभावमणुपालिऊण, अउणत्तीसं च लक्खे बारसपुव्वंगाहिए रज्जमणुवालिऊण, संसारं चइउकामो लोयन्तियपडिवोहिओ वइसाहसुद्धणवमीए गहियपंचमहव्ययभारो विहरिउमाढत्तो। विहरन्तो गाम-णगराइयं पत्तो तमेवोजाणं जत्थ भयवया संसारुत्तारणपञ्चला गहिया पव्वज्जा । तओ चेत्तस्स सुद्धएकारसीए महासु वट्टमाणे मियंके पियंगुतरुणो छायाए वट्टमाणस्स खवगसेढीए कमेणं खवियघणघातिचउक्स्स समुप्पण्णं दिव्वं गाणं । तं च केरिसं? सागारोभयभेयमप्पडिहयं लिंगेण दूरुज्झियं, सव्वागासपहेयमक्खयवरं सव्वण्णुचिंध फुडं। मुत्ता-ऽमुत्तपयत्थभासणखमं जीवाण साभावियं, पत्तं पत्तवरेणऽणंतणिहणं लद्धीजुयं केवलं ॥३२॥ तओ समुप्पण्णवरदिव्वणाण-दसणो पडिबोहेंतो भवियकमलायरे पत्तो चंपाणयरिं । विरइयं देवेहिं पुव्युत्तरदिसाए समोसरणं । समागया चउबिहदेवनिकायसहिया जणवया । पव्वावियं च भगवया सत्तुत्तरं सयं गणहराणं । पत्थुया धम्मकहा । परूविज्जइ सम्मत्त-णाण-चरणरूवो मोक्खमग्गो, णिदिज्जइ संसारो, जुगुंच्छिज्जति मिच्छत्ता-विरइ-पमाय १ याहि पंच जे सू । २ तहेव उवसग्ग दि जे । ३ जेतव्यम् । ४ हामोहि सू । ५ वेजयंतविमा जे । ६ रुन्मू(म्मू. )लण सू । ७ पतो य च जे। ८ व्विहा देव जे सू । . Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउप्पन्नमहापुरिसचरिय । कसायाणुढाणाणि, साहिज्जन्ति परभवविरुद्धायरणाणि, छिज्जंति संसया, बुझंति पाणिणो, घेप्पन्ति सम्मत्त-णाणचरण-देसविरईओ, दंसिज्जइ कडुयविवागत्तणं विसयाणं, परूविज्जइ चउगइसंसारसागरो, वियारिजंति एगिदियादीणं पाणीणं दुक्खसंदोह त्ति । एत्थंतरम्मि लद्धावसरेणं भणियं गणहरेणं "भय ! केणिह कम्मेण पाणिणो परिभमन्ति संसारे । उब्वियणिज्जासु गतीसु ? णाह ! तं साहसु जहिच्छं ॥३३॥ अच्छिणिमीलणखणसुहविवज्जिए भीसणम्मि दुप्पेच्छे । गच्छंति केण कम्मेण णाह ! बहुवेयणे णरए१॥३४॥ केण व कम्मेण पुणो तिरियगति पाउणंति बहुदुक्खं । एगिदिय-विगलिंदिय-पंचिंदियतिरियसयभेयं ? ॥३५॥ सम्मुच्छिम-गब्भय-कम्मभूमिखेत्तादियाइभेयाए । मणुयगतीए जायंति केण कम्मेण सुरणाह ! १ ॥३६॥ भवण वइ-वाणमंतर जोइस-वेमाणियाइभेएसु । किब्बिसिय-आभिओगिय-सुरिंद-सामाणियसुरेसु ॥३७॥ उप्पज्जति भमंता जीवा संसारसायरं घोरं । कम्मेण केण ? तं साह देव !, छिंदेह संदेहं ॥३८॥ जायइ पुरिसो इत्थि व्य तह सो व्व केण कम्मेण ? । अप्पाऊ, तह दीहाउओ व्व, भोगाण वा भोगी ॥३९॥ सयलजणणयणहारिं देवकुमारो व्व जम्मण मणि । जायइ रूवं जंतूण ? साह जयणाह ! संसारे ॥ ४०॥ केण व रूवविहूणो, सुहओ, तह दूहवो व्व संसारे । मेहावी य, दुमेहो, बहुदुक्खो, अप्पवियणो य? ॥ ४१॥ सत्थत्थणिच्छियमई चउविहबुद्धिप्पसंगणिम्माओ। सयलकलापत्तट्ठो केणेह वियक्रवणो होइ ? ॥४२॥ कम्मेण केण जायइ सयलकलाबाहिरो अविण्णाणो । हलभूइसमो मुक्खो ? विज्जा वा णिप्फला केण ? ॥४३॥ केण व सफला विज्जा ?, कयणासो होइ कह व जंतूणं ? । कह व ण णासइ सुकयं ? साहसु संसारवोहित्य ! ॥४४॥ णिकढियासिदट्ठोडभिउडिलल्लक्कमुक्कबुक्कारे । भीमे रणंगणे पाविया वि लच्छीह केण चला ? ॥४५॥ केणं थिरत्तणं सा उबेइ कम्मेण मुणियपरमत्थ ! ? । वंकमुहो पूइमुहो कुंटो मंटो य वडभो य? ॥४६ ॥ केण पयाण थिरत्तं अथिरत्तं वेह जायइ कयत्थ ! ? । अंधो बहिरो मूओ बहुरोगी केण कम्मेण ? ॥ ४७ ।। णीरोओ केण पुणो अक्खयदेहो अलद्धसंठाणो । संपुण्णंगोवंगो ? णिक्कारणबंधव ! कहेहि ॥४८॥ होइ धणड्ढो केणिह ?, दोगचं वा वि दारुणं केण ? । होइ जयपायडजसो, केण अकित्ती जणे भमइ ? ॥४९॥ सयलजणसलहणिज्जो य गेज्झवको य कम्मुणा केण ? । केण अणाएओ पुण कम्मेणं जायइ जयम्मि ? ॥ ५० ॥ णिच्चुम्विग्गो, हीणिदिओ य, जायइ अणन्तसंसारी । केण परित्तो व पुणौ संसारो जायइ जियाण" ? ॥५१॥ एवं ति पुच्छिओ गणहरेण भयवं समत्थदिट्टत्थो । अह साहिउं पयत्तो सदेव-मणुया-ऽसुराए परिसाए ॥५२ ॥ कुणिमाहारपसत्ता आरंभपरिग्गहेसु गुरुएसु । पंचिंदियवहजुत्ता रोदमहापावपरिणामा ॥ ५३ ।। एए गच्छंति सया णरयं कंडुज्जु(ज्ज)एण मग्गेण । अण्णे वि महापावा सोयरिया तह य रायाणो॥ ५४॥ अट्टज्झाणोवगया परदुक्खुप्पायणम्मि य पसत्ता । बहुमोह-ऽण्णाणपरा जीवा तिरियत्तणमुवेति ॥ ५५ ॥ अप्पकसाया दाणेक्कसंगया खंति-मदवसमेया। पयतीए भद्दया जे य हौति ते जंति मणुयत्तं ॥५६॥ बालतवखवियदेहा दाणरूई सील-संजमसमग्गा । जे होति सम्मदिट्ठी ते जीवा जंति दियलोयं ॥ ५७ ॥ असढो खंतिसमेओ सुसहावो अप्पमोहगुणकलिओ । जीवो जायइ पुरिसो विरैसे संसारकन्तारे ॥ ५८ ॥ अलिय॑ऽभक्खाणरओ णियडिमहाकवडवंचणाकुसलो। साहसपावणिसेवी महिलाभावत्तणमुवेइ ॥ ५९॥ जो तुरय-वसह-महिसाइयाण णिलंच्छणं सया कुणइ । उक्कडमोहो य सया जीवो संढत्तणमुवेइ ॥ ६०॥ एगिदियाइजीवाण घायणे मंसभक्खणे णिरओ । मज्जपसत्तो य तहा अप्पाऊ जायइ मणुस्सो ॥ ६१ ॥ सीलदय-खंतिजुत्ता दयावरा मंजुभासिणो पुरिसा । पाणवहाउ णियत्ता दीहाऊ होति संसारे ॥ ६२॥ १ जोयस सू । २ भागी जे। ३ विज्जा से णि जे । ४ कह णासो सू । ५ 'तं केण जा सू । ६ उ जे । . विरसो जे । यभक्खाणणिरओ जे। ९ "णिवेसी म जे । Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७ सुमतिसामिचरियं । साहूणमेसणिज्जं दव्वं सह खेत- कालगुणजुतं । देन्तो पावर पुरिसो भोगे कालोचियाऽणं ॥ ६३ ॥ पररमणिरुवदंसणसुहाइ जो णेय पत्थइ कयाइ । ण य निंदर पररूवं पुरिसो सो होइ रूवस्सी ॥ ६४ ॥ जो उण रूत्रमपणं समाउलो जिंदई य पररूत्रं । सो होइ कुरूवो माणुसत्तणे हुंडठाणे ॥ ६५ ॥ पढमाभासी महुरो पियंकओ विजय खंतिसंपष्णो । जणमणणयणाणंदो सुहओ सम्वत्थ सो होइ ॥ ६६ ॥ सव्वस्स वंचणपरो कुरो कुल- रूवगव्वि दुस्सीलो । सन्त्रस्तुव्वेयैकरो य दूहवो जायइ मणूसो ॥ ६७ ॥ वगारे वह णाणीणं विणय-दाणसंजुत्तो । अज्झावयणे व सुभे वट्टन्तो होइ मेहावी ॥ ६८ ॥ परिणीय-अन्तराइय- णाणुवघाए य वट्टर अभिक्खं । अत्रमण्णेन्तो य सया सुयजेहं होइ दुम्मेहो ॥ ६९ ॥ दंड-कस-सत्थ-रज्जू-गय-तोमर-खग्ग- मोग्गरादीहिं । दुक्खं उप्पाएंतो जीवाणं होड़ बहुवियणो ॥ ७० ॥ पतीए तणुकसाओ अणुकंपा- दाण-सीलगुणक लिओ | जीवाण रक्खणपरो होइ सुही जीवलोयम्मि ॥ ७१ ॥ अणवरयणाणदाणेण संजुओ होइ बहुसुओ लोए । मुक्खो उण विवरीओ अप्पहियं पि हु ण याणेइ ॥ ७२ ॥ जो माप वियुज्जुत्तो गुरूण भत्तिगओ । सो पावेइ जहिच्छं विज्जं तीए फलं चैव ॥ ७३ जो उण र्णिदेव गुरुं हिवड़ य गोरखं विमग्गेंतो । तस्स जई कह वि विज्जा होइ, फलं ण उण से देइ ॥ ७४ ॥ जो मायावी पिसुणो वंचणसीलो तहा कयग्यो य । तस्सुत्रकथं पणस्सइ, विवरीयगुणस्स संठाइ ॥ ७५ ॥ जो उवाए बट्टइ परस्स लच्छी कहंचि पत्ता वि । तस्स पलायइ दुक्खज्जिया वि धणसंपया विउला ॥ ७६ ॥ जो पय भयाए जह कह वि जतीजणे पयच्छेइ । फामुयदाणं तस्स यऽथिरा त्रि लच्छी थिरा होइ ॥ ७७ ॥ जो दण जइजणं अण्णं काणच्छिऊण सद्भावो । णिब्बोल्लइ माइल्लो सो वकमुहो णरो होइ ॥ ७८ ॥ तवतणुयंगाण सया जो पुरिसो भणइ विप्पियमहण्णो । सो पूइमुहो जायइ कुंटो पुण पेण्हिघाएणं ॥ ७९ ॥ मंटा वडभा य सया साहूणमणज्जकारिणो होति । विच्छोयकारयाणं ण पयाण थिरत्तणं होइ ॥ ८० ॥ क्खीण सावयाण य विच्छोयं ण य करेइ जो पुरिसो । जीवेसु य कुणइ दयं तस्स अवच्चाई जीवंति ॥ ८१ ॥ जो पररंधाई दियाइं दिट्ठाई जंपर अणज्जो । छायाभंसपसत्तो जबंधी होइ जियलोए ॥ ८२ ॥ ૮૬ असुयं पि सुयं भास, तह य विरुद्धाई कहइ लोयस्स । पिसुणो परततिल्लो सो बहिरो होइ मूओ य ॥ ८३ ॥ डहणं-कण-घायण-छेयणेहिं दुक्खं जियाण पकरेंतो । बहुरोगी होइ णरो, विवरीओ जायइ अरोगो ॥ ८४ ॥ जो कुण महापावी जंतूणं कह चि अवयवविणासं । सो चिय तयंगविगलोऽसंपुण्णंगो य पावीओ (?) ॥ ८५ ॥ जो देइ फायं अवसरम्मि साहूण ओसहोईयं । सो होइ धणड्ढो महियलम्मि कित्ती थिरा तस्स ॥ ८६ ॥ जो कुण अंतरायं परस्सणासं जणस्स अवलवइ । सो पात्रइ दोगचं सयलजणपरिहत्रमुयारं ॥ ८७ ॥ गुरु साहुवयणकारी दढव्बओ सच्चसंघणापरमो । सो गज्झवओ जाया, पात्रमई होइ विवरीओ ॥ ८८ ॥ जो जणइ य जणपीडं णिच्चुम्बिग्गो य हीणदेहो य । पडणीओ जिणसं अनंतसंसारिओ भणिओ ॥ ८९ ॥ संकाइसल्लरहियं सम्मत्तं जस्स होइ भुत्रणम्मि । तस्स परित्तो जायइ संसारो मुकयकम्मस्स ॥ ९० ॥ जस्स उण णाण- दंसण- चरणाई मणे जहुत्तकारिस्स । तस्स णरस्सावस्सं हवंति सग्गा-पत्रग्ण त्ति ॥ ९१ ॥ १ सोहेइ सू । २ व्वेवकरो जे । ३ उप्पायतो जे ४ यरी सु । ५ इ बहुवि वि सू । ६ पट्टिघा जे ७ ण य क सू । ८ अंतराई सू । ९ 'पीलं निच्चु जे । For Private Personal Use Only Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८२ चउप्पन्नमहापुरिसचरिथं । इय एवमाइ कहिऊण, सुरगुरू विहरिऊण य जहिच्छं । पडिबोहिऊण भविए, पत्तो सम्मेयसिहरं ति ॥ ९२ ॥ मासियभत्तेण तहिं सेलेसिविहाणजोगगुणकलिओ। सिद्धो णिधेयकम्मो मोक्खं पत्तो अणाबाहं ॥ ९३ ॥ एवं चत्तालीसं पुव्वलक्खे सव्वाउयं परिवालिऊणे तिसयधणूसिओ सुमतिसामी सम्मेयगिरिसिहरे सेलेसि पडिवज्जिऊण सिद्धिं पत्तो ति॥ इति महापुरिसर्चरिए पंचमस्स सुमतिसामिणो चरियं सम्मः ॥७॥ १ यति जे । २ 'तं ति जे। Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ८ पउमप्पहसामिचरिय] पुव्वज्जियपुण्णविपश्च माणवसजायगरुयमाहप्पा । ते केइ जए जायन्ति जेहिं भुवणं महग्घवियं ॥ १ ॥ तओ सुमतितित्थयराओ सागरोवमकोडीणं णवहिं सहस्सेहिं समइकन्तेहिं पउमप्यभो अड्ढाइज्जसयधणुस्सिओ समुप्पणी | कहं ? भण्णइ - अस्थि इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे कोसंबी णाम नगरी । सा य धण-जण-कणगरयणसमिद्धा सयलोवद्दवविवज्जिया सया मुइया । तीए णयरीए पुरइभारधरो घरो णाम णराहिवो परिवसर । तस् य अलंघणीया घरिणी मज्जायकारणमणग्धं । धरणीए सुसीमा इव पिया सुसीमाभिहाण ति ॥ २ ॥ are चोइसवरमिणसुइओ पुण्णरासिसंभूओ । पउमप्पभाभिहाणो गेवेज्जाओ ओ जाओ || ३ || तस्थ माह हुस्स छट्टीए चित्तासु चुओ । कत्तियबहुलबारसीए चित्ताजोयजुए मियंके जाओ । क य पुव्वकमेणेत्र सोहम्माहिवइणा जम्माहिसेओ । 'गन्मत्थे य भगवम्मि जणणीए पउमसयणीयम्मि दोहलो आसि' त्ति ते भगवओ जहत्थमेव पउमप्पभो त्ति णामं कयं । तओ वड्दिउं पयत्तो । कयं च लोइयैद्विमणुयत्तंतेण भगवया दारपरिग्गै हाइयं । गया कुमारभावे अद्धद्वैमा पुव्वलक्खा । पुणो वि एकवीसं पुव्वलक्खा पुव्वलक्खद्धं च सोलस य पुवंगाणि महारायभावेणं । तओ संसारं चकामी लोयन्तियपडिबोहिओ छट्टभत्तेणं कत्तियस्स बहुलतेरसीए महाणक्खत्ते कयसामाइओ विहरिउमाढतो । विहरिऊण य छम्मासे णग्गोहवरपायत्रच्छायाए आसाइयं च (?) चेत्तस्स पुण्णिमाए चित्ताजोगजुत्ते मियंके उप्पर्णं दिव्वं णाणं । पव्वाविया पंचाणउई गणहरा । विरइयं देवेहिं समोसरणं । समागया सपउरा जणवया । पेच्छंता य दंसेंति एकमेक्कस्स समोसरणं विमुक्का सेसतिरियवेराणुबंधे (? धं) । कहं ? ति कंडु कणमूलं मओ मईदस्स कंधरर्द्धते । वीसत्यो वियडुब्भडकडारभासुरसढकडप्पे ॥ ४ ॥ तियसाऽसुरणिम्मलमणिमयूह देहप्पभाकिलम्मन्तो ( ? न्तं ) । 'पेलवमही सिहंडेण पेच्छ पच्छाइयसरीरं ॥ ५ ॥ वीसम्भजणियपसरो आसो महिसस्स लोयणद्धन्तं । कंडुयइ तिक्खगवलग्गभागदेसम्मि मउलच्छो ॥ ६ ॥ दुमे फर्णिदफणं सकायभाएण मूसओ उवह । तित्थयरवाणिसुहिओ णिच्चलसवणेक्कगयचित्तो ॥ ७ ॥ णिच्चलमुहग्गसंठियमूसयपोयम्मि उवह मज्जारं । उवसन्तवेरबंधं धम्मकहायण्णणपसत्तं ॥ ८ ॥ उवपियइ मयसिलिम्बो पंडुइयपओहराए बग्घीए । अवियाणियनि (१ मि ) यपोयाए छीरमासाइयगुणाए ॥ ९ ॥ काऊ करं कंठे कडारके सरसदस्स केसरिणो । णिच्चलसवणो सुहियस्स करिवरो सुणइ जिणवाणि ॥ १० ॥ गुग्गविणिग्गय भीसणदाढस्स पोंडरीयस्स | जिणत्रयणमुइयवसहेहिं पेच्छ संदाणियं देहं ॥ ११ ॥ कासारो गोणहो सुणइ जिणवरिंदस्स । सव्वसभासाणुगयं देवा ऽसुरमणहरं वाणिं ॥ १२ ॥ १णो । भण्ण सू । २ ओ व सु | ३ थिई । ४। सू । ५ पुजे । ६ दिव्वणा जे । ७ उयं सू । ८ पेलवमहि, सुकुमारं सर्पमित्यर्थः । ९ गोसुणओ जे । Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउप्पन्नमहापुरिसचरियं । इय मुक्कवेरबंधा जस्सऽणुहावेण होति तिरियगणा । तस्स इमं जयइ जए सीलगुणड्दं समोसरणं ॥ १३ ॥ इय पलोएन्ता समोसरणं उवागया अभितरं । दिट्ठो सीहासणसंठिी भुवणगुरू पयासयन्तो संसार-मोक्खपहे । पणमिऊण उवविठ्ठा चलणंतिए धम्मं सुणिउमाढत्ता। तो भगवया साहिओ चउगइओ संसारसायरो, कहियाओ य अणुक्कमेण गरय-तिरिय-मणुय-देवगतीओ। तो भणियं गणहरेणं-भयवं ! केइविहा देवा ?, देवाण किमाउयं ?, किं सुहं ?, किं देहपरिमाणं ?, का विमाणसंखा ?, के वा देवगतिं वच्चंति ?, केत्तिया वा एकसमएणं उप्पजति ? । इच्चेवमादि देवसंबद्धं पुच्छियं गणहरेणं । भयवं कहिउमाढत्तो__ तत्थ देवा चउब्भेया, तं जहा-भवणवइणो वन्तरिया जोइसिया वेमाणिया। तत्थ भवणवइणो दसप्पयारा, तं जहाअसुरकुमारा णागकुमारा उवहिकुमारा सुवण्णकुमारा थणियकुमारा दीवकुमारा विज्जुकुमारा अग्गिकुमारा दिसाकुमारा वाउकुमारा । आउयमुक्कोसं [साहियं] सागरोवमं, जहण्णं पुण दस वाससहस्सा। भवणसंखा पुण सत्त कोडीओ बावत्तरि लक्खा भवणाणं ति । वाणमन्तरा अट्ठभेया तं जहा- किण्णरा किंपुरिसा महोरगा गंधव्वा जक्खा रक्खसा भूया पिसाया । आउयं उक्कोसेणं पलिओवमं, जहण्णेणं दस वाससहस्सा । भवणाणि य असंखेयाणि त्ति । जोइसिया पंचभेया तं जहा-चंदा आइच्चा गहा णक्खत्ता पइण्णतारग त्ति । तत्थ चंदाणमाउयं उक्कोसेण पलिओवमं वासलक्खाहियं, जहण्णेण पलिओवमचउभागो देवीणं पुण अद्धपलिओवमं पण्णासवाससहस्साहियं उक्कोसेणं, जहण्णेणं पुण पलिओचमचउभागो । आइच्चाणं उक्कोसेणं पलिओवमं वाससहस्साहियं, जहण्णेणं पलिओवमचउभागो; देवीण वि उकोसेणं पलिओवमस्सऽद्धं वासाणं पंचसया, जहण्णेणं पलिओवमचउभागो । गहाणं पलिओत्रमं उक्कोसेणं, जहण्णेणं पलिओवमचउभागो; देवीण उक्कोसेणं पलिओवमस्सऽद्धं, जहष्णेगं पलिओग्मचउभागो । णक्खत्ताणं च आउयं उक्कोसेणं पलिओवमद्धं, जहण्णेणं पलिओवमस्स चउभागो; देवीण वि जहण्णुकोसएहिं चउभागो चेव । ताराणं उक्कोसेणं पलियचउभागो, जहण्णेणमट्ठभागो; देवीणं जहण्णुक्कोसएहिं अट्ठभागो चेव, केवलमुक्कोसपक्खे समहिओ त्ति । जोइसियाण य असंखेयाणि विमाणाणि। सोहम्मे दो सागरोवमाणि आउयमुक्कोसेणं, वत्तीसं लकवा विमाणाणं । ईसाणे दो सागरोदमाई, अट्ठावीसं लक्खा विमाणाणं । भवणवइ-वागमन्तर-जोइसिय-सोहम्मीसाणाणं सत्त य रयणीओ देहप्पमाणं । सणंकुमारे सत्त सागरोवमाइं ठिई, वारस लक्खा विमाणाणं, छ स्यगीओ देहप्पमाणं । माहिदे साहिया सत्त सागरोवमाइं ठिती, छ रयणीओ देहप्पमाणं, अट्ठ लक्खा विमाणाणं । बंभलोए दस सागरोवमाइं ठिती, पंच रयणीओ देहप्पमाणं, चत्तारि य लक्खा विमाणाणं । लन्तए चोइस सागरोवमाई ठिती, पंच रयणीओ देहपरिमाणं, पंचाससहस्सा विमाणाणं । सुक्के सत्तरस सागरोवमाई ठिती, चत्तालीसं च सहस्सा विमाणाणं, चत्तारि य रयणीओ देहप्पमाणं । सहस्सारे अट्ठारस सागरोवमाइं ठिती, चत्तारि रयणीओ देहप्पमाणं, छ सहस्सा बिमाणाणं । आणए एगूणवीसं सागरोवमाई ठिती, तिष्णि य रयणीओ देहप्पमाणं । पाणए वीसं सागरोवमाई ठिती, तिणि य स्यगीओ देहपरिमाणं । चत्तारि सयाई विमाणाणं दोण्हं पि आणय-पाणयाणं । आरणे एकवीसं सागरोवमाई ठिई, तिण्णि य रयणीओ देहपरिमाणं । अच्चुए बावीसं सागरोमाइं ठिती, तिण्णि य रयणीओ देहपरिमाणं । तिष्णि य सया विमाणाणं आरण-ऽच्चुयाणं ति । हेहिमहेट्ठिमए गेवेज्जए तेवीसं सागरोवमाई ठिती, हेटिममज्झिमए चउवीसं, हेहिमउवरिमए पंचवीस । तिसु वि एगारसुत्तरं सयं विमाणाणं । मज्झिमहेट्टिमए छब्बीसं सागरोवमाइं ठिती, मज्झिममज्झिमए सत्तावीसं, मज्झिमउवरिमए अट्ठावीसं । तिसु वि सत्तुत्तरसयं विमाणाणं । उवरिमहेछिमए एगणेत्तीसं सागरोवमाइं ठिती, उवरिममज्झिमए तीसं, उपरिमउवरिमए एगतीसं । तिसु वि सयमेगं विमाणाणं । हिहिम-मज्झिम-उवरिमगेवेजगेमु जहुत्तरं हीणाओ दोण्णि रयणीओ देहप्पमाणं । १ कइमेया दे जे। २ आउमुजे। ३ भुवण जे। ४ ती, मज्झि जे सू । ५ णतीसं जे। ६ हपरिमाणं जे। Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८ पउमप्पहसामिचरियं । अणुत्तरोववाइयविमाणेसु चउसु वि एगत्तीसं सागरोक्माई ठिती जहण्णेणं, उकोसेणं तेत्तीसं । मन्त्रविमाणे जहण्णुक्कोसा तेत्तीसं सागरोवमाई ठिती । एगा रयणी देहपरिमाणं । सामण्णेणं देवलोयगामिणो जीवा हवंति दाणरुइणो अमायाविणो बालतवरया जीवाण दयावरा वय-सीलगहणुज्जया विसेसेणे णाण-दंसण-चरित्तुज्जया अणुत्तरोववाइयपज्जवसाणेसु देवलोएसु गच्छंति त्ति । तत्थ य एगतेण रइसागरावगाढा अमुणियकालाइकमा सुहंसुहेण जहुत्तमाउयं भुंजंति, अवि य वीणा-वेणुमणोहरकलरवमुतिसुहयमुच्छणुच्छलियं । तियसंगणाहिं गिज्जइ बहुविहसर-करणरमणिज्ज ॥१४॥ ललियंगहार-लय-ताल-करण-रस-भाववड्ढियपमोयं । विविहाहिणयपयासियपमोयसुरसुंदरीणडे ।। १५॥ वरपारियायमंजरि-मंदारुच्छलियकुसुमरयधवलो । गोसीसचंदणुव्बूढपरिमलो वाति गंधवहो ॥१६॥ हियइच्छियसंपज्जन्तविविहरसपुट्ठिपोसियसरीरो । आहारो वि सुहयरो सुराण सइ जणियमाहप्पो ॥ १७॥ देवंगछाइए महरिहम्मि सयणम्मि तूलिकलियम्मि । कालं गति तियसा हियइच्छियजायविसयसुहा ॥१८॥ पीणुण्णय-गरुयपओहराहि वित्थिण्णरमणपुलिणाहिं । तियसंगणाहिं समयं रमन्ति सइ रइणिहाणाहिं ॥१९॥ जत्तो लीलावसमंथरुज्जयं देइ दिहिविच्छोहं । तत्तो तियसविलासिणिजयगेयरवो समुच्छलइ ॥२०॥ इय विसयमुहं जं कि पि होइ संसारसायरे विरसे । तं तियसाणं, विसयाउराण मणुयाण तं कत्तो ? ॥२१॥ किंचजं किं पि मणुयलोए दीसइ अइसुंदरं भमंतेहिं । तं सग्गेणुवमिज्जइ 'सग्गो सग्गो इमो चेव' ॥२२॥ एगसमएण एगो व दो व तिण्णि व संखेय-असंख्या वा सुकयकम्मकारिणो देवलोगं गच्छन्ति । तो तमायण्णिऊण भणियं गणहरेण-भयवं! एवमेयं ण अण्णह त्ति । एत्थंतरम्मि उडिओ भयवं समोसरणाओ। विहरंतो य गाम-णयराइयं, अवणेन्तो मिच्छत्ततिमिरं भवियाणं, पत्तो सम्मेयसेलसिहरं । मग्गसिरबहुलेकारसीए महासु वट्टन्ते ससहरे सेलेसीविहाणेणं खवियभवोवग्गाहिकम्मंसो सिद्धिमणुपत्तो त्ति ॥ इति महापुरिसचरिए पउमप्पहस्स छट्ठस्स तित्थयरस्स चरियं समत्तं ॥८॥ १ण दाण-णाण स । २ माउय मुंजेस । ३ , पत्तो सम्मेयसि सू। ४ तं ति जे । Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ९ सुपाससामिचरियं ] तओ पउमप्पभाओ सागरोवमाणं णवहिं सहस्सेहिं कोडीणं गयाणं सुपासो समुप्पण्णो । सो य पियंगुमंजरीणिभो दोणि धणुसयाणि उच्चत्तेणं, वीसपुचलक्खाउओ त्ति । कहं ? भण्णइ जे संसारालंकारकारणं महियलम्मि ते केइ । उप्पज्जति सरूवेण पुण्णरासि च सप्पुरिसा ॥१॥ अस्थि इहेब जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे कासी णाम जणवओ पउरजण-धणसमाउलो पमुइयगामिणयजणजणियहलबोलो अज्जत्तसंपज्जन्तसासच्छेत्तरमणिज्जो, अवि य सइ जत्थ व तत्थ व जह व तह व संपडइ भोयणमणग्यं । दारिद्दघरेसु वि पंथियाण दहि-सालि-कूरेण ॥२॥ तत्थ य वाणारसी णाम णयरी । तहिं च रिद्धिविणिज्जियकुबेरविहवा वसंति जणवया। तत्थ य दरियारिमद्दणो भुवणभरिउन्नरियजसपम्भारो कित्तिमहागइणिग्गयवाहो समुण्णयभुयसिहरो दूरविणिग्गयपयावो सैयलजणाणंदकरो सुपइट्ठियचरिओ सुपइट्ठो णाम णरवई । तस्स विणिज्जियरतिरूवविब्भमा आयारकुलहरं विणयावासा सयलजणाणंदयारिणी पुहइ म खमाए पुहई णाम महादेवी । तीए य कवोलुच्छलियबहलजुण्हापवाह एव मुहपक्खालणं, कण्णन्तखलियलोयणजुवलमेव णीलुप्पलं, विलासह सियच्छेय एव चंदणंगराओ, णीसाससमीरणविसेसा एव सुगंधिणो पडवासा, अहरुच्छलियतिसमूह एव घुसिणमंडणं, मिउ-मंजुभासियाई चेव वीणाविणोओ, बाहुलयाओ चेव लीलामुणालाणि, हत्था एव विलासकमलाणि, थणकलसा एव णिम्मलदप्पणा, णियदेहप्पहा चेव आहरणं, कोमलंगुलिराग एव जावयरसो। एवं च सा अवयवेहिं भूसिया संचालिणि ब थलकमलिणी मंडइ भवणोवरद्धं ति। एवं च तीए सह विसयसुहमणुहवन्तस्स सुपइट्ठियराइणो अइकंतो कोइ कालो। ___ अण्णया सा रयणीए चरिमजामम्मि सुहपसुत्ता चोदस महासुमिणे पासिऊण विउद्धा समाणी साहेइ दइयस्स । तेण वि य अहिणंदिया पुत्तजम्मन्भुदएण। तओ गेवेज्जाओ चुओ तम्मि चेव रयणीए भद्दवयसुद्धपंचमीए विसाहजोगजुत्ते मियंके पुहईएँ गब्भे समुन्भूओ, संवढिओ य। सुहंसुहेण पसूया जेट्ठस्स सुद्धवारसीए विसाहारिक्खम्मि । 'भगवम्मि य गब्भगए जणणी जाया सुपास' ति तो भगवओ सुपास त्ति णामं कयं । कओ पुनक्कमेणेव सोहम्माहिवइणा जम्माभिसेओ। वढिओ य । विवाहिओ य। पंच य पुचलक्खा कुमारभावमणुपालिऊण, चोदस य पुव्वलक्खे वीस य पुव्वंगाइं रज्जमणुवालिऊण य, लोगन्तियपडिबोहिओ जेट्ठस्स सुद्धतेरसीए विसाहाणक्खत्ते पइण्णामंदरमारूढो । जहुतविहारेण य विहरिऊण पियंगुतरुच्छायाए पियंगुमंजरीसामदेहो णव मासे छउमत्थभावमणुवालिऊण फग्गुणबहुलछट्ठीए दिवं गाणं संपत्तो। विरइयं देवेहिं समोसरणं । पन्चाविया य तेणउई गणहरा भगवया। पत्थुया धम्मकहा। संबुझंति पाणिणो । तं जहा चइयव्वं मिच्छत्तं, णिराकरणीया चत्तारि कसाया, उज्झियव्या अविरती, णाणुठेयं पमायाचरणं, णिरंभियव्वा सावज्जा मण-वइ-कायजोगा, गहियव्वाणि सम्मत्त-णाण-चरणाणि, जिंदणीओ विसयाहिसंगी, अहिलसणीओ कम्मक्खओ ति । तमायण्णिऊण भणियं गणहारिणा-भयवं ! एवमेयं, ण संदेहो, किं पुण किंभूयं कम्मं जस्स खओ य अहिलसणीओ ?। भगवया भणियं-"सोम ! सुण, णाणावरणाइयाणि अट्ठ कम्माणि मूलभेयओ हवंति । उत्तरभेएण पुण णाणावरणीयं १ पवहो सू । २ सयाणंद सू । ३ जुयल जे । ४ °ए सो ग जे । ५ सुपासु जे । Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९ सुपाससामिचरियं पंचभेयं । दरिसणावरणीयं णवभेयं । वेयणिज दुभेयं । मोहणीयं अट्ठावीसभेयं । आउयं चउम्भेयं । णाम बायालीसमेयं । गोत्तं दुभेयं । अन्तराइयं पंचभेयं ति । एवमेएसिं कम्माणं खएणं अञ्चन्तो अणागहरूबो मोक्खो पाविज्जई" ति । एवमायण्णिऊण भणियं गणहरेणं-एवमेयं, ण अण्णह त्ति । तओ भयवं काऊण धम्मदेसणं, पडिबोहिऊण पाणिणो, विहरिऊण भरहखेत्तं, वीसई पुन्बलक्खे आउयमणुवालिऊण फग्गुणबहुलसत्तमीए मूलणक्खत्ते सम्मेयसेलसिहरे सिद्धिमणुपत्तो ति ॥ इति महापुरिसचरिए सुपाससामिसत्तमतित्थयरचरियं सम्मत्तं ॥९॥ १ मिणो मत जे Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ १० चंदप्पहसामिचरियं ] :÷x;÷ सुपासतित्थयराओ वहिं सागरोत्रमकोडीणं सएहिं गएहिं चंदप्पभदेहसोहो चंदप्पहो दिवढधणुसयमुच्चत्तेणं दसपुव्वलक्खाओ समुप्पण्णो त्ति । कहं ? भण्णइ उपज्जइ भवकम्म कोइ परहियणिबद्धववसाओ । तप्पंकंकविमुको कमलं पित्र णिम्मलच्छाओ ।। १॥ अस्थि इव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे चंदमंडलं पिव कलाणुगया चंदउरी णाम णयरी । तत्थ य हियपडिवक्खमहासेणो महासेणो णाम राया परिवसः । तस्स य संपुष्णसव्त्रलक्खणा लक्खगा णाम महादेवी । तीए सह वियहमन्तस्स अइकंतो कोइ कालो । अण्णा उब िवसन्तमासे वियसिएस काणणंतरेसु, समुच्छलिए परहुयारवे, वियंभिए मयणसरपसरे, पयट्टासु णयरचच्चरीसु, मज्जाइकमसमुज्जए तरुणियणे, सहयारमंजरीरयरुद्रपहिययणपहपसरे, णिन्भरे महुमाससमए वियंभमाणे, अवि य ईए कुतो वसन्तमासम्मि मंडणं तिलयो । सहयारमंजरी फुडइ मच्छरेणं व छउयंगी ॥ २ ॥ सहयारपल्लवग्गमि महुहुणंतम्मि मयरकेउम्मि । पवसिय बहुवहणस्थं किच्च व्त्र समुद्रिया कलिया ॥ ३ ॥ पहियघरिणीए दट्टु जलियं पिव पल्लवेहिं सहयारं । डहणभए व सित्तं हिययं णयगंसुसलिणेणं ॥ ४ ॥ सहयारवणे दइयं अपेच्छमाणी उ वरहुया वरई । रत्तासोयं पविसइ चियं व मरणेक्कत्रवसाया ॥ ५ ॥ जेहियं सुरयसुहं तम्माणं जो धरेइ अह तं पि । मारइ मयणगरिंदो इय परहुयडिंडिमो भइ || ६ || णीसाहारो सहयारदंसणे, किंमुयम्मि अइकिसिओ । होइ असोए ससोओ, वसन्तमासम्म पहिययणो ॥ ७ ॥ सच्चं चिय कुसुमसरों रइणाहो जेग कुसुममासम्मि । सरबहुअयाए पूर्ण दुव्विसहो होइ तैरुणियणे ॥ ८ ॥ इय एरिसे बसन्तम्मि पमुझ्यासेससारजियलोए । पेच्छइ सुइणे सयणम्मि लक्खणा णीसहपत्ता || ९ || एवं च रयणीए चरिमजामम्मि चोदस वि महासुमिणे पासिऊण विबुद्धा समाणी साहेइ दइयस्स । तेण विय अभिनंदिया पुत्तजम्मेणं ति । तओ तीए चेत्र रयणीए वैजयंतविमाणाओ चुओ मुत्तिमन्तो व्व पुष्णरासी चेत्तस्स बहुलपंचमी विसाणक्खत्तम्मि समुब्भूओ । पुणो पडिपुण्णे काले पोसस्स बहुलबारसीए लक्खणा सयललक्खणोत्रवेयं सुणं दारयं पया । पिउणा य 'चंदप्पहसमागो' त्ति कलिऊण चंदष्पहो ति णामं कयं भगवओ । वढिओ य कमेणं । तओ अड्ढाइज्जेसु पुव्वलक्खेसु कुमारभावमणुवालिऊण, रज्जं च अद्धसत्तमे, तओ लोयन्तियपडिवोहिओ, कहं ? - - गरय-तिरिय-सुरलोयभत्रविसालम्मि दुहजलोहम्मि । पकलकसायकरिमयरपावपंकम्मि दुप्पेच्छे ॥ १० ॥ मिच्छत्तुब्भडवीयिम्मि कम्मकल्लोलसयकडिल्लम्मि । सइरोय- सोयकडयालयम्मि दारिद्दमयरम्मि ॥ ११ ॥ जम्मण-मरणुप्पेहडतडपडणभयाउलम्मि विसमम्मि । अन्तद्वियमहिहरगरूयसिहरवसणम्मि विरसम्म ।। १२ ।। इ एरिसम्मि संसारसायरे विसयसोत्तपडियाण | जीवाण कुणसु तं गाह ! तित्थमउलं दुहत्ताणं ॥ १३ ॥ कोहुब्भडगुरुवेयवज्जियं मागपव्ययविहीणं । माया-मय वाहलिया रहियं सहियं बहुगुणेहिं ॥ १४ ॥ गुरुलोहविवररहियं मोहमहावत्तवज्जियमणग्धं । कुगइगमणेक्कपञ्चलपहपरिहरियं मणभिरामं ।। १५ ।। १ "राइए अकुणता व जे । २ तिल्या जे । ३ विसितं सू । ४ चियम्मि मं सू । ५ तरुणयणे सु, तरुणिय णे-तरुदर्शने । ६ जीयाण जे । Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १० चंदप्पहसामिचरियं । गिरवायणेव्वुइपुरं सिग्घमविग्घेण जेण पावेति । जं परवाइमतीणं दूरम्मि ठियं महाविसयं ॥ १६ ॥ इय तं पयडेसु जए महाणुभावेहिं पुव्वमायरियं । तित्थं जयणाह ! तुमे तेलोकविद्वत्तमाहप्पं ॥ १७ ॥ इय एवमाइ लोयंतिएहि लोयग्गगमणववसाओ । पडिबोहिओ महप्पा णिओयवत्तीहिं देवेहिं ॥ १८ ॥ एवं लोयंतियदेवेहि पडिबोहिओ पइण्णामंदिरं पोसस्स बहुलतेरसीए समारूढो। तिण्णि य मासे छउमस्थपरियायमणुपालिऊण पुण्णागपायवस्स छायाए चेत्तसुद्धपंचमीए अणुराहाणक्वत्ते केवलमणुपत्तो । पवाविया य अट्ठासीइं गणहरा । विरइयं देवेहिं समोसरणं । पत्थुया धम्मकहा भगवया । साहिओ संसारसहावो, पयडिओ मोक्खमग्गो । तओ लद्धावसरेणं भणियं गणहरेणं-केरिसो उण मोक्खो ?, किं वा सरुवं मुत्ताणं ?। भगवया भणियं-सुणसु । इह सोहम्माइया उवरोवरिट्ठिया बारह देवलोया, तेसिमुवरि णव गेवेज्जाणि । पुणो पंच महाविमाणाणि । सव्वहविमाणाओ उवरिं बारसेहिं जोयणेहि सिद्धी। सा य अच्चंतणिम्मला, बहुमज्झदेसभाए अट्ट जोयणाणि बाहल्लेग, बहुमज्झदेसभायाओ कमेण य हीयमाणा मच्छियपत्ताओ परंतेसु तणुययरी । तत्तो य ईसिपब्भाराए पुढवीए उवरि जोयणं, तस्स य चउभाओ, तस्स वि छन्भाए सिद्धाणमवगाहो त्ति । धणूण तिणि सयाणि तेत्तीसाणि धणुतिभागो य उँकोसा सिद्धाणोगाहणा। अट्ठ समया णिरन्तरं सिझंति । उक्कोसेणं समएण अछुत्तरं सयं सिज्झइ त्ति । तत्थ य सिद्धा अजराऽमरा उवउत्ता दंसणे य गाणे य साईयमपज्जवसाणं कालं चिट्ठति । अवि य कम्मक्खयसंभूयं अञ्चतेकंतसासयं सोक्खं । जह अणुहवंति जीवा मोक्खे तं मे णिसामेह ॥ १९ ॥ सव्वट्ठविमाणाओ बारसजोयणपहम्मि वरसिद्धी । माणुसखेत्तपमाणा उम्मुहसियछत्तसंठाणा ॥२०॥ सा य बहुमज्झदेसे अटेव य जोयणाणि बाहल्लं । परंतेसु य तणुई मच्छियपत्ताउ तणुअयरी ॥ २१ ॥ उत्ताणयसियछत्तायाराए तीए जोयणतुरीए । जो छब्भाओ तत्थ य सिद्धाणोगाहणा भणिया ॥ २२॥ पुण्णं च तह पवित्तं पहाणकल्लाणमंगलमुदारं । लोगुत्तरं सुहं ति य परमपयं सासयं भणियं ।। २३ ।। अजरममरं अरोगं अकिलेसं सयलदंदपरिहीणं । अच्छेज्ज अब्भेयं अणुत्तमं तं अणावाहं ॥ २४ ॥ जमगोयरे अभव्वाण, भवियलोयस्स गोयरीभूयं । तं मोक्खपदं संसंति दिववरणाणिणो सययं ॥ २५॥ सम्मदंसण-णाणेहिं से मियियं जं चरित्तमारूढा । ते पाउणंति मणुया अभंवभितरे णियमा ॥ २६ ॥ जे सीलभारवहणुज्जया सया तह तवम्मि उज्जुत्ता । ठइयामवदाराऽऽरम्भवज्जिणो गुत्तिगुत्तिल्ला ॥ २७ ॥ अट्ट रोई झाणं चइऊणं धम्म-मुक्कझायारो । सुहपरिणामा णिज्जियमोहा विच्छिण्णकामा य ॥ २८ ॥ समतण-कंचण-मणि-लेढुभावभावेहिं भावियसरीरा । बारसविहे तवम्मि य कम्मक्खयकारणऽग्यविया ।। २९ ॥ तित्थयरवयणपंकयविणिग्गयाऽऽयमविसारया धीरा । अंगाण बारसण्हं पुयाण य णिच्छयविहण्णू ॥ ३०॥ लहिऊण केवलं खवयसेढिइ कमेण खीणकम्मंसा । सेलेसिं गंतूणं मुणओ परमं पदं जन्ति ॥ ३१ ॥ उक्कोसेणऽसयं सिज्झति समएण मुकबंधाणं । विरहो जहण्ण समओ, उक्कोसो होइ छम्मासा ॥३२॥ आरोहंति जिगिंदा छ च्चेव य दस उ पंच य विबुद्धा । समएणं सिद्धिपहं दियलोयचुयाण अट्ठसयं ॥ ३३ ॥ उक्कोससरीरा "दोण्णि जंति चत्तारि हेट्ठिमा समए । अटेव उ मज्झिमया समाणदेहा उ सिद्धिगति ॥ ३४॥ एरंडफलं अग्गी जहा सहावेण होति उड्ढगती । तैध सिद्धाण मुणेजह कम्मविमुक्काण लोयग्गे ॥ ३५ ॥ ण परेण होइ गमणं लोयग्गाओ उवग्गहाभावा । तत्थेवावट्ठाणं पुणागमणकारणाभावा ॥ ३६॥ सम्मत्त णाण दंसण मुहमत्तं वीरियं च उग्गाहो। अगरुयलहयाऽबाहा अट्र गुणा होति सिद्धाणं ॥ ३७॥ दड्ढम्मि जहा बीए पहवइ य ण अंकुरो त्ति सुपसिद्धं । तह कम्मबीयदाहे भवंकुरो णेय संभवइ ।। ३८ ॥ १यन्वुिइ जे । २ त्वम् । ३ एत्तो वि ई जे । ४ उक्कोसोगाहणा सू । ५ रा अमरा जे । ६ तम्भे सू । ७ जोवणाणि सू। ८ मरोग जे सु। ९ समिइयं जे । १० भवऽभतरे जे । ११ सेढिकमेण जे, सेढिकम्मेण सू । १२ दोहि सू । १३ तह जे । १४ 'ग्गा होउव' सू। Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउप्पन्नमहापुरिसचरियं । घणसंरोहविमुक्कं अहियं जह भाति मंडलं रविणो । तह अट्टकम्ममुक्का सिद्धा दिपंति लोयंते ।। ३९॥ जह अण्णोण्णाबाहं दीवाण पभाओ होन्ति एगहुँ । एगस्थाऽवहाणे य तह अमुत्ताण का चिंता ? ॥४०॥ चंदा-ऽइच्चा सययं खेत्तं भासंति परिमियं लोए । लोया-ऽलोयपयत्थे सिद्धा भासंति णाणेणं ॥ ४१ ।। तिणि सए तेत्तीसे घेणुत्तिभागो य एस उक्कोसो । होइ जहण्णवगाहो सतिभागा तत्थ रयणि त्ति ।। ४२ ॥ तिरिएहितो मणुया, तेहिंतो वि हु णरेसरा सुहिया । तत्तो अकम्मभूमा, तो वि सिद्धा अणंतगुणा ॥ ४३ ॥ जोइस-चन्तर-भवणा [य] कप्पवासी जहुत्तरा सुहिया । तेहिंतो मेवेजा, तत्तो वि अणुत्तरा देवा ॥ ४४ ॥ तेसु वि सव्वट्ठविमाणवासिणोऽचन्तसोक्खपडिबद्धा । तत्तो सुहियतरागा लोए सव्वुत्तमा सिद्धा ॥ ४५ ॥ इय एस समक्खाओ मोक्खविही लेसओ सुविहियाणं । फुड-वियड-पायडत्थो वित्थरओऽण्णत्थ दहव्यो ॥४६॥ किंच सिद्धाण गुणदारेण सद्दो एको वि ण पयट्टइ त्ति, जो सिद्धे संठाणाएसेण ण दीहे ण हस्से ण बट्टे ण तंसे ण चउरंसे ण परिमंडले । वण्णाएसेणं ण कण्हे ण णीले ण लोहिए ण हालिद्दे ण सुकिले । गंधाएसेणं ण सुरहिगंधे ण दुरहिगंधे । रसाएसेणं ण तित्ते ण महुरे ण अंबिले ण कडुए ण कसाए । फरिसाएसेणं ण मउए ण कक्खडे ण गरुए ण लहुए ण गिद्धे ण लुक्खे ण उण्हे ण सीए । तहा ण पुमं ण इत्थी ण णपुंसए ण सरीरी ण संगट्ठी ण रुहे ति । जइ वा कम्मक्खयाऽहिलावेणं सिद्धाण गुणा भौसियत्रा, तहा हि-खीणपंचविहणाणावरणिज्जे खीणणवविहदरिसणावरणिज्जे खीणदुविहवेयणिज्जे खीणदंसणमोहे खीणैचारित्तमोहे खीणचउव्विहाउकम्मे खीणसुहणामे खीणासुहणामे खीणउच्चागोए खीणणीयागोए खीणपंचविहंतराए त्ति । तओ परूविऊण मोक्खसरूवं, विहरिऊण महिमंडलं, सम्मेयसेलसिहरे भवयबहुलष्टमीए संवणसमीवमुवगए ससहरे समणसहस्सपरिखुडो असेसकम्मक्खयलक्खणं मोक्खमणुपत्तो ति॥ इति महापुरिसचरिए अट्ठमतित्थयरस्स चंदप्पहसामिणो चरियं समत्तं ॥१०॥ १ धणुतिभा जे सू। २ भाणियम्वा जे । ३ णचरित जे। ४ समण जे । ५ इय म जे। Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ११ पुष्पदंतसामिचरियं ] तओ चंदप्पभाओ सागरोवमकोडीणं णउईए समइक्कन्तार धणुसयमुच्चत्तेणमुव्विद्धो पुष्पदंतो समुप्पण्णो । कहं ? भण्णइ ते के वि जए जायन्ति पुच्चपुण्णाणुहावगुणकलिया । जाणुप्पत्तीए इमो सुणिव्वुओ होइ जियलोओ ॥१॥ अत्थि इहेव भारहे वासे कायंदी णाम णयरी अञ्चतं मणभिरामा । तत्थ य सुग्गीवो णाम णराहियो । तस्स य अचंतसुंदरी रामा महादेवी । तीए य सह विसयमुहमणुहवन्तस्स अइकंतो कोइ कालो । अण्णया य उवढिए बालवसन्ते उम्मिल्लमाणासु सहयारमंजरीसु फग्गुणबहुलणवमीए रामा मुहपमुत्ता रयणीए चरिमजामम्मि चोद्दस महामुमिणे पासिऊण विउद्धा समाणी साहेइ जहाविहि दइयस्स । तेण वि आसासिया पुत्तजम्मऽम्भुदएणं । तीए चेव रयणीए वेजयन्तविमाणाओ चुओ रामाए कुच्छीए समुभूओ । जाओ य मन्गसिरबहुलपंचमीए मूलणक्खत्तेणं । पइटावियं च से णामं पुप्फदंतो त्ति । वढिओ सह कलाहि ।। कमेणं पण्णासं पुव्वसहस्सा कुमारभावमणुवालिऊण, तावइया चेव रज्जं भोत्तूण अट्ठावीसं च पुव्वंगाई, लोयंतियपडिवोहिओ पइण्णामंदरमारूढो । चत्तारि य मासे छउमत्थपरियायमणुवालिऊण कत्तियमुद्धतइयाए मूलगए ससहरे केवलबरणाणमणुपचो त्ति । पन्याविया य एक्कासीति गगहरा भगवया। विरइयं देवेहिं समोसरणं । पत्थुया धम्मकहा। बुझंति पाणिणो। तओ एएणं चेव कमेणं विहरिऊण पुवाणं दुवे लक्खा भरहखेत्तं, संबोहिऊण भवियकमलायरे सम्मेयगिरिसिहरे भद्दवयसुद्धणवमीए मिगसिरणक्खत्ते सिद्धिमणुपत्तो ति ॥ इति महापुरिसचरिए णवमतित्ययरस्स पुष्फदन्तस्स चरियं सम्मत्तं ॥ ॥ महापुरिसा ११ ॥ १ई च, लाजे। Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१२ सीयलसामिचरियं] सागरोवमकोडीणं णवहि गयाहि पुष्पदन्ताओ सीयलो जाओ ति । कहं ? भण्णइणिज्जियसेसुषमाणा परहियसंपाडणेकरवसाया । जायंति महापुरिसा पयाण पुण्णेहि भुवणाम्मि ॥ १ ।। अत्थि इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे भदिलपुरं णाम णयरं । तत्थ य राया दढरहो णाम । तस्स य गंदाए सह महादेवीए क्सियसुहमणुहवंतस्स अइक्तो कोइ कालो। __ अण्णया य वैसाहकिण्हछट्ठीए चरिमजामम्मि णंदा सुहपमुत्ता चोदस महासुमिणे पासिऊण विउद्धा समाणी साहेइ जहाविहिं दइयस्स । तेण वि समासासिया पुत्तजम्मेणं । तओ तीए चेव रयणीए पोणयकप्पाओ चुओ समासाइयतित्ययरणाम-गोत्तो समुप्पण्णो णंदाए कुञ्छिसि । जाओ य कमेणं माहस्स किण्हवारसीए पुन्यासाढाहिं । पइटावियं च से पामं सीयलो ति । कमेण य संवढिओ । तो कियन्तमवि कालं कुमारभावमणुपालिऊण, रज्जं च अणुपालिऊण, माहस्स किण्हतेरसीए आसाढाहि लोयन्तियपडिबोहिओ पच्चक्खदिट्ठविलयं पिच पणइणिं रायलच्छि परिहरिऊग पडिवण्णो समगत्तणं । अणुक्रमेण य विहरिउं भरहखेतं, अहियासेऊण बावीसं परीसहे, विहाडेऊण मोहजालं, उम्मूलेऊण अंतराइएण सह णाण-दंसणावरणमासाइयं सासयमेगविहमप्पडिवादि अणागयपयत्यसब्भावभासयं आसाढकिण्हसत्तमीए पुन्नासाढाहिं केवलणाणं । विरइयं देवेहि समोसरणं । पन्चावियाँ छहत्तरं गणहरा । पत्थुया धम्मकहा । बुज्झन्ति पाणिणो । छडेति विसयसंगं, उज्झंति रायसिरि, सिढिलेति णेहपासे, विज्झति कोहग्गि, लंघति मागपव्ययं, छिदंति मायाकुंडंगी, परिहरंति लोहणारो] च बहवे पाणिणो । किंच--- उप्पण्णम्मि अणंते णम्मि य छाउमत्थिए णाणे । देवेहिं समोसरणे रइए सिंघासणसणाहे ॥२॥ तत्थुवविट्ठो अणिमित्तवच्छलो भुवणभूसणो भयवं । धम्मं दोग्गइधरणेकपच्चलं साहइ पयाण ॥ ३॥ सुर-मणुया-ऽसुरतिरिओववेयपरिसाए साहइ जिणिंदो । जह संसारऽरहट्टे भमंति जीवा अपारमिम ॥ ४ ॥ मिच्छत्त-कसाया-ऽविरति-गुरुपमाएण जोगसंजुत्ता । बंधन्नि विविहकम्मं भमंति भवसागरे जेण ॥ ५॥ सम्मत्त-णाण-चरणेहि सम्ममाराहिएहिं जह मोक्खं । पावेंति समियपावा जीवा तह साहइ जिणिदो ॥६॥ सम्मत्तऽणुहावेणं देवत्तं तह सुमाणुसत्तं च । पाति केइ जीवा जिगिंदधम्माणुहावेणं ॥७॥ मोत्तूण सयण-धण-परियणाइयं तह निसंगभावेणं । विहिणा चारित्तधुरं धरिऊणं जंति सिद्धिगतिं ॥ ८॥ इय साहेइ जिगिंदो समुरा-ऽसुर-तिरिय-मणुयपरिसाए । धम्मं सोग्गइमग्गं दोग्गइमग्गग्गलं विहिणा ॥ ९॥ एवमणुक्कमेणं काऊण धम्मदेसणं, विहरिऊण महिमंडलं, पुव्वलक्खमाउयमणुपालिऊण सम्मेयगिरिसिहरे वैसाहकिण्हवीयाए पुव्वासादाहि णेव्वाणमणुपत्तो त्ति ॥ इति महापुरिसचरिए दसमतित्थयरस्स सीयलस्स चरियं सम्मत्तं ॥१२॥ सू । ६ कुडरों जे । ७ उजे। १ पाणइक जे । २ राएण जे । ३ सन्भूयमा जे । ४ या गण सू । ५ रिंग लुपति मा ८ असुरणरासुरतिरि' जे सू । ९ गुरुप्पमा जे सू। Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ १३ सेजससामिचरिये ] सागरोत्रमसएणं छावट्ठीएण वरिसलक्खेहिं छब्बीसाए परिससहस्सेहिं ऊणाए सागरोक्मकोडीए गयाए तो सीयलाओ सेज्जंसो समुप्पण्णो त्ति । कहं ? ति, भण्णति सुहकम्मकंदवावियविसट्टसुहकिसलयाण गरुयाण । पुरिसाण संभवो ताण जाण उवमा ण संभवइ ॥ १ ॥ अत्थि इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे सिंघपुरी णाम णयरी । तीए णयरीए विण्हू णामेण णराहियो । तस्स य सयलंतेउरपहाणा सिरी णामेण महादेवी । तीए य सह विसयसुहमणुहवन्तस्स अइक्कतो कोइ कालो। अण्णया य समागओ गिम्हो । तओ दुग्गयसप्पुरिससरीरं व अणवरयं तणुईहोइ सरसलिलं, पच्छण्णपावसंकह व्य हिययं डहइ मही, अवि य झिज्जइ रयणी वदंति वासरा तवइ मंडलं रविणो । उहो खरो य पत्रणो कालो भग किं ण दंसेइ ? ॥ २॥ देसु जलदं देहम्मि, हारमाहरसु, किरसु कप्पूरं । चंदणरसेग सिंचसु, णलिणीदलसत्थरं कुणसु ॥३॥ मंदंदोलणउक्खेवखेवपवणेण खेयमवहरसु । इय पसरिउं पैयत्ता उल्लावा परियणे पहुणो ॥ ४ ॥ झंझापवणुधुयधूलिपडलपसरन्तरुद्धदिसियक्के । गिम्हे णडिया मायण्डियाए पहियाण पत्थारी ॥ ५ ॥ कासारोयरसेसम्मि पंककलुसे जलम्मि तद्दियहं । कह कह वि णेइ गुरुसेरभीण जूहं पि मज्झण्हं ॥ ६॥ इय एरिसम्मि गिम्हे तण्हासन्तावतावियसरीरा । उज्झन्ति णेय णिदं हरिणा वाहं पि दणं ॥ ७॥ तओ एरिसम्मि काले वट्टन्ते जेटस्स किण्हछटीए सवणगक्खत्ते सिरी सुहपसुत्ता रयणीए चरिमजामम्मि चोदस महासुमिणे पासिऊण विउद्धा साहेइ जहाविहिं दइयस्स । तेण वि पुत्तजम्मेणाभिणंदिया । इओ य समासाइयतित्थयरणाम-गोत्तो भगवओ जीवो महासुक्काओ चइऊण तीए चेव रयणीए सिरीए गब्भम्मि समुप्पण्णो । जाओ य फग्गुणस्स किण्हवारसीए सवणेणं । पट्टावियं च से णामं सेज्जंसो ति। पुव्वक्कमेणेव वढिओ विवाहिओ य । ___ तओ लोयन्तियपडिबोहिओ फग्गुणबहुलतेरसीए सवणेणं आरूढो पदण्णामंदरं । पालिऊण छउमत्थपरियायं तओ असोयरुक्खस्स अहे झाणंतरियाए वट्टमाणस्स उप्पण्णं तीया-ऽणागयवत्थुम्भासणं वइसाहकिण्हणवमीए सवणेणं केवलं ति। विरइयं देवेहि समोसरणं । पत्थुया धम्मकहा । बुझंति पाणिणो, छि जति संसया । उनदिहाणि भगवया महापयाणि, तं जहा-उप्पण्णे इ वा विगए इ वा धुए इ वा । तओ तयणुसारेणं विसिटखओवसमलद्धिसंपण्णेहिं गणहरेहिं विरइयाणि आयाराईणि बारस वि अंगाणि । पत्थुया धम्मकहा। साहिओ सम्मत्त-णाग-चरणरूओ मोक्खमग्गो" । उवइटें सच्चागुरुवं सम्मत्तं । तं च दुभेयं-णिसग्गसम्मईसणं अहिगमसम्मइंसगं च । परूविया जीवा-ऽजीवा-ऽऽसव-संवर-बंध-निज्जरा १°ओ य से जे । २ संभवंताण सू । ३ विठू सू , विहू जे। ४ °सक व्व जे । ५ खेयर सू । ६ पवत्ता जे । पइणो स् । ८ उवविद्याणि जे सू । ९ अंगाई जे। १. 'ग्गो ति। उजे ११ सव्वाणु सू । Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९४ चउप्पन्नमहापुरिसचरिय। मोक्खपज्जवसाणा सत्त पयत्था । सिट्ठा य दुविहा जीवा-संसार[स]मावण्णा सिद्धा य। तत्थ संसारिणो दुविहा-तसा थावरा । तस्य थावरा पुढविकाइया आउकाइया वाउकाइया तेउकाइया वणस्सइकाइया । तसा उण बेइंदिया किमियादओ, तेइंदिया पित्रीलिकादओ, चउरिदिया मच्छियादओ, पंचेंदिया तिरिया मणुया देवा जेरइया य । अजीवाखंधा खंघदेसा खंघप्पएसा परमाणुपोग्गला। धम्मत्थिकाओ धम्मत्थिकायदेसो धम्मत्थिकायस्स पएसो। एवमधम्मत्थिकाओ वि । आगासत्थिकाओ वि एवं चेव दट्ठन्यो । आसवो कम्मप्पवेसोवाओ, सो उण हिंसादीणि पावाणुट्ठाणाणि । संवरो पुण पावकम्मणिरोहो । बंधो मिच्छत्ता-विरइ-पमाय-कसाय-जोगेहिं कम्मवम्गणाणं गहणं । णिज्जरा आयावणाईहिं असुहकम्मविणिजरणं । मोक्खो असेसकम्मक्खयलक्खणो त्ति । ___ एवं विहरिऊण भरहखेत्तं, दाऊण हेत्थावलम्बणं संसारपंकखुत्ताण भवियसत्ताणं, पत्तो य भयवं सम्मेयगिरिसिहरं । तत्थ य सावणबहुलतइयाए सवणणक्खत्ते चउरासीतिं वरिसलक्खे आउयमणुपालिऊणं सिद्धो ति ॥ इति महापुरिसचरिए सेज्जंसस्स एकारसमस्स तित्थयरस्स चरियं समत्तं ॥ १३ ॥ हत्या वणं जे। २ मतित्थं स । ३ सम्म जे। Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१४-१५तिविठ्ठवासुदेव-अयलबलदेवाण चरियं] :-:-:-: सेजंसतित्थयरकाल एव तिविठू णामेण अद्धचक्कवट्टी असीइधणूसुओ चउरासीवरिसलक्खाऊ समुप्पण्णो । कहं ? भण्णइ मणयं पि णेय विसहइ सूरो तेयस्सिणं वियंभन्तं । जेण मलिउं मियंकं पच्छा भुवणं पसाहेइ ॥१॥ अत्थि इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे पोयणपुरं णाम णयरं । तत्थ य राया पसाहियासेसदिसावलओ पयावई णामेण परिवसइ । तस्स य महादेवी सव्यंगसुंदरी मिगावई णाम, अवि य-- मणिकिरणकरंबियकुसुमदामसंवलियपम्हपन्भारो । घणसण्हकिण्हणिद्धो णिज्जियसिहिकुंतलकलावो ॥२॥ सयलकलालयससिबिम्बैविम्हयुग्गारकन्तिपडहत्थं । वयणं मयणुम्मिलंतपंडुगंडयलराहिल्लं ॥३॥ अण्णोण्णपीडणुब्भडपरिणाहाहोअरुद्धवच्छग्रलं । उवरिपहोलिरहारं अलद्धविवरं थणावीदं ॥ ४ ॥ णिज्जियसेसुवमाणं मणिमयकडयुच्छलन्तहलबोलं । परिणाहपीवरावं दुराहयं(?) बाहुजुयलं से ॥५॥ अहमहमियवड्ढतेहि रमण-थणेहिं तहा परिक्खविओ । जह मुहिमेत्तगेझो मज्झो खामोयरगुणेण ॥ ६॥ णवघडणकंचिदामोरुभूसिओ वियडरमणपन्भारो । मयणकलहंसरमणेक्कजोग्गपुलिणत्थलुच्छंगो ॥७॥ णिच्छल्लियरम्भागम्भसच्छहं पीणजायपरिणाहं । वररमणभवणखंभं थिरोरुजुयलं मणभिरामं ॥ ८ ॥ सायड्ढियकलहंसालिमणितुलाकोडिरयणचइयं । आविद्धसंधिबंधणगूढसिरं चलणजॅयलं से ॥९॥ इय मणहरसव्वंगाए भूसियासेसभूसणगुणाए । मुंजइ इमीए सद्धिं राया हियइच्छिए भोए ॥ १० ॥ एवं च राइणो विसयसुइमणुहवन्तस्स अइकंतो कोइ कालो। अण्णया य मिरिइंजीवो संसारमाहिडिऊण अणंतरभवे महासुकाओ चुओ इमीए गन्मम्मि समुप्पण्णो। दिट्ठा य तीए रयणीए सत्त महासुमिणा । साहिया दइयस्स । तेण वि समासासिया पुत्तजम्मेणं । तो पुण्णेसु णवसु मासेसु भट्ठमेसु राइदिएसु सुहंसुहेण दारयं पम्या। कयं वद्धावणयं । मुक्काणि सम्बबंधणाणि । तस्स य पट्टीए वसतियं दठूण माया-पितीहिं तिविट्ठ त्ति णामं कयं । तस्स य जेट्ठभाउओ अयलो णाम बलदेवो ति। सो य तिविठ्ठ वज्जरिसहणारायसंघयणो महाबल-परकमो सयमेव लोयं अभिभवन्तो वड्ढिउमादत्तो। उम्मुक्कबालभावो य विक्कमेकरसिओ सुहडावलेवं वहिउमाढत्तो । अवि य तूसइ वीरकहासुं पसंसई साहसेकरसिए उ। दळूण य सोडीरं अहियं रोमंचमुबहइ ॥ ११ ॥ एवं अणवरयं वीरकहं पसंसंतस्स आणदियजणणि-जणयस्स विणिग्गयसाहुक्कारस्स सयललोयचमकारकारिचेट्टियस्स समुप्पण्णा बुद्धी-किमहं जुवइजणो व्व अणिग्गयपयावो अविणायलोयबला-ऽबलो घरमेत्तवावारो चिट्ठामि ?, ता णिम्गंतूण घराओ पयडेमि पोरुसं, पयासेमि भुयबलं, तोलेमि अप्पाणयं, अवणेमि णीसेसाणं बलाहिमाणं । इति चिंतिऊण आउच्छिऊण य जणणि-जणए आरुहिऊण य रहवरं कइवयबलसमेओ णियभुयदंडसमेओ कयविक्कमंगरक्खो विणिओइयणियवोहमंती अवमणियासेससोडीरो महिमंडलं भमिउमाढत्तो। १ विम्हमुग्गार जे। २ लरेहिल जे। ३ वद्धतेहिं जे।जुबलं जे। ५ मिरीयीजी सू । ६ महसु सू। . अयडो सू । ८ 'अवि य' इति सूपुस्तके नास्ति । ९ भुव जे। Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउप्पन्नमहापुरिसचरियं । दिट्ठो य तेण सच्छंद विहारिणा पञ्चयासण्णपए से पउत्थजणचओ तहट्ठियदेवउल-विहारा-ऽऽराम-गाम-गयरो अणहवरभवणणिरंतरो वरपोमिणिसंडडिओ पोक्खरिणी-दीहिये राहिल्लो उच्चसिओ देसो । तं च तहाविहं दद्दण पुच्छिओ णिययसारही कहेहि, केण उण दोसेण अयमश्वन्ताहिरामो उव्वसिओ देसो ? । तेण भणियं - " सामि ! सुणसु, इहाऽऽसनपव्त्रयगुहाए विणिज्जिया सेसमत्तमायंगो दुव्विसहचवेडाभासुरो पत्रणत्रसाऽऽगयलद्वगंधपणमयजूहो घणरवुप्पित्थ पहयैलंगूल में हीवीढो असोदसिघणाओ परिवसह सीहो । तेण य वावाइज्जेतेसु णरसमूहेसु भक्खिज्जन्तेसु चउप्पए, उत्तासिज्जतेसु गाम-णयरेसु, गहियमहाभओ उच्चसिओ एस देसो " त्ति । तओ तमायण्णिऊण भणियं कुमारेण - दो एस महासत्तो विक्कमेक्करसिओ, चोएसु तस्स सम्मुहं रहवरं ति । भणियं सारहिणा - किमणेणमणत्थडंटेण ?, ण अम्हाणमणेण देसेण वसिएण उच्चसिएण वा पओयणं, ण य सीहेणं वावाइएणं ति । तमायण्णिऊण भणियं कुमारेण - "नणु एयं चैव पओयणं जं परविकमासहणं ति । किं वा फलमवेविखऊण घणरवायण्णणेण रूस मयाहिवो ?, अवि य ९६ अणवेक्खऊण कज्जं, जसं च जीयं च जे पॅयट्टन्ति । कज्जारंभेसु सया ताण सिरी देइ सण्णेज्यं ॥ १२ ॥ किं तुमं इमाओवि मयाऽऽमिमुल्लिहडाओ सीहसावयाओ भयासंकं कुणंतो मं लज्जावेसु ? त्ति । ता किमिमिणा ?, चोए रहवरं" ति । तओ सारहिणा चोइओ रहो सीहगुहासम्मुहो । पत्ती य गुहादारदेसं । आयणिऊण य रहवर - णिग्घोस ईसीसिंग जूहासंकाए उम्मिल्लियं लोयणजुयं सीहेण । तओ पेच्छिऊण माणुसं पुणरवि जायावलोयणसम्मि लियं लोयणजुयलं । तओ अवद्वंभं पेच्छिऊण भणियं कुमारेणं- भो भो महासत्त ! अवद्वंभेणेव साहियं तुह पोरुसं, पड य परिहरियगोयवहो असेसवीरपुरिसोव्वसियगिज्जणो तुह परकमं देसो, ता महं जायतिरिक्खदयस्स वि असहियपरकमस्स तुह बलावलोयणकोऊहलाउलस्स इहागमणं ति, ता उट्ठेसु, दंसेसु विययपरकमं, चयसु अलियणिदं । ओ तमायणिऊण धुऊन कडारकेसरसडुग्घायं पहयणंगूलधरणिहरधरणियलो उष्णामियऽग्गकायदेसो वित्थारियमुकुहरो वियम्भि माढत्तो । तओ तमुट्ठियं दट्ठूण चिंतियं कुमारेण - एस तान तिरिओ णिराउहो भूमिगओ य, ताण जुत्तं मह आउहं धरेउं रहवरारूढस्स य एएण सद्धिं जुद्धेउं ति । एयं चिंतेन्तो ओइण्णो रहवराओ । भणिओ य सारहिणाकुमार ! ण जुत्तमेयं भवओ, जइ वि महाबल-परकमो भवं तहा चि एस सीहो जाइपञ्चएणेय अबहत्थियसेस पुरिसकी रिओ, विसेसेण एस त्ति, ता आरुहसु रहवरं, कुणसु सण्णाहं, गिण्हसु कालोचियमाउहं ति, वावाइएण एएण पओयणं, ण उण एरिसेण विहाणेण जारिसं तुमए आढत्तं ति, ता कुमारो अणुयत्तउ मह वयणं ति । तमायष्णिऊण भणियं कुमारेणसव्हा तुह वयणं मए सव्वकालमणुयत्तियं, इण्हिं पुण तुमए अणुयत्तणीयं । ति भणिऊण हक्कारिओ सीह किसोरो, भणिओ य-रे रे दुट्ठेतिरिक्खजोणिय ! एस संपयं ण "होसि त्ति । तओ रेरेकाराणन्तरमेव सीहेणं अवलेवेण सज्जिओ कमो । ताव य कुमारेण उभयकरयलगहियअहरुत्तरोहउडेण फालिओ मज्झेणं "चेय सीहकिसोरो । तओ फालिओ चेय अमरिसेण चडप्फडिउमादत्तो । तहापरिफुरंतो य भणिओ सारहिणा जहा - रे सीह ! मा एवं चडफडसु, ण य तुमं पाययपुरिसेण वावाइओ, किंतु पुरिससीहेणं ति ता मा संतप्प । तमायष्णिऊण य ववगयरोसप्पसरो विष्णो सीहो । पसंसिओ कुमारी सारहिणा । वसाविओ य देसो । अपणा महिमंडलं विहरिउमादत्तो । अण्णा य संखउरणगरावासियस्स कुमारस्स सारहिणा उज्जाणगएणं गुणचंदाहिहाणो चउष्णाणी बहुसाहुपरिवारिओ संसए छिंदंती लोयाणमवणेन्तो मोहणिदं अहाफासुए परसे दिट्ठोत्ति । तओ तं दण समुप्पण्णविम्हओ हरिसवसुप्फुल्ललोयणो कोऊहलावूरिज्जत हिययत्रियसमाणणयणजुयलो पत्तो साहुसमीवं । वंदिया य रोमंचकंचुइल्लेण ४ महीवेढा सू । ५ पयत्तंति जे ६ सिमय जे ७ रतणो अजे । ११ चेव जे १२ अइरोसेण जे । १३ बहुजणपरियारिओ सू । १ यरेहिलो जे २ ण य भ जे । ३ 'यणगूल जे ८ जुज्ड जे ९ तिरियजो' जे । १० होहि । तं जे ד' Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९७ १४-१५ तिविट्ठवासुदेव-अयलबलदेवाण चरियं । गुरवो। उवविट्ठो य चलणन्तिए धम्मं सोउमाढत्तो। पुच्छिओ य कहावसाणे जहा-"भयवं ! अञ्चतकूरकम्मकारी णर-तिरियवावायणपसत्तो अम्ह सामिणा वावाइओ गिरिगुहाए वसंतो सीहो ति । सो य अञ्चन्तबल-परक्कमो अवमणियसेससप्पुरिसो उद्घो चेव फालिओ कुमारेणं । तहागओ वि रोसावेसेण फुरफुरन्तो 'चेव चिट्ठइ, ण जीवियं परिचयइ । तओ मए भणिओ जहा-भो महासत्त ! पुरिससीहेण तं वाचाइओ, ण सामण्णपुरिसेगं । ति मुणिऊण पंचत्तमुवगओ। ता साह भगवं ! किं सो तिरिक्खभावे वि परिफुडविष्णाणो लक्खेइ किं पि भणियमुयाउ ण व?" ति। तओ तमायण्णिऊण भणियं दिव्त्रणाणिणा-महासत्त ! मुणम् महंती कहा तए पुच्छिय ति।। ___ अत्यि इहेव जंबुद्दीवे दीवे इक्खागभूमी । तत्य णाभी कुलगरो। तस्स य मरुदेवीए भारियाए समुप्पण्णो उसहसामी तित्थयरो। तस्स य उप्पण्णदिवणाणस्स पुत्तस्स भरहचकवट्टिणो सुओ मिरिई समुप्पण्णवेरग्गो पव्वइओ, जहुत्तविहारी विहरइ। * अण्णयाँ अचिन्तसत्तित्तणओ कम्मपरिणईए, अवस्सभावित्तणओ तस्स भावस्स, जाणन्तस्स वि उम्मग्गदेसणापरिणामफलं तस्सुम्मम्गदेसणापरिणामो संवुत्तो । पयट्टावियं च तेण कुलिंग भागवयदरिसणं । उवसंते य सीसत्तेण साहूण समप्पेइ । 'गिलाणपडिजागरन्ति एगं पवावेमि' ति चिन्तयन्तस्स उवढिओ कविलाहिहाणो रायपुत्तो । साहिओ य तस्स साहुधम्मो । भणियं च तेणं-जइ एवं ता कीस तुमं एवंविहलिंगधारी संवुत्तो ? । तेण भणियं-कविला ! एत्थं पि अत्थि धम्मो, साहुदंसणे वि अत्थि त्ति । तओ एएण दुभासिएण बद्धं दुहविवागं कम्मं । पन्चाविओ य कविलो। चिटइ तस्संतिए । सरइ संसारो। मिरीयी वि चउरासीपुब्बलक्खे आउयमणुवालिऊण, चइऊण अणसणविहिणा तस्स य दुम्भासियट्ठाणस्स अपडिक्कतो, मरिऊण बम्भलोए कप्पे दससागरोवमाई(वमोहिईओ देवो समुप्पण्णो। कविलो वि गन्थत्थविण्णाणरहिओ केवलं तकिरियाणुढाणपरायणो विहरति । अण्णया तेण आसुरी णाम पन्चाविओ। तस्स य सो कविलो आयारमेत्तं उद्दिसिऊण, अण्णे य बहवे सीसा पवावेऊण य, सदरिसणाणुगयचित्तो मरिऊण बम्भलोगं चेव गओ। तेण य उप्पचिसमणंतरमेव उवउत्तो ओही, उवलद्धो पुचजम्मवुत्तन्तो। चिंतियं च णेण जहा-मज्झ सीसो विसिट्ठविण्णाणरहिओ, ता एयस्स उवइसामि तत्तं । ति चिंतिऊण ओइण्णो मत्तलोए । आगासत्थपंचमंडलकोवविट्ठो तत्तं उद्दिसिउमाढत्तो, तं जहा-अन्यत्ताओ तिगुणपरिणामप्पहाणाओ व पहबइ ति । तओ तस्मुवएसेणं सद्वितंतं संजायं ति। मिरीयी वि देवलोगाओ चविऊण कोल्लागसन्निवेसे कोसिओ णाम बम्भणत्तणेण समुप्पणो । तत्थ य असीर्ति पुबलक्खे आउयमणुवालिऊण, अन्ते य परिवायगत्तणेणं विहरिऊण, कालं च काऊण मओ । मरिऊण अंजहण्णुक्कोसद्विइओ सोहम्मे कप्पे समुप्पण्णो। तो य इऊण चेइए सण्णिवेसे अग्गिज्जोओ णाम बंभणो समुप्पण्णो । तत्य य चउसहिं पुव्वलक्खे आउयमगुवालिऊण अन्ते परिवायओ होऊण मओ । मरिऊण य ईसाणे कप्पेऽजहष्णमुकोसहिई देवो समुप्पण्णो। तओ य चइऊण मंदिरे णगरे अग्गिभूई णाम बंभणो संवुत्तो । तत्थ य छपंचासे पुचलक्खे आउयमणुपालिऊण अन्ते परिवायगत्तणेणं मरिऊण सणंकुमारे मज्झिमठिईओ देवो समुप्पण्णो।। पुणो सणंकुमाराओ चविऊग सेयवियाए णयरीए भारदाओ णाम बम्भणो समुप्पण्णो। तत्य य चोयालीसं पुब्बलक्खे आउयमणुवालिऊण अन्ते य परिवायगत्तगमणुवालिऊण पंचत्तमुवगओ। मरिऊण माहिंदे कप्पे मज्झिमट्टिईओ देवो समुप्पण्णो। __ तो वि चुओ पुणो संसारमार्हिडिऊण रायगिहे णगरे थावरो णाम बंभणो समुप्पण्णो । तत्य य 'चोत्तीसं पुन्चसक्खे आउयमणुवालिऊण पजन्ते परिव्वायगत्तणेण मरिऊण वंभलोए मज्झिमढिईओ देवो समुप्पण्णो । १ चेय जे । २ उयाहु-उयाउ, उताहो । ३ मिरीयी जे । ४ या य में सू । ५ 'रणं ति एजे। ६ च-बइ जे। . दुभासि जे । ८ अजहष्णट्टि सू । ९ चविऊण जे। १. चोतीसं जे । Jain Education 1ernational Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९८ चउप्पन्नमहापुरिसचरिय। तओ वि चेविऊण चउगइसंसारकन्तारं परिभमिओ । भमिऊण य अणंतरभवे तहाविहं कि पि कम्मं काऊण रायगिहे णगरे विस्सणंदी राया, तस्स भाया विसाहभूई जुवराओ त्ति । तस्स य जुवरायस्स धारिणीए महादेवीए पुत्तो विस्तभूती णामेण जाओ । सो य देवकुमारोबमसरीरो जुवाणो दोगुंदुयदेवो न णाणाविहकीडाविणोयेणं गयं पि कालं ण लक्खेइ । तत्थ य णयरे पुप्फकरंडयं णाम उज्जाणं बहुविहकुसुमसमिदं । तस्थ य सो विस्सभूती जुवरायपुत्तो णाणाविहाहि कीडाहिं अन्तेउरसमेओ कीडइ ति।। इओ य राइणो पुत्तो विसाहणंदी उजाणबाहिरगओ तप्पवेससमृसुओ चिट्ठई। तेसिं च कुलायारो 'जस्थ एगो कीलइ तत्थ बीएण ण पविसियव्यं ति । तस्स य जणणीदासीओ पुप्फनिमित्तं पविट्ठाओ तं विस्सभूइं विलसन्तं पेक्खिऊण साहेति रायऽग्गमहिसीए जहा-जुवरायपुत्तो 'चेय एत्थ पुहतीए एको जीवइ जस्सेरिसं विलसियं, रायपुत्तो पुण विसाहणंदी जगवओ व ओहयमणसंकप्पो पुप्फकरंडयपासेसु तम्मन्तो चिट्ठति । तओ एयमायणिऊण रायऽग्गमहिसीए रूसिऊण तहा भणिओ राया जहा तेण पडिवण्णं, भणिया [य]----- मा संतप्पसु सुंदरि, जीयं रज्जं च मह तुहायत्तं । दासोवरि कि रोसेण देवि ! आएसजोगस्स ? ॥ १३ ॥ रुसिऊण कीस किज्जइ सरिसपयं पेसणस्स जो जोगो ?। ता तह करेमि सामिणि ! जह तुह पुत्तो सुहं लहइ ॥१४॥ एवं च महादेवि परिसंठविऊण, राइणा संपहारिऊण सह मंतिणा, आहणाविया पयाणभेरी । तओं समाउलीभूया महामंतिणो । चिंतियं च-किमेयमिति । तो तमायण्णिऊण विस्सभूइणा विष्णविओ रार्या-देव ! किं पयाणपयोयणं ? ति । भणियं च राइणा- पुत्त ! अत्थि पचंतणराहिवो पुरिससीहो णामेणं, तेण य विकारं दंसेऊण हओ अह देसो, अक्कन्तें अम्ह मंडलं, कओ अम्हाण महतो परिभवो, ता ‘ण जुत्तं कलंकिएणं जीविएणं' ति कलिऊण य तथ्वावायणणिमित्तं दिण्णं मे पयाणयं ति । तओ तमायण्णिऊण भणियं कुमारेण-जइ एवं ता अच्छउ देवो, कुणउ महाऽऽएसेणं पसाओ, अवणेमि तुम्ह पसारण तस्स बलावलेवं, दंसेमि दुग्णयस्स फलविवागं । ति भणिए दिण्णो आदेसो राइणा कुमारस्स। तेण य 'महापसायं' काऊण दिण्णं पयाणयं महया चडयरेणं, पत्तो य. देसंतरं । जाप य सव्वमेव सुत्थं पेच्छइ । पेसिओ दुओ पुरिससीहस्स जहा-समागओ कुमारो विस्तभूई देसदसणत्यं, ता कुणमु जहोचियं । गंतूर्णं य दूएण साहियं सव्वं । तेण विण्णायकुमारागमणेण पेसिया वीसंभत्थाणीया महत्तमा, भणिया य ते-मह वयणेग विण्णवेह कुमारं जहा'अइभूमि समागओ कुमारो ता अलंकरेउ अम्ह नयरमागमणेणं ति, कुणउ पसायं दंसणेणं' ति । एवं च मंतूण विष्णते समागओ णयरं । कयं सव्वं जहोचियं । पूइओ सविहवेणं । सविसेसं च दिण्णं जं पुन्निं च दिज्जतं । समासादियजहिटुकज्जो य चलिओ सणगराभिमुहं ति । इओ य राइणा गिययपुत्तो विस्सणं ही विस्तभूइणिग्गमणाणंतरमेव भणिओ जहा-पविससु पुप्फकरंडयं, अच्छसु जहिच्छं ति । विस्तणंदी य णियअन्तेउरसमेओ विचित्तकीलाहिं कीलिउमारदो। इओ य विस्सभूती अगवरयपयाणएहिं समागओ णयरं । परिसिउमाढत्तो पुप्फकरंडयं । ताव य वारिओ पडिहारेणं जहा-देव! कुमारो विस्सणंदी सह अन्तेउरेण इह विट्ठति, ता ण जुतं देवस्स इह परिसिउं । तो तमायण्णिऊग चिंतियं कुमारणं-पञ्चन्तवाएसेण अहं णीणिओ पुप्फकरंडयाओ, पवेसिओ य विस्सणंदी, ता तायस्स ण जुत्तमेवं मायाए ववहरि । तज्जिया विस्सणंदिपुरिसा, भणिया य-तुम्ह बलेग एस कुमारो अभिरमइ, ता कि तुम्हाण कीरउ ? त्ति । तेहि भणियंकेरिसं पुण तुम्ह बलं जेणेवं जंपह ? त्ति । तेग वि य मुहिपहारेण पहभो कविठो, आयंपिभो सह धरणिवढेणं, पडियाणि य णिस्सेसाणि फलाणि धरणीए । भगियं कुमारेणं - अस्थि तुम्ह दुण्णयणियहणस्स वीयं महाराउ ति, तस्स बलेणं चेव जीवह । त्ति भगिऊण वेरग्गमावण्णो । चिंतियं च णेणं विसयाण कए पुरिसा विडम्बणं तं जयम्मि पावन्ति । जं साहिउं ण तीरइ वेवंतुष्पित्थहियएहि ॥१५॥ १चइऊ जे । २ 'ण । सो सू ।। इत्ति । ते जे । ४ चेव जे । ५ रूस जे सू । ६ च पारे सू। . य किमेयं ? ति जे । ८ या-कि सू । ९ 'न्त महिनंड सू । १० ण य दूजे । ११ तमेय जे।। Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४-१५ तिविट्ठवासुदेव-अयलबलदेवाण चरिय । मोत्तूण पक्खवायं मुइरं कलिऊण सत्तबुद्धीए । भोएहिं मुहं जइ होइ किंचि ता साहसु फुडत्थं ॥ १६ ॥ अवि यजोवण-भयणुम्मत्तेहिं विसयतण्डाविमोहियमणेहिं । जं कीरइ इह पुरिसाहमेहिं तं णिरयगइमूलं ॥ १७ ॥ लहिऊणं मणुयभवं सोग्गइगमणेक्ककारणमणग्धं । माणिकं पिव दुलहं विसयपसंगेण हारवियं ॥ १८॥ मणुयत्तणं विवेयं सुकुलुप्पत्ती विसिट्ठसंसग्गी । लजं गुरुयणभत्तिं च चयइ विसएहि वेलविओ ॥ १९ ॥ विसएहिं हीरइ मणो जेसिं पुरिसाहमाण विरसेहिं । परिगलियमुहविवेयत्तणेण ते होन्तेऽसप्पुरिसा ॥ २० ॥ साहीणे मोक्खपहे सुहपरिणामे य णियसमुत्याणे । मूढत्तणेण लोओ विसए पत्थेइ बहुदोसे ॥ २१॥ विसयमुहलालसाणं मुमग्गमंदाऽऽयराण पुरिसाण । अमुणियसारविसेसाण गलइ हत्थट्ठियं अमयं ॥ २२॥ किं तह मोहियमइणा विरसे संसारसागरे घोरे । विसयमुहाऽऽसाणडिएण खिज्जियं खीणपुण्णेणं ? ॥ २३ ॥ पुरिसाण णमो जे णिज्जिणन्ति संसारसायरे घोरे । मय-अयणबाणजणणेक्कपच्चले जुवइबिब्बोए ॥ २४॥ इय उज्झिऊण विसए पावे पावाणमासवे घोरे । साहेमि अणण्णमणो हु पुचपुरिसज्जियं धम्मं ॥ २५॥ एवं च गरुयसंवेगावण्णहियो दूरुज्झियविसयमुहाहिलासो परिच्छिण्णसंसारसहावो पडिवण्णसप्पुरिसचरिओ विजयसीहाऽऽयरियसमीवे पडिबण्णो पध्वजं । तओ अहिन्जियमुत्तऽत्यो पडिवण्णो एकल्लविहारितणं। अण्णया य विस्सणंदी संखउरं विवाहणिमित्तं गओ। विस्तभूती वि अणगारो तम्मि चेवणगरे विहरतोसमागओ। पविठ्ठो मासस्स पारणए भिक्खाणिमित्तं णगरं । दिद्यो य विहरमाणो विस्सणंदिपुरिसेहिं, पञ्चभिण्णाओ। दट्टण य तेसिं समुप्पण्णो मच्छरो, वियम्भियमण्णाणतिमिरं। अण्णाणंधयारमोहियमईए मुक्का अहिणवपस्या गावी। तीए समुहागओ णोल्लिओ, पडिओ य । कओ हलबोलो विस्सणंदिपुरिसेहि। भणियं च हिं-कहिं गयं तं तुज्झ कविठ्ठपाडणवलं ? ति । पञ्चमिण्णाया य जहा-एए विस्सणंदिसंतिया पुरिसा। तयणन्तरमेव साहुणो पणट्ठो विवेओ, परिगलिओ उवसमो. पज्जलिओ कोहग्गी। धाविऊण य गहिया गावी सिंगग्गेहि, भमाडिया सीसोवरि, तणएलिय व्व पक्खित्ता धरणीए । भणियं च णेण-"रे रे कापुरिसाहमा ! कोल्हुयसमसीसिया होऊण मं उवहसह । किं छुहापरिगयदुब्बलसरीरस्स वि भुयगाहिवइणो मुहकुहरे अंगुलिं पक्खिविउं कोइ समत्यो ? त्ति । किंच___किं कीरइ मह तुम्हारिसेहि गोमाउ-साणसरिसेहिं । गहकल्लोलसमेहिं पयडियमुहमेत्तसारेहिं" ॥ २६ ॥ एवं च सुइरं चिंति(? भणि)ऊण गरुयाहिमाणवसगेण कोहपच्छाइयविवेगेण कओ णियाणाणुबंधो, तं जहा-जइ इमस्स दुक्करस्स तव-चरणस्स अणुचिण्णस्स होज्ज फलं तओ अहं अतुलबल-परक्कमो एसकालं हवेज त्ति। एवं च बंधिऊण णियाणं, इमस्स ठाणस्स अपडिक्कतो विहरिउं कि पि कालं, कालमासे कालं काऊण महासुक्के देवलोए उकोसहिईओ देवो समुप्पण्णो। तत्थ य भुंजिऊण जहिच्छिए भोए, चइऊण देवलोगाओ पोयणपुराहिहाणे णयरे पयावइस्स णराहिवस्स मिगावईए भारियाए पुत्तत्तेणं समुप्पण्णो । तस्स य राइणो रिघुपडिसत्तू णामं पसिद्धं । पच्छा धूयाए पडिलग्गो, तओ 'पयाए णियधूयाए चेव पई' त्ति लोएणं पयावइ त्ति णामं कयं । तस्स पयावइणो विस्सभूई अणगारो महासुक्काओ चविऊण पुत्तो समुप्पण्णो । दिट्ठा य जणणीए सत्त मुमिणा । णेमित्तिएण साहियं-पढमो वासुदेवो भविस्सइ त्ति । जाओ य सोभणे दिवसे । संवडिओ जोव्वणमणुपत्तो। ___ इओ य सो विस्सणंदी कुमारी रायसिरि उव जिऊण मओ समालो संसारमाहिडिऊण गिरिसमीवे सीहत्तेणं समुप्पण्णी, अइबल-परक्कमत्तणेणं पसिद्धिं गओ । बाबाइओ य तिविठ्ठणा । अमरिसाऽवूरियसरीरस्स य समुप्पण्णं जाइस्सरणं । सरियाऽणंतरा जाती । जाणियं तस्स बलं । अगओ अहिमाणप्पसरो। वियलिओ मच्छरो। परिचत्ता पाणवित्ती सीडेणं । १ होति कापुरि जे । २ एगलं जे ३ सिंगेहि स । ४ तत्तो जे। ५ रिउपजे ।'य गिजे । णो ति। मंजे। | Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउप्पन्नमहापुरिसचरियं । एयं तुइ कहियं जं तए सीहचरियं पुच्छियं ति । तुमं च कुमारस्स अञ्चंतसिणेहाणुगओ। इमो कुमारो इमीए ओसप्पिणीए चरमतित्थयरो वद्धमाणाहिहाणो भविस्सइ त्ति । तुमं पि इमस्स चे पढमगणहरो गोयमाहिहाणो भविस्ससि त्ति । ता एस कुमारो तए अचन्तमणुवत्तियन्यो । अइबल-परकमो य एसो, णेयस्स अण्णपुरिसासंका कायव्य त्ति । तओ वंदिऊण अणगारं गओ णिययमावासं सारही । दिट्ठो कुमारो । उवविट्ठो तस्स चलणन्तिए । ठिओ किंचि कालं । ताव य समागंतूण पडिहारेण णिवेइयं जहा-देव ! महारायसयासाओ समागओ लेहारिओ दुवारे चिट्ठइ त्ति । तमायण्णिऊण भणियं कुमारेण-तुरियं पवेसेह । आएसागंतरमेव पवेसिओ पडिहारेणं । खित्तो लेहवाइएग लेहो । वाइओ जहा-लेहदसणाणंतरमेवाविलम्बियं आगंतव्यं कुमारेण । कुमारेण य तयणंतरमेव दिगं पयाणयं । पत्तो पोयणपुरं । दिट्टो ताओ। पायवडणुटिओ य आलिंगिऊण पिउणा अणुसासिओ जहा-पुत्त ! तुम्हारिसाणं पयाण पुण्णेहिं उप्पजमाणाणं णिमित्तमेत्तं जणणि-जणया, तुमए णाहेण सगाहा पुहती, ता ण जुत्तं तुह सयलसंसाराधारभूतस्स एवं ववहरिलं, जओ तुम्हायत्तं मह रज्जं कोससंचओ जीवियं च, एवं च ण तए पुणो वि सीहवइयरसरिसमणुचिट्ठियव्यं ।। ___ इओ य आसग्गीवो णाम णराहिवो महाबल-परक्कमो सयलणराहिवचूडामणिभूओ । सव्वे रायाणो तस्स णिदेसबत्तिणो भयभीया चिट्ठति । तेण य 'मच्चू भयाण भयं' ति कलिऊण पुच्छिओ अविसंवादी णेमित्तिओ जहा-कओ सयासाओ मह मरणभयं ? ति । तेण वि य सम्म णिमित्तबलेणमवलोइऊण साहियं जहा-जो महाबल-परकम सोहं घाइस्सइ त्ति, तुह यं च विद्धंसइस्सइ तस्स तए आसंकियध्वं । ति भणिए मित्तिएणं राया सीहं चारिएहिं गवेसावेइ, जाव णिसुओ जहा-बावाइओ पयावइसएणं बाहाहिं चेव पहरणवियलेणं ति । तओ राइणा भउबिग्गेणं संपहारिऊण पेसिओ पयावइसमीवं दूओ जहा-तुमं परिणयवओ, ता णियपुत्ते महाऽऽएससंपाडणणिमित्तं सिग्यं पट्टवसु । गओ अणवरयपयाणएहिं दूओ । संपत्तो पोयणपुरं । गओ रायदुवारं। जाणावियं च पडिहारेण राइणो पेक्खणयमुहमणुहवन्तस्स जहा-देव ! आँसग्गीवसंतिओ दूओ समागओ, किं कीरउ ? ति देवो पमाणं । तओ राइणा पवड्ढमाणरसाइसए कोऊहलाउले कुमारपमुहे रंगयणे उवसंघरावियं पेक्खणयं । णिग्गओ रंगभूमीओ राया। उवविठ्ठो अत्थाइयामंडवं । पवेसिओ दूओ, पडिओ पाएमु, उपविट्ठो जहारिहे आसणे। राइणो वयणेणे उप्पियं जहोचियं पाहुडं । मुहुत्तमच्छिऊण य पुच्छिओ राइणा महारायस्स सरीरकुसलं ति। तेग वि 'कुसलं' ति भणिऊण साहिओ महारायसंदेसओ। पडिच्छिओ सिरेण य पयावइणा । चिंतियं च हियएणं-महाबलो अस्सग्गीवो दुराराहो तिक्खडंडो य, अदिट्ठभया मह पुत्ता, विसेसेगं तिविठु ति, ता ण याणामि किमेत्थ पत्तयालं ?। ति चिंतिऊणमावास पेसिओ दओ। कयमचियकरगिज। ___ इओ पेक्खगयभंगवइयराकुलियहियएण तिविठुणा पुच्छिओ परियणो-को उण एसो जस्साऽऽर्गमणेण भग्गं ताएण पेक्खगयं ? । जाणिओ एस वुत्तन्नो गियारियणाओ। चितियं च-कहिं पुण सो वच्चइ पायो ?, अवणेमि तस्स सेवापुच्वं कोउहलं, पच्छा सामिसालस्स। त्ति चितिऊण उवरक्खाविओ, जा महया पबंधेग सम्मागिऊण पयावइणा विसज्जिओ गिग्गओ जयराओ। साहियं कुमारस्स। कुमारेणावि जियपुरिसेहिं विद्धंसाविओ, ओहयविहओ कओ। गहियसवसारो सीसदेसे य दिण्गपायप्पहारो गुरुवेयगाऊरियसरीरो मुक्को पुरिसेहिं । पयावइणा वि णाऊण पुणो विणीओ सकीयं पट्टणं, पूइओ सकारिओ य । पयावइणा भणियं च-ण तए महारायस्स साहियव्वं । तेणावि पडिवणं। पुणरवि पेसिओ। - इओ य पुचगएहिं तप्पुरिसेहिं साहियं महारायस्स जहा-देव! तुम्ह संतिओ दूओ पयावइपुत्तेण अचंतं कयत्थिओ त्ति, संपयं देवो पमाणं । तओ कुविओ अस्सग्गीवो। खुहिया सहा गज्जिउमाढत्ता, कई ? उब्भडभिउडिभयंकरणिडालबदं तु जललवाइण्णं । फुसिऊण को इ परिमलइ करजुयं रोसफुरियऽच्छो ॥ २७ ॥ णिद्दयसंदट्ठाधररोसवसारज्जमाणगंडयलं । वयणं खरदिणयरमंडलं व कस्सइ दुरालोयं ॥ २८ ॥ व गण सू । २ स्सइ ति सू, स्सति त्ति जे। ३ लेहाणतर सू। ४ भस्सग्गीव जे । ५ ण अप्पियं जे । 'गमणे भसू । ७ तस्सासेवा जे । ८ व य म जे । ९ रो। पा सू । १० तेण वि जे । Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४-१५ तिविट्टुवासुदेव अयलबलदेवाण चरियं । gigर्णिन्तदसणोह किरणजालच्छलेण वच्चंती । कोइ निरुभइ कोहग्गिडाहभीयं व णियवाणीं ॥ २९ ॥ रोसवसाउरणितुद्गरुयणीसाससोसिओडउडो । कोइ भडो चलणग्गेण वसुमई चालइ चलन्तो ॥ ३० ॥ अमरिससेण कस्सर गुरुकोवभरेण रुद्धकंठस्स । अन्तो चिय परिघोलइ दरखलियफुडक्खरा वाणी ॥ ३१ ॥ वारंवार मैदोरणविणिवेसकयं पि फुरियउहउडो । कोइ भडो गुरुरोसेण कुणइ पल्हत्थियाबन्धं ।। ३२ ।। इय गरुयपरिहवागयकलंकपक्खालणेकरसिएहिं । कह कह वि संठविज्जइ अप्पा सुहडेहिं तव्वेलं ॥ ३३ ॥ त महाराणा भणियं-क्रिमणेणं कावुरिसचेट्टिएणं गज्जिएणं ?, ता आसण्णमेत्र णिहसद्वाणं, संपयं चैव नज्जइ सूर-काराणं विसेसो, ण एत्थ कालक्खेबो कायव्त्रो दिवसण्णेसणेणं ति, ता संपयं चेत्र देमि पयाणयं । भणिऊण front आदेसो पडिहारस्स जहा - तोडावेहि पयाणम्यगं भेरिं, पयत्तावेसु हस्थिसाहणं, संजत्तावेसु आसवंद, जोतावेसु रहवरे, चलउ अंतेउरं, होउ गमणसज्जो समत्तो खंधावारो । त्ति भणिऊण सयं गमणसज्जो ठिओ राया । ताव य अत्रसउणा दीसिउं पयत्ता, तं जहा - अयंडम्मि चेत्र गहियं राहुगा रविमंडलं, दिवसओ चेव णिवडंति तारयाणुग्धायया, भीसणजलाउलहकुहरा भुन्भुयइ भल्लुंकी, उकासमाउला गयणपेरन्ता, कुणंति कोलाहलं विरसमारसंता वायसा, उच्छलंति णिहाया, जाओ महीकंपो, पडिओ पहाणकुंजरो, विसरणं आसरयणं, बलामोडीए य जायइ णराहिवरणो विमणत्तणं ति । किंच १०१ जे के अनुभावा जयम्मि कलुसत्तणेण सुपसिद्धा । ते तस्स तया सव्वे वि संजुया पायडा जाया ॥ ३४ ॥ एवं चावसउणपरंपराखलियगमणावसरो वि महाराया अगणिऊणमवसउणसंघायं णियइपराहीणयाए णिग्गओ गयराओ । तयणंतरं च समाउलीभूओ खंधावारो, उच्चलिओ य जहाजोग्गन्ति । इओ य पयावइणा णिस्रुयं जहा - आसग्गीवेण दिष्णं पयाणयं, गहिओ विग्गहो, गुरुकोवावूरियसरी पट्टो अणवरयपयाणएहिं । तओ 'ण याणामि केरिसमवसाणं ?' ति समाउलो चित्तेण पयावई पविट्ठों मंतिसहं । समागया उवहसियबहस्सइमइविहवा मन्तिणो । विष्णाओ य एस वृत्तं तो तिविट्टुणा। गंतूण विकमावलेत्रगन्त्रिएणं भणिओ जणओ - ताय ! किंमालत्तणेणं गरुयत्तणं णिज्जइ पडिवक्खो ?, किमम्हाण करिस्सेंर आसग्गीवो घोडयग्गीवो ? ति, अलं मंतिण, कीरउ सोहणे दिवसे तस्समुहं पेयागयं । ति भगिऊग उट्ठविओ ताओ अत्थाइयामंडवाओ । पयावहणा संवच्छरियं सदावेऊण गणिओ दिवसो, सोहियं पत्थालग्गं । तओ समुच्चलिओ जयजयरत्रापूरियणहंगणा भोयमंडलो पयावई सह तिविट्टुणा । अणुकूलो य सउणसंघाओ । हेसियं वरतुरएणं । गुलगुलियमकंडगहियमएण मयगलेणं ति । गओ य अणवरयपयाणएहिं नियदेसपज्जन्तपएसं । आत्रासिओ सपुत्तो पयावई णराहिवो । विष्णाओ य एस तन्तो आसग्गीवेग । संखुद्धो य एसो हियएणं । सुमरियं णेमित्तियवयणं । विसष्णो चित्तेणं । समागओ तयासण्णदेसं । समावासिओ विवित्तपसे अत्रद्वंभं काऊ । पुणो वि पेसिओ सिक्खत्रिऊण दूओ आसग्गीवेपावणो । भगियं च गंनूण दूरण जहा - आणवेइ महाराओ किं तुह इमेणं दुरज्झबसाएणं ?, केरिसो अग्गिणा सह तणाणं विरोहो ?, ता अज्ज वि मुंचसु इमं ववसायं, कुणसु महारायचलणसेवणेणं दीहाउयमत्ताणं ति, जीवंतु तुह बंधवा । सुणिऊण पयावतिसमीववत्तिणातिविट्टुणा भणियं रे रे दुस्सिक्विय! दुइ ! दूय ! अज्ज विकिमेत्य वायाए । पयडिज्जइ पियपुरिसाभिमाणचरियं सयं चैव ? ||३५|| भुयडंडाउहरणभूमिरिबलेसुं वसइ समग्गेसुं । धात्रंतु मग्गण च्चिय किमेत्थ दूषण कायन्त्रं ? ॥ ३६ ॥ अप्पा सलहिज्जइ केत्तियं व पडित्रक्खदूसणपरेहिं । णिल्लज्जिमाविलक्खेहिं दूय ! दूरुज्झियगुणेहिं ? ॥ ३७ ॥ इय कित्तियं च भण्णउ ?, पडिवयणमसोहणं ण सिक्खविया । गुरुणा, जं पुण जोग्गं तुम्हाण तमेत्य दैच्छिहिह ||३८|| १ "असू । २ वाणी जे | ३ महोढण जे । ओ सू । ५ ताढावेह जे । ६ याण समुग्धा जे । ७ चुच्चुयह जे । ८ कुर्णता जे । ९ किमेयमा जे । १० स्सए आ जे । ११ पयाग ति जे । १२ संवत्सरं स जे । १३ १४ गुलगु जे । १५ एवं जे । १६ दच्छिहह जे । यलग्ग जे । For Private Personal Use Only Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउप्पन्नमहापुरिसचरियं । एवं च सावट्ठभं भणिऊण विसज्जिओ दूओ । णिग्गच्छंतो पुणरवि भणिओ तिविठ्ठणा जहा-दूध ! भणसु णियसामी, किमेत्य कालक्खेवकारणेणं दूयसंपेसणेणं ?, पयडपरकमो तुम विणिग्गयपयावो दंडसंपओववेओ बलभरदलियमहीवीढो केणावि अपरिमलियपुरिसयारो, ता किं बहुणा?, तहा तए रणभूमीए परिसकियध्वं जहा ण मलिज्जइ चिरसंचिओ जमुग्धाओ । संदिसिऊण पविओ दूओ । गओ णिययमावासं । पडिहारजाणाविओ य पविट्ठो रायसमीवं। दिट्ठो य महाराओ । पायपडणुटिएण य सव्यं जहट्ठियं चेय तिविठ्ठसंदिटं सिटुं। ___ सुणिऊण आसग्गीवेण भणियं-एवंविहा चेव वयणमेत्तसाराणमुल्लावा इवन्ति, ता आसण्णो चेव रणभरो, एत्य णिबडइ सुवुरिस-कावुरिसाणं सरुवं । ति भणिए भणियं दूएणं पइरिके जहा-देव ! किं तं जं ण याणसि ?, को वा विवेओ अम्हारिसाणं ?, तहा वि देव ! तुम्हारिसाणुहावेण चेव जं मए परिच्छिण्णं तं भणामि देवाणुमतीए । त्ति विष्णविए मणियं महाराएणं-भणसु, को दोसो ? ति । तओ दूओ भणिउमाढत्तो-“देव ! अणुकूलभासिणो पियंवया य राईण भवंति सव्वे वि अणुजीविणो, जे उण परिणाममुहावहं मुहकडुयं फुडक्खरं जपंति ते विरला चेव, अहवा ण सन्ति चेव त्ति । ता देव ! अती बल-परकमोववेओ तिविठू, गरुओ अबटुंभो णियभुयाणं । जस्स य णियभुयबलं तस्स चेव बलं । किमेएहिं सुबहुवेहिं वि वायसेहिं विय भक्षणमेत्तसहाएहिं पुरिसेहिं कीरइ ? ति । ता देवो तं चेव सहायं काऊण परिमलउ पडिबक्खाहिमाणं ति । विरोहो उण तेण सद्धिं अणत्थस्स मूलं ति मह मयं, संपयं देवो पमाणं "। ति भैणिऊण ठिओ दूओ। आसग्गीवो वि मुमरियणेमित्तियवयणो अवसउणजणियहिययावेओ दिट्ठपडिवक्खावटभो विसण्णणियसामन्तपरियणो अप्पाणं गयजीवियं पिव' मण्णमाणो केवलं कइयवजणियावर्टभो भणिउमाढत्तो-रे दूय ! किमेवमाउलीहूओ ? पेच्छसि सिग्यमेव तस्स बलं, ति मणिऊग 'वीसमसु' त्ति विसज्जिओ दूओ । कयमुचियकरणिजं । सम्माणिया महासामन्ता। संवग्गियाऽणुजीविणो । दिण्णं महादाणं । समाहया संगाममेरी । सण्णद्धा मुहडा। कया सारिसज्जा मयगला । गुडिया तुरंगमा। समाहयाणि समरतूराणि । णीहरिओ महया विमद्देणं आसग्गीवो त्ति। विण्णाओ य एस बुत्तन्तो तिविठ्ठणा जहा-समागओ आसग्गीवो समरभूमि । तओ तक्खणमेव दुप्पेच्छो जाओ, कहं ? रोसवसुन्भडसंगलियरायरज्जन्तगंडवासं से। वयणं सविसेसारुणरायं दुप्पेच्छयं जायं ॥३९॥ उन्भडभिउडिभयंकरणिडालब पि जललवालिद्धं । पयतीए तस्स सोमं पि अत्ति जायं दुरालोयं ॥४०॥ गरुयामरिसवियंभियअपरिप्फुडवण्णवयणविष्णासो । तव्वेलं चिय जाओ तिविट्ठणो रोसपिमुणो से ॥४१॥ इय सविसेसुक्करिसाग पुहइपालाणमसुयमणाण । संगामणिमित्तं सुबुरिसाण दिण्णो समाएसो ॥४२॥ एवं च तिविठ्ठणा गहियसंगामोवगरणेणं महया सम्मदेणं दिण्णं पयाणयं संगामभूमीए समुहं ति। तओ समाच्याणि संगामतूराणि । पलम्बियाणि चिंधाणि । हक्कारिया एकमेकं सुहडेहिं सुहडा जुज्झिउं पयत्ता विचित्तजुज्झेहि । एवं च कइ वि वासरा महया सम्मद्देणं पयट्टमाओहणं । ___ अ(त)ओ पडन्तेसु सुहडेसु, भमन्तेसु सुग्णासणेसु तुरंगमेसु, भजंतीसु गयघडामु, संभारिजंतेमु सामिसम्माणेसु, उच्छलंतेमु साहुक्कारेसु, भजतेसु कायरेसु, जससे सुसज्जएमु सुहडेसु, समुल्लसंतेसु पुरिसकारेसु, एक्कम्मि दिवसे जायं पहाणजुझं दोण्हं पिणायगाणं । तओ जुज्झिऊण सव्वाउहेहि ओहामिज्जन्तेण आसग्गीवेण गहियं चक्करयणं करयलेणं । ममाडिऊगं च संपेसियं तिविठ्ठणो। तं च देवयाणुहावेण भत्रियचयाणिओएण य पयाहिणी काऊण ठियं दाहिणकरयले तिविटुणो । तेणावि अमरिसवसावूरियहियएणं पेसियं आसग्गीवस्स । तेणावि चक्केण तालफलं व पाडियं सीसं पडिवासुदेवस्स त्ति । उच्छलिओ जयजयारदो । तुडेहि य तियसा-ऽसुरेहिं मुकं कुमुमवरिसं । साहुकारिओ सयल जणेणं । भणियं च सुरसमूहेहि-एस पढमो वासुदेवो समुप्पण्णो ति । १ पायव जे । २ चेव जे । ३ सुपुरिस जे । ४ दोसु जे । ५ भाणउठिंजे। ६ गुडिऊण पखरिया तुरं जे । ७ महाविजे। ८ "लवाविद्धं सू । ९ च पेसि जे । Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४-१५ तिविद्धवासुदेव - अयलबलदेवाण चरियं । १०३ णाव ओवियं दाहिणद्धं भरहखेत्तस्स । समुप्पण्णाणि सत्त रयणाणि । परिग्गहिया बत्तीसं सहस्सा जुवतीणं । जाओ य सोलससहस्साणं महाणरवईणं रायाहिराओ । समुप्पण्णा महाणिहिणो । समुक्खिविऊण य वामझुरणं धरिया कोडिसिला । जाओ महाराओ पणयासेसणराहिवो त्तिं । एवं च सरन्ते संसारे, समुप्पज्जन्तेसु विविहभोएसु, अयलस्स विभावेन्तस्स सेज्जंस तित्थयरवयणं, समागओ धम्मघोसायरिओ, तस्स समीवे पडिवण्णं समणत्तणं, खविऊण कम्मसेसं जाया सिद्धिगइति । वासुदेवस्स वि भोए भुंजन्तस्स अइकंतो को इ कालो । तस्स य अतिबल - परक्कमत्तणओ अत्रमण्णियसेससप्पुरिसस्स अकूर साणो गलियं सम्मत्तरयणं । अइकसायुकडयाए य तेण बद्धं अप्पाणे णरए आउयं ति । पालिऊण 'चुलसीतिवरिससयसहस्साइं सव्त्राउयं कालमासे कालं काऊ उण्णो अहे सत्तमाए अवइाणे णरए तेत्तीससागरोमणारगोति । अओ उत्तरं वैद्धमाणतित्थयरचरियाहिगारे कहिस्सामो ॥ st महापुरिसचरिए तिविट्ठचरियं पढमवासुदेवस्स [अयलबलदेवस्स य] चरियं सैमसं ति ॥ १४-१५ ॥ १ जायो सो सू । २ माssऊ जे । ३ वड्ढमाण जे । ४ ति ॥ तिविट्टु सू । ५ सम्म सु । Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ १६ वासुपुज्जसामिचरियं ] ::::::: सागरोवमाणं चउप्पण्णाए गयाए सेज्जंसजिणाओ वासुपुज्जो समुप्पण्णो । सो अउणसत्तरि धणि समूसुओ पउमगभगोरो बोहत्तरिवरिसलक्खाउयमणुवालिऊग सिद्धिं पत्तो त्ति । कहं ? भण्णइ मुत्त व्व पुष्णरासी जयम्मि जायन्ति ते महासत्ता । जम्मेण जाण जायन्ति णिव्वुया सयलजियलोया ॥ १॥ अस्थि इहेव जंबुद्दीवे दी भारहे वासे चंपा नाम नयरी बहुजण-धण-कणगसमिद्धा । तीए पणयासेसभूवालमउडमसिणियपायवीडो वसू णाम णराहिवो परिवसति । तस्स य सयलंतेउरप्पहाणा जया णामेण अग्गमहिसी । तीए य सह विसयसुहमणुहवन्तस्स अइकंतो कोइ कालो। अण्णया य महासुकाओ चविऊण जेट्ठस्स सुट्ठमीए सयभिसाणक्खत्तजुत्ते रयणिमुहतिलए ससहरे जयाए कुच्छीए समुप्पण्णो समासाइयतित्थयरणाम-गोत्तो तिस्थयरेणं(रत्तेणं) ति। दिट्ठा य तीए चेव रयणीए चोदस महासुमिणा। साहिया जहाविहिं दइयस्स । तेण वि समाइह पुत्तजम्मं ति । तओ संवडिओ गम्भो । पस्या य सुहेणं फग्गुणकिण्हचउद्दसीए सयभिसाणक्खत्ते। कओ देवेहिं पुन्धकमेण जम्माभिसेओ। कयं जहस्थमेवाहिहाणं वासुपुज्जो ति। तओ कुमारभावमणुवालिऊणे, किंचि कालं कयदारपरिग्गहो रायसिरिमणुवालिऊण, फग्गुणस्स अमावासाए सयभिसयाणक्खत्ते लोयन्तियपडिवोहिओ ओहिनाणावगयसंसारसहावो मुणिऊण सयलं असारं संसारं संवच्छरदिण्णमहादाणो तियसिंद-परिंदपरिसामज्झगओ पडिवण्णो समणत्तणं । विहरिऊग किंचि कालं छउमस्थपरियारणं माहस्स सुद्धबीयाए केवलणाणमणुपत्तो त्ति। तओ केवलिपरियारणं विहरिऊण, दरिसिऊण संसार-मोक्खपहे, णिबविऊण वयणामएणं सयलजियलोय, चंपाणयरीए आसाढसुद्धचोदसीए सयभिसयाणक्खत्ते सेलेसीविहाणेणं खवियभवोवम्गाहिकम्मंसो सिद्धिमणु पत्तो ति । इति महापुरिसचरिए वासुपुज्जतित्थयरस्स बारसमस्स चरियं सम्मत्त ति ॥१६॥ बावतर सू । २'ग, कय सू । ३ असारं सयलसंसाजे । ४ संवत्सर । Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१७-१८ दुविठ्ठवासुदेव-विजयबलदेवाण चरियं] संपयं वासुपुज्जतित्थयरे दुविठुचरियं भष्णति___ अत्थि इहेब जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे पारवती णाम णयरी । तीए बंभो णाम णराहिवो परिवसइ । तस्स य राइणो पहाणा सयलंतेउरम्मि वसुमती णाम अग्गमहिसी। तीए य सह विसयमुहमणुहवन्तस्स राइणो अइकन्तो कोइ कालो। . ___ अण्णया य वसुमतीए भारियाए कुच्छिसि समुप्पण्णो गम्भो, संवढिओ य । कालक्कमेण पम्या। पट्टावियं च से णामं विजओ त्ति । पुणो वि गच्छंतेसु दिवसेसु, सरन्ते संसारे, वसुमतीए दिट्ठा सत्त महासुमिणा । साहिया दइयस्स । तेणावि समाइटें-भविस्सइ ते पुत्तो सयलणरचूडामणिभूओ त्ति । तओ पडिपुण्णेसु णवसु मासेमु अद्धऽटमेसु राइदिएसु पम्या सुहेणं । कयं वद्धावणयं णरिदेणं । पइटावियं च से णामं दुविठु ति। पत्ता दुवे वि कुमारभावं । गाहिया कलाओ । कयदारपरिग्गहा य कीलिउं पयत्ता केसव-बैलएवा। ___ अण्णया य उज्जाणगएहिं दिट्ठो अहाफासुए पएसे साहुजणपरिवारिओ मज्झिमवए वट्टमाणो णीसेसगुणाहाणं परिहरियासेसदोससंगो सम्बंगावयवसंपुष्णदेहसोहो पियदंसणो सुरूवो तेजस्सी गज्झबक्को सुकुले-जाइप्पमओ ससमयपरसमयविदू कालण्णू देसन्न विण्णायसयलदेसायारो महुरवको हेउ-आहरणकुसलो अप्पडिसाई. सव्वेसिमकारणवच्छलो पंचविहआयारधरो जियकोह-माण-माया-लोहो पडिभग्गवम्महसरप्पसरो छत्तीसगुणर्जुत्तो परिसाए मज्झदेसम्मि धर्म वागरमाणो विजयायरिउ त्ति । तओ तं दळूण भणिओ बलएवेण दुविठुकुमारो जहा-कुमार ! पेच्छसु एयं महापुरिसं परिचत्तरायविहवं पि रायसिरीए समद्धासियं पिव लक्खिजमाणदेहसोहं ति, ता गच्छामो एयस्स चलणन्तियं, करेमी अत्तणो जम्मं सफलं । ति भणिऊण गया तस्स चलणंतिए। वंदिओ भयवं आयरिओ, सेससाहू य। धम्मलोहिया सपरिवारहिं आयरिएहिं । उवविट्ठा चलणंतिए । किंचि वेलमच्छिऊण धम्मदेसणाए भणियं विजएणभगवं ! किं पुण एयस्स संसारस्स परिचाए कारणं भगवओ?, ण ताव दोगच्चपरिहवो, लक्खणाणि" चेव साहन्ति पुहइपालत्तणं ति, णे यावि परपरिहवो, ण हु एरिसाओ आगीओ परिहवट्ठाणं ति, ता साहेउ भयवं उव्वेवकारणं ? ति, जइ अणुग्गहबुद्धी अम्होवरि त्ति । तयणन्तरं भणियं भगवया-सोम ! सुण । इह वसंतस्स संसारो चेव णिव्वेयकारणं सचेयगस्स, जओ भणियं केण ममेत्थुप्पत्ती ?, कह व इओ तह पुणो वि" गंतव्वं ? । जो एत्तियं पि चिंतेइ एत्य सो को ण णिन्विष्णो ? ॥१॥ अधि य लच्छी बहुच्छल च्चिय, जीयं बहुवसणसंकडकडिल्ले । पहियं जियाण तह जोवणं पि विरसम्मि संसारे ॥ २ ॥ जो वि पियसंगमाओ सुहाहिमाणो हवेज जंतूण । सो वि विओगाणलसंगसिओ दैड्ढमाणहओ ॥३॥ वाहिसयपीडियाणं जियाण जर-मरण-सोयतवियाणं । दोगञ्चपरिहवुन्वेवियाण भण कह ण णिव्वेओ? ॥ ४ ॥ इय एरिसम्मि संसारसायरे गुरुकिलेसबहुलम्मि । जायइ विवेयकलियाण गिच्छियं णवर वेरग्गं ॥५॥ ता महाभाग ! संसारो "चेय णिन्वेयकारणं सहिययस्स । जं पि विसेसऽत्थिणा पुच्छियं तुमए सो विसेसो संसारसहावो चेव, तहा वि जइ कोऊहलं ता सुणसु १ कोलिय जे । २ बलदेवा जे । ३ फासुयप जे । ४ तेयस्मी जे । ५ लप्पसू सू । ६ जुयो परिसाम जे । . ण बलदेवमणिओ दुर्वि जे । ८ णसोई जे । ९ लाहिओ जे सु । १० "णि साह सू । ११ ण वा वि जे ! १२ अग्गीओ सू आगईओ आगीभो, आकृतय इत्यर्थः । १३ य जे १४ दग्धमानहृदयो दग्धमानसो वा । १५ चव जे । बलदेव पण वा वि जे । १२ अग्गो ग्धमानहृदयो दग्धमानसो वा । १४ Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०६ चउप्पन्नमहापुरिसचरियं । अस्थि पुनविदेहे रिद्वावती णाम णयरी । तीए सुरिंददत्तो णाम राया। तस्स य कणकप्पभा णाम महादेवी । तस्स य तीए सह विसयमुहमणुहवन्तस्स अइक्तो कोइ कालो। अण्णया तस्संतियं [? अहं] चंदउत्तो सिरिगुत्तराइणो पुत्तो रुसिऊण जणयसगासाओ समागओ । सो य असेसकलापारओ अणेयकोऊहलभरिओ मंते तंते जोइसे वेजए सूआरसत्थे कुसलो सुरूवो मेहावी सुभगो कवी गेय-वीणाविणोयपेसलो मुसहावो विणयसंजुओ पियभासी, किं बहुणा ?, नयरऽच्छेरयभूओ । सो य राइणा सबहुमाणं पडिच्छिओ, भणिओ य-सोहणं कयं जमिहागओ सि, एयं पि ते णियं रज्जं ति । दिष्णो कुमारजोग्गो आवासो। कयमुचियकरगिजं । जति दियहा । सरति संसारो। अण्णया य राइणो सुरिंददत्तस्स धूया देवदत्ता णाम रयणीए पच्छाहरयं पविसंती डका भुयंगमेण । तो तयणंतरमेव समुच्छलिओ महंतो कलयलो रायउले । वाहिप्पंति गारुडिया, पउंजिजंति जोगा, लिहिज्जंति मंडलाई, छड्डिजइ उदयं । समाउलीहूयं णयरं । विसण्णो णरवई सपरिवारो। ण य मणयं पि उबसमो विसवेगस्स कुमारीए । तो दिजंति डिडिमा, घोसिज्जइ णयरे जहा-जो कुमारिं पण्णवेइ, जं चेव पत्थेइ तं चेव दिज्जइ। ___ एत्यंतरम्मि णिसुयं चंदउत्तकुमारेणं । 'किं किमेयं ? ति पुच्छिए साहिये तस्स चेव संतिएण दासेण नहादेव ! समाउलो गरवई, डक्का कुमारी भुयंगमेणं, ण य केणइ उवाएण उवसमइ विसवेगो पेक्खन्ताणं मंतियाणं, दिजतेसु मणिसलिलेसु, पउंजिजतेसु विविहजोगेसु धारिया कुमारी, विसण्णो राया, तो संपयं देवो पमाणं । ति सुणिऊण णिरूविया कालवेला. जाव 'अज्ज विण हवडत्ति भगिऊण 'अवस्सं जीवावेमिति णिग्गओ णिययभवणाओ कइक्यणियपुरिससमेओ । गओ राउलं । साहियं णरवइणो महन्तएणं जहा-देव ! एस कुमारो मन्तविसए कुसलो मुणिज्जइ, समागओ य एस केणइ अहिप्पारणं, ता अब्भत्थेउ एयं देवो । तओ राइणा भगिओ कुमारो-जइ अत्यि किं पि मंतफुरणं ता एस अवसरो, जओ जीवावेसु मं सपरियणं, देसु महं कुमारीए जीवियं ति, एएणं च कएणं किं , कयं ? ति । एवं भणंतो राया लम्गो जंघासु । तओ कुमारेण भणियं-अलं विसाएणं, अहं सयमेव एएण णिमित्तेणं समागओ गेहाओ, ता पेच्छसु मन्तसामत्यं । ति भणिऊण कुमारेण कयं चलणसोयं । अचंतसुतीभूएण य अप्पा कवचिओ । गहियं सलिलं दाहिणइत्येणं । अभिमंतिऊण घत्तियं कुमारीए सम्मुह, एवं बीयं वारं तइयं च । जाव तइयवाराए कओ अंगुक्खेतो कुमारीए । ऊससियं च सह राइणा परियणेण य । पुगो छटिया सलिलेगं, हक्कासमणंतरमेवोत्रविट्ठा । पलोइयं च तीए दिसायकं । पुच्छिया कुमारेग-किं तुह बाहइ ? ति । तीए भणियं-ददं सीएण भिण्ण त्ति । तओ जणएग परामुसियं निडालवेट्ट, पुच्छियं - ण ते सीसं गरुयं । तओ ईसि पलोइऊग न जंपियमिमीए। पुणरवि झाणं काऊण सित्ता सलिलेणं । तयणंतरं च भणियं कुमारीए-सीयं मे बाहइ ति । अप्पा संठपिओ। कुमारं च सुइरं गिज्झाइऊण सविसेसं संठषियमोढणयं । पुणो पुच्छिया जगणीए-पुत्ति ! किं तुह बाहइ ? त्ति । तीए भगियं-दढं सीएण भिण्ण त्ति । तओ जणएण परामुसियं णिडालवर्ट, पुच्छियं च-ण ते सीस गरुयं । कुमारीए भणियंताय ! थगत्थगेड हिययं समाउलं. भमड लक्खसण्णा दिदी.ण चेयन्ति अंगमंगाइ, ण जाणामि किं मह बाहइ ? त्ति । तओ कुमारेण भणियं-अज वि ण सम्ममुसरइ गिरवसेसं विसं, ता समाससउ महाराओ, अइकंतो एस एयाए अणत्यो। त्ति भणिऊण पणो जवियाई मन्तऽक्खराड । झाइओ अमयरसप्पवाहो कुमारीए उवरि । क्वगओ गिरवसेसो विसवेगो। भणियं च कुमारीए-ताय ! 'अहिणा डका डक्क' त्ति एत्तियं चेव मए जाणिय, पुणो तयणन्तरं किं दियसो?, उबाउ रयणी?, किं दुई ?, किं वा मुहं ?, किं बाहिं ?, किं वा अभिंतरं ?, किं पिण जामियं ति । राइणा भणियं-पुत्त ! तुह जीवियं, मज्झ, जणणीए य एएण महापुरिसेण दिण्णं, ण एयस्स एकमाणुसदाणेगावि पडिउवयारो कीरइ त्ति, णिक्कारणवच्छलो एस, सप्पुरिसाणुहाणपरो य। एयं च भणंतस्स महाराहणो वयणमक्खिविऊण भणियं कुमारेण-क्रिमेवमादिसइ महाराओ?, किमेत्थ मए कयं महारायस्स?, जओ ण णियजीवि १ सुभारंजे सू । २ समुच्छिा (त्थि)ओ सू । ३ यं चेव तस्संत जे । ४ समुहं जे । ५ वट्ठ जे ६ पुत! जे । . एक अणत्यो सू । ८ उयाहु जे । तरे किम्प प अणियन्ति । स । Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७-१८ दुविटुवासुदेव-विजयबलदेवाण चरियं । १०७ चप्पयाणेण उक्गरियं, ण आरोविओ अप्पा संसए, ण णिसियासिसंकडगया परबलं मंजिऊण आणिया पयतिचवला रासिरी । तावेवं एयं । ति भणन्तो पलोइओ रायपुत्तीए पढमसमागमदूईए विव समिद्वार हिययाऽऽवेयपिसुणणसमarre साहिलासre दिट्ठीए कुमारो । गमियं च विहिकहाहिं जामिणीसेसं । पहाए णिग्गओ हिययं गहेऊण कुमारीए णियहिययविणोयणस्थं कुमारो गेहाओ । गओ णिययभरणं । पत्तो किंचि कालं तसणसुत्रिणयजायत्रिसेसत्रम्महुच्छाहो । कयं उचियकरणिज्जं । ठिओ अस्थाइयामंडवे । समागया वीसभत्थाणीया वयंसया । पुच्छिओ तेर्हि ओलुग्गत्रयणकमलो उव्वेयकारणं । तेण वि साहिओ कुमारीसप्पवइयरो । जग्गिया य जामिणी णीसेस त्ति । इमिणा मणागं गरुयं उत्तिमंग, जड्डाणि अंगाणि, णिद्दाउराणि लोयणाणि । तो तेहिं भणियंसोहणं संजायं जं जीवाविया कुमारी । तओ वयंसयसमेओ किंचि कालं अच्छिऊण कुमारो विसज्जिऊण वयंसए, आरुहिऊण वलहियं णिवण्णो सयणिज्जे । तंत्र कुमारं चिंतयन्तो निरुद्धासेसपाडुयपवेसो अवहत्थियासेसकरणिज्जो जोगी व झाणोक्गओ चिह्न | ताव य बीययियभ्रूण सदेसाओ सह समागरणं मन्तिसुरण पसण्णचंदेणं पत्रिसिऊण भणिओ जहा - कुमार ! किमेवमवत्यो वि महं जैहद्वियं ण साहेसि ? । कुमारेण भणियं - "मित्त । किं साहेमि 3, वाणी चेत्र एवंविहे विसए पट्टि ग उच्छहइ । मया चिंतियं - 'किमेवंविहेणं वइयरेणं साहिएणं ?, कयाइ सयमेव उवसमो भविस्सर' ति । जात्र अतीवानमणिमाणो व पंचबाणो मज्झोवरिं सयबाणो व् संवृत्तो, ता किं करेमि ?, जण्ण सक्केमि अप्पाणयं संघरिडं । कस्सSora मए तुमं विहाय साहियव्वं ?, केण वा अण्णेण मज्झ उत्रइसियव्वं ?, कस्स वा अण्णस्स मह सन्तिया पीड ? त्ति । तासामि तु अजमहं राईए रायधूयाजीत्रावणनिमित्तं गओ । जीवाविया य सा मए दुट्ठोरगस्स । तीए पुण महं आसत्थाए णयणसरपहरधोरणी पेसिया । तेहि य "दिद्विपहारेहिं तहा सल्लिओ जहा ण जाणानि किंचि वि करणिज्जं, पण रोयए भोयणं, णाऽऽगच्छा गिद्दा, ण रती सयणिज्जे, ण बाहिं, ण एगागिणों, ण परियणपरिगयस्स ति । किं बहुणा ? दुल्ललम्भम्मिजणे जस्स अवुण्णेहिं होइ अणुबंधो। गिरिसरियासलिलेण व पइदियहं तेण सुसियव्वं ॥ ६ ॥ लज्जापरव्वसा सा, अहं पि संतरागओ इहई । एवंविहा अवत्थ त्ति मज्झ, को तीए वज्जरउ ? ॥ ७ ॥ दुल्लहजणाणुराएण गरुपेमाणुबंधपसरेण । एवंविहम्मि काले सलहिज्जर मित्त ! मरणं पि" ॥ ८ ॥ एयं सुणिऊण पसण्णचंद्रेण संकन्तदुक्खभारेण जंपियं- कुमार ! किमेक्माउलीभूओ ?, जहा तीए तुह एरिसी अत्था जगिया तहा तक्केमि तए वि तीए एरिसी अवस्था कया चेव, ता मा संतप्प, इच्छा सा तुमं ति । कुमारेण भगियं - "ण याणामि इच्छइ ण व त्ति, मज्झं पुण एरिसी अवस्था, अवि य गरुपियसंगमासात्रियं भणुद्दामरणरणुष्पित्थं । मह हिययं ईण्हि मित्त ! ण याणिमो कह णु संठविमो ?" ॥ ९ ॥ पसण्णचंदेण भणियं -वीसत्थो होहि, अहं तहा करिस्सं जहा तुहं तीए सह संगमो होइ 1 एवं भणिऊण णिग्गओ गेहाओ । गओ हट्टदेसे । गहिया तेण मोल्लेण वीणा । वीणं गेव्हिऊण गओ राउलाभिमुहं । दिट्ठा कुमारीए ast वीणा । पुच्छिओ य-किमेस विकाइ ? । तेण भणियं विक्काइ । चेडीहिं भणियं - अम्हसन्ती कुमारी गेण्डर मोल्लेणं जइ दंसगगिमित्तमसि । तेण भगियं - हुं आणेयव्वा । ताहिं भणियं आणेमो । समप्पिया वीणा । चेडीओ गयाओ कुमारीसमीवं । दंमिया वीणा । तीए भगियं-केत्तिएण मोल्लेण लब्भइ ? । ताहिं भणियं ण अम्हेहिं पुच्छिओ । तओ कुमारी पेसिया चेडी मोल्लपुच्छणत्थं । तेण भणियं जइ अहं सयं देक्खामि कुँमरी ता कुमरीए जहा पडिहायइ तहा चैत्र पयच्छामि । ताहिं (? तीए) हट्ठियं चैव साहियं । सद्दात्रिओ कुमारीए गुरुविरहसोसियंगीए रणरणयविणोयणत्यं ति । तओ पायवडणुओ य उवविट्ठो दिण्णासणे । पुच्छिओ कुमारीए-कओ तुमं ? । तेण भणियं विवित्तमादिसउ जेण सव्वं साईमि । तभ तयणन्तरमेव पलोइयाई पासाई । दूरीहूओ परियणो दिट्टिममुञ्चन्तो ठिओ । १ "तो पुलइओ जे । उव्वेवका जे । ३ 'रुढिऊ' जे ४ जहिट्ठिये जे । ५ संवरिउ जे । ६ ज्ज अहं जे । ७ णय पहा जे । ८ लीड्यो जे । ९ इण्डिमित्त ! ण यणिमो जे । १० तुमं जे । ११ एयं जे । १२ लहु जे । १३ कुमारी जे । १४ जहिट्ठियं जे । Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चप्पन्नमहापुरिसचरियं । तओ पसण्णचंद्रेण भणियं - ' देवि ! किं भणामि ?, जं न सक्केमि, जओ अहं सिरिगुत्तस्स पुत्तेण चंदगुण सह समागओ । तस्स य रयणीय तुम्ह दंसणेणं ऐरिसा अवस्था जा सयलत्रयणाणमगोयरे, जओ ण देइ चित्तं सेवयजणस्स, ण बोल्लावेइ वयंसयजणं, ण खेल्लइ गूढचैउत्थ-बिंदुमईहिं अक्वर-बिंदुचुआइणा, ण चित्तकम्मविणोयमभिलसर, सयणीयं, ण दन्तलहीए रई बंधे, ण य अहोभूमियाए, पाहिलसइ भोयणं, केवलं तुह कहामेत्तजीवियासो चिट्ठइ । ता संपयं देवी पमाणं' ति । कुमारीए चिन्तियं - हयास वम्मह ! जइ त्रि मह एरिसी अवस्था कया तहा वि सोहणमणुचिट्ठियं, जं तस्स वि एरिसी अवत्थ त्ति । एवं चिंतिऊण भणियं कुमारीए-भणसु किं कीरउ ? । तेण भणियंजह मह वयंसो सामिसालो एरिसाओ पलयन्तिकपरियत्राओ उन्चरइ तं कीरउ । 'को उण उत्राओ ?' त्ति भणियं कुमारीए । तेण भणियं १०८ दट्ठस्स हुयवहेणं सो चेत्र जहौसहं महग्घत्रियं । तह तुह दंसणविहुरे पुगो वि तुह दंसणं चेत्र ॥ १० ॥ तीए भणियं-कदं पुण अजिंदिएण विहिणा अम्हाण समागमो भविस्सइ ? त्ति । एत्थंतरम्मि कुमारीए बीयहियभूयाए वसंततिलयाए जंपियं जहा - गत्रमीए बाहिरियाए भगवतीए जन्त्ता भविस्सर ति, तत्थम्हे गच्छस्सामो तुमं पि कुमारं गेव्हिऊण तत्थ चेवुज्जाणे सणिहिओ भवेज्जसु त्ति । एत्थंतरम्मि जणणीए कुमारीए अत्रत्थं मुणिऊग सद्दात्रिओ वेज्जो । तेण य वेज्जेण सह समागया जणणी । furrओ सोवीणं मोत्तणं । गंभ्रूण य साहियं कुमारस्स । तुट्टो चित्तेण । समासत्थो जाओ । कया पाणवित्ती । पुच्छियं-कया नवमि ? त्ति | साहियं पसण्णचंदेण जहा - चउत्थे दियहे । कह कह विसमागया णवमी । गओ य पठ हियएणं, पच्छा सरीरेणं । दुग्गाए उज्जाणमज्झ भागे एकम्मि पएसे सव्वं परियणं मोत्तूगं पसण्णचंद्रेण सह गवेसिउमाढतो सव्वे कयलीहरेसु लयामंडवे य, जाव लीलावती कुमारी वसन्ततिलयार समेया एकम्मि माहत्रीलयामंडमज्झदेसे दिट्ठा | पलोइया सा तेणं वालऽग्गाओ जाव णहऽग्गं ति, किह ? - सह सिद्धिपस ढिलाऽऽलंबिकुंतल कलावा । लीलाकुत्रलयमारु पलुलियालयजणियमुहसोहा ॥। ११ ॥ जरढायत्रदृरसमूससन्तत्ररसेयसलिलचित्तलियं । वयणं त्रियसियकमलं व मणहरं जललवालिद्धं ॥ १२ ॥ परिणयविम्बाऽऽयम्बिरमहरदलं कोमलं ति वहमाणा । वम्महविलासमंजू सरंयणमुदं व छउयंगी ॥ १३ ॥ सुसिणिद्धनिविडमणहर त्रिरश्यवरसंखसच्छहतिलेहं । वहमाणी माणुद्धरसिरोहरं भूसणुव्विडिमं ॥ १४ ॥ कोमलमुणालसच्छहभुयजुयलुग्भडविलासेराहिल्ला। कंकेल्लिपल्लवाऽऽयं वहत्यअहत्थियच्छासा ॥ १५ ॥ उत्तत्तकणयकलसोरुसच्छहं पवरहारहारिल्लं । रइवल्लहगुरुसीहासणं व थणवमुञ् ॥ १६ ॥ तिवलीत रंगकयमज्झ देसभाएण अग्घर महग्घा । घणजहणलणतोलणमणत्रिहितंगुलिपएसा ॥ १७ ॥ रमणेण रमणचड्डणसण गदिपुलिगदेसवियडेगं । रइवल्लहवम्महरइहरेण दूरं महग्वत्रिया ॥ १८ ॥ रम्भागब्भसमुब्भवला यण्णपसाहियाहिं जंबाहिं । रमणभरमुव्वहन्ती णेउरकयमणहराला वा ॥ १९ ॥ कुम्मुणएहिं णमणिविरायमाणेहिं गृहगुप्फेहिं । चलणेहिं चवलथलपोमिगि व्त्र संकं जगन्तेहिं ॥ २० ॥ इयसगत्रिणिम्मियमणहरसोहन्नितं गिएऊण । मण्णे मयणेग जए निक्कज्जं उब्भियं चावं ॥ २१ ॥ अवि य मयणग्गितवियतणुतात्रसोसियासेस लिणिदलनियरा । पव्त्रायसरसकोमलमुगालत्रलयालिसगाहा ॥ २२ ॥ अविरयकयचंदणसलिलसेयसू सन्तमुगियगुरुतावा । मुत्ताहारविराइयपयोहरुच्छंगकयक्रमला ॥ २३ ॥ सिसिरजलदंदोलगत्रसपसरियसुरहिगंधपेंडिवासा । विरह ग्गितावसोसियकवोलतलपंडुगंडयला ॥ २४ ॥ पिययमदंसणतहासं तावुत्तत्रियदेह-चलणेहिं । असमंजसं कुणंती पुणरुत्तं णलिसित्थरयं ।। २५ ।। १ तुह जे । २ एरिसी जे । ३° चउक्क-विजे । ४ ण य स जे । ५ एयं जे ६ यावओ जे । ७ कण्हण्ड्सु जे । ८ " रइसमुहं जे । ९ “सरोहिल्ला जे । १० कलसतो जे । ११ विहिगुत्तं जे । १२ 'पडवा' जे । Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७-१८ दुविठ्ठवासुदेव-विजयबलदेवाण चरियं । १०९. किं एही? देही दंसणं? ति अजेब अम्ह सो सुहवो । अणुसंधन्ता तं चिय कहियं पि हु पियजणालावं. ॥ २६ ॥ कंठन्भन्तरपसरन्तपंचमुग्गारकायलिपलावा । लोलुल्लालियकुवलयदीहरदलठइयमउलऽच्छी ॥ २७ ॥ खगमेकमुष्णहिययत्तणेण ठाऊग रुद्वबाबारा । णीसहदेहा पडिया सहस च्चिय सहियणुच्छंगे ॥ २८ ॥ पसरन्तदीहनीसाससोसियाऽहरतराला सा । अपडिप्फुडक्खरालावमुणियगुरुवियणसंतावा ॥ २९ ॥ इय दूरवियंभियमयणबाणवसपसरपयडियविलासा । रमगीअयरा जाया तक्खणमणुकंपणिज्जा वि ॥ ३० ॥ एयावत्थं दद्रुण कुमारेण समासासिओ अप्पा, चिंतियं च-इमीए एवंविहं संता जणंतेणं मयणेणं तवियदेहेणाकि महं ण किंचि अपरद्धं ति । पुणो वि परोप्परालावं गिहुयपयसंचारो समासण्णो होऊण सुणिउमारतो। जंपियं च लीलावतीए वसंततिलयमुदिसिऊण जहा-पियसहि ! जं जगस्स तस्स काययं तं तुमं चेत्र अणुहूयवइयरा जागसि, ता जहाउसरं नए सचमणुट्रियव्वं, अहं पुण ण सक्कुणोमि अत्तगो अंगाणं पहविउं, तहा वि जं करियव्वं मए तं भणसु। वसंततिलयाए भणियं-'पियसहि ! सबमई कालोचियं करिस्सामि, तुमए पुण पिययमाणुकूलाए होयव्यं, जैओ रूढपणयं पि पेम्मं विहडइ पडिकूलयाए महिलाणं । इय भाविऊण सुंदरि ! पियाणुकूलं ववहरेजा' ॥ ३१ ॥ कुमारीए भणियं-को एस्थ वियारो? अणुकूलत्तणं वम्महेणेत्र सिकावविया, अहं पुण तुमं एत्तियं पुच्छामि 'किमेस पलयकालसरिसो संतावो तम्मि दिट्ठम्मि उपसमिस्सइ ? उवाहु ण व ? ति । बसंततिलयाए भणियं-'पियसहि ! मुद्धे ! सुणसु, परिचिंतिओ वि सहसा अंग णिववइ पिययमो णवरं । अण्णं पि य किं पि रसंतरं तु दिट्ठो उण जणेइ ॥३२॥ अहवा पेच्छइ चेव पियसही थेववेलाए जं एत्थ होही। एत्थन्तरम्मि 'किं किं ?' ति भणन्तो सहसा पायडीहूओ कुमारो। लज्जिया सह सहीए कुमारी। चिंतियं च कुमारीए-हा! इमिणा हिययचोरेणं सव्वं दिटुंगिसुयं च अम्हं चरियं ति । ताव य वसंततिलयाए अभुडिओ, 'सागयं च भगिऊग उत्रणीयं आसणं । उवविहो कुमारो। थेववेलमच्छिऊण भगियं कुमारेण वसन्ततिलयमुदिसिऊण जहा-किमेसा तुह सही अम्ह दसणेण तुहिक्का ठिया ?, ण जुज्जइ घरमागयस्स कुलीणाणं उवयाराकरणं ति, जओ जइ वि ण णेहो ण य पणयपसरसब्भावरड्ढिउल्लावो। तह वि अपुवागमणे इयरो वि समाउने होइ ॥३३॥ . वसन्ततिलयाए भणियं-कुमार ! सुकुमारा कुमारी इहागमणेग दिगयरकरणिवाएण य मणयं पीडिया ण सका जहुत्तमुक्यारं काउं, ता ण एत्थ कुमारेग छलगवेसिगा होयचं । एयं सुगिऊग भणियं कुमारेण-सुंदरि ! किमेत्थ छलं ?, ण अम्हे उचयारऽन्थियो, किंच उवयारो होइ परम्मि सुयणु !, अह सहइ सो तहिं चेव । सम्भावपेसले पुग जणम्मि सो कइयवे पडइ ॥३४॥ महिदाणं पि हु सुंदरि ! ण तहा तुष्टुिं जणेइ हिययस्स । पियसंभावोप्पियखइरवीडयं जह मुहावेइ ॥३५॥ . तओ एयम्मि अबसरे वसन्ततिलयाए उद्विऊण कलहोयतलियाए तंबोलं कप्पूरसणाई समप्पिय, कुमरीए सहत्यगुत्था य बउलमालिया। तओ कुमारेण कया कंठदेसे 'कुमारीए सहत्थगुत्थ' त्ति कलिऊण बउलमालिया, आवीलं मोत्तूणं समाणियं तंबोलं । पलोइयं च ईसीसिलज्जोगयाए [कुमारीए] अवंगदेसेण कुमाराभिमुहं । कुमारेणावि दिटुं तीए वयणकमलं ति । तेणावि पसण्णचंदहत्येणं दावावियं तंबोलं कुमरीए । तीए वि तस्स हिययं व गहियं । एत्थंतरम्मि समागओ कुमारसंतिओ पडिहारो। भगियं च तेण जहा-"देव ! राइणा पेसिओ कंचुई आवासे चिट्ठइ, भणियं च तेण जहा-'लहुं चेव सद्दावेह कुमारं, जओ अइकमइ सोहणा वारा', तओ अहं तुरियं समागओ, एवं च ठिए कुमारो पमाणं" ति । भणियं च [कुमारेण-गच्छम्ह । तयणंतरं च जिग्गओ कुमारो। भमिया य पसण्णचंदेण १ अपरि"फु जे । २ 'जओ' इति सूपुस्तके नास्ति । ३ ण य ज जे। ४ एवं सू। ५-७ कुमारीए जे। ६ च तेण(तीए, ईसि Jain E.जे । एवं चिट्ठिए जे । Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउप्पलमहामुरिसचरित्रं । वसन्ततिलया जहा-तए पुणो अम्ह आवासे समागंतब्वं । ति मणिऊण निग्गया उज्जाणाओ। पत्ता णियेयमावास। दिट्ठो कंचुई। अम्भुष्टिओ य। पायवडणुहिएण य भणियं कंचुइणा-कुमार ! राया समादिसइ जहा-सोहणमणुट्टियं कुमारेण जमिहागओ सि, ता पडिच्छसु जीवियाओ वि अब्भहिअयरं अम्ह कुमारि, विवाहदियह पुण गवेसिऊण कहिस्सामो । कुमारेण भणियं-जं राया आणवेइ त चेव कीरइ ति । दिण्णं कंचुइणो तंबोलं । गओ कंचुई । इओ य कुमारी सह सहीहिं किंचि वेलं अच्छिऊण गया णिययभवणं गरुयमयणाज्यल्लयहियया। विणायवुत्ताए य वद्धाविया वसन्ततिलयाए जहा-"पियसहि ! धीरा होहि, एत्थ कजे 'देवो चेव अक्खणिओ । अवि य चंदस्स चंदिमाए, रईए मयणस्स, कमल-फमलाण । जेण कओ संजोओ अज्ज वि सो चेव सुयणु ! विही ॥३६॥ अणुकूलो जइ कस्स वि हवेज्ज सहि ! सुकयपरिणइवसेण । तो चवहरइ जहिच्छं पिउ व्य दिव्यो ण संदेहो ॥३७॥ तस्स य अणुकूलत्तणं पिच संपयं लक्खिज्जइ । भणिया य अहं जहा-'अम्ह गेंहं समागंतव्य' ति। ता पियसहि ! आलिहसु कि पि दूसहपियविरहवियणाविणोयणत्यं अवस्थासंमयगं चित्तयम्म" ति। सओ घेत्तूण चित्तफलहियं लिहिया रहंगी, 'समागमूसुय' त्ति असाहियं चेव णज्जइ । लिहिया य वसन्ततिलयाए हेट्ठओ गाहा आसुयइ महइपुलिणं कमलं अल्लियइ विसइ सरसलिले। रैसइ कलुणं वराई चक्कादी पियविओयम्मि ॥३८॥ बीयदियहे य वेत्तूण चित्तवष्टियं तंबोलाइयं [च] गया कुमारमवणं । दिडो य मयणवाणसंतावतावियदेहो त्रि सविसेसरमणिज्जो कुमारो। गया कुमारसमी । भणिया य कुमारेण-अइभूमिसमागमेणं परिखेइयं मुणालकोमलं सरीरं मुंदरीए, ता समादिससु किं कीरउ ? ति । तीए भणियं-कुमार! कुमारीए तुम्ह समीवं सरीरपउत्तिणिमित्तं पेसियाँ अहं, चित्तवटिया य । [? तओ समप्पिऊण चित्तवट्टियं ] भणियं च तीए-एसा चक्कवाई मए विणोयणिमित्तं लिहाविया इयं" च गाहा मए अवत्थास्यणत्यं लिहिया। पेच्छिऊण य भणियं कुमारेण "णिययावत्यं साहइ एस बिय णवर नीसहसरीरा । भज्जत्तगहियणिवडियमुणालवलयाए चंचूए ॥ ३९ ॥ ता तुम्ह सहीए असरिसं विष्णाणं, परिप्फुडो पयडिओ भावो, सोहणा रेशा, पयरिसं गया भाषणा, तुम वि असाहारणं कवित्तणं । अहवा तीए संवड्ढियाए केत्तियं एयं ?, होन्ति च्चिय आगरम्मि रयणाई" ति। सो क्रयसम्माणा पेसिया वसंततिलया णिययभवर्ण । __ एवं च अण्णोण्णगेहणिययपेसणेणं वड्दंते पेम्माणुबंधे, पसरन्ते सन्मावपणयपसरे, अण्णया समासण्णे लग्गे सहाविहभवियच्चयाणिओएणं कुमारी लेप्पमयकामएवऽच्चणं कुणंती तर्हि "चेव उजाणे जहा कहिचि गएण कुमारेणं अविष्णायलेप्पैकम्मविसेसेणं 'अण्णपुरिसासत्त' ति दिट्ठा । ठूण चिंतियं-धिरत्थु महिलाविलसियस्स, जेण एवंविहे वि मझोपरि पेम्मपसरे तहा वि अण्णमभिलसइ, ता किमिमीए संपयं विवाहियाए , ण एत्य अच्छन्तरहिं परिहरिलं तीरइ, ता अकहिऊण महारायस्स अण्णत्थ वच्चामि, ण एवंविहसंतावुत्तावियसरीरो खणं पि इह सकेमि चिहिउँ । ति चिंतिंऊण रयणीए चेव कइवयपुरिससमेओ णिग्गओ णयराभो । गच्छंतो य चिंतिउमाढत्तो परपुरिससंगमुप्पुसियसीलसाराए तीए कि कजं ? । हियय ! समाससमु तुमं तीएं रेह चिय अउव्वा ॥४०॥ किं सीलवजियाए इमीए ?, रे हियय ! मुयसु अणुबंध । ते धण्णा जे सइलोयणाण लक्खत्तणमुर्वेति ॥४१॥ दे हियय ! कुण पसायं, उल्लेहड ! चय परम्मुहं दइयं । परिणयबिंबसरिच्छं अहरदलं पावइ सउण्णो ॥ ४२ ॥ लज्जाविधं म्हि तुमए परम्मुहे सम्मुहेण "रे हियय ! । धष्णो होही तीए बाहापरिरंभणऽक्खणिओ ।। ४३ ॥ कह णु ण लज्जसि रे हियय ! मूढ ! तं तारिसं पि चिंतेन्तो । चक्कलियपीणयणवैटचहणं पावइ कयस्थो ॥४४॥ 'मो समाग सू । २ ययावासं जे । ३ कुमरी जे । ४ पुणो ठवेऊण जे । ५ तं की सू। ६ कुमरी जे । ७ णाऽऽयहि जे । ८ देवो अपन जे । ९ अम्हे गेहमागतव्वं जे। १० असाहिया जे। ११ सरह सू । १२ चकाई जे। १३ कुमरीए जे। १५ या ह, चिजे । १५ ° गा सू। १६ चेवुजाणे जे । १. लेपमयकम्म सू । १८ वियम्ह । १९ हे जे । २. भणुक्ख सू । Jain Ed.२१वच । Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७-१८ दुनिछुवासुदेव-विजयबलदेवाण चरियं । मयसु भयंत, दइयं पि मुयसु मणयं पि मुकमज्जायं । मज्झं मुट्ठीगेझ तीए को पावइ बेउण्णो ? ॥४५॥ रे हियय ! फुडं भणिमो ‘रते रैचिज्जइ' त्ति जुत्तमिणं । एयं तुज्झ ण जुत्तं 'रमणं रामेही सऊष्णो' ॥ ४६॥ पच्चक्रवदिविलियं दूरं परिहरसु पिययमं हियय !। कस्स ण हरेइ हिययं ऊरुजुयं तीए सुकुमालं ? ॥ ४७॥ इय संठवण-विसरणबहुविहवक्खेवहरियहियएणं । कुमरेण णेय णाओ दीहो वि पहो विचित्तेण ॥ ४८॥ एवं च बहुप्पयारं हियएणं चिंतयंतो पविट्ठो महाई । पुणो वि पुन्ववुत्तंतं "चिंतंतो गंतुमाढत्ती, अवि यअणुकूले पडिकूलं परम्मुहे सम्मुहं चलसहावं । पेम्मं महिलाहिययं, ण याणिमो 'कह णु संठविमो ? ॥ ४९ ॥ तओ पेक्खिउमाढतो महाडइं । सा य णारायणमुत्ति न पयडियविस्सरूवा, दुस्सीलघरिणि च सयावराहा, सारयच्छेत्तभूमि च करिसयसंकुला, सरयसिरि ब पोण्डरियमण्डिया, तियसा-ऽसुरमहियसमुद्दवेल न सकमला, विणिहयहिरणक्खसपुरि च मयाहिवसमाउला, दाणवाहिवतणु ब वियरियहरिणहा, गंगेय-उज्जुणसमरभूमि व्व वियंभियसिहंडिसिलीमुहा, भारहकह व समुल्लसियभीम-ऽज्जुणा, जहिं च रुवंति विरुया, मुभुयन्ति भल्लुकीओ, घुरुहुरन्ति वराहा, सूसुयंति सप्पा, गुलुगुलेति गयवरा, मजति महिसा, चरंति चमरीओ, गज्जति गंडया. भज्जति भीरुया, रुंजंति रुरुया, मयमृदिया मयारिणो, विद्दवंति वग्या, सप्पंति ससया, लीलंति लावया, तेम्मति तित्तिरा, मुक्ककेकारवाई वमादि पेच्छंतो महाई लंघिऊण कइहि वि पयाणएहि पत्तो चंपं णयरि। तत्थ य समरसीहो णाम गरवई परिवसइ । आवासिओ य विवित्तपदेसे । दिट्ठो य सोहणे दिवसे राया। ओलम्गिउमाढत्तो। ___ इओ य तम्मिणिग्गये राइणा गरेसाविओ। पुच्छिो य तयासण्णाजगो-कि णिमित्त कहिं वा मओ रॉयपुत्तो? ति। तेहि वि अणायवुत्तंतेहिं जहटियं चेत्र ‘ण याणिमो' ति साहियं णरवइणो । उवलद्री य एस वुत्तंतो रायकुमरीए जहाणे णज्जइ कहिं पि केण वि पोयणेणं गओ चंदउत्तकुमारो त्ति । तओ एयमायण्णिऊण सहस ति मुच्छिया। पडिवाइया सस्थहियया य परिदेविउमादत्ता। कई ?हा णा ! कत्थ सि गो ?, कि कि एयं? ति मज्झ वि ण सिढे । गिवसंतीए विमए हियए चित्तं चिय ण णायं? ॥५०॥ णाह! ण जाणामि अहं दोसं जेणेह उज्झिया तुमए । अह तायस्स! ण मज्झं, किमहं तुमए परिचत्ता? ॥५१॥ सगुणं व णिग्गुणं वा महाणुभावेहिं जं समायरियं । पालन्ति तं तह च्चिय जइ ण विसीले विसंवयइ ॥५२॥ अन्ज विणाह ! ण यागसि ममं पि दूरेण सीलगुणगियरो। धम्माराहणयाए धम्माण गवसणं जुत्तं ॥५३॥ ता मइमोहो व्य 'तुहं, अहवा तं णाह ! विप्पलद्वो सि । केणावि अहण्णेणं, भत्तं कह अण्णहा चयसि ? ॥ ५४॥ दोसा गुण न जे केइ कप्पिया पियजगम्मि णेहवसा। परिणामे ताण पुणो णिचहणं अण्णहा होइ ॥ ५५॥ णाओ सि तुमं सामिय !, ममं पि जाणिहसि दीहकालेण । मोत्तूण तुमं जम्मंतरे वि जइ अण्णहा होज्जा ॥५६॥ इय केत्तियं व भणिहिसि गाह ! चत्ताई तुह विओयम्मि । विसयसुहाई महायस ! सहियाई विलासकजेहिं ॥५७॥ एवं च बहुविहं विलवंती सहीहि भगिया-'सामिणि ! किमणेगमरणविलविएण ?, गओ सो तुम मोत्तूणं ण णज्जइ केणावि पओयणेणं । तुमं पुण एचियं एवंविहं च वोत्तुं केण सिकावविया ? । ता सामिणि ! कयं तुमए मरणाओ वि पढमजोयणम्मि विसयपरिचयणं तस्स य अणायपरमत्थस्स कए' ति। एत्यंतरम्मिणाऊण एवं वइयरं समागया जणणी । जागिओ य पइण्णाविसेसो कुमारीए। भणिया य-पुत्ति ! किमेवमाउलीहूया ?, जो सो "वेव आगमिस्सइ तओ सोहणं, अह णाऽऽगच्छइ तओ जो की वि तओ वि सुंदरयरो तस्स तुमं पिया संजोइस्सइ, ण हु कण्णायत्ता वरा, पिया ते जाणिस्सइ संजोगं ति। तीए भगियं-"अम्ब ! किमेत्य जाणियव्वं ?, १ अहष्णो जे । २ रजिजति ति जे । ३ विलय जे । ४ 'दवि जे । ५ चितयतो जे । ६ 'डइयं । सा जे। . सरय जे । ८ पोंडरीय जे । ९ °डियसि जे । १. रुरुयति जे । ११ मुइया जे। १२ तमति जे। १३ 'हवि जे । १४ त णिग्गों रा"स। । १५ सयउक्ति जे । १६ दो एस सू । १vण आगिना जे । १४ तुम जे । ९ अमजेणं जे । २० गमओ एवं सू मरीए जे। २२ चेव समागमि जे। २३ कोइ जे । २४ आणइस्सहो । Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउप्पन्नमहापुरिसचरियं । . साहेज्जसु अंब ! तुम एयं तायस्स णवर विष्णत्तिं । लम्गिहिह इमम्मि भवे सो वा अग्गि व्व मह हत्थेः ॥ ५८ ॥ एवं च गुरुदुक्खपीडियाए परिहरियपुरिसदसणाए बहुप्पयारं पि भण्णमाणीए ण कओ विसयाहिसंगम्मि मणो। ठिया य सद्धम्मपरायणा । की य सुन्वयागगिणीए सह संगमो । परिणी 'जिणएसिओ धम्मो । धम्म पहावेण य ववगओ सोयप्पसरो, उल्लसिओ सुहो परिणामो । जिणप्पणीयमावणाहि अप्पाणं भावेमाणी चिट्ठइ त्ति । इओ य तत्थऽच्छंतस्स चंदउत्तस्स, समरसीहस्स राइणो समरकेसरी णाम पुत्तो सइवायरियउवएसेण मन्तमब्भसन्तो पमाएण य मंतदेवयाए छलिओ । गहवसेण य तं णत्थि ज ण कुणइ । उग्गाइ हसइ धावइ रोवइ णच्चइ य परिहणं मुयइ । संतावेइ परियणं जणगि जणयं च सो दुहिओ ॥५९ ॥ एत्थन्तरम्मि चंदउत्तस्स कुमारस्स अग्गओ भणियं गरबतिणा सदुक्ख-मरणाओ 'वि गरुययरं दुक्खं जं एवंविहो पुत्तो ति । तओ तमायणिऊण भणियं चंदउत्तेणं जहा-णेह कुमारं, पेक्खामो ति । तओ रायाएसेणं आणिओ रोजपुत्तो महया किलेसेणं । कयं चलणसीयं चंदउत्तेण । कवचिओ अप्पा । आलिहियं मंडलं । पउत्तो मंतजावो । आविट्ठो रायउत्तो। भणिओ य-आसणं बंधमु, आहारं पडिच्छसु ति। तओ एवंविहमुवयारं काऊण मोयाविओ गहाओ रायउत्तो, समासत्थो जाओ। चिंतियं च राइणा-एस महापुरिसो ति, उवयारी य महाकुलप्पसूओ य मम समीवं च आगओ, ता एयस्स जं कीरइ तं सव्वं थेवं । ति चिन्तिऊग संकप्पियं-देमि एयस्स नियरजस्स अद्धं सोहणे दिवसे ति । एवं च नाव राया कयवसाओ चिट्टइ ताव य भवियन्वयागिओएणं महादेवीए रायकुलाओ णिक्खमंतो सद्दाविओ चंदउत्तकुमारो । पविटो य सुद्धहिययत्तणेणं । कओवयारो य पविट्ठों गेहब्भंतरे । विवित्ते य भगिओ महादेवीए जहा-"अज्जउत्त ! पढमदंसणाओ चेव मह हियए तुमं पविट्ठो । तदिवसाओ य आढत्तं ण याणामि भोयणं, ण णि, ण सुहं, ण दुहं, ण रत्ति, ण दिवस, ण बाहि, ण अन्भिन्तरं, 'एस गओ, एस पविट्ठो, एयं भणिय, एयं च ववसियं' ति तुह वावारपरायणा तुह वयणमेत्तकयजीवियासा चिट्ठामि त्ति, किंच- . कि रयणीए ?, दिवसेण किं व ?, किं बोभएण ?, ण हु जत्थ । दइएण समं जायइ समागमो जीयणाहेणं ॥ ६० ॥ किं बहुणा वायावित्थरेण ?, सीलं कुलं च तुह कज्जे । चत्तं, चयामि गियजीवियं पि जइ होसि पडिकूलो॥६१ ॥ मुंजसु सुहय ! जहिच्छं, देमि धणं, णरवई पि तुह कज्जे । अणुकूलेमि महायस!, लच्छी पडिकूलइ अहवो ॥६२॥ जे होन्ति महापुरिसा ते परकज्जुज्जया सया होन्ति । णियकजं पुण तं ताण जं परत्याण णिव्वहणं ॥ ६३॥ इय जइ भयसि भयंतं तो सव्वं मुहय ! सिज्झइ अयंडे । अह अण्णह त्ति सुंदर ! पत्तिय 'मारेइ य मरन्तं' ॥६४॥ तओ एवं सुणिऊण थंभिओ व णि(लि)हिओ ब्व "विम्हिउ व्च णद्वचित्तो व्व किं पि कालमच्छिऊण रायपुत्तो मणिउमाढतो ण हु अम्ब ! तुम्ह दोसो, मज्झं चिय पावपरिणई एसा । जेण जणणीसमाणा तुमं पि एवंविहं भणसि ॥६५॥ मज्झ ण तुमं, ण राया, ण य भोया, णेय एत्य वसियव्वं । एएण णिमित्तेणं किच्च च महं समुप्पण्णा ॥६६॥ किं कीरइ नं जीवंतएहिं जेणं किएण तदियहं । आमरणन्तो जायइ मणम्मि गरुओ चमकारो? ।। ६७॥ अम्ब ! खैमेजसु, गच्छामि एस पावो अभिण्णमुहराओ । जह तुज्झ कुलं विमलं ति होइ तह तं कुणेजासि ॥६८॥ एवं भणिऊग णिग्गओ। गओ णिययमावासं । साहिओ एस वुत्तंतो पसण्णचंदस्स । तेणावि भणियं-सुंदरमणुट्ठियं, किंतु जहडियं चेव अहं साहेमि णरवइणो । तओ मए भणियं-ण जुत्तमिणं, जओ वावाइजइ सा वराइणी, ता एत्य पत्तकालं जं देसपरिचाओ त्ति । वयंसएग भणियं-ण जुत्तमेयं, जओ सा दुरायारिणी परवई अण्णहा बुग्गाहिस्सइ ति । तओ मए भणियं-जं होउ तं. होउ, अवस्सं गंतवं । ति भणिऊण दिण्णं पयाणयं । गया देसन्तरं । -- १ ओ सुसू। २ जिणदेसि जे । ३ सोगप्प सू। ४ वि गुरुपरं जे। ५ रायउत्तो जे। ६ सोयणं चंजे। हो य में जे। ८ 'भो यम सू । ९ लच्छि जे । १० विम्हइओ बजे। ११ तुज्झ जे । १२ खर्वजसु सू। . : Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७-१८ दुबिट्टुवासुदेव- विजयबलदेवाण चरियं । ११३ इओ य राइणो तीए साहियं जहा-अहं तेण रायेउत्तेण पत्थिया, ण य मए अणुमयं, तओ सो विलक्खिमाए चइकण तुमं गओ ति । एयं सुणिऊण णरवइणा णिउणं गवेसात्रियं । जाव य जीए चेडीए वाहितो रायउत्तो तीए चेव जट्ठियं साहियं जहा - इमीए अम्ह सामिणीए बहूणि दिवसाणि ममं भणंतीए रायउत्तवाहरणणिमित्तं, अणुबंधे य मया सद्दिओ, ण य इमीए तेण महाणुभावेण वयणमणुट्टियं, गओ य सो महाणुभावत्तणमवलम्बमाणो त्तिं । तओ राइणा गवेसाविओ, ण य उवलद्धो ति । एस बुत्तंतो अम्ह पुरिसेण पिट्ठओ समागरण सच्चो साहिओ ति । तओ अहं ओहयमणसंकष्पो पत्तो रयणपुराहिहाणस्स णयरस्स बाहिरियं । आवासिओ विवित्ते परसे । पुच्छिओ य एको कुलपुत्तओ रवणो णामं गुणा य । तेणात्रि साहियं जहा - रयणसेहरो णाम णरवती सुहसेवणिज्जो गुणपक्खवादी चाई कयणुओ संविभागसीलो य । तेग चिंतियं - सोहणं जइ देव्वमणुकूलं भविस्सइ । तओ रायउत्तो कयकरणिज्जो कपुरिसंपरिवारिओ वेसरीए समारूढो गओ रायंगणं । पडिहारेण जाणाविओ जहा- देव ! देसन्तराओ राउत समागओ पडिहारभूमीए चिह्न देवसगत्थं, संपर देवो पमाणं ति । राइणा भणियं पविस्सु त्ति । तओ । पायवडणुओ य उवविट्ठो रायाइहम्मि आसणे । कयसम्माणो य पुच्छिओ पउतिं । तेणावि 'पिउणो रोसेण तुम्ह समीमुत्रागओ हि' त्ति साहियं । राइणा भणियं सोहणमणुचिट्ठियं जमिहागओ सि, एयं पि तुह निययं चेव रज्जं । ति भणिऊण कयसम्माणो विसज्जिओ । ओलग्गिउमाढत्तो । सरइ कालो । 1 अण्णा राइणो णियभज्जाए पुत्तस्स रज्जत्थिणीए विसं संपउत्तं । च मए मन्तजोगबलेण पल्लट्टियं । पउणो उवरुद्ध य राया । एत्थंतरम्मि राइणो पुत्तेण मणिरहेण सहाविओ अहं । मेत्ती य तेण सह जाया । ण मएँ गायं जहाराइगो पुत्तेण विसं उत्तं । राइणा विण्णाओ अहं जहा 'मह पुत्तेणं सह संगओ' ति । तभो राइणा अहं णिसिद्धो जहाइमेणं दुद्वायांरेण पुत्त्रेण सह समागमो ण कायन्त्रो । तओ मए वि पडिवण्णं ति । तयणन्तरं च अहं तस्स संठवणस्थं तग्गेहं गओ । ताव य राइणा तव्त्रावायणत्थं पेसिया पुरिसा सण्णद्धबद्धपरियरागारा । तओ अहं पि तत्थेव सष्णद्धो । बाबाइया य अम्हेहिं ते पुरिसा केई, केइ तत्थ गट्ठा । अत्थमिओ य भयवं दिवसयरो । तओ अहं सह तेण रायउण णिग्गओ णयराओ । गओ सो णियगमाउलस्स समीचं । अहं पितं औउच्छिऊण गओ रयणभूमिं कइवयपुरिसपरिवारिओ । पत्तो रयणागरं । खणाविया मए रयणभूमी । पत्ताणि रयणाणि । जात्र किलागमिस्सामो तावे य अवक्खंदं दाऊण एगेणं पञ्चन्तिएणं उद्दालियाणि रयणाणि । णीयो "बंधेउं गियं पलिद्वाणं । तओ को महया किलेसेणं । ते य पुरिसा मं णिष्फलं मुणेऊण दुमं व सउणगणा गया दिसोदिसिं । अहं एगागी संवृत्तो । पत्तो य एवं पट्टणं । तर्थे य हट्टमज्झदेसम्मि चचरे कॅहरणं कहाणयं कहतेणं पदियं गाहाजुयलं Test जहिं जहिं चिय भोर्गेपिवासाए विडिओ पुरिसो । पावइ तर्हि तर्हि चिय पुण्णेहिं विणा पर किलेस || ६९ || धम्म से होइ कारणं अत्थ-काम-मोक्खाणं । तेण विणा किं सिज्झउ ?, कारणओ कज्जसिद्धि त्ति ॥ ७० ॥ एवं च मए आयणिऊण चिंतियं एवमेयं, ण एत्थ संदेहो, ता करेमि अहं धम्मं । ति चिन्तयन्तो गओ " णगरबाहिरियं । दिट्ठो य मए उज्जाणे फासुए पदेसे विजयसेणायरिओ समुप्पण्णओहिणाणो परिसाए मझगओ धम्मं देसंतो । तं च दण मह समुल्लसियं वीरियं, ववगयं मोहपडलं, वियम्भिओ सुहपरिणामो । गंओ य अहं तस्स समीवं । दिओ य भयवं मए । दिण्णासीसो उबविट्टो चलणंतिए । भयवया मह चित्तं णाऊण भणियं मं उद्दिसिऊण मा संतप्पटु स्रुवुरिस ! पुत्रज्जियकम्मपरिणई एसा । जीए गडिज्जन्ति जिया "दोग्गइ-दोगच्चदुक्खेहिं ॥ ७१ ॥ मए भणियं भयवं ! किं पुण तं कम्मं जं मए अण्णागंधेणमणुद्वियं । भयवया भणियं-सुणसु, इओ तइ(तुरि)यभत्रम्मि संखउरणिवासी तुमं बंभणो । णिमंतिओ मँहयालदिवसेषु पुण्णभद्देणं सेट्टिणा । समागओ य मैज्झसउति जे । ५ वमहमाग जे । ६ म्हि साहि जे७ ए विष्णाय जे ८ मज्झ पु जे ९ यापु सू । १० अहन्तस्स सू । ११ आपुच्छि जे । १२ व भव सू । १३ बंधिऊणं णि जे । १४ त्थ ह जे । १५ कहेणं जे। १६ सुहासाए जे । १७ एयं जे । १८ धम्मन्ति सू । १९ ओ बाहि सू । २० सामन जे । २३ महालदि जे । २४ मण्डका जे । १ पुते जे । २ ओ एको जे । ३ ससमेओ जे । ने । २१ ओ इंत जे २२ दुग्गई Jain Education Irnational Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११४ उप्पन्न महापुरिसचरिवं । काळे वणियस्स गेहं । ताव य तस्य चेव छस्स पारणए साहू मल-जल्लाचिलदेहो सेयसलिलसित्तगतो भिक्खं पविट्टो । दट्ट्ण य ते वाणियगेण अन्भुडिओ, पडिलाहिओ गओ य । एत्थंतरम्मि भगियं तर अहो ! कट्टमण्णानं, जेण तुम्हारिसा विवेणो ज्यंति, जओ किमणेणं सुद्दजाइणा सोयवज्जिएणं लोगोयारबाहिरेणं ? ति । वणिरण मणियं - भट्ट ! म्हाणमेया चिंताए १, घरमागयस्स अवस्सं दायव्वं ति । तए भणियं दिज्जउ दाणं, किंतु णिप्फैलं ति । वणिएण भट्ट ! मा एवं मण, जओ एसो बम्भयारित्तणेणं सया सुई, बम्भं धरेन्तो बम्भणो, सव्वसत्ताणुग्गहपरायणो कुक्खीसंबलो णिम्ममत्तो चतपुत्त-कलत्तबंधणो । एयं सुणिऊण भणियं तए - किमणेण वेयविहाणुद्वाणवज्जिएणं ? ति । after भणियं तुमं जाणसि त्ति । तओ तुमए बद्धं अवोहिबीयं कम्मं । तहाविहजीवघायणपरायणेहिं जण्णाइकम्माणुकाऊ पंचिंदियादीण जीवाण वहाइयं, तणिमित्तं च बंधिऊण णरयवेयणिज्जं कम्मं, कालं काऊण उववष्णो रयणप्पभाए समहियसागरोवमाऊ णारगो त्ति । तत्थ य हण छिंद भिंद भंजसु फालसु मज्झेण खित्रम् कुंभीए । पुव्त्रकयकम्मकुविएहिं णरयपालेहिं विविओ ।। ७२ ।। दो दीणायारो परव्वसो पुव्वकम्मदोसेण । चिरमणुभविऊण तर्हि वियणं हरिणो समुप्पण्णो ॥ ७३ ॥ तत्थ विछुहा पिवासा-सीयाऽऽयववियणतावियसरीरो । दट्ठूण मुर्गि अडवीए कम्मविवरेण उवसंतो ॥ ७४ ॥ ततो वि मरिण अणसणविहिणा इहई समुप्पण्णो । इहं पि- तकम्मसेसयाए ण होति तुह परिणयाई वि सुहाई । एहि कुणसु महायस ! धम्मं सोक्खाण बीयं ति ।। ७५ ।। एवमायण्णिऊण मए भणियं एवं कीरउ ति । साहिओ य तस्स संबंधी वइयरो परिसाए भगवया । साहियं च सुणिऊण तओ मए सेद्धिं संबुद्धा बहवे पाणिणो, संबुज्झिऊण पव्वइया य । एयं मज्झ वेरग्गकारणं जं तुम्हेहिं पुच्छियं । बलएव वासुदेवेहिं भणियं - भयवं ! सोहणं वेरग्गकारणं ति, एरिसो" वेव एस असारो संसारो, एत्थ य अण्णाणदोसेण परिकिलिस्सन्ति पाणिणो, मुणंति परमत्थं, ण पेच्छन्ति आवई, ण जाणंति सोग्गइमग्गं, ण गेण्डंति कल्लाणपरंपराकारेण अणवज्जं पि जिणदेसियं धम्मं ति । तओ एवं भणिऊण बलएवेण दुविडुभाउणा गहियाई जहासतिं बयाई । पालिओ जिणएसिओ धम्मो । कया तित्थस्स उन्भावणा । सुहपरिणामपरिणओ अच्छिऊण किंचि कालं गिहवासे पञ्चइओ तस्सेव धम्मायरियस्स सगासे । तव संजमरओ विहरिऊण भरहखेत्तं, खवगसेडिविहाणेण उप्पाडिऊण केवलं, सेलेसिविहाणेण य णिरंभिऊण जोगे सिद्धो बल एवो । दुविट्ठू वि महाबल-परकमगन्त्रिओ सद्धम्मपरम्मुदो णिद्दओ गिरणुकंपो वावाइऊण तारयाहिहाणं पडिवासुदेवं तप्पेसियहत्थगयचक्केणं, भरहद्धं भुंजिऊण, भोगासत्तमणो सव्वा सुहपरिणामरहिओ कालं काऊण णरए उबवण्णोति ॥ इति महापुरिसचरिए दुविट्टु [वासुदेव - विजयबलदेवाण] चरियं सम्मत्तं ॥ १७-१८ ॥ इं १ याचार जे । २ भ । किं जे । ३ फलन्ति सू । भद्द! मा जे । ५ । ७ इदं पि १८ एयमा जे ९ ऋद्धि बहने संबुझिऊण पव्वइया । ए जे १२ ण बुज्झति जे । १३ णं जिण सू । १४ बलदेवो थे । परेहि जे । ६ वि य मरिजणं अणखणविहिनेह१० तुम्मेहिं जे । ११ सो एस संसा सू | Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ १९ विमलसामिचरियं ] :÷×:÷ एवं च वासुपुज्जतित्ययरकाले दुविट्ठू अद्धचक्कवट्टी सत्तरिधणुप्पमाणों चउहत्तरिवरिसलक्खाउयमणुवालिऊण मओ । इओ य वासुपूज्जाओ तीसाए सागरोवमाणं समइकन्ताए विमलाहिहाणो तित्थ्यरो सट्टिणि ऊसुओ कणासरिसलक्खाओ समुप्पण्णो त्ति । कहं ? भण्णइ परहियकज्जेकरया चिंतामणि - कप्पपायवन्भहिया । उप्पज्जंति पयाणं पुण्णेहिं जए महापुरिसा ॥ १ ॥ अस्थि इव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे कंपिल्लं णामे गयरं संपुष्णं घणरिद्धीए । जत्य य पुरिसक्न्गो सुरुको गुणवंत य, विणय लज्जाघणो महिलायणो । सव्वगुणगणोववेयं णयरं । अह तत्थ णवर दोसो जं मणिमयभित्तिकिरणपडहस्थे । कुहणीमुहे ससंको संचरइ विलासिणीसत्यो ॥ २ ॥ तत्थ य राया कयवम्मो सुकयकम्मपरिणामो व्वमुत्तिमन्तो परिवसइ । तस्से सामा णाम महादेवी । तीए सह विसयहमणुहवन्तस्स [तस्स] अइक्कन्तो कोइ कालो । अण्णयैा वइसाहसुद्धबारसीए सहस्सारकप्पाओ चुओ सामाए उवलद्धचोदसमहासुमिणाए गन्भे समुप्पण्णो ति । पुणो अकं णत्र मासेसु साइरेगेसु माहस्स सुद्धतइयाए उत्तरमद्दवयासु जाओ । तहेव कओ जम्माहिसे सुरिंदेणं । पइद्वावियं च से गामं जैहत्थं विमलो ति । गाणतियसमेओ संवड्ढिओ । कयदारपरिग्गहो य कुमारभावमणुवालिऊण पच्छा पुहइलच्छि माणिऊण लोयन्तियपडिबोहिओ माहस्स सुद्धतेरसीए णिक्खतो । अणुपालिऊण छउमत्थपरियागं जंबुरुक्खस्स छायाए खरगसेढीए कमेणं खवियघणघाइचउको केवलं संपत्तो । विरइयं देवेहिं समोसरणं । पव्वाविया भगत्रया गणहरा | मिलिया य परिसा । साहइ धम्मं सोग्गइणिघणं ति । तत्थ य ससुरासुरगर- तिरियपरिसमज्झयारम्मि भणियं भगवया जेहा सम्मर्द्दसणसुद्धं णाणं चरियं च तिष्णि एयाई । मिलियाई मोक्खमग्गो, ण अण्णा एस परमत्थो || ३ | एयाणमुत्तरोत्तरलाभे पुव्वस्स णिच्छिओ लाभो । भयणिज्जो होइ फुडं ति पुव्वलाभे अं इयरस्स ॥ ४ ॥ जीवस्स कम्मपरिणइव सेण सयमेव अह सुणंतस्स । होइ सिग्गाऽहिगमा दुविहा सम्मत्तपडिवत्ती ॥ ५ ॥ सम्मत्तस्स सरूत्रं जीवादिपयत्थतत्तसद्दहणं । जीवादओ पयत्था परमत्था सत्त मोक्खंता ॥ ६ ॥ सागारो अणगारो उवओगो चेयणाए वावारो । तल्लक्खणा य जीवा तव्वित्ररीया अजीवा उ ॥ ७ ॥ वारूवित्तणओ ते दुविहा, तत्थऽरूविणो भणिया । धम्माऽधम्माऽऽगासा अ, रूविणो पोम्गला होन्ति ॥ ८ ॥ कम्मस्स पवेसो आसवो त्ति, तस्सेव संवरो रोहो । होइ कसायनिमित्ता जी ठिइ सा कम्मुणो बंधो ॥ ९ ॥ णिज्जरणं पुण तसा कम्माणं साडणं विणिद्दिहं । णाणावरणादीणं कम्माणं जो खओ मोक्खो ॥ १० ॥ गाणं पंचपयारं मइणाणं तत्थ आइमं भणियं । तं इंदिय-गोइंदियमेषणं छन्विहं होइ ॥ ११ ॥ १ म पुरं स जे २ सय सम्मा णा सू । ३ या वैसाह सू । ४ सम्माए सु जे । ५ जहट्टिय विसू । ६ णाणाइसयस सू । ७ "मिवालिऊण लो । ८ वं च भजे । ९ 'जहा' इति सुपुस्तके नास्ति । १ याणि । ११ न जे १२ जाकी साजे । Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउप्पन्नमहापुरिसचरिय। एकेके घुण चउहा अवग्गहेहाइमेयओ भणियं । मुयणाणं होइ पुणो णाणं गंयत्यमणुसरो ॥ १२ ॥ ओहीणाणं दुविह-भवपञ्चइयं खओवसमियं च । पढमं णेरड्याणं देवाण य, बीयमण्णेसि ॥ १३ ॥ मणपज्जवणाणं पुण मणुयाणं गुणविसेसजुत्ताणं । रिजु-विउलमतीभेयं जणमणपरिचिन्तियपयासं ॥ १४ ॥ सासयमप्पडिवादी एगविहं केवलं तु णिद्दिष्टुं । एवं पंचपयारं गाणं भणियं समासेणं ॥ १५ ॥ चरणं पि होइ दुविहं-देसे सव्वे य होइ णायव्वं । पढमं गिहीण, बीयं जईण पेत्तेय बहुभेयं ॥ १६॥ पंच य अणुन्वयाई गिहीण, सिक्खावयाइं चत्तारि । तिण्णि य गुणव्बयाई, बारसभेओ समासेणं ॥ १७ ॥ मूलुत्तरगुणभेओ जइधम्मो होइ, तत्थ मूलमिणं । पंच य महव्वयाई णिसिभोयणविरइछद्वाइं ॥१८॥ पिंडविसोही-पडिलेहणाइओ उत्तरो समक्खाओ । एयाइं सम्मणाणाइयाइं साहेति परमपदं ॥ १९॥ एवमाइ भगवया साहिओ मोक्खमग्गो । पडिबोहिया बहवे पाणिणो पयट्टाविया सोग्गइमग्गे जिणदेसिए धम्मे । एवं च कमेण विहरिऊण भरहखेत्तं, पालिऊण केवलिपरियाय, सेलेसीविहाणेणं खविऊण भवोपग्गाहीणि चत्तारि कम्माणि सर्टि परिसलक्खा आउयमणुवालिऊण सम्मेयगिरिसिहरे सिद्धिमणुपत्तो त्ति ॥ इति महापुरिसचरिए विमलतित्थयरस्स चरियं सम्मत्तं ॥ महापुरिस १९ ॥ पक्यं स पय जे।३णि पन्नासं जे । परिसमस ॥ जे । ५.१५॥ प्रथ-५...॥जे। Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ २०-२१ सयंभुवासुदेव-भद्दबलदेवाण चरियं ] विमलतित्थयरकाले सयंभू वासुदेवो भद्दो य बलदेवो समुप्पण्णो । ते य पण्णासवरिसलक्खाउया सद्विधासुयदेहा य । तत्थ य बलदेवो सिद्धो । इयरो य णरयगामी संवुत्तो। कहं ? भण्णति अत्थि इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे [? बारवई णाम गयरी । तत्य य रुद्दो णाम णराहिवो परिवसइ । तस्स य पढवीणाम महादेवी। तीए सह सयलिदियसंपुष्णं विसयसुहमणुहवंतस्स समुप्पण्णो सयंभ णाम पुत्तो। सयंभुणो जेट्ठभाया भद्दो त्ति । ते य दो वि भायरो अइक्वंतकुमारभावा अहिणवजोवणत्था] गीतेसु कुसला, सत्येसु गहियत्था, चावम्मि णिच्चला, करवाले कराला, असिवेणुपवेसम्मि सुपइट्ठिया, चित्तडण्डे विचित्ता, चक्कम्मि पंचला, मोग्गरम्मि मुसुमूरियारिणो, मूलम्मि जणियसत्तुमूला सन्चजणाणुमया वियरंति । एवं च भरहखेत्तं वियरंतेहिं दोहिं वि बलदेववासुदेवेहिं दिह्रो चउणाणी संखउरवाहिरुज्जाणावासिओ मुणिचंदो णाम अणगारो । तं च दद्रुण बैलएवेण भणियंपेच्छामो एयं महामुगि, करेमो अत्तणो जम्मं सफलं ति । तओ सयंभुणा तयणुरोहेण भणियं-एवं करम्ह । एवं च भणिऊण गया साहुसमी । वंदिओ य मुणी। धम्मलाहिया मुणिणा उवविट्ठा चलणंतिए । कहावसाणे य भणियं बलएवेण-भयवं ! पढमजोवणम्मि किं भोगपरिचायकारणं ? ति साहेउ अम्हाणं भयवं, अवणेउ कोऊहलं । तओ भयवया भणियं-सोम ! जइ अणुबंधो ता मुंणमु संसारविलसिँयं । ति भणिऊण सवपरिसाए णियचरियं साहिउमाढत्तो अस्थि जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे सोरियपुरं णाम जयरं । तत्याहं दंढवम्मुणो पुत्तो गुणधम्मो णाम परिवसामि । गहियकलाकलावो य गरवइणो पुरजणस्स य अचंतं मणाभिप्पेओ। अण्णया य 'वसन्तउरसामिणो ईसाणचंदस्स धूयाए कणगैमईए सयंवरो' ति सोऊण महया चडयरेणमहं गओ । पत्तो, आवासिओ बाहिरियाए। पविट्ठो य सयंवरामंडवे । अण्णे य बहवे रायउत्ता । तओ अहं रायधूयाए णिद्धाए दिट्ठीए ईसीसिवलन्तद्धच्छिपेसियच्छिच्छोहहिययगयभावं पिसुगन्तीए पलोईओ । विष्णायं तं मए जहा-इच्छइ ति । तओ पच्चूसे सयंवरो भविस्सइ ति गओ णिययमावासं । अण्णे वि रायउत्ता सहाणेसु गया । "एत्यन्तरम्मि रयणीए पढमजामम्मि समागया एगा परिणयवया दासचेडीहि परिवारिया इत्थिया । तीए समप्पिया चित्तवट्टियाए लिहिया विज्जाहरदारिया । "तीए य हेट्टओ अहिप्पायसूयगा गाहा तुह पढमदंसणुप्पण्णपेम्मरसविणडियाए मुद्धाए । कह कह वि संठविजइ हिययं हियसन्चसाराए ॥१॥ तो तयणन्तरमेवे उप्पियं तम्बोलं समालहणयं च, कुसुमाणि य । सव्वं च गहियं सबहुमाणं कुमारेणं । दिण्णं च तीए कण्ठाहरणं पारिओसियं । भणियं च तीए-कुमार! भट्टिदारियाएसेणं किंचि वत्तव्यमत्थि, ता विवित्तमादिसउ कुमारो। तओ कुमारेणं पासाई पलोइयाई, ओसरिओ परियणो । तओ भणिओ तीए-कुमार ! कुमारी विष्णवेइ जहा-इच्छिओ मए तुमं, किंतु जाव य मैह कोइ समओ ण पुण्णो ताव य तए अहं ण किंचि वत्तव्वा, किंतु मए तुइ परिग्गहे चेव चिट्ठियव्वं ति । मए भणियं-एवं भवतु, को दोसो ? त्ति । तो पच्चूसे सयलणरईपच्चक्खं लच्छीए व महुमहस्स महं तीए उप्पिया वरमाला । विलक्खीभूया सॅयलरायाणो गया णिययहाणेसु । तो सहीहि सा भणिया-पियसहि ! को एयस्स तए गुणो दिट्ठो जेण समप्पिया वर . १ रो पर सू । २ बलदेवेण जे, एवमन्यत्रापि । ३ णा य त जे । ४ करेम्हि सू । ५ ओ मुंसू । ६ सुण संसू । - सियन्ति सू। ८ दढधम्मुणो पुत्तो गुणवम्मो जे । ९ अच्चंतेणाऽभि सू । १० गवईए जे । ११ एत्यंतरे रय जे । १२ परियरिया जे । १३ तीए हेंसू। १४ पेम्मवस सु। १५ व अप्पिय जे । १६ मह समओ कोइ ण सू। १७ इसमक्वं जे । १८ सवरा जे। Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११८ उप्पन्नमहापुरिसचरियं । माला १। तीए भणियं-अइउज्जुयाओ! सुणह णिज्जियतियससमूह रूवं सच्चवह, किं मुणोहेणं ? । सव्वंगसुरहिणो मरुवयस्स किं कुमुमणियरेणं ॥२॥ __ तओ वत्तो विच्छड्डेणं विवाहो । णीया य सणयरं । कणगमतीए को आवासो । ठिया णिययावासे । पच्चूसे' समागओ अहं तीए भवणं । दिण्णासणो य उवविट्ठो । उवविठ्ठा य सा मह समीवे । पढियं च तीए पण्डत्तरं, तं जहा हरिदइयणेउरं बीयपुच्छियं साँमिणीं कह कहेइ । तह इसुणो णियरक्खं, साली भण केरिसी वीणा ॥३॥ मए लहिऊण मणियं-सरवई। पुणौ मए पढियंकिं कारणं तणाणं ? १, को सद्दो होइ भूसणथम्मि ? २। मोतुं सदोसमिदं किं तुह वयणस्स सारिच्छं ? ३॥४॥ तीए लहिऊण भणियं-कमलं। तओ अहं णिग्गओ, गओ णिययमावासं । बीयदियहे समागओ । पुणो वि तीए पढियं पण्डत्तरंसमयं भवणं भण केरिसं ? १, च जुबईण केरिसं नटं ?२ । रमणीण संयायइ केरिसं च चित्तं सकामाणं ? ३ ॥५॥ मए लहिऊण भणियं-साहि लासं । पुणो भए पढियंभण जलयरं सविण्हुं १, किं सहयरं च होइ भुवणम्मि १२ । भण केरिसो वसंतो वियसियसहयास्कमलबणे १३॥६॥ तीए लहिऊण भणियं-मेयरंदामोयर मणीओ। तो अहं गयो । पुणो अण्णदिवसे बिंदुमतीहिं खेल्लियं । तओ बिंदुमती लिहिया, तं जहा-दे।.७ ढ धाः। 3.8.७ध ढ.७... ७. .... ई (? : : ° : ० ० ० ० ० ० ० ० ०० लि ग ने..ि०ि)॥ सा वि लिहियाणंतरमेव जाणिय त्तिदेवस्स मत्थए पाडिऊण सव्वं सहति कापुरिसा । देवो वि ताण संकइ जाणं तेओ परिष्फुरइ ॥७॥ पुणो पासएहिं, पुणो चउरंगपिडएहिं । एवं च जति दियहा, सरइ संसारो । ण य तीए अमिप्यारो पज्जइ ति। तओ मए चिंतियं-केण उण उवाएण इमीए अभिप्पाओ णज्जिही ? । एवं चिंतावरो रयणीए मुत्तो । दिवो य रयणीए चरिमजामम्मि अविणो जहा-"गहियकुसुममाला एगा इत्थिया मह समीवे आगया। तीए आगंतूण भणियं जहागिण्ह एयं कुसुममालं, बहूणि दिवसाणि तुह इमीए संकप्पियाए" ति । तओ अहं कुसुममालं गेण्हंतो चेव विउद्धो । कयं मए उचियकरणिजं । उवविठ्ठो अस्थाइयामंडवे । चिंतियं च मए-संपण्णं समीहियं ति। ताव य पडिहारेण जाणावियं जहा-देव ! एगो परिवायगो दौरे चिट्ठति, भणइ य 'अहं भइरवायरिएण पेसिओ रायपुत्तस्स दसणणिमित्त' ति । एवमायण्णिऊण भणियं मए-लहुं पवसय । तो पडिहारेण पेसिओ। दिहो य सो मए दीहचिविडणासो ईसीसिरत्तवट्टलोयणो थूलतिकोणुत्तिमंगो समुण्णयदीहदसणो लंबोयरो दीहसण्हजंघो सिराउलसंवलियसव्यावयवो । पणमिओ य सो मए । दाऊण आसीसं उपविट्ठो"णियए कहासणे । भणियं च तेण-रौयउत्त ! भइरवायरिएण अहं पेसिओ तुम्ह समीवं। [मए भणियं-] कहिं पुण भगवन्तो चिट्ठन्ति ? । तेण भणियं-णयरस्स बाहिरियाए । मए भणियं-अम्हं ते दूरत्था वि हु गुरवो, ता सोहणं भयवंतेहिं अद्वियं जमिहागय त्ति, वह तुम्भे", सुए दच्छामि । त्ति भणिऊग विसज्जिओ परिवायओ, गओ य। .. १ °से आगओ तीए जे । २ पीय' सू । ३ सामिणी का कहेह सू । ४ कहइ पुणो नियरक्खं जे । ५ भत्र चतुर्थपादस्थप्रश्नोत्तरं 'स्वरक्ती' इत्येतद्विहाय नोपलक्षितोऽर्थोऽस्याः प्रहेलिकायाः । ६ प्रथमप्रश्नोत्तरम् -'कम्' पानीयम्, द्वितीयप्रश्नोत्तरम्-'अलं' भूषणार्थे, तृतीयप्रश्नोत्तर 'कमल' पङ्कजम् । ७ सयातयि सू। ८. प्रथमप्रश्नोत्तरम् -'साऽहि' सर्पयुक्तम्. द्वितीयप्रश्नोत्तरम्-'सलास्य' वाद्य-नृत्य-गीतादियुक्तम्, तृतीयप्रश्नोतरम् -'साभिला' अभिलाषसहितम् । ९ प्रथमप्रश्नोत्तरम्-'मकर-दामोदर ' सदोविशेषः-हरिः(१), द्वितीमप्रश्नोत्तरम्-'मणयः' रत्नानि, तृतीयप्रश्नोत्तरम्"मकरन्दाऽऽमोदरमणीयः' पुष्पस्ससुगन्धिसुन्दरः । १० हस्तद्रयान्तर्मतः पाठः पुस्तके नास्ति । ११ सुमिणे जे । १२ बारे जे । १३ एयमा जे । १४ पवेससि । तं सू। १५ हो चलणतिए क जे । १६ रायपुत्त जे । १४ मे, महमागन्छाम्ने । ति मणि जे। Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०-२१ सयंभुवासुदेव-भद्दबलदेवाण चरियं । ११९ बी दिवसे पच्चूसे कयस यलकरणिज्जो गओ भइरवायरियदंसणत्थं उज्जाणं । दिट्ठो य वग्धकत्तीए उपविट्ठी महरवायरिभो । अहिओ य अहं तेणं । पडिओ य अहं चलणेसु । औसीसं दाऊण मियकर्त्ति दंसिऊण भणियं तेण जहा-उवविससु ति । मए भणियं भयवं ! ण जैत्तमेवं अवरणरवतिसमाणत्तणेण मं खलीकाउं, अवि य ण तुम्ह एस दोसो, एस इमीए एवंविइणरवसयसेवियाए रायलच्छीए दोसो त्ति, जेण भयवन्तो वि सीसजणे ममम्मि णियआसणप्पयाणेणं एवं वत्रहरन्ति, भयवं ! तुम्हे मज्झ दूरट्ठिया वि गुरवो, अहं पुण निययपुरिमुत्तरीए उत्रविट्टो । थेववेलाए भणिउमादत्तो-भयवं ! कयत्यो सो देसो णयरं गामो पएसो वा जत्थ तुम्हारिसा पसंगेणात्रि आगच्छन्ति, किमंग पुण उद्दिसिउं ति, ता अणुग्यहिओ अहं तुम्हागमणेणं । जैडहारिणा भणियं - गिरीहा वि गुणसंदाणिया कुणंति पक्खवायं भवियजणे, ता को ण तुम्ह गुणेहिं सर्मागरिसिओ ? त्ति, अवि य तुम्हारिसाण विसमागयाणं गिकिंचणी अम्हारिसो किं कुणउ ?, णे हु मया जम्मध्येभिति परिग्गहो कओ, दविणजाएणे य विणा ण लोगजत्ता संपज्जइ त्ति । एवमायण्णिऊण भणियं मए - भयवं ! किं तुम्ह लोगँजताए पओयणं ?, तुम्हासीसाए चेव अस्थित्तं लोयस्स । पुणो भणियं जडहारिणा - महाभाय ! गुरुयणपूया पेम्मं भत्ती सम्मा संभवो विणओ । दाणेण विणा ण हु णिव्वडंति सच्छम्मि वि जणम्मि ||८|| दाणं दविणेण विणा ण होइ, दविणं च धम्मरहियाणं । धम्मो विणयविहूणाण, माणजुत्ताण विगओ वि ||९|| मायणिऊण भणियं मए-भयचं ! एवमेवेयं, किंतु तुम्हारिसाणं अवलोयणं " चेत्र दाणं, आएसो चैत्र सम्माणं, ता आइसंतु भयवन्तो किं मए कायव्वं ? ति । भणियं भइरवायरिएण - महाभाग ! तुम्हारिसाणं परोत्रयारकरणतलिच्छाणं अस्थिजणदंसणं मणोरहपूरणं ति, ता अस्थि मे बहूणि य दिवसाणि कयपुव्वसेक्स्स मन्तस्स, तस्स सिद्धी तुमए आयत्ता, जइ एगदिवस महाभागो समत्तविग्घपडिघायहेत्तणं पडिवज्जइ तओ महं सफलो अट्ठवरिसमंतजावपरिस्समो होइ त्ति । तओ मए भणियं - भयवं ! अणुग्गहिओ इमिणाएसेणं ति, ता किं मए कर्हि वा दिवसे कायन्त्रं ? ति आइसंतु भयवन्ती । तयणंतरमेव भणियं जडहारिणा जहा - महाभाग ! इमीए "किण्हचउदसीए तए मंडलम्गवावडकरेण णयरु'बाहिरिया गागिणा मसाणदेसे जामिणीए समइकंते जामे समागन्तव्यं ति, तत्थाह तिहिं जणेहिं समेओ चिट्ठीस्सामिति । तओ मए भणियं एवं करेमि । तओ अइकंतेसु दिवसेसु समागया जामिणी चउद्दसीए । अत्थंगयम्मि भुयणेक्कलोयणे "दिणयरे उत्थरिए तिमि - रप्पसरे मैंया विसज्जियासेससे वैयेणं 'सिरो महं दुक्खइ' त्ति पेसिया वयंसया । तओ एगागी पविट्ठो सोवणयं । परिहिओ पट्टजुगस्स पट्टो । गहियं मंडलग्गं । णिग्गओ णयराओ परियणं वंचिऊण एगागी । दिट्ठो य मए भइरवायरिओ मसाणभूमी, अहं पितेहिं । भणिंओ य अहं जडहारिणा - महाभाग ! एत्थ भविस्सन्ति विभीसियाओ, ता तए इमे तिष्णवि रक्खियव्वा अहं च, तुज्झ पुण जम्मप्पभिई अविण्णायभय सरूवस्स किमुच्चइ ? चि, ता तुहाणुहावेण करेमि अहं साहणं ति । तओ मए भणियं - भयवं ! वीसत्यो कुण, को तुह सीसवालं पि णामेउं समत्थो ? ति । एयमायणिऊण गहियं मडयं, जालिओ तस्तै मुहे अग्गी । पत्थुयं मंतजाय (व) पुव्वं होमं । ओ आरडन्ति सिवाओ, किलिक्लिन्ति वेयालगणा, हिंडंति महाडाइणीओ, उद्वंति महाबिभीसियाभो, सरइ मन्तजात्रो, म खुब्भन्ति तिष्णि वि जणा । जाव य अहं उत्तरदिसाए गहियमंडलग्गो चिट्ठामि ताव य बहिरंतो तिहुयणं पलय मरसियाणकारी भरन्तो महिहरकुहराई समुच्छलिओ भूमिणिहाओ । सहसा समासण्णमेव विहडियं धरणिमंडलं । समुट्ठि सीहणायं मुयन्तो कालमेहो व्व कालो कुडिलकसिण केसो पुरिसो । तस्स य "सीहणापणं पडिया ते "इसेवि जे ५ या चेव गुजे । ६ जाहा जे । सू, प्पभिई प्यभि । ११ ण विणा सू । १२ एयमा जे । १३ ग । १७ चेय जे । १८ उगत्तणं जे । १९ कम्ह जे । २० तिहिं समेओ वयजणे सि' जे । २५ 'ओ अहं जाहा जे । २६ तुह सीसाण विवा U मह १ ओ अहं सू । २ आासिय जे । ३ जुत्तमेयं जे । ४ ८ माकरिजे । ९ ण य म जे । १० प्पभि परि बताए जे । १४ भाग ! जे १५ संभमो जे । १६ मेय जे खे । २१ भुवणे जे । २२ दिवसमरे जे । २३ मए ले । २४ जे । २७ स्स वयणे अ जे २८ सिंह जे । For Private Personal Use Only Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२० चउप्पन्नमहापुरिसचरियं । तिणि विजणा दिसायाला। भणियं च तेणं-रे रे दिवंगणाकामुय ! सइवायरियाहम ! ण विण्णाओ अहं तए मेहणायाहिहाणो खेतपालो इहं परिवसंतो?, महं पूयमकाऊण मंतसिद्धिं अहिलससि ?, एसो संपयं चेव ण होसि, एसो वि तुमए वियारिओ रायउत्तो अणुहवउ सगीयस्स अविणयस्स फलं । तओ मए तं दठ्ठण भणियं-रे रे पुरिसाहम ! किमेवं पलवसि ?, जइ अस्थि ते पोरुसं ता किमेवं पलविएणं?, अहिमुहो समागच्छ जेण दंसेमि ते गजियस्स फलं ति, पुरिमस्स हि भुएसु वीरियं, ण सदददरे ति। तओ एसो अमरिसिओ वलिओ मज्झ सम्मुहं । अणाउहं च दद्रुण मए समुज्झियं मंडलग्गं । संजमीकयं परिहणयं सह केसपासेणं । पयर्टी दोण्ह वि वाहुजुद्धं । लग्गा जुज्झिउं विविहकरणेहि कत्तरिप्पहारेहिं । एवं च जुज्झंताणं मए पाडिओ सो दुहवाणमन्तरो। सत्तप्पहाणतणेण य वसीको । भणियं च तेणभो महापुरिस! मुंचसु तुम, सिद्धो हे तुह इमीए महासत्तयाए, ता भण किं तुह कीरइ ?, त्ति, मए भणियं-जं एस जडहारी समीहइ तं तुमं कुणसु जइ सिद्धो । तेण भणियं-एयस्स तुहावटुंभसिद्धमन्तस्स सई चेव सिद्धं सव्वं, तुह पुण किं कीरउ? त्ति । मए भणियं-मज्झ एत्तिएण पओयणं जमेयस्स सिद्धि त्ति, तहा वि जइ सा मम भज्जा कह वि वसत्तणं महं णिज्जउ त्ति । तेण उवओगं दाऊग भगियं-भविस्सइ सा तुहं कामरूवित्तणपसाएण, तुमं पुण मज्झाणुहावेण कामरूपी भविस्ससि । दाऊण वरं गओ वेयालो। __इयरेण सिद्धमन्तेग भणियं-"महाभाग ! तुहाणुहावेग सिद्धो मंतो, संपन्नं समीहियं, जाया 'दिबदिट्ठी, उल्लसियं अमाणुसोच्चियं वीरियं, समुप्पण्णा अण्ण च्चिय देहप्पहा, ता किं भणामि तुम ?, को सेविणे वि तुमं मोत्तूण अण्णो एवंविहं मग्गं परोक्यारेक्करसियं पडिवज्जइ ?, अहं तुम्ह गुणेहिं उवकरणीकओ ण सक्कुणोमि भासिउं 'गच्छामि" ति सकजणिठुरया, 'परोवयारतप्परो सि' त्ति अत्थेणं चेव दिट्ठस्स पुणरुतं, 'तुम्हायत्तं जीवियं' ति ण णेहभावोचियं, 'बंधवो सि' ति दूरीकरणं, "णिकारणं परोवयारित्तणं' ति अणुवाओ कयग्घालावेसु, 'संभरणीओ अहं' ति आणत्तियादाणं"। एवमादि भणिऊण गओ भइरवायरिओ सह तेहिं सीसेहिं । अहं पि पक्खालिऊण सरीरं पविट्ठो णिययमावासं । मुक्को पट्टसाडओ, ठिओ अत्याइयामंडवे । गओ य कणगैमतीभवणं । पयत्ता गोट्ठी । पढिया तीए पहेलिया पयडरूबहो [पयडरूवहो] सिद्धमंतस्स, को अंग्गए ठाइ तहो सयलु लोउ "णिदणह लग्गहो । पुच्छंतह सप्पणउं जाइआई बहुणियरूपहो। जसु जोईसरु अप्पणिहिं, भज्जइ किंपि कैरेवि । तं फुडवियर्डंकि रणउं, इयरु किं जाणइ कोई ॥१०॥ मए लहिऊण भणियं-किं । मए पढिया हियालियाजइ सिक्वविओ सीसो जईण रयणीए जुज्जइ ण गंतुं । ता की(सी)स भणइ अज्जो ! मा कैप्पसु दो वि सरिसाई ॥११॥ तीए भणियं-दिव्वणोणी खु सो। पुणो वि तीए पढिया "हियालियाजइ सा सहीहि भणिया दइओ ते दोसमग्गणसयण्हो । ता कीस मुद्धडमुही. अहिययरं गन्नमुबहइ ? ॥ १२ ॥ मए भणियं-जेण वल्लह त्ति । तो अहं उद्विऊण गओ णिययमावासं । कयमुचियकरणिज्जं । अत्यमिए भुषणेक्कपदीवे दिणैयरे पेसिया वयंसया। गया जाममेत्तरयणी। गहियं मए मंडलग्गं । माणुसचक्खूण अगोयरीभूयं रूवं काऊण गओ कणगमईभवणं"। सा य ठिया धवलहरोवरिभूमियाए, पासेसु दुवे दासचेडीओ चिट्ठन्ति, बाहिं पि जामइल्लगा। बीयभूमियाए एगदेसे ठिओ" अहं । ताव य तीए भणिया एगा जणी-हले ! “कित्तिया रयणी ? । तीए भणियं-दुवे पहरा किंचूण त्ति । १ दिसापाला जे । २ कारिऊ । ३ वेयारिओ जे । ४ ते एय(य)ज जे । ५ अहं जे । ६ जडाहा जे। . महाऽऽणि जे। ८ दिव्वा दिजे । ९ सुइणे जे । १. मत्तं महं परों सू । ११ मि । संसू । १२ अणुवाए जे । १३ गवइभ जे। १४ अग्गिए जे । १५ णिदणहं सू । १६ अपणिहि सू । १७ करेइ सू। १८ डुक्कित्तियउं इयरो सू। १९ अस्याः प्रहेलिकायाः प्रश्नोत्तराणि न परिज्ञायन्ते । २०.२३ पहेलिया जे । २१ संकसु जे । २२ 'णी सु(सी)सो सू । २४ वलहे ति जे । २५ दिवसयरे जे । २६ णं । ठिया स. जाव य ठिया जे । २७ भो ह जे । २८ केत्तिया जे । Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०-२१ सयंभुवासुदेव-भद्दबलदेवाण चरियं । १२१ ओ तीए मग्गिओव्हाणसाडओ । पक्खालियं अंगं, लूहियं पहुंसुएण । कओ अंगराओ । गहियं सविसेसमाभरणं । परिहियं पट्टसूयं । विउरुव्त्रियं त्रिमाणं, आरूढाओ तिष्णि त्रि जणीओ । अहं पि एककोणम्मि समारूङो । गयं च उत्तरदिसाहुत्तं मणो व्त्र सिग्धं विमाणं । ओइण्णं च सरतीराए णंदणवणस्स मज्झयारदेसे । तत्थ य असोगवीहियाए हेओ fast re विज्जाह । कणगमती य णीसरिऊण विमाणाओ गया तेस्स समीवं, पणमिओ य । तेण भणियं-उवविससु । थेrवेलाए य अवराओ वि तिणि जणीओ तहेव समागयाओ । ताओ त्रि पणमिऊण तयणुमतीए उवविद्याओ । त्रdore ये अत्रि आगया तत्थ बिज्जाहरा । तेहिं च समागंतूण, पुव्वुत्तरदिसाभाए भगाओ उसहसामिणो चेइयहरं तत्थ गंभ्रूण पुव्त्रं कयं उवलेवण-सम्मज्जणाइयं । गओ सो विज्जाहरो तत्थ । ताओ वि चचारि जगीओ गंतूण य तत्थ The विवीणा, अण्णाए वे गहिओ, अबराए आढत्तं कायलीपहाणं गेयं । एवं च विहीए कयं भुवणगुरुगो मज्जणयं । चिलित्तो गोसीसचंदणेण । आरोवियाणि कुसुमाणि । उग्गाहिओ धूओ । पयट्टियं गठ्ठे । विज्जाहरेण भणियं - अज्ज कीए ओ ? । तओ उट्टिया कणर्गमती, समारद्धा णच्चिरं । णच्चन्तीए अ इमीए एगा किंकिणी सगुणा तुट्टिऊण गया । गहिया सा मए, संगोत्रिया य । गविट्ठा य तेहिं साऽऽयरेण णोवलद्ध त्ति । उवसंघरियं च गवं । विसज्जियाओ तेण are निये ठाणे दिकरियाओ । कणगमई वि समारूढा विमाणं सह दासचेडीहिं । अहं पि तहेव समारूढो । समायं कर्णगमभवणं विभाणं । furiaण अहं गओ यियभवणं । अलक्खिओ चेव पविडो निययभवणं । जामसेसाए रयणीए पत्तो । उट्ठओ य समुट्ठिए सूरिए । कयमुचियकरणिज्जं । समागओ य मंतिपुत्तो मह मित्तो भइसागराहिहाणो । तस्स मए समप्पि - या किंकिणी | भणिओ य सो मए जहा कणगमतीए मह समीवर्गतस्स उप्पेज्जसु, भणेज्जसुय 'पडिया एसा मए लद्ध' ति । तेण भणियं एवं करेमि त्ति । ओ अहं कणगमतीगेहं । दिट्ठा सा मए । उवविट्ठो दिण्णासणे । उवविद्या य सा मह समीवे पट्टमसूरियाए । पत्थु सारीहिं जूयं । जिओ अहं । मग्गियं कणगमतीए गहगयं . किंकिणी मइसागरेण । पञ्चभिण्णाया य सा इमीए । भणियं च तीए-कहिं एसा लद्ध ? ति । मए भणियं किं कज्जं ? । तीए भणियं एवमेव । मए भणियं - ज कजं ता गेहसु, अम्हेहिं पडिया एसा लद्ध ति । तीए भणियं कहिं परसे लद्ध ? त्ति । मए भणियं - केहिं तुह पडिया ? | तीए भणियं - ण याणामि । मए भणियं - एसो महसागरो णेमित्तिओ सव्वं भूयं भव्वं च जाणइ त्ति, इमं पुच्छ जैस्थ पडिय त्ति, एसो चेव साहिस्सा त्ति । पुच्छिओ कणगमतीए मइसागरो । तेण "वि य महाहिप्पायं णाऊण भणियं - वे निवेयइस्सामिति । तीए भणियं एवं ति । गओ य अहं तीए सह पास हि खेल्लिउँ * निययात्रासं । ओ अथमिए सूरिए गयाए जाममेत्ताए रयणीए तहेवाहं एगागी गओ कणगमतीए भवणं । दिट्ठा तहेव सा मए । पुगो त्रितीए तहेव पुच्छिऊण रयगिं विउरुव्त्रियं विमाणं । समारूढाओ य तिष्णि वि जणीओ तत्थ । अहं पि तव । पत्तागि तमुदे । पुव्त्रक्रमेणेव ण्हवणागंतरं समारद्धो हविही । वीणं वायंतीए य कणगमतीए पडियं चलगाओ उरं । गहियं च मए । गच्छंतीए पलोइयं, णोवलद्धं ति । पुणरत्रि समागया विमाणेण णिर्थेयभवणं । अहं पि पत्तो नामसमेत्ताए रयणीए गियँयभवणं । सुत्तो उट्ठओ य ण य केणइ उपलक्खिओ । विउद्धो य पare | समागओ मइसागरो । समप्पियं तस्स उरं । सिक्खविऊण लहुं चेव गओ अहं सह तेण वयंसएणं कणगमतीभणं । अट्ठओ य कणगमतीए, दिण्णमासणं, उवविट्ठो अहं । उवविट्ठा य सा मह समीवे । पत्थुया गोट्ठी गूढ । पहिच तीए - १ तस्समीवं जे । २ य समागया अण्णे वि तत्थ जे । ३ काए जे । ४ 'णू अव सू । ५ धुवो जे । ६ गवई जे ७ य 'गवती' सू । ९ यस्स अप्पे' जे । १० कई जे । ११ जन्य य प जे १२ वि महा सू । १३ यं पच्चूसे णि सू । १४ “उ । तभ सू । १५ नियम जे । १६ सेसाए जे १७ निययं भवणं । सुत्तुट्टिओ जे । १८ °ए । आगओ जे । जे Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२२ चउप्पन्नमहापुरिसचरिय। खरपत्रणाहयकुवलयदलतरलं जीवियं च पेम्मं च । जीयाण जोव्वणं धणसिरी य, मए भणियं धम्मं दयं कुणह ॥१३॥ तयणंतरं कणगमतीए किंकिणीलाभसंकियाए पुच्छियं मइसागरमुद्दिसिऊण जहा-पलोइयं जोइसं भवया ? । तेण भणियं-पलोइयं, अण्णं पि तुह किं पि पढें । तीए भणियं-किं तयं ? । तेण भणियं-किं तुमं ण याणसि ? । तीए भणियं-जाणामि अहं जहा पार्टी, किंतु उदेसेणं ण याणामि जत्थ णटुं ति, तुमं पुण जाणसु 'किं तयं ?, कहिं च णटुं?' ति। मए भणियं-मज्झ अण्णेण साहियं जहा-दूरभूमीए णेउरं चलणाओ कणगमतीए पडियं, तं च जेण गहियं सो मए जाणिओ, ण केवलं जाणिओ तस्स इत्थाओ मए गहियं । तओ कणगमई किंकिणीवुत्तंतेणेव खुद्धा आसि, संपयमणेण वुत्तंतेण सुटठुसमाउलीहूया जहा-अहं जाणिया अण्णत्थ वच्चन्ती, ता ण याणामि 'किं पडिवज्जिस्सं ?,' को वा एस वुत्तंतो?, किमयं सच्चं चेव णेमित्तिओ ?, अहवा जइ णेमित्तिओ तो केवलं जं णटुं तमेव जाणउ, कहं पुण मज्झ तत्थ पटुं अयं इहट्ठिओ चेव जाणइ पावेइ य ?, ता भवियवमेत्थ केण वि कारणेणं, अयं च इमेसु दिणेसु लहुं चेव मह गेहे समागच्छइ, गिदासेसकसायलोयणो य, ता केण वि पओएणं अयमेव मह भत्ता तत्थ गच्छइ त्ति मह आसंक त्ति । एवं च चिंतिऊम भणियं कणगमतीए-कहिं पुण तं णेउरं जं तुम्हे हिं जोइसवलेण संपत्तं ? ति । तओ मह मुहं पलोइऊण मइसागरेण कडिहाऊण समप्पियं । गहियं च कणगमईए। कणगमतीए भणियं-कर्हि पुण तुम्हेहिं एयं पावियं ? ति । मए भणियंकहिं पुण एयं णटं ? ति । तीए भणियं-जहा इमं मह णडं तहा सई चेव अजउत्तेण दिळं ति । मए भणियं-मैज्झऽण्णेण साहियं, अहं घुण अमुणियपरमत्यो ण याणामि जं जैहावुत्तं ति। तीए भणियं-किमणेणं णवयणेगं ?, किं बहुणा ?, सोहणमेयं जइ सई चेव अजउत्तेग दिलु, अहमण्णेण केगावि साहिथं तओ ण सोहणं ति, जो जलगपवेसेणावि मह णत्थि सोहि त्ति । मए भणियं-किमेत्थ जलणप्पवेसेणं ?। तीए भणियं-सयमेव विण्णाही अन्ज उत्तो, जहा एत्तियं विण्णायं तहा सेस पि जाणिस्सइ त्ति । एवं भणिऊग सखेया चिंताउरा य वामकरयलम्मि हत्यं णिमेऊण ठिया । तो अहं थेववेलमच्छिऊण काऊण य सामण्णकहाओ मइसागरेण सद्धिं हसावेऊण य अण्णकहालावेण कणगमई गओ णिययमावासं ति। पुणो पुव्वक्कमेण य जाममेत्ताए रयणीए गओ कणगमतीए गेहं ति। दिट्ठा कणगमती सह दासचेडीहिं विमगा कि पि किं पि अफुडक्वरं मन्तयन्ती । उवविठ्ठो य अहं ते(? ता)सिं समीवे अणुवलक्खिो । तओ थेववेलाए भणिथैमेगीए दासचेडीए जहा-सामिगि ! कीरउ गमगारंभो, अइक्कमइ वेला, रूसिही सो विजाहराहिवती । तओ दीहं णीससिऊग भणियं कणगमतीए जहा-"हला ! किं करेमि ?, मंदभाइणी अहं तेण विजाहरगरिदेण कुमारभावम्मि णेऊण समयं गाहिया जहा-जाव तुमं मए णाणुण्णाया तात्र तए पुरिसो णाहिलसणीभो । पडिवणं च तं मए । जगयाणुरोहेण विवाहो वि अणुमण्णिओ । अणुमया य पिययमस्स । अहं "पि गुण-रूवाखित्तहियया तप्परायणा जाया। जाणिओ य विजाहरवइयरो मह भत्तुणा । ता ण जाणामि 'पिजवसागमेयं भविस्सइ ? ति सासंकं मह हिययं । किं वा एस मह दइओ तम्मि विजाहरकोवजलगम्मि पयंगत्तणं पडिवज्जिस्सइ ? त्ति, उबाउ सो मं चेत्र वावाइस्सइ ?, किं वा अण्णं किपि भविस्सइ ? त्ति । सबहा समाउलीहया इमेणं देहेणं ग यागामि 'किं करेमि ?,' दुटो विजाहरो पियवलजुत्तो य । दढमणुरत्तो य भत्तारो ण छड्डेइ अणुबंध, गरुओ जोधणारंभो वहुपञ्च बाओ य, गरु पाई जगय-सनुस्खाई, विसमो लोभो, अइकुडिला कजगई, तो एयाए चिंताए दहें समाउलीहूय दि" । पुणो तमायजिऊण भणियं दासचेडीए-जइ एवं ता अहं चेव तत्थ गच्छामि, साहिस्सामि य जहा-सि दुक्ख त्ति, तओ जाणिस्सामो 'किं सो पडिवन्जिस्सइ ?' ति । कणगैमईए सुइरं चिन्तिऊण भणियं-एवं होउ ति। सिउं जहा जे । २ हत्थो सू । ३ गवती सु । ४ इ जे । ५ गवतीए जे । ६ पलोएऊण जे । ७ कहं जे । ८ कह पुण तुम्ह इमं ण जे । ९ मज्झ णेग जे १० पुण पर जे । ११ जहावतं जे । १२ मंतती जे । १३ भेतीए सू। १४ तु सू । १५ उयाहु जे । १६ ता इमीए जे । १७ गवतीए सू । Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०-२१ सयंभुवासुदेव मदबलदेवाण चरियं । क्यणतरमेव कणगमतीए बिउरुपियं विमाणं । मए चिंतियं-सोहणं कमिमीए ज ण गय त्ति, अहमेव तस्य गंतूण अवणेमि विज्जाहरणरिंदत्तणं, फेडेमि पेक्खणयसद्धं, दूरीकरेमि जियलोयं । ति चिंतयंतो सह तीए दासचेडीए आरूढो विमाणेकदेसे । गयं तहेव तं विमाणं तमुदेसं । । जाव ये उसहसामिणो ण्हवणं काऊण णमु समारद्धं ताव य सा दासचेडी संपत्ता तमुदेसं । णीसरिऊण विमाणायो उबविट्ठा एगदेसम्मि । पुच्छिया य अवरेणं विज्जाहरेणं-किमूसरे तुम समागया ?, कहिं च कणगमइ ? ति । तओ तीए भणियं–ण सोहणं सरीरं कणगमईए तो अहं पेसिय त्ति । तं सोऊण भणियं विजाहरणरिदेण-तुब्भे करेह पेक्खगयं, अहं तीए सोहणं सरीरं करिस्सामि । [त्ति जंपिए संखुद्धा चेडी। सज्जिओ मए परियरो, सणाहीकयं च खग्गरयणं । ताव य उवसंहरिओ पट्टविही । जीसरिओ देवहरयाओ विजाहरो । गहिया चेडी केसपासम्मि, भणियं च तेणरे दुदुचेडि! पढमं तुह चेव रुहिरप्पवाहेण मह कोहग्गिणो होउ णिचवणं, पच्छा जहोचियं करेस्सामि सुह सामिसालीए। तं चाऽऽयण्णिऊण भणियं चेडीए-तुम्हारिसेहिं सह संगमो एवंविहवइयरावसाणो त्ति, ता कुणसु जं तुज्झ अणुसरिसं, एयं अम्हेहिं पुन्वमेव संकप्पियं ति, ण एत्य अच्छरियं । तयणंतरं च दढयरं कुविएणं भणियं विजाहरेणं-किमेवं पलयसि उम्मत्ता इव ?, संभरसु इट्टदेवयं, गच्छसु वा सरणं ति । तओ भणियं चेडीए एसो च्चिय सुर-विज्जाहरिंद-णर-तिरियवच्छलो भयवं । उसहो तेलोकगुरू सरणागयवच्छलो सरिओ ॥ १४ ॥ सरणं अडतीए महं को होज्ज अमाणुसाए घोराए ? । तह वि अकारिमधीरो त्ति अज्जउत्तो महं सरणं ॥ १५ ॥ एयं च सोऊण भणियं विज्जाहरेणं-साहसु को सो तुह अज्जउत्तो ? त्ति । मए चिंतियं-सोहणं पुच्छियं, महं पि संसओ चेव । तओ भणिय चेडीए जेण समक्खं चिय णरवईण गुण-रूव-विक्कम-बलेण । सोहग्गजयपडाय व्व सुयणु मह सामिणी गहिया ॥१६॥ जेगं चिय गरुयगुणेण सयलसत्थत्थभावियरसेणं । दूरे वि ठिओ णाओ तुमं ति केणइ पओएणं ॥ १७ ॥ जेण तुमं दिट्ठो च्चिय ण होसि भुषणम्मि साहसधणेणं । तेणमहमत्तणो कीरमाणमिच्छामि किल रक्खं ॥ १८ ॥ "एवमायण्णिऊग दट्ठोडभिउडिभासुरेण भणियं विज्जाहरेण-तस्स णराहमस्स सरणेणमवस्सं णत्थि ते जीवियं । ति भणमाणेण विज्जुच्छडाडोवभामुरं कड्ढियं मंडलग्गं । णिलुक्को तब्भएण तरुयरंतरेसु सन्यो वि परियणो । एत्थं तरम्मि मए पयडीहोऊण हसिऊग य भणियं-रे रे विज्जाहराहम ! कावुरिस ! इत्थीजणमज्झेक्कवीर ! जुबईणं उवरि खग्गं कड्डतो ण लैंजसि अत्तगो पंचभूयाणं ?, अहं पि एवंविहपुरिसेसु खग्गं वावारेन्तो लज्जामि ति, तहा वि एवंविहे वइयरे किमण्णं कायव्यं ? ति, गिस्संसयं संपयं ण होसि त्ति, अभिमुहो वलसु । त्ति भणंतेणं कवियं परियराओ मंडलग्गं । सो वि गहियाउहो बलिओ मज्झ सम्मुहो। पयट्टा भभिउ परोप्पां छिदऽण्णेसगपरायणा । भीओ तस्स परियगो दासवेडी य । तो ओइरियं ते ममोपरि मंडलग्गं । वंचियं तं मए दक्खत्तणेगं । तह चेवाभिमुहो ठिओ। उल्लालियखग्गरयणो पुणो मए वाहिओ "जंघादेसम्मि खग्गपहारो । लग्गं च ईसीसि मंडलग्गं । तओ उल्ललिओ सो उपरिहत्तं । घत्तिओ पहारो मम सिरोहराए । मए वि उपरिहत्तं वाहियं मंडलग्गमलक्खमेव । ताव य तस्स सह भुयाए पडियं भूमीए खग्गरयणं । गहियं वामहत्थेग तेण दक्खयाए । पुणो वि घत्तिओ वामहत्थेणेव ममोवरि पहारो। मए "वि वंचिऊण तयणंतरमेव उल्लालिग खग्गायणं छिष्णं सीसं विजाहरस्स पडियं धरणीए । तन्वागायणाणंतरमेव भीओ परियणो आसासिओ मए । ताओ तिण्णि वि कण्णगाओ मह समीवमल्लीणाओ। भगियं च तिहिं वि जणीहि-मोयाचियाओ अम्हे इमाओ विज्जाहरपिसायाओ, ता संपयं तुमं अम्हाण गती । मण १य पत्थुयं उ सू। २ णीहरि जे । ३ किमुस्फूरे जे । ४ हरिदेण तुम के जे । ५ मया जे । ६ संघरि जे । ७ णीहरिओ जे । ८ णिबहणं सू । ९ स्मामो जे । १. 'देवया जे । ११ अडवीए जे । १२ मवीरो जे । १३ तुमं सू । १४ य दा'सचेडीए जे । १५ एयमा जे । १६ तरुअंत जे । १७ तरे मए जे । १८ लज्जिओ सि अस सू! १९ भह ए सू । २० ममोपरि २१ जघदें सू । २२ वि चितिक सु। Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२४ चउप्पन्नमहापुरिसचरियं । भणियं-कस्स संतियाओ तुम्हे ? । ताहि भणियं-रायधूयाओ । तमायण्णिऊण मए भणियं-कस्स राइणो ? । [? एगाए भणियं-अहं दुल्लहरायस्स संखउरसामिणो कण्णगा चेव चिट्ठामि, एयस्स भएणं णेच्छिओ मए विवाहो । मए भणियं-कि णेहणियं ज्याहु अण्णह ? ति । तीए भणियं-"कुओ णेहो ?, किंतु अहं रयणीए कोट्टिमतलम्मि सुत्ता अवहरिया अणेणं विजाहरेणं, तओ अहं जिन्भं कड्ढिऊण वावाइउमादत्ता । तो तेणं भणियं-मेल्लेमि तुमं जइ मह वयणं करेसि । मए भणियं-केरिसं ?। तेण भणियं-मए मुक्काए भत्ता इच्छियव्यो । तं च मए पडिवण्णं । भणियं च तेण-मह समीवं पइदिणं रयणीए समागन्तव्वं, तुम्ह(हा)गमणणिमित्तं च चिंतियं चेव विमाणं भविरसइ त्ति । एवं णियमिऊण अहं तत्थेव सयणीए मुका। आगच्छामि य पइहिणं एयस्स समीवे । सिक्खविया य वंसं वाएउं । निम्मवियं च उसहसामिणो पढमतित्थयरस्स देवहरयं विजाहरेणं । एयाओ वि तिणि वि जणीओ णिब्बंध काऊण एवं चेव मुक्काओ। सिक्खवियाओ य औलाव-वीणाइयाओ कलाओ । विलसइ सो पइदिणमेवं अम्हेहि सद्धि सरीरमफुसंतो"। तओ मए 'सोहणं' ति भणिऊण विसज्जिया। गया य गियएणं चेव विमाणेणं सहाणं ति । इयराओ वि दोण्णि वि जणीओ साहिऊण नियजणय-णयराइयं तहेव गयाओ । __ अहमवि सह चेडीए समारूढो तम्मि विमाणे। समागयं कणगमतीभवगं विमाणं । ओइण्णाणि अम्हे । उवसंहरियं विमाणं । दिट्ठो अहं कणगमईए । दंसगाणंतरमेव भणियं तीए-किं वावाइओ दुधिज्जाहरो ? । चेडीए भणियंसुठु जाणियं सामिगीए । कणगमतीए भणियं-अजउत्त ! ण जुत्तमेवं भवओ ववहरिउं, जो विसमो सो विज्जाहरो । मए भणियं-अहं पुण किं समो तुज्झ पडिहामि ? । दासचेडीए भणियं-“सामिणि ! किं भणामि ?, इत्थीजणपसंसगं पि एयस्स 'जिंद' त्ति, 'धोरो' त्ति चेट्टाए चेव विणायरस पुणरुतया, 'महाबल-परकमो' ति पयडियं विज्जाहरमारणेणेव, 'तुहाणुरायगिब्भरो' ति सामिणीए सयमेव विण्णायं, 'उदारचरिउ' त्ति चइऊग रज गच्छंतेणेव पयडियं । उपरि किं भणामि ?, एयस्स जं उचियं तं सई चेव सामिणी जाणिस्सइ"।त्ति ठिया चेडी। तओ एवमायण्णिऊण भणियं कणगमईए-"हला ! किमेत्थ जाणियवं?, पुवामेव वरमालाए सद्धिं समप्पियं हिययं, संपयं अहमणेणे गियजीवियमोल्लेणं वसीकया। संपयं देहस्स जीवियस्स य एस एव मे पहवति त्ति । काहमवरस्स करिएवयस्स ? । सव्वहा अणुकूलो सुरूवो उवयारी पिओ य, णिदेसवत्तिणी अहमिमस्स"। त्ति भणिऊणं कणगमती सलज्जा अहोमुही ठिया। तओ मए भणियं-"सुंदरि ! किमणेणं जंपिएणं ?, ण मए अउव्वं किं पि तुह णिमित्तं कयं, जओ किं थेवो परिहवो 'णिययभज्जा परवस' त्ति ?, तओ णियपरिहवविसोहणत्थं सव्वं मए चेट्ठियं ति । अवि य लंघिजइ मयरहरो, अप्पा खिप्पइ भिगुम्मि घोरम्मि । पइसिज्जइ गुरुजालाकरालिए हुयवहे जलिए ॥१९॥ दुक्खजिओ चइज्जइ तणं व तुलिऊग अत्थसंघाओ। अप्पा दिजइ अयसस्स खग्गधाराए व जहिच्छं ॥२०॥ लंधिजइ मुहिवयणं, ण गणिज्जइ गुरुणो कुलं सीलं । लज्जा वि परिचइज्जइ सह बंधुयणेण णीसंकं ॥२१॥ किं बहुगा ?, हयसंसारसायरुत्वहणदुक्खपडिबंधो । आयामिज्जइ दइयस्स कारणा माणुसस्स जए ॥२२॥ ता सुंदरि ! थेवमिणं, तुज्झ कए किंण कीरइ जयम्मि ? । अहवा सुपसिद्धमिगं दुक्खेहिं विणा ण सोक्खाई" ॥२३॥ एवं च अहं कणगमईए सह णेहगभिणं जंपिऊण तत्थे पसुत्तो । ताव य तस्स विजाहरस्स चुल्लभाउणा सह कणगमईए आगासम्मि अवहरिओ, पुणो अहं समुदमज्झे पक्खित्तो। तओ दिव्यजोएण पडणाणन्तरमेव पुवभिण्णवोहित्थसमासाइयफलहगो सत्तरत्तेणं लंबिऊग जलणिहिं समासाइया तीरा। "तीए य किंचि वेलं समाससिऊण कह कह वि महया किलेसेण कयलिफलादिएहिं कयपाणवित्ती "गिरिणतीतीदेसम्मि अच्छिउं पयत्ता । 'ग य तम्मि पएसे माणुसरस संचारो' ति तओ मए चिन्तियं-"किमेयं तीरं उँयाउ दी ?, किं वा कोइ पव्ययवरो? ति । एवं संकप्प-विकप्पसमाउलो १ ज.णया उ अणजे । २ वाइउ जे। ३ आलावीणा सू जे । ४ ए आरूढो जे । ५ वीरो जे । ६ मरणेण, तु जे । . एयमा जे । ८ पुब्बमें जे । ९ ण जंपियजी जे । १. यण कु जे । ११ दुक्खेण जे । १२°व य पसुसू । १३ तीए किंचि सू । १४ महाकिले जे । १५ गिरिणो तीर जे । ९६ तीरम्मि सू । १७ किमेव जे। १८ उयाहु जे ।। Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०-२१ सयंभुवासुदेव-भद्दबलदेवाण चरियं । १२५ पओ थेवं भूमिभाग, जाव णादिदूरदेसम्मि दिवो तावसकुमारगो । गो अहं तस्स समीवं । बंदिओ य सो मए । दिण्णा नह तेण आसीसा । पुच्छिओ य सो मए-भयवं ! को उण एसो पएसो ? त्ति । तेण भणियं-जलणिहितीरं । पुणो मए भणियं-कहिं पुण तुम्ह आसमपदं । तेण भणियं-इओ णादिदूरम्मि । मए भणियं-गच्छम्ह तुम्ह आसनं ति। तओ अहं तेण णीओ आसमं । दिट्ठा य मए कणगमती । अहं पि तीए । तओ गरुयपमोयाबूरियसरीरेण भणियं मए-सुंदरि ! कह तुमं तस्स चुक ? त्ति । तीए भणियं-पक्खित्ता अहं तेण पव्वयवरे, तओ य ईंह संपत्त त्ति । तो अहं [तं] समासासिऊण गओ कुलवइसमीवं । वंदिओ भयवं । तेणावि दिण्णा आसीसा। उचविट्ठो तस्स समीवे । कुलबइणा भणियं-पुत्त ! किमेसा तुह घरिणी ? । मए भणियं-आमं । कुलवइणा भणियं-"इयं मए अइक्कंततइयदियहम्मि बाहिं णिग्गएणं 'एगागिगी चेव दिट्ठा, गोवलक्खिओ अहं इमीए । तओ पासाइं अवलोइऊण भणियमिमीए जहा-भयवतीओ! वण देवयाओ ! परिणीया केवलमहं भत्तारेणं, ण ये तस्स मए कि पि उवयरियं, तेण उण मज्झ गिमित्तं किं किं ण कयं ?, पलोइया मए तिणि दिणे मयरहरतीरा, णोवलद्धो दइओ, ता तेण विरहियाए मह जीविएणं ण पोयणं, तस्स सरीरे भलेजह । त्ति भणिऊण घिरइओ पासओ। समारूढा 'बंधदेसम्मि जाव अप्पाणं किल मुयइ ताव य अहं हाहारवसदगम्भिणं 'मा साहसं मा साहसं' ति भणमागो धाविओ तेयभिमुहं । संखुद्धा य एसा। पलोइओ अहं । विलिया मेल्लिऊण पोसयं उपविहा तरुवरस्स हेतुओ। मए समीववत्तिणा होऊण समासासिया-पुत्ति ! किं णिमित्तं तुम अप्पाणं वावाएसि ?, किं तुह भत्ता केगइ समुदम्मि पक्खित्तो जेग तस्स तीरं पलोएसि ? । तओ तीए ण किंचि जंपियं । केवलं मुत्ताहलसच्छ हेहिं थूलेह" अंसुर्विदूहि रोविउमाढत्ता । तं च 'रुयति पेच्छिऊण मह अतीवकरुणा संवुत्ता । पलोइयं च मए दिनगाणेग जाव जाणिो समुदपक्खिवणपज्जवसागो णीसेसो वइयरो। भणिया य एसा मए जहा-पुत्ति ! एहि आगच्छ आसमपर्य, होसह तुह तेग सद्धिं समागमो तइयदिणम्मि, वीसत्था होहि । तओ आसासिऊग आणिया आसमपयं । काराविया कह कह वि महया किले सेगं किंपि पाणवित्तिं । भक्खियाणि बाहजलपक्खालियाणि कइवि तरुफलाणि । तो "पोराणकहाहि विउत्ताग संजोयणे कह कह पिणीया कप्पसमाणा दो वासरा। अजं पुण एसा मरणेकवरसाया परिहरियसयलवावारा बडुरहिं उबरक्खिज्जमाणा धरिया जाव य तुमं समागओ" त्ति । मए भणियं-भयवं ! अणुम्गिहीओ म्हि, दिण्णमिमीए जीवियं महं च। तो अहं कुलवइसमीवाओ उडिओ । गो तीए समी । भणियं च मए-सुंदरि ! एयाणि ताणि सच्छंदचारिणो विहिणो विलसियाणि, एसा कम्माण परिणई, एवंविहवइयरभएणं चत्तणियघर-कलत्ता मुणिणो सुग्णारण्णाई समासयन्ति, एवंविहवइयराणं च गोयरीहोन्ति भोगाहिलासिणो, ता वीसत्था होहि । त्ति भणिऊग घेत्तूण य कणगमति गओ गिरिसरियं । मज्जिओ य विहिणा । कया तत्येव कयलातिएहिं फलेहिं पाणवित्ती । वाहित्तो कुलबइणा भोयणणिमित्तं । मए भणियं-भयवं! कया पाणवित्ती, भगसु कुलपति । पेसिओ मुगिकुमारओ। तो य अहं तत्थेव कणगमतीए सह णुवण्णो । पुणो वि तेणेव विजाहरभाउणा तह चेव सह कणगमतीए अवहरिओ । गयणयले णेऊण पुणो वि पक्खित्तो समुदे। कणगमती “य तत्थेव अण्णपासम्मि । समुत्तिण्णागि य दो वि विहिणिओएण पुणो वितन्येव मिलियाणि । भणियं कणगमतीए-अजउच ! किमेयं ?। मए भणियं-सुंदरि ! विहिविलसियं । तीए भणियं-"अज्जउत्त ! मा एवं भणसु, जओ देव्वस्स मत्थए पाडिऊग सब् सहन्ति कोपुरिसा । देव्यो वि ताण संकइ जाणं तेओ परिप्फुरइ ।। २४ ॥ ता मा मुयसु महायस ! उच्छाहं भुगनिम्गपपया(? व !)। मज्झत्यो तं जाव ताव सत्तू परिप्फुरइ ।। २५ ॥ १ 'कुमारो जे । २ कह सू । ३ कहं जे । ४ इह जे । ५ एगागिणा जे । ६ य मए सू । ७ पलोइओ य मए ति.पण दिण मयरहरतीगए, जो जे । ८ बुंध सू । ९ तयामि जे । १. 'दा एसा सू।" पासाइयं सू। १२ 'हिं असूर्हि अस्सुबिदहिरोइजे। १३ व्यती जे । १४ कराबिया स्। १५ पोराणयक जे । १६ सुष्णरण्णाई जे। १७ कुलवति स । १८ विजे। १९ कावुरिसा जे। २. देवो जे । २१ इय जे । Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२६ चउप्पन्नमहापुरिसचरिय। तं कस्य गयं तुह देव ! पोरस गरुथससुनिदैलणं ? । जेण सहिज्जइ सह पोरसेण दुक्खाण रिंगोली ॥ २६॥ अम्हारिसेहि किं एत्थ णाह ! संसारपूरणफलेहिं ? । तुम्हारिसा वि एवं सहन्ति जं तं महादुक्खं ।। २७ ।। ण कयं त्रिहलुद्धरणं, एगच्छत्ता य मेइणी ण कया। मुणिजणदुप्परियल्लं च णाह ! ण कयं तवचरणं ॥ २८॥ विसया वि णेय भुत्ता मणोरमा तरुणरमणिसहिएण । दुलहं लहिऊण इमं मणुयत्तं किं मुहा णेसि ? ।। २९ ॥ तुज्झ कएण महायस ! उत्तम्मइ मह मणो, मणं कुणसु । वेरिविणासणपिमुणं, तुज्झ सुहेणं अहं सुहिया" ॥३०॥ तओ एवं कणगमतीए वयणमायण्णिऊण मए भणियं-सुंदरि ! किं करेमि ?, जेण अदिटो चेव 'देवो ध्व वियरइ सत्तू, ता संपयं तहा करिस्सं जहा एवं ण कुणइ । त्ति जंपिऊण अहं रयणीए "णिक्कुणो ठिओ । साय य समागमओ विजाहराहमो । उढिओ य अहं । 'रे रे विजाहराहम ! कावुरिस ! गेण्हसु आउहं, संपयं ण होसि'त्ति भणिऊण कड्दियं मंडलग्गं मए, तेगावि । संखुद्धो य एसो भणिओ य मए-अरे पहरसु संपय जेणाहं पि पहरामि । तओ संखुद्धत्तणओ ण किंचि जंपियं तेणं । तओ मए गहिओ केसपासे । उदालियं मंडलग्गं । भणिओ य सो मए-अरे महापाय! एरिसेगं बलेणं मह समीवमल्लीणो सि ?, ता साहसु किं तुह संपयं कीरउ ? ति । तेण भणियं-जं वेरियाणं ति । मए भणियं-सुंदरि ! एसो सो गहिओ तुह वैरिओ विज्जाहराहमो, उज्झियमणेणाउहे, अणाउहाणं च असिक्खिओ मह करी पहरि । तो कैणगमईए समीववत्तिणीए ठाऊण भणियं-हयास ! केणेसा तुंह बुद्धी दिष्ण ? ति । तेण भणियं-भाउज्जायाए अहमेवं कारिओ म्हि । तओ एयमायणिऊण मए भणियं-अणत्थपरंपराए कारणं महिलाओ, ण एत्य संदेहो। तओ 'ण पुणो वि तए एरिसं कायव्यं' ति ददं णियमिऊण मुक्को विज्जाहरो । अहं चै समागओ कुलवतिसमीवं । तेणावि बहुं आसासिओ, णीओ य वसिमं ति । तत्थ य णगरासण्णे दिट्टो मए एको महामुणी । वंदिओ य मए । कया धम्मकहा। भणिया य मए कणगमती •जहा-सुंदरि! असारो संसारो, विसमा कम्मगई, बहुपचवाओ घरवासो, चलाणि इंदियाणि, अइकुडिला पेम्मगती, को जाणइ 'केरिसमवसाणं ?' ति, ता वरं सैई चेव छड्डिऊण एयाई पन्चज्जामो महापुरिसचारिय ति । तीए भणियं-अजउत्त! सोहगमेयं, किंतु अहिगवं जोधणं, विसमो विसमसरो, ण य जहिच्छं भायं विसयसुहं, ण य जाणिज्जइ 'केरिसमवसाणं?" ति, ता अइसयनागिं पुच्छिऊण जहोच्चियं करिस्सामो त्ति । मए भणियं-"सुंदरि ! जुत्तमभिहियं, किंतु 'अहिणवं जोधणं' ति जं वुत्तं तत्थ वुड्ढसहाको गवजोवणे वि धीरॊण सुंदरो होइ । इयराणं पुण वुड्ढत्तणे वि पिचडइ तारुण्ण ॥ ३१ ॥ कोपुरिसागं विसमो विसमसरो, ण उग धीरपुरिसाणं । मंसम्मि खग्गधारा तिण्हा, ण उणाइ वजम्मि ॥ ३२ ॥ अगवरयजहिच्छियसंपडन्तभोगेहिं लालिओ जीवो । सग्गम्मि, ण उण तित्ती जलणस्स व हवणिवहेणं ।। ३३ ।। जाणिज्जइ अवसागम्मि सुयणु ! भोगेहिं णिच्छिओ णरओ। चत्तेहिं तेहिं गमणं जायइ सग्गा-ऽपवग्गेसु ॥ ३४ ॥ जं पुण भणियं 'अइसयणागि पुच्छिऊण जं करमिजं तं करिस्सामो' सोहणमेयं, जइ अन्तराले अण्णं किं पि ण होई"। त्ति भणिऊण चंदिऊण य मुगियर पविठ्ठो हं णयरे । बाहिं ठपिया सा। मए य इओ तो परिम्भमन्तेण जूइयरदेवयाए पापियं मंडयाण मुल्लं । कारावियाओ य दो मंडय-कुक्कुडियाओ । गओ अहं जत्थुद्देसे मुका कणगमती । दिट्ठा सा मए । अभुटिओ य अहं तीए । कया पाणवित्ती । ठियाणि घिवित्ताए पायवच्छाए। लक्खिओ य मए भावो कगगमतीए जहा-पुण्णहियय त्ति । तओ मए चिंतियं-सुमरियं माणुसाणं भविस्सइ । तयणतरं च अहं गओ सरीरचिंताए । समागो य पेच्छामि पायवंतरिओ । सा य १ तह जे । २ "णिढवणं सू । ३ अम्हारिसेण सू । ४ मयं सू। ५ एय सू । ६ देवो जे । ७ णिज्झुगो जे । ८ कोरइ जे । ९ वरिओ जे । १. णिराउहाणं जे । ११ कगगवतीए सू। १२ तुझ जे । १३ पिजे । १४ आपुच्छि ऊग णीओ व जे । १५ एगो जे । १६ सयं जे । १० चरियाई । तीए जे । १८ वीराण जे । १९ कारिसाणं जे । २० अंतरालम्मि कि पि अण्णं णजे । २१ मुर्णिजे । २२ बाहि ठिया साजे । २३ सुष्णं हियय ति जे । Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०-२१ सयंभुवासुदेव-भद्दबलदेवाण चरियं । आलिहइ चित्तकम्मं कंठे घोलेइ पंचमोग्गारं । बाहजलभरियणयणा दिसाओ हरिणि व्त्र जोएइ ॥ ३५॥ वामकरोवरिसंठियमुहपंकय मुक्कदीहणीसासा । अभणन्त च्चिय साहइ मयणवियाराउरं चित्तं ॥ ३६ ॥ १.२७ ओ मए चिंतियं-किमेयं ?, अह्वा ण पारेइ मह विओयम्मि एगागिणी चिट्ठिउं ति, ता जइ मह दंसणे समाउला भविस्सइ ता मज्झोवरि णेहो, अह संवरिस्सर आगारं ता ण सोहणं । ति चिंतिऊण मए दंसिओ अप्पा दूरस्थो । संवरिओ मयणवियारो । गओ अहं तीए समीवं । भणिया सा मए-मुंदरि ! सुमरसि नियमाणुसाणं ति जेणुब्बिग्गा विय लक्खिज्जसि ? । तीए भणियमायारं गोविऊण - “अज्जउत्त! तुमम्मि साहीणे किं माणुसेहिं ?, रणं पि होइ वसिमं जत्थ जणो हिययवल्लहो वसइ । पियविरहियाण वसिमं पि होइ अडईए सारिच्छे” ॥३७॥ मायणऊण चिंतियं मए - "उवयारप्यायमिमीए जंपियं, ता ण सोहणमेयं, जओवीसंभजणियगहिए परूढसन्भावपेम पसरम्मि । उवयारो कीरइ माणुसम्मि कत्तोच्चयं एयं ? ॥ ३८ ॥ उयारेहिं परो चिय घिप्पर, अम्बन्ति ते तर्हि चेत्र । इयरम्मि पत्रचन्ता पेमाभावं पयासेन्ति ॥ ३९ ॥ ता सव्वा भविव्यमेत्थ केगइ कारणेगं" । ति मुगिऊग उँडिओ तीए समीत्राओ । गओ य गिल्लक्खमेव आराममझयारे चेव थेवं भूमिभायं । जाव समागओ 'एको पुरिसो । पुच्छिओ य अहं तेण जहा- क्रिमेत्थ संपयं पि चिss कुमारो ? | मए भणियं को एस कुमारो ? । तेग भगियं - राइणो ईसाणचंदस्स गयरसामिणो गुणचंदाहिहाणो मँझसमए समागओ आसि, तओ अह 'तेणेय कज्जेण पेसिओ, समागओ य, अओ पुच्छामि त्ति । मए भणियंओ कुमारीसमास लाभो ति । ते भांगयं किं घडिया सा तस्स | मए भणियंग केवलं घडिया, णीया सा भवणं । तेण भणियं-सोहणं, महंतो अणुबंधो दिट्ठमेत्तीए चेव उवरि कुमारस्स । त्ति भणिऊण गओ सो । चिंतियं ए-रित्थु संसारविलसियाणं, धिरत्थु महिलासहावाणं । अवि य ण गुणेहिं णेय रूवेग गोवयारेण णेय जीएणं । वेप्पर महिलाण मगो चलो पत्रशुद्धयधओ व्व ॥ ४० ॥ ओ मए चिंतियं-जावेसा महिलावियारं ण दंसेइ ताव इओ णाइदूरे माउलगगेहं, तत्थ मोत्तूण एयं जहोचियं करिस्सं । ति चिंतिऊण गओ तीए समीवं । भणिया य सा मए जहा - एहि गच्छामो । तीए भणियं पच्चूसे गैमिस्सामो । मए भणियं - सत्थो लद्धो, संपयं चेव वच्चामो । तओ सा परम्मुही हियएणं मह भएणं उच्चलिया । गयाणि अम्हे चउहिं " दियहेहिं तीए माउलगस्स गेहं । पञ्चभिष्णाया य सा । तभ बहुं त्रिसूरिऊग पुणजायं पित्र मण्णमाणेग अभंग -हाणभोयगादीहिं कयमुचियकरणिज्जं । साहिओ मए विज्जाहराइओ सन्चो वुत्तंतो । तेण भणियं किंण संभाविज्जइ संसारे ? ति । तओ अहं तीए चेत्र रयणीए णिग्गओ पच्छिमजामे । गओ य तस्स आयरियस्स समीत्रं जस्संतिए धम्मो णिसुओ । पव्वइओ य तस्सन्तिए । ता एयं मह गिव्वेयकारणं ति । बलदेवेण भणियं - भयत्रं ! सोहणं गिव्वेयकारणं, भवंति य एवंविहाणि विहिणो विलसियाणि । एवं भणिऊण मोहपयडीओ अभिभविऊण गहियाणि जहासत्तिं अणुव्वयाणि, थिरीकयं सम्मत्तं । ते य वासुदेव बलदेवा पसंसिऊग वंदिऊण य मुणिवरं सद्वाणे गया । उवरओ य तेसिं पिया । सिओ दूओ उप्पण्णचकरयणेणं पडिवासुदेवेगं मेरयाभिहाणेण सयंभुणो । पडिहारणिवेइओ य पत्रिट्ठो सयंअत्थाय मंडवे । पायवडणुडिओ य उवविहो जहाऽऽम्मि आसणे । येववेलाए य पुच्छिओ दूओ जहा - किं कुसलं मेरयणरवणो ? । तेग भगियं-कुसलं ति, किंतु देवो भग ईदोन पण एयं लज्जाकरं सुवुरिसाग । ता मज्झ बलं तुलिउं आगं पुहई व गिण्हाहि ॥ ४१ ॥ १ किमेवं ? सू । २ भणिय मायायारं जे । ३ 'पेम्म' जे ४ अक्खति जे ५ उवडिओ सू । ६ एगो जे । ७ मज्झष्ण सू । 4 तेण क्षक सू ९ साइओ इट्ठ जे । १० य सभ्रवणं जे । ११ गच्छामो जे । १२ दिवसेहि जे ! १३ तं । बलदेववासुदेवा जे । १४ सू । Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२८ चउम्पन्नमहापुरिसचरियं । एवं सुर्णिऊण भणियं गमदेवेणकिं णत्थि तस्स कजं गियजीएणं ? ति तेण संदिसइ । ता भणमु दूय ! वच्चमु, आँगच्छउ जाउ जमणयरं ॥४२॥ एवं भणिऊण विसजिओ दूओ गओ य । सव्वं जैहट्ठिय चेव साहियं मेरयस्स । तेणावि नियइरज्जुसमाकरिसिएण दिण्णं पयाणयं । गओ अहिमुहं सयंभू वि सह भदाहिहाणेण बलदेवेणं ति । आवडियमाओहणं महया समरसंघदेणं । अभिभविओ मेरओ । तेणावि पेसियं चकं । तं पि गंतूण सयंभुणो वासुदेवस्स हत्यम्मि ठियं । तेण वि य तस्स तेणेव चक्केण छिण्णं सिरं। उग्घुट्टो महाजयजयरत्रो । समद्धासियं च भरहं । सहि वासलक्खा भुत्तं भरहं । मरिऊग य गओ गरए । बेलदेवेणावि उज्झिऊण गामधम्मे गहियं समणतणं तस्स महामुणिणो समीवे जस्सन्तिए पुब्धि धम्मो णिसुओ। विहरिऊण जहुत्तविहारेण, खविऊण य अप्पटिइयं कम्मं सिद्धिमणुपत्तो ति ॥ इति महा पुरिसचरिए सयंभुणो अद्धचकवहिणो [भद्दबलदेवस्स य] चरियं समैत्तं ॥ २०-२१ ॥ आहिमुहो सू । • वेग १ एय जे । २ आगच्छ सु सू । ३ जाहाटर सू । ४ 'य काहय परवइणो ते जे । ५ दिण्ह सू ।। य जे । ८ 'जयारको जे । ९ बलदेवो वि सू । १. पुरुषच सू! ११ सम्मत्त सू।। Yor Private Personal use only Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२२ अणंतइतित्थयरचरियं] ::::::: विमलतिस्थयरामो मागरोवमेहिं णवहिं समइक्वन्तेहि अणंतइजिणो समुप्पन्नो' तित्थयरो । सो य तीसइवरिसलक्खाउओ पप्णासधणूसुओ । कहं ? भण्णइ दरे पञ्चासत्ती, दंसणमवि जस्स दुल्लहं होइ । संसारुत्तरणसहं णाम पि हु सो जए जयइ ॥१॥ अत्थि इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे अउज्झा णाम णयरी जण-धण-कणगसमिद्धा । तत्थ य सहजायबल-परकमो सीहसेणो णाम णराहिवो परिवसइ । तस्स य सव्वंतेउरप्पहाणा सव्वजसा णाम महादेवी । तीए य सह विसयमुहमणुहवन्तस्से अइक्वन्तो कोइ कालो। ___ अण्ण या य सावणकिण्डपंचमीए सव्वजसा सुत्ता चोदस महामुमिणे पासिऊण विउद्धा, समासासिया य पुत्तजम्मेणं राइणा । तीए य रयणीए सहस्साराओ रेवइजोगजुत्ते मियंके चविऊण समासाइयतित्थयरणाम-गोत्तो समुप्पण्णो सन्यजसाए कुच्छिसि, संवढिओ कमेण । पेडिपुण्णेसु णवसु मासेसु अट्टमेसु राइंदिएमु वइसाहकिण्हतेरसीए रेवइजोगजुत्ते मियंके सुहंसुहेण पसूया दारयं । गम्भत्थे य भगवम्मि पिउणा 'अणन्तं परवलं जिय' ति तओ जहत्थं अणन्तइजिणो त्ति नाम कयं भुवणगुरुणो । पुन्चकैमेण य संवढिओ. विवाहिओ य । संसारं चइउकामो संबोहिओ लोयंतिएहिं । कहं ? " पेच्छसि णाह ! तुमं गुणमिह संसारसायरे विरसे ? । जेणऽच्छसि पाययजणवओ व्व परिजागियजहत्थो ॥२॥ चिटुंतु णाम सामिय ! पुत्त-कलत्तेहि मोहिया पुरिसा । परमस्थमैपेच्छंता बद्धा हाणुबंधेण ॥ ३॥ ऎसो श्चिय परमत्थो जं दीसइ भुजई य संसारे । एवं कयववसाया भमन्ति संसारकन्तारे ॥४॥ जं पुण वरपहु ! तुम्हारिसा वि बंधन्ति कह वि पडिबंधं । जाणंता खैलसंसारविलसियं तह य मोक्खपहं ॥ ५॥ वा विरमसु णाह ! तुमं एत्तो विरसाओ भवसमुदाओ । अम्हे गिमित्तमित्तं जाणसि तं चैव गहियत्यो ॥६॥ परमत्य मुहं तं मुणसि णाह ! दुक्खाणि एत्थ संसारे । एवं च ज विहीरसि खंणं पितं केण कज्जेण ? ॥७॥ "दे कुणसु पसायं, मुयसु णाह ! लोयाणुवैत्तिणि चेहूं । तइ मज्झत्थे सामिय ! दुग्गइगमणसुयं भरहं ॥ ८॥ इय भणिओ य विहाणुज्जएहि लोयन्तिएहि देवेहि । पडिबोहिओ विबुद्धो वि भुवणणाहो परस्थम्मि ॥९॥ तओ लोयन्तियपडिबोहिओ परहिएक्करओ वइसाइकिण्हचउद्दसीए रेवइणक्खत्ते पडिवष्णो चारित्तं । पुणो विहरिऊण छउमत्थपरियाएणं, आरुहिऊण खवगैसेढी, उप्पाडियं तीया-ऽणागैयवत्थुब्भासगं केवलणाणं वैइसाहकिण्हचउद्दसीए । विरइयं देवेहि समोसरणं । पव्वाविया गणहरा । पत्थुया धम्मकहा । दंसिजति संसार-मोक्खपहा, पयडि जंति कम्मुगो दारुणविवागा, कहिज्जइ विसयविरसत्तणं, दंसिज्जइ संसारासारत्तणं, णिदिज्जइ हैंयपावपरिणई, साहिप्पंति सइविरसाओ गैरयवियणाओ, णिरूविजंति तिरिएमु णाणाविहाई दुक्खाई, वज्जरिजति मणुयाण सारीर-माणसाओ पीडाआ, बियारिजइ देवाण वि ईसा-विसायणडियाणं सुहाभावो, दिज्जइ गिरवाओ सम्मईसण-णाण-चरित्तमइओ मोक्खपहोवऎसा ति । __एवं च बुझंति पाणिणो, उज्झंति मिच्छत्तविसं, छडेंति कसाए, परिहरंति पमायठाणाई, पेल्लंति मोह पसर, चपेंति विसयविसहरे, लंघंति अविरतिपरिणामं, चप्पेंति कसाए, जाणंति संसारविलसियं, मुणन्ति जहहिए भावे, १ अणंतजिणो सू । २ नो। सो सू । ३ पञ्चासत्त जे । ४ बलकयधम्मो साजे । ५ स्स समइक्कतो जे । ६ सा चोई सू । ७ समासाइया पुत्त सू । ८ चइऊण सू । ९ पांडवणेसु जे । १० अणतजिणो सू । ११ कमेणेय सं सू । १२ कि सू। १३ 'मवेखंता सू । १५ एत्तो जे । १५ खलु संसार जे । १६ भवकडिलाओ:जे । १७ त्यसह जे । १८ खलं म । १९ हे स । २.व. त्तिणं सु । २१ दोग्गई जे । २२ 'सेदि जे । २१ गयपयत्थु जे । २४ आसाढकिम्हछट्ठीए । विजे । २५ पत्थुहा(वा) सू। २६ नियपावजे । २७ निरय जे । २८ एसो । एवं बु सू । Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३० चउप्पलमहापुरिसचरिय। अंगीकरेंति सप्पुरिसचेट्ठियं, पयर्टेति कुसलाणुहाणे, छिंदंति मोहजालं, मिदंति कम्मगठिं, मुमुमूरन्ति कम्मसंचयं, विहाडेति अण्णाणतिमिरं, धुणंति मायाकूडजालं, णिव्ववंति मयणाणलं, रुंभंति इंदियपसरं, जाणंति सव्वभावाणिच्चयं । किंच-अथिरं जीवियं, तरलं जोव्वणं, कुडिला पेम्मगती, चला लच्छी, सुविणयसमं मुहं, बंधणं गिहवासो, विसं विसया, विप्पओगावसाणा समागमा, कुगइहेयवो आसवा, अणत्थपउराणि इंदियाणि, विसमो विसमसरो, दारुणा मोहणिहा, अपज्जवसाणा मुहपिवासा, अणत्थबहुला जुवइसमागमा, अत्थो अणत्थो, अमुणियपरमत्था कम्मपरिणई। अवि यएत्थ मुझंति पाणिणो, ण गणेन्ति आवई, ण फलंक, ण दुग्गइगमणं, ण कुलं, ण सीलं, ण सुयणसमागम, ण धम्मं, ण मज्जायं, ण महापुरिसचरियं, ण अत्थणासं, ण परिहवं, ण पोरुसं, ण फज्जा-कज, ण भक्खा-ऽभक्खं, ण परिइरणिजं, ण गेझं, ण कुलक्कमायारं, ण विणयं ति। सन्बहा कम्मपरिणईए मोहिया तं तं कुणंति जेणाऽादियं संसारकन्तारं परियट्टति । लहिऊण वि बहुभवदुल्लहं मणुयभवं संसारुत्तारणसमत्थं ण कुणंति जिणदेसियं धम्म ति । एवं तिस्थयरवयणाओ मुणिऊण संसारसहावं, काऊग मोहविवरं केइ पडिवण्णा मोक्खतरुबीयममोहं सम्म, अण्णे देसविरैई, अवरे सव्वसंवररूवं समणत्तणं ति। ___ तओ भयवं पि विहरिऊण भरहखेत्तं, काऊण परहियं, णाऊण आउअसेसं, गंतूण सम्मेयगिरिसिहरं, चेत्तस्स मुदपंचमीए रेवइणक्खत्ते खविऊण भवोवग्गाहीणि चत्तारि कम्माणि सिद्धिगतिं गो त्ति ।। इति महापुरिसचरिए अणन्तइतित्ययर चरिय सम्म ति ॥ २२ ॥ १ गठी जे । २ चपला जे । ३ ण, दारुणा सू । ५ णादसंसाजे । ५ विरई जे। ६ समणतं ति जे। . "पुरुष सू। • अणंततित्यं सू । ९ परिसमत्त जे। Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२३-२४ पुरिसोत्तिमवासुदेव-सुप्पभबलदेवाण चरियं] :-:-:-: अणंतइतित्थयरकाले पुरिसोत्तिमो अद्धचक्कवट्टी समुप्पण्णो । सो य पण्णासधणमुओ 'तीसइवरिसलक्खाऊ महाबल-परक्कमो त्ति । तस्स चरियं संपयं ति।। अस्थि इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे चंदउरं णाम णयरं । तत्य राया-पयाणं सोमो सोमो णाम णराहिवो परिवसइ । तस्स चंदप्पभा णाम महादेवी । तस्स तीए सह विसयसुहमणुहवन्तस्स समुप्पण्णा दुवे पुत्ता। जेट्ठस्स सुप्पभो, बीयस्स पुरिसोत्तिमो त्ति [?णामं] । गाहिया कलाओ, विसेसेणाऽऽउहं ति । तत्थ पुरिसोत्तिमो महाबल-परकमो परसिरिगहणुज्जुओ । तेसिं च पिया पुरिसोत्तिमं रजे अहिसिंचिऊण सकज्जाणुहाणपरो पंचत्तमुवगओ । सुप्पहबलदेवो य परमसम्मदिट्टी अहिगयजीवा-ऽजीवो उवलद्धपुण्ण-पावसब्भावो अवगयजिणवयणसारो भोगपरम्मुहो भाउणो उवरोहेण गिहवासे परिवसइ। इयरो य पुरिसोत्तिमवासुदेवो सबलावलेवेण सरपरम्मुहि णियच्छायं निंदन्तो, पडिविबेणावि चलणणहम्गलग्गेण लज्जमाणो, सिरोरुहाणं पि भंगेण मिजंतो, चूडामणिलग्गेणावि बीयछत्तेणं पीडिज्जतो, देवप्पणामेणावि सिरोवेयणमणुहवंतो, जलहरधरिएणावि चावेण खिज्जंतो, आलेक्खपुंहइपदीहिं वि अणमंतेहिं डज्झमाणतणू, परिमियमंडलतुटुं सूरं पि उवहसंतो, धरणिधरहरियकमलं सागरं पि ण बहुमण्णंतो, हिमवन्तस्स वि चमराणि असहमाणो, समुदसंखेहिं पि सेंतावं समुन्वहंतो, अणवरयधणुगुणाकरिसणेण कयकिणंकं वामभुयं भुयंगभोगंभीसणं समुव्वहंतो लोए सुहडत्तणेण पसिद्धिं गओ। इओ य माहू केढवो य दुवे भायरो महाबल-परकमा समुप्पण्णचक्करयणत्तणेण तणमिव सयलं जियलोयं मण्णमाणा मुंजंति भरहखंडं । तेहिं णिसुओ पुरिसोत्तिमो । पेसिओ तस्स दूओ । समागओ य पुरिसोत्तिमैस्स समीवं । पडिहारजाणाविओ य पविट्ठो अत्थाइयाए । पायवडणुट्टिओ उपविट्ठो समाइढे आसणे। पुच्छिओ य पहुणा-किं कुणंति महु-केढवा?, केण वा कजेण तुमं पेसिओ ? त्ति । दूरण भणियं-"महाराय ! विष्णवेमि । बहूणि दिवसाणि सचिंतस्स महुरायस्स । किल तुम्ह बलेण उत्ताविया पुहई, कयत्थियाओ पयतीओ, देवाविया करं णराहिवइणो, पीडिया देवमुणिजणा, कयत्थिया पैउरजणवया, पीडियं अम्इ मंडलं । ता ण जुत्तं तुह एवं ववहरिउं, जओ-ण लंघंति मज्जायं रयणायर व महापुरिसा वहन्ता पुरिसोत्तिमसदं पुहईए, ता किमेएसि पयाणं कयस्थिजइ ? । तचिंतापीडिऍणमहं सामिणा पेसिओ तुह समीवं ति, किंच गच्छंती तुह भवणं ण रायलच्छी जणेइ मह दुक्खं । एकत्र्तणेण दोण्हं पि किंतु भिच्चा ण चिट्ठन्ति ॥१॥ णिचडइ णेहभावो परोप्परं घरसिरीए संकमणे । किंतु मुहडावलेवं ण सहन्ति महाभडा मज्झं ॥२॥ जइ कह वि तए डिम्भत्तणेणमसमंजसं पि वैवहरियं । विवरोक्खं मज्झ पुणो वि मुयसु, को तुज्झ रूसेइ ? ॥३॥ इय केत्तियं व भण्णसि?, वड्ढउ पीई परोप्परमणग्या । मुयम् सिरिं परगहियं, दोसो बालत्तणे पडउ" ॥४॥ तओ एयमायण्णिऊण भणियं पुरिसोत्तिमेणंरे दूय ! ण योगसि चिंय वोतुं, दटुं पि णेय जाणासि । जेण अबालस्स महं बालत्तणपेच्छिरो जाओ ॥५॥ अहवा ण तुज्झ दोसो, दोसो तुइ सामिणो अणजस्स । जेणऽप्पणो विणासत्यमेव तं पेसिओ इहई ॥ ६ ॥ १ अणन्ततित्थ सू । २ तीसव जे । ३ भाउणोवरों सू । ४ पुरिसोत्तम सू ।५ पुहइवई हिंजे। ६ अणमण्यंतेहिं सू । ७ तणो स। ८ रणियक जे । ९ संतावमुब्व जे । १० भीममुव जे । ११ 'मसमीव सू । १२ °णि चिंतयंतस्थ सू। १३ दाविया जे । १४ पौरजण जे । १५ "सि अप्पाणं के जे। १६ 'ज्जइ ? ति । ताचिंता जे। १७ एणं महं सू। १८ 'तणे य दो सू। १९ ववहरिलं जे । २० यणसि जे । २१ चिय सू जे । Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपपन्नमहापुरिसचरियै । हि विवरोक्खं गहिया लच्छी उ संपयं मूढ ! । गेण्हामि तुह णियन्तस्स होसु कज्जुज्जओ तुरियं ॥ ७ ॥ तओ एयमायणिऊण भणियं दूषण किं बहुणा भणिएणं ?, एसो मह सामिओ तुह समीत्रं । संपत्तो बलभरमिलियणयर-गामा -ऽडइ-मडंबो ॥ ८ ॥ चलियम्मि तम्मि पयलइ पहुम्मि महिमंडलं णिरवसेसं । अक्कन्तफणावलओ जायइ विहडफडो सेसो ॥ ९ ॥ सहसुच्छलन्तजलणिवहचालिउप्पित्थवलियकरिमयरा । पलयकरिणि विलम्बंति तक्खणं चेत्र मयरहरा ॥ १० ॥ सहसुद्धाइयवरतुरयखुरपुटुच्छलियधूलिमलियंगो । होइ ससको सको वि जम्नि चलियम्मि णरणाहे ॥ ११ ॥ मत्तकरिकरडनिज्झरगलन्तमयसलिलबहुलवालिद्धं । जायइ सहस चिय दुद्दिगं ति चलियम्मि धरणीए ।। १२ ।। णिसियकरवालभासुररविकिरणालिद्धजाय तडिखंडं । चलियवरपकपाइकभासुरं होइ महिवढं ॥ १३ ॥ होति ससंका चलियम्मि जम्मि भुत्रणम्मि लोयपाला वि । तस्सऽज्जियम्मिलगुणजसस्स मणुएस की संका ? || १४ || इय कुणमज्झ वय होसि सुबुद्धि त्ति, तुह हु ! जियंतु । सड़ बंधवा य मित्ता, तुमं पि णिरुववसरीरो ॥ १५ ॥ तओ एयमायण्णिऊण भणियं पुरिसोत्तिमेणं-रे रे वयणमेत्तसार ! मुहचवल ! किमेवमप्पा पसंसिज्जा पिल्लाजि - मावलग्गेणं तर अवि य १३२ वयणं वयणं चिय होइ केवलं सैयलअत्थपरिहीणं । णिव्वडइ भुयवलेणं जयम्मि पुरिसाण माहप्पं ॥ १६ ॥ इय एवमाइ बैहुयं भसिऊण पेसिओ दूओ । दिण्णं पयाणयं सोहणे दिवसे पुरिसोत्तिमेणं ति । 1 ओवयत्यविहिं णियइरज्जुसंदाणिएहिं महु-केढवेर्हि गियबलसमे एहिं दिष्णं पयागयं ति | मिलिया अत्ररोप्परं, समावडियं जुज्झं । जुज्झति महाभडा । दिज्जति साहुकारा । उच्छाहिज्जन्ति परोप्परं सुहडेहिं सुहडा | दुहुँ - लंति सुण्णासणा तुरंगा । णचंति कबंधाई । घोसिज्जंति बंदियणेण णामावलीओ । त्रियम्भन्ति गयघडाओ । तोरविज्जन्ति पक्कपाइका । सुमरिज्जति सामिसालपाया परिहवा य । सुमरिज्जइ आउहं इट्ठदेवया य । पयासिज्जइ पोरुसं जसो य । णिन्त्रडइ खग्गधारा कित्ती य । घेप्पइ पडिवक्खसिरी गयघडा य। णिज्जर दिसामुहेसु पडिवक्खो" पयावो य । पैतिदियहं बड्ढइ संगामो रणुच्छाहो य। दिज्जन्ति महादाणाई खग्गपहारा य । धावन्ति करिकुम्भत्थलुच्छलियरुहिरधाराहिं मंडलनाई मलणाओ य । एवं च गरुए समरभरे छिज्जेतेसु करिवरसिरेसु, फालिज्जन्तेसु तुरयतिएसु, लूयमाणासु भूयासु, तओ दारुणे रणे, भीए कायरजणे, हरिसिए मुँहडजणे, पयट्टे बहुजणमरणे, पत्रत्तं पहाणजैज्झं । हक्कारिओ पुरिसोतिमेणं महुचकहरो । 'वॅलिओ य तस्साभिमुहं । भणिओ य पुरिसोतिमेगं - एस अवसरो पुरिसत्तणस्स, ता कुण आउहं, पैंयासेहि आउहेण णियबलं, किमेत्थ वायाए ? त्ति । एवं भगतो गहिओ अगत्ररयसरधोरणीए महुणा । तेर्णे वि दक्खत्तणगुणेण पहिया सरेहिं चेत्र सरा । तओ खलिऊण सरेहिं सरे महुणो “छिष्णो चात्रस्स गुणो । गहियं तेण कोन्तं । घत्तियं पुरिसोत्तिमाभिमुहं । तमेतं मुसुंढीए कयं सैंयसक्करं । पुणो गहियं खग्गरयणं । तं पि खुरप्पहयं सह अंगुरणं * धरणीए विडियं । पुणो गरुयामरिसर्वैसरज्जंतलोयणेणं गहियं चक्करयणं । तं पि तस्स रज्जं पित्र पुरिसोतमस्स करयलेऽवलग्गं । तओ दट्टूण हत्थट्ठियं चक्करयणं पुरिसोत्तिमेण भणियं-पेच्छंतु सुहडा, अवलोयन्तु तियसा, र (इ) क्खंतु दाणत्रा, एस संपयं ण होसि । त्ति भणिऊण मुक्कं चक्करयणं । छिष्णं सीसं महगो । केद्रवो वि तस्स भया णावणा वावाइओ । ओयवियं भरहद्धं । भुंजइ भोए । सुप्पहबलदेवेणावि गहिऊग सामण्णं, पालिऊण पव्वज्जापरियायं, उप्पाडिऊण केवलं, "सिद्धिसमिद्धी समद्धासिया || 1 इति महापुरिसचरिए पुरिसोत्तमअद्धचक्कवहि [? -सुप्पभबलदेव ] चरियं सैम्मत्तं ॥ २३-२४ ॥ १ महिवेढं जे । २ का गणणा जे । ३ बहु जे । ४ सयलसत्थ जे । ५ बहुं जे । ६ भाणिकण सू । 'वयतविएहि सू । ८ दुरुदुल्लेति जे । ९ तुरंगया सू । १० क्खो नियपयायी जे । ११ पइसमयं जे । १२ सुहडमणे सू । १३ जुद्ध जे । १४ चलिओ तस्साभिमुद्दो जे । १५ पयासह जे । १६ तेणावि जे । १७ सरो सू । १८ छिष्णो य धणुहस्स जे । १९ कुतं जे । २० सयसिकरं जे । २१ खुरु जे । २२ वि सू । २३° वसवज्जत सू । २४ पुरिसोत्तिभकरे विलग्गं जे। २५ अवलोएंतु जे । २६ भाउभो जे । २७ सिद्धी सम जे १८ पुरुष सू । २९ परिसमप्तं ति जे । の Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ २५ धम्मतित्थयरचरियं ]| -x-- अणंतइजिणतित्थयराओ चउर्हि सागरोवमेहिं गएहि वीसवरिसलक्खाउओ पणयालधणि ऊसुओ धम्माहिहाणो तित्थयरो समुप्पण्णो त्ति । कहं ? भण्णइ अब्भुदरणसमत्था जयम्मि जायंति ते महासत्ता । जेहि परिगलियपावाई तक्खणं होति भुषणाई ॥१॥ अत्थि इहेव जवुद्दीवे दीवे भारहे वासे रैयणणाहिपुरवरं । तत्थ राया णियपयावकन्तभुवणयलो अणवरयणिइयसत्तुप्पसरो भाणु व्व भाणू णाम णराहियो परिवसइ । तस्स य गहियसुचया सुब्वया णाम भारिया। तीए सह विसयसुहमणुहवन्तस्स अइक्वन्तो कोइ कालो। अण्णया वेइसाहसुद्धपंचमीए पूसजोगम्मि चोदसमहामुमिणसूडओ वेजयन्तविमाणाओ चविऊग सुव्वयाए कुच्छिसि समुप्पण्णो समासाइयतित्थयरणाम-गोत्तो त्ति । संवढिओ य गब्भो । जाओ य माहसुद्धतइयाए पुस्सगक्खत्ते । भगवम्मि गम्भत्थे 'अतीव जणणीए धम्मकरणदोहलो आसि" ति तओ धम्मो त्ति णामं कयं तिहुयणगुरुगो । कओ य जम्माहिसेओ पुनक्कमेणेय सुरिंदेणं । कयसयलकरणिजो कयपन्यज्जाववसाओ संबोहिओ लोयंतिएहि। पडिवण्णो माहस्स चउत्थीए पूसम्मि णक्वत्ते समणत्तणं । पालिऊग छउमत्थरियायं फग्गुणसुद्धदसमीए पूसजोयम्मि केवलमणुपत्तो ति। विरइयं देवेहिं समोसरणं । पत्थुया धम्मकहा। बुझंति पाणिगो। उज्झंति विसयमुहं । लग्गति सोग्गइमग्गे । छिदंति मोहजालं । अभुवगच्छंति महापुरिससेवियं समणत्तणं, केइ पुण अणुव्वयाई ति । एवं च पडिवोहिऊण भवियकमलायरे, परूविऊण दुविहं पि धम्म, जेटस्स सुद्धपंचमीए पूसजोगम्मि सम्मेयगिरिसिहरे सम्बदुक्खविमोक्खं मोक्खमणुपत्तो ति ॥ इति महापुरिसचरिए धम्मतिथयरचरियं सम्मत्तं ॥ २५ ॥ १ भणंतजिण सू । २ महापुरिसा । परिगलियसयलपावाई सू । ३ रयणाहिजे । ४ तीए य सह जे । ५ वैसाई सू योग ले । ७ मोक्वं पत्तो जे । 'यरस्स च जे । ९ स प्र. ६७..॥जे। . पार Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ २६-२७ पुरिससीह वासुदेव सुदंसणबलदेवाण चरियं ] धम्मतित्थयरकाले पुरिससीहो पणयालधणूसुओ वीसइवासलक्खाउओ समुप्पण्णो । तस्स चरियं तिअस्थि व जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे कोसम्बी णाम णयरी । तत्थ य जहत्थणामो सिवो णाम रौया परिसर । तस्स महादेवी सुजसा । तीए सह विसयहमणुहवन्तस्स समुप्पण्णो पुतो जहत्थगामो सुदंसणो ति । पुणो वि सत्तसुमिणसंग्रहओ समुप्पण्णो पुत्तो अणुगयत्थाहिहाणो पुरिससीहो ति । पत्ता य दुवे वि जोव्वणं । कलाओ गाहिया, विवाहिया य । अण्णा विहडियपच्चन्तणरवइदप्पसाडणणिमित्तं पिउणा सुदंसणो पेसिओ । पुरिससीहो उण गियभाउणा सह haryयाणयाई गंतूणं तत्थेव मिथैयात्रिणोएण परिमियतुरयबलसमेओ जाव चिह्न ताव य पिउसयासाओ समागओ लेहो जहा - लेहदंसणाणंतरमागन्तव्त्रं ति । तओ वाइऊण सयमेत्र लेहं पुच्छिओ लेहवाहगो जहा - किं दुक्खर तायस्स ? | तेण भणियं - दाहज्जरो । तओ तक्खणमेव दिष्णं पयाणयं । पत्तो य बीयदि यहे । अकयभोयणाइसरीरपडिकम्मो पविट्ठो यरं । दिट्ठे च महारायसोगावण्णं जणसमूहं परिचत्तणिययवावारं सुन्नं व कयमुच्छागमं व वाहिगहियं व पडिसिद्धदेवउलधूयवेलं चत्तसयलमहूसत्रं ति । तत्थ गच्छंतेण इमा गाहा निसुया । माया पिया या भज्जा सयणो य णेहपडिपुण्णो । जम्मे जम्मे च्चिय " होति णवर को तेसु पडिबंधो ? ॥१॥ तओ सोऊण एवं यउत्तेण अणिमासंकियं । कमेण संपत्ती पडिसिद्धसयलणिग्गम-पवेसं णिहुय संचरन्तपैरियणं भवदारं ति । उत्तरिऊण तुरंगाओ पडिहारपणमियचलणजुओ पट्टि अभितरं णाणाविहओसहिगंधसमिद्धं पत्थुयसंतिकम्मं पचन्तमक्खणं पीसिज्जन्तओसहं दिज्जन्तदाणं समाउलंतेउरं विसष्णमंतिमंडलं मूढवेज्जगणं पल्हत्थकंचुइजणं ति । -पत्रिो पिउसमी । दिट्ठो य महाराया गरुयमहाजरडज्झमाणसरीरो । पडिओ चलणजुयले । वियणापरव्वसेणावि जैवविसिग पिउणा हो । पुच्छिओ य-त ! अतीवविद्दाणो सि ? | साहियं च समीववत्तिणा पुरिसेण जहा - महाराय ! तिष्णि दिणाणि" उदयस्स वि पीयरस कुमारेणं ति । तओ तमायण्णिऊण भणियं राइणा-पुत्त ! किं मँह दुहियस्स अहियरं दुकवमुप्यासि ?, जाणामि पुत्त ! तुमं जणयवच्छलं तहा त्रि तुम्हारिसाण पीडा पीडेइ सयलं भुत्रणमंडलं, पुत्त ! तुम्हायत्तं मह रज्जं कोसो जीवियं च जहा महं तहा सयलपुहईए, ण हि येवपुण्णाणं तुम्हारिसा ग्णालंकार हेयवो सैंयलजियलोयरक्खणक्खमा अलंकरेन्ति वंसं, जम्म-परिग्गदं च करेंताणं निमित्तमेत्तं जगणि-जणया, तुह जम्मेणेत्र कयत्थो, free मह थे ओयणं ति, ता गच्छसु कुण आहाराश्याओ किरियाओ, तर निरुत्रद्दवे अहं पिपास्सामिणियं पयति । तओ पुणरुत्तेण णरवइवयणेण गओ पुरिससीहो गिययमावासं । कया पाणविती । पुणो तयणंतरमेव पट्टि राउलं । तात्र य जणणिपडिहारीए अम्गओ होऊण विण्णत्तं जहा -कुमार । परित्तायाहि परिसायाहि जीवंते चेत्र महाराए किं ववसियं देवीए ? । तओ सेंसंभमो उद्विओ कुमारी । दिट्ठा य जगणी परियणमाउच्छमाणा, तहा हि-पुत सारिए ! किं रुयसि ?, 'दूरं गया अहं संपति तुर्ह' ति किं णिरत्थयं वाहरसि पूसय ! १, किमणुगच्छसि भवणकलहंसिए !?, वच्छे बप्परिए ! ददं पालिया सि, हि चंदलेहे ! जीवियाओ वि दइया, "पुति ! अंतेउर दुवैारवालिया सि, ण कओ मंदउष्णाए सारसमिहुणगस्स विवाहो, ण दिडा पियंगू वियसमाणा, खमेज्जसु पायप्पहारं असोय !, मुसु मह मग्गं कुरंग ! जणणिवच्छले !, किं मं पज्जाउलं करेसि हरिगिए ! ?, किं मं पयाहिणीकरेसि घरमयूरिए ! ? ति । एवंपलाउलाए जगणीए सगासं गओ । भणियं च अणवरयगरुयदुक्खोहगलियबाहुप्पीलेणं कुमारेणं जहा - अम्ब ! तुमं १ बीलक्खा सू । २ णराहिवो जे । ३ णामा जे ४ कइ विजे ५ मिगया जे । ६ दुक्खं तां जे । ७ दिवसे जे । ८ मुच्छायं सू । ९ पुतो जे । १० होइ जे । ११ रयपुत्ते जे । १२ परिवारजणं जे । १३ अट्ठिऊण सू । १४ अवगूढो जे । १५ पुता जे । १६ °णि दवस्स वि जे । १७ महं जे। १८ अप्पायियर जे । १९ अम्हारिसाण जे । २० भवणा सू । २१ सयलरखमा जे । २२ ससंभंत । जे । २३ सहिए जे २७ पु ! जे २५ दुयारपालिया जे २६ एवंविहबहुपला ववाउ जे । Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३५ २६-२७ पुरिसीहवासुदेव-सुदंसगबलदेवाण चरियं । पि ममं मंदभायं परिच्चयसि ?। तओ पेच्छिऊण पुत्तं सविसेसमुक्कबोहाए भणियं-पुत्त ! न तए मह विग्यो कायचो, जओ उवरयम्मि तारिसे भत्तारे ण मं संफुसइ रायसिरी, ता कि मए मयसरिसाए जीवन्तीए ?, पावियं च सयलं मणुयभवफलं, जओ पत्तो तेलोक्कचूडामणिसरिसो भत्ता, बद्धो महादेविपट्टो, पीयं छीरं तुम्हारिसेहिं पुत्तेहिं ति । एवं भणन्ती णिवडिया पुत्तस्स चलगजुयले । “पुत्त ! ण तए कुलोचियमायारं कुणं तीर किंचि भगियव्यं ति। जाव य एस सुहरासी इह चेव चिट्ठइ ताव वरं अत्ताणं हुयासणे णिव्यवेमि । परलोयं गए पुण पइम्मि दुस्सहसंतावाणलपलीषियदेहाए किं करिही जलगो सुपज्जलिओ वि?" त्ति भणिऊण णिग्गया जणगी। तो णीसहंगो गओ पिउसमी । णट्टवेयणेण य किंकायअमूढेण दिट्ठो महासंतावतावियदेहो जणओ । तं तहाविह पेच्छिऊण मुक्को धरणीए चेव अप्या। एत्थंतरम्मि महाराएण जाणिऊग गरुयसोयभरियसरीर पुत्तं समीवम्मि ठविऊग भणियं-"पुत्त ! किमेवमप्पा सोयहोवहिम्मि पडन्तो उवेक्खिज्जति ?, तुम्हारिसा हि भुवणस्स आलम्वणं ति । किं भणामि ?, सयलवयणाणं अगोयरीभूओं तं सि । तहा वि 'कुलप्पदीवो सि' [त्ति समुज्जोइयभुषणरस य अपुक्खलं व, 'पुरिससीहो सि' [त्ति सइ गुरुविवेइणो गिंद व्व, 'तुह इमा पुहई' ति लक्खणलक्खियचक्कवहिपयरस पुणरुत्तं व, “गेण्हसु सिरिं' [ति सिरीए सयं गहियस्स विवरीयं, 'वोढव्वो रायभरो' ति भुवणयलुब्बूढभरस्स अजोगं व, 'परिरक्खियव्याओ पयाओ' त्ति दीहरभुयदंडग्गलरक्खियभुवणस्स पुणरुत्तं व, 'ण कायव्वं चावलं' ति पढमजोवण एव णिरुद्धसयलिंदियस्स णिरवकास व वाणी, 'उच्छेयणीया अरिणो' त्ति तुह पयावस्सेव सा चिंत" ति भणंतो परवई पंचत्तमुवगओ। तयणंतरं च मूरो वि णरवइसोएणेव अहोमुहो पल्हत्थो दाउं जलंजलिं व उवगओ समुद्दम्मि । रायाणुगमणपत्थियाए आयवसिरीए मुच्चंतो कमलवणसंडो "उच्छाइओ सोएण व तमणियरेणं भुवणयलं । तओ णाऊण लोयन्तरीभूयं पियरं पाययपुरिसो व मइया सद्देण ससामन्तो सपुरोहिओ ससचिवो संनेउरो पुरिसंसीहकुमरो रोइउमाढत्तो । पहायो य रयणी। कयं अग्गिसकाराइयं सयले चिय करणिज्नं । गहिओ महासोएण रायउत्तो। पेसियाओ सिग्घरंगमा-ऽऽगमसमत्थाओ उट्टर्जुयलीओ णियभाउणो समीवं ति । एवं च गच्छंतेसु "दिवसेसु, कहिज्जतेसु महापुरिसचरिएसु, गिदिज्जते पयतिविरसे संसारे, भाविज्जतीए अणिचयाए, गरहिज्जते विहिणिओए, दूसिज्जंतासु रायदेवयासु, मंदं मंदं सिढिलीहूए सोयप्पसरे, एत्यंतरम्मि समागओ बलदेवो सीकाऊण पचन्तणरवती । समागए य जेट्ठभाउए पुणण्णवीहूओ सोयप्पसरो। तहेव पवत्तो हाहारवो राउले सयलपुरे य, लोयस्स वयणेसु लिहियाणि व परिदेवियाणि, पहमदियहम्मि व ण दिज्जंति बालाणं पि थणया। एवं च सुइरं गिदिऊग विहिविलसियं, कयं मजणाइयं दोहिं वि जणेहि । कहियं णीसेसं जहावत्तं परोप्परं, चिटुंति सोयाउरा। एत्यंतरम्मि विण्णायरायमरणवुत्तंतेणं निसुम्भणरवइणा पडिवासुदेवेण पेसिओ दो। पडिहारजाणाविओ य पविट्ठो। दिवा दुवे वि बलएक्-वासुदेवा। पडिओ चलणकमलेसु । उवविहो य जहादिटे आसणे । पुच्छिओ य पुरिससीहेण णिसुम्भस्स पउत्ति। साहिया दूएण णीसेस त्ति । भणियं च दूएण-"उवरयं रायं सोऊण पेसिओ अहं महाराइणा तुम्ह समीवं, जहा-बाला तुम्भे मा परिहविजह त्ति केणइ, तष्णिमित्तं पेसिओ अहं ति । भणियं च महाराइणा जहा-आगच्छह मह समीवं, भुंजह जैहिच्छं मज्झ सिरिं, महत्तणकारेण य ण सक्केइ परिहवं कोइ काउंति । तयत्यमहं पेसिओ" ति । तमायष्णिऊण भणियं पुरिससीहेग-"सोहणं कयं जमिहागओ सि, वोढव्या चेव णिसुम्भेण अम्ह पउत्ती, किंतु एयं ण जुत्तमुत्तं जं 'तैणकारों' ति । एयं दुबवसियं तस्स केणावि आरोवियं हिययम्मि । किं सो ण याणइ अत्तणो सामत्थं अम्ह वा बलं ? ति, जेणे जंपति" ति । एवं सुणिऊण भणियं दृएणं-कुमार ! मा एवं जंपसु, १ चाहन्थेवाए जे । २ जीवमाणीए जे । ३ भणम्ण णि जे । ४ हुयासणम्मि जे । ५ महोयहिाम्म जे ! ६ मि! तुम सय जे । . 'ओ। तहा हि-कु जे । ८ गेण्ह सू । ९ चवलत्तं ति सू । १० उच्छाइयाए सो जे। ११ सीहो जे । १२ ग रय २। १३ लं उचिय क जे । १४ °यर समागम जे । १५ 'जुबलीओ जे । १६ दियहेसु जे । १. वसे का जे । १८ "दियहे व जे । १९ तुम्हे जे । २० केण वि सू । २१ जहन्छिय सू । २२ तणागारो सू । २३ केणइ जे। Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३६ चउपन्नमहापुरिसचरियं । महापुरिसो खु सो उत्तमबलसंपण्णो पयावकन्तणीसेसभुंवणमंडलो तुम्होवरि दयं काऊण एवं जंपर, अण्णहा कि ' कज्जं तुम्हारिसेहिं तस्स ? । एत्रमायण्णिऊण भगियं वासुदेवेण - "अरे दूय ! "किमेवमुम्मत्तो व वाहरसि १, ता किं तस्स अम्हे करुणापर्यं ? ति ण उण सो 'चैव अम्हाणं ? ति, ता तस्स विणासणकालो समुट्टिओ तेणं जंपर त्ति । ता किं बहुणा Gifter ?, एसो अहमुचलिओ तैस्स दप्पसाडणणिमित्तं, ण अण्णहा तस्स पोरुसावलेवो अवेइ । ण चैत्र महं सोयावेयावयस्स अण्णो उवाओ सांगवेयावगमे, ता गच्छ तुमं । एसो अहं तस्संतियं पत्तो" । त्ति भणिऊण विसज्जिओ दूओ गओ । हि भिगवण । तेणावि दिष्णं पयाणयं । इओ य पुरिससीह- सुदंसणेहिं सह मिलिओ । पयट्टमाओहणं ति । अवि य- विसहन्ति देन्ति पहरं, माणं वड्ढेन्ति, णेन्ति पडिवक्खं । भिंदन्ति गयघडाओ वीरधणा साहससहाया ॥ २ ॥ मेलन्ति सीहणायं कारियएकमेकपडित्रक्खा । अग्गक्खंधपत्रत्तणैणिज्जियणियसिण्णसप्पुरिसा ॥ ३ ॥ मुकणिरन्तरसरणियरविहयपडिवक्खलक्खियववत्था । तह जुज्झति समत्था जह कित्ती भमइ भुवणम्मि ॥ ४ ॥ इय गरुयसमर भरपसरणेकववसायपावियसयत्था । विहडंति केइ पार्श्वेति जयसिरिं लद्धसकारा ॥ ५ ॥ एवं च गरुए संगामध्पसरे वियम्भिए दरोहामियं णिएऊण णियबलं उट्ठऔ सई चेव णिसुम्भणराहिवो । पहरि ं पवतो परवले । तहा विहयविदेवियं रिउवलं जहा मोत्तूण लज्जं, अगणिऊण कलंकं, सिढिलिऊण पोरुसं, अवइथे सामिपसाए, लंघिऊण नियमज्जायं, वीसरिऊण कुलकर्म, मरणभीरुणो महाभ्यहित्यहियया भज्जिउं पयत्ता सुहडा । तयणन्तरं च गाऊ ओहामियं ईसीसि मंभीसन्तो गिययसेण्णं उच्छाहिय एकमेकवलं पहरिउं पयतो पुरिससीहो । तओ सुहा वि तं दद्दूणमवलंबिऊण पोरुसं, जाणिऊण अप्पाणयं, काऊण अत्रद्वंभं, कयरणुच्छाहा पलयाणलजालाणिहाओ व विडिया सत्तुसेण्णे । तओ तं दणं भणियं णिसुंभेण जहा- महासत्त ! किमणेणं णिरत्थपणं वाइरणं पत्तसरिसेणं णिस्सारणं पाययपुरिसवलेणं ? ति, तुह मह जएणं जओ, पराजएणं पराजभी त्ति, ता वल मह सम्मुर्हति । एवं भणतेण संघिओ सरो । तमायण्णिऊण भणियं पुरिससीहेणं - [? सोहणं] समालत्तं, जइ णिव्वहणं पि एरिसं चेत्र ता सुंदरं । ति भणतेण तेणावि अफालियं गंडीवं, संधिओ सरो। जुज्झिउमारद्धा परोप्परं । एत्थन्तरम्मि च्छिदं लहिणं छष्णो गुणो सह जीविएण त्रिय णिसुम्भचावस्स । छड्डियं तेण णिग्गुणं कलत्तं व चावं । गहियं खग्गरयणं । समुहं । तंपि अणवरयमुकसरधोरणीए खंडाखंडीकयं । तओ दढयरं रूसिऊण सुमरियं चक्करयणं । सरणाणन्तरमेव समारूढं दाहिणकरयले । घत्तियं तयाभिमुहं । तं च पयाहिणीकाऊण पुरिससीहं ठियं तस्सेव करयले । तेण वितकखणमेत्र की बावूरियहियएण मुक्कं णिसुम्भाभिमुहं । णिसुंभिओ णिसुंभो चक्करयणेगं ति । तओ वावाइऊण पडिवासुदेवं, ओयविऊण भरहद्धं, भुंजिऊण [? रज्जसिरिं], पुरिससीहो कालगओ । सुदंसणो वि पडिवज्जिऊण चारितं, खविण अहिं कम्मं सिद्धिमणुपत्तोति । ॥ इति महापुरिसचरिए पुरिससीह-सुदंसणाण चरियं समत्तं ।। २६-२७ ।। -:X:1 १ किं तस्स तुम्हेहि ? ति । एयमाय जे २ किमुम्मनो सू । ३ तस्म वि अम्हे जे । ४ चेय जे ५ तस्स उ पाणणि सू । ६ चेय जे । ७ 'जिज्जिणिया सेण (? स ) सप्पु जे । ८ जयसिरी जे । ९ चिद्दवि जे । १० भयभीया भ' जे । ११ एय जे । १२ परिसम्भतं जे । For Private Personal Use Only Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२८ मघवचक्कवट्टिचरियं] धम्मस्स य सन्तिस्स य अन्तरं तिष्णि सागरोवमाइं पायहीणपलिओवमहीणाई । एयम्मि अन्तरे चक्कवटिदुगं समुप्पणं । तस्स य जहक्कमं चरियं साहिप्पन्तं णिसामेह अत्थि जयपायडगुणा सावत्थी पुरवरि त्ति विक्खाया। तुंगमणिभवणसिहरोवरुद्धरविरहपहा रम्मा ॥१॥ परिवसइ तीए णिग्गयपयावणिज्जियसमस्थमहिवेढो । उन्बूढभुवणभारो मघवं णामेण गरनाहो ॥२॥ पणयासेसणराहिवमणिमउडणिहसमेसिणियपयवीढो । सुंदरतुलियकंदप्पदप्पदप्पुधुरमुरोहो ॥३॥ पणइकमलाण सरो, सज्जणकुसुयाण ससहरो रुइमं । रिवुनलणसलिलवाहो, मइमं सत्यत्वणिम्माओ ॥ ४ ॥ संढो त्ति परिहरिजइ परजुवइजणेण णिप्फलगुणेणं । बंधु ब्व आयरिज्जइ जो भिच्चयणेण तद्दियहं ॥ ५ ॥ विणयाऽऽवज्जियगुरुयणणिहित्तसीसत्तणेण जो वहइ । गवं, ण रज्जभावेण भुवणपरिघोलिरजसोहो ॥ ६॥ परिहलिओ दोसेहिं अवियासेहिं ति णीरसो काउं । कत्थइ अलद्धयामेण जो गुणोहेण आयरिओ ॥ ७ ॥ इय तेण गुणणिहाणेण पुहतिकण्णावयंससरिसेण । सा णयरी पालिज्जइ पालियणीसेस अणेण ।। ८ ॥ बायालधणसुयस्स पंचवरिसलक्खाउयस्स तस्स किं जॉयं ?-- एवं च विविहवररमणिसंगमुहियस्स णरवरिंदस्स । आउहसालाए दढं उप्पण्णं चक्कवररयणं ॥९॥ चक्काणुमग्गलग्गेण णरवरिदेण णिज्जियं भरहं । उप्पण्णा णव निहिणो चोईहरयणेहिं संजुत्ता ॥ १० ॥ चउसद्विसहस्साणं जुवईणं सो पइत्तणं कुणइ । वत्तीससहस्सा णरवतीण आणाए वटंति ।। ११ ॥ पंचेव पुब्बलक्खा आउं परिवालिऊण सो विहिणा । काँउं जिणउवइट धम्म सम्मत्तपरिसुद्धं ॥ १२ ॥ काऊण पवयणुच्छप्पणाइयं दाण-पूयणुज्जुत्तो। जिणबिंब-भवण-न्हाणाइएहि अण्णेहिं वि गुणेहिं ॥ १३ ॥ कालं काऊण तओ उववण्णो वरविमाणरमणिज्जे । कप्पे सणंकुमारे मुरिंदसामाजिक जाओ ॥ १४ ॥ ॥ इति महापुरिसचरिए मघवओ चरिये समत्तं ति ॥ २८ ॥ 'मसिणपय सजे। २णवारिवाहो जे । ३ परिहरिओ जो दोसेहि सावयासेहि णीस। ४ भुवणेण जे । ५ जाय! ति । चोइसर जे । ७ काऊण जिणपणीयं च जे । ८ 'बिबण्हवण-हा(?णा)गाई सू । ९ व परिसमत्तं २८ ॥ जे । १८ Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ २९ सणकुमारचक्कवट्टिचरियं ] Preferreat ससुरा- सुर-मणुयतिहुयणन्भहिओ । णामं सणकुमारो तस्स य वरियं णिसामेह ॥ १ ॥ अस्थि इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे हत्थिणाउरं नाम नगरं णाणाविहमणिभवणभित्तिप्पहोहामियंधपारं उत्तुंगपाय रोववेयं पायालोयरगंभीरफरिहोवसोहियं कमलिणीसंडमंडियदीहियासयरमणिज्जं । तम्मि य णयरे हियपडिसत्तू वीससेणो णाम णराहिवो । तस्स य महादेवी सहदेवी । ताणं च पुत्तो सणकुमारो सव्वंगावयवसुंदरत्तणेण उवहससुरा - सुररुवरिद्धी सयलकलापारओ । तस्स य मित्तो सूरसुओ कालिंदिणंदणो महिंदसीहो ति । तस्रु ग तेण सह विसयहम हवन्तस्स वच्चइ कालो । अण्णा विचित्तयाए कम्मपरिणामस्स, अवस्संभावित्तणओ तस्स भावस्स, णिग्गओ आसवाहणियाए सणकुमारो । वाहिऊण बहुविहे आसे सह महिंदसीहेणं, कीलिऊण य विचित्तकीलाहिं समारूढो एकम्मि पाहुडागए आसे । विवरीयसिंक्खे तम्मि य आरुहिऊण मुक्की आसो धाविडं वत्ती पंचमधाराए । तओ उज्जाणसिरं गंतूण संजमिया रज्जू जाव य सो विवरीयसिक्खत्तणओ सुट्ठयरं धाविंओ । पुणो वि दढयरं समायटिया रज्जू, तओ सो दढयरं धाविओ । एवं चणियन्तस्स सयलणरवइसमूहस्स सव्वमज्झयाराओ एगागी कयंतेंकरणेणेत्र तुरंगमेण अवहरिओ । कहं ? – एसो वच्चर, एस जाइ, एस गओ, एसो अदंसणमुवगओ । लग्गो अविण्णायवुत्तंतो वीससेणो य सपरियणो मग्गओ । गच्छइ य तुरयखुरुक्वग्रपयवीओ पोन्तो रवई । ताव य लयकालुच्छलिएणेव पवणेण उच्छलिओ रओ । तेण रुद्धा दिसिवहा, खलिओ दिद्विपसरो, समीकया धरणte froणुण्णयपरसा, भग्गा तुरयखुरपद्धई, समाउलीहूया. सामन्ता, विसण्णा मन्तिणो, वृष्णा मग्गोवएसया । एत्थंतरम्मि विष्णत्तो महिंदसीहेण णरवई - "देव ! अबहिओ विही एवंविहवइयरसामग्गीउप्पायणम्मि, अण्णहा कहिं कुमारो ?, कुओ वा एस एवंविहो आसो ?, कत्तो वा एयम्मि समारुहणं कुमारस्त ?, केण वा पओएणं अवहरणं कुमारस्स ? । तयणन्तरं च एवंविहपवणुत्थंभणसमुच्छलियरयणिहाएण भरगाणि पर्यााणि, ण णज्जर पुन्त्तराइओ दिसांविभागो । ता देव ! पडिकूले इमम्मि बम्मीओ त्रि मेरू, गोषयं पि समुद्दो, ऊसवो वि क्सणं, वसिमं पि रणं, घरं पि गोती, बंधुजो विवेरिओ, समं पि विसमं, ता कुणउ पसौयं मह देवो, "देउ देवो पयाणयं णियणयराभिम्नुहं ति । अहं पुण थेवबलसमेओ कुमारं लहिऊण समागमिस्सामि देव्वमत्रमण्णिऊणं ति, अवि र्य-: fares ara coat faहडण-संघडणकरणतल्लिच्छो । जा ण तुलिज्जइ साहसधणेहिं णिइसेक्कसारेहिं ॥ २ ॥ ता तुंगो मेरुगिरी, मयरहरो ताव होइ दुत्तारो । ता विसमा कज्जगई, जाव ण "धीरा पवज्जंति ॥ ३ ॥ काऊ पण जीयं तुलाए जे णिक्खिवंति अप्पाणं । ते साहन्ति सकज्जं, संकति देव्वो वि ताण फुडं ॥ ४ ॥ इय जे णिच्छियमइणो अवहत्थियसुहजसोहमोडीरा । विष्णायगुणविसेसा ताण सिरी देइ सणिज्झं " ॥ ५ ॥ एवंविहबहुपयारेहिं णियत्ताविऊण णरवर्ति पियबलसमेओ महिंदसीहो पैविट्ठो महाडई । साय वेसाहियउं जैइ सिय केणइ अलद्धमैज्झ, जुवइचरिउ जैइ सिय अइकुडिलमैग्ग, सालत्राहणत्थाणि जइ “सिय कइसयसेंकुल, महासैंरु जइ "सिय पोण्डरीयसमाउल, वरणयरु जड़ सिय दीहसाललिंकिय, बाहुबलिमुत्ति जइ “सिय १ गाथेय जे पुस्तके नास्ति । २ 'णीखंड सू । ३ सिक्खे आरुहिऊण तम्मि मुक्को सू । ४ पयतो जे । ५ तवयणे । ६ लग्गइ अ जे । ७ सुरक्खय' जे । ८ लग्गा जे । ९ अहिभो विहा ए जे । १० दिसाभागो सू । ११ यं, देउ सू । १२ देउ पया जे । १३ कुमारो ल सू । १४ वीरा जे । १५ पट्टो जे । १६ जइ सी के जे । १७ मज्झा जे । १८ जइ सी अइ जे । १९ भग्गा जे । २० सिया जे । २१ "संकुला जे । २२ सर जे २३ सिया जे । २४ लंकिया जे । २५ सिया जे For Private Personal Use Only Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९ सणंकुमारचक्रवट्टिचरियं । १३९ महासत्तोहिटिय, अहिंस जइ सिय बहुमय, जिणपवयणु जइ सिय बहुसावयाँहिटिय, जिणवाणि जइ सिय सम्वससाणुगय, कालिंदीजलप्पवाहु जइ सिय हरिबलमलियणाग[य]। एवंविहाए य अडवीए सणंकुमारण्णेसणपरस्स परिगलियं सेण्णं, एगागी संवुत्तो महिंदसीहो । पुणो वि साहससहाओ गिरिकंदरोयरेसुं महाणिगुंजेसु सीहकिसोरगुहासुं च अण्णेसिउं पयत्तो । कह?-- धावइ तहिं तर्हि चिय जत्तो जत्तो कहिंचि णिसुणेइ । सई अलक्खियं चिय गय-मय-हय-महिस-चमरीणं ॥ ६॥ जियसजलजलहरोरालिमत्तमायंगगज्जियं सोउं । 'आणवसु, "जिय' भणंतो धावइ भैयवन्जिओ सहसा ॥ ७ ॥ आयण्णिऊण गरुयं सीहस्सोरालिरुजियमसझं । तग्गयचित्तो धावइ एसो मह सामियणिणाओ ॥ ८॥ करिथोरकरायट्टियमोडियसाहोहसल्लइवणम्मि । पइसइ महिंदसीहो णरिंदसीहं विमग्गेन्तो ।। ९॥ मुहलमयूररवाहियगुरुसोउव्वरियधीरववसाओ। केसरिदरीमु मग्गति कुमरं भयवज्जिओ मइमं ॥ १० ॥ इय ९हुल्लइ रणम्मि तरुकडिल्लम्मि साहससहाओ । एक्को चिय दूरुज्झियभय-णिदा-खेय-गुरुवियणो ॥ ११ ॥ अवि यकस्स ण दलेइ हिययं मयरंदामोयरंजियदियंतो । सहयारमंजरीरयसणाहगंधुधुरो पवणो ? ॥ १२ ॥ णववियसियकुडयर्वेणोलिसरसकणयारिरंजियदियन्ता । अहिणवमहुमासागमदियहा भण कं ण मारेन्ति ? ॥१३॥ उव्वेल्लेइ समीरो खरखरकराहयाण णलिणीण । पंकोवरिदरलुलियाई थेवसलिलाई पत्ताई ॥ १४ ॥ खरपवणुधुयरयणिवहरंजियासामुहाण कलुसाण । को चुक्कइ जीवंतो उधुंधुलयाण दिवसाण ? ॥ १५ ॥ मुक्केकल्लपुडिंगयदरमलियकलम्बकेसरसणाहा । पवणंदोलणझल्लज्झलन्तघणमुक्करवमुहला ॥ १६ ॥ कस्स ण दलन्ति हिययं दियहा घोरम्मि पाउसारंभे? । दूरेण विरहविहुरा, साहीणपियस्स "वि जणस्स ॥ १७ ॥ सव्वस्स जणंति फुडं उत्कंठाकोमलाई हिययाई । पविरलजलजलहरजणियवरिसदियहा उ सरयम्मि ॥ १८ ॥ उन्वेवं जणइ मणे विरहीणं पिकसालिगंधडढो । पवणो सत्तच्छयगंधगम्भिणो णवर पसरंतो ॥ १९ ॥ को सहइ ताण पसरं जणिउकंठाण सिसिरदियहाण । जेहिं अणज्जेहिं कओ णलिणिविणासो तिभुवणम्मि ? ॥२०॥ काऊण मालईए मलणं पसरन्तसुरहिगंधाए । कुंदाण कया रिद्धी अमुणियगुण-दोससारेहिं ।। २१ ॥ उत्थम्भियहिमकणसिसिरपवणपसराण जणियकंपाण । बीहेइ ण को भण महियलम्मि हेमन्तदिवसाण ? ।। २२ ।। इय एरिसम्मि घोरम्मि उयुसमूहम्मि साहससहाओ । अडईए दुंदुल्लइ सणंकुमारं विमग्गंतो ॥ २३ ॥ एकं संवच्छरं जाँच परिहिंडियं महाडईए गुरुवराहाए दुस्सहसिंघुणिणायाए वियरियवग्धपोयाए गुलगुलेन्तगयसमूहाए जहिच्छपैरिसक्किरमयजूहाए दूरुज्झियमाणुससंचाराए वियरिय.मरिसत्याए चित्तयसमाउलाए चिण्णरुरुसहलाए दंडल्लियविरुयवग्गाए गंडयसमुत्तासियमहिसवंदाए चक्किउब्भमंतसावयगणाए संसाराणोरपाराए जमणयरिमीसणाए देवगतिविलाए त्ति। ___ तओ एवंविहमाहिंडन्तो महाडई एक्कम्मि दिवसे गओ थेवभूमिभागं णिल्लक्खो चेव दिसाओ पलोएन्तो चक्कमिडं पयत्तो । ताव य णिसुओ सारस-कलहंस-भारंादीणं कोलाहलो, आलुखिओ य सरसलिलसीयलेण मारुएण, अग्याइओ य कमलाण मासलो गंधो । तओ पयट्टो तयाभिमुहं । ऊससियं पिव हियएण, बला समागच्छति धरंतस्स वि आणंदवाहसलिलं लोयणेसु । तओ चिंतिउमाढत्तो-किमेयं ? ति, अहवा दिट्टो मए रयणीए चरिमजामम्मि सुमिणो तस्सावस्सं फलेण होयत्वं । ति चितंतो पयट्टो सरवराभिमुहं । ताव य णिसुओ गेयरवो, समायण्णिओ महुरो वेणुविवरणिग्गयो १-४ हिट्ठिया जे । २ सिया बहुमया जे। ३-५-७ सिया जे। ६ णुगया जे । ८ णागा जे । ९ हाए अईए स्। १० कह ? ति-जे। ११ जिउ जे। १२ भवन्तो सू । १३ सयवसू । ११ सामिणिष्णाओ जे । १५ वणालिसरसकणियार जे। १६ व जे। १७ जाव हिं" जे । १८ सीइनिनाए जे । १९ परिसंकिय" सू। २० 'चमरिपुच्छाए जे । २१ दिन्नहरुसहाउलाए जे । २२ उन्भभ(त)सा" सू । २३ 'गुठिलाए स । २४ आइकोला जे । २५ आलुचिओ जे । २६ सुमिणमो जे । २७ चितयंतो जे । Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४० चउप्पन्नमहापुरिसचरियं । सवणादयारी सरो । तओ हेरिसपप्फुल्ललोयणो जात्र गच्छति थेवं भूमिभागं ताव चलवलय- णेउररबाउलवररमणिमज्झयारम्मि संठियं पेच्छति सणकुमारं । जात्र य विम्हउप्फुल्ललोयणो असंभावणिज्जासंकापरिगओ चिट्ठति ताव य पढियं बंदिणा सणकुमारस्स णामं जय वीससेणणहयलमयंक ! कुरुभवणलग्गणक्खम्भ ! । जय तिहुयणणाह ! सणकुमार 1 जय लद्धमाहप्प ! ||२४|| जय खयरिंदविलासिणिथणवठुच्छंगसंगदुल्ललिय ! | जय गिज्जियविज्जाहर ! पावियवेयड्ढपहुभाव ! ।। २५ ।। एक्केण विजेण जए जेऊणं सुरसमक्खमसियक्खं । णीओ दियंतरेसुं कित्तीए समं गुरुपयावो ॥ २६ ॥ दप्पं दलिऊण पुणो असणीवेगस्स गुरुपयावस्स । वेयड्ढे पुण विज्जाहरिंदभावो परिहविओ ॥ २७ ॥ अवि य ण तहा नियमाहप्पेण दूरणिव्वडियनिम्मलगुणा वि । जह सम्माणेण तुहं गुणिणो जयपायडा होन्ति ॥ २८ ॥ एके असिम्मि झीणे अण्णे उण जलहि-वणकयावासा । इयरे तुह पउरदयस्स गाह ! सरणं गया रिउणो ॥ २९ ॥ विवयवेरिवग्गस्स तुज्झ णरणाह ! खग्गवसिरीए । चवलत्तणवयणिज्जं सिरीए एहि समुप्फुसियं ॥ ३० ॥ लहिऊण तुमाहिन्तो पणतीहिं धणं णिकाममायरिओ । तेण ण तुहं महायस ! गव्वेण मओ समल्लीणो ॥ ३१ ॥ जे केइ गुणा भुवणम्मि णाह !, रिद्धीओ जाओ, जा कित्ती । रूयं कलाओ लडहत्तणं च तइ णवरमल्लीणं ||३२|| तर दिवे जयभूसण ! 'ण संति तुम्हारिस' त्ति पडिहार | साहेइ संभवं सुवुरिसाण तुह दंसणं चैव ॥ ३३ ॥ दिट्ठे तुमम्मि परितुलियरूत्रकंदप्पल माहप्पे । चत्तं रईए यिदइयगारवं तिहुयणमणग्धं ॥ ३४ ॥ इय तिहुयणचूडामणिणरिंद-विज्जाहरिंदणयचलण ! | कुरुकुलणहयलभूषण ! सणकुमारीसर ! णमो ते ||३५|| तओ 'सर्णकुमारो' त्ति एवं कयणिच्छओ महिंदसीहो पमोयावूरियसरीरो अउव्वं रसंतरं अणुहवन्तो गओ सर्णकुमारदंसणवहं । दूराओ चेत्र सणकुमारेण परियाणिऊण अद्वि । पायवडणुओ य अवऊढो सबहुमाणं । दुवे विणा त्रिम्हयपमोयावृरियसरीरा उवविट्ठा दिष्णासणेसु । विज्जाहरिंदलोओ य सवियको उवसंतगेयाइकलयलो पासेसु अल्लीणो । तयणंतरं च पुंसिऊण आणंदजलभरियलोयणाणि भणियं मणकुमारेण कहं तुमं एत्थ समागओ ?, ओवा गागी ?, कहं वा अहं तुमए एत्थ परियाणिओ ?, कहं वा महाराओ मह विओयम्मि पाणे संवारेइ ?, कहं वा अंब ? त्ति, कहं वा तुमं एगागी चेत्र पेसिओ ? ति । एवं पुच्छिए सव्वं जहावत्तं साहियं महिंदसीहेणं । तओ मज्जाविओ वरविलासिणीहिं महिंदसीहो । कयमुचियकरणिज्जं भोयणाइयं । पुणो भणियं महिंदसीहेणं-देव ! जइ मज्झोवरि सपसाओ कुमारो ता साहेउ मज्झं 'कहं तुमं तेण तुरंगमेण अवहरिओ ?, कहिं वा गओ ?, किं वा अम्ह विओए संपत्तं ?, कत्तो वा तुह एरिसा रिद्धि ?' त्ति । तओ एयमायण्णिऊण सणकुमारो चिंतिउमादत्तो, कहें ? - 'ण हु किंपि अकहणिज्जं मित्ते सम्भावणेहमइयम्म । भिण्णे देहमेतेण जस्स चित्तेण ण वि भेओ ॥ ३६ ॥ तह विण जुज्जइ णियचरियसाहणं सुद्धवंसजायाण । णिस्सारा होति गुणा साहिप्पन्ता सई वेव ॥ ३७ ॥ ता एत्थ एवं पत्तयालं बलमतीए कहावेमि' । त्ति चिंतिऊण भणिया बउलमती जहा -पिए ! महिंदसीहस्स " णिस्सेसं मह वइयरं विज्जासामत्येणं विष्णायसन्भावा साहस, महं पुण णिद्दाए घुम्मन्ति लोयणाणि । [त्ति ] भणिऊण fraणो रहरम | बउलमती उण साहिउमादत्ता गियदइयचरियं ति १ हरि जे । २ °मियंक ! जे । ३ रूव जे । ४ जइभू जे । ५ तुम्हारिसं ति सू । ६ महग्घ जे । ७ फुसिऊण जे । ८ कह सू । ९ निस्सारो होति गुणो साहिप्पतो सई जे । १० णीसेसं जे । For Private Personal Use Only Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९ सणंकुमारचकवहिचरियं । १४१ "अत्यि तया तुम्ह णियन्ताण चेव अस्सरयणेण अवहरिओ कुमारो। पवेसिओ य तेग घोरारवदारुणं महाडइं। बीयदि यहे वि तहेव धावन्तस्स आसस्स जाओ मैज्झण्हसमओ । खुहा-पिवासाउलेण य आसेग जिल्लालिया जीहा । उद्धढिओ चेव सासाऊरियगलो थक्को, उत्तरिओ य कुमारो, छोडिया पट्टाढा, ओयारियं पल्लाणं, जाव घुम्मिऊण णिवडिओ आसो, विमुक्को 'अकज्जकारि' ति कलिऊण व पाणेहिं । तं चैकपेसणं मोत्तण गओ कुमारो। उययण्णेसणपरायणो य हिंडिउमाढत्तो। ण कहिं पि आसाइयमुययं । तओ दीहद्धाणयाए सुकुमारयाए य मज्झण्डकालत्तणओ य दवदड्ढयाए य रण्णस्स अतीवहल्लोहलीहूओ। तओ य दूरदेसम्मि दट्ट्ण सत्तच्छयं पहाविओ तयाभिमुहो। पत्तो य तस्स छायाए, उबविट्ठो, पडिओ य लोयणेजुयलं भंजिऊण धरणीए। एत्यंतरम्मि तप्पुण्णाणुहावेण तण्णिवासिणा जक्खेण आणिऊण सिसिरं सलिलं सित्तो सव्वंगेसु, आसासिओ। लद्धचेयणेण य पीयं सलिलं । पुच्छिओ य-को तुमं?, कत्तो वा एयमाणियं सलिलं ? ति । तेण भणियं-अहं जक्खो एत्थ णिवासी, सलिलं च माणससरवराओ मए तुह णिमित्तमाणियं । तओ कुमारेण भणियं-एस मह संतावो परं माणससरमजणेण अवगच्छइ त्ति । तं सोऊण भणियं जक्खेण-अहं संपाडेमि भवओ मणोरहपूरणं । ति भणिऊण काऊण करयलसंपुडे णीओ माणससरं। मजिओ विहिणा । तत्थ य पुबवेरिणा असियक्खेण सह जुद्धं संवुत्तं । वसीकओ य सो दुट्ठरक्खसो त्ति। तओ जिणिऊण रक्खसं पच्छिमदिसागयम्मि दिवसयरे उच्चलिओ सरवराओ अजउत्तो। गओ य थेवं भूमिभागं । दिवाओ य तत्थ गंदणवणमज्झगयाओ मणोरमाओ अट्ठ दिसाकुमारीओ व दिव्याओ इत्थियाओ। पलोइओ ताहिं सिणिद्धाए दिट्ठीए अजउत्तो। तेणावि पुण चिंतियं-' काओ पुण इमीओ ? ' त्ति पुच्छामि उवसप्पिऊणं । ति चिंतिऊण गओ ताण समीवं । पुच्छियं महुरवाणीए एक कैण्णयमुदिसिऊग-काओ पुण तुम्हे ?, किं णिमित्तमिमं मुण्णमरणमलंकरियं तुम्हेहिं ? । ताहि भणियं-महाभाग ! इओ णातिदूरम्मि अम्ह पुरी, ता तुमं पि तत्थेव वीसमसु । त्ति भणिऊण पयट्टाविओ अजउत्तो । अत्यमिओ य भुवणपदीवो दिवसयरो। पत्तो य णयरिं । णयाविओ ताहिं कंचुइणा रायभवणं । दिट्ठो य रोयणा, अब्भुटिओ य, कयमुचियकरणिज । भणिओ य तेण जहा-महाभाग ! मह इमीओ अट्ठ कण्णगाओ, एएसिं च तुमं चेव जोगो त्ति, परिणयसु इमीओ। अजउत्तेणावि तह ' त्ति पडिवज्जिऊण सव्वमणुचिट्ठियं । तओ वत्तो विवाहो । बद्धं कंकणं। सुत्तो य रइभवणम्मि ताहिं सद्धिं वरपल्लंके जाव णिदाविरमम्मि भूमीए पेच्छइ अप्पाणयं । चिंतियं च "णेणकिमेयं ? ति । पेच्छइ य करे कंकणं । तओ अविसण्णमणो गंतुं पयट्टो। दिटुं च 'रण्णमज्झम्मि दिव्यं भवणं । पुणो तेण चिंतियं-इमं पि इंदयालप्पायं भविस्सइ त्ति । गओ य तयासण्णे इत्थीए करुणसरेणं रुयंतीए सई णिसामेइ । पविट्ठो भवणं गयभओ। दिट्ठा य सत्तमभूमीए दिव्या कण्णया करुणसरेण रुयन्ती, भणन्ती य 'कउरवकुलणहयलमयलंछण ! सणंकुमार ! अण्णजम्मम्मि वि महं तुमं चेव णाहो होजसु । त्ति भणंती पुणो वि रोविउमारद्धा। णियणामासंकिरण पुच्छिया अज्जउत्तेण-किं तुम तस्स सणंकुमारस्स होहि जेण तस्स तए सरणं पडिवणं ? । तीए भणियं" मज्झं सो भत्ता मणोरहमेत्तेणं ति । जओ अहं अम्मा-पितीहि तस्स पुव्वं उदयदाणेण दिण्णा । ण य बत्तो विवाहो त्ति। ताव य अहमेगेणं विजाहरकुमारगेण कुट्टिमतलाओ इहं आणीया। गओ य सो इमम्मि विजाविउबियम्मि धवलहरे मं मोत्तूणं कहिं पि"। जाव एवं जंपइ सा कण्णया ताव य तेण विजाहराहमेणं आगंतूण उक्खित्तो गयणमंडलं अजउत्तो । तओ सा हाहारवं कुणमाणी मुच्छापराहीणा णिवडिया धरणिवहे । ताव य मुट्ठिप्पहारेण वावाइऊण तं दुट्ठविजाहरं समागओ अक्खयसरीरो तीए समीवं अज्जउत्तो । समासासिया सा, विवाहिया य । १ घोरावदा जे । २ मग्झहो । खु जे । ३ भुक्कपेसणं जे । ४ वकालोहली सू । ५ गजुय सू । ६ पुरिछओ तेण-को सू। ७ मणोरहं । ति जे । ८ कण्णमु सू । ९ मलंकय सू। १० इओ य णाजे । ११ राइणा जे । १२ परिणसु जे सू। १३ "म्मि पर जे । १४ तेण जे । १५ रण्णमझे जे । १६ णं । तो तेण सू । Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४२ चउप्पन्नमहापुरिसचरियं । - थेववेलाए य समागया तस्स भइणी । वावाइयं च दद्रुण भाउयं कोवमुक्गया। पुणो वि सुमरियनेमित्तियघयणा अजउत्तं विवाहणिमित्तमुवट्ठिया । सा वि तयाणुमतीए तहेव विवाहिया। जाव थेववेलाए चंदवेग-भाणुवेगेहिं पुत्तेहिं सह पेसिओ रहवरो सणाहो य । भणियं तेहिं जहा-देव ! असणिवेगो विजाबलेण जाणियपुत्तमरणवुतन्तो तुम्होवरि समाच्छति, तेण अम्हे रहो य पेसिया, अम्ह पिया 'वि तुम्हें चलणसेवाणिमित्तमेस संपत्त एव त्ति । तयणंतरं च समागया चंदवेग-भाणुवेगा। अजउत्तसहायणिमित्तं संज्झावलीए दिण्णा पण्णत्ती विज्जा । तओ अज्जउत्तेण असणिवेगं जेऊण समद्धासियं वेयड्ढरजं । तओ चंदवेगकंचुइणा साहि ओ असियक्षाव्यवेरसंबंधो, जहाँ 'तए अण्णभवम्मि तस्स भज्जा अवहरिया। सो य तस्सोएण उम्मत्तत्तमणुभविऊण विचित्तयाए कम्मरियागस्स संसारे भमन्तो रक्खसेसु उववण्णी । तुमं च सरवरागओ अणेण उचलद्धो । तओ पराजिओ देवेण दुटुरक्खसो ति । एयं तुम्ह वेरं' । एयं च अम्ह णेमित्तिएण साहियं जहा-तुम्ह कण्णयाणं सो भत्तारो भविस्सति जो असियक्खं जुद्धे पराजिणिस्सइ । तयत्थं च अम्हेहिं पडिजागरिओ उवलद्धो य । विवाहियाओ य अट्ठ जणीओ रणमज्झम्मि, संपयं अम्ह सामिणो चंदवेगस्स सयं धूयाणं तं पि विवाहेउ देवो । त्ति भणिए पडिवण्णं अज्जउत्तेण, विवाहियाओ य । पसाहिऊण वेयड्ढे, काऊण जिणाययणेसु अट्ठाहियामहिमं, इहई कीलाणिमित्तं समागओ । जाव तुमं मिलिओ त्ति । ऐयं तुह मित्तस्स उद्देसेण चरियं" ति। एत्थंतरम्मि उढिओ सुहपसुत्तो रइहराओ सणंकुमारो । गया य महया चडयरेण वेयड्ढं । विष्णत्तो य अवसरं लहिऊण महिंदसीहेणं जहा कुमार ! दुक्खेण तुह जणणि-जणया कालं गति, ता तदसणेणं कीरउ पसाओ अम्हारिसजणस्स । ति विण्णत्ताणतरमेव गओ महया सम्मद्देणं हथिणारं । आणंदिया जणणि-जणया, णायरजणो य । उप्पप्याणि य चक्काइयाणि चोदस महारयणाणि । ओयवियं भरहं । उप्पण्णा णव णिहिणो। जाओ य णिग्गयपयाको चकवट्टि त्ति। ___ अण्णया य सोहम्मवडेंसए ठिओ सको देवराया इंदसामाणियपमुहाणं देवाणं पुरओ रूवपसंसं सणंकुमारस्स करिउमाढत्तो । कहं ? ति इच्छावसेण जायइ देवाणं जं मणीहरं रूबं । तं तस्स विणा तीए जायं पुण्णाणुहावेणं ॥ ३८॥ णिज्जियससुरा-ऽसुरतिहुयणस्स लहुईकओवमाणस्स । अणुहरइ दाहिणद्धं तस्स फुडं वामभागस्स ॥ ३९ ॥ णिम्माणकम्मणिम्मियसुरइयसंथाणसण्णिवेसादी । तस्सऽग्यंति जहंगाई तह अणंगस्स कह भणिमो ? ॥ ४० ॥ रूवं णिज्जियससुरा-सुरिंदमाहप्पमुज्झियवियारं । चरियमसेसगुणीणं गुणेण पारंगमं जायं ॥ ४१ ॥ इय सुणिऊण पसंसं सुरिंदविहियं तया णरिंदस्स । दोणि य सुरा असूयाए आगया णरवइसगासं ॥ ४२ ॥ तओ समागया दोण्णि सुरा णरिंदभवणे पडिहारभूमिदेसं । भणिओ य"तेहिं पडिहारो जहा-महासत्त ! जाणा वेहि महारायस्स जहा दोन्नि बम्भगा दूरद्धाणकिलन्ता तुह दंसणमेत्तत्थिणो "दारे चिटुंति, जइ भणह ता पविसंतु, अह णत्थि अवसरो ता बच्चामो सदेसं' ति । तओ एयमायण्णिऊण पडिहारेणावि विणयपुन्वं अमंगियस्स गरवइणो विष्णत्तं । तओ महाराइणा भणियं जहा-अहं अड्डए वायामभूमीए "ठिओ, तहा वि जइ उत्तावल ति ता पक्सिह । ति भणिए णरवहणा पेसिया पडिहारेणं । पविट्ठा णरवइसमीवे दाऊण जहाजोम्गमासीसं उवविट्ठा दिण्णासणेसु । पलोइयं १ भणिओ जे । २ य सू। ३ 'हा-एयस्स अण्ण सू । ४ परिणामस्स जे । ५ एवं सूः । ६ जहा-दुक्खें सू । ७ तहसणे की सू । ८ स्वं जे । ९ वेसाई जे । १० गुणाणुपाजे । ११ तेसि जे । १२ दोहि सं। १३ बारे जे । १४ विमो स। For Private & Personal use only Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९ सणकुमारचक्रवट्टिचरियं । १४३ चिम्हाउप्फुल्ल लोयणेहिं परोप्परं वयणकमलं । विम्हिया य अउव्वरूवालोयणेणं । तयणंतरं च पसण्णवयणकमलेण भणियं परवइणा जहा-पत्थेह जेणऽत्थिणो, जेण संपाडेमि तुम्ह समीहियं ति । एयं सोऊण भणियं बंभणेहिं जप-महाराय ! ण हु अम्हे केणइ अस्थिणो, किंतु तुह रूवालोयणकोउहल्लेणं समागया, ता पलोइयं विणिज्जियतेलोकरूवमाहप्पविभमं रूवं, जायं णयणाण सफलत्तणं, अणुहूयं संसारणिवासस्स फलं, ता गमिस्सामो । तओ तमायणि ऊण भणियं णरिदेण जहा-थेववेलाए समागंतूण दट्टयो अहं तुम्हेहिं, वचह संपयं ति । तेहिं पि पडिवज्जिऊण तहा कयं, णिग्गया रायभवणाओ। पुणो राइणो भुत्तुष्ट्रियस्स सव्यालंकारविभूसियस्स अत्थाइयामंडवगयस्स उभयपास ट्ठियवारविलासिणिकर गहियचामरुक्खेवविजिज्जमाणस्स पडिहारजाणाविया पविट्ठा रायभवणं । उवविद्या दिण्णेसु आसणविसेसेसु । आलत्ता महाराइणा। ते ये पुणो वि परोप्परमुहमवलोइऊण ईसीसिमिलाणमुहकमला अहोमुहा ठिया । पुणो भणियं राइणा-किं तुम्हे अणिमिसच्छमवलोइऊण मह रूवं अवरोप्परं च जोइऊण अहोमुहा ठिया ? । तेहिं भणियं जहा-"महासत्त ! अम्हे ताव देवा, तुज्झ रूवं सुरिंदेण अत्थाइयामज्झगएण पसंसियं, तओ तव्ययणमसदहंता इह समागय त्ति । पलोइयं च तुज्झ रूवमम्हेहि, जाव ण सुरिंदेण तुह रूवं संपुण्णं वणियं ति । ण केवलं सुरिंदेण, अण्णेणावि ण वण्णिउं तीरइ त्ति । किंतु असारो संसारो, खणरमणिज्ज सयलं संसारविलसियं, जओ जा तुह रूवसंपया तम्मि अवसरे अम्हेहि दिट्ठा तीए सयभागो वि ण संपयं ति । अवि य लायण्ण-रूव-जोव्वण-सरीर-संघयण-कन्ति-सोहाओ । जीवाण जीवियं तह बलं च पतिसमयमोसरइ ॥४३॥ जा तुंह देहच्छाया णिज्जियसुर-मणुय ! तम्मि समयम्मि । पेच्छंताण खणेणं सा एण्हिं दूरमंतरिया ॥ ४४ ॥ खणपरिणामसहावे लायण्णे जोव्वणे य रूवे य । अणुबंधकारणं किं पि णस्थि थेवं पि कुसलाणं" ॥ ४५ ॥ इय सोऊण जहस्थं वयणं देवाण जायसंवेओ। वियलियमोहतमोहो णरणाहो तत्थिमं भणइ ॥ ४६॥ "इच्छामो अणुसद्धिं सुरवर ! परकज्जसज्जववसाय ! । रूवाहिमाणगहणिग्गहो उ संबोहिओ तुमए । ४७ ।। पयतीए णिग्गुणो च्चिय देहो देहीण णत्थि संदेहो । भरिओ मुत्त-पुरीसाइयस्से मेज्झस्स कलुसस्स ॥ ४८। वस-मंस-रुहिर- फोफस-कलमलभरियस्स दुरहिगंधस्स । अविवेइणो इमस्स वि मंडण-परिकम्मणक्खणिया ॥४९॥ उप्पत्तिकारणं उणें इमस्स देहस्स जं जयपसिद्धं । तं चिंतियं पि विउसाण भायणं होइ लज्जाए ॥ ५० ॥ अणवरयजणणिभोयणवियारसंवड्ढियस्सै देहस्स । मेज्झस्स सुइत्तणकारणेण तम्मन्ति बालजणा ॥५१॥ असुइणिहाणे देहे सव्वासुइसंगमेक्कणिव्वडिए। चिंतिजन्तं पि दढं सुइत्तणं तस्स कह होउ ? ॥ ५२ ।। परिसीलणीयरुइरे रोग-जरा-मरणपीडिए णिचं । खणविसरारुसहावे देहे कह कीरउ थिरासा ? ॥ ५३॥ इय जह जह चिंतिज्जइ देहस्स थिरत्तणं सुइत्तं च । तह तह विहडइ सव्वं पवणुच्छित्तं व सरयभं" ॥ ५४॥ एवं च सविसेसदेववयणजायसंवेगो पवसितदेवाभिणंदिओ, परम्मुहो विसयसुहाणं, विरत्तो य रायलच्छीए, णिदइ चक्कचट्टित्तणं, ण बहुमण्णेइ णव णिहिणो, 'पावकम्मायाणं' ति दुगुंछइ य चोद्दस महारयणाणि, उवरोहमेत्तकयाहारपरिग्गहो तहाविहधम्मायरियमवेक्खमाणो चिहिउँ पयत्तो । १ कोऊहलेणं जे । २ 'तुन्मेहि जे। ३ अस्थाहिया जे। ४ करधरिय जे । ५ वि जे । ६ तुम्मे जे। ७ तुह जे। ८९.१. तुम्ह स । ११ स्स मज्झम्मि क जे । १२ फोफसकलिम सू । १३ पुण जे। १४ "स्स मज्झस्स । देहस्स सुसू । Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४४ चउप्पन्नमहापुरिसचरियं । एत्यंतरम्मि समागओ विहरमाणो चोदसपुब्बी अणेयसमणपरिवारिओ विजयसेणायरिओ। आवासिओ बाहिरिए । लद्धा पउत्ती। णिग्गओ पायचारी राया वंदणणिमित्तं । वंदिओ य भगवं भत्तिभरोणयसिरेणं । धम्मलाहिओ गुरूहि । उवविट्ठो चलणन्तिए । पत्थुया भगवया धम्मकहा। वणिज्जइ संसारासारत्तणं, गिदिज्जति भोया, साहिज्जति अथिरत्तं देहस्स। तओ लद्धावयासेण गरुयसंवेगावूरिज्ज[माण]माणसेण भणियं सणंकुमारेणं-भयवं ! एवमेयं जहा तुम्हेहिं साहियं, एरिसो चेत्र एस संसारो, अवसागविरसा भोया, चवला इंदियगई, दारुणो विसयपसंगो, अणुसमयं विसरणसीलं सरीरं, एगन्तदुप्परियल्ला पावरिणतीहेउया रायसिरी, ता करेन्तु मे अणुग्गहं गुरू, इच्छामि तुम्हेहिं निजामगेहिं संसारमुत्तरिउं ति, देंतु मे णीसेसपावपचयवज्जासणि पव्वज ति । तओ गुरूहिं बहुं आसासिऊण पन्चाविओ। विहरिउमाढत्तो। सिक्खियाणि य णीसेसाणि अंगाणि । गहियत्थो एकल्लविहारित्तणं पडिवण्णो। अण्णया य विहरमाणस्स पुन्चकम्मोदएण जुगवं रोगायंका समुन्भूया, तं जहा-सीसवेयणा, कण्णमूलं, लोयणाणं कोवो, दन्ते घुणन्तओ, सिरोहगए गंडमाला, वच्छत्थले तोडो, बाहुम्मि अबबाहुयं, हत्थेसु कंपो, पोट्टे जलोयरं, पट्ठीए मुलं, पाउम्मि अरिसापीडा, अण्णत्थ काइयानिरोहसंतावो, ऊरुसु घट्टोरुयत्तं, जंघामु रंधणी, चलणे रप्फओ, सबसेरीरे य कुट्ठरोगो, बलक्खओ य । एवं च सबरोगेहिं पीडिओ सम्मं अहियासेमाणो विहरइ । ताव य आगंतूणं सोहम्माहिवइणा वंदिऊण भणिओ-भगवं ! अहं ते अञ्चन्तपीडाकारिणो रोगे अवणेमि । तओ ईसिं विहसिऊण भणियं भगवयाकिमचन्तेणमवणेसि उयाहु इहभवे ? । सोहम्माहिवइणा भणियं-अचंतविणासणं रोगाणमसेसकम्मक्खएण संभवइ, अहं पुण इत्तिरियकालमवणेमि । तओ तमायण्णिऊण भगवया गहिया खेलोसही। तीए य उबटिऊण वामहत्थतज्जणी जाव मुण्णे(सुवण्ण)वण्णा पुराणरूवाओ वि अहि[य]यरी संवुत्ता। भणियं च भगवया-भो महासत्त ! पुचकयकम्मदोसेण वाहिणो समुन्भवंति, तेसिं च कम्माणमुइण्णाणं सम्मं अहियासणाए खओ होइ, ण देवसत्तिसमणेण, ता जाई पुरा सई 'चेव उवज्जियाई कम्माई मिच्छत्ता-विरइ-पमाय-जोगेहिं पाणिणं विविटरेयेणुप्पायणपओएहिं ताई सई "चेव वेइयवाई, ण अण्णहा मोक्खो, मोक्खत्थिणो य अम्हे ति, ता कयं जं तए करणिज्ज, रोगोसहं तु मए पत्थुयमेव, ण अण्णहा . अचंतिओ रोगोवसमो होइ । त्ति भणिओ वंदिऊण य भयवंतं गओ सत्थामं सको त्ति। चिंतियं च भगवया रे जीव ! तैई सई चिय रइया दुक्खाण एस रिंछोली । अमुणतेणाणत्यं धण-जोव्वण-जाइमत्तेणं ॥ ५५ ॥ परलोयणिप्पिवासा तं तं कुव्यंति मोहिया जीवा । णर-णरय-तिरियभावे जं जं अहियत्तणे पडइ ।। ५६ ॥ ण हु होइ कह विणासो रे जीव ! समज्जियाण कम्माणं । ता सहसु जं समावडइ दुक्खजायं अणुबिग्गो ॥५७॥ सव्वस्स वि एस गई जं कयमण्णस्स रागवसरणं । तं परिणमइ सई चिय पुलज्जियकम्मदोसेणं ॥ ५८ ॥ अण्णो तुमं सरीराओ णीरुओ अक्खओ अमुत्तो य । रोगहरं पुण देहो रे जिय ! मा खिज्जसु तयत्यं ।। ५९ ॥ रोगणिमित्तं पावं, पावणिमित्तं तु असुभया जोगा। अण्णाणमोहियमती ताण णिमित्तं तुमं चेव ।। ६० ॥ कम्मक्खएण मोक्खो, तस्स खओ अणुहवेण तवसा वा । उभयं पि संपति महं गुणो वि दोसो त्ति अबुहाण ॥६१॥ पुणरवि तए चिय इमं खवियव्वं जं पुरा समायरियं । सबसेण वरं खवियं बहुणिजरमप्पदुक्खं पि ॥ ६२ ॥ इय उइयसन्चरोगो वि मुणिवरो सहइ णिज्जरापेही। म्मं कम्माण गैती भावेन्तो तह य संसारं ॥ ६३॥ १ परिणहेया राजे । २ घुण्णेट्टओ जे। ३ 'निरोहो, ऊस। ४ थद्धो जे। ५ सरीरो जे। ६ ते पीडाकारिण रोय अवजे। • 'पसवणेण सू । ८-१० चेय जे । ९ वेयणुप्पाएहि जे । ११ तियरोगों जे । १२ तति जे । १३ कह व जे । १४ सव्वेसु [वि] एस सू। १५ ततत्थं सू । १६ गई जे। Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९ सणकुमारचक्कवहिचरियं । १४५ एचमणुसासिऊणमप्पाणं सम्मं भावणाभाविओ, अहियासेन्तो रोगपरीसहं, भावेन्तो जिणवयणं विहरमाणो समद्धासिओ आउयसेसयाए, परिजाणिऊण य थेवावसेसमाउयं, सम्मं संलिहिऊणमप्पाणं, पाओवगमविहिणा चइऊणमाउयं, समुप्पण्णो सणंकुमारे कप्पे सत्तसागरोवमाउ ति ॥ इति महापुरिसचरिए सणंकुमारचकवहिचरिय सम्मतं ॥ २९ ॥ १ समग्मासिमो जे । २ . गमणविजे३ पुरुषच सू । ४ य परिसमत्तं ॥ अन्याप्रम्-१..॥ Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ३०-३१ संतिसामितित्थयर-चक्कवट्टिचरियं ] धम्मतित्थयराओ तिहिं सागरोवमेहिं पउणपलिओवमूणेहिं संती तित्थयरो चक्कवट्टी य समुप्पण्णो । केहं ?गुणिणो सुकुलसमुब्भवपरकजसमुजया महासत्ता। ते केइ जए जायंति जेहिं भुवणं अलंकरियं ॥१॥ अत्थि इहेव जंबुद्दीवे दीवे वेयड्ढपव्ययवरे उत्तराए सेढीए रहणेउरचक्कवालपुरं णाम णयरं । तत्थ य राया अमिततेओ परिवसइ । तस्स य सुतारा णाम भगिणी । सा य पोयणाहिवइणो सिरिविजयस्स दिण्णा । अण्णया य अमियतेओ पोयणपुरं सिरिविजय-सुतारादंसगत्थं गओ। पेच्छइ य पमुइयं ऊसियधयवडायं सव्वं पि पुरं, विसेसेण राउलं ति । तओ विम्हउप्फुल्ललोयणो ओइण्णो गयणयलाओ रायभवणंगणे । अन्भुडिओ य सिरिविजएणं । कयमुचियकरणिज्ज । उवविठ्ठो सिंघासणे। पुच्छियं अमियतेएणं उच्छवकारणं । तओ सिरिविजओ साहिउमाढत्तो जहा __ "इओ अट्ठमे दिवसे पडिहारणिवेइओ समागओ एको मित्तिओ। दिण्णासणो उवविठ्ठो य। पुच्छिो य मएकिमागमणपओयणं ?। तओ तेण भणियं-महाराय ! मए णिमित्तमवलोइयं जहा पोयणाहिवइणो इओ सत्तमे दिवसे मज्झण्हसमए इंदासणि उवरि पडिस्सइ । तं च कण्णकडुयं सोऊणं मंतिणा भणियं-तुज्झ उण उवरिं किं पडिस्सइ ? । तेण भणियं-मा कुप्पह, मए जहा उवलद्धं णिमित्तेण तहा साहियं, ण य मह एत्थ कोई भावदोसो, मज्झं च तम्मि दिवसे हिरण्णवुट्ठी उवरि पडिस्सइ । एवं च तेण भणिए मए भणियं-कहिं तए एवंविहं णिमित्तमागमियं ? । तेण भणियं-'अहमयलसामिणिक्खमणकाले संह पिउणा पव्वइओ। तत्थ मए अहिन्जियं अटुंगं पि णिमित्तं । तओ अहं पत्तजोव्वणो, पुन्चदत्ता कण्णा, भाउगेहिं उप्पावाविओ, कम्मपरिणइवसेण य तओ मए सा परिणीया । तओ मए सवण्णुपणीयणिमित्ताणुसारेण पलोइयं जाव पोयणाहिवइणो विज्जुणिवाओवद्दवो' त्ति । ___ एवं च तेण सिटे एगेण मन्तिणा भणियं जहा-राया समुइमज्झम्मि वहणे कीरउ, तत्थ किल विज्जू ण पहवइ । अण्णेण भणियं-ण दिव्वणिओओ अण्णहाकाउं तीरइ, जओ एक्कस्स भणपुत्तस्स समागयम्मि रक्खसवारयम्मि पेच्छिऊण जणणी रुयन्ती करुणयाए एक्केण भूएणं समासासिऊण जणणिं णीओ तयारगदिवसम्मि गिरिगुहं । तत्थ य पुल्चट्ठिएणं अयगरेण खइओ, ता एवं दुप्परियल्लमाउयं जंतूणं तुटं पालेउं ति । पुणो वि अवरेण मंतिणा भणियं-पोयणाहिवइणो वहो समाइट्ठो मित्तिएण, ण उणो सिरिविजयमहाराइणो त्ति, सत्त दिवसे अवरो कोई पोयणाहिबई परिकप्पिज्जउ । त्ति मंतिऊण वेसवणजक्खो मिलिऊण रज्जे अहिसित्तो। ___सत्तमे दिवसे मज्झण्णसेमय म्मि समुण्णओ मेहो, फुरियं विज्जुल याए, गज्जियं जलहरेणं । तओ समन्तभो फु िऊण विज्जुलयाए पडिऊण जक्खहरे जक्खपडिमा विणासिया । अहं च पोसहसालाए सत्तरत्तोसिओ अहिणंदिओ परेहि पुणो वि अहिसित्तो रज्जे । पूइओ य णेमित्तिओ । ता एयं बद्धावणयकारणं" ति। एयं च सुणिऊण भणियं अमियतेएणं-अविसंवादि णिमित्तं, सोहणो रक्खगोवाओ को त्ति। तयणंतरं च सिरिविजओ सुताराए सद्धिं बाहिरुज्जाणं गओ। तत्थ य कणयच्छत्रि मयं पासिऊण भणियं सुताराए जहा-पिययम ! सोहणो एस मओ, ता आणेहि एयं मह खेल्लणणिमित्तं । तओ सयमेव पहाविश्रो राया। पलाणो य मओ, थेवभूमीए ये गयणंगणे उप्पइओ । ताव य कॆइयं महादेवीए जहा-हं देव ! कुक्कुडसप्पेण खड्या ता परित्तायउ १ कह ? ॥णमो सुयदेवयाए भगवईए ॥ अस्थि ई जे । २ गाथेयं जेपुस्तके चरित्रस्यास्याऽऽदावुपलभ्यते । ३ पोइणिपुरं सू । १ मजष्ण सू । ५ इंदासणि सू । ६ तस्सि सू। ७ "णिक्खवण सू । ८ सहि जे । ९ पोइणा सू। १० 'यराइणो सू । ११ 'समए उप्पण्णभो सू । १२ १उरेणं जे । १३. अमित सू। १६ य तयणन्तरमुप्पइमो सू। १५ कवियःसू । Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०-३१ संतिसामितित्थयर-चक्वट्टिचरिय । १४७ मं देवो त्ति । एयं मुणिऊण तुरियं समागओ। ताय य सा पंचत्तमुवगया । राया य तीए सद्धि चियाए पविट्ठो । जलिउमाढत्तो जलणो । ताव य थेववेलाए समागया दुवे विज्जाहरा । तत्थ एगेण अभिमंतिऊण सलिलं सित्ता चिया । णवा वेयालिणी विज्जा अट्टहासं काऊण । समासत्थो राया । भणियं च तेण-किमेयं ? ति । भणियं विज्जाहरेण जहा-"अम्हे पिया-पुत्ता अमियतेयस्स परिग्गहे वट्टामो, जिणवंदणणिमित्तं गया आसि। आगच्छंतेहि य णिसुओ सुताराए असणिघोसेण गिज्जतीए अकंदणसदो । अम्हे य जुज्झसज्जा सुताराए भणिया-जहा महाराया वेयालिणीए विजाए वेलविओ जीवियं ण परिचयइ तहा गंतूणं उजाणं सिग्धं करेह । तओ अम्हे पिया-पुत्ता इहं आगय ति । दिट्ठो य तुम वेयालिणीए विजाए समं चियारूढो।। णट्ठा य सा दुविजा। तओ उढिओ तुम" ति । अवहरियं च सुतारं णाऊण विसण्यो राया । भणिओ य तेहि-वीसत्थो होहि, कहि जाइ सो पावो ? । त्ति संठविऊण गया विज्जाहरा । विण्णाओ य एस वुत्तंतो अमियतेएण । गया य चमरचंच णगरि अमियतेय-सिरिविजया असणिघोसन्तियं । पट्टविओ य बाहि ठिएहिं चेव असणिघोसस्स दूओ। पलाणो य सो । पहाविया पिट्टओ। दिट्ठो य अयलस्स उप्पण्णकेवलम्स समीवे असणिघोसो'। आणिया सुतारा तत्थेव एगेण अमियतेयविज्जाहरेण । तओ उवसन्तवेरा केवलिसमीवे धम्मं सुणंति । लद्धावसरेण य पभणियं असणिघोसेण जहा-“ण मए दुढभावेण अबहरिया सुतारा, किंतु विजं साहिऊण आगच्छन्तेण मए दिट्ठा इयं, ण सक्केमि य तं परिचइउं पुच्चसिणेहेण । तओ छलेण वामोहिऊण सिरिविजयं वेयालिणीए विज्जाए, घेत्तूणं सुतारं समागओ अहं । ता खमियव्यं तुम्हेहिं अदुट्ठभावस्स महं" ति । तओ एयमायण्णिऊण अमियतेएण भणियं-भगवं ! किं पुण कारणं एयस्स इमीए उवरि सिणेहो ? त्ति । तओ केवली कहिउमाढत्तो " इहेव भरहे मगहाजणवए अचलग्गामे धरणिजढो णाम विप्पो । तस्स य कविलाहिहाणा दासचेडी। तीए पुत्तो कविलो णाम । तेण य कण्णाहेडएण वेया सिक्खिया। गओ य "देसंतरे रयणपुरं णाम जयरं । तत्थ य राया सिरिसेणो । तस्स दुवे भारियाओ-अभिणंदिया सिहिणंदिया य । सो य कविलगो अज्झावगमल्लीणो। तेण य 'बम्भणो' त्ति कलिऊण णियधृया दिण्णा 'सच्चभामा णाम । सो य कविलगो कयाइ वासारत्ते संझासमए मंदमंदप्पयासे वरिसंते देवे वत्थागि कक्खाए पक्खिविऊण समागओ । तओ सच्चभामा से भारिया अवराणि वत्थाणि घेत्तूणं उवटिया । तेण भणियं-अत्थि मह पहावो जेण वत्याणि ण 'तीमंति। तीए विष्णायं जहा-शृणमयमवसणो समागओ, ण य कुलीणाणमेयं जुज्जति, ता गृणमकुलीणो एस । मंदसिणेहा जाया। ___ अण्णया य धरणिजढो कविलस्स समीवं समागओ। सच्चभामाए पिया-पुत्ताणं विरुद्धमायारं पासिऊण जहट्ठियमेव पुच्छिओ धरणिजढो । तेणावि जहट्ठियमेव साहियं ति । सचभामा य णिव्यिण्णा गया सिरिसेणस्स रण्णो समीवं जहा-मोयावेह मं कविलसगासाओ, पनजाणुटाणेणं धम्ममई करेमि त्ति । महाराण भणिओ कविलो ण मुयइ, भगइ य जहा-ण सक्कुणोमि तीए विरहिओ खणमवि जीविउ ति । तओ तमायणिऊण भणियं राइणा जहा-इह चेव ताव चिट्ठसु जाव कविलं पत्तियावेमि । ___ अण्णया य राया णियपुत्ते अणंगसेणागणियाणिमित्तेण जुझते पासिऊग तालपुडविसोवोगेण कालगो। तयणंतरं च अभिणंदिया सिहिणं दिया दुवे वि भज्जाओ, सचभामा य माहणी, तेणेव विसप्पओएण कालगयाओ। चत्तारि वि जणाई देवकुराए जुगलत्तण समुप्पण्णाई। तो वि सोहम्मे कप्पे गयाणि । तत्तो वि चविऊग सिरिसेणजीवो अमियतेओ, अभिणंदियाजीयो सिरिविजओ, सच्चभामाए जीवो सुतारा समुप्पण्णा । सो य कविलो १ अकदसद्दो जे । २ “ए सह बिजाए चिजे । ३ °सो । गीया जे । ४ देसतर स् । ५ णियया धूया जे। ६ वचप्पभा णाम जे । ७ मे जे । ८ तिम्नति जे । ९ तालउड सू। Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४८ चउप्पन्नमहापुरिसचरिय। तिरिएमु आहिडिऊण तहाविहमणुट्ठाणं काऊणं असणिघोसो समुप्पण्णो। तओ सुतारं सच्चभामामाइणीनीवं पासिऊण पुध्वसिणेहेणं अवहरिऊण गओ" ति । ___पुणो वि अमियतेएण पुच्छियं-भयवं ! किमहं भविओ ण व ? ति। केवलिणा भणियं-भविओ तुमं, इओ य णवमे भवम्मि तित्थयरो भविस्ससि, एसो वि सिरिविजओ तुह पढमगणहरो भविस्सइ ति। तओ एयमायण्णिऊण अमियतेय-सिरिविजया हरिसावूरियसरीरा वंदिऊण भगवंतं गया णिययणगरं ति । मुंबन्ति भोए। अण्णया य दोहिं विजणेहिं उज्जाणगएहिं विउलमति-महामतिणो चारणसमणा दिट्ठा। तयन्तिए धम्मं सोऊण आउयं परिपुच्छियं । चारणसमणेहिं वि ओहिणा आभोएऊण साहियं जहा-छब्बीसई दियहे आउयं ति। तओ तेहिं समागंतूण कया अट्टाहियामहिमा, अप्पप्पणो पुत्तेसु य रज्जधुरं संकामेऊण अभिणंदण-जगणंदणसमीवे पाओवगमणविहिणा कालं काऊण पाणए कप्पे वीससागरोवमाउदेवत्तेण उववण्णा। __ तत्थ य अणुहविऊण रइसागरावगाढा सव्वाउयं इहेब जंबुद्दीवे दीवे पुव्वविदेहे रमणिज्जे विजए सीयाए महाणतीए दाहिणे कूले सुभगाए णयरीए थिमियसागरस्स राइणो वसुंधरी-अणंगसुंदरीणं महादेवीणं गम्भे कमेण कुमारत्तणेण समुववण्णा । अमियतेओ अपराजिओ, सिरिविजओ अणंतविरिओ। तत्थ वि दमियारिविज्जाहरं पडिसत्तुं वावाएऊण कमेण बलदेव-वासुदेवत्तणं पत्ता। तेसिं च पिया पच्चज्जाविहाणेण मरिऊण असुरकुमारत्तणेणं चमरो समुप्पण्णो । अणंतविरिओ य आउयमणुवालिऊण गिबगरयाउओ कालं काऊण गओ पढमपुढविं, वायालीसवाससहस्सा ठिती। तत्थ तिव्याओ वेयणाओ अणुहवइ । तस्स य पुत्तसिणेहेण चमरो गंतूण वेयणोवसमं करेति, सो संविग्गो सम्मं अहियासेइ । अपराजिओ य बलदेवो भाउयवियोयदुक्खिओ णिक्खित्तपुत्तरज्जभरो जयहरगणहरसमीवे णिक्खंतो । चइऊण य पञ्चज्जाविहाणेण आउयं अच्चुए इंदत्तणेग उववण्यो। ___ इओ य अणंतविरिओ उव्यट्टिऊण णरयाओ वेयड्ढे विज्जाहेरत्तणेण उववण्णो । तस्थ य अच्चुयमुरिंदेणं बोहिओ पव्वज्जं काऊण अच्चुए देवत्तणेण उववण्णो । ___ अपराजिओ य देविंदाउयमणुवालिऊण चुओ समाणो इहेव जंबुद्दीवे दीवे पुव्वविदेहे सीयाए महाणईए दाहिणे कूले मंगलावईविजए रयणसंचयपुरीए खेमंकरो राया, तस्स भज्जा रयणमाला, तेसिं पुत्तो वज्जाउहो" कुमारो जाओ त्ति। - इओ य सिरिविजयजीवो देवाउयमणुवालिऊण तस्सेव पुत्तत्तणेण उववष्णो । पइटावियं च सै णाम सहस्साउहो त्ति। ____ अण्णया य वज्जाउहस्स जलकीलेमणुहवन्तस्स बलदेवकालवेरिओ दमियारी संसारमाहिडिऊण पुणो वि विज्जाहरत्तणेण समुववष्णो विज्जुदाढाहिहाणो, तेग य तस्सुपरिं महापचओ पक्खित्तो, पाएमु य णागपासेहिं बद्धो। वज्जाउहेण य अणाउलेण चेव पचओ मुट्ठिपहारेहिं पक्खित्तो, णागपासा य पाएहि चेव तोडिय ति। तओ य अच्चुय देविदेण 'तित्थयरो भविस्सइ' त्ति तित्थयरभत्तीए थुओ पसंसिओ य । अण्णया य पोसहसालाए ठिओ पुणो वि तहेव देविदेण पसंसिओ जहा-धम्माओ ण सेको देवेहि वि चालेउं वज्जाउहकुमारो ति । तओ एगो देवो तमसदहन्तो समागओ । आगंतूण य विउँधिओ पारावओ । सो य भयसम्भन्तो वज्जाउहमल्लीणो, माणुसमासाए 'सरणागओ' ति भणमाणो । वज्जाउहेग य दिण्णे सरणे ठिओ तयासण्णे । तयणंतरं च समागो ओलावगो। तेगावि भणियं जहा-महासत्त ! एस मए छुहाकिलन्तेणं पाविओ, ता मुंच एयं, अण्णहा पत्थि मैम जीवियं ति । तओ तमायण्णिऊण वजाउहेण भणियं-"ण जुत्तं सरणागयसमप्पणं, तुज्झ वि ण जुत्तमेयं, जओ १ जहा पणुवीसई जे । २ गदीए जे । ३ कुमारत्तेण समुप्पष्णा जे । ४ असुरत्तणेण सू । ५ निरया जे । ६ पुढवीए, बा. जे । ७ सहस्सट्ठी । त जे । ८ भाउविओए दु सू। ९ हरत्तेण जे । १० 'हो विज्जाहरकुमारो जे । ११ काडमणु जे। १२ सका जे सू। १३ विउझन्विओ सू । १४ मह जे । Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०-३१ संतिसामितित्थयर - चक्कवट्टिचरियं । "तूणं परपाणे अप्पाणं जो करेइ सप्पाणं । अप्पाणं दिवसाणं करण णासेइ अप्पाणं ॥ २ ॥ जह जीवियं तुह पियं गिययं तह होइ सन्यजीवाणं । पियजीत्रियाण जीवाण रक्ख जीयं सजीयं व ॥ ३ ॥ दुक्खस्स उन्नयन्तो हंतूण परं करेसि पडियारं । पाविहिसि पुणो दुक्खं बहुययरं तणिमितेग ॥ ४ ॥ खणमेत्तं तुह तित्ती अण्णो पुण चयइ जीवियं जीवो । तम्हा उ ण जुत्तमिणं चडप्फडन्तं विवाएउं ।। ५ ।। इय एवमणुस्सट्ठी रण्णा महुरक्ख रेहिं सो सउणो । पडिभणइ - भुक्खिओ हं, ण महं धम्मो मणे ठाइ || ६ || १४९ ओ पुरविभणियं राणा - भो महासत्त ! जर क्खिओ तुमं ता अण्णं देमि तुह मंसें । पडिभणइ सउणो- णियवावाइयमंसललिओ हैं, ण य रोचइ मज्झ परवावाइयं मंसं ति । राइगा भणियं- 'जत्तिय 'इत्यारभ्य ' खाहि ' इत्यन्तः पाठ आर्याछन्दो ज्ञेयम् । । तओ तुट्टो ओलावओ । पडिवण्णं राइणो वयणं । आणिओ णाराओ । पक्खित्तो एकम्म पासम्मि पारावओ। बीए पासे -- उत्तिऊण देहं राया जह जह य पक्खिवइ मंसं । तह तह य होइ सउगो गरुययरो देवमायाए || ७ | द तैयं राया हाहारवमुहलपरियणसमक्खं । आरुहइ सई चिय वस्तुलाए णियजीयणिरवेक्खो ॥ ८ ॥ इय तुलिय देवमायं रायं दट्ट्ण विम्हिओ देवो । दंसेइ णियं रूत्रं मणि-कुंडलभूसियसरीरं ॥ ९ ॥ असासिक रायं देवो, तह संसिग णियभावं । हरिसाऽऽवूरियहियओ विम्हियमणसो गओ सहसा ॥ १० ॥ अण्णया य बज्जाउह-सहस्सा उहा पिया-पुत्ता खेमंकरतित्थयरगणहरसमीवे संजायवेरग्गा सहस्साउहसुयं बलिं रज्जे अहिसिंचिऊण पव्त्रइया | पव्वज्जापरियागं परिवालिऊण, पायवोवगमणविहिणा [? कालं] काऊण, ईसिप भारसिहम दो 'जणा उरिमवेज्जे एगत्तीससागरोत्रमडीया अहर्मिंदा देवा जाया । तो तं अहमिंदसोक्खमणुहविऊण चुया समाणा इहेव जंबुद्दीवे दीवे पुव्वविदेहे पुक्खलावइविजये पुंडरिगite णयरीए घणरहो राया, तस्स दुवे महादेवीओ परमावती मणोरंमा य, तासिं गन्भे जाया । वज्जाउहो मेहरहों, सहस्साउहो दढरहो ति । वड्ढिया, कयं कलागहणं । मेहरह- दढरहाण य पुव्वभवन्भासओ परिणओ जिस धम्मो | जाया य अहिगयजीवादिपयत्था सुस्सावगा । या पिउत्थियरसमीवे दो वि जणा णियपुत्तं रज्जे अहिसिंचिऊण, दाऊण उरं परिस्सहाणं, पब्वइया । तत्थ मेहरणं अहिज्जियसुत्तत्थेगं वीसाए अण्णयैरेहिं ठाणेहिं समज्जियं तित्थयरणाम -गोत्तं कम्मं । तओ संलेहणासंलिहियदेहा विहिणा कालं काऊण अणुत्तरोत्रवाइएस देवेसु उवण्णा । तत्थ य अणुहविऊण सुरलोयसुहं मेहरहकुमारो चरण सरिमाणाओ तित्थयरत्तणेण मुत्रवण्णोति । इव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे मज्झिमखंडे हत्थिणाउरं णाम णयरं । तं च पायालसष्णिहाए खाइयाए, गयणयललग्गेणं पायारणिवेसेणं, णाणामणिविणिम्मिएहिं धवलहरेहिं विराइयं । तत्थ य वीससेणो णाम राया विणिज्जिपरबलवीससेणो । जस्स य परकमो वेव सहाओ, विवेओ चेव मन्ती, पयाको चेव पुरस्सरो, लज्जा खंती य विणिज्जियासेसजुत्रइसत्थमंतेउरं, बोहो सव्त्राहिगारी । किंच - त्रिणोयणिमित्तं सामंतमंडलं, पयावाऽऽविकरण निमित्तं पडिवक्खो, विणयणिमित्तं गुरुजणो, बुद्धिपयडणणिमित्तं सत्थाई, सहजकोसल्लणिमित्तं कलाकलावो, वियड्ढबोहेणणिमित्तं कामिणीसत्यो ति । तस्स य राइगो सयलन्तेउरप्पहागा रूवेण देवि व्व देवी अइराणाम अम्गमहिसी । १ तूणय पंसू । २ सं । तेण भणियं-नियवा जे ३ तथा सू । ४ कोण्डल' सू । ५२ममती य सू । ६ एहि जे । ७ सहावो सु । ८ विकिरण' सू । ९ बोहणिमित्तं सू । For Private Personal Use Only Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५० चउम्पन्नमहापुरिसचरियं । तस्स य तीए सह विसयसुहमणुहवन्तस्स अइगच्छइ कालो, जति दियहा, सरति संसारो । अण्णया य समागओ पाउसकालो। किंविसिहो य? कसणघेणथइयगयणंधयारपम्हुट्ठसयलजियलोए । विज्जुणयणेहि णियइ ब पाउसो पहियपरिणीओ ॥ ११ ॥ गजइ पलयघणसरं, वरिसइ धाराहि मुसलमेत्ताहि । विप्फुरइ विज्जुला दिट्टणट्ठजियलोयकरणिल्ला ॥ १२ ॥ सिहि केयारवमुहलियवणंतरुप्पित्थपहियपरिणीहिं । अणवरयणितवाहोहपिच्छलं कीरइ पउ8 ।। १३ ।।। णवपूरपूरियाओ वहति तडवडणकलससलिलाओ । गिरिसरियाओ सहेलं पूरियकच्छन्तरालाओ ॥ १४ ॥ इय पाउसम्मि सलिलोहसमियणीसेसमहिरउग्घाए । भदवयसिएयरसत्तमीए गम्भे समुप्पण्णो ॥१५॥ देवीए चरिमजामम्मि लद्धसुमिणाए देवलोगाओ । तिहिं णाणेहि समग्गो तियसिंदसमच्चिओ भगवं ॥ १६ ॥ धरिला य णव साहिए मासे सुहंसुहेण सव्वलक्षणोववेयं दारयं पसूया। पुव्वक्कमेणेय कओ अहिसेओ। 'गब्भत्येण य भगवया सव्वदेसे संती समुप्पण्ण त्ति काऊण सन्ति [त्तिणामं अम्मा-पितीहिं कयं । वढिओ सह कलाहि, विवाहि भो य । पिउणा पुत्तं रज्जे काऊण सकज्जमणुट्ठियं । रजपालणुज्जयस्स य आउहसालाए समुप्पण्णं चक्करयणं । चक्काणुसारिणो(णा) य पुव्वक्कमेणेय समद्धासियं छक्खंडं पि भरहं । समुप्पण्णा व महाणिहिणो। समद्धासियाई चोदस वि रयणाइं । चक्कवट्टित्तणेण य गमेऊण किं पि कालं । धम्मवरचक्काहत्तणं जीवदयापरिणामहेउं तित्थयरत्तं, असमंजसहेउभूयं रज्जं ति । तस्स पुण महाणुभावत्तणेण दो वि अविरुद्धाई । अवि य अण्णोष्णविरुद्धाई वि महाणुभावत्तणेण रज्जं च । तह धम्मचक्कवट्टित्तणं च समयं चिय वसन्ति ॥१७॥ खग्गं च खत्तधम्मत्थसारपरबलमरट्टणिवणं । खंती य सयलजीवाण संतिहेऊ असामण्णा ।। १८ ।। धारग्गऽग्गिविगिग्गयफुलिंगफुटुंतसत्तुणिट्ठवणं । चकं, च जीवरक्खणचित्तं समयं चिय वसंति ॥ १९ ॥ लद्धपसराई तम्मि य इत्थीरयणाइयाई रयणाई । उपसम-विवेय-संवर-मुत्तीओ तह चिय वसति ॥ २० ॥ इय णव णिहिणो जह पर-सकन्जवावारसाहणग्यविया । णिवसंति तत्थ, तह मुत्तया वि समतण-मणिसरूवा ॥२१॥ एवं च तित्थयरणामसहियमणुवालेऊण चकवटित्तणं 'पंचवीसवरिससहस्साई, समुइण्णतित्थयरणाम-गोत्तो सयंबुद्धो वि लोयंतियपडिबोहिओ, जेठ्ठबहुलतेरसीए उज्झिऊण तणमित्र चकवट्टित्तणं, पडिवण्णो संसारसायरुत्तरणदोणिकप्पं पनज ति । कयसामाइओ य विहरिऊण किंचि कालं संपत्तो जत्य य सामाइयं पडिवण्णं तमेव उजागं । तत्थ य सहयारपायवस्स हेट्टओ झागंतरियाए वट्टमाणस्स खरगसेढीए कमेणं गिद्दलियघगघाइचउकस्स समुप्पण्णं तीया-ऽणागयवट्टमाण पयत्युब्भासगं दिव्यं गाणं ति । तं च के रिसं? णीसेसावरणक्खयसमुभवं भुषणभासणसमत्थं । सामण्ण-विसे समयं एगविहं केवलं गाणं ।। २२॥ तयणंतरं च कयं देवेहिं समोसरणं । पवाधिया गणहरा । पत्थुया तण्णिस्साएं धम्मकहा । वणिजइ सम्मदंसण चारित्तमतिओ मोक्खमग्गो, जिंदिजइ मिच्छत्ता-विरइ-पमाय-कसाय-जोगणिमित्तं कम्मं, बुझंति पाणिणो, पडिवजन्ति सम्मत्तं, लेन्ति अणुव्ययाणि, अब्भुत्रगच्छन्ति मेहव्ययाणि, छिंदति णेहपासं, अवर्णेति मोहेवल्लिं, णिहणंति राग-दोसमल्ले, अद्धार्सिति लहुयकम्मत्तणेण जिणदेसियमविसंवाइ मोकावमग्गं ति। १ अइकतो कोई कालो सू । २ घगोत्यगयणं जे । ३ सलिय सू । ४ "मणुचिट्ठय सू । ५ किंचि जे । ६ पर्विसइवारे सू। . 'सायरदोण जे । ८ । भगवया धम्म जे । महावयाणि जे । १० मोह वली जे । Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०-३१ संतिसामितित्थयर-चक्कवट्टिचरियं । १५१ एवं च बोहतो भत्रियकमलायरे, पयासेतो संसार-मोक्खमग्गे, वियारेन्तो संसारासारत्तणं, पंचवीसवरिससहस्साणि पालिऊण परियागं परिक्खीणेसव्वकम्मंसो समुग्घायविहिणा समीकरेऊण सहाउऽऽणा वेयणिज्जं सम्मेयसेलसिहरे सेलेसिविदाणेण खविऊण भवोवग्गाहीणि आउय-णाम-गोत्त-वेयणिज्जाणि जमगसमग सिद्धिपुरि समणुपत्तो ति।। तस्स य भगवओ पणुचीसवाससहस्साई कुमारभावे, ताणि चेव मंडलियत्तणेण, तत्तियाणि चेव चक्कवट्टिसणेणं, तप्पमाणाणि चेव परियाओ । सव्वाउयं लक्खं वासाणं ति ॥ ॥ इति महापुरिसचरिए संतिसामिणो चक्रवट्टिस्त तित्थयरस्स चरिये समत्तं ॥ ३०-३१ ॥ कम्मंसो जे। २'बहितित्यस य परिसमतप्रंय. ७२७.॥जे। Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ३२-३३ कुंथुस|मितित्थयर- चक्कवट्टिचरियं ] ÷-x-: पुणेहि पुण्णरासित्र के कालक मेण जायन्ति । जाणुप्पत्तीए चिय भरहमिणं जायइ सणा ||१|| संतिसामिणो पलिओत्रमद्धे समझते तयणंतरं कुंथुजिणो समुष्पष्णो । कहं ? भण्णति अस्थि इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे दाहिणमज्झिम खंडे हत्थिणाउरं णाम णयरं । तत्थ विणिज्जियासेसवरबग्गो सूरा णाम णराहिवो । तस्सोहा मियसुरसुंदरीरूवविन्भमा सच्चसिरी विय सिरी णाम महादेवी । तस्स य तीए सह विसयहमणुहवन्तस्स अइकंतो कोइ कालो । अण्णया य सजलजलहरोरालिगब्भिणे गयणयले, समन्तओ विज्जुच्छडाडोवभासुरासु दिसासु, मरगयमणियंकुरसच्छणं हरियं कुरपूरेण समद्धासिए महिमंडले सावण बहुलणवमीए सुहपमुत्ता सा सिरी रयणीए चरिमजामम्मि चोद्दस महामिणे चक्कट्टि तित्थयरजम्मसंसूयगे पासिऊण विउद्धा । साहिया य जहाविहिं दइयस्स । तेण वि य पुत्तजम्मेण समासासिया । तंप्पभिरं चैव वड्दिउमाढत्तो गन्भो । तओ णवण्हं मासाणं अद्धट्टमाणं राईदिणाणं गृहेणं [!वइकंताणं] व साहबहुलचउसी कितियासमासणे ससहरे दारयं पनूया । पुव्त्रकमेणेय कओ सुरिंदेण जम्माभिसेओ । पिउणा य कयं वद्धावणाइयं उचियकरणिज्जं । 'सुमिणे य धूभं दट्टण जणणी विरुद्ध त्ति, गन्भगए य कुंथुसमाणा सेसपडिवक्खा दिट्ठ' त्ति काऊण कुंथु त्तिणामं कयं भगवओ । पुव्त्रकमेणेय वढिओ । विवाहिओ चक्कवट्टी जाओ। सो य पंचत्तीसघणूसुओ उत्तत्तकणगगोरो पुत्रकमेणेय तित्थयरचैरियाविरुद्धं चक्कवट्टित्तणमणुहविऊण तप्परिच्चायजायबुद्धी सयंबुद्धो वि लोयंतियपडिबोहिओ, भवि य जय अणभव ! भुत्रकणाह ! णाहत्तणं तहा कुणसु । जह जंतूण ण जायन्ति कम्म-भवसंभवुभेया ||२|| freerefore तुमए जह चक्किणा कओ लोओ । तह धम्मचक्कवट्टित्तणेण णिव्ववसु जयणाह ! ||३|| कह सीसउ तुम्हम्हारिसेहिं सब्भाव णाणरहिएहिं ? । तह त्रि णिओया गिल्लज्जिमाए किल भण्णसि जिदि ! ||४|| इयरजणसम्मयमिणं चइउं संसारकारणमणि । सत्ताण णिव्वुझ्करं तित्थं तिस्थेसर ! विहे ||५|| जाह ! तुम्ह सरिसा परहियकज्जेक दिष्णववसाया । दोहिन्ति जए भण केत्तिय व्त्र कप्पर्द्धमन्भहिया ? ॥ ६ ॥ संसारसायरुत्तरणपञ्चलं भव्त्रमलमणाबाहं । णेव्वाणगमणकज्जं भगवं । तित्थं पत्रत्तेहि ||७|| forareगुणसमिद्धे भयवं ! जिग ! तेइ पर्यट्टिए तित्थे ! तरिहिंति भवसमुदं बहवे तुम्हाणुहावेण ||८| इणिय सययभात्र ! जम्मंतरज्जियगुणोह ! । भवियजणुद्धरणमलं तित्थं तित्थंकर ! विहेहि" ||९|| एमभिदिओ बंदीहिं व लोयन्तिएहिं समुज्जओ चइऊण चकवट्टित्तणं पडिवण्णो चारितं वइसाह अमावासाए चि तओ विहरिऊण कंचि कालं वइसाहबहुलतइयाए कित्तियासमासपणे मियंके उप्पण्णं दिव्वं गाणं ति । विरइयं देवे समोसरणं । पञ्चाविया गणहरा । पत्थुया धम्मक्रहा । तओ पंचाणउई वाससहस्साई सव्वाउयमणुवालिऊण सम्मेयसेल सिहरे सन्दुक्ख विमोक्खलक्खणं मोक्खं पत्तो ति ॥ इति महापुरिसचरिए "कुंथुसामिणो चक्कवट्टिस्स तित्थयरस्स चरियं समत्तं ॥ ३२-३३॥ १ कुरुप्पूरेण जे २ तापभय सू । ३ वैसा सू | ४सू । ५ चरियवि सू६ "मस रेन्छा जे । ७ "लं तच्चमल जे । ८ कश्जे जे । ९ तई जे । १० लमुण्णेय स् । ११ करेहि जे । १२ कुंथुक्क सू । १३ परिसमतं ति । Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ३४-३५ अरसामितित्थयर - चक्कवट्टिचरियं ] -:×:― गमाहाणाउ चिविधेहिं णिवेइया महासत्ता । जायंति केइ ते जेहिं 'निव्वयं जाय जयं पि ॥ १ ॥ अस्थि इहेत्र जंबुद्दीवे दीवे दाहिणद्धमज्झिमखंडे हत्थिणाउरं णाम णयरं । तत्थ विणिज्जियासेसपडित्रक्खो अच्चतरूत्रसंपयाए सुदंसणो सुदंसणो णाम णराहिवो । तस्स य विणिज्जियरइरूवविन्भमा देवी व देवी महादेवी । तस्स य तीए सह विसयहमणुहवन्तस्स अकन्तो कोइ कालो । अण्णा य वियरिए बालवसन्ते, ववगयसिसिरमारुयप्पसरपंकयदाहे, समुब्भिण्णासु णत्रचूयमंजरीसु, समुच्छलिए परहुयारवे, विभिए बउलामोए, वियसि माणिणीमाणभेयदक्खे कणियारवणे, एवंविहे य बालवसंते फग्गुणसुद्धबीयाए गेवेज्जाओ चैविऊण वाससहस्सकोडीए ऊणे पलिओत्रमच भए कुंथुजिणाओ गए देवीए कुच्छिसि उवलद्धचोदसमहासु मिणाए उववष्णो । वढिओ य गन्भो । अइक्कन्तेसु साइरेगेसु णवसु मासेसु मग्गसिरसुद्धदसमीए रेवइक्खत्ते जणणी विणमगुप्पायएन्तो भगवं समुप्पण्णी । पट्टावियं से णाम सुमिणम्मि महारिहाऽरदंसणतणेणं अरो ति । वढिओ य । समासाइयं चक्कवट्टित्तणं । साहियमहिमंडलोय दिट्ठविलियं पिव पणइगिं परिहरिऊण रायलच्छ पडिवण्णो समणत्तणं मग्गसिरमुद्धेकारसीए ति । अणुपालिऊण य छउमत्थपरियागं कत्तियबहुलवारसीए समासाइयं दिव्वं गाँणं । समागओ पोइणीखेडं यरं । पव्वाविया गहरा । विरइयं देवेहिं समोसरणं । पत्थुया धम्मकहा । साहिज्जइ संसारसरूवं, पयडिज्जइ मोक्खसोक्खं भिदति कम्मगठिं जंतुणो, अवर्णेति मोहजालं, विहार्डेति आवरणंधयारं, पडिवज्जंति जिणसासणं ति । ताव य बहुपडि पुणपोरिसीए समुहिओ समोसरणाओ भगवं । उवयि तित्थयरपायत्रीढे पढमगणहरो । तव धम्मं साहिउमाढतो । एत्थंतरम्मि समागओ एगो वांमणओ । वंदिओ य तेग गणहारी । सबहुमाणं च धम्मलाहिओ गुरुणा । तयणंतरं च समागओ वणिओ । तेणावि वंदिऊण भणियं— 1 भयवं ! अहमतीत्रधूयादुक्खदुक्खिओ तचिंतासायरावगाढो 'किं कायन्त्रं ?' ति मूढो अहोणिसिं जायहिययावेओ तुम्हंतियं समलीणो । मज्झ य भगवं ! एगा धूया रूवोहामियासेसजुत्रइसत्था । तीए य समुल्लसन्ते जोवणारम्भणवलायपवाहे जह जह समागच्छंति वरया तह तह लज्जमाणेव मह हियए पविसइ । चिंतियं च मए विवाण वयत्थामं होइ कुलकलंककारणमणग्धं । मुत्तिमती वित्र चिंता धूया धण्णाण ण हु जाया ॥ २ ॥ किंच जणणि जणयाण पढमं चिय एरिसी चिंता सुकुलुग्गओ सुरूत्रो कलासु परिणिडिओ विणीओ य | विहवी वैरण जुत्तो समचित्तो होइ जइ दइओ ॥ ३ ॥ अह कह व दिव्वजण जाइ जइ दूहवा व विहवा वा । पवसियपs व्व णिययं तो वयणिज्जाण सा खाणी ||४|| एवं च चिंतासमाउलो भणिओ तज्जणणीए - अज्जउत्त ! किमेवं चिंतापैरोहीणो व्व लक्खिज्जसि ? ति । मए भणियं - सुट्ट लक्खियं । तीए भणियं कहसु किं चिंताकारणं ? | मए भणियं - एकं ताव असारसंसारणिवासो, बीयं घरवासणिबंधणं, तयं एसा तंत्र धूय त्ति, ता एसा पत्तकाला दिज्जउ कस्सर कुलीणस्स । तीए भणियं अहमेत्थ गन्भाहाणाओ fer केवलं किलेसभायणं, कण्णाणं दाणं पति तुमं कारणं ति, ता समप्पिज्जउ कस्सइ जो तुम्हाणुमओ, केवलं जहा अहमच्चन्तदुक्ख भायणी ण होमि तहा अज्जउत्ते करणिज्जं ति । १ व्यं । २ ए य मासू । ३ चइऊण जे ४ भागाए जे । ५ सुइणम्मि सू । ६ पिय पणइणो जे । ७ णाणं । पव्वाविया सू । ८रण, पडि सू । ९ बावणगो जे । १० णारंभे जे ११ वए सुरुवो सम जे । १२ परायणो लौं सू । १३ तुह जे । १४ भिति जे । २० For Private Personal Use Only Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५४ चउम्पन्नमहापुरिसचरियं । 'पाडेइ महावत्ते पियरं धूया पओहरारम्भे । वड्ती अणुवरिसं सरिय व्व तडं ण संदेहो ॥५॥ एवमहं मणंतो समुडिओ आसणाओ । गओ वीहिमग्गं । दिवो य संखउराओ समागओ एगो सत्यवाहो । वैत्ते य परोप्परला जाया परोप्परं साहम्मियत्तणेणं पीती। ___ अण्णया य तेण संखउरणिवासिणा उसहदत्ताहिहाणेण मह गेहमतिगतेणं दिट्ठा मह समीवे उवविद्या पियदंसणा। तओ तं दट्टण सुइरं णिज्झाइऊण चिंतिऊण य किं पि किं पि हियएणं भणियं उसहदत्तेण जहा-किमेसा तुह धूया कण्णा ?। मए भणियं-आम, केण पुण कारणेणं तुमए णिज्झाइऊण किं पि हियएण चिंतियं ? ति । तेण भणियं"मुणसु कारणं ति, अस्थि मह पुत्तो वीरभद्दो णामं । सो य बालभावे चेव साहुसगासाओ कलासु सुपइडिओ । जाणियं सदलकवणं, अहीयाणि य छंद-अलंकार-देसी-णिघंटाईणि सत्थाणि, परिणयाणि य, जायं कइत्तणं, बुज्झइ परकव्वगुण-दोसे । तओ सो सुकुलुप्पत्तीए रूवित्तणेणं कलागहणेणं विज्जाहिगमेण य णेच्छइ जं व तं व कण्णयं दिज्जमां दि विवाहेउं ति । तओ मए चिंतियं जइ परमेसा सुरूवा जइ कलासु णिउणा ता जोग्ग" त्ति। तओ तमायण्णिऊण भए भणियं अहं पि इमीए एवंविहवरण्णेसणक्खणिओ चिट्ठामि, जओ एसा वि मह धृया एवंविहा चेव, णेच्छइ य ज व तं व वरं ति । ता भयवं ! अम्ह दोण्ह वि वहु-वरण्णेसणुज्जयाणं मिलियं चित्तं । दिण्णा य मए णिययधृया। समागओ वीरभद्दो। यत्तो विवाहो । कयमुचियकरणिज्जं । अच्छिऊण य कइ वि दियहे घेत्तूण वहुयं गया णियगपट्टणं ति । ___ अण्णया य भए णिसुयं जहा-रातीए चरिमजामम्मि ण णज्जइ कहिं पि गओ वीरभद्दो वासभवणायो एगागिणि चइऊण मह धूयं पियदंसणं ति। एगेण वोमणेण तस्स पउत्ती साहिया । ण य सो सम्मं णिवेएइ । ता साहसु मग ! फुडत्य किं तस्स दंसणं भविस्सइ उयाहु ण व ? ति । गणहरेण भणियं-सुणसु अवहिओ, णिम्गओं गेहाओ तुह जामाउओ एवं परिभाविऊण जहा-मए कयं कलागहणं, जायं कवित्तणं, सिद्धा पाणाविहा मन्ता, जाणिया गुलियापओया, अहिणवं जोवणं, पगरिसो सव्वविष्णाणेसु, एवं च मह गुरुयणभीरुयस्स सव्वं चेक गिरस्वयं ति, ता देसंतरं वचामि त्ति । णिग्गओ अद्धफालाणि काऊणं गेहाओ। तेष य मुलियापयोएणं सामवण्यो को अप्पा । तओ आर्हिडिओ गामा-ऽऽगरणगर-मडम्बादीणि ठाणाणि । कत्थइ वीणाए, कत्थइ चित्तकम्मेणं, कर्हिचि पसच्छेज्जणिउषयाए, अप्यास्थ कइत्तणेणं, अवरत्थ मुरवाइयम्मि आउज्जे कुसलत्तणेणं, सव्वत्य लद्धजओ ति। तओ य सो गच्छन्तो गओ सिंघलदीवं । तत्थ य रयणपुरं णाम णयरं। तहिं च रयणागरो णाम णराहियो । तत्थ सो संखस्स सेट्ठिस्स आवणोसरियाए उवक्टिो। सुइरं णिज्झाइऊण णेणं सेटिणा पुच्छिओ-पुत्त ! कुओ तुमं ?। तेण भणियं-जंबुद्दीवाओ रूसिऊण गेहाओ णिग्गओ, आगच्छंतो इहमागओ देसदसणकोउएणं ति। संखसेट्ठिणा भणियं-ण सुंदरमणुट्ठियं, जो अविणयवासो जोव्वणं, चंचलाणि इंदियाणि, पयतीए पिमुणसहावो लोओ, दूरं देसंतरं, विसमा कज्जगती, सुकुमारसहावो तुम, तहा वि सोहणमणुट्ठियं जमिहागओ सि त्ति । गओ य सभवणं सेट्ठी तं घेतूणं । व्हाया य दोणि वि जया । णियत्थाणि य सोहणाणि वत्थाणि । जहाविहिं भुत्ता य । णिग्गया तम्बोलं सम्माणन्ता। भणियो य सेद्विणा वीरभो–अपुत्तस्स महं तुमं पुत्तो, ता णियगेहे व्य चिट्ठसु तुमं, देसु दाणं, भुंजसु जहिच्छिए भोए, अत्थि में एगं जम्मं तुह सुंजंतस्स देंतस्स य दविणजायं ति। वीरभद्देण भणियं-ताय! कयपुष्णो हं जं तुम्हें आणावसित्तण मए पावियं ति, धण्णा हु गुरूणमाणाभायणं भवन्ति । एवं च तेसिं पिय-पुत्तत्तणेण गच्छन्ति दिया। तत्थ य राइणो रयणायरस्स धूया पुरिसवेसिणी अणंगसुंदरी णाम । संखस्स य सेद्विणो विणयवती धूया। सा य तेयन्तिए पतिदिणं बच्चइ । पुच्छिया य भगिणी वीरभद्देण विणयवई जहा-कत्य तुम बच्चसि ति। तीए बत्ती जे । २ "लायो जे। ३ °या साहम्मत्तणेणं सू । ४ देसि-णिघंटाइयादीणि जे । ५ वावणेण जे । ६ उप मजे। . 'भो हजे, 'ओ वह मेहाओ जा सू । ८ रयणागारो जे । ९ तयतिय जे । Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४-३५ अरसामितित्थयर-चक्कवट्टिचरियं । जहटियं साहियं । वीरभद्देण पुच्छियं-केण उण विणरेएण सा गेहे चिट्ठइ ? ति । तीए कहियं जहा-कयाइ वीणाविणोदेणं, कयाइ पत्तच्छेज्जाणुहाणेण, कयाइ चित्तकम्मक्खणिया दिवसं पि णेइ, कयाइ पेक्खणयविहिणा, कयाइ बिंदुमति-अक्खरचुय-बिंदुचुय-पण्होत्तरविणोएणं ति । तेण भणियं-जइ एवं ता अहं पि तत्थागमिस्सं । तीए भणियं-ण तत्थ बालगस्म वि पुरिसस्स पवेसो। तेण भणियं-अहं तहा करिस्सं जहा ण णज्जइ परिचिएणं पि जहा पुरिसो ति। पविट्ठो य भगिणीए सद्धिं अणंगसुंदरीए भवणं । दिवा तेण सा पिययमकुवियं हंसियं लिहंती । पुच्छिया विणयबईका एस ? त्ति । तीए भणियं जहा-अम्हं सयज्झिया बहूणि दिवसाणि तुम्ह दंससुया मए आणिय त्ति । तीए भणियं-सोहणमशुद्वियं ति । तो पेच्छिऊण वीरभदेण भणियं-तुमए हंसिया विरहाउरा लिहिउमाढत्ता, तीसे य विरहाउराए ण एरिसी दिट्ठी होइ । अणंगसुंदरीए भणियं-गेहसु चित्तवट्टियं, आलिहसु अ जारिसा दिट्ठी संठाणं च विरहिणीए होइ ति । तओ वीरभद्देण लिहिया हंसिया । अवि य पव्वायवयण-वाहोल्लणयण-पक्खउडविहडणेसयोहा । पडिरुद्धसम्बचेट्ठा झायन्ती किं पि हियएणं ॥ ६॥ दुसहपियविरहवियणाणीसहचंचउडगहियबिसखंडा । अभणन्त चिय साहइ सोयावेगं सचेट्टाए ॥७॥ लिहिऊण य दंसिया अणंगसुंदरीए । 'अहो ! विण्णाणाइसओ, अहो ! भावसूयगा अवत्था हंसियाए' एवं च सुइरं णिज्झाइऊण पसंसिऊण य पुणो भणियं अणंगमुंदरीए-किमेत्तियं कालं णागया तुमं ? ति । वीरभद्देण भणियंगुरुयणसकाए । अणंगसुंदरीए भणियं-संपइ पतिदिणमागंतव्वं तुमए, किमण्णासु वि कलासु अत्थि परिस्समो ण व ? ति। विणयवईए भणियं-दियहेहि सयमेव जाणिही सामिणी। तओ 'सोहणं संलत्तं' ति अवऊढाविणयवती। तुज्झ एस अवराहो जमेत्तियं कालं णाणीय त्ति । णामं च पुच्छियं । सयमेव वीरभदेण साहियं-वीरमइ त्ति । तओ पूइयाओ तंबोलाइणा। गयाओय णिययभवणं । अवणियं णेवत्थं । को पुबवेसो। गओ हटाहिमुहं । भणिओ य सेट्ठिणा वीरभद्दो--पुत्त ! कत्थ गओ सि तुमं ?, जेणाहं तुहण्णेसणणिमित्तमागयाणं णिविष्णो देंतो उत्तरं ति। तेण भणियं-ताय ! बाहिरुज्जाणे ठिओ म्हि । सेट्ठिणा भणियं-सोहणं ति। बीयदियहे वि तहेव पविट्ठो । वीणाविणोएण य अणंगसुंदरी चिट्ठति । वीरभद्देण य भणियं-विरसा एसा तंती, जओ एत्थ माणुसवालो पविट्ठो, किं च तुमए सजगामो आलत्तो, तत्थ य सज्जो चउसुइसमेओ भवति, तत्थ वि संवादी विवादी अणुवाई वाई जहा होइ तहा तंती छिवियव्या। इच्चेवमादि भणिए समप्पिया वीणा अणंगसुंदरीए । वीरभद्दणे य उवलिया तंती, दंसिओ माणुसवालो, तमवणेऊण वलिया तंती, संजोइया वीणाए, वाइया वीणा, महुरं गमयविमुद्धं णिसायसरं दोहं सुईणमुक्करिसेणं कायलीपहाणं तंतीसराणुवाइयं तहा गीयं जहा अक्खित्ता अणंगसुंदरी सह परिसाए। तमायण्णिऊग चिंतियं अगंगसुंदरोए -किं जम्मेणमिमीए विणा ?, जओ देवाण वि दुल्लहं एरिसं रूवं णीसेसकलाणुगयं ति, अवि य रूवं सुकुलुप्पत्ती कलासु कुसलत्तणं विणयजुत्तं । पढमालवणमगव्यो न होइ थेवेहि पुण्णेहिं ॥८॥ 'पुहतीए णिकलंक रयणं णत्थि' ति सुबइ पवादो । दस॒णमिमं एसो णिरत्थओ संपयं जाओ" ॥९॥ ता एवमणंगसुंदरी वीरभद्देणं अण्णेसु वि पत्तच्छेज्जाइएसु कलाविसेसेसु विण्णाणाइसयं दंसंतेण तहा कया जहा अण्णं ण जाणइ, ण पेक्खइ, ण अण्णेण सह अभिरमइ । सबमेव वीरमइयं वाहरति त्ति ! अवि य सा चेय ठाइ हियए अण्णम्मि वि चिंतियम्मि तं चेव । वाहरइ सुण्णहिययत्तणेण सुविणे वि सा "चेच ॥१०॥ १ तत्थ ग सू । २ परिच्चएणं जे । ३ दिट्ठा य सा जे । ४ मणुचिट्ठिय सू । ५ णणिसष्णा जे । ६ °ए । भणिय च अहो 1जे । ७ गुरूण संसू । ८ बाहिं उजाणाटुओ जे । ९ बो य पुण्णरहिए गुणा कत्तो ? ॥ जे। १० होइ जे । ११ चेय जे।। Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५६ चउप्पन्नमहापुरिसचरियं । वीरभद्देण य णाऊण वसीभूयमणंगसुंदर साहियं सेविणो जहा-अहं कयमहिलाणेवच्छो विणयवतीए सद्धिं कण्णंतेउरं पविसामि, ता तुमए ण विस्रेयव्वं, जह य अणत्थो ण होइ तहा करिस्सं, तुमए विजइ राया णियध्यं देइ तो पढम पडिसेहिऊण आयरेण देन्तस्स पडिच्छियव्वं ति । तमायण्णिऊण सेटिणा भणियं-तुमं जाणसि बुद्धीए अन्भहिओ, केवलं जहा सरीरे कुसलं हवइ तहा कैरेयव्यं ति । वीरभदेणं भणियं-उदुयचित्तेण ण होयव्वं, कइवयदियहेहिं पेच्छइ चेव ताओ जमेत्य "णिप्पज्जइ ति । सेटिणा भणियं-पुत्त ! तुमं चेव जाणसि । इओ य राइणो अत्थाणे कहा जाया जहा-एगो जुवाणो जंबुद्दीवाओ समागओ संखसेट्ठिणो गेहे चिट्टइ, तेण य विण्णाणेणं कलासु कुसलत्तणेणं कइत्तणेणं पण्हुत्तरगोट्ठीए सव्वं पि णयरं अक्खित्तं, जो य तेण पुलइओ गयणेहि, आलविओ, जेण सह परिहासो कओ, जस्स णामं गेहति, जेण सद्धिं पण्हुत्तराइणा खेलइ सो य अप्पाणं कयत्थं ति मण्णति । ती तमायन्निऊण राइणा भणियं-को उण सो जातीए ? । तेहिं भणियं-देव ! सम्म ण णज्जइ किंतु कुलप्पमएण होयव्वं ति । तओ तमायणिऊण णियधूयाचिन्ता जाया-एवंविहो भत्ता तीए जइ रुच्चइ ता सोहणं हवइ त्ति ।। इओ य वीरभद्देणं अणंगसुंदरी एगागिणी पुच्छिया जहा-" कीस तुमं लहिऊण सयलसामग्गि ण भोए मुंजसि ?, पिययमरहियाण केरिसा भोग ? त्ति, देवाण वि दुलहमिणं लहिऊण य सुयणु ! एरिसं रूवं । तत्थ वि य जोवणं जूरणं जुवाणाण पसयच्छि ! ॥११॥ जीयं णिरत्ययं होइ सुयणु ! पियसंगमेण रहियस्स । इह जोव्वणं पहाणं तत्थ वि पियसंगमसुहाई ॥ १२ ॥ उत्तट्ठमयसिलिंबच्छि ! कीस मूढत्तणेणमंतरसि । अत्ताणं पियसंगमसुहाण जणपत्थणिज्जाण ? ॥१३॥ एएण पुरिसपे(वे)सत्तणेण ओ ! तह कयत्थिया सि तुमं । सव्वस्स जह कयत्था वि सोयणिज्जा जए जाया ॥१४॥ तुह दुक्खदुखियाए मज्झं ता सुयणु ! साहसु फुडत्थं । सयलसुहाण णिहाणं पियसंगो कीस ते चत्तो ? ॥१५॥ जस्स न सुहेण सुहियं दइयं, ण य दुक्खदुक्खियं होइ । समसब्भावसिणेहं ण जस्स किं तस्स जम्मेण ?" ॥१६॥ इय एवमाइमहुरक्खरेहिं तह कह वि तेण सा भणिया। जह उज्झिऊण लज्जं सम्भावं कहिउमाढत्ता ॥१७॥ अणंगसुंदरीए भणियं-- "पियसहि ! कस्स केहिज्जउ सम्भावो ? कस्स सीसउ सरुवं ?। चित्तण्णुओ जणो सो ण कोइ जो जाणइ विसेस||१८|| सचं जं भणसि तुम मणुयत्तं रूव-जोवण-विलासा । पियविरहियाण जायइ णिरत्थयं णिरवसेसं पि ॥ १९ ॥ किंचमयणवियारो वियरइ णिरंकुसो जोव्वणम्मि सविसेसं । मयणाहि-पंचमुग्गारभावसंधुक्किओ णिययं ॥ २० ॥ किंतु रमणीण सोकवं रमणायत्तं ति तेण तैदियहं । तच्चित्ताराहणतप्पराहिं रमणीहि होयव्वं ॥ २१ ॥ तं सहइ कलाकुसलम्मि रूव-जोवण-महागुणग्यविए । ण हु जम्मि वि तम्मि वि माणुसम्मि रइकेलिविरसम्मि ॥२२॥ सच्छंदविहरणं वज्जिऊण जइ कह वि परवसो अप्पा । कीरइ ता तम्मि जणे दोसो वि गुणे जहिं पडइ ॥२३॥ इय णिग्गुणे जणे चाडुकोडिकरणं ण सुंदरं जेण । तेण मए परिकलिऊण पुरिसवेसत्तणं गहियं" ॥२४॥ तओ लद्धावसरेण भणियं वीरभद्देणं-अणंगसुंदरि ! किमेवं जंपसि ?, विउलं भरहं, पुरिसाणमंतरं, मा हु वहह णियगव्वं । लोए एस पवाओ, 'बहुरयणा चेव पुहइ' त्ति ॥ २५ ॥ अणंगसुंदरीए भणियं-तुह दंसणेणावगयं मए एयं ति, पुव्वं पुण णियकलावले वेण अण्णह चिय मणो आसि। वीरभदेण भणियं-किं संपयं जइ कोइ तुह कलाहिओ जुवाणो लगभइ ता इच्छसि तुमं विसयसंग ? । तीए भणियं १ 'उरे सू । २ 'यब ति जे । ३ कायव्व जे । । कहिं चिय दिय जे । ५ णिप्फज्जइ जे । ६ "ऊणं सुर्य जे । ७ गाथेये सूपुस्तके त्रयोदशमीगाथाऽनन्तरमुपलभ्यते । ८ उमियाण लजा जे। ९ कहिज्जइ सू । १० "विलासो सू। ११ तद्दियसे जे । १२ गुणो अहिं होई जे । १३ सि ?, विउला पुहती बहुरयणा य, सोहणस्स रमत्थि (?)। अणंग जे । Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४-३५ अरसामितित्थयर-चक्कवट्टिचरियं । १५७ इच्छामि जइ तुहाणुरूवं रूव-जोव्वण-कलाहियं पेच्छामि त्ति । तओ तयणन्तरमेव साहिओ णिययवुत्तन्तो गेहणिग्गमगाइओ अणंगसुंदरीदंसणपज्जवसाणो, साहिओ य अत्तणो तीए उवरि अणुराओ त्ति । तओ एयमायण्णिऊण अणंगसुंदरी गरुयविम्हयहरिसविसेसफुल्लणयणा भणिउमाढत्ता जहा-फलियं मह पुवज्जियमुकयतरुणा, संजायं पुरिसपे(वे सत्तणवयविसेसस्स फलं ति, ता किं बहुणा?, जीविय-सरीरादियं सव्वं तुम्हायत्तं, जं जाणसि तं कुणसु त्ति । वीरभद्देण भणियंअत्थि एयं, किं पुण तहा कीरइ जहा पर लोया वाओ ण होइ ? त्ति । तीए भणियं-तुमं चेव संपयं जाणसि त्ति। पुणो भणियं वीरभद्देण-ण संपयमहमागमिस्सामि, तुमए पुण तहा तहा महाराओ भाणियव्यो जहा मह पिउणो संखसेहिस्स तुमं विवाहणि मित्तं पयच्छइ त्ति । एवं च सिक्खविऊण णिग्गओ वीरभदो । गभी सभवणं । इओ य अणंगसुंदरीए सद्दाविया जणणी। भणियं च तीए अग्गओ जहा-अम्ब ! जइ मए जीवन्तीए पओयणं ता, तह विष्णवेसु तायं अंब ! तुम कह वि वीरभदस्स । जह अजं चिय मं देइ संखसेटिं समाहूय ॥२६॥ तओ एयमायण्णिऊण तुट्टाए जणणीए भणियं-पुत्त ! को एत्थ संदेहो ?, तुह वराहिलासेण अचन्तणेव्वुओ होही तुह जणओ , किंतु केरिसो सो वरो ? ति तुमं जाणसि । तीए भणियं-अम्ब ! विष्णाणाइगुणग्धवियपरियणायंतसयलभुवणेण । जो तेणं चिय णज्जइ जयम्मि सो गुणमहग्यविओ ॥२७॥ तओ संठविऊण धूयं गया तेलोक्कसुंदरी महारायसमीवं । साहिओ एस वुत्तन्तो राइणो । तेणावि भणियं-णिसुओ मए जहा-कोइ सन्चकलाकुसलो रूवोहामियकामएवो जुवाणो जंबुद्दीवाओ समागओ संखसेट्ठिणो गेहे चेट्टइ, ता सदावेमि संखसेटिं। ति भणिऊण विसज्जिया महादेवी। सदाविओ संखसेट्ठी। सिक्खविओ वीरभदेण जहा-सदाविओ तुमं दिक्करियादाणणिमित्तं, तए वि अवट्ठभं काऊण पडिच्छियव्वा, ण अण्णह त्ति। गओ सेट्ठी बहुवाणियगस मेओ। पटिहारजामाविमओ पविट्ठो। दिवो य राया कालोचिएण दरिसणिज्जेण । कयपणामस्स य राइणा दवावियमासणं । उवविट्ठो काऊण पसायं ति। भणियं राहणा-भो सेट्रि! तह घरे जंबद्दीवाओ समागओ जुवा मुणिजइ, सो यकिल सम्यकलाकसलो विणीओ य 'विणिज्जियासेसस्वविहवो ति । सेटिणा भणियं-देव ! अत्थि जुवा, कला-गुणोववेयत्तणं तु लोओ भणइ, अम्हे उण ण सॅम्मं जाणामो । राइणा भणियं-किं तुह णिद्देसवत्ती ण व? त्ति । सेटिणा भणियं-देव ! तस्स सयलं पि णयरं गुणावज्जियमाणसं वसे वट्टइ, सो उण विणीयत्तणेण मह परियणस्स वि णिद्देसे वट्टति, किमंग पुण महं? ति। राइणा भणियंजइ एवं ता णियधृयमहं देमि, गेण्हसु तुमं ति । सेट्टिणा भणियं-देव ! ण मयाणं सीहेण सह संजोओ सुंदरो होइ, ता देव ! सामिसालो तुमं, अम्हे पुण तुम्हें पयाओ, एवं च ठिए किमेवमाइसइ महाराओ ? । राइणा भणियं-किं तुज्झ वियारेण ?, जमिहमाइसामि तुमए अवियारं कायव्वं ति, तुमं पुण तमेव पुच्छाहि । सेट्ठिणा भणियं-एवं कीरइ त्ति । विसज्जिओ सेट्ठी। कहिओ वुत्तन्तो वीरभद्दस्स । पुणो वि सदिऊण राइणा दिण्णा अणंगसुंदरी । पडिच्छिया य सेविणा । कयमुचियकरणिज । महासम्मद्देण वत्तो विवाहो । जाया परोप्परमञ्चन्तपीई । रूसन्ति विओयकारिणो णयणा णिमेसस्स वि । कया वीरभद्देण अचंतसाविगा, कहिओ जिणएसिओ धम्मो, लिहिया य सयमेव तित्थेसरपडिमा, पडिलिहिया साहू साहुणीओ य, लाइओ इच्छा-मिच्छाइओ सावगजणोचिओ ववहारो । कुणंति पइदिणं देववंदणाइयमायारं, गायति वेरग्गगीयाओ, पढन्तिणाणाविहाइं कुलयाई । भुंजंति भोए, सरइ संसारो । अण्णया य चिंतियं वीरभद्देणं जहा-"ण सक्केइ मह विरहदुक्खं थेवं पि सहिउँ अणंगसुंदरी, अवि य येवं पि विरहदुक्खं ण सहइ, गरुयं पि चढणं सहइ । वट्टइ सोमालिम-जरढियाउ दइए समप्पंति ॥२८॥ Education मह सुकय सू । २ तुहायत्तं जे । ३ णायन्नस जे । ४ विणिजियसेस सू । ५ संपर जा सू । ६ वह जे । FON Private & Personal Use Only Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५८ चउप्पन्नमहापुरिसचरिय । ता एत्थ पत्तयालं जहा-गच्छामि घेत्तूण एवं णिययदेसं" । ति चिंतिऊण भणिया अणंगसुंदरी जहा-पिए ! ण तुज्झ सयासाओ वि किं पि अवरं पिययरं महं अत्थि, किंतु जणणि-जणया मह विओए अञ्चन्तदुक्खिय ति, ता दठ्ठणमहं सिग्धं समागच्छामि, तुमं पुण इहेव चिट्ठसु त्ति । अणंगसुंदरीए भणियं-सोहणं भणियं तुमए जइ तहाविहं घेव मज्झ वि चित्तं जारिसं तुम्ह कठिणं ति, महं पुण चित्तं ण सहइ थेवं पि विओयं सहिउं ति, किमहं करेमि?। अवि य सुहय ! तुमाओ अहियं णिययं चिय वल्लहं महं जीयं । तइ गच्छन्ते गच्छइ तयं पि, ता कीस मं मुयसि ? ॥२९॥ 'तुह उण णस्थि सिणेहो' णायमिणं णाह ! तुम्ह चेट्टाए । होतम्मि तम्मि पिययम ! पवसणबुद्धि च्चिय ण होइ ॥३०॥ णिकइयवम्मि पेम्मे पिययम ! विरहो अलद्धमाहप्पो । अह विरहो, ण हु णेहो; सारसमिहुणेण दिलुतो ॥ ३१॥ को णाह ! तुज्झ दोसो कयकइयवपेम्मलोयवेलविओ । इय एव मज्झ विसओ परिणामे णवर जाणिहिसी ॥ ३२ ॥ तो तमायष्णिऊण वीरभद्देश भणियंमा कुप्प मज्झ सुंदरि !, णाहं चइउं तुमं समत्थो मि। तुह गमणोवाओ च्चिय एस मए पत्थुओ सुयणु ! ॥३३॥ ग्वणमेत्तम्मि वि विरहम्मि जस्स जीयं पि सल्लतुलमिणं । कह छड्डिजइ तं मुयणु ! माणुसं भण जियंतेहिं ? ॥३४॥ इय बहुविहं भयंतेण तेण सब्भावणेहपसरेण । सा संठविया तह जह मोत्तुं माणं समुच्च लिया ॥ ३५ ॥ साहिओ य णिययाहिप्पाओ वीरभदेण महारायस्स । णिब्बंधे कए मुको महाराएणं अणंगसुंदरीए सद्धिं ति । कया सामग्गी । सज्जीकयं जाणवत्तं । गणियं लग्गं । चडाविओ गंगरो। मुकं जाणवत्तं । समुधुओ सियरडो । संजत्तो कण्णहारो । पणमिओ राया महादेवी य तीरट्टिएहिं दोहिं वि जणेहिं । लग्गो अणुकूलो मारुओ । गम्मए जंबुद्दीवाभिमुहं । दीसंति णाणाविहा जलयरा । अवि य करिमयरुत्तासियतिमिसमूह बिउणयरजायकल्लोले । कल्लोलगलत्थल्लियसंखउलुच्छलियहलबोले ॥ ३६॥ हलबोलवलियगरुययरमच्छपरितुट्ठजाणजगणिवहे । जणणिवह वियम्भियविविहसंकहालावविच्छड्डे ॥ ३७॥ इय एरिसे समुद्दम्मि वहइ जा जाणवत्तमणुदियहं । ता सत्तमम्मि दियहे वियम्भिओ मारुओ चंडो॥३८॥ मारुएण य समुच्छलिएण संबुद्धो मयरहरो । उच्छलइ य महाकल्लोलणोल्लियं जाणवत्तं । ताव य भग्गं परयाणं, तुट्टाओं रज्जूओ, दलिओ फॅआखम्भो, फट्टो सीयवडो, अवसीहूयं जाणवत्तं । ताव य पवलमारुयत्तणओ, संखुद्धयाए मयरहरम्स, अणवसित्तण जाणवत्तस्स, सामग्गीविरहाओ य विसण्णत्तणओ णिज्जामगाणं, तहाविहकम्मपरिणतिसामत्थेण य भमिऊण तिणि दिणे अप्पंपरीहूयाण य जाणारूढाणं सह जीवियासाए विवण्णं जाणवत्तं । पुन्नबंधवा विव विउत्ता सव्वपाणिणो । समासाइयं च फलहगमणंगसुंदरीए वीरभद्देण य । तओ अणंगसुंदरी पंचरत्तेण खित्ता तडम्मि समुद्दकल्लोलेहिं । तओ सा बंधुधिओएणं विएसगमणेणं वहणभंगेण पियविप्पओगेणं धणक्खएणं जलकल्लोलणोल्लणेणं छुहावियणाए गरुयदुक्खसंदोहवत्तिणी तीरं पर्ती चिंतिउमाढत्ता-“एयाणि ताणि विहिणो विलसियाणि, अवि य अइबल्लहे वि चइऊण जणणि-जगए समागया सद्धिं । दइएण णवर सो वि हु विओइओ दड्ढदिव्वेण ॥३९॥ ता किं मए जियंतीए मंदभायाए संपयं कजं ?। णियबंधु-दइयरहियाय ताण लंछणणिमित्तमेत्ताए ॥४०॥ हा कत्थ महं दइओ अणोरपारम्मि गुरुसमुदम्मि । पडिओ जीविहिइ महंभीसणकरिमयरगहणम्मि?" ॥४१॥ मा वहुविहं रुयन्ती दिट्ठा तत्थागएण एकेण । तावसकुमारगेणं गुरुकरुणाभरियहियएणं ॥४२॥ १ तुह जे । २ पुम जे । ३ तुज्झ जे । ४ लोलवेल' जे । ५ सुयवडो जे । ६ परपाणं जे । ७ कुयाखभो जे । ८ ता । एयाणि ताणि सू। Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४-३५ अरसामितित्थयर-चक्कवट्टिचरियं । णीया य तेण आसमपयं । दंसिया कुलवइणो । कुलवइणा वि सुइरं णिज्झाइऊण भणिया-पुत्ति ! वीसत्था अच्छसु, भविस्सति तुह भत्तुणा सह समागमो त्ति । तओ सा पडिजागरिया ताबसेहिं कइवयदियहा जाव पुव्बावत्था जाय ति । ताव य कुलवइणा पेच्छिऊण तीए रूव-लायण्णाइसयं 'समाहिपरिपंथिणीयं तावसकुमाराणं' इति चिंतिऊण भणियं जहा-पुत्त ! इओ णाइदुरे पोमिणिखेडं णाम णयरं तत्थ य विसिट्ठलोओ परिवसइ, तहिं च तुह भत्तुणा सह समागमो भविस्सई, ता तहिं वञ्च तमं ति । तीए भणियं-ताय ! जं तुमं आणवेसि । तओ वुइढतावसजुगलसहाया पेसिया पोमिणिखेडं । मुक्का य तहिं णयरबाहिरियाए । 'अम्ह एत्थ णत्थि पवेसो' नि भणिऊण गया तावसा । - य णयरबाहिरियाए एगागिणी दिसोदिसि पलोयन्ती जूहपरिभट्ट व्व मुद्धमई चिट्ठति । ताव य समागया सुब्वया गणिणी साहुणीसमेया । तीए य ठूण साहुणीओ समूससियं हियएणं । वीसत्था जाया । सुमरियं जहा-मह एयाओ पडिलिहियाओ पिययमेण दंसियाओ त्ति । गंतूण य तीए पुव्वब्भत्थेण विहिणा सम्म वंदियाओ। चेइयाणि य वंदावियाओ सिंघलदीवे । गणिणीए भणियं-पुत्ति ! कहिं सिंघलदीवे चेइयाणि ?, कहिं वा तुममेगागिणि? त्ति। तीए भणियं-सव्वं भयवतीए साहिस्सं वीसत्थ त्ति । ताव य गणिणीए कया सरीरचिन्ता। पविठ्ठा तीए सह गयरिं। अणंगसुंदरीए रूवाखित्तहियो सयलो वि णयरलोओ परोप्परं भणिउमाढत्तो-का उण एसा?, कुओ वा समागया?, कस्स वा संबंधे वट्टइ ? त्ति । पत्ता य पडिस्सयं गणिणी । दिट्ठा य तत्थेवऽच्छंतीए तुह धूयाए पियदंसणाए, पप्फुल्ललोयणाए य पुच्छिया। वंदियाओ य जहाजोगं साहुणीओ पियदंसणाए य। साहिओ वीरभदसंगमाइओ गणिणीए दंसणपज्जवसाणो सव्यो च्चिय अत्तणो वइयरो। पियदंसणाए पुच्छियं-केरिसो वण्णेणं ? । अणंगसुंदरीए भणियं-सामो ति। . पियदंमणाए भणियं-सव्वमणुहरड मह भत्तुणो मोत्तूण सामत्तणं ति । गणिणीए भणियं-बहरयणा वसुंधरा, अण्णो कोई भविस्सद तहाविहो त्ति । पुणो अणंगसुंदरी अभिहिया जहा-पुत्त ! वीसत्था चिट्ठसु पतिसमागमं मोत्तुं सव्वं तुह एत्थमथि, एसा य पियदसणा तुह बहिणिसरिसा, ता इमीए सद्धिं सद्धम्माणुढाणपरायणा चिट्ठसु ति। अणंगसुंदरीए भणियं-अच्चन्ताणायारपरेणावि विहिणा सोहणमेयमणुट्टियं जं तुह दंसणं ति । किंच सद्धम्मे पडिवत्ती गुरुचलणाराहणं च जिणसेवा । सज्झायवावडतं ण होन्ति थेवेहिं पुण्णेहिं ॥ ४३ ॥ ता भयवति ! संसारे सुलहा पियविप्पओया, दुलहो जिणदेसिओ धम्मो, अवस्संभाविणी आवया, दुलहा तुम्हारिसगुरुसामग्गी, ता एरिसेहिं चेचे णिमित्तेहिं पाएण लोओ धम्मबुद्धिं करेइ, ण अण्णह त्ति, ता कयत्था अहं जं पाविया तुम्ह चलणकमलसेव त्ति । पियदंसणाए भणियं-सहि अणंगसुंदरि ! पियसमागमेण विर्य समूससियं मह हियएणं, अण्णह च्चिय मह अप्पा पडिहाइ तुह समागमेणं ति, किं बहुणा ?, ण बंधुविओयदुक्खदुक्खियाए अप्पा आयासेयचो त्ति । अणंगसुंदरीए भणियं-पियसहि ! ववगयं मह बंधुविरहदुक्खं तुह दंसणेणं ति । एवं ताओ अण्णोण्णदंसणावियग्णाओ, समयं पढंति समयं सुयंति समयं कुणंति करमिजं । चिट्ठति अहोरतं णिचं चिय साहुणिसमीवे ॥ ४४॥ इओ य वीरभद्दो फलगलग्गो कल्लोलेहिं उब्बुड्डुणिचुडं करेंतो सत्तमे दिवसे रइवल्लहाहिहाणेण विज्जाहरेण दिट्ठो गहिओ य । णीओ वेयड्ढसिहरं । समप्पिओ णियजायाए मयणमंजुयाहिहाणाए पुत्तत्तणेणं ति । पुच्छिओ य समुद्दवडणवुत्तंतं । तेणावि साहियं जहा-जबुद्दीवं सिंघलदीवाओ पत्थिओ सह जायाए, अंतराले य विवण्णं जाणवतं, अओ एगागी तुम्हेहिं कयंतमुहाओ व्व कढिओ अणोरपाराओ समुदाओ त्ति, ताण जाणामि का य अवस्था मह जायाए । विज्जाहरेण विजाए आभोएऊण कहियं-तुह दुवे वि जायाओ पोमिणिखेडे गयरे सुव्वयागणिणीए सगासे पढंतीओ तवचरणरयाओ चिट्ठति । एवं कहिए वीसत्थो जाओ वीरभद्दो । समुद्दाओ उत्तिण्णमेत्तेणं चेव अवणीया सामत्तणकारिणी गुलिया। जाओ य पुव्वसहावो वण्णो त्ति । परिणाविओ य वज्जवेगस्स वेगवतीए भारियाए रयणप्पहाहिहाणं धूयं । पयासियं च अत्तणो णामं बुद्धदासो ति । अच्छइ य तत्थ सह तीए विज्जाहरोचिए भोए भुंजतो। १ कइ वि दि जे । २ ज्य-लाइण्या जे। ३ इ ति । तीए में सु । ४ पुत्त ! कह जे । ५ चिय जे । ६ य ऊससिय सू। ७ करेंति जे । ८ साहिओ जे। कयंताओ व्व सू। Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउप्पन्नमहापुरिसचरियं । अण्णया य विजाहरलोयं महता सम्मद्देणं गच्छंतं पेच्छिऊण पुच्छिया रयणप्पभा बुद्धदासेणं जहा-कर्हि एसो विज्जाहरलोओ पत्थियो ? । तीए भणियं--सिद्धाययणे तित्थेसरजत्ताए, तत्थ सासयाओ जिणपडिमाओ वंदिजन्ति, तणिमित्तं सव्वे विजाहरा जत्तं कुणंति । तओ सो वि सह भजाए विसेसुज्जलणेवच्छो सव्वालंकारविभूसियसरीरो वेयड्ढसिहरं समारूढो । तत्थ दिढे सासयरयणमयपडिमासणाहं देवउलं । तं च तेण भत्तिभरणिभरेण पयाहिणीकयं, वंदियं च । दंसेइ य णिययजायाए णाणाविहे विजाहरीण वावारे, अवि य वेरुलियदेहलीपहविलित्तसंकाए का वि ण हु कुणइ । ओययणगोमुहं णीलमणिपवरचंदणरसेण ॥ ४५ ॥ वररयणकोट्टिमे णलिणिकमलगहणेकजायववसाया। भग्गणहग्गा मुद्धा हासवाणं जुवाणाणं ॥४६॥ फलिहन्तरियपहाए वि जहुज्जु यं चेव धावमाणीए । पडिभग्गगमणपसराए पेच्छ हलबोलिओ अप्पा ।। ४७ ॥ वेलवइ मुद्धजायं वारं वारं समुत्थयसरीरो । कसणमणिकिरणणिवहेण सुयणु ! विजाहरजुवाणो ॥४८॥ णिव्यवइ पेच्छ चीणंसुरण मुद्धा पयंगसंकाए । वरपउमरायकिरिणोहउज्जलं ओ पईव वेलविया ॥४९॥ हरियमणिकिरणविच्छड्डजायजवयंकुरेकबुद्धीहिं । दूरेण परिह रिजइ तम्मलणभएण मुद्धाहिं ॥ ५० ॥ णियवण्णरयणणिम्मियजिणपडिमापहपरोप्परच्छुरिया । तित्थेसरा ण णज्जति रूवओ मुद्धजुवतीहिं ॥५१॥ इय अच्छेरयकलियम्मि गरुयवेयड्ढसेलसिहरम्मि । पेच्छइ णटुं बत्तीसअंगहारेहिं संजुत्तं ॥५२ ॥ अठुत्तरसयकरणोवसोहियं तह य पिंडिबंधेहिं । पउमाइएहिं कत्थइ सोलससंखेहि चंचइयं ॥ ५३॥ चउरेयगागयरसं चउबिहाहिणयसोहियं रम्मं । णवणट्टरससमेयं चउविहाउज्जसज्जमिणं ॥५४॥ तय-वितय-घणं मुसिरं ति तत्तमोघं तहाणुगं तिविहं । लय-तालसमं गेयं पि तत्थ सुइमणहरमणग्धं ॥५५॥ इय पेच्छिउँ जहिच्छं पेच्छणयं णयण-जम्मणाणंदं । तह वंदिऊण पडिमाओ सम्मकरणेण भत्तीए ॥५६॥ तओ वंदिऊण सासयाई चेइयाइं समागओ णिययभवणं । भणियं च णियजायाए पुरओ जहा-ण कयाइ अम्हेर्हि एरिसमुवलक्खियं ति, एयस्स दंसणेणमहमत्तणो जम्मं कयत्थमवगच्छामि । भणियं च तीए-कहिं तुम्ह जम्मो ?, जेण न दिढे ति । तेण भणियं-सिंघलदीव वत्थव्यो, अम्हं च कुले वुद्धो कुलदेवय ति, महं च वाणिज्जणिमित्तं गच्छन्तस्स समुहमज्झे विवष्णं जाणवत्तं, केंठगयपाणो उत्तारिओ विज्जाहरेण, गहिओ य पुत्तत्तणेणं, परिणाविओ तुम ति । तीए भणियं-तेणेव णो बलक्खिया जत्ता पइवरिसं भवन्ती वि । जाया य तेसिं परोप्परं अचन्तपीती। ण सहति थेवं पि विरहं । समयं सुयन्ति समयं भमन्ति समयं कुणंति कजाई । समयं वच्चइ कालो विओयरहियाण दोण्हं पि ॥ ५७ ॥ एवं च विसयसुहमणुहवन्ताणं तेसिं गच्छंति दियहा, सरइ संसारो। अण्णया य बुद्धदासेण भणियं-गच्छम्ह भरहद्धं कीलाणिमित्तं । तीए भणियं-एवं करेम्ह । तओ विजाए दोण्डि वि गयाणि पोमिणिखेडं णयरं । णिवइयाणि य राईए चरिमजामम्मि साहुणिपडिस्सयस्स बाहिं । भणिया य तेण जहा-चिट्ठसु तुमं जाव अहं छिविऊणमुययमागच्छामि । तीए भणियं-सिग्घमागच्छसु त्ति । तेओ सो गंतूणं थेवं भूमिभागं "ठिओ तत्थेव णिलुको तीए रक्खणणिमित्तं । जाव थेववेलाए सा विज्जाहरी अणागच्छतम्मि तम्मि एगागिणी हरिणि व्य दिसाओ पलोइउमाढत्ता । तयणंतरं च इत्थीसहावओ अंधारत्तणेण य रयणीए भयवेविरसरीरा मुक्काहं रोविउमाढत्ता । णिसुओ सदो पडिकमणणिमित्तुढ़ियोए गणिणीए । उग्घाडिऊण य बलाणयकवाडं पुलइया, दिट्ठा य रूबोहामियसयलजियलोया अहिणबुभिण्णजोव्वणा करुणं सदुक्खं दीणं रुयन्ती कयलीपत्तं व वेविरसरीरा एगागिणी रमणी । दठ्ठण य पुच्छिया-पुत्ति ! किं निमित्तमेवं सदुक्खं रुयसि ?, कुओ वा एगागिणी इह समागय त्ति । तओ तीए रुयंतीए चेव साहियं जहा-भगवइ ! भत्तुणा सह वेयड्ढाओ अहं समागया, सो य मं इहं मोत्तूण पाणियकज्जेण गओ, तस्स य महती वारा गयस्स, ण य सो सायत्तो मह विओगमेदहमेत्तं सहिउं समत्थो ति, ता केण वि कारणेण होयव् ति अइ १ आयपण सू । २ मलियवरवदण सू। ३ वेयडढकूडसि सू। ४ चउभेयगेयसरि(? २)सं जे । ५ कंठागय जे । ६ तो ग. . थिओ सू। ८ धाहा सू । ९ पुत्त ! जे । Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४-३५ अरसामितित्थयर-चक्कबट्टिचरियं । १११ उत्तम्मइ मे हिययं, ता भगवइ ! छिज्जंतीव मे बंधणाई, सौयंति अंगाई, ण पेच्छन्ति लोयणाई, फुट्टइ सीस, ण वहंति पाया, ण सक्केमि पाणे धारिउं, ता परित्तायउ भयवई । तओ भणियं गणिणीए-उत्त! पविससु ता पडिस्सए, समागमिस्सइ ते भत्ता इहेब चिटुंतीए, ता वीसत्था होहि,' वगयपाया रयणी, ण एल्थ णयरे दुद्दबुद्धिपुरिसो अत्यि जेण अकुसलमासंकिज्जइ, जइ य थेववेलाए गोगमिस्सइ ते भत्ता ता गवेसइस्सामि अहं ति, तुमं पुण पविसिऊण पडिस्सयं वीसत्था चिट्टमु त्ति । एवं महुरवयणेहिं संठविऊण पवेसिया । अवकंती य सो जुवागो पविटुं जाणिऊण णिययजायं ति । को य तेण वावणगवेसो । चिट्ठइ य तिणि वि जायाओ पतिदिणं पेच्छन्तो । अक्खित्तं च णयरं तेण वामणगरूवधारिणा । को वि गेएण, अण्यो चित्तकम्मेण, अवरो वीणाविणोएण, एवं च तेण सव्वकलापारगेण जो जस्साहिप्पाओ तमणुयत्तमाणेण सव्वमेव जयरं वसीकयं । राया वि ईसाणचंदो हयहियओ कओ। ___इओ य सा विज्जाहरी पुच्छिया पियदसणाए अणंगसुदरीए य जहा-केरिसो तुह भत्ता ?। साहियं तीए जहा-सुरूवो । तओ एगीए वण्णेण विसंवयइ, बीयाए सिंघलदीववत्थव्वत्तणेणं उवासगत्तणेण य । तओ य सा गणिणीए अणुसासिया तहेव ताहिं सद्धिं पढन्ती तवचरणरया चिट्ठति । ताओ य तिणि वि जणीओ सरिसाओ, वएणं रूवेणं विण्णाणेणं सीलेणं समसुह-दुक्खत्तणेणं ति । जाओ य लोयवाओ जहा-तिण्णि वि तवचरणरयाओ, गेयाइए विष्णाणे ण एए( ? या )सिं कोइ सरिसओ त्ति, ण य पुरिसेण केणइ सद्धिं जंपन्ति त्ति । अण्णया य रायत्याणीए कहा पयट्टा जहा-एत्थ णयरे पडिस्सए अतीवरूवस्सिणीओ तिणि जुबईओ पयावइणो सग्गाभासफलं [व] चिट्ठन्ति, ण य ताओ कोइ पुरिसो बोल्लावेउं समत्थो ति । तो भणियं वामणगेण-अहं परिवाडीए बोलावेमि, पेच्छह मह सामत्थं । ति भणिऊण कइवयपहाणनरवइपुरिसाहिडिओ गओ साहुणीपडिस्सयाभिमुहं । लग्ग ओ य णयरलोओ मग्गो। तओ पविसंतेहि ठविओ बाँरम्मि बारवालिओ । सिक्खाविया य तेण सहेज्जया जहातुब्भेहि कहाणयं तत्थगएहिं अहं पुच्छियव्यो त्ति । एवं संपहारेऊण गओ पडिस्सए । पडिओ पाएसु वामणओ, भणियं च तेण साहेइ दंसणं चिय देव ! तुहं वीयराययमणग्धं । अन्तोकलुसमणाणं ण एरिसा सोमया भणिया ॥ ५८ ॥ पायवडणुटिएणं पुणो वंदियाओ गणिणीपमुहाओ अजाओ । भणियं चपरवावारनियत्ताण णवर एयाण जीवियं सफलं । सयलसुहबीयभूया धम्ममती जाण विष्फुरइ ॥ ५९ ॥ तओ एवमादि पसंसिऊण उवविट्ठा देवउलमंडवम्मि । समागयाओ य गणिणीए सद्धिं वामणयकोउयाखित्तहिययाओ पियदंसणा-अणंगसुंदरि-अणंगमइसमेयाओ सव्वामओ साहुणीओ, उवविट्ठाओ य। भणियं च वामणेणंजाव राया सुहासणत्थो भवइ ताव इह चेव ठिया केणइ विणोएण चिट्ठामो त्ति । तओ महल्लएहिं भणियं जहा-साहेहि किंचि सकोउयं कहाणयं ति । तेण भणियं-किं कहाणगं साहिजउ उयाहु वित्तगं ? ति । तेहि भणियं-को उण विसेसो ?। तेण भणियं-जं चिरंतणपुरिसचेट्ठियं अञ्चन्तमपञ्चक्खं तयं कहाणयं, जं पुण संपयं चेव वित्तं, अज्ज वि साहणाणि पञ्चक्खाणि तं वित्तयं ति । तेहिं भणियं-वित्तगं चेव सकोऽयं साहेसु । वाँमणेण भणियं-अवहिया मुणह जहा अस्थि तामलित्ती णाम जयरी । तस्थ य उसहदत्तो णाम सेट्ठी । तस्स पुत्तो वीरभद्दो णाम । अण्णया य उसभदत्तो पोमिणिखेडं जयरं गओ । तत्थ तेण सागरदत्तस्स धूया पियदंसणा णाम दिहा। पुत्तत्थं जाइया । वत्तो य विवाहो काल-विहवाणुरूवो। गया य सणगरं बहुं घेत्तूणं । अण्णया य रयणीए चरिमजामम्मि उदयच्छिवणणिमित्तं १°हि, ण एत्थ सू । २ णागच्छिस्सइ जे। ३ णपुरि सू । ४ बाहिम्मि जे। ५ तुम जे । ६ णिमित्ताण सू । ७ वावणेण जे । Jain Education national Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६२ चउप्पनमहापुरिसचरिय। उडिओ वीरभद्दो । उट्टतेण य कइयवपसुत्ता परिहासपुव्वं उठविया पियदसणा। तीए भणियं-किं मं कयत्थसि ?, सिरं मे बाहइ नि । तेणं भणियं-कस्स तुमए अब्भहियं दिटुं ? ति । तीए भणियं-तुज्झ चेव । किं तं? । जं महुरा वाणी । कि? किं) महं साऽपुव्वा अण्णेसि] गासि ? ति । तीए भणियं-आसि अण्णस्स, ण उण मज्झोवरि ति। एवं च काऊण परिहासं उहिओ, कयमुचियकरणिज्ज । तओ परिणयप्पांयाए रयणीए सुहपसुत्तं पियदंसणं जाणिऊण उहिओ वीरभद्दो। परिहियाओ छकण्णाओ पाणहियाओ। परि[?णि हियाई अद्धप्फालाई। णिग्गओ गेहाओ ति। तओ भणियं वामणेणं जहाराउले उर सूरो भबिस्सति, ता गच्छम्ह । ___ एत्यंतरम्मि लज्ज मोत्तूण भणियं पियदंसणाए-साहेहि ताव कहिं पुण सो गओ ? त्ति । वामणेण भणियं-ण अम्हे परमहिलाहिं सद्धि संलावं करेम्ह । तीए भणियं-जाणियं तुह लोयाओ चेव संढत्तणं, ता चइऊण कइयवं भणियं फुडं साहसु, तुह वयणे मह जीवियं ति । पुणो भणियं वामणगेण-पच्चूसे कहिस्साम्मि । त्ति भणिऊण णिग्गओ पडिस्सयाओ । कहियं जहटियं राइणो पच्चइयपुरिसेहिं । विम्हिओ राया । पुणो पच्चूसे तेणेव विहिणा गंतूणं बोल्लाविया अणंगसुंदरी । तइयदिवसे अणंगमइ त्ति । विम्हिओ राया वामणगवइयरेणं ति । तओ एस वामणी तुज्झ जामाउओ, तिण्ह वि जणीणं भत्ता । ऐयं सुणिऊणं वंदिओ गणहरो वामणेणं । भणियं च-भयवं ! सव्वं सच्चमेयं जं भयवया समाइट, ण तहा अहं सुमरामि जहा भगवया साहियं ति । एवं साहिऊण उढिओ गणहरो। गओ य वामणगेण सद्धिं सागरदत्तो पडिस्सयं । दळूण तिण्णि वि जणीओ विम्हउप्फुल्ललोयणाओ सहस त्ति समागयाओ वामणगसमीवं ति । सागरदत्तेण भणियं-एस तुम्ह भत्ता । ताहिं भणिय-कहिं चिय ? । तेण जहिट्टियं साहियं । विम्हियाओ सह गणिणीए तिणि वि जणीओ । बामणेण य अन्तो पविसिऊण अवणीयं वामणत्तणं । कओ य वेसो जारिसो अणंगसुंदरीए दिट्ठो त्ति । तयणंतरं च सो वि अवणीओ, ठिओ साहाविएण रूवेण । पञ्चभिण्णाओ पियदंसणाए अणंगमतीए य । गणिणीए भणियं-धम्मसील! कियेयं ? ति । तेणावि य णिययाभिप्पाओ साहिओ जहा-कीडाणिमित्तमहं गेहाओ णिग्गओ, तओ मए एवं की डियं ति । गणिगीए भणियं बच्चइ जहिं जहिं चिय घेत्तुं धण्णो सुधम्मपच्छयणं । पावइ तहिं तर्हि चिय सुहमउलं णत्थि संदेहो ।। ६० ॥ दुक्खदुयाण मुहवावडाण जीवाण जीवलोगम्मि । होति जहिच्छं भोगा सुपत्तदाणाणुहावेणं ।। ६१ ॥ पुणो भणिय-गंतूणं तित्थयरं पुच्छम्ह 'किमणेण जम्मंतरे कयं ? ति । तओ वीरभदो सभजाओ ससुरेण य सागरदत्तेण समेओ गणिणीए सद्धिं गओ तित्थयरसमीवं । वंदिऊण य पुच्छिओ भयवं-भयवं ! किं मए पुन्चमवे मुहमायरियं ? ति । भयवया भणियं-सुणसु मज्झ वयणं ति, इओ पंचमे भवे पुव्वविदेहे उज्झियरायसिरिपरिभोगस्स गहियपव्वज्जस्स उवचियतित्थयरणाम-गोत्तस्स चाउम्मासियखमणसमतीए पारणगणिमित्तं पविट्ठस्स रयणपुरणिवासिसेट्टिपुत्तेण तए जिणयासाहिहाणेणं विउलेण अण्ण-पाणेण पारणगं दिण्णं । तप्पुण्णाणुहावेण ये बंभलोए उववण्णो ति । तत्थ य मुंजिऊण भोए चुओ समाणो जंबुद्दीवे दीवे एरवए वासे कंपिल्लगयरे महि(हे)सरस्स ऍत्तत्तेणं उववण्णो । तप्पुण्णाणुहावेण य संजायरिद्धि-रूवाइसओ सावगत्तणं पालिऊण अच्चुए उबवण्णो । तओ चुओ इहभवत्तणेणं उववण्णो ति। तओ सुपत्तदाणाणुहावेण बहुभवेसु भोगा जंतूणं हवंति ति।। १ काउं ५ सू । २ उठ्ठिया सू । ३ परहियाई जे । ४ समुल्लावं जे । ५ एवं सू । ६ तुमाणं जे । ७ तेण वि जे । ८ तइए सू । ९ य बहुभवेसु भोया जंबुवण्णो ति तस्थ जे । १. पुत्तत्तणेणं जे । Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४-३५ अरसामितित्थयर-चक्कवट्टिचरियं । १६३ एवं साहिए भगवया बहूण सम्मत्तमुवगयं, वियलिओ कम्मरासी, अन्भुवगयं वयगहणं, कया सुपत्तेसु दाणाइबुद्धि त्ति । एवं अरतित्थयरी बोहिऊण भवियकमलायरे, विहरिऊण केवलिपरियारणं सम्मेयसेलसिहरं गंतूणं सिद्धा त्ति ॥ इति महापुरिसचरिए अरतित्थयरस्स [चक्कवटिस्स य] चरियं समत्तं ॥ ३४-३५ ॥ +:--:-:--+ ___Jain Education १ सम्मेयसेलं ग जे । २ "पुरुष सू । ३ परिसमत जेvale & Personal use Only Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [३६-३७ पोंडरीयवासुदेव-आणंदबलदेवाण चरियं] णमो सुयदेवयाए ॥ अरतित्थयराणंतरं पुंडरीओ अद्धचक्कवट्टी समुप्पण्णो जहा तहा भण्णति अस्थि इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे कंपिल्लपुरं णाम णयरं विणिज्जियतियसा-ऽसुरिंदणयरसोहं सुविभत्ततिय-चउक-चच्चरं । तत्थ य राया महासीहो(सिवो) णामं । तस्स णंदिणीए महादेवीए आणंदपुत्ताओ उवरिं सत्तमहामुमिणसूइओ पोंडरीओ समुप्पण्णो अद्धचक्कवट्टी । ते य आणंद-पोंडरीया एगूणतीसधणूसुया पंचसद्विवरिससहस्साउया महाबल-परकमा भुंजंति भोए। पुंडरीएण य बलिणो पडिवासुदेवस्स महासंगामे तस्संतिएणेव चक्केणं तालफलं व पाडियं सीसं । कओ जयजयारवो णहयले ससुरा-ऽसुरेहिं नरेहिं । ओयवियं भरहद्धं । चकाइयाइं समुप्पण्णाई सत्त महारयणाई । जाओ य सोलसण्हं रायसहस्साणं महाराओ । जाया य बत्तीसई सहस्सा वरजुबईणं । भुंजिऊण य भोए आउयमणुवालिऊण पुंडरीओ अहोगामी संवुत्तो। ___ आणंदो य तहाविहाणं आयरियाणं सगासे पञ्चज्जाविहाणेणं खवियकम्मंसो अरतिस्थयरतित्थे सिद्धिमणुपत्तो ति ॥ इति महापुरिसचरिए पोंडरीयवासुदेव-[आणंदबलदेव]चरियं समत्तं ॥ ३६-३७ ॥ १ णमो सुयदेवयाए' इति सूपुस्तके नास्ति । २ कंपिलं जाम जे । ३ महासेणो सू । ४ "सुरसु(नोरेहिं जे । ५ परिसमत्तं जे । Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ३८ सुभूमचक्कवट्टिचारियं ] कसमकण ण हु होइ णिव्वुई तेयणिज्जियजयाण । वायामेत्तुतविओ वि जेण पंचाणणो दलइ ॥ १ ॥ अस्थि इव जंबुडीवे दीवे हेत्थिणाउरं णाम णयरं । तस्स य समीवाडइमज्झदेसम्म तावसासमो । तस्थ य जाम कुवई । इओ य एगो बंभणदारओ ववगयजणणि जणओ उच्छष्णसयलसयणो सत्थेण सह वच्चंतो सत्थाओ परिव्हो परिभतोय तत्रवणं गओ । दिट्ठो य णेण कुलवती । समासासिओ आसीसाइणा कुलवणा । संजायवेरग्गो य पत्रात्रिओ । जाओ य तावसाणुट्ठाणरओ जमस्स सीसो णामेण अग्गिड त्ति अओ जमयग्गित्ति पसिद्धिं गओ । ओय दोहं देवाणं सावग-तावसमत्ताणं धम्मपरिक्खाबुद्धी जाया । सावगेण भणियं-जो तुम्हे पहाणो तवस्सिस - णेण सो परिक्खिज्जउ । जमयग्गी य महातवस्सी घोरतवचरणरओ । गया य तस्संतियं । सउणरूवं काऊण धम्माओ चालिओ । सो य अहिगयधम्मैसत्थत्थपरमत्थो तेसिं तिरियंचाणं वयणेण 'अपुत्तो' त्ति काऊण भज्जाणिमित्तं मि हिलारी मिहिला हिरणी उबडिओ | भणिओ य मिहिलाहिवाई जहा - तुह सयं धूयाणं, ता मज्झ पयच्छसु एक दारियं ति । तेण तम्भरण भणियं जहा जा चैव तुमं इच्छइ सा चैव मए तुहं पडिवण्ण त्ति | पंचतु ( ? ) चोहणं रेणुयाए फलं दंसियं । तीए य हत्थो पसारिओ । तेण य सा 'अहिलसिओ' त्ति काऊण रायाणुमतीए तत्रोवणं णेऊणं संढिया विवाहिया य । ती य बहिणी हथिणाउरे णयरे कत्तविरिएणं अज्जुणेणं विवाहिया । रेणुयाए य पुत्त समुप्पणो । पिउणा य कमागओ परसू दिष्णो, परसुरामो त्तिणामं कयं । अण्णायसा रेणुया हत्थिणारं गया बहिणीए पाहुणिय ति । तओ रेंज्जसिरिलोहियाए मणुष्णयाए विसयाणं, चंचलत्तणओ इंदियाणं, अचिन्तसत्तित्तणओ कम्मपरिणईए बहिणिवइणो संपलग्गा । जमयग्गिणा य सत्ता errorses araसासमं णीया । विण्णायवृत्तंतेण य परसुरामेण माऊए सिरच्छेओ कओ । कतविरिएण य समागंतूणं परसुरामविरोक्खं बाबाओ जमयग्गी । परसुरामेण य जणयमरणपत्रणसंदीवियकोहग्गिणा वावाइओ कत्तविरिओ, अण्णे वि खत्तिया तम्मच्छरेण सत्त वारा बाबाइया पुहतीए । कत्तवरियभारिया य तारा आवण्णसत्ता पलाणा एगस्थ तावसासमे भूमिहरए पस्सूया । जाओ य से दारओ उप्पण्णंदसणो । ‘धरणिमंडलं दाढाहिं गर्हितो समुट्ठिओ' तओ 'सुभूमो ति णामं कयं । तत्थेव संवढिओ । तावससमीवे सत्थग्गणं कथं । जोव्त्रणमणुपत्तेण य पुच्छिया जणणी-अंब ! को उण मज्झ पिय ? त्ति, केण वा कारणेण अहं भूमिहरगोयरो चिट्ठामि ? । तओ एवं पुच्छिया जणणी दीहुण्हमुकणीसासा अणवरयपयट्टवाहोहा रोविडं पयत्ता । तओ विम्य कोवसंकप्पावरियमाणसेण दढयरं पुच्छिया जणणी । सा य तव्त्रयणेण अहिययरं जायदुक्खा सुइरं "रोविकण साहिउमाढता-पुत्त ! दुक्खभरदुक्खियसरीरा ण सक्केमि साहिउं, ण य धरिडं गरुय मेण्णुभरपेल्लियं बाहुप्पीलं ति, तहा विं सुणसुसू । ३ पंचकुव्वोव जे, पंचतत्वोपहतेन पंचतत्त्वोपहृतेन वा मद्यं मांस मत्स्यं मुद्रा मैथुनं चेति यरं गया जे ५ रायसिरि जे ६ संलग्गा सू । ७ ष्णदाणी (ढो) सू । ८ सुमोमो सू । मण्णुत्थंभमर सू १ दाहिणउरं जे । २ शाक्तामा पंच तत्त्वानि । ४ उरं नाम ९ संकासू । १० रोडऊण जे । ११ • Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६६ चउप्पनमहापुरिसचरिय । तइ गब्भगए पुत्तय ! जमयग्गिएण परसुरामेण । तुज्झ पियाऽकरुणेणं रंभाखंभो व्य परसुहओ ।। २ ।। पडियम्मि तम्मि पुत्तय ! हाहारवबहल बहिरिय दियन्तं । अंतेउरं परुण्ण तह जह वणदेवयाहि पि ॥ ३ ॥ तविणिवायाणंतरभरिवहणुज्ज यजलन्तपरसुम्मि। तह सेसखत्तिएहि पि तम्मि सलहत्तणं पत्तं ॥ ४ ॥ परम् य तस्स पुत्तय ! अहियं पज्जलइ खत्तियासण्णे । विणिवाएइ कयंतो व्व णिदओ तक्खणं चेव ॥ ५ ॥ अहमवि गभस्स ददं संरक्खण-तप्परायणा भीया। अंडवीए तवोवणकुलवइस्स सरणं गया दीणा ॥६॥ तेण वि करुणागयमाणसेण विण्णायवइयरत्तणओ । काऊण भूमिहरयं एवं संरक्खिया पुत्त ! ।। ७॥ जाओ सि तुमं पुत्तय ! कुलबइणा रक्खिओ बहुपयारं । संवढिओ कमेण य एहिं तं कुणमु जं जुत्तं ॥ ८॥ तो तमायण्णिऊण वइयरं गैरुयजायहिययावेएणं सुभोमेणं [पुच्छियं- अम्ब ! कांह पुण सो मह जणयवावायगो चिट्ठइ ? । तीए भणियं-पुत्त ! आसप्णम्मि जयरम्मि चिट्ठइ, तेण य किल संखाजाणणत्थं विणिवाइयखत्तियदाढाणं थालं भरियं, साहियं च तस्स णेमित्तिएणं जहा 'जो एयाओ पायसीहूयाओ सीहासणोवविठ्ठो भक्खिस्सति सो तुज्झ वहगो त्ति, तेण विकओ सत्तागारमंडवो, ठवियं च तस्स मज्झदेसम्मि सीहासणं, तयासण्णे य थालं ति, 'जेमावेइ पदिदिणं बंभणे, रक्खावेइ य तं सत्तागारमंडवं ति । तो तमायण्णिऊण असहंतो जणयवेरियं भुयवलुत्थंभिओ य गओ णयरिं। दिवो य सत्तागारमंडवो, अवि य सीहासणे णिसण्णो तुरियं विवियरक्खयसमूहो । उदयधराहरसिहरे व्व दिणयरो वढियपयायो ।।९।। लहुविग्गहो वि तेएण जिणइ जेयव्बमरिबलमवस्सं । किं तमनियरं मूरो ण हणइ तव्वेलजाओ वि ? ॥१०॥ सीहासणे णिविठ्ठो पेच्छइ थालम्मि ताओ दाढाओ। परमण्णसण्णिहाओ विणिवाइयतुल्लसंखाओ ॥११॥ अह भक्विउं पयत्तो देवयकयपायसो च भोगाओ। रयणुज्जोइयभुयणो फणि ब तव्वेलदुप्पेच्छो ॥१२॥ तो साहियं तुरंतेहिं हित्थहियएहिं परसुरामस्स । आरक्खियपुरिसेहिं हयविहएहिं च तब्वेलं ॥१३॥ जह "देव ! कोइ बालो केसरिपोओ व्व णिब्भओ धणियं । वित्तासिऊण अम्हे उवविठ्ठो आसणे पवरे ॥१४॥ तइ ताओ दाढाओ जाओ ठेवियाओ पवरथालम्मि । [.................................................... ॥१५॥ .....................] । अइदारुगो सुराण वि दुप्पेच्छो बंभणायारो" ॥ १६ ॥ अह तन्वयणाणंतरमवहारियवरणिमित्तसंदिहो। कुविओ समागओ तम्मि मंडवे परसुरामो त्ति ॥१७॥ सीहासैंणे णिविट्ठो दिहो रुटेण परसुरामेणं । लीलाए भुंजतो सीहो ब पसंतवावारो ॥ १८ ॥ अह दठ्ठण "सुभूमं णिन्भयमविसंकमुज्झियाडोवं । तो भणति परसुरामो सकक्कसो णिठ्ठरं वयणं ॥१९॥ "रे रे बंभणसिम ! बडुय ! केण दिण्णं वरासणं एयं ?। जेग "निसण्णो, विज्जइ दुष्णयणिवणपी(बी)यं ते" ॥२०॥ एसो य मज्म परख खत्तियवावायणम्मि दुल्ललिओ । चिलिसाइ-कुरुबैहेणं विसेसओ डोड्डजाईए ॥२१॥ तुह छिवि पि ण जुज्जइ गरऽट्ठियं, किं पुणो उ भक्खेउं ?। 'बंभणबडुओ' त्ति तुमं लक्खि जसिजइ इमं सच्चं ॥२२॥ मज्झ भुओ वरखत्तियदुद्दमणिहारणेकदुल्ललिओ । लजइ सो सोत्तियवंभणेसु दीणेसु पहरंतो ।। २३ ॥ अह खत्तियजाईओ भयकयबंभणसमुज्जलायारो । सुकुलुग्गयाण संपइ दढयरमणुकंपणिज्जो सि ॥ २४ ॥ चइऊणमसुइमेयं णरहि विउसेहिं गरहियं एयं । भुंजह विविहाहारं मह सत्ते मोरकुल्लाए ॥ २५ ॥ अह जुज्झिउं पि सामत्थमत्थि भुयबलपरकमत्तणओ । तह वि "विण चिय मुकाउहम्मि मह कीरेई तुमम्मि ॥२६॥ जे समुहागयदट्ठोभिउडिओहरियमंडलग्गेसु । पहरंति दहें पुरिसेमु णवर ते होति सप्पुरिसा" ॥ २७ ॥ १ देवहिजे । २ अडईए जे । ३ एण्ह सू । ४ गुरुजाय सू । ५ पुत्तय । सू । ६ जमावेइ सू । ७ सगोवविट्ठो पेक्खइ थालटियाओ दा जे । ८ भक्खियं जे । ९ "सो व भोंजे । १. तो जे । ११ ति सू । १२ थवियाओ जे । १३ "सणोवविट्टो जे। १४ सुभोमं जे । १५ विसनो सू । १६ तिजे । १७ वहेण वि विसे जे । १८ घण जे । १९ किज्जइ जे । Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८ सुभूमचक्कवट्टिचरिये । इय एवमादि बहुयं भणमाणं पिट्ठरं परसुरामं । पडिभणइ तं 'सुभूमो वयणमणग्धं भरसहं च ।। २८ । वह चैत्र पवरसीदासओ त्रिभओ अणुत्तालो । विवयणमसहमाणो जुत्तिघडन्तं इमं भइ ।। २९ ।। "परिदिष्णासणगहणं ण जुत्तमेयं परकमधैणाणं । किं कोइ कुणइ केसरि-करीण मयजूहसामित्तं ? ।। ३० ।। काण दुकयं होइ लज्जिओ वर सप्पुरिसवग्गो । तं पुण तं चिय साहसि दाढाहिं थालणिमियाहिं ॥ ३१ ॥ दाढा माणुसे दुष्परियल्लाओ भक्खि मूढ ! । मह पायसं विइण्णं ति देवयाए पसाएणं ।। ३२ ।। णय होमि बंभणो विहु तुह वहणुज्जयमती इहं आओ । संवदिओ मि आसमपयम्मि तेणेरिसागारो ॥ ३३ ॥ णियहत्थ च्चिय सुहडाणमाउहं णारसिंहदिहंतो । कावुरिसहत्थपत्तं वज्जं पि णिराउहमत्रस्सं ॥ ३४ ॥ सेसत्रियप्पा ण हु संभवन्ति पुरिसम्म यववत्थं । किं वालो च्चिय सुरो ण हणइ घणतिमिरपत्थारिं ? ||३५|| ता कुण पोरुसं, गेह आउहं संपयं चिय ण होसि । दिट्ठिसमणन्तरं सुवुरिसाण महकज्जणि फत्ती ॥ ३६ ॥ जं हिओ तइ समरंगणम्मि खत्तियणरो महाबलवं । अज्जुणकयाहिहाणी सहस्सवाहू महाधीरो || ३७ ॥ तसज्जुणरस पुत्तो वरवाहूहो (?) व्त्र पुणरहं जाओ । विहणामि वैइरियं तं णिस्सं जइ विससि पायालं ॥ ३८ ॥ णिक्रवत्ता तर पुहई बाराओ सत्त किल कया एसा । तुहकयतिउणेण महं पसमह कोवाणलो णवरं " ॥ ३९ ॥ इय भणियमेत्तपजलिसकोवाणलजोतिओ परसुरामो । सज्जीवचंड कोयंडबाणणिवहं तओ मुयइ ॥ ४० ॥ पडिखलिया तेण चिय थालेण सरा सुभमणरवणा । गेण्हइ य परसुरामो वि परसुयं कोवपज्जलिओ ॥ ४१ ॥ जो पुत्र खत्तिदंसणघणुव्विडिमतेजिओ जलइ । सो णिष्पभो त्ति कलिऊण पुलइओ परसुरामेण ॥ ४२ ॥ णिज्झाइऊण सुइरं 'किं किं एयं ?" ति आउलमणेण । तह णिष्पभो विमुको वरपरसू परसुरामेण ॥ ४३ ॥ गंतूण चणदेसम्म सो सुभूमस्स पडति भूमीए । असमाणियसामियपेसणो व्व लज्जाए सप्पुरिसो ॥ ४४ ॥ दट्ट्ट्ठूण य तं परसुं अह [य]सुभूमो वि कोहपज्जलिओ । गेण्हइ तं चिय थालं आउहकज्जम्मि बहसज्जो ॥ ४५ ॥ अह तंपि तेण गहियं होइ सहस्सारमवितहं चक्कं । तेएण पज्जलन्तं तो मुक्कं परसुरामस्स ॥ ४६ ॥ तेणावि तक्खणं चिय जालोलिकरालिएण चकेण । तालफलं पिव छिण्णं पडइ सिरं परसुरामस्स ॥ ४७ ॥ पाडयम्मि परसुरामम्मि तो सुभूमेण तैस्स रोसेण । वौराओ एकवीसं कया मही बम्भणविहूणा ॥ ४८ ॥ भोत्तूण भरहवासं छक्खंडं वहिऊण य पयावं । औउयखयम्मि पत्तो अहोगतिं तह सुभूमोति ।। ४९ ।। इति महापुरिसचरिए सुभूमि (म) चक्कवहिचरियं समत्तं ॥ ३८ ॥ १६७ --- १ सुमोमो जे । २ धराणं सू । ३ किं कुणइ कोय केसरि सू । ४ चुयववत्थंभो सू । ५ महावीरो जे । ६ वइरवंतं निसंसयं जइ वि पायाले जे । ७ ओविओ जे ८ कोव जे । ९ सिरं णवर धरणीए सू । १० सुहोमेण सू । ११ तस्स रामस्स जे । १२ बाराए सू । १३ आउक्यम्मि जे । १४ परिसमत्तं जे । Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ३९-४० दत्तवासुदेव-दिमित्तबलदेवाण चरियं ] अस्थि इहेब जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे रायगिहं णाम गयरं । तत्थ य राया अग्गिसिरो (हो) णाम । तस्स वसुमती णाम भारिया । दिमित्तो णाम बलदेवो समुप्पण्णो, तस्सोवरिं सत्तमहासुमिणसूइओ दत्त समुप्पण्णो । ते दोणि विणूया भुंजति भोए । तस्स य सत्तू पल्हाओ णाम महाबल - परकमो । अण्णा य दस्तस्स पल्हायरस य पयट्टमाओहणं । तओ कुविएणं पल्हाएण दत्तविणासणत्थं पेसियं देवयापरिग्गाहियं चक्रं तं च पैाहिणीकाऊण दत्तस्स सुकलत्तं पिव मुट्ठीए ठियं । तओ दन्तेण कोवाणलपूरियमाणसेण तस्सेय विणाणत्थं पेसियं । तओ सकम्मपरिणामेण विय विणिवाइओ पल्हाओ । ओयत्रियं दन्तेग भरहद्धं । तओ बावीसरिससहस्से आउयमणुवालिकण सकम्मचोइओ अहोगामी दत्तो संयुत्त । दिमितोय बलवो कम्मक्खयं काऊण सिद्धोति ॥ इति महापुरिसचरिए वासुदेवदत्तस्स दिमित्तबलएवस्स चरियं समन्तं ॥ ३९-४० ॥ १ अग्मिसिवो जे । २ दोन्हि सू । ३ पयाहिणं का सू । ४ परिसमत्तं जे । • Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [४१ मल्सिामिचरियं ] :-x-- __ अरतित्थयराणंतरं मल्लिसामी वाससहस्सकोडीए समइक्वन्ताए पणपण्णवाससहस्साऊ पणुवीसधणसुओ जहा समुप्पण्णो तहा भण्णति देवायत्ते जम्मम्मि कह णु गरुयाण फरइ माहप्पं । ववसायसहाया तं कुणंति ते जं जणब्भहियं ॥ १॥ अस्थि इहेब जंबुद्दीवे दीवे अवरविदेहे खेत्ते मंदस्स पचत्थिमेण, सीयाए महाणदीए दाहिणेणं, णिसहस्स कुलपव्वयस्स उत्तरेणं, सुहावहस्स वक्वारपव्ययस्स पञ्चत्थिमेणं, सीओयावणमुहस्स पुव्वेणं सिलावतीविजयं बहुणयर-कैब्बडोवसोहियं । तत्थ य वीयसोया णाम णयरी णाणाविहरयणपासाओववेया। तत्थ य बलो णाम राया, धारिणी अग्गमहिसी । तीए महासुइणसूइओ महाबलो णाम पुत्तो समुप्पण्णो । पंचोईपरिखुडो वढिओ, पत्तो य जोव्वणं । विवाहिओ कमलसिरिं भज्ज, भोए भुजेइ।। __ अण्णया य बलो विणायसंसारसहावो महाबलं रज्जे अहिसिंचिऊण तहाविहाणं आयरियाणं सयासे पव्वजाविहाणेणं खवियकम्मो मोक्खं गओ ति।। महाबलो वि राया सहपंसुकीलणजायगरुयवीसंभेहिं छहि वयंसएहिं समेओ रज्जं पालेइ । तओ सरंते संसारे, गच्छंतेसु दिवसेसु, सत्तण्ह वि जगाणं जिणवयणं भावेमाणाणं समुप्पण्णपुत्तभंडाणं वेरग्गसमावण्णाणं संकेओ जाओ जहा-सत्त वि जणा समसुहसुहिया समदुक्खदुक्खिया, जमेगो काही तमेव णिब्वियारं सव्वेहिं पि कायव्वं ति । एवं च कयसंकेयाणं परितणुयविसयाणं आयरिया समागया। तयन्तिए णिसुओ जिणएसिओ धम्मो । समुप्पण्णवेरग्गा य पवइया सत्त वि जणा, अहिन्जियं सुत्तं, समुजया य तवोकम्मे । महाबलो य तेसिं छह वि जणाणं मायाए अहिययरं तवोविहाणं करेइ । णिव्वत्तियं च तेण इत्थीविवागफलं मायापचइयं कम्म, बद्धं च तित्थयरणामगोत्तं ति । जहुत्तविहारं विहरिऊण संलिहियदेहा कालं काऊण सत्त वि जणा समुप्पण्णा वेजयन्ते विमाणे किंचूणतेत्तीससागरोवमाऊ, महाबलो य संपुण्णतेत्तीससागरोवमाउओ त्ति । __ तओ पालिऊण अणुत्तरविमाणाउयं पढम छ वि जणा चुया, उववण्णा य उचिएसु खत्तियकुलेसु जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे। ___ तओ महाबलजीवो महिलाए णयरीए कुम्भो णाम णरवती, तस्स पहावतीए भारियाए उवलद्धचोदसमहासुविणाए फग्गुणसुद्धचउत्थीए अस्सिणिमुंवगए ससहरे चेइऊण विमाणमुहं परलोयकज्जुज्जओ कुच्छिसि समुववष्णो त्ति । तओ णवण्हं मासाणं अट्ठमाणं राइंदियाणं सुपडिपुण्णाणं सुहंसुहेण मग्गसिरसुद्धक्कारसीए अस्सिणिणक्वत्ते पसूया पहावती । इत्थीविवागमायाचइयकम्मोदएण य अवस्समणुहवियव्वेणं तित्थरणामोयएण वि य तब्भावाणुहावेणं अच्छेरयभूओ इत्थीलिंगेणं तित्थयरो समुप्पण्णो । तम्मि य गब्भगए जणणीए वियसियमल्लरासी मयरंदामोयायढियभमरउलो सुइणे दिवो त्ति, अओ मल्लि त्ति णामं कयं ।। संवढिओ कमेणं जोवणमणुपत्तो। आगया य वरया छ वि जणा। मल्लिसामिणा य ओहिणा अवगयपरमत्थेणं दवाविओ अप्पा पिउणा छण्ह वि जणाणं । काराविओ य महामंडवो । तस्स य मज्झदेसभाए अत्तणोऽणुरूवा कणयमती समाराविया पुत्तलिया। तीए य सिरदेसविरे पतिदिणं जमाहारमाहारेइ तं तस्थ थेवं थेवं छुहावेइ। तओ णिरूविए १ फुरउ जे । २ सुहावयस्स सू । ३ खबरों सू । १ सुमिण जे । ५ धावप जे । ६ वएसएहि स । . सुमिणाए जे। ."णिगए सू। ९ चविऊण सू। १. समुप्पण्णोजे। ११ सुहपडि सू । १२ पच्चयकम्मोबएण सू । १३ रकम्मोदएण जे । १४ Jain Education Inter nal Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७० चउप्पन्नमहापुरिसचरियं । लग्गदिवसे समागया छ वि जणा। आवासिया पत्तेयं दिण्णावासा । सदाविया य मंडवस्स मज्झयारे । उग्याडियं सिरोछेड्डणयं कणगमयपुत्तलियाए । उ(त)यणंतरं च बहुदेवसियाहारगंधेणं समाउलीहूया सपरिवारा छ वि जणा। भणियं च तेहिं-कओ एस अइदूसहो गंधो ?। मल्लिसामिमहंतगेण भणियं जहा-इमीए पुत्तलियाए उत्तिमंगविवरेणं पतिदिणमाहारेण मल्लिसामिसमाएसेणं पक्खिप्पमाणेणं महाहारविवागेणमेस एवंविहो गंधो संभूओ। तो ते गंधमसहमाणा णिग्गया मंडवाओ। सदाविया मल्लिसामिणा । दिण्णासगोवविद्या भणिया मल्लिसामिणा जहा-"दिट्ठा एसा कणगमयपुत्तलिया तुम्हेहिं, एसा अतीवसुरूवा वाहि, अन्तो उण एवंविहा अमणुण्णगंध ति । ता एवंविहेसु अमणुण्णेसु सन्यासुइपहाणेसु महिलाण सरीरेसु किमत्थि सोहणं? । को वा विउसाण तेसु अणुराओ ? ति । अवि य जणणि-जणयाणमसुई णीसंदं पाविऊण जो पढमं । पच्छा कलले.ऽब्बुय-मंसपेसिबूंहक्कमुप्पण्णो ॥ २॥ जणणिकयाहारवियारकलुसकयपाणवित्तितदियहं । असुइम्मि गब्भवासे मुत्त-पुरिसाऽऽमयासम्भे ॥३॥ संवड्ढिओ कमेणं अमेज्झमज्झम्मि तकयाहारो । भरिओ अइमुत्त-पुरीस-मेय-मंस-ऽट्ठि-रुहिराण ॥ ४ ॥ बैंस-फेफसं-उत-कॉलेज-मज-वीभच्छपिच्छलुत्थुरिओ । देहो दुग्गंधपवाहणयरणिद्धवणसारिच्छो ॥ ५॥ तयमेत्तबज्मसारो अन्तो मुत्तं-डत-विटैपडहत्थो । कणयमयस्स सरिच्छो मज्झामेज्झस्स कलुसस्स ॥ ६॥ असुइम्मि गलियबहुछिड्डयम्मि मूलुत्तरुज्झियगुणम्मि । देहीण हयसरीरम्मि को गुणो सइ कयग्घम्मि ? ॥ ७ ॥ सुइरं चिन्तितं पि हयसरीरम्मि णस्थि तं किं पि । अवलम्बिऊण जं फुरइ रायचित्तं मणुस्साण ॥८॥ इय णिव्वियारकणए विपरिणई होइ एरिसाहारे । किं पुण मंस-ऽट्ठिय-रुहिरचिलिचिले हयसरीरम्मि ॥९॥ किंचजेलकलुसकलिलभरियंडसच्छ हे लोयणम्मि रॉयंधो । सच्छप्पयकमलदलद्धविब्भमुप्पक्षणक्खणिो ॥१०॥ रुहिरदमंसपेसीदलग्गचम्मावछाइए अहरे । परिणयविम्बफलुपेक्खणम्मि राईण विण्णाणं ॥ ११ ॥ समसिहरहियराईए दसणववएसजायभावाए। सियकुसुमकोंपलुप्पेक्खणेण राओ परिप्फुरइ ॥१२॥ मंस-ऽद्वि-सिरा-चम्मावब(न)द्धसंपत्तभुयकरायारे । कंकेल्लिलयापल्लबविण्गाणं णागरहियाण ।। १३ ।। कलिलाविलमंमुभेयपिंडखंडम्मि सिहिणजुयलम्मि । उत्तत्तकणयकलसोत्रमाणमण्णाणणडियाण ॥ १४ ॥ मुत्तंतामुइणिरुभरियदीयसरिसम्मि उँवरवियरम्मि । तिवली रेहालंकियमुट्ठीगेझं ति" पडिहाइ ॥ १५ ॥ असुइविजिग्गमणिमण विवरदेसम्मि गुरुणियम्बम्मि । कंदप्पके लिरइहरसरिच्छबुद्धी अहव्याण ।। १६ ॥ इय दीहट्टिणिवेसियचम्मसिराजालचरणजंघासु । वरकमलदलंगुलिकरिकरोरुकैरणी दुरन्ताग ॥ १७ ॥ अण्णं च-- विसयविसमोहियाणं रायमहागहपणट्ठसण्णाणं । होइ पडणं णराणं अबस्स बहुवेयणे णरए ॥ १८ ॥ भणियं चअच्छड्डियविसयसुहो पडइ अविज्झायसिहिसिहाणिवहे । संसारोवहिवलयामुहम्मि दुक्खागरे णिरए ॥ १९ ॥ पै(पा)यकन्तोरस्थलमुहकुहरु छलियरुहिरगडूसे । करवत्तुकत्तदुहाविरिक्कविविइण्णदेहत्थे ॥ २० ॥ जंतंतरभिज्जंतुच्छलन्तसंसदरियदिसिधिवरे । डझंतुविडिमसमुच्छलंतसीसटिसंघाए ॥ २१ ॥ मुक्कक्कंदकडाहुकढंतदुक्कयकमन्तकम्मंते । मूलविभिण्ऍक्खित्तुद्धदेहणीयंतपम्भारे ॥ २२ ॥ बद्धंधयारदुग्गंधबंधणायारदुद्धरकिलेसे । छिण्णकर-चरणसंकररुहिरवसा दुग्गमैप्पबहे ॥ २३ ॥ १ वमा सू । २ छड्यं जे । ३ 'याए । आहारग सू । ४ सामिणो महजे । ५ "माणेणमाहार जे । ६ भईवस्वा जे। ७ महिलास जे। ८ "सु रामो ? ति जे । ९ लद्दुय सू। १० सियूह जे। ११ मुप्पण्ण सू। १२ विहार सू । १३ वन-फोफसं जे। १८ कालेय-म सू। १५ विद्धप सू। १६ जलजलस सू । १० रायट्ठो सू। १८ हिरड्ढम जे । १९ व्यरविवरम्मि जे । १.5 सू । २१ 'करिणी सू । २२ पेयकतो जे २३ "विभिण्णक्खि सू। २४ भपवाहे जे । Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७१ ११ मल्लिसामिचरिय । गिद्धमुहणिदउक्खित्तबंधणोसुद्धकंदिरकवंधे । दढगहियतत्तसंडासयग्गविसमुक्खुडियजीहे ।। २४ ॥ तिक्खंकुसग्गकट्टियकंटयरुक्खग्गजज्जरसरीरे । णिविसंतरं पि दुल्लहसोक्खे वक्खेवदुक्खम्मि ॥ २५ ॥ इय भीसणम्मि णरए पडंति जे गरुयविसयरायंधा । णारीण मणहरुल्लावलोलणयणेहिं वेलविया ॥ २६ ॥ अण्णं चकिं ण सरह जमणुत्तरविमाणमज्झट्ठिएहिं सरिसेहिं । अम्हेहिं समणुहूयं परमत्थमुहं महग्यवियं ? ॥२७|| दुक्खपडियारहेउम्मि तम्मि को विसयसंभवे सोक्खे। अणुबंधं कुणति गरोऽवसाणविरसम्मि संसारे ? ॥ २८ ॥ जह गरुयतरणिसंतावताविओ पाविऊण सच्छायं । तग्गहणे ववगयदाहवेयणो मण्णइ सुहं ति ॥ २९ ॥ अइदुसहसिसिरमारुयमुलंकिओ पाविऊण पजलियं । जलणं पणसीओ णट्ठविवेओ सुहं मुणइ ॥ ३० ।। उंबरग्गिदे(?दा)हतवियाण कह वि जइ भोयणं पि संपडइ । तो उवसन्तछुहाणं सुहमवुहाणं ति पडिहाइ ।। ३१ ।। पामाए कररुहुल्लिहण-जलणपरितावणेहिं जं सोक्खं । तं तल्लाहे उसमइ तत्थ कत्तोच्चियं सोक्खं ? ॥ ३२ ॥ इय विण्णायसरूना चइउं संसारहेउणो विसए । सिवमयलमरुयसोक्खं दुक्खविमोक्खं समज्जिणह" ॥ ३३॥ सुणिऊणममयभूयं ति मल्लितित्थयरसुहरसं वयणं । गलिओ मिच्छत्ततमो पवणेण व मेहपत्थारी ॥ ३४ ॥ अब्भुवगयसम्मत्तेहिं तेहिं भणियं-पणासिओ मोहो । तइ अम्हाणं गुरुणा पयडियसिवसोक्खमग्गेणं ॥ ३५ ॥ इय जाव गरुयसंवेगभावपसरन्तसुहविवेयाणं । पसरइ परमत्थकहा पत्ता लोयन्तिया ताव ॥ ३६॥ "जय जयवच्छल ! संसारसायरुत्तरण-तारणसमत्थ !। तित्थं तित्थंकर ! करहि देव ! देवाऽसुर-णरत्थं ॥ ३७॥ देविंद-चकि-बलदेव-वासुदेवत्तणाई पावेन्ति । जस्सऽणुहावेण णरा कमेण मोक्खं पि गयदुक्खा ॥ ३८॥ अण्णो चिय कोइ महीय होइ सोहागुणो पयट्टते । तुह भुषणेसर ! तित्थम्मि सोक्खसम्मत्तबीयम्मि ॥ ३९॥ ता फुरइ मोहतिमिरं, ताव चिय णरय-तिरियगतिगमणं । ता मिच्छलंछियजणो, जा तुह तित्थं ण वित्थरइ ॥४०॥ तइ पयडिएण तित्थेण णाह ! गिरवायसोग्गइपहेण । लंघंति सुहेणं चिय जीवा भवसायरमणंतं ॥ ४१॥ छिंद विसमं पि विसं, अंगं निव्ववइ कोहतवियाणं । अवणेइ कलुसभावं, तित्थं तित्थंकर ! कयं ते ॥४२॥ इय तित्थेसर ! करुणाए णाह ! णियकजसजओ होर्से । दुहियजणभुद्धरणं जयम्मि तित्थं पयट्टेसु"॥४३॥ एवं लोयन्तियदेवसंथुओ जणियजणमणाणंदो। दाऊण महादाणं णाहो पडिवज्जति चरितं ॥४४॥ पन्चज्जादिवसे चिय संभा(पा)वियदिव्य केवलुज्जोओ । पवावेइ छ वि जणे अण्णे वि य गणहरणिमित्तं ॥ ४५ ॥ ऊणं वाससंहस्सं सब्बाउं पालिऊण परियायं । सेलेसिविहाणेणं सिद्धो सम्मेयसेलम्मि ॥ ४६ ।। इति महापुरिसचरिए मल्लिसामिणो चरियं सैमत्तं ॥ ४१॥ जे। ६ हेयकों १ मुक्कुडय सू । २ "रतर(रु)णिरा जे । ३ वेथ करेइ ण जे । ४ यम्भुल(? भुलु)किओ सू । ५ उयर timeso संपत्तिबो जे । ८ सु । तह र जण जे स एगं सजे । १० परिसमत्तं जे । Jain Eवि Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ४२ मुणिसुव्वयसामिचरियं ] :::::: मलिसामिणो चउप्पण्णलक्खेहि समइक्वन्तेहि वासाणं तओ मुणिसुब्वयसामी तीसवाससहस्साऊ वीसइधणसुओ य समुप्पण्णो । कहं ? भण्णति भुवणोयरम्मि वियडे भुवणभुद्धरणजायववसाया। उप्पज्जंति सई चिय ते जेहिं जयं महग्यवियं ॥१॥ अत्थि भारहे वासे रायगिहं णाम णयरं सुविहत्ततिय-चउक्क-चच्चरं कंचणभवणरयणोवसोहियं संचरन्तरविलासिणीरमणिज्जं विलसन्तमणहरर्जुयाणजणगणाहिराम धुन्चन्तधयवडाँडोवचारुचामीयरदेवउलमालालंकियं सव्वायारकुलहरं, धम्मस्स आवासो, रइदइयरइहरं, णिहीणं अक्खओ णिहि त्ति । तत्थ य विणिज्जियासेसपडिवक्खो सयलपयाणं पणईण य मित्तो सुमित्तो णाम गरवई । तस्स य वियसियपउमाणणा पउमावती अग्गमहिसी । तीए सद्धिं राइणो विसयसुहमणुहवन्तस्स बच्चन्ति दियहा, सरइ कालो । अण्णया य गुरुसजलजलहरोरुद्धसरकरणिकरसमयरयणिम्मि । अणवरयथोरधारामुहलियबप्पीहयसयम्मि ॥२॥ कसणघणभासुरोरल्लिपसरियासेसबहिरियदिसम्मि । विज्जुज्जोउज्जोइयकाणण-महि-महिहर-णहम्मि ॥ ३॥ खणविज्जुपदीवपणबहलपुणरुत्तमिलियतिमिरम्मि । मियलोय(?) संपुडुग्घाडणाहि णिचं रमंतम्मि ॥४॥ इय एरिसम्मि काले सावणमासन्तपोष्णिमतिहीए । सवणम्मि य णक्खत्ते पेच्छइ पउमावती सुमिणे ॥५॥ तओ कमेण पेच्छिऊण चोइस वि महामुमिणे पउमावती विउद्धा । साहिया य पहढवयणाए महारायस्स । तेण वि य समाणंदिया पुत्तजम्मेणं ति। भणिया य-सुंदरि! भविस्सति ते पुत्तो तेलोक्कचूडामणिभूओ सयलणरा-ऽमरकिरीडमणिमसिणियपायवीढो। तेण य वयणेण आणंदिया पउमावती अहिययरं परिओसमुवगया। तीए चेव रयणीए पाणयाओ विमाणाओ बद्धतित्थयरणामकम्मोदओ देवो चइऊण पउमावईए गम्भम्मि उववण्णो'। वढिओ य कमेणं गब्भो । तओ णवण्हं मासाणं अट्ठमाणं राइंदियाणं [ समइकंताणं] जेस्स बहुलट्ठमीए सवणणक्खत्ते सुहंसुहेणं पस्या पउमावती। जाओ य णिरुवमपियंगुसरीरो दारओ । कओ य सुरिंदेण जम्माहिसेओ । 'गब्भत्थेण भगवया मुणि ब्व जणणी सोहणवया संजाय' त्ति काऊण भगवओ मुणिसुव्वओ ति णामं कयं । वढिओ य कमेणं कयदारपरिग्गहो अच्छिउमाढत्तो। तओ पालिऊण रजं मुणियसंसारसहावो जेहबहुलणवमीए कयसामण्णो विहरिऊण(१ रिओ) महियलं । रायगिहबाहिरु जाणचंपगहेहियस्स समुप्पणं दिव्वं गाणं वइसाहबहुलट्ठमीए । __ तयणतरं च उप्पण्णदिव्यणाणो बोहेंतो भवियकमलायरे धम्म वागरमाणो गओ भरुयच्छं णयरं । विरइयं देवेहि समोसरणं पुव्वुत्तरे दिसाभाए । उवविठ्ठो तम्मज्झयारम्मि देवविरइयसीहासणे भुवणगुरू । साहेइ जहट्ठिए जीवादिए पयत्थे । एत्थन्तरम्मि समागओ णयराहिवती जियसत्तू नाम राया । सो य वंदिऊण भयवन्तं उवविट्ठो चलणतिए। ___ ताव य गणहरेण पुच्छियं-भयवं ! सुर-गर-तिरियगणपडहत्थम्मि समोसरणे एयम्मि किंपरिमाणेहिं भवियजणेहि अब्भुवगयं सम्मत्तं ? ति, परित्तीको संसारो?, भायणीकओ अप्पा जहुत्तरसुहाणं ? । भयवया भणियं-ण केणइ अउव्वेणं अस्सरयणमेगं मोत्तूणं ति । १ वरमणिर जे । २ जुवाण जे । ३ डाडोव चारु जे । ४ सयय सू । ५ मिलियलोय सू । ६ संपणुग्घाडणाहिजे। ७ णिच्चि सु। ८ सुइणे जे । ९ णो । तओ णवण्हं सू । Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२ मुणिसुव्वयसामिचरियं । १७३ तओ तमायण्णिऊण भणियं राइणा - कोऊहलावूरियसरीरो विष्णवेमि अस्सस्स बुत्तंतं, साहेउ भुवणगुरू । भयवया भणियं भणसु । तेण भणियं - " एयम्मि अस्सरयणम्मि समारूढो वंदणनिमित्तं समागओ अहं । तओ दट्ठूण समोसरणाडोवं अवइष्णो अस्साओ पायचारी संकुत्तो । ताव य सयलजणमणाणंदयोरिणी सजलजलहरोरालिगंभीरं संसारचारगमोयावणकालघंटे व सोऊण भगवओ वाणी आणंदजलभरियलोयणो णिच्चलकण्णजुयलो समुद्धसियरोमकूवो मउलियच्छो ठिओ कंचि कालं अस्सो । पुणो सणियं धम्मसवणदिण्णोत्र ओगो समागओ समोसरणंतोरणपएसं । तत्थ य अउव्वरसविसेसमणुहवन्तो हिंसिऊण महुरसरं, पाडिऊण धरणियले अग्गिमजंघाजुयलं, ठविऊण सह सिरोहराए सिरं महियलद्धन्ते, सार्हेतो व हिययगयभावं कयपणामो तहडिओ चेव अच्छिउमादत्तो । तओ तैमेवंविहं पेच्छिऊण विम्हिया अम्हे कोहलपूरियसरीरा समागया भगवओ समीवं । ता साहेउ भुत्रणगुरू किमेयं ?" ति । भयवया भणियंसोम ! सुण, अस्थि "पोमिणिखेडं णाम णयरं । तत्थ जिणधम्मो णाम सेट्ठी परिवसइ । तस्स य मित्तो सायरदन्तो सवरहाणो अपरिमियविहवत्तणेण विणिज्जियवेसमणो परोवयारी दीणा-ऽणाहवच्छलो चिट्ठइ । सो य पइदिणं जिणधम्मसागसमेओ गच्छर जिणालयं, पज्जुवासेइ साहुणो, सुणइ धम्मं । अण्णया य आयरियसगासे णिसुया गाहा जैहा जो कारवेr पडिमं जिणाण जियराग-दोस- मोहाणं । सो पावइ अण्णभवे भवमहणं धम्मवररयणं ।। ६ ।। तओ तस्स वयणं पविद्धं सवणविवरे, परिट्ठियं हियए, गहियं परमत्थबुद्धीए । तओ तेण काराविया जिणपडिमा कंचणमयी । महया विहवेणं णिव्वत्तिया पइद्वावणविही । तेण य णयरबाहिरिया पुत्रि कारावियं रुद्दाययणं । तस्थ य पत्तियाँरोयणदियहे लिंगपूरणणिमित्तं पुव्वसंचिया घिया घडया मढाओ पव्त्रइएहिं णीणिउमादत्ता । ताव य ते घडे ओ उद्देहिया पिंडपिंडे लग्गा । तं च ते पव्त्रइयगा मग्गपडियं संचरन्ता विदवेन्ति उद्दवेंति । तओ सो कारुण्ण हियओ पोचतेण साहरेइ । ताव य एक्केण जडहारिणा उद्देहियांपुंजय पाएण दलेऊण भणियं - सेयवडो वित्र जीवदयावरी संपयं संवत्तोति । तओ सो वणिओ freraigओ परमायरियसमुहं पलोइउमादत्तो । तेण वि तव्वयणमवहीरियं ति । तओ तेण चिंतियं-ण एएसिं जीवदयापरिणामो, ण सुहो अज्झवसाओ, ण धम्मचरणाणुद्वाणं सोहणं ति । तओ उवरोहकयकज्जो अपत्तसम्मत्तरयणो महारंभस पती दारुई, किंतु समुवज्जियविहवरक्खणपरायणो हि पुत्त-भंड-भजाइए कयममत्तो कइया वच्च सत्थो ? किं भंड ? कत्थ केत्तिया भूमी ? । को कय-विक्रयकालो ?, णिन्त्रिसई (ई ) किं कैंहि केण ? ॥७॥ एवं अज्झवसायपरायणो मरिऊणमिहं घोडगत्तणेणमुत्रवण्णोति । एत्थ य मह वयणमायण्णिऊण पुव्त्रभवकयपडिमाणुहावेण लद्धं सम्मत्तरयणं, भिण्णो कम्मगंठी, भायणीकओ अप्पा जहुत्तरसुहाणं ति । एयस्स पडिबोहणत्थं अहमेत्थ समोसरिओ त्ति । राइणा भणियं - भयवं 1 कयत्थो एस, पत्तमणेण जं पावियव्वं, सयलजणसलाहणिजो एसो संपयं संवृत्तोति । तयतरं च सो आसो बहूहिं सलाहिजमाणो णयणसहस्सेर्हि पलोइज्जमाणो राइणा खामेऊण सच्छंदपयारो कओ ति । भवं पि विहरिऊण महियलं, तीससहस्साउयस्स सेसं मुणिऊण, गंतूण य सम्मेयँगिरिवरसिहरं सेलेसिविहाणेण खवियभवोवग्गाहिसेसकम्मंसो फग्गुणकिण्हबारसीए सिद्धिमणुपत्तो ति ॥ इति महापुरिसचरिए मुणिसुव्वयतित्थयरचरियं समस्तं ॥ ४२ ॥ १ यारिणि जे । २ वाणि जे । ३ पदेस जे । ४ तमेवंभूयं जे । ५ पोइणि जे । ६ अहा जे । ७ यारोहण सू । ८ पिंडेJain Education यापुजं पाएण रोलिऊण जे । १० कई जे । ११ खमावेऊण जे ३२ निरिसिहरे सू । १३ परिसमत्तं ति जे I wjainelibrary.org Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [४३ महापउमचक्कवट्टिचरियं ] मुणिसुब्क्यसामिकाले [महापउमचक्कवट्टी समुप्पण्णो । सो य वीसइधणमओ तीसवरिससहस्साउओ । तस्स चरियं भगइ- अत्थि इहेब जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे वाराणसी णाम णयरी। तत्थ पउमो णराहियो । तस्स य जालाए महादेवीए चोइसमहासुमिगदंसणसंसइओ महापउमो णाम पुत्तो समुप्पण्णो । तस्स य पिउणा समप्पियं रज पालें - तस्साऽऽउहसालाए उप्पण्णं चक्करयणं । ओयवियं भरहं पुन्बकमेण । तओ भोत्तूण भरहं छक्खंड पि कमेणं बढिऊण पयावं, होऊग चोइसरयणाहिबई, बत्तीसणरवइसहस्साण य णाहो, चउसद्विसहस्साणं च रमगीणं णवमहाणिहीण य सामिओ, पालिऊण ये णिययाउयकालं सकम्मपरिणामेण कालगओ ति॥ इति महापुरिसचरिए महापउमचक्कवहिचरियं समत्तं ॥४३॥ -:-: १ यकाले सू । २ वीसधणुस्सुओ जे । ३ वाणारसी जे । ४ ण णाहो, पा सू। ५ य आउय कालगओ जे। ६ परिसमत्तं जे। Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [४४-४५ रामबलदेव-लक्खणवासुदेवाण चरियं] मुणिसुव्वय-णमीण अंतरे राम-लक्खणा समुप्पण्णा । 'तेसिं च चरियमिणमो साहिप्पंत णिसामेहभसणकयत्थो साणो, सीहो उण हणइ कोइओ संतो। णियबीरियाणुसारेण पसमणं होइ गरुयाण ॥ १ ॥ ण सहइ माणभंसं इयरो इयरं पि, किं पुण महप्पा ? । णियभजागयपरिहवकलंकिभो किं पि ववसेइ ।। २ ॥ अत्थि इहेच जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे अउज्झा णाम णयरी सयलणयरगुणोववेया । तीए य दसरहो णाम महाराया परिवसइ । तस्स य तिण्णि भज्जाओ, तं जहा-कोसला केकई सुमित्ता य । तत्थ कोसलाए रामभद्दो पुत्तो, केकईए भरहो सत्तुग्यो य, सुमित्ताए लैक्खणो य कुमारो। दसरहेण य रामस्स रज्जाहिसेए समप्पिए केकईए केणइ ववएसेण रामो सलक्खणो वणं पेसिओ, भरहो य रजे ठाविओ त्ति । रामेण य वणगमणाएसो रज्जाहिसेओ व्व पप्फुल्लवयणकमलेणं सम्म पडिच्छिओ, अवि ये'पुत्त! पडिच्छसु लच्छि, गच्छमु य वर्ण' ति दसरहारसे । णिमुयम्मि सरिसओ चिय मुहराओ सहइ रामस्स ॥३॥ पिउणो पडिच्छिऊणं आएसमणाउलो पहट्ठमणो । सविणयलक्खणसहिओ रणम्मि गओ समज्जाओ।॥ ४॥ अह वसइ तत्थ जणवज्जियम्मि रणम्मि जायपरिओसो । सीया-लक्खणपरियणपरिपालणमेत्तसंतुट्ठो ॥५॥ लंकाए रावणो भुवणतावणो रक्खसीहि विजाहि । बलबमकज्जायरणेण दूसिओ कलुसियचरित्तो ॥६॥ सुप्पणहाए कयणिग्गहाए वयणेण रामभजाए । परिणइबसेण रायं कालकरायड्ढिओ कुणइ ॥ ७ ॥ मारीयमय' कयाराववंचणा वंचिऊण ते दो वि । णियबल-कित्ती-रक्खसखयंकरी अवहिया सीया ।। ८॥ रक्खसमायं णाऊण दुक्खिया राम-लक्खणा धणियं । सीयाहरणविसण्णा हाहारवमिलियतवसियणा ॥ ९॥ णिहयखरदूसणबला जडाउवुत्तपीडिया णिययं । किंकायबविमुहिया मिलिया सुग्गीवहरिवइणो ॥१०॥ इंतूण वाणरवई वालिमणाउहममि(मे)यबलकलियं । सीयावत्तणिमित्तं रामो पेसेइ हेणुयन्तं ॥ ११ ॥ सो "वि कमिऊण सायरमणहो लंकाए गंदणवणम्मि । अह पेच्छइ तियडाए आसासियर्णिव्वुई सीयं ॥ १२ ॥ तो सीयाणुण्णाओ वणं मलेऊण रक्खसिंदं पि । पलिवियलंको तुरियं समागओ राहवा जस्थ ।। १३ ॥ अह णायकजसारो रामो सह लक्खणेण गुणणिहिणा । सुग्गीवबलसमेओ लंकाभिमुहो सॅमोत्थरइ ॥ १४ ॥ तो कमिऊण समुदं लद्धविहीसणबलो बलाणुगओ । आवासइ आसपणे सुसेलसिहरम्मि लंकाए ॥ १५ ॥ अह रामणो वि परवलमसहंतो णीइ तस्स पच्चोणि । अलसायंतपलोइयरामबलो भणइ तब्वेलं ॥१६॥ मज्झ वि रिखुणो, तत्थ वि य तावसा, ते वि लंकमहिहविउं । चिट्ठति, किंण दीसइ अहो ! जियंतेहिं अच्छरियं १ ॥१७॥ तो सुग्गीवादीणं वाणरविज्जाहिं बलसमिद्धाणं । रक्खसविजावलगविएहिं जुद्धं सैमावडियं ॥१८॥ पल्हथिओ पहत्थो रणम्मि बलवन्तएहि सुहडेहिं । वाणरविज्जाबलगविएहि, तह कुंभयण्णो वि ॥ १९ ॥ मेहणिणाओ वि हओ अहलं काऊण दुग्गमं सत्तिं । णागपासे "विपासिय णयविहले रक्खसे काउं ॥ २० ॥ अह रामणो वि विजाहिं गविओ दुजओ दुरालोओ । सह लक्खणेण जुद्धेण संपलग्गो णिरावेक्खो ॥ २१ ॥ तो ताण वलसमिद्धाण पहरणो(ण)ष्णोण्णछिण्णगत्ताण । कायरजणदुप्पेच्छं आसि रणं दारुणं अतुलं ॥ २२॥ अह रामणेण गहिऊण पेसियं चकमाउहमणग्धं । गंतूण तं पि हस्थम्मि संठियं लक्खणकुमारे ॥ २३ ॥ तो लक्खणेण चक्केण तेण खलदससिरस्स कूरस्स । “छिण्णं तालफलं पिव सीसं धरणीए पल्हत्यं ॥ २४ ॥ तेसि चरिय भणभाणं णिसाजे । २ णाम राया स । ३ लक्खणकुमारो जे । ४ रामणो जे । ५ °सभयंकरी सू। ६ हणुमंत जे । ७ य सू। 'णिब्वुयं जे । ९ राहवो जे । १. समुत्थ जे। ११ सहावडिय जे । १२ कुंभकण्णो जे । १३ अफलं ले। १४ विवासिय सू। १५ णयणहले जे । १६ दारुणमतुल्य सू । १७ किण्हं जे । Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७६ चउप्पन्नमहापुरिखचरियं । णिहयम्मि रक्खसिंदम्मि लद्धसीएहिं पत्तविजएहिं । तो राम-लक्खणेहि रज्जम्मि विहीसणो ठविओ ॥ २५ ॥ उप्पण्णचक्करयणेण वासुदेवेण भरहमोयवियं । रामेण य मुणिसुव्वयतिस्थम्मि समज्जियं पुण्यं ॥ २६ ॥ काऊण संजमं सो, खविऊण य कम्मसंचयं विहिणा। पत्तो अणंतसोक्खं मोक्खं णिस्थिण्णसंसारो ॥२७॥ बारसवाससहस्साउया य सोलसधणूसुया दो वि । एको सिद्धिं पत्तो, 'बीओ णरयं गओ णवरं ॥ २८॥ इय साहियं समासेण वित्थरो पउमचरियपमुहेसु । चरिएसु स विण्णेओ पुव्यायरिएहिं णिदिवो ॥ २९ ॥ इति महापुरिसचरिए राम-लक्खणचरियं समैत्तं ति ॥ ४४-४५ ॥ -:-+-: १बितिभो जे । २ परिसमत्तं ति ॥ ग्रंथाप्र-८१०० ॥जे । Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ४६ णमिसाामचरियं ] -x वोसाणं छहि लक्खेहि समइकंतेहिं मुणिसुव्वयाओ णमी समुप्पण्णो पण्णरसधणूसुओ दसवाससहस्साऊ । तस्स य चरियं भण्णति पुन्वज्जियसुकयमहाफलोहसंभारभावियावयवा । ते होन्ति कप्पतरुणो जेसि छाया वि णिव्ववइ ॥१॥ अत्थि जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे महिला णाम णयरी । सा य बहुजण-कणगसमिद्धा सुविहत्ततिय-चउकचच्चरा सप्पुरिसावासभूया । तीए य णीसेसारिसंगामलद्धजओ विजओ णाम राहिबई परिवसइ । तस्स य सयलंतेउरप्पहाणा वप्पा णाम महादेवी । तीए सह विसयमुहमणुहवन्तस्स अइकंतो कोइ कालो। अण्णया य आसोयपुणिमाए अवरातियविमाणाओ चुओ उवलद्धचोदसमहामुमिणाए वप्पाए गम्भे समुप्पण्णो देवो त्ति । संवढिओ य गम्भो । तओ सावणबहुलेकारसीए जाओ । 'गब्भगयम्मि य भगवंते णमिया नीसेसरिउणो' तओ णमि त्ति णामं कयं भगवओ । वढिओ कमेणं । तो णाऊण संसारसहावं आसाढबहुलणवमीए लोयन्तियपडिबोहिओ दिण्णसंवच्छरियमहादाणो पडिवण्णो समणत्तणं ति । तओ आसाढबहुलणवमीए मिहिलाए चेव बउलतरुहेढओ खवगसेढीखवियमोहेंणीयस्स उप्पण्णं दिव्वं गाणं । विरतियं देवेहिं समोसरणं । पत्थुया धम्मकहा । तो छिज्जंति संसया, बुझंति पाणिणो । केइ तत्य सम्मत्तं पडिवजन्ति, अण्णे देसविरैई, केइ पुण सम्वविरई ति । एवं विहरिऊण महिमंडलं, बोहिऊण भवियकमलायरे,सम्मेयगिरिसिहरे वइसाहबहुलदसमीए सिद्धिं पत्तो ति ॥ इति महापुरिसचरिए णमितिस्थयरचरियं समत्तं ॥ ४६ ॥ १ वासाणं हि लखेहिसम(हिम इकतेहि सुष्ययजिणाओ । तो उप्पणो य जमी पसासयन्तो य. तेलाकं ॥१॥ [सो य] पण्णरसधणू सू । बहुभण सू। ३ गराहियो जे । ४ भगवम्मि .ण सू। ५ मोहस्स सू । ६ विरई जे । • महियलं जे । ८ परिसमतं जे। Jain Education Intemat Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ४७ हरिसेणचक्कवट्टिचारिय * णमिचरियाणंतरं हरिसेणस्स दसवाससहस्साउयस्स पण्णरसघणूसुयस्स चक्कवट्टिणो चरियं भण्णति अस्थि इtव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे रायगिहं णाम णयरं । हरिसेणो णाम राया । तस्स य विसयहमणुहवन्तस्साऽऽउहसालार चक्करयणं समुप्पण्णं । तेण वि चकमग्गाणुसारिणा पुण्यकमेण य ओयवियं छक्खंड पि भरहं । उप्पण्णार्णिय चोस वि महारयणाणि, णत्र महाणिहिणो, बत्तीसई सहस्सा मउडबद्धाणं राईणं, चउसद्धि सहस्सा रमणीणं ति । सोय भोत्तूण भोए संजायवेरग्गो तणमित्रं रायलच्छि उज्झिऊण, पडिवज्जिऊण समणतं, उप्पाडेऊण केवलं णमितित्थम्मि सिद्धिमणुपत्तोति ॥ इति महापुरिसचरिए हरिसेणचकवट्टिवरियं समस्तं ॥ ४७ ॥ १णि बोट्स में सू । २ व चक्रण रायलच्छ, पडि जे ३ सम्मतं जे ४ पुष १५ परिसमत्तं जे । Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [४८ जपचक्कवट्टियरिय] हरिसेणाणतरं जयणामस्स तीस वास]सहस्साउयस्स चोधसभणमयस्स चकहिणो चरियं मणति अस्थि इहेव बुद्दीने दी भारहेपासे पाणारसी णाम णयरी । तस्य य जओ णाम गरवती परिवसइ । तेण उप्पण्णचक्करयणेण तहेव भरह विनयं । सणामकियो फओ उसह कूडपश्वभो । सीकया कमेण दिसावाला । विगयवेरिपो कयं भरह अत्त । णमितित्यम्मि बहते अणुप्पण्णे णेमिङमारे असेसदुक्खक्खयलक्खणं संपत्तो मोक्खं ति॥ इलि महापुरिसचरिए जयचकहिचरियं समसं ॥४८॥ वट्टिस्स स् । २ गाम राया परिजे । ३ 'क्खं भुत्तं भरहं । णमि जे। ४ पुरुषस ।५ पहिलो बरिय परिसात मे। Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [४९-५०-५१ अरिटुणोम-कण्हवासुदेव-बलदेवबलदेवाण चरियं] +:--:-:--+ संपयं अरिठ्ठणेमि-कण्ह-चलएवाणं परोप्पराणुषद्धं चरियं भण्णइ तत्य य पंचसु लक्खेसु समइकतेसु णमिजिणाओ अरिठ्ठणेमिकुमारो समुप्पण्णो। सो य हरिवंसे । अओ पढम हरिवंसम्स उप्पत्ती भाणियव्वा । . ते केइ होति भुवणोबरम्मि कप्पतरुणो महासत्ता । जेसिं पारोहो वि हु परहियकरणक्खमो धणियं ॥ १ ॥ ___समइकंते सीयलजिणम्मि तह णागए य सेयंसे । एत्थन्तरम्मि जाओ हरिवंसो जह तहा सुणह ॥२॥ ___ अस्थि इहेच जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे कोसंबी णाम णयरी । तीए य विणिज्जियासेससत्तुमंडलो वयणोहामियमियंक-कमलो जहत्थणामो सुमुहो णाम करणाहो परिवसइ । अण्णया य सो णिययसामन्तस्स वीरयाहिहाणस्स पाहुणओ चंपं गओ । वीरेण य तस्स कयमुचियकरणिजं । दिहा य सुमुहेण वीरयस्स भज्जा पहावती णाम भोयणवेलाए परिसकंती । सो य तं दण तीए रूब-जोधण-लायण्णाखित्तमाणसो चिंतिउमाढत्तो। 'पयतीए जइ वि कुडिला चलचित्ता जइ वि दुग्गहसहावा । तह वि सुहाग णिहाणं महिलारयणं महियलम्मि ॥३॥ एसा उण सव्वावयवसुंदरा जइ महं ण संपडइ । ता किं इमिणा रज्जेण ?, मज्श जम्मेण "वि ण कजं ।। ४ ।। सो जम्मो जो मणुयत्तणम्मि, तं माणुसं जहिं विहवो । सो विहवो जत्थ पियं, तं च पियं जस्स य पिएहिं ॥५॥ ता एसा मह दइया इमीए जइ वल्लहो अहं होजा। ता रज्जं जम्मं जोव्वणं च सव्वं चिय कयत्थं ॥ ६॥ एवं च बहुवियप्पं चिंतिऊण पलोइया विम्हउप्फुल्ललोयणेणं राइणा । तीए वि गुरुणेहणिब्भरपिमुणाए दिट्ठीए सुइरं णिज्झाइओ राया । अवि य तह कह वि सयहं 'तीय पुलइयं णेहमुहरसुम्मीसं । जह पढमदंसणे चिय धुत्तीए समप्पिो अप्पा ॥७॥ तो 'मं इच्छइ' त्ति मुणिऊण राइणा किंचि अलियावराई दाँऊण वीराहिहाणस्स महासामन्तस्स उद्दालिया गामा । छूढा अंतेउरम्मि पभावती । गओ य राया णिययणयरिं ति । मुंजइ तीए सह कालोचिए भोए । अवि य चइऊण कुलं सीलं मज्जायं रजकजमणुदियहं । अप्पाणं पि य राया तीए समं रमइ मूढमणो ।। ८॥ सा वि गरणाहसंगमसविसेससुहल्लिजायपरिओसा । वीसरिउं पुनपई विलसइ रइसागरोगाढा ॥९॥ इओ य वीरयसामंतो णाऊण पहावतीवुत्तंतं झंपिओ मोहजालेण, 'किं कायव्वं ?' "ति मूढो, 'सव्वं सुष्णं' ति मण्णमाणो, समुल्लसियपियविरहवेयणो सैमोत्थओ तमपिसाइयाए, गहिओ अरईए, समद्धासिओ उव्वेवेणं, समालिगिओ सोएणं, गोयरीकओ रणरणएणं, पम्हुविवेओ अविण्णायकज्जा-कज्जो तं चेव पहावति चिन्तेन्तो वाहरंतो य, संकप्पुप्पेक्खाऽऽणियरूवत्तणेण य तीए चेव सह भासन्तो, एवं पतिदिणं पवड्हमाणमोहपसरो फ्णहसण्णो गहिओ महागहेणं । तओ कहिंचि रुयइ, कर्हिचि एगागी चेत्र हसइ, कहिं चि गायइ, कहिंचि णञ्चइ चेत्र गयल जो, परिचत्तं परिहणयं । अवि य हसइ परिओससुण्णं, णञ्चइ डिंभेहिं दिण्णसमतालो । वच्चइ लक्खेण विणा, रुयइ सदुक्खं मुहा चेव ॥१०॥ जेण व तेण व भुत्तो, वसिओ भूमीए हत्थपाँउरणो। कस्थइ अप्पडिबद्धो निस्संगो" वरमुणिसरिच्छो ॥ ११॥ सो जं जं चिय पेच्छइ तं तं चिय पियेंयम त्ति वाहरइ । चेयणमचेयणं वा परचसो वक्शयविवेओ ।। १२॥ इय कित्तियं च भण्णइ ?, जे केइ दुहस्स हेयवो भणिया। ते संभवंति णिययं णराण रमणीग संगेग ॥ १३ ॥ एवं च सो वराओ परिब्भमंतो य देवजोएण । तत्थ गो जत्थऽच्छइ पहावतीसंगो सुमुहो ॥ १४ ॥ १ भुवणोयराम्म जे । २ कोसुम्बी सू । ३ णामेण जरा हिवो जे। ४ य जे । ५ तीए पुलइउ जे । ६ अवराह सू। ७ कऊण जे। - यनयर जे । ९ वीरसा सू। १० ति मोहिओ, सजे । ११ समुच्छओ जे । १२ पाउरणे सू । १३ गो मुणिवरस सू। १४ यम ति सू । १५ दजे। Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४९-५०-५१ अरिट्ठणेमि-कण्हवासुदेव-बलदेवबलदेवाण चरियं १८१ तओ गवक्खयसैठिएहिं दोहिं वि जणेहिं दिट्ठो धृलीए धूसरो छ?-ऽट्ठम-दसम-दुवालसाइणा अणाभोगतवचरणेणं परिमुसियमंस-सोणिओ विवसणो जरेचीरोवालियसरीरो गहियखप्परो दीणो वइरीणं पि अणुकंपणिज्जो तण्हाछुहाकिलन्तदेहो । तं चेव तहाविहं दट्टण राइणा भणियं-किं पिए ! परियाणसि एयं ? । तीए भणियं-कहं ण परियाणिस्सं ?, मण्णिमित्ता चेव एयस्स ऐरिसिया अवत्थ ति । तओ राइणा गरुयसंवेगुम्बिग्गेण भणियं-- सुंदरि ! असुंदरं चिय कयं मए रायमोहियमणेण । णिम्मलजसा-ऽकलंके कुलम्मि मसिकुँचओ दिण्णो ॥ १५॥ थेवं जीयं तरलं च जोवणं कम्मपरिणती विसमा। घोराउ महाणरएसु सुयणु ! वियणाओ सुव्वन्ति ॥ १६॥ एयस्स कह णु पावस्स होज पुण संचियस्स गित्थरगं ? । एयाए महं चिंताए सुयणु ! अप्पा वि' पम्हुट्ठो॥१७॥ तओ एयमायण्णिऊण पभावतीए भणियं-अजउत्त ! एवं एयं, अतीवअसोहणमणुट्टियं अम्हेहिं । एवं च महासंवेगसमावण्णाणं दोण्ह वि जणाणं विज्जुणि एणम पहरियं जीवियं ति । समुप्पण्णाणि य दो वि हरिवरिसे अविउत्ताणि। _ इयरो वि वराओ तीए पंचत्तमुवगयाए णिरासीभूओ अणिच्च(? च्छ)गपुव्वं चेव छट्ट-ट्ठम-दसमादितचोविसेसेग खवियदेहो आउक्खएण चइऊण देहं बालाबप्पडावेगं उबवण्यो वागमंतरदेवत्तणेगं । तं च दळूण अत्तणो दिवं रूवं चिंतियं तेण-किं मए जम्मंतरे कुसलमणुष्टियं जेणेरिसं दिव्यसंपयं पत्तो म्हि ? । अहिणा य समालोएंतेणमुबलद्धो पुज-. भवो । विणायाणि य भोगभूमीए समुप्पणाणि दो वि जगाणि । विण्णायसरूवस्स य उद्धाइओ कोवप्पसरो, फुरियमवयारकरणपचलं हिययं चिंतियं च तेग "किं चुण्णेमि रसन्तं निटूरकरजंतपीलियं दुहुँ । णिम्मज्जायमणज्ज हुँवलं पि समुज्जयमकज्जे ? ॥ १८॥ एयाणि समुप्पण्णाणि भोगभूमीए भोगजणणत्थं । अबकरिऊग वि मज्झं पुणो वि 'भोग' त्ति विहलमिणं ॥१९॥ आउमणवत्तणीयं सुहभाई होइ भोगभूमीए । ता तह करेमि संपइ जह दुक्खपरंपरा होइ ॥ २० ॥ "पीडिझांतो वि मओ मयारिणा किं व कुणउ बलहीणो ? । सत्तविहूणो सबस्स सहइ गुरुपरिभवमसज्झं ॥२१॥ कह सहइ परिभवं सो जो सइ सत्तीए कह वि परियरिओ ? । बलमण्णपरिहवो वि य, तेओ तिमिरं व कि हणइ ?॥२२॥ किं तुंगिमाए तालस्स दुट्ठपकरवीहि विहयसीसस्स ? । परपरिहवं सहतस्स होइ किं गरुयया लोए ? ॥२३॥ भोगाण भायणमयं आउंण चलेइ भोगभूमीए । ता तह झुंजउ भोए जह दुक्स्वपेरैपरं लहइ" ॥ २४ ॥ परियागिऊण चंपाए ओहिणा णरवई मयं सहसा । घेत्तुंग रुक्खसहियं तं जैवलं तत्थ संपत्तो ॥ २५ ॥ चिंतेइ तेग गहिएण होइ जा कह थि भायगमवस्सं । भोगाग तो गिरत्ययमिमं ति देवत्तणं मज्झ ॥ २६ ॥ ता पालेउ णिबद्धं जहट्ठियं आउयं वि पि । तत्य य दोग्गइजोग्गं कम्ममवस्सं सई कुणइ ॥ २७ ॥ रजमकज्जावासो, दारं गरयस्स, मुरुयपडिपंथो । दुक्खपरंपरहेऊ, पुणरुत्तमगत्थसंबंधो ॥ २८ ॥ जो कोउएण इच्छइ दटुं णरए दुहेक्कणिम्माए । एकदियहं पि रज्जं सो कुगउ अचेयणो निययं" ।। २९ ॥ इय चिंतिऊग एयं कोवेगाऽऽपूरिओ सुरो धणियं । रज्जवबएस हिओ दुकवाण परंपरं लैंहउ ॥३०॥ तो चपाए णयरीए उर्हि गयणत्यो उबइसिउमादत्तो, भगिओ य पुरजणवओ रायण्णेसणपरायणो किंकायकविमुहिओ-तुम्हाग मेस राया मए करुणा)समा षण्णेगमिहागीओ, ता तुम्हेहि एस सबायरेण पडिजागरणीओ, एयस्स य आहारो सया मंस-मजाइणा, पिचित्तेहि य मंसरसभोयणेहि एयरस सरीरस्स सम्मं होइ । त्ति भणिऊग समप्पिओ। 'चीरोमालि जे । २ एमा अबत्य जे । ३ कुचओ सू । ४ वि हु अणिटो जे । ५ महियं जे। ६ तवोविसेसखावसू । ७ समुववण्णाणि जे । ८ गेणं जे । ९. करकुंतपीडियं सू। १० जुपल जे । ११ पीलिज्जतो स । १२ परंपरा सू। ११ जुलं जे । १४ संदेहो जे । १५ लहइ सू । १६ चपापुरीए उ जे । १७ वणिम्महिओ जे । Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૮૨ चप्पश्च महापुरिसचरियं । तेहिय सरसारणा रयगतिगमणहेउणा उनयरिओ । भोत्तूण य आउयमज्जायाए पत्ररभोए, संचिऊण य बहुदुग्गरभवेयणिज्जं कम्मं, कालं काऊण तह गओ जहा वीरगस्त्र परिओसो सम्मुप्पज्जइति । तव्वंसपभषेसु य संखाईएस ree सोरियाहिहाणस्स राइणो सोरियपुरे दस पुत्ता समुप्पण्णा, समुहविजओऽखोहो थिमिओ तह सायरो य हिमवन्तो । जहा अयलो धरणो तह पूरणो य अभिचंद वसुदेवो ॥ ३१ ॥ ति । कण्णादुयं च अवरं कोन्ती मदी य । तओ एवं हरिवंसप्पभवा दस दसारा । इओ य इक्खागर्वससंभवो सोमप्यभो णाम राया । सो य सक्केण संचोइओ जहा- मुणीणं वयणं कुरु । तप्पभिर बंसो त्रिकुरुति पद्वि । तन्वसप्पभवेसु य संखातीएसु गएसु सयघणू णाम राया संबुतो । तस्स य पुत्तो संतणू णाम राया संवृत्त । त दुबे पुत्ता-गंगेओ विचित्तवीरिओ य । तस्थ गंगेओ कुमारम्भयारी संकुत्तो । विचिन्तवीरियस्त उतिणि पुसा समुष्णा, तं जहा- बयरको पंडू विदुरो य । तत्थ य गंधारराइणो धूया गंधारी णाम । सा य धयरट्टेण परिणीया । तस्स य तीए सह विसयहमणुहवन्तस्स दुजोहणाइयं सयं पुत्ताण समुप्पण्णं । इओ य हरिवंससभाओ दसारभइणीओ कोन्ती मद्दी य । ताओ दुवे वि कुरुससंभवस्स पंडुस्स दिण्णाओ । ताण [ती] हिट्ठल- भीमसेण-अज्जुणाहिहाणा तिष्णि पुत्ता समुप्पण्णा, महीए णउलो सहदेवो य । धयरट्ठ- पंडूहि यदुज्जोहण जुहिलिाग पत्तेयं पत्तेयं णिययरज्जाई दिष्णाई | ताण य परोप्परं बालप्पभिर्ति मच्छरो समुप्पण्णो । 1 इओ य कुसुमपुरे णयरे जरासंधो महाबल-परक्कमो राया । तस्स य सव्वे वि राइणो आणं पडिच्छति । तेण यदसाराण आणती पेसिया जहा -सीहरहं बसे काऊण सिग्धं मह समीवे आणेह, जो सीहरहं अतीत्रदप्पुधुरं से काही तस्समए या दायव्या । एयमायण्णिऊण वसुदेवो कंससारहिसमेओ समुदविजयाइए भायरे समासास सहरवसीकरणत्थं रहमारुहिऊण कंसं च सारहिं काऊण विणिग्गओ, पत्तो सीहरहसमी । तेण य सह पट्टमाओहणं । तओ अणवरयधणुगुणुच्छिष्णपाणसें साइयपरबलो विश्वलो कओ सीहरहो पाडिओ रहाओ । तओ विरहो भूमिगओ कंसेण सारहिणा अत्रयरिऊण रहाओ संजमिओ सीहरहो । समप्पिओ गंनूण जरासंधस्स राइणो । दाउमाढत्ता वसुदेवस्स गिययया । तओ भणिओ वसुदेवेणं जहा-एस कंसेण संजमिओ ण मए, त एस धूयादाणं जुज्जइति । जरासंघेण तमायण्णिऊण भणियं जहा- एस किल वणियजातीओ, ता रायधूयाए ण जुज्जति वणियघरपवेसणं । तयणंतरं भणियं वसुदेवेणं जहा-एस उग्गसेणस्स णरवइणो पुत्तो, जणणीए दोहग्गकलंकदूसियाए उग्गसेणणामं कियंगुत्थलयसमणिओ मंजूसाए जउणाजले पत्राहिओ, दिट्ठो य पच्चूस मागणं वणिएणं, गहिओ पुतणेणं, संत्रदिऊण य महं समपिउत्ति । तओ णामंकियंगुत्थलजायणिच्छएणं जरासंघेणं दिण्णा निययधूया विसयखंडं च । तेण य कुत्रिषण णियपिया उग्गसेणो 'अहमणेण जले पत्राहिज्जतो उवेक्खिओ' त्ति जायकोवेण संजमिओ | जीवजसाए यसद्धिं कंसो भोगे भुंजइ । ओ य सोरियपुरे सव्वो पउरजग सुंदरीजणो वसुदेवरूवाखित्तहियओ मज्जायमइक मिउमादत्तो । जाणिऊण उम्मग्गपैवत्तं स्यलं पुरं पउरेर्हि मिलिऊण य विष्णत्तो समुद्दविजओ जहा - देव असमंजसीहूयं वसुदेवदंसणेण पुरं । अवि य रूवेण दिव्वरूवेण सयलगुणसारपत्थणिज्जेणं । तरुणियणणयण-मणपसरहारिणा देवकुमरं व ॥ ३२ ॥ वसुदेवं चिय पेच्छति सयलणारीओ चत्तत्रावारा । तह कुणसु देव ! जह ठाइ पट्टणं णिययमग्गम्मि ॥ ३३ ॥ "ऐसो वच्चर एसो व जाइ एस (से) स णिग्गओ मग्गं । पिक्सहि ! धात्रसु धावसु जाव य दूरं ण बोलेइ” ॥ ३४ ॥ १ रियगण जे । २ संतणो नाम जाओ । तस्स जे । ३ गुणच्छिण सू । ४ सचाइय' जे ५ जरासिंधुस्स गरवइमो जे । ६ पवित्तं सु । जसीकय पुरं वसुदेवेणं ति । अ जे ८ गाथेयं जेपुस्तके नास्ति । Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८३ ४९-५०-५१ अरिट्ठणेमि-कण्हवासुदेव-बलदेवबलदेवाण चरियं । इय जाणिऊण चरियं सोहग्गं रूपसंपयमुयारं । वसुदेवं गेहे चिय समुद्दविजओ णिरुंभेइ ॥ ३५॥ अह जाणिऊण एवं निग्गंतूणं छलेण भवणाओ । भासा-रूवविवज्जयकुसलो परिभमइ भुवणयले ॥ ३६॥ पत्थिज्जन्तो जुबईजणेण, गरवरसएहिं थुव्वंतो । अच्छेश्यं कुणंतो सकोउओ भमइ लीलाए ॥ ३७॥ फत्थइ वरिओ विजाहरीहिं गरुयाणुरायरत्ताहि । सोहग्गगुणणिहाणो कत्थइ गरणाहकुमरीहिं ॥ ३८ ॥ इय 'ओहामियरहरूबवम्महो दूरणिग्गयपयावो । वसुदेवो दोगुंदुयसुरगणलीलं विलंबेइ ॥ ३९ ॥ तरुणियणपत्थणिज्जो वाससयं विहरिऊण लीलाए । परिणेइ रोहिणिं सो सयंवरे भाउयसमक्ख ॥ ४०॥ परियाणिऊण भाऊहिं णवहिं कंसेगमाणिओ निययं । णिययपुरं सुरसुंदरिजणियावेओ सविहवेणं ॥४१॥ जणिओ पुत्तो तह रोहिणीए अइबल-परकमोवेओ । ससि-संख-कुंदधवलो बलएवो परवलमसको ॥४२॥ कंसेण तस्स दिण्णा पित्तियधुया य देवती णामं । जीवजसाए हसिओ अइमुत्तमुगी य मत्ताए ॥४३॥ तेण य कोवावरियहियएणं मुणिवरेण सा सत्ता । जो देवतीए गम्भो सो तुह पइणो विणासाय ॥ ४४ ॥ जंजह कह वि णिबद्धं जियाण कम्माण परिणइवसेण । परिणमइ तं तह च्चिय, कत्थ जई ? कत्थ साचो ? ति ॥ ४५ ॥ तेण वि णियजीयभयाउरेण भइणीए घाइया जाया । छ प्पुत्ता विहलमणोरहस्स ते रविवया सव्वे ॥४६॥ छह-ऽढमाइणा तोसिएण हरिणेगमेसिणा दिण्णा । सुलसाए मरन्तवियाइणीए, जे ते हया तिस्सा ॥४७॥ अह सत्तमम्मि गम्भे कण्हो णामेण वासुदेवो त्ति । उप्पण्णो कयपुण्णो गोटे गोपाइओ विहिणा ॥ ४८ ॥ तत्थढिएण पूयण-रिट्ठासुर-केसि-मुट्ठियादीया। णिहया सह चाणूरेण तयणु कंसासुरो णिहो॥ ४९ ।। अह वियलिएसु पंचसु वासाणं णमिजिगाउ लक्खेमु । उप्पण्णो कयपुण्गो समुद्रविजएण य सिवाए ॥५०॥ कत्तियकिण्हदुवालसिचित्तासु चुओ त्ति तासु य पमूओ। सावणसियपंचमि तह तिहीए वरलक्खगोवेओ॥५१॥ 'सव्वाणि अरिद्वाणि य पलयं पत्ताणि तम्मि जायम्मि' । तुटेहिं कयं णामं अरिठ्ठणेमि त्ति जणएहि ॥५२॥ पुष्चक्रमेण सव्वं जम्मण-महिमाइ होइ दट्टव्वं । संवढिओ कमेणं कलाहिं सह जोव्यणं पत्तो ॥५३॥ णिहए कंसम्मि तओ सव्वे वि य जायवा भेउबिग्गा । महुराउरीए चलिया सहसा रयणायराहिमुहं ॥ ५४ ॥ कुविओ य जरासंधो जीवजसावयणकोविओ संतो। तो पट्टवेइ सेण्णं तुरियं बल-केसबविणासे ॥ ५५॥ सेणाहिबई कालो उ तत्थ कालेण चोइओ संतो। कुणइ पइण्णं मूढो, "मोहेज्जइ "को ण कालेण? ॥५६॥ "जत्थ गया तत्य गया मारेयन्वा उ जायवा णिययं । अह गरुयभउबिग्गा जलणपवेसं कुणंति तहिं ॥५७॥ अग्गिपवेसो विमए तयणुक्कुढिएणऽवस्स कायव्यो । मयरहर-महाडइगमणमणुमयं कीरइ अवस्सं" ॥ ५८॥ इय सो काऊण सई इमं पदण्णं ति मग्गो लग्गो। हरिवंसदेवयाए विडम्बिओ डहाइ अप्पाणं ।। हरिकुलदेवयपरिमोहियम्मि कालेण कैंचलिए काले। अवरसमुदाभासम्मि संठिया जायवा सव्वे ॥६॥ तत्थ य समुदपतिणा ओसारेऊण जलणिहिं दूरं । सकाएसेण तो धणएण विणिम्मिया णयरी ॥ ६१ ॥ बारसजोयणदीहा विस्थिण्णा जोयणाई णव मुहयो । तह सव्वकंचणमया णाणाविहरयणभरिया सा ॥ ६२॥ जकावाहिवेण विहिया धण-कणगविहूसिया पवरणयरी । जा उप्पण्णा रयणायरम्मि महु महणवल हिया ॥३॥ सयलजणपत्थणिज्जा सिरि व साहारणा महाणयरी । सस्सोया वि असोया णिच्चुस्सवपमुइया णवरं ॥ ६४॥ इय तीए धणसमिद्धाए जाया जायजणमणाणंदा । कीलंति जहिच्छाए सुर व्ध संपण्णविसयसुहा ॥६५॥ तओ एवं णिवाइए कंसे, कुविए जरासंधे समद्धासिए जायवेहिं बारइणिवासजलणिहितडे, कुलदेवयापयारियकयजलगप्प वेसम्मि कालसेगावइम्मि" कुविएण जरासंधिणा समइक्ते पभूए काले पेसिओ दूओ हरि-बलएवागं ति। १ ओहाविय जे । २ रोहिणी जे। ३ भाईहि सू । ४ वि जे । ५ परिणवइ सू । ६ बहिणीए जे । ७ णेगवेसिणा सू। 'ग अम्मणमहिमाईयं तु होइ जे । ९ भओविगा जे । १० जरासिंधो जे । ११ कबलिज्जइ सू । १२ कोण का सू जे । १३ य सू । १४ कवलिओ कालो सू । १५ °या। पायारेणऽवगूढा जंबुद्दीव व लवणेणं ।। ६२ ॥ सा सव्वकंत्रणमया गाणाविहरयणमंदिरनिवेसा । जवाहिवेण विहिया धण-कगयविहू सया णयरी ॥६३।। जा उप्पण्या रयणायरस्मि महुमहणवत्रहा धणियं । सयलजणपत्थणिज्जा सिरि व्व साहारणा - बरं ॥६४॥ इय तीए धण जे ! १६ जणस सू । १७ जणियजण जे । १८ बइकयनिवास जे । १९ °म्मि, समइकते सू । Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८४ चप्पन्न महापुरिसचरियं । तेण य लद्धावसरेण समागतूण भणिओ 'वासुदेवो - " जरासंघेण संदिट्टमेयं ति, जं भो णैराहिवइ ! जं मह सेणाहिवई पंचतत्रओसा ण चिन्ता, जओ सामिकज्जुज्ज याणं मुहडाणं मरणं वा जैओ वाऽवस्संभावी, किंतु तुम्हे रणधुरसमुद्धराणं णियभुयबल-परकमेकदिण्णहिययाणं ण जुत्तमेरिसं ववहरिजं, जओ ण हि सुपुरिसाण मायापवंचणेणं णिव्वडर पुरिसयारो, मंडे वा दिसामुदाई कित्तिलया, घोलइ वा दिसामुहेसु अक्खलिओ पयायो त्ति । त जइ कालसेणावइस्स तुम्हेि मायाए वैबहरियं तस्स फलं संपयं भुंजह त्ति । एस सबल-वाहणो तुम्ह विणासणत्थमहं संपत्तो । ता कुणह जं करणिज्जं ति । अवि य jar जलणिहिमलं, गिरिसिहरं वा समारुहह सिग्धं । वञ्चह सरणमणग्धं, तहा वि जीयं अवहरामि ॥ ६६ ॥ अण्णं च- as fasts लियर्कुलिसग्गघायणिदलियदाणवाहिवरं । वच्चह सरणं तं हियसेसदणुय व्व सुरणाहं ॥ ६७ ॥ अह कह त्रिविसहरच्छच्छडप्पा त्रिहयतिमिरपब्भारं । गैरुलभया हित्यभुयंगमं व पविसेह पायालं ॥ ६८ ॥ अह पउरिंधणपज्ज लिया हलजालाकलावदुप्पेच्छं । सलह व्व गुरुपयावं हुयासणं त्रिसह दुव्विसहं ।। ६९ ।। तह विणसियासिदाढाकरालसर गियरणहरपेंसरस्स । तुम्हे मय व्व णासह विसमर्जेंरासेंध केसरिणो" ॥७०॥ तओ एयमायणिऊण त्रियंभिउभडामरिसवसा कलुसीकयं धिमिएणं वयणकमलं, ण उण भडाहिमाणं । अन्तोविसंखलुच्छलियबहलकोबाणलारुणिल्ला वि शूत्रिया अक्खोहेण दिट्ठो, ण उण रणिच्छा । गुरुकोवत्रिसमुग्गारगब्भिणं परामु सियमयलेण वच्छत्थलं, ण उण सच्चरियं । गरुयावलेवपडिरोहजणिय सेयंबुबिंदु दंतुरियभालवद्वेण सवलीकओ वसुदेवेण मुहमंडलाहोओ, ण उण जियजसुग्घाओ । अवि य पियकलत्तं व साहिलासमबैलोइअमणाहिट्टिणा मंडलग्गं । उद्दामदप्पसहणियबलं पिव बलेजावलम्बियं मुसलं । पडिवक्खपक्ख विक्खेवदक्खम हिमुहीकया जयसिरि ब हरिणा सारंगली | पयइत्थं विय णिप्पयंतणुतुलियते लोकधीरयंतँ मरिट्टणेमिणो चेट्ठियं । रणरसविसइरोमंचकंचुउव्वेल्लभंगफुडणापरम्मुहीकयमहिसेण्णं व पंज्जुण्णेण णिययतणुं । समरतण्हावियव्हरहसेण णियगोत्तकित्तिवल्लि व्व दूरमारोविया दाहिणभुयलया संवेणं । अवसेसेहि "वि कुमारेहिं भावियरेणरहसपसरियाणंद बाहजलगरुयकुवलयावलि न्व हुम्म णिवेसिया गयणमाला । art करणवारियलयलो समुहविजओ भणिउमादत्तो- “भो भो दूय ! is कह अण्णं च- पुत्र पुरिद्विया हसंतई गाँसिहि त्ति कलिऊण । जइ ओसरिया ता दूय ! एत्थ किं भीरुणी अम्हे ?" ॥७२॥ aree veeraft वित्थारियवयणवित्थरेण भणियं भोयणराहिवेण दूय सुणसु तंदूओ त्ति अवज्झो, बीयं गेऽऽओ पुण सवासाओ । तेणेवं पि भणतस्स तुज्झ खमियं जउभडेहिं ||७३|| ताकि बहुगा पलत्ते !, गच्छ, गंतूण भणसु णिययपहुं जहा जमिह भवया काउमारद्धं तमविलम्बियं कीरउ" । त्ति भणिऊण विसज्जिओ दूओ" । गुणगपदिष्णसण्णेज्झ देवयाए तुहं । सेणावइति णिहओ किमम्ह माया तहिं घडइ ? || ७१ ॥ णिग्गए तम्मि त्रिसज्जिया सेसणरिंद वंदें सम्मद्ददलियमणिमउड किरणकन्दुरियदिसामुहत्याणिमंडलो मंतिहरयमुवगओ समुद्दविजओ । तत्थ य मुहासणासीणेण पडिहाराहूय भोयणरिंदपमुहे सुहणिसण्णेसुं परिंदेसुं भणियं समुद्दबिजएणं जहा - एत्थ पत्थावे किमम्हेहिं कायव्वं ? ति । त तत्रयणात्रसाणे भणियं भोयणराहिवेणं जहा - "महाराय ! रायणीतीसत्थयारेहिं चत्तारि पदंसिया गया, त १ मसुदेवो जरासिंधुसंदिट्ठे सू । २ णराहिव । जे। ३ जओ व संभावी सू । ४ तओ जइ सू । ५ वबहरितं जे । ६ कुलिसाहिषाय जे । ७ गरुडभयात् । ८ भसल व जे । ९ पहरस्स जे । १० 'रस्सेध' सू । ११ बलोभि । १२ पंत (त)१६ बहुम्मि सू । १७ णासिह सू । १८ गेहागभी पुण १५ रणरसप' जे । तु सू १३ "तमं रिट्ठ सू । १४ य सू । सवासो जे । १९ भो । विसज्जियम्मि विसज्जिया २१ र य संसिया सू | सू | २. बेंद्र' जे । Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ __४९-५०-५१ अरिट्ठणेमि-कण्हवासुदेव-बलदेवबलदेवाण चरियं । १८५ जहा-सामो भेदो उपप्पयाणं दंडो ति । तत्थ जो पढमो ओ सो तेण सममम्हाण दूरओ विहडति, जओ सो अम्ह गोत्तकित्तणायण्णणेणावि दंडाहयभुयंगमो व्ध रोसबसविसंखलुच्छलियफारफुकारभीसणो हवइ । बीयणओ वि हुण घडइ पउंजिउं, तेणाणेयसम्माणदागाइणा समावन्जिओ सामन्तलोओ इच्छइ विहुरम्मिणियजीविएणात्रि' तस्स रिणमोक्खणं काउं ति । उपप्पयाणं पि दरमोसकं, कई ? -तज्जणियपसायाणंतजायभंडारसारमणि-कणय रयणपूरणवियण्हीकओ सयलो वि पयइबग्गो, सो य उवप्पयाणेण घेत्तुं ण तीरए । तओ एवमवत्थियम्मि एत्थ चउत्थोवायरस पत्थावो त्ति मह मती। तहा अण्णेहिं पुण णीती-णयवियाणएहिमेयमभिहियं-बलवयाहिउत्तस्स विएसगमणं, तयणुपवेसो वा । ऐयं तु अच्चंतपोरुसप्पहाणभडयणाहिद्विएम णिययवलमाहप्पावमणियमहिंदेसु राम-केसवेसुं साहीणेसुण लब्भए काउं। तहा अम्ह उण मयमेवंविहं जहा आहिउत्तो जया पस्से ण किंचि मुहमप्पणो । जुझियव्यं तया होइ, फुडमेसो उवक्कमो"॥७४ ॥ तओ एयभणियाणंतरं 'साहु साहु' ति समत्तसामन्तलोएणाभिणंदिऊण भोयणरिंदवयणं भणियं च- अहो ! णीतिकुसलत्तणं, अहो ! वयणविण्णासो, अहो! सत्थत्थावगाहणया, अहो! वीरगरुयत्तणं, अम्हाण वि एस अहिप्याओ। त्ति भणिऊण पलोइयं परिंदसमुद्दविजयस्साहिमुहं । पहुणा वि वहुमण्णिऊण तं वयणं भणियं च-"मम चिय हियएण मन्तियं, कहं चिय? दप्पियपडिवक्खं पति सामो भीरुत्तणप्फलो होइ । तरुणजरस्स व जुंजइ समोसहं कोवकरणाय ।। ७५ ॥ भेओ य कुडिलवंचणपणासितुत्तम्ममुहडमाहप्पो । पिमुणत्तणप्फलो होइ साहुपुरिसाण मज्झम्मि ।। ७६॥ तह या उपप्पयाणं पि माणिणो माणमलणमुबहइ । गलियावलेवपिसुणो जेण सकप्पो तणीकारो ।। ७७ ॥ तओं तस्स दप्पपरिसाडणं पति डंडो चिय पउंजिउं जुज्जइ । सो वि अहिमुहपस्थाणेणं, ण उण दुग्गासयणेणं । जओ दुग्गासयणेणं भीरुत्तणं णिचडइ, णियभूमिभाओ य हारिओ होइ । सम्मुहर्पत्थाणे उण तस्स मणचमकारो जायइ, सदेसपरिरक्खणं कयं होइ, परिरक्खिओ य सहायकिच्चमावहइ । अओ हेउवाएयपरियप्पणया दंडो ममं पि अहिमओ"। ति भणिऊण जहाजोग्गं सम्माणिय विसज्जियासेससामंतो अंतेउरमुवगओ राया । तत्थ य ललियविलासिणिकरयलसंवाहियावयवो मुहुत्तन्तरं णिद्दासुहमणुहविऊण विउद्धो । एत्थ पत्थावम्मि पढियं बंदिणा णिठुरकरजालपहारविसममुसुमूरियारितमचको । सव्वजणोवरि जाओ मूरो तुह पंहु ! पयावो व्य ।। ७८ ॥ तओ एयमायण्णिऊण कयमज्जण-भोयणावेसाणेणं णेमित्तियाणुमयसोहणदिणमुहुत्तेण किंकरकरऽप्फालियरणभेरीसइमुहलं कयं अत्तणो बल-दामोयराणं च पत्थाणमंगलं ति। अवि य-णीहरंति कैरडयडपलोट्टबहलमयजलोल्लियमहियलाओ मेहमालाओ व गैइंदमंडलीओ, कड्ढिजति चेंडुलत्तणोसककपरिसकिरारुसियफॅरुफुराविओढउडखलविलसियाई व तरलतुरयथट्टाई, सज्जिजति घणघणासहतेड्डवियसिहंडिमंडला जलहर व्व रहवरुग्घाया, निग्गच्छइ य कुडिलैंकोंगिवग्गिरुम्मग्गलग्गरेल्लियजलणिहिजलं व पायालसेण्णं ति । एवमणवरयावूरिज्जमाणसाहूणोववेओ आवासिओ बाहिरोवत्थाणयपरिसरम्मि । तत्थ द्वियस्स य तप्पहियलेहवाहयाहूयमिलंताणुरत्तसामंतर्चेक्कस्स समइच्छिओ दिवसो। पढियं च बंदिणा अत्थमइ अत्थगिरिमत्थयम्मि संपुण्णमंडलो सूरो । तुह उण खग्गे णरवइ ! अत्थाया सूरसंदोहा ॥ ७९ ॥ तओ तमायण्णिाऊण विसज्जियासेससेवयजणो रइहरमुवगओ राया। तत्थ य संझावैस्सयाइयं काऊण करणिज्ज णिसंग्णो वरपल्लंके पैत्थाणकहासंबद्धालावेहिं चेव किं पि वेलं गंमेऊण णाइदूरोवविठ्ठणरकलियवल्लईमहुरमणहरालत्तिगेयमिलियसंगीयसुसुहागयणिहाविणोयमणुहविउमाढत्तो। एत्थावसरम्मि य भडयणस्स के वावारा वटिउं पयत्ता ?, अवि य-- १ वि सामिणो रणमोजे । २ सयणीकओ जे । ३ एवं पि अं जे । ४ प्पा वंदियमहि सू । ५ अहिउत्तो सू । ६ मम च हिंजे। ७ जुज्जतमोसह सू। ८ पत्थाणेण तस्स चम सू । ९ य सेसणरिंदो(?दे) विसचिऊण अन्तेउर सू। १० बहु जे । "वसाणे णे जे। १२ कडयां सू। १३ गयंद सू। १४ चटुल सू। १५ फुरफुरा जे। १६ तडुत्तिय जे। १७ 'लकोगि सू। १८ 'चकस्साइच्छिओ जे । १९ वस्सय सू। २० ष्णो पल्लंके सू। २१ पत्थाणसंबदकहालावेहि चेय जे ।। Jain Education Interyonal Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८६ चउप्पन्नमहापुरिसचरियं । ण पियइ दिण्णं पि महुँ दइयाकरयलसमप्पियं पि भडो। णियसामिदाण-सम्माणजणियरिणमोक्रवणसयोहो ॥८॥ मयणाहि-धुसिणकलियं विलेवणं कोइ णेच्छइ तणुम्मि । रिखुपहरपडिफलं णं मा होही समरमग्गम्मि ।। ८१ ।। अण्णो णिम(म्म)जियकैयविसालधाराकरालखग्गलयं । सुसुरहिपमयमालोचमालियं कुणइ सयराई ।। ८२ ॥ उण्णयविसालपेढालचक्कलुत्तुंगसिहिणपब्भारं । अहिलसइ णेय दइयं पियं पि णिदं व को वि भडो ।। ८३ ॥ संठियगुणं सुवंसं विणयवसोमुक्ककढिणसम्भावं । कोइ पडियग्गइ भडो सरासणं णियकलत्तं व ॥ ८४ ॥ सुपओहरं सुलोहं णिच्च परखंडणेककयलक्खं । पयइकुडिलं पि कौगि कोइ भडो भयइ वेस च ॥ ८५॥ गुणणिग्गयस्स लोहिल्लयस्स परमम्मभेयणसहस्स । बाणस्स दुजणस्स व कोइ फलं महइ घेतुं जे ॥ ८६॥ इय णियमंदिरवावारवावडो जाव होइ भडसत्थो । ता जामसंठिएणं 'विकूवियं तम्बचूडेणं ॥ ८७ ॥ तो रायंगणे पढियं मंगलपाढएणंपरिलुलियतिमिर केसांऽवमीलियायंबतारया रयणी । परिणमइ चंददइओहोयपिमुणा पणइणि च ॥ ८८॥ तो णिहालसुम्मिलंतलोयणो जंभालमुन्यलणुव्वेल्लमाणभुयलओ पढमपडिउद्धपिययमासुण्णइयवामपासो पडिबुद्धो राया । कयमिट्ठदेण्यापूयणाइयमवस्सकरणिज । सुहणिसण्णेणं च दिण्णा समाणत्ती णियणिोइयाणं जहा-दिजउ पयागढक्क त्ति । अवि य अह सुरकराहउच्छलियदेवदुंदुहिणिणायसारिच्छो । रायंगणे पयाणयढक्कासदो समुच्छलिओ ॥ ८९॥ तओ ढकारवमायण्णिऊण पडिबुद्धो सयलो वि सामंत-तलबग्गसंदोहो त्ति । तओ य किं काउं पयत्ता ?, अवि य सिविलिऊण दइथं पिहुंगुण(पियंगु)दलसालयं, कोइ सिहिणधगफलहेस्वच्छविसालयं । गंदणं व विरहुग्गयतावपणासयं, सामिकज्जि बहुमण्णइ णवर पासयं ॥ ९०॥ अण्णाए कंठवलइयं, मोइज्जइ कह वि ओसुहेल्लयं पि । सुहडेण सामिकज्जए, दइयालइयसिणेहपासयं व ॥ ९१ ॥ विलुलियसिढिलकेसचटुलीकयचंचलवालयं, संठवेसु देवरतणुतरल[य] गलयं । भणइ कोइ मह सुंदरि ! मुय माणल्लयं, वयणयं च मा वुब्भउ वाहजलोल्लयं ॥ ९२ ॥ उप्पन्तीए कवयं कीए वि 'रक्रवासह' ति दइयस्स । आलिंगिज्जइ बहुसो, गुणाग रज्जई जगो, ण स्वस्स ।।९३।। जंतदइयमवयच्छिय कीए विसालयं, वेण्णवेवि मुहमुम्भडजणियविभोलयं । दुण्णिमित्तसंकाए विसायबसुब्भए, वाहओ पहोलिज्जइ लोयणमज्झए ॥ ९४ ॥ सुपडिस्थिरपरिसप्पयं, कोयि समारुहइ संसए वि मिलियाण । ववसायं पिव तुरययं, सहाययं आईए संसियाण ॥१५॥ को वि गलियकरडयडपलोट्टियदाणयं, गुरुविपक्खभेयक्खमदीहविसाणयं । णिययपुरिसयारं पिव पर भडभंजयं, आरुहेइ गुरुमयगलमइदप्पुज्जयं ।। ९६ ॥ कीए वि गओ त्ति दइयो, विरहभया हित्थवेविरंगयाइं। अवलम्बियाई तुरिययं, वयंसियाए व णैवर मुच्छयाए ॥१७॥ एवं विणिग्गयासेसभडयणो खणमेत्तमिलंतसामंतचक्को पासपरिसंठियऽक्खोहप्पमुहसमत्तसहोयरो अण्णओ भोयगरिंदाहिद्वियबल-दामोयरो पयट्टो राया । कहिचि करहुत्तासियवेसरगिवाडियविलासिगीजगहसावियभुयंगो, कहिंचि समयगलारुसियपलोट्टियमेंठो, कहिचि वडवादसणविरुद्धदषुधुरतुरंगमायड्ठ्यिारोहो, कहिचि बहुसिडिंगपरियालियखोरकलयलारावमुहलो वहइ खंधायारो त्ति । कइवयफ्यागएहिं च पत्तो सरस्प्ततीए तीरासगं सिणवल्लियाहिहाणं गाम ति । तस्थ य समथलसमरजोग्गभूमिभागम्मि आवासिओ समुहविजओ त्ति । पडिफ(फ)लण मा सू। २ करविसाल स.। ३ विकूइयं तंबचूलेण जे। ४ लबाढएग जे । ५ °सा विमीलि जे। ६ वहोबपि सू। . 'करणीय जे। ८ गयढक जे। हरदा जे। १० वलइ पमोईजे। ११ इ गरो ण सू । १२ उग्णवेमि सू। १५ णवरि मुन्छियाए सू। १४ खंधारो जे । Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४९-५०-५१ अरिठ्ठणेमि-कण्हवासुदेव-बलदेवबलदेवाण चरियं । १८७ इओ य सो दूझो जायक्वयणजायकोवाणलो अइरेणं वेब गओ मगहाहिचरायहाणि । पंडिहारणिधेइयागमणो य पविहो गरबइसमीवं । महियलमिलंतमउलिणा य पणमिऊण सविणयं करकमलकयमउलिणा जाणाधिओ जायवणरिंद सन्तो । तेओ तमायण्णिऊण पलयपवणपज्जालिओ ब खयकालाणलो, अयंडणिवडिओ व्व दीहरुकाडंडो, घणरपाणंतरफुरियो र तडिच्छडाडोवो, पप्फुरियकिरणजालो व्च णिदाहदिणयरो सहसा दुईसणो संवुत्तो। रोसफुरियाहरो य अंपिउं पयत्तो-कहमहं तेहि परिहविज्जामि ? | त्ति भणिऊण उटिओ सीहासणाओ । दवावियरणपडहुच्छलन्तपडिरवो अवमणियणिमित्त-मुहुत्त-दियहो तक्रवण चेव णिग्गओ णिययमंदिराओ गंतुं पयहो । उड्ढयधरियधवलायवत्तो पासपहोलंत चंडलचामरुग्याओ उद्दामबंदिदिग्णजयजयासदो पुरओ' मिलन्ततलवग्गो अवमणियमंतिवयणविण्णासो विणिग्गओ पुरवरीओ। तो विणिग्गयं मुणिऊण गरवई णिम्भरगलंतगंडयलदाणदुदिणमहाकयप्पवहा । अण्णेन्ति जलयतमवडलविन्भमा मयगलग्घाया ॥ ९८॥ णीहरइ परणधुयधयवडापलीकवलणमासलिओ । मंजीरकयझंकारमणहरो संदणणिहाओ ॥ ९९ ॥ णिजति पउरडिंडीरपिंडपंडुरतरंगतरलिल्ला । गंगासोत व्त्र तरंगभंगुरा चारुयतुरंगा ॥ १० ॥ करकलियसेल्ल-वारल-सति-कारक-फारसंबलिया । उटंति धणुगुणाँलंकालंतिणो (१) पक्कपाइका ॥ १०१॥ एवं च गच्छंतस्स मगहाहित्राणो उम्भडप्पायसालिगो णिवडंति दीहरुकाडंडा, पवाइओ फरुससकरुक्करभीसणो मारुओ, रसिया दाहिणंदिसाए ललकमल्लुया, पदीसियं सूरमंडलम्मि कबंधबिंबं, दिवसओ चेत्र बहलतिमिरावलंबियं दिसावलयं, अंतरियलोयणालोया णिवडिया पंसुवुट्टी, केणइ पगोल्लियं व णिवडियमहोमुहमायवत्तं, मग्गमोच्छिदंतो पगच्छिओ भुयंगमो । एत्यंतरे तन्निमित्तमंतिधरिजमाणो वि कालकरायड्ढिओ व भवियव्वयाए तारिसीए, परिक्खीणयाए य सुकयकम्मुणो दीहरपयाणयलंघियद्धाणमग्गो कइवयदिणेहिं च संपत्तो सो वि सरस्सईए पएसं । तस्थ य पढमपेसियतुरयारोहणिरूवियजरसिंधुणो(?) आवासिउं पयत्तो। कहं चिय? उभिज्जतकट्ठपंजरो खोहिज्जतकूरवडओ भामिजंतकडवडओ णिहोडिज्जतदूसो गोविजमाणन्तेउरावासो पायडपरिसंठियपिंडवासो आवासिओ मगहाहिवो त्ति । तओ अइच्छिओ दिवसो । अत्यंतमुवगओ सहस्सरस्सी । कयमुभयबलेहिं पि संज्झासमयकरणिज्ज । हरगलगवल-तमाल-कज्जलुजलायारेणमोत्थरियमंबरं तमसंघाएणं ति । तओ मूयलिज्जन्तकायालावे पसरंतघूयसंघाए घडियविहडन्त, कवायमिहुणे जीडणिलन्तासेसविहयसत्थे णवरं लद्धावसरपसरन्ततरच्छ-ऽच्छहल्ले उत्थरइ वग्यधुंरुहुरारवो, णीहरइ दरियमइंदरुंजियसदो। एरिसम्मि तमणियरभीसणे, सुन्धमाणसिवरसियभीसणे । असुहसंसिउप्पायबहुलए, वणयराण सुव्वंतरोलए ॥१०२॥ तओ उभयवलेहिं पि एकमेक्कासाहणत्थं पेसिया बंदिणो जहा-गोसम्मि जुज्झियव्वं ति । मुणियसमरसंकेएमु य दोसु वि बलेसु किं काउमाढत्तो भडयणो ?-पूइज्जति इट्टदेवया, सम्माणिज्जति सेवया, सज्जिज्जति किवाणाई, सच्चविज्जति सरासणाई, णियस्थिज्जन्ति सण्णाहा, संघडिजन्ति गुडोहा । एत्थावसरम्मि य समुहविजेएणं पणमिऊण जिणबिम्ब, बंदिऊण वंदणिज्जे, पूइऊण पूयणिज्जे, दक्खिऊण दक्खणिज्जे, सम्माणिऊण सम्माणणिज्जे, बहुमण्णिऊण भोयणरवई, णिवेसिय सयलसहोयरगणं भगिओ वलाहिडिओ दामोयरो एवं जहा-तुमं कारणपुरिसत्तणं कलिऊण कणिट्ठो वि जेठो, जेण वीयराएहिं तुझं चिय सिद्वमद्धभरहा हिवत्तणं, अओ 'तुज्झेस वज्झो' त्ति मुणिऊण समरमग्गम्मि परिसकियव्वं । ति भणिऊण विसज्जिया सणेह-सबहुमाणं । गया य रणरहसुच्चइयचारुरोमंचकंचुइज्जंततणुणो णियेयावासेसु । पसुत्तो य गरवई । तओ समरुकंठियाण कह कह वि पभाया रयणी । ताव य-- . १ तओ समा सू । २ तहि पि परि सू । ३ सिंहा सू। ४ उदय जे। ५ 'चटुल' सू । ६ 'ओ पयामिलजे । ७°णालपिणो पर सू। ८ मग्गओ छिदन्तो गमो भुजंगमो। एवं च तष्णिउत्तमति सू। ९ दोहपया सू। १० तक ?क)डयवडओ सू । ११ पयस। १२ चकाय जे । १३ 'घुरकारको जे। १४ जयाणा सू। १५ नियनियावा जे । Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउप्पन्नमहापुरिखचरिये । रणपडहपडिरघुप्पण्णसुहडघणपुलयपडलपन्भारो । उभयबलेसु समुच्छलइ तक्खणं हलहलारावो ॥ १०३ ॥ तओ कीरन्तकयलियासज्जहत्थिहडं पक्खरिज्र्ज्जतपर्यंडेवेयंडं दढयरुद्धरसंजणियसंदणं निग्गुडिज्जंतदप्पियतुरंग समरपरिहच्छुच्छहंतफारक्कचकं गुणझणकारमुहलद्धयधणुद्धरं रणभूमिमागुयं वमुहपस्थिवाण सेण्णं ति । तओ धारिज्जमाणुद्दण्डपुंडरीयं धवलधुवंतघयवडं बैहुविहाउज्जवज्जमाणतूरं बंदिपढिज्जतजयसद्दमुहलं अष्णोष्णगोत्तकित्तणाहसियजोइं डक्कोट्ट-भिउडिभीसणभडं संलग्गमाओहणं । तओ दीहरुकादंड व णिवडन्ति सरणिहाया, तरलतडिच्छडाकडप्पो व्व fares करवालनियरो, वित्थरंति खरखुरुक्खयरया तुरंगमा, उत्थरन्ति कयकंठगज्जिओरल्लिभीसणाओ गयघडाओ, पसरन्ति घणसाणुकारिणो संदणाण सदा, लग्गइ य पमुकललकहकहकिरं पाइक सेण्णं ति । अवि य- १८८ लग्गंति गयाण गया तुरर्याणऽस्सा रहाण तह रहिणो । पाइका पाइकाण तक्खणं समरपरिहच्छा ॥ १०४ ॥ अह गुरुगइंदसम्मद्दणिद्दयुद्दलिय संदणविहाया । संदणणिहाय तोरवियतु रयतू रं तरहचकं ।। १०५ ।। रहचक्कचमढणुव्वरियजोहॅनिहारियुमडारोहं । आरोहमंडलग्गाहिघायजज्जरियपाइकं ॥ १०६ ॥ पाइकुष्पंकपमुक्कचक्क छिज्जंतछत्त-धयविधं । धयचिंधपडणपसरिय समीरणासासिय भडोहं ॥ १०७ ॥ इय रहसृग्गयरहतुरयखरखुरुक्खयर ओहपसरेण । अन्तरियलोयणवहं जायं समरंगणं सहसा ॥ १०८ ॥ अह भडभुयदंडचंडप्पहारुग्गलग्गन्तखग्गग्गओ [? ---]णिग्गयग्गीफुलिंगुद्धफुट्टंतफारप्पहुद्दीवियं, गुरुयरगयमंडलीचंडसौडासमा वेढग ढोवदादुद्धपक्खित्तजोहोह कुम्भत्यैलुद्दारणुम्मिलमुत्ताहला मंडियं । तरलतुरयथट्टसंघट्टलग्गेक्कमेक्काऽऽसवारप्पहारुरूभडुप्पण्णमुच्छासमुच्छाइयच्छी विवल्लत्थवीसत्थजोहाउलं, पसरियघणसंदणुद्दामपव्विद्धपाइक पम्मुकणाराय-वावल्लभल्लुल्लसन्तद्धयं देहिं विछिण्णछत्त-द्वयालिद्धयं ॥ १०९ ॥ एवं च पयते महातुमुलजुद्धे तओ उदंड पुंडरीउन्भड डिंडीरपिंडं सुणिसियकरवालुच्छलंतमच्छच्छडं चेंडुलयतुरंगवगिरतरंगं घडियघणसंदणुद्दामकल्लोलमालं दुद्धरपैयलपायात्रीतिविच्छ निव्भरमयदुद्दन्ततुंगकरिमयरं पडुपहयवज्जि - राउज्जगज्जियं समोत्थरियं मगहाविबलं ति । तेण य महोयहिजलेण व महाणइसलिलं व विवल्लत्थियं जायवणारंदसेणं, भग्गं च विमुकमच्छरुच्छाहं । अवि य--- तओ विमुकजायं, समुज्झियाहिभाणयं । गलन्तहस्थखग्गयं, पहाइ मुक्कमग्गयं ॥ ११० ॥ विमुक्कजोहधीरयं, विमग्गमाणणीरयं । लुलन्तछत्त-चिंधयं, विसाय-संभमुद्धयं ॥ १११ ॥ पलायणेकचित्तयं, ससामिणो त्रिरत्तयं । कर्रिदसीयरोल्लियं, तुरंगथट्टपेल्लियं ॥ ११२ ॥ रहोहरुद्धपंथयं, भँयाउ[लु]च्छयच्छयं । परोष्परोरसोल्लियं, पलाइ भीरुणोल्लियं ॥ ११३ ॥ ति । अह णवर तत्थ थक्कइ कढिणगुणप्पहर किणइयपउट्टो । तेलोक्कमंदिरक्खंभविब्भमोऽरिद्ववरणेमी ॥ ११४ ॥ तओ आयष्णायड्ढियचंडकोयंडमुक सरपसरेण लीहायड्ढयं व, तुलियतेलोकधीर(रि) मुप्पण्णपयावेणं थंभियं व, अर्चितसत्तिसामत्थयामंतेण मोहियं व, धरियं पराणीयं । एत्थावसरम्मि य एकपाससंगलन्तकुमाराणुगयराम केसवं, अण्णओ भीम-ऽज्जुण-उल-सहदेवाहिट्ठियजुहिद्विलं, अण्णओ भोयगरिंदोववेयससहोयरसमुद्दविजयं पयट्टियं पहाणसमरं ति । एवं च जणियविविहर्वेह विष्णासं पर्यपिज्जन्त दंडर्जुज्झं पट्टियं समरं ति । अणुदिणं च समरवावारबावडाणं अइकन्ता as विवासरा । तओ एक्कम्मि दिवें से पेच्छन्तस्स मगहाहित्रइणो वहवे तस्स वलम्मि राम केसवेहिं राइणो वावाइया । तओ चलियचलंतचामरवीइज्जमाणो अप्फालिऊण कुवियकयन्तभूभंगविन्भमं धणुवरं भणिउमादत्तो, अवि य- ture परिसक्किज्जर गोट्ठे गोवीण मज्झयारम्मि । अण्णह धणुगुणटंकारदारुणे समरसंघट्टे ।। ११५ । अort लीलागो डिएहिं गोत्रीण जणियसिंगारं । जंपिज्जइ अण्णह गुरुणरिंदरुंदम्मि संगामे ॥ ११६ ॥ जे । ७ हणिद्दारिणुब्भढारोहं सू । ८ ६ याण तुरंगमा रहाण सू जे । जे । ११ स्थलद्दार' जे । १२ उपुं जे । १७ भया[-सत्ययं सू । १८ १ क्रियमाणकदलिका सज्जहस्तिघटम् । २डवेयंडद्द थिउड, दर्द सू । ३ पटुविवाहुज्जवज्ज ं सू । ४ दंडउ ब्व जे । ५ खुरक्खय पक्क ं सू । ९ खुरक्खयं जे। १० गाढोबदाइदप । १३ चटुलयरतु सू । १४ 'पचयल्लं' जे । १५ लवीलिवि सू । १६ वढवि सू । १९ 'जुद्ध पट्टियं जे । २० दियहे पेच्छमाणस्स जे । २१ 。 हूं। कई चिंय ?गोल्ड एहि स् Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४९-५०-५१ अरिठणेमि-कण्हवासदेव-बलदेवबलदेवाण चरियं । जड़ केस(सि)-रिट्ठ-मुट्ठिय-चाणूराई णिवाइया णाम। ता किं तेणं चिय तुज्झ गोव! कंटा समुच्छलिया ?" ॥११७॥ भणिऊपायडिढयचंडचावचकलियमुकलग्गेहि । भिण्णो सरेहिं पत्तलविचित्त'खग्गसोहेहिं ।। ११८ ।। नओ केरायो वि इमिवियसंतव याणकमलो 'णीलुम्मिल्लन्तदरदिदसणच्छवी हेलावलइया(य)सारंगधणुवरा पैयपिउमाहत्तो-- भो भो मगहाहिब ! जंपिएण किं क जमेत्य वहवेण ? । वायाए भंडणं महिलियाण ण उगो मुघुरिसाण ॥११९।। अइरा णिबडइ च्चिय तुम्हऽम्हाणं च जो सलहणिज्जो । करगहियकंकणे दप्पणेण किं कज्जमइमूह ! ? ||१२०॥ एवं च भगिऊण सारंगवणुविणिग्गयवाणपसरेण विहलीकयमणोरहं काऊण तप्पहियसिलीमुहसमूहतड्डणेहिं च विद्धा सतुरंग-सारही मगहाहियो, छिण्णमायवत्तं, णिवाडिओ थओ । तओ हुयासणेण व कोवाणलालिद्धदेहेण सुमरियमग्गेयमत्यं । तं पि पजलियजलणजालाकलावकवलियदिसामुहमागच्छमाणं दामोयरप्पहियघणगजिओरल्लिमुहलवरिसंतसलिलधाराणिवारण विज्झवियं वामणत्थेणं । एवं च विहलीकयासेसदिव्यत्यो मगहाहिवो संभरइ चक्करयणं । आगयं च तं सिहिसिहाजालभानुरं विलग्गं करयलग्गे । एत्थावसरम्मि य विसण्णा सिद्धा, विसायं गया गंधवा, अहोमुहा ठिया किन्नरा विसण्णाओ अच्छराभो । तो रोसारुणलोयणिल्लेग यहणिमित्तं पेसियं वासुदेवाभिमुहं । तं च पंयाहिणीकाऊण पजलियरवयजलगजालावडालिविभम पलम्ग केसवकरयलम्मि । तओ हरिसिया सिद्ध-गंधवा, उग्गीयं किन्नरगणेहिं, विमुकं कुसुमबरिसमच्छराहि. फुरियं दाहिणभुयसिहरेण, गजियं जयगईदेण, हेसियं वरतुरंगमेण । पेसियं च परिमुप्फुल्ललोयणेणं वहणत्थं । मिडियं च तस्स कंठदेसे । तओ तुटुंतणाडिजालं मउलमाणलोयणदलं परिक्खुडियकमल पित्र पहरच्छिन्नमंडलं पिव णिवाडियमुत्तिमंगं । ती सिद्ध-गंधव्वेहि मुक्का कुसुमखुट्टी । कओ य जयजयारवो-जयइ महारायाहिराओ भरहद्धचक्कयट्टि त्ति । पल्लट्टाइं सिविराभिमुद्राई वलाई । आवासिओ तत्थेव वासुदेवो । 'ठिओ कइवयदिणे । सोहणदिण-मुहत्तेणं च कओ रायाहिसेओ । पणमिया य संमत्तसामन्ता । उवविटा य समुहविजयाइणो जायवा । तओ तत्थेव पदेसे सयलजायवणेरि दवंदेहिं कुदिओ आणंदो । कहं चिय? अच्चुत्भडफुरंतमणिमउडवियम्भियतेयपसरयं, वेल्लिरबाहुडंडचलकंचणर्किकिणिजालमुहलयं । वेयवसुच्छलंतहारावलिभूसणरॅणियपुव्वयं, छज्जइ जायवाणमाणंदसैमुन्भडणचियचयं ॥१२१॥ तो भत्तिभरणिभरमाणसेहिं जायवणरिंदेहिं तत्थ भयवं णिवेसिऊण अरहंतासणयाहिहाणमाययणं कारियं । आणंदपुरं च गिविटं । अन्ज वि नत्य पसिद्धं पच्चक्खमुवलक्खिजइ त्ति । ___ तओ तप्पएसाओ वासुदेवो दाऊण भोयणरवइणो सविसयसमणियं महुरं, पंडवाणं च तप्पडिबद्धगामाहि ढियं हत्थिणारं, अण्णाण वि जं जाण जोग्गं तं ताण दाऊण पयट्टो णमंतसामन्तमउलिमालामिलन्तचलणजुयलो य सदेसाभिमुई । आवासंतो जहामुहमावासएमुं पत्तो णिययणेयरिं ति । तओ परियमियपटुंसुयवियाणओलम्बमोतिओऊलं । झुल्लंतचारुचलचमरचूलहल्लन्तहारिल्लं ।। १२२ ।। उद्धणिव युद्धयचिंधकणिरकिंकिणिकलावरमणीयं । चीणंसुउज्जलुव्वेल्लदिविहवण्णाहिराहिल्लं ।। १२३ ॥ पक्वित्तपउरकुमुमोवयारगंधंधभमिरभमरउलं । डज्झंतागरुपडिवधूमधूमलियधयचिंधं ॥ १२४ ॥ मयणाहि-घुसिण-घणसारपउरपरिमलियकयजलच्छडयं । ठाणहाणे अहिमुहबरदलसंपुण्णकयकलसं ।। १२५ ॥ इय जणियहट्टसोहासमाउलं दारयापुरि काउं । जणियाणुराय-कोहल्लमहिमुहं णिग्गओ लोओ ॥ १२६ ॥ तो वासुदेवो वि सुणिरूवियतिहि-णक्खत्ताणुकूलो गोउरमुहं जाव संपत्तो ताव य पउरकोऊहलमिलैंन्तपुरमुं , लम्म जे । २ पयपिउ पयत्तो जे। ३ वुणो सुपुरिसाण जे । ४ गससारही सू। ५ पयाहिण का जे । ६ मं वलग्गं . 'गमेहि जे। ८ तनातिनालं जे । ५ थिओ सू। १. सामंतसा जे । ११ गरिंदेहिं सू। १२ रणिरपु जे । १३ समुन्भवण बे। १४ पुरवर च । १५ गयरे ति सू। १६ 'यप्पिय जे । १७ लन्तसुदरी सू। Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९० चउपन्न महापुरिसचरियं । दरी देहसंदाणियरायमग्गं रायमग्गुब्भडघडन्तणिविड सम्मद्ददप्पिओद्रतुरयारोहं तुरयारोहणिवारियगयारोह तिक्खं कुसायहियगयवरं गयवरगुरुगज्जिओरल्लिस दसं तत्थ संदणतुरंगदुग्गमं रायमग्गं कह कह वि गंतुं पयत्तो । तात्र य धरियधवलुइंडपुंडरी ओवल चडुलचामरकला परिडिओभयपासो 'एसेस वासुदेवो' त्ति भणतीहि पुल उमादत्तोपुरदहिं । कीं ? - लीलाविभक्त्ति बाहुकरमोडियंगुलियलाहिं । मुहपत्रणपरिमलल्लीणबहल भसलउलवलयाहिं ।। १२७ । म्हस मोट्टाइयह संतपरिसिढिल केसवासाहिं । त्रिसमुण्णमन्तसिहिणत्थलुल्लसंतोरुहाराहिं ।। १२८ ॥ कीरन्तकण्णकंडुयाई सिणिम्मीलियच्छिजुयलाहिं । एक्ककरधरियकोमलवन्तसिच एकत्रासाहिं ।। १२९ ॥ इय तदंसणवड्ढियविलासपिसुणाहि पवर तरुणीहि । विसइ पलोइज्जतो कयाहिलासं महुनिहाई ॥ १३० ॥ तओ बहुजणणिवेला वेल्लीए कह कहं पि अगओ णियमंदिराभिमुहं । तहि च दुवारुदेसणिम्मिय मंगलकलसं पलंबंतपञ्चग्गनुयपल्लवुब्वेल्लवंदणमालं ललियविलासिणीज गियकोमला लावमंगलमुहलं दियवरसमुग्घुडपुण्गाह संवलियजयजयास परिनिययमावासभवणं ति । तओ विसज्जियासेसरायलोओ कैइवयपाइयभडपरिवारिओ कंचि वेलं गमेऊण त्रणो पलंकेतात्रय परिणओ वासरो । पढियं च बंदिणा पल्हत्थिज्जर करजालरज्जुसंदामिओ समुदम्मि । सलिलस्स कए पच्छिमदिसाए कलसो व्व दिणणाहो ॥ १३१ ॥ तओ कयजहोचियावस्सओ विसिद्वाहिद्वियविणोएण गमिऊण कँचि वेलं पसुतो जहासुणं । एवं पसाहियसयलदिसreate freoियदरियपडिवक्खस्स बोलीणा वहवे संवैच्छरा । अष्णया च तरुणजणकयमणाणंदो समागओ महुसमओ । जत्थ य वर्णतराहोया उग्गायन्ति व्व महुयरविरुएहि, णचंति व्व माख्यपहल्लिरुब्वेल्लन्तपल्लवेहिं बाहरंति व बहलकोइलालावेहिं, पज्जलन्ति व कुसुमियकिंसुयत्रणेहिं, धूमायन्ति व्त्र पउरुच्छलंतकुसुमरणं । अण्णं च मंजरिज्जति सहयारा, जालइज्जति मल्लियाओ, पल्लविज्जंति कंकेल्लित्रणाई, कोरेंइज्जंति कुडयणिउरुम्बा, कुसुमिज्जति कणियारणियरा, मउरिज्जति पुण्णायपहयरा । जहिं च— पिययमसव्वायरपाणिपेल्लणुव्बिलविडपरिणाहं । सहइ कैलकणिकलावमुहलं णियम्वर्ड ।। १३२ ।। करधरियरज्जुपेरंत सिहदूमगविमुकसिकारं । मणिवलय- कुंडलुब्भिडणमहुरपविद्धझंकारं ।। १३३ ।। सहियणपुच्छियपियगोत्चचलणपडिरोहवदियविलासं । सहइ सलीलालसविलुलियक्खरं लजियपलत्तं ॥ १३४॥ आवेयहल्लिरुब्भडरणं तमणिदाममहुरसंवलियं । सहइ कलमंदतारुच्छलन्तहिंदोलउग्गीयं ।। १३५ ।। इय दिइएण समं समंदिरुज्जाजच्यगहणेसु । रमणीण वसन्तभरम्मि सैललियंदोलियं सहइ ॥ १३६ ॥ अवि य सुरहिपरिमलुद्दामपलोट्टियदाणओ, चूयमंजरीजालविर्णितविसाणओ । गवती थारविरहदुहासओ, वारणो व् पत्रियम्भर माहत्रमासओ ॥ १३७ ॥ कयगुरुबिरहुव्वेययं, भमंतभसलालियास मीवयम्मि । पहिएहिं संभमाउलं, पलोइया (? यो ) कुत्रियकाले संकलो व्व ॥ १३८॥ एरिसम्म य महुसमए एकम्मि दियहे बल-दामोयराण सुहणिसण्णाण गियघरसंबद्धालावमंतयन्ताणं भगियं वासुदेवेगं - "भी हलाउह ! पेच्छ पेच्छ सयलजणाइरित्तववसियमरिटुणेमिणो । जेण ३ अम्हाणं महाचोजं । कुओ ?जेण तेलोक्कणिलण- रक्खणक्खमो वि तहा त्रिण जियबलभौहप्पमुव्वहद्द, रूत्र- सुहवत्तणोह सिय कामदेवो वि तह विसललियत्रिलौसिणिपलोयणपरम्हो, सयलजगपत्थणिज्जसंपत्ताऽउव्वजोवणो विण जणियविसयाहिलासो । तओ जइ has foreseer विसयवागुरागोयरं णेउं तीरइ ता लैंहं होइ" ति । एत्थंतरम्मि य पढियं बंदिणा १ चटुसू । २ यपेलावे सू । ३ 'जयसद्द जे । ४ कयवयपाय सू । ५ किचि सू । ८ मारुयाप जे । ९ कुहरिज्जन्ति कुड सू । १० कलिकणिर जे । ११ सल्ली (ली) लंदोलयं सू । १४ "माणप्पमवि मुव्व जे । १५ लासिणीयणपर जे । १६ लट्ठयं जे । १२ ६ संवत्सरा सू | संकलं व सू । ७ तत्थ सू । १३ वसू । Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४९-५०-५१ अरिट्ठणेमि-कण्हवासुदेव-बलदेवबलदेवाण चरियं । १९१ उच्छलन्तकलचच्चरिजियरसणओ, धवलमल्लिउम्मिल्लियदीहरदसणओ। चडुलपल्लवुवेल्लिरतरलियजीहओ, महुणिहाइ ! पवियम्भइ माहवसीहओ ॥ १३९ ॥ जह जह दाहिणपवणो णराण परिमुसइ मासलंगयाइं। मयणग्गिणा समहियं तह तह संतावियाई हियया : १४०॥ एवं च बंदिणा पढियं णिसामिऊण भणियं वासुदेवेण-अहो ! सुंदरमुबत्थियं, ता मज्जणयववए सेण गिज्जन्तवसन्तचच्चरीसमणियं मणहरविलासिगोयगपरियरियं रुप्पा-सच्चासणाहमंतेउरमरिहणेमिणो विलोहणं जणिस्सइ । ति भणिऊण सदाविओ पडिहारो जहा-घोसावेमु णयरीए एवं 'कलं राया बसन्तचञ्चरीपरियाउज्जमज्जणयकीलासुहमणुहविस्सइ, ता विविह वित्थरेण सयललोएणावि णिग्गच्छियवं' ति । तओ 'जमाणवेसु(?सि) त्ति भणिऊण निग्गओ पडिहारो। संपाडियं रायसासणं । ताव य अत्थमुवगओ दिणयरो । पढियं च बंदिणा अह दूसहकिरणकलावलियजालाविभग्गमाहप्पो । णहयलवणावसाणम्मि तरणिदोहो समोल्हाइ ॥ १४१ ॥ तओ एवमवगच्छिऊण उठिया हलहर-चकाउदा । कयं संज्झाकरणीयं । विविहविणोएहि य गमिया रयणी। पढियं कालणिवेयएण करणहरपहरणिद्दलियतिमिरकरिकुम्भरुहिररत्तो व्य । उययधराहरसिहरम्मि सहइ सीहो व्य दिगणाहो ॥१४२॥ तओ विउद्धो महुमहणो, कयमुचिय(य) संज्झाइकरणिज्ज । ताव य सयलो सामन्त-तलबग्गलोओ पुरलोओ य जहाविहवविरझ्यणेवच्छो सभवणाओ चेव समइवियप्पियचच्चरीसणाहं गिग्गओ । वासुदेवो वि पासपरिट्ठियारिट्ठणेमी निग्गओ, पेच्छर य चचरि । सा य केरिसा ?---- अलिउलचलपम्हउडवियासियमुमणदलो, उभडमहुर्मासो वि वियम्भइ भूसियभुषणयलो। उम्भिण्णचूयणवपल्लवकिसलयसबेलए, 'को पिउ बेज्जेवि वचइ ? कूविउ कोइलए ॥ १४३ ॥ जइ देंइयविओए विवज्जइ ता कहे दुचरिउ, इय चिंतएंतो कलयंठिओ'तुह तुह' उच्चरिओ । इय एववियंभियमणहरबहुविहचच्चरिओ, णिसुणंतु जणदणो लीलए वियरइ सचरिओ ॥ १४४ ॥ एवं च एकओ पहयमद्दलुद्दाममुहलं, अण्णी तालियमहल्लझल्लरीझणकारं, एक्को लयाणुगउवेल्लिरसुंदरीयणं, अण्णओ मुइमुहगिज्जंतगेयमहुरं, पेच्छिऊण चचरीसंघायं पारद्धं जायवणरिंदेहि मज्जणयं । जं च केरिसं ?-उब्भडभुयंगसिकारभरिजंतकणयसिगयं सिंगयग्गविणिग्गिष्णघुसिणारुगजलच्छडं जलच्छडच्छोडियविलासिणीयणं विलासिणीयणक्यिणावियमुक्कसिकारं सिकारायण्णणुप्पणतरुणकोऊहलं कोऊहलक्वित्तसयलणरिंदलोयं ति । अवि य-- करकलियसिंगयामुक्कणीरपहराउराण तरुणीण । अव्वत्त-मम्मणालावजंपियन्वाइं रेहन्ति ॥१४५॥ दइयजलप(प्प)हरुप्पण्णसँगमुन्भूयविन्भमविलासं । कीए वि जणियंतरपाणिकिसलयालोइयं सहइ ॥१४६॥ कीए चि सलिलोल्लारुणसिचयच्छोच्छइयपीणपेरंतं । सिंद्रियवरकरिकुंभविब्भमं सहइ थणवढं ॥ १४७॥ कीए वि सिंगउग्गिण्णजलविवेल्हत्थियं मुहं सहसा । आसारप्पहरविरल्लदलउडं सहइ कमलं व ॥ १४८॥ कीय वि विसट्टदरदलियमालतीमउलदंतुरो एस । पियमज्जणकीलाविलसियाई हसइ ब धम्मिल्लो ॥ १४९॥ दरल्हसियकंचिदामं कीय वि वियडे णियम्बबिम्बम्मि । जोवणकरिणो रुंदंदुय व्व रेहइ णिमज्जंतं ॥ १५०॥ इय जलकैयकीलाल(ला)लसाण जायवरिंदयंदाण । जायं वढियवम्महविलासपसराण मज्जगयं ॥ १५१ ॥ एवं च विविहकीलाविणोयविण्णासेण णिवत्तेऊण मज्जणयं उत्तिण्णा जायवा । तओ वासुदेवेणारिठ्ठनेमिणो पयारणत्थं पेसियाओ रुप्प-सच्चा-जम्बवईसमष्णियाओ अट्ट अग्गमहिसीओ। आहासियाओ परिहासपुग्वयं भगवया । कम्भयः सू । १. उप्पा सू । ३ अस्थवणमुव ले । ४ जह सू । ५ दावो. जे । ६ एण ग सू । . उसलस्लिम सू । - 'मास सः ९ बजेवि वबह बुरचइ कोई जे.! १. दइओ विद वज जे । ११:चितए तो सू। १२ ठिए सू। १३ °सिं जे । १४ सेंन्दु सू। १५ "विषण्णस्थिय सू । १६ - कयलीला सू।। Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९२ चउप्पन्नमहापुरिसचरिय । तओ भूभंगविभम भणिउमाढत्ता जंबबई एवं जहा-"किं ते वंठसंठाणस्स अलियविणयाणुवत्तिणो जोव्वणुबहणेण ?, जओ विसयाहिसंगो जोवणस्स, परिमलं विसट्टकमलायराण, सिसिरत्तणं संपुष्णमयलंछणस्स उवलक्खिज्जइ फलं ति । अण्णहा सेलुम्समंडणं पिव णिरत्ययं, जओ कन्तारपुरिसो व्य अहिलसइ जोवणाहोयं मयरद्धओ। ण य कुलुग्गयाण अण्णो वि सहनड्ढिओ वंचिउं जुज्जइ, किं पुण जो मणुब्भवो ? । अण्णं च काममकामं सहसंसियं इमं जइ कुमार ! तं कुणसि । ता तइ अण्णस्स वि संसियस्स का होज्ज पञ्चासा ? ॥१५२।। करिणीरहिट ब करी, कन्तिय रहिउ च जह निसाणाहो। तह होइ जोवणं सुबुरिसस्स रहियं पणइणीए ॥१५३।। अण्णं च ज जणणि-जणएहिं पि संताणवित्थरणनिमित्तं एयमायरियं तं तुह ण घडई अण्णहा काउं, गुरुआणाइकमणं च ण जुत्तमेवंविहाण महाभायाणं । ता कमेण पत्तसंपुण्णपयरिसत्तणं ससि व्व सफलीकरेउ रोहिणीसमागमेणेयं दइयापाणिग्गहणेणं जोवणं । अण्णहा रण्णपायवस्स व कुसुमुग्गमो णिरत्थओ जोवणारम्भो" त्ति । एवं च सप्पणयं जंबवतीवयणवहुमाणाणुरोहागमणेण भयवया चिंतियं-एवं चेव कीरतं मज्झं पि परिचायकारणं भविस्सइ । त्ति कलिऊण परिहासपयारणापुवयं पि भणिऊण पडिवणं--एवं चेव कीरइ। अह विसयविरतेणावि भयवया एवमेव पडिवण्णं । सच्छासयाणुरोहेण सुवुरिसा किं व ण करति ? ॥१५४॥ तओ तो चिय पदेसाओ पहयवज्जिराउज्जपेज्जालकंसालतालमुहलं दिसिदिसिविक्खिण्णपइण्णपिट्ठाययसणारं परोप्पराभिघाउच्छलंतपरिमलियकप्पूरपडलं कुंकुमक्खोयविक्खेवखसियपेच्छयजणं णच्चिरविलासिणीयणरणंतरसणं विसेसणेवत्थमल्हंतसुज्जियायणं बद्धावणयं काऊण णिवेइयं महुमहस्स। तेणावि सयलतेलोकललामभूया वरिया उग्गसेणधृया सच्चभामासहोयरा अच्चतरूव-जोव्वणोहसियसुरसुंदरी रायमती णाम कण्णया। कया य विवाहणिमित्तं मणि-कणग-रयण-करि-तुरय-वासाइया सयलसामग्गी । मेलिया य णिमंतणागयणरिंदभोयणनिमित्तं बहवे जीवादओ त्ति । भयवं पुण तेणेव वारसेण संवच्छरियं महादाणं दाउमाढत्तो, अवि य--- मणि-रयण-कणग-धण-धण्णथोरधाराणिवायवरिसेण । णिव्याविल्या लोओ घणसमएणं व सयराहं ॥१५५॥ फलसंपत्तीए समत्तसाससंपायणेकरसिएण । दाणेण भुवणगुरुणो सरएण व णिवुओ लोओ ॥ १५६ ॥ जो जह अमेव पत्थइ तं तस्स तहेव दिज्जइ असेसं । तह इच्छियं विदिण्णं जह गेण्हंता ण लभंति ॥ १५७॥ जाहे य दिज्जमाणस्स कह वि गिण्हंतया ण दीसन्ति । ताहे रच्छामुह-चच्चरेसु पुंजिज्जइ धणोहो ॥१५८॥ रायपुरिसेहि य पुणो जो जं मग्गइ तहेव तं तस्स । घोसाविज्जइ तिय-चचरोरुपंथेसु पुणरुत्तं ॥ १५९ ।। इय एवं गुरुगय-रह-तुरंग-मणि-रयण-कंचणसणाहं । ता दिण्णं जयगुरुणा अइच्छिओ वच्छरो जाव ।। १६० ।। ताव य समागओ विहिस्स महसवदिवसो। आढत्ता विवाहसंजत्ती। भयवं पि किले 'परिणेमि' त्ति परियणकयाणंदसुंदरचयणं भणिऊण समारूढो सारहिणा पुरोवणीयं धुव्वंतघयवडुब्भडं कलकणिरकिंकिणीसणाहं मणपवणदच्छपरिहच्छतुरयपजुत्तं उभयपासपरिसंठिउदंडपुंडरीयं पासपैरिसंठियविलासिणीकरकलियचडुलचामरसणाहं रहवरं ति । चोइओ सारहिणा बंदिकयजयजयासह हलं संदणो पयट्टो गंतुं । कहं ? पडुपवणदच्छपरिहच्छतुरयवेयावयढिओ सहसा । गच्छइ जहिच्छियत्थामणिच्छिओ जयगुरुमणो व्व ॥१६१॥ पत्तो तमुद्देसं जत्थ णिरुद्धा सस-पसव-संवराइणो चिट्ठति । तेहिं च जाइसरमइकयाणुवत्तणेहिं भगवयागमणेणं समं चेव रसियं । तओ तं सदं समायण्णिऊण पुच्छिओ सारही-कस्सेसो घणगज्जिओरल्लिसरिसो रखो ? । सारहिणा भणियं तुम्ह किल विवाहमंगलावसाणे 'एयाण मंसेण आणंद दिवसो कीरहि' ति मंतिऊण णिरुद्धा इमे पाणिगणा । एवं सुणि १ जोव्वणमहो य मय जे । २ कतीरहिउ जे । ३ सुवुरिसाण जे। ४ °णमेयमाय सू । ५ ६ सुवुरिस ! गुरुआणा अण्णहा काउं, ण उत्तमेयविहाण(ण) महा सू। ६ गमणे भय सू । ७ तहेय जे। ८ हसमऊसव स किर जे। १. परिट्रिय सू। ११ महलस जे । १२ एवं सोऊण सू । Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४९.५०-५१ अरिठणेमि-कण्हवासुदेव-बलदेवबलदेवाण चरियं । १९३ ऊण भयवया अणियं-"अहो ! अण्णाणं, अहो ! अंधत्तणं, जह फोडा सीयेलिया विसं च जह महुरयं वियड्देहि । तह पावदिगो वि इमो आणंददिणो पसिद्धिगओ ॥१६२॥ अण्णं च जइ एरिसो वि आणंददिवसो ता पावदिवसो उण केरिसो ? । जइ पाणादिवारण विवाहधम्मो ता पावं पुण केणोवाएप ? । जं च परमंसासणेण सपिंडपोसणं तमञ्चन्तगरहियं । कहं ? णियमंसपोसणं जो इच्छइ परमंसभक्खणं काउं । सो कालकूडकवलणपरायणो जीविउं महइ ॥ १६३॥ चेटुइ निगालढेि परपाणप्पहरणेण जो मूढो । सो वालुयवर(?ल)णम्मि वि दढत्तणे कुणइ णियबुद्धिं ॥ १६४ ॥ करयलधरियं दढदसणकट्टियं मंसमहिलसन्तस्स । सुणयस्स माणुसस्स य को व विसेसो ?, भणमु मूय ! ॥१६५॥ कर-चल-यण-वयणोवलक्विया माणुसा कलिज्जति । मंसासणेण ते चेय रक्खसाणं ण भिजति ॥ १६६ ।। दूरं कारु ग-सुइत्तणाई लज्जा य होति मुकाई । धम्मो दया य गुणं मंसमसंतेण मणुएण ॥ १६७ ॥ इय मंस झुइसंभवसमुद्भवं दीसमाणमसुइं च । को छिवइ करयलेणावि ?, दूरओ भक्खणं तस्स ॥ १६८ ॥ अण्णं च पहरिजइ णवणिसियरवग्गगाधाराणिवायणिद्दलियमत्तकरिकुम्भसंभवुच्छलियबहलमुत्ताहलपयरश्चियभूमिमायम्मि रणमुहे. ण उण भयसंभमुन्भूयतरलतारयच्छिपलोइयासेसदिसिमुहे तरुवरगहणन्तरसच्छंदगच्छियन्वया-ऽऽसीयणरसियम्मि अविरलदलकोमलतणंकुरकवलणोवचियदेहम्मि रणवड्ढिए सावयगणे त्ति । तुज्झ वि बंधणमोयणेण धम्मो"। त्ति भणिऊण सारही मोयाविओ पसुगणो। - तओ पल्लवावेऊण संदणं पविट्ठो पुरवरि ति । विच्छिण्णणेहपासेण य आपुच्छिया समुहविजयाती वण्हिणो सिवादेवीपमुहो इत्थियायणो बल-दामोयराहिटिया य जेठ्ठ-कणिहाइणो सहोयरा । तओ हरिणा कयपूओ पणामियमहल्लसीयारयणमारूढो लोयन्तियसुरगणपडिवोहिओ गंतुं पयत्तो। तओ बाहजलपहोलिरलोयणं पलोइज्जन्तो जायवरिंदसुंदरीहि, सुणन्तो गुरुणेदाग्गयगिरं बंधुबग्गरस, परिचइय सयलजणमणोरहाण वि दुलई भोगसंपयं, अवहत्थिऊण कयसिणेहाणुबंध बंधुयणं, अवमण्णिऊण गरुयाणुरायणिब्भरं रायमई, खओवसमगयचारित्तमोहणीओ तहाविहपरिणामुल्लसंतजीववीरिओ णिग्गयो नयरीओ। पत्तो य पउरपायघुप्पण्णपसूयपरिमलल्लीणभमिरभमरउलं रेवयमुजाणं । तत्थ य पमुक्कसयलाहरणो वज्जियासेससावज्जो ‘णमो सिद्धाणं' ति भणिऊण पडिवण्णसामाइओ विसज्जियासेसबंधुयणो धीबलसण्णद्धविम्गहो णियबलमाहणुप्पेहडविजियपरीसहबलो दृरज्झवस्सतवोविहाणेण परिसक्किऊण महिमंडलमागओ मणहरतरुवरविसट्टन्तकुसुमं कुसुमकेसरुक्केरणिभरुच्छलियमयरंदं मयरंदुद्धन्तगंधाँलिद्धफुल्लंधयबद्धझंकारमुहलं उज्जयंतगिरिवरं । अवि य उद्दामसिलायंडणिविडयडियपडिबद्धदढणियम्बयडं । जं विविहसिहरपसरियमेक्कं पि अणेयरूवं व ॥ १६९ ॥ फलसंपाडणणिव्ववियसयलसउणयणजणियहरिसाइं । जम्मि उ मंदाणिलुविल्लणेण णञ्चन्ति व वणाई ॥१७०॥ उमुकुन्भडणिवडन्तकलरविल्लाई जम्मि सलिलाइं । णिवडणभयउब्भडपण्णसोयपसरं रुयन्ति च ॥ १७१ ॥ इय तं र मत्तणतुलियसयलभुवणं महीहरुज्जेंतं । पत्तो संपत्ताऽणंतदुक्खमोक्खं तिलोयगुरू ॥१७२ ।। अवि य---- जहिं समागमेकलालसुग्गयंगसेयसंभवंचुबिंदुदंतुरिजमाण पंडुगंडमंडली विलासिदिव्वसुंदरीयणासिया मणो हरंति णिज्झरा, जहिं च फालिओवला समुल्लसंतकंतभित्तिसंगया मेरायणीलकोमलु च्छलंतपल्लगन्तवत्तिणो विमोहयंति णायरीयणं मणोहरा लयाहरा । जहिं च जच्चकंचणुच्चया तिचारुचूलचुंबियामरं समीहिओवणिज्ज माणसोक्खयं पि मंदरं विहाय कीलियव्वकारणम्मि एंति देवसंघा(घ)या, १ सीयलया सू । २ करेइ पसू । ३ कढियं जे । ४ रच्चिज्जभू जे । ५ मुन्भय सू । तरुयर सू । . पालदफुलंधुय स । ८ 'यलणिबिडघडणपडि जे । ९ मरायनील मरकतीलेल्यर्थः । Jain Educaton International २५ Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९४ चउप्पन्नमहापुरिसचरियं । जहिं च संपयंपि सव्वयाफलन्तरुक्खराइहेद्वओ णिविद्रुमाणचंग संगयंगणासणाहकंदरोयरोत्रमीयमाणजायरम्मओ विरम्मउ || १७३ ।। त्ति । तओ तमच्चन्तकोमलुब्वेल्लमाणललियले याहा (ह) राहिराममारुहेऊणं अइदुद्धरधारणाधरणसमिद्धझाणाणलपलुट्ठासेसकम्मिंधणगणेण जमिह उग्गतवविसेससोसियसरीराणं पि तवस्सीणमईवदुल्लहं तं आसोयमासोवलक्खियम्मि अमावासादिणे चित्ताणक्खत्तम भयवयां समुप्पाडियं केवलनाणं । समुप्पण्ण केवलस्स य चलियासणागयासेससुंरिंदवंदेर्हि भत्तिबहुमाण निव्भरं कया केवलमहिमा । समागया य हरिसवसुल्लसन्तपुलयपॅडला बल-दामोयरपुरस्सरा जायवणरिंदा । कयकैरकमलमउलंजलीहिं पणमिऊण थुणिउमादत्ता, कहं चिय ?-- जय भव्वसत्तणेव्वाणकारणुव्वूढ पढ मधम्मधुर । । दुप्परियल्लसमुप्पण्ण के बलालोइयतिलोय ! ।। १७४ ।। तेलोकमंदि रूप्पण्णदढयरुद्धरणपञ्चलक्खंभ ! | भवघणवणगहण करालकवलणुद्दामदावग्गि ! ।। १७५ ।। गुरुकम्ममहापायवपरूढपारोहकढणकरिंद । महमिच्छत्तघणंधारविहडणुप्पण्णपच्चूह ! ।। १७६ ॥ इय संसारायडपडणजणियभयणिन्भरं भवियसत्थं । अब्भुद्धर भुवणालंबभूय ! हत्थावलंवेण ।। १७७ ॥ एवं च सुरिंद-गरिंदाइवंदिओ पवत्तेऊण तित्थं, जीवादिपयत्थवित्थरं पसंसेऊण धम्मं, दिवसयरो व्त्र विष्फुरियकिरणाणुकारिणा वणवत्थरेण पडिबोर्हितो भैव्वकमलायरे, संठावेन्तो मग्गम्मि विमग्गसंगयं मूढजणं, रायलच्छसमालिंगणजणियमयविसंठुलं परमत्थोवएसेण विगयमयं कुणंतो गरिंदैवंद, जणतो नियतणुदंसणेण सयलजणमणाणंद, विहरिऊण कुसहाssure कलिंगाइणो जणवए, पञ्चाविऊण भहिलपुरे सुलसामंदिरपरिवढिए कण्हसहोयरे, बहुसमणगणपरिवुड असावयाणुगम्ममाणमग्गो समागओ बारवई पुरवरिं । तत्थ य णाइदूरप्पए से चउव्विह सुरणिकाएहिं विरइयं समोसरणं । तं च केरिसं ? - जंबुद्दीवं पिव पवरपायाररयणायरपरिक्खित्तं, अमरपुरवरं व सुंदरीजण समाउलं, अच्चंतपमुद्वियं पिवासोयाहिद्वियं, सुकुसुमियणंदणत्रणं व विदिष्णकुसुमोवयारं, पज्जलन्तं व्व (व) विविहमणिकिरणजालाकलावेण । अवि य रहसोवयंततियसिंदवंदसम्मदणिद्दयुद्द लियकड य केऊरकोडि पविद्धणिविडमणिणियरकिरणपसरुच्छलन्तसंवलियरवियरं, परिमंदमारुयंदोलमाणसंव लियध बलधुयधयत्रडुब्भडाडोत्र घडियघणकणिरकिंकिणीजालबहलहलबोलवाउलिज्जतदिसिवहं । वेल्लहलपल्लgo वेल्लतरलल्लन्ततारमुत्ताहला वलीलग्गमच्छमणिगोच्छ किरणपच्छण्ण[?-- दिप्पन्त विमलकलहोयकणयमणिणियरघडियपायारतिय समु ---]गियडपडिबद्धचामरं, तुंगतोरणुव्वद्धचिंधमालावियम्भिउद्दामसोह [ ?---] संपण्णगोउरं ॥ १७८ ॥ 1 विजियधणय संबद्धमहिद्धिसमिद्धयं, धुन्न्रमाणणाणाविहमणिकिरणुद्धयं । सुकयजम्मजणसंसियलोयणलक्खयं, संहर वरणिहाणं व तयं पच्चक्खयं ॥ १७९ ॥ तत्थ य सुरकरप्फालियदुंदुहीस दमुहले उवरिपरिसंठियुदंड पुंडरीयमंडिए पासपहोलंतचेंडुलचामरकलावे परिक्खित्तकुसुमोवयारम यरंदोवरंजियदिसावलए सुर-णरविदिष्णजयजयारवे उबविट्ठो भयवं । समागओ वंदणणिमित्तं जायत्रणरिंदयंदो सयलंतेउरपरियरिओ जायवसमणिओ जणद्दणो, तिपयाहिणं पणमिणोवो णाइदूरे | ओ पत्या भगवा धम्मदेसणा सजलजलहराणुयारिणीए वाणीए जहा सम्मदंसण चरिताणि मोक्खकारणं । जहावद्वियतत्तसदहणा सम्मदंसणं । तं च णिसग्गओ, आगमाहिगमओ य । तत्तं च जीवादिणो सत्त पयत्था । ते य णाम १ लाहिरा जे । २ या उप्पाइय केवलं जाण सू । ३ पउरा सू । ४ करयलमउ सू । ५ भवियक जे ६ संठावयतो जे । वंद्र जेपुर व जे । ९ 'संपुर्ण सू । १० 'चल' सू, एवमन्यत्रापि । ११ पक्खित सू । १२ 'जयरवेजे । Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४९-५०-५१ अरिटणेमि-कण्हवासुदेव बलदेवबलदेवाण चरियं । ठवणा-दन्च-भोवणाविण्णासेण पमाण-णयवाएहि य 'अत्थि' त्ति जीवो विण्णेयं । चेयणा-सण्णा-विण्णाण-मति-धारणाइलक्खिी संसारपरिभमणकारणराग-दोसाहिटिओ हिंसा-लिय-परधण-रमणीपसंग-परिग्गहाणुगो कोह-माण-मायालोभाभिभूओ, वाय-मणो-कायजोगेहि सावज्जजोगजोइओ, मिच्छादसण-मोहाईहि इंदियाणमकयणिम्गहो अट्टप्पयारं कम्म बंधइ त्ति । कम्मवसगओ य जीवो भामिज्जइ णारय-तिरियाइसुं । अओ दुल्लहं मणुयत्तं । मणुयत्तणे वि लद्धे आरियदेस सामग्गिणा सम्मत्तं दुल्लहं । तहाविहकम्मपरिणामओ य लहिऊण सम्मत्तं सव्वप्पयारमुज्जमो कुसलं पइ विहेयव्यो । तओ कुसलकरणु जयस्स जंतुणो अवस्सं संसारपज्जतो हैवइ त्ति । एयं चाऽऽयण्णिऊण परिसाए वियलिओ कम्मरासी । पंडिवण्णं सम्मत्तं, अब्भुवगया 'केहिंचि दिक्खा, गहियं सुसावगत्तणमण्णेहि । कहावसाणे य जहागयं पडिगयाए परिसाए ते जणणभाउणो छ वि जणा अञ्चंतदुच्चरतवचरणमुसियतणुणो जहावसरमागए भिक्खाकालम्मि घडियसंघाडया भिक्खाणिमित्तमइगया पुरवरि । जुयंतरमेत्तपसराए दिट्ठीए महियलमवलोयमाणा जहक्कम विहरंताणमेकं णिययप्पहापरिवेसपरिगयं ससि-सूराणं व मुसिणिद्धसामत्तणोवलक्खियं तमालतरुवराणं व जुवलयं पविठं वसुदेवणरिंदमंदिरं । तत्थ य संजयत्तणवियलियाहोयं भोयपरिच्चयणसंजणियणिराउलं आउलपलोइज्जमाणइरियापहेसणं एसणासुद्धपरिग्गहदत्तावहाणं धम्मलाहुच्चारणमेत्तपवित्तीकयमंदिरंगणं जण्हुकण्णापुलिणोवगयं व कलहंमजुवलयं लोयणपहमुवगयं देवईए । तओ दंसणमेत्तसमुप्पण्णाणंदणिब्भरमणाणुहूयअउव्वमवत्यंतरं पाविऊण भणिया महाणसिणी-हला ! पडिलाभसु णं साहुणो जहाविहिं । तीए वि संपाडियं जमाइलैं । घेत्तूण य पक्यणुत्तेण विहिणा गिग्गया साहुणो। गच्छमाणे य दळूण हरिसवसविसट्टपुलयपडलं भणिया इमीए रोहिणी एवं जहा-"सहि ! पेच्छ पेच्छ दुद्धरवयविसेससोसविततणूणं पि स्वपयरिसो लाइण्णाइसओ परइपसण्णत्तणं सिरिवच्छालंकियसरीरया जहा, य एए तहा मह पुत्तया वि अणिमित्तवेरिएण जइ ण घाइजंतया आसि हयासकंसेण ता एदह मेत्तोवलक्खिज्जमाणवओविहाया होता, धण्णा य सा जीए इमे पुत्तय" त्ति भणंतीए एत्थावसरम्मि य बीयं साहुजुयलयं आगमुत्तेण विहिणा तारिसरूवविसेसाइसय[मुबहत] पुवट्ठियं तम्मि चेव पदेसे । दट्टण य तं चिन्तियमिमीए-पाएण ण संपण्णं ति । पुणो भणियं-हला ! सम्बायरेण देसु त्ति । पुणो वि संपाडियं जमाणत्तं। गए य तम्मि वि तओ तइयं पि जुवलयं तमुद्देसमलंकरेमाणमागयं । पुणो पैलोइऊण सयमेव दाउमुवट्ठिया। दाऊण य एसणासुदं जहाविहिमण्णप्पयाणं पणमिऊणं अन्तोप[रिणामियावच्चपरियप्पणाए सणेहपवियंभियव्यतब्भावणासम्मोहेण अप्पाणयं पि तकालमकलयन्तीए अचंतकोऊहलाउलिज्जन्तहिययसिटुं पि संदेहावणयणस्थं पहरिसुप्फुल्ललोयणा गयाणदबाहजलगम्भिणं भणियमिमीए-भयवं! ण मंदपुष्णाण गेहंगणे तुम्ह चलणकमलचणं संपज्जइ, तहा वि मम कोऊहलमेस्थावरज्झइ, जेणेत्थ पुरवरीए साहुजणगुणाणुराई जणो अतिहिसंविभागसीलो य, ता किं मम एस हिययस्स सम्मोहो ? किं वा ममं चेव कुसलकम्माणमब्भागमो ?, जेण 'तुब्भे आगमायारमुल्लंघेऊण पुणो पुणो समागय त्ति, ददं मे कोऊहलं ति । तओ तमायण्णिऊण मुणिय पढमागयं सहोयरसंघाडय वलयं भणियमेकेण जहा-“धम्मसीले ! ण य एरिसो सुसाहूण समायारो जेण तेंदिवसं भिक्खं गहेऊण पुणो वि तं चेव गेहमागैच्छिन्जइ, किंतु अम्हे एकोयरसमुभवा छ जणा घाइज्जमाणा सत्तुणा कंसेण समाराहिएण हरिणेगवेसिणा भद्दिलपुरवरम्मि सुलसाहिहाणाए विवण्णावच्चपसविणीए समप्पिया। संवड्ढिया य भयवओ सयासाओ सुणिऊण वुत्तंतं पडिबोहिया संता, एक्कम्मि चेव जम्मम्मि जम्मंतरासायणेण संजणियसंवेयाइसया 'अहो ! कम्माण विलसियं, अहो ! असारया संसारस्स, अहो ! दुरंतया "विसय भावओ वि सू । २ जासण जे । ३ होति ति जे । ४ एवं सू । ५ पडिबद्ध द) सजे । ६ केहि पि जे । ७ सुसियगिद्ध सू । ८ तस्यराणं सू । ९ लाहमेत्तमुच्चा सू । १० जुयलय जे । ११ पुलोइऊण सय चेव जे । १२ भणिउमाढत्ता-म जे । १३ तुम्हे जे । १४ जुयलं जे । १५ तद्दियहं जे। १६ "गच्छिउं युज्जइ सू । १७ मुणिऊण सू । १८ विसयाणं' सू। Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९६ चउप्पन्नमहापुरिसचरिय । पसराण' ति चिंतिऊण पन्चज्जमब्भुववष्ण" ति । तओ णिययहिययावेयवज्जरियावच्चसंसया तब्बयणायण्णणपरिप्फुडपायडियपरमत्था सुणिऊण तं वयण मुच्छासमुच्छाइयच्छिवत्ता धस त्ति धरणीयले पडिया। तओ अमयजलबिंदुणीसंदसीयलेण मुणिवयणेणं पिव परियणोवणीयचंदणजलेण समासस्था। तो गलतंसुसलिलपब्वालियकवोलयला इणिम्भरपण्डुइयपओहरोद्वन्तदुद्धधारोल्लियधरणियला अइकरुणवयणेहि भणिउं पयत्ता, कहं ? सुयजुयलतियल्लियमेरिसं पि लहिऊण हो! अहण्णा है । इट्टमणिद्वेण विओइय म्हि हयदेव ! कि तुमए ॥१८॥ सुइणे व्य रयणलंभो अभुत्तभोओ जहा विसंघडइ । अप्पत्ततप्फलासायणेण तह मज्झ तणयमुहं ॥ १८१ ॥ बहुपसविणी वि होऊण गम्भदुक्खाण भायणा णवरं । जाय म्मि ण उण मम्मणमणोहरिल्लाण तणयाण ॥१८२॥ विंटों व पोट्टसंबद्धमेत्तसंपत्तफलरसा अहयं । परिणामे पुण ऊसरलय व्व गलियप्फला जाया ॥१८३।। बालत्तणम्मि कीलाविसेसमलिणाण सा जए धण्णा । अंगाण करयलामलणसोक्खमुवलक्खियं जीए ॥ १८४॥ तक्खणमेत्ताकारणरोसथुडुक्कियकउभडविवासा । सहई अणुण्णवन्तीए जीए सुयचुम्बियं वयणं ॥ १८५ ॥ इय मणिन्भरं कयपलावरुइरीए कण्हजाणीए । मोत्तूण साहुणो बाहकलुसियं कस्स णो वयणं ? ॥ १८६ ॥ एवं च परिदेवमाणा मूढ व्च थंभियब मोहिय व आलिहिय व्य मुण्णपलोइओहय व सा भणिउं पयत्ता-जाय ! रुइरवष्णाहिरामेण मज्झ वलाएल्लेण विय तुम्ह मम्मणालावेण ण उप्पाइया सवणविवराण सुहासा, रुइरपसायणाजणियं च णोवलद्धं तुम्हाणमंगपरिसंगसुहं, सयलकजकरणक्खमवओविसेससंपण्णाणं पि ण समासाइयं पुत्तजम्मफलं, केवलं णिम्मलजलमज्झपरिसंठियमहामणि व्व पलोयणामेत्तजणियफला जाया । ताव य जणरवाओ समायष्णिऊण आगया ते पढमगया चउरो वि भायरो । तओ ते एकेक्कपुंजयपरिकप्पिया कित्तियामुत्ति व्च, साहीणमणोहिटिया पंचेंदियस्थ व्च, गोरीसुयतणुविहाय ब्न छम्मुहोवलक्खिया, सव्वे वि समं चेव पयइकारुण्णयापहाणवयणेहि समासासिउमाढत्ता, कहं चिय? को कस्स पिया पुत्तो व्व कस्स जणणि ब कम्मवाहेण । भमिरे संसाररहट्टथट्टए ? जेण तं सुणसु ॥ १८७ ॥ पुत्तो होऊण पिया, पिया वि होऊण पुत्तओ होइ । माया वि होइ धूया, धृया वि हु होइ जणणि त्ति ॥१८८॥ सामी वि होइ दासो. दासो होऊण सामिओ होइ । संसारे णियकम्मावएसपसरस्स जंतस्स ॥१८९ ।। जेणऽण्णभवन्तरमुवगयस्स वग्घी सुयस्स णिययस्स । मंसमसइ त्ति तुट्टा अओ परं किं थ कट्टयरं? ॥ १९०॥ पुत्तत्तणम्मि जो गेहणिन्भरं लालिओऽण्ण-पाणेहिं । आलिगिओ य मलकलुसिओ वि परिचुंबिउं वयणं ॥ १९१ ॥ सो चिय अण्णभवन्तरसत्तुत्तणजायगरुयरोसेण ! विणिवाइओ समं सुणिसियासिधारापहारेहि ॥ १९२ ॥ जेणणित्तणम्मि जो हिययपहरिसुवेल्लणेहरसियाए । पालिजइ वयणणिहित्तथणच्छीरेण पुणरुत्तं ।। १९३ ॥ सो चेव विभमुन्भूयहावभावेहिं मयणणडियाए । रामिज्जइ पियदइयत्तणम्मि कयकम्मवसयाए ॥ १९४ ॥ जा दुहिय त्ति कलेऊण चुम्बिया सरसवयणकमलम्मि । स चेव पुणो जम्मंतरम्मि दइय त्ति हेण ॥१९५॥ देयाइसे 'जीय, निएसु, सामि ! सम्माणसु' त्ति भणिऊण । अणुचरिओ जो सामित्तणम्मैि विणओणयंगेण ॥१९६॥ सो चेव भिच्चभावं समागओ कम्मपरिणइवसेण । अन्तो पसरियगुरुमच्छरेण निभच्छिओ पेच्छ ॥ १९७॥ इय कम्मपरिणईवसमचन्तवियम्भियव्वयवसेण । णडपेडयं व संसारविलसियं, किं थ बहवेण ? ॥ १९८॥ अवि यअण्णण्णवट्टणावसविहायणिण्णुष्णएहिं णिम्मविया । मुक्खेहिं दुक्खलक्खा विचित्तभित्ति व कम्मगती ॥ १९९ ॥ 'णियकम्मतरणिपरियावजणियपरियत्तणाविचित्ततः । अण्णोण्णवण्ण-रूवेहिं भमइ ककिंडओ ब जिओ ॥ २०॥ १ हा ! महमधण्णा । ई सू । २ बहुपुत्तपसविणी होइऊण गब्भ ?)दुक्खाण सू । ३ बेटे सू । । 'रसा साह । प । ५ धुडं. किय जे । । सुण्णहिययाए पलोइया साहुणो। भणित सू । ७ 'मणोवट्टिया पं सू। ८ माया धूया, धूया वि होइ अणणी सकम्मेहि जे। . चुचियं सू । १० ° भो य समय मु(?)णिसियासियखगधाराहि ॥ सू । ११ जणणिणिमित्तम्मि सू। १२ "सु जिय सामि[य]] णिएम सम्मा सू। १३ म्मि अइविणयमगे(ते)ण ॥ सू। १४ गईए मच्चन्त सू । १५ यच्चय जे। Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४९-५०-५१ अरिठ्ठणेमि-कण्हवासुदेव-बलदेवबलदेवाण चरियं । १९७ हंतुं जीवाण घणं दढसोंडुइंडभीसणाभोओ । वियरइ घोरकयन्तो विसंकलो मत्तहत्थि व ॥ २०१॥ इय सोयाओ कयकम्मपरिणई भाविऊण विणियत्ता । बहुसो चिय जणणि-सुयत्तणाई सुलहाई संसारे ॥२०२॥ अण्णं च जंतुसंताणोवरि ओवयति मच्चुमइंदो, कवलिउमहिलसइ जरारक्खसी, पसरन्ति वाहिबिहीसियाओ, अन्तोवित्तासणपञ्चला पहवंति पॅरीसहपिसाया। एत्यावसम्म य वसुदेवसमणिया मुणियवुत्तता अन्तोवियम्भन्ताउवहरिससरा समामया तमुद्देसं बलदेववासुदेवा । दिवा य पसरियाणंदबाहभरनिम्मरेहिं सहोयरा । समागयम्मि य वासुदेवे सत्तम्गहाहिडिओ व्च णहंगणाहोओ, सत्तरिसिपरिवारिओ व देवमग्गो, सत्तसरसमण्णिउ व्य गंधव्ववेओ, सत्तदीवोवगओ व्च जंबुद्दीवो तेहिं तव्वेलं पवरपुत्तएहिं वहुपाययपरिगओ महादुमो व वसुदेवो रेहिउँ पयत्तो। भणियं च वासुदेवेण जहा-"एस अम्हाणं तिलोयविम्हयजणणो समागमो, कस्स एसो साहिप्पन्तो वि चित्तसंवित्तिं [ग] जणेइ ?, केरिसा वा मह रिद्धिसमुदये भिक्खाभोइणो तुम्हे ?, किं वा ममेइणा रज्जेण ?, उत्तं च पिय पुत्त भाइ भइणी भज्जा सयणो ब जो समासण्णो । भिच्चो बऽणण्णमग्गो ण णंदए णंदमाणेणं ॥ २०३॥ वेसंभकुलहरं णिबियारसब्भावणिब्भराययणं । विहुरसहायं मित्तं च जत्थ णो चिट्ठति सुहेण ॥ २०४॥ पररिद्धिदंगणुप्पण्णसोयसामलियणिययवयणेण । पिसुणा य वियम्भियदुक्खजलणजालं ण डझंति ॥ २०५॥ इय सयलभंडलाखंडपुहइलंभेण को गुणो मजा ? । एक्कोयरेहिं वि जहिं समं ण भुत्तं मए रज्जं ॥ २०६ ॥ अण्णं च-अजं चिय तुम्हाणं मज्झ य अहिणवसमागमणिओ पढमजम्मदिवसो, अजं चिय मा पहवउ कंसारिविन्भमो ब्व परोप्परविओओ" । एवं चाऽऽयणिऊण वसुदेव-हलाउहेहिं पि णेहपरवसयाए एवमेवाणुमणियं । तओ साहुणो भणिउं पयत्ता, कई ? "कह कह वि विसयवम्गुग्गवागुरासंगणिग्गया अम्हे । कहमिच्छामो पडिउं तत्थेव पुणो कुरंग व्व ? ॥२०७॥ विरहमरणेण मरिऊण संगमाओ पुणब्भवविसेसो । एकम्मि चेय जम्मम्मि अम्ह जम्मंतरं जायं ॥ २०८ ॥ विरहो चिय वेरग्गस्स कारणं साहिमो पर सेयं । तं सयमणुहविऊणं कह णिवेओऽम्ह मा होउ ? ॥२०९ ॥ णेहुच्छित्ती सवायरेण जा जुज्जए जइजणस्स । कह तस्स चेय कीरैइ संधाणं जाणमाणेहिं ॥२१० ॥ ता अलमेत्याणुबंधेण । एत्थ य संसारन्तरवत्तिणो जीवस्स कम्मवसगस्स सुलहा विओया, दुलहा समागमा, चंचला इंदियतुरंगमा, दुप्परियल्ला विसयभुयंगमा, णलिणिदलउडोवडियजललवचला लच्छी, जलणिहिवडियं व रयणं पुणो दुल्लहं मणुयत्तं" । एवं च माया-वित्तं पि साणुणयं संबोहेऊण णिच्छिण्णसंसारवासपासा भयवओ समीवं चेव गया विविहतवविसेसेहिं च समुज्जमंति । तओ तेसु गएसु समोसरणत्थस्स भयवओ जायवपरियरिओ वंदणणिमित्तमुवगओ वसुदेवो। वंदिऊण य जहाविहि णिसष्णो जहोचिए भूमिभाए। तओ कहंतरं जाणिऊण धरणियलमिलन्तभालयलाए पणमिऊण पुच्छिओ भयवं देवईए जहा-भयवं! कस्स उण कम्मुगो फलं जं मम पुत्तएहिं सेह विओओ ? । तओ भयवया जलहरोरल्लिगहिरयराए भारईए भणियं जहा-"देवाणुप्पिए ! इओ जम्मंतरम्मि तुज्झ सवत्तीए महामणिसंजुया मणिकडयविसेसा थवणत्यं समप्पिया। कालंतरेण य मग्गिया तीए । तुमए ईसावसेण अवणेऊण 'छ म्मणिणो पण?' त्ति भणिऊण न सम्मप्पिया सवत्तीए। तीए वि णिव्वियप्पं गहिया। ता एयमेत्य फलं" ति। ___ तओ एयमायण्णिऊण सोयवसगलन्तबाहम्बुर्विदुपवालियवयणाए भणियमिमीए-भयवं! एद्दहमेत्तस्स वि दुक्यस्स १ विसंसलो जे । २ परिणई जे । ३ विणियत्तं जे । १ परीसहा । एत्या सू । ५ पहरिसा समाया त जे । ६ पिउ पुत्त भात जे । ७ कीरत सू। ८ मावितं जे । ५ समं जे । १. भणियमेयं जहा जे । ११ या तए तीए । तीए वि सू । Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९८ चउम्पन्नमहापुरिसचरियं । एबहमेत्तो विवाओ?। त्ति भणिऊग दीहुण्हणीसासाणिलविलुलियालयाणणा किंचि अहोमुही ठिया। पुणो भगवया भणियं"देवाणुप्पिए । अलमुव्वेएण, एरिसो चेत्र एस संसारसहावो, सुणसु, गुरुयरकम्मपयपब्भारवियम्भिउमडकल्लोलम्मि जाइ-जरा-मरणाणंतपयत्तावत्तपउरम्मि विविवाहिवेयणुव्वेल्लविलोलवीयीविच्छड्डम्मि दुव्वारविरहविसट्टमच्छपुंछच्छडम्मि दूसहसोयसमुद्धंतकरिमयरणियरम्म णिवडंताऽणंतहीरंतजंतुसंताणम्मि संसारसायरम्मि णिवडियस्स जंतुणो दुल्लहं मणुयत्तणं । कहं चिय? पुन्या-ऽवरमायसमुदखित्तपरिभमणमिलियघडिएणं । जुय-समिलादिलुतेण दुल्लहं होइ मणुयत्तं ॥ २११॥ तत्थ वि बहुदीवंतरविसेसपउरम्मि मणुयखेतम्मि । कह कह वि कम्मभूमीए कम्मवसयस्स उप्पत्ती ।। २१२ ।। तत्थ वि किराय-तज्जिय-जवण-मुरुंडोडु-कीरबहुलम्मि । दुलहो आरियदेसम्मि संभवो होइ जंतूणं ।। २१३॥ तत्थ वि य कोलि-उच्चंड-डोम्व-चंडाल-मिल्ल बाहुल्ले । होइ मुकुलम्मि जम्मो मुकम्मबहुलस्स जीवस्स ॥२१४॥ वत्थ वि बहिरंधु-भडउवद्दवुदामदुमियदेहस्स । दुक्खेहिं णिययपंचंदियत्तणं पावते पुरिसो ॥ २१५॥ तत्थ वि ख्वादिसमत्तविसयवासंगमोहियमणम्स । सुकयकरणम्मि सद्धा कह कह वि णरस्स जइ होइ ॥२१६॥ अह कह वि होइ सद्धा धम्मायरिओ सुदुल्लहो होइ । संते धम्मायरिए वि धम्मसवणं पति अवज्जा ।। २१७ ॥ धम्मसरणायरम्मि वि संपण्णे होइ दुल्लहा वोही । संपत्ताए वि बोहीए दुल्लहा होइ विरइ ति ॥२१८ ॥ विरतीए वि संपत्ताए दुल्लहा भवविरायसामग्गी । सदिदियाइदुल्ललियलोलचित्तस्स जंतुस्स ।। २१९ ।। इय एवं कयपारंपरकमा कह वि होइ सामग्गी। देवाणुपिए ! कयकुसलकम्मवसगस्स जीवस्स ॥ २२० । ता भो भो ! भणामि सव्वे वोच्छिज्जंतु णेहपासा, पयहिज्जउ मोहो, सिढिलिज्जउ पमाओ, अवलंबिज्जउ धम्मुज्जमो, साहिज्जतु इंदियभडा, मुसुमृरिजंतु विसयवेरिणो, संजमिज्जउ मणतुरंगमो, कीरउ सबाहिरभंतरो तवविसेसो, तवुत्तावियविणासियाससकम्मया य पाणिणो पावन्ति सयलोवहवरहियं परमपयं ति। तओ तमायणिऊण देवतीए वियलिओ सोय पसरो । अण्णे य संबुज्झिऊण पञ्चज्जमुवगया । अबरे सावगत्तणं पडिवण्ण ति । तयणंतरं च बहुपडिपुण्णपोरिसीए उहिओ भयवं । गया य मुरा-ऽसुर-णर-तिरियगणा जहागयं ठाणं ति । घासुदेवो वि वसुदेव-देवती-समग्गजायवसमन्निो पविट्ठो णिययणयरि ति । ___ भयवं पि पुणो वि केणइ कालं तेरण विहरिऊण मेइणि समागओ बारवति । विरइयं देवेहि समोसरणं । उवविट्ठो भगवं । पत्थुया धम्मकहा । समागया यंदाणिमित्तं जायवा । णिविट्ठा गाइदूरे । लद्धावसरेण य पुच्छियं बलदेवेणं जहाभगवं! केचिराउ कालाओ इमीए गरीर अवसाणं भविम्सइ ?, कुओ वा सयासाओ वासुदेवस्स य? । भगवया भणियं-सोम ! सुणसु, दुवालससंवच्छरावसाणे काले समइकंते मजपमायपरत्वसकुमारारोसियस्स दीवायणमुणियो सयासाओ बारवतीए दाहजणिओ विणासो त्ति । वासुदेवस्स णियभाउणो जराकुमारसयासाउ ति। एवं च णिसामेऊण वेग्गमग्गमुवगया जायवणराहिवे वहवे दिक्खमब्भुववण्णा, अण्णे सम्मत्तं ति । जराकुमारो वि भयवओ वयणं णिसामेऊण 'मज्जणिओ विणासो' ति वेरगमगमवगओ णिदिऊण णिययपरिसयार, अवमण्णेऊण णिययजम्मं, छेड्डऊण सयणवगं, 'चित्यु मम जीविएणं' ति कलिऊण पविट्ठो कायम्बयवणं। जायवेहिं च मज्जपडियारणिमित्तं पुरवरीओ रुइरा वि सयला मजविसेसा उझिया णेऊण गिरिकुहरकंदरेसु । दीवायणो वि तं चेव भयक्या भणियं णिसामिऊण संजायगरुयसंवेओ पव्ययणिउंजमेवोवगओ । सेसओ य जणवओ तवमुक्कमिउमारद्धो। ___ अण्णया य बहुकालंतराओ कुमारा बहुविहकीलाविणोएण कीलमाणा दढं पिवासाहिहूया समागया तमुद्देसं जत्थ ते कायम्बरीविसेस त्ति । तओ तण्होवत्तियत्तणओ पहयकालाहिलासाओ य 'अहो ! संजाय'ति भणमाणेहिं पाउमारद्धा । तो ते कुमारा मइरावसघोलिरायम्बलोललोयणा उद्दामपवियंभमाणमयपरव्वसतणुणो विसंखलुच्छलंतगीयपडिरवा पयट्टतविसट्टणट्टोवयारा परोप्परुग्वेल्लमाण वलयालिंगणपरा णिब्भरमयमंथरं तम्मि वणंतराले कयकीलाविलासं परिम 1ए। एरिसो स । २ जुर्व स । ३ "वाइसमागवि जे । ४ सोम्म! सुण दुजे । ५ जरकुसू । ६ अवरे जे । ७ मज्जस जे । ८ बहुयका सू । ९ मादत्ता जे ! १० भुवलयास Inal use Only Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४९-५०-५१ अरिठ्ठणेमि-कण्हवासुदेव-बलदेवबलदेवाण चरियं । १९९ मिउमादत्ता । परिम्भमतेहि य णेहिं दिवो दीवायणो। दट्टणं च मयवसपराहीणयाए रायपुत्तत्तणसुलहतिव्वयाओं य रे! एसेस सो किल अम्हाण पुरवेरी दहिस्सई' ति भणन्तेहिं रोसवसवियंभंतभिउडिभंगुरियभालमग्गेहिं दहोटभीसणगयण-वयणेहिं णिहउद्दामदिण्णणिटुरमुहि-पायप्पहारेहिं ददं कयत्थिऊण मुक्को । गया य णियणिहेलणाई। ताव य कस्सइ वयणाओ वियाणिऊणमेयं उत्तंतं बल-दामोयरा तप्पसायणत्थं तमुद्देसमागया । दिवो य 'णेहि मुहुयहुयवहजालाकलावो व रोसारुणियणयण-वयणो मुणी । पणमिऊण य सविणयं पसाइउमाहत्ता-भयवं ! मयपरब्वसत्तणओ बालसहावत्तणओ य कुमारेहिं जमवरद्धं तमम्हाण खमेयव्वं । तो जाहे बहुप्पयारं महुरवयणेहिं पि भण्णमाणो णो विरमइ कोवकरणाओ ताहे बलेण भणियं-कण्ह ! अलमलमेत्तिएण दीणादिरित्तभणिएण, ण भयवओ भणियमण्णहा होइ त्ति, करेउ जमणेण "चिंतियं । तो दीवायमेण भणियं-कण्ह ! मया पहम्ममाणेण पइण्णा पडिवण्णा जहा तुमे मोत्तूण परं दुवे वि ण अण्णस्स सुणयमेत्तस्स वि जंतुणो मोक्खो, मम विणिग्गयकोवग्गिणा बारवती खयं गेमिस्सइ, णेयमलियं भयवओ वयणं, णेय पदण्णा मम अण्णहत्ति, ता गच्छह तुम्भे ति। तओ ते विसायवससामलियवयणकमला मया णिययभवणाभिमुहं । तं च अँणिऊण वइयरं लोया केइ पव्वज्जमुवगया, केइ छट्ट-ऽटमाइयं तवं काउमाढत्ता। इओ य सो दीवायणो चरिऊण कढे चालतवोविहाणं, कयत्यणाजणियाहिणिवेसो काऊणमणसणं कालगओ समुप्पण्यो अग्गिकुमाराणं भवणवासीणं भज्झे । अवहिप्पओएण य मुणिऊण वुत्तंतं समागओ बारवतिं । जाव तवोविहाणकरणुज्जयस्स जणस्स मणयं पि छिदं ण लैंहइ ति । एवमण्णेसमाणस्स गया एक्कारस संवच्छरा। तओ दुवालसमे संवच्छरे 'अम्हाण तवोविसेसेण पडिहयसत्ती को दीवायणो' [त्ति] निभओ होऊण जाणखाण-पाणाइणा उवललिउमाढत्तो जायवजणो रइकीलापरायणो य । तओ छिद्दमासाइयं दीवायणसुरेण । ताव य पुरविणाससंसिणो उप्पाया दीसिउं, पयत्ता, कहं चिय ?-विसट्टहासा जायंति लेप्पमयरूवया, णिमिल्लुम्मिल्लणयणा चित्तभित्तीओ, अंतोपज्जलियजलणाई जलाई, विसंति अंतो पुरवरी ए य रण्णसत्ताई, रत्तकुसुमंबरविलेवणो सुविणयम्मि दीसइ जणवओ, पायार-गोउराइस रसइ विरसं सिवा, पणहाणि य चक्काइरयणाणि बल-दामोयराणं, पलयउप्पायपिसुणो पयत्तो संवत्तयपहजणो, सु(स)र-पासा-ऽसिवावडकरयलो दीसिउं पयत्तो कालाणलरूबी, भयविक्लाइयं जणमंतो पक्खिवंतो अणिलबलुम्मूलियमुजाणपायवगणमोच्छुहंतो सुरो । ताव य असु वि दिसामुहेसुं पयत्तो कालो व कवलिउं महाणलो। अवि य अह दीवायणकयकोवजलणजालाकलापवयणेण । आढत्ता कँवलेऊण पलयकालाणलेणं व ॥ २२१॥ णिवडंति णिबिडविहडंततुंगसिहरग्गरुंदपासाया। विविहमणिकिरणरुइरा विमाणसंघ व्च वोमाहिं ।। २२२ ।। डज्झइ पज्जलियाणलकरालजालाझुलुकियावयवं । मिहुणं मरणे वि हु णेहसीलआलिंगणविओलं ॥२२३ ।। डझंति पमत्तुम्मत्तसत्तहत्थाउ सयलरमणीओ । पियदइयदेह]म्मिजमाणधूमद्धयप्पसरं ॥ २२४ ।। इय डहइ णिद्दयं सयलजंतुसंताणसंकुलं विउलं । संभरियपुवकयतिब्बवेररुसिओ सुरो सहसा ॥ २२५ ॥ एवं च वेल्लइ व्य पहल्लिरुव्वेल्लपायवेसुं, पहावइ व्व दीहरवलहिपासायपंतीसुं, विलसइ व कीलाहरेसुं, विलम्बइ न्च तुंगतोरणेसुं, उग्गायइ च पैवणगुंजियरवेणं, हसइ व्य विप्फुरियफुलिंगुग्गारेहि, कस्थइ मणोसिलापुंजो ब, अण्णओ गेरुयचुण्णणिवहो व्य, एको कुसुमियकिंसुयुक्केरो ब्च पयत्तो सवओ डहिउं हव्यवाहो । तओ दट्टण जलणजालाकलावकवलिज्जमाणिं बारवइपुरवरिं समागया बल-दामोयरा विमुक्ककंदपरियणपरियालियं पिउभवणं । तो देवइ-रोहिणिसमणिपं वसुदेवं समारोवेऊण पजुत्ततुरंगमे संदणवरम्मि आढत्ता णीणिउं । १ परि जे । २ भणमाणेहि जे । ३ णवयण-गयणेहि सू । ४ "मुट्टिप्पहरे हि सू । ५ कस्सय सू । ६ तेहिं सू । ७ चितिउं जे। ८ दुवे अण्णस्स मुणयमेत्तस्स वि णस्थि मोक्खो सू । ९ मच्छिस्सइ जे । १. मुणिऊण जे । ११ णाहिजणिया जे । १२°कुमारेसु भवणयासिसुराणं भज्झे जे । १३ लहि ति जे । १४ "विणासणे उ सू। १५ ए आव(र)ष्णसत्ताई सू । १६ सूर सू। १७ कवलेलं पं. सू। १८ 'किरिण सू । १९ भुलंकिय (या)वयव जे । २. 'मिज जे । २१ पवरगुं॰ सू। २२ यालिउ जे । Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०० चउम्पन्नमहापुरिसचरियं। जया य चोइजमाणा वि तुरया भवियव्ययाणिओएणं मणयं पि ण तरंति समायड्ढिउं, ण चलंति रहचकाणि, ताहे सयमेव कह कह चि समायड्ढिऊण, अञ्चत्थं सुगंता सचओ 'हा महाराय कण्ह ! हा बलदेव ! हा पुत्त ! हा वच्छ! हा भाउय !त्ति लोयविमुक्कऽकंदणरवं सयलमंदिरोयरे मुं, संपत्ता गरुयवेगेण गोउरमहं । तत्थ य "इंदकीलया खलिउ' त्ति जाव रामो इंदकीलमवणेइ ताव मारुयपणोल्लियकवाडसंपुडेण पिहियं गोउरहारं । ताव य दीवायणामरेण भणिय जहा-भो कण्ह ! 'तुम्हे मोत्तूण परं दुवे वि ण य अण्णस्स सुणयमेत्तस्स वि मोक्खो' [त्ति] पुध्वमेव भणियं । तब्बयणाणतरं च पायप्पहरेण पाडियं कवाडसंपुढं केसवेण । तहा वि ण णीहरइ संदणो । इहावसरम्मि य भणिया ते वसुदेवेण जहा-जाय ! बलवं कयन्तो, दुल्लंघा कम्मगती, ता गच्छह तुम्हे, कयाइ तुमए बलएवेण वा जीवंतेण पुणो वि हरिवंसस्स समुण्णई पइटाणं वा होही । तओ पिउणो वयणं णिसामिऊण दीवायणस्स वि णिग्गया बाहजलपव्वालियाणणा दुवे विजणा । एकम्मि य जिण्णुजाणम्मि णिसम्मिऊण विसायवमुच्छण्णमच्छरुच्छाहप्पसरा पेच्छिउं पयत्ता संपलम्गमविरलजालाकडप्पपडिभम्गपसरं पुरजणकयक्कंदभीसणुब्भडचियं व दारयाउरिं। तो बहवे जायवप्पहाणा तप्पणइणीपरिगयकण्णंतेउरियायणो भवियपुरजणवओ य णमो जिणाणं' ति भणिऊण गहियपच्चक्खाणो 'ईइसी कम्मपरिणई' क्ति कलिऊण कालगओ। इओ य राम-केसवा सोयसंगलन्तविसाया किंकायब्वमूढा गंतुं पयत्ता। भणियं च कण्हेण-पिइ-माइ-सयणमुहि-बहुपुत्त-कलत्तविउत्तेहिं कत्थ गच्छियचं ? । ति भणिए भणियं बलेण-सञ्चं अम्हाण पउररिखुचक्कसंकुलं महिमंडलं, एगवत्थगयाणं अहिलसइ हीणबलो वि पहरिउं रिउगणो, गवरमत्थि उवाओ, णिव्वासिएहिं तुमए दक्षिणोयहितडम्मि दक्खिणमहुराहिहाणं पुरवरि णिवेसेऊण संठिएहि जुहिहिलादिपंडवेहि संवढिया रायहाणी, वसाविओ तयासण्णदेसो, तत्थ गच्छम्ह त्ति, ते य अम्हाण परमवंधवा, ण य आवदीसुं बंधुयणं वजिऊण अण्णो समासाइउं जुज्जइ त्ति । मंतिऊण पाएहिं चिय पुव्वदक्खिणदिसाभायमुरीकाऊण घणपउरपायवं पविट्ठा कोसम्बवणं । केरिसं च ? गवरदवाणलणिद्दडढसुकतरुणियरपविरलच्छायं । खरपत्रणपेल्लणोयल्लिपडियतरुमलबीहच्छं ॥२२६॥ अणिमित्तरुसियवणमहिसमुक्कसुंकारभीसणारावं । दरियमइंदोरंजियणिणायगुंजन्तगिरिकुहरं ।। २२७ ।। गुरुवग्घघरुकायणहिउक्कण्णवृष्णमयजहं । उद्धयधमद्धयधमवडलपडिबद्धसव्वदिसं॥२२८ ॥ इय गलियपत्तसंपत्तिवच्छविच्छायणिप्फलाहोयं । णियकम्मपरिणई पिव पत्ता कायम्बयारणं ।। २२९॥ अवि य-ताण समाणदुक्वत्तणी हेयइ ब्रवीरियारावे हिं, आहासइ ब्व सैंउणविरुएहिं, अम्भुवइ ब्व पवणुच्छलियवाउलीहिं, वेवइ बैं' लयामारुउव्वेल्लतरुसिहरेहिं, गरहइ ब्व पउरसावयपलावेहिं । अण्णं च कुरिंदोलग्गियं व फलरहियं, मुंययवयणं पिव णहवाणियं, विरहिहिययं व विष्णसंतावं, भीरुहिययं व भयवड्ढिउकंपं ति । तओ गुंबज्ज(? ण्ण) माणा महियले, उवविसंता कठिणोवलचट्टेमुं, लद्धावलद्धभोइणो, गोवयंता णिययतणु, सुमरन्ता विवण्णं समग्ग बंधुयणं, मंदमंदपरिसकिणो पहखेयखीणगमणसत्तिणो पयत्ता गंतुं । तो भणियं गोविंदेणं-हलाउह ! दढतण्हाहिहूओ म्हि, ण य सक्कुणोमि सम्म णीसहसरीरयाए पयं पि गंतुं । तओ बलेण भणियं-"वप्प ! एयम्मि चेय पएसे एयस्स बहलदलंतरयड्ढियच्छायपसरस्स छायासु चिद्वियव्वं जावाहमुदयमइरेणेव घेत्तूण समागच्छामि, ण य तुमए मणयं पि चित्तखेओ काययो, ण सुमरियन्वं बंधवाणं, ण कायन्यो विसाओ, अवलम्बियव्वं "धीरत्तणं, अवमणियबा आवया, कायव्वं कुलिसकढिणं व हियययं, जेण अणिच्चाओ सम्वाओ संपयाओ, देव्ववसयस्स य पाणिणो पउज्जमाणो वि विहलीहोइ पुरिसयारो । किं ण सुयं तया भगवया भणियं ? पञ्चत्तं सुसू । २ इदग्गलाख जे । ३ बलेण जे। ४ कण्हते जे । ५ अम्ह ५ जे । ६ गोयल जे। ७ सुकार जे। ८'गुडियुक' सू! ९ स्वइ जे । १० सउण विरुदेहि स। ११ व्व स्यमा सू। १२ मूसय सू। १३ णिमनमाणा सू। १४ ग सम्ब अधुसू । १५. "पट्टिय जे । १६ जाइरेण घेत्तणमागचामि दू । १७ धीरत्त जे । Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ __२०१ ४९-५०-५१ अरिट्ठणेमि-कण्हवासुदेव-बलदेवबलदेवाण चरियं । ति। एवं च मुहं ठवेऊण वणंतरालमुदिसिय ‘भयवयीओ वणदेवयाओ ! एस माया मे कणिटो जीवियाओ वि इट्ठो तुम्ह रक्खगत्थं समप्पिओ' ति भणिऊण गओ। गए य तम्मि दामोयरो कोसेयवासेणऽत्ताणयमोच्छाइय णुवष्णो । जाव य छुहाकिलामियतणुणो तण्हावसमुसमाणतालु-उहउडस्स कह कह वि खेयणीसहत्तणओ समागया णिद्दा । ताव य भवियधयाणिओएण उवरवीणयाए आउणो लुद्धयरूवधारी आगओ तमुद्देसं संवर-हरिणाइसत्तमण्णेसमाणो जराकुमारो । तओ तेणाउव्ववण्णंतराहिरामजणियमयभन्तिणा आयण्णायड्ढिउम्मुक्केकबाणेणं पहओ दाहिणचलणंतरे मम्मपएसम्मि जणदणो। ताव य पहारसमणंतरमेव वेएणुटिएण भणियं-केण पुणाई णिरवराही पायतलम्मि पहओ ?, ण य मया कयाइ अमुणियवंसविसेसो णिवाइओ, ता साहेउ 'को वा ?, किं ससंभवो दा?' | तो तमायण्ािऊण जराकुमारेण भणियं-अहं खु हरिवंसुब्भवस्स वसुदेवपरिंदस्स सुओ, पुहइमंडलेकल्लवीराणं हलि-केसवाण मेकोयरो जराकुमाराहिहाणो जिणयंदवयणाओ केसवपाणपरिरक्खणत्थं उज्झिऊण णियपुर-कलत्ताइयं सयणवग्ग अमुणियसयलमुहविसेसो वणाओ वणंतरं परिभमामि, ता साहिप्पउ 'तुमं पुण को होऊँग ममं पुच्छिसि ?' ति । तओ केसवेण भणियं-एहेहि महाभाय ! एस सो दामोयरो, ता परिरंभसु ममं ति, सो हं किल तुज्झ भाया जणदणो जस्स कए दुक्खिओ कुसयणा-ऽऽसणेहिं अरण्णमाहिडिओ सो ये सयलो वि किलेसो णिप्फलो जाओ, ता सिग्घमागच्छसु त्ति । तो तमायष्णिऊण जराकुमारो तं वयणं संसंभममासंकमाणो जणदणं दट्टण दूरओ चेव सोयवसम्मुक्कदीहधाहो पसारिओभयभुयादंडो हा हा! हओ मि' त्ति मंदभागो अञ्चन्तकलुणपलायपुचयमवलंबिऊण कंठे [भणिउमाढत्तो-"कत्तो तुममेत्य ? ति, अहो ! मम महासाहस, अहो ! असमिक्खियकारिया, अहो ! णिकरुणया, अहो ! महापाकम्मफलं ति। संपयं कत्थ गच्छामि ?, कत्थ गओ सुज्झिस्सामि ?, कस्थ वा गयस्स सुगयं ? । जाव पयत्तिस्सइ तुज्झ संकहा ताव मम पि भाइवहसमुभवी अयसो त्ति । तुज्य पाणपरिरक्खणणिमित्तमेव सरीरमृहं पि अगणिऊण भीसणवणंतरालमल्लीणो, जाव अवस्संभावित्तणो भवियच्चयाए णिकरणेणं च विहिणा मए तमेवाणुचिट्ठियं । कत्थ ते जायवणरवइणो ?, कहिं ताणि महिलासहस्साणि ?, कत्थ बलएवाइणो सहोयरा ?, कत्थ वा कुमारपुरस्सरो पहाणपरिवारो?" त्ति । तओ केसवेण भणियं-"महाभाय ! अलमियरजणस्स व पलावेहि, जेण णिसुयं पुव्वमेव तुमए भयवओ वयणं । ता णिमित्तमेत्तभूओ तुमं, ण य तुज्झ भावदोसो । जओ संसारंतरवत्तिणो पॉणिणो सव्वस्स वि सुलहमेयं-'सुलहाओ आवयाओ, दुल्लहाओ संपयाओ, बहूयं दुक्खं, थेवयं सोक्खं, णिवडंतिणो विओया, दूरवत्तिणो पियजणसमागमा'। जेण पेच्छसु-विहिविहाणओ सा तियसपुरिसरिच्छा बारवती, उवह सियदिसावालविभमा जायवणरिंदा, अवमण्णियसुरवइपरक्कमा महासामन्ता, णिज्जियसुरविलासिणीस[म] तेउरं, दूरपडि फलियधणवइधणा धणरिद्धी, अप्पडिहयसत्ती चकाउहो, सबमेकपए चेव पणहूँ ति । अवि य सा यारवती मणि-रयण-कणयभवणोत्रहोयकलिया वि । हरियंदपुरि व्व खणेक्कदिट्ठणठ्ठा समं जाया ॥ २३० ॥ वियडकडया वि माणुण्णया वि तुंगा वि ते तह परिंदा । कढिणकुलिसाहया महिहर व हरिणा खयं णीया ॥२३॥ लीलाचलंतकलकणिरमणितुलाकोडिमुहलपयकमलो । सो रमणियणो अमरीयणो व्य असणो जाओ ॥ २३२ ॥ तं गरुयगइंद-तुरंगसंकलुद्दामपक्कपाइकं । कह पेच्छह छायाखेडुयं व णिमिसंतरे णटुं ? ॥ २३३ ॥ मणि-कणय-रयणणिवहोवहूयधणवइधणोहसारा वि । सा मह रिद्धी माइंदजालजणिय न णिण्णट्ठा ।। २३४॥ ते संख-चक्क-सारंग-पग्ग-गय-मोग्गराउहविसेसा । संहम्मि मयणवाण व्ब कह णिरत्थीगया सव्वे ? ।। २३५॥ पिइ-पुत्त-भाइ-भइणी-भजा-सयणो व्य(य) णेहपडिबद्धो । पाययपुरिसेहिं व कह उवेक्खिओ डज्ममाणो वि? ॥२३६।। समरम्मि पउरभडभंजणक्खमं तारिसं बलं मज्झ । एकपए च्चिय-गहें पत्तमपत्तम्मि दाणं व ॥ २३७॥ १ मुद्दिसिऊण में जे । २ तुम्हाणं र जे । ३ च्छाइऊण गुजे । ४ वर्ण परि सू। ५ होइऊण जे। ६ य किलेसोस। , ससंभवमा सू । ८ मम मासाहसं जे । ९ जंतुणो जे। .. 'लासिाणमंते सू । " सर्व जे । १२ गिरथीकया सू।। Jain Education Integional Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०२ चउप्पनमहापुरिसचरिय। मीसेसचित्तसंतावणासणो कोत्थुहो मणी एस । सामण्णपत्थरक्खंडविभमो पेच्छ कह जाओ१॥ २३८ ॥ इय जाणिऊगमम्हाणमेवमंतो त्ति विहिवसपयट्टो । मोत्तूण सोयपसरं दिजउ कज्जे मणी धीरे !॥ २३९ ।। ता मुणिऊण य एयं, अवहत्थिऊण सोयपसरं, अवलंबिऊण हियएण उच्छाई, समत्थिऊण मत्थय, मोत्तूण सोयणियरं, गच्छ दाहिणमहुरं पंडवाणं सयासं जाब सलिलाणयणणिमित्तं गओ हलाउहो णाऽऽगच्छइ ‘मा सो त्रि भाइवहमणुचिहिस्सइ' त्ति । ताव एयं कोत्थुहरयणं साहिण्णाणं तेसिमोप्पेऊण साहियव्या अम्हाण पउत्ती। मम वयणाओ भणियबमेयं जहा-जायस्सावस्सं पाणिणो मरणं, अधिराओ सबसंपयानो, एवमत्रसाणं तुम्हाणमम्हाणं च दंसणं, ता खमियध्वमम्हाणमविणयचेटियं"। ति भणिऊण 'सिग्घयरं गन्छ, पराहुत्तणिमियचलणपयणिक्खेवेणं च गन्तव्य' ति भणिए गओ जराकुमारो।। ___ माहवो विपउरपलोटमाणसोणियप्पवाहो वियणावसवियंभियाउन्बवेयणो तण्हासुसंततालु-उट्ठउडो सिरणिमिणकरजलिउडो ‘णमो जिणाणं, णमो भगवओ रिहणेमिस्स जेण केवलणाणेण सयललोया-ऽलोयवत्तिणो दिट्ठा जीवाइणा पयत्या, धष्णा ते संवाइणो कुमारा जेहिं सहियमणुष्ट्रिय ति [ ? भणंतो] पाउरिऊण णुवण्यो । ता समुद्धाइओ उद्धं जीवियंतकारी पहंजणो । तओ घोरम्मि कंतारकाणणम्मि दरमिलायच्छिवत्तो वाससहस्सावसाणे णिययाउयस्स काल मुवगओ कण्हो ति। ___इओ य बलदेवो वि घेतूण सरवराओ णलिणिदलम्मि सलिलं अंतोवियंभिउद्दामहिययावेओ अणिमित्तइयाणिहरिटपसरो समागओ तमुद्देसं । 'पहकिलामियत्तणओ पमुत्तो' ति मण्णमाणो णिमिऊणेक्कैपदेसम्मि तं जलं सिणेहाउलियमाणसो णिसण्णो समासणपदेसे । नाव णियच्छए वयणकमलम्मि णीलमच्छियाओ समल्लियंतीओ । दद्रुण संभमुन्धूयभयविसेसविसयं करयलेणमवणीयं बयणाओ कोसेयसिचयं । दट्टैण य विमुक्कजीयं सहोयरं मुच्छारसमिलतलोमणो जिवडिओ धरणीयले । समासा(स)सिऊग य रोसबसविमुक्कसीहणायमुहलियवणंतरालो दढपयक्खेवकंपियमहीयलो जंघाणिहसमुमुमरियपायवो कयभुयप्फोडणफुडियपडिरयो जंपिउं पयत्तोरे रे मिच्छाहम ! भीरु !दीण ! जिल्लज्ज ! जुजइ किमेयं । विणिवाइउं इमं मम सहोयरं हीण ! तुई जंतुं ? ॥२४॥ मुत्तुम्मत्त-पमचे वाले महिलायणे व जो पुरिसो । पहरेइ णिदियायरणणिदिओ सो अदट्टन्यो ।। २४१ ।। जइ तुह भडावलेवो बाहुबलं वा तणुम्मि सामत्यं । अस्थि ति ता इओ एहि णिदियायार ! णिल्ज ! ॥ २४२ ।। इय एवं दूसहसोयपसरपक्यिंभिउब्भडावेओ । ता धाइ ता णियत्तइ पासम्मि पुणो समल्लियइ ॥ २४३।। आगंतूण य समीवम्मि पयलंतवाहसलिलपव्वालियाणणो विमुक्कऽकंदणीसणो विलविउं पयत्तो-हा महंकसंवड्ढिय ! हा कणिट्टय ! हा तिहुयणेक्कधीर ! हा महारह ! । अवि य आसि भणंतो तं 'रोहिणेय ! महे वल्लहो सि अच्चत्यं । तं तुमए संपइ कह णु वीरें ! विवरीयमायरियं? ॥२४४॥ आवइवडिओ अण्णो वि उज्झिउं णेय जुज्जइ भडाण । किं पुण सहोयरो वच्छलो य जेट्ठो पियासरिसो?॥२४५।। बालत्तणम्मि सरिसेहि कीलियं ताई कीलियब्वाइं । एत्ताहे पम्हुसिऊण णवर एको चिय पउत्यो ।। २४६ ॥ इय णेहणिब्भरुप्पण्णसोहियं मेल्लिउँ ममं रणे । णो जुज्जइ भुवणेकल्लवीर ! तुम्हाण सविसेसं ॥ २४७ ॥ ताव य--- विगयच्छाओ आमेल्लियंबरो वियलियंसुपन्भारो । हलहरसोएणं पिव रवी वि अत्यंतरं पत्तो ।। २४८ ॥ तो घलएवेण भणियं-"कण्ह ! कीस अज वि णिहावसगओ ?, संझासमओ वट्टइ, ण य उत्तमपुरिसाणं संत्रासमए सुप्पति । भीसणमरण्णमेयं, तमपउरा रयणी, भमन्ति भीमसत्ताणि, रुंजंति केसरिणो, घुरुहुरंति सद्ला, घुरुकंति वीर । जे । १ तेसिमप्पे जे। कदेसम्मि सू। ४ णदेसे सू । ५ संभवुम्भू जे। ६ महजे । . ह हंतु स । ८ 'पोर ! जे । ९ मम जे । १. धीर!जे। Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४९-५०-५१ अरिट्ठणेमि - कण्हवासुदेव - बलदेवबलदेवाण चरियं । २०३ गुरुवराहा, पसरंति तरच्छ-ऽच्छभल्ला । किं तए ण मुणियमेयं 'पच्चवायबहुला रयणी ?", किंण पेच्छसि मं एकल्लयं अणाहं असरणं जग्गरं ? | कीस इयरपुरिसो व्व दीहणिहाहिलासी ? । किंचावसेसा गिसा, विलम्बिया जेट्टतारया, समागया पुव्वसंझा, रविणा समद्धासियमुययसेलसिहरं, कीस ण बुज्झसि ?" । एवं च बहुप्पयारं सिणेहबहुलयाए गरहंतो रेष्णदेवयाणं, णिवेययन्तो वणस्सईणं, उग्गयमओ व गहगहिओ व उग्गए दिणयरम्मि 'भाउय ! किमिहट्ठिएणं 2, एहि गच्छामो' त्ति भणिऊण उप्पाडियं तं मयकलेवरं वलड्यं खंधदेसे । तओ असमंजसणिमिज्जन्तजंघो विसममहीयलखलंतचलणो सुष्णपणपय निक्खेवो परिब्भमिउं पयत्तो । तओ तस्स पायपहारो व मालणिवडियस्स, ऊसासओ व्व गुरुष्पहाराउरस्स, खलो व्व सामलियदिसामुहमंडलो, वाहो व्त्र मुक्कजलधारासरणियरो, समागओ घणसमओ । जहिं च हंति सिलिंधाई, सिहंति कंदलाई, कुसुमिज्जति कुडयणियरा, मैउलिजति कयंबनिउरुम्बा, वित्थरइ केयतीपरिमलो, सुव्वर चिरवरहिणारावो, बित्थरै कोइलकुलकलयलरवो, पसरइ भ्रमन्त भमरउलकलरवो । अवि य कसणघणजलहरोलम्बमाणमहियलमिलंतपेरंतं । पेच्छइ णियसोय-विसायकंबलोच्छाइयं व पहं ॥ २४९ ॥ अणवरयथोरधाराणिवायपडिरुद्धलोयणालोयं । पेच्छर पलोट्टणियबाहसलिलपैव्वालियं व जयं ॥ २५० ॥ वोसट्टकल बुच्छलिय बहलपरिमलमिलन्तगंधेणं । मुच्छिज्जइ विसपायवपसूयपवणेण व मुहुत्तं ।। २५१ ॥ अहिणवविर्णितकंदल सिलिंघपडिबद्धगंधवाहेण । अहियं पज्जालिज्जइ वणम्मि सोयाणलो सहसा ॥ २५२ ॥ रेल्लिज्ज वेयवसुच्छलन्तकल्लोलकलुसियाहोया । जह तस्स तणू तह जलहरेण वसुह जलभरेहिं ॥ २५३ ॥ दरदलिय सिलिंद लुच्छलन्तपरिमलमिलंत सलउलं । हलिणो गुरुसोयाणलणिबद्धर्द धूमपडलं व ॥ २५४ ॥ ज्जइ रसंतसारंग दद्दुरुद्दामवरहिणरवेण । रुयइ व्त्र णीसहं तस्स सोयविवस व महिवेढं ।। २५५ ॥ इय तस्स दुत्थिउद्दामसोयवड्ढियविसायपसरस्स । पैंत्तो घगगहिरोरल्लिभीसणो पाउसो सहसा ॥ २५६ ॥ अण्णं च भेस व् घणघणोरल्लिगहिरसदेणं, तज्जइ व्वं समुब्भिण्णणवलयंगुलीए, गोल्लर व्व पर्यडपवणादिघारण, वाहर व "को को' ति कोइलालावेण । अवि य जा घोरघणघणोरल्लिगज्जियं सव्वओ णिसामेइ । ता फुंरियतरलताडिताडिड व्व पक्खुलइ पुणरुत्तं ।। २५७ ॥ जाधा सण कंदरुद्दामदिष्णपडिसहो । ता भइ निब्भरजलपयत्तपूरप्पवाहेण ।। २५८ ।। जा सिलिकोलाहलकयसम्मोहो पहाड़ तयहुत्तं । ता पडइ ̈णिन्मरासारथोरधाराणिवाएहि ।। २५९ ॥ जा कह व कुडकुसुमे लोलदिडिं पणामइ मुहुत्तं । ता मुच्छाए व समयं रुंभइ भसलउलमालाए ॥ २६० ॥ इय जत्तो चिय पसरइ गलद्धधीपसरतरलिया दिट्ठी । तत्तो चिय समहियदिष्णदुक्खपसरा णियत्तेइ ॥ २६१ ॥ एवं च कत्थइ अद्धवसामो 'कत्थ गच्छामि ? के यिच्छामि ?, को वा मम सरणं ?, को मम परित्ताणं करिस्सइ ?' त्ति चिंतयंतो परिब्भमंतो गुरुगययसीयरोल्लियासुं गुहासुं, दरियमइंदरोदेसु कंदरेसु, वग्घधुरुहुरौंरावघोरेसुं णिउंजेसुं, चित्तर्यैच्छिकविलचित्तलासुं गिरिदरीसुं, तरच्छ-ऽच्छहलदुपेच्छेनुं गुम्मगच्छेतुं दिट्ठो संजायदेवत्तणपउतोहिणा सिद्धस्थे । द य चिंतियमणेण - अहो ! दुव्वारा कैम्मपरिगई, अहो ! अथिरा रिद्धिसमुदया, जेण पेच्छह तंतहा - विहवल - परकमाणं बल - दामोयराणं एरिसी अवत्थ त्ति, ता पडिबोहेमि एयं । [ति] चिंतिऊण "विउरुव्त्रियं महब्भहियविब्भमाओ तुंगगिरियडाओ समुत्तिष्णं समम्मि चेत्र भूमिभाए भग्गं महासगडं संजोइज्जमाणमेकेण पुरिसेण । तओ दट्ठूण हलाउहेण भणियं-भो ! चोज्जं !, सुदुग्गमाओ गिरियडाओ समोइण्णो तं कहं समम्मि चैव भूमिभाए सयहा विहडियं पुणो वि संघडिउमिच्छसि ?, अहो ! ते मोहया । देवेण भणियं जइ एवं तो कहं ते भाया अणेयरणंगणेसु निव्वूढसाहसो १ अरणदेवयाइ सू । २ष्णणयणनिश्खेदो जे । ३ परिज्जति सू । ४ ६ कलकोइलो कल्यलो, पस जे ६ हा गिरिणईहि जे । ७ 'भमरउलं सु । ८ धूम सू । ९ रुवइ जे । १० बसो सू । ११ कोक ति जे १३ रुंभइ सू । १४ निम्बरा जे १५ कत्थह णिय सू । १६ 'करसी' सू । १७ राख सू । १८ यच्छिचित्तला जे । २० बिउब्वियं जे । For Private Personal Use Only ५ पप्पालि सू । १२ फुडिय सु । सू । १९ कम्मगई Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०४ चउप्पन्नमहापुरिसचरियं । सो कहमेककंडपहारेण विवण्णो ?, जया तुज्झ संघडिही तया मज्झ सयडं ति । तेओ तंवयगमवगणिऊण अण्णओ गओ । पुणो दंसिओ एकपएसम्मि एक्को वियडे सिलायलम्मि णलिगि रोवयंतो सिंचंतो मणुओ । पेच्छिऊण य पुणो भणियं हलहरेग-अहो ! ते बुद्धी, किं कयाइ सिलायडे पोमिणी जायइ ?, अह कह वि दिवजोएण जायइ ता जीविस्सइ कहं ? । इयमायण्णिऊण पुणो देवेण भणियं-जया एस तुज्झ भाया जीविही तया मम एस । ति भणंतस्स अण्णओ गओ। पुणो अण्णम्मि पएसे दिट्ठो दवदड्थाणुभूयमेकं दड्ढं महीरुहं सलिणेणं सिंचंतो गरो । भणियं च बलेणदावाणलपुलुट्ठम् लस्स एयस्स खण्णुयस्स कया पल्लउन्भेओ भविस्सइ ? । देवेण भणियं-जया एस ते सहोयरो जीविस्सइ । पुणो वि अण्णओ गच्छमाणेण दिवो गोवालदारओ गोसिरकरोडीए पुरओ पयच्छन्तो हरियतणंकुरे । तो हलाउहेण भषियं-इमा तुह णिमंसियहिसेसा कह जीविस्सइ ?, जेग तगंकुरुक्केरं वहतो किमत्ताणयं खेएसि ?, अहो ! ते मूढया, अहो ! णिबिवेइत्तणं, अहो ! ते अप्पगन्भया, सञ्चयं चेत्र गोत्रो ति । तओ सुरेण भणियं-जया तुह सहोयरो ति। तओ तमायण्णिउं समागयचेयणारूवेण सुत्तुहिएण विय सबओ पैलोइऊण दिसाहोए, णिज्झाइऊण तं मयकलेवरं, 'किमेस केसवो सच्चयं चेव मओ जेणेस मम संरोहणत्थं बंधवो च ससिणेहं जंपइ ?' । एत्थावसरम्मि य पायडियसिद्धत्थरूवेग भणियममरेण-"भो हलाउह ! अहं सो तुह सारही सिद्धत्यो भयवओ अरिट्ठणेमिणो पसाएण चरिऊण तवविसेसं देवो संजाओ त्ति । तया तुमए भणियमासि जहा 'अहं तुमए पडिवोहेयव्यो' तं च सुमरिऊणाहमिहागओ । ता महाराय ! किमेवमप्पा तुमए अलिक्कयं चेव आयासिओ ? । जेण पुलोएम तुम्हारिसः वि सुधुरिस ! सोयपिसाएप जइ छलिजति। ता पैत्तमंडलेहिं वि अगणरिंदेहिं का गणणा ? ॥२६२।। अह तुम्हविहा वि हलीस! कह वि सोरण चाउलिजति । ता धीर ! धीरणिहसो गिरावलंबी कहं होही? ॥२६३।। तणुया वि तणुयचित्तस्स जंतुणो संपइ व्व विवइ व्च । परियत्तेइ वियारं ण उण महल्लस्स महई वि ॥ २६४ ॥ हि[य]याई जाइं सोक्खम्मि सरसपोमदलकोमलिल्लाइं । ताई चऽवसाणे होति कुलिसकढिणाई धीराण ।। २६५ ॥ . संवरियायारत्तणसमत्तसम्भावणूमिओ सहसा । वसणकसवट्टए सुवुरिसाण णिबडइ भडनिहसो ॥ २६६ ॥ इय आवईए सुझंति णेय, वसणम्मि जति ण विसायं । अण्णे वि सुवुरिसा, किं पुगाइ जे तुम्ह सारिच्छा ? ॥२६७।। किंच ण गुमरसि तं तया कहतरम्मि तुमए पुच्छिएण सिर्ट भयवया बारवतीडाहप्पभिइ कण्हविणासावसाणं जाव ?" । तओ मेल्लिऊण मतयं समागयसणेहयाए समालिंगिऊण सिद्धत्थं भणियं सीराउहेणं-एवमुत्रथिए किमियाणि मऐ कायच्वं ? । देवेण भणियं-णिसृणमु, हिंसा-ऽलिय-परधण[? गहण]-मेहुणाणं परिग्गहस्सेय । कुणसु विरई हलाउह ! तह राईभोयणाओ य ॥ २६८ ॥ मुमरेसु समोसरणम्मि भयवया सयलमत्तहियकारी । कहिओ जीवादिपयत्थवित्थरत्थो तया धम्मो ॥२६९।। संसारस्स सहावो अथिरा रिद्धी अणिचयं चेय । मुणिऊण कुणसु तं जेण होन्ति ण पुणो पियविओया ॥२७॥ इयसा समुण्णई एरिसं च पडणं हलीस ! दट्टैण । कीरउ सबारम्भेण भासियं णेमिणाहस्स ।। २७१ ॥ तो हलाउहो णिसामिऊण तं सिद्धत्थवयणं भणिउमाढत्तो जहा-पडिवणं जं तए भणियं, इमं च कण्हर्कलेवरं कि कीरउ ?। तं च णिसामिऊण सिद्धत्थदेवेण भणियं-तित्थयर-चक्कि-हलिणो पूया-सकारारह त्ति सम्बया, ता कीरउ इमस्स पूय त्ति । तओ सकारियं तं कलेवरं । ताव य णहंगणाओ तमुद्देसं समागमो भयवओ सयासाओ एको विजाइरसमणो । दट्टण य तं पहरिसवसविसट्टपुलयपडलेण पडिवण्णा रामेण तस्सन्तिए दिक्खा । अतीववेरग्गाणुगओ तवं काउमादत्तो। तभो इसमवर्ग जे। २ पुलइकण जे । ३ पत्तमेलेहि जे । ४ सरसदलकोमलाई हेण । ताई सू। ५ मया सु। ६ ई.शाम् । • तं वयणं स । ८ कडेवरं जे । Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४९-५०-५१ अरिट्ठणेमि-कण्हवासुदेव-बलदेवबलदेवाण चरियं । २०५ इओ य सो जराकुमारोपवियम्भिउद्दामसोयप्पसरो बाइजलपव्वालियाणणो केणइ कालंतरेण संपत्तो दाहिणमहुरं। गंतूण य रायभवणोवसंसिसीहद्दारं भणिओ पडिहारो-निवेएसु णरवइणो एवं जहा 'कण्हसयासाओ ओ समागओ' । त्ति णिवेइए तम्मि 'सिग्धं पवेससु' त्ति भणियं । पविट्ठो जरातणओ। राइणा कयजहोइयसम्माणो णिवि- वरासणम्मि । सुहासणत्यो य पुच्छिओ जायवाणं बल-दामोयराणं च कुसलपउत्ती । तओ णिगूढालग्गसल्लघट्टणेण विय पजरियगरुयहिययालयेण अणवस्यगलियंसुसलिलपेन्वालियवयणकमलेण भयवया सिट्ठबारवईविणासप्पभिई तईसणावसाणं जाव सिहा पउत्ति त्ति। तओ तमायण्णिऊण छिण्णमूला इच महातरुणो बंधुणिहणसमुप्पण्णगरुयसोयप्पसरा मुच्छावसमउलियच्छिपत्ता धस त्ति धरणियाम्म णिवडिया पंडवा । कुंती-मदीपुरस्सरो य महिलायणो वि विलावे काउमाढत्तो । समप्पिओ य जरासुएण कोत्युहमणी । साहिण्णाणं च तं मणिं सव्वेहि "वि समालिंगिऊण हियएणं सममञ्चत्यं परिदेविऊण कयं मयकिच्चाइ करणीयं । अतीयम्मि य संवच्छरे सयलसामन्ताणं समत्थिऊण णिवेसिओ निययरज्जे जराकुमारो। ताव य भयवो सयासाओ धम्मघोसो णाम बहुसमणगणपरिवारिओ चरमदेहो चउण्णागी सबभावविहण्णू महामुणी तत्थ य नैयरीए बाहिरुजाणम्मि समागओ । तं च मुणिऊणाऽऽगयं णिम्गया वंदणणिमित्तं सयलणरिंदवंदपरिगया पंडुतणया । गंतूण य वंदिओ भत्तिभरोणमंतुत्तिमंगेहिं मुणिवरो। मुहणिसण्णाण य साहिउं पयत्तो भयवया भासियं णयभंगभंगुरं धम्मं, अणिच्चया असरगया एगत्तं संसारासारत्तणं सयलजयद्विति, जहा जायवसीहाण पन्चजन्भुवगमो, गयसुकुमालचेद्वियं ति । तओ तं णिसामिऊण पेरमसंवेगमभुरगया 'सरीरमसासयं' ति कलिऊण सयलसंसारमोक्खहेडं मोक्खमग्गं सामण्णं पडिवण्णा [? पंडवा], कुंतीपमुहो य इत्थियायणो त्ति । णाणाविहुत्ताभिग्गहधारिणो य तवमतीवदुक्करं काउमाढत्ता । अहिज्जियमुत्तत्था समद्दिगयकिरियाकलावा गामाणुगामं विहरिउमाढत्ता। इओ य यवं सुरसरियामलसलिलपक्खालिउभयतीरं किरायरमणिणयणकुवलयमालच्चियदिसामुहं ससहरकरफंससवज्झरियजायमाणहिमोययं हिमवतोभयपासपरिसंठियं उत्तरावहं विहरिऊण, बोहेंतो भवियकमलायरे, पेयासयन्तो सयलभावे ठावयन्तो सुर-णर-तिरिए सुहम्मि मग्गे, कुणंतो पइदिणं धम्मदेसणा विविहमणिमयसिलायडपडिबद्धणियम्बयडं विविहतरुमुक्ककेसरप्पेयरं अणेयसत्थगणपरिवुयं समागमओ उज्जेतगिरिवरं ति । तत्थ य देवेहिं पायारतिओवलक्खियं विरइयं समोसरणं । णिसण्णो भयवं । पत्थुया धम्मदेसणा । साहिओ पयत्यवित्थरोधम्मो । ताव य कहंतरं जाणिऊण पढमगणहरेण वरयत्ताहिहाणेण भणियं-भयवं ! किं पुण कारणमिणं रायमतीए गुरुणेहाइसयस्स ?, जेण मणयं पि अन्ज वि ण मुयइ सोयप्पसरं, णाहिलसइ भोयणं, णाहिणंदइ सरीरहिइं, ण रमइ सहीकहासुं। तो भयवया भणियं इओ य अतीयणवमभवम्मि अहमासि पचन्ताहिवतिणो एक्कन्तविक्कमेक्करसियस्स णियविहवोहयणिधिवइणो धणयाहिहाणस्स सुओ धणणामो त्ति । तर्हि चॅ विज्झाडइपंथविम्भमागयमुणिचंदसाहुसयासोवलद्धसम्मत्तेण पडिवणं समणत्तणं । पालिऊग य जहाविहिं णियाउणो परिणामे समुप्पण्णो सोहम्मकप्पम्मि । तत्थ य उव जिउण जहिच्छिओवणयपै रिभोयनिभरे भोए तओ चइऊण विमलकलहोयमणिमयसिहरे वेयड्ढे कंचणपुराहिवइणो विणिज्जियासेसमूरस्स सूरविज्जाहराहिवइणो चित्तगइ ति पुत्तो समुप्पण्णो म्हि । तत्थ य णियविज्जोजल्लविणिज्जियासेसविजाहरो विज्जाहराहिवत्तणं करेऊण परिसेसियासेसविसयमहो दमवरमुणिसयासम्मि पडिवण्णसामण्णो कालं काऊणोववण्णो संपाडियसयलिंदियमुहम्मि माहिंदकप्पम्मि । तओ "वि परिसुंजिऊण सललियविलासिणीविलसियन्वाइं अवरविदेहे सीहपुरवरम्मि पवरणरिंदाहिवती संजाओ अवराइयणामोवलक्खिओ ति । तत्थ वि य पयंडभुयदंडखंडियासेसपडिवक्खं पुहइमंडलमखंडं मुंजिऊण, पाविऊण सामण्णं, जिरवजसंजमावज्जियतवविसेसो अहाउयमणुवालिऊण समुप्पण्णो आर पप्पालिय सू । २ मउलावियन्छि ।३ पलाचे स । ४ वि आलिगिस। ५ णयरे वास। ६ स्थाणे संस्। ७. चंद्र जे। ८ जमन्भुव स । ९ परं सं स । १. करिउमा जे। १ पयासंतो जे । १२ ‘प्पसरं जे । १३ सरीरट्ठी, स । १४ च विन्भमा सू । १५ 'णामेण संसू। १६ 'पडिभोंजे । १७ वि भुंजिकण सयलिंदियविला सू। १८ ' सामन्य.सू. Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०६ चउप्पन्नमहापुरिसचरियं । णणामम्मि सुरलोए । तो वि संपण्णसमथिंदियमुहत्थं सोक्खमणुहविऊण इहेव भरहवासम्मि हेत्थिणापुराहिवइणो पडिहयासेससुहडदप्पमाहप्पस्स सिरिसेणणराहिवइणो समुप्पण्णो संखगोत्तोवलक्खिओ पुत्तो । तत्थ वि य णमन्तसामन्तमउलिलालियचलणजुयलो समीहियब्भहियसंपण्णविसयमूहो परिगलियविसयकोउहलो मेल्लियरज्जफलो संजायसंजमुज्जोयावन्जियतित्ययरसुहकम्मो णिययाउयक्खयम्मि संजाओ गिम्मलमणिमयक्खंभपडिबद्धमणहरुल्लोयलंबिरमुत्ताकलावम्मि फलिहमणिमयभित्तिसंकन्तपरियणम्मि पजलियामलमाणिकमंगलपतीवम्मि अमिलाणदलल्लसियमंदारकुसुमोवयारम्मि संपण्णसयलमुहसमूहम्मि अवराइयविमाणम्मि सुरो । तओ वि मुरमुहमणुहविऊण बत्तीससागरोवमप्पमाणं संपयं समुप्पण्णो म्हि । ता भी देवाणुप्पिया ! एस रायमतीजीवो सिहपढमजम्मंतरपभीति ममाणुचरो आसि । एयमेत्य कारणं ति। ता हो 'त्ति णाम मूलं अणत्थाणं, साहा असुहतरुणो, पल्लवुन्भेओ कुमतिसाहाए, कुसुमुग्गमो कुगइवल्लीए । सम्बडा वियारिऊण अप्पणो डियं छिदियन्या णेहपासा, सिढिलियच्चो पेमाबंधो. आमेल्लियव्वा सयणसंतती, परिहरियव्वा रागाईवइरिणो त्ति । ता भो देवाणुप्पिया ! जिणवयणं-कम्मासवहेउणो दोणि-रोग-दोसे, दुण्णि असुहे-अट्ट-रोद्दे, 'दौण्णि य सुहे-धम्म-मुक्के, दोण्णि य जीवा-जीवा पयत्था । तिष्णि दंडा, तिण्णि गारवा, तिष्णि गुत्तीओ, तिणि विराहणा. तिष्णि सल्लाणि । चउरो कसाया, चत्तारि विगहाओ, चउरो मेंहन्बए । तहा य पंच कामगुणा, पंचऽत्थिकाया, पंचेंदियाणि, पंच किरियाओ, पंच गतीओ, पंच समितीओ, पंच आसवा, पंचेव य णिजराओ । तह छ ज्जीवणिकाया, छ चिय लेसाओ। सत्त भयहाणे, सत्तभेयं दुक्खं । अट्ठ कम्माणि, अट्ठ मयहाणाणि । णवहा बंभगुत्तीओ । दसविहो जइधम्मो । ता सयलदुक्खमूलो संसारवासो । दुक्खं जम्म-जराइयं । णरय-तिरिओवलक्खियाओ वियणाओ। वियाणिऊणे" सव्वहा सुघुद्धिणा तहा कायलं जहा सासयमुहफलकप्पपायवलंभभूयम्मि जिणमए संपज्जइ मइ ति । __ एवं च सयलसत्ताणुग्गहकारिणो, पतिदिणं धम्मदेसणं कुणंतस्स, दिवसावसाणसमयम्मि विमलसिलायलोवविद्वस्स, छटोववासेगं अंतिमजोगद्विति संठियस्स णाम-गोत्त-वेयणीया-ऽऽउयकम्मेसु सेलेसिचरिमसमयम्मि समयं चिय खयमइगएमुं, एकेणं चेव समएणं भयवओ समणाणं पंचहि सएंहिं छत्तीसएहि सहियस्स सावणसुद्धपंचमीए चिचाणक्खत्तम्मि संपण्णं णियाणगमणं ति। ताव चलियासणोहिप्पओयमुणिए जिणस्स णिचाणे । हरिणा करकमलंजलिमिलन्तललिउत्तिमंगेण ॥ २७२ ॥ मुच्चइ करयलसंवलियदलउँडुव्वेल्लकेसरंकलावं । परिमलमिलंतभैसलउलमुहलमुवरि कुसुमवासं ॥ २७३ ॥ अंतोवियंभिउद्दामभावणाणुगयमणहरीलावो । वित्थरइ सयलसुरसत्यपसरिओ जयजयारावो ॥ २७४ ॥ संचलइ चलियणीसेससुरगणण्णोण्णरुद्धपयपसरो । रहसवसुद्धयहारुच्छलन्तवच्छो तियसणाहो ॥ २७५ ॥ *संचलइ सवर्णवल्लरिपरिमलियकवोलपत्तलेहालो । कयजयजयकलरवमहुरमणहरो तियसतरुणियणो ॥ २७६ ॥ उच्छलइ पहयपडुपडहरावसंवलियकाहलामुहलो । तियससहत्थाहयविविहवजिराउज्जणिग्योसो ॥ २७७ ॥ इय आगंतूण विसट्टभावभरणिभरो सुराहिबई । जयगुरुणो णियविहवेण कुणइ णेवाणदिणमहिमं ॥ २७८ ॥ कह चिय?—विमुक्कं मणिजालसंवलियसवलबंधणहरं निणतणुम्मि कुसुमवासं । णिम(म्म)जियं पसरंतसुरहिपरिमलुम्वेल्लमंदाणिलेण महियलं, पसामिय' ललियकरयलुच्छलंतगंधसलिलेण रयजालं, पैयप्पियं समंतओ डझंतकालायरुप्पंककप्पूरधूमवडलं, पहया विमद्दसैद्दुच्छलंतपडिरवा "विविहाउजविसेसा, गीयं समताण(ल)संवलंतवेणुवीणामणहरं मंगलगेयं । एवं च सुरविमुक्कजयजयारवापूरियदिसावलयं मलय-कालायरुदामलवली-लवंगाइणा दारुणिव हेण सकारिऊण १ इत्थिणाउरपुरा जे । २ यसम पण सू । ३ 'यसुरविमा जे । ४ हे सू । ५ हिस्। ६ वुन्भवो सू। . इवेरिणो जे। ८ दौण्हि स। २ रोगद्दीसा जे । १. दुहा जे । ११ दुहेव सुहे जे । १२ महब्वया सू । ११ समीओ जे । १४ छ हलेसाओ सू। १५ "वं तहा सुबुधिणा कायव्यं सू। १६ सम्म विमलसिलयकोवसू । १७ ताव य चलि सूजे। 10 उडम्मिल सू। १९ भमरउल सू। २. राहाने सू। २१ संबई जे । २२ 'गल्लारें । २३ सुमदामं सू। २. सलिली)लवार । २५ पयंपियं जे । २६ समुच्छलत जे । २७ विविहक जे .. Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४९-५०-५१ अरिट्ठणेमि - कन्हवासुदेव- बलदेवबलदेवाण चरियं । २०७ भगवन्तं 'संपयमत्थमइगए जिणवरम्मि पणट्टा अइसय विसेसप्पदा, वित्थरs कुमयतमडलपसरो, निरंधलो सलतियलोओ, अणाहा भारहवासभूमि' त्ति भणिऊण धरणिरंखोलमाणहारलयं पणमिऊण वासवाइणो सुरगणा भयवंतं धुणिउमादत्ता जय जय पणमंतसुरासुर-रिंदमणिमउलिला लियंघिय ! | भवसयसंगलियाणेयकम्ममाहप्पणिद्दलण ! ॥ २७९ ॥ जय जम्म-मरणकारणमुसुसूरणे ! जणियजणमणानंद ! । संसाराडइणिवडन्ततिहुयणुद्धरणकयचित्त ! ।। २८० ।। मयणधणुगुणुम्मुक्ककुसुमसरणियरपडिहयप्पसर ! । विविहणय हेउसंपायभंगपडि भग्गकुमयमय ! ।। २८१ ।। जय पंथपत्थारिभरिभुवणम्भि मूढमग्गाण ! | काऊण दयं सम्मग्गदेसओ तं सि भवियाण ।। २८२ ॥ जय यियविसयपसरंतदुद्धरिदियत्रिवक्खकयभंग ! | सिमपरीसहणिद्दलियदुसहदढदप्पमाहप्प ! || २८३ ॥ जय जयसंवेण वि हिययम्मिं णकयपहरिसप्पसर ।। ण य कयतालनवित्थरियमच्छरुच्छाहदुप्पेच्छ ! ॥ २८४॥ जय णाण-दंसणालीयकलिय किरियाकलावविण्णास ! । भवभमणकारणुद्दलणलद्धसासयसुहावास ! ।। २८५ ।। इरम ! मदुगुणिट्ठवणणिट्ठर ! जिनिंद ! । होज्जsम्ह बोहिलाभो पुणो त्रि तुह पयपसाएण ॥ २८६ ॥ अवि य- भवजलहिजलुत्तारणकारण ! सत्ताण दुहसयताण ! । तौणं कुणसु विकम्मय ! कम्ममहापंकखुत्ताण ! ॥ २८७ ॥ दुर्द्विदियम्रण ! "मूरण ! घणकम्मसेलगहणाण । चउविहकसायसोसय ! सम्मं गुणगारवम्घत्रिय ! ॥ २८८ ॥ सयलसुरा-सुरसम्म ! मयवज्जिय ! जियपरीस है - कसाय ! । मयणमहाभर्डभंजय ! जयगुरु ! जय जयहि जोईस ! ||२८९|| माणुम्मूलणपञ्चल ! रागुग्गपलित्तसंगकयभंग ! । मय-मोह-मायसासय ! सासयमुहमुत्तमं पत्त ! ॥ २९० ॥ लोहा-ऽहिमाणणासय ! णासयसंसारवासत्रासंग !। जिण ! जयदंसियसिवपय ! परसु गमिमो सिवातणय ! ॥ २९९ ॥ अण्णावाहिणी लपवाहवाहेण भवसयात्रते । परिरक्ख रक्खणक्खमतरंड ! बुतमेत्ताहे ।। २९२ ।। इय जम्मे जम्मे चणकमलभसलाइयन्त्रमम्हाण | जयगुरु ! जाएज्ज पुणो वि तुम्ह गोचाणुहावेण ॥ २९३ ॥ 1 एवं च महया विच्छड्डेणं णेव्त्राणगमणमहिमं काऊग, गहिऊण सेसानिमित्तमट्ठियाणि, वंदिऊणमुत्तिमंगेण भयवओ भूइं गया णियणिलणाई सुरगणा । इओ य ते पंडवा दुद्धरधरियाभिग्गहविसेससोसवियतणुणो भयवंतं दट्टुमिच्छमाणा समागया उज्जैतगिरिणो चार जोयणावसेसं भूमिभायं । जाव णेव्वाणमहिमागयपडिणियत्ताण सिद्ध-गंधव्त्र-विज्जाहराण णिसुओ णेव्वाणगमणसंबद्धो कहाला । तं च सोऊण ताण नियतणुवणंतराले व्व संधुकिओ बंधुविरहधूमो, पसरिया अरतीजांलावडाली, वित्थरिओ रणरंगंगारणियरो, वियंभिओ बहलसोयाणलो, 'णिरस्थिओ एस अम्हाणे किलेसो' त्ति मण्णमाणा संपत्ता परिवियडकडयपडिरुद्धदिसिवहं तुंग सिहरग्गलंघियणहंगणं तद्वाणसंठियाणेयसिद्धमुणिगणं लोयणालोयमेत्तपसमियपावपसरं पसिद्ध सिद्धाययणघडियत्रियडकूडं सिद्ध-गंधव्त्र- किष्णरुग्गीयमुहलं सुरसुंदरीमुकमंदारकुसुमोवयारं सिरिसतंजयगिरिवरं ति | आरुऊणं च गरुयवेरग्गसंपण्णमाणसेहिं जहाविहिं पडिवण्णमणसणं । तओ एगत्ताभावणाभात्रणुज्जयाण पसरतसुहासायठियाण अउष्वसुकझाणाणलणिद्दड्डसयलकस्मिंधणाण समुप्पण्णं अउष्त्रकरणविहिणा पंचण्ड वि जाणं केवलणाणं । तयणंतरं वै संपता जेव्त्राणं ति । इओ सो हाउसाहू गुरुयरसंवेगमुहज्झवसायागयमाणसो छट्ट-म- दसम दुवालस- ऽद्धमास मासा तोबिदाणमुज्जमंतो गुरुणाऽणुष्णाओं एकल्लविहारमन्त्रवष्णो जत्थत्थमियणिवासी गामाणुरगामं विहरिडं पयत्तो । अण्णया य अनियम जे १३ ताण चि कुण जे ४ सूरण सू । ५ हविसाय! जे ६ मंजन | सू।णसंबं । ८ ताप यनि सू । ९ मालाढाली जे १० रणझंकारणि जे । ११ न परिकिलेसो सू । १२ न पता जे । Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०८ चउम्पन्नमहापुरिसचरिय। मासोववासी पारणयणिमित्तमेकम्मि णयरे जुगमित्तणिहित्तलोयणपसरो गोयरचरियमइगओ । तो तं अश्वन्भुयतवोविसेससोसियसरीरं पि अप्पडिहयरूवसंपये, मलपडलपंकियं पि सुमणोहरकतिसंतियं, असमंजसकेसुल्लुंचिउत्तिमंगं पिणमिलागलायण्णाइसयं, परिमलिणकुचेलालिद्धदेहावयवं पिणमियसोहग्गसमुदयं दट्टण रूवाइसयक्खित्तचित्तो समइगओ पुरसुंदरीयणो वम्महसरणियरपहाराउरो य किं काउं पयत्तो ?-कीए वि अणि मिसकसिण-सिया-ऽऽयंबिरप्पहा पसरिया लोयणावली, कीए वि परिलुलियालयमणोहरो परामुसिओ कुंतलकलावो, कीए वि पायडियथोरथणयलं संल्हसियमुत्तरिजं, 'कीए वि वियंभमाणवयणकमलुव्वेल्लियाओ [वेल्लियाओ] भुयलयाओ, कीए वि परिगलियणीविबंधपसिढिलं संजमियं कडिल्लं । अवि य पसरंति मंथरं सुरहिपरिमलल्लीणभसलवलइल्ला । परिसिहभंतरमयणहुयवहा दीहणीसासा ॥ २९४ ॥ उण्णामिएक्कभुयलयविसेससंजमणवावडकरम्गो । परिलोलइ सढिलुग्वेल्लबंधणो कोंतलुप्पीलो ।। २९५ ॥ सहस चिय होतवियंभमाणणिब्बोल्लियाहरोटउडा । लीलाविणिवेसियसवणकुवलया वयण बिब्बोया ॥ २९६ ॥ णिवडन्ति मउलिउच्यत्ततारयाऽयंगदिण्णसोहग्गा । परिविरलपम्हपेरन्तपसरिया दिद्विविच्छोहा ।। २९७ ॥ वड्दति अरुवेल्लन्तभंगमोट्टाइयचविहुराई । अप्पत्तसंगमालसविसेसदढजूरियन्वाइं ॥ २९८ ॥ दंसणपसरियसज्झसविसेसपरिसिढिलणीविविष्णासं । संधारिज्जइ केरकलियपल्लवं कह वि हु कडिल्लं ॥ २९९ ॥ पेढालमंडलामूलवियडपायडियथोरथणवढे । णो लक्खिज्जइ ल्हसियावरिल्लमइमुण्ण हिययाए ॥ ३०॥ इय तरुणियणबदृतराममुहयंददंसणपयत्ता । पसरन्तहलहलरवा वम्महमेइरोयसलोव्व(?लमुल्लोया) ॥ ३०१ ॥ एवं च पचड्ढन्ततरुणियणमयणमयरहरमयलंछणे दिसिदिसिसमागयजुवइजणावूरिजमाणरच्छामुहे गच्छमाणे बलएवमहरिसिम्मि अणवेक्खिऊण णियकुलकम, अवहत्थिऊण जाइमाहप्पं, पणोल्लिऊण गिरिंगरुयसीलपब्भारं, सिढिलिऊण विलयालंकारभूयं लजं, अवलंबिऊण चावलं, बहुमन्निऊणें अकोलउत्तं, पसंसिऊण जिल्लज्जयं, कलिऊण दुबिलसियं, अहिणववियंभियाणुरायपरच्चसयाए पेम्मपराहीणमुण्णहिययाए तम्मुहणिहितलोयणपसराए णवजोवणुम्मइयमयणवाणाए एक्काए पुरसुंदरीए अयडतडोवसंठियाए जलायड्ढा निमित्तं कलसकलणाए णियबालेस्सेय गलयम्मि संदामिया रज्जू । जाव य कूवम्मि पक्खिवह ताव पासपरिसंठियमहिलायणेण 'हा ! हया सि त्ति हयासे !' भणमाणेण संबोहिया। "एयं च वइयरं जणरवाओ वियाणिऊण सीराउहो चिंतिउमाढत्तो-"अहो महिला णाम असंकला गोती, अदीवा कजलसिहा, अगोसहो वाही, अपडियारा रक्खसी, जेण रयणिभरा गिरिणइ व्व लंघेइ उभयकूलाई, कलुसीकरेइ सच्छायं, पहाइ उम्मग्गगमणेणं, पाडेइ णियडपरिसंठियं ति, जेण [य] पेच्छ मलजल्लोल्लियाणं कयसिर-तुंडमुंडणाणं अम्हारिसाणं पिकए "एरिसमकन्जमायरंति । अहवा को एत्थ एयाणं दोसो ?, ममं चेवे एसो पुवकयकम्मपरिणतिवसो पोग्गलाण परिणामो। ता अलं जयरम्मि गामम्मि वा पवेसेण | अजप्पभितिमरण्णम्मि चे णिवासोऽणुचिट्ठिययो" । ति मंतिऊण णियत्तो गोयरचरियाओ । गओ तुंगियाहिहाणगिरिवराहिट्ठियं सज्ज-ऽज्जुण-सरल-तमाल-ताल[विलमरण्णगहणं ति । तत्य य सुरसिद्धत्यकयरक्वाहि(वि)हाणो तवं काउमाढत्तो । ताव य पुनविणिवाइउचरियवेरिवग्गम्मि रायाणो मणिऊण सवणपरंपराओ विणासं जायवाणं, मरणं कंसारिणो, गिहीयदिक्खाविसेसस्स य वणणिवासो हलहरस्स, सबलवाहणा इंतुसुज्जया । एवं च मुणिऊण सिद्धत्थो गय-वरालय-सीहाइरूविणो विउविजण सावयगणे कयरक्खाविहाणो पडिजागरइ ति। १तनिमियलों जे । २ यमुवगओ सू । ३ 'कतिसंतई जे । । जसुल्लुचिसू । ५ 'लाइव्णा जे। कसब-सियाइंदिरा ७ परोप्परामुखिो कोतल जे । ८ कीय वि जे । ९ करयलिय सू । १० 'पवळेत जे । "मयरा सू । १२ 'राककोय जे।" पवहन्त स १४. कोलउ जे । १५ मस्स गलए संदाणिओ रज्जू सू। १६ एवं सू। १७ असिखला ले १८ एवंविहमको १५-२० चेय जे । २१ गुठिल । । Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९-५०-५१ अरिट्ठणेमि-कण्हवासुदेव-बलदेवबलदेवाण चरियं । २०९ अण्णम्मि दिणम्मि पहूय सयड-कम्मयरपरिवारिओ रुक्खच्छेयणणिमित्तं वच्छिदओ तमुद्देसमागओ जत्य घलएचसाहू राहिमुहसंठिओ काउस्सग्गेण चिट्ठइ । तओ दंसणसमणंतरमेव पणमिओ । 'धण्णो सि' ति भणमाणो पयत्तो समीवपायवे छेत्तुं जाव य भोयणवेला । दरछिण्णपायवस्म हेट्टओ चेव छायासु भोत्तुं पयत्तो [सह] कम्मयराइणा । तम्मि य अवसरे 'अस्थि पिंडसुद्धि' त्ति मुणिऊण ओसारिऊण काउस्सग्गं अणाउरं पश्यणुत्तेण विहिणा तओ 'सोहणं होहि' त्ति वच्छल्लयागयमुहज्झवसाणोवगयहरिणाणुगम्ममाणमग्गेण कओ सयलकल्लाणयारी धम्मलाहो । वच्छिदओ वि दट्टण मुगिवरं हिययभितरवियंभिउब्भडैभावणा-विणओ 'धण्णो हं' ति मण्णमाणो घेत्तूण पवरखंडखज्जयविसेसे दाउमभुजओ। ताव य काय-तालियाणाएण भवियव्वयाए य तारिसीए अयंडपत्रणपणोल्लियणिवडिएणं दरछिण्णतरुणा विणिवाइया सुहज्झवसाणा समयं चेय वणछिंदय-बलएव-हरिणा । सुभभावणोवगयमाणसा य समुप्पण्णा बंभलोयकप्पम्मि कंतप्पहे विमाणम्मि सुरवर ति । अओ उवरिं जं भणियं तमण्णासुं सवित्थरकहासुमवगंतव्वं ति । एत्य मुरा-ऽसुर-मु(ण)रचंचरीयपरिमलियचलणकमलेहिं । भववणघणडहणकरालसिहिसिहाबंधसरिसेहिं ॥३०२॥ जेहिं भवुन्भवविसहरविसजलणकलावकवलियं भुवणं । णिव्याविज्जइ वयणामओरुगलियंबुबिंदहि ॥ ३०३ ॥ अइयोरदुत्तरुद्दामणिरयपायालमूलणिवडन्तं । उत्तारिजइ भुवणं सणाणहन्थावलंबेण ॥३०४॥ इय तेहिं सुब्वया-ऽरिट्टनेमितित्थंकरेहि चंचइओ । संखेवओ महत्थो विसाहिओ एस हरिवंसो ॥३०५ ॥ इति महापुरिसचरिए तित्थपररिट्ठणेमिचरियं णारायण-बलदेवचरिएहिं सह संमत्तं ॥४९-५०-५१॥ :-x Jain Education deपरियालिभो । २ डणिन्भरं वियंभमाणभावणा सू । ३ सुरच जे । ४ व-बरासिंधुचरिजे। ५ सम्मत्तं स । Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [५२ बंभयत्तचक्कवाट्टिचरियं] नमो मुयदेवयाए ॥ उदओ सकम्मपरिणइवसेण बहुविहकिलेसलद्धो वि । होइ महापुरिसाणं पि गृणममुहप्फलविवाओ ॥१॥ अत्थि इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे णिरन्तरं वसंताणेयगाम-जयरा-ऽऽयरो वि मुक्को कलिकालकलंकप्पभिइदोसेहिं पंचालाहिहाणोजणवओ। तत्थ य तियसिंदाएसकारिवेसमणविणिम्मियविणीयणयरि व्च सयलगुणगणाइण्णं कपिल्लं णाम णयरं । तम्मि दरियारिमद्दणो खत्तियकुलणहयलमियंको पसाहियासेसछक्खंडभरहाहिवो षम्भयतो णाम चक्कवट्टी। __तस्स य दीहत्तणेण बारहजोयणप्पमाणा, वित्थरओ णव जोयणाणि णव महाणिहिणो, तं जहा-णेसप्पो पंडुओ पिंगलओ सबरयणो महापउमो कालो महाकाली माणवओ संखो त्ति । एएसि पुण इमे णिश्रीया-णेसप्पसयासाओ गामा-ऽऽगरणयर-दोणमुह-मडब-पट्टण-खंधाराण णिवेसो । तह पंडुयाओ माणुम्माणपमाण-धण्ण-बीयाण समुप्पत्ती । पिंगलाहिंतो पुण जा काई पुरिसाणं महिलाणं च रह-तुरय-करिवरादीणं आहरणविही सा समुप्पज्जइ । सन्चरयणाओ पुण एगिदिय-पंचेंदियाईणि चौदस महारयणाणि । महापउमाओ पुण रुइरवण्णसंपण्णपवरसुयउप्पत्ती । कालमहाणिहीओ कालोइए विविहसिप्पविण्णासविसेसे । महाकालाओ मणि-मोत्तिय-रुप्प-सुवण्णादीण संभवो । माणवाओ जोहावरण-पहरण-दंडणीई गयणीई य संशायइ ति । संवमहाणिहीओ पुण करणंगहारोववेयणट्टविही चउबिहकव्वुप्पत्ती य । सो य संखमहाणिही" अइरुग्गए कालायरबंधवम्मि दिणयरे समागंतूण कयदिव्वरूपविसेसो धरणियललुलंततारहारो पणमिऊण विण्णवइ-अज्ज अमुगं विहि दंसहस्सामि । त्ति भणिऊण पडिगए तम्मि तो राया कयमजण-भोयणावसाणो सुपसाहियणियमंदिरस्थाणिमंडवतलम्मि णिसण्णो 'पेच्छणयविही पलोइउं पयत्तो । बहुविहकरणंगहारविच्छई सयलदिटिकलियं जहक्कम संपाडिज्जंतचउबिहाहिणयं चलंतचारुचारी विसेसयं संभाविजन्तवियम्भियभावाणुभावं पेच्छिऊण कंचि वेलं जहारिहं सम्माणेऊण विसज्जियासेससामन्तलोए संखमहाणिही वि गओ णिययणिवेसं । राया वि कइयवहुपरिवारिओ उवहसियसुरसुंदरीयणगुण-सोहमंतेउरमुवगओ । कंचि वेलं पंडियगोट्ठीविणोएण गमेऊण राया पविट्ठो णिययावासभवणं । णिसन्नो पवरपल्लंके । ताव य- . णियजरढकिरणपसरंततावसंताविउ व्व सयराहं । अवरमहोवहिसलिलम्मि मन्जिङ विसइ दिणणाहो ॥२॥ अह अणिवारियपसरन्ततिमिरपन्भारभरियमहिविवरा । पैसरइ अंजणगिरिधूलिविन्भमा जामिणी सहसा ॥३॥ एवं च तमालदलसामलम्मि पसरिए तिमिरपैसरे पणट्ठालोए अत्थमुवगए ब्व जियलोए अप्पाणं पि करयलपरामुसण मुणिज्जइ । ताच य जाया य समुभिजंतचंदिमादरपणोल्लियतमोहा । ससहरगन्भट्ठियजणियपंडुवयण च पुन्वदिसा ॥ ४ ॥ उग्गओ य विमलदप्पणो ब्व दिसाविलयाणं सयललोयणाणंदो चंदो । तओ पवड्ढिए चंदिमालोए समुप्पण्णो व्व जियलोओ। ऊससियं गयणमंडलेणं । तयणंतरं च के वावारा वट्टि पयत्ता ? गुरुभत्तिपणामियपँवरसिरकरंजलिमिलंतभालयलं । पणमिज्जइ जिणवरचलणकमलमिह भबलोएणं ।। ५ ।। साहूहि दियससंजणियविहरणुप्पाइयाइयारेहिं । अणवरयं च पडिक्कमण-गिंदणादीणि कीरन्ति ॥ ६ ॥ तयणंतरपरिवढियसज्झायज्झाणवावडो अप्पा । संठाइ सदक्खक्खवियदुक्खलक्खो खमरिसीण ॥ ७ ॥ इय अवमण्णियसंसारदुक्ख-सोक्खाण मुणिगणिदाण । संजणियायलसिवसोक्खलंभगरुयाहिलासाण ॥ ८॥ १ 'नमो सुयदेवयाए' इति सूपुस्तके नास्ति । २ णव णिहिणो सू। ३ई रायणीई य सू। ४ 'कतुप्पत्ती जे । ५ ही पइदिणं भइरु जे । ६ ण दिव्य सू । . 'रूयवि जे । ८ पेच्छणविहिं जे । ९ रवित्थरं स जे । १० 'सामंतजियलोए जे । ११ वयपहुँ' सू। १२ पविसइ । १३ पयरे सू । १४ "पवरतरकं जे । १५ परियट्टिय जे ।। Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२ बंभवत्तजक्वष्टिचरियं । २११ अण्णे उण घणघणसार-घुसिण-मयणाहि-अगरपंकिल्ला । विसयमुहासालेसेण विप्पलद्धा किलम्मन्ति ॥९॥ कह चिय?विच्छोलिज्जउ बहलंसुसलिलकलुसीकयामलकवोलं । वयणं णिज्जियवोसट्टसरसदलकमलसोहम्गं ॥१०॥ संजमसु विमलमणिकुसुमदामसंवलियरंगतरलिल्लं । परिलुलियविरललम्बालयालयं तेणुइधम्मेल्लं ॥ ११॥ सुहिणकणासारकिलंतकमलदलगन्भविन्भमं सुयणु ! । दीहरसासा आयासधूसरं वहसि अहरदलं ॥ १२ ॥ एवं ससंकमणिकुंभविन्भमं सरसचंदणजलोल्लं । मुण्णइयविमलहोरोवहोयमह कीस थणवढं ? ॥१३॥ इय किं सुंदरि ! कुविया सि ?, साह मह कोवकारणं पसिय । दे! कुणसु कह वि मह रमणलालसं सुयणु ! अत्ताणं ॥१४॥ राया वि कयविविहकीलाविणोयविण्णासो पमुत्तो । ताव य सुयणरिद्धिदसणुप्पण्णमच्छरखलयणहिययं व फुट पहाभालं, पहाया रयणी, घडियाई चकायमिहुणाई । पढियं बंदिणा पैहु ! धुयकमलदलोहो मयरंदामोयवासियदियंतो । लंघियमलयवणन्तो वित्थरइ पहायसुहपवणो ॥ १५॥ ऐयं णिसामिऊण पडिबुद्धो राया। कयं गोसकरणीयं । णिवत्तियसयलरायकज्जस्स भुत्तुसरसमयम्मि पुणो पारदा पट्टविही । एवं चाणेण विहिमा गच्छन्ति दियहा । अण्णया य संखणिहिणा विणतं नहा-गराहिव ! अज्ज महुयरीगीयणामं पट्टविहि दसइस्सामि त्ति । राइणा भणियं-एवं भवउ ति । तओ अवरण्डसमये पारदा णविही । सत्य इमं गीययंपंवणुधुयकिसलइया भसलं गोमालिया पणोल्लइ व । पाडलपरिमलियंगउ, मा हु ममं संपयं समारूहसु ॥१६॥ उल्लसंतकुसु-मोहपरायपरत्तयं, लक्खिऊण णवमालियपाणपसत्तयं । गरहइ व्च कलकणिरपणामियचावयं, सिजिएहिं णियमहुयरिया भमरंधुयगाययं (१) ॥१७॥ एत्यावसरम्मि य ओलग्गाकएण एका दासचेडी उप्पाडे धाऊण कुसुमकरंडयाओ इंस-मिय-मयूर-सारस-कोइलकुलस्वयविण्णासपरियप्पियं सयलकुसुमसामिद्धसमिद्धं हरिमुल्लसंतपरिमलं सिरिवम्भदत्सराइणो सियकुसुमदामगंडं उवहवेइ । ती अउव्वविच्छित्तिणिम्मवियं तं कोऊहलेण कुसुमदामगंडं पलोएमाणस्स इमं च महुयरीगीयमायण्णमाणस्स समुप्पण्णो मणम्मि वियप्पो-अण्णया वि मए एवंविहसंगीओवलक्खिया णाडयविही दिवउच्चा, ऐयं च "सिरिदामकुसुमगंडं ति । एवं च परिचिंतयंतेण सोहम्ममुरकप्पे पउमगुम्मे विमाणे सुरविलासिणीकलिजमाणणाडयविही दिहा। मुमरिओ अत्तणो पुन्वभवो । तओ मुच्छावसमउलमाणलोयणो मुकुमारचणणीसहवेविरसरीरो तक्खणं चेव धरायलम्मि णिवडिओ ति। ता पुलएउं णिच्चलसरीरमालेक्खलिहियसारिच्छं । सहसा सव्वत्तो चेय परियणो संभमविओलो ॥१८॥ हा हा ! किमयंडवियंभमाणेऽचेयण्णकारणमियाणि ? । मलयरस-सिसिरघणसारमरहिणा णीरणिवहेण ॥१९॥ परिसिप्पइ करकयचडुलचामरुप्पण्णामिउसमीरेण । पडिवाइज्जइ पुणरुत्तपोत्तसंपायजणिएण ॥२०॥ इय गरवइसम्मोहेण वाउलो जाव परियणो होइ । अंतेउरं समंता ता तत्थ लहुं समल्लीणं ॥ २१ ॥ सोयाउलियहिययं च हाहारषसद्दबहिरियदियन्तं उर-सिर-पोट्टपिट्टणादीहिं अकंदिउं पयत्तं । तो विसण्णेसुं अमचाहिडिएसु सेवएसुं, किंकायचमूढेसुं सामन्तलोएमुं, अणवरयसरसचंदणजलदालिंगणेण चिरस्स सिसिरालिंगणेण य सत्यो जाओ। समागया चेयणा। सरूवओय विणिम्मियासणाबंधणधरणियलणिहित्तेककरजणियंगहारो बीयपाणिपल्हत्थियवयणकमलो, सलिलुत्तारियकलुयालओ व परिवेवमाणो, पुणो जोगि व कयणिच्चलावयवणिवेसो जाहे किं पि झाइउं पयत्तो ताहे साणुणयं परियणेण भणियं-णरवर ! कि कारणमेवं अप्पाणयमायासिज्जइ ? । तओ बम्भयत्तणराहिवेण मुमरियपुबभवभाइवइयरेण तयण्णेसणकजरहस्सं गोवमाणेण संलत्तं-एवमेव पित्तोदएण मह सम्मोहो जाओ। पुणो पुषोतं 'कह चियः इति सपुस्तके नास्ति । २ 'यतरंग सूजे । ३ तणुग जे ! ४ 'हारोविहोय स्। ५ बहु। सू। ६ एवं सू।। गोसम्गकरस। ८ पवणुदय जे ।९ गोमालई पणोलइ सू। १० हस्तद्वयान्तर्गतः पाठो जेपुस्तके नास्ति । "ख्यय स। १२ 'मसमिदस जे । १३ एवं स। १४ सियकुसुमदामगंडं ति जे । १५ 'गवेयलका स्। १६ संजाय जे । १७ 'कडयाळमोजे। Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१२ चउप्पन्नमहापुरिसचरियं । चेय सुमरमाणस्स मुच्छाओ समागच्छंति । तओ विसज्जिएमु समत्तसोमंताइलोएमुं, विरलीहूएसु पाडुएसं, अल्लीणो चिन्ताजलणिहिं-कहं पुन्वभवसहोयरेण सह दसणं होहि ? त्ति, सो वि बहुययरतवचरणतणुईकयकम्मपसरो सुदेवत्ते मुमाणुसत्ते वा भविस्सइ, तहिं पि जइ इह भारहवासे संभवो ता जइ पायालंबणोवारण तईसणं भवेज । त्ति चिंतिऊण भणिओ णियहिययणिबिसेसो वरधणू णाम महामच्चो जहा-लंबेऊण इमे तिणि सिलोगद्धे घोसावेसु णयरम्म तिय-चउक्क-चच्चरेसुं-जो एएसि सिलोयाणं चउत्थं पाययं पूरेइ तस्स राया णिययरंजद्धं देइ त्ति । एवं च पतिदिणं परत्तमाघोसणं । लंबिओ बहुमु पएसेसु पायो। __एत्थावसरम्मि.. चित्तो णाम अणगारमहरिसी गामाणुगाम विहरमाणो समागओ कंपिल्लपुरचरं । संपत्तो मणोरमं णाम उज्जाणं । तत्थ य एकम्मि विवित्ते पएसे अहाफासुयम्मि भूमिमाए ठविऊण पत्ताइयमुवगरणं परिसंठिओ काउस्सग्गेण पडिमाए । जाव धम्मज्झाणोवगो चिट्ठइ ताव य उज्जाणवालो गियकम्मवावडमणो पढिउमादत्तो लंबियपाययसिलोयद्धाणि दासा दसण्णए आसि, मिया कालिंजरे णगे । इंसा मयङ्गतीराए, चंडाला कासभूमिए ।। २२ ॥ देवा ये देवलोयम्मि अम्हे आसि महिड्ढिया। तो अणवरयमायण्णमाणस्स महरिसिणो बहुप्पयारं वियप्पं कुणमागस्स सचित्तसंवित्तीए सुमरिओ पुन्वभववइयरो। मुमरणाणंतरं च मुच्छावसणिमीलियच्छिजुयलो पवणुधुयबालकयलीदलमिव वेविरावयवो झत्ति महीयलम्मि णिवडिओ। तयावत्थं च पलोइऊण उज्जाणवालो ससंभमुन्भूयभत्तिणिब्भरयाए पयइकरुणयाए य समागंतूणं णिययंमुयसमीरणासासियं काऊण धरणियलमिलंतुत्तिमंगो पणमिऊण भणइ-भयवं ! किं तवचरणविसेसणीसहत्तणो किं वा पहपरिस्समेणं णिवडिया तुम्हे ?, किं वा जो अम्ह णरवइणो वाहिवियारो सो तुम्हाण वि?। तओ समासस्थचित्तेण मुगिणा भणियं-को तुम्ह णराहिवस्स राही? । भणियं च तेण-भयवं ! सो वि खणखणवियम्भन्तमुच्छापयंपमाणवरतणू ण गणेइ पणइणीजंपियाई, ण बंधुसंधारणाए मुह, ण मुहिसमागमेणं पि, ण गुरुयणवयणेणोवसमो, ण मलयसलिलसेएण समस्सासो, ण पियकलत्तालावणावगमो, केवलं चउद्दिसिं सुण्णतरलतारयं पलोएइ, इमं च पुण एत्य चोजं जं तालियंटसिसिराणिलेणावि मुच्छमावहइ, सरसचंदणजलेणावि परियप्पए, खणं खणं च सोयजलणजालाकरालियमिव तणुकंपेहि अत्ताणयं विहुणेइ । • इमं च णिसामिऊण मुणिणा भणियं-देवाणुप्पिया! किं णिमित्रं पुण तुमं एए तिष्णि सिलोयद्धे पुणो पुणो पदसि ?, किमेत्य कि पि कारणमस्थि, किंवा पत्थि ?त्ति। तओ एय" सुणिऊण पहरिसविसटुंतवयणकमलेण भणियमेएण-भयवं! एस राइणा पायओलंविओ, जो एयस्स चउत्यमद्धं पूरेइ तस्स राया णिययरजस्स अद्धं पणामेइ, ता भयवं ! तुम्ह चलैणकमलाणुहावओ ममं पि लच्छिसमालिंगणमुहं संपन्जउ ति, काऊण पसायं पूरह पाययं ति । मुणिवरेण भणियं-"गर्तेण देवाणुप्पिया ! इमं भणमु - इमा णे छट्टिया जाती, अण्णमण्णेण जा विणा" ॥ २३ ॥ तओ सो एयं लिहिऊण पत्तयम्मि पफुल्लवयणपंकओ गओ पत्थिवत्थाणि । राया वि पइदिणं आपाययालंबणदिणाओ सयलदिवसं "चेव पवरपंडियसहासु संठिओ अणेयसत्थत्यमुणियपरमत्थकइयणेण समं कव्वालावविणोएण चिटइ । तओ लद्धावसरेण य 'अम्हाणं पि कव्वं सुव्बउ' त्ति भणिऊण णिहुओ संठिओ । लद्धाएसो य पढिउं पयत्तो "इमा णे छट्ठिया जाई, अण्णमण्णेहिं जा विणा"। तो समायण्णमाणो "चेव णरवई मुच्छापयंपतरलियतणुविहाओ णिमिलंतलोयणो मउलावियत्रयणकमलो पुणो वि घरणीयलम्मि णिवडिओ । तओ खुहिया सहा, उच्छलिओ हलहलारावो । रोसारुणियलोयणेहि य रायपुरिसेहि 'एयस्स सामन्तलों सू। २ रज्वस्स अदं जे। ३ सु सपायओ जे । ४ वरम्मि जे । ५ "स्सग्गस्स सू। ६ विजे । ७। 'विसेसो सो सू। ८ तओ सत्थं सू । धुसाहारणाए सू। १. चंदणेणावि सू।" एवं स्। १२ चलणाणुहा सू । १३ गतुं सू। १५-१५ चेय जे । Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२ बंभयत्तचक्कवट्टिचरियं । २१३ एस वयणासणिणा मोहमइगओ णरवइ' त्ति भणमाणेहिं पुणो पुणो कर चलणचवेडाचमढणातीहिं दढं ताडिओ भणिउमाढत्तो-ण खलु मम कवकरणम्मि अन्वगमो, किंतु मम दुरासापिसाइयाकूडमंतो व लोहभुयंगमकरंडउ रिसिणा मम दिष्णो पाढविसेसो । तात्रय सिसिराणिलजलद्दापओएण समासत्थो राया । णिवारिओ पयपहारातीण उज्जाणवालो, भणिओ य-क्रिमेयं तुमए कयं सिलोयद्धमणेण वा केणइ ? । भणियं च तेण - पत्थिव ! ण मए कर्य, रिसिणा मे पणामियं । रोइणा भणियं कहिं कहिं सो मुणिवरो ? | इयरेण भणियं-मणोरमुज्जाणे । तओ रौइणा मउड विणा कडय-केऊरालंकाराइयं दिष्णं पारिओसियमुज्जाणवालस्स । दाऊण पयट्टो णियविहवसमुदएण साहुगो समीवं । कहं ? - सरहस मिलतसामंतपोत्तबहलुप्फुसन्तबाहजलो । वरवारविलयकरकलियचारु चमरुद्धयकलावो ॥ २४ ॥ चारुयकरिणिसमारूढमणहरंतेउराहरियपासो । पासपरिद्वियगंडयलगलियमयगलमिलंत भमरउलो ।। २५ ॥ परिमंदमंजुमंजीरघोससंगलियसंदणसमूहो । चलचमरकयाणणसोहतरल तोरवियह यथट्टो ।। २६ ।। पाइक्कचलणचप्पणत्रिसंखलुच्छ लियबहलहलबोलो । वरबंदिसद्दसुव्वंतचक्कि गुणगणकयासंसो ॥ २७ ॥ इयराओ णीहरइ बलभरुद्द लियकुवलयद्धंतो । सिसिरो व्व वेरिकमलायराण भरहाहिवो सहसा ॥ २८ ॥ अत्रिय उब्भडपुंडरीयपरिपंडुरफुडडिंडीरपिंडओ, दरियतुरंगत्रग्गिरुव्वेल्लियगहिरतरंगचंडओ । गुरुकरिमरपहरपक्खो हियणरवरदच्छमच्छओ, कयकल्लोल बहलबलजलभरपूरियधरणिकच्छओ ॥ २९ ॥ बंदिणजयकल्लोलओ, वेलाउलए व्व साहुमूलयम्मि । अल्लियइ भरहणाहओ, रयणायरओ व्व रयणएर्हि जुत्तओ ॥ ३० ॥ पत्तोय सपरिओसो साहुसमीचम्मि । मणिमउडणिहसंमैसिणियपाय पंकरण पणमिओ । पणामुहिओ य थुणिउमादत्तोजय विच्छड्डिय संसारवासवासंगकारणाणन्त ! | जय सयलबंधुनेहोहणियलणिद्दारणसमत्थ ! ॥ ३१ ॥ जय दुद्धरधरियतवोविहाणकयतणुयकम्ममलपडल ! | गरुयाभिग्गहधारणकिसीकयाणंगसंगुग्ग ! ॥ ३२ ॥ दुव्वारकसायकिलिस्समाणभव्त्राण कयपरित्ताण ! । हिययपसरन्तझाणग्गिदड्ढविसयासवाबंध ! ।। ३३ । इय पुप्फवतीपण मणहरंतेउरेण परियरिओ । पणओ णमन्तसामन्तमउलिमालं महीणाहो ॥ ३४ ॥ पुणो पुणो बहुभत्रसंभूयसंभरियसिणेहपसरो छिष्णमुत्तावलीगलं तमुत्ताहलविन्भमाई मुयन्तो दूसहपियत्रिओयजैणिArt and बहलंसुसलिलाई परुष्णो णराहिवो । तओ देवीहिं संलत्तं णरणाह ! किमेयमकयपुत्रं तुम्हाण ववसियं ? । ओ संवरियबाहपसरेण भणियं राइणा-देवीओ ! एस मे भाया होइ। ताहिं भणियं कहं चिय ? | पत्थिवेण भणियंएस चैव भयवं तुम्हाण साहइस्सइ । तओ णमन्तकण्णकुवलयरयारुणियचलणजुयं पणमिऊण देवीहिं पुच्छिओ साहूभयवं ! जहट्ठियं सीसउ अम्हाणं ति । तओ सजलजलहररवाणुयारिणीए भारहीए भणिउमाढत्तो साहू-संसारम्मि वि कारणमण्णेसियव्वं, जेण सुव्वउ, बहुजाइ-जरा-जम्मण-मरणुव्वत्तणपरंपराकलिए । बहुविहविहडण संघडणजणियपियविरहसंजोए ॥ ३५ ॥ सुर-मणुय- तिरिय-णारयसकम्मपरिणामजणियजम्मम्मि । राय- त्रिरायंतरसंपडन्तसुह- दुहविसेसम्मि ॥ ३६ ॥ पिय-मय-भाय भइणी-भज्जामायण्डियाए णडिएहिं । बहुसो पेरिहिंडं तेहिं तम्मियं जंतुहरिणेंहिं ॥ ३७ ॥ इय बहुसो संसारम्मि वियरमाणाण कम्मवसयाण । सुहि सत्तु - मित्त- पुत्तत्तणाई जीवाण जायन्ति ॥ ३८ ॥ अण्णं च भूय-भविस्समाणघणपाणिदुहुब्भडणिबिडभुत्रणए, पयणुकु सग्गलग्ग जलबिंदुचलोवमम्मि जीविए । कुत्रियकथंतवियडमुहकंदरकवलियजंतुणिवहए, बहुयरवाहित्रिविहसंजोयत्रिणासियसुहसमूहए ।। ३९ ।। १ राहिवेण भजे । २ गरवणा जे । ३ मसिणिकयपाय जे । ४ गतुंगग्ग ! सू । ५ जणयाई जे । ६ कहि जे । जे । ८ 'माइ भाइ' जे । ९ परियहंतेहि सू । For Private Personal Use Only ७ तुम्ह सा Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१४ चउप्पन्नमहापुरिसचरिय। जो दीसइ मोसग्गए, दिणावसाणम्मि णेय सो पुणो वि । अच्छउ ताव पोसओ, विचित्तचरिओ हु एस जियलोवो ॥४॥ ___ता एरिसम्मि असारे संसारवासे ण दुल्लहा पिइ-माइ-पेत्ताइसंबंधा। जहा य एस मे बंभयत्तराया सहोयरो संजामी तहा साहिप्पमाणं णिसामेह___ अत्थि इहेव जंबुद्दीवे दीवे सुदंसणो णाम जणवओ। तत्थ महुमईणिण्णयातीरम्मि सिरिदहो णाम गामो। तत्य संडिल्लायणो णाम बंभणो । तस्स जसमती णाम दासी । सा य तस्स इच्छाणुवत्तिणी विणीया य । तो तेण विणीयत्तणजणियगुणगणाणुरायक्खित्तहियएण सच्चेय भारिया क्रया, अहवा-- एस चिय पेम्मगती अणवेक्खियदोस-गुणवियारम्मि । णियडम्मि लहुं लग्गति वल्लि ब्व वियंभियप्पसरा ॥४१॥ एवं च वच्चंति दियहा । जाया य तीसे अम्हे दुवे वि जमलत्तणेण । अइकन्ता बालभावं, जोलणं समणुपत्ता। तओ अम्हेहिं सो संडिल्लायणो विणयवित्तिं कुणमाणेहिं तोसिओ भणति जहा-णिफण्णेसुं सालिप्पमुहेसु धण्णविसेसेसं तुम्ह जणणीए मत्थयधोवणेण मोक्खणं करिस्सामि, तुम्हाण वि सुकलत्तसंजोयणं ति । तओ तेण अम्हे विसयमुहासापडिबंधेण णडिजमाणा ण गणेमु रतिं ण दिणं, ण सीयं ण उण्हं, ण मुहं ण दुक्ख, ण छुहा ण पिवासा, ण बद्दलं, ण परिस्समो मलपडलपंकंकियतणुणो उधुंधुलणिबद्बुद्धसिरोरुहा कढिणत्तणफुडियखरफरुसकर-चरणा सव्वायरेण कम्म काउमाढत्ता । तत्थ भुंजामो, तत्थ य वसामो। ___ अण्णया य सरयसमयम्मि दूण्णमन्तजलहरंधारियदिसं वियडतडिच्छडाडोवुत्तस्थपंथियं भणवरयणिभरासारयोरधाराणिरुद्धलोयणालोयं 'दिसिविदिसिसुरचावखंडमंडियणइंगणं ब्रहुपयभसरिजमाणणिणयं प्रवत्तं बद्दलं, जेण खड्डोलओ विजलणिही, वहोलिया वि महाणदी, णियडं पि दूरंतरिय, अप्पाणयं पि परायचं लक्खिज्जइ । तओ अम्हे दुद्धरजलधाराधोरणीसाबुद्धयसरीरा पहम्ममाणा बद्दलेण गुरुचिखल्लखलियगमणामग्गा छेत्तासण्णपरिसंठियं णग्गोहमहातरुयरमल्लीणा। णिसण्णा तस्स मूलम्मि दो वि जणा। तो अम्हाण जियलोउ व्व अत्यमइगओ सहस्सकिरणो, कम्मपरिणइन्च पसरिया संशा, खलमुहमंडलं व अंधारियं णहयलं, कालरत्ति व पवियंभिया तिमिरपत्यारी । तस्य य णिहावसमउलमाणलोयणा पलोइउं पयचा। तो तबिहभवियव्ययाणिओएणं बड़कोडराओ णिग्गंतूण डको इं भुयंगमेण । सो वि मण्णेहमूढमाणसो उबलम्भणिमित्तं इओ तओ पक्खित्तकरयलो खइओ तेणेवाहिणा। तओ अम्हे किंकायबविमुहिया दुद्धरविसपसरन्तविसपसरायत्ततणुणो आवेयवेल्लन्तथोरीकयजीहाविहाया मउलमाणलोयणा वयणन्तरेणीसरन्तलालाविला पणट्टचेयणा संजाया जगणीए व णिवडिया महियलुच्छंगे, विमुक्का जीविएणं ति। णियविसमकम्मकन्तारगहणपडिओ कुरंगपोओ च । को कैवियकालकेसरिकमागओ चुकए जंतू ? ॥ ४२ ॥ सुह-दुक्खपरिणईवसविसेससंपायणेकरसियाण । कम्माण पलायइ को व अत्तणो संविढत्ताणं?॥४३॥ जं जत्व जेण जइया पावेयव्यं मुहं व दुक्खं वा । करहं व रज्जुगहियं बला तहिं गति कम्माई ॥४४॥ इय एव अम्ह णियकम्मपरिणतीवसवियम्भिए मरणे । णिययभवियव्वयाए असमजियकुसलकम्माण ॥ ४५ ॥ एवं च णिययाउयावसाणे कालं काऊण समुप्पण्णा कालिंजराहिहाणे णगवरे मैतीए [गन्मम्मि ज़मलत्तणेणं, जाया य जहकमेण । अह तबिहतिरियत्तणजाइम्मि वि जणियलोयणाणंदं अचन्तमणहरं जोवणं अम्ह संजायं । तओ जणणीए समयं वियडगिरिणिगुंजोयरेसु जैच्छंदलीलं हिरामो । तओ अण्णम्मि "दिणे वेत्तमतीणतीए तण्हुण्हपरिस्समायासियसरीरा सव्वओ य तरलतारयं पलोएमाणा समोइण्णा जलं पाउं । पीयाणन्तरं च समुत्तरंताणं परिणिबिडकुडंगंतरियतणुणा पुबवेरिएणेव चंडकोयंडायड्ढिउम्मुक्केकबाणेणं समयं चेव मम्मपएसम्मि पहा लुद्धएणं । तो दढप्पहारत्तणओ वयणविणिन्तरुहिरप्पवाहा खरवियणावसवेवन्ततणुणो विरसमारडिऊण णिवडिया महीए । तओ मुच्छाइयमहाकिलेसमणुहवन्ता विमुक्का जीविएणं ति। १ पुत्ताइणो संजे । २ तीए जे । ३ तुम्हाण जे । गणेम जे । ५ दिसिदिसि स्। ६ तस्स पायमूलम्मि स । ७ ताब य अम्हाण जे । ८ गहतरालं जे । ९ 'माणमग्गालोयणा जे । १० पलोविउं सू । ११ रनोहरंतकुलाला जे । १२ कुइय जे । १३ मृग्याः । ११ यच्छंद सू । १५ दियहे जे ।। १६ 'यमुक्तक सू । Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२ बंभयत्तचक्कवट्टिचरियं । २१५ अट्टवसदृत्तणओ मया समाणा विविहफल-कुसुमसुहए मयंगतीरद्दहोवकंठे समुप्पण्णा एकाए हंसीए जमलत्तण गन्मम्मि । जाया य जहाणुक्कमेण, संपत्ता जोव्वणं । तओ तम्मि चेव महदहे कीलमाणाण जन्ति अम्ह दियहा। अण्णया य तहाविहभवियव्वयाणिओएण पावकम्मयारिणा साउणिएण एकाए चिय पासियाए ज्झ त्ति 'दो वि गेण्हिऊण करयलवलणुव्वेलियकंधरापओएण विणिवाइया समाणा समुप्पण्णा कासिगाविसए वाराणसीए णयरीए महाधणसमिद्धस्स सयलपाणाहिवइणो भूयदिण्णणामस्स अणहियाए मायंगपरिणीए गम्भम्मि जमलसुयत्तणेण । जाया य कालक्कमेण । कयाई णामाई-मज्झ चित्तो, बम्भयत्तस्स संभूओ त्ति । मज्जग-भोयणाईहि परिवड्ढमाणा जाया अट्ठवरिसा। तस्थ पुरवरीए अमियवाहणो णाम राया। तेण य पहाणावराहसंभाविओ सच्चो णाम पुरोहिओ संजायतिव्यकोवेण य दिवसावसाणे पच्छण्णवज्झत्ताए समप्पिी अम्ह पिउणो भूयदिण्णस्स । तओ संवुत्ते बहलंधयारे सुयसिणेहेण भणिओ अम्ह पिउणा-जइ मह एए वाले गेयाइसयलकलाकलावपारए कुणसि तो पच्छण्णभूमिहेरपरिसंठियं परिरक्खेमि अहयं, अण्णहा णत्थि ते जीवियं ति । पुरोहिएणावि जीवियत्थिणा तहेव पडिवणं । तओ समप्पिया अम्हे । पयत्तो सिक्खवेउं । तओ अम्हाण जणणी गोरवेण पहाण-भोयण-चलणसोयणाइयं तस्स सरीरत्थिई निबत्तेइ । वच्चंतेसु य कइवयदिवसेसु बलवत्तयाए इंदियाणं, दुन्निवारयाए मयरकेउणो, आसण्णयाए पेम्मसमुदयस्स, चडुलयाए महिलासहावाणं, तस्सेय संपलग्गा । एवं च अम्ह जेहाणुगयमाणसेण जाणमाणेणावि ताव ण किंचि जंपियं जाव अम्हे सयलकलाकलावपारगा संजाय त्ति। तओ पच्छा मारिउं ववसिओ मम(अम्ह) पिया। तओ अम्हे हि 'उवज्झाओ' त्ति काउंणासाविओ संतो पच्छा 'हत्थिणाउरे णयरे सणंकुमारस्स चक्कवट्टिणो अमञ्चत्तमुवगो । अम्हे उण रूप-जोव्वण-लायण्णाइसयगुणसंजुया वाराणसीए चेव तिय-चउक्क-चच्चरेसुं विजियकिण्णरमिहुणमहुरगेयझुणिणा सयलं पुरलोयं विसेसओ महिलायणं गोरीदिण्णकण्णहरिणं व वसमाणेमागा जहिच्छं विलसामो । तो पुरचाउव्वेजेहिं रायाणं विष्णविय निवारिओ अम्ह णेयरीपवेसो । अण्णया कोमुइमहूसबम्मि सुहसयलजणवयाणंदमुंदरं रइयरुइरणेवच्छं बहुपेच्छणयं पेच्छामु जाव णिययं संकोहल्लं ताव य कोल्हुयाणं व अण्णकोल्हुयरसियं मंजिऊण वयणं विणिग्गयं गेयं । तो पच्छाइयतणुणो एकपएसम्मि गाइउं पयत्ता । गीया य इमा गाहा जो जम्मि चेव जायम्मि होइ णियकम्मपरिणइवसेण । सो रमई तर्हि चिय तेण अभयदाणं पसंसति ॥ ४६॥ तओ तमायष्णिऊण सुइसुहयगेयं समंतओ परिवारिया पेच्छयजणेणं कड्ढिऊण वरिल्लाइं पलोइया पञ्चभिण्णाया य। तओ ' इण हण इण' त्ति भणमाणेहिं णिच्छूढाणेयरीओ। तओ "जइ कह वि राया जाणिही "तो णिस्संसयं 'मतीयआणा लंधिय' त्ति कैलिऊण पाणावहारं करिस्सई" ति तओ पलाणा अम्हे । गंतूणं च जोयणमेत्तभूभागं गुरुणिन्वेयमाणसा कयमरणववसाया गिरिवरमेगं समारूढा। तत्य य विमलसिलायलणिविट्ठो सयलसुमुणिगुणगणालंकिओ उत्रसमाणुहावागयहरिणउलसेविजमाणचलणसमीवो सुर-सिद्ध-विजाहरऽच्चियचलणजुयलो धम्ममाइसमाणो दिट्ठो साहू । कहं ? जहा पाणिणो अणिम्गहियकाम-कोह-लोहाइणो विसंखलपयत्तपंचिंदियप्पसरा सदाइसयलविसयवासंगसंगया अमुहकम्ममन्जिणन्ति, जह य समज्जियासुहकम्मुणो दुरुतरणरयणिवडिया कर-चरण-कण्ण-णासावकत्तण-तणुच्छेयण-भेयणाइयाओ वियणाओ अणुहवंति, जह य तिरियतणम्मि डहणं-उंकण-फालण-वाहणाइयं दुक्खमणुहवंति, जह य कयमुकयकम्मुगो. समुप्पण्णा सुरगणेसुं समीहियमेत्तसंपत्तसयलिंदियसुहप्पसरं पवरमुरसुंदरीजणियमणहररइसुहविसेसं सोक्खमणुहवन्ति, जह य णिवियदुदृढकम्मट्टिइपमुक्क १ दोहि वि सू। २ वाणारसीए जे । ३ संवत्ते सू । ४ कलापारए सू । ५ हरसंठियं जे । ६ कलापारगा जे । ७ 'चत्तणमु जे । ८ वाणारसीए जे । ५ णयरीए पंसू। १० सकोउहलं जे । ११ गाइयं जे । १२ पुरीओ जे । १३ तओ सू । १४ कलिउ जे। Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१६ चउप्पन्नमहापुरिसचरियं । केम्मकलंकका जाइ-जरा-मरणसोयप्पसररहियं सित्रमयल मैरुयमक्खयं मोक्खं पार्श्वेति । तत्थ य गयाणं ण पहवंति जम्म- जरा मरणाइणो उत्रद्दवा, गण्णहा पाणिणो सुहं ति । एवं च धम्मसन्तं साहुं दटठूण संजायामलवेरग्गा पडिबुद्धा अम्हे । अवगओ य भगत्रया पणीओ धम्मो । तओ वि साहुसिद्धाओ सुमरिऊण अद्वपत्रयणमायाओ, उवहारिऊण पन्त्रयासण्णणिवेसाओ रयहरण-पडिग्गहाइयं [? पव्वइया ] | तओ छ- म दुवालसमास-ऽद्धमासखमणाइयं तवोविसेसं कुणमाणा गामाणुगामं विहरिउमादत्ता । सिट्ठी य साहूहिं जगियाणुकंपेर्हि छज्जीवकायरक्खणाइओ समायारो । विहरमाणा य संपत्ता हत्थिणाउरं णयरं । ठिया जिष्णुज्जाणम्मि । अण्णा मौसखवणावसाणे पारणयणिमित्तं संभूओ पविट्ठो णयरं ति । उज्झियधम्मियमण्णेसमाणो गेहाणुगेहूं पस्थिओ । दिट्ठो य निययगेहाओ णिग्गएण गामंतरं गंतुकामेण राइणो पुरोहिएण । 'अमंगलं' ति कलिऊण दर्द कसप्पहारेण ताडिओ । तओ तवसोसियत्तणओ सत्तस्स, छुहाकिलामियत्तणओ सरीरयस्स, सीह ( द ) तणओ जंघियाणं, daमाणसरी सत्ति धरणीयले णिवडिओ । तौत्र य 'हा ह' त्ति भणमाणो मिलिओ तहिं जणवओ । 'अहो कह पेच्छ खलीकओ महातवस्सी?, अहवा जइ एयस्स तवसामत्थं होन्तं ता एसो पुरोहिओ तक्खणं चेय विणासं पाउणतो । णिरत्थओ एयस्स दुक्करतैवपरिकिलेसो' त्ति । तओ पडवाएण व ताण वयणेण संपत्तवेयणो कुविओ पुरोहियस्सुवरिं । कोकरालिज्नमाणदुपेच्छच्छेण य विमुक्का तण्णिहणणणिमित्तं तेउलेसा । सो ण दीसइ चि, 'णगरे डज्झमाणे सो वि ज्झिस्सइ' त्ति परियालियं णयरं । बहलधूमपडलए णिरुद्धो जणाण लोयणप्पसरो, वियंभियमंधयारं । ओ गौरा मुणिऊण महरिसिणो कोवविलसियं सपरियणा पसाएउं प्रयत्ता । सर्णकुमारराया वि पसायणत्थं तत्थाऽऽओ । जाहे पसाइज्जमाणो वि ण पसज्जइ ताहे जणरवाओ मुणिऊण वइयरं गओ हं तस्स समीवं । जिणधम्मभणिण विहिणा सामपुत्रयं मया भण्णमाणो कह कह वि उवसमं गओ, समासत्यो चित्तेणं, समागया संवेगवासणा । 'अहो दुकयं कयं' ति भणंतो उट्ठओ तप्पएसाओ । गया य तमुज्जाणं । तणिमित्तवेरग्गाइसहि य निव्विष्णजीविरहि विरचसंसारवासेहिं कयं पाओगमणं । ताव य सणकुमारचकवट्टिणा मुणिऊण पुरोहियवत्तंतं कयगरुयकोवेण संजमिऊण दददीहरज्जुपासेहिं पेसिओ अम्ह समीवं । 'किमेयस्स कीरउ ?" ति पुच्छियं । तओ पुलोइओ अम्हेहिं पञ्चभिष्णाओ य - 'अए ! एस सो सच्चो अम्ह उवज्झाओ' ति मोयाविओ भणिऊण रायपुरिसे— पार्क कुणमाणस्स विण कैंया वि कुणन्ति साहुणो कह वि । इहें कीरन्तं पावं पुणो वि समहिहए पुरओ ॥४७॥ तओ अहिययरं संभाविज्जमाणसंसारसहावा पयत्ता धम्मुज्झाणं झाइउं । एत्थावसरम्मि य विहरमाणो समागओ एत्थ एगो साहू । ठिओ तम्मि उज्जाणे । तात्र य साहुसमागमणमुणियवुत्ततो विणिग्गओ सपरियणंतेउरो राया वंदण णिमित्तं । वंदिओ साहू । णिसण्णो पायमूलम्मि । पत्थुया धम्मदेसणा । कहिओ जीवा-जीवाइपयत्थवित्थरो धम्मो ।कहावसम्म पुच्छिओ भरहाईण चकहराणं विश्ववित्थरो । साहिओ साहुणा पवयणाणुसारेणं । वंदिऊणोविट्ठो राया, महिलारयणं सुणंदा, सुभद्दाप मुहं च अंतेउरं । चकहराणुमइणा णियभत्तित्तणओ य णिज्जियसुरविलयाविलासमखिलामलपैओगसंजुयं णट्टविहिमुवदंसिय णमंसिऊण य महामुर्णि गयमंतेउरं । अम्हे वि समाहिणा कालं काऊण सोहम्मे कप्पे णलिणिगुम्मे विमाणे उववण्णा देवत्तणेण । तत्थ य पत्ररविलासिणीकडक्खक्खित्तमाणसानं जहिच्छियदियविसयसुहमणुहवामो । कम्ममलकलंका जे । २ स्वम सू । ३ संजाया धम्मुवरि जिष्णासा, परिबुद्धा य भम्हे सू । ४ मासखममा जे । ५ ओ जंधियाणं च खीणयाए देवमा' खू। ६ तभो 'हा सू । ७ खलीओ जे ८ तवस्स साम सू । ९ तवकिलेसो सू । १० डसहित जे । ११ 'धूमबडेण णि' जे । १२ णायरया जे । १३ पलोइओ जे । १४ कमाइ जे । १५ इय सू । १६ सुनंदापमुहं जे सुभद्दाहंसू । १७ ओगयं गट्ट सू । १८ "याणिदियमिदियसुहं अह अह जे । Jain Education international Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२ बंभयत्तचक्कवहिचरियं । २१७ तत्तो य णिययाउयक्खएणं चुओ समाणो हं पुरिमतालणयरे गुणपुंजयाहिहाणस्स सेविणो णंदाए परिणीए समुप्पण्णो कुच्छिम्मि, जाओ कालकमेण, संवढिओ देहोवचएण, संपत्तो जोवणं । तओ अहं अणहेमु वि सयलिदियस्थेसु, साहीणेमु वि विसओवभोगेसु, असज्जमाणो सोऊण धम्मं साहुसमीवम्मि पन्चज्जमभुवगओ। विहरमाणो य इहइं संपत्तो। एस्थढिएण य उज्जाणवालवयणाओ पाढविसेसं सुणिऊण जातीसरणमुप्पणं । ता ण याणामि 'छट्ठीए जातीए विओओ कहमम्ह जाओ?" ति।। ___ बंभयप्तेग भणियं-"भयवं ! अहं जाणामि । तम्मि अबसरे साहुणो सयासाओ भरहाहिवईणं चकहराण रिद्धिवष्णणमायण्णिऊण सुणंदासणारं अंतेउरं पुलोइऊण धीदुब्बलयाए 'सलाहणीओ चक्कवट्टिविहवो ममं पि एस संपज्जउ चि जइ इमस्स तवस्स किंचि सामत्थमत्यि' [त्ति] हियएण चिंतिऊण कयं णियाणं ति । तओ ण पडिकतो तयज्झवसायाओ, ण गिदिओ णिययाहिप्पाओ, ण गरहियं हियएण, णियाणबलवत्तणो कालं काऊण इहइं समुप्पण्णो । परिणयं छक्खंडभरहा हिवत्तणं । संपत्ता सुरवरसमाणा रिद्धी । ता तुम्हाणं पि अज्ज वि अहिणवं जोवणं, कालो रइविलासाणं, कीरन्तु सकामा कामा । ते य संजणियसयलिदियत्या संपर्जति संपय साँहीणे ममम्मि सेहोयरे । घेत्तूण रह-तुरय-गईदाइयमद्धं पुहइरजस्स विलसिज्जउ जहिच्छं, लालिज्जउ तवविसेससोसियं सरीरमण्ण-पाणाईहिं, पीणिज्जंतु सयलिदियस्था, सेविजंतु सद्दाइणो विसया, संतोसिजउ भयवं मयरद्धओ । पच्छा वयपरिणामम्मि पुणो वि पध्वज गेण्हसु ति । अण्णं च को तीए गुणो मणुयाण मणहराए वि रायरिदीए ? । जत्थ परमत्थबंधवजणस्स सोक्खं ण संजणियं" ॥४८॥ तओ एयमायण्णिऊण साहुणा भणियं-"भो णराहिव ! संझारायजलबुब्बुओवमे जीवियम्मि कस्स विवेइणो भोयणं पि रोयउ ?, रमियब्वयं तु मणहरभोएहिं दूरे चिय ताव चिट्ठउ त्ति । अण्णं च तणसिहरलग्गसिण्हातुसारतरला इम च्चिय जणेइ । लच्छी पवरवियप्पाण शृणमसइ व्च वेरग्गं ॥ ४९॥ घणघडियविहडियण्णण्णवण्णरायाण तणुइजुबईण । सुरघणुरेहाणं पिच पडिबंधं कुँणउ को व बुहो? ॥५०॥ अणभिप्पेयम्मि वि संघडंति विहडंति सम्मए विजणे । चलविज्जुविलसियाई व णेय पेम्माइं वि थिराई ॥५१॥ इय मुणिऊणेवंविहमसारसंसारविलसियं सहसा । अथिरम्मि विसयसोक्खम्मि भणह कह कीरउ थिरासा ? ॥५२॥ तहा जं भणियं 'अज्ज वि अहिणवं जोव्वणं' ति तं णियच्छमजिणवयणमुणियतत्ताण सयलकिरियाकलावसंजत्तिं । संजणइ जोवणे चेव संजमो बलसमत्याण ॥५३॥ 'कालो रइविलासाणं' तिजं भणियं तं पि सुबउबहुसुक्कपंकरुहिरालयम्मि बीभच्छदंसणिजम्मि । पमुहरसिए रइमुहे विरामविरसम्मि को राओ ? ॥ ५४॥ जं भणियं 'कीरंतु सकामा कामा' तत्थ वि सुणसु कारणं तिखणसंघडंत-विहडंतकयपरायत्तकारणसुहासा । बहुजणियविप्पलंभा छलंति कामा पिसाय व्व ॥ ५५ ॥ जं च भणियं 'ते य मैंमम्मि सहोयरे साहीणरज्जे संपज्जन्ति' तिरजं पि चलं जइ कह वि जणइ जणियाहिमाणसोक्खाई । एकम्मि चेव जम्मम्मि णेइ णिहणं भवसयाई ।। ५६ ॥ जंच भणियं 'विलसिज्जउ जहिच्छं' तिके व विलासा पसरियसहावदुग्गंधगंधदेहाणं । मणुयाण कारिमाणियसरीरसोहाण मणुयत्ते ? ॥ ५७ ॥ जं च भणियं 'लालिज्जउ सरीरयं' तं पि सुबउदेहेण णिसण्णासण्णवाहिवियणाकयंतकलिएण । धुवमधुवेण लब्भइ मोक्खसुई कि ण पज्जतं? ॥ ५८ ॥ 'पीणिज्जतु सयलिंदिय' त्ति जमुल्लवियं तं पि सुण जमुवगओ सू। २ छट्टियाए जे। ३ मम्हाण जाओ जे। ४ सुभद्दास सू । ५ पलोएरण घिदुच जे । तस्सऽज्यवसू। . साहीणं जे । ८ मम पि सूजे । सहोयर जे। १० तणुतणसिहागसिहा जे । ११ तयणु(णुयोजुसू । १२ कुणइ जे। १३ 'ति ण पंडति संजे। १४ ममं पि सूजे । Jain Education Interfonal Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१८ चउप्पन्नमहापुरिसचरिय । कह कह वि पराहेतो?यत्तो) पयत्तसोक्खाणमिदियत्याण । अप्पायत्तं कयकुसलकारि को मुयइ मोक्खसुई ? ॥ ५९॥ ‘सेविजंतु सदाइणो विसय त्ति जं भणियं तं पिणियच्छपरिभोयमेत्तसंकंतविसविवायं व तक्खणं जंतू । आसीविसो न विसया सेविजंता खयं गति ॥ ६०॥ जं च भणियं 'संतोसिजउ भयवं मयरद्धओ' तं पि सुबउजस्स ण संतोसो वरविलासरसियाहिं सुरपुरंधीहि । सो च्चेय कह णु मयणो माणुसभोगेहिं तिप्पीही?॥ ६१ ॥ जं च भगियं वयपरिणामे पबजं गेण्हमु ' ति तत्थ वि अस्थि कारणंजे अत्थ-काम-धम्मा काउं तरुणतणम्मिकी(ती)रंति। परिणयवयस्स ते चेत्र होति गिरिणो ब्व दुल्लंघा ।। ६२॥ अवि यजलणस्स दारुणिवहेहिं णेय, जह जलगिहिस्स सलिलेहिं । तह संतोसो ण हु होइ जंतुणो कामभोगेहिं ।। ६३॥ अण्णं चजत्तेण सेविया वि हु जायंति पमायलद्धमाहप्पा । भोया भोय व फणीण जंतुणो जीयणासाय ॥ ६४॥ पढम जणंति सोक्खं साउत्तणजणियमणहरं भोया । किंपाकफलासाइयरस व्व पच्छा विणासंति ॥६५॥ आइम्मि सयलरसवंजणेहिं जुत्तं पेयड्ढियपमोयं । पाणहणं परिणामम्मि विसयसोक्खं विसणं व ॥ ६६॥ । इय अत्थिरेहिं पत्थिव ! इमेहिं संसारहेंउभूएहिं । तुझ वि भोएहि ण किंचि कारणं कुगसु जइधम्म" ॥ ६७॥ तो एयमायणिऊण बम्भयत्तेण भणियं-भयवं! मया बहुकिलेसेहिं पाविया इमे भोया, ण सक्कुणोमि परिचइउं । साहुणा भणियं-कहं तुमे दुक्खेहि लद्धा । णरवइणा भणियं-भयवं ! संजोय-विप्पभोयाइयं जमणुभूयं मए, जं दिहं, जं वा णिसुयं, तं जइ वि साहिप्पमाणमप्पणो लाइवमुप्पाएइ तहा वि तुम्हारिसेमु साहिप्पंतं ण जणेइ लाघवं, ण परियट्टए लज्जं, ण कुणइ अववायं, ण संजणइ अयसं ति । अॅवि य- . णियअणुहूयं जइ नि [हु] साहिप्पंतं जणेइ लहुयत्तं । तुम्हारिसेसु वरमुणि ! तं चिय गुणकारण होइ ।। ६८॥ ता मुंणसु संपयं ति इहेच कंपिल्लपुरवरे विणियासेससत्तुसंताणो अणिप्फलकोव-परिओसो अम्ह पिया बंभो णाम राया आसि । तस्स अच्चतुत्तिमवंससंभूया महारायाणो चतारि आसि मित्ता, तं जहा-कासीसियाहियो कडओ, गयपुरवती करेणुदत्तो, कोसलविसयौहिबई पुप्फचूलो", चंपाहिवई दीहो त्ति । ते य अच्चंतमित्तत्तणो विमओयभीरुयाए सैमुदयाए चेव परिवाडीए चउसु वि रज्जेसु संवच्छरमेक्केकं विविहकीलाविलासेहिं चिट्ठति । सरइ संसारो। __ तओ अण्णया पंभराइणो धुलणाए महादेवीए चोइसमहासुविणसंसूइयचकवट्टिणामो संभूओ अहं गन्मम्मि। जाओ कालकमेण । वढिओ देहोवचएणं कला-गुणेहिं च । तओ बारससंवच्छरमेत्तस्स कालगओ मे पिया । कयं पिउवयंसएहि मैयकिच्चाइयं । तओ कडयाइणो पिउमित्ता परोप्परं भणिउं पयत्ता एवं-जाव एस बंभयत्तकुमारो सारीरबलोववेओ होइ ताव परिवाडीए अम्हाणमेक्केको इमं रज परिवालउ । ति मंतिऊण सम्मएणं दीहो ठविओ । अण्णे उण सरन्जॉइं गया। गएमु य तेसु सो दीहराया परिवालेइ सयलसामग्गियं रज्जं । पुनपरिचियत्तणो समुप्पण्णपहुत्तणाहिमाणो य पडियग्गए रह-तुरय-गइंदाइयं, पलोएइ भंडारं, णियच्छए सयलागि ठाणाणि, परिसइ अंतेउरं, मंतेइ समं मह जणपीए । तओ दुणिवारयाए इंदियाणं, बलवत्तणओ मयरकेउणो, दुद्धरत्तणओ. मोहपसरस्स, रमणीयत्तणो जोवणविलासाणं, अगणिऊण मह पिउणो पडिवणयं, अवमण्णिऊण वैयणिजयं, विम्हरिऊग सुकयमणेयमुत्रयारं, उशिऊण सभोगेण जे । २ सचेय जे । ३ विसया जे । ४ आयम्मि सू । ५ पयट्टइ पंस। ६ 'रकारणिहिजे! . भाविया । ८ तुमए में । ९ साहिप्पमाणं जे। १० इत आरभ्य ६८ गाथापर्यन्तः पाठो जेपुस्तके नास्ति । ११ सुबउ जे । १२ "यहिको जे । १३ 'लो, चउत्थो दीहपट्ठो ति जे । १४ समुइया चेव जे । १५ °सुमिण जे । १६ मयकिन्छ । तसू। १७ समएणं सू। १० सरजंजे। १९ वयणीयं जे । Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२ बंभयत्तचक्कवट्टिचरियं । २१९ य चारित्तयं, अवलंबिऊण जिल्लज्जयं, मइलिऊण णियकुलक्कम, बहुमण्णिऊण कुलकलंकाववायं, खंडिऊण निम्मलसीलप्पसरं, संपलग्गो समं मह जणणीए । अहवा एस श्चिय णेहगती किं कीरउ जं कुलुग्गयाणं पि?।महिलासंगो मइलेइ साडयं तेल्लघडउ च ।। ६९।। तिलसंबद्धत्तणकयसणेहपसरा खलत्तपरिणामा। महिला चक्कियसाल ब्व कस्स णो मइलणं कुणइ ? ॥ ७० ॥ परपेरिया सलोहा अगणियणिययाववायसंदोहा । तेल्लियकुसि व्व महिला खलस्स वयणं पणामेइ ।। ७१ ॥ इय अगणियणिययकुलकमाण पम्मुक्कलज्जियव्वाण । खलमहिलाणं ण हुणवर कुबुरिसाणं पि अहमग्गो ।। ७२ ।। एवं च पवड्ढमाणसणेहं पसरन्तविसयमुहरसाणं गच्छंति वासरा । एवं च अम्ह पिउणो समाणवओवदिएण बीयहिययभूएण धणुणामण मंतिणा अवितहं मुणिय चिंतियं च णेण जहा-अविवेयबाहुल्लत्तणो महिलियाणं मोहपरब्वसत्तणो य घडउ णाम, जं पुण पडिवण्णमंगीकरेऊण अयसमसिमुहमक्खणं दाहेणावि एयमणुचिट्ठियं तमेस्व चोज, अहवा दुण्णिवारया कलिविलसियाणं ति, ता जो एवंविहं पि अकज्जमायरह तस्स किमण्णमकायब्वमस्थि । ति चिंतिऊण मंतिणा वरधणू णाम णिययसुओ महमच्चतसिणेहाणुरायरत्तो एकंतम्मि णिवेसिऊणमेवं भणिओ जहापुत्त ! एसो कुमारो बालसहावो ण मुणेइ पयइकुडिलाई महिलाविलसियाई, ता एयववएसेण पडिबोहणत्यं गेव्हिऊण कोइलाए सह कायं गच्छ कुमारसमी, भणमु य तं जहा 'एसो विजाइसमुन्मवो दुरायारो वायसो परपुट्ठाए सह मया पाविओ, ता एयस्स णिग्गहो कीरउ, ण य वण्णसंकरो पभुणा उवेक्खियन्यो । चि भणिऊण पेसिओ वरघण । गओ सो । संपाडियं जमाइटें । तओ कुमारो कोऊहलेण सहत्थेण दढबद्धपरहुत्तपक्खपेरन्तं घेत्तूण परहुयाहिट्ठियमरिठं बालचणमुहकेलित्तणओ रायउत्ततरलत्तणओ य अंतेउरमझेणं पयट्टो गंतुं, भणिउं च पयत्तो जहा-अण्णो वि जइ विजातीए एवंविहं करिस्सइ सो वि एयारिसिं अवत्थं पांविहि ति, मुणंतु असुयपुव्वा जंतुणो । तओ तं मुणिऊण [दीहेण] भणियं-देवि ! अहं काओ, तुमं कोइल त्ति । तीए संलत्तं-बालो कुमारो कीलणयविसेसेहिं कीलइ ति, ण य एयस्स वियप्पो। तओ बीयदियहम्मि भद्दकरिणीए सह संकिण्णगयं गहेऊण एवमेव भणंतो पैमयावणं मज्झेणमइगओ, कहं ? जा करिणि छंछती पुण रायं बंधइ विजायिहत्थिम्मि। सा एव कीरिही पुण सुणेउ असुणो जणो वयणं ॥७३॥ पुणो वि एयमायण्णिऊण दीहेण भणियं-पिए ! मारिजउ कुमारो, मैमम्मि साहीणे" अण्णे तुह पुत्ता भविस्संति, अहवा जे मम पुत्ता ते किं ण तुह पुत्त ? ति, दोसु वि रज्जेमु तुमं चेय सामिणी । तओ रइणेहपरन्वसत्तणओ एरिसं पि हियएणावि अचिंतणीयं पडिमुयमिमीए । अहवा हिययाइं हरसियाण कमलदलकोमलाई महिलाणं । ताई चेव विरचाण होन्ति करवत्तकढिणाई ।। ७४ ।। भणियं च तीए-जइ कह वि तेणोवारण मॉरिजउ जहा जणाववायदोसो रक्खिज्जइ । 'को उण सो उवाओ?' चि चिरं चिंतिऊण 'हुं मुणिय, कुमारस्स विवाहधैम्मो कीरउ त्ति, विवाहसामग्गीए सह वासहपरियप्पणाए पवरजाल - यंदणिज्जूहयसणाहं अणेयवायायणणिहित्तमचवारणयविहूसियं गूढजणियणिग्गम-पवेसं करेमु जउहरं, तत्य मुहपसुचस्स हुयासणं दाहामो' ति मंतिऊण ममं चिय माउलस्स पुष्फचूलाहिहाणस्स धूया वरिया। पारदा सयलसामग्गी। एवं च कीरमाणं भैइपयरिसत्तणओ लक्खिऊण अमचधणुणा विण्णत्तो दोहराया जहा-एस मह पुत्तो वरघणू सयलकलाकलाबकुसलो रज्जधुरधरण-बट्टावणसमत्थजोगो य वट्टइ, अहं पुण वयपरिणयत्तणो ण सक्कुणोमि खेडफडं काउं, परलोयस्स वि मे कालो वट्टइ, ता तुम्हेहिं अणुण्णाओ इच्छामि णिययहियाणुट्ठाणं काउं । तओ एयमायण्णिऊण दीहराइणा चिंतियंएस महामंती मायामंतप्पओयकुसलो मह सयासाओ णिग्गओ अणत्थाय होहि। ति चिंतिऊण कइयवोवयारविरइय १ मलिऊण णियकुलकम संपलग्गो सु। २ खलन्तप सू। ३ जणइ जे । ४ तेण जे। ५ महिलाणं जे । ६ दुण्णिवारा सू । ७ पाविस्सइ, जे । ८ असुइपुष्वा सू। १ पमयवणं सू। १. विजायह सू । ११ मम पि सासू जे । १२ णे उण तुह सुया में सू। १३ एरिसयं हिस। १४ मारिज्जा सू । १५ °धम्म करेमो' सि जे । १६ जालंघयंद स्। १७ माउलगस्स जे । १८ मतीए पर्यसू । १९ खडिप्फडं जे । २. तुमए जे । २१ महामई जे । Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२० चउप्पन्नमहापुरिसचरियं । सामपुच्चयं भणिओ-तुमए विणा किमम्हाणेमे एण रज्जेग पोयणं ?, का वा हिययस्स णेव्वुती ?, को वा सपत्थो ? चि, ता अलं कत्थइ पउत्थेणं, किंतु इहइं ठिओ चेव पवा-सययन्नपयागाइणा धैम्ममावजसु त्ति । इमं चाऽऽयण्णिऊण धणुणा गंगाणदीतीरम्मि महती पवा कारिया। तत्थ पंथिय-परिवायादीण पयागमण्णपाणं दिजिउं पयत्तं । दाण-माणोवयारगहिएहि य पञ्चइयपुरिसेहि दुगाउयपमाणा सुरंगा खाणिया जाव जउहरं । इओ य सा बहू रंभा(भ)ब्भहियरुवा णियपरियणसमेया संपत्ता अम्ह पुरवरं । अह विरइयणववहुवेसरुइरणेवच्छलंछणुच्छुरिया। दिट्ठा वड्ढियकोहल्लणिम्भर पुरपुरंधीहि ॥ ७५ ।। तओ कयकित्तिमसंभमेण दीहराइणा महया विभूतीसमुदएण पवेसिया गयरं । तो चलंतचलणणेउररवुच्छलियमुहलणच्चंतविलासिणीयणो जणसम्मरण वारिजमाणो व संचरंतमंदमंदमावासट्ठाणमइगओ जण्णर्यत्तियाजणो । जहारिहं च कओ सयलो वि पायपक्खालणाइओ उवयारो । तओ पहाणसंवच्छरियवयणाओ कयविधिहमंगल-कोउओवयारं जहाविद वत्तं पाणिग्गहणं । विवाहाणंतरं च विसज्जिए सेयले वि जगसमूहे पेसिओ" अहं वासभवणं सह वहूए । दिटं च तर जउहरं सुरविमाणायारमणुगिरंतं । तओ तत्थ पासणिसण्गणबहुसमण्णियस्स विसज्जियासेससेवयलोयस्स वेसम्भणिभरं वरघणुणा सह मन्तयन्तस्स समहियं गयमद्धं जामिणीए । ताव य चिंताणलेणेव दारट्ठियतणुणा समंतओ पलीवियं वासभवणं । उच्छलिओ हाहारवो, "कूइयं पुरजणवएणे, संपलग्गं समंतओ जउभवणं ।। अइ डन्झइ जलणुद्दामजलणजालाकलाबदुप्पेच्छं । पुरजणकयहाहकारदारुगं जउहरं सहसा ।। ७६ ॥ जाव य किंकायचढमाणसेण पुच्छिओ वरधणू 'किमेयं ? ति, ताव य महामञ्चेण कयपुव्यसंकेया सण्णद्धबद्धकवया भेत्तूण सुरुंगादेवारं समागया 'कहिं कहिं कुमारो ? ति भणमाणा सोलस पच्चइयपुरिसा । तओ तं णिसामिऊण जाहे अविस्संभंतो तेसिं ण पडिसलावं देइ वरधणू ताहे तेहिं भणियं जहा-अम्हे महामञ्चेण धणुणा कयसंकेया पेसिया, इमं च ते साहिण्णाणं, इमं च वइयरमणागयं मुणिऊण सुरंगापओएण अम्हे गियमिया, जा सा कुमारस्स माउलधृया सा लेहपेसणेण णिवारिऊण एसा काइ अण्णा [? आणिया], ता इमाए पडिबंधो ण काययो, लहुं णिग्गच्छह त्ति, सुरंगादुवारम्मि तुरंगर्जुयलं धरियं चिट्ठइ, तत्थज्वलम्गिऊण अँप्पाणं रक्खह त्ति, जाव को वि संपज्जइ अवसरो। तो एयमायण्णिऊण अकयवियारो वरधणू साहयपरिवायउवइट्ठणाणाविहगुलियाविसेसे गेण्हिऊण भणइकुमार ! ण एस कालो विलम्बियवस्स, सिग्घमागच्छम् । त्ति भणिऊग कुमारेण समयं पुणो वि जणणिउयराओ व्व विणिग्गयो मुरंगोयराओ। दुवे वि पत्ता दौरदेसं । आरूढा मणपवणदच्छेसु तुरंगमेसु । साहियं जहावठियं मम वरघणुणा विवाह-कण्णाइयं सयलं पि दीहराइणो ववसियं । पयट्टा तोरवियतुरंगमा गंतुं । गया य पण्णासजोन्य(य)णमेत्तं भूमिभागं । तओ दीहदाणखेएण णिच्चेट्ठा णिवडिया तुरंगमा । तो वेल्लहयाए जीवियस्स 'एस एवोवाओ' त्ति परियप्पिऊण पाएहिं चेव गंतुं पयत्ता। पत्ता य कोहगाहिहाणं गाम । इहावसरम्मि तण्हुण्हैयछुहाकिलंतेण मंया वरधणू भणिओ जहा-सिग्छ मैममण्ण-पाणाइयमण्णेसमुददं परिसंतो" त्ति । तओ तमायण्णिऊण भणियं महामचतणएण-"सुंदरं केणावि भणियं जहा णत्थि पंथखेयाउ परा वयपरिणई, णेय रुंददारिदसमो विहु परिहयो । मरणयाहि ण हु जायइ अण्णभयं परं, वेयणा वि ण छुहाए समा किर जंतुणो ॥ ७७ ॥ जोवणसिरि सोहम्गय, अहिमाण परकमो" कुलं सीलं । लज्ज बलावलेव नो, खणेण एका पणासेइ" ॥ ७८ ॥ मेष्णा'जे । २ इहडिओ सचेय जे । ३ धम्ममहिउजसु जे हि पंथियपुरिसेहिं दुगा" सू। ५ पुरंध्रीहि.स । “भवेण जे। पारिज जे । यत्तियजणो स्। ९ सयलम्मि जणजे।.'ओ वासभवणं संपलग्गं । उच्छजे। ११कृवियं स । १२ वएणं, भहस। सावदाम जे । 'म्यविमुहियमा जे । १५ कुमारमा सू । १६ जुवलं चिंस । १. अप्पाणयं जे । १८ दुवारदेसं जे। १. बाबहाए । २. हाहाए सू । २१ महम जे । २२ 'तो। तभी सू । २३ मरणभयाहि । २४ "मो सत्तणाई । बज थे। Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२ बंभयत्तचक्वट्टिचरियं । २२१ एत्थावसरम्मि य 'ण कालखेवस्सावसरो' ति 'कलिऊण पविट्ठो गाम । मम तहिं चेत्र संठियस्स लहुं समागभो गामगंडयं गेण्हिऊण । तओ दीहरसिहावसेस केस काऊण मुंडावियमुत्तिमंग मज्झ । परिहाविय थोरकासा यवस्थजुयलयं, चउरंगुलपमाणपैट्टबंधेण सिरिवच्छलंछणं छाइऊण वच्छत्थले, अप्पणा वि परियत्तिऊण वसंतरं परचणू मं गहेऊण पविट्ठो गामभंतरं। ____ ताव य एकदियवरमंदिराओ पेसिएण णिग्गंतूण. दासचेडएण भणिया अम्हे-एह भुंजह त्ति । एयमायण्णिऊण गया तत्थ अम्हे । णिसण्णा पत्ररासणेमुं रायाणुरूवपडिवत्तिजणिओवयारा भुत्ता गरुयविच्छड्डेणं । भोयणावसाणम्मि य अम्ह' पुरओ आगंतूण णाइपरिणयवया एका पवरमहिला सयलालंकारालंकियसरीरं विमुक्ककमलालयं व भयवई लच्छि बंधुमइजणियाहिहाणं कण्णयमुद्दिसिऊण पहरिसविसट्टवयणकमल मझुत्तिमंगम्मि अक्खए पक्खिवइ, सुरहिकुसुमदामसणाहं च पवरसिचयर्जुवलयं समप्पेइ, भणइ य-एस ईनाए कण्णयाए वरो त्ति । एयं चाऽऽयण्णिऊण भणियं मंतिमुएगभो ! किमयस्स अणहिगयश्यणस्स ऍक्वबडुयस्स जगियायरेण अप्पागं खिजावेह तुम्भे । घरसामिएण भणियं"सामि ! सुन्बउ, अस्थि किंचि विण्णवियव्यं, अहवा लल्लइयव्वं, अहवा जाइयव्वयं, जेण अम्हेहि अण्णया पुच्छिएण णेमित्तिएण साहियं जहा-इमाए बालियाए सयलपुहइमंडलाहिवई भत्ता भविस्सइ । 'कह अम्हेहिं. सो मुणियब्यो ?' ति भणिए तेण भणियं-जस्स देसणेण भविस्सइ बहलपुलयुम्भेओ सवाहसलिलं च लोयणजुयलं बालियाए, पडपट्टोच्छाइयसिरिवच्छलंछणो य जो समित्तो धुंजिही भोयणं सो इमाए भत्त" त्ति । भणिऊण पणामियं मज्झ करयलम्मि दाणसलिलं । भणियं च वरधणुणा-भो एस जम्मदरिदो डोड्डो मए सेंमं पढणत्थं पयट्टो, कुओ पुहरुमंडलाहिवत्तणमिमस्स ? । घेरसामिणा भणियं-जो वा सो वा होउ, पणामिया मए बाला । तओ तम्मि चे दिणे जहाविहववित्थरेण वत्तं पाणिग्गहणं । तण्णिसिं तहिं चेव णिवसिया अम्हे । पहाया रयणी । भगिओ अहं वरधणुणा-भो सहयर ! किं मुहासीणो सि ?, किंवा ते विम्हरियं 'दूरं गंतवं?' । ति वाहित्तेण मया बंधुमतीए सिट्ठो सब्भावो जहा-ई बम्भयत्तो त्ति, ण साहियव्वं कस्सइ, वीसत्याए चिट्ठियध्वं जावाहमागच्छामि । तओ एयमायण्णिऊण अविरलंसुगलियबाहजलकलसियकवोलमंडला पणमिऊण भणिउं पयत्तामुण णियकुलणहमंडलमियंक ! गुणकिरणपसरियप्पसर ! । वियसावियमणकुवलय ! खणं पिमा पम्हुसेज्जासु ॥७९॥ तइ समयमिमं बच्चइ मह हिययं, असरणं ममं मोत्तुं । सोक्खं च सोक्खदायय ! इमाण तत्तिं बहेज्जासु ॥८॥ एसा य सरसकोन्तलकलाववेणी तुहऽग्गओ रइया । ताव ण मोत्तव्या जा पुणो वि ण तुमं मए दिह्रो ।। ८१ ॥ तह कज्जलं पि रविकिरणदलियकुवलयदलुजलिल्लेसु । णयणेसु ता ण लग्गइ पुणो वि णो जा तुमं दिहो ॥८२।। तुह विरहे कीरन्तं पि मज्जणं संजणेइ अहिययरं । अंगाण हिययवहंतगरुयरणरणयसंतावं ॥ ८३॥ इय मह वड्ढियतुहविरहजलणजालाकरालियं हिययं । तह कायव्वं णिवाइ जह पुणो संगसलिलेण ।। ८४॥ तओ तं दंसियणेहणिज्मरं समासासेऊण निग्गया अम्हे । परिवियडपयविक्खेवं" गंतुं पयत्ता । संपत्ता य अन्तिम गोममेगं । तत्थ य सलिलपाणणिमित्तं वरण गाममइगओ। मुहुत्तंतराओ य आगंतूण में भगति जहा-"गामसहासं पयत्ता संकहा जहा, 'किलें अतीयदिणे कंपिल्लपुरवराओ पलाणा बम्भयत्त-वरघणुगो, दैड्ढजउहरम्मि य पलोएंतेहिं ण दिहाई अट्ठियाई, दिहा सुरंगा । तओ दीहराइणा बंधाविया सयला रायमग्गा' । ता एह उम्मग्गेण वचामो"। त्ति पयट्टा विसमुम्मग्गडुंग्गणिवेसेण अम्हे । पत्ता य सरल-साल-तमाल-बउलाइमहातरुसंडमंडियं मणहरकुसुमफलोववेयं महाडर्वि । तो तीए महाडवीए गच्छमाणाणं बाहिउं पयत्ता में पिवासा। मुणिऊँणं च तण्हावसवियणाऽऽवियज्ज्ञ वरधणू मं उवविसाविऊण बहलपत्तलदलसमूहस्स णग्गोहपायवस्स हेट्टओ गओ जलाणयणणिमित्तं । ताव य दिणाव चितिऊण जे । ३'हाविभो जे । ३ जुवलय जे । ४ पट्टयब जे । ५ जुयलं जे । ६ इमे की सू। ७ मुक्कबद्धयस्स स्। ८ 'यम्वयं, जे । ठोड़ोस। १० सह जे । ११ पयत्तो सू । १२ घरवइणा जे । १३ चेय दियहे जे । १४ वाहिएण जे । १५ विश्वा सू। १६ गाम । तत्थ सू। १७ किर जे । १८ दड्ढं जउहरं, पलोयंतेहि सू । १९ दुग्गदेसेण जे । २० 'कणासवं पिवासावियणावसझं वर सू। Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२२ चउप्पन्नमहापुरिसचरियं । साणसमयम्मि दिट्ठो मए दूरदेसत्यो जमभडेहिं व दीहरोइणो पुरिसेहिं पहम्ममाणो य । तेहिं चालक्खिओ 'पलायह त्ति मह सणं काउं पयत्तो, कह ? फुलंति वसंते सयलविडविणो चूय ! तं पि फुल्लेहि । तुह कुसुमपरिमलं णेय मुद्धभमरा वियाणंति ॥८५॥ तो अहं वियाणिऊण वरधणुकयपलायणसण्णं हिययभितरवियंभमाणभयपसरो सहसा समुट्ठिऊण णग्गोइतरूतलाओ तुरियपयणिक्खेवं पलाइउं पयत्तो । पडिओ सुदुग्गमं कंतारं । केरिसंच? वियडगिरिकूडसंकडतडणियडघडंतणिबिडविडवोहं । भीसणभमन्तसावयविमुक्कपुकारलल्लकं ॥ ८६ ।। करिकुलकरकड्ढियभग्गपडियतरुणियररुद्धसंचारं । तरुसाहणिहसणुग्गयदवम्गिडझंतकतारं ॥ ८७ ॥ दप्पियवराहतुंगुग्गघायविकिण्णणिण्णयातीरं । वणमहिसरवायण्णणमइंदरवभेसियेकुरंगं ।। ८८॥ इय णिन्भरवीरीगहियपसरिउद्दामणिठुरारावं । णियकम्मपरिणई पिव भमामि भीमं महारणं ॥ ८९ ॥ अवि यरसंतमत्तघूययं, धमध(द)मेन्तवाययं । कणंतखुल्लसाक्यं, जलंतघोरपावयं ॥ ९० ॥ करकमालमालियं, खगावलीकरालियं । गोहकूरसहयं, तरच्छसत्थरोदयं ॥९१॥ भमंतभीमसंबरं, मइंदभिण्णकुंजरं । भमंततत्थरोज्झयं, सियालबद्धजुज्झयं ॥ ९२ ॥ करेणुदारियासयं, सुभीमभक्खिघोसयं । वहंतलोहियारुणं, किरायरावदारुणं ॥ ९३ ॥ इय भीसणं वणं जणियमणभयं देव-दाणवाणं पि । पेच्छामि हच्छसच्छं बीभत्सं(च्छं) तं महावच्छं ।।९४॥छ एवं च णिम्भरभयभरुभंतविच्छुब्भमाणपयविच्छोहो, छुहा-तण्हुण्हणीसहत्तणओ पंकखुत्तं व दुक्खेणुक्खिवंतो चलणजुवलयं, दंडढदब्भसूइतिक्खलग्गसंगलियबहलरुहिरधारो कह कह वि गंतुं पयत्तो। आहारयंतो तित्त-कसायतणविरसे कंद-मूल-फलविसेसे, अणेयपण्णूरकसायकलुसियं पियंतो गिरिणदीसलिलं, णिवसंतो विसमगिरिगुहाकंदरेसुं, दीहरपरिस्समिंधणसंधुक्कियसोयजलणजालाझुलुकिओ परिभमंतो पेच्छामि तंतियदियहम्मि तावसमेगं । दसणमेत्तेणेव तत्तेयमसहमाणं व पण8 मे परिस्समाइयं भयं । समासत्यो चित्तेणं । जाया जीवियम्मि पञ्चासा । उवसप्पिऊण सविणयमभिवायणं कयं । पुच्छिओ य-भयवं ! कत्थ तुम्हाण आसमपय ? ति । यवयणाणतरं च णीओ औसमपदं । दंसिओ कुलवती । धरणियललुलन्तकुंतलत्तिमंगेणं सविणयं पणमिओ कुलवती । तेणावि जणियतिवलीभंगविसमियभालवद्वेष समुण्णमंतभूलयं पलोइऊण भणिओ हं-वच्छ ! कैहितो आगमणं !, बहुपच्चवायमरणं, पयतिकूरा सावयगणा, विसमत्तणओ दुल्लंघा पंथा, सुकुमालसिणिद्धच्छवी य देहाहोओ लैंक्खिज्जसि, ता 'कहमिणं ? ति साहिज्जउ फुडं। तो मए सव्वं जहावत्थियमवितहं साहियं । तव्वयणाणतरं च 'सागयं सागयं' ति भणमाणेण पडिरदो हं कुलवइणा । भणिओ य जहा-हं तुह जणयस्स बम्भराइणो चुल्लभाउ ति, णिययं चेव आसमपयं भवओ, जहामुहं चिन ति । मुणिऊण तस्स चित्तासयमच्छिउं पयत्तो । ताव य समागओ जलयकालो । तत्याहमज्जएण सयलाओ धणुव्वेयाइयाओ महत्थविज्जाओ गुणाविओ। अण्णया य सेंमागयम्मि सरयकाले ते तावसरिसओ फल-कुसुम-समिधियणिमित्तं गच्छति रणपरिसरेसुं। तो अहं पि कोउहल्लेण एकम्मि दिवसे "णिरुम्भमाणो वि कुलवइणा गओ तावसेहि सैंममरणं । सरसफल-कुसुमसमिदाई च कापणाई चक्खुलोलत्तणओ पलोएमाणो विहरि पयचो । दिद्वं च मया तत्थेक्कपएसम्मि तक्खणं विमुकं चिय करिणा मुत्त-पुरीसाइयं । दळूण य चिंतियं मए-अवस्सासण्णेण करिणा होयव्वं । तो तरलत्तणओ सहावस्स, सुलहचणो जोवणकीलियवाणं णिवारिज्जमाणो वि तावसेहि लग्गो गयवरमग्गओ। अह 'एसो इमो' ति पलोयणक्खिचमाणसो १ राइणा गिउत्तपुरि जे । २ पलायहि जे । ३ करयढिय जे। ४ 'यविक्खिण्मजे। ५ गइंदं स्। ६ हस्तद्वयान्तर्गतः पाठो जे. पुस्तके नास्ति । ७ दव(द)ड्ढसूइयग्गलाग सू । ८ आहारंतो सू । ९ मुलुकिओ जे । १. तइयदिवसम्मि जे । ११ तुम आस स्। १२ आसमं । देंजे। १३ कहिं ते आ सू । १४ लक्खिज्जइ जे । १५ समागए जे । १६ मसामिषेणुणिमित्तं सू । १७ मिन्मभाणो जे । १८ सहम जे । Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२ बंभयत्तचकवष्टिचरियं । २२३ गओ पंचजोययणप्पमाणं भूमिभायं । दिट्ठो य मए महाकरी । केरिसो य? गंडसेलसंगलियमुणिज्झरदाणओ, उण्णयग्गभाउब्भडदंतविसाणओ। वियडयोरसिलकक्खडपायपेइटिओ, महिहरो र मह गोयरए परिसंठिओ ॥ ९५ ॥ वियडकवोलयलागयं, भमरउलं दाणसलिलचमरयं व । अंसावलग्गकिसलयं, वहमाणो कयलियाविलासयं व ॥९॥ एवं च अप्पाणयं व सयलपरिवारविरहियमेकल्लमुभियं पलोएमाणस तं गयवरं वढियं कोउहलं । पयत्ता इच्छा जहा-एएण करिणा समं खेल्लामि । त्ति चिंतिऊण तओ मए गंभीर-तार-महुरविसेसोवसंसी रुंदसदो कओ। आयण्णणाणंतरं च बलिऊण पलोइओ हं करिणा । तओ उम्भडतंडवियकण्णजुयलो दूरसमुण्णमियविसमभग्गवालग्गो करविमुक्कसुंकारणियरो गलगज्जियविणिज्जियसजलजलहरो कयंतो व तमद्धाणमुद्धाइओ सरहसं । सिग्पत्तणओ गतिविसेसस्स संपत्तो ममंतियं । पसारियकरग्गभागो य कह कह वि मं जाव ण पावेइ ताव मया तस्स पुरओ पिंडलीकाऊण पक्खित्तमुत्तरीयं । तेणावि तक्षणं चेव घेत्तूण कोंडैलियसोंडदंडेण वित्तं णहमंडलाहिमुहं । जाव अमरिसड्ढत्तणओ मह कलणाए दसणेहिं किल पडिच्छइ त्ति ताव मया परियंचिऊण गहिओ वालग्गहाए । सतुरियं चलंतस्स य चलणंतरविणीहरिएण भए छिको करेण चलण-करग्गेमुं। तो तस्स रोसपरिवसत्तणविौदण्णसुण्णवेज्झस्स करजुयलसमुक्खयपक्खित्तपंसुपिहियलोयणालोयस्स से बलग्गो है कण्णपएसे । ता(जा)व य करेण संफुसइ ताव य हच्छत्तणो ई एककरकलियवालहिदंडो ज्झ त्ति समागओ धरणियलं । एवं च तेण करिणा समं कीलायमाणस्स सहस चेय सयलं. [पारियं दिसावलयं, पसरन्तणिभरासारोरजलधारारुद्धलोयणवहं तकालालक्खियणियतणुविहायं वासिङ पयचं । तओ सो निठुरवासजलप्पवहकरालियसयलदेहो दढपरिस्सममंदायमाणचेटो य विरसमारसिङ पलाणो गयवरो। अहमवि पयट्टो पडिवहेणं गंतुं । पयत्ताओ णिन्भरजलयासारत्तगओ य समागयसलिलपूराओ गिरिणईओ, अलक्खियणिण्णुग्णयविहायं जायं धरणिमंडलं । तओ हं विम्हरियपुन्या-वरदिसाविहाओ इओ तो परिभमन्तो समोइण्णो भरियमेकं गिरिसरियं । वुब्भमाणो य तीए समुत्तिण्णो णवर बीयदियहम्मि पेच्छामि तडनियडसण्णिविढं पुराणपडियभवर्णखंभभित्तिमेत्तोवलक्खियं जिण्णपुरवरं । तइंसणम्मि य हिययभितरवियंभिउब्भडकोउहलविसेसो दिसिदिसिणिहित्तदिटिविच्छोहो समंतओ हं पलोएमाणो पेच्छामि पासपरिमुक्कखेडय-खग्गमेक्कं वियडवंसकुडंगं । तं च दट्टण चिंतियं मए-'अहो! रमणीयया खग्ग-खेडयाणं, ता पेच्छामि ताव केरिसं?' ति घेत्तूण खेलिउं पयत्तो। खेलमाणेण य वाहियं तम्मि वंसकुडंगे। एक्कप्पहारेणेव गिर्वाडिया वंसाण सही, वसंतरालसंठियं च णिवडियं दरफुरंतोहउडमेकं मणोहरायारं सिरकमलं। दिलं च मए ससंभंतेण । 'हा घिरत्थु मे ववसिएणं' ति गिदियमत्तणो बाहुबलं, बहुसो अप्पा उवलदो। पच्छायावपरदेण य पलोयमाणेण दिमुद्धणिबद्धचलणं धूमपाणलालसं कबंध । समहियं च अधिई जाया। पुणो य पलोयमाणेण दंससमेत्तपहयपहपरिस्समप्पसरं पवरपायवाहिटियं मणोहरतरुसंडमंडियं पलोइयं पवरमुजाणं । तओ हं रम्मत्तणपलोयणक्खित्तमाणसो पविट्ठो तमुजाणं । तत्थ य समन्तओ असोयपायवपरिक्खित्तं पविरलकयलीहरंतरदरदिट्ठकुसुमविडवं दिटुं दिणयरकरणियरविहडियपुंडरीयप्पहोहसियसोहं सत्तभूमियं पासायभवणं । ठूण य वलम्गो जहकमं सत्तमियासुं भूमियासु । पेच्छामि य सियसिचओच्छाइयं मणहरमणिमयपल्लंकसयणीयं । दिट्ठा य तत्य मुरविलय व सव्यंगसुंदरा एक्का पारमहिला । सा च केरिसा ?-मुहुयहुयासगतेयरासि व दिप्पमाणा, विजाहरसुंदर व्व परिगलियविज्जा, आलेक्खगय च चिंताविणिचलतणुप्पयारा । अवि य सरयससिबिंब[? पडिबिंब] मुहकमलया, कमलदलकंतकण्णतगयणयणिया। सरसणवदाडिमीकुसुमसमअहरिया, दसणकरधवलियासेसदिसिणियरिया ॥९७ ॥ परिडिभो जे । २ 'उतड(क)विय सू । ३ कोंडलीय जे। ४ 'सअंधत्तणभो जे। ५ णखडा, जे। णिवडिया सू । • ला । तमो सा तिहुयणतेयरांसि जे। ८ पगलिय सू। ५ हस्तद्वयान्तर्गतः पाठो जेपुस्तके नास्ति । Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२४ चउप्पन्नमहापुरिसचरियं । कणयमयकलसघणथोरथणहारिया, तबियतवमुणिजणाणं पि मणहारिया। विमलगंडयलसकन्तससिबिम्बिया, तवियकलहोयसिलवियडसुणियम्बिया ॥ ९८॥ मुहिगेज्झेग मज्झेण रेहतिया, कसिणतणुरोमराईविरायंतिया। गहिरणाहीणिहाणोवसंसोहिया, कणयमयविज्जुपुंजाभवरदेहिया ॥ ९९ ॥ मालईमालसुकुमालभुयजुवलिया, कयलिगम्भोरु(? व)माणोरुजुयसललिया। मयणधणुकुडिलभूजुयलमुमणोहरा, अहिणवासोयपल्लवसमारुणकरा ॥ १०॥ तुलियतियसिंदबहुणियरसोहग्गिया, तरुणजणणिवहमणजणियमयणग्गिया। णिययसुंदेरपडिभग्गरइमाणिया, अमयरससरिसलायण्णमुहखाणिया ॥ १०१॥ रत्तहामरसदलचलणतलरेहिया, [............................... । ....."], रुइरवरवण्णकुसुमोहकयसेहरा ॥१०२॥ इयमणुवमरूवधरी पयत्तओ णिम्मिया पयावइणा । देवमणविम्हयकरी अह दिट्ठा बालिया एका ॥ १०३॥छ उपसप्पिऊण पुच्छिया मए-सुंदरि ! का सि तुमं ?, को वा इमो पएसो ?, किं वा एगागिणी ?, किं वा सोयकारणं । तओ तीए भणियं-महाणुभाव ! महंतो मेतीओ वइयरो, ता तुमं चेव कुणसु पसायं, साहसु जहडियं, को तुमं ?, कहिं च पयहो, किं वा पओयणं ?। तओ सोऊण तीसे महुरस-विणयवयणविण्णासं समावज्जियमाणसेणावितहं भणियं मए-मुंदरि । अहं खु पंचालाहिवइणो बंभणराहिवस्स तणओ बंभयत्तो णाम । तओ तब्बयणाणंतरमेव आणंदबाहसलिलावूरियणयणजुवला हरिसवमुच्चइयचारुरोमंचकंचुइज्जतदेहा सहस चिय समभुट्ठिया, पहरिसुप्फुल्लपसण्णवयणमंडला य पडिया मह चलणेसुं, अइकलुणगग्गयक्खरं च रोइउं पयत्ता भणइमह ललियवयणकुवलयवियसाय ! कुमुयससहरायार! । मह असरणाए सरणं सुंदर! जमिहाऽऽगओं सि तुमं ॥१०४॥ णीसेसलकावणालंकिओस्कर-चलण-तणुविहारण । सिर्ट चिय तुह सिरिवच्छलंछणा दंसणेणऽम्ह ॥१०५॥ . सारीरणिमित्तेहि य फुरंतलोयण-भुयाविसेसेहिं । तह वि य संदेहातणयणस्थमिह पुच्छिओ सि मए ॥१०६॥ इय उत्तमकुलसंभव ! अमयमयाणंददिण्णसंदोह !। णाह ! अणाहाए महं कुमार ! सागयमिहं तुज्झ ॥१०७|| तमओ एवमादीणि बहुविहाणि भणिऊण रुयमाणी कारुण्णगहियहियएण समुण्णामिऊण वयणकमलं 'मा रुव्बउ' त्ति भणमाणेण संठपिया, भणिया य-सुंदरि ! का सि तुमं?, कुओ वा ?, केण वा समाणीया? । तओ करयलपुसियपप्फुल्लवयणकमला भणिउं पयत्ता-"कुमार ! अहं खु तुह माउलगस्स पुष्फचूलराइणो धूया । तुम्हं चेव विदिण्णा विवाहदिवसं पडिच्छमाणी अणेयमणोरहाउलिज्जमाणसा णिययघरुज्जाणदीहियापुलिणम्मि कीलमाणी देवहएण दड्ढविज्जाहरेण णटुम्मत्तयाहिहाणेण इहाऽऽगिया । जाव य अहं गुरु-बंधव-सहोयरसोयग्गिसंपलित्ता अलद्धपडियारा अप्पणो भागहेयाई उवालहमाणी चिट्ठामि ताव तुमं मम परियप्पियहिरण्णवुट्ठिविभमो सहस चिय समागओ दिट्ठो य मए । ता संपयं जाया जीवियपञ्चासा, संपण्णा य चिरचिंतिया मणोरहा, जं तुम्हेहिं सह ईसणं जायं" । भणिया य सा मएसुंदरि ! अह सो उण कहिं मह सत्तू ?, जेग से परियाणामि बलविसेसं । तीए भणियं-सो हु मह दिहिमसहमाणो गओ एक्कम्मि वंसकुडंगम्मि बधुद्धणिययचलणजुयलो अहोमुहवयणमंडलो बहलधूमपाणेण विजं साहिउं सिद्धविजो य मह पाणिम्गहणं करिस्सइ, अजं किल से विज्जासिद्धी भविस्सइ । ऐयं च सोऊण पुष्फवतीए सिहो तण्णिहणणवइयरो । सहरिसं च भणियं तीए-अजउत्त! सुंदरमणुट्टियं, जं सो दुरायारो णिहर्णेमुवणीओ। तओ सा मए गंधव्वविवाहेणं परिणीया । अहिणवसिणेहणिब्भरं च णिवसिओ तीए समयं । पसुत्तो य सुहेणं । पहायसमयम्मि य णिसुओ मए केसिंचि दिबविलयाणकारी मणहरालाओ। पुच्छिया य सा मए-मुंदरि ! कस्स उण १ मईओ जे । २ वय | ससहरायार(? रार)सारिच्छ ! । असरणाए णाह | सरणं सू । ३ ओ त सि ॥ जे । ४ हु जे । ५ णपक्रया भजे। ६ अत्तणो जे । ७ जोवियब्वासा सू । ८ कुणिस्सइ जे । ९ एवं जे। १. जमइणीमो जे । Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२ वैभमत्तचकवहिचरिय। २२५ एस सदो ?। भणियं च तीए संभंताए-अजउत्त ! एयाओ खु तस्स तुह वेरिणो णटुम्मत्सयस्स भइणीओ खंडविसाहाणामाओ विज्जाहरकुमारीओ तणिमित्तं विवाहोवगरणं घेत्तूण समागयाओ, ता तुम्हे ताव ओसैकह लहुं, जावाई तुह गुणसंकहालाववइयरेण भावमेयासिमुवलहामि, जइ सिं तुम्होवरि गुणाणुराओ भविस्सइ, तो हं पासायस्सुवरिं रत्तंसुयपडायमुभिस्सामि, अण्णहा सियपडायं ति, तं च मुणिऊण गंतव्वं तुमए । भणिया य सा मए-सुंदरि ! अलमलं संभमेण, किं मह इमाओ काहिंति ? । तीए भणियं-ण भणामि एयाहितो भयं, किंतु जो फ्यासिं संबंधो सहोयराइओ णहंगणचारी भडसमूहो मा सो तुम्हाणुवरिं विरुज्झिही। तओ हं तञ्चित्ताणुवत्तिं कुणमाणो ठिओ विवित्तप्पएसे । गया य पुप्फवती। दिट्ठा य मए णाइचिरवेलाए मंदमंदंदोलमाणा धवलपडाया। कलिऊण संकेयाहिप्पायं सणियसणियमवकंतो तप्पएसाओ। पयत्तो गिरिणिउंजसंजणियपरिस्समो वियडवणंतरालमाहिडिउं । दिटुं च मए सयलसुहवणराइसंडमंडियमेकं महासरवरं । तं च पलोएमाणस्स गुरुविम्हयक्खित्तमाणसस्स चिंता मे समुप्पण्णा-अहो ! मंदबुद्धित्तणं णिण्णयाणं, जेण इमं सुसुरहि-सीयल-साउसलिलासयं मोत्तूण खारत्तणदोसदूसियम्मि अणवस्यवडवाणलविलुप्पमाणसलिलम्मि जलणिहिम्मि णिवडियाओ । एवं च अहं तस्स महासरवरस्स दंसणेण वड्ढन्तकोऊहलो पहपरिस्समावणयणत्थं मजिउं पयत्तो जहाविहिं । मज्जणुत्तियो य णाणाविहणेवच्छविरइयविविहवेसायणगोहीणिविद्वविविहमणुयमंडलीओ णियच्छंतो संपत्तो उत्तरपच्छिमतीरलेहं ।। दिहा य तत्थ मए मणहरजोवणावूरिज्जमाणसयलदेहावयवा एका पवरकण्णया। चिंतियं च मए-अहो ! इमम्मि चेव जम्मे जायं मह दिव्यरूवविलयादसणं, अहो! मे पुण्णपरिणई, अहो! पयावइणो विण्णाणपयरिसो, जेणेसा रूव-गुणणिहाणमुप्पाइया । तो अहं पि मणयं पुलइओ तीए सणेहणिब्भरवियसंतपम्हपसराए दिट्ठीए । पुणरुत्तं णियच्छिऊण पलोइयाई पासाई, लज्जिया विव संजाया । पुणरवि णिप्फंदणिहित्तलोयणप्पसरमाणंदजलभरियतरलतारयं अप्पाणयं पिव पंणामयंतीए ससेयजणियससज्झसं पुलोइओ । पुलोइऊण पत्थिया तप्पएसाओ णिययचेडीए समयं किं पि मंतयंती । अहं पि अण्णओमुहं तं चेय णियच्छमाणो गंतुं पयत्तो, जाव दिवा मए तीए चेव पेसिया एका दासचेडी, तुरियपयणिक्खेवं समागंतूणं मह समप्पेइ पवरवत्थजुवलयं कुसुम-तंबोला-ऽलंकाराइयं च, भणइ य-"महाभाय ! एसा जा तुम्हेहिं दिट्ठा महासरवरतीरम्मि तीए पेसियमिमं, भणिया य जहा 'हला वणकिसलइए! एयं महाणुहावं णियदंसणपणामियसयलजणसुहसमूहं अम्ह तायमंतिणो मंदिरे सयणीयत्थिई कारेसु त्ति, जहावद्वियं च से साहसु"। त्ति भणिऊण सबहुमाणं तीए पसाहियालंकारिओ णागदेवामञ्चमंदिरमुवणीओ। भणिओ य णाए मंती-एस तुम्ह सामिणो धूयाए सिरिकताएँ सयणणिमित्तं पेसिओ, ता मज्जण-भोयणाइणा परमोवयारेण सगोरवमुवचरि[ज्ज]उ । ति भणिऊण गया वणकिसलइया । तेण य महामञ्चेण णियसामिसरिसोवयारेण सबहुमाणमुवचरिजमाणो हे तत्थेव वुत्थो । __पहायसमयम्मि य समुग्गए सहस्सकिरणम्मि तेण मंतिणा पवरवासविलेवणाइणा समलंकिओ है । कजदिसं दरिसयंतेण णीओ णियणरवइसमीवं । णरवइणा वि जहादसणमेव सरहसमन्भुट्ठिऊण सायरमवयासिओ, दवावियं निययसमीवम्मि महरिहमासणं । णिविट्ठो य पढमोवविम्मि मए । कया तंबोलाइया पडिवत्ती । सणेहसारं च भणिउं पयत्ती एवं जहा-"महाभाय ! सोहणमणुष्ट्रियं तुम्हेहिं जं णियपायपंकए हिं पवित्तीकयं गेहंगणं, समुहयंददंसणेणागंदियमम्हाण णयणकुवलयजुयं, तरणिकिरणाणुयारिणा णिययलायण्णणियरेण पियासियं मम वयणारविंदं । अहवा णापुण्णभाइणो मंदिरम्मि णिदलियसयलदालिद्दा। बहुवण्णविविहमणिसवलमणहरा पडइ वसुहारा ॥१०८॥ संपाडियसयलसमीहियत्थवित्थारवढियाणंदं । कस्स व पुण्गेहि विणा पवरणिहाणं घेरमईइ ? ॥१०९॥ अहिजाईसयलकलाकलाक्कलियं हिओवएसँयरं । संपडइ मंदनायाण णो सुमित्तं कलत्तं च ॥ ११० ॥ १ खु तुह सू । २ उवसकह सू । ३ एयागं सू । ४°वूरिथ्यमाग सू । ५ पलोइओ जे । ६ पणामतीए जे । ७ पलोइओ । Jain Eपलोई जे. ८ चेव जे । ९ भणियं च-सू । १० 'ए वासयनिमित्तं जे । ११ सायरं च सू । १२ घर(रं) एइ सू। १३ सरयं जे। Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२६ चप्पन्नमहापुरिसचरियं । इय होइ मंदपुण्णाण णेय तुम्हारिसेहिं पुरिसेहिं । दंसणमेकस्सि ताव परिचओ दूरओ चेव" ॥ १११ ॥ एवमाश्यं च सायरं' वहुप्पयाराश्यं भगमाणस्स अकन्ता काइ वेला, समागओ मज्झणसमओ । समं चेत्र त्रितिया भोयणी | रूत्रियं मम वासभत्रणं । तत्थ द्विओ य हं भणाविओं मंतिणा एवं जहा अम्हारिसेहिं तुम्हाणऽष्णं विसिद्धयरं ण किंपि काउं तीर, ता पडिच्छह इममम्हाण धूयं सिरिकंताहिहाणं कण्णयं । ति भणियात्रसाणम्मि पडिवणं मए । एवं च णेमित्तियणिरूत्रियपहाणदियहम्मि जहाविववित्थरेण वत्तं पाणिग्गहणं, सज्जियं वासभवणं । णिसण्णो ती समयं पत्ररसयणीए । अहिरमिऊण जहिच्छं पसुतो जहासुरं । एत्रमइकंता का विवासरा । aurat यरमियावसाणसमयम्मि पुच्छिया मए सिरिकंता जहा- किं पुण पओयणमुद्दिसिऊण तुमं मह एकलवियारिणो पणामिया ? | तीए भणियं - "अज्जउत्त ! सुन्त्रउ संपयं, एस अम्ह ताओ वसंतपुराहिवइणो णरसेणराइणो पुतो । एस य रज्जम्मि संठियो सनाणो दरिगदाइयपरिपेल्लिओ कंचि कारणमाकलिऊण इमं गिरिदुग्गमल्लीणो सबलवाहणो । अणेयदुद्रपरिवालिओ य हेतूण गाम-णयराइयं जणियणिययपरियणवित्ती दुग्गबलेणं बहुयरभिल्ल-पुलिंद-सवरपरिवालिओ पहिलं काऊण परिसंठिओ । एत्रमइक्कतो कोइ कालो । जाया य अहं सिरिमतीए देवीए चउन्हं पुत्ताणमुवरि धूमा । अइकंता बालभावं । अतीव लहा पिउणो । एकया य दरारूढजोव्वणविलासा पायवडणं काउं गया । दण भणिया - पुत्त ! मह विरुद्धा सयलणरवइणो, कस्स तुमं पयच्छामि ?, ता तुमं चेत्र एत्थ सयंवरा, जमिह पल्लीए भागती विसिद्वायारं लोयणाभिरुइयं च समागयं च पेच्छसि सो मह साहेयव्त्रो । ति भणिऊण विसज्जियामि । ae aesमहमणवयं पल्लीओ णिग्गंतॄण महासरवरतीरदेसपरिसंठिया गयागयं पुरिसवग्गमवलो माणा चिट्ठामि जाव तुम्हे मह सुकयकम्मपरिणइत्र सेग दिद्विगोयरमइगया । दट्ट्ण चिंतियं मए - संपडियं समीहियं, जइ विही अणुवत्तइस्सर । त्तिमुणिऊण पेसिया तुह समीवं वणकिसलइया । मया वि गंभ्रूण सिद्धो तुह दंसणवइयरो जणणीए ती वि अम्ह पिउणो । पिउणात्रि अहं तुम्हाणुजणियगरुयायरं पणामियत्ति । तओ उवरि तुम्हे गहियत्था" । तओ महंती सिरिकताएं समयं सयलकामगुणियं विसयहमणुहवन्तस्स गच्छंति दियहा । या यसो पल्लिणाहो यियबलसमुइओ गओ विसयं हंतुं । अहं पि तेणेव समं गओ कोउहल्लेण । पयत्ता य ते गामे हंतुं । अहं पि परिभममाणो संपत्तो अग्गिमगामं । तात्र य दिट्ठो मए तग्गामवाहिरासण्णकमलसरतीरम्मि गहिरवरवणणिउंजंतरालविणिग्गओ सहस च्चिय वरधणू । सो विमं पच्चभियाणिऊण असंभावणिज्जदंसणं संभाविऊण विकीधाही अवलंबिऊण कंठभायम्मि रोइउं पयत्तो। कह कह वि संठविओ मए । पुणजायजम्म त्र णिसण्णा विग्रडविडवन्तरालछायासुं । सुहणिसण्णाणं च पुच्छियं वरघणुणा-कुमार ! तया तुह तीए मया कयाए पलायणसण्णाए पणद्वेण तुम किं पात्रियमत्रत्थं तरं ? तमम्हाण सोहिज्जउ णिरवसेसं ति । तओ मया जमणुहूयं तं सयलं पि साहिऊण पभिणिओ वरघणू - तुमं पि साहस जं मह विउत्तेण सुहं दुक्खं वा समणुभूयं । तओ वरघणुणा भणियं-कुमार ! सुब्बउ, तया हूं णग्गोहतरुणो छायासु तुमं ठवेऊण जलण्णेसगणिमित्तं पत्थिओ । दिद्वं च मए महासरवरमेकं । पटुपवणपयत्त पिच्चुच्चसं नल्लवीलीविलुत्थलमच्छच्छडाहच्छपुच्छष्पहाराउलुव्वेल्लकल्लोलयं, परिसर परिसंठियाणे यकारंड तुंडोह-संखोहसंखुद्धगंभीरणीरोहदी संत मज्झट्ठियाणं तजंतुप्पयारालयं । सुसुरहिपरियतमंदाणिलुवे (व्वे)ल्लकल्लोलहलन्तकंदो वो सट्टगंधंधलुद्वा लिमालाकउदामवट्टंत कोलाहलारोलियं, तडरुहणिवर्ड तपप्फुल्लफुल्लप्पयारुल्लसंतुद्रफुल्लंघुयावद्धसंगीयशंकारपज्जुत्त पेज्जालपज्जुत्तेयं ।। ११२ ।। अवि य १२ भणमा सू । २पि कारणं काउं जे । ३ या रमणीयसमयम्मि जे । ४ कि पओय सू । ५ तुम्ह गया सू । ६ साहि प्पड जे । ७ ण भणिओ वरघणू-तं अणुहूयं साहसु । तेण भणियं-कुमार ! सू । ८ हस्तचिह्नद्वयान्तर्गतः पाटो जेपुस्तके नास्ति । ९ स्मिन्नाथचरण एकोनचत्वारिंशद् द्वितीयस्मिन् पञ्चचत्वारिंशत् ततीयेऽष्टचत्वारिंशत्, तुर्ये च चरणे द्वाचत्वारिंशदक्षराणि वर्तन्त इति विपदण्ड कच्छन्दोजातिविशेषरूपोऽयं दण्डकच्छन्दोविशेषो ज्ञेयः Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२ बंभयत्तचक्कवडिचरियं । ११४ ॥ णाणाविहघडदुमसंडमंडलल्लीण बहुकारंडं । तीरद्वियकलचकाय- हंस-सारसकयाया ॥ पत्रणाहयचदुलतरंग पसरिउद्दामणिम्मलतुसारं । वियसंतसरसतामरस रेणुपिंजरियगीरोहं ॥ कण्हा (ल्हा) रसरस के सरपयत्तगंधागया लिहलबोलं । कल्लोलतालणुद्दलिय पंडुबिसखंड मंडिययं ।। ११५ ॥ इय सयलजंतुसंताणजणियसुहसंपयं सरं सहसा । दिडं जलणिहिदित्थारविन्भमं झत्ति णरणाद ! ॥ ११६ ॥ ओ तंतरलाण (ग) वेल्लियचटुलवी लिसंग लिउच्छलं तजलतरंग संज गिय डिण्डीरपिण्डं सलिलकी लागय वणकरिकुलपरिमलियपरिवियडतीरतरुत्ररतलं अणेयसस-पसय-मियं बराह - रुरु सरह -सम्बर सहस्सोवरिभुज्जमाग पेरन्तं दिडं पलसatai महासरवरं । ११३ ॥ २२७ तं च पलोइऊग 'जीविओ मि' त्ति मण्णमाणो तुम्ह णिमित्तं भरिऊण सलिलस्स गलिगिदलविणिम्मिए दोणि पुडए 'अपणा किर पियामि' त्ति समुपाडिओ करयलंजली तात्र य सुमरियं तुम्हाण । वितियं च मए - ' ! दुत्तरवसणायडम्म पडियम्मि भतगयम्मि । तण्डुण्हपहपरित्समपरव्वसावयव देहम्मि ।। ११७ ॥ पहगिल्लूरियसुकुमारचलणपडिभग्गगमणपसरम्मि । दरियारिभयपलाजम्मि मग्गिरे अन्तगो ताणं ॥ ११८ ॥ रे रेकग्य ! णिग्विण ! अलज्ज ! पम्हुहसामिसम्माग ! | जियजीयकज्ज संजणियसुहपिवासासविण्णास ! ।। ११९ ।। जं मोतुं गरुयपि सत्रणविसंठुलविणीसहं कुमरं । इच्छसि तेणेय त्रिणा वि जीचिउं सलिलपाणेग ? ' ॥ १२० ॥ इय एवं परियढियचिंतासंजणिय सोय संतावो । मोचूण सलिलपाणं विणिग्गओ सरवराहें तो ।। १२१ ॥ गरुयद्वाणसंज़णियैखेयालसो य तुह समीवं जाव गंतुं पयत्तो तात्र य सहस च्चिय सण्णद्धबद्धपरियरायारेहिं कंर्यंतदूहिं व ताडिओ भडेहिं, दढयरपयपहरगब्भिणं च बद्धो गिद्दयं । ' रे रे वरधणु ! कहिं कहिं बम्भयत्तो ? ' ति पुगरुतं भणमाणेहिं णीओ यियसामिणो समासं । सो य मं दट्ट्ण अभुट्ठिकंग सरहसं 'जयउं जयउ भट्टिदारउ ' ति जयकारो (रं) कओ (? काउं) भणिउं पयतो जहा - महाभाय ! अहीयं मया तु तायस्स समीवे, भाया तुमं मम, अरं च ओलग्गिउं पैयट्ठो कोलवियावि, ता साहिप्पउ कत्थ कुमारो ? | मया भणियं ण याणामि । तओ तेण वारिज्जमाणेहिं पि दद्वयरं ताडिओ अहं । ताडिज्जमाणेण पयपहार त्रियणावियज्झेण भणियं जहा - जइ अवस्सं तुम्हाण गिब्बंधो, ता कुमारो खइओ पुल्लिंगा । तेहिं संलत्तं - दंसेहि तं पदेसं । तत्र असमंजसणिहित्तपयणिक्खेव समागओ तुह दंसणगोयरावसरं । 6 पलायसु ' त्ति कया तुम्ह सण्णा । मया वि परिव्त्रायगदिष्णा पक्खित्ता वयणम्मि गुलिया । तप्पड़ावेग य निमीलियं व लोणवलयं, पणट्टो व चेद्वाविसेसो, 'णिरुद्ध व ऊसासा, णिवडिओ धरणियले । तओ 'म' ति कलिऊण समुज्झिऊण मं गया ते पुरिसा । चिरवेलाए य अत्रणिया मए वयणाओ गुलिया । उट्ठिओ तप्पएसओ गवेसिउं पयत्तो तुम्हे | अपेच्छमागो य दैढयरं परितप्पिरं पयत्तो, कह ? - तुह पहु ! पंथपरिस्समखुहा-पित्रासोहपच्चवाइलं । कुच्छियसयणा-ऽऽसग-सावया ऽहिभयकारणं कलिउं ॥ १२२ ॥ कह होही ?, कं भणिही ?, को दाही तस्स भणियमेतेण ? । कत्थ व बसिडी ?, करस य जियच्छिही वयणयं मुद्रो ? ॥ १२३ ॥ एसो पेच्छामि अहं, एस कुमारो ण, खण्णुओ एस। 'एसो सदेइ ममं ' मुहा पलोरमि पाप्ताई ॥ १२४ ॥ विहेयमहिजणिय संचरणसुक्कतरुपत्तमरमरासदं । ' एसो 'ति तम्मुहो झत्ति मज्झ धावंतिणरणाई ॥ १२५ ॥ इय मज्झ को कहेही 'एस कुमारो' त्ति ?, अह 'सई चेत्र । पेच्छिस्सामि' त्ति भमामि एवमेवं चवितो ||१२६ ॥ एवं चतुविओपसरियदी हरणी सासायास सोसियसरी पत्तो का का त्रि किलेसेग एकं नामं । तत्थ य दिडो मैए एक्को परिवाओ। कयं च से अभिप्रायणं । तेण भणियं वरघणू पित्र लक्खिजसि । मया भवियं-भयवं ! कीस व्यव १ "पिवासास) समविस सू । २ य खेयमाणंगो य सू । ३ परतो जे ४ तु सू । ५ 'जुगलं जे । ६ णिरुमा Jain E सूतमहं परि जे । ८ अहं, अह कुमरो पेय खजे । ९ विग्हमइज जे । १० ठायंति जे । ११ मया सू | Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२८ चउप्पन्नमहापुरिसचरिय। मूढो सि? । तओ सेण मह सबहे कुणमाणेण सिहं जहा-हं तुह तायस्स पियमिचो वसुभागो णाम, ता वीसत्यो होऊण साह 'कुमारो कत्य वट्टइ ?" त्ति । मया वि तस्स सव्वमवितहं साहियं । तओ सो विसायसामलियमुहमंडलो मह साहिउं पयत्तो जहा-पलाणो अमच्चधणू, तुइ जणणी य कोसलाहिवइणा पाणवाडए पक्खित्ता । ऐय चाहमसणिपडणाइरित्तं तस्स बयणं सोऊण णिवत्तियइंदूसवो व्व इंदद्धओ धस ति वमुहायलम्मि णिवडिओ । समासस्थस्स य तुह विरहजलणजालाक[व]लियंगस्स महाखए खारो व्व, मालणि वडियस्स पायपहारो ब्व, समरंगणंपाडियमुद्धस्स ऊसासउ व्य, वियम्भिओ जणणि-जणयावमाणणुब्भवो सोयपयरिसो । भणिओ हं वसुभागेण-वरधणु! अलं परिदेविएण, ण कायच्चो खेओ, ण परितप्पियव्यं तुमए, कस्स वा विसमदसापरिणामोण होइ ? । मया भणियं-महाभाय ! किं मम परितप्पिएण कीरिही, कह ?जस्स परिओस-रोसा वि णिप्फला जति जंतुणो भुवणे । उच्छुपस्यस्स व णिप्फलेण किं तस्स जम्मेण ? ॥ १२७ ॥ तो काऊणं मह हेउ-उँयाहरणाईहिं समासासणं, दाऊण बहुविहे गुलियाजोगे तुम्हाणमण्णेसँणत्थं पेसिओ म्हि त्ति । अहं पुण परिवायगवेसं काऊण कंपिल्लपुरमइगओ । तत्थ य मए सबलोयस्स अहिगमणीयं अवलंबियं कावालियत्तणं। केरिसं च?णरसिरकवालमाला-मयूरपिच्छुद्धचिंधयाहरणं । उम्भडविचित्तचीरीपच्छाइयवच्छबीभच्छं ।। १२८ ।। बहुविहविहंगतणुपिछलंछणुच्चइयसिरिकयामेलं । करयलताडियक [- - -] यडमरुयारावभीसणयं ॥ १२९ ॥ मयवसपहोलिरायंवमउलि[?यबत्ततारयाणयणं । मग्गाणुलग्गकलकलियकायलीकोमलग्गीयं ॥ १३० ॥ इय सयललोयलोयण-मणाण संजणियचोज-माहप्पं । अवलम्बिज्जइ कावालियत्तणं किं पि कलिऊण ।। १३१ ॥ ज्य एवं च जहक्कम परिब्भमन्तो गओ पाणवाडयं, 'भिच्छाणिमित्तं परिभमिउं घराघरिं पयत्तो । तओ तेहिं पाणेहि 'भयवं ! किमेयं ?' ति पुच्छिएण मए संलत्तं-एसो मायंगीए भयवईए विज्जाए साहणणिमित्तं कप्पो त्ति । एवं च तत्थाणवरयं वियरमाणस्स संजाओ एको आरक्खियपुत्तो मह मित्तो । सो य मए अण्णदिणम्मि भणिओ-गच्छ वरधणुजणणि भण जहा-तुह सुयस्स पियमित्तेण कुंडिल्लणामेण पायवंदणं संदिटुं, भणियन्या य-ण चित्तखेओ कायचो, अइरा चेय. किलेसोक्समो भविस्सइ त्ति। साहियं च तेण गंतूण जं मया संदिटुं । बीयदिणम्मि य सई चिय गओ हं। दिहा मए । पणमिऊण अंतोणिहित्तगुलियं पणामियं से माहुलिंगं । अवगओ तप्पदेसाओ। खइयं च तं तीए माहुलिंगं । तप्पहावओ णिवडिया धरणिवटे, जाया य णिच्चेट्टा, पणहा ऊसासाइणो । तओ तेहिं गंतूण सिर्ट राइणो जहा-अमच्चपणइणी लोयन्तरमइगया। राइणा भणियं-करेह सकारं ति । पेसिया णिययपुरिसा। दिद्वा य तेहिं । काउमाढत्तं रायसासणं । भणिया य ते मए-जइ इमाए वेलाए कुणह सकारं तओ तुम्हाणं राइणो य ण सोहणं । ति मुणिऊण पेसिया रायपुरिसा मायंगमयहरेण । गएमु य तेसु भणिओ मया णिययमित्तो जहा-किण्हनउद्दसी इमा, अवसरेणेव संपडिया इमा महामञ्चपणइणी सयलसंपण्णलक्खणा, जइ तुमं सहायकिच्चं कुणसि ता करेमि अहं मंतसाहणं, सिद्धे य मंते जमेवमेकवत्थु चिंतिजइ तमेव संपडइ । तओ मित्तेण मे रहस्सम्मि जहावट्ठियं भणिओ पाणमयहरो। पडिस्सुयमणेणं । ताव य समागया रयणी । णीणिया दुवेहिं पि तेहिं मह जणणी। सरिसा चेय गया विवित्तं दूरमेकं दिसाभायं । तओ मए अलियाडम्बरं काऊण समालिहियं मंडलं, अचिया बलि-कुसुमाईहिं दिसावाला, ठाविया दक्खिणसिरा, पूइया चलणेसुं, पज्जालिओ जलणो, समंतजावं च पक्वित्ताओ आहूईओ, निव्वत्तो चरू । भणिया य दुवग्गा वि ते मए जहा गेण्हिऊण चरू कुसुमाइं च वचह णयरवासिदेवयाणं माउयाणं च काऊण अचणं समागच्छह त्ति । गया य ते। १ साहिय जे ! २ एवं सू । ३ णमुद्धस्स : सू. 'णपाडियस्स ऊ जे। ४ उदाहरणेहिं सू । ५ °सणे पे सु। ६ हस्तद्वयाततः पाठी जे पुस्तके नास्ति । - तत्थ परिभ' जे । ८ भिखाणि जे । १ च तं पाणवाय विय जे । १० दुक्रगेहिं जे । ११ 'कुसुमेहि स । Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२ बँभयप्तचक्कवट्टिचरियं । २२९ तओ गएसु तेसु । मया अण्णा विदिण्णा से गुलिया । तयणुहावओ य सुत्तविरुद्ध व्व समुट्ठिया वियंभमाणा । णिवडिओ हैं चलणजुबलए । जाणाविओ अप्पा । पयत्ता रोविडं । मए भणियं ण एस कालो रोवियव्त्रस्स, एहि लहं अवकमामोति । गयाणि य तुरियपयणिक्खेवं उत्तराभिमुहं जोयणमेतं भूमिभायं । पत्ताणि य कच्छा हिहाणं गामं । तत्थ य मह पिउणो वयंसो देवसम्मो णाम बंभणो । तस्स य गेहम्मि ठविऊण समासत्थाए सिट्ठो कुमार ! तुहसंतिओ वुत्तन्तो । सोऊण ये मए णिरंभमाणा वि बहलंसुसलिलपडिरुद्धलोयणप्पसरा पलावबहुलं च परिदेविडं पयत्ता । कह ?– पप्फुल्लकमलकोमलदलुज्जलालोयललियमु हैबिम्बा ! । अहिणवविसदृकंदोट्टपत्तकंतिलणयणजुया ! ॥ १३२ ॥ मणहरला यण्णाऽऽउण्ण विमलगंड यलमंडलाहरणा ! । चरियाणुद्धय ! मुद्धय ! कुमार ! सुकुमारचलणयला ! ॥ १३३ ॥ hore बाहिविणिग्गयस्स परिदेविरी दढं जाऽऽसि । स च्चिय जणणी मरणस्स कारणं पेच्छ विहिचरियं ॥ १३४ ॥ सुकुमालफंसमणोहरम्मि वसिऊण महरिहे सयणे । कह वौच्छिसि कठिणकुसारसक्करिल्ले महीवट्ठे ? ।। १३५ ॥ कं भणिहिसि तण्हुण्हामिलाण देहो छुहापरिस्संतो । वरधणुविरहे दीहरपवासदुक्खाण मज्झगओ || १३६ ॥ बालम तुह चैलिय - कीलियव्वाई संभरेऊण । सहस त्ति जंण फुट्टइ हिययं तं णूण वज्जमयं ॥ १३७॥ सरिऊण अत्तणो पाणवाडयावासदासभावत्तं । अप्पाणो वि ण रोयइ किं पुण मह भोयणं भोतुं ॥ १३८ ॥ इय चंडालणिवासो धणुणिण्णासो ण मे तहा डहह । जह भरिऊण पवासं कुमार ! बहुसो तुहं हिययं ॥ १३९ ॥ तओ सा एवं विपलावे कुणमाणी कह कह वि समासत्थीकया । भणिओ य मए देवसम्मो - एसा मह जणणी 'तुह णिक्खेवो' त्ति सोहणं दहव्वा, जावाहमागच्छामि । एवं च तेण पडिवण्णं । तओ हं काऊण जणणीए पणामं णिग्गओ तप्पएसाओ । परिब्भमंतो समागओ इहई । जायं च तुमए सह मह दंसणं ति । 46 एवं च वीसंभणिन्भरं मंतयंताण अइकंता काइ वेला । ताव य समागओ एक्को मणूसो गामार्हितो, भणिउं च पयत्तो'महाभाय ! ण कत्थइ हिंडियव्वं तुम्हेहिं, जेण तुम्हाणं समाणरूव-वओविसेसं पडे लिहिऊण पुरिसजुवलमाणीयं कोसलाहिवइणो निउत्तपुरिसेर्हि । दंसिऊण य भणियं तेहिं - एवंवि हरूविणो एत्थ दोणि पुरिसा समागयति । एवं च पेच्छिऊण समागओ तयंतियाओ अहं । दिट्ठा य तव्विहरूवोवलक्खिया तुम्हे । संपयं जं वो अहिमयं तं कुणह " । त्ति भणिऊण fare तम्मि दो वि अम्हे वणगहणंतरालेण विवलायमाणा समागया कोसंबिं । तत्थ य गरवाहिरुज्जाणम्मि दिद्वं दोन्हं सेट्ठिसुयाणं सागरदत्त - बुद्धिलणामाणं पयत्तं कुक्कुडवारं । पणीकाऊण सयसहस्सं संपलग्गं कुक्कुडजुज्झं । पहओ सागरदत्तकुक्कुडेणं बुद्धिलकुक्कुडो । पुणो घुद्धिलकुक्कुडेण सागरदत्तकुक्कुडो पहओ, भग्गो य पराहुत्तं सागरदत्त कुक्कुडो, ण याहिमुहं कीरमाणो वि समहिलसा जुज्झिउं । च पिडिमुहं दट्ठूण भणिओ मए सागरदत्तो भो ! कीस पुण एसो सुजाई विभग्गो कुक्कुडो, ता पेच्छामि णं जइण कुप्पह तुम्हे । तओ सागरदत्तेण भणियं भो महाभाय ! पेच्छ, ण य मह एत्थ दव्बलोहो, किंतु अहिमार्गेमेस्थावरज्झइ । एत्थावसरम्मि य पलोइओ वरघणुणा वुद्धिलकुक्कुडो । दिट्ठा य चलणेसु णिबद्धा लोहसूई । लक्खियं च बुद्धिलेणं णिहुयं । तेण य पडिवण्णं वरघणुणो अद्धलक्खं । अणुवलक्खं च साहिओ एस वइयरों मह वरघणुणा । तओ मया बुद्धिलकुक्कुडस्स कड्ढिऊण सुई भेडिओ सागरदन्तकुक्कुडस्स । पराजिओ तेणं । परितुट्टो सागरदत्तो । पप्फुल्लवयणंकओ 'ऐंह अम्ह गेहं गच्छामो' त्ति भणिऊण अम्हे वलइऊण "संदणवरम्मि पयत्तो णिययघरहुत्तं सायरदत्तो, पविट्ठो" यरिं । अम्हे हि कोउहल्लुल्लसन्तदिद्विपसरा पलोएमाणा जयरिवाहिशेब [वण] मणहर परिसरप्प से, नियच्छमाणा पायाल - मूलावलग्गफरिहाविसेसं धवलकर (वि) सीसउवलक्खियं से सप (फ) गामंडलोवमं पायारपरिवेसं, अवहोवासावसंतझुलं तचटुचामरं [पत्ता ] गोरदारं । पविसमाणेहि य गिओ खरमारुयाहयुच्छलियजलणिहिस्स व महंतो जणकलयलावो । पेच्छवयण जे | ४ सोत्थिसि सू । ५ चलणकी जे । ६ तुमं सू । ७ तुम्हे १० तुम्मे जे । ११ णमेव [ए] तथा सू । १२ यं चैब पडि सू । १३ सुई ट्ठो नयरं । नओ निययभवणं । समाइट्ठो य तेण निययपुरिसो जे । १ य मे भिमाणा जे । २ हबिंब ! जे । ३ स सु । ८ "तराले विव सू । ९ नगरियाचाहिं सू । भिडिओ जे । १४ एहि जे । १५ सदगम्मि सू । १६ Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३. बउप्पन्नमहापुरिसचरियं । माणा [य] सरयन्भविभमुत्तुंगधवलभवणोवसोहियं पउरयरजणसमूहोवरुद्धणिग्गम-पवेसं तिय-चक्क-चच्चरोयरपयत्तपेच्छणयमिलियनगसमूहं मइरामयखलियविलासिणिचलणणेउरारावमिलन्तहंसउलं सइपयत्तूसवाणंदविरइयतूररवावूरियसवणविवर पविद्या सागरदत्तभवणं । समाइट्ठो य तेण णिययपुरिसो जहा-दंसेसु एयाण महाणुहावाणं वासभवणं । णीया य तेण अम्हे सहरिसं । दंसियं च मणहरसेज्जा-ऽऽसणोवयरणसंपुण्णमावासभवणं । 'एत्य गिवसह' ति भणिऊण गए तम्मि तो अहमच्चतरमणीयत्तणओ पवड्वमाणकोउहलो' पुलोइउं पयत्तो समचउरंससंठाणं कयवालिविरइयदयालयलं(?) मरगयमयमयरमुहोवलक्खियपणालणिवहं बालकयलीहरन्तट्ठियलयामंडवपरिखित्तभवणोववणं घरदीहियासंचरंतभवणकलहंसकयकलरवं भवणवावियासमुग्गयकुसुमतरुपरिमलल्लीणरुटुंताऽलिमुहलियं [? वासभवणं] । ठिओ एक मुहुत्तरं । ताव य समागंतूण भणइ एगो सायरदत्तपेसिओ पुरिसो जहा-उठेह, मजण-भोयणाइयं ठिई णिवत्तह त्ति । तओ तस्स सायरदत्तस्स पियं कुणमाणेहिं कयं सव्वं पि करणीयं । एवं च तस्स पीतिपुरस्सरमुवचरन्तस्स तण्णेहाणुरायपडिबद्धा ठिया कइवयदिणाणि। - अण्णया य वुद्धिलपेसिओदासचेडो समुट्ठवेऊण वरधणुं विवित्तम्मि किं पि भणेऊण गओ । तम्मि य गए वरधणुणा मज्झ साहियं जहा-जं तं मह बुद्धिलेण अद्धलक्खं पडिवणं तप्पवेसणत्थं चत्तालीससहस्सीओ हारो एयस्स हत्थे पेसिओ। दंसिओ उग्घाडेऊण करंडया फुलोइओ मए । तं च पलोयमाणेण दिट्ठो मए बंभयत्तणामंकिओ लेहो । तं च दद्रुण मए भणियंकस्सेसो लेहो ?। वरधणुणा भणियं-को जाणइ ?, वहवे खलु बम्भयत्तणामोवलक्खिया पुरिसा भवन्ति, किमेत्य चोज्नं ? । ___ एवं च जाव परोप्परमालावो वट्टइ ताव तिपुंडैमंडियतणू समागया वच्छा णाम परिवाइया । अक्खय-कुसुमाइयं च पक्खिविऊण उत्तिमंगम्मि 'पुत्तय ! वाससहस्सं जीवह ति भणन्तीए एक्कन्तम्मि वाहित्तो वरधणू । तेण य समं मंतिऊण कि पि पडिगयाए पुच्छिओ मैए वरधणू जहा-किमेसा जंपइ? त्ति । वरघणुगा भणियं-"एयाए इम जहा-जो सो तुम्हाण वुद्धिलेण रयणकरंडयम्मि हारो पेसिओ तेण सह लेहो समागओ तमोप्पह त्ति। मया भणियं-- एसो खु बंभयत्तरायनामंकिओ दीसइ, तां साहह अणुवरोहेण 'को सो बंभयत्तो राय ? त्ति । तीए भणियं-वच्छ ! मुबउ, किंतु ण तए कस्सइ साहियव्वं । अस्थि इहेव णयरीए सेट्ठियां रयणवती णाम कण्णया । केरिसा य ?-. सुसिलिट्टसंगयंगुलिदलाऽऽविहावियसिराविहाविलं । उन्धहमाणी सुसिलट्ठमुण्णयं गूढचलणजुयं ॥ १४० ॥ राओ लायण्णऽमल(ले) तणुम्मि तीसे णलद्ध संठाणो । संलग्गो पयजुवलम्मि वाल(?पाय)सेवाहिलासो च ॥१४॥ मासलनिगूढदढगुप्फजायसुकुमारसुंदराया । अणलक्खियरोमालक्खपिण्डियं जंघियाजुवलं ॥ १४२ ॥ अण्णोण्णसंगयामूलमिलियथोरोरुवित्थयणियम्बं । मणहरसहावगंभीरणाहिपरिमंडलावत्तं ।। १४३ ॥ वेल्लहलबाहुलइयावलम्बिकरपल्लवाऽऽव्य(व)लावयवं । सुपसत्थतिलेहाहरणहारिवरकंघरदंतं ।। १४४ ॥ वरणयरिं व सुवित्थिण्णदीहरच्छंजणुजलालोयं । अप्पडिमदंतसोहोवहूसियं वणकणेरु य ।। १४५ ॥ मुहुयहुयासणडज्झतहन्वपडिबद्धधूमवडलं व । उन्धहमाणी अंसावलम्बि घणचिहु[]पभा ॥ १४६॥ जिम्मलभालयललुलन्तचटुलपरिघोलिरालयद्धन्त । संपुण्णगंडमंडलमणोहरुम्मिल्लमुहसोहं ।। १४७ ॥ सियतलिगसिचयसंजणियकंचुउच्छइयसिहिणपरिणाहं । ससिलेह-पवरधवलब्भसन्ततीपिहियपरिवेसं ॥ १४८॥ इय चक्कावलिपरियलियकंधरं वयगयं समुबहइ । सेविजतं ससिसंकिरोहिणीपरियणेणं व ॥ १४९ ॥ सा य रयणवती आबालभावाओ चेव मया समं जणियवेसंभसब्भावणिब्भरा रहस्सकहापरायणा चिट्टइ । सबस्स य णियपरियणस्स मज्झम्मि मं चेव वल्लहं मण्णमाणा अहिरमइ संकहासुं । अण्णया य णाइचिरदिणगयाए दिट्टा मए किं पि हिययगयमत्थं झायमाणा पवरपल्लंकियापल्हत्थतणुलया एककरकिसलय पैरामुसियसवणमंजरी वामभुओवहागीकयक्यणमंडला अणिमिसोवलक्विज्जमाणणयणकुवलया पुरओ संकप्पलिहियं पित्र पेच्छमाणा किं पि हिययगयमत्य झाय प च संठिया। तं च तहाविहं अणणुहूयमवत्थंतरं "तीसे दट्रण कंपमाणहियेया गया है तीए समीवं । भणिया य मए-पुत्ति रयणवइ किं चिंतेसि? त्ति । तओ तीसे परियणेण मह साहियं-अज्ज यहुदिणाणि १°लो पलोएतो त विजाहररायभवणं ठिओ मुंहुतंतरं । ताव य जे । २ च पइदिण मुवयरिजमाणा तण्णेहा जे!! समुहावेजे। ४ पुलइओ जे । ५ 'डमंडिया संजे। ६ मया सू । ७ का डम्मि सू । ८ तो जे । ९ या सयलगुणगणोक्वेया २६ व रूय-सोहग्गसहावेहि रयणवई जाम । सा य आबालभावओ जे, (१४९ गाथानन्तरम)। १. परिमुसियसमण सू । ११ तीए जे। १२ हियरया स। www.jainenbrary.org Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३१ ५२ बंभयत्तचक्कवटिचरियं । बटुंति, णालबइ सहियणं, ण वाहरइ चिरपरिचिए पंजरसुए, ण चारेइ भवणकलहंसणिवहे, ण परिभमइ भवणुजाणपायवेसं. ण मज्जइ घरदीहियासं, णालिहइ चित्तवट्टियाहिं, ण संजणइ पत्तच्छे जं, ण बहुमण्णए आहरणविसेस, णो कुणइ वीणाविगोयं, णोहिणंदइ सरीरहिइं, णाहारमभिलसइ त्ति, केवलमंतोणिरुम्भमाणुव्वेवणीसासणिहित्तसूइयावेया थलगयमच्छुस्थल्लिय व तल्लुव्वेल्लं कुणमाणा अम्हाण मणुव्वेवमावहइ । तओ मए भणिया-पुत्ति! - कीस उणो तुम्ह(ह) मुहकमलपरिमलल्लीणपेल्लियालिउला । पसरंति गरुयपरियावसंसिणो दीहणीसासा? ॥ १५० ॥ एवं कीस वियंभियहिययावेउल्लसंतसेउल्लं । वयणं मिलाणलायण्णकतिपसरं समुबहसि? ॥ १५१ ॥ परिमंदमारुउव्वेल्लचटुलचूयग्गपल्लवालोलं । किं दीहरसासाऽऽयासधूसरं वहसि अहरदलं ? ।। १५२ ॥ एयं लसंततवणिज्जपिंजरप्पहबिहावियकवोलं । पुलयविमुक्कमणि( ? णी)कणयकुंडली(लं) कीस कण्णजुयं ? ॥ १५३ ॥ परियलियमुह[ल]मणियाणुरावसंवलियकंठपरिणाहो । णारुहइ कीस रमणो व्ध सुयणु ! थणमंडलो(ले) हारो ? ॥१५४॥ कोस मुहाऽऽचलणुव(ध)त्तणीसहोमुकसिढिललडहाई । अविलक्खपरित्ताणाई सुयणु ! सीयंति अंगाई ॥ १५५ ॥ परियणपुरओ सुंदरि ! पलावलज्जावियाए तुह कीस । जायंति तुलियदरमलियकमलसोहाई हसियाई? ॥ १५६ ॥ इय सुयणु ! साह मह सय ल[णियय]वु वुत्तंतमवितहं कलिउं । मुहिहिययम्मि विरित्तं होइ दुई स(सु)यणु! सुहवोज्झं ॥१५७ ॥ एवं च बहप्पयारं भण्णमाणा विण किंचि देइ पडिलावं, तहेव चिट्ठइ । तओ मए करयलेण परामुसिऊणमुत्तिमंगं, पुसिऊण सेयसलिलोल्लं वयणणलिणं भणिया य-पुत्ति ! किमेयं जोगिणि व्व जोगम्भासरया चिंतेसि ? । सा वि हु असाहणीयमत्तणो वियारमुवलक्खिऊण लज्जोणयवयणमंडला ईसीसि विहसिऊण णिवडिया मह उच्छंगे। तो मया णियपाणिपल्लवेण परामुसिऊण अंसप्पएसे सामपुव्ययं पुच्छिज्जमागी लज्जापरव्यसत्तणओ जाहे ण किंचि समुल्लवइ ताहे तीए चेव बालसही पियंगुलया णाम छाय न खणं पि पासाओ णोवरमइ बीयं पिव हियवयं, तीए भणियंभयवइ ! एसा खु लज्जापरवसत्तणओ ण तरइ साहिउं, अहं तुह साहामि-अस्थि इओ य अतीयकइचयदिणम्मि इमीए भाउयस्स बुद्धिलसेठिणो सागरदत्तसेटिणा समं सयसहस्सपणियं कुक्कुडवारं । तत्थ पेच्छियव्ययकोउहल्लत्तणी गयाए दिट्ठो अमरकुमरो व मणोहरतणू, मयरकेउ व्य जणियमयणपसरो, मयलंच्छणो म संजणियजणमणाणंदो. मयरायरो व णिचडियसिरिवच्छासओ, घणसमओ व्च णिव्ववियमहियलो, सरयसमो व्व वियसावियकमलायरो. हेमंतसमओ व्ध परिमलियसयलसासो, सिसिरसमओ व्व संकोडियवेरिवयणकमलो, वसंतमासो व्च रमणीयदंसणिज्जो, णिदाहसमओ व्य संतावियधरणिहरो एको पवरजुवाणो । सो य अणिमिसलोयणाए चिरं पलोइओ। तप्पभिई किं पि ज्झायमाणी ण कीलइ अंदोलएण, ण कुणइ संगीययं, दीहरपरिस्समणीसह व्व सयणीयम्मि मुयइ अत्ताणयं, परिमंदचंदणदाहि पि परितप्पए, कमलदलछिक्का वि मुच्छमावहई (इ), दरफुरंताहरपुडा रोमंचकंचुचइयबाहुलइया सेयसलिलगलियंगरायरंजियपच्छयणवडा विउज्झए णिदाविरामम्मि वि कह कह वि, आहासिया विण] पडिलावं देह । तं च मे सोऊण लक्खिओ से मयणवियारो, भणिया य सा मए बहुप्पयारं । तओ कह कह वि सम्भावमुवगया, भणइ यभयवइ ! तुम मह जगणी, अहवा पहाणसही, अहवा इट्टदेवयं, तं किं पि णस्थि जं ण होहिसि ति, ता किं तम्ह वि अकहणीयमस्थि ?, जो इमाए पियंगुलयाए सिट्ठो सो मह विमुक्ककुसुमचावो व्व कुसुमाउहो सहसा हिययमइगओ, किं बहुणा ?, जइ तं कइवयदिणभिंतरम्मि ण संजोएसि ता अवस्समहमप्पाणयं साहारि ण पारेमि त्ति । एयमायणिऊण भणिया सा मए जहा-वच्छे ! धीरा होहि, तहाऽणुटिस्सं जहा तुह समीहियं संपजिस्सइ । तओ सा पढमजलविंदपव्वालिय व वसुमती निव्वुया संजाया । अतीयदिणम्मि य साहियं मए तीए जहा-दिवो मए बम्भयत्तो। एय १ णाऽऽणदइ स । २. केवलं किं पि शायमाणा चिटुइ त्ति । तओ मए सयलं पि सहीहि कहियं वइयरं पच्चुत्तरतीए पुच्छिया जावण पडिलाव देइ तहेव चिटुइ सि । तो करयलेण परामुसिऊणुत्तिमंग, पुसि जे, (१५७ गाथानन्तरम् ) । ३. विहरिऊण जे । 'चि उल्लवइ स्। ५ तणू एको पवरजुवाणो । तप्पभिई चेय तग्गयमणा अणाविक्खणीयमवत्थंतरमणुहवती चिट्ठइ सि । एवं च मए सोऊण लविखओ से मयणवि. यारो। तहाविहवयणविण्णासेण य भणतीए कहाविया सयलं पि णिययाहिप्पायं । भणिया य सा मए जहा-वच्छे। धीरा होहि, तहाले। Jain Edur६ मथा-स al Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३२ पन्न महापुरखचरियं । मायणिऊण य पच्चज्जीवियं पिव अत्ताणयं मण्णमाणा पम्फुल्लत्रयणकमला भणिउं पयत्ता - भयवइ ! तुम्ह पसाएण सव्वं सुंदरं भविस्स, किंतु तस्स विस्सांसणणिमित्तमेयं हारं रयणकैरंडयम्मि पक्खिविऊण पेसिहि, इमं च बम्भयत्तणामंcियं लेहं ति । अणुट्ठियं च तं तहा कैलं मए' । ता महाभाग ! एसो लेहवइयरो । मए समप्पिओ तीए पडिलेहो" । एयं च वरघणुणा साहियं णिसामिऊण अदिट्ठाए वि रयणवताए पट्टिओ तीए उवरिं दंसणाहिलासो, पयत्तं हिययम्मि कोऊहलं, वियम्भिओ मयणसंतावो । तदंसणसमागमोवायमण्णेसमाणस्स य गयाणि कइवयदिणाणि । वरि अण्णदिणम्मि समागओ वरघणू संभंतो बाहिराओ, भणिउं च पयत्तो जहा - कुमार ! इहणयरिसामिणो कोसलाहिवेण अम्हा गवसणाणिमित्तं पेसिया पच्चइयपुरिसा, पारद्धो य इमिणा उवक्कमो, पयत्तो गयरीए हलहलारवो । मुणिऊण एवं atri सायरदन्तेग गोविया भूमिहरयम्मि अम्हे । समागया रयणी । भणिओ मए सागरदत्तो जहा - तहा कुणसु जहा अम्हे अवकमामो । एयं चाऽऽयण्णिऊण पणामिओ णेण सयलपहरणा-ऽऽवरणाइपज्जुत्तो पत्ररसंदणो । समारुहिऊण य तत्थ अम्हे विणिग्गया ससिणेहं तेणाणुगम्ममाणा णयरीओ । गया थेवं भूमिभागं । अणिच्छमाणं पिकह कह विणिव्वत्तिऊण सागरदन्तं पयट्टा अम्हे । णयरि[ ? बाहिरि] यजक्खा[य]यणुज्जाणपायवन्तरालपरिसंठियसुपडि पुण्णाणेयपहरणविसेसरहबराहिद्विया दिट्ठा कुसुमाउहविरहिया रइ व्व एका पवरमहिला । तओ तीए सायरमन्भुट्टिऊण भणियं - किमेत्तियाओ वेलाओ तुम्हे समागय ? त्ति । तमायण्णिऊण मए भणियं सुंदरि ! के उगो अम्हे ? । तीए भणियं - सामि ! तुम्हे खु बम्भयत्त-वरघणुणो । मया भणियं -कहमेवमवगयं तुमए ? । तीए भणियं - “ जइ एवं ता अवहिएण सोयें, आस starrer तुलियघणवईघणसमुदओ घणपवरो णाम सेट्ठी । तस्स य रयणसंचया णामें पणइणी । जाया य "तीए अहमपुत्ताण उवरिं वल्लहा जणणि-जणयाणं । अइकंता बालत्तणाओ । अण्णया य विभमेककुलहरे सयलजगाहिलसगीयम्मि संपत्ते जोनवणे अपरिसमाणा णिययकुल- रूत्र- विहवुत्तमेनुं पुरिसविसेसेसुं अच्चन्तरूत्र-सोहग्ग-संत संपण्णपुरिसमिच्छमाणी पत्ता हूं बहुजण संपाइयजहासमीहियवरप्पयाणं एयं पवरजक्खमाराहिउं । अण्णया य गरुयाराहणपरितौसिएण पञ्चक्खं चेत्र भणिय म्हि भयवया जक्खेग जहा-बच्छे ! अलं खिज्जिएण, अइरा चेत्र मज्झ वयणाणुहाओ तिसमुपज्जेतपुहतिपती तुह भत्ता भविस्सइ । पुणो मया भणियं भयवं ! कहं पुण सो मैंए मुणयन्त्रो ? । तेण भणियंपत्ते बुद्धिल सागरदताण कुक्कुडवारे जो समागच्छिही अणण्णसरिसागिई सिरिवच्छभूसियबच्छत्थलो सयललक्खणोओ पहाणेक्कणियसहायाहिद्विओ सो तुह पर त्ति मंतव्त्रो, सहियायणपासम्मि पडिच्छमाणीए य तुह तेण समं पढमं दंसणं भविस्सइति । ता पवरजखत्रणेण लक्खियालक्खलक्खणावास ! । पहु वंभयत्त ! सिरिवच्छलंछणग्घवियत्रच्छयल ! || १५८ ॥ तु पहु ! उत्तिपाडणभीयमणसाए कस्सर ण सिहं । जेण सँई चिय तेणेवमुच्च से छड्डिउं लज्जं ।। १५९ ।। तुम्हाणुरायवड्ढतमयणजलणं ममं कलेऊण । णिव्ववसु णियय सुहसंगसि सिरसलिलेण णरणाह ! || १६० || इय किंबहुना ?, ण हु एस अवसरो दूयर्जपियन्त्राणं । मोत्तुं पहुत्तणं भण्णसि त्ति जं तं ण लहुयत्तं " ॥ १६९॥ " एयं च समायण्णिऊण तीए वयणं त्रियंभियाणुरायपसरमन्भुवमयं मया । समारूढो तीए सह रहवरं । पुच्छिया य सा मए-कुओहुत्तं गंतव्वं ? । रयणवतीए भणियं -अस्थि मगहावुरम्मि मह पिउणो कणिहभाया घेणवहो णाम सेट्ठी, सो मैं तुम्हम्हाण मुणियवइयरो अवस्समागमणं अहिलसा, ता तात्र तत्थ गमणं कीरउ, उत्तरकालम्मि पुणो जहिच्छा तुम्हाण । तओ रयणवईत्रयणेण पयट्टो तत्तोमुहं । ठिओ सारहिकज्जम्मि वरधणू । गामाणुगामं च गच्छमाणा गिया को चीजण याओ । पत्ता य णिविडगिरिकूडसंकडिल्लं महाडई । तत्थ य कंटय-सुकंटयाहिहाणा दुवे चोरसेणावणो । ते यदट्ठूण रयण-कणयणियरोत्रहूसियं रहवरं अप्पपरिवारा य वरजुवईसमणिया अम्हे 'हेलास' कलिऊण पत्ता अभिदविडं, पयत्ता पहरिजं, कहं ? - ५ महाणुहाव ! जे । ६ एवं सू । ७ जखिणुज सय संपुण्ण' जे । १३ मया सू । १४ दत्तकुकुडपाडे एवं जे । १९ धणसत्थवाहो नाम सू । २० हु जे । १ अत्ताणं सु । २ विस्ससण जे । ३ करंडम्मि सू । ४ कल्ले मया जे । सू । ८ घुण सू९ होयध्वं सू । १० म घरिणी जे ११ तीसे सू । १२ जे । १५ या लक्खणाण आवास ! सू । १६ पवत्तिं जे १७ समं जे । १८ Jain कंड सुध्या जे । Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२ बंभयत्तचक्वट्टिचरियं । २३३ दट्ठोट्ठभीमफुडभिउडिभंगभंगुरियभालभंगिल्ला । 'हण हण हण' त्ति गद्दब्भसद्दपम्मुक्कहकरवा ।। १६२॥ आयण्णाकड्ढियमुक्कढिणगुणघायघडियटकारा। वित्थरियपउरणाराय-भल्ल-चावल्लसंघाया॥१६३ ।। हेलाए चिय मुक्कद्धयंद-चक्का-ऽसिछिण्णबाणोहा । पम्मुक्कधीरसुहडाहिमाणणिहसा खणे भग्गा ॥१६४॥ इय भंजिऊण पडिभग्गऽणेयभडमच्छरं पि पउरबलं । रहसेण णिसण्णो संदणम्मि सकलत्त-मित्तो हं ॥ १६५ ॥ पवरपवणपरिच्छूढ व्व जिण्णतणपत्थारी दूरं पणोल्लिया चोरसेणा । भग्गाए य चोरसेणाए भणिओ हं वरधणुण जहा-कुमार ! दढं परिस्संता तुम्भे मुहत्तरं णिहामहमिहेव रहवरट्रिया सेवह ति । पडिवण्णं च तं मए । शवण्णो स अह रयणवइए ताव य समइच्छिया रयणी। जाया पुव्वदिसाऽरुणा । पाविऊण गिरिणदि थका तरंगमा। पडिबद्धो है उट्रिओ वियम्भमाणो, पलोइयाई पासाई, दिदो वरधण। 'पाणियणिमित्तमोइण्णो'त्तिवाहित्तो ससंभमं । पडिवयण मलहमाणेण य परामसियं रहधरग्गभायं । दिदं च तं बहललोहियालिद्धं । 'वावाइओ वरधण' ति कलिऊण गरुयवि यम्भमाणसोयप्पसरो 'हा! हओ मि' ति भणमाणो णिवडिओ रहुच्छंगे । लद्धचेयणो य 'हा! भाइ वरवणु!' ति भणमाणो विप्पलावे काउमाढत्तो। कह कह वि संठाविओ रयणवईए। "ते पहु ! मया वि ण मया अहवा ते चेव णवर जीवन्ति । मरणेण जाण णिव्वहइ सामिसुह-मित्तकजोहो ॥१६६। मरणं पि ताण छज्जइ जयम्मि असमं महाणुभावाण । कुंदु-कास विसओ जाण जसो भमइ भुवणम्मि ॥ १६७ ॥ तस्सेय णवर सहलं जयम्मि मरणं महागुंभावस्स । जस्स पैहू जणियगुणाणुरायसोयं समुबहइ ॥ १६८ ॥ इय सव्वस्स वि मरणे साहीणे तस्स किं ण पजत्तं । जस्स पैहु-मित्तकज्जुज्जयस्स संपडइ मरियव्यं?" ॥१६९ ॥ एवं च भणमाणीए मोत्तूण सोयप्पसरं भणिया मए रयणवती जहा-सुंदरि ! ण णजए फुडं 'किं वा मओ ? किं वा जीवइ ? ' ति, ता अहं मग्गोहत्तं वचामि अण्णेसिउं । तीए भणियं-अजउत्त ! ण एस अबसरो पैच्छाहुत्तं गच्छियबस्स, कुओ ?-जेणाहमेगागिणी, चोर-सावयाइण्णं च भीसणमरणं, कलत्ताहिभवणं च परिभवट्ठाणं माणिणो, अण्णं च इह णियडवत्तिणा वसिमेण भवियव्वं, जेण परिमलियकुसकंटया दीसइ वणत्यली । पडिवण्णं च तहेव तं मए । पयट्टाणि मगहाविसयाहिमुहं । पत्ताणि य तविसर्यसंधिसंठियं एक गामं । तत्थ य पविसमाणो हं गामसहामज्झसंठिएणं दिट्ठो गामठक्कुरेणं । दसणाणंतरमेव 'ण एस सामण्णो' त्ति कलिऊण सोवयारं कयपडिवत्तिणा पूइओ णीओ णियघराहिमुहं । विदिण्णो आवासो । सुहणिसण्णो य भणिो हं तेण जहा-हो महाभाय! सोविग्गो विय लक्खिज्जसि । मए भणियं-मज्झ भाया चोरेहिं सह भंडणम्मि ण णज्जए किमवस्थन्तरं पत्तो?, ता मए तयण्णेसणणिमित्तं तत्थ गंतवं ति । तेण भणियं-अलं खेएणं, जइ इहाडवीए भविस्सइ तो अहं लहिस्सामि । त्ति भणिऊण पेसिया णिययपुरिसा, गया य । पञ्चागएहि य सिर्ट मज्म तेहिं जहा-ण अम्हेहिं कोइ कहिंचि सच विओ, केवलं पहारणिवडिओ एस पाणी पाविउ त्ति । तन्वयणायण्णणम्मि य 'गुणं विणिवाइओ' त्ति परियप्पिऊण गुरुसोयाउलि जंतमाणसस्स समोत्थरिया सव्वरी । गिवसिओ दइयाए सममहं । ताव य एकजामसेसाए जामिणीए सहसा तम्मि गामम्मि णिवडिया चोरधाडी । सा य मह पहारकैडुयाविया भग्गा परम्मुहा । अहिणंदिओ हं सयलगामाहिहिएण गामपहुणा । गोसम्मि य आउच्छिऊण गामठक्कुरं तत्तणयसहाओ पत्थिओ रायगिहं । पत्तो जहाणुक्कमेणं । तत्थ य णयरबाहिरियाए एकम्मि परिवाययासमे ठवेऊण रय गवई दूराओ चे धवलपासायमालोवलक्खिजमाणं णीलुप्पलपरिगयकमलसराहिटियं सत्तसाला-पत्रा मंडवपडिवज्जतपंथियजणं अहिणवकीरन्तदेवउलपकिट्टसंचयोवरुद्धपंथवित्यारं कुक्कुडरडियविहाविजंततयजणावासं णियच्छंतो बाहिरियाजणायं पविट्ठो णयरभितरं । पविसमाणेण दिछमेक्क १ आयण्णकढिउम्मुक जे । २ नदी जे। ३ सुहि सू । ४ बहू स । ५ बहु सू। ६ भगनाए जे। पच्छाहिमुह ग जे। ८ इमेयाइणी सू । ९ यसंघिट्ठियं जे । १० तो लहि जे । ११ कटुग सू ! १० वई पविट्ठो णयरम्भनरं । पविसमाणेश य दिमे कम्मि पएसे वीसयम्मविणिम्मिय [विय] एकं धवळहरं । दिठ्ठाओ य तत्थं पबरसुंदरीओ । ताओ य में दठूण पिसु जे, (१७३ गाथानन्तरम्) । Jain Education national Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३४ चउप्पन्नमहापुरिसचरियं । म्मि पएसे अणेयखंभुन्भूयसोहासमुययं बिस-ससहर-हास-कासघवलं अच्चन्तरमणी या]उव्वणिग्गम-पवेसं एकं धवलहरं । दिट्ठाओ य तस्थ पवरसुंदरीओ, केरिसाओं य? अमिलाणसरसचंपयपस्यदलगब्भगोरवण्णाओ । सुसमाहियभालयलुल्लसंतललियालइल्लाओ ॥ १७० ॥ कसणुबल-धवलुव्वेल्लदिद्विविच्छोहविन्भमिल्लाओ । कण्णावयंसमंजरिपिंजरियकवोलपासाओ ॥ १७१ ॥ परिवियडणियम्बत्थलबलम्गकंचीकलावसोहाओ । उत्तुंग-पीण-पीवरसिहिणभरोणमियमज्झाओ ॥ १७२ ॥ इय एरिसाओ मणहरजोन्वणणिव्वडियवरविलासाओ। सिरि-लच्छीओ व दिहाओ तत्थ वरसुंदरीओ मए ॥१७३।। ___ ताओ य मं दट्टण पिमुणियगरुयरायणिब्भरमुण्णामिएकभुमयाविलासविक्खित्तकडक्वविक्खेत्राओ भणिउं पयचाओ-जुत्तं किमिणं तुम्हारिसाण वि महाणुभावाण भत्ताणुरतं जणमुज्झिऊण परिभमिउं ? । संलत्ताओ ताओ मए को सो जणो?, कस्स वाऽणुरत्तो?, केण वो उज्झिओ?, जेणेवं तुम्हे समुल्लवह त्ति । ताहि भणियं-आगच्छह अणुवरोहेण ताव तुभे, वीसमह मुहुत्तयं । तमायण्णिऊण य पविट्ठो हं मंदिरभितरं । कयमज्जण-भोयणाइओवयारावसाणम्मि य मुहणिसण्णस्स महं भणिउं पयत्ताओ जहा-महाभाय ! ___ अत्थि इहेवै भरहे विविहमणिसिलासंघायुम्भडपडिबद्धवियडकडयम्मि उत्तुंगसिहरवइयरपडिभग्गरविरहतुरंगपसरम्मि मिज्झरझरझंकाररवारियदिसामुहम्मि सिहरकाणणंतरालकुसुमियपवरतरुसंडमंडियम्मि लयाहरंतरसुर-सिद्धकामिणीरइकीलाणिमित्तपरियप्पियकुसुमसयणीयम्मि मारुयपहम्मतरुंदकंदरुग्गयगहिरुच्छलंतसहसोहम्मि वेयड्ढगिरिवरम्मि दाहिणसेढीए सिवमंदिरं णाम णयरं । तत्थाणेयविज्जाहरमउलिमालचियचलणजुयलो जलणसिहो णाम राया। तस्स अञ्चन्तहिययदयिया विज्जुसिहा णाम पणइणी । तीए अम्हे दुवे धूयाओ, जेहो य अम्हाणं सहोयरो णटुम्मसो णाम । परिवड्ढियाई कमेण । अण्णया य अम्हाण जणओ पवरपासायतलम्मि अग्गिराय-अग्गिसिहाहिहाणेहिं खयरमिचेहि समयं पीइसमुप्पण्णमणहरालावपसरं पासणिसण्णेहि य अम्हेहिं उपसंपज्जमाणो णिसण्णो गोटिसंकहाए । णवरि य विविहमणिमयमउडकिरणपडिभिण्णसंवलियरवियरसबलीकयणहंगणं वियडवच्छुच्छलंतहारावलिविप्फुरियकिरणमियरं गइवसपसरन्तमारुयविसंखलुच्छलियसिचयम्गपल्लवं विमागोयरगिसण्णसुरसुंदरीविलासपलोइज्जंतमहिमंडलं विविहकरि-तुरयाइपरियप्पियवाहणारू भत्तिभरगिब्मरवियम्मि(म्भि)यजयजयारवादूरियदसदिसासो(भो)यं कुछ अट्ठावय. पबयाभिमुहं जिणवरवंदणगिमित्तं गच्छंतं पेच्छइ सरा-सुरसमृहं । तं च गच्छमाणं पेच्छिऊण तारण भणियं-अम्हे वि जिणवंदणत्थं वच्चामो । त्ति भणिऊण सवयंसो अम्हेहिं समयं पयट्टो विमलकरवालसामलणहयलेणं । पत्तो य जेहक्कम तमट्ठावयसेलसिहरं । ओइण्णो णहयलाओ समयमम्हेहिं । तहिं च पेच्छामु तिहुयणतेयं पित्र संपिडियकलहोयकमलदैरदलियदलणिहिप्पन्तकुसुमपसरं दिवाऽयरुदरदड्डमहमहन्तसुरहिसमुच्छलियपरिमलं कयभव्वहलहलारावमुहलियवित्थिपणजयइमम्गं सिद्धाययणणिवहं । तहिं च कत्थइ परियप्पियतार-महुर-परिमंदठाणयालग्गं । कलकंठकलियकायलिमणोहरं गिजए गेयं ॥ १७४ ॥ कत्थइ बहुविकरणं-उंगहार-करवट्टणाहिराहिल्लं । दीसइ णटं णिवडियफुडरसाहिणयसंजुत्तं ॥ १७५ ॥ कत्यइ णिवडइ(? णिबिड)घडंतावरोहसम्मद्दमडहियायामो । सुव्वइ णचिरहल्लीसमंडलीतालकयसद्दो ॥ १७६ ॥ कस्थइ णाणाविहरूबसेसविरइयसमुन्भडाडोरो । कयकेलितालमुहलो णच्चइ बहुभूयसंघाओ ॥ १७७ ॥ इय कत्थइ विविहाउज्जवजिराऽसंखसंखसंवलियं । सुरजणियजयजयरवं जिणाहिसेयं णियेच्छामु ॥ १७८॥ सखित्त सू। २ वा धरिओ जे ।३ व भारहे वासे वेयड्ढे गिरिवरम्मि दा जे। ४ हस्तद्वयान्तर्गतः पाठो जेपुस्तके नास्ति। ५ पेच्छए जे । ६ जहकमेण जे । ७ दलमलियदलगि सू । ८ है। अह तम्मि सुविविहाउज्जव जे, (१७८गाथायाम् ) । ९ नियअछामो ॥ तो सुरवइसवायर जे, (१८० गाथानन्तरम्) । Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२ बंभयत्तचक्रवहिचरियं । २३५ अवि यमुरबइबरहत्यपरहत्यसोवण्णकुम्भुच्छलन्तऽच्छखीरोयगीरेण पवालिउद्दाममाणिकसोमाणपंतीसमुत्तिण्णदीहप्पवाहोहयं, पउरसाललपेलणुव्वेल्लसत्तागउम्भिण्णगोच्छुच्छलंतालिमालाकउद्दामझंकारसंसद्दसंपुण्णणीसेसवित्थिण्णवोमंतरालोयरं । अलहुपत्रणणोल्लगऽभिट्टसंघटफट्टन्तवोमिंदणीलुब्भडुब्भूयसाहप्पहोहं विगिंतुद्धधूमोलिजालं व संछाइयासेसणिण्णुण्णय, पिहुलयरपयत्तगीरोहवाहेण वोच्छिण्णहेमच्छलुटंकसंजायभित्तीसु दीसंतणाणाविहाणेयमाणिक्कसोहासमुन्भासियासेसभूमंडलं ।। १७९ ।। किंच कयबहुजणरावमासलिल्लं, सजलघणावलिसद्ददिण्णसंकं । वियडकडतडोज्झरेसु भरन्तं, जिणवरमज्जणयं सुसाहु दिढें ॥ १८० ।। एवं च सुरवइसव्वायरणिव्वत्तियजिणाभिसेयं पेच्छिऊण, अन्तोवियम्भन्तभावणिन्भरं पणमिऊण तिहुयणगुरुणो विविहमणिमए पडिमाविसेसे, थोउं पयत्त म्ह, कह ? उच्छरन्तसंसारभडभडदलणयं, दुण्णिवारकुसुमाउहपहरविमाणयं ।। जणियसंजमुज्जल्लविणिज्जियकम्मयं, दुहसयत्तमवियायणमणकयसम्मयं ॥ १८१ ॥ ___ गुरुवम्महमयमलणयं, दुहसंसारुद्दलणयं । णमिमो भवभयजोहयं, सयलजिणाण कमोहयं ॥ १८२ ॥ तओ एवमादिणा थुइसंबद्धेण थोऊण जिणवरपयपंकए, काऊण पयाहिणं, जाव 'एकपएसम्मि उवविसामि ति चिंतियं ताव पवरासोयपायवस्स हेट्टओ णिसण्णं विगैयरति-रायपसरं कोह-मय-माण-मायमहणं णिरवज्जसंजमुज्जोयसज्जियमई दुर्द्विदियदलिउद्दामदप्पपसरं दुटकम्मणिठुरणिवणकयचेटियं संसारुच्छेयणजणियसमुच्छाहणिच्छयं दिढे चारणसमणर्जुवलं । दसणमेत्तेणेव उवसप्पिऊण पणमियं सायरं । पगमिऊण य निसण्णाण पयर्जुवलसमीवम्मि पत्थुया तेहि धम्मदेसणा, कह ?-- इह जाइ-जरा-जम्मण-मरणुबत्तणपरंपराकलिए । जलकल्लोल व्ध भमंति जंतुणो भवसमुदम्मि ॥ १८३ ।। परलोयणिब्भया दुल्लहं पि लघृण माणुसं जम्मं । अण्णाणमोहिया ण य कुणंति धम्मम्मि णिययमणं ॥ १८४ ॥ शृण ण पेच्छंति इमं जाइ-जरा-विविहवाहिदसपिल्लं । कयविविहजंतुसंताणघायणं मच्चुमुहकुहरं ॥१८५॥ जेण जहिच्छं सच्छंदविलसिउम्मग्गगामिणो मूढा । अच्छन्ति चत्तपरलोयकयहियायरणवावारा ॥१८६ ॥ बहुदुक्खलक्खसंजणियवियणसंतावतारयमणग्यं । गुरुयणवयणं घोट्टेति णेय अगयं व दिजंतं ॥१८७ ॥ जस्स किलिस्संति कए विसयसुहासाहिलासलोहेण । तं पि सरीरं खणभंगि पवण विहुयं व णिवफलं ॥ १८८॥ तह जोवणं पि पवियसियसरयकोजयपसूयसारिच्छं । तस्बिरमे उण विसया मयणुम्मच्छं पिछडेति ॥ १८९॥ जाब पियत्तणसंजणियचाडपरियम्महिययपरिओसा। णियदइया वि हु वयपरिणयाण विवरम्मुहा होइ ॥१९॥ जइ ण को वेरग्गो मणुयाण जरापराहवेणं-पि । ता तरुणिजणयसंभावणाए भणियाण विण जाओ ॥१९१॥ इय जो वि भाइ भइणी भज्जा सयणो व णेहपडिबद्धो । ण हु मच्चुगोयरगयं सो वि परित्ताइउं तरइ ॥ १९२ ।। अण्णं चणिम्भरमयड्ढवियलियकबोलमूलावलग्गदाणेहिं । दुजयजोहेहि व वारणेहि ण य वारिउं तरइ ।। १९३॥ चडुलयरखरखुरुक्खयखमायलुङ्ख्यधूलिपसरेहिं । तुरयारोहेहि वि णिसियसेल्ल-खग्गुग्गहत्थेहि ॥ १९४॥ हस्तद्वयान्तर्गतः पाठो जेपुस्तके नास्ति । २ भयवयजों सू । ३ "माइथुइ जे । ४ विगयरामघसरं संसारुच्छेयणजणिय' मे । ५ संसारवोच्छेयजणियमच्छरुच्छाह सू। जुयलं जे । ७ जुयल जे। ८ हस्तद्वयान्तर्गतेय गाथा जेपुस्तके नास्ति । ९ चाटुस। Jain a n international ' Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउप्पन्नमहापुरिखचरियं । बहुजणियसुहडसंघट्टणिस णिव्वूढसमरभारेहिं । सावरण-पहरणेहिं वि रहेहिं रहियग्गजोहेहिं ।। १९५ ।। णिसियासिहत्थवगंत कारमुकहकेहिं । पाइकाण वि णिवहेहिं सव्त्रओ रुद्धपसरेहिं ॥। १९६ ।। उनएसकयरसायणविज्जा-मंतोसहप्पयाणेहिं । उव्वरिडं ण हु तीरइ मरणाओ सुरा-सुरेहिं पि ॥ १९७ ॥ इय अधुम्मि जीए धुवे विणासम्म सव्वदेहीण । को णाम बालिसो जो उवेक्खए अप्पणी अँप्पं ? ।। १९८ ॥ २३६ भो भो देवापिया ! खणभंगुरं सरीरं, सरयन्भविन्भमं जीवियं, तडिविलसियाणुयारि जोव्वणं, किंपागफलोत्रमा भोगा, संझारायसमं विसयसोक्खं, कुसग्गलग्गजललवचंचल लच्छी, सुलहं दुक्खं, दुलहं सुहं, अणिवारियप्पसरो मच्चु ति । एवं ववत्थिए छडिज्जउ मोहप्पसरो, रुंभिज्जैउ सयलिंदियस्थो, भाविज्जउ संसारसरूवं, कीरउ जिणवैरप्पणी धम्मे मणोति । तओ एयमायणिऊण महियलमिलन्तभालवद्वेग पणमिऊण मुणिवरे ' भयवं । एवमेयं ' ति भणिऊण मुणिगुणुकित्तणपरायणा जहागयं पडिगया सुरगणा । लद्धावसरेण य भणियं अम्हाण पिउमित्तेण जहा - भयवं ! एयाणं पुण बालया को भत्ताभविस्सर ? । तेहिं भणियं - एयाओ भाइवहयस्स पणइणीओ भविस्सन्ति । तओ एयमायण्णिऊण मुणिवयणं चिन्तावससामलिमुहमंडलो राया अहोमुहं संठिओ । एत्थावसरम्मि य भणियम हेर्हि जहा - ताय ! संपयं जेवं साहियं मुणिवरेर्हि संसारसरूवं, सिट्टा विसयपरिणई, ता अलमम्हाणमेवंविहविवायावसाणेण विसयसुद्देणं । पडिवष्णं च तं तारण । एवं च बल्लहयाए भाउणी सिढिलियणियसरीरसुहप्पसराओ तस्स चेय मज्जण - भोयणाइयं सरीरद्विहं चिंतयंतीओ चिन्ह, जावण्णदिणम्मि तेणऽम्ह भाउणा भमंतेण पुहइमंडलं दिट्ठा तुम्ह माउलयस्स धूया पुप्फबती णाम कण्णया । तंरूंबाइसय सोहग्गक्खित्तमाणसो अवहरिऊण आगओ । तद्दिट्टिमसहमाणो य विज्जं साहिउं गओ । अओ उवरिं तुम्हे मुणियवर्त्तता । हो महाभाय ! तम अवसरे तुम्ह सयासाओ समागतूण पुष्फबईए भणियाओ अम्हे, सामपुव्वयं साहिओ भाणो वृत्तंतो । तमायणिऊण वियम्भिउब्भडसोयप्पसराओ बहलंसुसलिलमयिलियकत्रोलमंडलाओ "रोविडं पयत्ताओ । पुणो कह कह त्रिणिवारियाओ तीए, भणियाओ य संसारुव्विग्गमहाडईए भमिरस्स जंतुहरिणस्सं । कस्स ण जायं भीसणकयन्तवाहाओ मरियन्त्रं १ ।। १९९ ॥ कस व समग्गसयलिंदियत्थसंजणिय सयलसोक्खाई । जायन्ति निययकम्माणुहावओ णेय मणुयस्स १ ॥ २०० ॥ अच्चन्तणेह णिब्भरपरव्वसासंघजणियपसरस्स । इद्वविओगा जायन्ति देव्ववसओ ण कस्सेह ? ॥ २०१ ॥ इय सुंदरीओ ! कलिउं असार संसारकारणमियाणिं । सिटिलिज्जउ सोओ सुलहमेरिस सव्त्रसत्ताण ॥ २०२ ॥ अण्णां च सुमरिज्जउ मुणिवरभणियं भवियन्त्रमत्रितहमेरिसेणं चेव, कीरउ पडिथिरं हिययं, पडिवज्जिज्जर बंभयत्तेण सह संबंधो त्ति। तमायष्णिऊण य पयत्ताणुरायपसराहिं सरहसं पडिवण्णमम्हेहिं । तओ अइरहसत्तणओ पुप्फवतीए तुम्ह संकेयणिमित्तं अण्णा चेय चालिया पडाया। तदंसणेण य तुम्हे ण याणिमो कत्थइ पउत्थ त्ति । अपेच्छमाणीहिं अम्हेहिं लोओ तुमं त्रिकाणगंतरालेसुं, पुणो य ललियलयाहरेसुं, तओ वियडगिरिकुहरंत रेसुं, पुणो परिमलमिलन्तभमरउलदलमुहलियकमलसरेसुं, तओ गाणाविहगाम-णगरीइएसुं । जाहे ण कहिंचि दिट्ठो ताहे विसण्णवयणाओ इहमागयाओ अम्हे । वरिय किंचावसेसत्तगओ भागहेयाणं अप्पत कियहिरण्णवुट्टिविन्भममेत्थ संजायं तुम्हेहिं सह दंसणं । ता हो महाभाग ! सुमरिऊण पुष्पवइवइयरं कीरउ अम्हाण समीहियं । मायणि य सरहसं पडिवण्णं मए । णिव्त्रत्तिऊण य गंधव्यविवाहं जहाणुकर्म ताहिं समयं जणियविवहकीत्रिणीयं वो पवरपलंके । कह ? - १.का सू । २ 'हिप' जे ३ अप्पा जे । ४ ला रायलच्छी जे । ५ भंजिज्जउ सूं । ६ वरभणिए जे । ७ एवेत्यर्थः । ८ बहाए जे । ९ ख्याई जे । १० रोइउ १ । राई जे । १२ लाविणोएणं णुवष्णो पवरपत्रके । सुद्देण य पहाया रयणी । तभो गोससमयम्मि भणि जे (२०६ गाथानन्तरम् ) । Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३७ ५२ बंभयत्तचछवाहिचरियं । पाढाणुरायपरिरंभवससमुल्लसियघुसिणसंवलिओ। सेयच्छलेण मयणो घणाणुराय व पयडेइ ॥२०३॥ रहसकयग्गहकढिणदरमउलिउबिल्लदलउडप्पसरं । महमहइ कुसुमदामं समंथरं मच्छरेणं व ॥२०४॥ अवियण्हदइयकयबाढचुंबणुभिट्टजावयरसो वि । अहियं विरायइ चिय सहावाणियारुणो अहरो ॥२०५ ।। इय गरुयवियंभंताणुरायसंजणियरमणि(ग)विण्णासो। सुत्तो दइयाहि समं कयाहिलासी अहं तत्थ ।। २०६॥ गोससमयम्मि य भणियाओ मए एवं-गच्छह ताव तुम्मे पुप्फवइसमीवं, तीए समं ताव अच्छियव्वं जाव मह रज्जलम्भो होइ ति। 'एवं चेव कीरइ 'त्ति भणिऊण गयाओ ताओ । गयासु य तासु जाव पलोएमि पासाई ताव ण. तं धवलहरं, णेय सो परियणो। चिंतियं च मए-एसा सा विज्जाहरी माया, अण्णहा कहमेयं इंदयालविल्ममं ताण विलसियं। ताव य मया सुमरियं रयणवतीए । तयण्णेसणणिमित्रं च गो आसमाहिमुहं जाव ण तस्य रयणघई, णेय अण्णो कोइ त्ति । तओ 'कं पुच्छामि? ति कलिऊण पुलोइयाई पासाई, ण य कोइ सच्चविओ। एत्थावसरम्मि य त्रियम्भिओ सोयप्पसरो, पवडिओ रणरणओ पसरिया अरई-"अहो महं विसमदसावत्याणिवडियस्स विण तहा रयणवइविओयदुक्खं बाहइ जहा वरवणुमरणं ति । भणियं च दइयाविओयदुक्खं पुहईलंभो वि णेय णासेइ । ववगयरज्जदुहं पुण सुमित्तलंभो. पणासेइ" ॥ २०७॥ ___ एवं च चितयन्तस्स समागओ एक्को कल्लाणागिती गाइवयपरिणओ पुरिसो। पुच्छिओय सो भए-हंहो महाभाय ! एवंविहरूवणेवच्छविसेसा अदीयदिणम्मि अज्ज वाणं दिवा एत्थ एक्का पवरैमहिला ? । तेण भणियं-पुत्तय ! सो तुम रयणवईए भत्ता ? । मए भणियं-आमं । तेण भणियं-कल्लं खु सावरण्हवेलाए विमुक्ककलुणदीहणीसणं सयलजणजणियदुक्खपसरं रुयमाणी णिसुया मए, कह? हा सामिय ! कत्थ गओ सि उज्झिउं में अणाहियं एक्कं । सयणजणविप्पहूणं पिययम ! विण कारणा रुइरिं?॥२०॥ तुज्झ विओए पिययम ! अहियं उत्थरइ जणियमयपसरो। छिई दट्टुं णरणाह ! दुसहसोओ पिसाओ व्व ॥२०९॥ तुज्झ कयम्मि सहियणो सयणो तह परियणो कुलं सीलं । पिइ-माइ-भाइवग्गो तणं व कलिऊण मुक्काई ।। २१०॥ एहि पसायं काऊण कीस कुविओ सि मह अहण्णाए? । जइ वि मए अवरदं तह वि हु तुम्हेहिं खमियध्वं ॥२१॥ इय एवं बहुसो तीए रुण्णसद्दण जणियकारुण्णो । 'किं किं ति कारणं रुयसि पुत्ति ! ?" मणिरो गओ पासं ॥२१२॥ पुच्छिया सा मए-पुत्ति ! का सि तुमं ?, कुओ वा समागया ?, किं वा सोयकारणं , कहिं वा गंतव्वं । तो तीए दरसिट्टम्मि य पञ्चभिण्णाया भणिया य-मह चिय णतुई होइ त्ति । मुणियधुत्तंतेण य मया तीसे चुल्लपिउणो गंतूण सिढे । तेण वि जणियविसेसायरं पवेसिया णिययमंदिरं । अण्णेसिया सवओ तुब्भे, ण य कहिचि दिवा, ता संपयं पि सुंदरमणुचिट्ठियं जमागयऽत्य । एवं चालविऊण णीओ हं तेण सत्यवाइमंदिरं । कयसव्वायरोवयारं चरयणवतीए सह वत्तं पाणिग्गहणं । ठिओ तीए समयं विसयमुहं भुंजमाणो । __ अण्णया य 'वरधणुणो दियसओ' ति पयप्पियं भोजं, भुजंति बंभणादिणो, जाव सयं चेव वरधणू जणियवंभणवेसो भोयणणिमित्तमागओ । भणिउंच पयत्तो जहा-भो ! साहिजउ तस्स भोजकारिणो जइ मज्झ भोयणं पयच्छह ता तस्स परलोयवत्तिणो वैयणोयरम्मि उवणमइ ति । सिहं च तेहिं तमागंतूण मज्झं । विणिग्गओ हं सरहसं । मुलइओ सो मए पञ्चभिण्णाओ य । पहरिसविसट्टपुलयमवयासिओ मए । पविद्या मंदिरं । असदहणीयमवत्यंतरमणुहवमाणा ठिया मुहुत्तरं । णिवत्तमज्जण-भोयणावसरम्मि यं पुच्छिओ मए वरधणू णिययपउत्तिं साहिलं पयत्तो जहा "तीए रयणीए णिदावसमुवगयाण तुम्हाणं पिट्ठओ धाविऊण निबिडकुडंगंतरियतणुणा एकेण चोरपुरिसेणेकेण चेय बाणेण समाहो हं । पहारवियणापरायत्तत्तगओ गिवडिओ महियलम्मि । बायभीरत्तणो ण साहियं तुम्ह । १ दसावडियस्स जे । २ अईय जे । ३ रविलया! जे । ४ पासं ॥२१२॥ गओ तीए पासं । पुच्छि सूबे । ५ तीए ले । ६.तुम्हे जे । ७ वयणम्मि सू। ८ पुलोइओ जे । तुम्हाण अभिउत्तो हं चोरेहि कुडंगंतरियतणुणा समाहओ हं बाणेणं । पहारबिस। Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३८ चउप्पन्नमहापुरिसचरियै । बोलीणो रहवरो तमंतरालं । अहमत्रि पेरिनिबिड तरुयरंतरालमज्झेण सणियं सणियमवक्रममाणो कह कह वि संपतो तं गामं जत्थ भेणिवसियाई । साहिया तग्गामाहिवइणा तुम्ह पउत्ती । समुप्पण्णहिययतोसो य संपत्ती इहई । पउणो पहारो । भोयणपत्थणाववएसेण न समागओ इहई जाव दिट्ठा तुम्हे" ति । एवं च अवियण्हाणुरत्तचित्ताण जंति दियहा । अण्णया य मंतियमम्हेहिं परोप्परं एवं जहा - केत्तियं पुण कालं पमुकपुरिसयारेहिं अच्छियव्वं ? । भणियं चविसमदसावडियस वि जहकमं जणियपुरिसयारस्स । जैइ ण फलइ संपत्ती कित्ती उण तह वि संपडइ ॥ २१३ ॥ आवइपडियस्स वि सुबुरिसस्स उव्वहइ तह वि ववसाओ । विरहियववसायं पुण लच्छी विग महइ अहिलसिउं ॥ २१४ ॥ एवं च चिंतयंताण णिग्गमणोवाऊसुयमणाण पत्तो य मलयमारुयमंदंदोलिज्ज माणतरुगहणो । वियसन्तसरस पाडलपडइच्छोच्छइयभूसा (भा) ओ ॥ २१५ ॥ मंजरियपउरसहयारधूलिधूसरियणहयलाहोओ । रुंदन्तमत्तमहुय[ ---]खावूरियदियन्तो ।। २१६ ।। कोइलकुल[क] कलरव वित्तट्टपणट्टपंथियजणोहो । कुरवयपसूयपरिमलवाउलियमिलंतभसलउलो ॥ २१७ ॥ इय बहुपायवपप्फुल्लसरसकुसुमोहपरिमलुग्गारो । अणिमित्कंठियतरुणमणहरो माहवो सहसा ॥ २९८ ॥ स(ए) रिसम्मि य महुसमए, एकदिणम्मि पयत्ते मयणमहूसवे, विधिहुज्जलविसेसणेवच्छालंकिए कीलाणिमित्तं विणिमायम्हि णयरजणवए, जहाभिरुइयं पयत्तम्मि णिग्भरे कीलारसे, णवरमेकसरियं चेय दिट्ठो करडयडकोडराविडि[?] दाणगंडस्थलो कुम्भत्थलरंखोलमाण मुक्कतिक्खं कुसो णियकरयल (लु) त्थल्लियाहोमुहणिवडियाहोरणो दढविणिद्दलियरुदंदु विसंखलचलन्तचलणो मयपरव्वसत्तणओ भंजिकणाऽऽलाणखम्भं वियरिओ रायहस्थी । विणिग्गओ रायंगणाओ । तओ समुच्छलिओ रायंगणम्मि हलहलारावो । विरसमुक्कूइयं जणवएणं । विवलाणो 'दिसोदिसिं जणवओ । भग्गाओ की लागोओ । एवं च यत्ते हल्लोहलए एका तवणिज्जपिंजरुज्जलसरीरच्छवी पुण कुंतलुप्पीलपल्हत्थिउम्मत्यधम्मेल्ला मयणकरिकुंभविन्भमुन्भूयरुइरथणमंडला परिवियडणियम्बालग्गकलकणिरकंचीकलावा, ससंभमुब्भन्तपुलइयव्वएहिं कुवलयदलावलं व विक्खरन्ती, छिण्णबालकयलीदलं व वेघिरोरुजुयला, भयभरपरिगलियगमणवावारा ' कत्तो सरणं ? ' ति विमगमाणापडिया मत्करिणो दिट्टिवहम्मि बालिया । तओ समुल्लसिओ हाहारवो, कूवियं से परियणेणं । एत्थन्तरम्मि य दरगहियाए तीए, पुरओ ठाऊण हकिओ मए वारणो । मुयात्रिया एसा । सो वि हु वारणो मोत्तूण तं बालियं रोसवसविसमवित्थारियणयणजुयलो सम्मुहपसारियउन्भडथोरथिरहत्थो तडत्रियायडियसवणपेरन्तो ज्झति मह समुहं पहाविओ । मए वि संपिंडिऊण उवरिल्लं पक्खित्तमहिमुहं । तेणावि णिब्भरामरिसवससंपराहीणतणावेण तमुवरिल्लं घल्लियं गयणंगणसमुहं, णिवडियं धरणिमंडले । जात्र किलें परिणमइ ति ताव मया विदच्छत्तओ समारुहिऊण कंधराहोए णिबद्धं आसणं, तालिओ तिक्खंकुसेण, अप्फालिओ कुम्भभाए वसमाणिओ रायहत्थी । • एत्थावसरम्मि य समुच्छलिओ 'साहु साहु' त्ति जणकलयलो । ताव य पलोयणणिमित्सुग्घाडियवायायणकवाडसंपुढं सहस्सलोयणं व संजायं पुरवरं, विज्जुलयासंवलिय व्व धवलमेहावली लक्खिज्जइ संचरंतीहिं तरुणीहिं पासायमाला । तओ मह गुणाणुरायखित्तेण पुरजणसमूहेणं विमुकमुवरिं कुसुमवासं, पक्खित्तो पउरपोत्तवाडो, 'जयइ कुमारो' त्ति पढियं ftir | म हिस्थिसिक्खापओएहिं सपेसलपरिसक्कियव्वएहिं सुमहुरभणियव्त्रयविणोएण मेल्लात्रिओ मच्छरं गयवरी । समाणीओ य आलाणखंभट्ठाणं । समप्पिओ पीलुइणो । तात्रय समागओ तमुद्देसं णरवई । दट्ट्ठूण य तं तारिसमणण्णसरिसचेद्वियं गरुयैविम्यवियम्भियमणचमकारो लक्खिऊण सयललक्खणालंकियतणुविहायं मं भणिउं पयतो- को उण एसो ?, कुओ वा आगओ ?, कस्स वा तणओ ? ति । तओ भणियं वरघणुणा १ परिणियडत सू । तुम्हे जे । ३ जइ विण फलसंपत्ती किती वुण जे । ४ ण समागओ मयरयपरमसुही महूसमओ । तभो एकम्मि दिणे पयतो मयणमहूसवो। विविद्दुज्जल विसेसणेवच्छऽलंकिए कीलाणिमितं विपिग्गयम्मि जयरजणवए मयपरव्वसत्तणओ जे, ( २१८ गाथानन्तरम् ) । ५ दिसोदिसं सू । ६ पयत्तम्मि सू । ७ हस्तद्वयान्तर्गतः पाठो जेपुस्तके नास्ति । ८ ठाइऊण जे ९ घेत्तृणमुत्तरीयं घ जे । १० किर गच्छति जे । ११ पओएणं जे । १२ 'यविन्भमवि सू । Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२ भयत्तचकवट्टिचरियं । २३९ साहंति असिद्धं पि हु चरियाई कुलं महाणुभावाणं । किं कहइ केयई णिययपरिमलं भमरविलयाणं ? ।। २१९ ॥ कालायसं ण साहेइ उज्झमाणं घणंधयारे वि । मूयल्लियं पि पुरिसं निययगुण चिय पयासेन्ति ।। २२० ॥ एत्थावसरम्मिय रयणवतीए चुल्लताएण साहिओ सयलो वि राइणो वइयरो । तमवगच्छिऊण तुट्ठेण रामा भणियंको वा सीहकिसोरयं वज्जिऊण मत्तगए निवारेइ, ता सोहणमेणुट्ठियं जमिहागओ सि, णियणिहेलणं चिय एयं भवओ । भणिऊण हारिओ यियमज्जणयम्मि | वित्थरियं रयण-कणयमैयथाल- कच्चोलादीहिं । भुतं सरिसएहिं चेय, कहं ? बहुविहविहत्ति-वंजण-समास- सद्दहियपयरिसेल्लेण । अहिगयवागरणेण व ताणं णिव्वावियं हिययं ॥ २२१ ॥ सयलिंदियत्थसंजणियसुहरसेल्लेण भोयणेण दढं । णियदइयमाणुसेण व भुत्तेण अति सोक्खाई ॥ २२२ ॥ एवं च भोयणावसाणम्मि दिष्णा मह णिययधूया | सोहणदिण-मुहुत्तेण य वत्तं पाणिग्गहणं । जहासुहं ठिया तत्थ अम्हे इयदिणाणि । अण्णया य एक्का णाइपरिणयवया पवरमहिला समागंतूण मेह समीवम्मि भणिउं पयत्ता जहा - "कुमार ! अस्थि किंपि भणियव्वं, ण एसो लज्जावसरो, ता अवहिएण सोयव्त्रं, अत्थि इहेव णयरीए वेसमणो णाम सत्थवाहो । तस्स धूया सिरिमती णाम । सा य मए बालभावाओ पालिया, जा तुमए हस्थिसंभमाओ रक्खिया । तीए इत्थसंभमुरियाए उज्झिऊण भयं 'जीवियदायउ' ति मुणिऊण तुमं पलोइओ साहिलासं । तओ अचंतसुंदरत्तणओ रूवाइसयस्स, णिब्भरत्तणओ 'जोव्वणपयरिसस्स, पसरियत्तणओ मयर केउणो, समुप्पण्णो तीए तुज्झुवरिमणुराओ । तओ तप्प से चेय पलोमाणी थंभिय व्त्र लिहिय व्बे टंकुक्कीलिय व्व णिच्चलणिहित्तलोयणप्पसरा खणमेकं संठिया । वोलीणे afras जहाrयं पडिगए सयलजणवए कह कह वि परियणेण भण्णमाणी गया गिययं मंदिरं । तस्थ वि णकयमज्जण-भोयणा विणिवारियासेसपरियणा मणिजालयगत्रक्खणिहित्तत्रयणकमला महाविहाणाहिद्वियं पित्र तं चैव दिसं पलोएमाणा, जत्थ सो हत्थिसंभमवइयरो तद्दिसागयं पत्रणं पि बहुमण्णाणा, तओ 'अइचवले ! किमेयं ?' ति गरशिया व लज्जाए, 'ण इमं जुत्तं' ति उवालद्ध व्व विणणं, 'विमुक्का बालभावेणं' ति उवहसिय व्व मुद्धयाए, 'जहिच्छमच्छसु' ति आमंतिय वकुमारभावेणं, 'णाऽयं कुलकमो' त्ति विमुक्त व्व समायारेणं, 'गुरुयणपडिवत्तिमूढ' त्ति लज्जाविय व्व मयरणति । अनि य दंसणरसवसपसरन्तणिन्भरावूरमाण पुंजइओ । संजमिऊण व सयलिंदिएहिं दिष्णो मणो तिस्सा ॥ २२३ ॥ आयण्णायड्ढियकुसुमचाव[ - - ] पउमपउरपहरेण | सरपंजरे व काउं समप्पिया मयरइंध्रेण ॥ २२४ ॥ तव्त्रयणदंसणूसुरणिहित्तणियणयणवयणवित्थारो ( रा ) । दासत्तणोवणीय व्त्र गरुयपेम्मापुराण ॥ २२५ ॥ दाऊण निययजीवियसव्वस्सपणेण णूण गहिया सि । इय कलिऊण (? लिउं) विक्कीय व्यणिययहियएण सयराहं ||२२६|| असमंजस वल वेल्ल विसमपल्हस्थतरलहारेण । तुट्टंतेग समाउच्छिय व्व गहिऊण कंठम्मि ||२२७|| पुसण लोयणे पुच्छति अविसेसा (? सेसया ) णुए ! दइयं । तकालागय संगलियबहलबाहेण भणिय व्व ॥ २२८ ॥ पाणेहिं समं विद्धारयामि धीराभिमाणयं मुद्धे ! | सासच्छलेग गिन्भच्छा व उब (ण) मयरईधेण ॥ २२९ ॥ चेचालेक्खागयरूत्रसमुप्पण्णपुलयपडलिल्ला । उव्वहइ समालिंगणचित्ता सोक्खं व सा बाला ॥ २३० ॥ इय एवं च एयारिसमवत्थंतरं पेच्छिऊण पुच्छिया सहियणेगं जाहे ण किंचि" पडिसलावं देइ ताहे मए भणियापुति की संपयमयंडे च्चिय असं भाविणी संजाया ?, जेण ममं पि अत्रह (? ही) रसि वयणं, अक्खिसि चक्खू, शूमेसि हिययभावं, अवलम्बसि चित्तसंतावं, गोवेसि कलमलयं, णाइक्खसि रणरणयकारणं १, ता अलं तुह समीवट्टिएण, अण्णत्थ गच्छस्सामि । १ मणुचिट्ठिय जे । २ 'मयादीहिं थाल सू । ३ "रणेणं व ताण सू । ४ यमणूसेण जे । ५ कइ विदि सू । ६ अम्ह सू । ७ किंचि भ° जे । ८ जोव्वणस्स सू । ९ व कोलिय व जे । १० माणी सू । ११ हस्तद्वयान्तर्गतः पाठो जेपुस्तके नास्ति । १२ चि बि मुसलाव जे । १३ भसम्भाविणी सू । १४ अण्णओ सू । Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४० चउप्पलमहापुरिखचरियं । त्ति भणिऊण जावाई उहिया ताव सविलक्खहसियं काऊण भणियं तीए-किं कि पि तुम्हाण वि अकहणीयमस्थि ?, किंतु लज्जा एत्यावरज्झइ, ता सुबउ, जेणाहं हत्थिसंममाओ रक्खिया सो हु तव्वेलाणंतरमेव रइरहिओ कुमुमबाणो व पविट्ठो मह मणं, ता किं बहुणा ?, जइ तेण समं ण घडति विही ता महमवस्स मरणं सरणं ति । तओ एयमायणिऊण साहिओमए तीए पिउणो वइयरो। तेणावि अहं तुह समीवं प्रेसिया। ता पडिच्छसु इमं बालियं"। पडिवण्णं च तं मए। सोहणदिणमुहुत्तम्मि य जहाविहववित्थरेण णिवत्तं पाणिग्गहणं । वरघणुणो वि सुबुद्धिणामेणामच्चेण णंदाहिहाणं दाऊण [कष्णं] कयं विवाहमंगलं। एवं च दुवग्गाण वि तत्थ मणहररइमंदिरंतट्ठियाण एकया मडुरवीणाविणोएण, पुणो मणहरालावेण, अण्णया गीयकलाकलरवेणं, कयाइ दुरोयरकीलाहि, पुणो पण्होत्तर-बिंदुमई-सुहासियाईहिं च विणोयठाणेहि मुहमच्छमाणाण गच्छति वासरा। कह? पवणंदोलियपरिमंदमंदिरुजाणविविहतरुसंडे । तरुसंडखुडियकुसुमुच्छलन्तवरसुरहिगंधम्मि ॥ २३१ ।। गंधंधलुद्धमुदालिजालचलचलणविहुयमयरंदे । मयरंदोरंजियभवणदीहियासच्छसलिलम्मि ॥ २३२ ॥ सलिलतरंगंतटियधयरविरावजणियसुइसुहए । सुइसुइयरहंगरवाणुबद्धकयसहप(?य)रिवरम्मि ॥ २३३ ॥ इय भवणुज्जाणे विविहपायवुप्पत्तिपत्तसोहम्मि । छायामेत्तपणासियसयलदुहावासदोसम्मि ॥ २३४ ॥ अविय-- शंकारमुहलभमरउलचलणजजरियजरढकुसुमम्मि । कोइलकुलकवलीकयपरूढसहयारमउरम्मि ॥ २३५ ॥ चटुलचओरुब्भडचंचुचुंबियाहव्वमिरियमउलम्मि । चंपयपरायपिंजरकविजलालीयणस्सम्मि(2) ॥ २३६ ॥ परिणियडदाडिमीफुडियफलबलग्गन्तकोरणियरम्म । कइकरयलकंपियणिबिडपडियजंबूफलोहम्मि ।। २३७ ।। एकेकमकुवियकवोयपोयपक्खालिपहयकुसुमम्मि । कुसुमरयारुणपरिभमिरसारियारावमुहलम्मि ॥ २३८ ॥ उम्मयपारावयविहुयपक्सविक्खित्तकुसुमरेणुम्मि । परिणयपूयफलविडव[विघडियदलणागवल्लिम्मि ॥२३९।। घगफलियणालिएरीफलणिवहत्थवयवित्थरिल्लम्मि । विविहविहंगागगतुडखंडिय(?या खंडखज्जूरे ॥ २४० ॥ उग्गयमयबरहिणधुयसिइंडि[? चंदम्मि] तंडवन्तम्मि (2)। मुहमहुरिणितकेयासहयरिकयसोक्खपसरम्मि ॥२४१॥ इय पवणपयल्लियबालकयलिदलणियरचंचलिल्लम्मि । गिम्हम्मि दिणद्धे वि हु णलद्धरविकिरणपसरम्मि ॥२४२॥ किंचकुमुयायरे व णोदिण्णतरणिकरणिकरमज्ञपसरम्मि। रहुसुयबले व्व संठियणीलंजणसंजुयंतम्मि ॥ २४३॥ जलणिहिपुलिणे ब पवालयुग्गमंकुरपयत्तसोहम्मि । सवोसहिकुसुमफलोववुण्णअहिसेयकलसे च ॥२४४॥ आलेक्खहरे व विचित्तवण्णसंपडियसउणसोहम्मि । णरणाहे व समुप्पण्णणियडचित्तासणिल्लम्मि ॥२४५॥ पुण्णायायढियघणसिलिम्मुहे गरुयसमरमग्गे च । कयघणसोहे इंदाउहे च बहुवण्णसोहम्मि ॥२४६॥ इय दंसणलोहक्खेवरुद्धसयलिदियस्थपसरम्मि । मार्यदियालिओ(ए) विच जणलोयणमणहरिल्लम्मि ।। २४७ ॥ एवं च कयविविहकीलाविणोयपसरं कीलमाणाण अइक्कंता कइइ वासरा। उच्छलिया सबओ अम्हाण पउत्ती। पेसियो दीहराइणा मगहाहिवइणो दूओ जहा-अप्पिज्जन्तु बंभयत्त-वरधणुणो त्ति । पडिवण्णं च तं तेण तस्स पुरओ। पुणरवि मग्गओ अम्हेहि समं मंतिउं पयत्तो-किमेत्थ करणीयं ? । मए भणियं-भो ! किमेत्तियाए चिंताए, अम्हेवाणारसिं णयरिं कडयराइणो समीवे गच्छिस्सामो त्ति । एवं भणिऊण पत्थिया अम्हे । सणियसणियं च वञ्चमाणा पत्ता वाणारसिं । गओ वरधणू तस्स समीवं । , लक्खं हसिऊण भजे । २ सदि जे । ३ लाकलावेण, क जे । ४ हस्तद्वयान्तर्वती पाठसन्दर्भो जेपुस्तके नास्ति । ५ केइ सू। ६ सह जे। Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२ बंभयत्तचकंवहिचरियं । २.४१ साहिया मह पउत्ती। हरिसिओ एसो। तओ सबल-वाहणो णिग्गओ सिणेहणिन्भरयाए सम्मुहो । अहमवि मुणिऊण समुहं चेव पयट्टो तस्स । ओइण्णो सो वाहणाओ । समाइच्छिओ अहयं, आरोविओ अण्णयरवाहणम्मि । जणियहिययाणंदं पवेसिओ जहाविहवेण णिययपुरवरि । अणवरयपवड्ढमाणसिणेहपसरेणं णिययधूया कडयावई णाम बालिया हय-गयरहणाडय-धण-कणयाइणा संजुत्ता मज्झं पणामिया । अणुकूलदिणे वत्तं पाणिग्गहणं । विसयमुहमणुहवन्तस्स सुहेण वञ्चन्ति दियहा । तओ द्यसंपेसणेण समागओ सबलो वि पुप्फचूलराया, महामच्चो य धणू, वहा करेणुदत्तो, अण्णे य चंदसीह-गंगदत्त-तुडियदत्त-सीहराय(?या) [समागया। वरध' सेणावई अहिसिंचिऊण पेसिओ दीहराइणो उवरि । पत्तो य अणवरयपयाणएंहिं वरधणू । एत्थावसरम्मि य पेसिओ दीहराइणा कडयराइणो दूओ । भणिउं च पयत्तो जहा सहवड्ढियाण संजणियभोयण-ऽच्छायणेहिं अविसेसं । आजम्मं पडिवणं णिव्वहइ महाणुभावाण ॥ २४८ ॥ एकग्गामे विसए व्य अहव णयरम्मि जो समुप्पण्णो । दट्टण विएसे तं मुहि व्व मण्णन्ति सप्पुरिसा ।। २४९ ॥ तइ पुण समयं आफैमुकीलणप्पभिइ जाव अज दिणं । एकेकमाविसेसं वसिया मो कीस पम्हरियं १ ॥ २५० ।। इय अच्छउ पम्हरियं ण केवलं णिययजाइदोसेण । मज्झस्थयं पि मोत्तूण सत्तुभावं गओ जेण ॥२५१ ॥ तओ एवं सोल्लुठं जंपियं सुणेऊण कडयराया भणिउं पयत्तो जहा-" भो दूध! सच्चं जं तुह पहुणा भणियं सह वड्ढिया य रमिया य । अम्हेच्चइओ सह बंभराइणा णऽच्छए को वि ।।२५२॥ किंतुपरलोयपउत्थे तम्मि मंतिउं तं सि जोग्गकलणाए । बंभणराहिवतणयं बालं किर पालिङ मुक्को ।। २५३ ॥ णवरिण बालं एक रज्जं संतेउरं परियणं च । तुह पहुणा पालंतेण भूसियं दूध ! नियगोत्तं ॥ २५४ ॥ इय सामण्णं पि हु दूय ! परकलत्तं महाणुभावाण । दलु पि णेय जुज्जइ अच्छउ दूरेण रमियव्वं ।। २५५ ॥ . ता हो दूय ! तुह पहुणा विम्हरिऊण अत्तणो विलसियं अम्हे चिय उवालद्धा । अहवा उचियमेयं सविषयस्स"। त्ति भणिऊण पेसिओ ओ । अप्पणा वि अणवरयपयाणएहिं गच्छमाणो संपत्तो कम्पिल्लपुरवरं । तओ णिरुद्धसयलजणणिग्गम-पवेसं समन्तओ पसरियरह-तुरय-गइंदैवंदेण रोहियं चउपासओ । बम्भयत्तो वि केइ सामेण, "केर भेएणं, "केइ उवप्पयाणेणं तस्स गरवइणो सबसे कुणंतो संपत्तो । समारोहियं समंतओ चउरंगबलेणं णयरं । इओ य सो दीहणराहिवो णिग्गओ हिमुहं ससेण्णो । अभिमुभयबलाणं पि समरं ।। कह ?णवरि य विमुक्कलल्लकहकपोक्कं विकोसकरवालं । कोंडलियचंडकोयंडमुकणारायणियरिलं ॥ २५६ ॥ घडियतुरंगोरत्यलपाडियपाइक्कभरियमहिमग्गं । पासल्लागयपाइककोतिणिव्वट्टियतुरंग ॥ २५७ ॥ गरुयगयचंडसोण्डग्गलग्गणिकड्ढिउब्भडभडोहं । भडहच्छमच्छरुच्छाहछिण्णगयसोण्डदंडग्गं ॥ २५८ ॥ घडियघणसंदणारूढसुहडपम्मुक्कपहरणुविडिमं । णीहरियणिबिडबहुबाणजालसंच्छ(१छि)ष्णछत्त-धयं ॥ २५९ ॥ ता तं कड्ढियबाणासणुच्छलंतोरुबाणजालिल्लं । सेण्णं दीहणरिंदस्स सहरि(रह)सं कडयणरवइणा ॥२६० ॥ चटुलयरखरखुरुक्खित्तरेणुपडिभग्गदिद्विपसरेण । णाणाविहणेषु(व)च्छुच्छहतघणतुरयसेण्णेण ॥ २६१॥ घणघडियगयघडारूढणिबिडपयवीढचमढियभडेण । धुयसीसुच्छालियचमरतुरयकड्ढियरहोहेण ॥ २६२ ॥ पडिरुद्धं (द)समुह(मूह)यण(ड)न्तणिबिडभडणिवहपहरणिल्लेण । वावल्ल-भल्लवित्थयपहरविणिन्तंतगुप्पन्तं ॥ २६३ ॥ छ सुहं भुंजमाणस्स सुजे । २ एहि गंतु वर जे । ३ सविसेस सू ।। ण तम्वित वि)एसे मुहिजे। ५ वुण स्। विम्हरियं जे । ७ मजमत्थं पिय मोत्तुं सत्तुल्य भावं सू । ८ एवं सोल्लुंठजंपियं जे । १ भणि तह वढिया सि मुत्ता य । जे । १. अम्हे रइउं सह बभराइणा णेच्छए सू । ११ उवलद्धा सू । १२ दवद्वेण जे । १३.१४ के वि जे । १५ समारोविउ जे । १६ अहिमुहो जे । १० हस्तद्वयान्तर्गतः पाठो जेपुस्तके नास्ति । Jain Education eternational Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४२ चउप्पन्नमहापुरिसचरियं । तो ताण तहिं जायं परोप्परोहरियपहरणुग्यायं । समरं घडतगयघड-रह-तुरयुप्पंक(क्कंप)पाइक्कं ।। २६४ ॥ इय तं आवाए च्चिय कडयणराहिवबलं असाहारं । भग्गं भग्गुब्भडसमरमच्छरं दीहसेण्णेण ।। २६५ ॥ एवं च विमुक्कलज्जमच्छरिल्लम्मि भग्गे कडयसेण्णे तयणंतरं णिम्भरमयंधगयगलियगंडदाणोहदुहिणे खरखुरुक्खंयखमायलुच्छलियधूलिधूसरियदिसामुहोत्थरियतुरए समुहागयरहवररहंगणघगासवहिरियमहियले 'मर मर मर' त्ति लल्लक्केपम्मुक्कयोकपउरम्मि पाइक्कयक्के णिद्दयं समोत्थरिए दीहसेण्णे अमरिसवसवियम्भंतभीमभिउडिविच्छोहो हेलुल्लालियकरकलियपहरणो समुडिओ बंभयत्ती । तो मुणिऊण बंभयत्तं समरुज्जयं चलियं सयलं पि बंभयत्तसेणं । पुणरवि पयट्टमाओहणं-- ता गरुयगइंदघडुण्णमन्तघणमेहमंडलिल्लेण । बहुवण्णरइयरणइंधनणियसुरचावसोहेण ॥ २६६ ॥ णिकंड्ढियणिसियफुरन्तखग्गसोयामणीसणाहेणं । सुहडुब्भडकयपोकारगजिओरल्लिमुहलेण ॥ २६७ ।। पवणुव्वेल्लियमोरंगछत्तकयवरहितडविल्लेण । तुरयमुहुच्छालियसेयचहुलचामरबलाएण ॥ २६८ ॥ आयण्णायड्ढियणिसियबाणधाराणिवायणियरेण । उद्दामपाउसेण व बलेण पहुभयत्तस्स ॥ २६९ ॥ इय पेल्लिज्जइ संजणियणिप्फुरं गिम्भधूलिवडलं व । सहसा तं दीहणराहिवस्स सेण्णं खणद्वेण ॥ २७० ।। तो भग्गे सेण्णम्मि, समन्तओ वित्थरिए बंभयत्तबले, 'ण अण्णो उवाउ' त्ति अवलंबिऊण धीरत्तणं, उररीकाऊण पोरुस, अंगीकाऊण धीरपुरिसचेटियं, 'अण्णहा विण मोक्खो' त्ति कलिऊण समुहमुवडिओ दीहणरवई । तओ समुहमुवद्वियं पेच्छिऊण दीहं अन्तोसंधुक्कियकोवजलणजालाकरालेणावि सामपुव्वयं चेव भणियं बंभयत्तेण जहा-भो ! 'तुम अम्ह पिउणो किल मित्तो' त्ति कलिऊण सयलसामंतेहिं समप्पियं तुह रज पालणत्थं, ता पालियं तुमए एत्तियं कालं, संपयं समप्पिऊण गच्छिजउ जहिच्छियं, खमियं तुज्झ मए त्ति । तओ दीहो वि एयमायण्णिऊण सामरिसं उल्लविउं पयत्तो, जहा वणियाण बंभणाण य करसणियाण य कमागया वित्ती। विक्कमभोजा जायइ पुहई पुण णरवरिंदाणं ॥ २७१ ॥ जा घेप्पइ खग्गं भंजिऊण 'रिउगो सिरम्मि दुक्खेहिं । सा रायसिरी अणहेण भणसु कह मुंश्चइ समेण ? ॥२७२॥ एवं च जंपमाणेणं चक्कलियचावुम्मुक्कबाणजालेण समोच्छओ बंभयत्तो । तेणावि तड्डणेहिं विणिवारिऊण तप्पहियवाणजालं विद्धो ससारही । तओ पहाराणंतरुप्पण्णकोवपसरेण अगवरयविसज्जियाणेयवावल्ल-मल्ल-मुग्गर-मुसुढिप्पहारणियरेण उच्छाइओ से लौयणप्पसरो। एत्थावसरम्मि य 'ण अण्णपहरणसज्झो' ति कलिऊण सुमरियं चक्कं, बलग्गं च किरिणजालाकलायकलियतरणिमंडलं व करयलग्गे । पेसियं च रोसारुणियलोयणिल्लेण तस्स बहणत्थं । विणिवाइओ दीहणरवई । 'जयति चकवट्टि' त्ति समुच्छलिओ कलयलो। ___एत्यंतरम्मि य कयपुरवरहट्टभवणोवसोहो समागओ दंसणत्थं पुरजणवओ, पूइओ राइणा जहारुहं । अण्णस्स वि जं जस्स जोग्गं तं तस्स काऊण पुरवरमइगंतुं पयत्तो । तओ बंभयत्तं पविसमाणं पेच्छमाणेण पुरजणवएण कयाओ मुहकमलमइयाओ व गवक्खावलीओ, महिलामइयाओ व्च पासायमालाओ, भूसणमइय व रायमग्गा, हलहलारावमइयं च पुरवरै। अवि यकाहि पि वामकरयलमणिदप्पणविप्फुरन्तपन्तीहिं । दइयससिमंडलिल्लाहिं तक्षणं पोण्णिमाहिं व ॥ २७३ ॥ काहि पि सरसजावयरसरंजियचरण-करयलिल्लाहिं । णलिणीहि पिच कमलल्लसंतबालायबिल्लाहिं ।। २७४ ।। काहिं पि संगमुच्छलियमेंहलादामखलियगमणाहिं । करिणीहिं पित्र संकलसंदाणियचलणपसराहिं ॥ २७५ ॥ काहिं पि समुन्भडरुइरमणहरिंदाउहंबरधरीहि । अच्चुष्णयगरुयपोहराहिं पाउसदिसाहिं व ॥ २७६ ॥ १ कपोक्क जे । २ गिम्ह जे ! ३ कारिस जे। ४ रिखुणो जे। ५ मुच्चउ सतेण सू । ६ चक्किलिया जे। घणसोहो जे। ८ हस्तद्वयान्तर्गतः पाठो जेपुस्तके नास्ति । Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२ बंभयत्तचक्कवट्टिचरियं । २५३ काहिं पि समुग्गयचलणकणिरमणिणेउरारविल्लाहिं । सरयसिरीहिं पिव कणिरहंसकयकलयलिल्लाहिं ।। २७७ ॥ काहि पि थोरथणमंडलंतरुत्तिण्णतरलहाराहिं । घरसरसीहिं व चक्कायमिहुणसमहिट्ठियतडाहिं ॥ २७८ ॥ काहि पि विविहमणिमयविचित्तबधुद्धकिरणजालाहिं । घरपरिचयवसमग्गाणुलग्गगयबरहिणाहिं व ।। २७९ ॥छ इय बम्भयत्तपत्थिवदंसणसंजणियकोउहल्लाहिं । पुरसुंदरीहिं कीरइ पुरंधिमइयं व तं णयरं ॥ २८० ॥ तओ सयलजणजणियकोउहल्लपसरो पलोएन्तो पुरवरं दुवारदेससंठावियमंगलकलसाइसामग्गियं पविठ्ठो णिययमंदिरं। कओ सयलसामंतेहि महाचक्कवट्टिरजाहिसेओ । पसाहियं चिरंतगचकवट्टिकमेण छक्खण्डं पि भरहं । समागयं पुप्फवतीपमुहं सयलं पि अंतेउरं । एवं च संजायसमुचियचक्कवटिपरिवारोववेयस्स मे गच्छन्ति दियहा । अण्णया य महुयरीगीयाहिहाणणट्टमहिदसणुज्जयस्स संजायं जाईसरणं । अओ उवरिं गहियत्था चेव तुम्हे त्ति । ता भयवं इमिणा वइयरेण दुक्खेण संपत्ता मए भोया, ण सक्कुणोमि परिचइउं, किं बहुणा जंपिएण ? त्ति । तओ एयमायण्णिऊण 'विचित्ता कम्मगति' त्ति कलिऊण ठिओ तुहिको महरिसी । बम्भयत्तो वि संतेउरो पणमिऊण महरिसिं पविट्ठो गयरं । भयवं पि अणगारो अणेयतवोविसेससोसवियकम्मपयरिसो सुहज्झवसाणसंठिओ अउचकरणप्पओएण समुप्पाडिऊण केवलं मोक्खमुवगओ त्ति। इओ य तस्स बम्भदत्तचक्कवट्टिणो संपण्णजहासमीहियविसयसुहं रज्जमणुवालयंतस्स गओ कोइ कालो । एगया य समागयाए भोयणवाराए समागंतूणमेगेण दियाइणा भणिओ णरवई जहा-हो महाराय ! अन्ज मह एरिसी इच्छा जइ चक्कवटिभोयण भुंजामि, 'तं च अण्णत्थ ण संपज्जइ' त्ति कलिऊण तुमं पत्थिओ सि ति। तो तमायण्णिऊणयम्भयत्तेण भणियं-ण इमं मह भोयणं तुम्हे भोत्तुं खमा, जओ चकवहिस्सेव इमो आहारो परिणामं गच्छइ, ण अण्णस्स ति। बंभणेण भणियं-जइ तुम्हविहाणं पि महाणुभावाण अण्णमेत्तस्स वि कए एत्तियमालोवियव्वं ता णिरत्थया रायलच्छी, णिप्फलं छक्खंडभरहाहिवत्तणं, वहवे इह समुज्झिऊण कालवसमुवगया णरवइणो, तुज्झ विण इमा सासय ।त्ति भणमाणस्स बंभणस्स समुप्पण्णामूएण पडिवणं जहा- जसु त्ति । तओ भुंजाविओ सपुत्त-धूया-णत्तुओ वंभणो । भोत्तूण वंभणो गओ णिययावासं । ताव य अत्यंतरमुवगओ सहस्सकिरणो, समागया रयणी। दरपरिणयम्मि य आहारे अच्चंतजणियउम्मायप्पसरी अणवेक्खियपिइ-माइ-धूया-बहिणिवइयरो गुरुवम्महमयपणहविवेओ पयत्तो परोप्परमकन्जमायरिउं बंभणपरियणो जाव परिणाम गओ आहारो । पहाया रयणी । मुणिओ एस वइयरो सयललोएण । लज्जिओ वंभणपरियणो । वम्भणो वि लज्जाए लोयाण वयणं पि पुलोइउमपारंतो णिग्गओ जयराओ। चिंतिउं च पयत्तो-पेच्छ कहमहमणिमित्तवेरिणा बम्भयत्तण भोयणमेत्तस्स कए विरुद्धायरणं कारिओ ? । त्ति चिंतयंतस्स संजाओ अमरिसो। 'केण उण उवाएण पच्चु(?च)वयारो णरवइणो कीरइ ?' ति झायमाणेण की बहूहिं अ(?उ)वयरियबविण्णासेहिं गुलियाधणुविक्खेवणिउणो वयंसो। कयसब्भावाइसयस्स य साहिओ णिययाहिप्पाओ । तेणावि पडिवण्णं सेरहसं । तओ अण्णया णिग्गच्छमाणस्स गरवइणो भित्तित्वलंतरियतणुणा अमोहवेहत्तणओ गोलियाए समकालं चेय तेण ताडिऊण फोडियाणि अच्छीणि। तओ तं वुत्तंतमवगच्छिऊण समुग्गउग्गकोवग्गिणा णिहणाविओ सपुत्त-बंधवो पुरोहिओ। अण्णे वि णिहणावेऊण बहवे बंभणा राइणा भणिओ मंती जहा-एयाण अच्छीणि थालम्मि पक्खिविऊण मैम पुरओ ४वेहि, जेणाहं णिययहत्थाणं पि ताव परामुसमाणो सुहमुप्पाएमि ति। मंतिणा वि मुणिऊण तस्स कम्मवसत्तणओ तिव्यमज्झवसायविसेसं घेत्तूणं लेसुरुडयतरुणो बहवे फैलट्ठिया पक्खिविऊण थालम्मि णिवेइया पुरओ । सो वि हु णरवई 'कयत्थो म्हि'त्ति मण्णमाणो कयरोदज्झवसाओ परामुसंतो दियहमइबाहेइ । एवं च अच्छिचवएसपणामिज्जमाणफल १ सिरिवंभदत्त जे। २ महिणंदणु सु। ३ यत्थ च्चेय तुभे वि जे । ४ णयरिं सू । ५ ण उप्पा सू । ६ गवेलाए सू। ७ हस्तद्वयान्तर्गतः पाठो जेपुस्तके नास्ति । ८ कयसंभावस्स जे । ९ सरहस्सं सू। १० पाडियाणि जे । ११ मए जे । १२ ठवेह सू। १३ लेसुरडय जे ! १४ फलमट्ठिया सू । Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५१ चउप्पनमहापुरिसचरिय। द्विलयविसेस परामुसमाणस्स अइकन्ताई केइवयदिणाणि सत्त वाससयाई सोलमुत्तराई। तओ खीणम्मि आउए तहट्ठियपवड्माणरोहझवसाणो चेय कालं काऊण समुप्पण्णो महातमाए णिरयपुढवीए अपइटाणे गरए तेचीससागरोवमाऊ णारओ ति। एयं च मुणिऊण अण्णेणावि साहुणा णियाणं न कायध्वं ति॥ एत्य समप्पइ चरियं पयर्ड सिरिवम्भयत्तणरवइणो। वारसमचक्किणो कयणियाणवलवत्तणुप्फालं ॥२८१ ॥ इति महापुरिसचरिए सिरिभयत्तचकवट्टिणो चरियं परिसमत्तं ॥१२॥ [ग्रंथाग्रम्-९७००] बड वि दिसू। २ इय पुरिसाणं चरिए महन्तसहेण लक्खियाणं च । एत्य समत्तं चरियं परवइणो बंभयत्तस्स ॥१॥स् । www.gamelibrary.org Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [५३ पाससामिचरियं] उप्पज्जइ को वि महाणिहि न परहियपसाहणुज्जुत्तो। णिद्दलियगरुयविग्धोवसग्गवम्गो महासत्तो ॥१॥ अत्थि इहेब जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे तुंगुब्भडभवणोववणमणहरं परमरिद्धिसमुदओववेयजणसंकुलं पुरवरं णामेण पोयणपुरं । तत्थ य ससहरो व्व दरियारिकमलसंकोइयंवियासपसरो अरविंदो णाम गरेवती । तैस्साणेयसत्थपरमत्याहिगमविसुद्धबुद्धी अहिगयजीवादिपयत्यवित्थरुप्पण्णसम्मईसणो विस्तभूती णाम पुरोहिओ । तैस्सोभयलोयहियाणुवत्तिणी अणुधरी णाम भारिया। तीए सह जहाविहवं विसयसुहमणुहवन्तस्स समुप्पणा जहक्कम कमढ-मरुभूइणामा दोण्णि पुत्ता । वड्ढिया य देहोवचएणं, संपत्ता जोवणं । णिबत्तियाई पाणिग्गहणाई, जेस्स वरुणाए सह, कणिइस्स य वसुंधराए । एवं च जाइ कालो। अण्णया य सावयधम्मुज्जयमई कालं काऊण विस्सभूई गो सुरलोयं । सा वि हु अणुंधरी तबिरहओ सोयाणलाउलिजमाणसा तहाविहवयविसेससोसवियतणू चइऊण घरावासं णिग्गया समाणी परलोगं गय ति। तो ते कमढ-मरुभूइणो काऊण पिति-मादीण मयकरणाइयं वगयसोयपसरा संवुत्ता। संठिओ जेठो गिद्दधम्मम्मि। कणिटो उण जिणवयणभावियमती णचन्तमासत्तविसयपसरो सयलसत्थत्थवियारणिउणो परम्मुहो संसारविलसियव्वेसुं, णिप्पिवासो विसयतहाए जणियपोसहोववेओ रयणिदिणं पि बहुसो जिणभवणम्मि चेय गमेइ । तओ तस्स सा मज्जा वसुंधरा मणहरजोवणुभयभूसियावयवसोहा विसलय च सयलजणमणमोहणी संजाया। तं च तारिसरूवं पेच्छिऊण कणिहस्स पणइणि जेवभाउगो कमढस्स दुणिवारत्तणओ मोहप्पसरस्स, णिबिवेयत्तणो विसयविलसियाणं चलियं चित्तं, समुप्पण्णो तीए उवरि अणुराओ, वियंभिओ अयजायरणाहिलासो। जेण अंगीकाऊण णियकुलकलंकायवायं, उररीकाऊण दुग्गइदुहपरंपरं सवियारविन्भममालविउं पयत्तो। एवं च पइदिणं भणन्तेण साणुरायमावज्जियं तीए चित्तं । अहवा घडियं पि विघडइ चिय पेम्मं दूरट्ठियं पि संघडइ । मैंणिइविसेसपउत्ता वाणी दूइ च ण हु चोजं ॥२॥ सा वि हु वसुंधरा अविण्णायविसयमुहसंभोया 'पियचत्त' त्ति कलिऊग दुद्धरत्तणओ वम्महपसरस्स संपलग्गा कमढस्स । एवं च परोप्परं पवढिओ पेम्मपयरिसो । मुणियमेयं वरुणाए । तं च तारिसं दद्रुमपारयंतीए ईसावसुप्पण्णपउरमच्छराए सिटुं जहावहियं मरुभूइणी । तेणावि असदहमाणेण अवहीरियं तीए वयणं । पुणो पुणो वि साइमाणीए चिंतिउं पयत्तो मरुभूती 'ण भणियमेत्तं चिय हियमहिच्छुणा तं तहेव घेत्तव्यं । जाव ण दिटं पञ्चक्खमप्पणा किमिह मह कजं ? ॥३॥ परियप्पिऊण य चित्तम्मि एवं 'गामंतरं गच्छिस्सामि'त्ति ताण पुरओ वोत्तूण णिग्गओ णियमंदिराओ । पओसम्मि जणियजरकप्पडवेसो दीहरद्धाणसंसियपरिस्समो परियत्तियख्व-भासाविसेसो आवासयपत्थणस्थमुवत्थिओ कमढपुरओ। तेणावि बहलतमत्तणो बहुलपओसस्स, अवियारपउरत्तणो मइविसेसस्स, जणियकारुण्णभावेण भणियंभट्ट ! इहालिंदए सच्छंदं णिवससु त्ति । तो पसुत्तो मरुभूई। वियाणणुज्जुत्तचित्तेण य मुणियं जं जहावट्ठियं तं ताण वर , कोइ जे । २ तस्स य य सू । । तस्स य लोय जे । ४ समं जे । ५ गिहिषम्मे सू ! ६ न्तविसयासतप्पसरो सू । • भणी (णिई)विसेसपउणा वा सू । ८ र वढिओ पेम सू । ९ पारतीए स। १० इहालंदिए सू। Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४६ चउप्पन्नमहापुरिसचरियं । सियं ति । तो तं दद्रुमसहमाणो अन्तोसंवड्ढियकोवजलणजालाकरालियहिययावेओ लोयाक्वायभीरुत्तणओ कह कह वि संवरिऊण चित्तवियारं जिग्गओ तप्पएसाओ । गओ राइणो समीवं । साहियं जहावट्ठियं । णरवइणा वि समुप्पण्णकोवेण समाइट्ठा णिययपुरिसा एवं जहा-णियकुलकलंककारिणमेयं कमढं दुरायारं रासहम्मि समारोविऊण पहयविरसडिण्डिमुत्तालतालणपसरं पुरवराओ णीणह त्ति । णिव्वत्तियं च तं तेहिं राइणो समाइटें । तमो सो कमढो तहाविहविडंवणुप्पण्णामरिसपसरो कि पि काउमपारन्तो णिग्गओ णयराओ । गओ गरुयवेरग्गुप्पण्णपरलोयहियायरणचित्तो वणं । गहियपरिचायगलिंगो य समाढत्तो कट्ठयरमण्णाणतवमायरिउं । तं च वइयरं वियाणिऊण समुप्पण्णपच्छायावो मरुभूई खामणाणिमित्तं कमढसमीवं गओ। णिवडिओ तस्स चलणेसु । तेणावि समुप्पण्णकोवाइसएण विम्हरिऊण परिव्यायगत्तणं, मुमरिऊण तज्जणियविडम्बणाणुसयं पायवडियस्सेव मरुभूइणो मुद्धाणोवरि विमुक्का समासण्णदेसट्ठिया घेत्तूण महासिला । पहारविहलत्तणजणियचेयण्णस्स य स चेय समुप्पाडिऊण पुणो वि पक्खित्ता। ___ तओ गुरुघायघुम्मिरुव्वन्तवयणरुहिरो तिव्ववियणाविसट्टमहट्टज्झवसाणो मओ समाणो समुप्पण्णो समुभत्तुंगगिरिणिबिडसंकडिल्लम्मि महल्लपल्लघुल्लसियसल्लइल्लम्मि विविहवणसंडमंडियपयंडदंडयारण्णम्मि पवरकरिणीजूहमज्झम्मि एकाए पवरकरिणीए गब्भम्मि । जाओ कमेणं । णिचडियसयलदेहविहाओ य संपत्तो जोवणं । जाओ सयलकैरिणीण जूहाहियो । जणियविविहरइसंभोयपसरकयकीलाविसेसो सच्छंदं वियरिउं पयत्तो । कह ? अण्णोण्णक्रीलणुप्पण्णपेम्मसंजणियरइरसविलासो । लीलापरिसक्कणगइविसेससंजणियसोहग्गो ॥ ४ ॥ करिणिकरग्गुल्लूरियकोमलपल्लवपयप्पियाहारो । णियसोडग्गपरामुसियपणइणीदेहपरिणाहो ॥ ५ ॥ .. वियडकवोलत्थलगलियवहलमयसलिलपरिमलुग्गारो। अञ्चन्तगहिरसरसलिलमज्जणुल्लसियकयकीलो ॥६॥ इय सच्छंदपयप्पियविहरणसंजणियहिययपरिओसो । रमइ जहिच्छं बहुकरिणिपरिगओ तत्थ करिणाहो॥७॥ । इओ य तस्स अरविंदणरवइणो अणेयणग-णगर-पट्टण-मडम्ब-दोणमुहपरिक्खित्तं पउरकरि-तुरय-पाइक्क-पणयाणन्तसामन्ताहिटियं रज्जमणुवालयंतस्स गच्छन्ति दियहा। अण्णया य समागए सरयसमए पासायसंठिओ बहुविहकीलाविलासणिन्भरं कीलिउं पयत्तो सह पियाहि । केरिसाहि च ताहि ? कसिणघणकुंतलुप्पीलकलियधम्मेल्लकुसुमदामाहिं । मयणाहिपरिमलुग्गारगारवग्यवियसोहाहि ॥ ८॥ मइरामयमउलावियपहोलिरायम्बलोयगिल्लाहि । अविरलसेयलबाबज्झमाणदंतुरियभालाहिं ॥९॥ अहिलसियरइसमागममंथरवित्थारियंगभंगाहिं । मासलमलयरसालिद्धपीणथणमंडलिल्लाहिं ॥१०॥ संकंतमहुरसामोयमुहयसंजायवयणपवणाहिं । ववएसजंपियुप्पाइउन्भडाणंगसंगाहिं ॥११॥ णीसेसकलाहिगमुल्लसन्तसोहग्गगुणमहग्याहिं । लीलापलोयणोप्पियपियहिययासंसियवाहि ॥ १२॥ इय एरिसाहि पावियवम्महवियणावियज्झहिययाहि । पवरंतेउरतरुणीहि दिण्णमण-णयणसोक्खाहिं ॥ १३ ॥ एयारिसाहिं च णियपणइणीहि समयं कीलमाणेण पलोईयमच्चुच्चमुण्णमन्तसुरचावचारुचंचिल्लियं पप्फुरियतरलतडिविलसिउब्भासियं केलासगिरिसिहरविश्भमं महब्भकूडं गयणंगणे । तं च दण भणियं पत्थिवेण-अहो ! पेच्छ पेच्छ "सिप्पिविणिम्मियस्स व पवरमंदिरस्स अचन्तरम्मया जलहरपडलस्स । ति भणमाणस्स च्चेय जराजजरियरूवपसरं व माणुसं अण्णारिसं जायं। तो तं तारिसं णियच्छिऊण य लहुकम्मत्तणो खोवसममुवगयं चारित्तमोहणीयं, विरत्तो संसारवाससंगाओ, खओवसमं गए य णाणावरणे समुप्पण्णं ओहिणाणं । परियणपडिबोहणत्थं च भणिउं पयत्तो, कह ? १व्वमंतवयं जे । २ करीण सू । ३ °यणगर जे । ४ 'यम्मि सं° सू । ५ विदग्धहृदयाभिः । ६ इयं भरियसयलणहंतरालं पापुर जे । ७ सिप्पिउप्पाइयस्स सू । ८ स दळूण लहुक जे । Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४७ ५३ पाससामिचरियं । चौजमिणं तं तारिसवित्थारियतरलतडिविलासिल्लं । परिगलियं कह खगगलियसोहमियमुयह घगजालं १ ॥१४॥ सवाण वि एस गती जयम्मि भावाण संभवन्ताण । संसारे बहुविहदुक्खलक्खखयसोक्खपसरम्मि ॥१५॥ जेण जुवाणत्ते णियमुरूयसोहग्गगविएण दढं । परिसकिज्जइ उम्मुहवित्थारियगयणमग्गेण ॥ १६ ॥ तेणेय जराजन्जरपरिणामोअल्लतणुविहाएग । अग्णंसाऽऽसत्तकरेग णीसहं वेविरंगेण ॥ १७॥ णयणाई जाइं लीलापलोयणोप्पियमयाई तरुणीण । आसि पुणो वयविरमम्मि ताई अण्णारिसाई व ॥ १८॥ सवणा जे आसि कलुल्लसन्तगंधवलालसा सुइरं । सग्णाविहावियत्या वयपरिणामम्मि ते चेय ॥ १९ ॥ जो आसि भमिरभमरंजणुज्जलो कसणकेसपन्भारो । सो चेय विसयवोसट्टकासकुसुमप्पहो होइ ॥ २० ॥ 'इय सव्वस्स वि वयपरिणईए जायंति जंतुणो भावा । एयारिस' त्ति कलिऊण तेण धम्मुज्जमो जुत्तों ॥ २१ ॥ अण्णं च जीवो अणादिबहुभवकालज्जियगरुयकम्मसंताणो । परिभमइ दुहसयावत्तदुग्गमे भवसमुद्दम्मि ॥ २२ ॥ णरयम्मि णिययकयकम्मवसपरब्यसपगामियप्पाणो । अणुहवइ विविहसत्थाहिघायसंजणियवियणाओ ।। २३ ॥ तिरियत्तणे वि वाहण-डहणं-उंकण-कण्णकप्पणादीणि । अणुहवइ विविहदुक्खाई खु-प्पिवासापरिस्संतो ॥ २४ ॥ माणुस्सम्मि वि दारिद्ददोस-दोहग्गदूसियावयवो । जम्मं विसयासासंपडतदुहिओ समागमइ ॥ २५ ॥ अह कह वि विसयसंपत्तिपत्तसोक्खो खणं मुही होई । पियविरह-ऽप्पियजणसंपओयजणिय दुहं लहइ ।। २६ ।। देवत्तणे वि दट्टुं महिड्ढि-सक्काइणो सुरसमूहा । जणियाहिओग्गमीसावसाइयं लहइ बहु दुक्खं ॥ २७ ॥ इय एरिसम्मि वित्थयदुहणियरपरंपराविसालम्मि । संसारे सविवेयस्स कस्स वा होज ण विराओ ? ॥२८॥ तओ एवंविहं परियत्तियरसभावन्तरं णरवई दट्ठण भगिउं पयत्तो सयलो वि सुंदरीयणो जहा-अजउत्त! किमेयमयंडे चेव तुम्हाण एरिसमसमंजसं जंपियं ? जेण दरिसियरसंतरायारो पल्लट्टियरूको विव लक्खिज्जसि, कर्हि गया ते तुह तरलतारउव्वत्तलोललोयणा दरफुरन्तपम्हपडला पलोइयत्ववियारा ?, कर्हि वा विलासकयभूभंगविन्भमुब्भेयभूसणपरम्मुहो भालमग्गो ?, कहि वा ववएसजंपिउप्पण्णबहुपियप्पयप्पयारपउराई पवरजंपियवाई?, कहिं वा हिययभितरपवियंभिउब्भडुकंठसिट्ठलट्ठसंठाणो रमियन्याहिलासो ? ति, ता केण वा दंसियं तुम्हाण विलीयं ?, केण वा कयमाणाखंडणं ?, केण वाऽवरद्धं ? । ति भणमाणस्स दइयाजणस्स भणियं परवडणा-ण खलु तुम्हाण केणावि पडिकूलमायरियं, किंतु सव्वमेयमवितहं संसारविलसियं संभाविजइ, जेग कम्मपरिणइवेंसगयस्स जंतुगो पिओ वि अप्पिी , अणुकूलो वि पडिकूलो, सुयणो वि दुजणो, मित्तो वि सत्तू, संपया वि आवया, कलत्तं पि गोत्ती, रज्जं पि मच्चु त्ति । कह ? जह पवरचित्तभित्ती सलिलुप्पुसिया ण देइ परभायं । तह जर-मरणालिद्धं तणू वि सोहं ण पावेइ ॥ २९ ॥ जह णिण्णयाओ उवहिम्मि ण य णियत्तन्ति णिवडियाओ पुणो । तह ण पुणो पल्लति तणुम्मि रूवाइसोहग्गं ॥३०॥ जह उग्गओ रवी णहयलम्मि ण खणं पि णिश्चलो होइ । तह तारुण्णं जीवाणं होइ ण थिरं मुहुत्तं पि ॥३१॥ मारुयविहट्टियं णेय होइ जह तरुदलं खणं पि थिरं । तह विविहवाहिकलियं जियाण जीयं जए ण थिरं ॥३२॥ जह सुसियपायवे णेय होन्ति वेल्लहलपल्लवुप्पीला । विसयविलासा जायन्ति णेय तह परिणए देहे ॥ ३३ ॥ १ 'यगमणम जे । २ 'हाणेण सू । ३ ॥२१॥ इच्चैवमादि बहुहा अणिच्चाइभावणागणं भावयन्तो भणिओ सयलतेउरसुंदरीहि जहा-अजउत्त! किमेयमकंडम्मि चेय तुम्हाण एरिसमसमंजसं जंपियं? जेण दरिसियरसंतराउरो य पल्लष्ट्रियसवो इव लक्खिग्जसि, परिहरियसय. 'लहावभावो हिंययम्मि किं पि चिंतयंतो चिट्ठसि, ता केण वा दसिय तुम्हाण विलीयं ! केण वा जे, (२८ गाथानन्तरम्) । ४ तुम्ह के सू। ५ 'वसमुवगयस्स जे। For Private & Personal use only . Page #331 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४८ ५२ चउत्पन्नमहापुरिसचरियं । जह हव्त्रवहस्स सिहा गिव्त्राणा ण य पुगी वि पज्जलइ । तह चेट्ठा वि हु सयलिंदियाण विगया ण संघडइ ||३४|| जह पव्त्राया कुसुमाण मालिया णेय लहइ परिभोयं । तह विसइच्छं वयपरिणयंगलट्ठी ण पावेइ ॥ ३५ ॥ जह पण पेल्लिओ सुकदारुछारो दिसोदिसिं विगओ । ण मिलइ पुणो त्रि तह वोलियं खु मणुयाण माणुस्सं ||३६|| इय सलिलबुब्बुयुग्भडसंझाराओवमम्मि जीयम्मि । विसयसुहेसु थिरासा कह कीरउ जाणमाणेहिं १ ||३७| एवं च पडिबोहिऊण पणइणीपमुहं सयलं पि परियणं, काऊण णिययतणयस्स रज्जाहिसेयं, परिचइऊण तणं व रायलेच्छि णिग्गओ णयराओ विमलम सहाओ गिहीयसमणलिंगो अइदुक्करतत्रोविसेससोसत्रियणियतणू गामाणुम्मामं विहरिउमादत्तो | केरिसो य : मण-वयण-कायसयलिंदियस्थगुत्तो विहावियसुहत्थो । विमलगुणकिरणणिहलियपावतिमिरो मियंको व्व ॥ ३८ ॥ णीसेसकलुसणिद्दलणजाय सुहदंसणा हिरामिल्लो । गहमग्गो व्व विराय विमुकघणपंकपन्भारो ॥ ३९ ॥ तवणहस्पहरदारियसयलमयद्वाणलद्धमाप (ह) प्पो । पंचाणणो व्व वियरइ वम्महमायंगणिम्महणो ॥ ४० ॥ इय एवं वविबम्भपालणाभिग्गहग्गकयणियमो । लद्धाणुण्णो विहरह एक्कल्लविहारपडिमाए ॥ ४१ ॥ एवं च विहरमाणस्स सम्मेयसेलवंदणणिमित्तमुप्पण्णा मती । पयट्टो सागरदत्तसत्थवाहेण समयं । पणमिऊणं च भणिओ सागरदन्तेण-भयवं । कहि पुण तुम्हेहिं गंतव्वं ? । मुणिणा भणियं - वंदणणिमित्तमट्ठावयगिरिं । सत्यवाण भणियं भयवं ! केरिसो उण तुम्हाण धम्मो ? ! तओ मुणिणा सम्मत्तमूलो पंचमहन्वयाइओ साहिओ जतिधम्मो, पंचाणुव्याइओ गिहत्थधम्मो [य]। तं च सोऊण वियलिओ कम्मरासी, पण मिच्छत्ततिमिरं, उल्लसिओ धम्मुज्जमो, गहियं सावयत्तणं । एवं च पइदिणं धम्मकहाणणैवावडस्स जंति दियहा । वहइ सत्थो । कमेण संपत्तो तं महाडई जत्थ सो वणकरी । तत्थ य पलोइयमेकं महासरवरं, जं च पडिच्छंदयं पिव महाहोयस्स, अद्दायमंडलं पिव तिलोयलच्छीए, भ्रुवणपुष्णसम्भारं पित्र सलिलरूवेणोवद्वियं, तुहिणसेलसिहरं पित्र विण्णीणकयावद्वाणं (?), मियंकविम्बं पिव रसभावपरिणयं, णिग्गमण [?]ग्गं पित्र जलणिहीणं, मणितलिणं पिव धरणिविलयाए, फलिहगिरिजालं पिव जलयरपरिगयं, विमलसलिलत्तणओ अंतोविहाविज्ज माणसयलसरूवं तरलाणिलुव्वेल्लिरजलतरंगसी यरासारपडिवज्जन्तसुरचावखंड मंडियं, अवि य अणवरयपयत्तुकंलियसंकुलं जोव्वणं व रमणीयं । उकंठियं व कोमलमुणाललइयापरिक्खितं ॥ ४२ ॥ भारहचरियं पिब जायपंडु-धयरद्वपक्खविक्खोहं । विंझारण्णं व वियम्भमाणवरपुंडरीओहं ॥ ४३ ॥ मयरद्धयं व संठियमयरमुहुग्गारणिग्गयवियारं । कंसबलं पिव भसलउलभीयमुहकुवलयावीढं ॥ ४४ ॥ कंदु(? कुंद)वणमंडलं पित्र णायसहस्सोबहुत्तपयणिवहं । मलयगिरिं पिव [ब] हुयरचंदणवणसिसिरपरिवेसं ॥ ४५ ॥ बालचरियं व तडरुहसंठियह रिजलणिवायकयकीलं । दिव्यं व अणिमिसालोयदिष्णदिट्ठीवियारिलं ॥ ४६ ॥ ईय सयलजंतुसंताणदिण्णणिव्वाणकारणं दिहं । वैरकमलसंडमंडियमणोहरं सरवरं तत्थ ॥ ४७ ॥ तओ तस्स पलोयणामेत्तेणावि पणासियपहपरिस्समपिवासाइसओ सेमावासिओ तयासण्णम्मि सयलो वि. सत्थो । पयत्तो रंधण-पयणाइमायरिडं । एत्थावसरम्मि य सो वणकरी सयलकरिणीपरिवारिओ सच्छंदकयजहाविहारों संलिलपाणणिमित्तमागओ सेंरवरं । समोइष्णो सलिलमज्झम्मि । पीयं च पउरणीलुप्पलकमलपरिमलालिद्धभमरउलगेयमुहलं सरजैलं, कड्ढियं च णियकरुल्लू रियदी हरयर कंदपडिबद्धदरदलउडुब्वेल्लकमल केसरपरायपिंजरीकयभिसिणीवलयं, पक्खित्तं च थोरयरकरसुंकारमारुउच्छित्त सिसिरसी यरासारवइयरसित्तकारिणिगत्तं पउरणीरं, कवलियं च कोमलमुणालियावलयपरिक्खित्तसरससिंघाडउन्भर्ड जलरुहवियाणं ति । १ लन्छी जे । २ विमलसहावी गिजे । ३ विहरिडं पयलो । तभो अष्णया कयाइ एकल्लविहारितणेण विहरमाणस्स सम्मेय जे, (४१ गाथान्तरम् ) । ४ °णवियावडस्स जे । ५ हस्तद्वयान्तर्गतः पाठो जे पुस्तके नास्ति । अह सयल' जे ७ वणक सू । ८५ ॥ एवं पयस् । ९ समासासिओ सू । १० सयल सू । ११ सरं सु । १२ 'जलं, कवलियं च कोमल जे । Page #332 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४९ ५३ पाससामिचरियं । एवं च ताहिं करिणीहिं समं कयबहुविहकीलाविलासो समुत्तिणो सरवराओ वणकरी । वलग्गो पालिसिहरं । पलोइयाई पासाई । मच्चुणो व्व दिहिगोयरम्मि णिवडिओ सत्थो । तओ सणसमणंतरमेव सहस चिय कोंडलियसोडेदंडग्गभाओ उम्भडकयकंठगजिओरल्लिबहिरियदिसामुहो णिकंपपरिवियडतडवियकण्णजुयलो गुरुयरवेउक्खित्तपैयणिक्खेवो गिलंतो व्य तं दिसावलयं पहाविओ सत्याहिमुहं करिवरो । दिट्ठो य सरयसमओ व कोमलारुणुव्वेल्लपुक्खरो, विण्हुकुमारो ब्व कैयतिवतीविलासपसरो, घणसमओ व णिययवित्यारोत्थयणहंगणो सयलसत्येण । पलोयणाणंतरं च मुहाऽसुहकम्मवसय व्व पाणिणो विगया सवओदिसं पंथिया । मुणिवरो वि अवहिप्पओएण मुणिऊँणाऽऽसयं ठिओ तत्थ पडिमाए । तेणावि हु करिणा सयलकरिणीयणपरिवारिएण असमंजसं दरमलिऊण सयलसत्थरित्थं णिज्झायमाणेण दिह्रो सो महामुणी । पहाविओ तत्तोऽभिमुहं । तं च तारिसं गयभय-हास-रोसप्पसरं फ्लोएमाणस्स वियलिओ मच्छरो, विगओ मारणाहिलासो, वित्थरिया अणुकंपा, समुल्लसिओ तप्पहावओ संवेओ ति । तओ तमालेक्खगयं पिव पलोएऊण करिवरं मुणिणा संवरिओ काउस्सग्गो । दिट्ठो णिच्चलइयसयलदेहविहाओ अंजणगिरिवरो व पासपरिसंठिओ वणकुंजरो । तप्पडिबोहणत्यं च अञ्चन्तमुहसंजणणीए भारईए भणिउं पयत्तो जहा भो भो मरुभूह ! किं ण सुमरेसि मं अरविंदणामाणं णरवई अप्पणो वा दियाइसंभवं पडिवण्णजिणमयं मणुयजम्मं जेण एवंविहं पयोवदवयारिणं कम्ममायरसि ?। तओ एयमायण्णिऊण मुणिणा भणियं वियप्पंतेण सुमरिया पुव्वजाई कैरिणो । सुमरणाणन्तरं च धरणियलमिलंतुत्तिमंगेण पणमिओ मुणी । मुणी वि मुणियचित्तवित्ती भणिउं पयत्तो, कह ? "लब्भन्ति लोललोयणछडप्पहुब्भासियावयंसाओ। दइयाओ रूव-सोहग्गसालिणीओ, ण जिणधम्मो ।। ४८॥ लन्भन्ति विविहमणि-कणय-रयणभवणोवहोयसंजुत्ता। रिदिविसेसा, ण उणो कहिं पि जिणेभासिओ धम्मो॥ ४९ ।। लब्भन्ति रुइरकरि-तुरय-संदणुद्दामपक्कपाइक्का। णिव्याणकारणं ण य कर्हि पि जिणभासिओ धम्मौ ॥५०॥ लब्भन्ति खवियपडिवक्खपक्खलक्खा वि रज्जसंभोया। ण उणो संसारायडपडणुद्धरणक्खमो धम्मो॥५१॥ . लब्भन्ति व-सोहग्गकलियविण्णाणणाणविज्जाओ । ण उणो भवजलहिनिबुड्डमाणजणतारणो धम्मो ।। ५२॥ लब्भन्ति मणहरोवणयपवरसुरसुंदरीसैंणाहाइं । इंदत्तणाई, ण उणो णरेहिं मोक्खप्फलो धम्मो ॥ ५३॥ इय सव्वं चिय लब्भइ जयम्मि जं किंचि होइ दुल्लंभं । एक मोत्तुं करिणाह ! वीयरागुग्गयं धम्मं ॥ ५४॥ ता हो महागइंद ! जइ मुणिओ तुमए अप्पा ता मुच्चउ सयलसत्तोवद्दवो, सिढिलिज्जउ पमायविलसियं, अवलंबिज्जउ सप्पुरिसचरियं, घेप्पट "पंचाणुव्वयाइओ सावयधम्मो"।त्ति भणमाणस्स 'पडिच्छामि' त्ति सण्णाविहावणाणिमित्तं चालियं उत्तिमंगं, पसारियं करगं । मुणिणा वि मुणिऊण भावत्थं पणामिओ से सयलो वि सावगधम्मो । गहियधम्मसारो य गओ जहागयं गयवरो। एत्थावसरम्मि य करिचरियविम्हइयमाणसो सह सागरदत्तेण 'अहो ! मुणिणो पहावो' त्ति भणमाणो सम्मिलिओ सयलो वि सस्थो, णिवडिओ मुणिणो चलणजुयलेसु, पडिवण्णो. बहवेहिं धम्मो, गहियमण्णेहिं अणुव्चयाइयं । दिण्णपयाणओ गओ तप्पएसाओ सत्थो । मुणिवरो वि गंतूण अट्ठावयं वंदिऊण जहाविहिं भयवन्ते पयत्तो संजमुज्जोय मायरिङ। सो वि हु करिवरो गहियसम्मत्तसारो चक्खूवेक्खियमहियलविइण्णमंदपयसंचारो छ?-ऽट्टमाइलवचरणकरणुज्जओ रसपरिचायपरिणयमई परिचत्तसयलणियजूहसंगो गिम्हुम्हायवपरियावविसेससोसवियणियतणू वरजइब समियाइ भाओ सू । २. पयविक्खेवो जे । ३ कृतत्रिपदीविलासप्रसरः । ४ गणो पलोइओ सयल सूजे । ५ ऊण सयं सू। ६ तत्तोसमुहं जे । ७ पुलोयमा जे । ८ भारहीए भणियं ५ जे । ९ द्विजातिसम्भवम् । १० तओ तमा सू। ११ करिणा सू । १२-१३ णदेसिमो जे । १४ व्य जे । १५ °सहायाई सू । १६ सव्वं पि य सू। १७ पंचमहाणुब्ब सू । १८ णकमलेसु जे । Jain Education stational Page #333 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चपन्नमहापारसचारय। संजमुज्जुत्तमाणसो फासुयसेज्जा-ऽऽसण-भत्त-पाणणिरओ धम्मज्झाणणिहित्तचित्तो गमेइ कालं ति । इओ य सो कमढपरिवाइओ सहोयरवावायणेणावि गोवसन्तकसाओ समहियपयट्टज्यवसाणो णियआउयपरिणईए कयपाणपरिचाओ समुप्पण्णो कुक्कुडसप्पभावेणं । संजायसरीरोवचएण सयलसत्तसंहारकारी पयत्तो पुहईए पयरि। परिब्भमंतस्स य तस्स णिवडिओ दिद्विगोयरम्मि सो सलिलाहारणिमित्तमागी वणकरी। पीयं च रवियरपरियावणाफामुयं सलिलं । णिग्गच्छमाणो य भवियव्ययाए खुत्तो महल्लचिक्खल्लम्मि । णित्थामत्तणओ णिग्गंतुमपारंतो गयवरो पुब्बभवुप्पण्णकोवाइसएण य समुप्पइऊण कवलिओ कुंभभायम्मि कुक्कुडभुयंगमेणं । तओ मुणिऊण तन्विहविहाणमत्तणो गयवरो सुमरिऊण गुरुदिण्णोवएसं काऊण चउन्विहाहारपञ्चक्खाणं भाविउं पयत्तो, कह ? सव्वेण वि मरियव्वं जाएण जिएण केणइ निहेण । सयलम्मि जीवलोयम्मि गृणमेस चिय जयठिई ॥ ५५ ॥ ता मरियव्वं जैइ तह विवेइणो होइ जेण जायन्ति । ण उणो पुणो वि कुगतीलंभुन्भडियाइं दुक्खाई ॥ ५६ :: तं तारिसं खु मरणं णवरं धम्माणुहावओ होइ । धम्माण वि जिणधम्मो णारय-तिरियुग्गदुइदलणो ॥ ५७ ॥ संपत्तो सो य मए पुचि सुकयाणुहावसेसेण । सयलसुरा-ऽसुर-सिवसोक्खहेउभूओ जिणपणीओ ॥ ५८॥ ता वोसिरॉमि तिविहेण कसाए हासछक्कयं चेय। राग-द्दोसे अरई दुग्गुच्छं चेव विसयासं॥ ५९॥ एवं संकाईए दोसे 'तिण्णि विणिरागरेऊण । परतित्थपसंसासेवलंछणं छड्डिऊण दढं ॥ ६०॥ संगं सवाहिरऽभितरं तहा अट्ट-रोद्दझाणे य । आराहिऊण दंसण-णाण-चरित्ते महासत्तो ।। ६१ ॥ धम्मज्झाणोवगओ णमो जिणाणं ति सुहसमिद्धाणं । सिद्धाईणं च तहा पुणो पुणुच्चारणसयाहो ॥ ६२॥ इय विहिणा करिराया कालं काऊण तत्थ सुद्धमती । उववण्णो सुरलोगुत्तमम्मि सहसास्कप्पम्मि ॥ ६३ ॥ एवं च मणि-रयण-कणयभवणोवसोहिए णिम्मलफलिहभित्तित्थलणिहित्तणियडपडिबिंबे दसद्धवररयणविप्फुरियकिरणुज्जोइयम्मि सुज्जप्पहविमाणम्मि समुप्पण्णो दियवराहिहाणो सत्तरससागरोवमाऊ सुरवरो । तत्थ य सयलसमीहियसंपत्तिपत्तसोहं विसयमुहमणुहवन्तस्स गओ कोइ कालो। सो वि हु कुक्कुडभुयंगमो अहाउयक्खएणं कालं काऊण समुप्पण्णो विचित्तवियणाउराए पंचमाए गरयपुढवीए सत्तरससागरोवमाऊ चेय णारओ त्ति । तत्थ य छिंदण-भिंदण-विद्धंसण-सूलेरोहणादीणि । कर-चरण-कण्ण-जीहोट-णासियाछिंदणदुहाणि ॥ ६४ ॥ तह कूडसामलीविलइयचकयकुंभिपायपउराई । करवत्तदन्तफालणदुहाइं इय एवमादीणि ॥६५॥ उवभुंजन्तस्स तहिं णिविसं पि ण होइ पाववसयस्स । वीसीमो अहियं कमढजंतुणो णिरयमज्झम्मि ॥ ६६ ॥ इय पावपरिणइं भाविऊण मणुएहि मणुयजम्मम्मि । तं कायध्वं ण य हौति जेण णिरयाई दुक्खाई ॥ ६७॥ इओ य सो सुरवरो णियआउयावसाणम्मि दियलोयाओ चुओ समाणो समुप्पण्णो इहेव जंबुद्दीवे दीवे पुष्वविदेहे खेत्तम्मि सुकच्छविजए वेयड्ढणगवरम्मि तिलयणामाए णयरीए विज्जुगतिणामहेयस्स खैयराहिवइणो कणयतिलयाहिहाणाए वरग्गमहिसीए उदरम्मि पुत्तत्तगणं । जाओ कालकमेणं । पइटावियं च णामं किरणवेगो ति । वढिओ देहोवचएणं कला-गुणेहिं च । संपत्तो जोवणं । तओ सो विज्जुवेगखयरीसरो पणामिऊण णिययपुत्तस्स रज्जं पवण्णो सुयसागरगुरुसमीवम्मि पव्वजं । .' सो विहु किरणवेगो सुररायविच्छडुविन्भमं भुयबलुइलियासेसपडिवक्खलक्खं मुइरं रायलच्छिं भोत्तूण दाऊण किरणतेयणामस्स णिययपुत्तस्स रज्जं पवण्णो सुरगुरुमुणिणो समीवम्मि पन्चज । अहिन्जिय मुत्तं, अन्भुवगओ पारयंतो जे । २ जइ इह वि जे । ३ हुजे। ४ वोसरामि सू। ५ चेव जे । ६ तिण्ड स। . सुरलोए उत्तमसहसा जे । ८ मणि-कण सू। १ लरोवणाईणि जे । १० वीसासो सू । ११ खइरा सू। १२ 'म्भमेणं भुजे। Page #334 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५३ पाखखामिचरियं । २५१ किरियाकलावो । पवण्णो जहकमं एकलविहारित्तणं । अण्णया य आगासगमणेणं गओ पुक्खरवरदीवद्धं । तत्थ वि णाणाविहतवचरणणिरओ कणयगिरिसन्निगासम्म ठिओ पडिमाए । पइदिणं च मुक्तावलि-मुरवमज्झ-समंतभइ (द्द) यं विहाणं कुणन्तस्स गच्छन्ति दिया । इओ यसो कुक्कुडपणारओ खविऊण णिययाउयट्ठिरं तओ णरयाओ उब्बट्टो समाणो तस्स चेय कणयगिरिणो पियडणिउजम्मि समुप्पण्णो कसिणंजणसरिसदेहच्छवी जोयणप्पमाणतणुविहाओ गुंजद्धरायाणुयारिणयणजुयलो अञ्चन्तभीसणालोओ अणेयसत्तन्तयारी महोरगो त्ति । अइकंतो सिसुत्तणाओ संपत्तो महल्लभावं । अण्णा य तेण महाहिणा इओ तओ आहारत्थं परिब्भममाणेण दिट्ठो सो किरणवेगो महरिसी कणयगिरिणिवेसम्म पडिमा संठिओ ववगयरइ-राय-रोस- परीसह त्तणओ झायन्तो परमत्थं ति । ताव य पलोयणमेत्तुप्पण्णसिहि सिहाजालभासुरणयणजयलेणं पुन्वभवन्मत्थवेरकारणेण य वियडदढदाढीविडिंचियत्रयण कुहरेण तक्खणं परिवेढिऊण सलंगाard खइओ बहुप्प सेसु त्ति । सो वि महामुनी मेरुणिहायलधीरसंपत्तिसत्तजुत्तो णिप्पयंपसमुद्धन्तधम्मज्झाणपरिवड्ढमाणसुहज्झत्रसाणो चइऊण पूइदेहं समुप्पण्णो अच्चुयणामम्मि पत्ररसुरलोए जंबुदुमावत्ते विमाणम्मि पवरदेवत्तणेणं । केरिसोय ? - वरमउड-कडय-कुंडल-मुँत्ता- मणिमासलुज्जलाहरणो । रंखोलिरहारावलिभूसियवच्छत्थलाडोओ ॥ ६८ ॥ सररुहदलदीहरणयणर्जुवलसंपत्तकंतिवित्थारो । सरयारम्भो वा समुल्लसंतमुहपंकयामोओ ॥ ६९ ॥ वोसट्टकमलदलगन्भस रिससुकुमारतणुविहायाहिं । सव्वत्तो चिय रेहड़ परियरिओ सुरपुरंधीहिं ॥ ७० ॥ णाणाविवज्ज समुल्लसन्तरुइरोरुगेयराहाहिं । णट्टविहीहिं समन्ता सोहइ समहिडिओ धणियं ॥ ७१ ॥ इम्म विमाणे हियर्चितिउप्पण्णसयलसंभोओ। बावीससागराऊपमाणकालो सुरो जाओ ।। ७२ ।। एवं च पवरसुरसुंदरीसविन्भमच्छिच्छडप्पहाहिसित्ततणुविहायरस जहासमीहियसंपज्जन्तसयलविसयसोक्खपसरस्स जहासु वच्चइ कालो । सो विहु महाफणी बहुविहसत्तसंघायणऽज्जियपउरपावपन्भारो परिब्भमन्तो पव्वयकडयतडम्मि संपलम्गवणदवजालावली होमओ समाणो समुप्पण्णी घूमाए णरयपुढवीए सवायधणुसयप्पमाणदेहायामो सत्तरससागरोवमाऊ णारयत्तणेणं । तर्हि च बहुप्पयारं दुक्खमणुहविडं पयत्तो, कह ? - जणियविहंगुग्गयजाणमुणिर्यपुव्ययरवेरसंबंधो । विउरुत्रियणाणाविहणारयकयरूवपडिबद्धो ॥ ७३ ॥ उब्भडपहरणसंपायपउरणिव्यट्टियंगपन्भारो । सुमरावियजम्मन्तरकयदुक्कयचरियवित्थारो ॥ ७४ ॥ अण्णoगावडणघडंतमच्छरोहरियपहरेणोयल्लो । पुणरुत्तट्ठिय-संगलियस यल देहाविहाइल्लो ।। ७५ ।। इय पात्रपरिणतीवसैंणिमिस पि गलद्धदुक्खवीसामो । पञ्चइ अहोणिसं सव्वओ वि दुहजलणजालाहिं ॥ ७६ ॥ सो बिहु किरणवेगजीवदेवो उवभुंजिऊण समग्गसंपण्ण विसयसोक्खं णिययाउयपरिणईए तओ चुओ समाणो इन जंबुद्दीवे दीवे अवरविदेहे खेत्ते सुगंधिविजए सुहंकराए पुरवरीए वज्जवीरिओ णाम णरवई, तस्स लच्छिमती णाम भारिया, समुप्पण्णो तीए गन्भम्मि । कयं च से णामं वज्जणाहो ति । अइकंतो बालत्तणाओ । संपत्ती रूत्रसोहग्ग-बलसमुदयाहिद्वाणसालि जोखणं । ओ सो वज्जवीरिओ भोत्तूण बहुयं कालं रायलच्छि णिन्त्रिणविसयसुहपिवासो दाऊण वज्जणाहस्स रज्जं सह पणइणीए पत्रज्जं पवण्णो त्ति । १ मुरयमज्झसम्मत्त भइयं जे । २ तत्रोविसेसं जे । ३ 'ढाविडंबिय' जे । ४ 'वीर' जे । ५ 'मुतावलिमा' जे । ६ 'जुयल' जे । ७ तमप्पा रयपुढवीए अड्ढाइज्जधणुसयप्पमाणदेहायामो बावीससागरोवमान सू । ८ यकयपुब्ववेर सू । ९ रणायल्लो जे । १० स णिविसं पालद्वदुक्खविसामो जे । For Private Personal Use Only Page #335 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५२ चरप्पन्नमहापुरिखचरियं । तस्स वि हु वज्जणाहस्स अणेयसामन्ताऽणतभड-पुरोहिय-महामंति-भिचपरियालियरस विजयागामाए पवरग्गमहिसीए समं वसीकयासेसदुइन्तपडिवक्खं रजमणुवालयंतस्स गओ कोइ कालो । समुप्पण्णो से चकाउहो णाम पुत्तो। संपत्तो जोवणं । दणं च संपत्तजोव्वणं चकाउहं चिंतियं वज्जणाहेण जहा-धिरत्यु मे अलियपुरिसत्तणावले. वस्स जीविएण जो हक अन्ज वि पुन्चपुरिसुव्बूढधम्मधुरुद्धरणपरम्मुहो विसयलवलेवोवलित्तो परत्तहियं णायरामि । त्ति चिंतिऊण वाहित्ता सयलसामन्ता-ऽमच्च-पुरोहियपमुहा णिययाणुजीविणो कुमाररज्जाहिसेयणिमित सिट्ठो णिययाहिप्पाओ । एत्थावसरम्मि य भणियं कुमारचक्काउहेण छ जहा-ताय ! अज वि अणहं जोव्वणं, अप्पडिहयसत्ती इंदियप्पसरो, अभग्गदप्पं सारीरं बलं, समग्गसामग्गीया रायलच्छी, ता किमेयं अपस्थावविलसियं तायस्स ?, जेण सुव्बउ दारिददोस-दोहग्गदुम्मणो दिण्णगरुयणिव्वेओ । इच्छियविसयासासंपडतपरियड्ढियविसाओ ॥ ७७ ॥ तत्य वि वयपरिणामम्मि गलियसयलिंदियत्थमाहप्पो । दिक्खाविहाणधुरंधरणपञ्चलो होइ जइ को वि ।। ७८॥ तुम्हाण पुणो अज्ज वि जोवण-लायण्ण-रूव-सोहग्गं । भुवणम्मि अणण्णसमं बलसामग्गी तह च्चेव" ॥ ७९ ॥ ___ इय एवं चक्काउहवयणाणंतरविइण्णसंलावो । वज्जाहिवो पयंपइ गज्जियणगहिरणिग्योसो ॥ ८ ॥ "भो भो चक्काउह ! जं तुमए भणियं जहा 'अन्ज वि अणहं जोव्वर्ण' ति तं मुबउसंज्झन्भराय-जलबुब्बुओवमे जोवणम्मि मणुयाण । को पडिबंधो बहुवाहिवेयणोवद्दविल्लम्मि १॥ ८१ ॥ जं च भणियं 'अप्पडिहयसत्ती इंदियपसरो' ति तत्थ वि अस्थि कारणं, जेणअणहे चिय सामत्थम्मि जंतुणो जुज्जए समुजमिउं । वियलम्मि इंदियत्थे काउं ण य तीरए कि पि ।। ८२ ॥ तहा जमुल्लवियं 'अभग्गदप्पं सारीरं बलं' तं पि णिसामिज्जउकह कीरउ तम्मि बले कुमार ! हिययम्मि सासया बुद्धी । जं रोयणियरकलियं खणेण विबलत्तणमुवेइ ? ॥ ८३ ॥ जं च समुच्चरियं 'समग्गसामग्गीया रायलच्छि' त्ति तं पि समायणिजउएयाए महियले कमलिणीदलोवगयणीरतरलाए । लच्छीए पयारिजति णिविवेय चिय जयम्मि ॥ ८४ ॥ .. अण्णं च जारिसा रायलच्छी तारिसा सुबउ-जा ण कलइ कुलक्कम, ण सुमरइ परिचयं, प मण्णइ कुंलुग्गय, ण पलोएइ रूवं, ण णियच्छइ सीलं, णाणुयत्तइ विसेसेसुयत्तणं, णायरइ धम्मणियरं ति । " अवि यदरदंसियभवणोववणकाणणुप्पाइउब्भडसुहासा। गंधव्वणयरसोह व्च पेच्छमाणस्स वि पलाइ॥८५॥ बहुविहगयंदगंडयलगलियमयसलिलपंकखुत्त छ । अहियं पक्खलइ महाणरिंदगुरुमंदिरेमें पि ॥८६॥ अणवरयकमलसंचरणलग्गणालग्गकंटयं व खणं । कत्थइ पयं णिवेसइण णिम्भरं अज वि खणं पि॥८७॥ संपण्णमूलदढदंडकोसमंडलवियासपउरम्मि । दियसावसाणकमलं व मुयइ मणुयं महियलम्मि॥८८॥ इय दिणयरमुत्तीए व बहुविहसंकंतिलद्धपसराए । एयाए को ण तविओ जयम्मि लच्छीए सच्छंदं ? ॥ ८९ ॥ अण्णं च तरलतडिलय व अथिरा आउसंपत्ती, कुसुमवियासविन्भमं जोव्वणं, णीरुम्मिसरिसा विसयसंभोया, जलणिहिनिवडियरयणं व दुल्लहं मणुयत्तणं । कहं वा दुल्लहं मणुयत्तं ? सुबउ-- जह सुविणयम्मि रोरस्स रयणलंभो तुडीए संपडिओ। सो चिय णिहाविरमम्मि दुल्लहो तह व मणुयत्तं ॥ ९ ॥ जह पाविउंण तीरइ परमाणुचओ दिसा(सो)दिसि विगओ । गुरुयरपवणाइदो तहेव विगयं खु मणुयत्तं ॥ ९१ ॥ १ हस्तद्वयान्तर्गतः पाठो जेपुस्तके नास्ति । • सरीरबलं जे। ३ पडियट्टिय सू । ४ रधवलप जे । ५ घणघोरणि जे। असमसामग्गीया जे । ७ समाइ, जे । ८ कुलग्गय सू । ९ सण्णुयं णाय जे । १. हस्तद्वयान्तर्गतः पाठो जेपुस्तके नास्ति । Page #336 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५३ ५३ पाससामिपरिमै जह नलहिम्मि बिडित्ते[ग] कह वि कुम्मेण लद्धमुवरितलं । तह लद्धं मणुयत्तं मए णिबुडेण संसारे ॥९२ ॥ इय जुय-समिलादिढतदुल्लहे पावियम्मि मणुयते । जो ण कुणइ. धम्म सो खिवेइ णियभायणे छारं ॥३॥ ता हो चक्काउहकुमार ! जह मणीणं वेरुलियमणी, पक्खीणं व पक्खिराया, कमलं व सेसकुममाणं, गोसीसं व चंदणाणं, इंदो व्व सुरगणाणं, चंदो व्व तारयाणं, सूरो व्व गहगणाणं, सोक्खाणं व सिवमुह, तहा मणुयत्त सेव्यजंतूण पहाणं ति । तस्थ वि मुबउ लद्धे वि हु मणुयत्ते खेत्ताइसमग्गजोयजुत्ते वि । जायइ पुणो वि दुलहो जयम्मि जि]भासिओ धम्मो ॥९॥ लद्धे वि तम्मि कयपुव्वकम्मदोसेण मोहियप्पाणो। ण य उज्जमंति विसयासपासलेसेण पडिबद्धा॥९५॥ अह उज्जमन्ति जइ कह वि मुणियतत्ता वि कलियपरमत्या। मुझंति पुणो संसारवागुरासंगसम्मूढा ।।९६॥ . इय भाविउं तुमं वरकुमार ! मा कुणसु मज्म पडिबंध । संसारे किसलयचंचलम्मि जीयम्मि मणुयाण" ॥ ९७ ॥ एयं च समायण्णिऊण पडिवण्णं राइणो वयणं कुमारेण । तओ परवइणा जहावित्यरं को धक्काउहकुमारस्स रज्जाहिसेओ। सम्माणिओ सयलो वि सामन्ताइओ सेवयजणो । एत्थावसरम्मि य तमुद्देसमुन्भासयन्तो हाणियरेण, पडिबोहंतो भवियलोयं, पैयच्छंतो मिच्छत्तंधयारे णाणावलोय, सयलसुर-गर-तिरियसेविज्जमाणचलणजुवलो, धुव्वमाणो मुणिगणेहि झाइज्जमाणो जोगिसत्थेहि, समागओ खेमंकरो णाम जिणवरो । विरइयं देवेहिं समोसरणं । णिसणो तत्य भय । पत्थुया धम्मदेसणा। ___ तो भयवंतं समवसरणत्थं मुणिऊण णिग्गओ वज्जणाहणरवई । धम्मदेसणावसाणम्मि य करकमलकयंजलिमिलंतभालवटेण पणमिऊण भयवंतं पराहिवेण भणियं जहा भयवं ! णिविण्णो हं संसारवासाओ, ता भयवं ! काऊण पसायं देह महं समणतणं ति । तओ भयवया भणियं-सोहणं देवाणुप्पिया , मा पडिबंध करेहि ति । एस्थावसरम्मि य महाविच्छड्डवद्धारियणिक्खमणमहिमो पडिवण्णो तित्थयरसमीवे समणलिंगं । अहिगयसमत्थसत्यस्यो य णाणाविहतो. कम्मसोसवियसरीरो एकल्लविहारपडिमापडिवण्णो अणुण्णाओ य गुरुणा विहरिउं पयत्सो, कह ? छक्कायरक्खणपरो खंती-मिदु-मद्दवादिधम्ममणो । पंचासवपम्मुक्को पंचेंदियणिग्गहविहण्णू ॥९८॥ जिणवयणभावणाकयतिगुत्तिगुत्तो पयत्तसुहझाणो। परदिहिविसयवासंगमोहविवरम्मुहो धीरो॥ ९९॥ एक्कल्लय-उक्कुडुयाऽऽसणोरु-वीरासणप्पयारेहिं । तह एकपाससयणतणादिअच्चुग्गकयणियमो॥१०॥ इय एवंविहदुकरणाणाविहतवविसेसमुसियप्पा। पणमिजमाणचलणो विहरइ गामाणुगामं तु ॥१०१॥ एवं च विविहतवोविहाणणिरओ समुप्पण्णगयणंगणलद्धी संपत्तो अणेयगुणगणकलियजण-धणसमिदं सुकच्छं णाम विजयं ति। इओ य सो विसहरणारओ तओ णरयाओ उव्वणि कइ वि भवग्गहणाई परिन्भमिऊण जलणगिरिसमीवे अचन्तभीमाडईए सजाओ सबरगोत्तम्मि अणेयजीवन्तयारी कुरंगयणामो वणयरत्ताए । अइकंतो बालभावाओ, पत्तो जोव्वणं, पयत्तो पतिदिणं बहुयरजीवोवमणिं णियवितिं कप्पिउं । एवं च गच्छंति दियहा। सो वि हु बजणाहमुणिवरो अप्पडिबद्धविहारेण पतिदिणं परिभमंतो संपत्तो तं महाडई।कसाय केरिसागिरिणियर(ड)णिज्झरुच्छलियसलिलसंसेयवड्ढियतरूहि । इसइ व्व विसयकुसुमु(म)दृहासहसिरी गहगणोई॥१०२॥ महुमत्तकामिणीवयणविन्भमुभिण्णपल्लवोहेण । सहइ वणलच्छिसंचरणलग्गजावयरसेणं व ॥१०३ ॥ मासललवंगपल्लवसेज्जापक्खित्तपुप्फपयरिल्ला । वणदेवयाविणिम्मियरइहरकरणी समुव्वहइ ॥१०४॥ णिभरमयंधगयगलियगंडमयसलिलवढिएणं व । एलावणेण करिदाणसुरहिणा सहइ सव्वत्तो ॥१०५॥ से कह कुम्मेणं ति सदमुजे । २ सयलज जे । ३ णदेसिओजे। ४ पहापहयरेणं पडिबोहयतो सू। ५.पणासयतो मिच्छंध. यारं गाणावलोएणं, सयल जे । ६ महिमा पवण्णो जे । ७ टिऊण जलणगि स्। ८ हस्तद्वयान्तर्गतः पाठो जेपुस्तके नास्ति ।... For Private & Personal use only Page #337 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५४ उप्पलमहापुरिखचरियं । इय चटुलचलियकइचलणचप्पणोवडियदाडिमफलोहा । अडई बहुवणयरधोरकहकहारावदुप्पेच्छा ॥ १०६ ॥ ऐयारिसाए महाडईए समुज्झियसत्तभयद्वाणो गिरिकुहरकंदंरोयरेसुं णिसीयन्तो संपत्तो जलणगिरिसमीवं । ताव य अत्यंतरं गओ दिणयरो, उत्थरिओ तमणियरो, दुज्जणवयणं व अंधारियं भुवणमंडलं, गहगणकिरणदंतुरा णिसियरि व्व farefरया जामिणी । तओ जस्थत्थमियनिवाँसियत्तणओ संठिओ जलणगिरिणो कडए एकदेसम्मि सयलजंतुसन्ताrafire अहाफासुम्मि भूमिभाए काउस्सग्गेणं ति । एस्थंतरम्मि चिलिचिलन्ति पिङ्गलाओ, घुग्घुयंति घूया, भुन्भूयंति भल्लुयाओ, किलिकिलन्ति डाइणीओ, घुरुघुरंति सद्दूलया, रुरुयंति चित्तया, गुलुगुलंति मयगला, संजन्ति केसरिणो, कहकहन्ति अच्छल ति । एवंविणावि मणसंखोहकारिणा णजायचित्तसम्मोहस्स सुहज्झबसाणेण विस्रुज्झमाण [माण ]सस्स पहाया जामिणी । मुणिणो कम्मवडलं व फुटं पहाजालं, सुहज्झवसाओ व्व समुग्गओ किरणमाली । तओ रवियरपरियावणाविगयजायजंतुम्मि महियले चलिओ तप्पएसओ जुयन्तरणिहित्तदिट्ठी मुणिवरो । एत्थंतरम्मिय सत्तघायणत्थं विणिग्गएण [कुरंगएण] दिट्ठो महामुनी । 'पारद्धीए अवसउणो' त्ति कलिऊण पुव्त्रभम्भस्थसमुप्पण्णकोवाणुबंधेण य कढिणगुणधणुम्मुक्केकवाणप्पहारेण पाडिओ सयराहं । ' णमो जिणाणं' ति भणमाणो पिसण्णो धरणिमंडलं, सुमरिओ अप्पा, कयं जहाविहिं पञ्चक्खाणं । तओ चउव्विहाराहणासंपउत्तो भावियसयलभाहिप्पा कयसमत्त जंतुसंताणखामणाविहाणो सुहज्झवसाणोवगओ परिचरऊण सरीरं समुप्पण्णो मज्झिमगेवेज्जयम्मि ललियंगयाहिहाणो सुरवरो । तत्थ जहासमीहियसंपज्जन्तसयलविसय सोक्खस्स गच्छइ कालो । सो वि हु पावकम्मकारी कुरंगओ एकप्पहारोमुद्धं विर्णितरुहिरपन्भारभारं महामुर्णि विवण्णं पलोएऊण 'अहो अहं महाधणुहरो' त्ति मण्णमाणो दढं परिओसमुवगओ । कयबहुसत्तौवघाएग य कयपाणवित्तिणो वच्चन्ति दियहा । अण्णया कालकमेण मओ समाणो समुप्पण्णो 'रोरम्मि णरए । जहिं च ण उवमा दाहस्स, ण सीयस्स, ण दुग्गंधाणं, ण फरसाणं, ण सयलदुक्खाणं ति । अनि य सुरगिरितणुप्पमाणो कालायसगोलओ जैहुक्खित्तो । सहसा सो वि विलिज्जेज्ज तक्खणं तिब्बतावेणं ॥ १०७ ॥ तत्तियमेत्तो च्चिय लोहपिंडओ सीयलम्मि पक्खित्तो । सो वि विलाइ खणेण य सीयस्स वि" एयमुवमाणं ॥ १०८ ॥ कत्थइ उम्हाहहओ कत्थइ सीएण संकुइयदेहो । तत्तो वि ण लहइ च्चिय खणं पि ताणं सकम्मवसो ॥ १०९ ॥ इय तस्थ समुप्पण्णस्स तस्स गुरुपावपसरवसयस्स । वच्चइ कौलो णरयम्मि दुक्खलक्खेहिं खवियस्स ।। ११० ॥ इओ य सो वज्जणाहसुरवरो पालिऊण णिययाउयं चुओ तयन्तियाओ इहेव जंबुद्दीवे दीवे पुब्वविदेहे खेत्ते पोराणपुरवरम्मि कुलिसबाहू णाम णरवई, तस्स सयलंतेउरपहाणा सुदंसणा णाम अग्गमहिसी, समुप्पण्णो तीए गमम्मि । समइच्छिए पसवसमयम्मि जाओ कमेणं । पइट्ठावियं च से णामं कैणयरहो । वढिओ देहोवचएणं कलाकलावेण य । संपतो जोव्वणं । एत्थावसरम्मि य कुलिसबाहुणरवई मुणिऊण रज्जधुराधारणक्खमं कणयरहं कुमारं समपिऊण तस्स सयलसामन्तसहियं रज्जं पव्वज्जं पवण्णोति । तस्स हु कैंणयरहणरवइणो वि णिययवलमाहप्पुप्पेहडप्पण्णपयावपसरं खवियासंखपडिवक्खपक्खं रज्जसुई झुंजमाणस्स संजायं चउद्दसरयणाइसामग्गियं पवरचकवट्टिलंछणं पुव्विं जहाविहिं कयसुकयकम्माणु विओ छक्खंडभरहाहिवत्तणं ति । तावियाणिऊणेवं अण्णावि जंतुणा कायव्वो कुसलकज्जुज्जमो, अत्रहत्थियन्त्रा पात्रकम्मैमई, निव्भच्छियन्त्रो विसयवामोहो, ण होयव्वं मयणपरव्वसेणं, ण कायव्वमिंदियाणुकूलत्तणं, परिहरियन्त्रा राग-दोसाइणो, आयरियन्त्रं जिणेंवरमयं १ तभी तीए महाडईए समु जे २ दरेसुं सू । ३ वासराणभो सु । ४ बुब्भुयन्ति सू । ५ घुरुहुरंति सू । ६ °ति गयवरा, " जे । ७ नाहिपाओ सु सू । ८ रोखम्मि जे । ९ जहा खितो सू । १० वसू । ११ उच्हाविभो जे । १२ कालो रोरम्मि तू । १३ कणयणाहों जे । १४ कणयणाह जे हावेणं छ' जे । १६ म्ममती, निव्वत्तियव्वो स् । १७ जिणमयं जे । । १५ Page #338 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ___१३ पाससामिचरिक। रं५५ ति । एवं च कुसलकज्जुज्जयस्स जंतुणो तं गत्थि मुहं जंण संपज्जति, ण उणो अण्णह ति । कइ ? ण य कुसलकम्मकन्जुज्जम विणा होति जीवलोयम्मि । सोक्खाइं हिययचिंतियमणोरहुप्पाइयासाई ॥२॥ जह हिययभिंतरगुरुपयत्तकज्जुज्जओ वि गइवियलो । पावइ ण इच्छियदिसं धम्मेण विणा तहा जंतू ॥ ११२ ॥ तेल्लणिमित्तं पीलेइ वालुयं जह व कोइ मइमूढो । तह धम्मेण विणा केइ सोक्खकज्जे किलिस्संति ॥ ११३॥ जह असरम्मि वचिऊण कोइ मूढो विमग्गए साली । तह माणुचिण्णधम्मो मग्गइ सोक्खाई भोत्तूणं ॥ ११४ ॥ जह अमुणियसदस्थो कव्वं काऊण महइ मइमूढो । तह अकयकुसलकम्मो इच्छइ परमेसरमुहाई ॥ ११५॥ इय एवं हियए भाविऊण सव्वेण जीवलोयम्मि । कायव्वो सोक्खं मम्गिरेण धम्मुज्जमो पढमं ॥ ११६ ॥ एवं च मुकयधम्माणुहावेण जंतुणो सुरवराइयाई सयलसोक्खाई। तस्स विहु कणयाहचक्कवट्टिणो णिययरज्जमणुवालयन्तस्स गच्छइ कालो। अण्णया य पासायतलोवरिसंठिएण बंदणणिमित्तमागओ उप्पय-निवयं कुणमाणो देवसंधाओ दिहो। तं च दट्टण मुणिऊण जिणवरमागयं विणिम्गओ वंदणत्यं गय-रह-तुरय-पाइक-सयलंतेउर-समाचसामन्ताणुमम्ममाणो कणयाहचकवट्टी। तिपयाहिणेण वंदिऊण तित्थगरं णिसण्णो णाइदूरसंसियाएं णरपरिसाए। घम्मकहासवणुमयं च परिसं जाणिऊण भयवया पत्थुया धम्मदेसणा, कह ? जीवाण बंध-मोक्खा गया-ऽऽगई चेय जीवलोयम्मि। भुवणस्स य संठाणं दीवादीणं पमाणं च ॥ ११७॥ णारय-तिरिय-णरा-ऽमरगतीहिं जम्मो मुहं च दुक्खं च । देहस्स 'ठिइं तह चेय पुण्ण-पावाण परिणामों ।। १९८॥ आसव-संवर-निज्जर-छज्जीवणिकायसंठिई चेव । इय एवमादिजीवाणुयंपयारी कहइ धम्मं ॥ ११९॥ . अह मुणिऊण भयवओ कहन्तरं पणमिऊण कणयाहो । कम्माण णाम भेए पुच्छइ हरिसुच्छलियदेहो ॥ १२० ॥ तओ तमायण्णिऊण भयवया भणियं-देवाणुप्पिया ! मुबउ, संखेवओ इह ताव दुविहा जीवा । ते विहु परिममन्ता संसारकंतारम्मिणिययहिया-ऽहियाणुट्ठाणतणओ बंधति कम्मं । तं च अट्टप्पयार ति विष्णेयं, तं जहाणाणावरणीयं दसणावरणीयं वेयणीयं मोहणीयं आउयं णाम गोतं अन्तरायं ति। एयाओ मूलठ्ठकम्मपगडीओ, उत्तरपगडीओ पुण मुव्वंतु, तत्थ य पंचप्पयारं णाणावरणीयं, णवप्पयारं दैरिसणावरणीयं, दुविहं वेयणीय, अवापीसविहं मोहणीयं, चउप्पयारमाउयं, बाएत्तालीसभेयं णाम, दुप्पयारं गोतं, पंचविहमंतरायं ति। ऐएहि कम्मेहि मोहियो जंतू ण मुणइ किचं, णाकिचं, ण गम्मं, णागम्मं, ण भक्खं, णाभक्खं, ण पेयं, णापेयं, ण हियं, णाहियं, ण पुण्णं, ण पावं ति।सव्यहा एयस्स वसगओ तं तमायरइ जेण बहुविहदुक्खकल्लोलपउरे णिवडइ भवसायरे चि । ता भो भो णरणाह ! अण्णकहाफस्थावम्मि पुच्छिएण मए समासओ तुम्हाण सिट्टो कम्मभेओ। वित्थरओ" पुण अण्णओ गन्तवो पि। तओ सोऊण भयवया पणीयं धम्म समुप्पण्णभवभयुविग्गमाणसो पणमिऊण जगणाहचलणजुयलं पविटी गयीं। भयवं पि गओ जहाविहारेणं ति । अण्णया य णिययणिहेलणस्थस्स णिसण्णे(ष्णस्स) सीहासणम्मि चकिणो सुमरन्तस्स भयवओ वंदणणिमित्तमागयमुरवरसमूहस्स महारिद्धिविस्थरं समुप्पण्णा पुन्वभवमुमरणा। तो मुमरिऊण सुरलोएवं अच्चुत्तमसंभोयसहए मत्तणो कीलाविलासे चिंतिउं पयत्तो, कह? तं रूवं तं मुहवाचणं च देहस्स सा मुहसमिद्धी। ते संभोया मुरलोयवत्तिणो मय जे आसि ॥१२१ ॥ एत्थं पुण कल-मल-रुहिरपउर-पित्त-ऽत-मुत्तबीमच्छे। विद्धि ति दुरहिगंधेसु मणुयभोगेसु कह पती ॥१२२ ॥ सणभंगुरम्मि भुवणे भावा सगडाइणो जियाण जहा। जंति विणासं अइरक्खिओ वि देहो तहा अपिरो ॥१२३॥ . विणा वि केइ सू जे । २ 'यकम्माणु जे । ३ य-णिवए स् । ४ प वियाणिऊण मुणिवर सू । ५ ए परिसू । विं खे। 'यसंठिई जे। ८ सणाव जे। एतेण कम्मेण मोस।१०'भो उणाणेयप्पयारं कम्मं ति । तओजे। Page #339 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चम्पन्नमहापुरिखचरियं । हय-गय-रहवर - पाइकचकपज्जुतपहरणेहिं पि । काऊण परित्ताणं ण य तीरइ जंतुणो मरणे ॥ १२४ ॥ उत्तुंग-पीण-पेढालसिहिणतडवियडेमंडणिल्लेण । मणयं ण होइ ताणं कयंतजीहावलीढस्स ॥ १२५ ॥ सुहि-पुत्त-मित्त-बंधव सन्निहिय-सोयरस्स ण हु रक्खा । पडियस्स मच्चुणो वयणदन्तजन्तन्तरालम्मि ॥ १२६ ॥ परिमंदमारुउब्वेल्लकयलिदलतरलजी वियव्वम्मि । इह माणुसम्मि जम्मे कह व सयण्णो कुणउ रायं ? ॥ १२७ ॥ धि ! तेर्सि मणुयाणं जे मणुयभवं पि णाम लक्षूण । विसयाहिलासवेलवियमाणसा र्णेति णियजम्मं ॥ १२८ ॥ ते पुण 'जयम्मि घण्णा जे जिणवरभासियं मुणेऊण । अणिगूहियणियसामत्थमुज्जया धम्मचरणम्मि ।। १२९ ।। इय केच्चिरं व किंपागफलसरिच्छम्मि तुच्छभोयसुद्दे । सत्तेण चिट्ठियव्वं असारसंसारवासम्मि १ ॥ १३० ॥ २५६ एवं च भाविऊणं चित्तेणं परिचाऊण णिययावरिल्लपल्लवावलग्गं पिव तणं सयलं पि हु रज्जवित्थरं पवण्णो तित्थपायलम्म समणत्तणं । अवगओ सुत्तत्थो, अम्भसियं तवोकम्मविहाणं । गरुयवयविसेसाणुद्वाणणिट्ठवियकिलिकम्मो अरहन्त-सिद्ध-चेइयाइकयवच्छल्लयाइविसेस-पवयणपहावणापज्जवसाणसौलसकारणसमावज्जियतित्थयरणामकम्मो गामं विहरमाण संपत्ती खीरणगवरोवलक्खियं खीरवणं णाम महाडई । संठिओ तम्मि खीरमहागिरिम्मि राहिहो ओयावणापडिमाए ति । गामा इयो यसो वणयरकुरंगयजीवणारओ तओ रोरवणरयाओ उन्बट्टो समाणो तम्मि खीरपन्चयगुरुगुहोयरसंठियाए सीहीए पोट्टम्म सीहत्तणेणभ्रुववण्णो । जाओ कमेणं । पत्तो य महाबलसामग्गियं वओबुढि । अणेयजीवसंघायमारणणिओ [संतो ] | अण्णा य अदीयदिणम्मि णासाइयकवलग्गहो छुहावसुल्लसियमारणाहिलासो संपत्तो किं पि सत्तमण्णेसमाणो जस्थ सो महामणी । तओ पुव्वभवन्भत्थवेरकारणुप्पण्णुग्गकोवपसरो धुयकंधरुव्वेल्लमाणकेसरसढाकडप्पो पुणरुतं पुंछच्छडच्छोडियधरणिमंडलो गहिरगुंजारवावूरिय गिरिकुहर-काणणंतरालो सहसा समोवइओ सुणिणो तणुम्मि । मुणिणावि 'मह मारपाहिलासी सीहो' त्ति कलिऊण कयं णिरागारं पच्चक्खाणं ताव यत्तधम्मज्झाणो परिचइऊण देहं संपत्तो पाणयकप्पे महप्पहे पवरविमाणे वीससागरोवमट्टिई सुरवरो ति । सो वि सीहो यियाउयक्खयम्मि मओ समाणो पंकप्पहार [ग]रयपुढवीए समुप्पण्णो दससागरोवमाऊ णारओ ति । तओ कालकमेण खीणम्मि तन्भवाउए उन्बट्टो समाणो किंचूणदससागरोवमाऊ संसारे परिभमिऊण तहाविहभवियच्चयानिओएण संजाओ बंभणकुले । तत्थ वि परिणइवसेण जायमेत्तस्स चेय खयं गओ पिइ-माइ- भाठयपमुहो सो विसय सत्थो । तओ अञ्च्चन्तकरुणापवण्णमाणसेण जणवएण जीवाविओ बालभावम्मि कंढो त्ति से णामं कयं । अइकंतो सिसुत्तणाओ, संपत्तो जोव्वणं । तओ सयलजणर्खिसिज्जमाणो कह कह वि संपज्जतभोयणमेचवित्ती वेरग्गमग्गवगओ चिंतिउं पेयत्तो, कह ? - जर कह वि अण्णजम्मम्मि पवरधम्मो मए सयं काउं । ण य तिष्णो संवदियमोहमहापसरदोसेण ॥ १३१ ॥ अच्छउ वा धम्मो गुरुदुहोहसंपायपसरणिद्दलणो । मज्झत्थया विण मए कया समत्तम्मि जियलोए ॥ १३२ ॥ जेण महं पुव्वि सुकयपावसंपत्तिपसरियाइसओ । वड्ढेइ हिययदाहं बाढं दढदुक्खसंदोहो ॥ १३३ ॥ अहियं कुरुव-दोहग्ग-दुसहकयसामियावमाणस्स । दारिदस्स य पुरिसस्स होइ सोक्खं मरन्तस्स ।। १३४ ॥ ता जड़ मरि ण य कह वि तीरए सत्तवियलवाए पुणो । अम्हारिसाण रोराण घडइ कार्ड मणं धम्मे ॥ १३५ ॥ इय एवं चिंताजलणजालपज्ज लियहिययसन्भावो । होइ केंढो धम्मनिमित्तगहियवणवकलावसणो ॥ १३६ ॥ १ "डमंडिलिल्लेण सू । २ भवम्मि णाम सू । ३ सवण सू । ४ समुवद्वंतध सू । ५ सागरठिई सूा ६ °णो संसारमाहिंडिऊण अणंतरभवे तहाविहं कम्मं काऊण संजाओ बम्भणकुले । तत्य य पावपरिणतीवसेण सू । ७ पी- माई सू । ८ कमढो सू । ९ पवत्तो जे । १० कमडो सू । Page #340 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५३ पाससामिचरियं । २५७ एवं च गहियऽण्णाणियऽन्भुवगयदिक्खाविहाणो कंद-मूल-फलादीहिं संकप्पियपाणवित्ती जणियबम्भन्वयाभिग्गहो पंचग्गिपमुहं बहुप्पयारं तवोविसेसं चरिउं पयत्तो। इओ य सो कणयाहचकीसरसुरवरो अंजिऊण सव्वओ ज़हासमीहियसंपज्जतसरवरभोए अहाउयक्खयम्मि चुओ समाणो समुप्पण्णो इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे अस्थि विविहतरुसंडमंडिओ सव्वओ वियसंतकमलायरुच्छलंतमयरंदपिंजरिजंतदिसामंडलो, अहिणवविसट्टकंदोडपरिमलंधलियफुलंधुयाबद्धझंकारो, अच्छिक्को कलिकालविलसिएणं, अणालिद्धो पावपसरेण, अदिवो दुभिक्खदोसेण, अणायरिओ दुकयपरिणईए, परिहरिओ परचकविन्भमेणं कासी णामेण जणवओ। तत्य य सयलजणजणियमुहसंभोयभोया वाणारसी णाम णयरी । जे(जा) य केरिसा?- सकप्परुक्ख व्व सप्पुरिसेहि, ससेलतुंग व्व पायारसिहरेहि, पच्चूससंझ व्व पडिबुद्धलोया, जलहिवेल व्व कलयलरवादूरियजयन्तरा, हरिवंसकह व बालकीलाहिरामा। जा य पियालाविणा वि सचाहिहासिणा, सुरूवेणावि परदारपरम्मुद्देण, सत्तप्पहाणेणावि परलोयभीरुणा, अहिगयगारुडेणावि भुयंगसंसम्गभीरुणा पुरलोएणाहिटिया। तीए दूरन्तरियपुव्वपुरिससच्चरिओ णियभुयबलोजल्लावज्जियधरणिमंडलो अपडिप्फलियसत्तित्तणो अणेयणमन्तसामन्तमउडमणिकिरणविच्छुरियपायपीढो राया णामेण आससेणो त्ति । तस्स सयलजणसीयलेणावि वेरिसंतावकारिणा, थिरेणावि अणवरयभमणसीलेण, विमलेणावि कलुसीकयोरिवणियावयणमंडलेण, ससहरुज्जलेणावि जणियजणाणुराइणा जसेण भूसियं भुवणमंडलं । जम्मि य ललियकरपंकयाभिरामा पैणइणि च परिसे सियण्णपुरिससंभोया णिञ्चलालिंगणसोक्खमुवगया रायलच्छी । तस्स वणमाल व्व सीरपाणिणो, वेल व जलणिहिणो, दाणलेह व्व 'दिक्करिणो, लय ब पवरपायवस्स, जोण्ह व ससहरस्स, कुसुमुग्गइ व्व महसमयस्स. णलिणि व्व सरवरस्स, तारयापंति व्व जहाहोयस्स अलंकारभूया वम्माहिहाणा सयलं तेउरपहाणा अग्गमहिसी । तस्स राइणो इमीए सह विसयमुहमणुहवन्तस्स गच्छंति दियहा । इओ य सो कणयाहचकिसुरवरी तो पाणयमुरलोयाओ णिव्वाणगयस्स रिडणेमिणो वोलीणेसु तेयासीएमु वरिससहस्सेसु अट्टमसयाहिएस विसाहाणखत्तसंठिए मियंके चुओ समाणो समुप्पण्णो वम्माएवीए कुञ्छिसि । दिहा य णाए तीए चेव रयणीए पभायसमयम्मि चोदस महामुमिणा, केरिसा य? अह विमलमहामणिवडियवियडपल्लंकलद्धसुहणिद्दा । वम्माएवी पेच्छइ सहसा चोद्दस महासुमिणे ॥१३७॥ वियडकबोलमंडलोगलियमुणिज्झरदाणसलिलयं, मयगंधंधलुद्धफुलंधुयकयझंकारमुहलयं । दीहरथोरसोंडदंडुब्भडकुम्भघडंतसोहयं, पेच्छइ गोसयम्मि सुहकरिवरयं ससिकिरणराहयं ॥ १३८॥ सरयसरियन्भविभमुन्भूयसमुन्भडमणहरंगयं, जलणुजलियजचतवणिज्जसमुज्जलसंगमग्गयं । दुरुत्तुंगसेलसरिमुण्णयधणकउहग्गभारयं, उम्मुहमुहपलोयणालोइययं वरमुरहिजाययं ।। १३९ ।। विसयविसट्टकणयकमलुज्जलचलकेसरसढोहयं, बालमियंककुडिलदढदाढकरालियवयणभाययं । रंजियसहभरियसधराधरकंदरदिण्णरावयं, वणयरपउरजणियभयभीसणयं मयरायरूवयं ।। १४०॥ .... सरसुप्फुल्लविमलकमलोयरवोसवियाऽऽससंसियं, सुरकरिकरविमुक्कणीरुग्गमपसरकयाहिसेययं। ... करयलकलियकणयकमलोयर केसरपिंजरिल्लियं, रयणिविरामयम्मि सिरिभयवश्यं अइमणहरिल्लियं ।। १४१.॥. १ रुसंडमंडिय(ओ), अच्छिको कलिकालविलसिएण, परिहरिओ परचकविन्भमेण ‘कासी णाम जणवओ । तत्थ सयलजणणियसंभोया अमरेसरपुरवरि व पवरलोयाहिट्ठिया घाणारसी णाम णयरी । तीए य अणेयणमन्तसामन्तमउलमणि जे । २ 'यारिधणिया जे । ३ पणयणि सू ४ दिग्मजस्य । ५ समयम्मि गय-वसह-सीह-सिरि-कुसुमदाम-ससि-दिणयर-भय-कुंभ-सरवर-भवण-जलणिहि-रयणरासि-हुयासणावसाणा बोइस महा'सुमिणा । एत्थावसरम्मि य चलिया जे, (१५२ गाथानन्तरम् )। . . . . www.jainentbrary.org Page #341 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५८ चउप्पन्नमहापुरिसचरियं । पउरपयतमंदमयरंदमणुज्जलदलविसेसयं, परिमलमिलियभसलचलपक्खयदप्पियगम्भकोसयं । सुरतरुकुसुमकेसरुक्केरविणिमाणि(?णी)यसरूवयं, सुसुरहिगंधगम्भिणुभासिययं वरकुसुमदामयं ॥१४२ ॥ पसरियकिरणजालसंवलियसमुज्जलकेसरालयं, सियपप्फुरियचंदिमुद्दामविहावियफयरसोल्लयं । महुमयमुइयणिहुयमयमहुयरसंसियमज्झवासयं, जामिणिणलिणियाए सेयम्बुरुहं पिव चंदबिम्बयं ॥१४३॥ उययधराहरोरुसिरविरइयचूलामणिसमाणयं, दिणमयरायरुद्धपरिसंठियरयणणिहायकूडयं। उन्भडभुवणभवणउन्भासणविमलपदीवसंगयं, विच्छयसच्छगयणसररुहयं सहसा [?वर]पयंगयं ॥ १४४॥ पवणुष्वेल्लकणिरकलकिकिणिमणहररावमुहलयं, सयलदिसामुहेसु रंखोलिरचलचूलांविलोलयं । णिम्मलकिरणविविहमणिसवलियदीहरडंडभूसियं, सधरणहन्तरालमाणं व अयं सहसा समृसियं ॥ १४५॥ थलपंकयवियासकोसोयरलद्धणिवेसदेसयं, सुरतरुकुसुममालउरगलियरयुजलकंठवासयं । सरसविसडकमलदलणिवडणिसम्मणपिहियवयणयं, तिहुयणमंगलेककयमंदिरयं वरपुण्णकुंभयं ॥ १४६ ॥ कस्थइ विमलचंद-कुंदप्पह-सारस-हंसचड्डियं, कत्थइ वरुणकिरिणसरसुग्गयकमलकेरमंडियं । कल्यइ फुडियजुवलउन्वेल्लिरदलणीलायमाणयं, णयण(?णा)लोययम्मि करव)रकमलसरं जलणिहिसमाणयं ॥१४७॥ हिम्मलफुरियफलिहमित्तिस्थलविस्थयसोहवाहयं, पहपरिवेसपसरपवलीकयसयलधराविहाययं । भवणं मणिविचिचखंभुन्भियकणयणिबंधरिद्धियं, सिहरुत्तुंगखलियवारिहरभरोल्लियविविहचिंधयं ॥१४८॥ णाणामणिमयूहवित्यरियपहापडिमिण्णणीरयं, लहरुम्मिल्लविमलमुत्ताहलणियरणिहित्ततीरयं । गुरुकरिमयरपहरणियारियविदुमविडविराहयं, वेलायडविसालतरुमणहरयं वरणीरणाइयं ॥ १४९ ॥ मरगय-पोमराय-कक्केयणघणमणिणिवहदीवयं, दिसिदिसिवित्थरन्तपहपयरिसबद्धमुरिंदचावयं । रयणुच्चयछलेण दूरोहयकुलगिरिसिहरतुंगयं, धरणणिमित्तयम्मि धरणीए धराधरयं व संगयं ॥ १५० ॥ विमलसणिदलुद्धसंवद्धियबहलसिहाकलावयं, विरहिव(य)धूमवडलपडिबद्धपहापरिवेसथावयं । सुइयरमंदमारुयंदोलणकयमंडलणिवेसयं, सोमप्पहविसेसपरिसप्पिरयं मुहुयं हुयासयं ॥ १५१ ॥ इय एवं पुचि सुकयफम्मजम्माणुहावओ वम्मा। पेच्छइ जामिणिविरमम्मि पवरमुहसंसिणो(णे) मुमिणो(णे) ॥१५२॥ ___ एस्थावसरम्मि चलियासणा सुराहिवइपमुहा सयलसुरगणा समागया वाणारसिं । विमुक्का हिरण्णधुट्ठी, पहयाई तूराई, कयो जयजयारवो, पक्खित्तं कुसुमवासं । पणमिऊण जिणजणणि पडिगया सुरसमूहा । ताव य मुहपडिबुद्धार साहियं जहाविहिं दइयस्स । तेणावि मुणियसत्थस्थाहिप्पारण भणिया जहा-सुंदरि ! सयलतेलोकचूडामणीभूओ संसारायडणिवंडन्तजंतुसंताणलग्गणक्खंभो तियसिंद-णरिंदाइबंदिओ पुत्तो ते भविस्सइ । तओ अहिणंदिऊण राइणो क्यणं पवणचलियकुवलयदलविलासाणुयारिणा फुरतेण वामलोयणेण पविद्वा अंतेउरं देवी । एवं च जहासमीहियन्महियसंपज्जन्तसयलमुहसंभोयाए वच्चंति दियहा । परिवड्ढइ गम्भो । गवरि य गंदैणवणालि ध्व सुरतरुणा, महापुरिसवच्छस्यलि व सिरिवच्छमणिणा, विहावरि व सेलंतरियससिणा, दप्पणसिरि ब्व संकंतवयणसोहा अञ्चन्तसंपण्णसोहसमुदया दीसिउं पयत्ता। वाव य चलियासणागयाहिं दिसाकुमारीहिं पतिदिणं दिसिदिसिणिवेसिज्जन्तविमलमणिमंगलपदीवम्मि संपुण्णकलसाहियदुवारदेसम्मि पञ्चग्गालिहियपत्थु(त्तु)जलभित्तिभायम्मि उवरिसियेवियाणपज्जन्तावसत्तमुत्ताकलापम्मि सियभूइरक्खापरिक्खित्तसेज्जासमीवम्मि सिरोभागासण्णणिवेसियफलिहमणिमयणिहाकलसम्मिः मंतोसहिवलयणिवामाणसयणीयम्मि वासभवणम्मि पडियग्गिज्जमाणाए वम्माएवीए कमेण संर्पणो पसवणसमओ । पोसमासस्स किण्हदसमीए विसाहाणक्खचम्मि य पसत्यवेला-मुहुत्तजोए दिणयरं व जलहरावली सयल लोय]लोयणाणंदजणयं तणयं पसूय चि। मनागुज्ज्वलदलविशेषकम् । २ राडइनिवडत जे । ३ चंदणवस । ४ व सययंतरिस जे । ५ यवियाणियप जे । पुल्ने पससमए पोसस्स मासस्स किण्हवउद्दसीए विसू । ७ णाणदं तणयं सू। Page #342 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५९ ५३ पाससामिचरियं । अह चलियासणसुरणाहवुत्तहरिणाणणेण पहयाए । उच्छलइ सव्वओ फुडरणंतघंटाए टंकारो ।। १५३ ।। घंटासदायण्णणजिणजम्मणमुणियवइयरो सहसा । सयलो वि विविहवित्थरविरइयणेवच्छसच्छाओ ॥ १५४ ॥ संपत्तो पहयुद्दामघडियपडपडहपडिरवणिणाओ। सुरणाहमंदिरत्याणमंडवं मुरगणो अत्ति ॥१५५ ॥ इय सोहम्माहिवई सह सेससुरा-मुरेहिं परियरिओ। पत्तो तिहुयणगुरुणो णयरिं पप्फुल्लमुहसोहो ॥१५६ ॥ "ताव य लद्धमुराहिवाऽऽणत्तिहरिसिएण हरिणेगमेसिणा णिययाणुहावसोवियसयलजणपरियणेण अवहरिऊण समप्पिओ मुराहिवइणो जयगुरू। तओ पंचप्पयारपरियप्पियसरूवेण हरिणा कैरयलंजलिगयं णिव्वण्णेऊण भयवन्तं, बंदिउंणहमणिमिलंतचूलामणिपहापयरिसं, पत्थिओ तियसगिरिसमुहं सुरवती । पयट्टो य पयडकडयपडिबद्धकुलसेल-महाणतिमणहरं पेच्छमाणो महोवहिविमलजलदप्पणायमाणं जंबुद्दीव, संपत्तो पसरंतमणिसिलायडपडिबद्धतुंगसिहरोवइयणिजारप्पवाहं मणहरवरकप्पपायचुप्पण्णमणिकुसुमगुरुछुच्छलन्तमंदमयरंदं पासपरिसकन्तसयलगहयक्ककिरणकब्युरियमणिसिलायल विज्जाहरवरसुंदरिसंचरणावलम्गचलणारत्तयरंजिज्जमाणमेहलाकलावं सासयजिणिंदमणिभवणमंडियवियडणियंबप्पएसं सिहरघूलियासु लक्खिज्जमाणरक्खामणिकिरणकंतिराहिल्लं, चंदमणिसलिलणिज्झरणमियमंडलसंडमंडियघणकडयपन्भारं । पज्जलिओसहिजालाकलावपसरियणहाहोयं ॥ १५७ ॥ वियडणियव(यंब)यडालग्गविमलविष्फुरियफलिहमणिमयधवलप्पहावलयवढिउम्भडसोहं । उव्वहमाणं भवणम्मि पसरियं णिययकित्तिं व ॥ १५८ ।। वोसट्टवियडसुरतरुमणिगोच्छुच्छलियकेसरच्छायं । गरलम्बन्तसव्वंगयररयणरिदि व(?) ॥१५९ ॥ धारन्तं उधुदृन्तनुंगिमारुद्धरविरहतुरंग । अप्पाणं पिच गयणम्मि पसरियं सिहरसंदोहं ॥१६० ।। संगोक्यंत(त)घणगहिरगजिरं वियडकडयपडिलम्गं । जलहरपडलं पिव सइपरिट्टियं पवरकरिजूहं ॥१६१ ।। णिम्मलसरिकिरणकलावविन्भम(म) मरिय(य)कंदरद्धय(दंतं)। पारयरसं वहन्तं पसरुच्छलिय(य) णियजसं व ॥१६२।। [अह] तिहुयणमंदिरधरणक्खं(ख)भभूयं सुराहिवो सहसा। पत्तो सुरगिरिसिहरं सुरकयजयहलहलारावं ॥१६३॥ तो ओवइओ सरहसं मुराहिवो सह सुरवरेहिं सुरगिरिसिहरम्मि । तत्य वि परिवियडम्मि फलिहमणिसिलायडम्मि पलोइयं पवणधुयचटुलधयवडालिद्धसंचरन्तसुररामायणमणहरं उवरिहुत्तोवडन्तणहणिण्णयाजलप्पवहसरिसतोरणक्खंभं अबहोवासट्ठियगुरुमइंदुबूढफलिहगिरिविन्भमं सीहासणं । तत्थ य मुरवरकरुलंबियमंदारपल्लयुल्लसंतकुसुमपयरो मुरपहयपज्जिराउज्जसहसंबलियजयजयारवो सह जयगुरुणा णिसण्णो सुराहिवो। संठाविओ भयवं उच्छंगे। आसीणम्मि य सुराहिवे वा मणिमयकलमुम्भू(भ)डवयणन्तरणिन्तपिहुपवाहिल्लं । तियसेहिं से णिहित्तं कयजयरवपवरखीरजलं ।। १६४ ।। सयलमुरा-ऽसुरकरखित्तविसमवेउधुरा विरायन्ति । कयजयरव ब कयरवविणितजलणिन्भरा कलसा ।। १६५॥ भुवणगुरुणो णहट्ठियसियवसहविसाणपसरिओ सहइ । पयपन्भारो गुरुफलिहसेलसियणिज्झरोहो ब्व ॥ १६६ ॥ अचन्तललियलायण्णमणहरे जिणतणुम्मि ससिधवलो। ओवयइ तियसकामिणिलोयणणिवहो व जलणिवहो ॥१६॥ धरणिणिहित्तं परिसंठिउद्धघणकुसुमकेसरालिद्धं । जायं जिणतणुसंकमपसरियपुलयं व खीरजलं ॥ १६८ ॥ जायं सवियडकलपु(सु)च्छलन्तकणयप्पहोहपडिभिण्णं । संझारुणजोहावडलविक्भमं पवरखीरजलं ॥ १६९ ॥ दीसंति जिणतणुच्छलियकन्तिपडिभिण्णकडयपडिबद्धा । मज्जणजलप्पवाहावलग्गसेयालकलियब ।। १७०॥ मारुयपहल्ल(ल्लि)रुवेल्लमज्जणोययपवेविरुष्पडिमो । चलइ व तियसपबयफुरंतमणिसिहरपन्भारो ॥ १७१ ॥ 1°गवेसिणा जे । २ करयंजलि सू । ३ पेच्छमाणो जंबुद्दीवं सहरिसं बच्चतो णयलम्मि-अह तिहुयणमंदिरघरणखंभभूयं सुराहियो सहसा । पत्तो सुरगिरिसिहरं सुरकयजय-हलहलारावं ॥ (गाथा-१६३)। तो भोवइओ सरहसं सुराहिवो सह सुरवरेहि सुरगिरिसिहरम्मि तत्थ वियडम्मि, पलोइयं सीहासणं । तओ तम्मि सुरवरमुच्चतसुरहिकुसुमपयरं सुरपदि(ह)यवजिराउज्जससंवलियजयजयारवं सह जयगुरुना उबविट्ठो मुराहियो । संठाविभो भयव उच्छगे । आसीणम्मि य सुराहिवे खीरोदहिपवरणीरपरिपुण्णकणयमयामलकलसेहिं मया विभूईए कमो भयवओ सुररा-ऽसुरेहिमहिसेओ ति । अह सवायरपसरंततिथस जे, (गाथा १४१)।.. ___Jain EduRRENEUR ulate sohal Use Only Page #343 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६० चउप्पलमहापुरिसचरियं। उमुकतडुज्झरपडणपवणपडिपेल्लिया विहुन्वन्ति । कणयरसारुणभुयइंदकन्तिकविला जलप्पवहा ।। १७२ ।। इय सव्वायरपसरन्ततियसणिवत्तियाहिसेयस्स । कीरइ णेवच्छ-विलेवणाइओ पूयसकारो ॥ १७३ ।। तओ हक्खुत्तसुरसुंदरीयणसुरहिकालायरुप्पंककप्पूरधूवपसरेणं सन्भूयगुणगणुकित्तणुच्छलियबहलपुलयपडहत्येण चलणयलमयूहावलिमिलंतमउडरयणकिरणेण महियलरंखोलमाणतरलहारेण पणमिओ हिययन्भिन्तरवियंभमाणभावपसरं मुराहिवेण । णेऊण विमुक्को जणणिसयणीयुच्छंगम्मि । जहागयं पडिगया मुरसमूहा । ताव य पहाया रयणी । पडिबुद्धा कमलिणि व्च भयवती बम्माएवी । पेच्छइ य सरसचंदणालिद्धमुद्धदेहच्छवि वोसट्टमुरपायवुबिडिममणिकुसुमजणिउत्तंसं अणण्णसरिसं बालयं । एस्थावसरम्मि य समुप्पण्णतणयं देवि जाणिऊण सरहससंचरणपक्खलियमणिणेउररणंतझंकारमुहलो इओ तओ कंचुईसंचरणसम्मणिद्दलियणिवडन्तखंजय-किरातवामणो मैंयपहोलिरविलासिणीयणपुण्णवत्तहरणविलुप्पन्तपुरजणवओ मंदरसंखुद्धजलहिगंभीरणंदिसद्दसंवलियकलकाहलो पसरिओं मंगलज्झुणी रायभवणम्मि, पयत्तं वद्धावणयं, केरिसं च? वीसत्थसुरकराहयदुंदुहिगंभीरविब्भमुन्भेयं । परिमंदमद्दलुद्दामकाहलासंखसंवलियं ॥ १७४ ।। मंगलगेयुभासियघडन्तपडपडहलयगमाणुगयं । मयविहलविलासिणिणञ्चमाणजणिउन्भडविलासं ॥ १७५ ॥ पुरसुंदरिगुरुसम्मददलियमणिमेहलाकलाविल्लं । छणणेवच्छपसाहियमल्हन्तकिराय-वामणयं ॥ १७६ ॥ इय संगलन्तसामन्त-मन्ति-पुरवुड्ढवड्ढियामोयं । परिवढियं समन्ता बद्धावणयं णरिंदघरे ॥ १७७ ॥ तओ सम्माणियासेससामन्तलोयं विदिण्णवद्धावयजणपारिओसियं पूइयदेवयाइयं णिवत्तं वद्धावणयं । गच्छन्ति दियहा । पासो त्ति गुरुयणेण पइटावियं णामं । णवरि य सरयसमओ व्व पडिबुद्धपंकयमुहो, कमलसरो व्व कुवलयदलजलो, जह जह वड्ढिउं पयत्तो तह तह ससहरस्सेत्र बढइ कलापयरिसो, तरणिमंडलस्सेव पणट्ठो तिमिरणियरो। अवि य दिपंतपंचमीचंदचारुणा ललियभालमग्गेणं । रेहइ कसणुव्वेल्लंतघडियकुडिलालयग्गेण ॥ १७८ ॥ वोसटेंसरसतामरसधवलचलकसणपम्हलिल्लेहिं । णयणेहि णियंतो धवलइ व भवणंगणाऽऽहोयं ॥ १७९ ॥ क्यणेण सरसवियसंतकमलपम्हउँडपरिमलिल्लेग । वेलवइ भमिरपरिलतमालियं मुद्धभमराण ॥ १८० ॥ चलणेहि संख-कुलियं(सं)-5कुसाइकयलक्खणेहि भणइ व्य । अभणंतो वि भविस्सं तिलोयणाहत्तणपहुत्तं ॥१८१।। इय संयलसुरिंदुद्दाममउलिमालच्चणं पि चलणाण । साहइ दुंदुहिघणसद्दविन्भमिल्लेहि भणिएहिं ॥ १८२ ॥ एवं च सिरिवच्छलंछणग्यवियवियडवच्छत्थलस्स अच्चन्तसोमदसणत्तणजणियजणमणाणंदस्स भयवओ पासयंदस्स वियम्भिओ जोवणारंभो । केरिसो य? तेल्लोकजणमणोहरणपक्कलुम्मिल्लणिययमाहप्पो । लहइ परभायसोहं सरियावइणोऽमयरसो च ॥ १८३ ।। सयलजणणयणजुवलय-मणकुमुयाणंदणे सुहालोओ । सयलकलासंपण्णो पोससमयस्स व मियंको ।। १८४ ॥ कुसुमप्पसवो वरकप्पपायवस्सेव पयरिसुप्पण्णो । सँरोदओ व वियसंतसरसतामरससंडस्स ॥ १८५ ॥ बहुलास-विलासट्ठाणमणहरो बरहिणो कलावो व्य । सुरधणुरामओ.व्य समुण्णमन्तणवजलयवडलस्स ॥ १८६ ।। इय अइसंघियमुररूव भुयबलुत्तप्पदप्पमाहप्पो । पवियंभिओ समुन्भडमणोहरो जोवणारंभो ॥ १८७ ।। तओ पसरिए सयलजणलोयणमुहए जोव्वणारंभे, वियम्भिए णीलकुवलयपम्हलुज्जललोयणप्पसरे, विस? सरसविय संतसिरीसकुसुमकेसरप्पहे तणुप्पहापयरिसे जओ जओ लीलासंचरणकमलालंकियं कुणइ महियलं तओ तओ कुवलयावरि १ तणूसलिय स । २ लिद्धदेह सू । ३ 'कुञ्ज सू । ४ महपहोलिर सू । ५ 'दृसेयताम' जे । ६ व्ध गगणंग सू । " उलप सू। ८ "मउडमा जे । ९ हस्तद्वयान्तर्गतः पाठो जेपुस्तके नास्ति । १. सूरोवओ सू । Page #344 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५३ पाससामिचरिय। व्व वित्थरइ सयलजणलोयणमाला। ___ एवं च कयाइ गयसिक्खाविणोएणं, कयाइ जच्चतुरंगवाहणीए, कयाइ जोयाण खेड्डेणं, कयाइ विविहकलाकोसल्लेणं, कयाइ सत्थत्थवियारेण कीलमाणस्स तस्स मुहसंपयाए व्व जोव्वणाहोओ, जोवणेणं व वम्महवियासो, बम्महेणं व सोहग्गाइसओ, सोहग्गाइसएण [व] रूवसमुदओ, रूवसमुदएणं व कलाकलावो, कलाकलावेणं पिव विवेओ, विएणं पिव कुसलहाणं भूसिज्जइ । सह भयवया भूसिओ सयलो वि जियलोओ ति । एत्थावसरम्मि य सयलगुणगणालंकियसविसेसीकयरूवसोहग्गाइसयस्स भयवओ पसेणइणा अञ्चन्तसोहग्गसालिणी पहावती णाम णिययधूया पणामिया । जा च केरिसा ? सहइ सवणेक्कवासावसंतसियदंतपत्त्याहरणा । उइएंदुमंडलालोयमणहरा पुष्णिमणिसि व्व ॥ १८८ ॥ जच्चतवणिज्जपचत्ततणुकयज्जोयपिंजरावयवा । संचारिम व कलहोयघडियधीउल्लिया सहइ ॥ १८९॥ कसिणुज्जल-ललियच्छिच्छडप्पहावरियभूसणकलावा । सोहइ संझायवभिण्णफुडियणीलुप्पलालि व्व ॥ १९० ॥ पाउससिरि व्व पढमुण्णमन्तपीवरपओहराहरणा । वरपोंडरीयवोसट्टलोयणा सरयलच्छि व्व ॥ १९१ ॥ माहवसिरि व्च णिम्मियकोमलकंकेल्लिपल्लवुत्तंसा । उव्वेल्लसरसकरकमलमणहरा महुमहसिरि व्व ॥ १९२ ॥ णिवत्तरोद्दतिलयावलम्बिणी(2) सिसिरवासरालि व्य । उन्भडसवणारणो[व]लक्खिया रिक्खपंति व्व ॥१९३॥ इय रुइररूवसोहग्गसंगयं उग्गया विसालच्छी। णिद्द व(व्य) तरुणजणम(ग)णमउलावियलोयणप्पसरा ॥१९४॥ अण्णं चजीए पवालारुणविष्फुरंतकमलोवमम्मि चलणजुए । लायण्णणिज्जियाए व सिरीए कुसुमच्चणं जणियं ॥ १९५ ॥ वित्थिण्णत्तणनिज्जियसुरसरियापुलिणवियडरमणाहिं । उल्लसइ वयवमुव्वेल्लजयपडाय ब्व रोमलया ॥ १९६॥ गरुयणियंबयडुब्भिण्णसिहिणवठ्ठन्तरालमल्लीणो । मज्झो पीडितो व्व जीए खामत्तर्ण पत्तो ॥१९७ ॥ लायण्णोययसंपुण्णमणहरं सहइ थोरथणवढं । वम्मइणरिंदरायाहिसेयकयकलसजुयलं व ॥ १९८ ॥ सहइ दुहावियवम्महधणुसोहाविन्भमं भुयावलयं । अण्णोण्णणिव्वडन्तोवमाणगुणलद्धमाहप्पं ॥ १९९ ।। बिंबायंबो बहलुल्लसंतसियदसणकिरणसंवलिओ । जीए फुडकुसुमगम्भिणपल्लवसोहाहरो अहरो ।। २०० ॥ इय तीए समं पत्थिवसुयस्स सुररिद्धिविन्भमविलासं । वत्तं पाणिग्गहणं मुहतिहि-णक्खत्त-जीयम्मिः ॥ २०१॥ एवं च णिव्वत्ते पाणिग्गहणे सयलमुहसमिद्धिसंभोयणिब्भरं विसयमुहमुव जमाणस्स गच्छति दियहा। अण्णया य पासायस्स उवरिप्रूमिभाए णिसण्णेण पासयंदेण वायायणंतरालेण पलोइयं णयरीए सम्मुई जाव विट्रो सयलो वि पुरीजणवओ पवरकुसुम-बलिपडलयविहत्थो बार्हि णिग्गच्छन्तो। तओ पुच्छियं भयवया जहा-कि पुण कारणं एस जणवओ पत्थिओ?, कि कोइ छणो ?, किं वा ओवाइयं ? ति । तओ सिर्ट एक्कण पासवत्तिणा पुरिसेण एवंविहं एत्थ किं पि कारणं, किंतु कोइ महातवस्सी कढो णाम किल एत्थ महापुरीए बार्हि समागओ, तस्स बंदणस्थं पत्थिओ इमो जणवओ त्ति । तो तमायण्णिऊण जणियकोऊहलविसेसो भय पि पत्थिओ । गओ जत्थ सो कंटो। दिट्टो य पंचग्गितवं तप्पमाणो । तओ तिण्णाणसंपण्णतणओ मुणियं भयवया एक्कम्मि अग्गिकुंडे पक्खित्ताए महल्लरुक्खखोडीए उज्झमाणं णायकुलं । तं च तहाविहं कलिऊण अच्चन्तकारुण्णोचवण्णहियएण भणियं भयवया-अहो! कट्ठमण्णाणं ति, जेण सुव्वउ जह लहइ पायवो णेय अप्पयं मूलपसरवइरित्तो । तह धम्मो धम्मत्थीण होइ ण विणा दयाए फुडं ॥२०२॥ १ वाहयालीए जे । २ चोयाण सू । ३ हस्तद्वयान्तर्गतः पाठो जेपुस्तके नास्ति । ४ उव्वसइ सू । ५ दुहाविजे। ६ गतटुमा स। . भूमियाणि जे । ८ 'टो संपत्तीपुरओ जण जे । ९-१० कमढो सू । ११ कारुण्णावण जे। Page #345 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउप्पन्नमहापुरिसचरियं । जह बीएण विणा होइ णेय सयला वि सासनिप्फत्ती। तह धम्मत्थीण ण होइ गण धम्मो दयाए विणा ।।२०३।। जह रहवर-तुरय-गैइंदसंकुलं साहणं विणा पहुणो। सोहं ण देइ, धम्मो दयाए रहिओ तह जतीण ॥२०४॥ जह णयरं ण लहइ वियडगोउरदारविरहियं सोहं । धम्मुज्जुयाण ण लहइ तहेव धम्मो दयाए विणा ॥२०५॥ जह सलिलं वारिहरुण्णतीए ण विणा कहिं पि संपडइ । तह धम्मो पाणिदयाए विरहिओ णेय संपडइ ॥ २०६॥ इय सव्वभूयदयदाणकारणो जो जयम्मि सो धम्मो । जत्थ ण दया मुणिजइ जयम्मि सो केरिसो धम्मो? ॥२०७॥ तओ एयमायण्णिऊण कढेण जंपियं जहा-पत्थिवमुयाणं रह-तुरय-कुंजराईण परिस्समो धम्मो, धम्मं पुण जइणो वियाणन्ति । ताव य भणिओ भयवया एको णिययपुरिसो जहा-रेरे ! एयं खोडिं दरदड्ढं कुहाडेण फोडेसु त्ति । तओ. 'जमाणवेसि त्ति भणमाणेण दोफालीकया खोडी। विणिग्गयं महल्लं णागकुलं । तत्थ पुलइओ ईसीसि डज्ममाणो एको महाणागो। तओ भयवया णिययपुरिसवयणेण दवाविओ से पंचणमोकारो पचक्खाणं च, पडिच्छियं तेण । ताव य कयणमोकार-पञ्चक्खाणो कालगओ समाणो समुप्पणो णागलोयम्मि सयलणागलोयाहिवत्तणेणं ति। एत्थावसरम्मि य समुच्छलिओ 'साहु साहु' ति कलयलो-अहो! परिणाणं पस्थिवमुयस्स, अहो ! विवेयया, अहो ! सत्यत्थावगमो, अहो! पयतिपसण्णत्तणं, अहो! धम्मावबोहो त्ति । तमायण्णिऊण विलिओ परिवायओ काऊण कट्ठयरमण्णाणतवं कालगओ समाणो समुप्पण्णो मेहकुमारमज्झम्मि भवणवासित्तणेणं मेहमाली णाम । भयवं पि पविट्ठो गयरिं। एवं च मुहमच्छंतस्स जंति दियहा। अण्णया य समागओ मलयमारुयपहल्लिरुव्वेल्लमाणतरुलयावलओ णिवडंतपाडलाकुसुमपडलपच्छाइयमहिमंडलो उब्भिण्णसहयारमंजरीधूलिधूसरिजमाणणहयलाहोओ महुमयमुइयमहुयरझंकारमुहलियदियंतरालो कोइलकुलकलरवायण्णगुत्तत्थपंथियजणो कुरवयकुसुमुक्केरवाउलिज्जमाणमुद्धफुल्लंधुओ वसन्तमासो र्ति, अवि य सहयारमंजरीपुंजपुलयणुप्पण्णकामउल्लाले । कोमलमलयाणिलचलतरंगियाणंगकेउम्मि ॥ २०८ ।। महुमत्ततरुणिगंडूससेयकंटइयबउलविडवम्मि । कंकेल्लिचलणतालणरणन्तमणिणेउररवम्मि ।। २०९ ॥ वियसंतकुरवउक्करपरिमलल्लीणभमिरभमरम्मि । अविरलकुसुमुग्गयधूलिधूसरिजंतदिसिवलए ।। २१०॥ महुमत्तमहुयरीमहुरजणियझंकारबहिरियदियंते । उव्वेल्लपल्लवंतल्लिलीणकयकोइलालावे ॥२११॥ गयवइयायणजीवोवहारहरिसियमणोहविल्लम्मि । कुसुमधणुसहसारिच्छभमररुयतस्थपहियम्मि ॥ २१२ ॥ विरहभयदलियपंथियहिययारुणफुडियकेंसुवच्छवए । दियहम्मि वि रायंताहिसारियाजणियपत्थाणे ॥ २१३ ॥ उव्वेल्लमाणरइसायरोरुरेल्लियतणुत्थलीविडवे । अणवरयकुसुमसरपहरपडणकयविहुरविरहियणे ॥२१४ ॥ इय णवणलिणुव्वेल्लियवियासपसरियपरायपिंजरिए । संपत्ते महुसमयम्मि तरुणजणवम्महुल्लाले ॥ २१५ ।। एयारिसम्मि य वसन्तमासम्मि उज्जाणवालो भयवओ समीवं वसंतसमयसंसूययं सहयारमंजरी घेत्तूण [? समुवडिओ] । समप्पिया य दरदलियकुसुममयरंदर्पिजरिजमाणतणुविहारण भयवओ मायंदमंजरी । भयवया भणियंभो ! किमेयं ? । तेण भणियं-भयवं! महुपसरेणं व मओ मयपसरेणं व जोव्वणविलासो । सोहं पावइ जह तह तुमए बहु ! माहवारंभो ॥ २१६ ॥ जेण सुव्बउ-- जायं पवणंदोलणदरविहुयंकोल्लधूलिधवलिल्लं । महुमत्तकामिणीकयकडक्खसोहं असोयदलं ॥ २१७ ॥ पइदिणपरियड्ढियरायनिन्भरं कुरवयं वियासिल्लं । ऊससइ वड्ढियरस उज्जाणसिरीए हिययं व ॥ २१८ ॥ दीसइ णंदणलच्छीए मंदमयरंदलग्गभमरिल्लं । पडिबद्धमरगयदलं कण्णाहरणं व कणियारं ॥ २१९॥ १ गयद सू। २ कोहाडेण जे । ३ "स्स, अहो । सत्यं जे। ४ ति । तओ तम्मि मयरद्धयपरमबंधवे समागए वसंतमासम्मि Page #346 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५३ पाखखामिचरियं । २३३ ras सुरमुढियस्स कुसुममयरंदकयगुणायामं । महुसमओ धणुयट्ठि व्व कुसुमचावस्स चूयलयं ॥ २२० ॥ बित्थरइदइयकयकोबकामिणीजणियहिययवेयल्लो | माणतरुभंगपवणो व्व सव्वओ परहुयासही ।। २२१ ॥ तिलउज्जलम्मि वियसियबउलास वसुरहिपरिमलिल्लम्मि । णंदणसिरीए सुव्बर मुहम्म गीयं व भमररुयं ॥ २२२ ॥ उभिण्णमंदमायंद मंजरी जालपरिमलुप्पीलो । दाणामोउ व्व वसन्तहत्थिणो पसरइ दिसामु || २२३ ॥ इयपेच्छ महुसमयं पेहु ! तुह जणियाणुरायवलिएहिं । पल्लवियं पिव कामिणिविलासलोलच्छित्तेहिं ॥ २२४ ॥ तओ वसन्तवण्णणुप्पण्णपउरकोउहलो वसंतकीलाणिमित्तविरइयमणहरणेवच्छो पुरजणपयट्टावियमहाछणो दिसि - दिसिपसरन्तचच्च रिबहुपडिरुद्ध महाजणो णच्चंतवरविलासिणिसमासण्ण मिलियभुयंगलोओ खोरदुव्वयणहसाविज्जंतसिडिंगसत्यो बंदिसमुग्घुट्ठजयजयासहमुहलो पट्ठो विविहकयकीलाविलासणिन्भरं णिययनंदणाभिमुहं । दिहं च मलयमारुयंदोलिज्ज माणतरुगणं तरुगणुग्भिण्णदरद लियकुसुमुब्भडग्गिष्णमयरंदं मयरंदपरिमलल्लीणभमिरभमरउलबद्धझंकारं झंकारायष्णणणणुकण्णइयमाणिणिजणं उज्जाणं । दिहं च सयलजणचिंतियफ(प्फ)लसंपायणजणियणंदणविलासं । उउसिरिसण्णेज्झपरूढकुसुमवरपायकुप्पीलं ।। २२५ ॥ मारुयविहुउब्भडखुडियकुसुम केसरपरायपिंजरियं । तरणिपरिमासविरहियविसट्टकमलायरुच्छंगं ॥ २२६ ॥ अविरयपसरियपञ्चग्गद्लउलुब्वेल्लचंपयपसूयं । अमुणियपरोप्परालोयमिहुणपरिभुत्तलयजालं ।। २२७ ॥ सुरविलयापुलइज्जन्तकप्पतरू [] लयाजालं । कणिरकलहंसलंघियथलणलिणिमुणालियावलयं ॥ २२८ ॥ महुयरपल्लत्थियपल्लवाइमुत्तयवियासियपस्सूयं । महुमुइयणिप्फुरद्वियकुसुमोयरसि (स) त्तस (भ) सलउलं ॥ २२९ ॥ णिबिडतरुविडव पहयरपडिप्फलिज्जन्ततरणिकिरणोहं | वित्थरियविविहतरुक्कुसुमणियर केसरपराइलं ॥ २३० ॥ केयइपसूयपसरन्तरेणुधवलियणहंगणाहोयं । ससिजोन्हापव्वालियदिसामुहं सियपओसं व ॥ २३९ ॥ इय लोयणपाणिप्पसर सिद्धकुसुमोहपल्लवाहितो । उउलच्छीहिं व विलासिणीहिं तरुणी परिग्गहिया ॥ २३२ ॥ त तम्म उज्जाणवणम्मि विलासिणीहिं समायरिज्जति पिययम व्व रयभमरउलमाणलोयणपायबुप्पीलो, उवविज्जि पिययमुच्छंगे व किलितत्तणओ रयणिन्भरम्मि पायवमूले, णवरिय कयग्घो व मारुयपहल्लिरुव्वेल्ल पक्खिरिययसरेण पत्रो भवं पवड्ढमाणकीलाणिभरो णंदणवणं । दिवं च तस्थ मणिमयभित्तिच्छण्णसं पडतपायवपडिबिम्बं उत्तुंगधवलसिहरग्गमग्गलंघियणहंगणं पवणधुयधवलधयवडुव्युष्ण-पहयपयट्टरविरहतुरंगमं विविहमणिकिरणपडिबद्धसुरचावचंचेल्लियं वणसिरिसहत्थविक्खेवविरइयकुसुमोवयारसोहं सेवाणिमित्तसमागयसुरकामिणीसुरलोयसरिसंकीरंतसयणीयं एककोणंतरालपरिसंठियकिण्णरमिहुणसुव्वन्तगीयं जक्खाविविलासिणीविदिष्णपज्जलिय मंगलपदीवं वणभवणं ति । तम्मिय सयलजलोयणमुहर अवयरिऊण निययजाणाओ णिसण्णो कणयासणम्मि । अइरमणीयत्तणओ य सव्वओ पलोइउं पयत्तो । पलोयमाणस्स य णिसण्णा चित्तभित्तीए दिट्ठी । ' किमेत्थ लिहियं ?' ति परियप्पमाणेण णाणावलोएण मुणिऊण भयवओ अरिट्ठणेमिणो चरियं चिंतिउं पयतो- “एयस्स णवरमविण्णायमयणसरपराहवस्स अखंडिओ जसो, जेण ण मुणिओ कुत्रियकामिणीकडैक्खविक्खेवबहलो दुक्खसंदोहो । अण्णे उण बहुविहवसणकिलिस्समाणा णिवडंतिभय(व)सयावत्तबहुलम्म संसारसायरे । [ता] पउरदुहपरंपरापडिबद्धगोतिगेहाओ व्व इमाओ जुज्जइ गेहवासाओ णिग्गंतुं" ति । १ जे । २ बहु ! जे । ३ 'लाविष्णास सू । ४ उज्जाणं । (२३२ गाथानन्तरम् ) तम तम्मि उज्जाणम्मि पविट्ठो भयवं Jain Edu५ 'सकीलंत सू । ६ मुणियं भय सू । ७ क्खलक्खबहुलो जे Page #347 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६४ चउप्पन्नमहापुरिसचरियं । तो मुणियरसे वि रसंतरा णियन्ती गयालिमाल व्च ।ण रमइ दिट्ठी दइयाण वयणकमलम्मि तस्स फुडं ॥ २३३॥ तं चिय विलासमंडलमेणोहरिल्लं पि तुंगथणवढं । पोग्गलपरिणामविहावणाए अण्णं व परियत्तं ॥२३४॥ तं चिय णियम्बबिम्ब पवियडकडिघडियकंचिराहिल्लं । बहुविहबच्चोमलभायणं व चित्तं ण रामेइ ॥ २३५ ॥ इय जाओ पवणुदधुयकिसलयपरितरलैसयलविसयसुहो । सिद्धिसमागममुहलंभणिभरोवायतल्लिच्छो ॥२३६॥ णवरि य मोक्खमुहसंगमूसुयं जाणिऊण भयवंतं समागया लोयंतियसुरगणा, चलणमिलंतुत्तिमंगा य पणमिऊण भणिउं पयत्ता-भयवं ! ण अम्हाणमेसोवएसो, किंतु 'लोइयहिति' त्ति कलिऊण भण्णसि त्ति, ता पसरउ केवलपरकमो- . जल्लावज्जियमपडिहयं तुम्हाण सासणं, णिव्वाउ दुहजलणजालावडालिणिवडियं सयलं पि तिहुयणं, पवत्तिज्जउ विसुद्धदसणमग्गावयारदिण्णसुहपरिभोयजहिच्छियत्थं तित्थं, गिण्हउ पवरपायवैस्स व तुम्ह वयणफलं सयलजियलोओ, सुमरिजउ य जम्मतरतवावज्जियसुरलोयपाणयवियम्भियं । एवं च विणओणयसुरगणवयणविण्णासपडियोहिज्जमाणो विणियत्तसंसारवासंगवामोहो 'णिदारससमओ व्च पडिभग्गमहुमासच्छणो परियत्तो णयरीसमुहं । पविट्ठो सुइझाणं व णिययमंदिरं ति । तओ अत्यंतरसुवगओ दिणयरो। हा गवरि य परिभावियजीवलोय[स]विसेसलद्धपरमत्थो । सूरो वि मुक्कभवणो मणो व अत्यंतरं पत्तो ॥२३७॥ परिहाइ समं पंकयसिरीए पप्फुरियवासरच्छाया । विहडइ रहंगसंगो मणोरहो दुग्गयाणं व ॥ २३८॥ जह जह जायइ वियलन्तकिरणपसरो सुलोयणो लोओ। तह तह देइ रहंगाण जलगयाणं पि संतावं ॥२३९ ।। परिसण्हकिरिणपम्हउडपरिययं सुहविलोयणालोयं । दीसइ समुद्दसलिलम्मि कणयकमलं व रविबिम्बं ॥ २४० ॥ पविसइ सायरसलिलम्मि तुंगगिरिसिहरि(र)लग्गिरग्गिकरो । मज्जणकयाहिलासो व्व सणिय सणियं दिवसणाहो ॥२४१।। दिणदइयचुंवणायम्बिउव्व(द्धोडं पच्छिमाए अहरं व । पेच्छंति उरत्यायंतमंडलं भाणुणो बिम्बं ॥२४२ ॥ थोवणिबुड्डन्तायम्बविम्बवियलन्तवासरच्छाओ। राहुवयणे व्य अस्थायलम्मि सूरो समुत्थाओ ॥२४३॥ इय अत्यंतरपत्तम्मि सयलजियलोयबंधवे सरे । सोएण व सयलदिसाण होन्ति कसणाई वयणाई ॥२४४॥ तओ अत्यंतरमुवगए दिणयरम्मिक णहणिण्णयाकणयकमलपरायरायि व्य समुच्छलियाँ संझापहा, दिणुब्भडपहरच्छेउच्छलियसोणियप्पवाहो ब्व संजाओ पच्छिमदिसाहोओ। एवं च कणयगिरिधाउणियरोव्व णहजलणिहिविद्दुमप्पहाणिवहो व्व वारिहरतरुपल्लवुप्पीलो व्च पसरिओ संझाराओ, रयणिवहुदिण्णभुवणभवणपदीवकज्जलसिह व्व पसरिया तिमिरपत्थारी, रविविरहमुच्छि[या]ए व्व भुवणलच्छीए समुच्छलिया कसिणिमा, णिदलियसंझाविद्दुमवणं गयउलं व समोत्थरियं तिमिरवडलं, मित्तविहुरलद्धावसरो खलयणो ब्व समुम्मिल्लो तारयाणियरो । ताव य दीसिउं पयत्ता उययायलफैलिहकडयच्छवि व्व चंदप्पहा, लद्धपसरा य पसरिया मंदं मंदं ससियेरा, णवरि य उयय धराहरसंचुणियधातुकद्दमायम्बं । ससिबिंब लक्खिज्जइ दिसागयंदेवकुम्भं व ॥ २४५॥ उव्यहइ दरुग्गयससिमयूहपडिहयसमुद्भडतण्णा(मो)हं । पुष्वदिसायोवुल्लसियसच्छकसणावरिल्लं व ।। २४६ ।। संपुण्णमयं णिवडियमंडलं सहइ णहसरोवगयं । अंतोणिहुयट्ठियलीणभसलकमलं व ससिबिम्ब ।। २४७ ॥ उययाहिंतो जह जह आरुहइ णहंगणम्मि पसरिल्लो । करतालणाभएण व तह तह विवलाइ तमणियरो॥२४८॥ इय ससियरपडियग्गियपणट्ठतिमिरं मुहुन्भडालोयं । अण्णमयं पिच जायं भुवणं दीसन्तसम-विसमं ॥ २४९॥ १ मणोरहिल पिसू । २ लविसयसंगसुहो । ३ तुम्ह सासू। ४ वस्सैव सू । ५ निदासमओ जे । ६ हस्तद्वयान्तर्गतः पाठो जेपुस्तके नास्ति । ७ या संझाविद्दुमवणं गयउलं व समों जे। ८ फलियकडया छवि जे, फलिहकडयबिम्ब [व] चंदप्पहा सू । ९ यरा। तओ चंदिमावियासपसरभूसियम्मि भुवणाभोए, परियट्टिए कामिणीपियबंधवे पोससमए, मणहररइसुहपरिभोयक्खित्तचित्तेसु सयलसत्तलो[?एसु]-अह एरिसे पओसे सिद्धिजे,(२५४ गाथायाम्)। .. Page #348 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५३ पाससामिचरियं । २६५ तो उइयम्मि कुमुयायरबंधवे मियंके पुंजिज्जइ व्व दुमच्छायासु, णिलुक्कइ व्व गिरिकुहरकंदरेसु तिमिरसंघाओ। तो तिमिरपहराउरस्स सयलजियलोयजंतुणो अमयरसच्छड व्व समुच्छलिया चंदिमा। जा य पल्लविय व्व धवलधयवडेमुं, पडिफलिय व्य तरुणिगंडमंडलेसुं, वित्थरिय व्य कुमुयसंडेसु, परिवढिय व्य पासायसिहरेसुं, वियसिय व्व सच्छसलिलासएमुं ति । एवं च चंदिमावियासपसस्यिम्मि भुवणाभोए परियट्टिए कामिणीपियबंधवे पोससमये कामिणीण के वावारा वहिउँ पयत्ता? जं जं चिय सहिकयदइयसंकहो कुणइ पत्तविच्छित्तिं । उप्पसइ तं तह च्चिय सेओ तोसेण व मुहम्मि ॥ २५० ॥ दिट्ठी पल्लष्टइ ताण पेसिया दइयमंदिराहेन्तो । जा ण पलोयइ दुइ व्य सम्मुहं पिययम झत्ति ॥ २५१ ॥ गलइ तरुणीण वम्महसरपहरवियल्लियं व हिययाहि । माणग्गहणं ससियरमउलावियधीरपत्थाणं ॥ २५२ ॥ जायन्ति मुह(?हु) चिय दइयदंसणुच्छलियपुलयकढिणाई। ण उणो मुणन्ति अंगाई गलियमाणं पियाण मणं ॥२५॥ रमणुल्लसन्तवियलन्तकन्ति(न्त)पसरन्तसेयपुलइल्लो । पियदंसणम्मि जाओ रयावसाणे व्व तरुणियणो ॥ २५४ ।। दइयाहि दिण्णमयवसमउलावियलोयणाई घेप्पन्ति । अहरा वारुणिचसय व्व दसणकरकुसुमसंवलिया ॥ २५५ ॥ णिकारणकलहविलक्खकुवियणगणियसहीण संलावो । मयमंथरं णिसम्मइ तरुणियणो सयगवट्ठम्मि ॥ २५६ ॥ इय एरिसे पओसे सिद्धिबहूमुयमणस्स जयगुरुणो । मणयं पिण लहइ च्चिय अवयासं कह वि पंचसरो ॥२५७॥ एवं च विरायरसन्तरुत्तिण्णविसयाहिलासस्स परमत्यमुणियवम्महविडम्बियवस्स परिगलियपिययमाणुरायस्स संसारसरूववियारणासत्तचित्तस्स . समइच्छिओ पओससमओ । विसज्जियासेसपरियणो य णुवण्णो पल्लंके । परिचायकारणुप्पण्णसुहज्झवसाणस्स य से अइक्ता रयणी । ताव य पच्छिमदिसाए फलं व णहतरुणो विलंबियं ससिविंबं, महुसमएणं व लंधिया जामिणी, पच्चूससमएणं मंडणं व वियंभिया दियसलच्छीवयणम्मि अरुणप्पहा, उययसिहरे व्व अत्यमत्थयम्मि जायमायंबिरं ससंकविम्ब । अह विगयचंदिमालोयमउलिरामुक्ककुमुयगहणेहिं । गम्मइ अरुणकरालियकमलवणं भमरवंदेहि ॥ २५८ ।। वित्थारिओ पओसम्मिणिम्मलेणावि जो मियंकेण । सो चिय रविणा विहओ राएण य चकवायतमो ॥२५९॥ णिव्बूढचंदिमाजलकैसिणे वि विलाइ गयणमग्गम्मि । रविणो खुप्पन्तं पिव भएण पंकम्मि गहचकं ॥ २६० ॥ उवसंततारयाणियरकणयरयपिंजरुब्भडच्छायं । दीसइ सिहिगलविब्भममुययटियतरणिमायासं ॥ २६१ ।। ता विप्फुरंतकरजालवियडपडिपुण्णमंडलाहोओ। उन्भासइ भुवणं णेय तिव्वतावं जणेइ रवी ॥ २६२ ।। मयरंदपडलपब्भारपसरैवसउल्लसन्तपम्हाइं । परिमलमिलन्तभमराई कमलसंडाई वियसन्ति ॥ २६३ ।। घडइ एक्ककमं चंचुकोडिकोमलमुणालियावलयं । संगमसंगयगुरुसोक्खपसरसुहियं रहंगजुयं ॥ २६४ ।। इय बालायवपडिभिण्णहंसमुहलम्मि गोससमयम्मि । जायंति तरणिमंडलवियाससोहावियजयम्मि ॥ २६५ ॥ तो तरणिमंडलप्पहाविहूसियम्मि महियले जायम्मि दलियकमलवणसंडसोहम्मि दिणलच्छिमुहे पडिबुद्धो जम्भायन्तवयणदसणप्पहाविहूसियमुहमंडलो भयवं । पवण्णो य सविणओणयविण्णत्तगुरुजणाणुमण्णिवो पणामियजणचिंतियाइरित्तदाणविसेसो दिक्खाविहाणमब्भुवगंतुं । तओ ससंभमुम्मुहमणुयपलोइजमाणदेहाहोया समागया भगवओ पायसमीवं सुरा-ऽसुरगणा । ताव य जायं सुरा-ऽसुरमयं व तिहुयणं । मुरा-ऽसुरविमाणपेल्लणाभएण पडइ व्व णहयलं, सुरकराहयगहिरवजिराउज्जमुहलं रसइ व्य तिहुयणं । एत्थावसरम्मि य कयविविहदेवंगुल्लोयवियाणयालंकिय उवणीयं महल्लं सिवियारयणं । समारूढो तत्थ भगवं । तओ समुच्छलिओ जयजयारवो । एवं च समारूढस्स भगवओ समुक्खित्ता परगणेहि पच्छा सुरगणेहि १ पयत्त जे । २ कसणे विवलाइ सू । ३ 'रबिस सू । ४ ता सुर-असुर-णरगणेहिं सिबिया सू । Jain Education national Page #349 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९५६ चउत्पन्नमहापुरिसचरिय। सिविया। गयी बाहिरुजापं । ओइण्णो सिबियारयणाओ । विमुकालंकाराइसयलसँगी ये पोसस्स बहुलेकारसीए आसाढणक्वत्तम्मि पवण्णी दिक्खं । गया थोऊण जहागयं सुरगणा । भयवं पि दिक्खाणन्तरुप्पण्णमणपज्जवणाणो अणेयअच्चुग्गाभिग्गहबिसेसमलिज्जमाणकम्मपयरिसो विहरन्तों महिमंडलं णिययचलणफंसपवित्तीकयपुहइपेरन्तो पत्तो य पत्तलतरुसंडमंडियं एक णयरासण्णपरिसंठियं तावसासमं । ताव य अत्याओ दिणयरो, पसरियं बहलतिमिरं । तओ तप्पएसम्मि कूवासण्णट्ठियवडपायवहेट्टओ ठिओ अगणियगरुओंवसंगमयविसेसो भयवं पडिमाए तिं । इओ य सो मेहमाली अवहिप्पओएणं मुणिऊणं अत्तणो वइयरं, सुमरिऊण पुन्वभववेरकारणं, समुप्पण्णंतिव्वामरिसो पलोयन्तो समागओ जत्थ भयवं । तओ दसणाणंतरवियंभियामरिसपसरो पयत्तो विविहोवसग्गेहि किल भेसविडं, कह ? वियडदढदाढभासुरकरालमुहकंदरोयरिल्लेहिं । केसरिवंद्रेहिं गहीररुजिओरल्लिदुसहेहि ॥ २६६ ॥ करडयडकोडरोयलियबहलमयसलिलसिंत्तगत्तेहिं । कयकंठसदणिब्भरभरन्तभुवणं गैइंदेहिं ।। २६७ ॥ घणघग्घररवचित्तय-तरच्छ-दच्छऽच्छभल्ल-पल्लोहिं । भल्लंकिमक्कफेक्कारबैहलबहसावमोहेहिं ।। २६८ ॥ सह कंद वयणवियरालकाल वेयालघोररूवेहिं । हाहा-कहक्कहामुक्कहककयरुंदसदेहिं ।। २६९॥ णिसियासि-कोंगि-चावल्ल-भल्ल-णारायणियरवरिसेहिं । दिसिदिसिपडन्तबहुभिंडिमाल-हल-मुसल-चक्केहि ॥२७०॥ इय अण्णेहि वि एवंपयारपायडियभयगरिल्लेहिं । जाहे मणयं पि मणो कहं पि ण य जाइ संखोह ॥ २७१ ॥ तो घगयरघडन्तघणमंडलुंग्यायसंघटफुटन्तपडिरवं परितरलविफुरन्तफुडयरतडिच्छडाडो सवओ सुरचावचारुचित्तचंचेल्लियणहंगणं अणवरयथोरधारप्पहारपसर्रजजरियधराहरं विमुकं भयवओ उवरि जलवरिसं । केरिसं च जायं फुरन्ततडितरलदंडचंडप्पहुज्जलालोयं । खणदिट्ठणहणिवडिय[?]वियडघणमंडलं गयणं ॥ २७२ ।। महियलमिलन्तजलदीहधारसंपायभरियमहिविवरं । जायं णवपाउस[?लच्छि]पुलयपडलं व धरगियलं ॥ २७३ ।। उहुंति णेय जलपायवियलसंकुइयपेहुणप्पसरा । पायवसाहावियडन्तराललिहिय व विहगगणा ।। २७४ ।। जायन्ति कसणपसरन्तवियडघणबहलघणतमप्पसरासुरकोवजलणपसरन्तधमकलुस व्व णहमग्गा ॥२७५|| खणणमियगहयकं खणदिट्ठपणहदीहदिसियकं । पीडिजइ व्य जलहरपडिवेल्लणणिन्भरं गयणं ।। २७६ ॥ पसरइ सव्वत्तो चिय रवबहिरियधरणिमंडलाहोयं । पहिययणवज्जवडलं व गज्जियं जलयवंद्राण ॥ २७७ ॥ उड्डेइ सरुच्छंगाहि घणरखुत्तत्थविहुयपक्खउडं । हंसउलं सहसा माणसूसुउप्पप्णगमणमणं ॥ २७८ ॥ परियड्ढेइ समुन्वेल्लकुडयकेसरपरायपरिमलिओ । भुवणगुरुणो वियम्भियझाणसिहि महुण(मुहल)वणपवणो ॥२७९।। मुरेचावासण्णवियम्भमाणकयविग्गहे जयगुरुम्मि । कुडयकुसुमट्टहासेहिं उवह गिरिणो हसंति च ॥ २८० । इय घडियघणघणुव्वेल्लविसरविप्फुरियतारयं गयणं । जायं मुत्ताहलवडणगम्भिणं सायरजलं व ॥ २८१ ॥ एवं च दरदलियकंदलदलोयरभमिरभमरउलमुहलम्मि पसरन्तपूरपवाहुब्भडणिबडन्तवियडगिरियडम्मि गिरिणदिगहिरावतन्तरणिवडियपरिभमन्तसावयसमूहम्मि तियसुप्पाइयाणा(णे)यपरिकंतपक्कमेहगुविलम्मि उप्पहपरतविसंखलुव्वे. लजलाणेहिसलिलविन्भमुल्लालम्मि गजन्तजलयसंघ[?]णोवडियमइंदसंघायरुद्धप्पवाहम्मि गिरिणिण्णयाणिवयन्तेक्के कमावलोयणविहलहीरन्तमहिससत्थम्मि यधयपा जे । २ गयदेहि सू । ३ बहल सू । ४ यासिकुंगि सू । ५ लुग्धोससंघटफु सू । ६ रवजारेय सू । ७ वरिसं । तं च केरिस ! जे । ८ हस्तद्वयान्तर्गतः पाठो जेपुस्तके नास्ति । Page #350 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५३ पाससामिचरियं । गवरि य मुचइ ज़लएहि पलयसोसियसमुदभरणासहं । उल्लसियासणिभीसणफुलिंगकणेणिभरं सलिलं ॥ २८२ ।। वित्थरइ णहयले धवलमेहमालावियाससारिच्छो । पवणप्पहओ दरदलियपसरिओ सीयरुक्केरो ।। २८३ ॥ मारुयपडिप्फलिजंतबहुमुहा विप्फुरन्ततडितरला । मुञ्चति भुवणगुरुणो घणेहिं मूल व्य धारोहा ॥ २८४ ।। जा आसि जलयमग्गे पढमं रुप्पप्पहा पुणो विज्जू । स चिय तिहुयणगुरुणो तणुम्मिसा भाइ जलधारा ॥ २८५ ।। अमरकयघणरबुब्भडपडन्तजलधाररयभरं पढमं । णिवडइ तणुम्मि पहुणो पच्छा सलिलं वसुमतीए ॥ २८६." अण्णण्णवण्णजलहरसुरचावच्छेय विद्दुमायम्बं । सायरकल्लोलणिहं खिप्पइ गुरुणो घणेहिं जलं ॥ २८७ ।। पुसरियजुयन्तविन्भसमारुयपल्हत्थतुंगतरुमहणं । उद्घट्टियसोडालक्खलक्खिहीरन्तगयजूहं ॥ २८८ ॥ इय घणभीसणग़ज्जियरवतिहुयणजणियप्रलयपडिसंकं । पसरइ गुरुणो मुहझाणविहडणत्थम्मि गुरुवासं ॥ २८९ ॥ एवं च वियम्भिए तियससंजणियगरुओक्सग्गे पंवटिए पउरथोरणीरधाराणिवाए तओ पवित्थरन्तथिरसुइज्झवसाणस्स मेरुस्स व णिप्पयंपतणुगो भयवओ ण चक्खुपसरस्स संखोहो रक्खसदसणेणं, ॥ सवणाण घणघणुग्योसेणं, ण मण-कायाणं घोरासणिणा । अवगणियासेसोवसग्गस्स य लग्गं णासियाविवरं जाव सलिलं । एत्थावसरम्मि य चलियमासणं धरणराइणो । उत्तोहिणा य मुणिओ भयवओ वइयरो। ताव य सरयकालो व ससियरुज्जला समुत्थियो पडिपेल्लिऊण पाउसं । कहं चिय? णवरि य फुरन्तपम्हउडतरलतारयचलच्छिवचाहिं । लीलापलोयणुव्वेलधवलकासप्पहिल्लाहि ॥ २९०॥ भरपरिमायबिम्बासम्बबिउणसोहाहरुब्भडिल्लाहिं । परितणुयणासियावंसमुहयसंजणियवयणाहि ।। २९१ ।। सुविसदृ सरसतामरससुरहिणीसासपवणवयणाहि । झुलंतकण्णकोंडलकवोलसंकेतकंतीहिं ।। २९२ ॥ भूभंगविब्भमाणियमणहरसोहग्गगारविल्लाहिं । परितरलालयघोलन्तवल्लरीलुलियभालाहि ।। २९३ ।। अमकसगंजणसच्छहलुलिउच्वेल्लन्तचिहुरभाराहिं । सिरणिबडन्तफणिफुरियफारफुक्कारफाराहि ॥ २९४ ।। उत्तुंगपीणपीवरथणवट्ठणिहित्ततरलहाराहि । कोमलमुणालियावलयविभमुभासियभुयाहि ॥ २९५ ॥ वियडणियंबालम्बियकलकणिररगतकंचिदामाहिं । तिवलीतरंगसंगयमणहरमज्झप्पएसाहिं ।। २९६ ॥ णिच्छल्लियरंभागम्भकंदलुज्जलवरोरुजुयलाहिं । कंकेल्लिपल्लवारुणमणहर्रवरचलणमम्गाहिं ।। ।। २९७ ।। इय एरिसाहिं सुंदरलायण्णापुण्णसयलदेहाहि । णियपणइणीहि समयं पत्तो धरणाहिवो तत्थ ॥ २९८ ॥ दिट्ठो य भयवं विज्जुलाणलजलियघणसलिलसंपायपरिक्खित्तो पलयजलणजालाकबलिज्जमाणजलणि हिपरिडिओ न महिहरो। तओ टूण अप्फुण्णसयलणहमंडलोहोयं सरयंबुरुहरविविब्भमं विरइयं भयवओ उवरि फणसहस्सायवचं । दरूपणयफणाणिहायत्तणो ण णिचडन्ति विसया वि सोयामणिप्पयरा, गायवलयपीढुण्णासियत्तणओ य.ण पदवइ तणुम्मि जलावगाहो, अणेयतालियाउज्ज-वेणु-वीणाणिणायभरियंवरत्तणओ य णोवलैंकिखज्जइ घणघणुग्योसो। एयारिसम्मि य समए भयवं तारिसेणावि मणयं पिणकयमणवेयल्लो अवमण्णियासेसोवसग्माइसओ पजलियतिब्वझागाणलो य पयत्तो कम्मकाणणं डहिउं। ता पेच्छइ फगमंडवपडिहयघणमंडलम्मि सो तियसो। फणिमगिदीबसिहाभिण्णजलयतिमिरम्मि जिणयंद ।।२९९॥ भुवइंदधवलतणुपीढवियडसंकेतकन्तकमजुयलं । कलहोयगंडसेलोवरिद्वियं जलयबिम्ब व ॥ ३००॥ जोयणमेत्तरपसरपेल्लियं णियइ सलिलसंघायं । आबद्धवियडमंडल्टंकच्छेओरहित्तं व ॥३०१॥ जयगुरुपुरो पज्जलियफणिसिहापसरपहपरिक्खित्तं । णिययासणि व विज्झायमाणकसणं भुययलोयं ॥ ३०२ ।। १ गभीसणं सजे । २ लावयास सू। ३ 'बहुविहा विजे । ४ पट्टिए सू। ५ पउत्तो ओही । मुं सू । ६ झोलत: सू । ७ गतारवि सु। ८ 'रयर सू। ९ लाहोयसरयंबुरुहविन्भमं सू । १० लक्खिज्जति घणुग्घोसा जे । ११ तवियडकम जे । Page #351 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६८ चउप्पन्नमहापुरिखचरिय। इय 'आयण्णइ सुइमुहविसहरबहुजणियगीयसंसदं । दोहयजलहरपसरविसहरंगट्टियजिगिंदं ॥ ३०३ ।। तोदट्ठण भुवणगुरुणो महाइसयसंपत्तिं गरुयविम्हयक्खित्तमाणसो पणमिऊण जिणयंदं । उवसन्तदप्पपसरो असुरो पत्तो य णियठाणं ॥ ३०४॥ फर्णिदो वि थुणिउमाढत्तो, कह ?पणमामि तिहुयणेकल्लधीर ! वम्महपयावणिम्महण ! । जिण ! दुज्जयगरुयमुरोवसग्गसंसग्गकयभंग ! ॥ ३०५ ।। ण हु णवरुत्तारइ दुहरयाओ तुह गोत्तकित्तणं णाह ! । तुह पायरओ वि तणुम्मि पवणविहुओ वलग्गंतो ॥३०६।। मुरहित्तणाहिरामा सुहोवहोज्जफ(प्फ)ला दयं काउं । तुम्हेहि पुण्णरौसी परूविया धण्णरासि व्य ।। ३०७ ॥ ताव चिय दुहरविकिरणणियरसंतावताविया होति । जावऽल्लियन्ति ण य तुम्ह चलणजुवलायवच्छायं ।। ३०८।। यम्महगिम्हुम्हागयमायामायण्हियाए णडि एण । तुह वयणजलं पत्तं पिवासिएणं व णाह ! मए ।। ३०९॥ संभिण्णतिमिरपडलम्मि तइ मए ससहरे व्व सच्चविए । जलणिहिणो वेलाए ब्व णिव्वुयं मज्झ मणपुलिणं ॥३१०॥ मुरगिरिसिहरे व्व समुण्णयम्मि ठाऊण तह(? इ) मए णाह !। णिवडन्तो पुलइज्जइ कुतित्यपंथेण बालजणो॥३११॥ इय ललियलोयणुव्वेल्लपत्तकरपल्लवे तइ जणस्स । कप्पतरुम्मि व जायन्ति सेविए सयलसोक्खाई ।। ३१२॥ एवं च भत्तिभरुल्लसंतपुलयपडलुच्चइयचारुदेहो थोऊण तिहुयणगुरुं गओ सट्टाणमुरगाडिई। भयवओ वि अणिचाइभावणुब्भडवियम्भन्तमुक्कझाणाणलपुलुट्ठसयलकम्मिंधणस्स चित्तकिण्हचउत्थीए विसाहाहिं समुप्पण्णं केवलं नाणं । तओ दिणणाहस्स व गरुओययसमुम्मिल्लतेयपयरिसो वियम्भिओ तणुम्मि पहापंसरो, पज्जलियसिहिसिहाकलावविन्भमफुरन्तधारुधुरं संठियं पुरओ धम्मचकं, सयलसंसारवासविच्छेयणुच्छलियजसवियाणं व पसरियं णहमंडलम्मि सेयछत्ततियं, अद्दिवज्जिरुव्वेल्लगहिरघणरवोरल्लिमुंदरो रसिउं पयत्तो दुंदुहिरवो, उच्छलियमुरहिपरिमलायड्ढियालिमुहला णिवडिया णहंगणाओ सुरकुसुमबुट्ठी। णवरि य परिमंदागयपवणुच्छिप्पन्तबहलधूलिल्लं । णहमंडलोपरिट्ठिय(य)घणसलिलोयड्ढमहिवढे ॥ ३१३ ।। वणसिरिविमुक्कबहुवण्णकुसुमबॅटट्ठियाहिरामेल्लं । रययकलहोयणिम्मलघडन्तपायारतियवलयं ।। ३१४॥ मयवइसणाहविरइयगिरिकडयणिहासंणोवसोडिल्लं । संजणियकप्पपायवपसूयपरिमलियसबदिसं ॥३१५॥ इय सयलमुरा-ऽसुर-गर-तिरिक्लपब्भारधारणसमत्थं । तियसेहिं समोसरणं आजोयणमंडलं रइयं ॥ ३१६ ।। तओ तप्पहावुप्पण्णकणयकमलरिंछोलिणिहित्तपयणिक्खेवो अविहावियसुरकराहउच्छलन्तवजिराउज्जपडिरवो विमुकजाणवाहणोइण्णासुरगणकीरन्तजयजयारवो सुरवइकरकलिउव्वेल्लमाणचटुलचमरवीइज्जमाणो आसण्णकप्पपायवुप्पण्णविविहरयणकुसुमोवहूसिए णिसण्णो भयवं सीहासणे। णिसण्णस्स य जयगुरुणो महियललुलन्ततारहारयं सुरगणा पगमिऊणोवविठ्ठा जहोइयट्ठाणेसुं। ताव च चउमु(म्मु)हटियसयलजणाणंदसुंदरालोयं । रुवं पवरसुराऽसुर-णर-तिरियविदिण्णसण्णेज्झं ॥ ३१७ ॥ णवरि य कयतित्थपणामपुव्वयं घणघणेन्तपडिरवो(? स्वओ)। आढत्तो सम्मइंसणाइयं साहिउं धम्मं ॥ ३१८॥ जह गुरुपरिग्गहारम्भभरवियम्भन्तकम्मघणबंधा । जीवा णिवडन्ति दुहोहदुत्तरे णस्यकूवम्मि ।। ३१९ ।। जह य दुसहाई तक्खणसंगयसंभमविणासपिसुणाई। मुइरं दुहाई पावन्ति थावरत्तम्मि पाणिगणा ।। ३२०॥ जह डहणं-इंकण-वाहण-बंध-वह-च्छेयसंभवं सुइरं। तिरियत्तणे वि अइरेयनिन्भरं अणुइवन्ति दुहं ॥ ३२१॥ १ आइण्णइ सू । २ द । गओ निययट्ठाणं उवसम्गकारो । फणिदो जे । ३ 'राती सू। ४ तुह सू । ५ पयरिसो, ५ जे । ६ 'सलिलोपुट्ठम जे । ७ सणोयसो सू। ८ वखसम्भावा । Page #352 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५३ पाससामिचरियं। २६९ जह य पाति भवसयपरिपत्त गदुल्लहं खु मगुयत्तं । अप्पपरिग्गहयलहुयकम्मणुहावेण मणुयत्तं ॥ ३२२ ॥ जह य सुदुक्करतवचरणकरणसंजणियथोवकम्मंसा । सयलजियलोयदुलहं जीवा गच्छंति मुरलोयं ॥ ३२३ । पावंति जह य दुलहं दंसण-णाणप्पहाणुहाविल्लं । सयलसुहाण णिहाणं जयम्मि जिणभासियं धम्मं ॥ ३२४ ॥ जह परियड्ढियझाणम्गिदड्ढकम्मिंधणोहमाहप्पं । केवलणाणं पावेंति पुलइयाऽलोय लोयंतं ॥ ३२५॥ जह य तियसुद्धणीसेसबहलमलपडललेवपम्मुका। असरिसमुहसंभोयं जीवा पाति णिव्वाणं ।। ३२६॥ इय सयलसत्तसंसारकॉरणुद्दलणपचलकहाए । परिसा णिचलणिक्खित्तलोयणा सहइ लिहिय व्व ॥ ३२७॥ एवं च सयलजंतुसंताणतारणसहम्मि साहिए भयचया धम्मे तओ मुणिऊणासारयं संसारसरुवस्स परिचत्तसयलसंगा पवण्णा केइ समणत्तणं, अण्णे सावगत्तणं ति । कहावसाणम्मि य थोउं पयत्तो सुरवई, कहं ? पणमामि मुक्कसंसारवासवासंग! पासजिणयंद !। अब्भुद्धारियभीमयरभवभउब्भन्तभव्वजण ! ॥ ३२८॥ खरणहरकढिणकुलिसग्गभीसणो दढकरालदाढालो। तुम्ह पणामेण कमागयं पि णऽकमइ मियणाहो ।। ३२९ ।। वियडकबोलोयल्लियबहुलियमयसलिलसित्तपेरन्तो । पणिवइए तुह जयगुरु ! गऽल्लियइ समागओ वि गओ ॥ ३३० ॥ पजलियबहलजालाकलावकवलियदियन्तराहोओ। ण डहइ तुहवयणजलाहिसित्तमणुयं वणदवग्गी ॥ ३३१॥ उन्भडयरफणफुक्कारमारुउच्छित्तविसकणुक्केरो। कुवियागओ वि•ण डसइ मणुयं तुह गोत्तमंतेण ।। ३३२॥ आयण्णायड्ढियदढपयंडकोयंडबाणदुप्पेच्छो । णऽल्लियइ णरं तुह पंणिहिपडिहओ तकरसमूहो ॥ ३३३॥ तुह गोत्तकित्तणुइलियदीहदढणियलबंधपम्मुको। काराहराओ पुरिसो पावइ हियइच्छियं ठाणं ॥ ३३४ ॥ णिद्दलियजाणवत्तम्मि णीरलहरीहिं पेल्लिओ पुरिसो। तुह पणइतरण्डबलग्गणियतणू तरइ जेलणिहिणो ॥ ३३५ ।। दढदाढकरालविडंवियाणणं सिहिणिहच्छिदुप्पेच्छं । छायं पि पिसायउलं ण छलइ तुह णाममेतेण ॥ ३३६॥ तडितरलसच्छहुच्छलियविसमनिसियासिभासुरिल्लम्मि । समरम्मि जयं पावइ तुह पणइरो लहुं सुहडो॥ ३३७ ।। वियलन्तपूयपब्भारसडियकर-चरण-चुड्डनासो वि । रोगाउ मुच्चइ गरो तुम्हपणामामियरसेण ॥ ३३८ ॥ इय हरि-करि-सिहि-फणि-चोर-[कार]-जलगिहि-पिसाय-रण-रोगं । ण णरस्स जायइ भयं तुह चलणपणामणिरयस्स ॥३३९॥ एवमाइयं च काऊण बहुप्पयारं भयवओ थुइं असेसभुरगणसमेओ सुरवई गो णिययं ठाणं । गर-तिरिया वि संठि(संपट्टि या सट्टाणेसु । भयवं पि अहाविहारं विहरमाणो संपत्तो सम्मेयगिरिवरं । समारूढो तस्स सिहरं । बहुपडिपुण्णम्मि णिययाउए सियसावणऽटमीए विसाहाहिं संपत्तो सयलसुहावासं णेवाणं ति । कया जहक्कमं सुरसमूहेहि णिवाणमहिमा। एत्थ परिहाइ इमं चरियं सिरिपासजिणवरिंदस्स । णिसुयन्ताण भणेन्ताग कुणइ दुक्खक्खयमनस्सं ॥३४० ॥ "इय सीलंकविरइए महापुरिसचरिए सिरिपाससामिचरियं परिसमत्तं ।। ५३ ॥ [ग्रन्थानम् १०७००।] १ दुलह ससू । २ 'यालोयग्गं जे । ३ काणणुस । ४ लनिव्वत्तलो जे । ५ तु सू । ६ मयणाहो जे । . कवोलयलो. लियबहु जे। ८ पणइप जे । ९ जलहीओ जे । '. बहुगम सू । ११ सुरवरेहि जे । १२ इय सीलंकविरइए सयल[?)पुरिसाण कित्तणाधयिए । एन्थ समपद चरिय मुणिको सिरिपास गाहस्स ॥ इति महापुरिसचरिए पासणाहस्स चरिय समतं ॥ सू । । Page #353 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [५४ वद्धमाणसामिचरियं] परजणइियत्थकज्जे समुजया जणियविविहविग्या ।। णिवाहन्ति चिय तं पुणो वि शृणं महापुरिसा ॥१॥ 'कह चिय? अस्थि इहेव जंबुद्दीवे दीये भारहे वासे माहणकुंडग्गामो णाम गामो। तत्थ कोडालसगोचो [उसहदशो णाम बंभणो। तस्स देवाणंदा भारिया । तीए सह जहामुहं वसन्तस्स गच्छंति दियहा । इयो य तओ पुप्फुत्तरविमाणाओ आसाढसुद्धछट्ठीए हत्युत्तराहिं चइऊण अणेयभवाईयमिरीइजीवसुरवरो 'अहो उत्तम मह कुलं' ति दुरुत्तवायावइयरावज्जियकम्मकिंचावसेसत्तणो समुप्पण्णो तीए वम्भणीए उदरम्मि । दिट्ठा यणाए सुहपसुत्ताए तीए चेव रयणीए पभायसमयम्मि गय-सहाइणो चोदस महासमिणा । पुणो पडिणियत्तमाणा दळूण ससज्झसा विउद्धा । साहियं दइयस्स । सो वि हु अयाणमाणो ठिओ तुहिक्को। . एवं च पक्ड्ढमाणम्मि गब्भे गए हैं बानीदिणेसु ताइ चलियासणोहिप्पओएण सुराहिचइणा मुणिओ भयवओ गम्भसंभवो । चिंतिउं च पयत्तो-एवंविहा महाणुभावा ण तुच्छकुलेसु जायन्ति । त्ति चिंतिऊण अवहरिओ बंभणीओ(ए) गब्भाओ भयवं । पक्खित्तो इहेब जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे उत्तुंगधवलपासायसिहरोवसोहिए 'तीर(? खत्तियणगराहिहाणे पुस्वरे । जहिं च मंतिलत्तणं महाणसधूमेसु, ण सच्चरिएसु; मुहराओ भवणकलहंसेसु, ण कोवेमु चवलत्तमं कयलोदलेसु, ण मणेसु; चनखुराओ परहुयासु, ण परकलत्तेसु, थणफंसो वेणुयासु, ण परमहिलासुं। पक्खवाओ तंवचूलेसु, ण विवाएसु; मुहभंगो जराए, ग धणाहिमाणेणं जगस्स त्ति । तत्थ दिगयरो व पवड्ढमाणोयओ, सुरकरि व अणवरयपयत्तदाणोल्लियकरो, णियपयावावज्जियणमन्तसामन्तमउलिमालच्चियचलणजॅवलो इक्खागवंसपभवो राया णामेण सिद्भत्यो त्ति । जो य आलओ गुणगणाणं, कुलभवणं कलाविसेसाणं, आसओ सव्वसत्थागं, उप्पत्ती ससहरस्स व रोहिणी सयलन्तेउरप्पहागा तिसलादेवी गाम पणइ . अचन्तदइयत्तणओ य जेसु जेसु उज्जागकीलाविसेसेसु बच्चइ राहिवो तहि तर्हि तं पिणेइ त्ति । अण्णया य गामाणुगामं गच्छमाणो कीलाणिमित्तमागओ णियभुत्तिपरिसंठियं कुंडपुंर णाम नयरं । जहाविहाक्यारेण पविट्ठो णिययमंदिरं । आगओ सयलो वि पुरजणवओ दसणत्यं । सम्माणियविसज्जियम्मि पउरलोए विसिट्ठविणोएण अइवाहिऊण दिणसेस पसुनो वासभवणम्मि । णिवण्णा तयन्तिए देवी । समागया सुहेण णिहा । तओ पहायप्पायाए रयणीए चउडसमहासुविणाणुकूललाभसंसूइओ समुप्पण्णो आसोयतेरसीए हत्थुत्तराहिं तिसलादेवीए गम्भम्मि । पहायसमयम्मि पडिबुद्धाए य साहिओ राइणो सिविणयवइयरो । तेणावि भणियं-सुंदरि ! सयलतेल्लोकलग्गणक्खम्भभूओ पुत्तो ते भविस्सइत्ति । बहमणियं च इमीए। पहरिमुल्लसन्ततणुलया य गया णिययमावासं । एवं च पइदिणं संपजन्तसविसेसमुहपरिभायाए बढिउमाढत्तो गब्भो । केरिसा य देवी दीसिउं पयत्ता? साँऽऽहाणमइ-सुया-ऽवहिपसरपडिप्फलियदोसपब्भारा । घणवडलन्तट्ठियदिणयर व्व पडिहाइ दिणलच्छी ॥२॥ अहिययरं परिउब्भडलायण्णामलपसाहियावयवा । आसण्णोययससिविम्बभूसिया उययभित्ति च ॥३॥ पसरन्त निम्मलत्तणपहपसरुज्जोयजणियसोहग्गा । अन्तोफरन्ता(? न्त) [?मुत्ता हलुज्जला जलहिवेल ॥४॥ इय गम्भन्तट्ठियजिणचरिंदसविसेसभूसियावयवा । सहइ दरुग्णयदिणणाहभूसिया वासवदिस च ॥५॥ तओ अइक्कमंतेसु पउरवासरेसु परिवड्ढमागो वि भययं अञ्चन्तकारुण्णयाए मणयं पि जगणीए पीडं गाउप्पाएइ। 'कह चिय' इति जेपुस्तके नास्ति । २ "सु चउप्पणदिणेसु सू। ३ पायारसिजे । ४ तीए णगरा जे। ५ मलिणतण जे । ६ चंचलन जे । ७ जुयलो जे । ८ रस्सेव रोजे । ९ भुत्तिसं सू । १. पुरवरं णाम जे । ११ तणुया य गया गिययावास जे । १२ साहीण सू। १३ हस्तद्वयान्तर्गतः पाठो जेपुस्तके नास्ति । Page #354 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७१ ५४ वद्धमाणसामिचरियं । वरि व विसायमावणाए चिंतियं जणणीए-गुणमेसो मह संदभायाए उपराओ चेव के गावि अवहरिओ, अहया विलीणो, अण्णहा कहं मणय पि ण फंदइ, ण य परिडिंढ पावेइ ?, ता जइ मह मंदभायत्तणओ भविवत्ती समुप्पजइ साऽवस्समहभप्पणी पाणे ण धारेमि ति । एत्थावसरम्मि मुणियचिंतियत्येण भयवया करुगापहाणतणओ चालिओ एको णिययसरीरावयवो । ती 'धरई' त्ति समासत्था चित्तेण भयवती। ती चिन्तियं भयवया-अहो ! एरिसो पाणिधम्मो जेण पेच्छ एकमुहुत्तंतरम्मि चेव हरिस-विसायाण पयरिसो, ता अवस्सं मए जीवमाणाणं पिति-माताणं आणाखंडणं ण कायव्वं, विसयविरत्तचित्तेणावि गिहवासे चेव चिट्ठिथव्वं, दियलीयगएसु य जणणि-जणएसु "णियहियाणुढाणं कायव्वं ति । एवं च संकप्पिए भयवया जहासुहेणं समागी पइसमओ। तओ वासवदिस व्व ससिमंडलं समुज्जोइयसयलजियलोयं चेत्तस्स सुद्धतेरसीए हत्थुत्तरासु पस्या भयवई जिणवरं ति। णवरि य चलियासणतियसणाहपमुहंसुरा-ऽसुरगणेहिं । चलियं पसरियविच्छड्डविड्डरिल्लाणुहावेहि ॥६॥ कयविविहजाण-वाहणवित्यारोरुद्धगयणमग्गेहिं । पम्मुक्कजयजयकारमुहलकयकुसुमवुट्ठीहिं ॥ ७॥ वेयवसुवेल्लिरतरलहारविप्फुरियकिरिणराहेहिं । मणिमउडकन्तिरंजियरविकरपसरप्पयारेहिं ॥ ८॥ इय विविहवज्जवजंततियसंवंदेहिं भवणकयसोहं । संपत्तो जयगुरुणो जम्मट्ठाणं सुराहिवई ॥ ९ ॥ तओ आर्गतूण ओसोविऊण सयलपुरजणं सविणयपणामिउत्तिमंगेण पणमिओ भयवं, भणियं च- . . अण्णाणतिमिरभरियं जयगुरु ! जम्मोण तुम्ह सयराहं । उययट्ठिएण सहसा मूरेण व भूसियं भुवणं ॥ १० ॥ तं सि कयत्था भैयवति ! सयले वि जए ण एत्थ संदेहो । पैवरगुणनिहाणं जीए धारिओ जयगुरू गम्भे ॥ ११ ॥ णमिमो भारहवासस्स जम्मि अन्ज वि अजग्घमोल्लाग । कलिकाले साहीणे वि पुरिसरयणाण उप्पत्ती ॥ १२ ॥ इय णमि दिण्णाएसतुट्टहरिणाणणेण हरिऊण । तियसवइपाणिपंकयसै जाए पणामिओ गाहो ॥ १३ ॥ तओ सहिओ तियसवंद्रेहिं सुरवई संपत्तो मंदरसिहरम्मि । तत्थ य विमलसिलायलसंठियसीहासणम्मि पंचप्पयारपरियप्पियणिययरूवो भयवओ अहिसेयत्थमुजओ अइसुहुमदेहं च भयवंतमवलोइऊण चिंतिउं पयत्तोकहमखिलमुरवरीसरकरचर(धारि)यवारिभरियकुंभेहिं । जुगवमहिसिच्चमाणो सहिही णाहो जलुप्पीलं ? ॥ १४ ॥ एयारिसमसमंजसमाखंडलहिययभावमाकलिउं । विमलोहिणा जिणिंदो पयडिंसु परक्कम निययं ॥ १५ ।।। वामम(य)पायंगुटयकोडीए तो सलीलमह गुरुपा। तह चालिओ गिरीसो जाओ जह तिहयणक्खोहो॥ १६॥ 'होही किल मह संती जिणवर[व]सहस्स मज्जणे जणिए । णवरं कह वेयालो जाओ ?' इयं चिंति(त)यंतेण ॥१७॥ हरिणोवोगपव्वं ओहिण्णाणेण सम(म्म)माकलियं । जह सिरिजिणवरगुरुणो माहप्पमणण्णसामण्णं ॥१८॥ तओ हरिणा 'मए जमण्णहा चिंतियं तस्स मिच्छा मि दुक्कडं' ति भणमाणेण पणमिओ भयवं । तओ पुथ्ववणियविहिणा काऊण भयवओ जम्माहिसेयं मोत्तूण जणणीसमीवम्मि गओ सुरवती। एत्थावसरम्मि य पडिबुद्धा सपरियणा देवी । साहियं दासचेडीए गरवइणो । दिण्णं तीए पारिओसियं । कयं वद्धावणादियं सयल पि करणीयं । तो जम्मदिणप्पहुइ सविसेससयलरिद्धिपवड्ढमाणत्तणओ कयवद्धमाणणामधेयो बड्ढिउं पयत्तो । अइकतो बालतणाो । पत्तो कुमारभावं । कीलिउं पयत्तो सह कुमारेहि । कीलंतो य णिग्गओ णयरबाहि । पारद्धं च ऍकम्मि(स्स) तरुणो हेम्मि आमलयखेड्डं । लद्धपत्थावम्मि य मुंराहिवइणो सुस्त्याइयाणिसण्णस्स पयत्ता सुरवरेंहि सह १ मप्पणा जे । २ निययाणुट्ठाणं जे । ३ यकिरण जे । ४ सवंद्रहिं जे । ५ भयवइ ! सयले वि जयम्मि वसुमईए ब्य । पवर जे। ६ पवरगुणाण णिहाणं धरेसि जा जयगुरु गम्मे सू । ७ जाहो । एवं च पंचप्पयारपरिकाप्पणिययरूवेण सुरवइणा जहापुब्बणिवाणियबिहिणा सुरगुरु( गिरि) मत्थयम्मि काऊण भयवओ जम्माहिसेय, मोत्तण सू. (१८ गाथानन्तरम) । ८ "ए । णरवइणा दिस। ९ पमिइ स. स।१. एकतरुमो जे । ११ सुरवईणो जे । Page #355 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७२ चउप्पनमहापुरिखचरियं । विविहसंकहालावा। तओ वीरेत्तणपत्थावम्मि सुराहिवेणं भणियं-जइ एवं तओ वीरत्तणसंकहासुं संपयं भयवओ वद्धमाणस्स सरिसो ण दीसइ अण्णो त्ति । एत्थावसरम्मि य एको सुरो असद्दहंतो गओ जत्थ भयवं सह कुमारेहि कीलइ ति । तत्य काऊणं रुद्दभुयइन्दरूवं वेढिओ सो पायवो । तओ तारिसं दट्टण दिसोदिसिं समोसका कुमारा । णवरं पलाणे पेच्छिऊण कुमारे भयवया ईसि विहसियं काऊण हेलाए चेव उवसप्पिऊण करयलेणायड्दिऊण पक्खित्तो एकपासम्मि भुयंगमो । पुणो पारद्धा खेलिउं जाव ताय पुणो वि सो सुरो काऊण बालरूवं पयत्तो तेहिं समं कीलिउं । णवरि य पराजिया सयला वि बोलया भयवया । तत्थ य एवंविहो पणो-जो जिप्पेइ सो पट्टीए समारुहिऊण वाहिज्जइ । तओ वाहिज्जमाणेसु सयलेसु पि तेसु समागओ तस्स सुरकुमारयस्स वारओ । पणामिया तेण पुट्ठी । आरूढो तत्थ भयवं । एत्थंतरम्मि य वदिउमाढत्तो सुरो, कयं च महापमाणं णिययरूवं । केरिसं च? गंभीरवयणकंदर-दबुद्धदीसन्तभीमदाढालं । कंकेल्लिदलारुणतरलचलियजीहाबिहाइल्लं ॥ १९ ॥ पज्जलियजलणकविलच्छदच्छपक्खित्तभासुरच्छोहं । भीमुमडमुमयघडन्तभंगभंगुरियभालयलं ॥२०॥ तवणिज्जपिंजरुधुच्छलन्तदीसन्तकेसपब्भारं । णिम्मंसया-ऽऽसुयालिद्धकयकरालोयरुद्धंतं ॥२१॥ इय दिटुं जयगुरुणा पट्ठिवलग्गेण सुरकुमारस्स । रूपं भेसियतेलोकभीसणं णवरि रीढाए ॥२२॥ तओ तं तारिस तस्स कयकइयववियम्भियं दद्रुण पहओ कुलिसकढिगयरमुटिणा पुटिवट्ठम्मि। तप्पहारुप्पण्णवियणाजणियवेयल्लो य संठिओ पुचपयइम्मि । एवं च मुणिऊण भयाओ धीराइसयं, कलिऊण सत्ताइरित्तत्तणं, सुमरिऊण तियसिंदजंपियं, 'एवमेयं' ति पणमिऊण जयगुरुं गओ जहागयं सुरवरो त्ति । भयघं पि कीलिऊण सह बालएहिं विविहकीलाविणोएहिं पविट्टो गयरस्सऽभिन्तरं । एवमाइगा विगोएण अइकंतो कुमारभावाओ । संपत्तो य जोव्वणं । तस्साणुहाव-गुणगणाणुराया य राइणो समागया णिययधूयाभो घेतूण । पणामियाओ भयवओ। ताव य चिंतियं भयवया-इहरा वि मए परियप्पियमासि जहा 'जाव जीवन्ति जगणि-जणए ताव ण दिक्खाविहाणमभुवगन्तव्वं' ति । एवं च परियप्पेऊण विसयारत्तचित्तेगावि पडिच्छियाओ कण्णयाओ । वत्तं जहाविहिं वारेजं । एवं च जहाभिरुझ्यसंपज्जतसयलविसयइंदियत्थं रजमुहमणुहवन्तस्स आजम्माओ अइक्कन्ता तीसंइसंवच्छरा। परलोयमइगतेसु जणणि-अणएमुं पगामिऊण णियकणिस्स भाउगो रज्जं, दाऊण संवच्छरियं महादाणं समभुजओ दिक्खाविहाणं पति । एत्यावसरम्मि य मुणिऊण भयवओ सेमीहियं समागया लोयन्तियमुरगणा । भणिउं च पयत्ता, कहं चिय? तो विणओणामियसिरमिलन्तकरयलकयंजलिउडेहिं । भण्णति भत्तिभरुव्वेल्लविणयपणयं वहंतेहिं ॥ २३ ॥ जह तिहुयणभवणन्भिन्तरम्मि भावा जहट्ठिया भयवं ! । जाणसि तुमं ति तह किं व मुणइ अम्हारिसो लोओ ? ॥२४॥ तह वि हु 'लोयट्ठी एरिस' त्ति कलिऊण तेण अम्हेहिं । विण्णप्पइ पुरओ तुन्ह सुमरणामेत्तकज्जेण ॥ २५ ॥ दे! पयडिज्जउ भयभीर्यभव्वसत्ताण जणियसत्ताणं । तित्थं तित्थंकर ! कुमयपंथपत्थाणमूढाणं ।। २६॥ कुसमयपहपयरपयावपसरपम्हुमंतरियं । णाण-चरणोवएसेण मोक्खमगं पयासेसु ॥ २७ ॥ तुह विविहाइसयवियम्भमाणगुणरयणणियरभरियाओ । अपु(प्पु)वसायराओ गेण्हउ वयणामयं लोओ ।। २८ ।। तुह गोत्तकित्तणुल्लसियबहलरोमंचकंचुइल्लाण । जाव जुयन्तो वित्थरउ तात्र भव्वाण तुम्ह कहा ॥ २९ ॥ इय विणओणयमुरगणवयणवियासिज्जमागकरणीओ । जाओ भयवं सैइसोक वमोक्खलंभुज्जयमईओ ॥ ३० ॥ १-२ धीरत जे । ३ ण रुंदभुयइंद स्व पयत्तो तेहि सम खेलिउ । णवरि य पराजिया सयला वि दिसं समोसका कुमारा । भयवया ईसि वि जे । १ खेलिलं जे । ५ जिज्जइ सू। ६ सुरवरो सू। . रमतर जे । ८ तीसव जे । ९ समीहियमागया सू। १. 'यसब सू । ११ जयतो जे । १२ सइमोक्खसोक्खलं सू । Page #356 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४ वद्ध मागखामिचरियं । २७३ एत्यावसरम्मि य मुणियजयगुरुकायव्यवइयरा समागया सयलमुरगणा । कयपणामा य पुन्योइयकमेण परियः प्पियसिबियारयणा य समीवमल्लीणा भयवओ । कओ मुराहिवेण मुणिपत्थिवाहिसेयाइओ विही । तयणंतरं समारूढो जयगुरू सिबियारयणं । उक्खित्ता णर-सुरगणेहि । तओ कयसुर-गरजयजयासहसंवलियपडपडहपडिरेवुल्लसंतसंखकलकाहलारवभरियदियन्तरालकलयलेण णिग्गओ गयराओ । गओ बाहिरुजाणं । विमुक्काए सिबियाए ओइण्णो सिबियारयणाओ । सयलकजभारो व्व ओयारिओ सरीराओ आहरणणियरो, देहालिंगणगारवग्यवियविसयसंगसोक्खं व मुक्क वासोजुयलं, अवणीओ उत्तिमंगाओ अविहावियवज्जकप्पिओ केससंघाओ, पडिवणं पुवकमेण मग्गसिरसुद्धदसमीए इत्युत्तराहिं दिक्खाविहाणं ति। तो घेत्तूण समुन्भडकम्मवणफलंतरालणिग्गमणं । णाणरविकिरणपयडियणिम्मलतव-चरणकयमग्गं ॥३१॥ णवरि य वणा-ऽहि-सुर-णरअणुमग्गवट्टजणियसंवट्टो । सुरवइएकंसणिहित्तदेवदूसोवसोहिल्लो ॥ ३२ ॥ तो उन्बूढचरित्तस्स भुवणगुरुणो विसिट्टपरमत्था । चउरो णाणाइसया जायन्ति समुन्भडवियासा ॥ ३३॥ इय कयतिउणपयाहिणपणामहरिमुल्लसन्तपुलइल्ला । थोऊण जयगुरुं णियणिहेलणं जंति सुरसंघा ॥ ३४ ॥ एवं च वजियावज्जपव्वजविहाणमब्भुजओ पडिवण्णसंजमुजोयणिज्जियासेससहपरीसहो, पम्मुक्कासेसभूसणो वि सच्चरियविहसणो, विसज्जियासेसवसणो. वि वासवणिहित्तेकंडंसपहोलन्तवसणो, विमुक्कतुरंगसाहणो वि दमियदुट्टिदियासो, सिढिलियकरिवरसमूहो वि मत्तगइंदगमणो, गामाणुगामोवलक्खियं वसुमई विहरि पयत्तो। ताव य अण्णदियहम्मि समागंतूण ईसिपरिणयवओ एको रोरखंभणो पणामं काऊण भणिउं पयत्तो एयं । जहा"भो भयवं ! महं मंदभायस्स परं पत्थमाणस्स जम्मो चिर्य समइच्छिओ, जेण गरुयदारिद्दोबदवियदेहेण पुलइयाई पत्थणाभंगकयकसिणिमाकलंकियाइं परमुहाई, जंपियाई कंठब्भन्तरखलन्तक्खरगग्गयक्खराइं दीणवयणाई, णिसुयाई कयइत्ययालहरिसट्टहासगभिणाइंधणइत्तयखलजंपियाई,पडिच्छिओ सी-उण्हाहएण बाहिरे चेव परघरदुवारपवेसावसरो,लल्लइय किलन्तकुटुम्बकजम्मि परजणस्स त्ति । किं बहुणा ? जाव अहं परपत्थणाणिमित्तम्मि चेय परविसयं पत्थिओ ताव य भयवया वि दिण्णं महादाणं । कहं चिय? केसि पि पउर-पट्टण-गामा-ऽऽयर-सारपउरभंडारा । दिजन्ति दरियदारिहरुंदसंदोहविद्दवणा ॥ ३५॥ अण्णाणं पुण मयगंधलुद्धबद्धालिबहलहलबोला । मय-भद्द-मंद-संकिण्णरूविणो करिवरुग्धाया ॥३६॥ काण वि तोक्खार-तुरुक्क-पवरकंबोयजाइणो तुरया । दिण्णा मणि-रयणसणाहकणयपल्लाणसंजुत्ता ॥ ३७॥ काणं पिचडुलखुरखयखमायलुद्धन्ततुरयसंजुत्ता । दिजति जच्चकंचणसमुज्जला संदणणिहाया ॥ ३८॥ केसि पि विविहमणि-रयण-कणयसंपत्तिजणियसोक्खेण । णवधणसमएणं पिव तुमए तण्डा परिच्छिण्णा ॥ ३९॥ मह पुण पुचि कयदुकयकम्मवसयस्स दूरदेसाओ । गेहागयस्स सीसइ सचरियं तुम्ह णरणाह !" ॥ ४०॥ इय एरिसेहिं णिन्भरतण्हावसपसरपलहुभणिएहिं । जयगुरुपुरओ रुण्णं व दीणविमणं भयंतेण ॥ ४१ ॥ तो भयवया सोऊण तं तारिसं तस्स जंपियं अञ्चन्तकारुण्णयावण्णचित्तेण भणियं जहा-देवाणुप्पिया ! परिचत्तसयलसंगो हं संपयं, तुमं च दारिद्दोबद्दुओ, ता इमस्स मज्झंऽसावसत्तवासस्स अद्धं घेत्तूण गच्छसु ति । तो तमायण्णिऊण हरिसिओ बंभणो । अणुट्टियं जं भयवया भणियं । गओ णिययगेहाभिमुहं । दंसियं च तं वासद्धं तेण तुण्णवायस्स। भणिओ य तुण्णवाएणं बंभणो जहा-तं पि बीयं अद्धं तस्स महामुणिणो णिरीहत्तणओ पंवणाहयं वा सरीराओ अवेहिइ, कंटयजालीसु वा विहरमाणस्स लम्गिही, ता तं पि घेत्तूण आगच्छसु, जेणाई तुह पुणण्णवं काऊण उप्पेमि । एवं भणिए १ 'खउल्ल सू । २ वासोयुयं, में सू । ३ माणवरकि जे । ४ पय जे । ५ ईसप सू । ६ चेव सू । . रा परजणस्स त्ति । कि बहुणा जे । ८ तुमाए सू। ९ पवणयं स्। Jain Education Interional Page #357 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७४ चटप्पममहापुरिसचरिय। गओसो बंभणो । मग्गाणुलग्गो य ताव परिहिंडिओ जाव भयवं संपत्तो सुवण्णवालियं णाम णिण्णयं । तहिं च परिसकन्तस्स भयवओ वलग्गं कंटयाहिछियदुमम्मि । अणवेखिऊण गओ तप्पएसाओ भयवं । तओ बंभणेग चिन्तियं-अहो ! पेच्छ महच्छरियमेयं इमस्स ववसियं, अहवा जस्स णियसरीरे वि अलुद्धया तस्स किमण्णेण गण(गणण)ति । चिंतिऊण तप्पएसाओ वोलीणस्स भयचओ गहियं तं तेण । समप्पियं तुण्णवायस्स । तेणे वि तहा संधियं जहा पुणण्णवं संजायं । समपियं भणस्स । तं च तारिसं दह्ण हरिसिओ बम्भणो। तओ गंतूणं णंदिवद्धणस्स भयवओ भाउणो 'रयणाण भायणं' ति कलिऊण सैमोप्पियं । तेणावि राइणा महया अत्थसमुदएणं पूइओ बंभणो ति । इय धणविरहिओ वि लोयणाहो, तं विप्पं पंवरधणेण दिण्णतोसं । काऊणं विहरइ णिच्छिओ महप्पा, किं चोज ? सयलजणोवयारिणो हु धीरा ॥ ४२ ॥ इति बंभणवत्थदाणो णाम पत्थावो [१]॥ अण्णया य भयवं परिममन्तो पत्तो कम्मारगामंतियं । तत्थ य णाइदूरपरिसंठियस्स णग्गोहपायवस्स हेडओ संठिओ पडिमाए । तत्थ य सयलविण्णाणविणयबाहिरमती संपत्तो एको गोवालमुक्खो बइल्ले घेत्तूण । भयवंतमुद्दिसिऊण भणिउं पयत्तो जहा-भो देवज्जय ! जावाहमण्णे बइल्ले घेत्तूगमागच्छामि ताव तुमे इमे बइल्ला दडव्व त्ति । भणिऊण गओ जहासमीहियं । तओ पहायप्पायाए रयणीए तहटियस्स चेव भयवओ समागओ । अपेच्छमाणो बइल्ले भणिउं पयत्तो जहा-भो देवज्जय ! जे मए तुम्ह समप्पिया बइल्ला ते साहसु कह(हिं) ? ति । पुणो वि पुच्छमाणस्स जाहे भयवं ण जंपति ताहे अविवेयबहुलत्तणओ चिन्तिउं पयत्तो-ण्णमेएणं चेव कत्थइ शूमिया भविस्संति त्ति । पुणो वि खरफरुसवयणेहि भणिउं पयत्तो, कहं ? उप्पेऊणं तुम्हाण णासयं पत्थिओ म्हि कज्जेण । णमंतेग तए तं खु गुण गरहीको अप्पा ॥ ४३ ।। जीयं पि पणंति परस्स झत्ति णिक्खेवयं खु रक्खन्ता । अह सजणाण पयई, तइ पुण विवरीयमायरियं ॥ ४४ ॥ ता साहस सिग्घं एत्थ बहविहं किं महा पलत्तेण? | अण्णह खमामिणो तह इय विवरीयं कृणन्तस्स ॥४५॥ इय तं गुरुकोबकरालियाणणं हंतुमुज्जयमतीयं । सक्को समागओ तत्थ तं कलेऊण सिग्घयरं ।। ४६ ॥ तओ सक्कविमुक्कहुंकारपलाणस्स गोवालयस्स भणिउं पयत्तो पुरंदरो जहा-भयवं ! अज वि दुवालस संवच्छरं जाव तुम्ह गुरुआ उवसग्गा भविस्संति, ता जइ तुम्हे समाइसह ता अहं तेसिं पडिप्फलणं करेमि ति । एत्थावसरम्मि य ओसारेऊण काउस्सगं भणियं भयवया जहा-देवाणुप्पिया ! ण कयाइ भूयपुव्वं ण य होही एत्थ भुवणमज्झम्मि । जं परबले णिसण्णस्स केवलं होइ केवलिणो॥४७॥ संजणियमप्पण चेयमप्पणा इंति सत्तिसंजुत्ता। णिद्दलइ सँई चिय दिणयरो वि णिसिसंचियं तिमिरं ।। ४८॥ णियसत्तिबलेणं चिय जयंति जइणो महातवोकम्मे । जइ उवउज्जइ अण्णो वि तत्थ ता तेण किं व कयं ॥ ४९ ।। जो जं भारं ण तरइ उव्वोढुं सत्तहीणयाए गरो । अविहाविउं बलं णियतणुम्मि कि तस्स भारेण ? ॥ ५० ॥ सुर-णर-तिरियसमुत्थाण सयलविग्धाण उड्डिऊणंगं । दुक्करतवचरणं काउमुज्जया साहुणो भुवणे ॥ ५१ ।। सक्क ! समस्थो सि तुमं णिवौरियं बहुविहाइं विग्याइं । किंतु ण कम्मोवसमो जायइ अण्णस्स णिस्साए ॥ ५२ ॥ इय एवं बहुविहजंपिएहिं पञ्चाइऊण मुरणाहं । अइदुद्धरदुसहतवोविहाणमभुजओ भयवं ॥ ५३॥ तेणावि जे। २ समप्पियं जे । ३ धणरहिओ जे । । परमध जे । ५ जोवं जे। ६ वुण सू । ७ गरुभोवसग्गा जे। • सय जे । ५ उववज्जइ जे । १. सत्तिही जे । ११ ओडिऊ जे । १२ निवारयितुम् । १३ गीताए । Page #358 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४ वद्धमाणसामिचरियं । २७५ तओ सुराहिवेणावि भयवाओ चेव. माउभइणीए तणो कयबालतवविसेसो वंतरसुरेसु समुप्पण्णो सिद्धत्यो णाम भणिओ जहा-जे दिव्वाइणो गरुओवसग्गा संभवन्ति ते तुमए पेडिफलियव्व त्ति । भणिऊण गओ सुरक्ती सत्थामं । तओ सो सिद्धत्थो सक्काएससंजणियगारवग्यविओ णिययसंबंधसंभूयणेहाइसओ य कायरहियओ व्व भगवओ तणुम्मि समल्लीणो। जत्थ जत्थ भयवं अहाविहारं विहरइ तर्हि तर्हि निययाणुहावोवसामिज्जन्तोवसम्गविसेसो चिट्ठति । [बलिवद्ददायगमुक्खगोवालपत्थावो २] भयवं पि पहायाए जामिणीए चलिओ तयंतियाओ। गामाणुगामं गच्छमाणो संपत्तो बहुलाहिहाणं सण्णिवेसं । तत्यऽट्ठियकाणणम्मि महाययणे संठिओ पडिमाए । तहिं चाणेयसचसंघायघायणकारी अहिओ णाम णायराया परिवसइ । तेण य अणेयसत्तन्तयारिणा जणवयाराहणाणुवरोहेण भणियं-जे मह दंसणविवण्णा पाणिणों तेर्सि सयलै [हि]संचतेण मह आययणं विहेह त्ति । सो य अहिओ भुयंगाहिवई पडिमौवगयं भयवंतं कलिऊण रोसवसविर्णितविसजलणजालाकरालिदियन्तरालो विप्फुरियफारफुकारपवणगज्जन्तकाणणाहोओ उवद्दविउं पयत्तो। कहं ? सयलंगावेढणगाढजणियसंरोहवड्ढियप्पसरो। सम्मुहणिहित्तणयणन्तणेन्तविसजलणजालोहो ॥५४॥ विप्फुरियतुंडमंडलपयंडपक्खित्तफारफुक्कारो । तडवियफणासयजणियभीसणायारदुप्पेच्छो॥५५॥ सिरमणिकिरणकणुक्केरसवलियंबरधरायलद्धंतो । वयणन्तरपरितरलुल्लसन्तजीहाकरालिल्लो॥५६॥ इय दसणवणंकियसयलदेहसंजणियवयणवित्थारो । असुहकयकम्मपरिणइभरो व्व सच्छंदमोत्थरइ ॥ ५७॥ एवं च तिव्वोवसग्गपरंपराखलीकयस्स भुवणगुरुणो सुट्ट्यरं वियंभिओ सुहपरिणामो। पहायप्पायाए य जामिणीए तहटियस्सेव ईसीसि समागया णिद्दा । दसमुविणयदसणपणहणिहाविसेसस्स य पहाया रयणी। उम्गओ किरणमाली। [अट्टियणायराओवसग्गपत्थावो ३] एत्थावसरम्मि य पासयंदतिस्थाहिवइतित्यपडिवण्णामण्णो उप्पलो णाम महरिसी भयवओ वंदणस्थमागओ। वंदिऊण य जहाविहिं णिसण्णो भयवोचलणजुयलंतिए । तओ भगवओ काउस्सग्गावसाणम्मि पुणरवि वंदिऊण एवं भणिओ जहा-"सामि ! तुम्हेहि अंतिमराईए दस सुविणया दिहा तेसि महुरहा)फलं ति । जो तालपिसाओ निहओ तुमए तमचिरेण मोहणीयमुम्मूलेहिसि । जो य सेयसउणो तं मुक्कज्झाणं झाहिसि त्ति । जो विचित्तसउणो तं दुवालसंग पण्णवेहिसि । गोवग्गफलं च ते उ(च)उव्विहो समण-समणीपभितिसंघो भविस्सइ । पउमसरो य चउन्विहो देवसंघाओ। जं च सागरं तिण्णो तं संसारमुत्तरिहिसि । जो सूरो तमचिरेण केवलनाणं ते उप्पज्जिही । जं च अंतेहि माणुसोत्तरो वेढिओं दिवो तं ते निम्मलजस-कित्ति-पयावा सयलतिहुयणे भविस्संति । जं च मंदरमारूढो सि तं सीहासणत्थो सदेव-मणुयाऽसुराए परिसाए धम्मं पण्णवेहिसि ति । दामदुगं पुण ण याणामि"। तओ सामिणा भणियं-हे उप्पल ! जं गं तुमं ण १ पडिखलि जे । २ लट्ठियिसंचयं विहेह सू । ३ फुकारो सू । ४ सावष्णो सू । ५ इस्तद्वयान्तर्गतपाठस्थाचे सूपुस्तके एतायः पाठ उपलभ्यते-"चलणजुपलम्मि । तमो भयवया काउस्सग्गावसाणम्मि समालत्तो जहोइयं, साहिओ णिययमुषिणयं, लंभो, बुज्ज्ञसे एयाग किं फलं ! ति । वेण भणियं-किमेत्य बुझियव्वं ? साइन्ति इमे सयलतेलोकपरमेसरियन्ति । अच्छिऊण य किंचि वेसं जहागवं पटिनो सो मुणों" । Page #359 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । चउप्पनमहापुरिसचरियं । याणसि तमहं कहेमि-दुविहं सागारा-ऽणगारियं धम्मं पण्णवेहामि चि। तो आउ(?)च्छिऊण कंचि वेलं जहागयं पडिगओ उप्पलो। छ [उप्पलपत्यावो ४] भयवं पि तप्पएसाओ चलिओ जहाविर्हि संपत्तो मूलागं णाम सण्णिवेसं । तहिं च संठिओ एकम्मि उज्जाणवगम्मि । तओ भयवन्तागमणमुणियवइयरेण य जणसमूहेण वंदणाइणा पूइओ जयगुरू । पज्जुवासिउं च पयत्तो जणो। तं च भयवओ समीवं जणसमूहं गच्छन्तं पलोएऊण अच्छंदओ णाम पासंडो वियप्पेइ-किमेस लोओ में उज्झिऊण एयस्स समुहं गच्छइ ? ति, ता अवणेमि एयस्स गंतूण जइत्तणाहिमाणं । ति चिंतिऊण गओ जत्थ भयवं जणसमूहोवसेविजमाणपयपंकओ चिट्ठति ति । गंतूण य घेत्तूण पाणिमुट्ठीए तणं भयवओ दंसिऊण भणिउं पयत्तो-भो ! किमेयं तणं 'छिज्जिही उवाहु ण व? त्ति । एत्थावसरम्मि य भयवओ तणुम्मि समल्लीणसिद्धत्थेग जंपियं-गो इमं छिज्जइ त्ति। तओतप्पभावाओ संजायकढिणभावं तं तणं इओ तओ विमद्दमाणेण अच्छंदएणं जाहे मगयं पि भंजिउं ण तिण्णं वाहे संजायवेलक्खभावो सयलजणोवहसिज्जमाणो गओ तप्पएसाओ । [अच्छंदकपत्थावो ५] भगवं पि तप्पएसाओ संपत्थिओ । अहासुहं विहरमाणो गओ अणेयेवणसंडमंडियं वगंतरालं ति । तं च केरिसं ?णियफलसमूहसंपत्तिपत्तसउणयणजणियतोसिल्लं । णच्चइ व पवणधुयसाहुलीचलुव्वेल्लभुयवलयं ॥ ५८ ॥ आहासइ व्य फलतुद्वसउणसंजणियबहलबोलेण । सहसा संपत्थियपंथियाण संदोहमगवरयं ॥ ५९॥ अभुट्टह व्व समुहुल्लसन्तहल्लन्तपल्लवोहेण । उग्गायइ व्य मणहरपम्यपरिलेन्तभमरगणं ॥ ६॥ इय तं जयगुरुदंसणसविसेसवियम्भमाणभत्तिभरं । भणइ व सागयं तसियविविहसावयसमूहेण ॥ ६१॥ # एवंविहं च वणगहणं लंघिऊण संपत्तो विसदवाणलणिद्दड्ढपविरलोवलक्खिजमाणत्थाणुमेत्तपायवं वणयरपरिचत्तविहाराहारत्थसंचरणं णकयणिग्गम-पवेसं अणवरयसंधुक्किउद्धृमायमाणदीसन्तसयलदियंतरालं, अवि यकुणरिदं पिव दूरपरिच्छूढसउणसत्थं, मूयल्लयसरूवं पिव पणवाणियं, कुमयमग्गं पित्र दूरविवलाणसावयगणं, दिट्ठीविसणयणसिहिसिहाकरालियमेक्कं भूमिप्पएसं । तस्स मज्झप्पएसम्मि पलोइयमच्चुच्चसंठाणं वम्मीयसिहरं। तं च तारिस भयवया दठ्ठण 'अहो ! णिज्जंतुओ पएसो' ति भाविऊण संठिओ तत्थ पडिमाए। १ अच्छंदो सू । २ छिचिहिति उयाहु जे । ३ तप्पहावओ जे । ४ यदुमसंड जे। ५ 'हुलीयलम्वेलचुय जे । भणिय च सू। ७ हस्तद्वयान्तर्गतः पाठो जेपुस्तके नास्ति । Page #360 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७७ ५४ वद्धमाणसामिचरियं । तहिं च वणंतराले अण्णभवन्तरम्मि चंडकोसिओ णामाऽऽसि लोईओ रिसी। सोय कोववेसयत्तणओ रोदज्झाणोवगयमाणसो कालं काऊण समुप्पण्णो तम्मि रण्णम्मि दिट्ठीविसो महोरओ। तत्थ वि अइचंडकम्मत्तणओ लोयपसिद्धि गओ चंडकोसिओ ति। तेणमहिट्टियं वणन्तुरालं सयलसत्तसंभोयवज्जियं च संजायं ति। णवरि यसो भयवं तं] पडिमौसंठियं पलोएऊण अचन्तकूरपयइत्तणओ 'किल णिहहेमि' ति कप्पिऊण विणिन्तविससिहिसिहाभामुरच्छिविच्छोहं णियच्छिउं पयत्तो, कह ? अह णिग्गंतुं भूमंदिराउ भीमयरभोगपन्भारो। भुयइंदो दंडट्ठियमउलियफणमंडलायारो॥६२ ॥ पज्जलियाणलकणसबलणितणीसासखित्तवाहिहरो । अन्तोपरियढियफुरियफारफुकारसंसदो ॥ ६३॥ पेरन्तविणितच्छिच्छडप्पहाविजियहा(? भा)णुपहपसरो। अलिउल-कु[वलदल-तमालकसणदेहा विहाइल्लो ॥ ६४॥ 'अहमेव एत्थ तेयत्तणेण पयरिसमणोवमं पत्तो। ता तं किं मज्झोवरि परिडिओ ? ' इय कलेऊण ॥६५॥ वम्मीयविवरगहिरंतराउ उद्धाविऊण गयणम्मि । परिसंठिओ विमंडलकुंडलियायारभोयभरो ।। ६६॥ सरलपरियत्ततणुवलयवयणपसरन्ततरलजीहालो । उच्चत्तणेण लहुइयपसरं हसइ व्व तालतरुं ॥६७॥ तो उम्मिल्लइ पुरओ जयगुरुणो पज्जलन्तणयणजुयं । णिदहणमणो णिद्दड्ढपउरपावस्स भुव(? य)इंदो ॥६८॥ तो सा दिट्ठी विप्फुरियविसकणुक्केरजलणजालिल्ला। विज्जु व कणयगिरिकंदरम्मि गंतुं पडिप्फलिया ॥ ६९ ।। दिटिप्पहाहि विप्फुरियजरढरविकिरणविन्भमाहिं जिणो । दढकणयरज्जुसंदाणिउ व्व सकज्झओ सहइ ॥७० ।। इय सा दिट्ठी दिट्ठीविसस्स गुरुरोसपसरपंक्खित्ता। ण समत्था जयगुरुगो णिदहिउँ रोममेत्तं पि ।। ७१।। तओ सा दिट्ठी दिट्ठीविसपेसिया भयवओ विणिग्गयसीयलेसाणुहावपडिप्फलियमाहप्पा णिरत्थया संजाया। तओ पडिफलियं णिययदिटिप्पहावं पेच्छिऊण भुयंगमो रोसवसविणिन्तफुकारविसजलणजालाकरालवयणो कवलणमणो पहाविओ भयवओ समुहं, डसिउंच पयत्तो जयगुरुं । अणवरयडसणुजओं वि जाहे ण भयवओ मणयं पि कि पि पीडं उप्पाएउं समत्यो, तओ तं तारिसं विमुक्कासेसविसविसेसं पेक्खिऊण भयवया भणियं-"भो चंडकोसिय ! ण सुमरसि तं 'इओ तइयभवम्मि तुम इरियावहसोहणणिमित्तं [खुड्डेण] चोइओ पहाविओ कोवेण तस्स चेव बहणत्यं, णिवडिऊण मओ समाणो उबवण्णो तावसासमम्मि । तत्थ परियढिओ समाणो कालगयस्स कुलवइणो तुमं चेव कुलवती संवुत्तो। तत्थ य समिहाणिमित्तं गयस्स रणम्मि कोकारणाओ चेव परसु उण्णामेऊण पहाविओ पेक्खुलिउं पडमाणो परियत्तिउं णिययपरसुणा चेव विणिवाइओ। तो विवण्णो संजाओ इह भुयंगमत्तणेण' । ता अन्ज वि को कीस कारणा समुन्वहसि ? ति। ता भाविऊणेवं सिढिलेसु कोवं, कोवो हि" माण विग्धभूओ सुहसंपयाणं, अणत्यो अस्थसत्थसंभवाणं, पडिकूलो कल्लाणसंपत्तीए, पडिवक्खो मुहविवेयस्स, पडिमल्लो कुसलाणुटाणस्स, णिद्दलणो सिणेहसंतईए, मूलमविवेयतरुणो, जणओ दुग्गइवेंडणस्स त्ति, अवि य-- गुरुकोवजलणजालाकलावसविसेसकवलियविवेओ। ण वियाणइ अप्पाणं परं व परमस्थओ "लोभो ।। ७२॥ कोववसओ हु पुरिसो अप्पाणं चिय डहेइ पढमयरं । जत्थुप्पण्णो तं चेय इंधणं धूमकेउ व्व ॥७३॥ सो किं व कुणउ अण्णस्स पेसिओ खीणसत्तिसंजाओ। जो णिययासमं णिड्डहेइ कोवो तुमं व फुडं ? ॥७४॥ इय' कोवेणं सयले जयम्मि जे जंतुणो समहिहूया । इह परलोए वि णराण ताण ण हु होति सोक्खाई ।। ७५ ॥ अण्णं च एएण अहिहूया जंतुणो ण गणंति परंण अप्पयं, ण सोक्खं ण दुक्खं, ण आवयं ण संपयं, ण हियं णाहियं, ण सुंदरं ण मंगुलं, ण जीवियं ण मरणं ति। सबहा तं तहा समायरन्ति जेणागाहदुत्तरे णिवडंति भवसमुद्दे त्ति । ता मुमरिऊण १ लोइयरिसी सू । २ वसत्त सू । ३ च जायं सू । ४ 'माए सं जे । ५ 'रच्छिविच्छोह णियंतो । तो सा दिट्ठी दिट्ठीविसस्स जे, (७० गाथा)। ६ 'ओ समीवं । ड जे । . °य सुम' जे । ८ कालकयस्स स । ९ पक्खलिलं जे । १. यत्तिऊण जे । ११ हि गाविहिग्धहभो (2) मुंजे । १२ अस्थसम सू। १३ संपत्तीणं जे । १४ मूल वेरतणु(क)णो सू। १५ वयणस्स स्। १६ पुरिसो जे । १. संजोभो सू। १८ मासयं जे । १९ कोवेण इमेण(गं) जसू । Page #361 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७८ चउम्पन्नमहापुरिसचरि। तं पुच्चभवसंजणियकोवविवायफलं, भाविऊण णिरत्थीकयं तमइदुक्करं तयोविहाणं उज्झसु कोक्पयई, मा गच्छमु इंधणतणं गरयदुक्खग्गीणं" ति । एयारिसं च णिसामिऊण भयवओं भणियं भुयंगमरस समुम्मिल्लो विवेओ, समुल्लसिओ चित्तोवसमो। तओ पणामपुव्वयं समल्लीणो भयवओ पयपंकयसमीवं । पयइकराला वि पसण्णभावमुरगया दिट्ठी। णिदिउ च पयत्तो अप्पाणं-घिरत्थु मह कूरकम्मुणी जम्मेणं, जेण पंहूयकालावज्जियं पि तं तारिसं दुकरं तवोविसेसं पणासिऊण कोववसत्तणओ इमं एयारिसं अञ्चन्तकूरपयइणं अब्भुववण्णो मि त्ति । एवं च संविग्गो चित्ते होऊण, णिदिऊण अप्पमो विलसियं ति, काऊण अणसणं जहाविहिं, कालं काऊण समुप्पण्णो भोगभूमीए त्ति । चंडकोसिओवसमं णाम [६] तो तप्पएसाओ भयवं वद्धमाणसामी उवसामिऊण चंडकोसियं पयट्टो सयलसत्तबोइकारी वसुंधरं विहरि । विविहुग्गतवविसेसाऽसेसणासिज्जमाणासुहकम्मो संपत्तो विविहतरंगभंगुरं गंगामहाणई। [सा] च पयत्तो ? य के रिसा)तडपायवपरूढवियडुम्मडणिवडियकुसुमराहिय? हारियं), मजिरवणकरिंदकरघायसमुच्छलियुद्धलहरियं । सबरपुरंधितीरपरियप्पियणयणलयाहरिल्लियं, अविरयसज्जमाणणिच्चुज्जलजलवयमणहरिल्लियं ॥७६॥ जलकयसरंगभंगुरपसरियतरलुच्छलन्तसतुसारं । मंदाइणी जयगुरू संपत्तो पउर दुत्तरा(र)गाजलं ।। ७७॥ अवि यतीरट्टियवणगयदन्तकोडिविणिवाडिउन्भडतडोहं । तडविवरविणिग्गयलम्बमाणवेल्लन्तभुयइंदं ॥७८॥ भुयइंदलोलजीहग्गफंसविलिहिज्जमाणजलणिवहं । जलणिवहछिण्णमूलोवडन्ततडविडवपडिबद्धं ॥ ७९ ॥ पडिबद्धलहरिसंघदृघट्टवोसट्टसेयडिण्डीरं । डिण्डीरपिंडपंडुरसविसेसपयासियगुणोहं ॥ ८॥ इय जयगुरुदंसणवद्धमाणपहरिसवियासपडहच्छं । अग्धं व देइ पवणुच्छलन्तलहरीनुसारेहि ॥ ८१ ॥ तओ तं अणोरपारं पलोयमाणस्स भुवणगुरुणो परतीरुत्तारणणिमित्तम्मि समागया णावा तमुद्देसं । समारुहिउँ पयत्तो परतीरगामी जणो। भयवं पि तेणेयं समयं समारूढो णावाए । पवाहिया णाचा. जलंतियं । वाहियाइं अवल्लयाई। गंतुं पयत्ता णावा । एत्यावसरम्मि य पुष्वजम्मंतराबद्धवेरो तिविठ्ठणो पडिसत्तू आसग्गीवजीवो तहाविहकम्मवसगओ समुप्पण्णो णागगोत्तम्मि सुदाढो णाम भुयइंदो अवहिप्पओएण णोऊण भयवंतं णावापरिसंठियं वियम्भियकोवत्तणओ समागंतूण मायापओएण पक्खोहियं महाणदीसलिलं । उच्छलिओ महल्लवीइसंघाओ। भीमा संठिया महाणदी। केरिसा य? मारुयपणोल्लिउव्वेल्लिवीलिविसमुच्छलन्तणीरोहा । णीरोहतडंतुटुंतवेयखिप्पन्तचलमच्छा ॥ ८२ ।। मच्छपरिहच्छवलणुच्छलन्तपुंछच्छडाहयजलोहा । झसरोसणिव्वरप्पहरपहयजलतरलियतरंगा ॥ ८३॥ तरलियतरंगसंगयकारंडुड्डन्तखुहियचकाया। चक्कायजणियहलबोलबहलकंपंतबहुविहगा ।। ८४॥ इय जणियभितरगहिरणीरपक्खोहखुहियकल्लोला। गंगाणदी समुन्भडभीमा संजणइ भुयइंदो॥८५॥ १ चित्तविवेओ । तओ जे । २ बहुयका जे । ३ म[प]यइत्तणो जे । १ तणतणुं अजे। ५ गई । सा य-अह जयगुरुदं जे, (८० गाथा)। ६ 'य समा जे । ७ आवलाई जे । ८ भुवइंदो सू। ९ वियाणिऊण जे। १० हस्तद्वयान्तर्गतः पाठोजे पुस्तके नास्ति । Page #362 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४ वद्धमाणसामि चरियं । २७९ ऐत्थावसरम्मि य समाउलीहूओ णावाजणो, विसंण्णा णिज्जामइल्ला 'असंजाय पुत्रं किमेयं ?" ति चिंतिउं पैयता । सो वि दाढो पुत्रभवपविद्धामरिसविसंठुलो हंतुमुज्जओ सयलं पि णावाजणं । तओ तं तारिसं पलोएऊण भयवया कयकरुणापहाणचित्तेण चिंतियं - पेच्छ, मह निमित्तसंजणिओ एयाणं पि खलीकारो । एत्थावसरम्मि य सुदादेण जलंतराओ विणिग्गयवियडकरसंपुडेण उप्पाडिया महाणदीमज्झाओ णावा । तं च तारिसं दट्ठूण 'परित्तायह परिचायह' त्ति समुच्छfor ererrat | raft य जयगुरुप्पहावओ तं तारिसं नियच्छिऊण कम्बल - संबैला हिहाणेहिं समागतूण भिओ सो उववो । उत्तारिया जहिच्छियं कूलं णावा । णमिओ तेहिं पयडीहोऊग भयवं । तं च दट्ठूण संजाओ लोयस्स विम्हओ । भणिउं पयतो - अहो ! कोइ अमाणुसप्पहावो मुगी, एयस्स पभावओ अम्हे समुन्दरिया । पुणो पुणो भगमाणा णिवडिया जयगुरुणो पायकमलेसुं । कंबल-संबैला विपणमिऊग सह जगसमूहेग गया जहोचियं ठाणं । अह पुत्रवेरसंभरणकोवपडिहयपयावपसरम्मि । विगयम्मि खुदादे सयललोयसंजणियचोज्जम्मि ॥ ८६ ॥ पडिबोर्हेतो भवभीयभव्वकमलायरे तिलोयगुरू । अभणतो वि हु अइसयवसेण विहरइ धरावेढं ॥ ८७ ॥ इय दाढइंदोवसग्गविहाणोवसमं णाम [७] ॥ तओ भयवं पि तयंतियाओ अहाणुकमेणं विहरमाणो संपतो जलतरलतरंगो वसोहियं वरंगं णाम णिण्णयं । तीसे य तीरप्प सेणं सुकुमारवाल्यावडोवरिं फासूयवएसपरियप्पाए पयाई गिय तो गंतुं पयत्तो । णवरि य समुम्मिलंतचकंकुस -कुलिसलक्खणं पयपन्तिं पलोइऊण पूसो णाम सामुद्दलक्खणग्णुओ चिंतिउं पयत्तो-अहो ! महच्छरियमेयं, जेण पेच्छ चक्कवट्टिलंछणा पयपन्ती कस्सरे पयाइण (णो ) दीसर, ता महंतमेत्थ कोउहल्ले, अहवा किमेत्थ चोज्जं ?, कस्स वा विसमदसापरिणईण होइ ? । त्ति चिंतिऊण 'पेच्छामि णं महाणुभाव' पयानुसारेण लग्गो पयमग्गे । 'अवस्सं इमम्मि महाणुभावे दिट्ठमि मह संपज्जइ सयलस्थसंसिद्धि' त्ति तहेवाणुट्ठियं । कइवयपयन्तरम्मि य दिट्ठो भयवं असोयतरुणो हे ओ संठिओ डिमाए । दट्ट्ठूणं च भयवओ तेंगुसरूवं चिन्तिउं पयतो-ण केवल मिस्स चलणेसु लक्खणं, सरीरं पि पवरसिरिवच्छलछणमुवलक्खिज्जइत्ति, ता एयारिसा पत्ररलक्खगसंपया, वासोमेत्तं पि से ण संपज्जइ, ता किं लक्खणाणि वा वितहा ?, वाहु लक्खणसत्थमलियं ?, ता धिरत्थु मह परिस्समस्स, जेण मायन्हियाए मुद्धहरिणो विव विडिओ लक्खसत्यपंजियार, अण्णह कहिमेसा भरहाहिवतणुफला समत्तलक्खणसंपत्ती ?, कहिं वा असंपज्जन्तभिक्खाभोयणकिसा एयस्स तणू ? । एयं च अत्तणो निंदापरं पूससामुद्दे "वियाणिऊण पुरंदरेण भणियं - भो भो सामुद! ण सम्ममहिगयं तुमे सामुद्द, जेण मुव्वउ it चकवट्टो लंछणाणमलियत्तणं वियप्पेसु । धम्मवरचकट्टि त्ति कह तुमेण मुणिओ भयवं ? ॥ ८८ ॥ भरहावित्तणं. जाई चक्किणो लक्खणाई सार्हेति । ताइं चिय मुहि ! सार्हेति धम्मच कित्तामुयारं ॥ ८९ ॥ कूरत्तणफलं णमेकमण्णं सुहष्फलं जाण । एत्तियमेत्तो एयाणमेत्थ पयडो पर विसेसो ॥ ९० ॥ इय मा गच्छ विसायं 'लक्खणमलिये' ति साहियं सत्ये । 'अचग्गलो गुणेहिं इयराओ धम्मवरचकी' ॥ ९१ ॥ ४सबल। सूं । ५ उवरिया सू । सबला सू । ७ भयभी सू । ८ धरावीढं जे । ९इ पयाण नदीए दीसह जे । १० सरूवं सू । १ एत्यंतरम्मि समा जे । २ विषण्णो गिज्जामभो 'असं' जे । ३ पयत्तो जे । ११ उमाहु जे । १२ विमारिण सू । Page #363 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८० चउप्पन्नमहापुरिसरिय। एवमादि बहुप्पयारं भयंतेणं पञ्चाइओ पूससामुद्दो। बहुधण-धण्ण-कणयसमूहेणं च वोच्छिण्णतहाऽऽसो काउं भणिओ य-तुममेयपरियप्पणाए समागओ जहा 'इमम्मि महाणुहावे पलोइयम्मि संपजिहिन्ति मे मणोरहा', पुणो एयस्स सरूवमवलोइऊण विसायमन्भुववण्णो सित्ति, ता भुवणगुरुणो पायपसुपरिमोसो विसत्ताण पुंसइ दारिदोवदवं, किं पुण दंसणं ?। ति भणिऊण तिरोहिओ पुरंदरो। पणइमह विहेउं दिट्ठसिट्ठाणुहावो, सुरवइधणदाणुप्पण्णपज्जत्तभावो । रहसवसविसट्टुच्चुद्धरोमंचसोहो, णियअवसहिहुत्तं जाइ पूसो विमोहो ॥ ९२ ॥ पूस-पुरंदरसंवाओ णाम [८] ॥ भयवं पि तेओ परसाओ जहक्कम विहरमाणो संपत्तोरायगिहं । तत्थ णागलंदणामाए पुरबाहिरियाए एक्कन्ते पेच्छिऊणमेकं आवायपरिवज्जियं वसहि संठिओ सव्वराइयं पडिमं । पहायसमयम्मि य मासक्खमणपारणयम्मि पौरिओ जयमंदिरम्मि विचित्तं भोयणं । 'अहो ! दाणं' ति भणमाणेहिं पमुक्का देवेहि हिरण्णवुट्ठी । पुणो अण्णयरपारणयम्मि णंदणणामधेयस्स गेहम्मि मासाओ चेय पारियं । तहिं पि तहेव सुरवरेहिं तस्स को सकारो। एवं च सयलजणपरंपरापूइज्जमाणं भयवन्तं दद्रूण गोसालो णाम पूयाहिलासी समागंतूण भयवओ सीसत्तणमुवगओ। भयवं पि अणुप्पण्ण केवलणाणो वि 'भव्वबीयमिहत्थि' त्ति अणुवत्तिमभुववण्णो । तओ जं जं तवोविहाणं भयवं आयरइ तमेसो वि । ण उणो तस्स तारिसं फलं ति । किं कारणं ? अइदुक्करतवकरणे वि णेय तं तारिसं फलं तस्स । भावविमुद्धीए विणा जो हु तवो सो छुहामारो ॥ ९३॥ जस्स ण सद्धा भत्ति व्य परयणे चित्तमुद्धया णेय । बहवं पि किलिस्संतस्स तस्स तं जायइ णिरत्थं ॥ ९४॥ जो पूया-सकाराइ-दाण-सम्माण-कित्तिकलणाए । कीरइ तवो ण सो होइ तस्स व्वाणपज्जन्तो ॥ ९५ ॥ इय सो जयगुरुकीरन्तपूय-सकारजणियतल्लिच्छो । तह विण सो तं पावइ अओ पहाणा मणविसोही ॥९६॥ एवं च तेण तिव्योववाससोसियतणुणा पारणयवारयम्मि एक्कया जयगुरू आगंतूण पुच्छिओ-देवजय ! किं मए अज भोत्तव्वं ? ति । सिद्धत्थो भणइ-आरणालेण कोद्दवोयणं ति । तओ एयं तह च्चेय संजायं ति। तो भयवं अण्णया गओ कोल्लागसण्णिवेसं । तहिं च गोसालेण गोवाले पायसपसाइणुज्जए दळूण पुच्छिओ जयगुरू-भयवं ! किमेत्थ मज्झं पायसलंभो भविस्सइ ण व ? ति । सिद्धत्थेण भणियं-दरसिद्धे पायसम्मि इमा थाली चेय भिज्जिही । तओ गोसालसिट्ठवइयराण पयत्तपराणं पि गोवालदारयाणं तहेव संजायं । पुणो वि तिलछेत्तंतरम्मि पुच्छिओ जयगुरू-कइ एत्थ तिलत्थंबे तिला होहिंति ? । सिद्धत्थेण भणियं-सत्त भविस्सन्ति । तओ समुप्पाडेऊण खित्तो गोसालेण 'तिलथंबो । गोखुरणिवडिओ य तर्हि चेव लग्गो थंबो । पुणो पडिपहपत्थियाण पुच्छियं गोसालेणकहि सो तिलथंबो ?, केत्तिया वा तहिं तिल ? त्ति । दंसिओ सिद्धत्थेण । पुणो वि पुच्छियमण्णवारम्मि-किंमए अन्ज भोत्तव्यं । सिद्धत्थेण भणिय -माणुसमंसं ति । तओ गंतूण भणिया एका महिला जहा-मह अज्ज पायसस्सुवरि तहा। सा य शिंदू । तीए मयल्लयबालं पीसिऊण दुद्धम्मि पक्खिविऊण पायसविहाणेण रंधिऊण पुत्ताहिलासिणीए दिण्णं १ तप्पएसाओ जे । २ णागलिंद जे । ३ पाराविओ जे । ४ गामस्स जे । ५ करणा सू । ६ तिलथंभो स। . थंभो सू। 'तिलयभो जे । ९ वासरम्मि जे । १० यं-तीए मयालयबालं जे । Page #364 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४ वद्धमाणसामिचरियं । २८१ गोसालस्स भोयणं । तओ सो भुत्तुत्तरसमयम्मि ईसि विहसिऊण भयवओ पुरओ सोप्पासं भणिउं पयत्तो-अहो ! मिट्ट मंसभोयण ति । सिद्धत्थेण भणियं-अवितहमेयं, जइ पुण ण सद्दहासि ता उच्चमसु ति । तहेवाणुट्ठियं, दिटुं च तं तारिसं ति । तओ कुविओ तीए उवरि, गओ य तयहुत्तं । एत्थावसरम्मि य सिद्धत्येण परियत्तेऊण अण्णओमुहं कयं तीए मंदिरं । अलहमाणेण य तं महिलं णिययतेयं पक्खिविऊण गामद्धं चेव दीवियं । एवं च भयवओ तिव्वतवोविहाणमभुजयस्स बच्चन्ति वासरा । कहं चिय ?--- तिव्वयरजरढरविकिरणपस[प]सरियपयावपउरम्मि । गिम्हम्मि दिणद्धे संठियस्स आयावणीसग्गं ॥ ९७ ।। अणवरयगज्जिरुब्भडघडन्तघणरवघणोहसमयम्मि । गिरिविवरकंदरन्तरगयस्स सज्झाणणिरयस्स ।। ९८॥ सिसिरम्मि तुहिणकणसबलमारुयुद्दामभरियभुवणम्मि । णेइ णिसं लम्बभुओ काउस्सग्गेण जयणाहो ॥ ९९ ॥ इय णाणाविहपडिमाविसेसपरिहीयमाणकम्मंसो। विहरइ भयवं भूमंडलम्मि भन्वाण कयताणो ॥ १०॥ अण्णया य सिसिरसमयम्मि माहमासरयणीए ठिओ सव्वराइयं पडिमं । पुदि तावसीतवोविहाणेण मरिऊण एका [भगवओ तिविठुभवअंतेउरी] वंतरेसु समुप्पण्णा । भयवन्तं पडिमसंठियं दद्रुण पयत्ता तुहिणाणिलालिद्धेण जलबिंदुवासेण अभिद्दविउं । तओ भयवं णिप्पयंपत्तणओ चित्तस्स, थिरत्तणओ सत्तस्स सोढुं पयत्तो सीओवसग्गं । कहं ?ते तुहिणघणकणुक्केरगब्भिणो वारिबिंदुणो लग्गा । विसहिज्जन्ति सरीरम्मि सीयला सीयपवणेण ॥ १०१॥ पयतीए च्चिय सीयलसरूविणो तुहिणपवल(ण)संवलिया। सिसिरजलबिंदुणो किं पुणो [य] वन्तरी(रि)परिग्गहिया ॥१०२ ।। वन्तरिसहत्थणिद्धृयचक्कलुग्गारवेयपरिखित्ता । अन्तो जयगुरुतणुणो विसंति बाण व्व णिसियग्गा ॥ १०३॥ इय एवं जयगुरुणो दूसहसिसिरोवसग्गसहिरस्स । आरूढं सविसेसं झाणं कम्मोहणिद्दलणं ॥ १०४॥ तओ सा पूयणा पूयपावं णिप्पयंपं भयवंतं वियाणिऊण रयणीविरामम्मि जहागयं पडिगया। दिणयरकिरणपरिमासपरिसुद्धे धरायलम्मि पयट्ठो भुवणगुरू, संपत्तो सूरसेणजणवयन्तियं । गोसालेणावि तहेव तवोविहाणुज्जएण भयवया सह गच्छमाणेण पलोइओ फुडियग्गजडाजूडमंडलो जूयाणियरपउरुत्तिमंगो जरकप्पडवसणपरिग्गहो विढो णाम बालतवस्सी। दणं च तं तारिसं गोसालेण हसिओ जहा-किमभिहाणं तुम्हाणं लिंगं ?, किमायारं वा ?। एवमाइणा ताव खलीकओ जाव रुसियस्स तस्स तेयमसहमाणो समागओ जयगुरुपायमूलम्मि । भयवओ पहावेणं च णिरत्यीकओ तस्स तेओ। तं च रक्खियं पेच्छिऊण भणिउं पयत्तो विढो-रक्खिओ एसो तुम्हेहिं । ति भणिऊण गओ। एवं च तस्स गोवा(सा)लस्साणेयदुचरियपरायणस्स वि जयगुरू मज्झत्थभावो । गोसालो वि जयगुरुणो अइसयविसेसे दट्टण समागयपच्छायावो गिदिऊण अत्तणो णियडिसहावं भयवओ चलणजुवलन्तियाओ जहासमीहियं पत्थिओ। वहिं च गंतूण परूवियं सत्यं पायसथालिविणासो, तिलथम्भो, मंसभोयणादीयं । जह सिहं सिद्धत्थेण तं तह च्वेय संजायं ॥१०५॥ इय भन्ती-समइवियप्पणाए परियप्पिउं तओ रइयं । णियइपरियप्पणाए ‘णियतीवाओ' त्ति सिद्धिगयं ॥१०६॥ आजीवीणं आजीवकारणे कयणिमित्तमञ्चत्थं । तं चियणियतीवादीण दिटिमुप्पायणं जायं ॥१०७॥ इय विणियत्ते गोसालयम्मि कयणियइबायदिहिम्मि । भयवं पि वद्धमाणो हिंडइ लोयं समियपावो ॥१०८॥ भयवओ वद्धमाण[सामिणो] चरिए गोसालाणुगमो णाम [९]॥ भयवं पि सुसमाहियमणो णिरूवयन्तो चरा-ऽचरजंतुचरियं संचरित्रं पयत्तो भावयतो विचित्तभावणाओ हिययम्मि । समसत्तु-मित्तभावत्तणओ य संजणिओ णिययचित्तस्स अण्णहाभावो । कह ? 18 एतद्धस्तचिह्नादारभ्य २९३ गाथानन्तरवर्तिगद्यविभागस्थितहस्तचिह(क)पर्यन्तः पाठसन्दर्भो जेपुस्तके नास्ति । Jain Education Intentional Page #365 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८२ चउप्पनमहापुरिसचरियं । कत्थइ पूइज्जन्तो सयलमुरा-ऽसुर-णरेहिं सविसेसं । णिदिजंतो कत्थइ पडणियधणजगवओशेण ॥ १०९॥ कत्थइ णिद्दयगुरुओवसग्गवग्गेण खवियसव्वंगो। कत्थइ अणुकूलमुरा-ऽसुरेहिं संजणियपक्सेचो ॥ ११० ॥ अणभिण्यासरूवे सयलजंतुणो अत्तणो गियच्छन्तो । भेयं [ण] गच्छं(च्छ)ति थुइप्पयाण-णिदाइभेएहि ॥ १११ ।। इय सुचरियविविहतवोविसेसपरियड्ढमाणमुहलेसो । विहरइ भयवं णिहलियगस्यविविहोवसग्गभओ ॥ ११२ ॥ एवं च वद्धमाणसामिणो अणेयतवोविहाणणिरयस्स ण पक्खुहइ मणो पहमसमुभिण्यासहयारमंजरीजालपरिमलालग्गभमिरभमरउलझंकारपसरेण मणहरदुमसंडमंडलल्लीणकणिरकोइलालाचमुहलियदियंतरेण मणहरतरुणजणजणियरुइरणेवच्छभिजन्तचच्चरीवण्णउद्दीवियमयरकेउणा महुसमएण, [ण] य तिव्वतरणिकरणियरपसरसंतावतवियभुवणंतरालेण परितवियधरायलुहन्तमारुयपणोलिउल्लसंतखरफरुससकरुक्केरदूसहेण णिव्यरविरसमाणझिल्लियाझंकारझं पियासेससदेण णिदाहसमएण, ण य घणघडतघणमंडलीगहिरगज्जिउप्पिस्थपंथियसमूहेण तरलतडिदंडताडणाहित्थपउत्थजायापणियतणुणा अणवरयणिव्वरासारथोरधाराणिवाउप्पहपयट्टपयभरेण पाउसउउणा, ण य सरसवोसट्टपंकयपरायधूसरियसधराधरणहन्तरालेण कलमगोचियाकलरवुग्गीवा(या)यण्णणुघु(ग्घु)ण्णइयसंठियपंथिओहेण गयदाणसच्छहुच्छलियसत्तच्छयामोयमिलियफुल्लंधुयाबद्धकोलाहलेण सरयकालेण, ण य पामरजणारद्धव(घ)ण्णमलणमणहरारोलियगामसण्णिवेसेण वियसंतपियंगुलयाजडिलमंजरीपुंजपिंजरिज्जतकाणणेण सिप्पीरपडलपाउरणपहियपासुस्तपरियत्तमाणसुन्चन्तखरहरासदेण हेमन्तागमणेण, ण य तुहिणघणकणुक्केरसंवलियवियरन्तदूसहतुसाराणिलेण गामेसजणियधम्मग्गिपासपरिमुत्तपावासुयघोरन्तघुरुघुरारामगहिरेण मुपरिप्फुडविसट्टकंदोट्टहासहसिरपउरारामणियरेण सिसिरसमएणं ति । __एवं च बहूणि तवचरणाणि मन्भसन्तो संपत्तो ढभूमिबाहिपरिसंठियं चिरयालपम्मुकसयोउअपायवसिरि पेढालं णाम जिण्योववणं ति । तओ तस्स जिण्णोववणस्स जिणाणुहावओ साहा वियंभिउं पयत्ता । कह.१ परिगलियपत्तसंचयपउत्थसोहा वि तक्खणं चेव । अणुरायं पायडइ व्व सरसकिसलयदलोहेण ।। ११३॥ . होन्ति परिजुण्णवावीसु कमलिणीसंडमंडियजलाई । अणलक्खियघणसेवालविसय[विय]सन्तकमलाई ।।११४॥ अल्लियइ देसणे च्चिय रहियामोयं पि पढमपडिभिण्णं । महुपाणलालसं कमलमंडल(संड)महियं भमरवलयं ॥११५॥ जयपाहदसणे वणसिरीए दरदिट्ठमउलदसणग्गं । हसियं व हरिसपसराए भमरपरिलेंतमहुरसरं ॥११६॥ विहसइ मुहं व णलिणीए तक्खणुव्वेल्लदलउडं कमलं । जयगुरुदंसणपसरियवियासवड्ढन्ततोसिल्लं ।। ११७॥ सज्जीकयाइं विम्हयगयाए सहसागयम्मि जिणयंदे । उववणलच्छीए लयाहराई सुइरं विमुक्काई ॥११८॥ अहियं वहन्ति उद्दामभत्तिजणियं समोणमंतीओ । कलियुम्भेयं पुलउग्गमं व तणुपायवलयाओ ॥ ११९॥ इय ते तक्खणपसरियपाउससोहं सुपाउसेणं व । जायं जिण्णोववणं जिणचलणगुणाणुहावेणा ।। १२० ॥ तो तम्मि जिणचलणपडिसग्गणुप्पण्ण-पवड्ढमाणसोहासमुदए उववणम्मि अवरदिसामुहोणमंतवरणिमंडले यासरावसाणसमयम्मि पविरलहरियंकुरपरिणए धरायलद्धन्ते काउस्सग्गम्मि ठिओ एगराइयं महापडिमं । कहं ति? सहसा सबिंदियदुभावपडि]रुद्धदिद्विविच्छोहो । णीसासपसरसरोहमणियणिक्कंपसव्वंगो ।। १२१ ॥ परिसंठियझाणेकग्गचित्तमुज्झन्तहिययमुहलेसो । सुर-गर-तिरिओरयदूसहोवसग्गाणऽदिण्णमणो॥ १२२ ।। सव्वजणिच्छासंजणियमुहफलो लम्बमाणभुयसाहो । सुरपायवो व सोहइ मुरपायवपायपामूलो ॥१२३॥ इय गरुयाभिग्गहवसविसेसवड्ढन्तधम्मसुहझाणो । पडिमाए संठिी बहुभवुत्थदुक्खक्खयणिमित्तं ॥ १२४ ॥ ताव य परिणामवसोवहीयमाणपयावपसरो परवइ ब अत्यन्तरमुबगो सहस्सकिरणो, अवरदिसामुहसरवरे व्व तर णिकरपरिग्गहिया कमलिणि ब पंडिबुद्धा संझा, दुजणकसणवयणविन्भमो मित्तो(? त्ता)वगमम्मि लद्धावयासो पसरिओ Page #366 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४ वद्धमाणसामिचरियं । २८३ बहलतमसंघाओ, उइयं च पु(घु)सिणारुणयणमंडलं पिव पुन्वदिसावहूए ससिषिम्बं, दरहिएणावि दायरमुप्पुसिओ पहापयरिसेण तिमिरणियरो ससिणा, वोसट्टदलउडन्तरल्लीणभसलवलयाई जायाई सरोवरेसु कुमुयसंडाई । एवं च भसलवलयचलचलणपक्खाविक्खित्तचंदुज्जुयपरायपरिधूसरससि(स)हरपवड्ढमाणसोहाए सव्वरीए एक्काया णियसुरभडत्याइयामंडवडिओ सोहम्माहिबई दूरंतरालववहियं पि सइसमासण्णं मणसा समुन्वहंतो जयगुरुं पयत्तो चिंतिउं-कहिं पुण संपयं पएसे णियपयपंकयपरिमासपूयपावं धरायलं कुणंतो वधमाणसामी विहरइ ? त्ति । एवं च चिंतिऊण पउत्तमोहिण्णाणं । दिट्ठो य णयरबाहिरोववणविवित्तभूमिमायम्मि पडिमापरिसंठिओ जयणाहो । केरिसं च तिहुयणगुरुं पडिमापरिसंठियं नियच्छिउं पयत्चो सुरवई? णिकपतणुपयड्ढियविमलच्छाओवसोंहियधरन्तं । मुरगिरिवरं. व तियसाऽसुरेहि. सेविजमाणपयं ॥ १२५॥ णिदहमाणं झाणाणलेण बहुभवियकम्मसंदोहं । संखवियजलहिणिवहं फुरन्तवडवाणलोहं [व] ॥ १२६॥ । बालायवच्छविहरं आसण्णभविस्सकेवलपहोयं(घ)। उव(य)यन्तरियफुरंतुद्धकिरणवरं व णहमन्गं ।। १२७॥ इय पेच्छइ दिण्णमणो ओहिविहाणेण सयलजयणाहं । सुरणाहो तिहुयणभवणतेयरासि व दिप्पन्तं ॥१२८॥ पेच्छिऊणं च भयवंतं सहसा दूरयरपरिच्छूढसीहासणो उभयकरकयंजलीमिल[न्त]भालवट्ठो धरणियलमिलियजाणुमंडलजुयलो रंखोलन्ततारहारं वसुहायलम्मि णिस्सम्मिऊण मउलिमंडलं पणमिउं सुरणाहो थोउं पयत्तो। कह ?जय जय जिण ! जु(? दु)जयजेयपक्वविक्खोहवड्ढियपयाव !। भवजलहिणिचुड्डन्ताण तं सि सरणं असरणाण ॥१२९॥ जे तुम्ह दंसणे दलियतिमिरपसरम्मि भाणुबिम्बे ब्व । णो पडिबुद्धा ण कयाइ होज ताणं पुण विबोहो॥१३०॥ संसारसायरे ता भमन्ति जीवा अणोरपारम्मि । तुम्ह गयणावलोयम्मि जाव जायन्ति ण य पुरओ ॥१३१॥ विसयापासणिबद्धाण रायवाहोवहम्ममाणाणं । जीवाण कुरंगाणं व णवर मोक्खो तुमाहितो॥ १३२ ॥ तुम्ह वयणामयरसं ण य जे सवणंजलीहिं घोट्टन्ति । ते विसयपिवासायाससोसिया णासिहिति फुडं ॥१३३॥ अण्णाणतिमिरणिद्दलण ! विमलकेवलकउज्जलालोयं । मज्झ कुमुयायरस्स व कुणसु विबोई जणाणंद ! ।।१३४ ॥ णिज्जियरायस्स वि खवियविग्गहुम्भडपयावपसरिल्लं । तुह सासणं पयट्टउ कयकेवलविक्कमग्यवियं ॥१३५॥ इय महियलसंचारिमकमलोयरसंचरन्तमुहयाण । तुम्ह चलणाण णमिमो पुणो पुणो वीर जिणयंद ! ॥ १३६॥ ति। एवं च सुरिंद-चंद-गह-इंदाई(१ इ)[पूइयं] वंदिऊण जिणयंदं विविहमणिविचित्तम्मि सीहासणे पहरिसुप्फुल्ललोयणसहस्सपलोइयसमासीणमुरभडसमूहो य मुरवई भणिउं पयत्तो-भो सोहम्ममुरलोयणिवासिणो सुरभडा ! पेच्छह भुवणगुरुणों धीरयाइसयं जेण गरुयाभिग्गहविसेसपडिवण्णपडिमाविसेसं ससुरा-ऽसुर-जक्ख-रक्खस-भुयग-भूयसंघ(घा) वि मणयं पि शाणाओ चालिउंण समत्था । अवि य अवि रेइयणिज्झरणियरसरियसोसुब्भडं पि पायालं । संठाविज्जइ उवरि भुययफणामणिकरारुणियं ॥१३७॥ अवि उच्छलि(? ल्लि)यजलणिहिवलयदलंतुद्धसेलसंभारं । णहमंडलं [--] अहो मुच्चन्तपडन्तगहयक्कं ॥१३८॥ चालिज्जइ [........] विमलकंदरुद्दलियसिहरसंघाओ । अवियं(ध)ससंभवु(? मुत्तत्थतियसमिहुणो सुरगिरी वि ॥१३९॥ ण य चालिज्जति अणुं पि तुलियतेलोकधीरमाहप्पा । झाणाओ जिणवरिंदा सुराऽसुरिंदेहि वि जयम्मि ॥१४०॥ तओ तं सुराहिवामुह]विणिग्गयं वीरजिणयंदधीरयामाहप्पगुणगणुवित्तणं णिसामेऊण परिकुविओ अमरिमुल्लसन्तसंजणियभिउडिभासुरो पुरंदरसमाणविहववित्थरो मिच्छत्ततमोहावरियविवेयपसरो संगमओ णाम मुरवरो, भणिउं च पयतो-सामि ! मुराहिवइ ! कीस एवं विविवाहिवेयणाकिलन्तजरजज्जरत्तणोवहासिरस्साकालमरणपरिभवुन्भडप्पण्णदुक्खबहुलस्स विच्छड्डियकमागयख़त्तियधम्मस्स विरुद्धधम्मायरणनिरयस्स पलहुसत्तस्स माणुसमेत्तस्स कए सह समारूढजोव्व Page #367 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८४ चउप्पन्नमहापुरिसचरियं । णगुणग्यवियपरक्कम सुराणुहावमवमण्णह, अण्णं किं व ण मुणियं मुराहिवेण जहाणिव्वडियगुणा वि सुराण एन्ति मणुया ण चेव समसीसं । सरिसत्तणं ण पावेंति कायमणिणो महमणीणं ॥ १४१॥ ता अच्छउ तावेसो णमुणियपरमत्थसाहणणिमित्तो। चायमुझंतमणसो पमुकवीरिओ खत्तियणराहिवो (2)॥१४२ ॥ पेच्छगुरुखयकालाणलविन्भमुल्लसन्तोरुदिहिवाएहिं । जे णिड्डहन्ति रोसेण तक्खणं सयलजियलोयं ॥१४३॥ आमूलुम्मूलणणिन्वडन्तदीसन्तगहिरपायालं । सहसा कुणंति जे करयलुक्खयं सुरवरगिरि पि॥१४४ ॥ ते वि महामुणिणो णियतवाहितियसप्पहावपसरेण । बो(वा)हिजति सुराहिव ! का गणणा भणसु एएण? ॥१४५॥ ता अजं चिय दीसउ विच्छड्डियगहियकवडमुणिवेसं। णियरज्जहुत्तपरियत्तमाणसं संठविज्जन्तं ॥ १४६ ॥ एवं चाणवेक्खियणिययसामत्थयाप्पलहुअं भरि(णि)ऊण णीहरिओ महत्थाइयामंडवाओ, जयगुरुसंजणियाहिक्खेवुप्पण्णपावपसरपणहसोहासमुदओ राहुमुहग्गहोवहूयबिम्बो ससि च दीसिउं पयत्तो। ओइण्णो सग्गवसहीओ। पयट्ठो वद्धमाणं जयो । खयकालाणिलसमुब्भडगइविसेसो य पत्तो तिहुयणगुरुसमीवं । कहं चिय? वेयाणिलविसमुन्वेल्लविहडिउन्भडघडन्तघणवडलं । सभओसरन्तमुरबहुविमाणसंजणियसंखोहं ॥ १४७ ॥ वियडोरत्यलसंलग्गरुद्धपुंजइयविमलगहयक्खं(क)। विष्फुरियविमलमणिमउडकिरणपडिबद्धमुरचावं ॥१८॥ गइवेयुच्छलियसुहारकिरणपसरन्तधवलियदियन्तं । आयड्ढतो व्ध विमग्गलग्गघणमंडलं गयणं ॥ १४९॥ पेच्छइ य वीरणाहं ससिकिरणपसाहियम्मि महिवढे । संकेतच्छायं मंदि(द)रं व दुदोवहिजलम्मि ॥१५॥ तओ तं णिकारणेकल्लबंधवं जयजंतुसंताणस्स वीरणाहं पलोयन्तस्स य से मुठ्ठयरं पवढिओ मच्छरो। अहवा पसरयइ चिय खलाण परोक्यारेककरणरसियम्मि । अवलोइयम्मि सुयणम्मि अमरिसो पयइदोसेण ॥१५१॥ तो दंसणवसविसट्टन्तमच्छरेणं च तेण उप्पाइओ पलयपवियम्भिउप्पायसच्छहो पवणपन्भारो, खयकालाणलसंबद्धधूमवडलब्भहियभीसणो णिहित्तो धूलिणिवहो, सयलजलयगहिरगजिरुम्मुक्कथोरधाराणिवायसहा पसरिया अयालबुट्टी, णीसेसजंतुपडिरुद्धलोयणवियासप्पहापयरिसा [१ पसरिया] तिमिरपत्यारी, दूरंतरियससि-गहगण-णक्खत्तणिवहं जायं गयगंगणं, तं च तारिस पि अयालघणदुद्दिणं सरयसमएणं व पेल्लियं भयवओ पडिथिरज्झाणेण । तओ को णेण पसरन्तगइवेयचलचलणदोण्णिवारो पिचीलियाणिवहो, लद्धावयासो खलयणो व दूरयरमारूढो, संजणियतिब्ववियणाविसेसो य अहिद्दविउं पयत्तो। णवरि य पसण्णभावं जयगुरुं णियच्छिऊण 'णेय पित्रीलियाहि पि काउं तीरइ' ति कलिऊण कयाई तियसेण कुलिसकढिणतुंडग्गभायाइं पयंगवंद्राई, संजणियतिव्यवियणाविसेसेहिं च तेहिं पि समयं चेयाहिल(ड)संतेहिं (ण) परियालिओ जयगुरू । तओ ते पणइणो व्व जहिच्छासयंगाहसंपत्तसयलमुहपरिभोया विणियत्तियसयलिच्छा समोसरिया। ते वि समोसरिए पयंगे दणं विउरुब्बिया णेण फुरमाणपिंगलच्चुग्गभंगुत्तुंगणंगूलतिक्खम्गविसदृपसरदुद्धरा विच्चुयपमुहा। तेहिं च पलयउप्पायफुलिंगविन्भमेहि थोरणंगलकंटयाघायभिज्जन्तस्स वि भयवओ जाहे ण भिजइ मणो ताहे] पुणो पसरन्तमच्छरेणं च तेणं किं कयं ? अह रुसियामरचलणाहिघायजज्जरियमहियलाहेन्तो । सहसा रुहिरुग्घाउ ब पसरिओ फणिमणिकरोहो ॥ १५२ ।। तो ऐति तक्खणे च्चिय फणिणो फणिमणिबहुब्भडुज्जोया। परिदेविरीए उद्धंभुय व धरणीए उक्खित्ता ॥१५३ ॥ ता जलएहिं व विसणिब्भरेहिं भोएहि भुययसंघाण । पसरतेहि जयगुरू संछण्णो कणयसेलो ब्व ॥ १५४ ॥ जयगुरुणो भुययफणुल्लसन्तफुक्कारफारपवणेण । झाणाणलो समहियं पजलिओ कम्मगहणम्मि ॥१५५॥ इय विसहरतक्खणगुरुविमुक्कमुक्कारविसलवजलोल्लो । जयणाहो धरणिधरो व पाविओ सामलच्छायं ॥ १५६ ॥ Page #368 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४ वद्धमाणतामिचरियं । २८५ चाहे क्सिहरवलएण कलुसिज्जमाणस्स वि भयवओ मणयं पि ण कलुसिजइ मणो ताहे कयं णेण सयलजलजलहरुअमन्तमहन्मकूडविन्भमं चलकण्णताल[ण]विक्खेवविसमविक्खित्तभसलवलयं चलणभरपेल्लणा(णोणमन्तदलियबसुहावलयं अविरलगंडयलगलन्तमयजलाबद्धदुद्दिणं वित्थरिय(य)थोरथिरसोंडणीहरन्तसीयरासारं दढभिन्नदन्तमुसलावलग्गभडभीसपकलेवरं गइवेयाणिलपल्हत्यवियडवडपायधुन्भडं गइंदरुवं । पत्तो य तह परिणओ करिंदो रोसेणायंबिरच्छिवत्तणओ कोंडलियसोडमामाओ । कहं ति? अल्लियइ पडिगयं पिव अहियं गुणदाणपरिमलुप्पित्थो। दीहरकरग्गभायं वीरं णिम्महियतमपंकं ।। १५७ ॥ परियट्टइ रोसवमुल्लसन्तपरिदीहरंगुलीएण । खयकालासणिपडणाइरित्तकढिणेण हत्येण ॥१५८॥ तुलियपरिवियडगिरिकडयकढिणसारम्मि वीरवच्छयले । रहसेण परिणओ वज्जकढिणदंतग्गसंघयणो । १५९ ।। अत्यमियं थामे च्चिय [................................। ..................] जह से दढदन्तमुसलजुयं ॥ १६०॥ तो पमुक्तकरिंदरूवेणं च तेणं कयं पसरियामरिसवसरसियप्फुरन्तपडिसदकंदरं समुन्भडघडन्तभिउडिभीसणमुहकुहरसंजणियणिन्भरभयं पजलियजलणजालाकविलच्छिच्छडाविच्छोहपयरं दुईसणवयणकंदरुग्गउबिडिमदढदीहदाढ(द) सद्लरुवं । ओवइओ य सुरकरिंदकुंभुन्भडुण्णए भयवओ बाहुसिहरम्मि । अवि य तिक्खणहणंगलुल्लिहणबद्धलक्खो परिस्थिरपउट्ठो। लग्गो तिहुयणणाइस्स उष्णए दढसुयासिहरे ॥१६१॥ परिवियडवयणकंदरकवलियभुयसिहरलग्गचलणग्गो। धुणइ धुणंतो गुरुगो समज्जियं कम्मसंदोहं ।। १६२॥ णभणंतीए वि थेवं पि तक्खणं अकयरोसपसराए । ओसारिउ न दूरं खमाए बग्यो भुवणगुरुणो॥१६३॥ इय दूरोसारियकुवियवग्यरूवेण तक्खणो(णा) चेव । संगमयसुरेण वियम्भमाणगरुयाहिमाणेण ।। १६४॥ कयं च णेण अच्चुण्णमंतघणकसणदेहपन्भारभरियभूमंडलुम्भडवयणकंदरललंतजीहालो(लं) दढजलयणिवहं व णिसायररुवं । केरिसं च? गुरुजलयकालपसरन्तकसणरयणीतमोहसच्छायं । चम्म-ऽहिमेत्तपरिसण्हदीहणहरुब्भडावयवं ।। १६५ ॥ जलियच्छिसिहिसिहावलयदूरविच्छूढतारयाणियरं । उबिडिमदसणविप्फुरियचंदिमाधवलियदियंतं ॥ १६६॥ दढगाढपरियराबद्धकुइयभुययंदमुक्कफुकारं । वच्छच्छलरंखोलंतसरसकयसहियणरसिरोमालं ॥ १६७ ।। मुहकंदरमुक्कट्टहासहुयवहविणिग्गयफुलिंगं । तरलतडिदंडसच्छहकरकलिउल्लालियतिमूलं ॥१६८॥ तकालुकत्तियकरिवराइणा धरण(णि)खित्तरुहिरकणं । पायक्खेवायंपियधरणियलपडन्तगिरिसिहरं ।। १६९ ॥ भु[य]इंदपासबंधणगण्ठिणिबधुद्धकविलकेसोहं । भीसणणयणंतविर्णितदीहरुक्कासरिसदिहि ॥ १७० ॥ इय भीसणयरभल्लंकिमुक्कपे(फे)काररावसंवलियं । तिहुयणभयजणणणिसायरेंदरूवं सुरेण कयं ॥ १७१ ॥ तओ तिमिरसंघाउ व्व णिसियरो जिणयंदमुद्दविउमाढत्तो। अणेयप्पयारं तहा णेण खलीकओ जयगुरू जहा से वियलिओ बलाहिमाणो। एत्थावसरम्मि य विमुक्कणिसायररूवेण सयलमुरा-ऽसुरेंददुव्बारवेयपसरो गुरुवेयवसुद्धृयमहिमंडलुच्छलियरयवडलोच्छाइयणहंगणो आमूलुम्मूलियपडन्तगयतुंगतरुसंडसंकुलो अविरलणिबद्धावडन्तघणतिक्खसक्करावरिसजणियवियणो सरहसोरुद्धधरणिधरसंपाडियकंपावियधरामंडलो पमुक्को पयंडकोयंडमारुभो । तेणं च पुंजइज्जंतरयवडलपरिभमंतवाओलिणिवहेण किं कयं ? अवि य शत्तिसमुच्छलियपउरमहि(ही)रउद्धृयवायवलएण । महिमंडलं समन्तोन्तिा] संवेल्लिज्जइ व तब्वेलं ॥१७२॥ वेउब्बूढा णिवडंति तक्खणं दूसहोवलणिहाया। जयणाहोवरि खरतिक्खकोरधारा णहाहितो ॥ १७३॥ Page #369 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८६ चउप्पलमहापुरिमचारियं । फरुसकयसकरासारवरिससंजणियतिब्बव(? वि)यणिल्लं । दिसिदिसिणिबद्धपज्जलियजलणजालासउप्पायं ।। १७४ ॥ इय भामंतेण समत्तसयलवणकाणणं धरारेणुं। ण उणो भामिज्जइ भमिरवायचक्केण मुणिहिययं ॥ १७५ ।। एत्थावसरम्मि य जिणतणुसंभेडपडिप्फलणपडिभग्गवायचकपसरेण जयगुरुगरुयाभिग्गहभंगोवसग्गारंभणिप्फलत्तणसम्मोहसंभमुन्भयमाणेण णिहणणकयववसायसाहसेक्करसिएण परमपयरिसुप्पण्णकुमइसंभमएण संगमएण विणिम्मियं विप्फुरियविज्जुलावलयपलित्तसमुण्णयंबुहरसिहरविब्भमं सुरगिरिवरसारगरुयवीरियं कालाचसमा(वसाऽोरसहस्सुम्भडं अयाल(लाय)चकं किं च कयं? तो तं पज्जलिउज्जलजलणसिहावलयदूसहालोयं । महिमंडल व्व घेत्तुं पलयपलित्तं समुप्पइओ ॥१७६ ॥ उवरिहिएण जयगुरुकयवहववसायसाहसमणेण । खित्तं णिहित्तपसरियफुलिंगवित्तत्थमुर-सिद्धं ॥ १७७॥ णवरि य पडइ पडंतुद्ध उक्कसंजणियभुवणभयसंकं । उप्पाउप्पाइयमज्झयारयं भाणुबिम्बं व ॥ १७८॥ इय तं सहसुद्धाइयपज्जलियसिहाकलावसवलिलं । दीसइ णिवडन्तं सभवण-विज्जाहरणरेहिं ।। १७९ ।। तओ य कज्जलुज्जलं, समुल्लसंतविज्जुलं । रसंतरुन्दसद्दयं, खए व्य मेहवंद्रयं ॥ १८०॥ पलोइउं भयाउरा, समंतओ सुरा-ऽसुरा। विमुक्कवोममग्गया, दिसामुहाइं संगया॥१८१ ।। णहम्मि तप्पहावओ, पयड्ढमाणतेयओ। पणट्टरं(च)दिमाउलं, ण भाइ चंदमंडलं ।। १८२॥ पणहतारयागणं, पदीव(वि)यं णहंगणं । पयंपिया धराहरा, पयट्टिया वसुंघर ॥१८३॥ त्ति। पडियं च घडियघ[य]गवियणिप्पयंपुडुमायसिहिजालं । तह जयगुरुणो सहसा सुहुत्तिमंगप्पएसम्मि ॥१८४ ॥ जह खुत्तो चिक्खल्ले व्व कढिणमहिमंडलम्मि जयणाहो । आजाणुमंडलावहि णमुक्कमुहझाणवावारो॥१८५ ॥ तो जणियजयगुरुझाणमग्गभंगेण तेण चक्केण । अकयत्थपडिप्फलिएण दूमिओ अह सुरो चेव ॥ १८६॥ इय एवमाइएसु वि बहुपडिकूलोवसग्गनिवहेसु । जाहे जयगुरुणो ण मणयं पि परियत्तियं चित्तं ॥ १८७ ।। वाहे चिंतिउं पयत्तो-पेच्छ से सत्ताइरित्तत्तणं, ता पेच्छामि णं अणुकूलायरणेण से सामत्थं जेण महापुरिसा वि दीसन्ति परब्बसीकया विसयाहिलासेण, पक्खित्ता महिलाविलासेहिं पम्हुसन्ति अत्ताणयं । एवं चाणेयप्पयारं मुहुत्तरमेक्कं किं पि कलिऊण णिययहियएण समुप्पाइओ समुभिण्णमायंदमंजरीजालमंजालमंदमयरंदर्पिजरालिदलमुहलियवणंतरालो मुविसट्टपाडलाकुसुमपडलच्छाइयधरामंडलो कोरड्यकुरु[व]यकुसुमामोयवेलविज्जमाणमुद्धफुल्लंधुओ कोइलकुलकलावकुइयवियत्याहित्थपंथियजणो कोमलमलयमारुयंदोलिज्जमाणतरुलयावलयो माणिणिजणमणतक्खणविसंवाइसाणुबंधओ अयिराविणिग्गयपियजणदंसणूसुओ य वसन्तसमओ। अवि य सहसा गंदणलच्छीए जणियमहुमाससंगमससियं । हिययं व असोय होइ णिवडियपडिबद्धराइल्लं ॥ १८८ ।। परहुयववएसेणं व कहइ विसउल्लसंतपरिरावो । महुमासो जियतियसोवस[ग्गभग्गं महाधी(वी)रं ॥ १८९॥ पडिलग्गमलयमारुयपवेविरी पल्लवग्गहत्थेहिं । विच्छुहइ व भमरं अण्णवणलया परिमलग्यवियं ॥ १९० ।। दइएणं पिव चटुयारएण महुणा पसूयरयधवलं । तिलएहिं अलंकिज्जइ वयणं महुमासलच्छीए ॥१९१ ।। णियगंधसिरिं पल्लवणवरंगयसंगया छणदिणम्मि । भायइ पहेणयं पिव वसंतलच्छी दिसिवहूण ॥ १९२ ।। वासभवणं व महुपिययमस्स धवलइ लयाहरावलयं । छणदियहे कुरयं-उंकोल्लकुसुमधूलीए वणलच्छी ॥ १९३॥ सुमणमइयाए मयणेण मालिया [थ]वइया महुयराण । वणलच्छीए जीवं व उवह माइंदलइयाए ॥ १९४॥ इय भुवणुम्मायणदिण्णमयणसण्णेज्झकुसुमरय(म)णीयो । तियसेण तक्खणं चिय विउव्दिओ पवरमहुमासो॥१९५॥ एवं च अणवरयभसलउलचलपक्खविक्खेवुक्खित्तपंकयपरायपिंजरियदिसामुहे मुरहिसमयम्मि पेसियाओ य तेण Page #370 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४ वद्धमाणसामिचरियं । २८७ विविहरसकरणकलतारमंदसंगीयवियक्खणाओ णट्टकुसलाओ परिकलियकलवल्लईवंसव(म)गहराउज्जसंजुयग्गहत्थाओ मणहरवेसा-ऽलंकारसललियंगीओ तियसविलासिणीओ, समागयाओ य जिणपायमूलं, साहिलासं च पलोइरं पयत्ताओ। कहं ? सुरविलयाणं तक्खणविलासगुणघडणणिग्गया सहसा । जयगुरुणो कुसुमसर व्व पेसिया दिद्विविच्छोहा ॥१९६।। कीए वि कुसुमसंसत्तभमरमुहलोल्लसन्तधम्मेल्लो । कुणइ व्व भुवणगुरुणो संगमसुहपत्थणावणइं ॥ १९७ ॥ वेल्लहलकरयलंगुलिकलणासंजणियणीविविण्णासं । संजमइ ल्हसंतुव्वेल्लपल्लवं का वि हु कडिल्लं ।। १९८ ॥ रमणपुलिणम्मि णिवडइ का(की)य वि भीया पोहराणं व । हंसावलि ब णिम्मलरणंतकलरयणमेहलिया ॥१९९।। वेल्लहलकरयलोयरणिवेसियं ललियभुवलयाणालं । लीलाकमलं पिव वहइ का वि महुगंधरिदिल्लं ।। २०० ॥ पत्थेइ कण्णमूलावलग्गणीलुप्पलावयंसेण । णिययकडक्खेग व मणहरेण रइकीलियब्वाइं ॥ २०१॥ कोमलमुणालवेल्लहलविन्भमिल्लाहिं बाहुलइयाहि । महइ अायासिउं रसवसुच्चरोमंचमुहयाहि ॥ २०२॥ ल्हसियंसुयसंजमणेण काइ पडिवक्खमच्छरेणं व । पडिमावडियं सिहिणत्थलम्मि पिहइ व्व जयणाई ॥ २०३ ॥ इय सयलजला(णा)हिगमुल्लसन्तसविसेसरूवसोहग्गो । सुरकामिणीयणो होइ भुवणगुरुलंभलोहिल्लो ।। २०४ ॥ एवं च तियसंगणायणो भूभंगविलासोल्लसंतलोयणाहिरामो कबोलमूलावलग्गलंबालउल्हसियकोन्तलकलावो बद्धसिढिलणियंसणो कसणरोमावलीकलियतिवलीतरंगमज्झो वियडणियम्बुव्वहणकिलन्तवेविरोरुजुयलो अच्चुण्णयपेढालसिहिणमंडलो जयगुरुदंसणजणियाऽउन्नविम्हओ पुरओ लिहिउ व परिसंठिओ, ससन्मसवेविराषयवो य जंपिउं पयत्तो। कहं ? अणहिमओ कीस मणम्मि तुम्ह सुसुरहिविलेवणविलासो? । ओ ! मुणियं तुह साहीणपरिमले लहइ ण हु सोहं ॥२०५॥ कीस ण रज्जइ हिययं सुविचित्तविहत्तवण्णरुइरेहिं । पयइचलयंपिराएहि मुहय ! मणलग्गिरेहि पि? ॥२०६॥ दे ! पसिय पणामिज्जउ घडन्तगाढोवगूहियवमुहं । अलियकरुणाकिलम्मिर ! किलामियंगाण णियययणे ।।२०७॥ तेल्लोकपत्थणिज्जम्मि मणुयदुलहे मगोरहाणं पि । सुररमणिमुहे णो घडइ मुहय ! विवरम्मुहीहोउं ॥ २०८ ॥ कह वा अणुपं ण य कुणेसि रमियनपरिचएणं पि ? । मयणाउराण णिकिव ! मुणसि चिय जूरियव्वाई ॥२०९॥ अच्छउ वा विविहविलास-हास-सब्भावणिम्भरं पेमं । सामण्णाए वि दिट्ठीए सुहय ! किं णो पलोएसि? ॥२१०॥ जे तुह मणम्मि मउए वि सायया मयरकेउणो भग्गा । ते चेय मंतुकढिणऽम्ह कह णु भिंदंति सुहय! मणं? ॥२१॥ अहवा अण्णसुहासंगरायरसिए जणम्मि अणुराओ । जं कीरइ तं जायइ अरण्मरुइयस्स सारिच्छं ।। २१२ ॥ इय जयगुरुणो मयणाउराण सुरसुंदरीण भणियाई । सिद्धिसुहसंगमूसुयमणस्स चित्तं ण रामन्ति ॥ २१३ ॥ एवं च तासिं ण सुइसुहजणणगीयसदेण, ण य महुरवेणु-वीणाविणोएण, ण विविहकरणंगहारकलियणट्टोवहारण, ण य सविन्भमुब्भडवियंभियदिद्विविच्छोहेहिं, ण साणुणयसणिउणभणियबयविसेसेहिं पक्खुहिओ जयगुरू । एत्थावसरम्मि य पहायप्पाया जामिणी । तो(तत्तो) अरुणकरप्फंसकयवियासा सरोरुहच्छाया । तियसंगणाण हसइ ब्व मुहसिरिं भग्गमाणाण ॥ २१४॥ पच्छिमदिसासमल्लीणमंडले ससहरे कुमुइणीए । कजलकलुसा वियलंति बाहबिंदु व्व भमरगणा ॥ २१५ ॥ उव्वेल्ललवंगामोयमासलो कमलपरिमलसुयंधो । अणुलिंपइ ब पच्चूसमारुओ सयलजियलोयं ॥ २१६॥ ससिकिरणपहरफुट्ट घडिज्जए पवणविहुयदलणियरं । रविणा सवेयणं पिव करेहिं परिवेविरं कुमुयं ॥ २१७ ॥ मेलेइ विरहविहुराई चक्कमिहुणाई पियसहि व्य फुडं । संझासरोयरुच्छंगरुइरसयणीयचम्मि ।। २१८ ॥ Page #371 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चप्पन्न महापुरिखचरियं । उययायलन्तरद्वियतरणिफुरंतुद्धपउरकरणियरो | णहमंडलस्स णूमइ विवरसमूहं व गहयकं ।। २१९ ।। ता सिंदुरियमणिदप्पणे व्त्र दिट्ठो तिलोयलच्छीए । अप्पाणो समुहपरिद्वियम्मि सहसा दिणयरम्मि ॥ २२० ॥ इय रवियरपरिमज्जियसयलदियम्बरधरायलद्धन्ते । जाए विसट्टतामरसपरिमलिल्लम्मि जियलोए ॥ २२१ ॥ तओ एवं च तरणिकिरणपरिमासवोसट्टसर रुहामोय संजणियहरिसकलहंसकलयलारावमणहरे पच्चूससमयम्मि अमरमायासंजणियपच्चस संकाविष्णोवओओ भयवं वद्धमाणसामी ओहिण्णाणेण वियाणियगोससमओ णिव्वाहियगरुयाभिग्गहणिव्वडियपडिमाविसेसो पयट्टो पोलासजिण (? पण ) हराओ । तिव्वाहिणिवेसवित्थरंतामरिसेणं व अमराहमेणासंधिज्ज माणमग्गाणुमग्गो पत्तो ए (व) यगामाहिहाणं सण्णिवेसं । अलद्धपसरेणं च पउत्तोहिणा मुणिऊण भयवओ पित्तणं समावज्जियपाव पडलुब्बहणपवड्ढमाणपरिस्समो णिविष्णो उवसग्गकरणाओ । णिष्फलपइण्णं च जूरिऊण अत्ताणयं पडिभग्गमच्छर प्पसरो चिंतियमेत्तविमागरयणं समारूढो । पडिहयदिव्त्राणुहावं च तं पलोइयं । केरिसं च ?अमरविलासिणिजणिओवयारपव्त्रायविविहमणिकुसुमं । धूमसिहाकलुसालंबमाणमोत्ताहलोऊलं ॥ २२२ ॥ जलवाविकमलमउलायमाणभसलउलवलय रुइरं व । पडिबद्धधूमघणवडलमलिणमणिमंगलपदीवं ॥ २२३ ॥ घरदीहियमउलायन्तकणयकमलायरोय रुद्धतं । उव्वचचित्तभित्तित्थलुच्छलं तारुणच्छायं ॥ २२४ ॥ इय तं वियलियदिव्वाणुहावसोहं पि पेच्छिउं तियसो । उप्पइओ पसउप्पइयपावपुंजो व्व पच्चक्खो ॥ २२५ ॥ गंतुं च पयतो वेयवससमोसारियगहगणो णहंगणम्मि । भग्गपइण्णोऽणुसयविच्छायमुहमंडलो य संपत्ती तियसायं । पयट्टो सुराहित्थाणिमंडवाभिमुहं गंतुं । पलोइओ समुहमहंतो रोसारुणिज्जंतणयणुल्लसन्तरायरंजियसहामंडवेण आहित्थपलोइयामरणियरमज्झट्ठिएण सुराहिवेण । कह ? - २८८ अचयंतेण पुलइउं बहुपात्रसमूहसंठियाऽऽवसहिं । अणमिसउव्वाया णिमिसियाई हरिणा णियच्छीणि ॥ २२६ ॥ सहसा वियम्भिउभडघडन्त भूभंगभिउडिभालयलो । जाओ सुराहिवो पलयजलियजलगो व्व दुप्पेच्छो ॥२२७॥ तर तक्खण मेट्ठन्तजलणजालासमुज्जलं वज्जं । अमरिसवस्ससंतोरुद लियकडयं करम्मि ठियं ॥ २२८ ॥ वरि य गरुयक्खेवुल्लसन्तरयणासणाहिचलिएण । उप्पयणमपुचलणदलियमणिपायवीढेण ॥ २२९ ॥ मुणिऊण 'सायरोवमसेसाउठिह' ति णिययचित्तेण । विणियत्तामरणिहणणत्रिमणद्वियवज्जदेवेण ॥ २३० ॥ तह तियसपत्थवेणं समाहयं गुरुणिबद्धरोसेणं । संगमयविमाणं णिययवामचलणप्पहारेणं ॥ २३१ ॥ जह पडियं पडणाहित्थतियससुंदरिसिलिट्ठमणिखंमं । णिद्दलियविमलमणिवेइयाउलं सासयथिरं पि ॥ २३२ ॥ तओ वियलियदढपीढसंठाणभज्जंतखंभुब्भडालग्ग देवंगवित्थारि उल्लोयहल्लन्तमुत्ताहलोऊलपज्जन्तमाणिक्कगोच्छुच्छलन्तालिमालाउलं, विउडियर यणग्गलादंडचंडोरुसंसदफुट्टंतभिष्णिंदणीलत्थलालग्ग दारुद्धसाहाविसट्टन्तछिप्पन्त सेज्जाअणाउज्जभज्जंतणिज्जूहयं । गुरुयरमणिभित्तिपब्भारसंभेडभिज्जंतविक्खित्तसोवाणपंती समायड्ढियालिंदयाबद्धघंटाटणक्कारयं किंकिणीमालसुव्वन्तचंकारयं, विहडियमणिमेहलाबद्धसंबद्धसच्छंऽमुट्ठ (? घ) तपल्लत्थदीसन्त थोरत्थणावेढपाणिप्पहाराउरक्कंदभीयच्छरादीसमाणं विमाणं धुयं ॥ २३३ ॥ वि । पडियं च पडणवेयाणिलुच्छलंतुद्धचिंधधयमालं । घुयकणयरेणुकविले जलणे व्व सुमेरुसिहरम्मि ॥ २३४ ॥ दारट्टिएहिं वियलन्तसलिलभरवारयप्पुयमुहेहिं । मंगलकलसेहिं अहोमुहेहिं सोइज्जमाणं व ॥ २३५ ॥ Page #372 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४ बद्धमाणवामिचरियं । रुइरं व कणयकिंकिणिकलावसं सद्दभरियणहविवरं । णियठाणन्संसुप्पण्णदुसहगुरुदुक्खसंदोहं ॥ २३६ ॥ इय तियसभवे च्चिय तस्स एरिसं माणमलणमइदुसहं । जायं जयगुरुणो जणियदुसह गरुओवसग्गफलं ॥ २३७ ॥ इति महापुरिसचरिए बद्धमाणसामिणो संगमयामरजणिओवसग्गाहियारो समत्तो [१०] ॥ २८९ भयवया वि तप्पएसाओ पत्थिष्ण णिच्छि (स्थि)ष्ण संगमयामरमहोवसग्गेण एवंविहो अभिग्गहो पडिवष्णो जहाजति परं णियलाबद्धचलणजुवला अवणियउत्तिमंगसिरोरुहा मण्णुभराबद्धगग्यं रुयमाणा रायकण्णया वि होइऊण पेसतणमुवगया घरब्भन्तरणिहित्तेक्कचलणा बीयचलणकन्तबहिघरदुवारा सुप्पेक्ककोणेण कुम्मासे पणामेइ ता परं पारेमि ति । एवं च जणेण अणोवलक्खिज्जमाणाभिग्गहविसेसो गामाणुगामं विहरमाणो संपत्तो उत्तुंग गोउरुस्सेहचुंबियंबरं कोलंबिणयति । तर्हि च पविस जहुत्तवेलाए चरियाणिमित्तं जाहे दिज्जमाणं अणेयप्पयारं पयप्पियं ण पडिच्छर जयगुरू ता अच्चन्ताउलीकयमाणसो चिंतिउं पयत्तो [लोओ] | कहं ? - एस अपुण्णो सव्वो वि जणवओ जेण जयगुरू पेच्छ । णाणुग्गहेइ ववएसवि[[वि]हदिष्ण[ऽष्ण]-पाणेहिं ॥ २३८ ॥ जस्स जइणो ण गेहंति कह वि जंते (जत्ते)ण जोइयं दाणं । सो किं गिही ?, मुद्दा होइ तस्स घरवासवासंगो ॥ २३९ ॥ ह ह य ण गेह बहुप्पियारं पणामियं पुरओ । तह तह किलम्मइ जणो जयगुरु चिंतालसविओलो ॥ २४०॥ इयर्णिदियणियविहवोवहोयसंपत्तिविहलजियलोओ । अकयत्थं पित्र मण्णइ सयलं धण-परियणसमिद्धिं ॥ २४९ ॥ एवं च कहंचि असंपज्जज्झा (मा)णभोयणविही वि अमिलायन्तलायण्णदेहच्छवी अण्णेसमाणो जहासमीहियं पिण्डमुद्धिं संठिओ तीए चेव पुरवती (री) ए कइवयवासरे । इओ य तेण राइणा सयाणिएण पुर्वि वेरकारणा चंपाहिवई दहिवाहणो णाम राया अवक्खंद दाऊण विणिवा - ओसि । लूडाविया पुरी, भणियं च-जो जं अण्णिसंतो पावइ तं तस्स च्चेय । तओ एक्केण कुलउत्तएण दहिवाहणस्स पणइणी धारिणी णाम वसुमईणामा य दुहिया समष्णिया पलायमाणा उवलद्धा, गहिया य । पयट्टो सह साहणं वित्तं । अद्धवहे चैव गच्छमाणस्स सोयाइरेएण विवण्णा धारिणी । सा य बालिया वसुमती कोलंबि आऊण विकीया धणसेद्विणो हत्थे । तेणावि ' मह एसा धूय ' त्ति भणिऊण समप्पिया पियभज्जाए मूलाहिहाणाए । गच्छति दिया । गच्छंतेसु दिणेसु वियम्भिओ वसुमईए जोव्वणारम्भो, समुम्मिल्लो लायण्णपयरिसो । चंदणसारिच्छ - सिसिरचंदसहावत्तणओ य तीए चंदणा चेव णामं कयं । अण्णया य सो धणसेट्ठी गिम्हायवकिलिन्तगत्तो आगओ णिययमंदिरं । आगएणं च अपेच्छमाणेण णियघरिणी भणिया चंदा जहा - पुत्त ! मह चलणे पक्खाल ति । तीए वि सविणयं दाऊणासणं चलणसोयं काउमादत्तं । तओ णीसहत्तणओ कुमार भावस्स, वियलत्तणओ अवयवाणं सिढिलीहोऊण णिवडिओ कोन्तलकलावो । दरणिवडिओ घरिओ घणसेट्ठिा लीलालट्ठीए । एत्थावसरम्मि घरंतरपरिसंठियाए दिट्ठो मूलाए लीलालट्ठीए विहारिज्जमाणो केसपासी । तं च पलोएऊण थी सहावत्तणओ सुलहयाए ईसाधम्मस्स, अमुद्धसहावयाए चित्तस्स, रूव-लायण्णुक्कु (क) डयाए वसुमईए, चलिओ हिययभावो सेट्टिणीए । चिंतिउं पयत्ता, कई ? - For Private Personal Use Only Jain Education national Page #373 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९० पउपममहापुरितचरित अह ईसावसपसरन्तदूसहामरिसगयविवेयाए। महिलासहावो सुलहविविहसंकप्पमूलाए ॥२४२ ॥ 'एसा इमस्स धूया, एसो वि इमीए होइ जणउ' त्ति। पडिवण्णं पम्हुसिऊण संगम ताण तकन्ती ।। २४३॥ ववहरइ अण्ण[ह] च्चिय मुद्धसहावो जयम्मि साहुजणो । मण्णइ तमण्णह चिय दुद्वसभावो खलयणो ति ।। २४४ ॥ इय णिययदुढिमाए सरलं पि जणं तमण्णहा कलिउं । मूला मूलमणस्थाण चंदणोवरि तओ जाया ।। २४५।। तओ विगए सेविम्मि ईसोवमुप्पण्णमच्छराए सेटिभजाए वाहरिऊण पहावियं मुंडावियमुत्तिमंगं चंदणाए । बंधेऊण णियलेहिं पक्खित्ता उवरम्मि । भणिओ य परियणो-जो सेहिणो इमं साहिस्सइ तस्स वि एस चेव दण्डो ति। ण य तीए भयाओ पुच्छमाणस्स वि सेद्विणो को पि कहेइ । अण्णम्मि दिणे णिबंधेण पुच्छमाणस्स 'किं मह मूला करिस्सइ ?' ति सिटमेकाए वुड्ढदासीए सेटिणो परमत्थं । तओ समाउलचित्चेण उग्याडिऊण णीणिया तयन्तियाओ। दिहा य सिरोवणीयचिहुरपन्भारा । छुहाकिलामियं च तं पलोएऊण बाहोल्ललोयणेण अण्णेसन्तेण उ(ठ)इयदुवारत्तणओ न किंचि समासाइयं विसिट्ठमसणं, परं कम्मयरभोयणमुत्तिण्णा पलोइया कुम्मासथाली । तओं य थालीओ घेत्तूण सुप्पम्मि कुम्मासे समोप्पिया चंदणाए । भणिया य-पुत्ति ! जावाहं तुह णियलभंजणणिमित्तं लोहारं घेतूण समागच्छामि ताव भुंजसु । ति भणिऊण गओ सेट्ठी । तओ सुप्पणामिए दद्रुण कुम्मासे सोइउं पयत्ता अत्तणो अवस्थंतरं वसुमई । कह ? जइ देव ! सयलजियलोयतिलयभूए कुले को जम्मो । ता कीस अयंडपयंडमागयं दुसहदारिदं ? ॥ २४६ ॥ जइ जाया पिइ-माईण णियतणूओ वि वल्लहा अहियं । ता ताण मरणदुक्खाण भायणं कीस णिम्मविया ? ॥२४७॥ जइ णाम विओओ बंधवाण णिकरुण ! तइं कओ देव ! । ता किमवरमेयं मज्झ पेसभावत्तणं जायं? ॥ २४८ ॥ इय णिययावत्थं णिदिऊण सुकुलुग्गयं च सविसेसं । पुणरुत्तणेन्तबाइंबुणिब्भरं रुयइ सा बाला ॥ २४९ ॥ एवं च णिदिऊण अत्तणो जम्मं, सोइऊण णिययावत्थं, छुहाकिलामियकबोलमंडलं क्यणं करयलम्मि णिवेसिऊण पलोइयं कुम्मासाहिमुहं । ते य तारिसे हाइगुणवजिए मच्छियाकूडसच्छहे कुम्मासे दट्टण अहिययरमण्णुभररुद्धकंठविवरा चिंतिउं पयत्ता-ण य छुहाकिलन्तजंतुणो किंचि 'ण रोयइ' ति, ता किमहं विसमागयदसा वि अदाऊण अइहिणो भुंजिस्सं ?। चिंतिऊण पलोइयं घरदुवारहुत्तं । एत्थावसरम्मिसमइच्छि[या]ए पारिगणयदिणजहुत्तवेलाए गरुयाभिग्गहत्तणओ कत्थइ असंपज्जन्तजहासमीहियण्णविसेसो अणाउरत्तणविसुज्झन्तमुहलेसो जहकमं गेहंगणमग्गेण विहरमाणो तीए सुहकम्मोयउ व्व संपत्तो भयवं जयगुरू तग्गेहंगणं । दिट्ठो तीए । दट्टणं च जयगुरुं 'एयावत्थगयाए वि सफलो मह जम्मो, कयत्था अहं ति जइ एस महाणुभावो कुम्मासग्गहणेण मज्झाणुग्गरं करेइ' एवं च बाहजलपव्वालियगंडयला वि हरिसवसविसट्टपुलयपडलमुव्वहंती, दुसहदुक्खायाससोसियतणू वि असमसमासाइयपायमुहसंपया, दढणियलसंदाणियचलणजुयला वि णिद्दलियदढदुक्खबंधणमप्पाणयं मण्णमाणी, काऊण दुवारबाहिरुद्देसम्मि एकं चलणं करकलियमुप्पेककोणेण पणामिया जयगुरुणो कुम्मासा। भयवया वि मुविसत्थचित्तेण णिरूविऊण पुन्या-ऽचरविमुद्धिं 'संपण्णो अभिग्गहो' त्ति कलिऊण पणामिओ करयलंजली । पक्खिया कुम्मासा इमीए । एत्थावसरम्मि य णिवडिया णहंगणाओ वियसंतकुसुमवुट्ठी, विमुकं गंधोययं मेहमंडलेहि, पवाइओ मुसुरहिसमीरणो, वजिया देवदुंदुही णहंगणे, विमुक्का मुरवरेहिं रयणवुट्ठी। कहं चिय? सुरवरसहत्थ............................यचा । अण्णोण्णवण्णसोहा विहाइ सुरचावलहि च ।। २५०॥ परिमलमिलन्तभसलउलवलयपरिलेन्तबद्धझंकारा । मुरतरुपसूयवुट्ठी णिवडइ रयमासलदियंता ॥२५१॥ उच्छलइ ललियकरकमलतालणुव्वेल्लमंदसहालो । दुंदुभिरवो सुगंभीरवन्जिराउज्जसंवलिओ ।। २५२ ।। Page #374 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९१ ५४ बदमाणसामिपरियं । इय ललिययुग्वेल्लियकरमउलंजलिमिलन्तसिरकमलं । सुरजयजयसंरावेण णिवडिया रयणबुट्टि चि ।। २५३॥ एवं च 'अहो ! दाणमहो! दाणं' ति भणमाणेहिं समंतओ रयणवरिसेण पूरियं धणसेहिणो मंदिरं । समुच्छलिओ णयरीए हलहलारवो-जयगुरुणो पारणयम्मि धणसेटिंगेहे वसुधारा णिवडिय त्ति। एवं च जणपरंपराओ सोऊण सयाणियणरवई समागओ तं चेव सेटिगेहं । दिटुं च दिसिदिसिणिहित्तरयणसंचयं धणसेहिसमज्झासियं मंदिरं । विम्हउप्फुल्ललोयणो य भणिउं पयत्तो परवई जहा-भो महासेटि ! थण्णो सि तुमं जरस तुज्झ तिहुयणतिलयभूया धूया समुप्पण्णा, एईए इहलोए चेव इमं एरिसं भयवओ दाणफलमासाइयं, जेण सुवउ अहमेस्थ पत्थिवो किर पुरीए, कोटुम्बिओ पुण तुमं ति । इय अंतरे वि गुरुणा तह वि तुमं चिय अणुग्गहिओ ॥२५४ ॥ ण य विहवो ण य जाई ण पहुत्तं कारणं कुसलयाए । भवणम्मि अस्थिणो जस्स एंति सो पुण्णहेउ ति ॥ २५५ ॥ पावेइ पुण्णभाई तइया भुवणम्मि एरिसं पत्तं । जइया महल्लकल्लाणसंभवो जंतुणो होइ॥२५६॥ इय एव पत्थिवो थुइसमिद्धिसंबद्धविविहभणिएहिं । अहिणंदइ जा सव्वायरेण कयगोरवं सेट्ठी ॥२५७॥ ताव य तेण सह---------(समागएण एक्केण) महल्एण दिहा चंदणा । पुणरुचवियकापरायणेण पञ्चभिण्णाया। पञ्चभिण्णायाणंतरंच चलणेसु णिवडिऊण रोविउं पयत्तो। तओ तंतहारुइरंदठ्ठण राइणा भणियं-भो किमेयं । तेणावि धाडिप्पभिइसंभूयविन्भमावट्टियं [साहिऊण भणियं-] सेसं एसा चेय साहिस्सइ ति । तओ राइणा वसुमती पुच्छिया। तीए वि जं जहा वत्तं तं तहा चेव साहियं जाव धणसेटिहत्थावगमणं, धृयापडिवज्जणं च, धृयासिणेहणिज्भरं च जहा पालिया सेटिणा जाव अज्ज दिणं, सपयं पुण तुमए सेटिणा य अणुण्णाया इच्छामि धम्मायरणं काउं, जेण सुव्बउ संसारे बहुविहदुहकिलेससयसंकुले असारम्मि । को णाम कयविवेओ रमेज सुहसंगवामूढो ? ॥२५८ ॥ इह जम्मे चिय दट्टण तारिसीं मुकुलजम्मसंपत्तिं । जाया पुणो वि एसा परपेसकिलेसिया मुत्ती ॥ २५९ ।। तं तारिसबहुविच्छडविड्डिरिल्लऽम्ह पुन्बसंभूई । संपइ को गोहीम वि साहिप्पंत पि सहहइ ? ॥२६०॥ इय कलिउं संसारम्मि कम्मुणो वसवियम्भियव्वाइं । को णाम सयण्णो णिमिसयं पि सज्जेज्ज संसारे ?॥२६१॥ एयं च समायण्णिऊण राइणा भणियं जहा-पुत्ति ! अज्ज वि बालो वयविसेसो, अलंघो जोव्वणवियारो, दुजो मोहप्पसरो, बलिओ इंदिओवचओ, ता विलसिऊण संसारविलसियध्वाइं, उव जिऊण सयलिंदियमुहाई, सुरवरसमासाइयं च धणसमिद्धिं उव_जिऊण, पच्छा परिणयवयाए जुज्जइ काउं धम्मुज्जमो, संपयं पुण कत्थ इमं तुह तेल्लोकजंतुकयविम्हयं तणुसरूवं ? । कत्तो लायण्णद्दलणपञ्चलो तवविसेसो? ति॥२६२॥ तुह ललियकंतिलायण्णहारिणो सुंदरस्स रूवस्स । हिमपवणो कमलस्स व विणासभूओ हवेज तवो ॥ २६३॥ जं जत्थ जया जुज्जइ काउं तं तह कुणंति बुहसंघा। किं कुणइ दारुकुम्भम्मि कोइ बालो वि हव्यवहं ? ॥२६४ ॥ इय तह तुह तणुलइयाए रुइरलायण्णकन्तिसोहाए । होइ तवो कीरन्तो विद्धंसणकारओ पूणं ॥२६५॥ अण्णं चतामरससच्छहं तुह सरीरयं कह सहेज तिव्वतवं ? । तिव्वायवं दुमो च्चेव सहइ णो किसलउन्भेषो ॥२६६ ॥ तिव्वं तवसंतावं सहेइ वयपरिणया,ण बालतणू । आयवदसणमेत्तेण सुसइ गोवयगयं वारि ॥२६७॥ काउं तवो हु तीरइ कक्कसवयवेण जंतुणा शृणं । किं वण्डिकणो कत्यइ जलेइ पउरिंधणविहूणो ? ॥२६८॥ इय वयवुढि चिय होइ कारणं इटसाहणत्यम्मि । उज्जोयइ पुण्णससी ण इंदुलेहा जयं सयलं ।। २६९।। Page #375 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चप्पलमहापुरिखचरियं । ओ मायणिण ईसिवियसावियवयणकमला जंपिउं पयत्ता चंदणा जहा - महाराय ! किं पडिबुद्धबुद्धिगो एवंविहाई जंपति ? जेण सुव्वउ सोच्चि का पंडिया पसंसंति । सामत्थं जत्थ समत्थवीरिए.. .....।। २७० ।। ..सामत्थयाजुओ पढमजोव्वणे चेय । सयलाण वि करणीयाण पच्चलो जायए जंतू ॥ २७१ ॥ जया पुण वियलिंदियवेयल्ल विइण्णणीसहसरीरो । इय उद्विउं पितइया ण तरइ किं कुणउ कायव्वं ? ॥ २७२ ॥ वारिय.. . मेत्तसाहणो णेय । कुलिस णिद्दलइ गिरी, कयाइ णो महियापिंडो ॥ २७३ ॥ इय रहिओ कह सामत्थयाए काउं तरेज्ज किं पि णरो ? । इच्छामि तेण काऊण जोव्वणे चेय धम्मम ॥ २७४ ॥ २९२ अण्णं च एस चेय रयणवुट्ठी - - उच्छाहेइ मं धम्मुज्जमे, किं स्थ तुम्हेहिं ण समायण्णियं विउसजंपिय? - ण धम्भरहिया सव्वसंपयाणं भायणं हवंति । एत्थावसरम्मि य समागंतूण पुरंदरेण भणिओ सयाणियपत्थिवो जहा - भो णराहिव ! मा ए -- (वं जंप )सु, जेण सुब्बउ - --- किं ण मुणिया तुमाए एसा संपण्ण सीलगुणविहवा । चंदणतरुणो साह व चंदणा सीलपन्भारा ? || २७५ ।। एसा हु भयवओ वद्धमाणतित्थंकरस्स पढमयरा । अज्जाण संजमुज्जमपवित्तिणी होहि अणग्घा ॥ २७६ ॥ हिययविनयसहर(?रि) सपव्वज्जाकाललालसा एसा । आहासिउं पि जुज्जइ ण अण्णहा, किं त्थ भणिरण १ ॥ २७७ ॥ चिउ णिलणे च्चिय तुम्हं ता जाव होइ सो समओ । जयगुरुणो पव्वज्जाणुग्गहकरणस्स जो जोगो ॥ २७८ ॥ एयं पि इमाए चिय होइ(ई) सुरसुकरयणवुट्ठिधणं । गिव्हउ, जहिच्छियं देउ जस्स जं जोग्गमेत्ताहे ॥ २७९ ॥ तो सासुराविणो अणुमइमेत्तेण गहियघणसारा । णीया सयाणिएणं समंदिरं गोरवं काउं ॥ २८० ॥ इय सा एवं भायं णरवइणो, सेट्ठिणो तहा बीयं । तइयं तु अप्पणा गेव्हिऊण विगया णरिंदहरं ।। २८१ ॥ एवं च दीणा - Sणाह (णाहाण) पयच्छन्ती जह (हि) च्छियमत्थलाहं पत्थिया सेहिमंदिराओ । पत्थिवेणावि पुरंदरवयपोच्छाहिएण पूइऊण धणसेट्ठि तयणुमतीए णीया समंदिरं वसुमई विहिणा, णिहित्ता कण्णंतेउरमज्झम्मि । तओ सा विमुक्का सालंकारा वि साहीणसीलालंकारविडूसियावयवा, अच्चन्तमणहरुप्पण्णलायण्णजोव्वणपयरिसा वि परिणयवयाइरित्तं ववसिया, अवमण्णियासेसविसयइंदियमुहा त्रि असमसमासाइयसमसुहा भयवओ केवलणाणुप्पत्तिसमयं पडिच्छमाणा सयाणियमंदिरे चिट्ठा । वसुमहसंविहाण [११] ॥ अण्णया य विविहमणिकिरणविक्खिण्णतिमिरणियरम्मि अव्वायसरसकुसुमोवयारपउरम्मि महमहन्तकालायरुधूमवडलम्मि समन्तओ आणाहिलासपरिसंठिया सुरभडसमूहम्मि पायालसुरलोयम्मि समुप्पण्णेण चमरासुरेण अवहिं परंजमाणेणं पलोइयं सोहम्माहिवइणो सयलमुररिद्धिसं--- (भारसुं) दरिल्लं विमाणमुवरिभाएण गच्छमाणं, केरिस च ?-- लालिरहनु [-] धुव्वंतघयचिंधयालिल्लं । दारद्वियमंगलकलसमुहणिहिप्पन्ततामरसं ॥ २८२ ॥ णिम्मलमणिभित्तित्थल संगयससि-सूर-तारयालोयं । ...... ...व्यत्तियसारहिसंतद्वरवितुरयं ॥ २८३ ॥ Page #376 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५१ बद्धमाणसामिपरियं । आबद्धभडचलकणिरकिंकिणीजालमुहलियदियन्तं । देवंगवियाणोलम्बरयण-मुत्ताहलकलावं ॥ २८४ ॥ उत्तुंगविविहमणहरविसट्टमणिरयणवेइयावलयं । ............ यकरयलद्धृयचमरचयं ॥ २८५॥ मणिमयखंभुन्भडरयणचंदिमालाहिरामणिज्जूहं । घरदीहियायडुड्डीणमुहलविलसंतहंसउलं ॥२८६॥ इय णिज्जियमुहसोहाणुहावविहवं णहंगणाभोए । हरिणो विमाणरयणं च मा ...........॥ २८७ ॥ ---(एवं) च सुराहिवइणो विमाणरयणावभासिणि सिरिं दट्टण सेवागयपासपरिसंठियासुरभडसमूहवयणाई पलोइऊण भणियं चमरासुरेण-भो भो ! को वुण एसो मं तणं वाऽवमण्णिय उवरिभाएण वच्चइ ? । तओ - -(तेहिं) - - -(मणियं)-------णसुरभडमणिमउडमसणियपायवीढो णिन्भरकुंभयडपलोदृणिन्भरमयंधएरावणणाहो मणहरसुरलोयविहूइभायणभूओ सोहम्माहिवई वज्जणाहो । तओ ताण वयणाणंतरुप्पण्णामरिसवियम्भन्तमिउडिभीसणो भणिउं पयत्तो-जइ णामाहमेत्य बहुत्तणगुणगारवग्यविओ ता को एसो मं परिहावेऊण उवरिभाएण वच्चइ ?, अहवा एस चेव पहू ता किं मह [ पहुतणेण ? ण हु दोण्हि पहुत्तणाहिलासिणो चिरं केणावि पलोइया, कह ?-- उव जन्ती अण्णेण पहुसिरी णेय तीरए सोहुँ । किं कोइ सहह दऔं णियदइयं अण्णहत्थगयं १ ॥२८८ ॥ महिलाण वि होइ च्चिय सरसं सोहग्गसुंदरं रुवं । तं चिय धीराइगुणेहि जाइ भेयं सुधुरिसाण ॥२८९ ॥ हिययं च धीरयासंजुयं ति को अण्णउण्णई सहइ ? । करकोडिगोयराणं तरूण किं दुक्करं करिणो ? ॥२९०॥ अहिलसइ जो ण वेत्तूण परसिरिं णियबहुत्तसंतुट्टो । सो ससिरीए वि मुच्चइ 'अव्ववसाइ' ति कलिऊण ॥ २९१ ॥ तस्स हु जीयं जाएज माणिणो सहलयाए संबद्धं । जो जियइ सन्वयालं णियतेओहूयपरतेभो ॥ २९२ ॥ अमुराणं पहु सको हवेज अहवा [अहं) सुराणं पि । किं एकम्मि कयाइ वि कोसे संठाइ खग्गजुयं ? ॥ २९३ ॥ इय एकदइयपरिपालिया सुहं वसउ अज्ज जयलच्छी । दुक्खं चित्तग्गहणं कीरइ एकाए दोहं पि ॥२९४ ॥ एवं च चमरासुरस्स अविहावियणियबलमाहप्पदप्पजंपियं सोऊण पयंपियं चिरंतणासुरमहल्लएहिं जहा-सामि असुराहिवइ ! एसो हु पवरसुरसुंदरीणाहसुरलोयाहिवो सुपरियप्पियतवाणुहावेण समुप्पण्णो, तुमं पुण सुहोययाओ चेव भवणवासीणमाह(हि)वच्चत्तणेण संजाओ, ता उवभुजम् तुमं णियसुहकम्मावज्जियमाहिवचलच्छि, एसो वि , महिंदपयपडिबद्धं सुरलोयलच्छि, को एत्य तुम्हाणं विरोहो ?, एयस्स पुण अण्णणिकायपडिबद्धा वि आहिवञ्चया वसे चेय चिट्ठन्ति ति, तह वि णाहिमाणो । एयं च ताण वयणं णिसामेऊण गरुयामरिसबसवियम्भन्तभिउडिमासुरो जंपिउं पयचो जहा-"महपरिहवुप्पत्तिपिसुणं जंपमाणाण तुम्हाण चिरन्तणगुणगस्यया वि पलहुया संवुत्ता, जेण गुणा हु गारवमुन्वहन्ति जंतुणो, ण कालपरिणती, गुणाइरित्तो हु पलहू वि गरुओ, गुणविरहिओ उण महल्लो वि लहुओ । अहवा अविण्णायमहपरकमाण को तुम्हाण दोसो ? ता किं करयलकड्ढियवियडपडतोरुसिहरपन्भारं ? । एकपदेसोवगयं करेमि वरकुलगिरिणिहायं ॥ २९५॥ ओम(मोहभुयागलच्छणपल्हत्थियपउरसलिलपन्भारं । विवरम्मुहं पलोहेमि सयलसलिलाहिवइवेलं ॥ २९६ ॥ • अहवा सुरगिरिसिहरावयासपरिसप्पिरं गहगणोहं । पडिकूलं परियत्तेमि विसमविक्खिण्णतारोहं ॥ २९७ ॥ उयय-ऽत्थधराहररविविवज्जियं संजणेमि एत्ताहे । ससि-सराणं व करेमि अणुदयं उययमत्यमणं ॥ २९८ ॥ १ दृश्यता ९७ गाथापूर्ववर्तिगद्यविभागस्थितहस्तांचहोपरिवर्तिनी टिप्पणी । २ 'लवट्टिय जे । ३ उज्झु(म्मुह जे । ४ एतदस्तचिहादारभ्य ४०४ गाथानन्तरवर्तिगद्यविभागस्थितहस्तचिह(च)मध्यगतपाठसन्दर्भस्थाने जेपुस्तके एतावानेव पाठ उपलभ्यते-"इच्चेवमादि बहुप्पयारं दप्पुधुरं गज्जिऊण णियमहालयाणं बलामोडियाए निग्गओ चमरासुरो [सुरवइणोऽहिमुहं । वच्चंतेण य दिह्रो भयवं पडिमाए संठिओ बदमाणसामी । चितिय च गेणं-जह कहवि पुरंदरातो भयं भविस्सइ ता एस मह सरणं । ति हियए निवेसिय ठिइपक्वं पहाविभो तुरियतुरियं । तो लंघिऊण समि-सूर-णक्खत्त-तारयं णहंगणं संपतो वेएण सुरं। Page #377 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९४ चम्पामहापुरिसचरिय | अह अ[br]णिका (यस्स) बि वहुत्तणं तस्स संसमाणेहिं । अवणतेर्हि मह पुणो ण याणियं कह वि महविरियं १ ।। २९९ ।। ता भो ! तुम्हे हिं तस्स पक्खवायं कुणंतेर्हि सो चेव सलाहिओ, मह उण अवण्णा कया । ता जो एकाणुयत्तिपरायणो सोजाइ रंजिउं, जो उण अष्णोष्णचित्ता राहणपरो तस्स वेसायणस्स व दुक्खेहिं घेत्तुं चित्तं तीरइ" । तओ तं अवमण्णिसामाणियगोरवं चमरासुरस्स जंपियं सोऊण भणियं सामाणियासुरमहल्लएहिं जहा - महासुरराय ! ण. हु अम्हाणं पइ परलोयणिमित्तिया भत्ती इहलोयणिमित्तिया वा, ण य तुम्हार्हेतो अम्हाण किं पि संपज्जइ अवेइ वा, किंतु जहावद्वियमम्हेहिं भणियं, ण उणो विभेयकारि त्ति, ण हि सज्जणाण अण्णहट्ठियं अण्णहा जंपिउं जुज्जइ, ण य अम्हे तुह बल-परकममयाणमाणा भीसावणत्थं भणामो, जेण एसो हु इंदस्स वि पूर्याणिज्जो, जइ वा जं जहावद्वियं ण भणिमो तं प अम्हाण दोसावई ति, संसिएण हियमिच्छुणा जं जहा कीरमाणं हाणि बुढिकारयं होइ तं तहेब भणियव्वं, ण य एसो दिलोयाहिवई तुम्हाणमहिक्खिविडं जुज्जर चि । तओ तमवहीरिऊण ताण वयणं भणिउं पयत्तो, कहं ? "भयमेकरसं बहुसो पयंसमाणाण णिचमच्चत्थं । वलहुत्तणं चिय मया कलियं तुम्हाण बुद्धीए ॥ ३०० ॥ रहिओ भयदरिसि व्व मंतिसत्थो हु जारिसो होइ । सिद्धी वि तारिस चिय पहुणो कज्जाण संपडइ ॥ ३०२ ॥ 'असमतबलो पढमुन्भवो' ति अहयं मुणेह मा चित्ते । आजम्माओ चिय सत्तजुतया घेप्पर हरिणो ॥ ३०२ ॥ जम्मदिणेणेय समं महोज्जियं होइ . यं । उययाहिंतो णीहरइ तेयजुत्तो दियसणाहो ॥ ३०३ ॥ अज्झवसायविहूणेहिं अपण श्चेय बहुभयं भणियं । जो जणइ अप्पणो च्चिय भयाई सो कह परं जिणइ १ ||३०४ || ता यस भयं अहमेव केवलो णियसमत्थयाजुत्तो । भयतरलपुलइयत्थं करेमि देवाण रायाणं ॥ ३०५ ॥ चिट्ठह सुण तुम्हे समयं णियपणइणीहिं परियरिया । ....... म्हाण अहव को भयासंका १ ।। ३०६ ।। गलियमउडा-ऽऽयवत्तं अवहियसीहासणं विगयभूइं । अहमेकभुयबलो पहयबल-मयं कुणमि सुरणाहं ॥ ३०७ ॥ णय अण्णबलं बलिणो समागयं भुयबलं च मोत्तूण । हरिणो करिकुम्भवियारणम्मि किं परबलावेक्खा ?” ॥ ३०८ ॥ इय असुरई वोण णिययदप्पुधुमायमाहप्पो । सहसा समुट्ठिओ आसणाउ कयभिउडिभीमच्छो ॥ ३०९ ॥ तओ णिव्वरकरतलप्पहारदलियर सायलभित्तित्थलुच्छलंतविसहररयणप्पहाहोयं दलिऊण पायालमूलं गुरुयरपरिहापरिक्खेवविन्भमं भ्रुयजुयलदप्पुव्वहमाणो विणिग्गओ उयराओ व्व पायालमूलाओ चमरासुरो । गुरुवेयाणिलविसमविक्विण्णजोइसगणे समुप्पइओ णहंगणे । कह ? - उप्पइओ वेउप्पइयवायचक्कुल्लसन्तचलचूलो । विसमंदोलियहारोलिवल यपरिहट्टियावयवो ॥ ३१० ॥ विष्फुरियतरणिकरमिलियमउडमणिकिरणमासलच्छाओ । लीलंदोलियकुंडलपरिहट्टियविमलगंडयलो ॥ ३११ ॥ वेयवसा हित्थुत्तस्थतियससुंदरिविदिण्णणहमग्गो । संभेडफुडणभयओसरन्त विवलाणसिद्धगणो ॥ ३१२ ॥ इय घडियभिउडिभंगुर मुहमंडलजणियजीवलोयभओ । वेषण समुप्पइओ चमरो णहमंडलाभोयं ॥ ३१३ ॥ गच्छंतेणं च तेण 'सुराहिवई एसो ' त्ति णासंसियं मणयं पि तस्स समीवाओ भयं । समइबलावलेवुम्मत्तमाणसो गंं. पयत्तो। यच्छमाणेणं च तेण सच्चविओ एकम्मि परसे समो व्व मुत्तिमंतो पडिमासंठिओ भयवं वद्धमाणसामी । दरिसणाणन्तरं च करकमलंजलिमिलंतुत्तिमंगो पणमिऊण भणिउं पयत्तो, कह ? - तुह जयगुरु ! भतिसंगओ, अहममराहिवई जिगीसया । सरणमिहमिमं तु भाविडं, पयजुयलं आवइसंगयस्स ॥ ३१४ ॥ मोइयमुणियभवं भवंतयं, भवणवई भवणासयं गुरुं । सरणम्मि परो बहुओ, विणिवयणप्पडियार संगओ ।। ३१५ ॥ हियभणियकयावहीरणो, सरणमवलंबइ गाउमं जहा । चिरमवि हु असप्पदं गओ, अवयरए सयमेव पंथ ॥ ३१६ ॥ For Private Personal Use Only Page #378 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४ बदम्पणखामिचरियं । परिचलियकिरीड-कोंडलो, फुरियउरत्थलहारमंडलो । पवणजववसोपहूणणा, पडिवहहुत्तं विलं परंपरो ॥३१७॥ . जवविहडियमेहडंबरो, समुहवियासविसालउज्जलो । अहिमुहमहिदंसणुब्भडो, भयविवलाइयसिद्ध-चारणो॥३१८॥ त्ति । एवं च समुप्पज्जमाणजवेणाणिलमहो व पक्खिवन्तो अहिलंघिऊण ससि-पूर-णखत्त-तारयं णहंगणं संपत्तो वेएण सुरलोयं । अविहावियभय-संभमेहिं च पलोइज्जमाणो सुरच्छरगणेहिं संगओ महिंदत्थाणियासण्णभूमि चमरा सुरो। दट्टणं च तं वासवेण(वासवो) अणुइयपएसागमणत्तणओ चमरासुरस्स परिहवं व्व(व) य(ब)चणो वियर्कतो चिंतिउं पयत्तो-किमेस एत्थागओ ? ति । एत्यावसरम्मि य चवलत्तणओ अविहावियवयणकमो चमरासुरो जंपिउं पयत्तो, कह ? "ण सुराहिवत्तणे भायणं सि तं, भूमि संपइ महेसा। परसंसिया चिराओ वि णियपई जाइ पइभत्ता ॥३१९॥ जमसाहीणम्मि मए जाओ सि तुम बहु त्ति तं बहवं । [...] वि रविणो गयणंगणम्मि सोहं लहेइ ससी॥३२०॥ सो हं समागओ वक्कमाहि सुरणाह ! भाविउं चित्ते । अहिरमउ सग्गलच्छी चिराउ समयं मए बहुसो ॥३२१॥ इय भाविऊण णियए मणम्मि उप्पेसि(सु) सुरसिरिं मज्झ । थेवेणं चिय कीरउ परिओसो किं च बहवेणं?" ॥३२२॥ एवं चासमंजसपलाविणं सोऊण हेलाए भणियं सुरभडेहिं जहा-"भो चमरासुर ! ण सुमरेसि अप्पयं ?, किमियमइभूमिमागओ सि ?, जेण णिवायकामो विव दुण्णयपहम्मि अप्पणो पयं पक्ख( क्खि )वसि ?, णयभाइणो हु पुरिसा सज्जणसलाहणिज्जाणं सिरीणं भायणं जायन्ति, कहं ? णयभायणम्मि संपडइ सयलगुणरिद्धिसंभवो गुणं । णयरहियाणं पुण संगओ वि ण थिरत्तणं महइ" ॥३२३ ॥ अह तेहिं इमं भणिए पुणो वि चावल्लदोसवामूढो । चमरो [?ते] णिल्लज्जुज्जयासयं भणिउमाढत्तो॥३२४॥ "ण हु मज्झं णय-विणओवएससंसूइणो तुमे ठविया । एवंविहम्मि भणियन्वयम्मि को तुम्ह अहियारो? ॥ ३२५॥ जं मुयबलसामत्यं जस्स जहा घडइ तं पयंसेह । मइ जुज्झलालसे एरिसेहिं कि जंपियव्वेहिं ?" ॥ ३२६ ॥ इय अवहत्थियणयमग्गजंपियवम्मि दणुअणाहम्मि । खुहिया सुराहिवइणो सहा विसंभंतहलबोला ॥ ३२७ ॥ खुहिया य देहसम्मद्ददलियकेऊरकोडितुटुंतहारवियलंतमोत्तियप्पयरभरियभवणंगणा, संचलणचलियमणिमउडणिविडसंघट्टफट्टपडिबंधबद्धमिणिदणीलसामलियदिसिवहा । पसरन्तणिन्भरामरिसवसविसदृन्तपुलयपडलूससंतकयगाढकडयकेयूरसुंदरा, हण हण हण त्ति गद्दब्भवयणडकोट्टभिउडिभंगुरियभुमयभीसणपलोयण ॥३२८॥ ति। एवं च ते सुरभडा सुराहिवाणत्तिं विणा वि समुज्जया चमरासुरं हेतुं । सो वि संकिण्णामरभूमि त्ति कलिऊण अमराणमहिमुहो च्वेय समोसरिओ पयक्खेवेहि, ण उण चित्तेण । तेहिं पि बहुपहरणोहरणसंभेडसंजणियखणखणासहपूरियदियंतरालेहिं समंतओ परियालि . . . . . - रो वि रणरहमुद्धाइए णियच्छिऊण सुरभडे परिहच्छखग्गग्गधाराणिवायपसरपडिभग्गफ्सरे समन्तओ काऊण णिक्खंतो ताण मज्झाओ। तओ चमरासुरेण हरिणाहिवेणं व कुरंगसंदोहो, जलणिहिवेलासमूहेणं व महाणदीसोतो विक्खित्तो सुरभडसमूहो । पुणो वि घणसंततिघडणसंघट्टकयघणरवा रणपरियराबद्धमेतपडियारकारिणी संठिया अहिमुहं सुरवाहिणी, कह ? आयण्णायड्ढ्यिजञ्चकंचणाबद्धपुंखभाएहिं । उत्थरियमंवरयलं घणवडलेहिं व बाणेहिं ॥ ३२९॥ करपक्खित्ता णिवडन्ति तिक्खकोन्तग्गसेल्लसंदोहा । परमम्मभेइणो खलयण व्व सव्वत्तओ दुसहा ।।३३०॥ अइणिसियचक-मोग्गर-मुसुंढि-करवालणियरदुप्पेच्छो । पहरणगणो समन्ता असुरोवरि पडइ भयजणणो॥३३१॥ विषमाक्षर-मात्रो गलितपाठो वाऽयं छन्दोविशेषः । Page #379 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९६ चउम्पन्नमहापुरिसवरियं । तो सो वि असंभंतो परिहत्थुक्खित्तपायवक्खेवो । उद्धाइ महिमुहं सुरभडाण अणिवारियप्पसरो॥३३२॥ तो सो परिहापरिष्ममभामियामरगणो घडन्तभिउडिभासुरो समागयं सुरोहयं, कुणेइ सत्तओहयं । विमुक्कधीरिमायरा, पडन्ति तत्थ कायरा ॥३३३॥ विमुक्कलज्ज-माणया, रणं अणिच्छमाणया। मुरा रणाहिसंगया, महाऽसुरेण भग्गय ॥३३४॥ चि। तो ते सुरभडा तस्स पहावमसहमाणा पमुक्कलज्ज-मज्जाया भग्गा समाणा समागंतूण संठिया महिंदपुट्ठिभायम्मि । ते य तारिसे सुभडे विमुक्कसमरमच्छरुच्छाहे पेच्छिऊण कुविओ सुराहियो, कह? जायं च गरुयमच्छरवसपरियट्टियघडन्तराइल्लं । उप्पाऽऽयट्टियरविमंडलं व वयणं दुरालोयं ॥३३५॥ वह कुविएणं हसियं विसट्टपडिरवघडन्तसव्वदिसं। जह से भएण हित्थो गट्ठो पासाउ परिवारो॥३३६॥ तह सा दिट्ठी अमरिसवियम्भिउव्वत्तभिउडिभंगुरिया । अण्ण व्व संठिया जह पयइपसण्णा वि दुल्लक्खा ।। ३३७ ।। इय वढियगुरुमच्छरपयावपसरो सुसहालोओ। जाओ सुराहिवो कुवियकालकयरूवसारिच्छो॥३३८॥ णवरि य कोवुल्लसंतवेल्लपरिययं सुराहिवं मुणेऊण समागओ पज्जलियजलणजालाकलावकलियदिसामंडलो अविरलविणीहरन्तफुलिंगकणसंवलियणहंगणाहोओ णियसामत्थयासमत्थियसमत्यतेल्लोकवीरिओ कवलयंतो व समत्यं महिंदपडिवक्खं वजदेवो । भणिय च तेण]-सामि ! सुरणाह ! कीस उण हिययचिंतियमेत्तमझम्मि वि मए एवमप्पा आयासिज्जइ ?, ता दिजउ मे समाएसो। तओ तमागयं द्रूण पेसिओ सुराहिवेण चमरासुरसम्मुहं । लदाएसो य पहाविउं पयत्तो वज्जदेवो, कह ?___णवरि य खयकालसारिच्छविच्छड्डजालाकलावुज्जल [-------] तिब्बप(प्प)होहूयगिम्हुम्भडन्भूयदिप्पन्तसूरायवो, पसरियगुरुतेयसामस्थसत्या त्य]वित्तत्यदेवंगणाहिं समोसकणुव्वेल्ललोलंमुयन्तघुप्पन्तकंचीकलावुज्जलं जोइओ। भयभरविहलाउलुत्तत्थपल्हत्थ -------सदृतुंगत्थलीगंडवाहाण संघेहिं भीएहि णीसेससेलेहि दिहो, अहिमुहपरिसंठियामुक्तपंथेहिं णीसेसदेवेहि णिज्झाइओ वेयवि(वे)यल(ल्लादूरुल्लसंतोरुहारालिमुत्ताहिं सत्तारयासंकमामासमाणो णह(हो)मंडले' ॥ ३३९ ॥ त्ति। दिट्ठो य समुहमागच्छमाणो चमरासुरेण । दूरओ चेय तप्पहावपणवीरिओ अच्छउ ता जुज्झियव्वं,----- (किंतु तं अव)लोइउं पि अपारयंतो अवियाणियर्किकरणीओ 'ण अण्णो उवाओ त्ति जयगुरुणो चलणकमलं सरणं ति सुमरिऊण पलाइउं पयत्तो, कह ? वड्ढियभीमभयाउलदेहो, देहपणासियधीरसमूहो । मुहसंताससमुग्गयसामो, सामपयम्मि य दिण्णविरामो ॥३४॥ रामसरिच्छवियम्भियभावो, भावियलोयगुरुत्तमणामो । णामियपोरुसदप्पविसेसो, सेसोवट्टियपहपरिवेसो॥३४१॥ ति। संपत्तो य चिंतामणि पिव समत्तजंतुचिंतियमेत्तसंभावियत्थं, कप्पतरुं पिव परियप्पणाणंत रुप्पाइय समीहियं जयगुरुणो चलणकमलंतियं । जं च केरिसं? विष्फुरियविमलणहमणिमयूहसंजणियकेसरायारं । उव्वेल्लकोमलंगुलिदलोहपरिवेसराहिल्लं ॥ ३४२ ॥ वित्थिण्णललियलायण्णसलिलमज्झट्ठियामलच्छायं । संपत्तपत्तसंकंतकंतिकयकोमलच्छायं ॥ ३४३॥ तवरूवलच्छिरमियव्वजोग्गसुसिलिट्ठसंगयरहंगं । पण्हियलकण्णियावलयकयसिस)णाहोरुपरिवेसं ॥ ३४४ ॥ इय चलणपंकयं तिव्वतवविसप्पंतगंधरिदिल्लं । तिहुयणगुरुणो सरणं पत्तो भसलो ब्व दणुराया ॥ ३४५ ॥ अल्लीणो जयगुरुणो सयलतेल्लोकआससणं पयपायवच्छायं । एत्यंतरम्मि दणं जयगुरुणो पायपंकयच्छाओवगयं चमरासुरं भणिउं पयत्तो वज्जदेवो जहा भो भो चमरासुर! साहु तइ कयं एरिसं कुणंतेण । आजीयाओ आवज्जियाई तुमएऽम्ह चित्ताई ॥ ३४६ ॥ १ विषमाक्षरजातिविशेषरूपोऽयं दण्डकच्छन्दोविशेषो सेयः । Page #380 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४ वद्धमाणसामिपरियं । ण हु एस परं तुह चमर ! जयगुरू सयलतिहुयणाणं पि । सरणं अम्हाण वि असरणाण समुराहिवाणं पि॥३४७॥ तं(ज) च तुमए सुराहिवपरकम एस्थमुवहसंतेण । संलत्तं तं इमिणा कएण दूरं समुप्पुसियं" ॥३४८॥ इय भणिऊण वियम्भन्तभावभरमंथराए दिट्ठीए । जयगुरुणो पयपायवछायासु परिट्ठियं चमरं ॥३४९॥ अन्तोपसरन्तसमुप्पण्णसोमयासंजुओ तिपयाहिणीकाउमाढत्तो । केरिसो दीसिओ ?, अवि य-- विष्फुरियतेयमंडलपसंडिसंपिडियामलच्छाए । सुरगिरिकडए तरणि व्व विमलकरकन्तिपेज्जालो॥३५० ॥ पज्जलियजलणजालावियासपसरो णिहित्ततमणिवहो । आरत्तियापदीयो ब्ब दीसिओ रामकयखेवो ॥३५१॥ दूरविणिग्गयभामंडलप्पहं भाविऊण अत्ताणं । जलणो जयगुरुदेहप्पहाए पाएमु पडइ च ॥ ३५२॥ इय तिपयाहिणपुव्वं गमिउं वज्जामरो तिलोयगुरुं । वेएण पुणो वि गओ समयं समइच्छियं ठाणं ॥३५३॥ गए य तम्मि चमरासुरो महियलपरिलुलियतरलहारो पणमिऊण थोउं पयत्तो जयणाई, कह ?जय णिज्जियमुर[णर]-तिरियजणियगरुओवसग्गभय! वीर!। अंतोपसरियशाणग्गिदड्ढकम्मिधणसमूह ! ॥३५४॥ गिद्धोयजच्चकंचणसमुज्जलल्लसियतणुपहप्पसर ! । असरिसगुणसंभावणवियंभियाइसयसंदोह ! ॥३५५॥ ण हु णवर अहं एक्को तुह चलणपहाववज्जियावज्जो । सयलं पि तिहुयणं भवभयाहि णित्यारियं तुमए ।। ३५६॥ इय विहिणा तिउणपयाहिणक्कम पणमिऊण जयणाहं । णियभवणवसहिहुत्तं चलिओ चलकुंडलुज्जोओ ॥३५७ ॥ संपत्तो णिययाणुहावपरियड्ढमाणगइविसेसो सभवणालयं चमरासुरों त्ति। इति महापुरुष(रिस)चरिए चमरुप्पायसंविहाणयं [१२]॥ तओ तिहुयणगुरुणो पवरपयपंकयभसलाइयं काऊण गम्मि [अ]सुराहिवे चमरासुरे जयगुरुचलणाणुहावरक्खणापरितुढे संपत्ते णिययपायालभवणं भयवं वद्धमाणसामी अणेयतवविसेसावसोसिजंतकम्मसमुयओ विसहन्तो सुर-मणुयतिरियजणिए णाणाविहोवसग्गे कमेण विहरमाणो संपत्तो मंदाणिलसमुव्वेल्लकल्लोलमालासमुम्मिल्लतरलतरंगजालंतरुच्छलन्तमच्छपुंछच्छडाघायभिज्जन्तसिप्पिसंपुडं सिप्पिसंपुडतोविणेतमुत्ताहलधवलप्पहापरिक्खेवदिट्ठविविहजलयरं जलयरपरोप्परावडणुन्भडविसट्टडिंडीरपिंडपंडुरियपेरंतं मंदाइणीकच्छं ति । तहि च समत्तजंतुसंताणोवद्दवविरहिए ठिओ एकपासम्मि मुणिवई पडिमाए। एत्यावसरम्मि य अन्तोवियंभिउद्दामविसायवसकसणीकयवयणमंडलो समुब्भडयरभिउडिभंगभंगुरियभालमग्गो ददायर(य)थिरथोरकुट्ठदीडदंडचंडीकयभुयादंडो इओ तओ ससंभमपलोयणवसा विसप्पंतदिद्विविच्छोहो पत्तो तं पएस एको पणट्टगोमंडलो तरुणगोवो । अवि य-- कढिणयरपाणिपडिबद्धमुहिणिटुरकउड्ढदढदंडो। थिरथोरमडहपयडोवलक्खिउव्वेल्लभुयजुयलो ॥ ३५८ ॥ अच्चुन्भडसिरपडिबद्धजूडउविडिमकुडियकयडमरो। खरफरुसफुडणफारुल्लसन्तपिहुदीहपयजुयलो ॥३५९॥ परिचिवुयणासियातुंगगहिरपुलइज्जमाणगुरुविवरो । थोरोहफु(पु)डन्तरधवलदीहदीसन्तदसणग्गो ॥३६० ॥. इय कयपयंडरूवो णिव्वरवयणोवसिट्टचंडिज्जो। अल्लीणो सहसा गोवदारओ कालपडिरूवो ॥३६१ ॥ आगंतूण य भणिउं पयत्तो-हंहो ! णइ --------- रूबोवलक्खिए गोरुवे पुलोइयपुव्वे तुमए ? त्ति । पुणो पुणो भणिज्जमाणेणावि जाहे ण किंचि जंपियं भयवया ताहे रोसवसफुरुफुरायमाणोठ्ठउडेण भणियं-मह सब्वायासेण भणमाणस्स -------- गुरोहो ण समुप्पण्णो ता तहा करिस्सं जहा पुणो वि एयारिसमव Jain Education national Page #381 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९८ चउप्पलमहापुरिस्चरिय। जमण्णस्स विण कुणसि । ति मणिऊण समाहयाओ भयवओ कण्णविवरेसु णिकरुणेण कासकीलियाओ, कयाओ भग्गपेरन्ताओ । भय पि अवमणियतिव्वयरवेयणाणुहावो समन्भहियवियम्भियमुहज्झाणपसरो सुरगिरि व्य णिप्पयंपपरिसंठियसयलंगविहाओ पडिमासंठिओ तहेव चिहइ त्ति । इयरो उण चिंतिउं पयत्तो 'णियचरियदुट्टयाऽसुद्धचित्तउप्पाइयऽण्णहाभावो । इय संठिए वि अज्ज वि पेच्छ अवण्णा कहं कुणइ ? ॥ ३६२॥ अवियारिलं सरूवं मुणिवइणो तेण पहरमाणेण । गोवेण गोक्या णिकिवेण कह पेच्छ पायडिया? ॥३६३ ॥ णावेक्खियं सरूवं, ण संतया, ण य वियारिओ वेसो । णिययं सुद्धसरूबाण उवह होन्ति चिय इमाइं॥ ३६४ ॥ माया-णियाण-मिच्छत्तसल्लरहिओ वि जयगुरू जाओ। को(का)ससलायासल्लेण सवणविवरन्तरससल्लो ॥ ३६५ ॥ साहीणभोयचाओ असंगया तवकिसंगया चेव । अवयारमवयरन्तेण णियसरूवं जए सिटुं॥ ३६६ ॥ इय सुर-णर-तिरियगणाण जणियगुरुहिययघणचमकारं । उवसग्गं काउं पडिगयम्मि गोवालयणरम्मि ॥ ३६७ ॥ भयवं पि सवणविवरन्तरणिहित्तकाससलायापडिभग्गपेरन्तो दूसहवियणावसोवलक्खिज्जमाणपन्यायवयणलायणा सविसेसतवविसेससंपजन्तकुसलकम्माइसओ एक संपत्तो मज्झदेसाहिद्वियं मज्झिमाहिहाणं सम्मिवेसं । तत्थ पारणयदियहम्मि पविट्ठो सिद्धयत्तवणियगेहं । तेणावि जहासमीहियसंपाइयं भोयणमुव जिउं पयत्तो। एत्थावसरम्मि य पुव्वागयवेजसुएण दट्ठण भयवओ सरूवं भणिो य सिद्धयत्तो जहा-ससल्लो वि[व] भयवओ तणू समुवलक्खिज्जइ, जेण पेच्छमु रवियरपडिबोहियकणयकमलसप्पहं पि मिलाणलायण्णानुबलक्खिज्जइ वयणकमलं, जच्चतवणिजपुंजुज्जला वि वियणावसेण मंदप्पहा देहच्छवी, रवियरदरदलियकुवलयदलोवलद्धसोहं पि मउलाइ लोयणजुयं, पुरगोउरपरिहपरिक्खेवदढदीहत्तणसुंदरं पि किसत्तणमुवगयं बाहुजुवलयं, ता 'कहिं पुण सल्लं?' ति पुलोइया समन्तओ भयवओ तणू । दिद्वं च सवणविवरन्तरनिहित्तं कासकीलियाजुयं । दंसियं सिद्धयत्तवणिणो । तं च तारिसं दट्टण कारुण्णयापवण्णमाणसेण भत्तिभराइसयत्तणओ य भणिओ णेण वेजमुमो-अह एवं ठिए को उण एत्थ उवाओ? । इयरेण भणियं-अस्थि एत्थ उवाओ, किंतु एस भयवं ण पत्थए चिकिच्छियन्त्र, ग बहुमण्णए सरीरटिइं, ण गणेइ पयट्टियं -------,--(ण इच्छइ जीवियब्वाहिलासं ति, जेण पेच्छ परितुलियासेससुर-गरपरकमो वि अबलं व अत्ताणयं समुबहइ, अण्णहा कहं पाययपुरिसेण केणावि एवमवयरिज्जइ । एवं च ताण परोप्परालावं उवेक्खिऊण णिग्गओ भयवं भोयणावसाणे वणियभवणाओ । विणिग्गए तम्मि भणिओ सिद्धयत्तेण वेजतणओ जहा सयला वि गुणा सहला जयम्मि जायन्ति पत्तसंपत्ता । वण्णकम ध सुविहत्तमित्तिसंपत्तपरभाया ।। ३६८॥ तं विष्णाणं, सो बुद्धिपयरिसो, बलसमत्थया सा वि । जा उवओयं वच्चइ सयलगुणाहाणमणुयम्मि ॥ ३६९ ॥ सव्वो कुणेइ कज्जं दिणेककजोवयारकजम्मि । इह उण जायन्ति दुवे वि तुज्झ लोयाहिउत्तस्स ।। ३७०॥ मह अत्थो अस्थि समत्थकज्जकरणोवओयपज्जत्तो । जं उवओयं वच्चइ, कीरउ, ण वियारणाकालो ॥ ३७१ ॥ इय भणिए वणियमुएण बहलरोमंचपुलयपडलिल्लो । वेज्जसुओ वयणवियम्भमाणपरिओसपडहच्छो ॥ ३७२ ॥ भणिउं च पयत्तो-"जं तुम्हेहि संलत्तं तं] परिसंठियं मज्झ हियए, किन्तु चत्तारि किरियाए अंगाणि भवन्ति, तं जहा-रोयाउरो अइतिग(गि)च्छणीओ, साहीणमोसहं, सण्णिहिओ परिवारओ अणुकूलो, सरूवोवलक्खओ वेज्जो त्ति । इय संपत्तिजुत्ता तिगिच्छा सहला संपज्जइ ति । एत्थं पुण जो चेय तिगिच्छणीओ सो अगाउरो अणत्थी य । तत्थेवं ववत्थिए किमहं करेमि?" ति । सिद्धयत्तेण भणियं"हियए अणिच्छमाणो(णे) वि गुरुयणे जस्थ होइ ण विरोहो । होइ सयत्यो कुसलस्स आयरो तम्मि कायवे ॥३७३ Page #382 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४ वद्धमाणसामिपरियं । - संजुज्जइ हिरवाएण भत्तिजुत्तो गुणेण जो जेण । अणलक्खिओ वि गुरुणा तं चेय गुणं पउंजेज्ज ॥ ३७४ ॥ दोसा ण जत्य जायंति होति हियइच्छिया गुणा जत्थ । अणणुण्णाएण वि तं गुरुम्मि मुवि(यि) होइ करणीय" ॥३७५॥ इय भणिए वणियमुएण वेज्जतणओ पयड्ढिउच्छाहो । अल्लीणो पडिमासंठियम्मि गुरुणो तरुतलम्मि ॥ ३७६ ॥ तओ ओणामेऊण उभयपासेसु तरुणो साहाओ, संदामिऊण रज्जूए कीलियाओ परंतेसु, णिबद्धाओ साहासु । विमुक्काओ जहावट्टियं साहाओ। ताहिं च गच्छमाणाहिं समुक्खयाओ कीलियाओ । णीसल्लीकओ जयगुरू। णिग(ग्ग)च्छन्ते य सल्ले जमण्णभवन्तरावज्जियं वेयणीयं तस्सेस विमुक्को भयवया गंभीरतारमहुरो दीहहुंकारो। ण तहा णिक्खमंते हि मुणिवइणो तिव्ववेयणा जाया। जह कड्ढियम्मि सल्ले--(पय)ट्टिया गरु[य]या वियणा ॥३७७॥ पीढ(ड) पवडढमाणेण तेण चिरसंठिई ण परिगणिया। णिहसे वि खलयको णिययमासयं दुकरं कुणइ ॥३७८॥ एवं च णिकडिढए सवणंतराओ सल्लम्मि तेण वणि---- ----ण अब्भंगणापुव्वयं पडियरंतेण पउणीकया पहारा, जायमणहं विगयवेयणावेयं सवणजुवलयं ति । तओ गया दो वि वणिय-वेजा णमिऊण जयगुरुं जहट्ठाणेनु। तेणावि गोवे -------(ण तइया समुप्पा )इयतिव्ववियणोवसग्गेण णिबद्धं महातमापुढवीए आउयं ति। इय कयवयकप्पुप्पाइयावग्गमग्गो, सहियणर-तिरिक्खाणेय-दिव्योवसग्गो। गहियगरुयऽभग्गाभिग्गहे संगयप्पा, विहरइ महिवेढं तिव्वसत्तो महप्पा ॥ ३७९ ॥ इय वद्धमाणसामिचरिए गोवालाइयं गोवालपज्जवसाणमुवसग्गविहाणं समत्तं [१३] ॥ एवं च विहुयगुरुयोवसग्गोवलेवो कणयपिंडो व्व णिययपहापरिक्खेवखइयदिसामंडलो अण्णया य संपत्तो जंभियाहिहाणं गाम । तत्थ परिणिबिडविडवुब्भिज्जन्तपल्लवं पल्लवंतरुव्वेल्लमाणुल्लसियकुमुमणियरं कुसुमणियरुच्छलन्तसुरहिपरिमलामोयं आमोयमत्तालिमिलन्तकयकलरवं सुहम वालियाणदीतीरं ति । तहिं च दढवियडथिरयोरुधुंधणिबद्धसाहम्मि साहासमालिद्धकिसलयदलन्तरुत्तरन्तपस्यपयरम्मि पश्यपयरारुणविसट्टसरसमयरंदम्मि मयरंदणियरोवरंजियधरामडलम्मि महासालतरुतलम्मि संठिओ पडिमाए। णवरि य णिरुद्धसयलिंदियत्थपसरस्स णिप्पयंपस्स । दुजयकम्ममहामोहवूहणिन्भेयणसहस्स ॥ ३८० ।। हिययंतदुरज्झवसुल्लसंतगुरुमुक्कझाणपसरस्स । छउमत्थवीयरायं संपत्तोमुहुत्तस्स ॥३८१॥ घणघाइकम्मविहडणसंपाडियणियजहिच्छसिद्धस्स । लोया-ऽलोउन्भासणपदीवमसमप्पहावस्स ॥ ३८२॥ उप्पण्णं सयलतिलोयसिहभावाणुभावसन्भावं । संसारुच्छेयकरस्स केवलं केवलप्पाणो ॥ ३८३॥ इय जं गुरुयरदुक्करतवोविहाणस्स जायइ जयम्मि । फलमसमं संपत्तं जयगुरुणो गुरुगुणग्यवियं ॥ ३८४ ॥ एत्यावसरम्मि य चलियासणप्पओएण वियाणियजिणणा[ग]लंभो मोत्तूण णिययमासणं गंतूण जिणाभिमुहं सत्तपयाई धरायलमिलंतजाणुमंडलो काऊण पणामं किं काउं पयत्तो पुरंदरो? पक्खिप्पड करकमलुल्लसन्तणहकिरणकेसरकराला । तक्खणमुल्लूरियसुरदुमुत्थकुसुमंजली सहसा ॥ ३८५॥ काऊण कणिरकंकणमुहलभुयामंडलं णिडालम्मि । करकमलं ललिउव्वेल्लिरंगुलीदलसणाहिल्लं ॥३८६॥ कीरइ णिव्वडिउब्भडघडन्तसंकिण्णवण्णसंपण्णो । वज्जरियभितरभत्तिणिभरो जयजयकारो ॥ ३८७ ॥ इय जाणिऊण गुरुणो णाणुप्पत्ति पयड्ढियामोओ। जाओ तयणु वियम्भन्तपुलयपडलो तियसणाहो ॥ ३८८॥ Page #383 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउप्पन्नमहापुरिखचरियं । तो समासीणो मणिमयासणम्मि । भणिओ पडिहारो जहा-मेलवेमु घंटारवप्पओएण सयलं पि सुरा-मुरगणं । तब्बयणाणंतरं च समाइया णेण घंटा। णवरि य मुरकरतालणणिभरपसरन्तभरियदिसिविवरो । हरिमंद(दि )रम्मि पसरइ रणंतघंटाटणकारो ॥ ३८९ ॥ अह तस्स रवायण्णणपयत्तपरिओसपसरिउच्छाहो। संगलइ जाण-परियणसमण्णिओ सयलसुरसत्थो ॥३९०॥ संगलइ णियंबत्थलमिलन्तमणिमेहलाकलाविल्लो। गइवेउत्थल्लियहारमंडलो तियसतरुणियणो॥३९१॥ इय सव्वायरविरइयणियविहवसरिच्छविविहणेवच्छो। सुरसत्थो सहसञ्चिय पचो सुरपस्थिवत्थाणं ॥३९२॥ आगयम्मि सुरसमूहे तक्खणविणिम्मियकलहोयसेलप्पमाणतणुविहायम्मि पडि(रि)वियडकुंभस्थलालीणबहलसिंदूररायम्मि अणवरयपयलंतदाणसलिलपव्वालियकवोलमूलम्मि कण्णमूलावलग्गअल्लन्तचारुचमरचूलम्मि थिर-थोर-दीहरव्व(द)न्तकोडलियसोडदंडम्मि समारूढो सुरकरिम्मि सुराहियो । सुरकिंकरकरप्फालियविविहाउज्जवज्जिरुच्छलन्तपडिरवो य गंतुं पयट्टो । पयर्ट च सयलं सुरवलं, कह ? मुरकरपहराहण - तवज्जन्तवज्जाउलं, वयणपवणपूरियाऽसंखसंखोरुकोलाहलं । गयणगमणदच्छविज्जाहरुग्गीयसोहायरं, पसरियपरिदच्छगंधव-सिद्धंगणासायरं ।। ३९३॥ पवणपसरपेल्लणुव्वेल्लचिंधावलीसोहयं, सुरकरिकयकंठगज्जारखुत्तासियाऽऽसोहयं । तरलतुरयवेयपम्मुक्कवित्थारियावाहणं, पसरियगुरुसीहणायं पयर्ट मुराण(णं) बलं ।। ३९४ ॥ ति । एवं चजहाविहववित्थरुप्पाइयाणेयणेवच्छवेससुरगणसमण्णिओ सुराहिवो समागंतूण जहक्कम भयवओ णिवत्ते(न्ने)ऊण गाणमहिमं सुरगणे भणिउं पयत्तो जहा-भो ! सज्जीकरेह समोसरणभूमि । तओ मुराहिवाणत्तिसमणंतरमेव विरइउं पयत्ता सुरा, कहं ? णवरि य सव्वत्तो चिय जोयणपरिमंडलं धरावीढं । संठाइ समत्तणविमलसुंदरदायसारिच्छं ।। ३९५ ॥ वित्थरइ सुरहिपरिमलमासलमिलियालिमुहलियदियंतो। परिमंदं दूरोहयसुरतरुगुणगारवो पवणो ॥३९६॥ ओवडइ दलउडंतरविणेन्तमयरंद[२]जियदियंतो । पंचप्पयारसुरतरुपस्यपयरो णहाहिन्तो ।। ३९७ ।। णिम्मलयरदहभित्तित्थलुच्छलंतुद्धकंतिवित्थारो । अहिहरइ पररवी(खी)रोयहि व्च कलहोयपायारो ॥ ३९८ ॥ अच्चंतपिंजरुज्जलपज्जुत्तामलपहापरिक्खेवो । णिव्वडइ विज्जुपुंजो व्व कणयपायारपरिवेढो ॥ ३९९ ॥ अण्णण्णवण्णमणहरमयूहमासलमिलंतकंतिल्लो । मणिपायारो संठाइ रुइरसुरचावसारिच्छो ॥ ४००॥ उम्मिल्लइ सरसुम्मिल्लपल्लवुव्वेल्लमाणराहिल्लो । कंकेल्लिपायवो सुहपस्यगोत्थुच्छलन्तसिहो ।। ४०१ ॥ ठंति णहंगणमग्गम्मि विमलससिदप्पणावहासाइं। छत्ततियाई संछण्णतरणिकरणियरपसराइं ॥ ४०२ ॥ चाउद्दिसि वियंभंतसीहमुहकंदराहिरामाई । सीहासणाई संठंति विविहमणिबद्धपेढाई ॥ ४०३ ॥ इय चउगोउरदारोवलक्खियं तक्खणं समोसरणं । विरइज्जइ सुरसत्येहिं हरिमुहाणत्तितुटेहिं ॥ ४०४ ॥ एवं च सयलाइसयसण्णिहाणजणियजणमणाइसओ पवरपंकयपरिवाडिणिहिप्पन्तपयणिक्खेवो सुरपत्थिवससंभमणिवारिज्जमाणसुरसम्मदो किण्णरगणसमुग्गीयथुइमंगलहलहलारावो सुर-णरजणभत्तिणिभरकउच्छलन्तजयजयासमुहलो समल्लीणो जयगुरू पुन्बदुवारदेसेण समोसरणभूमि गओ। सिद्धिबहूविवाहवेइयाभवणस्स व कयत्थो वि काऊण पयाहिणं सबस्स वि समुहत्तणोवलक्खिओ छ णिसण्णो चउसु वि सीहासणेसु । णिसण्णस्स य समुग्गयं णिययदेहप्पहापरिक्खेवसुंदरं भामंडलवियाणं । समुट्ठिओ सदक्खजक्खपाणिपक्खित्तो चटुलचामरसमीरो । एत्थावसरम्मि य णमो तित्थस्स' ति भणिऊण सयलजंतुसंताणसाहारणाए वाणीए पत्थुया धम्मदेसण ति। दृश्यता २९७ गाथादिस्थितहस्तचिहोपरिवर्तिनी टिप्पणी। Page #384 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४ वद्धमाणसामिचरियं । णवरि य एका वि अणेयजंतुजणियाववोहणसमत्या। वित्थरइ भारई भरियजलहरोरल्लिगंभीरा ॥ ४०५ ॥ तीए समायण्णणजणियगरुयपरिओसियाई वियसति । तरणिकिरणप्पहाए ब्व वयणकमलाई परिसाए ॥ ४०५ ॥ अण्णण्णवण्णमणहरणिबाणविणिचलिंदियप्पसरा । परिसा विहाइ तक्खणविणिच्चलालेक्खभित्ति व्व ॥ ४०७॥ एवंविहाए तिहुयणमणहरजणजणियहिययसोहाए । धम्म साहइ वाणीए जयगुरू सुहसरूवाए ॥ ४०८ ॥ अवि यजीवा-ऽजीवाइपयत्थपट्ठियं ठाइ सत्तहा तत्तं । जह पंचणाण चारित्तपंचेया सं(?द)सणमणंतं ॥ ४०९ पंचमहव्यय-समितीविसेससाहिप्पमाणपरमत्थं । तह बज्झ-ऽब्भंतरैसिटबारसं तत्ततिव्वतवं ॥४१०॥ सत्तरसाऽऽसवदारोवलक्खियं विविहभावणाकलियं । दसलक्खणोववेयं तिगुत्तिगुत्ताहिहाणजुयं ॥ ४११ ॥ दूसहपरीसहुग्गाविहाणपरिसिट्ठजइजणायारं । आयरिय-गिलाणाइसु कयवेयावञ्चपत्थाणं ॥ ४१२॥ परिवज्जियव्यतिव्वऽट-रोद्दकयधम्म-मुक्कझाणभरं । मेत्ती-पमोय-कारुण्णविहियमज्झत्यभावगं ॥ ४१३॥ जह णरय-तिरिय-गर-देवसंठिई संठिया जयम्मि भवे । जह मुह-दुहाई जायंति मज्झिमुत्तिम-जहण्णाई ॥ ४१४ ॥ धम्मकहातग्गयमाणमुम्मुही णिप्फुरठियावयवा । लेप्पमइय व टंकुक्खय व परिसा विहाइ दढं ॥ ४१५ ॥ इय सुर-गर-तिरियगणाण जणियणिययाणुहावसुइसोक्खं । धम्मं जहट्टियं जणियगुरुयसग्गा-ऽपवग्गफलं ॥४१६ ॥ एत्यंतरे बहुप्पयारं धम्म साहमाणस्स भयवओ सुरा-सुरसंपाइज्जमाणपूयाइसयं जणरवाओ समायण्णिऊण गोयमगोत्तसंभवो इंदभूई णाम दियवरो बहुदियवरज्झावओपंचसयसिस्सगणाहिडिओ इंदाइपरिसामज्झपरिसंठियं भयवंतं धम्ममाइक्खमाणं पेच्छिऊण 'एस माइंदजालिओ' ति कलिऊण समुप्पण्णतिव्वाहिणिवेसो 'अवणेमि से विउसवाय' ति भणमाणो समागओ समोसरणभूमिं । भयवया वि दण दूराओ चेव तमागच्छमाणं मुणिऊण तस्स हिययाभिप्पायं आहासिओ गोत्तकित्तणा-हिहाणेहिं जहा-“भो इंदभूइ ! सुन्वउ, णाहमिहमिंदजालोवलक्खिो कोई तं कलेज्जासु । इंदेण भूतिजालं अहव कयं किं ण लक्खेसि ? ॥ ४१७ ॥ तो इंदभूइ सोउं णियगोचाहासणं जणसमक्खं । मुणियमणचितियत्यो विम्हयमसमं समावण्णो ॥४१८॥ जंपइ पुणो विभयवं तुह हियए संसओ समुप्पणो। 'जीवो किं अत्थि ? ण वऽस्थि ?'एत्थ तं सुणसु परमत्यं ॥ ४१९॥. अत्यि णिरुत्तं जीवो, इमेहिं सो लक्खणेहिं मुणियव्यो। चित्तं-चेयण-सण्णा-विण्णाणादीहिं चिंधेहिं"॥ ४२०॥ तं सोउं जयगुरुणो वयणं परिभाविऊण मतिपुव्वं । वोच्छिण्णसंसओ जणियहिययपरिओसपडहत्यो॥ ४२१॥ इय विच्छड्डियणियजाइगरुयसंजायदप्पमाहप्पो । जयगुरुणो चलणब्भासदेसमुवसप्पिऊण दढं ॥ ४२२॥ महियलमिलंतभालचट्ठो य पणमिण सविणयं भणिउं पयत्तो जहा-भयवं ! अलियजाइत्तणाहिमाणावलेवदूसियं संसारायडणिवडणुप्पण्णभयपज्जाउलमत्ताणयं भयवयाणुग्गहिज्जमाणमिच्छामि, ता कुणह पसायं णियसीसत्तणोर्वसंपायणेणं मज्झं । ति भणिऊण पुणो वि णिवडिओ भयचओ चलणेसु । भयवया वि णाणाइसएण वियाणिऊण 'पढमगणहरो • एसो' ति जहाविहिं दिक्खिओ संजाओ पढमसीसो ति। तओ पञ्चज्जाविहाणाणंतरमेव वेसमणाहिहाणमुरवरेण समोप्पियं पञ्चज्जापरिपालगोवओग्गं धम्मोवगरणं । तं च परिचत्तसयलसंगेणावि अब्भुवगंतूण पुवाऽवराविरोहकारणं परिम्गहिय, चिंतियं च णिरवजसंजमावजणम्मि उवउज्जए जमिह जइणो । धम्मुवगरणं धम्मुज्जएण सज्जो गहेयव्वं ॥ ४२३॥ अण्णह छउमत्थमतीहि कह मुणिज्जइ जयम्मि पाणिदया । काउं अविइयछज्जीवकायजॅयणेहि अणवज्जा ?॥४२४॥ १ पंचहा संसू । २ 'रदिट्ठ जे । ३ तरम्मि जे । १ मायंद सू। ५ तस्साभि सू।६ को वि जे । ७ एत्य-संसुसू। ८ वयाणेणं जे । ९ समप्पिय जे । १. जइणेहि जे । Page #385 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउम्पन्नमहापुरिसरियं । जं मुदमुग्गमुप्पायणेसणाणुगयसयलगुणकलियं । गहियं च ण हिंसादोससंजुतं तं गहेयव्वं ॥ ४२५ ॥ संपुण्णणाण-दसण-सच्चरणायरणसत्तिसंपु(प)ष्णो । सोहइ समत्थमत्ताइसज्झस-मएण मुझंतो॥ ४२६॥ जो उणं णाणाइसयावलोयरहिओऽहिमाणमेत्तधणो । 'जणियपरिग्गहभन्ति' त्ति हिंसओ सो मुणेयव्यो॥४२७॥ 'धम्मुवगरणं पि परिग्गहो' त्ति जो मूढमाणसो मुणइ । अविइयतत्तं सो बालजणवयं तोसिउं महइ ॥ ४२८॥ जल-जलणा-ऽणिल-पुहई-तरुवर-तससंभवा बहू जीवा । धम्मुवगरणेण विणा परिरक्खेउं ण तीरन्ति ॥ ४२९॥ जो वि गहिओवगरणो करणत्तियदूसियाओ धिइवियलो । उय अत्ताणं चिय सो पयारिउं महइ मूढमई"॥४३०॥ इय भाविऊण बहुगुणमुवगरणं संजमुज्जयमणेण । पंचहि सएहिं सह इंदभूइणा घेप्पए तत्थ ॥ ४३१ ॥ एत्थावसरम्मि य गहियपव्वजं सोऊण जणपरंपराओ विजोबलावलेचुम्मुहपलोइयतदिसो णिवारणुज्जुयमती पंचसयपमाणपरिसाणुगम्ममाणमग्गो पुन्बक्कमेणेव पुच्छिउं समाढत्तो अग्गिभूई-भो भो ! साहसु कम्मं किमत्थि ण व ? ति । एवं भणियावसाणम्मि य भयवया भणियं-"भो भो गोयमा ! अस्थि मुह-दुक्खाण हेउभूयं कम्मं, कज्जताओ तेसिं, ण हि कज्जं कारणमंतरेण समुप्पज्जइ, बीयाउ ब अंकुरुप्पत्ती । अह एवामण्णसे 'अहेउया सुह-दुक्खुप्पत्ती', अंकुरस्स वि अहेउप्पसंगो, फलत्ताओ। अहेवमभुवगयं भवया 'सुहादीणं दिवमेव कारणं भविस्सइ, फलताओ, अंकुरस्सेव, अण्णहा दिट्टहाणी अदिट्ठपरियप्पण' ति तं ण जुत्तं अवभियाराओ, जओ साहारणसाहणोवउत्तस्स चेय सुरहिमल्लंगराय-मणोहरकेसविण्णाससणाहंगणासण्णिहाणे वि पुरिसजुवलस्स फले सुह-दुक्खाणुहवविसेसलक्खणे ण समया, ण य तं अदिहदेउयं, कजनाओ, घटो व्य । जं पुण विणा हेउणा कज्जमुप्पज्जइ तं जहा आयासं, ण य सुहादीणि तहा, जं च साहारणसाहणसं. अयाण विसेसाहिहाणाय तं कम्म, ण य म(ओदिपरियप्पणा। गोयम ! पडिवज्जसु 'अत्यि कम्म' ति । अण्णं च णिम्मलमणिकिरणपहापदीवपडिभिण्णतिमिरपसरम्मि । एक्के वसंति भवणम्मि विमलमुत्तालिकलियम्मि ॥ ४३२ ॥ अण्णे मूसयसयछिडपउरपक्खित्तपंसुपसरम्मि । कालं गमंति सयछिड्डजज्जरे जरकुडिघरम्मि ॥ ४३३॥ वियडणियम्बत्थल-थोरथणभरुव्वहणतणुयमज्झाहि । एके समयं रइलालसाहिं णिवसंति दइयाहि ॥ ४३४ ॥ अण्णे रुंदोयरदीहदसणवयणाहिं पिंगलच्छीहि । महिलाहिं लल्लिकरणुज्जया वि दुक्खं सह वसंति ॥ ४३५॥ एके मणि-कणयसणाहथाल-कच्चोलपउरसिप्पीहिं । भुजति भोयणं बहुमणोज्जखज्जाइपज्जुत्तं ॥ ४३६॥ अण्णे जरकप्पडपिहियपुंददरदिद्वगुज्झपेरन्ता । अणुदियहं भिक्खाडिमाण पोर्ट पि ण भरंति ॥ ४३७ ॥ एके मणहरजंपाण-जाण-हय-गय-सुहेल्लियारूढा । लीलाए सुहविहारं गच्छंति जहिच्छियत्थेसु ॥ ४३८॥ अण्णाण पुणो संपडइ णेय जडखेटरी वि पंथम्मि । खरतरणितावणुत्तत्तपंसुडज्झन्तचलणाण ॥ ४३९॥ इय एएहि पयट्टन्तगरुयसुह-दुक्खविविहकज्जेहिं । पडिवज गोयमा ! दिहकारणं कम्ममेत्यऽत्थि" ॥४४०॥ एवं च हेउवाएयपयत्यादीहिं विच्छिण्णसंसओ अग्गिभूती पंचसयपरिवारो वि जहाविहिं पवण्णो पव्वजं ति। तम्मि य पवण्णे पव्वज्ज वाउभूई णाम तइओ दियाई समागओ णियविजाहिमाणी । आगंतूणं च भणिउं पयत्तो-भो महापंडिच्चाहिमाणि ! साहसु मे वेयत्थं ति । भयवया वि जहावढिओ साहिओ सविसेसं । साहिए य तम्मि अवगयसंसयत्रामोहो सपंचसयपरिवारो पव्वज पवण्णो त्ति । तओ तं पव्वज्जमब्भुवगयं जाणिऊण चउत्थो भारदाओ णाम दियवरो णियजाइत्तणाहिमाणुप्पण्णामरिससामलियवयणमंडलो 'अवणेमि से पंडिच्चाहिमाणं' ति पंचसयपरिसाणुगओ समागओ भयवयंतियं । भणिउं च पयत्तो-भो भो माइंदजालिय ! साहसु महं किं पंचभूइवइरित्तो जीवो णाम कोइ पयत्यो समत्थि ? त्ति । भयवया भणियं-देवाणुप्पिया! १ जावलेबु सू । २ रणयमई जे । ३ एतद्धस्तचिहादारभ्य ४५९ गाथानन्तरवतिगद्यविभागस्थितइस्तचिह( मध्यगतः पाठसन्दर्भो जेपुस्तके नास्ति । Page #386 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५१ वद्धमाणसामिचरियं । अत्थि, जइ पुण जीव-भूयाणं एकया भवे मरणमेव ण भवे, अणहसरीरेण चेय सन्चया भवियब्वं, दिस्सए य मरणपजवसाणो देवपरिफंदाइओ वाचारो, अओ अवगन्तव्वं गोयम ! पंचभूइवइरित्तो जीवो त्ति । एवं च सो वि वियत्सो अवगयसंसओ होऊण परिचत्तसयलविसयाइसंगवामोहो तहेव पव्वजं सपरिवारो पवण्णो त्ति । तम्मि पव्यजं पवण्णे सुहम्मो णाम माहणसुओ आगंतूण भणिउं पयत्तो-भो ! किं कोइ इहलोयवइरित्तो परलोओ अस्थि ?, किं वा पत्थि ? ति। भयवया भणियं-अस्थि ति । इयरेण भणियं-कहमेयं मुणिज्जइ ? । भयवया भणियंतुह ताव पच्चक्खाणुभवो ण तीरए काउं, अणुमाणेण पञ्चओ भणेययो, कह ? जेण दीसंति बहवे तुम्हाणं पि समए दाण-तवोविहाणाइणो कुसलकम्ममभुवगया, जायस्सरणादीहिं चोवलब्भए परभवुप्पत्ती, अओ मुणिज्जए 'अत्थि परलोओ' त्ति, अण्णहा णिरत्थया कुसलकम्मायरियव्बस्स जातीसरणस्स वेति । एवं च सो वि विच्छिण्णसंसओ सपंचसयपरिवारो पबज्ज पवण्णो ति। एवमण्णे वि वासिट-कासव-कोसिया(य)-हारिय-कोडिण्णणामा य सपरिवारा विच्छिण्णणियसंसया पव्वज्ज पवण्ण ति। सव्वे [ते] दियवरगोत्तसंभवा पवरकित्तिसंपण्णा । सव्वे वि वज्जसंघयणकित्तिसामत्थयाजुत्ता ॥ ४४१॥ एक्कारसंगसुत्तत्थधारिणो विविहलद्धिसंपण्णा । अइसयरिदीए जुया हवन्ति छउमत्थभावे वि ॥ ४४२ ॥ पंचसयसंजुया पंच दोणि य अधुट्ठसयसमणियया । चत्तारि तिसयपरिवारसंजुया संजमं पत्ता ॥४४३ ॥ वोच्छिण्णा तत्थ दसाण संतती कालजोगओ इहई । जाया सिस्साण सुहम्मसामिणो संतई एसा ॥ ४४४ ॥ णेवाणगया काले जिणस्स णव ताण गुणसमग्गाण । गोयमसामि-सुहम्मा णियाणा णिव्वुए वीरे ॥४४५॥ इय सोहम्मपसिस्साइवित्ययं तित्थमेयमणवज्ज । अञ्ज वि संजमपज्जन्तसंजयावज्जणसमत्यं ।। ४४६ ॥ [केवलुप्पत्ति-] गणहरपव्वज्जाविहाणं समत्तं ति [१४] ॥ तओ तमंतरं चिय पव्वज्ज पवण्णेसुं गणहरेसु भयवं अहाविहारेण गामाणुगामं विहरमाणो पुल्चविरुद्धचित्तयरपडालेक्खदंसणुप्पण्णगरुयाहिलासेण मियावइपत्थणाणिमितपेसियद्यपरिहवकरणामरिसिएण पज्जोयणरवइणा रोहियं कोसम्बि मुणिऊण 'इह बुझंति जंतुणो' त्ति गओ कोसंवि भयवं । भयवन्ताइसयाणुहावओ य पसन्ता सयलजंतूण वेरव(चे)ट्ठा । विरइयं सुराहिवेहिं पुवकमेणेव समोसरणं । कहं ? वित्थरइ सुरहिपरिमलमंदंदोलन्तविविहवणगहणो । अवहरियसकरुकेरसुंदरो सीयलसमीरो ।। ४४७ ॥ तयणंतरपउरासारणियरपरिसित्तसुहयदिसियकं । कीरइ घणेहिं परिसंतरयभरं महियलद्धन्तं ॥ ४४८ ॥ मुच्चइ परिमलमिलियालिवलयरुट्टन्तमुहलियदियन्ता । बेण्टट्ठियवोसट्टन्तदलउडा कुसुमवरवुट्ठी॥ ४४९ ॥ तक्खणणिम्माणियरयय-विमलकलहोय-पवरमणिघडियं । विविहट्टालयकलियं कीरइ पायारतियवलयं ॥ ४५० ॥ झुल्लन्तचारुचामरकलावमुत्तावलीसणाहाई । गोपुरमुहाई चत्तारि चउदिसिं होति राहाई ॥४५१॥ संठाइ सुंदरारुणविणीलदलबहलसहलदियन्तो । कंकेल्लिपायवो सुइपस्यगंधालिकयसदो ॥ ४५२ ॥ १ एकादश गणधरा अङ्गसूत्रार्थधारिणः । Page #387 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - चउप्पन्नमहापुरिसचरिय । हेहम्मि तस्स पासत्यचमरधारोवहूयचमराई । सीहासणाई गयणस्थछत्ततियवलयकलियाई ।। ४५३ ॥ इय णिव्वत्तियविच्छित्तिविविहचिंधावलीकलाविल्लं । तियसेहि णिम्मविज्जइ जयगुरुणो सुहसमोसरणं ॥४५४ ॥ एवं णिवत्ते समोसरणे भयवं मुरवइसब्वायरसहत्थगहियकद्वियाणिवारिज्जमाणकयजयजयासहसम्म।सुरगणो णिविट्ठो सोहासणे । जहोइयट्ठाणसंठिएम सुर-णर-तिरिएसु पत्थुया धम्मदेसणा। एत्थावसरम्मि य वियाणिऊण मियावई भयवंतं समोसरणसंठियं गुरुवेरगमग्गाणुगयमाणसा समागया भयवओ समीवं । वंदिओ सविणयं धरणियलपणामिउत्तिमंगाए जयगुरू । णिसण्णा णाइरे । सोउमाढत्ता धम्मदेसणं । दिट्ठो य तीए तस्थेकपएसे पज्जोयणरवती वि धम्म मणमाणो। कहावसाणम्मि य भणिओ य णाए पज्जोयणरवती-जइ तुम भणसि तो अहं पन्चज्जं पव्वज्जामि । 'तह' त्ति तेणावि पडिवणं । तओ तस्सुच्छंगे णिवेसिऊण बालयं गया जयगुरुणो पुरओ। भयवया वि मुणिऊण तस्साहिप्पायं सह अज्जचंदणाए पढमपवण्णसिस्सिणियाए पव्वाविया मियावती, अण्णाओ य अणेयरायकण्णयाउ त्ति । ___ तो तयन्तियाओ जहाविहारं विहरमाणो गओ रायगिहं णयरं । तत्थ वलायगिरिसमीवम्मि कयसमोसरणवइयरो सेणियमहारायाहिदिण्णसम्मत्तो जाणियसेट्ठिउत्तपुरिसदत्त-पिहुसेण-णंदिसेणकुमाराइणो पव्यावेऊण गओ सावत्थिपुरवरि । तत्थ वि समवसरणक्कमेण पसेणइणरिंदपमुहे पडिवोहमाणो परिसंठिओ कइ वि दियहे । तत्थावसरम्मि य गोसाल-क्सिाल-विसाहिल-पारासरा पहूयमंत-रिद्धिसमण्णिया सव्वण्णुत्तणाहिमाणिणो परिभमन्ता संपत्ता तं चेव सावत्थिपुरवरि ति । तेहिं च मन्त-तन्तोववेयबज्झरिद्धिसंपण्णत्तणओ माइंदजालिएहिं व अवियाणियतत्तसरूवो समावज्जिओ बहुमुद्धजणवओ। तो ते गोसाल-विसाहिला विज्जाबलगव्वमुन्वहमाणा दप्पुत्तुणतणओ समागया भयवंतियं, सहिययाहिप्पेयं पुच्छाओ य काउं पयत्ता । तो समहिगयपुच्छियत्थस्स विदियत्तणओ तेसिं 'एस सव्वण्णु' ति "णिन्विसंकं कलिऊण सयलो वि जणवओ परिसेसिऊण गोसालादी भयवन्तं पज्जुवासिउमाढत्तो । अहवा सवण्णुत्तणणाणावलोयकलियस्स ते भुवणगुरुणो। खज्जोयफुलिंगा भाणुणो न्च ण लहन्ति परभायं ॥४५५॥ तेल्लोकोयरविवरं पि जस्स णियकरयलामलसरिच्छं । पडिहाइ तस्स गणणा का कीरइ इयरपुच्छाहि ? ॥ ४५६॥ एवं चिय गुण सरूवममर-घरकेवलावलोयस्स । लोया-ऽलोयन्तो अ(ण)त्यि जेण ण हु अमुणियं किंचि ॥ ४५७ ॥ णिदलियऽण्णाणतमेण विमलविप्फुरियकेवलकरण । उज्जोइज्जइ भुवणं जयगुरुणा दिणयरेणं व ॥ ४५८॥ इय णिम्मलय[रमुइयंददसणुज्जोइयम्मि भुवणयले । आणंदिज्जइ लोओ जयगुरुणा ससहरेणं व ॥ ४५९ ॥ इय वद्धमाणचरिए गणहरुप्पत्ती [मियावईपव्वज्जा य १५]॥ इओ य सो पज्जोयणरवती जयगुरुप्पहावपडिसन्तवेरबंधो दखूण मियावतीए णिययंकपक्खित्तं बालयं, सुमरिऊण 'इमिणा बालएण समं भलेज्जसु' त्ति तीए जंपियं, कलिऊण भयवओ धम्मदेसणाहितो संसारविलसिये, दणं च कोसंबि पुरि समन्तओ वित्थि(च्छिण्ण पज्जोहार प्पसरं पक्खीणप्पायजवसिंधणाऽऽहारणिप्फुरं समंतओवरोहत्तणोवरुद्धजणणिग्गम-पवेसं अकयदेवया-ऽतिहिपूओवसंपाइयसरीरथिई णियपियपरिचत्तं व पणइणि परं पच्छायावमावण्णो चिंतिउं पयत्तो-"अहो ! एस रायत्तणाहिमाणो ण खलु सव्वछया णिवूढिमावहइ । ता सरकिरणप्पहापरिक्खित्तो १ दृश्यतो ४३१ गाथानन्तरवर्तिगद्यविभागस्थितहस्तचिहोरिवर्तिनी टिप्पणी । Page #388 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४ बद्धमाणखामिचस्यिं । ३०५ व्व दिणयरो अवस्समत्थंतरावसाणो । जेण णियबलपयत्तपरिपालिया वि 'दूसीलमहिल व्व वियारं जणेइ रायलच्छी, दुट्ठपिसाइय व्व छिद्दण्णेसणपरा, पवरवेस व्व अञ्च्चन्तदुक्खोवयरणीय सरुवा, खलविज्जुले व्व खणदिट्ठणहृदंसणा, सरयसंझ भरीय व्व मुहुत्तरमणीया । को वा इमीए दुरायाराए ण वेलविओ ? । जेण पेच्छ परिवियडकरिघडापरिवालिया वि दूरमवक्कमइ, तरलतुरयखर खुरुवखेवकमणभीय व्व सिग्घमोसरइ, णवणिसियखग्गग्गधाराविच्छेयणाहित्य व विलाइ, कमलवणसंचरणणालकण्टयालग्गवियणाविय व्व ण कहिंचि थिरवयं णियमेइ । अवि य एसा अचंता बद्धमूलसुविणिच्चला वि चलणम्मि । करिणो कण्णचमेड व्वकारणणण्णमभिलसइ ।। ४६० ॥ for विहु पयत्तमन्तोववासिया वि दढं । गासइ कयंजलिवुडं पणया वि पओससंझ व्व ॥ ४६१ ॥ मुहर सियावसाणे विराय विरसा चलुन्भड सहावा । पिसुणपयईण पीई व्व होइ णो णिच्चला धणियं ॥ ४६२ ॥ पडुपवणवसुव्वेल्लिरपडायपंती वि कह वि होज्ज थिरा । ण उणो एसा अणुरत्तपयइपरिवालिया वि दढं ।। ४६३ ॥ पई दिप्पमाणा विणमच्चन्तमणहरपया वि । पज्जन्तजलणजाल व्व णवर जलिऊण विज्झाइ ॥ ४६४ ॥ गंभीरुब्भडपैरिपुण्णवियडपत्ता पर्याड्ढयप्पसरा । रित्ता जायइ भरिया वि सरयसरिय व्ञ कालेण ।। ४६५ ।। पइदिणपडिचरणसओ वि (रि) ज्जमाणा सुणिम्ममत्तेसा । पुट्ठ व्व परिच्चयइ णिच्चपोसिज्जमाणा वि ॥ ४६६ ॥ इय या तणग्गावलम्बजललवसहावतरलाए । इह अस्थि रायलच्छीए भणसु को वा ण जूरविओ ? ॥ ४६७ ॥ ता मवि कह पेच्छ अणिलवसुच्वेल्लणलिणिदलउडोवट्ठियजललवचवलाए चिय इमाए कए एसा पुरवरी खलीकय ?" ति । तओ विमुक्कावरोहणं काऊण पुरवरिं, अहिसिंचिऊण णिययरज्जम्मि उदयणकुमारं समोप्पिकण मंतिपुरस्सराणं स्यलपण (य) तीण गओ णिययरज्जम्मि । इय वद्धमाणसामिचरिए उदयणपरिद्वावणं णाम [१६] * अणयाय भगवं ससुरा -ऽसुरणमंसिओ जहकममणुग्गहंतो भव्वजणजंतुसंघाए समागओ रायगिहं पुरवरं ति । तत्थ पुव्वकमेव व्वित्तिए सुरगणेहिं समवसरणे सयलजोइक्खचकाहिवइणो सूर-ससहरा पुव्वभवावज्जियसम्मत्त संपत्तदिव्वरिद्धिसंभोयपरितोसा जयगुरुवंदणणिमितुप्पण्णभेत्तिणिन्भराणुराया चिंतिउं पयत्ता - सव्वे वि एए सुरासुरगणा कयकारिमजाण-विमाण-परियणाइविविहविच्छडप्पसरा वच्चन्ति जयगुरुणो वंदणणिमित्तं, अम्हे उण कीस साहीणे विणिययजोइप्पहापरिगयम्मि विमाणरयणे" सविमाणा वंदणत्थं भयवओ ण बच्चामो ? । त्ति मंतिऊण पयट्टा दो वि दिणाहितारयाहिवइणो सविमाणा चैव भयवओ समीत्रं । ओइण्णा णिययप्पएसाओ । ओयरमाणं केरिसं विमाणर्जुवलयं दीसिउं पयत्तं ?, अवि य— णिम्मलपहापरिक्खेव किरणजालाकला वसंवलियं । विमलमणिभित्तिपज्जत्तकंतिचित्ताहिरौहिल्लं ॥ ४६८ ॥ धोइंदणीलमणिमयखंभुग्भडघडियवियडपन्भारं । लद्धपरभायवरसालभंजियाख्त्रयविसालं ॥ ४६९ ॥ वेयवसुब्वेल्लपयल्लुणिबिडघण्टाविसट्टटंकारं । दारट्ठियमंगल कलसवयणवियसन्तकमलिलं ॥ ४७० ॥ उब्वेल्लतरलचूलावलं बिघो ं तचारुचमचयं । उद्धणिबद्धुद्धयविविहवण्णचिंधुधुरालोयं ॥ ४७१ ॥ १ दुस्सील जे । २ राइ व्व सू । ३ च वेड जे । ४ 'पडिपु सू । ५ बज्जमाणा सू | ६ एसाए जे । ७ समप्पि जे । ८ "लपण जे । ९ भिरा १० णे कीस सवि' सू जे । ११ 'व-राहिव जे, राईभहिव = राहिब बन्द्र इत्यर्थः । १२ जुयलं खे । १३ 'भवि य' इति सुपुस्तके नास्ति । १४ रामिलं जे । १५ लाविलम्बि सू । १६ रजुयं जे । Page #389 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०६ चउप्पन्नमहापुरिसचरियं । इय विविहसुंदरीवंद्रसुंदरुद्दामसोहसंपुण्णं । वजन्तबहुविहाउज्जगेजरुहरं णहाहिन्तो ॥ ४७२ ।। एवं च वेयवसोवयणविहलतुरयपग्गहायड्ढणाहित्यसारहिभयणिउंचियग्गीवोससंतघोणग्गलग्गवियडोरस्थलपेल्लणुव्वे. ल्लघडियविहडन्तमेहमंडलं मेहमंडेलोमुक्कसिसिरसीयरासारपसण्णमहिरयं समोइण्णं विमाणर्जुवलयं ति। तो दूराओ चेव सविम्हयक्खित्तमुरा-ऽसुरपलोइज्जमाणा तरणि-ताराहिवइणो तिपयाहिणीकाउं पणमिऊण तेलोक्केकल्लबंधवं जयगुरुं णिसण्या नहोइयहाणे । भगवया वि धम्मसवणूमुयं परिसं मुणिऊण पत्थुया धम्मदेसणा। कह ? जह जीवो गुरुपाणाइवायवड्ढन्ततिव्यववसाओ । अञ्चन्तकिलिट्ठाणिदुट्टकम्मं समज्जिणइ ॥ ४७३ ॥ जह णियसयत्थवित्थरियचप्फलालावजंपिरो धनियं । बंधइ अविसुद्धमणो खणेण पावं जए जंतू ॥ ४७४ ।। जह यचोरिया-बंधणेकरसिओ परं विलुपंतो । आवज्जइ असमंजसमवज्जमोजल्लयाए जिओ ॥ ४७५ ॥ जह अञ्चन्तमणोहरकयपरमहिलापसंगदुल्ललिओ । अजिणइ कुगइगमणोवउज्जममुहं विमूढप्पा ॥ ४७६ ॥ जह गरुयारंभपरिग्गहेण संगलियधण-कंणणिहाओ । संचइ दुचरियवंतचरणचित्तोऽसुहं विउलं ॥ ४७७ ॥ जह कोह-माण-माया लोहविलुप्पंतसुकयपरिणामो । अप्पाणं णरय-तिरिक्खगमणजोग्गं जिओ जणइ ॥ ४७८ ॥ जह वज्जियसव्वावज्जसंजमुज्जोयजणियसुहझाणो । जीवो [3] सुर-णरसुहाणुसंगिमत्ताणयं जणइ ॥ ४७९ ।। ईय जह णिहलियासेसकम्ममलपडलपंकपम्मुक्को । जीवो पावइ अञ्चन्तसासयं पवरमुत्तिमुहं ॥ ४८० ॥ एवं धम्मकहावसाणम्मि ते दिणयर-ससहरा कयपयाहिणा पगमिऊण जएककप्पतरुपायवं जिणं विमलयरकरणियरजालाकलावविलियदिसावलया दिसावलयविवरपूरणोवओग्गाहिट्ठियविमाणरयणा विमाणरयणंतरुल्लोयपहल्लंतमुत्ताहलोऊलावलग्गपलम्बविमलमणिगोच्छुच्छया मणिगोच्छुच्छयाऽऽहउच्छलियरगज्झणंतकलकिंकिणीरवा किंकिणीरवसणाहपवणुधुयधवलधयवडा समुप्पइया समोसरणाओ । संठिया तमालदलसामलम्मि णहयलाहोए । गया य णिययवसई। तं च तहाविहमणणुहूयपुव्वं पुलोइऊण सुर-णरा परं विम्हयमुवगया । विम्हउप्फुल्ललोयणा य परोप्परं मंतिउं पयत्ता जहा-अच्छरियमेयं । अहवा 'अणंतकालेण होति च्चिय अच्छरियाई ति कलिऊण जहागयं गया परिसा। इय बद्धमाणसामिचरिए ससि-सूरागमणं [१७] ॥ अह सो वि गोसालो बालतवसमावज्जियं तेयमुन्वहंतो जत्थ जत्थ भयवं अहाविहारेण संचरइ तत्य तत्थ 'अहं चेय सवण्णु' ति अत्ताणयं पसंसन्तो परिभमइ । अण्णया य एकस्सि समवसरणणिसण्णस्स भयवओ समागओ, पुच्छं च काउमादत्तो। तओ सुर-णरसणाहपरिसासमक्खं विहलणाणाहिमाणी कओ। अण्णया य भिक्खुसव्वाण(णु)भूईहिं समं विवाओ संजाओ। तओ विवायवमुप्पण्णकोवाइसएण य पक्खित्ता ताणोवरि तेउलेसा, तेहिं पि तस्स सतेउलेस त्ति । ताणं च परोप्परं तेउलेसाणं संपलग्गं जुझं । एत्थावसरम्मि य भयवया तस्सुवसमणणिमित्तं पेसिया सीयलेसा। तओ सीयलेसापहावमसइमाणा विवलाया तेउलेसा, मंदसाहियकिञ्च व्व पयत्ता अहिद्दविउँ गोसालयं । णवरमसह १ डलम्मुक जे । २ जुक्लं जे । ३ गायेयं जेपुस्तके नास्ति । ४ जह जह णि जे । ५ कवलिय जे । ६ एकसि जे । ७ णाहिवाणी जे । ८ मंदिसाजे । Page #390 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४ दद्यमाणखामचरिय। ३०७ माणो तेयजलणप्पहावं समल्लीणो जयगुरुं । जयगुरुचलणप्पहावपणट्ठोवसग्गपसरो य संबुद्धो पयत्तो चिंतिउं-हा! दुटु मे कयं जं भयवया सह समसीसिमारुहंतेण अचासायणा कया। एवं च पइदिणं र्णिदणाइयं कुणमाणो कालमासे कयपाणेपरिच्चाओ समुप्पण्णो अच्चुए देवलोए त्ति । गोसालसंयोहणं [१८]॥ भयवं पि अण्णया जहाविहारेण विहरमाणो संपत्तो रायगिहं पुरवरं । सुरकयसमोसरणाइपुव्वक्कमो णिसण्णो सीहासणे साहिउँ पयत्तो दयाइमूलं धम्मं । एत्थ पत्थावम्मि य सेणियणराहियो भगवंतं समोसरणसंठियं सोऊण विणिग्गओ वंदणत्थं जयगुरुणो । कह ? अह चलइ चलियसामन्तपहयढक्काणिणायसंयलिओ । बरबंदिसद्दऽमंदुच्छलन्तबहुजयजयासहो ॥ ४८१ ।। दोघट्टपयट्टमरदृथट्टकयकंठगज्जियणिणाओ । गुरुदंसणसम्मद्दुच्छलन्तघणघडियघणसद्दो ॥ ४८२ ॥ तोरवियतरलतुरयुच्छलन्तखुरखयखमायलरओहो । संचल्लपक्कपाइक्कचक्ककयहलहलारावो ॥ ४८३ ।। इय धरियउद्धधवलायवत्तकयमउलिमंडलाहरणो । णीहरइ वारविलयाचलचमरपसामियरओहो ॥ ४८४ ॥ एवं च पत्थिएण सेणियणराहिवेण दिट्ठो एक्कचलणावटंभणिमियसयलंगहारो उद्धसमुक्खित्तोभयभुयार्जुवलो झाणवसणिमियणिच्चललोयणप्पसरो णिप्पयंपत्तणतुलियकुलमहिहरो पडिमासंठिओ रायरिसी पसण्णचंदो । दट्टणं च तं अंतोवियंभिउद्दामहरिसंवसपयदृन्तपुलयपडलो समोइण्णो जाणाओ सेणियणराहिवो । गओ जत्थ भयवं पसण्णचंदो। पणमिओ य सविणयपणामियकरयलंजलिसिरेण राइणा । वंदिऊण पत्थिओ जयगुरुसमोसरणहाणं । एवमण्णे वि महासामन्त-तलबग्गाइणो 'राइणा वंदिय' त्ति कलिऊण कयसविणयोवयारा वंदिऊणं पुणो पत्थिय त्ति । ताव य तत्थ संपत्ता तस्स चेय राइणो भिच्चा सुमुह-दुम्मुहाहिहाणा । तत्थेक्केणं भणियं-एसो मुणिपसण्णचंदपत्यिवमहरिसी, तओ एयस्स वंदणेण पक्खालियकलिमलं अत्ताणयं करेमो त्ति। बीएण संलत्तं-किं भे एयस्स वंदिज्जइ ?, अदव्यो खु एसो, कहं ? जेण पेच्छ कमागयं रजं अणहिगयणीइसत्थस्स अदिट्ठसमरारंभविब्भमस्स णिययतणयस्स बालयस्स संमोप्पिऊण पवण्णो पन्धज्ज, इमं च गहियदिक्खाविहाणं वियाणिऊण एयस्स गोत्तिएहिं आगंतूण सयलबलसामग्गिएहिं रुद्ध एयतणयस्स पुरवरं, पडिरुद्धो पुरजणवयाण णिग्गम-पवेसो, भग्गो पज्जोहारो, तओ सो [स]पुरजणवओ पक्खीणप्पायजवसिंधणो परं विसायमावण्णो, तं च तहाविहं दट्टण सो रायकुमारो किंकायव्यमूढमाणसो संजाओ त्ति, अओ भणामो 'किमेएणं वंदिएणं ?' । ति भणमाणा दो वि वौलीणा तयंतिएणं । तं च सोऊण मुणिपसण्णचंदमहरिसिणो विम्हरिओ अप्पा, पम्हुहो गुरुजणोवएसो, अइक्वन्तो विवेयावसरो, विमुमरिओ जइत्तणारंभो, पयड्ढिउं पयत्तो मणम्मि कोवाणलो । चिंतिउं पयत्तो-"ण केवलं सो कुमारो सारीरसामत्थयारहिओ पाएण मंतिमंडलप्पमुहपयइपम्मुक्को य, अण्णहा हमेको परं तत्थ ण साहीणो । अण्णं पुण तयवत्थं चेव तस्स समोप्पियं मए । अहवा सव्वं पि तं पहुपरिसेसियं ण किंचि त्ति । ता सो बालसरूवो कुमारो अदिवपरचकविन्भमो अणहिगयसमरारंभो। जइ पुण अहं तत्थ भवेज्ज ता सुसज्जियकव(वि)सीसगगमणिमग्गं अट्टालयावलग्गिज्जतधाणुकपरियम्मं परपुरिसालंघणिज्जं पुरं काऊण, अप्पणा वि एको घणगुडियधैडंतगयघडावीढणिवहो, अण्णओ सव्वावरण १ णचाओ सू । २ वरबंदिविंदसदुच्छ जे । ३ 'गज्जिणिण्णाओ सू । ५ जुयलो जे। ५ सपर्यसू । ६ अत्ताणं करेमि जे। . समप्पि' जे । ८ सामागीहि सू । ९ वोलिया तस्सति जे । १० धारेक सू । ११ घणंत सू । Page #391 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०८ चउप्पलमहापरिसरिय। पहरणाहिटियपयट्टन्तरहबरुग्घाओ, एक्कओ सपक्खरापरिगयतुरयखणखणारावगम्भिणुद्धावियारोहो, अण्णओ हणहणासहगम्भिणुब्भडसुहडपडन्तपडिभडो समरवावारपडिथिरो होऊण परबलमसमंजसं पहारेहि करेज्ज ति । कह ? वियडकवोलयलगलन्तमयजलंधलियलोयणवहं पि । णीहरियसोंडदंडग्गसीयरं वरगयाणीयं ॥ ४८५ ॥ वेउडुरदुद्धरतुरयखंधपज्जुत्तसंदणणिहायं । हिययपडित्थिरवरजोहपहरणावरणकलियं पि ॥ ४८६॥ विसमुद्धाइयसण्णद्धदुद्धरारोहकयहणकारं । रणदक्खपक्खरुक्खित्तखरखुरं तुरयथटं पि ॥ ४८७ ॥ दूरुल्लसंतवावल्ल-सेल्ल-कयखग्गखरखणकारं । समुहोत्थरन्तपसरंतपकपाइकचकं पि॥४८८॥ पतिदिणपयड्ढियण्णण्णवूहविण्णासविरयणपरं पि । ओहरियपहरणं दुसहमोत्थरन्तं पराणीयं ॥ ४८९ ।। भग्गम्मि विणिययबलम्मि हिययपसरन्तसाहससहाओ। एक्को चिय अहयं समरसमहणिकंपथिरचित्तो॥४९॥ णवणिसियमंडलग्गाहियायदेहाविउट(ह)भडदेहो । कोडिं लक्खं च सहस्समेकपुरिसं व मण्णंतो॥ ४९१ ॥ इय जुझंतों हं घडियगयघडद्दाममुहडचक्केण । परसेण्णेण समं समयमुक्कपहरणणिहारण ।। ४९२॥ अण्णं च समोवयंतो मइंदो व्व घुिघडामुं, पलयजलणो व्व संदणधुरासु, दुव्वाउ ब्व समोत्थरन्ततरलतुरयथट्टेखें, कुवियकयंतो व्व सुहडसंघाएमुं" ति । __एवं च णिययमणे चेव तस्स पसण्णचंदमहरिसिणो र्जुज्झन्तस्स वोलीणो तमुद्देसं सेणियणराहिवो। संपत्तो य समोसरणभूमि । दूराओ चिय विमुकजाण-छत्ताइरायचिंधो पयट्टो समोसरणं । तिपयाहिणं वंदिऊण जयगुरुं णिसण्णो गाइद्रप्पएसे । कहावसाणम्मि ये मुणिपसण्णचंदमुद्दिसिय पुच्छिउं पयत्तो जहा-भय ! एवं शाणोवगयस्स का गती मुणिपसण्णचंदस्स ? ति । भयवया भणियं-अहो सत्तमपुढवीए । पुणो वि कहंतरे पुच्छिएण भणियं भगवया-तिरिएसु । पुणो वि कहतरम्मि पुच्छिएण साहियं गुरुणा-मणुएसु । पुणो वि देवेसुं, जाव केवलं समुप्पणं ति । एत्यावसरम्मि य सविम्हयपयत्तपुलयपसरेण पणमिऊण सेणियराइणा भणियं-भयवं ! किमेइहमेवमंतरं ? किं वा मह चेय कुस्सुई संजाया? । भयवया भणियं-"ण तुमए कुस्सुयं, किंतु तुज्झ समागयस्स मग्गओ तुहसंतया चेयं दोणि पयाइणो तेणुद्देसेण समागया। ताणं च वयणवइयरुप्पण्णगरुयामरिसवसपयत्तसमरारंभस्स संकप्पणामेतविणिट्ठियसयलस्थस्स गरुयक्खेयपरामुसियसिरत्ताणस्स लग्गं करयलम्मि मुंडमुत्तिमंगं । तओ तप्कंसपञ्चागयसुमरणेण चिंतियं च-कस्थाहं ?, कैत्य वा मह सुओ?, कर्हि वा अचन्तावत्थविरुद्धं मह ववसियं ? । एवं च समुल्लसन्तजीववीरियमुहज्झवसाणो 'हा हा! दुटु मे चिंतियं' ति णिंदण-गरहणाइपयत्तधम्मज्झाणाणतरुप्पण्णमुकज्झाणारोहणुप्पाइयकेवलणाणो संवुत्तो । अओ एयस्स अज्झवसायावत्थाविसेसासु पुच्छिएण तुमए मए एवं संलत्तं ति । ता भो णराहिव! अज्झवसायविसेसमूलो खु जीवाणं सुहाऽमुहकम्माणुबंधो"। मुणिऊणं च भयवओ अंपियं णराहिवो :अन्तोवियम्भिउब्भडविम्हयप्पसरो वंदिऊण जयगुरुं पविठ्ठो पुरवरं ति। इति वद्धमाणसामिचरिए पसण्णचंदस्स केवलणाणुप्पत्ती [१९]॥ अह पुरमइगयम्मि णराहिवे अभयकुमारो पणमिऊण सैमवणओ पुच्छिउमाढत्तो-भगवं! एसो हु मेहकुमारो सव्वजणणयण-मणहरणरूवो वि अच्चन्तसीलालंकारोववेओ केवलं हस्थिसिक्खावियारणिरओ हत्थिवावारपरायणो य हस्थि १ पइदिणपट्टिय जे । २ उदभजे । ३तो मंतो घडि सू, तो इंतो घडि जे । ४ जुज्झमाणस्स जे । ५ य पसस । ६ बन्तरं सू । ७-८ चेव जे । ९ 'तविणिच्छिय सू। १. गरुवक्खेवपरासू । कहि सु। १२ साणावत्था जे। १३ समोणोजे। Page #392 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . ५४ वद्धमाणसामिचरियं । ३०९ साहणमज्झम्मि चेव णिवसइ, सव्वसत्तदयालू वि अरण्ण-गिरि-सरिया-सरोयरविहारणिरओ, हेमंते वि संयं चिय संपलग्गदवग्गिविज्झविणरई, करिवरो व सद्द-फरिसरुई थिमियकिरियाकलावचेट्ठो य, पतिदिणं च करिवरजूहालेक्सक्खित्तमाणसो दिवसे गमेइ, ता किमेयमेयस्स ववसियं ? । ति पुच्छिएण भयवया भणियं-“भो देवाणुप्पिया ! अस्थि इहाइकंतचउत्यभवन्तरे एसो मेहकुमारो वियडगिरिकडयकूडै निबिडम्मि उद्घद्धाइयतुंगतरुसंकडिल्लम्मि बहुसावयसहस्ससंकुलम्मि विज्झाडइरण्णगहणम्मि आसि पंचसयजूहाहिबई करिराया। अणेयकरिणीरियारिओ सच्छंदविहारणिरओ विचित्तकीलाहिं कीलमाणो विहरइ । अइक्तो कोइ कालो। अण्णया य पच्छिमदसाए वट्टमाणो जलावगाहणत्थमोइण्णो एक महासरवरं । तहिं च णिउड्डो अगाहे पंकम्मि। तो वयपरिणामत्तणो सरीरस्स, णित्यामत्तणओ अवयवाणं, तो णिग्गंतुमपारयन्तो एक्केण तरुणगयकलहेण ईसाबसवेईसमुबहतेण तहा तहा दसणप्पहारेहिं भिण्णो जहा तेत्थेय पंचत्तमुवगओ। पुणो वि तहाविहकम्मजोएण तम्मि चेव" जूहम्मि गयकलहेत्ताए समुप्पण्णो । वढिओ कमेणं । जाओ य सयलजूहाहिवई । णवरि य संपलग्गम्मि वणदवे कहिं पि गंतुमपारयंतो दड्ढो दवग्गिणा। मओ समाणो कम्माणुहाओ जूहम्मि चेव गयत्ताए संजाओ। अइक्कतो बालभावं । संपत्तो जोव्वणं । जाओ जूहाहिवती । जहिच्छं हिंडमाणो पत्तो तमुद्देसं जत्थासि वणदेवदाहेण य दड्ढो त्ति । तं च दट्टणं पएसं इहा-ऽपूह-मग्गणं कुणन्तस्स समुप्पणं जाईसरणं । सुमरिओ पुव्यभववइयरो। सुमरिऊणं च इओ तो परिभमन्तेण आजोयणमेत्ते धरणिमंडले चलणचप्पणापणासियतण-कट्ठणियरं दवग्गिभयरक्षणक्खममेकमुद्देसं कयं । तओ तहिं जहिच्छाविहारकीलापसत्तचित्तो सच्छंदमच्छिउं पयत्तो। अगणियासेसोवद्दवभओ य अहाकवलं सुवित्तिकप्पणाए य गयं पि कालं ण लक्खेइ । जाव संपत्ते गिम्हसमए, विप्फुरन्ते तरणिकरणियरे, सुव्वंते "चीरिया णियरविरुए, सबओ पवट्टमाणासुं झलझलक्कासुं, एकम्मि दिणे मज्झण्णसमए मारुयपहट्टणुव्वेल्लवंससंघामुडिओ समंतओ संपलग्गो वणदवो। केरिसो य "सो? अविरलजलंतजालाकलावसंवलियसयलदिसियको । कालो व कवलिउं घगवणंतराले समक्कमइ ।। ४९३ ॥ सविसेससंपलग्गंतवंसफुट्टन्तकयतडकारो । दूसहसदुद्धाइयकुवियकयंतट्टहासो व्च ॥ ४९४ ॥ णिवडन्तदड्ढवणदुमविसढविसदृन्तभीसणफुलिंगो । अमरिसवसन्तउविडिमभिउडिभीसणपहोहो व्व ॥ ४९५॥ उद्धणिबधुद्धयधूममंडलावूरियंबराहोओ। कैसणच्छविसंछाइयदियन्तरो णिसियरोहो ब्व ॥ ४९६॥ इय सम्बत्तो चिय सयलजंतुसंताणपरिगयमरणं । णिड्डहमाणो वित्थरइ विज्जुपुंजो ब वणदाहो ॥ ४९७ ॥ अवि यजलियजलणजालमालो सुदिप्पंतसत्तासओ, पउरपडियपायवुप्पण्ण[ ? सं]सहसंतासओ। वणयरविविहमुहुम्मुक्करावोहसंखोहओ, वियरइ वणदावदाहो थिराणं पि सम्मोहओ ॥ ४९८॥ तो पडन्तपायवं, पयाववड्ढियायवं । रसंतमूढसंचरं, रोहधूसरं परं ॥ ४९९॥ विसहभीमणीसणं, जलंतजालभीसणं । मइंदसहकारुणं, फुलिंगजालयारुणं ॥ ५०० ॥ घुरुक्कमाणसूयरं, 'पैलाणपुल्लिमायरं । पणदुद्दचित्तयं, भओवरुद्धचित्तयं ।। ५०१ ।। विसण्णषुण्णरोज्झय, भयाउराविसज्झयं (?)। ससंगसंगसंगयं (१), वणं दवेण संगयं ॥५०२॥ ति। एवं च णिडहमाणो सयलदियंतरालं संपत्तो तमुद्देसं जत्थ सो गयजूहाहिबई । सो वि करिबरो दट्टण वणदवं १ सई जे । २ विज्झवण सू । ३ दिवसं सू । ४ डणिवडियम्मि उ सू । ५ परिवारिओ जे । ६ दसासु वत्तमाणो सू । ७ महासरं सू । ८ वेहयमु सू । ९ तत्थेव जे । १० व गयन्ह जे । ११ हइत्ताए जे । १२ वो गयजूहम्मि जे । १३ दवदड्ढो सू । १४ बीरिया स । १५ सो दीसिङ पयत्तो ?-अवि जे । १६ कसिण जे । १७ हमुकम्मुक्करा जे । १८ पलायपु जे । १९ गष(ख)कसंगयं सू । २० °सं । तत्थ सो गयजूहाहिवई दळूण सू । Page #393 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१० चउप्पन्नमहापुरिसचरियं । संठिओ पुव्बपरियप्पियम्मि परसे सजूह परिवारो। संठियस्स तमुद्देसम्मि जूहाहिवइणो जह जह दवाणलो आसण्णीहोइ तह तह संयला विसावयगणा चिरपरूढवेराई पि विम्हरिऊण विरोहिणो वि समं चेय समल्लीणा गयजूहन्तरालम्मि । जलणदाहभयाउरेहिं च णिबिवरीकओ सो पएसो करिकुलगत्तरालं विसंतेहिं । तहिं च एक्को अलद्धावयासो ससो जूहाहिवइसमीवं समल्लीणो। एत्थावसरम्म य करिणाहेण सरीरकंडुयणणिमित्तमुप्पाडिएक्कचलणप्पएसन्तरालमवलोइऊण संठिओ तत्थ ससो। करिराया वि मुणिऊण तं तत्थावट्ठियं अणुकंपागयमाणसो तह चेव तिवईए संठिओ। कहं चिय? कंडुयणणिमित्तुप्पाडिएक्कचलणावयासमल्लीणं । वदृतससं वड्ढतहिययपरिओसपडहच्छो । ५०३ ॥ अंतोवड्ढन्तदयापरिणामसमुल्लसंतलेसिल्लो। तिवईए संदोलणपयत्तकोंडलियसोंडग्गो ॥ ५०४ ॥ संठाइ तमुक्खित्तम्मि णिययचलणम्मि णिप्पयंपमणो। णिहसे सत्तं चिय संठवेइ अथिरं पि थिरचित्तं ॥५०५॥ संकुइयएकचलणस्स पवरजूहाहिवस्स वच्चन्ति । पज्जलमाणे दावाणलम्मि राइंदिया सत्त ॥५०६॥ सव्वत्तो णिव्वाणम्मि दड्ढड्ढव्वयम्मि जलणम्मि । वोलीणम्मि समन्ता जहागयं सावयगणम्मि ।। ५०७॥ पायट्ठाणं दट्टण सुण्णमविसुण्णणिहियकारुण्णो। वसुहायलम्मि चलणं 'णिमेइ किर कलियकयकिच्चो । ५०८ ॥ णवर ण सक्कइ संकोयणुब्भडप्पण्ण तिव्ववियणिल्लं । काऊण उज्जुयं परहिएक्ककज्जुज्जओ सहसा ।। ५०९॥ इय ताव तिव्यवियाँपरिणामुप्पण्णणीसहावयचो । पडिओ गलन्तसत्तो धरायले पवरकरिणाहो ॥५१०॥ तओ निवडिओ समाणो गरुययाए णिययगत्ताणं, परिसंतयाए सयलावयवाणं, णीसहेत्ताए समुच्छाहस्स, विसण्णयाए चित्तपरिणतीए, परिक्खीणयाए आउयस्स, उढेउमपारयंतो किलिस्सिऊण कइवयदिणे पंचत्तमुवगओ सो। देवाणुप्पिया ! हिययंतरुल्लसन्तदयापरिणामसंजणियसोमलेसाणुहावओ समुप्पण्णो चेल्लणाए महादेवीए कुच्छिंसि । जाओ कालक्कमेणं । पइटावियं च से णामं मेहकुमारो त्ति । वढिओ देहोवचएणं कलाकलावेणं च।। ता सो तस्स पुवभवकयगयकीलणाविसेसुप्पण्णतान्त्रिहपरिणामो अणुदिणं तहचेट्ठो चेय विहरइ ति। एवं च तस्स पुवभवैवासणाणुरूवं ववसियं लेसुद्देसेण तुह मए सिर्ट" ति । एयं च णिसामिऊण भयवओ साहियं अन्तोवियम्भन्तहरिसपसरो वंदिऊण जयगुरुमइगो [अभओ] पुरवरं । गया कइ वि दिणा। अण्णया य जणरवाओ मुणिऊण पुब्बभवसंबद्धं णियपउत्तिं हियेअंतोसमुल्लसन्तवेरग्गवासणो चिंतिउं पयत्तो मेहकुमारो-एक्कजंतुमेत्तदयापरिणामस्स एरिसविहववित्थरे कुलम्मि मह समुप्पत्ती, जे उण जइणो महाणुहावा णिरवज्जसंजमावज्जियसुहसमूहा ते णिस्संसयं णिव्वाणं पाति त्ति । तओ सो समुज्झिऊण सयलविसयवासंगवामोहं, कलिऊण तडितरलमाउविलसियं, संझब्भरायसरिसं विहवपरिणइं, सरयकोजयपस्यविन्भमं जोवणारंभ, हिययकयसामण्णग्गहणववसाओ समागओ अभयकुमारसमीवं । भणिउं च पयत्तो जहा-"इच्छामि अहं त॒न्भेहिं अब्भणुण्णाओ पन्चज्ज पवज्जिउं जयगुरुणो समीवम्मि, मुणिओ य तुम्हेहिं मह पुचभववइयरो भयवयाहितो, ता तइया मया तिरियत्तणम्मि वि पाणिघाओ रक्खिओ कहमियाणि मणुयत्तणे लद्धसण्णो होऊण पाणिणो ण रक्खिस्सं ? ति । कह ? जेण णे तीरइ गेहम्मि पाणिरक्खा खणं पि काऊण । छिप्पइ जो उयएणं उययस्स कहं ण मज्झत्यो ? ॥ ५११॥ बहुविहपरिग्गहासंगलोहवदृन्तमूढमइमग्गो । कह तरइ पाणिघायाइरक्खणं परियणारंभो ? ॥ ५१२॥ आमिसलोहेण सुणाइणो वि वट्टन्ति पाणिघायम्मि । मुक्कक्सिया-ऽऽमिसा उज्जमन्ति जइणो जए तेण ॥ ५१३ ॥ इय जयगुरुणो इच्छामि पवरपयजुयलसेवणं काउं । सीसवणेण तुमएऽणुण्णाओ सव्वकालं पि" ॥ ५१४ ॥ १ सयले सू । २ वड्ढतससं जे । ३ वटुंतहि सू । ४ गाथेयं जेपुस्तके नास्ति । ५ वहुहा सू । ६ णियमेइ(ई) कलिय सू ।। ७ णवरि जे । ८ णाऽऽवेवसमु जे । ९ हत्तयाए जे । १० एयं जे । ११ वभासणा जे । १२ हिययतोससमुजे । १३ परिणई जे । १४ तुम्हेहि अणुण्णा जे । १५ इ सू । Page #394 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४ वद्धमाणसामिचरियं । ३११ एवं च सोऊण मेहकुमारजंपियं भणिउं पयत्तो अभयकुमारो जहा-"सुंदरं तुमए जंपियं जइ जह चिय भणियं वह च्चिय पालिउं तीरइ । कुओ ? जेण विसमो जोवणारम्भो, दुजओ मयरकेउपसरो, दुद्धरा विसयजुत्ता इंदियतुरंगमा, सम्मोहैकारया महिलाविलासा, दुरज्झवसाया पन्चज्जा, दुप्परियल्ला वयविसेसा, दुरहियासा परीसहा, अणिवारियप्पसरा कसाया, अओ भणामि 'दुक्खेण णिबाहेउं तीरइ' । अपरिपक्ककसायस्स य जंतुणो पन्चज्जुज्जमो लाहवावसाणो णंदिसेणस्स विय संजायइ" त्ति । मेहकुमारेण भणियं-को सो गंदिसेणो? । अभयकुमारेण भणियं आसि इह अम्ह सहोयरो शंदिसेणो णाम कुमारो । सो कयाइ समुबिग्गसंसारवासो पन्चजाकरणुज्जयमती वारिओ सुहि-मित्त-बंधुवग्गेहि, भणिओ य जहा-दुक्करा पञ्चजाकिरिया, जोव्वणओ य समुन्भूयसत्ती मयरद्धओ, उम्मिंठो य मयणवारणो अहिलसइ पमयावणमभिद्दवेउं ति । इय जंपियात्रसाणम्मि य भणियमिमेण-"एवमेयं, किंतु तहा जइस्से हं जहा चक्खुगोयरवहे वि मह महिलायणो ण संठाइ ति । कहं ? ईसि पि विणासो होज्ज जस्स संगाहि सो ण तं कुणइ । को णाम कालकूडं कवलइ कवलेहिं जीयत्थी ? ॥ ५१५॥ सच्चं पमया पमयस्स कारणं पउरपञ्चवायस्स । को होज विवेई दूरओ ण जो तं परिचयइ ? ॥ ५१६ ॥ पञ्चक्खं चिय सुन्वन्ति राम-रामण-णलाइणरणाहा । संपत्ता वसणसयाई रमणिवासंगवामूढा ॥ ५१७॥ ता उज्झिऊण जो हं णियवरविलयायणं कुसलकज्जे । अब्भुजमामि सो कहमण्णा पुलएमि परमहिला"?॥ ५१८ ॥ इय जंपिऊण वड्ढन्तहिययपरिओसजणियरोमंचो । पव्वज्जमब्भु[व]गओ जिणवरभणिएण मग्गेण ॥ ५१९ ॥ तओ गिहिऊँण जिणपवयणविहीए सामण्णं, अहिज्जियसयलमुत्तत्थकिरियाकलावो परिचइऊण वसिमं जणवयं पविट्ठो अणेयताल-तमाल-सरल-देवदारु-पुण्णायाइसंकिण्णं महारणं । जं च आहासन्तं व परपुट्ठाविरुएहि, उग्गायन्तं पिच रुंटतभसलवंद्रहिं, पणच्चिरं पिव पवणुव्वेल्लसाहाभुयाहि, पमुइयं पिव विविहविहयऽट्टहासेहिं, अवि य कहिचि संचरंतवारमिंदरुंदजूहयं, कर्हिचि संघडन्तघोरपुंल्लि-पील(लुओहयं । कहिचि संठिउहियन्तरुट्ठदुट्ठसीहयं, कहिचि णिब्भरोरसन्तभल्लुयासणाहयं ॥ ५२० ॥ कहिचि मच्छरागयच्छहल्लरुद्धमग्गयं, कर्हिचि साहिलंघणुच्छलन्तवाणरंगयं । कहिचि दाढिघोणघायजजरोरुकंदर, कहिचि णिज्झरन्तणीरधारसहि(दि)रं [वणं] ॥ ५२१॥ ति किंचकत्थइ पुलिंदसुंदरिपउत्तकीलाविसेसरमियाई । साहइ विसम-समुव्वेल्लपल्लवुत्थरणकयलक्खं ।। ५२२ ॥ कत्थइ मैंइंदणिदलियमलियकरिकुम्भमोत्तियप्पयरं । उव्वहइ वणसिरी वरविसट्टकुसुमोचयारं व ॥ ५२३ ।। कत्थइ णिलिन्तकरिकण्णतालणुच्छलियभमरविरुएहिं । कहइ व पाणणिरयाण एरिस चेय होइ गती ॥ ५२४ ।। इय तं सव्वत्तो चिय गुरुपायवविविहवणयरोइण्णं । अल्लियइ गदिसेणो तवोविहाणं व वणगहणं ॥ ५२५ ॥ तहिं च संचरन्तेण सचविओ णाइदूरप्पएससंठिओ विमलकलहोयधवलुल्लसन्तसिलाभित्तित्थलो भित्तित्थलुच्छलन्तकयकलरवजलणिज्झरो णिज्झरेतडपरूडुब्बिडिमलयाहरासीणकिण्णरमिहुणो किण्णरमिहुणमणहरुग्गीयायण्णणणिसण्णदिसिबहुगणो हिमवंतो णाम गिरिवरो । दट्ठणं च तं अञ्चन्तविचित्तत्तणसंपत्तपरमपयरिसं एकंतरुइरत्तणओ समारूढो तत्येकं कडयप्पएसं। तहिं च सुरसरियायडवियडकप्फाडप्पएसेसु हियउल्लसंतवेरग्गवासणाविसेसो” समारदऽद्धमासाइदु १ एवं जे । २ यहुत्ता स। ३ हकम्मा महिजे। ४ दुरहिगमा सू । ५ दुक्खेहि सू। ६ लाइणो जे । ७ °कूलं सू। ८ महिलं जे । ज्जमुवगो सो] जिण सु । १. गहिऊण जिणवयणजे । ११°पुल्लि-पिल्लओं सू । १२ धारसंदिरं ति स । १३ लवत्थुरण जे । ११ मयंदजे । १५ इलं सू । १६ रव सू। १७ सो परिचत्त सू। For Private & Personal use only . Page #395 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१२ चउप्पन्नमहापुरिसचरिय। द्धरतवविसेसो परिचत्तसयलदंदाइदुहकारणो आसाइयसममुहोवमीयमाणसग्गाइसहो सुहज्झयण-झाणणिरओ पवयणभणिएण विहिणा अच्छिउं पयत्तो। कह ? णो छाया णेय फलाई णेय कंदाइं कारणं कलिउं । एकं विवित्तयगुणं हियए काऊण तत्य ठिओ ॥ ५२६ ॥ णिच्चुववासकिलंतो विदित्तदेहो मुहासियज्झाणो । सेविजंतो मयमुद्धलोयणो मयउलसएहिं ॥ ५२७ ॥ संठाइ तिव्वरविकिरिणपसर[सं]तावणुम्मुहो गिम्हे । उद्धट्टियभुयर्जुवलो कएक्कचरणो धरावीढे ॥ ५२८ ॥ घणसमए घणरडिकयतडिच्छडाडोयभासुरिल्लम्मि । संठाइ जंतुरहियम्मि वियडगिरिकंदरुदेसे ॥ ५२९ ॥ सिसिररयणीसु खरपरणपहयपंच्छित्ततुहिणणियरासु । चउजामम्मि समोलंबभुयजुओ गमइ झाणेण ।। ५३० ॥ इय विविहच्चुग्गतवोविसेसणीसेसियामुहप्पसरो । णमुणियणिसि-दिण-सुह-दुक्खकप्पणो णंदिसेणमुणी ॥५३१॥ एवं च मासाओ दुमासाओ जाव चउमासाओ कट्टहारयाहिंतो लद्धजहासुद्धाहारसंपाइयपाणवित्ती कालं गमेइ । तो तस्स तवप्पहावओ वढिया अपत्तपुवा वि वणदुमाण फल-कुसुमसमिद्धी, चिरयालपरूढाई पि उपसंताई सत्ताण परोप्परं वेराई। तयणुहावावज्जियाओ वणदेवयाओ वि पज्जुवासणं करेंति । पतिदिणमुवासमाणा वणयरा वि धम्मसवणुज्जुयमती संजीया । ते य तस्साइसयाणुहावओ जणयम्मि व वेसम्भमुवगया तहिं चेय णिसि-दिणावसाणं पि गमन्ति त्ति । तत्थ य णाइदूरे गंगाजलमहल्लकल्लोलपक्खालियपायारपेढं पायारपेढाबंधुद्धाइयतुंगहालयसमूहं अट्टालयसमूहावलग्गपज्जुत्तजंतपरंतं तपेरन्ताबधुद्धयधयचिंधमालाउलं वप्पिणं णाम पुरवरं । तत्थेक्का अञ्चन्तसलाहणिज्जजोन्वणारम्भा णियरूवोवहसियसुरसुंदरी ससोहग्गक्खित्तरइविलासा णिययवित्तीविढत्तपभूयदविणसंभारा तिलोयसुंदरी णाम पवरवेसविलया । सा य णियधूयाए विवाहसमयम्मि अत्थिजणम्मि महादाणं दाउमुज्जया। तीए य सिट्ठमण्णेहिं जहा-"अत्थि इह एगो महामुणी महातवतेएण दिप्पमाणो दिणयरो व्य मुत्तिमन्तो, तस्स परं जइ दाणं दाउं केणइ बवएसेण तीरइ तओ महाफलं होइ त्ति । कह ? वंदणमेत्तेण वि तस्स होइ अचन्तपुण्णपन्भारो । किं पुण जो तं सकइ परिग्गहं गाहिउँ णिययं ? ॥ ५३२ ॥ मुद्धं पत्तं तारेइ जाणवत्तं व भवजलाहिंतो । णो बहवे पासाण व्व जे सई चेय मज्जंति ॥ ५३३॥ पत्ताहासेहिं ण किंचि कज्जमेत्थं बहुहि मिलिएहि । उज्जोयं कुणइ मणी कायमणीमज्झयारम्मि ॥ ५३४ ॥ अप्पाणं पि ण तारइ गरुयप्पा ताव चिट्ठउ इहऽण्णो । ईसि पि वलंग्गो लोहपिंडए बुड्डइ णिरुत्तं" ॥ ५३५ ॥ इय सोउं सवणपरंपराओ बहुजणपयंपियं बहुसो । वाहरिउं वणयरणियरमेत्थ कज्जे णिउंजेइ ॥५३६॥ . एवं च ते वणयरा तीए सव्वायरेण विणिउत्ता गैया पुव्वपणएणेव जत्थऽच्छइ सो महामुणी। सा वि घेत्तूण णिययधूयं सयलसामग्गिसंपण्णं तेसु चेय वणयरउँडवेसु संठिया । तेहिं च वणयरेहिं लद्धावसरेहि कहाणयसंपाडयं काऊण भणियं-भयवं ! इह णाइदूरे अम्हाण आवासणिमित्तं कप्पिएमुं [उडवेमुं] जइ गमणेणं पसायं करेह ता अम्हाणमणुम्गहो होइ, सव्वस्स वि य अदिट्टपुव्वस्स वि तुम्हे अणुग्गहपरा, किं पुण पुत्तभंडसरिसाणमम्हाणं ? ति । तओ एवं च पुणो पुणो भण्णमाणस्स पुणरुत्तदंसणसंजायईसीसिसणेहस्स समुप्पण्णा गमणइच्छा । पयट्टो तयंतियाओ। कह? जणरहियं जस्स कएण संसिओ सावयाउलं रण्णं । तं चिय संग अल्लियइ पउरपंकं व करिणाहो ॥५३७॥ उडयाहिंतो उडयं भिच्छाकज्जुज्जओ परिब्भमइ । पासयणिबद्धयं पिव आयड्ढइ पुवकयकम्मं ॥ ५३८॥ ण कयाइ आगओ, णेय दिट्टपुव्वो कहिं पि जो देसो । तत्थऽल्लीणो अहवा जायइ जं जस्से तं तस्स ॥५३९ ॥ इय सो महारिसी जायमाणसंजोग्गयाणुहावेण । अल्लीणो परियणपवरपरिगयं उडवयं एकं ॥५४०॥ १ जुयलो जे । २'डालोवभा । ३ पक्खित्त जे । ४ हासदास । ५ कुणंति जे । ६ संखुत्ता जे । ७ न्ताबंधुदय सू। ८ नयरं जे । ९ विलग्गो जे । १० रमेत्य णवर कज्जे जे । ११ गयपुव्वपजे । १२ 'उडेसु सू । १३ करेहि सू । १४ भिक्खाकजुज्जुओ जे । १५ स पुवकयं जे। Page #396 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४ वद्धमाणसामिचरियं । २१६ तो तमागच्छमाणं दणि सा तिलोयसुंदरीध्या अहिट्ठिया मिच्छो दाउं । दिवा य सा महरिसिणा संजायणिण्णुष्णयायंबणहमऊहेणं चलणजुयलेणं, णिऊढगुप्फ-जाणुमंडलेणं सैहिणजंघियाजुएणं, णिच्छल्लियरंभागब्भविन्भमेणं ऊरुजुयलेणं, वियडणियम्बबिम्बमग्गेणं कडियडाहोएणं, मयणभवणसोवाणसण्णिहेणं तिवलीकलिएणं मज्झेणं, वम्महरायाहिसेयकलससच्छहेणं थणमंडलेणं, मुणालियावलयविब्भमाहिं बाहुलइयाहिं, असोयपल्लवसरिच्छेहिं करकिसलएहिं, भरपरिणयबिम्बायम्बिरेणं अहरदलउडेणं, अहिणवविसट्टकंदोदरदीहरुज्जलेणं णयणजुयलेणं, सारयकोमुईपुण्णिमायंदसरिच्छेणं वयणबिम्बेणं, भमरं-उंजणसमिद्धभंगुरेणं च केसकलावणं ति । तं च तारिसं पेच्छमाणस्स तस्स मुणिणो वियसिया णीलकुवलयावलि व णियमकीलन्ती विय णियदिट्ठी, विम्हरिओ चिरयरब्भत्थो वि णियमसंजमो, पम्हुट्टो सयलसत्यावबोहकलिओ वि विवेओ, पंगलिओ रयणि-दिणब्भासपैडित्थिरो वि सयलमुत्तत्थो, केचलं वियम्भिया अरती, उल्लसिओ रणरणओ, पज्जलिओ मणम्मि मयणाणलो, वित्थरिओ रमियव्वयाहिलासो त्ति । तं च दट्टण थंभिओ व्व लिहिओ व्व टंकुक्कीरिओ बमुच्छिओ व्व णिचलणिरुद्धणीसास-णयण-वयणो ठिओ मुहुत्तमेतं। तं च संहावत्थियं पेच्छिऊण, लक्खिऊण तस्स हिययचिंतियं भणिउं पयत्ता तीए जणणी-अम्हे पण्णित्थियाओ, ण दविणसंचयमंतरेण कस्सइ वयणं पि पलोएमो, अम्हाणं खु अत्थलोहेणं कोढिओ वि मयरद्धओ, तेण विणा मयरद्धओ वि दूहवो ति, ता जइ इमीए किंचि कजमत्थि ता दविणं पयच्छसु त्ति । तं च तीए वयणं सोऊण तेण] पुलइयं णहंगणाहुत्तं। तो अहासणिहियदेवयाणुहावओ णिवडिया तमुद्देसमुज्जोवयंती जच्चकंचणवुटि त्ति । नायं च तम्मि उद्देसे महाखलं । तओ तप्पिमिति 'कणयखलं' ति पसिद्धिं गयं । पइट्ठियं च कणयखैलाभिहाणं पट्टणं ति।। इय बद्धमाणसामिचरिए कणयखलुप्पत्ती [२०] ॥ पलोएऊणं च तं गंदिसेणमुणिवरो णहाहितो णिवडियं कणयमहाखलं 'एसो तवाणुभावो' [त्ति] कलिऊण लजिओ व्व मुहुत्तमेत्तं होऊण अवकतो तयंतियाओ । पडिगए य तम्मि सा तिलोयसुंदरी 'गहेमि' ति चिंतिऊण समल्लीणा जाव जत्तियमेत्तं गहियं तत्तियमेत्तं सयलं पि विज्झायंगारसण्णिहं संयुत्तं । चितिउं च पयत्ता-ण हु इम कणयजायं एयमणिवरवईयरेण विणोवसुंजिउं लब्भइ ति, ता जइ पुणो वि "एसो कहि(ह)चि समागच्छइ । एवं च चिंतिऊण परियप्पियऽण्णारिसरूवणिहेलणा णिययधूयं सव्वालंकारविहूसियं पुरओ ठवेऊणं संठिया तस्स पहं पलोयमाणा। अण्णया य पुणो वि विहरणणिमित्तमागयं दद्रुण सा सह धृयाए घेत्तूण तं मुर्णि णिविट्ठा गेहम्मितरे। मणिउंच पयत्ता-"एसा हु कण्णया मज्झ धूया, एयाए जैप्पाइं तुमं पलोइओ तप्पहूई ण अण्णो पडिहाइ, एसा वि तुम्हाभिरुइया। ता मए एसा तुह पणामिय ति। तुममिमीए वरो, कीस संपयं परिचयसि ? । अण्णं च तुम्हाणुहावओ देवयाए दिणं इमं कणयरासिं । एयाए समं उवभुंजसु ति तं दिव्वरूवाए ॥५४१ ॥ रायकुमारसरिच्छं सुकुमारतणुं गुणेहिं सर्पणं । लधु जुवाणर्जुवई सजोव्वणं कुणसु कयकिच्चं ॥ ५४२॥ अण्णह णिरत्ययं तुज्झ जोव्वणं जं वणं पवण्णो सि । जुवईए जविजन्तस्स जोव्वणं होइ सकयत्यं ॥५४३॥ गहिया तुज्झ कए देवयाए दाउं इमं कणयरासिं । संपइ पडिच्छ एयं, अज्ज वि किं चित्तसम्मोहो ? ॥ ५४४॥ जाण णिमित्तं विविहोववासकिसिओ तए इमो अप्पा। ते विसया उवभुंजसु इहं भवे चेव संपण्णा ॥ ५४५॥ को णाम पालिसो सयलरिद्धिसंभोयसमुदयविसेसं । उज्झइ पच्चक्खगयं परोक्खकज्जम्मि मूढमणो ? ॥५४६॥ १ भिक्खं जे । २ सिहिण सू । ३ 'जुवलएणं जे । ४ विय दिवो सू । ५ परिगलिओ जे । ६ पत्थिरो जे । ७ मुच्छलिओ जे। ८ तहाविहं पेंजे।९ पलोइयं जे । १. खलयाहिहाण सू । ११ गचरिए सू। १२ यरे(रेए)णोवभुं सू। १३ एसो समासू। १४ अप्पभिइ जे । १५ तप्पिभिई जे । १६ यइसि! जे । १७ 'वसारिच्छ(सरिस)मचारस। १४ संपुर्ण ने। १९ जुयईचे। Page #397 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउप्पलमहापुरिसवरियं । इय एसा 'तुम्ह मए पणामिया रूविणि व्व मुरकुमरी । अन्भत्थणाए अम्हं अणायरो णेय कायव्वो"॥५४७॥ तओ तीए वयणविण्णासविसविमोहियमाणसेण भवियन्वयाए तारिसस्स, र्दुज्जयाए मयरकेउणो, अणाइभवन्मस्थयाए विसयविलासाणं, संवरिओ वि पुणो वि विसंखलीहूओ अप्पा । अहवा कारिमकयाणुरायाण चित्तमत्थं परत्तमाणीणं । वेसाण कवड्डीणं वसंगओ को जए चुक्को ? ॥ ५४८॥ चुंबति कवोले दाणलोहदरिसियमयंबिरत्था(च्छी)ो । मायंगाण वि पसरन्तभसलवलयावलीओ व्व ॥ ५४९॥ छइंति अम्बरं साणुरायगुणसंसिया ससोहाओ । तरणिकिरणावलीओ व्व अस्थमंतस्स पइदियहं ।। ५५० ।। पायवडियं पि दूरागयं पि लेहं व सयलगहियत्थं । फालेऊण समुझंति दूरमकयण्णुयाओ दढं ॥ ५५१॥ बहुजणपयत्तपाडणकरणवसपयत्तकयजयासाओ। हीरन्ति अग्गो चिय जाओ जूइयरैकत्त व्व ॥५५२ ।। सव्वायरकइवय(यव)संपउत्तभणियव्वपेसलिल्लाओ। जायंति बंधणं णेहबंधपरिमूढचित्ताण ॥ ५५३ ।। अमुणियकिच्चा-ऽकिच्चाइरित्तसंवरणचित्तचरियाओ। संचारिमकिच्चाउ व मूढचित्ताण पञ्चक्खं ॥ ५५४ ।। मिच्छाणुयत्तिणीओ मिच्छापरियड्ढियाणुरायाओ। दुविणयपंडियाओ सुपंडियं पि हु विडंबन्ति ।। ५५५ ।। सविवेउत्तमजणवज्जियाओ मज्जायमुक्कऽलज्जाओ। हिययाणुकूलववसियभणिएहिं जणं विमोहन्ति ॥५५६॥ इय जिंदणिजचरियाओ जिंदणिजाणुरत्तचित्ताओ। वेसाणिहेण संसारवाउराओ वियम्भन्ति ॥ ५५७ ॥ तओ संमुद्दामभोयरिद्धिदंसणसंपण्णमोहपयरिसो पयरिसर्परिखलणखलियनिवडिओ विसयसलिलागाहगंभीरकूवे। जेण तस्स सिद्धन्तवासणासमुन्भूओ सो समो, मास-ऽद्धमासाइसंचिओ सो तवविसेसो, असमंजसकेसलुचणाविसेसविचित्तं तमुत्तिमंगं, सरयसमयजोण्हासमूहसमुज्जलं णियकुलं, सयलं पि पम्हुसिऊण संठिओ विसयसंभोयलाळसो तत्थ गेहे। एवं च तस्स पेयत्तउअओवसमपुणरुत्तोयएण जलहरपेयलियंतरसरयससिविब्भमेण वियम्भियं तस्स कम्मणो सोऊण कह विस्संभिजउ तवकिसियतणुणो?, कैह वा सयलागमावबोहियमइणो? जेण तारिसस्स वि तविहदुक्करतबोविहाणतणुइयतणुणो एयारिसमवत्थंतरं दीसइ । एवं च तहाविहवासंगमूहमाणसस्स वि ण वियलिओ धम्मपरिणामो, जेण पतिदिणं सयलहेउ-जुत्तिसंगयं धम्मस(सा)वणं करेमाणो संबोहेऊण बहुं जणसमूहं पेसेइ जयगुरुणो समीवं। एयारिसपयारेण वचंति दिया। ____ अण्णया य शंदिसेणवइयरमुवलqण इंदेण पेसिओ एक्को दियवरो । समागयस्स य तस्स पारद्धा धम्मदेसणा। आवजिया परिसा, भणिउं पयत्ता-एवमेयं । वंभणेण भणियं-जइ एवं कहमेसो चेय पढममारम्भिऊण ऐयमेयारिसं पच्छा परिभट्ठो ? ति । ऎयं च समायणिऊण णंदिसेणस्स समागया सुमरणा, वियम्भिओ पच्छायावी, समुल्लसिओ विसयविरामो, समुप्पण्णो वेरग्गपरिणामो । चिंतिउं च पयत्तो-हा हा ! धी दुठु मे ववसियस्स, जेण मह समारूढस्स वि तं तारिसं पयविं विसयमुहमेत्तस्स वि कए अत्ताणयं विम्हरिऊण एयमचन्तविवेइगरहणीयमायरियं । तओ समुज्झिऊण तं सयलं पि विसयासंगं गओ जयगुरुणो समीवं । जहाविहि पुणो वि सामण्णं पवण्णो त्ति। ___ता भो मेहकुमार ! एवं दुक्करा पव्वज्जा । मेहकुमारेण भणियं-कम्मवसगयाणं पाणीणं एवमेयं, संभवंति एयारिसाइं अमुणियपरमत्थाणं पुत्वमपरियम्मियसरीराण एक्कल्लविहारणिरयाणं, मह उण जयगुरुणो पायपायवच्छायासंगयस्स मणयं पि ण पहवइ विसयाहिलासाऽऽयवो, ईसि पि ण पसरइ विलासिणीदंसणतण्हा, ता अणुमण्णह ममं ति । तओ सोऊण तस्स वयणं भणियं अभयकुमारेण-अविग्यं कल्लाणभाइणो, जहासमीहियं पुजंतु ते मणोरहा। एवं च अणु १ तुम जे । २ दुज्जययाए-दुज्जयआए-दुज्जयाए, दुर्जयतयेत्यर्थः । ३ कवइम ---- (गाण वस)गओ सू। ४ कत्ति जे । ५ गरित्तच सू । ६ 'गुचित्तरत्ताओ सू । . समुदयरिद्धि । ८ परिक्खलक्खणश्खलियनिवडिओ जे । ९ पयत्तउवसमधु जे। १० पयछिन्तरसरय सू । ११ अहवा संसू । १२ एयारिसं सू । १३ एवं जे । १४ 'न्तविवेयगजे। १५ वासंग जहाविहि सू । १६ । एकाविहारीणं पि एयारिसमवत्यंतरं होइ ति । तओ मेहकुमारेण भणिय-कुमार ! एवमेयं, सम्भवन्ति एया सू। Page #398 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४ वद्धमाणसामिचरिय। णाओ समाणो गयो भयवओ समीवं मेहकुमारो, जहाविहिं पवण्णो समणलिंगं । समणगणमासंठिओ समुजओ तवसंजमे । गच्छंति दियहा। अण्णया य संकिण्णत्तणओ वेसहिविसेसस्स, पहूयत्तणो समणसंघस्स, अन्तोणलद्धप्पवेसो दुवारदेसभाए पमुत्तो मेहकुमारो।जाव णिक्खम-पवेससंजणियजइजणपयसंघट्टमसहमाणो चिंतिउं पयत्तो-अहो ! पेच्छ एए जइणो अविण्णायलोयायारवइयरा अगणिऊण मंदरसरिसं मह कुलुग्गमं तणं पिच कलेऊण कर-चलण-तणुत्तिमंगप्पएसेसु णिमेऊण णिययचलणे णिक्खमंति विसंति य । समुव्विग्गमाणसस्स य कह कह वि पभाया रयणी । पहायसमयम्मि य जयगुरुणा मुणिऊण मणोगयं भणिओ मेहकुमारो जहा-भो देवाणुप्पिया ! किं विम्हरिओ सो तुह पुन्वभवो ?, ण सुमरेसि तं णियगयरूवकलेवरं ?, सलिलावगाहणणिमित्तमइगओ सरसलिलम्मि पंकखुत्तो समाणो पंचत्तमुवगओ, तुहकलेवरुप्परेणं च सयलसमागयसियाल-गिद्धाइसावयगणा चलणे णिमेऊण सलिलगहणस्थं इओ तो संचरंता?' ता कि ताण चलणचप्पणाओ वि अंतरेण जइजणचलणचप्पणं तुह दुक्खमुप्पाएइ ?। तओ सोऊण तं जयगुरुणो वयणं 'मिच्छा मि दुकर' ति परियप्पिऊण समुप्पण्णमुहज्झवसाणो पयत्तो चिंतिउं, कह ? जर-मरण-वाहिवियणाविसेसगज्झस्स हयसरीरस्स । एयस्स कए अप्पा कह णु मए वंचिओ होन्तो १॥ ५५८ ॥ इमिणा ण किंचि कजं असारसंसारमज्झयारम्मि । मोत्तुं परत्थसाहणमेकं इह जीवलोयम्मि ॥ ५५९ ॥ तं च जिण-साहवंदण-वेयावच्चुज्जुयाण संपडइ । बज्झ-ऽभंतरतव-चरण-करण-मुहभावणाए य ।। ५६०। ता अच्छउ ताव तयं कायध्वं मज्झ मूढहिययस्स । कह वा काहं ? जो जइविहट्टणेणावि कुप्पेज्जा ॥५६१॥ ता ते धण्णा जे सम्बया वि उवओगयं पउंजंति । वेयावच्चु मजणियविविहविण्णाणदाणेहि ॥ ५६२ ॥ अहयं पुण अमुणियसयलसत्थसब्भावबाहिरमईओ । मूढपडिवत्तिकम्मो चुको कह एदहे कजे ? ॥ ५६३ ॥ इय एवं जयगुरुवयणपवणसंधुकिओ पवित्यरइ । अंतो विणिड्डहंतो पच्छायावाणलो सहसा ॥ ५६४ ॥ . एवं च पुन्वभववइयरुप्पण्णवेरग्गमग्गो सयलसावज्जवेज्जणुज्जुओ पवण्णो संजमुजोयं ति । ईति महापुरिसचरिए गंदिसेण-मेहकुमारसंविहाणयं [२१] ॥ अण्णम्मि दिणे समुग्गए कमलकोसवियासपञ्चले दिणयरम्मि विणिग्गओ जयगुरुवंदणणिमित्तं सेणियणराहियो। आगंतूण य वंदिऊण जहाविहिं णिसण्णो जहोइयपएसे । पत्थुया भयवया धम्मदेसणा । तहिं च 'अप्पमायपरेण होयव्वं ति पत्यावेण पँयत्ता धम्मकहा जहा-अप्पमाओ हि णाम जइणो मूलं सामण्णस्स, मयंगयो कंदप्पतरुणो, पहंजणो समुण्णमन्तमणमेहडंबरस्स, धूमद्धओ कसायवणगहणस्स, पंचाणणो इंदियकुरंगाणं, णवघणो कुसलकिसलउग्गमस्स, सरयसमओ सत्थसासपरिणतीए, [हिमकालो..................................], सिसिरो विसयविसट्टकमलसंडाणं, महुसमओ मुमइकुसुमुन्भेयस्स, गिम्हयालो कम्मवणगहणस्स त्ति । अण्णं च मूलं धम्मस्स जयम्मि अप्पमाइत्तणं जए पढमं । जइयव्वं जइणा तेण सयलगुतिंदियस्येण ॥ ५६५ ॥ १ बसहणिवेसस्स जे । २ एएण किंचि सू । ३ गाइ सू । ४ जयज सू । ५ बजभो । सू । ६ इय ५• पवना मे। ८ वसगमो(1) कंसू । 'यतुरंगमाणं, गवसू। Page #399 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१६ घउपचमहापुरिसचरियं । इह अप्पमाइणो होति सयलसंचिंतियत्यविस्थारा । सविसयगुणसंपत्तीओ अप्पमाया हि जायंति ॥ ५६६ ॥ लोए वि वणियं अप्पमाइणो होइ अत्थसंसिद्धी । किं पुण जइणो पढमं जं अंगं धम्मसिद्धीए ॥५६७ ॥ नइणो संजमजोयम्मि अप्पमाउज्जयस्स जइ कह वि । जाएज जीवघाओ तह वि अहिंसा मुणेयन्वा ॥ ५६८ ॥ मज्जाइएस एएमु जो जई मैयपमायठाणेसु । जाएज अप्पमाई तमिदियत्था ण लंघन्ति ।। ५६९ ।। इय मुणिउं एयं जइजणेण धम्मुजमुज्जएण दढं । सव्वायरेण जत्तो मणप्पमायम्मि कायव्यो ॥ ५७० ॥ एत्थावसरम्मि य सेणिएण भणियं-भयवं! अणहिंदियसामग्गिसंपण्णस्स मुणिणो वि पमाओ साहीणो चेव, जो मंतुणो पवणुव्वेल्लधयचंचलं चित्तं, विसयाहुत्तं पत्थिया दुद्धरा सयलिंदियासा, दुजओ विसविसमविसयप्पसरो, अणिवारियप्पसरो मयरकेऊ, अहिद्दवंति पतिदिणं कोहादिणो कसाया, दुद्धरो य जंतू विर्सयवासंगलालसो ति। एयं च समायणिऊण जंपियं भयवया-जइ वि एवं तहा वि संसुव्बउ कारणं, जेण अप्पा जायइ ताणं पओज्जकजम्मि चित्तसाहज्जो। इंदियविसयाण सगोयरम्मि पवियंभमाणाण ॥ ५७१ ॥ सो चिय अप्पा सइ चित्तजणियसंरोहणिप्फुरप्पसरो। जइ कीरइ ता जायइ जिइंदियंत्यो सयस्सेव ॥ ५७२ ।। अप्पा जइया संगं राएण समणिओ महइ गंतुं । तइया कयत्थया इंदियाण विसयाण वि सयत्थो । ५७३॥ विसयाण इंदियाण य परोप्परं यकज्जपत्तहो । संबंधं कुणइ मणो सरायसंजोयणग्यविओ।। ५७४॥ ताई चिय णीरायाण विसयसंबंधवज्जियाई दढं । जायंति णिम्णयाण व णिरुद्धसोचाण सलिलाई ॥५७५॥ पेच्छइ चक्खू पुरओ पंइट्ठियं रूववइयरविसेसं । रायपरियड्ढिओ जाइ संगमहियं पुणो अप्पा ।।५७६॥ राय-विरायंतरकारणाई विसएसु अप्पणा चेव । जायंति अप्पटुतं हयेदियाणं तहिं होइ ॥ ५७७ ॥ उय तेण णराहिव ! अप्पमत्तया कारणं सकज्जस्स । जायइ सयले विजए विसेसओ संजयजणस्स ।। ५७८।। अओ णराहिव ! सिंदिओ वि मुणिवरो अप्पमायी रायरहिओ मुणेयन्यो, जेण रूवाइसण्णिहाणे वि मणयं पिण मुज्झइ त्ति । जहा केणइ गरवइणा णियपुरवरीए पयत्ते कोमुईछणे, पंवट्टियासु दिसिदिसि कीलामंडलीसुं, छणवसपयत्तजणबहलहलबोले, हरिसणिब्भराए सयलपुरवरीए, रयणीमु वि णिरंतरदीवप्पहापणहतिमिरास हवीहीम, दीवतेल्लस्स कंपियाछेनं पत्तिं भरिउं समोप्पेऊण भणिओ णिययभिचो जहा-एयं आयण्णसंपुण्णं तेल्लपत्तिं घेत्तूण तुमए ऐयाओ परसाओ पैइल्लया(ग्णपा)संजाव अप्पमाइणा तहा गंतव्वं जहा बिंदुमत्तं पि धरणीए ण पडइ । पयट्टे तम्मि पुरिसे तहा गंतुं, उभयपासेमु णिउत्तदढणिसियकढियासिवावडकरा चत्तारि णियपुरिसा पेसिया] भणिया य-जइ कह वि एयस्स पमायपरबसस्स तेल्लस्स बिंदुमेत्तयं पि णिवडइ जत्थ तत्थ तुम्हेहिं इमस्स सीसं पाडेयव्वं ति । एवं च सो तेल्लपत्तिं घेत्तूण णिमियणिचललोयणपसरो पयट्टो गंतुं । ता भो णराहिवं ! एकओ पयट्टविविहकरणंगहारवसुन्वेल्लतणुलयं पुरसुंदरीयणं, अण्णओ सर-करणें-कलतालमंदसुइसुहं गेयमागाइयमायण्णउ पुलोएउ वा? किं वा सिरपडणभउब्भन्तमाणसो अपमाई होईऊण चउ ? त्ति । राइणा भणियं-तारिसमवत्थमावण्णस्स किं तस्स मगहरेणावि विहिदंसणेणं ?, किं वा किण्णरुग्गीयमणहरेणावि कलगीयायण्णणेण कजं ?, अण्णेण वा मुंहफरिसाइणा .समहिलसिएणं ?, सव्वं पि तस्स णियजीयसंसए अवत्थु पडिहाइ ति । भयवया भणियं-जइ एवं ता तस्स वि जइणो णियम-तव-संजमुज्जोउज्जयमणस्स सव्वं पि तं विसयाइयं तह चेय दट्ठव्वं । तओ पत्थिवेण अवितहं तह च्चेय पडिवण्णं । पत्थुया भयवया धम्मदेसणा । एत्थावसरम्मि य तमुइसं णिययपहापरिक्खेवपसरेणं समुज्जोएन्तो सैमागओ एको दिव्यपुरिसो। दिवो णराहिवं वज्जिऊण सयलाए वि रायपरिसाए, केरिसो य? १ जियग्घाओ सू । २ मइप सू। ३ जएण होयध्वं । सव्वा सू । ४ "पमाओ ण का जे । ५ दुरुद्धरा सू । ६ 'सयासंगला सू । ७ यत्था वसस्सेव सू। ८ परिट्ठियं जे । ९ हुत्तं इहेंदियाण जे । १० पयट्टियासु सू । ११ समप्पे जे । १२ *संपण्णं सू । १३ इमाओ जे । १४ पइवापासं जे । १५ णमंद जे । १६ होऊण जे । १७ वचसु जे । १८ णविणिस जे । १९ सुफरिसास। २० णियत स। २१ समाऽऽओ जे । Page #400 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५१ वक्षमाणसामिपरि । अञ्चन्तसुंदरदामसोहसंपण्णमणहरायारो । मउडमणिकिरणणियरप्पहासमुज्जोइयदियंतो ॥ ५७९ ॥ सवणमणिकुंडलज्जलपरिमंडियगंडवासपेरन्तो । वच्छत्यलरंखोलन्तहार-हारावलिसणाहो ॥ ५८० ॥ भुयदंडघडियमणिमयकेऊरुज्जोयरुइरभुयसिहरो । कणयकडउम्मडविडिमसोहरेहंतकर चलो ॥ ५८१ ॥ कणयकडिमुत्तयाबद्धलग्गकलरणझणंतरसणिल्लो । सुरतरुपस्यमालामिलंतमसलालिवलइल्लो ।। ५८२ ॥ गइवसपहल्लदेवंगपल्लवुव्वेल्लमाणराहिल्लो । कर-चरणणहमऊहोहमिण्णरविकिरणपन्भारो ॥ ५८३ ॥ इय णियदेहाहरणप्पहापरिक्खेवजणियपरिवेसो । रविबिंबविन्भमो बंदणत्यमाओ सुरो एको ॥ ५८४ ॥ एवं च सविम्हय-विलासं दीसमाणो सयलाए परिसाए वंदिउं पयत्तो, कहं ?जय जयाहि तवणिज्जसमुज्जलदेहया !, मोहपसररयपडलपणोल्लणमेहया! जम्म-मरण-जर-वाहिविणासणवेज्जया !, मुगतिमग्गगमणुजयजंतुसहज्जया ॥ ५८५॥ णहमणिकेसरसोहए, ललियंगुलिदलराहए । भवियजणुब्भडभसलए, णमिमो तुह पयकमलए ॥ ५८६ ॥ एवं च अणेयप्पयारं वंदिऊण जयगुरूं, सरसगोसीसचंदणरसच्छडासणाहं धरणिमंडलं काऊण णिसण्णो जहामिरइए पएसे । णरवइणा य कयचित्तसम्मोहेण केरिसो दीसिउं पयत्तो ? कर-चलणसडियरुहिरोहर्णितदुग्गंधपूयपन्भारो । कर-चरणरणफुट्टन्तवणमुहुटुंतरसियालो ।। ५८७ ॥ णिबुडडुष्णयगरुयग्गगहिरदीसन्तणासियाविवरो । परिस डियपम्हपडलारुणप्पडुम्मिल्लणयणजुओ ॥ ५८८ ॥ पवणवमुच्छलियपयल्लबहलदुग्गंधपरिमलुप्पीलो । करपोचलवारियसभेयरुच्छलियमच्छिगणो ॥५८९ ॥ इय खामत्तणदुल्लक्खवयणविण्णासगग्गिरालाको । दिद्विवहे ठाइ गराहिवस्स कुट्ठी मुरो होउं ॥ ५९०॥ तओ तं तहाविहमुव्वेयणिज्जरूवं पेच्छिऊण णराहिवेण चिंतियं-केण पुण इमस्स कुविणो इह पवेसो दिग्णो, ण केवलं पवेसमेत्तेण एयस्स परिओसो, पुणो आसण्णविणितदुग्गंधवाहेण उव्वेवयंतो सेयलं पि परिसं भगवओ अचासायणं करेइ, ता उट्टियाए परिसाए अवस्सं एसो मए णिग्गहेयव्यो । एत्यंतरम्मि छीयं पत्थिवेण । कोटिएण भणियं-जीवमु चि । ठिया मुहुत्तरं । अभयकुमारेण छिकिरण भणियं-जीवाहि वा मराहि वा। कालसोयरिएण छीए भणियं-मा जीव मा मर ति । गया काइ वेला । पुणो वि नयगुरुणा छिक्कियं । इयरेण भणियं-मरसु ति । तं च सोऊण राइणो समुल्लसिओ मणम्मि कोवाणलो । लक्खिओ भावो राइणो जयगुरुणा, भणिओ य जहा-भो देवाणुप्पिया ! मा एवं वियप्पेसु जहा 'एस कुटी', देवो हु एसो, अजं चेव दुरंके विमाणे समुप्पण्णो । राइणा भणियं-कहं चिय ? । भयवया भणियं-सुव्बउ, अत्थि इह मज्झदेसमायम्मि बहुविविहपासायमालालंकियं मणहरतिय-चउक-चचरोववेयं वसंतपुरं णाम जयरं। बत्थ णिसियनिक्कड्ढियासिणिद्दलियदरियारिमंडलो अजायसत्तू णाम गरवती । तर्हि च जण्णयत्तो नाम बंमणो । जण्णसिरी से भारिया । सो य आजम्माओ चिय अईवदरिदोवद्दवाभिभूओ पइदिणं परसंपाइयपाणवित्ती कालं गमेइ । .. तस्स य अण्णया आवण्णसत्ता भारिया संजाया । समइच्छिओ तीए वेलामासो । भणिओ य तीए णिययदइओ एवं जहा-भो बंभण ! मह आसण्णो पसइकालो, ण य गेहे दिणमेस्स विघय-तंदुलाइयमंत्यि, ता कीस णिधितो चिट्ठसि ?। इयरेण भणियं-ण य मह विजा, ण विष्णाणं, ण पोरुसं, ण य कम्मम्मि वि कायन्वे सामस्थं, ता तुमं चेव उवएस पयच्छ, किमहं करेमि ? ति । तीए भणियं-गच्छ पत्थिवं पत्थेसु । गो सो मैजिउं कुसुम-दुवं-उंकुराइहत्यो। राया वि तदिवसं पञ्चंतियस्सोवरिं महया अक्खेवेण पयट्टो । दिवो य बंभणेणं सियकुसुम-दुव्वं-कुरादिहत्येणं । राइणा जुयलो जे । २ याबंधल' सू । ३ भाभो =आयातः । ४ 'चलग जे । ५ समच्छर जे । । समग्गं जे । . यकडिया सू। ८ अइदरिसू। ९ तसं वि जे । १० मज्जिऊण जे। Page #401 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१० चउप्पानमहापुरिसचरित्र । वि 'मुसउणो' ति मण्णमाणेणं भणिओ णियपुरोहितोजहा-मह सिद्धयत्वासमागयस्स दंसियन्वो एसो भणो । पुरोहिएण भणियं-जमाइसह ति। गओ णराहिवो । पत्तो पञ्चन्तियसण्णिवेसं । पराजिओ एसो। दवावियो पगामं कप्पं । आगओ य णियणयरं । पविट्ठो महया विभूईए णिययमंदिरं । दिह्रो पुरोहियपुरस्सरेण तेण भणेण । राइणा वि तईसणसुणिमित्तसिद्धकज्जपरितुदृणं भणिओ बंभणो-मग्गमुजेमिच्छियं । तेण भणियं-देव ! बंभणि पुच्छिऊण आगच्छामि। राइणा हसिऊण भणियं-एवं करेसु त्ति । गो सो बंभणीसमीवं । साहिओ तीए परवइपरितुहवइयरो जहा-मम राया तुट्ठो, भणइ य 'मग्गसु जहिच्छियं,' ता साह 'किमहं पत्थेमि ?' ति । चिंतियं च तीए-जइ एयस्स रायसिरी भविस्सइ ता अण्णाओ सुरुवाओ जुबईओ भविस्संति, ममोवरि मंदायरो हविस्सइ, ता जहा ण ममोवरि सिहं मुयइ तहा भणामि । भणियं बंभणीए जहा-भट्ट ! अम्हे बंभणजाईयाई, ता राइणो अग्गासणभोयणं पइदिणं दक्खिणाए दीणारो, अणवसरम्मि वि उस्सारउ त्ति । तमायण्णेऊण गओ परवइसमीवं बमणो । मम्गिओ जहाभणियं । पडिवण्णं च सहरिसं राइणा। __ एवं च अणवरयं मुंजमाणस्स दक्खिणागहणेण पणदारिदो संवुत्तो । 'राइणो पाडुओ' ति पइदिणमामंतिज्जइ सयलपयइबग्गेहि । सो वि अइलोलु[य]त्तणओ बंभणपयतीए भुत्तपुव्वो वि राइणो भवणम्मि अंगुलिदाणेण पत्तिऊण चिरभुत्तभोयणं पुणो भुंजमाणो अच्छिउं पयत्तो। __एवं च अइकतो कोइ कालो । समुप्पण्णा बहवे पुत्त-पोचाइणो, पवढिओ पवररिद्धिसमुदओ । तहाविहं चाणवरयं भंजमाणस्स समुप्पण्णो कुट्ठवाही, पसरिओ सयलसरीरावयवेमु ति दुणिवारो जाओ । तओ तं तारिसं दळूण ते पुत्त-पोत्ताइणो तस्स उविज्जिउं पयत्ता । अच्छउ ता पडियरियव्वं, तेणं चेय लज्जंति । तं च तारिसं ताण ववसियं दखूण तेण चिंतियं-अहो ! पेच्छ मह विढत्तेणं चेव विहवेण एयाणं मओ समुप्पण्णो, जेण ममं पि आणं ण करेंति । अहवा बहुमुकयसहस्सेहिं वि ण तीरए खलयणस्स घेत्तूण । हिययममुद्धसहावस्स णिययकज्जुज्जयमतीयं ॥ ५९१ ॥ ससणेहं मुद्धसहावयाए ववहरइ अण्णहा सुयणो । अण्णह कप्पेइ खेलो सदुभावेण दुदुमती ॥ ५९२ ॥ झुंजइ जहिं चिय फुडं तं चिय भंजेइ भायणममुद्धो । पिमुणो सदुभावेण किं पि अण्णं कलेऊण ॥ ५९३ ॥ जत्थुप्पण्णो सयछिड्डजज्जरं सव्वहा समीइंतोतं चिय दारुं घुणकीडउ व्व सुयणं खलो खवइ ॥५९४॥ जोया जस्स सयासाओ उवह कहमप्पणो वि उप्पत्ती । धूमद्धउ ब्व दारुं तं चिय मुयणं खलो डहइ ॥ ६९५ ।। एस सहावो खलकंटयाण बहुमम्मभेयकारीण । दूराओ वजणं अहव खेहरीएं वयणभंगो ॥५९६॥ दियह चिय परगुणविहवदसणे ठाइ मुच्छिउ व्व खलो। तेलोकरजलंभे विणवर दोसे 'दिहि पत्तो ।। ५९७॥ इय जइ वि तस्स कजम्मि कह वि दिज्जइ सिरं पयत्तेण । तह वि कयावि ण तीरइ पिसुणो सुयणेण घेतूण ॥ ५९८ ॥ एवं च सो णिययपरियणपरिहूयमप्पाणयं कलिऊण अंतोपसरियामरिसो चिंतिउं पयचो-एयमकयण्णुयं परियणं तहा करेमि जहा एयस्स वि एस चेव अवस्था होइ । ति चिंतिऊण वाहिता-णिययतणया। भणिया य एकंते जहा-"पुच! अहं खु वाहिवसओ अयंगमो संवुत्तो, ता किमेयावत्थगयस्स मह जीवियम्वेण ? । ता अम्हाण कुले एरिसो आयारो-जेण अंतकालम्मि पसुणा चरुं णिव्वत्तिऊण पुणो अप्पणो उवसंहारो कीरइ । ता संपाडिज्जउ मह एको पम्, जेणाई तहेवाणुचिट्ठामि"। संपाडिओ य तेहिं । तेणावि अप्पाणयं घयाइणा अब्भंगेऊण उव्वलिऊण य उचलणियाओ भुंजाविओ सो पम् । एवं च पइदिणं भुंजमाणेण वाही तस्स संचारिओ। संकंतवाहि पसुं मुणेऊण तस्स मंसेण णिवत्तिओ चरू। दिण्णो पुत्त-णत्तुयाणं । भुत्तं तं तेहिं पसुमंसं, जाव तेसि पि संकंतो वाही । मुणिओ एस वइयरो राइणा पुरजणवएण य । तओ कुविएण राइणा णिव्विसओ आणत्तो। णिग्गओ य जयराओ । पतिदिणं गच्छमाणो पत्तो सज्ज-ऽज्जुणे-ताल-तमा जहिच्छिय जे। २ 'णयाइजायाई, जे। ३ राइणो आइअग्गासणे भोयण दीणारयुगमेगं मग्गसु, जाव जा(रा)इणो सयलसामन्ता पयईस । गमो णरवइसमीव बंसू । ४ खलो अ सू । ५ जाभो सू। ६ उयह जे। . 'मपणा जे। 6 ए सयराहमुहभंगो सू। ९ दिसि जे । १. तब्बलियामो जे। "ग-साल जे। Page #402 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५१ वक्षमाणसामिपरियं । लाविलं महाडई। तो तण्डुण्डाकिलन्तो बुभुक्खापरिमिलाणदेहावयवो हिंडिउं पयत्तो। कह ? तिन्वयरतरणियरणियरदुसहसंतावतवियतणुभाओ। दिसिदिसिपज्जलियाणलकरालकयघणझलकारो॥ ५९९ ॥ अणवरयवणदवोदड्ढघणदुसुद्धतधूलिधूसरिओ। लल्लक्कशिल्लियारवबहिरियणियकण्णगुरुविवरो॥६००॥ तण्हुण्होहयविम्भलकिलन्तलहुमयसिलिम्बतरलच्छो। मायण्हियापयारणतदिसिवहदिण्णपयमग्गो॥६०१॥ परिसूसियगिरिणइयडवियडद्दहदंसणेण [ग]हासो । विस्थिण्णतल्लसंमुक्कदसणुड्डीणजीयासो॥६०२ ॥ इय तिव्वतिसासंभवकंठोसुसंततालु-जीहालो । परिभमइ वियडगिरिकंदरेसु एको कुरंगो व्व ॥ ६०३॥ एवं च तिव्वतण्हावेयणीसहतणुणा इओ तओ पलोयमाणेण दिलं एकम्मि गिरिणिज्झरुद्देसे पउरपण्णकलुसियं सलिलं । तं च दद्रुण पवरणिहिलंभे व्य जम्मरोरो तुट्ठो हियएणं । पच्चुज्जीवियं व अप्पाणयं मण्णमाणो अल्लीणो तयन्तियं । तओ तं णिम्भररवियरविहट्टणुबत्तियं बहुविहतरुदल-फल-मूलसंगलन्तकसायरसविसेसं तण्हावसत्तणो आयंठप्पमाणं वीसमिऊण पुणो पुणो पीयं । अवगयतहाविसेसो य णिग्गओ तयन्तियाओ, गंतुं पयहो। जाव थेवं भूमिभायं गच्छइ ताव बहुतरुदल-मूल-फलकसायकलियजलपाणतणओ अड्डुयालियं पोट्टभितरं । जाओ से अचंतविरेओ। तओ मुक्खापरिसुसियत्तणओ तणुविहायाणं, गुरुरेियाकरिसियत्तणओ रत्तपित्ताइवियाराणं मिलाणो से कुटवाही, पउणीहूयाओ वणणाडीओ, परितणुईहूओ णासियापएसो, पत्तलीकया कर-चरणंगुलीविहाया। एवं च असंपज्जंताहारविसेसो अणिच्छिओवत्थियलंघणविदाणदेहपणवाहिवियारो संपत्तो कह कह वि कण्ठगयपाणो तुह णयरगोउरदुवारं। जाव छायासमल्लीणो यमुच्छावसमउलन्तलोयणो णिवडिओ महीवहे । तं च दद्रुण कंठदेसावलंबियबभमुत्तं 'बंभणो एसो' त्ति कलिऊण तुइणिउत्तगोउरदुवारपालएणं सित्तो सिसिरसलिलेणं समासस्थो जाओ। सणाए 'तण्हाइउ' त्ति उड्डिओ अंजली। पाइओ अचंतसुंदरं सीयलजलं । पुच्छिओ पउत्ति-कओ तुमं ? । तेण वि सिहं नहोइयं । झुंजाविओ जहाजोगं पत्थमण्णविसेसं । ठिओ तस्स चेव दुवारपालस्स समीवे । अइकंता कइइ दियहा । अण्णया य दुवारवासिणीए संजाया जत्ता। आगच्छइ सयलो वि पुरसुंदरीजणो बलि-लड्डुयपडलए देवीए घेत्तूणं । तं च तेण चिरयालबुभुक्खाखामतणुणा ताव खइयं अहोभागाओ आकंठं जाव जलघोट्टमेत्तस्स वि पवेसो ण मुक्को। एत्यावसरम्मि य अहमेत्य समोसढो। 'भयवं समागओ, वंदणनिमित्तं गच्छामो' त्ति समुच्छलिओ जणहलहलारावो। एत्थावसरम्मि य एस दुरंकदेवजीवो तहापहूयलड्डुयाहारकवलणऽफरियपोट्टो अंतोअमायन्तसलिलबिंदू उद्घायमाणतिव्वतहाविसेसो 'जलं जलं' ति झायमाणो समुप्पण्णविसूइयवेयणाए मओ समाणो पउरजलवावीए महादददरो जाओ। जाव तत्थ वि समच्छलिओ जलवाहिविलयाणं हैलहलो जहा-हला! मग्गं में प्रयच्छस, भयवं मए वंदियव्यो । तं च विलयाकयकलयलं सुणमाणस्स दद्दुरस्स 'कत्थइ मए एसो सदो णिसुयपुवो' ति ईहा-ऽपोह-मग्गणं कुणमाणस्स समुप्पणं जातीसरणं, सुमरिओ पुन्वभववइयरो। तो 'अहं पि भगवं वंदामि' ति चिंतिऊण पत्थिी तयंतियाओ ददुरो । पयट्टो आगंतुं रायत्तिणीए, जाव तुह महंतियं वंदणस्थमागच्छमाणस्स तुह चेव तुरयचलणेण चप्पियसरीरो सुहज्झवेसाणवसेण मओ समाणो समुप्पण्णो देवत्तणेणं दुरंके विमाणे। तत्य य अवहिप्पओएण मुणिऊण अप्पणो वइयरं, समागओ तुह चित्तसम्मोहं काऊण किरै 'कुटि' त्ति, परिसाए उण मणहरदिव्वरूववेसधारी अप्पाणयं दंसेंतो। अओ भणामि 'ण एसो कुट्ठी, एसो हु दुरंको सुरवरो। एत्थावसरम्मि य पञ्चक्खीहोऊण सुरवरेण दिग्णो राइणो हारो, रज्जुणिबद्धं लक्खामयमणिर्जुयलं च । दाऊण असणीहूओ। १ व्हाभय स। २ अडयालिय पोइन्भतरं जे । ३ करंगुली । ४ सवियलंतलोंजे। ५ हल्लोहलो जे । ६ पेच्छसुस । वत्तणीए सू । ८ लणचप्पि सू। 'वसाय जे। १. देवत्तेणं सू । ११ किल जे । १२ नुवलयं ले। Page #403 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२० चउपममहापुरितचरिन । सेणिएण भणियं-भयवं! कीस उण इमेण मया छिकिए भणियं 'जीव', अभयकुमारेण छिकिए ‘जीवमु वा मरमु व' ति, कालसोयरिएण छिक्किए भणियं 'मा जीव मा मर' ति, तुम्हेहि छिकिए भणियं 'मरम्' ति? भयवया भणिय-"मुणसु एस्थ कारणं, तुमं राया, रज्जं च बहुयाहिगरणतणी गरयगतिजोग्गं कम्ममावहइ, ता 'तुम जीवमाणो रजमुहमुवमुंजसि, मरणे य णिरयं गच्छसि' ति कलिऊण भणियं जहा 'जीवमु' ति । अभयकुमारो वि मुविदियधम्मा-ऽधम्मचणओ अतीवसावज्जपरिवज्जणरती, ता तस्स जीवमाणस्स तुह पसाएण रायलच्छीसंभोभो, मयस्स वि मुरलोयगमणं, [? अओ भणियं 'जीवसु वा मरस व ति। कालसोयरियस्स य पुणो बहुसत्तघायणरयस्स गच्छंति दियहा, सो विहु जीवमाणो पाणिसंहारकारी, मओ वि अवस्सं णिरयगई गच्छिस्सइ, अओ भणियं 'मा जीव मा मर' ति । मया छिकिए भणियं जहा 'मरस' ति तत्थ वि इमं णिमित्तं जहा-किमिह मञ्चलोए ठिएणं ?, णिव्वाणं गच्छसु ति"। ऐयं च सोऊण राइणा सेणिएण णिरयगमणं अप्पणो समुप्पण्णणिरयाइदुक्खभयसंभमेण भणियं-"भयवं! तुमए वि तेलोकलग्गणक्खंभभूएण मह सामिणा मए णिरयं गंतव्वं ?, जेण तुह एक्कणमोकारा वि पाणिणो भावसंपउत्तस्स । जायइ समत्तसंसारवासपासाण वोच्छेओ॥६०४॥ तुम्हेकणमोकारेण कह वि कम्मंतरालजणिएण । ण उणो जयम्मि जायन्ति जंतुणो णिरयदुक्खाई ॥६०५॥ एका वि तुम्ह पयपंकयाण पणती पणासइ दुहाई। तिरियगड-कुमाणुस्साइयाई भावेण कीरंती ॥६०६॥ दारिद्द-वाहि-जर-मरणपीलणासंभवाई दुक्खाई। ण हु होति तुम्ह पहु ! चलणकमलभसलाइयवम्मि ॥ ६०७॥ जे उण सययं पणमंति पाणिणो पवरमुद्धसम्मत्ता । तुह चलणे ताण ण दुल्लहाई मुरपवरसोक्खाई॥६०८॥ ता अच्छउ मुरलोयम्मि मज्झ तियसत्तणाइयं सोक्खं । तुह चलणरयस्स वि कह गु णिरयदुक्ख समावडियं?"॥६०९।। ईय एवं हिययंतरविणितदुक्खोहगग्गयगिरेण । तिहुयणगुरुणो पुरयम्मि उवह रुग्णं व णरवइणा ॥ ६१०॥ एवं च जंपिरं पत्थिवं पेलोइऊण भयवया भणियं-भो देवाणुप्पिया ! मा अद्धिइं करेसु, बद्धाउओ तुमं, ण य एस्थ अण्णो पतीयारो, तहा वि मा विसायं वच्च, दुल्लंघा कम्मपरिणती, आगमिस्साए उस्सप्पिणीए तुमए तित्थयरेण होयध्वं ति। तओ तं सुहा-ऽमुहकम्मपरिणई सोऊण भयवओ सयासाओ 'घिरस्यु रज्जपरिणईए' चि मण्णमाणो पणमिऊण जयगुरुणो चलणे पविट्ठो नयरं ति। . इति महापुरिसचरिए सेणियरज्वणिंदा [२२] ॥ तओ सो सेणियणराहिवो अप्पणो समुप्पण्णणरयपडणसंभवभयणिभरो णियपरियणं-ऽतेउराहिद्विए सयले वि पुरवरे अणुमई दाउं पवन्नो जहा-जो जयगुरुणो समीवे पव्वजं पवज्जइ तमहं ण वारेमि । तं च पस्थिवजंपियं सोऊण. पंहूओ राइणो अंतेउरप्पेहूती णयरजणवओ पव्वज्जगहणम्मि समुज्जओ । परिचचसयलरिद्धिसमुययं तहापव्वज्जुज्जयं दळूण जणवयं तत्थेको जम्मदरिदो चिंतिउं पयत्तो-“पेच्छ, एए महाणुभावा जहिच्छियसंपज्जन्तणियविहवविसयसुहसं १ एवं सू । २ ति सया तुह चल जे । ३ इय-एवं हिययन्भितरवि । . उयह जे । ५ पुलोई जे । ६ भमभय स। . मती दा पवत्तो सु । ८ बहुओ जे । ९ 'पभिई जे । Page #404 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५१ वद्धमाणसामिचरिय । ३२१ भोया तणं व सयलं पि परिषइऊण पध्वज पवज्जति, मह पुणकिण बंधणो एत्थ थिरक्षणाहिमाणो ? जेण पेच्छ एए सयलजणलोहणिज्जं तं सयलं मोतूण णियसुंदरीयणं पवरमणि-कणय-स्यण-मुत्ताहलाइयं उझिजण णियरिद्धिसमुदयं पन्वज्ज पवज्जति, मह उण दारिहोवदवपीडियस्स मणोरहाणं पि असंभावणिज्जमुहलेसस्स विहलो चेय मणुयजम्मो। जेण अइजजरजरमंदिरदरिविबरुग्गयअयंगमफणाओ। दीसंति रुंददालिद्दकंदलीओ ब्व णिक्खंता ।। ६११॥ दियहं चिय वच्चइ धाविरस्स जरजरदपूरणपरस्स । धम्म-ऽस्थ-कामअमुणियविसेससंपायणरयस्स ।। ६१२॥ एत्य जरकप्पडोमलिणतणुसमोवडियडंडिखंडस्स । दुक्खं परकयघरहिंडणेण संपडइ पोहूं पि॥ ६१३ ॥ इय जेत्तियं घरासायलंभणडियस्स होइ मज्झ दुई। विसहिज्जइ जइभावम्मि तेत्तियं ताण किं लटुं" ॥६१४॥ चिंतिऊण पुणरुत्तं पयट्टो जगगुरुसमीवं । विणिक्खंतो सममण्णजणवएणं । उज्जमिउं पयत्तो जहासचीए। अणुदिणं च साहुजणस्स भत्त-पाणसंपायणुज्जओ णयरमज्झम्मि परिहिंडतो लोएहि दिहो। दट्टणमवण्णाए भणिउं पयत्तो-"किं पुणाइ दुकरमेइणा काऊण दिक्खा गहिया ?, भणियं च जो णिग्गच्छइ मणि-रयण-कणयकलियं पि उज्मिऊण सिरिं । अस्थित्तपरिचाई सो पव्वतिओ फुडं भणिओ ॥६१५॥ जो उण अकिंचणो चिय गिण्हति दिक्खा णिरत्यया तस्स । धणसंपत्ती गेहं तेण विणा होइ वणवासो।। ६१६ ॥ पव्वज्जा किल णिकिंचणाइया जस्स तं चिय परेकं । वणवाससमाणणिहेलणस्स कि तस्स दिक्खाए ॥६१७॥ इय निचं चिय णमुणियधणाइचासंगवाउलमतीओ । परजणजणियावण्णो जती दरिदो ति ण विसेसो" ॥ ६१८॥ एवं च कयावण्णवायं सहवासपरिचएणं तस्स जतिणो कलिऊण पुरजणं अभयकुमारेण तस्स पञ्चायणत्यं कया णियभवणंगणुदेसे णाणाविहरयण-कणयसमण्णिया तिण्णि कोडिप्यमाणा तिणे उक्कुरुडा, घोसावियं च णयरे-जो महिलं अग्गि पाणिं च परिचयइ जावज्जीवं तस्साहं एयाओ तिण्णि धणकोडीओ पयच्छामि । तं च सोऊण समागओ बहुओ पुरजणवओ । भणिओ य अभयकुमारेण-गेण्हह इमं दविणजायं एइणा वियारेण-सव्वहा सव्वया महिलं अग्गि पाणियं च परिचइऊण । एयं च समायण्णेऊण पढमं अवियारिऊण घेतुं पयत्ता केइ, पच्छा सई चेव वियारिलं पयत्ता, महिलं जला-ऽणले उज्झिऊण परिगेण्हिऊण धणणिवई। किं व कुणताण हवेज अम्ह सोक्खाण संभोओ१॥६१९॥ मुरहंगराय-तंबोल-वसण-कुसुमाइओ वि परिभोगो । जलमजणं विणा हो ! निरत्यओ होइ कीरंतो ।। ६२०॥ मज्जियविलित्ततंबोलमुरहिकयकुसुमकेसवासस्स । सयलरसजुत्तभोयणरहियस्स णिरत्ययं सव्वं ॥ ६२१ ॥ तं पि ण विणा हुयासणसंगणं कह वि भोयणं घडइ । सयलिंदिओबिहणकरणं बहुसो वि कीरंतं ॥ ६२२॥ अह एसो मज्जणकयविलेवणालिद्धकुसुमपरिभोओ। महिलासंभोयपरम्मुहाण सव्वो वि हु णिरत्थो ॥ ६२३॥ सेविज्जइ णरणाहो, लंपिज्जइ सायरो धणणिमित्तं । तं होति जुवइसंभोयकज्जरसियस्स सकयत्यं ।। ६२४ ॥ वररमणिविलासालसपलोयणुप्पण्णरमणरसियस्स । उवउज्जइ विहयो, ण उण महिलसंभोयरहियस्स ॥ ६२५॥ इय दुप्परियल्लमिमं तियल्लयं उज्झिउं जए गिहिणो। कं वच्चइ उवओय धणं तियल्लयविहीणस्स १॥६२६॥ १ हस्तद्वमान्तर्गतः पाठो जेपुस्तके नास्ति । २ असंभव सू । ३ सई जे । ४ समाव स्। ५ "णि कूड़ा, जे।। मुरयंग . 'वहीरणकं स्। जे Jain Education Interional Page #405 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२२ चप्पलमहापरितचरिये। एवं च सयलो वि पुरजणवो भणिउं पयत्तो-कुमार ! को हु एवं जियलोयसारभूयं तियं पि असारस्स पणमेचस्स कर परिचयति ?, जो उण महाणुहावो इमं परिश्चइतुं तरइ तस्स ण किंचि दुप्परिचयणीयमस्थि । तं च सोऊण अमयकुमारेण भणिय-"एवमेयं, ण एत्य संदेहो, कह? जो चयइ चारुचरिओ दुपरिचयणीयमेयमश्वस्य । ण हु णवर सो णराणं देवाण वि होइ णमणिज्जो ॥६२७॥ अच्चंतसत्तिजुत्तो चाई सो धेये णवर लोयम्मि । सो चेय महाभाई जो चयइ तियल्लयं एयं ।। ६२८॥ सो च्चेय भडो सो चिय महोयओ सो हवेज्ज सप्पुरिसो । जो सच्चपइण्णो इय तियल्लयं चयइ लीलाए ।। ६२९॥ इय 'संसारियमुहलालसाण जायइ जयम्मि जंतूण । कम्मवसयाण जायइ दुपरिच्चेयं तिय' ति फुडं ।। ६३०॥ ता भो महापुरजणा ! इमं एरिसं अञ्चंतसत्तिजुत्तेणावि दुपरिश्चयणीय परिच्चइऊण गहिया पन्चज्जा इमिणा महाणुभावेण, ता कीस 'तुम्हे भणह जहा 'दुग्गयस्स पव्वज्जा ण किंचि पुरिसत्यं जणेइ'। ण य तुम्हाणमेसो 'रोरो' चि कलिऊण परिहविउँ जुत्तो ति, जओ अह एको चिय दोसो गुणसयकलियस्स होइ रोरस्स । जं पसह चिय दिडं 'अत्थि' चि जणो परिकलेइ ॥६३१॥ उव्वेव-भया-ऽहंकारवज्जिओ णिम्ममो णिरासंसो । महलोहसल्लरहिओ जइ ब्व रोरो मुहावेइ ।। ६३२॥ संघासो होइ परोप्परेण संतोस-धणसमिद्धीण । को समहिओ गुणेहि मुद्धाऽसुद्धाइजणिएहि ? ॥ ६३३ ।। मुद्धत्तणेण जायइ समुज्जलो तत्थ णवर संतोसो। धणविहवो उण जायइ 'णिहसे कसणो तमोहो व्व ॥६३४॥ आवज्जण-रक्षण-खय-चयातिउव्विग्गमाणसो अस्थी । अधणो सऽत्थत्तणणिध्वुतीए दूरं समभहिओ ॥ ६३५ ॥ किसि-गोरक्खा-वाणिज्ज-सेवकज्जुज्जओ धणत्थी हु । कालं. गमेइ दुक्खं ण उणाऽणत्यी तहा पुरिसो।। ६३६ ॥ रायउल-तकरा-ऽऽरक्खिय-ऽग्गि-णीरेण अवहियम्मि धणे। जं दुक्खं होइ धणीण तस्स भाई ण णिल्लोहो ॥६३७॥ इय एवं दालिदं णिदिज्जइ दुव्वियड्ढमणुएहिं । अचंतभोयसंपर्यथड्डुद्धय-दुद्दचित्तेहिं ॥ ६३८॥ ता भो ! मज्झत्थभावेण वियारिज्जमाणं दूरेण बहुगुणं रोरत्तणं, जेण ण आसंकइ पत्थिवाणं, ण तकराणं, ण दुज्जणाणं, ण रयणीसु, ण दिणे, ण गेहे, ण पंथे, केवलं जहासंपज्जन्ताहारसंतुट्ठवित्ती जहासेज्जासंपज्जन्तमुहणिद्दो आजम्म पि सुहेण गमेइ, सयत्थसंपायणुज्जयस्स ण कोइ केहिंचि जायइ पडिबंधकारणं" ति। एयं च अभयकुमारजंपियं सोऊण पुरजणवएण भणियं-कुमार ! एवमेयं जहा भणियं तुम्हेहिं, अवणीओ अम्हाण मोहप्पसरो । तओ सो तेण णायरजणेण मुणिवरो भत्तिभरणिब्भरं पूइओ वंदिओ य । खामिउं च तं जहागयं पडिगया णयरणायरजणा। अभयकुमारो वि भावयन्तो जयगुरुणो वयणं णियणिओए लग्गो। [अभयकुमारकया समणखिसणानिवारणा २३ ] अण्णया य भयवया 'कोण्डिण्णसगोताणं तावसाणं पण्णरस सयाणि संयुमंति' तितणिमित्तं पेसिओ अट्ठावयसेलं गोयमो गंतुं प्रयचो। दिट्टो य णाइट्टैमिमायसंठिएणं अट्ठावयगिरी। जो य केरिसो? 1-२-३ चैव मे । ४ तुमे में । ५ मिहसइ कस। महणो जे। • यमुपदय । जसक । वह पि ।१. खामिय । "रसंठि स Page #406 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४ वबमाणखामिचरित्र। ३२३ कत्थइ मणिमयसिहरुल्लसंतेरविकिरणबिउणियप्पसरो। कत्थइ तवणिज्जुज्जलपहासमोरंजियदियंतो ॥ ६३९॥ फत्यइ कलहोयसिलासमूहधवलियधरायलदंतो। कत्थइ णिसामु ससिकंतसलिलपव्वालियदियन्तो ॥ ६४०॥ कस्थइ कडयुग्गयपवरपायधुप्पण्णपउरफलविहवो । सुर-सिद्ध-जक्खकिण्णरमिहुणयणादिण्णपरिवेढो ॥ ६४१॥ इय सो जोयणजोयणपयविविणिम्माविओ महासेलो । अट्ठावयाहिहाणो गोयमगणहारिणा दिहो ॥ ६४२॥ तहिं च पइट्ठावियं भरहाहिवेण मणि-कंचणमयाणं आइमतित्थगरपडिमाणं रूवं । 'तं च वंदामि' ति कलिऊण आरोढुं पयत्तो पन्चयं । दिहाई च पढमपइयासु अचंतचरतवविसेससोसियतणुतय-ऽहिसेसाई तावसाणं पंच सयाई । पुलइओ तेहिं । दिहो य कणयउज्जलसरिसदेहच्छवी अमाणुससरिसंसरुवो समारुहंतो बीयं पइयं । तर्हि पि तह चेय [सच्चवियाईं] दुकरविविसेसकिसीकयसरीराइं अण्णाई पंच सयाई । तेहिं पि सचविओ तइयपइयमारुहंतो । तत्थ वि पुलइयाई तह चेय पंच सयाई । समीवेणं चेव आरुहिउं पयत्तो । तओ ते तं अच्चम्भुयसरीरसामत्थं पलोएऊण विम्हयं गया तावसगणा चिंतिउं पयत्ता-शृणमेस जइरूवो को वि दिव्यो, कहमण्णहा मणुस्सरूविणा पीणतणुणा एसो समारोहुँ तीरइ, ? एसो खु मुणिवरेहि पि तिब्बतवोवज्जियलदिविसेसेहिं दुक्खमारुहिज्जति, जेण पेच्छ चिट्ठति हेहिमपइयामु णीलसेवालकप्पियाहारं । आरोदुमणं इह तावसाण तवकिसियपंचसयं ॥ ६४३ ॥ तह चेय बीयपइयासु सुक्कसेवालपिहियपोट्टग्गी । आरोदुकंठमणं दूसहतवतवियतणुभायं ॥ ६४४ ॥ अम्हे उण दुक्करकयतिरत्त-पंचाइरत्तरत्तेहिं । सुसियसेवालकप्पियपाणाहारा परिवसामो ॥ ६४५ ॥ तह वि ण तरामु मणयं पि उवरिभायं सयं समारोढुं । एसो हु समारुहइ त्ति गुण चित्तऽम्ह पडिहाइ॥ ६४६ ।। इय एव विम्हउप्फुल्ललोयणेहि पलोइओ सहसा । रविकिरणकरालम्बणवसेण असणं पत्तो ॥ ६४७॥ एवं च विम्हयवसविसटुंतलोयणेहिं पुलइज्जमाणो 'एसेस वचति' तिजैपिराणमईसणीहूओ । आरूढो य सिहरग्गभायं । पलोइया य पढमजिणाइया भरहे विणिम्मविया मंदिरावली । केरिसा य ? सच्छफलिहामलुब्भडदढपीढोवरिणिविट्ठभित्तिल्ला। उवणेति चित्तमायासँदेसपरिसंठिय व्व ददं ॥ ६४८ ॥ पवणवमुम्वेल्लियधवलधयवडुद्धंतपल्लवकरहिं । मंभीसइ व्व भवभीयभत्तिसंपत्तभवियजणं ॥ ६४९ ॥ दूरुल्लसंतमणिमुहलकिंकिणीजालकयविरावेण । जिणगुणगहणं कुणइ व्व उवह भुवणस्स चिंधाली ॥ ६५० ।। इय पोमराय-मरगय-णीलमहामणिविणिम्मियसरूवा। जिणभवणमालिया गणहरेण दूाओ सञ्चविया ।। ६५१ ॥ दणं च हिययम्भतरुल्लसंतहरिसपसरो बहलरोमंचुच्चइयतणुविहाओ अइगओ जिणभवणम्भन्तरं । पणमिजणं च विणिज्जियसुरा-ऽसुरमयरद्धयदलणपञ्चलं पढमजिणबिम्बं योउं पयत्तो । कह ? जय जुयपढमुप्पाइयबहुविहसिप्पप्यारकोसेल्ल ! । जय पढमरायणीईविसेससंपायणसंमत्य ! ॥६५२॥ जय पढमधम्मदुद्धरधुरधरणुद्धन्तधवलकयलील ? । जय पढमदुग्गहाभिग्गैहुग्गसंगहियपरमत्थ !॥ ६५३॥ जय पढमकेवलालोयसयलणिम्मलविलोइयतिलोय ! जय लक्खियदुल्लक्खोरुमोक्खसुहमग्गबहुभंग!॥ ६५४॥ इय पढम ! पत्थिवाणं पढम ! जिर्णिदाणमिहसमासमए । पढमजिणेसर ! णमिमो पुणो पुणो तुम्ह चलणाण॥६५५॥ ततरणि[कर बि सू । २ गाइल(ण) सू। ३ "म्माणिओ जे । ४ 'दुर जे । ५ सम्वो स त वकिलेसकि । .इसू। ८ ते तावसा तं भच सजे। ९ इ सू। १० यतिरत्तेहिं । मुजे । ११ जंपि(प)यन्ताणमई जे । १२ विणिम्मिया जे । १३ सदेव जे । १४ 'प्पयावकों स। १५'कोसल्ला । जे । १६ समत्था । जे । १. लीला । जे । १८ गहग्य । Page #407 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२४ पउप्पलमहापुरिक्षचरियं । ___ एवं च कतिपयाहिणं पणमिऊण जयगुरुं णिसष्णो पुरओ पल्लंकवघेणं, ठिओ कंचि वेलं भयवंतं शायमाणो। एत्यावसरम्मि य गंधष्वरई णाम विज्जाहरो सदइओ भगवओ चंदणणिमित्तमेवागओ । वंदणावसाणे य पुलइऊण पीणतणुविहाय गोयमगणहारिणं चिंतिउं पयत्तो-ण हु एसो महिहरो माणुसाण समहिगम्मो अइसयं विणा, अइसओ य तिव्वतवविसेसोवलंभो, तवस्सिणो य किसंगलिंगिणो इवन्ति, एसो य गाणुरूववेसधारी घणसिणिद्धपीवरतणुच्छवी य लक्खिज्जइ, ण य एस्थ साइसयतवस्सियणं वज्जिय इह माणुसस्स समारोहो । एवं च ससंसय-वियपज्जाउलमणस्स णहयरस्स भावं लक्खिऊण भणियं गोयमगणहारिणा जेहा-भो देवाणुप्पिया! ण एत्य दुबलया कारणं कल्लाणसंततीए, ण य अकारणं बलियया, जेण मुख्यउ एक्कमक्खाणयं अस्थि इहेव जंबुद्दीवे दीवे पुंडरिगिणी णाम णयरी। तस्य सकुलकमाणुसासियणिययरजो पुंडरीओ णाम णरवती । सो य उवमुंजिऊण वहूयं कालं रज्जमुहं णिविणकामसंभोओ णिवेसिऊण णिययरज्जे कणिसहोयरं पवण्णो जयणाहसासणे पन्चज्ज । तओ तस्स तिव्वतवविसेसायरणतणओ जहाविहिसमासाइयअंतपंतासगभोइणो पयइसकुमारत्तणो पुत्रकयफम्माणुहावो य संभूषो तिव्वरोगायको । कमेण य परिम्भमंतो संपत्तो पुंडरिगिणिं णयरिं। मुणियवृत्तंतेण य णिग्गंतूण बंदिओ सबहुमाणं नरवइणा। मुणियसरीररोगार्यकविसेसेण य कराविया चिगिच्छा जाव पउणसरीरो संवुत्तो। पच्छा असणाईहिं च पयाम पोसिया से तण । पतिदिणं च तहा भुंजमाणस्स वियलिओ कुसलपरिणामो, वियारं गयं चितं, विसंखलीहूयाणि सयलिंदियाणि, पवियंमिओ विसयाहिलासो । तओ लज्जमाणो जणवयाणं विणिग्गओ किल तवं काउं। पविठ्ठो वणगहणं । पविट्ठस्स य किं जायं? णवरि य मणे वियम्भइ भोउन्भासुजणेकतल्लिच्छा । मुतज्जयस्स वि ददं जइलिंगविरोहिणी गिचं ॥६५६॥ चित्तं भोपसु गयं तणुं च धम्मुज्जमम्मि लज्जाए । संधैरइ, 'लज्जइ जणे पायं पारदपरिहारी ॥६५७॥ पुणरुत्तं तस्स परत्तचित्तया होइ विसयलिच्छाए । 'कुसलकरणेहि मुज्झइ पार्य पडिकूलकयचित्तो' ॥६५८ ॥ इय सो वणवासाओ मणसा संजणियविसयवामोहो । आयड्ढिज्जइ तुरियं रज्जूए व भोगतबहाए ॥६५९॥ आगंतूणं च णयरबाहिरुज्जाणवणे विणीलतरुसाहामु समोलइयपत्ताइउवयरणो णिसण्णो पायवस्स हेढे । समागयं च सोऊण विणिम्गओ कणिट्ठभाया वंदिउं । दिट्ठो य णाइदूरओ। दसणमेचोवलक्खियहिययाहिप्पाओ वंदिऊण य भणिउं पयत्तो, कह ? आयारं तस्सुवलक्खिऊण विसयोवझुंजणसयण्हं । राया ससिणेहं पिव सहोयरं मणिउमादत्तो ॥ ६६० ॥ "सोयर ! मह रज्जधुरं मिक्खिविउं दिक्खमइगओ जं सि । तद्दियसाओ मह एस गुरुकिलेसो व्व पडिहाइ ॥६६१॥ तुम्हारिसेहिं तीरइ णिच्वोढुं एस दुद्धरो णवरं । दुष्परियल्लो वि ददं रज्जभरो, ण उण अम्हेहिं ।। ६६२॥ जो सव्वया वि अहियं सिसु त्ति परिवालिओ सि(मि) णेहेण । सोऽहमयंडे च्चिय किं तुमाए दुक्खम्मि विणिउत्तो? ॥६६३ ॥ करुणमवेखंति दढं दुक्खाहिगए जणे महापुरिसा । कारुण्णयापहाणं जयम्मि धम्म पसंसंति ॥ ६६४ ॥ इय रज्जगुरुकिलेसेण संजुयं मेल्लवेसु मं इण्डिं । काऊण दयं अइदुग्गचारयाउ व्च रज्जाओ"॥६६५॥ सोऊणं च तं तहाविहं तस्स जंपियं महाधणोवलंभे व्च रोरो, वाहिविगमे व्व वाहिगहिओ, पियसमागमे ब्व विरहविहरो ददं परिओसमावण्णो । सरहसं च पडिवण्णं जं तेण जंपियं । तओ सो कणि?माया कयपंचमुहिलोयपरियम्मो १ महा सागसंगईए जे।३गविरोहणी सू। संवरहजे । ५ हेट्ठभो जे । ६ णिक्खिविडं दुक्खमुवगो सू। ..परिपाकिसम में । Page #408 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४ वद्धमाणखामिचरियं । ३२५ घेत्रण तस्स तणयं चेय रयहरणाइमुवगरणं समोप्पिऊण तस्स मउड-कडयं गयाइयं णियमाहरणं वणमहगो । इयरो वि पसाहियाहरणतणुविसेसो सयलसामंत ऽतेउर-भिचपरिगओ अइगओ णयरं । पविट्ठो णिययमंदिरं ति । समागयपुरजणवयदंसणविणोएण ठिओ कंचि वेलं । पुणो पच्छा वाहित्तो स्वयारो, भणिो य-अट्ठारसखंडप्पयारजुत्तं संपाडेसु भोयणं। तेण वि 'जमाइससि' ति भणिऊण पत्थिएण णिव्वत्तियं जमाइलैं । तो सो पुंडरीओ णिव्वेत्तियमज्जणपरियम्मो सुरहिधूवाइसरहीकयतणु-णिवसणो अइगओ आहारमंडवं । वित्यारियं थालाई, विविहवित्थरेणं परिवेसिउं पयत्तं परंतेउरविलयाहि, कह ? वोसट्टसरससियकुंददलउडुद्दामदित्तिसोहिल्लो । पक्खिप्पइ मणिथालम्मि सुरहिगंधुम्भडो कूरो ॥६६६॥ दलियहलिदीरमणिज्जपिंजरायारकतिराहिल्ला । मुसुयंधगंधमणहरमुहया पक्खिप्पए दाली ।। ६६७॥ । तम्वेलदड्ढणवणीयसुरहिणिम्महियमासलामोयं । अग्यइ घेप्पन्तं घाणपीइसंपाइ पवरघयं ।। ६६८॥ तयणंतरं च सालणय-पवरपक्कणदिण्णविहिणिग्रमो। वित्थरइ सरसपरितुटवण्णणो तिम्मणुग्याओ ॥६६९ ।। इय एवं पज्जन्तोवहुत्तखीरावसाणराहिल्लं । भुत्तं पयाममसमं सुभोयणं पुंडरीएण ।। ६७० ॥ भोयणावसाणे य गहियहत्थुध्वट्टणाइय(य)-तंबोलविसेसो. संपत्तो रइहरं। भणिओ य अंतेउरमहल्लओ-वाहिप्पउ अंतेउरं । महल्लयवाहिताणंतरं च संपत्तमंतेउरं। जं च केरिसं १-कप्पतरुवणं पित्र समुन्वेल्लबाहुलइयावियाणं, गंदणवणं पिव कोमलकरकिसलयाउलं, माणससरं पित्र कणयप्पहविसदृन्तवयणकमलं, मंदाइणीपुलिणं पिर्व परिमंदपयसंचारं । णिसणं समीवे । तओ 'छट्टण्डकालिओ व्व दियवरो पंवरभोयणलंमेण वहूयकालबम्भपरिपालणुप्पण्णरमणाभिलासो परं पीइमइगओ। तो तं दिणसेसं रयणि च जहकर्म संतोसणिवत्तियरइविलासो अच्छिउं पयत्तो । णवरि य बहुयत्तणो भोयगस्स, परियड्ढियत्तणओ रइपरिस्समस्स, ववकिसत्तणओ अंगाणं, समुप्पण्णसीयलविलेवणावलुमो ण परिणओ.से आहारो, संजाया से विसइया। तो तिव्ववियणाविसेसायड्ढियजीविओ मओ समाणो णिरत्यीकयतहाविइचिण्णतवचरणो णिरयं गो पुंडरीओ। सो वि हु कणिटो से सहोयरो तहाविहपरिणामगहियसमणलिंगो गओ तण्णयरीओ चिंतिउं पयत्तो, कह ? बहुजाई-जरा-जम्मण-मरणुव्वत्तणपयत्तणीरम्मि । गुरुकम्मणियरणिन्भरविसदृदुल्लंघलहरिम्मि ॥ ६७१॥ पसरन्तकाम-कोहाइकुडिलकुंभीरपक्कगाहम्मि। हियउम्मुच्छाविसमुच्छलन्तमच्छच्छडोहम्मि ॥ ६७२ ॥ दुव्वाररोयमयरोवरुद्धहम्मन्तजंतुणियरम्मि । पियविप्पओगवड्ढन्तविरहवडवाणलिल्लम्मि ।। ६७३ ॥ इय एरिसम्मि संसारसायरे दुल्लहम्मि मणुयत्ते । धण्णो हं जेण मए पत्तं समणतणमणग्यं ॥ ६७४ ।। एवं च पतिसमयं पवड्ढन्तमुहपरिणामो गंतुं पयत्तो। पत्तो एक्कं गाम । तहिं च गरुयाभिग्गहाइसयअन्तपंतासणो जहाविहिकयभोयणपरियम्मो समागए रयणिसमए कयससमयावस्सओ णिवण्णो एक्कम्मि सुण्णहरे। तओ मुकुमारत्तणओ सरीरयस्स, अभुत्तपुचत्तओ कुभोयणस्स, कुसेज्जासयणत्तणओ अंगाणं ण जिण्णं भोयणं । समुप्पण्णं पोहसूलं, वियंभिया अरती, समुन्भूया"सिरोवेयणा। एत्थावसरम्मि य काऊण हियए धीरेय, अवलम्बिऊण गरुयावढंभ, अंगीकाऊण साहस, चिंतिउं पयत्तो-“णं मह एयपज्जवसाणो चेव जियलोओ। अहवा किमेइणा चिंतिएणं ? धण्णो हैं, जेण बहुभवकोडिसंहस्सेहि दुल्लहे पावियम्मि मणुयत्ते । पत्तं अपत्तपुव्वं सामण्णं बहुभैवेहि पि॥ ६७५ ॥ १ नियत्तिय जे । २ वित्थरिय जे।३ इविहवर्षिस 'रुगणं सू । ५ सरं वसू । ६ व मंद जे । ७ छ?णका । ८ पउर जे । पहूय जे। १० 'कहं ' इति सूपुस्तके नास्ति । ११ सिर जे । १२ वीरयं जे । १३ सहस्सम्मि दुलहे पाविकण मंजे। १४ भवेसुं पिजे। Page #409 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૨૨૨ चउप्पलमहापुरिखचरिय। ता धण्णो हं जो जइजणाण सामण्णसंपयं पत्तो। अजं चिय विच्छड्डियसंसारोवासवासंगो॥ ६७६ ॥ अण्णह दुरज्जसंजोयजणियऽवज्जो हु जइ विवज्जेज । ता निवडतो गुरुयोरणिरयपोयालमूलम्मि"॥६७७ ।। इय तस्स कयणिरायारवित्तिणो धम्मझाणणिरयस्स । वच्चइ णिसाए मुहभावणाए जा पच्छिमो नामो ॥ ६७८॥ णवरि य अपडियारत्तणओ वाहिवियारस्स समुन्भूओ तिव्ववियणोदओ। तहा वि तह चिय पवढंतसहपरिणामो कालं काऊण समुप्पण्णो मुरवरेसुं। ता भो देवाणुप्पिया ! ण एत्य दुब्बलयाए, ण बलिययाए, ण बहुदिणपरियायकरणेणं, ण एकदिणपरियारणं, जेण विसमा कम्मपरिणई, कम्मवसपरिणओ हु जीवो मुह-दुहाणं भायणं होइ त्ति। एयं च सोऊण जंपियं गणहारिणो 'एवमेयं ति भणमाणो णहयरो वंदिऊण सविणयं पंस्थिओ जहासमीडियं । गोयमसामी वि जहाविहिं पज्जुवासिऊण जुयाइजयगुरुं ओयरिउं पयत्तो अट्ठावयसेलाओ। दिट्ठो य तेहिं तावसगणेहि, केरिसो य? अह तं अट्ठावयसेलमेहलोयरणविक्कमक्कमिणं । धीरमइंदं व विसालकविणवच्छत्थलाहोयं ॥ ६७९॥ दटुं परोप्परुप्पण्णविम्हयच्चन्तवड्ढियालावा । जपंति कह वि किच्छेण एत्तियऽम्हे भुवं पत्ता ।। ६८०॥ एसो हु को वि दिव्योवलंभिउद्दामसत्तिसंपण्णो । जो आयासेण विणा ओयरइ समारुहेऊण ॥ ६८१॥ 'दुक्खेण कह वि तीरइ आरोहुँ, तह मुहेण ओयरिउं'। अज पसिद्धी एसा पुणो वि एएण पायडिया॥ ६८२ ॥ अहवा मुहेण धीरों उच्चं पयमारुहेइ ववसाई । ओयरइ पुणो दुक्खेण एयमत्यं पयासेउं ।। ६८३॥ ता एयं चिय सरणं वच्चामो 'भुवणकयमहच्छरियं । एस सरण्णो भुवणे अणण्णसत्तो महाभाओ ॥ ६८४॥ . एयस्स चलणपंकयपहावओ गुण तीरए दटुं। तिहुयणणाहस्स मुहं आरोढुं वा इमं सेलं ।। ६८५॥ तं णत्थि जए जं सप्पहावपयसंसिया ण साहति । किं पुण सेलारुहणं जिणिंदपयवंदणथम्मि १ ॥ ६८६ ॥ सम्भावसंसएणं महाणुभावाण जायइ जमिé । आसयवसेण अहवा मुहा-ऽसुहो होइ फललंभो ॥ ६८७॥ इय तेर्सि तस्स महाणुहावयायड्ढिओरुचित्ताण । वच्चइ मज्झेणं चिय परोप्परं मंतैयंताणं ॥ ६८८॥ तओ ते तावसगणा तइंसणुप्पण्णहरिसपसरा भत्तिभरवियंभंतपुलयपडला दट्टण गोयममहरिसिं 'सुसागयं' ति भणमाणा अब्भुट्टिया, उभयकरकमलमलिं सिरम्मि णिवेसिऊण भणिउं पयत्ता-भयवं! अचिन्तसत्ती माणुसवेसधारी को वि दिव्यो तुम, ता कीरउ पसाओ अम्हं सीसत्तणपरिग्गहेणं, उत्तारेसु अम्हे दयं काऊण संसारसायराओ। त्ति भणिउं महियलमिलन्तजाणु-सिरमंडला णिवडिया पायपंकएमुं 'अज्जदिवसाओ तुमं अम्हाण गुरु 'त्ति । एवं भणियावसाणम्मि य भणिया गणहारिणा-अस्थि इहं सुरा-ऽसुरमउलिलालियचलणजॅवलो वीरवद्धमाणसामी तुम्हाण अम्हाणं च गुरू ण केवलं तुम्हाण अम्हाणं च सयलस्स वि तिहुयणस्स गुरु त्ति, जारिसो हं तारिसा तस्स बहवे महप्पभावा मुणिणो। तो ते जपिउं पयत्ता-जो तुम्हाण वि गुरू सो विसेसेण अम्हाण वंदणिज्जो । भणिया य पुणो गोयमसामिणामह प्पहावओ इमं सेलं समारुहिऊण वंदिऊण जुवा(या)दिजयगुरुं समागच्छह, जेण अम्ह गुरुणो वंदणत्थं बच्चह । तो ते तावसगणा तप्पहावओ समारूढा अट्ठावयगिरिवरं । वंदिऊण भत्तिभरणिभरमाणसा उसभसामि समागया गणहारिणो समीवं । 'सफलो अम्ह एस परिस्समो जं तुमेहिं समं दंसणं जायं' ति भणमाणा णिवडिया पुणो पयजुवलम्मि। भणिया गोयमेण-एह, अम्ह गुरुं वंदह त्ति । पयट्टा सरहसं । ओइण्णा गिरिवराओ। गंतुं पयत्ता। पायारमूले। २ एवं सू। ३ अइच्छिओ जे । ४ वीर जे। ५ वीरों जे । ६ भुयण जे । ७ मुयणे जे । ८ गुणण्ण सू। ९ मतमागाणं सु। १. अथिहि मुसु । ११ जुयलो जे । १२ तुम्ह अंजे। १३ एतदस्तचिहादारभ्य ७५४ गायोत्तरार्धस्थितहस्तचिहचपर्यन्तः पाठसन्दो जेपुस्तके नास्ति। - Page #410 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . . ५१ बबमाणसामिपरिय। __ एकम्मि सण्णिवेसे [१ गयाणं] गणहारिणा [भणियं] -किमज भोयणं अज ! तुम्हाण अभिरुइयं । तेहिं भणियं-पायसो। गोयमेण भणियं-चिट्ठह मुहुर्ततरमेत्य पएसे जाव अहं घेत्तूणागच्छामि । तह चेय पडिवण्णमेएहि । मुहुत्तराओ संपत्तो पवरपायव(स)स्स पत्तयं भरेऊण । भणिया य ते-उवविसह, मुंजह ति। तओ ते परोप्पर वयणाई पलोएऊण पहसिया। 'कहमेक्कस्स भोयणं पण्णरससयाणं संपज्जिही ?, अहवा किमम्हाण वियारेण ?, जं चेय गुरू समाइसइ तं तह चेय अणुट्ठियव्वं' [? ति चिंतिऊण] णिविट्ठा जहाणुकमेणं, कह ? णवरि य हिययभितररहसवमुद्धन्तसुद्धपरिणामो । विसउल्लसंतघणपुलयमासलिय[........]तणुभाओ॥ ६८९ ॥ आढत्तो पक्खिविउं विसट्टकुंदेंदुकंतिकयसोहं । संपुण्णसालितंदुलकलियं वरपायसं सहसा ॥ ६९०॥ अह सव्वाण समभहियपीतिसंपत्ततित्तितोसाण । पण्णरसाणं पि सयाण अच्छरीयं जणन्तेण ॥ ६९१ ॥ इय अक्खीणमहाणसलच्छी(दी)अणुहावओ मुर्णिदेण । मुंजाविऊण भुत्तं महरिसिणा अप्पणा पच्छा ॥ ६९२॥ तो ते तावसगणा ठूण तं गणहारिणो महापहावं लद्धिविहवं अप्पाणं जूरिउं पयत्ता-बहूयकालं अम्हेहि अप्पा पयारिओ किलेसबहुलेणं, कह ? जस्सेरिसप्पहावा सिस्सा अण्णे वि गुणमहग्घविया । सो उग तिलोयअञ्चन्भुउ ति मण्णे गुरू को वि ॥६९३॥ जोगम्मि य वरसिस्से गुरुणो संकमइ सयलविण्णाणं । इय अणुमाणाहिंतो एयस्स गुरू गुरू को वि॥ ६९४ ॥ तम्हा अवितहमेयं जं भणियमिमेण 'मह गुरू अण्णो' । अण्णह अणुवासियगुरुकुलस्स कत्तो इमा सिद्धी ? ॥६९५॥ बच्चामो तस्स वयं भुवणकयाणुग्गहस्स जयगुरुणो । चलणाण जए संसारसायरुत्तारण --- (१यराणं)॥६९६॥ इय ते सम्मइंसणसंपयसंपत्तचित्तमुहझाणा । संपत्ता जयगुरुणो आसण्णसमोसरणभूमी ॥ ६९७ ॥ तओ दुराउ चिय पलोइऊण रुपमयपायारवलयं दिपन्तमणिकुंडलुप्पयन्त ---------- विह'दिव्वंसुयपरियप्पियचिंधमालालंकियं जयगुरुणो समोसरणं हिययपहरिमुल्लसन्तसुहज्झवसायाण समुप्पण्णं तइयपश्यासं'सियतावसपंचसयाणं केवलणाणं । ----------- समासण्णयरत्तणओ जयगुरुणो धम्मदेसणाणिमित्तवियम्भिओ सजलजलहररवाणुयारी दूराइसंठियदुंदुहिणीसणो सयलजणाणंदयारी वाणीरवो । तं च सोऊण दुइयपइयासंसि-------- -(यतावसपंचसयाणं) समुप्पण्णं केवलं णाणं, अण्णाणं जिणमुहयंददसणपणट्टकम्मतमसमूहाणं । तओ समुप्पण्णपण्णरससयकेवलिपरियाओ(यरिओ) पविट्ठो जयगुरुपायमूलं । ते वि केवलिणो केवलिपरिसासमुह --------न्ता भणिया य गोयमेणं-जयगुरुं बंदह त्ति । भयवया भणियं-गोयमा! मा केवलिआसायणं कुणसु । गोयमेण चिंतियं-एए मए चेव बोहिया, णवरमेएसिं चेव केवलसमुप्पत्ती जाया, पयासिओ हं चरमदेहो । त्ति चिंताउरस्स गणहारिणो भयवया भणियं-गोयमा ! मा संतप्प, तुमं पि चरमदेहो आसण्णसिद्धिलंभो य, किंतु मण्णेहबंधणकम्मावरणपडिक्खलियं केवलं ण समुप्पज्जइ, ता मा विसायं गच्छसु चि । [गोयमसामिणो अहावयारहणा २४] Page #411 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२८ उपभमहापरिसचरिय। एवं च पतिदिणं संबोहयन्तो बहूयजंतुसंघायं, पसमंतो चिरपरूढाई पि वेराई अहामुई विहरमाणो [संपत्तो] दसण्णाहिहाणं देसं । तहिं च दसण्णा महाणदी। तीए तीरे दसण्णउरणाम जयरं । जं च केरिसं?-महासइसीलं पिव परपुरिसालंघणिज्ज, वेसाविलासजंपियं पिव सरसवाणीय, चतुरजणहासियं पिव मुहासियणिलयं, सुकलत्तविलसियं पिव गोउरविणिन्तमुहयवायं ति । तहिं च णियभुयबलोजला(ल्ला)वजियरायलच्छी गुरुपयावपसरुच्छाइयपडिवक्खचको राया णामेण दसण्णभदो। सो य केरिसो?सयलजणस्स वि धम्मो ब्च जो सया णियमणम्मि पञ्चक्खो । कोवकर[ग]म्मि कालो व्व दलियरिघुवेरिवग्गाण ॥६९८॥ धणउ व्च जो पसाएण सव्वया सयलसंसियजणाण । तिवपयावेण हुयासणो व्य दुईसणालोओ ।। ६९९ ॥ इच्छासंपाइयजणमणोरहो जो सिरि न्च दिहीए । सारस्स(१स)उ च गयाए पयडं संजणियसोहग्गो ॥७००॥ इय सो दसण्णराया मुपसाहियसययरज्जसंभोओ। णिययकुलक्कमपालियधरणियलो अंजए रज्जं ॥ ७०१ ॥ अण्णया य. अस्थमइगए कमलायरबंधवे सहस्सकिरणे, वियलिए संझासमए, ईसिपरियटिए तिमिरपसरे,---- - - वणिसण्णस्स तस्स दसण्णभद्दराइणो णिवेइयं चारपुरिसेहिं जहा-देव ! कल्लं इह तुह पुरवरस्स बाहि सयलजएफल्लबंधवो भयवं वद्धमाणसामी समोसरिही। तओ ताण वयणाणंतर --------- स्स किं जायं? अन्तोपवियंभियहरिसणिभरुम्भासिया विरायन्ति । सन्चत्तो चिय देहम्मि विसयरोमंकुरुम्भेया ॥ ७०२॥ ण यणइ परोप्पराणभिडन्तमणिकणयकडयपन्भारो । जयगुरु --------इयकरजुयलो ॥ ७०३ ॥ वियसइ तोससमाणंदवारिभरगरुयमुहयलालोया । जलगम्भिणसरमुग्गयकुवलयमाल व्व से दिट्ठी ॥ ७०४ ॥ हिययपसरन्तपहरिसविसेसणमुणियपरावरिल्लाइं । अप्पडिफुडक्खरालक्खजंपियाई मुहावेंति ॥ ७०५ ॥ इय चारवयणवड्ढियहरिसविसदृन्तपुलयपडलोहो । वट्टन्तसोहसुहओ सो चिय अण्णो --- --(? व संजाओ) ॥ ७०६ ॥ - - - - (? तओ चार)यपुरिसाण दाऊण जहासमीहियमन्महियं पारिओसियं अंतोसमुल्लसन्तहरिसपसरो सयलसामन्तत्याइयासमक्खं जंपिउं पयत्तो जहा-अञ्चन्तरिद्धिवित्थरेणं कल्लं तह मए भयवं वंदियन्वो ----- (?जहा ण को वि) तिहुयणे वि वंदइ । त्ति भणिऊण विसज्जियासेससामंतो अंतेउरमइगओ णराहिवो । तहिं च जयगुरुसंकहाविणोएण गमिऊण सयलजामिणि पुणो अणुइए चेव दिणणाहे वाहरिऊण सयल --- निओइयगणं भणिउं पयत्तो जहा-महं मंदिरुद्देसाओ जाव समोसरणगोउरमुहं ताव जहाविहवणिम्माणियं मह गमणजोग्गं कायव्वं । भणिऊण विसज्जिया एते । संपाडियं तेहिं राइणो सासणं । केरिसं च तं दीसिउं पयत्तं ?-महापुरिगेहि (25) पिव सउणयणकयवालिसोई, तारावीढत्थाणं(ण )धरायलं पिव साहीणसुयणासं, महाडइरणं पिव सुरहिवलग्गज्युल्लन्तचामरचयं, वेलायडपुलिणं पिव पइण्णमुत्ताहलोवयारं, अवि य मणिमयखंभुन्भडजणियविविहमणितोरणोरुराहिल्लं । अञ्चन्तजच्चकंचण[स] चारुतुलणिमियमंडवयं ॥७०७ ॥ वरपरियप्पियपट्टसुयुजलुल्लसियहल्लिरुल्लोयं । देवंगवियाणयसाहिरामलम्बन्तचलचूलं ॥७०८ ॥ पेरन्तो [........] अल्लन्तकंतमुत्ताहलावलिकलावं । मारुयमंदंदोलन्तसच्छमणिगोच्छसंडणं ॥ ७०९ ॥ दिसिदिसिचलन्तशुलन्तचारुचलचमरचूलचइयं । डज्झन्तसुरहिपरिमलविणितकालायरुप्पीलं ॥ ७१०॥ पक्खित्तकुसुमपरिमलमिलन्तभमरउलबद्धझंकारं । मुरहिपडवासपक्खित्तवासियासेसदिसियकं ॥ ७११॥ चुणियकप्पूरपरायपंडुरिज्जन्तसयलमहिवेढं । कुंकुमरमुच्छड्डुच्छरियधवलस[य]वचसिचयन्तं ॥ ७१२॥ Page #412 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४ वद्धमाणसामिपरियं । धुव्वन्तपवलधयवडवलम्गचलकणिरकिंकिणिकलावं । सुपसत्यपंचवण्णुच्छलन्तचिंधुन्मडाडीवं ॥७१३ ॥ इय तं सध्वत्तो चिय णिविश्वविसिटकुसुमदामिल्लं । ----मयचुण्णुल्लसंवरंगावलिसणाहं ॥ ७१४ ॥ एयारिसं च हिम्मविऊण रायमगं णिवेइयं णिओइएहि परवइणो । तओ राया णिसामिऊण ताण वयणं णिध्वत्तियसुरहिसलिलमज्जणोक्यारो पिणद्धसियसिचयचारुजुयलो विलित्तसियचंदणुहामभूसियसरीरो सियमुत्तावलिकलावरखोलन्तवच्छत्थलो सियकुसुमदावा(मा)वलंबियकंठवासो सियचमरचयालंकियसियतुरयमारुहेऊण उपरि--(धरि) जंतसियायवचो णिग्गंतुं पयत्तो । पयर्ट च मुरविलयासमाणमखिलमंतेउर, तहा सयलसामंताइणरवइबलं ति । तओ पडपडहपडिरवुल्लसन्तघणगज्जियरवो सियचिंधावलिपसरियप(बलायमाणो विविहमणिमउडकिरणुलसंततियसचावो वियडकरिकरडकोडरोवडन्तमयसलिलधारो वारिहरो व्व पयट्टो दसण्णभदराया। तो ऊसियसियधयमालाउलं रायमग्गपरिट्ठियतोरणबझनवंदणमालं पडिय(प)यहरियगोमओवलित्तसंठवियवंदणकलसं समुहणिमियसहयारपल्लवसणाहाऽऽपुण्णकुंभं अबहोवाससंगलंतदंसनमुयं(य)बहुपुरजणं वज्जंतगंभीरसंखजणियकोलाहलं पयपयलम्बमाणपउरपेच्छणयं धुइमुहलबंदिवंद्रुच्छलन्तजयजयारवं मुइमुहयमंगलुम्गीयसणाहसंगलंतविलयायणं पयर्ट राइणो पहाणपरियणं ति। संपत्तो समोसरणभूमि । बंदिओ भयवं तिपयाहिणं काऊण । एत्यावसरम्मि य तं तारिसं तस्स महिड्ढिवंदणुप्पण्णाहिमाणगव्वं मुणिऊण पुरंदरेण तस्स संबोहणत्यं विउरुब्धियमंभोमयं विमाणं, केरिसं च ? मुविचित्तविमलफलिहच्छसलिलपेरंतवियडसंभोयं । उइंतहंस-सारसणिलिन्तकयकलरवसणाहं ॥७१५॥ आसण्णविणिम्मियपवरमुरतरुव्वेल्लकुसुमराहिल्लं । सललियलयाहरोवडियकुसुममयरंदपिंजरियं ॥ ७१६ ॥ मरगयमणिमयणलिणीविसष्टवरकणयकयस(कमलकय सोहं । [-]सइंदणीलकुवलयदलुज्जलुव्वेल्लकंतिचयं ॥७१७॥ इय णिम्मियबहुविहकयविसेसविच्छिचिवड्ढियच्छायं । समुवस्थियं च पुरओ जलकंतविमाणवररयणं ॥७१८॥ णवरि य किंकरकरपहयवज्जियाउज्जवहिरियदियंतं । बहुवणंसुयपवणुल्लसंतचिंधावलिकलावं ।। ७१९ ॥ सव्वत्तो चिय मणिमयविमाणसंघट्टभरियणहविवरं । सुरगणसंचरणसमुल्लसन्तमणिमउडकरजालं ॥ ७२० ।। सुरवारविलयकरकलियचारुचमरावलीजणियसोहं । मारुयपहम्मिरुव्वेल्लकणिरकरकिकिणिसणाहं ॥ ७२१ ॥ दूरुग्गयमरगयणाण(णील)कणयकमलेकणिमियपयभारं। मयणिन्भरगंडस्थलगलंतदाणंबुराहिल्लं ॥ ७२२ ॥ संपाइयमणि[....]मासणाह णिज्यि(ब)डि५ दीहरदढग्गं । उव्वहमाणं रुंद(?दु)ड्ढदन्तमुसलं सुरकरिंदं ॥ ७२३ ॥ आरूढो पढमारूढतियसमुंदरिपरिट्ठियालम्बो । सुरणाहो जयगुरुवंदणत्थकयभत्ति-बहुमाणो ॥ ७२४ ॥ इय विविहवजवजंतबंदिसदुल्लसंतदिसियको । आगच्छइ जलकंतप्पहाविहावी तियसणाहो ॥७२५॥ तओ दिसिदिसिपयत्ततियसतरुणियणपयत्तपउरपेच्छणयपन्भारो सुरजणकयजयजयासद्दमंगलमुहलो ओइण्णो मणुयलोयं सुराहियो। केरिसं च समोसरणसंसियसुर-णरेहि पलोइयं जलकंतविमाणं सवदिसामु वि फलिहासमुल्लसंतोरुपोक्खरिणिराहं । धोइंदणीलणलिणीविणितवरकणयकमलोहं ॥ ७२६॥ एकेकयम्मि कमलम्मि जणियणवणट्टरसगुणसणाहं । तिहुयणविम्हयजणयं पेच्छणयं तियसविलयाहि ।। ७२७ ॥ पेच्छणए एककम्मि तियसणाहाणुरूववरविहवो । सुरवइसमाणणेवच्छ[ ........]धारी य वरतियसो॥७२८॥ एकेकस्स य तियसस्स पवरविहवोवहोयसंजुत्ता। तियसवइणो ब्व परिसा विहाइ अञ्चंतगुणकलिया॥७२९॥ इय अप्पणो वि तियसाहिवस्स दट्टण तं वरविमाणं । जाओ मणम्मि अञ्चन्तविम्हओ रम्मयाए खणं ॥ ७३०॥ तं च दळूण विमाणं समवसरणसंठिएहिं सुर-णरेहिं 'किमेस सुरलोओ सयं चेव समवया(य)रिओ भत्ति-बहुमाणओ उयाउ इंदयालं?' ति भणमाणे चेव सुरवई तिपयाहिणं काउं पयत्तो । कह ? Jain Education Internation Page #413 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . चप्पचमहापरिवारय । अञ्चन्तललियलायण्णविन्भमुम्भेयभूसणधराहिं । णिज्जियतवणिज्जुज्जलविरायमाणंगसोहाहि ॥ ७३१ ॥ जिणथुइसंबद्धक्खरपढमविसहतवयणकमलाहि । विम्बायम्बुव्वेल्लिरमणोहराहरदलिल्लाहि ॥ ७३२॥ उम्मिल्लदसणकिरणप्पहाविरायन्तवयणसोहाहि । सुसुयंधसासपवणल्लियन्तभसलउलबलयाहिं ॥ ७३३ ॥ भत्तिभरोणयसिरकमलमिलियकरयलकयंजलिउडाहिं । पवणुव्वेल्लचलंसुयसंजमणकयायरिल्लाहि ॥ ७३४ ॥ इय एरिसाई(हि) मणहरणेवच्छपा(पमा सियंगसोहाहिं । ------- समयं सुराहिवो पढिउमाढत्तो ॥७३५॥ कह ?दुक्खोहुदामणीरे पियविरहघणच्चुग्गदुग्गाहगाहे, जम्मावत्तम्मि भीमुब्भडमरणचलुलोलकल्लोलवाहे । संसारंभोहिमज्झे भवमयरमुहासंसियाणं जियाणं, तेल्लोकेकल्लणाहो जिण ! गरुयगुणो तं सि ताणं जियाणं ॥७३६।। अञ्चंतुद्धावमाणुब्भडघडियसमुव्बुग्गकोहाइचक्के, दुइंतचिंदियत्थोत्थवियसरिसयाहुत्तपत्थाणवके । जीवाणं कम्मतिव्वुब्भडतरणिकर फंसतावं गयाणं, संताणं होइ पूणं तुहचलणतरुच्छायमासंसियाणं ॥ ७३७ ॥ णिरयगतीसु विविहदुक्खोहसमुन्भडभिण्णगत्तओ, तिरियगतीसु तह य डहणं-इंकण-वाहणकयदुहत्तओ । मणुयगतीसु दरियदारिदसमुग्गयतावियंगओ, मुच्चइ दुहसएहि सइ पाणिगणो तुहपणइसंगओ ॥ ७३८ ॥ जं सुरसंभम(ब)म्मि सुरविलयसमुन्भवविविहसोक्खयं, जं खविऊण सयलकम्माइं जिया पावेंति सोक्खयं । जं मणुयत्तणे वि सामण्णरया ज(जा)यन्ति समसुहा, तं तुह चलणकमलसेवाणुरया पाति, णो मुहा ॥ ७३९ ।। ___ इय थोऊण मुराहिवो, काउं तिपयाहिणं पुणो पुणो वि।। पणमइ जिणस्स चलणए, महियलरंखोलमाणतरलहारो ॥ ७४० ॥ पण तओ दसण्णभहराया तं तियसाहिवइरिद्धिसमुदयं दण गरुयविम्हयपरवसायमाणदेहविहाओ थंमिउ न खणमेत्तं ठिओ, चिंतिउं [च] पयत्तो-अहो ! विमाणरयणस्स सोहासमुदओ, अहो ! सुरकरिणो रुइरंगया, अहो ! तियसवइणो विहववित्थरो, जेण पेच्छ एवं विमाणं, गंदणवणं किमेयं संताणय-पारियाययसणाहं । मणिमयपस्यगोच्छुच्छलन्तमयरंदरिदिल्लं ? ॥ ७४१॥ किंवामणिमयखंभुन्भडणिबिडपट्टउत्तुंगसिहरमालोहं । वरमंदिरसिरणिवहुल्लसं--(तमु)त्तावलिकलावं? ॥७४२॥ किं वा सलिलं फलिहच्छमित्तिसंकंतसुर-गरगणोई। वेउवुयपवणसमुल्लसन्तचिंधालिलहरिलं ? ॥७४३॥ किं वा थलं महीयलपरिट्टियामरविलासिणीरुइरं । बहुसुरसंचरणकयायरेहिं चलणेहिं छिप्पन्तं ? ॥७४४॥ किं वा एसो वि महीहरो त्ति एरावणो सुरकरिंदो। जेण गय[ण ग्गचुंबी विहाइ परिवियडकुंभयडो?॥७४५॥ इय एव विम्हयत्थिमियललियलोयणवियारपसरस्स । आलेक्खसंठियस्स व जाइ मुहुत्तरमहेकं ॥७४६॥ एवं च भरियणहयलाहोयं सुरमयं व सयलं जियलोयं मण्णमाणो, सुरविलासिणीमयाइं व सयलदिसामुहाई पेच्छमाणो, जाण-वाहणमयं व भुवणं भावयंती, मणि-रयण-कणयभरियं पिव जणवयं णियच्छंतो, 'णिप्फलपइण्णाफलो अहं' ति चिंतिउं पयत्तो । ता एसा हु मज्झ जा मंदिरम्मि संभोयलालसस्स सिरी। पेच्छ दरिदाइ मुरिंदरिद्धि[सं]दसणे एसा ॥७४७॥ उवमाणं जह गंभीरयाए गोप्पय-समुद्दसलिलाण । तह उवमिजइ रिद्धीए मज्झ रिद्धी तियसवइणो ॥७४८॥ जह रवि-खज्जोयपरोप्परप्पहाअंतरं पसंसन्ति । तह सुरवइणो मज्झ य रिद्धीए अंतरं एयं ॥ ७४९॥ इय अमुणियपरविहवेण पेच्छ तुच्छीको मए अप्पा । अहवा तुच्छो चिय होइ तुच्छहिययाण जंतूण ॥ ७५०॥ , Page #414 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४ वद्धमाणसामिचरियं । ३३१ एवं च भावयन्तस्स समुल्लसिओ परिणामो-जइ वि अहमेइणा सुराहिवेण रिद्धीए णिज्जिओ तहा वि णियसत्तीपहावत्तणो सामण्णग्गहणेण पराजिणिऊण एवं सफलपइण्णो भवामि, अण्णं च-जो णियभणियं पि ण पालइ सो हु 'अलियजंपिरो' ति कलिऊण परिहरिजइ बुहयणेण, परिसेसिज्जइ मित्तवग्गेण, णायरिजइ बंधुलोएणं, अवमण्णिजइ साहुपरिसाए । ति चिंतिऊण ओयारियमउड-कडयाइआहरणो पंचमुढिकयलोओ गणहराहेंतो गहियसमणलिंगो पेच्छमाणस्स सुराहिवइणो णिवडिओ जयगुरुणो [ ? काऊण ] तिपयाहिणं चलणजुयले । तं च तहाविहं अच्चतुत्तिमसत्तित्तणओ गहियसमणलिंगं दट्टण सुरवइणा भणिओ दसण्णभद्दो राया-साहु साहु भो महाराय !, उचिओ ते विवेओ, अचिन्ता भवओ भत्ती, अलंघणियमण्णेहिं पोरुसं, णिव्याहियं णिययजंपियं, पूरिया पइण्णा, किं बहुणा ? पराजिओ अहं । ति • भणमाणो णिवडिओ चलणेसुं । गओ सुराहियो सट्टाणं । दसण्णभद्दरिसी वि जहासत्तीए समुज्जओ संजमे ति। इति वद्धमाणसामिचरिए दसण्णभद्दणिक्खमणं णाम परिसमत्तं [२५] ॥ तो भयवं जयणाहो तप्पएसाओ पतिदिणं बोहयंतो भवियकमलायरे पत्तो कुंडग्गामं । तत्थ वि पुव्वक्कमेणेव तियसा-ऽसुरकयसमोसरणविहाणो णिसण्णो सीहासणे भयवं । पत्थुया देसणा। सिट्ठो अभयप्पयाणमूलो अलियविरइप्पहाणो परधणपरिवज्जणरुई सुर-गर-तिरिक्खमेहुणपरम्मुहो आकिंचणगुणगारवग्यविओ जइधम्मो, तहा पंचाणुव्वयाइयो गुणव्वयतियल्लयालंकिओ चत्तारिसिक्खावयसमेओ सावयधम्मो । तं च सोऊण संबुद्धा बहवे पाणिणो, के वि गहियसामण्णा, अण्णे पवण्णदंसणा जाय त्ति। ___ अण्णम्मि दिणे णियदइयासमणियं संबोहिऊण जमालिणाम जामाउयं, दाऊण तेसिं पव्वज, अण्णं च बहुबंधुवग्गं गहियसमणलिंग काऊण, जहक्कम तयंतियाओ विहरमाणो पत्तो पोयणं णाम णयरं । तहिं च वीर-सिव-खंडभद्दप्पमुहा बहवे गरिंदा दिक्खं गाहिऊण संपत्तो कुणालाहिहाणं णयरिं । तत्थ वि सुरविरइयसमोसरणविहिणा भयवया (पत्थुया]मु धम्मदेसणासु कहंतरं जाणिऊण जणसंबोहणत्थं पुच्छिओ गोयमगणहारिणा भयवं जहा-'एसा कुणालणयरी मुणिसावेणं जलेण पूरिइ' ति सुव्वइ, ता सीसउ कहमेयं संविहाणयं ?। भयवया भणियं-"णिसामिजउ देवाणुप्पिया!, ___ इह अण्णया समासण्णे पाउससमए करिसण-कटुयणामाणो दोण्णि मुणी इमं पुरि समइच्छिया वासारत्तमइवाहिउं । दो वि संठिया गयरणिज्झरुदेसे वसई काउं । 'एत्थ ट्ठियाणं च मा अम्हाणं सलिलोवद्दवो भविस्सइ' ति परिचिंतिऊण, 'बाहि चेय णयरीए सलिलवासेण पओयणं, ण उणऽभितरम्मि' [त्ति] परियप्पणाए थंभियं णयरीए अभितरम्मि वासं । अणुमणियं च ताण अहासणिहियदेवयाए । एवं जंति दियहा । जाव णयरीए बाहिं वासमाणम्मि पुण जणो भणिउं पयत्तो-कीस पुण एसा पुरवरी वारिहरेहि परिहरिया ?, गुणमेयाए कोइ महापावयम्मकारी परिवसइ, कहमण्णहा णयरीए मज्झे ण बाहिरा(वारिहरा) मुयंति सलिलं ? । एत्थावसरम्मि य भणियमेक्केण दियाइणा-इमे एत्थ पयरणिज्झरदुवारे जे सेयंबररिसिणो परिवसंति ते जइणयरीओ णिद्धारि(डि )जन्ति ता णयरीए णिवडइ सलिलं ति । एवं भणिए दियाइणा समागओ सयलो वि पुरजणो, लेड्ड(ठु )यप्पहाराइणा उवद्दवेणं उवसग्ग काउमाढत्तो। तो तेणोवद्दवेणं ददं वेविजमाणा अन्तोवियम्भिउद्दामकोवप्पसरा णीसरिउं पयत्ता। णिग्गच्छंतेहिं भणियं वर्ष देव ! कुणालायां, दिनानि दश पञ्च च । धाराभिर्मुशलमात्राभिर्यथा रात्रौ तथा दिवा ॥ ७५१॥ एवं च भणियमेत्ताणंतरा सण्णि हियदेवयाए तह च्चेय संपाडियं, कह ?णवरि य सजल[ घण घणुद्दामघडतोरुगजियारावं । फुडइ व्व फुडिय[ ? तियस] णरहिययदढबंधणं गयणं ॥७५२।। Page #415 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३२ चउप्पन्नमहापुरिसचरियं । सजलघणमारुयाइददिम्मुहुट्टन्तणीसणा यति । असमंजसवासपवत्तथोरधारा घणुग्याया॥७५३ ॥ अणवरयतरलविप्फुरियभासुरोरसिरवढियच्छायं । जलइव विज्जुपुंजुज्जलंतजालाहयं भुवणं ॥७५४ ॥ अविरयपडंतथिरथोरदीधाराणिवायजजरियं । दलइ व्व दलियपंथियघरासपासं धरणिवठं ॥ ७५५ ।। तव्वेलुप्पण्णरसन्तपसरियाऽऽसा वणम्मि सालूरा । वच्चंति णिभरासारधारपहराहया मुच्छं ॥७५६॥ कमलसरेसु पयड्ढन्तसलिलपरिसडियदलउडाहोयं । बुड्डइ दरखुड्डुड्डीणभसलवलयं कमलगहणं ।। ७५७ ॥ जूरइ धारासंपायपहयदरलक्खकलियकेसरयं । वासाजलोल्लविलुलियकलावभारं सिहंडिउलं ।। ७५८ ॥ इय णिभरपसरियजलणिवायखणभरियमहियलाहोयं । जाया रुंभंतपवेस-णिम्गमा सा पुरी सहसा ।। ७५९ ।। एवं च अविहावियणिण्णुण्णयधरणियलं पयत्तं गरुयवासं। खणमेनेणं चेव सा पुरवरी सजणा सगो-माहिसऽका सपासायमाला अईसणीहूया। ते वि मुणिणो तत्कालकयतिव्यकसायाणुहावओ कालमासे कालं काऊण अहोसत्तमीए गरयपुढवीए णारयत्तणेण समुप्पण्ण त्ति। ता कोहो णाम अपडियारो सत्तू, अणोसहो वाही, अगिंधणो जलणो, अकारणो मच्चु त्ति । जेण पेच्छरुट्ठो पढमं हिययंतरुमडुल्लसियतिव्यसंतायो । अप्पाणं चिय णिड्डहइ रोद्दझाणोवगयचित्तो॥७६० ॥ कम्मं रोइज्माणाहि बंधए तं च णिरयगइहेउं । णिरयदुइभीरुणा कोहवेरिणो तेण भेयध्वं ।। ७६१ ॥ उप्पण्णो चिय कोहो सहसा णियआसयं विणिड्डहइ । अणडड्ढारणिकट्ठो जलणो किं डहइ दारुचयं ? ॥ ७६२ ।। अक्कोसतालणुज्जयजणम्मि णियेजीयसंसए वि दढं । धम्मभंसणभीरू खमन्ति तेणेह महरिसिणो ॥ ७६३ ।। अण्णाणी कोहटा कट्टमहोगमणमिच्छणो(गो) होइ । इय कारुण्णं वच्चंति कोहगहियम्मि महरिसिणो ॥७६४ ॥ 'मज्झ कए एस ददं कुद्धो अज्जिणइ कम्ममसुहं' ति । णिययावराहभीय च तेण लज्जंति महरिसिणो ॥७६५ ॥ 'अवयारी किर वेरि' त्ति होइ एकम्मि चेय सो जम्मे । कोहो उण होइ दढं दोसु वि जम्मेसु अवय जह कोहो तह अण्णे वि वेरिणो होन्ति दुजयकसाया। जेयव्या ते जइणा णियएण विवक्खचक्केणं ॥ ७६७ ।। अविणिज्जिया पमायाहि ते समं वड्ढिऊण दढमुवरि । अवयारकारिणो होन्ति णिहया वेरिणियर च ॥ ७६८॥ जं संजमुज्जमावज्जियं चरित्तं बहूर्हि वासेहिं । तं तूलं व खणेणं कोहो निड्डहइ जलणो व्य ।। ७६९ ॥ संसारवत्तिमन्तो गुण कसाया कसंति जंतुगणं । अंधीकुणंति सव्वं गय व्च पवियंभियवियारा ॥७७० ॥ अवहरिऊण सरूवं एते पररूवधारिणं काउं । ऐति समुम्मग्गेणं मंत व्व परव्यसं जणिउं ।। ७७१॥ 'हेटाहुत्तं वच्चइ कसायसहिओ, तँए विणा उड्डं' । इय मुणिऊणं उभंति तेण वीरा कसायचयं ।। ७७२ ॥ इय णिरयणिवायं कोहदोसेण ताणं, विहलगयमुयारं संजमुज्जोयजोयं । णरयपडणभीरू बुद्धिमं भाविऊणं, पैइदिणमिह कुज्जा कोहवायाणभंग ।। ७७३ ।। इति वद्धमाणसामिचरिए कुणालावखाणं [२६] ॥ १ दृश्यतां ६८८ गाथानन्तरवर्तिगद्यपाठस्थितहस्त चिहोपरिवर्तिनी टिप्पणी। २ दललस। ३ णिययासमं स। ४ भणदबढक रणिकठोस । ५ 'यपाणसं' सू। ६ ण ते उरि सू। ७ तयं जे । ८ पतितिण जे । १ इय जे । १. खाणयं जे। Page #416 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४ बद्धमाणसामिचरियं। ३३३ अह अण्णया जयगुरू अप्पणो लक्खिऊण मोक्खक्खणं पक्खीणपावप्पसरो संपत्तो पावाहिहाणं पुरि । चितियं च भगवया गोयमसामिमुद्दिसिऊण-एसो हु महसिणेहमोहियमती मुहुत्तयं पि महविरहमणिच्छयंतो ण केवलं पाउणइ । त्ति परियप्पिऊण भणिओ गोयमसामी जहा-देवाणुप्पिया ! देवसम्मो णाम अत्थि दियवरो, सो तुज्झ दसणेण संबुज्झइ, ता तस्स संबोहणत्थं तुमए गंतव्यं । गगहारी वि 'इच्छामो' ति भणिऊण पयट्टो तयन्तियाओ । जुवन्तरमेत्तणिहित्तदिट्ठी पयत्तो गंतुं । विगयम्मि य गोयमगणहारिम्मि पक्खीणकम्मावसेसत्तणओ आरूढो जोयकिरियं जयगुरू । तओ य किरियाइझाणाणलपुलुट्ठणीसेसम्मिघणो कत्तियवहुलपंचयसिरयणीए पच्छिमम्मि जामे साइणक्खत्तम्मि उज्झिऊण अधुवतणुं पहीणवेयणीय-णाम-गोत्ता-ऽऽउकिंचावसेसो, जस्स य कयम्मि समुझिऊण विसयवासंगं, आराहिऊण गुरुणो चलणकमलं, अहिगंतूण सयलकिरियाकलावं, गिम्हम्मि तिव्वतरणिकरणियरपरियाविया, पाउसम्मि सुहुमजंतुसंताणरक्खणत्यं कयसंलीणया, सिसिररयणीमु तुहिणाणिल फससोसवियतगुगो छऽहमदमास-मासाइतयोविहाणेग जयन्ति जइणो तं सिवमयलमणुवममुहं संपत्तो णेवाणं ति । अह णेवाणं विगयम्मि तिहुयणेकल्लबंधवे वीरे । चलियासणा समन्ता समागया तियसरायाणो ।। ७७४ ॥ णमिउं तिहुयणगुरुणो चलणे महियलमिलन्तभालयला। सघायरेण काउं णेवाणमहं समाढत्ता ॥ ७७५॥ घेत्तुं सरीरयं तिहुयणेकगुरुणो समुल्लसियतोसा । णिम्मलमणिसीहासगपीढोवरिसंठियं काउं ॥ ७७६ ॥ गोसीसचंदणुद्दामगंधरिद्धिल्लखीरसलिलेण । मजति जंतुम जगजणिउद्धरणं पयत्तेण ॥ ७७७ ॥ उज्वेल्लसिल्हयामोयमासलुम्मिल्लपउरघगसारं । काउं कसणायरु-कुंदुरुक्कबूंबंधयारदिसं ७७८ ॥ वोसट्टसरससुरतरुपसूयमालामणोहरुत्तंसं । सबायरेण विरैयन्ति भुवणगुरुणो सिरुच्छंगे ॥ ७७९ ॥ इय हिययंतरपसरन्तभत्तिसम्भावणिब्भरा तियसा । जणिऊण मजणाइयसकारं सयलरिद्धीए ॥ ७८० ॥ णवरि य सुरकिण्णरुद्धन्तगंधवसिद्धंगणुग्गीयकोलाहलुब्भासियं, पहयपडपडहभेरिगंभीरसंसदसदुंदुहीमद्दलुद्दामगदब्भयं । पसरियकलयलारावसंसहसंखु?यारावणीसेससत्तोहसंपुण्णकण्णंतरं, सुरवरकरतालणुव्वेल्लतौलुब्भडायण्णणुप्पण्णकोऊहलं ताडियं तूरयं ॥७८१।। ति । तओ रैसोहसंगयं, लयाणुलग्गमग्गयं । विसट्टहावभावयं, सेंमग्गदिहिदावयं ॥ ७८२ ॥ समन्तचारुराइयं, पसत्थहत्थसोहयं । विहावियंगहारयं, समुच्छलन्तहारयं ।। ७८३ ॥ रणंतणेउरोहयं, रसंतकंचिसोहयं । सुमुत्तवाहियालय, अणेगभंगसालयं ॥ ७८४ ।। पयाणुमग्गलंबियं, समंचलं विलंबियं । सहावसोहचच्चियं, सुरच्छराहिं णच्चियं ॥ ७८५ ॥ ति । एवं च काऊण जयगुरुणो सरीरद्वाणम्मि णट्टविहिं महियलमिलन्तमउलिमाला पणमिऊण थोउं पयत्ता, कहं ? जय जयाहि विद्धंसियसयले विधम्मया, विमलकेवलप्पसरपयासियणियमया । पवरसंजमुजोयपणासियकम्मया, पइ णमामि(मु) जिणदेव ! सुदरिसियधम्मया ॥ ७८६ ॥ कीरइ तवो जयत्ययं, उझिजइ संगो जयस्थयम्मि । तं सिवमयलमणुत्तरं, पत्तं तुमए सकम्मक्खएण ॥७८७॥ दंसियसिवमुहमग्गयं, नासियदूरविमग्गयं । भवभयम् विबोहयं, तुम्ह णमामु सुदेहयं ॥ ७८८ ॥ १ भगया य जय सू । २ तुह जे । ३ जुगंतर जे। ४ उग्निऊण सू।५ 'तरणियरपरि सू । ६ 'मणुत्तरब(एम)णुवममुहं जे। • 'धूमध । हत्तंसे सू । ९ वियरति जे । १० तप्पस स्। ११ दभीराव जे। १२ °ताणुन्म जे । १३ रमोह ले । "हासमा जे । १५ समंग सू । १६ लविहम्मिया सू । १७ पई सू । १८ 'ढविमोइयं स । Page #417 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३४ चउप्पन्नमहापुरिसचरियं । इय काऊण पयाहिणं, तिक्खुत्तं भत्तियाए तियसणाहया । जंति पुणो वि सठाणयं जिणगुणवण्णणपरा पयत्तएण ॥७८९॥ ___ एवं सुरगणपहासमुज्जयं तम्मि दिणे सयलं महिमंडलं दट्टैण तह चेय कीरमाणे जणवएण 'दीवोसवो' त्ति पसिद्धि गओ। [वद्धमाणसामिणिब्वाणं २७] इओ य सो गोयमसामी संबोहेऊण तं देवसम्मदियवरं दाऊण समणलिंगं समागच्छमाणो जणरवाओ सोऊण भयवओ णेवाणगमणमहिमं चिंतिउं पयत्तो जहा-"पेच्छे, कह भयवया मुणिऊण 'आसण्णो अत्तणो णेन्वाणगमणसमओ' त्ति अणाइक्खमाणेणाहं देवसम्मववएसेण पेसिओ ? । ता पेच्छ, णवरि देवसम्मस्सोवैरिं करुणा समुप्पण्णा, ण उण चिरपरिचिए भत्ते गुणाणुरत्ते अणण्णसरणे ममम्मि, जेण अणवेक्खिऊण चिरपरिचियत्तणं, अवमण्णेऊण अञ्चन्तभत्ति, अवहीरिऊण गुणगणाणुराइत्तणं, अणब्भुवगमेऊण अणण्णसरणयं, अदिट्टपुव्वो व्व अचिरपरिचिओ व्च अइणिक्करुणो व्व एगागिणं अणाहं असरणं उज्झिऊण एगागी चेव संपत्तो परमपयं ति । मह पुण पेच्छ विवरीयसरूवया तणुणो, जो असणेहम्मि सिणेहया, अवच्छलम्मि वच्छल्लया, अणुवरोहम्मि वि सोवरोहया जयगुरुम्मि, जेणऽज्ज वि तण्णेहणिवंधणं दढं संतप्पति हिंयवयं । सिणेहो हि णाम अरज्जुओ बंधणविसेसो, अणियलो गोत्तिणिवासो, अखीलिओ हडिप्पवेसो, अदारुओ पंजरबंधो, जेण सविवेइणो वि णिविवेया, समत्था वि सामत्थरहिया, पंडिया वि मुक्खा होऊणं जंतुणो मुझंति णिययकज्जे, चुकंति कुसलकायव्वम्मि ति । अहवा सुपसिद्धमिणं जणम्मि विवरम्मुहे बलग्गंतं । हे हियय ! मुहातम्मिर ! चुकसि दोण्हं पि लोयाणं ॥७९०॥ 'जो कुणइ सिणेहो तस्स कीरए' गिज्जए पसिद्धमिणं । सुण्णे उलम्मि दीवयदाणं भण किं गुणं लहइ ? ॥७९१॥ इय डज्झसि डज्झसु, कढसि कढसु, अह फुडसि फुडसु सयराहं । तह वि पेरिसेसियं तं .सि हियय ! तेलोकणाहेण" ॥ ७९२ ।। तओ गोयमसामी हिययंतरुल्लसंततावाणलो पुणो चिंतिउं पयत्तो-पेच्छंह, जयगुरुणा मह भत्ताणुवत्तित्तणमणवेक्खियं तहाऽवस्समणेणावि समं सिणेहो ण कीरइ इह जम्मंतरे वि, कह ? णेहो चिय जायइ दढणिबंधणं जंतुणो बुहस्सावि । सविवेइणो वि कुसलुज्जमम्मि दढविग्घहेउ त्ति ॥ ७९३॥ णेहणिमित्तं चिय होइ जंतुणो जणियकम्मणियरस्स । उप्पत्ती णिरयाइसु गतीसु गुरुदुखैनियरासु ॥ ७९४ ॥ रायाहिंतो जायइ हो सव्वत्थ जंतुणो धणियं । जो हो सो राओ, जो राओ तत्थ दोसो वि ॥ ७९५ ॥ ते दो वि राय-दोसा संसारावडणकारणं जेण । अणिवारियसामत्था भणिया समुरासुरगुरूहि ॥ ७९६ ।। अहवा 'दोसाहिन्तो राओ च्चिय गुरुयरो' त्ति पडिहाइ । जेण पउत्तो गुरुणो वि होइ पडिबंधहेउ ति ॥ ७९७ ॥ ता जह मज्झं जाओ जयणाहो उवरि णिग्गय सिणेहो । अहयं पि तह चिय भयवओ वि जाओ म्हि णिण्णेहो ॥७९८॥ .. मुज्जोय जे । २ च्छ, भय सू । ३ वरि करुणया सू । ४ अवमण्णिऊण सू। ५ हिययं जे । ६ सकीलिओ जे । ७ वा सुन्वउ सुपसिद्ध जे । ८ विलग्गंतो सू । ९परिसेसिओ सू । १० पेच्छा सू। ११ क्खणिरयासु सू। १२ गुरुतरोऽम्ह पंजे। Page #418 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३५ ५४ वद्धमाणसामिचरियं । परिभाविऊण विच्छिण्णणेहवासंगबंधणगुणस्स । गोयममुणिणो वड्ढतहिययसंवेगपसरस्स ॥ ७९९ ॥ सुक्कज्झाणाणलदड्ढसयलकम्भिधणस्स तव्वेलं । उप्पण्णं भूया.ऽभूयभावयं केवलण्णाणं ॥ ८०९॥ इय णिययमाउयं पालिऊण संबोहिऊण भवियजणं । कम्मावलेवमुक्को गणहारी सिवपयं पत्तो ॥ ८०१॥ [गोयमगणहरणिव्वाणं २८ ] डेय बद्धमाणचरियं अणेयगुणसयसहस्सपरिकलियं । हरउ कलिकालकलिलं भवियाण ग(?म)णम्मि वियरन्तं ॥८०२॥ इति महापुरिसचरिए वद्धमाणसामिचरियं संमत्तं ति ॥५४॥ [गंथयारपसत्थी] चउप्प(प)ण्णमहापुरिसाण एत्थ चरियं समप्पए एयं । सुयदेवयाए पयकमलकतिसोहाणुहावेणं ॥१॥ M आसि जसुज्ज[ ल]जोण्हाधवलियनेव्युयकुलंबराभोओ। तुहिणकिरणो व सूरी इहइं सिरिमाणदेवो ति ॥२॥ सीसेण तस्स रइयं सीलायरिएण पायडफुडत्थं । सयलजणबोहणत्थं पाययभासाए सुपसिद्धं ॥ ३॥ जं एत्य लक्खण-ऽक्खर-छंदक्खलियं पमायओ मज्झ । लेहयवसउ च भवे तं खमियव्वं बहयणेण ॥४॥ इय महापुरिसचरियं समत्तं॥ चउपण्णमहापुरिसाण कित्तणं जो सुणेइ एगग्गो । सो पावइ मुत्तिसुहं विउलं णत्थेत्थ संदेहो ॥ ५ ॥ H Aal. १ गाथेय जेपुस्तके नास्ति । २ परिसम्मत्तं जे । ३ हस्तद्वयचिहान्तर्गते गाथे सूपुस्तके न स्तः । ४ 'दं ॥ ग्रन्थानम्-१४००० ॥ संवत् ११(१२)२७ वर्षे भागसिर सुदि ११ शने (नौ) ॥ अद्येह श्रीमदणहिलपाटके समस्तराजावलीसमलंकृतमहाराजाधिराजश्रीमत् कुमारपालदेवकल्याणविजयराज्य तत्प्रा(प्र)साद मा(म)ह वाधुवल श्रीश्रीकरणादौ समस्तव्यापारान्नपथनयति(व्यापारान् परिपन्थयति)॥ विषय-दंडाज्य(व्य)पथके पालउद्ग्रामे वास्तव्य ले. माणंदेन महापुरि()षचरितेन(चरित)पुस्तकं समर्थयति(समर्थितम्) ॥ जे । ५ हस्तद्वयचिहान्तर्गतः पाठो जेपुस्तके नास्ति । ६ हो ॥ संवत् १३२६ वर्षे श्रावण चदि २ सोमेऽद्येह धवलक्कके महाराजाधिराजश्रीश्रीमदर्जुनदेवकल्याणविजयराज्ये तत्पादपद्मोपजीविनि महामात्यश्रीमल्लदेवे स्तम्भतीर्थनिवासिन्या पल्लीवालज्ञातीय भण लीलादेव्या आत्मनः श्रेयोऽर्थ महापुरुषचरित्रपुस्तकं लिखापितमिति ॥ छ । मंगलं महाश्रीः ॥छ ॥ शुभमस्तु सर्वज गतः परहितनिरता भवन्तु भूतगणाः । दोषाः प्रयान्तु नाशं सर्वत्र जनः सुखी भवतु ॥ छ । सू । हो ॥ प्रत्यक्षरं निरूप्यास्या (स्य) ग्रन्थमानं विनिश्चितम् । अध्शत्यधिकानुष्टुप्सहसाण्येका(बाणि) वरीष च ॥१॥ मंगलं महाधीः ॥ छ । शुभमस्तु सर्वजगतः परहितनिरता भवन्तु भूतगणाः । दोषा: प्रयान्तु नाशं सर्वजनः सुखी भवतु ॥ छ । संवत् १६७१ मागसिरमासे कृष्णपक्षे १३ त्रयोदशायां (दश्यां) ती(ति)थौ गुरुवासरे श्रीस्तम्भतीर्थवास्तव्यजोसीनानजीसुतवधामेन पुस्तकं लषितं ॥ छ ॥ श्रमणसंघस्य शुभं भवतुः ॥छ ॥ कल्याणमस्तुः ॥ छ ॥ श्रीरस्तुः ॥छ ॥ ग्रंथा० ११८०० ।। कागदीया सूप्रतिः। Page #419 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #420 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमं परिशिष्टम् 'चउप्पन्नमहापुरिसचरिय' अन्तर्गतानां विशेषनाम्नामकारादिवर्णक्रमेणानुक्रमणिका। नाम किम् ? पत्रम् नाम किम्? पत्रम् नाम किम? पत्रम् १४८ ३५ ८५ अइपडुकंबल मेरुशिला अइबल | राजा अतिवल । अइमुत्तमुणि भ्रमणः १८३ अइरत्तकवल मेरुशला अइरा राज्ञी १४९ भउज्झा नगरी ५५, १२९, १७५ अओज्झ अक्खोह । सन १८२, १८४, अखोह १८६ अग्गिा | बटुस्तापसश्च १६५, १६६ जमयागी । अग्गिकुमार देवः ८४ अग्गिच्च अग्गिजो वाहाण: अग्गिभूइ अग्गिभूइ-ति गणधरः ३०२. अग्गिसिह १६८ विद्याधर २३४ अग्गय अस्त्रम् १८९ अचलगाम प्राम: अच्चुय देवलोकः ३२, ८४, १४८, १४८ अणहिलपाटक नगरम्, लेखकप्रशस्ती ३३५ अणंगमई-ती विद्याधरपुत्री १६१, १६२ अणंगबई राज्ञी अणंगसुंदरी राज्ञी १४८ " राजपुत्री १५४-१५९, १६१, १६२ अणंता तीर्थकरः १२९, १३१, १३३ अणंतविरिय वासुदेवः अणाहिट्ठिय राजा १८४ अणिदिया दिक्कुमारी अणुत्तरोववाइय देवलोकः अणुंधरी पुरोहितपत्नी २४५ अपइट्ठाण नरकः १०३ अपराजिअ बलदेवः अभयकुमार राजपुत्रोऽमात्यश्च ३०८, ३१०, ३११, ३१४, ३१७, ३२०, ३२१ अभयमती सार्थवाहपत्नी अभिचंद राजा ૧૮૨ अभिणंदण तीर्थकरः श्रमणः १४८ अभिणदिया राज्ञी १४७ अमियतेय विद्याधरराजः १४६-१४८ अभियवाहण राजा २१५ अयल बलदेवः ९५, १०३ १८२, १८४ अयलसामि तीर्थकरः अर तीर्थकरः १५३, १६३, १६४, १६९ अरविंद राजा २४५, २४६, २४९ अरहतासणय जिनमन्दिरम् १८९ अरि?णेमि तीथकरः १८०, १८३, १८४,१८८, १९०, १९१, २०४, २०९, २६३ अर्जुनदेव गूर्जरेश्वरः, लेखक- ३३५ प्रशस्ती अवरभरह क्षेत्रम् अवरविदेह क्षेत्रम् ६, १०, १६, १६९, २०५, २५१ अवराइय-तिय विमानम् १७७, २०६ अवराइय राजा अवराजिया नगरी अवंति देशः अव्वाबाह देवः असणिघोस विद्याधरराजः १४७, १४८ असणिवेग विद्याधरः १४०, १४२ असियक् देवः १४०, १४१, १४२ असुरकुमार देवः ८४, १४८ असोगदत्त | वणिवपुत्रः ७, ८, ९ असोयदत्त असोयचंद राजा असोयभद्द राजपुत्रः युद्धशास्त्रनिर्माता देशः अंबरतिलय पर्वतः अंबुवीरिय राजा आ आइञ्च ३९, ८४ आइञ्चजस आइण्ण कल्पवृक्षः आणट्ट देशः आणय देवलोकः ७२, ८४ आणंद बलदेवः १६४ जेसंज्ञकप्रतिलेखकः ३३५ आणंदपुर नगरम् आमलखेड़ बालक्रीडा आयरिसी लिपिः आयार । जैनागमः १३, ३२, ९१ आयारंग । देवलोकः ४, २०५ आसग्गीव प्रतिवासुदेवः १.०-१०१, अंगिरस . अंध १४. १९४ अच्छदअ पासण्डः २७६ अजायसन्तु ३१७ जिअ । तीर्थकरः ५१, ७३ जियसामि अजुण राजपुत्रः १८२, १८८ अज्जुग । राजा १६५, १६७ कत्तावरिय भट्ठावय पर्वतः ४९, ५०, ६३, राजा १८९ २७१ आरण सर्पः ७१, २३४, २१८, २४९, ३२२, ३२६ भट्टिय अट्टियकाणण बनम् अडबइब देशः अबाहिया मातापत्नी २७५ २७५ ४१ प्रामः आसभर आससेण २१५ Page #421 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३८ चउप्पन्नमहापुरिसचारियं । नाम किम् ? पत्रम् नाम किम् ? पत्रम् ए(व)यगाम एरवय सन्निवेशः २८४ क्षेत्रम् ५, ३०, ७२, १६२ ३४, ३५, ९७ इक्खाग वंशः इक्खागभू -भूमि देशः इक्खुवंस वंशः इंददत्त श्रेष्ठी इंदभूड गणधरः इंदूमव उत्सवः ३००, ३०१ २२४ कन्चायण कच्छ नारीलक्षणशास्त्रनिर्माता ३० राजपुत्रः ४० प्रामः श्रमणः राजा २१८, २४०, २४१, . २२९ कटुय कडय ईसरदत्त ईसाण वणिक देवलोकः २४२ नाम किम् ? पत्रम् कंपिल+पुर नगरम् ११५, १६२, १६४, २१०, २१२, २१८, २२१, २२८, २४१ कंबल देवः २७९ कंस+असुर सारथी राजा च १४२, १८३, १९५, २०८ कायंदी नगरी कायंक्य वनम् १९८, २०० काल निधिः ४३. २१. सेनापतिः १८३, १८४ कालजिन्भा पल्ली कालसोयरिय शौकरिकः ३१७, ३२० कालिंजर पर्वतः २१२, २१४ कालिंदी राज्ञी कासभूमि देशः कासव गोत्रं गणधरश्च ३०३ कासिगाविसय देशः ८६, २१५, २१८, कासी २५७ किण्णर किरणतेय विद्याधरराजः २५० किरणवेग विद्याधरराजः श्रमणश्च २५०, २५१ किरिमाल किंपुरिस कुणाला नगरी ३३१, ३३२ कुमारपाल गुर्जरेश्वरः, लेखकप्रशस्तौ ईसाणचंद २१२ ८४ यक्षः ८४ कडयावई राजपुत्री २४१ कद ब्राह्मणपुत्रस्तापसश्च २५६, २६१, २६२ कणकप्पभा राज्ञी १०६ कणगमई-ती राजपुत्री ११७, ११८, १२०-१२६ कणयखल नगरम् ३१३ कणयगिरि पर्वत: २५१ कणयतिलया विद्याधरराज्ञी २५० कणयमती राज्ञी कायरह चक्रवर्ती २५४, २५५, कणयाह २५७ कण्ह वासुदेवः १८०, १८३, १९४, १९५, १९९, २००, २०२, २०४ कत्तविरिय राजा १६५, १६७ अज्जुण कमढ पुरोहितपुत्रः परिव्राजकश्च २४५, २४६, २५० कमलसिरि राज्ञी कम्मारगाम ग्रामः २७४ कयवम्म राजा ११५ करिसण भ्रमणः ३३१ करेणुदत्त राजा २१८, २४१ कलिंग कविल परिव्राजको राजपुत्रश्च कुरंगय कुरु+कुल उग्गसेण राजा १८२, १९२ उज्जयत परतः १९३ उज्जत पर्वतः २०५, २०७ उड्डी लिपिः उत्तरकुरा क्षेत्रम् उत्तरज्झयण जैनागमः उत्तरसिंधु णिक्खुड प्रदेशः उस्रावह देश: उदयण राजपुत्रः उप्पलश्रमणः २७५, २७६ उम्मुग्गा नदी उवहिकुमार देवः उसभर पर्वतः४३, १७९ उसहकूड । उसभसामि तीर्थकरः १०, ४४, ४८, ___ ५०, ६३, ३२६ उसमसेण गणधरः उसह तीर्थकरः १, ३७ उसहदत्त श्रेष्ठी १५४, १६१ ब्राह्मणः २७० उसहसामि तीर्थकरः ४, ३५, ५१, ९७, १२१, १२३, १२४ उसहसेण श्रमणः २०५ कुलिसबाहु कुसट्ट कुसुमपुर कुंडग्गाम वनचरः २५३, २५४, २५६ वंशः १६६, १८२, १४०, १४१ राजा २५४ देशः १९४ नगरम् १८२ ग्रामः नगरम् कापालिका २२८ | राजपुत्री राज्ञी च १८२, देशः कुंडिल्ल कुंती कोंती कविलग कविला कंचणपुर कंटय कंतप्पह ब्राह्मणपुत्रः दासी नगरम् चौराधिपः विमानम् कुंभयण्ण केकई तीर्थकरः १५२, १५३ राजा राक्षसवंशीयः १७५ १७५ देवः १३१, १३२ वणिक्पुत्रः ३१, ३२ १४७ २०५ २३२ २०९ राज्ञो केढव केसव Page #422 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमं परिशिष्टम् । बाम नाम किम् ? पत्रम् नाम पत्रम् गह देवः केसि . . गणघरब ३.३ कोट्ठग कोडाल कोडिण्ण कोण्डिण्ण कोमुईछण कोल्लाग किम् ? पत्रम् कृष्णवासुदेवः १८३, १८५, १८८, १८९, २०, २०१, २०४ देवः १८३, १८९ ग्रामः गोत्रम् गोत्रं गणधरब गोत्रम् ૨૨૨ उत्सवः २१५, ३१६ प्रामः सन्निवेशः २८० २१८, २२९ राजी १७५ ब्राह्मणः वनम् नगरी ५२, ८३, १३४, १८०, २२९, २८९, गंगेय देशः कोसल कोसला कोसिस कोसंबवण कोसबी २०. देश राज्ञी ८४ गंगदत्त राजा २४१ गंगदत्ता देवीकन्या गंगा नदी ४३, ४४, ६४, ६९, ७१, २२०, २७८, ३१२ गंगाणिक्खुड प्रदेशः ४३, ४४ राजपुत्रः १८२ गंधमायण पर्वतः ३६, ७१ गंधच देवः गंधब्बर विद्याधरः ३२४ गंधव्ववेअ सङ्गीतशास्त्रम् गंधवी लिपिः गंधसमिद्ध नगरम् गंधार गंधारराइ १८२ गंधारी राजपुत्री राज्ञी च १८२ गंधिलावद क्षेत्रम् गुणचंद श्रमणः राजपुत्रः गुणधम्म ११७ गुणपुंजय श्रेष्ठी गुणसिळय चैत्यम् गुणायर श्रेष्ठिपुत्रः श्रमण: गेवेज्ज | देवलोकः ८४, ८६, २५४ . गेवेज्जय गोयम गोत्रं गणधरश्च १००,३०२, गोयमसामि |३०३, ३२२-३२४,३२६, ३२७, ३३१, ३३३ ३३५ गोविंद कृष्णवासुदेवः २०० गोसाल+य आजीवकः २८०, २८१, २३२ " कोसिय देशः गोत्रं गणधरश्च १२७ . चक्खुम कुलकरः चन्द्रलेखा राजपुत्रीसखी १८, २०, २१, २३-२६ चन्द्रापीड राजा २२ चमर+असुर देवः १, १४८, २९२ २९७ चमरचंचा विद्याधरनगरी १४. चंडकोसिअ ऋषिः सर्पश्च २७७, २७८ देवः ८४ चंदउत्त राजपुत्रः १०६, १०८, १११, ११२ चंदउर नगरम् १३१ चंदउरी नगरी ८८ चंदकंता कुलकरपत्नी १६ चंदजसा कुलकरपत्नी चंदणदास श्रेष्ठी चंदणा राजपुत्री श्रमणी च २८९ २९२, ३०४ चंदपण्णत्ति] जैनागमः १३ चंदप्पभ-ह तीर्थकरः ८८, ९१ चंदप्पमा राज्ञी १३१ चंदलेहा राजपुत्रीसखी राज्ञीसखी १३४ चंदवेग विद्याधरपुत्रः १४२ चंदसीह राजा चंपा नगरी ७९, १०४, १११, १८०, १८१, २१८, २८९ चाणूर मल्लः १८३, १८९ चित्त मातपुत्रः ३, २१५ श्रमणश्व चित्तगइ विद्याधरराजः २०५ चित्तरस कल्पवृक्षः चित्तरह सङ्गीतशास्त्रनिर्माता ३८ चित्तंगय कल्पवृक्षः चित्रलेखा राशी २६, २७ चिलिस जातिः चुलणा २१८ चुल्लहिमवंत पर्वतः चुलहिमवंतगि- देवः रिकुमार प्रामः चेलमा राशी 2 ६ " १७५ २४१ खडप्पबाया खंडभद्द लडवियडा लिपिः खरदूसण राक्षसवंशीयः खरोठी लिपिः खसाणिया गुहा राजा संडा विद्याधरपुत्री खितिपइट्रिय | नगरम् खिप्पट्ठि खीर खीरवण बनम् खेमपुरी नगरी खेमंकर राजा तीर्थकरः ३३१ २२५ १०,१६ पर्वतः २५६ २५६ ७२ १४८ १४२ गोसाल पासण्डः २५३ घणरह राजा . १४९ तज्ञी च चेटी गइद स्वप्रशासनिर्माता १८ गहतोय देवः गयठर नगरम् १, २१८ गयसुकुमाल राजपुत्रः चउरिआ चतुरिका चकाउह कृष्णवासुदेवः १९१ राजपुत्रः २५२. २५३ कुरकरपत्नी १० चक्खुकंता For Private &Personal use only... Page #423 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउप्पन्नमहापुरिसचरियं । ३४० नाम , किम् ? किम् ? पत्रम् नाम किम् ? पत्रम् नाम क्रिम पत्रम् नवी . ३८ बलदेवः १६८ ६५७ ३८ जम १३१, १३३, १३४, १३८, १४६, १४८, १४९, १५२.१५४, १५६-१५९, १६३.१६५,१६८. १६९, १७४, १७५, १७७-१८०, २१०,२१४, २४५, २५०, २५१, २५४, २५७, २५९, २७०, ३२४ जंबुद्दीव- [पण्यत्ती] जैनागमः जंबुदुमावत विमानम् २५१ जभिय ग्रामः २९९ जाला जिणधम्म श्रेष्ठी १७३ जिणयास श्रेष्ठिपुत्रः जियसन्तु राजा १७२ जीवजसा राज्ञी १८२, १८३ जीवाणंद वैद्यपुत्रः जुगंधर श्रमणः जुयाइजिण तीर्थकरः जुहिट्ठिल राजपुत्रो राजा च १८२, १८८, २.. जोइसणाम कल्पवृक्षः जोणगविसय देशः राज्ञी १७४ गंदीसर णंदण गृहपतिः गंदा राज्ञी श्रेष्ठिपत्नी अमात्यपुत्री २४० गंदिग्गाम ग्रामः णंदिणी राज्ञी गंदिमित्त णदिवद्धण राजपुत्रः २७४ गंदिसेण वणिक् राजपुत्रो मुनिश्च ३०४, ३११-३१५ गंदीणयरा लिपिः द्वीपः णाइल गृहपतिः णागकुमार देवः ४३, ४४, ६३. ६४, ८४ गागदेव अमात्यः २२५ णागलंदा राजगृहपाटकः २८० णागसिरी गृहपतिपत्नी २९ णाभि-हि कुलकरः १, १०, ३४, ३५, ३५, ९७ णामेयसामि तीर्थकरः णायधम्मकहा जैनागमः णारसिंह नृसिंहावतारः णारायण कृष्णवासुदेवः जिण्णामिया गृहपतिपुत्री २९, ३०, १६२ अउणा जक्ख जक्खी लिपिः जगणंदण भ्रमणः १४८ जडाउ पक्षी १७५ अणदण कृष्णवासुदेवः १९५, २०१ जण्णयत्त ब्राहाणः जण्हवी नदी जण्हुकुमार राजपुत्रः ६३, ६४, ७१ ऋषिः १६५ जमयरिंग | ऋषिः बाह्मण- १६५, १६६ अग्गिभ बटुव जमाली क्षत्रियः ३३१ जय चक्रवर्ती १७९ गृहपतिः २८० जयहर गणधरः जया राज्ञी १०४ अराकुमार राजपुत्रः १९८, २०१, जरातणअ-य २०२, २०५ जरासुय जरासंध | प्रतिवासुदेवः १८२, १८३, जरासंधि १८४, १८७ जरासिंधु जरासेंध जलकंत विमानम् जलण जलणगिरि पर्वतः जलणप्पह देवः जलणवीरिय राजा जलणसिह विद्याधरराजः अवणी लिपिः जसमती २१४ जसस्सी कुलकरः जंबई-ती राज १९१, १९२ अंबुणाम श्रमः जंबुद्दीव द्वीपः ५, ९, १०, १६, ३०, ३२, ३४, ३५, ५१, ५५, ७२, ७६, ८३, ८६, ८८, ९२, ९३, ९५, ९, १०४, १०१,११५, ११५, १२९, १४८ २९ ३२९ डोह जातिः णिमुग्गा नदी णिसह पर्वतः , २५४ णेमिणाह णेसप्प तीर्थकरः निधिः १६९ १७९, २०४ ४३, २१० णउल राजपुत्रः १८२, १८८ णक्खत्त जग्गह चित्रकलाशास्त्रनिर्माता ३८ णटुम्मत्तय विद्याधरः २२४, २२५, दासी १० णमि राजपुत्रो विद्या. ४०, ४३ धरराजश्व तीर्थकरः १७५, १७७ १८०, १८३ गरसेण राजा २२६ पाकशास्त्रनिर्माता ३८ णलिणिगुम्म विमानम् गंदण उद्यानम् ४०, १२१, १४१, १७५ राज्ञी तक्खसिला नगरी ४१, ४४, ४६ तमप्यहा नरकः तरंगमझ्या प्रन्थः तामलित्ती नगरी तारय प्रतिवासुदेवः ११४ तारा १६५ तिमिसगुहा तिलया नगरी २५० तिलोयसुंदरी गणिका ३१२, ३१३ तिविठु वासुदेवः ४९, ९५, ९९ १.२, २७८ EEEEEEEE Page #424 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमं परिशिष्टम् । नाम किम? पत्रम नाम किम् ? पत्रम नाम किम् ? पत्रम् २७० २७० तिसादेवी रानी तीर(खत्तियणगर नगरम् तुडियंग कल्पवृक्षः तुसिय देवः सुगिय तेयवीरिय राजा तेलोकसुंदरी राज्ञी तोयधारा दिक्कुमारी दारयाउरी दिढिवाय दियवर दिसाकुमार दीवकुमार दीवसिह दीवायण m धरणिजढ धरणिद धवलकक धायइसंड धारिणी नगरी १८९, २०० जैनागमः देवः देवः देवः ८४ कल्पवृक्षः ऋषिः १९८-२०० राजा २१८-२२१,२४१, २४२ ब्राह्मणः १४७ देवः नगरम् , लेखकप्रशस्तौ ३३५ द्वीपः २९, ३०, ७२ राज्ञी ३०, ३२ युवराजपत्नी राज्ञी पर्वतः २०८ ९८ १५७ दीह ૨૮૬ नरकः देवी धुमप्पभा धूमा १०८ २५१ . . यणियकुमार देवः थावर ब्राह्मणः थिमिम-य राजा थिमियसागर राजा नानजी १२४ १८२, १८४ दुजोहण दुम्मुह दुल्लहराय दुवई दुविठ्ठ देवई-ती १२ राजपुत्रो राजाच राजसेवकः राजा छन्दोनाम वासुदेवः १०५, ११४.११५ राज्ञी १८३. १९५, १९७-१९९ १४७ ब्राह्मण: २२९ ब्राह्मणः ___३३३, ३३४ ब्राह्मणपत्नी राज्ञी १५३ लिपिः निसुंभ नेमिनाथः नेव्वुयकुल कागदीयप्रतिलेखकपिता, लेखकप्रशस्तौ ३३५ प्रतिवासुदेवः १३५, १३६ तीर्थकरः भ्रमणकुलम् , प्रन्यकार प्रशस्तौ ३३५ क्षेत्रम् दइचय राजपुत्रः दक्खियमहुरा नगरी देवकुरा देवसम्म २००, २०२, २०५ देवाणंदा . देवी " दोमिली ७ . पइण्णतारग पउम पउमगुम्म पउमचरिय पउमपभ पउमावती १७४ २११ १७६ ८३, ८६ राजा विमानम् प्रन्थः तीर्थकरः राज्ञी १६८ धण सार्थवाहः १०, ११, १५ श्रेष्ठी २८९, २९१, २९२ " .MAN धणदत्त १७२ घणपवर २३२ १८४ घणय घणु दढभूमि देशः २८२ दढरह राजा १४९ दढवम्म राजा ११७ वासुदेवः ददुरंक विमानम् ३१७ देवः दमबर श्रमण: दमियारि प्रतिवासुदेवः १४८ दसण्म देशः ३२८ दसण्ण+भद्द राजा ३२८, ३२९, ३३१ दसण्णउर नगरम् ३२८ दसष्णय २१२ दसण्णा नदी ३२८ दसरह राजा १७५ दहिवाहण राजा दंडयारण्य बनम् २४६ दंडाज्य(व्यपथक प्रदेशः, लेखकप्रशस्तौ ३३५ दामोयर ब्राह्मणः ५३ कृष्णवासुदेवः १८५, १८६, १८७, १९., १९३, १९४, १९९, २०१, २०३, २०५ पर्वतः धण्णंतरि देवः अमात्यः २१८, २१९, २२०, २२८, २२९, २४१ आयुर्वेदनिर्माता ३८ तीर्थकरः १३३, १३४, १३७, १४६ भ्रमण: ११, १३ २८९ पज्जुण्ण राजपुत्रः पज्जोय राजा ३०३, ३०४ पडिरूवा कुलकरपत्नी पढमाणुओग प्रन्थः पण्णत्ती विद्या १४२ पभावती राज्ञी १८०, १८१ पयावइ-ति राजा ९५, ९९-१.१ परकम्मी लिपिः ३८ परसुराम तापसपुत्रः १६५.१६७, पल्लीवाल जातिः, लेखकप्रशस्ती ३३५ पल्हाभ प्रतिवासुदेवः १६८ पसण्णचंद राजा अमात्यपुत्रः १०७-१०१, ११३ श्रमण: पसेणइ कुलकरः धम्मघोस " २०५ १८२ १० । राजा " घयरट्ठ धर धरण धरणराइ घरणाहिव १८२ २६७ । Page #425 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१२ चउम्पन्नमहापुरिसचरियं । नाम राजा किम् ? पत्रम् राजा दिकुमारी राजपुत्रो राजा च १४९. प्रतिवासुदेवः १६४ बलभद्द बलाहगा बलि " १७५ राज्ञी २६१ ४३ बहली बहस्सतिमत बहुल बंधुमई-ती बंधुमई-ती पंढग बंभ - १०५ पंडअ " बंभयत्त नाम किम् ? पत्रम् पुप्फमाला दिक्कुमारी ३५ पुप्फवई । राज्ञी २१३, २२४, पुष्फवती २२५, २३६, २३७, २४३ पुप्फुत्तर विमानम् २७० पुरंदरदत्त श्रेष्टिपुत्रः पुरिमताल नगरम् ४१,४२,२१७ पुरिसदत्त श्रेष्ठिपुत्रः पुरिससीह राजपुत्रः राजा वासुदेवः १३४-१३६ पुरिसोत्तिम वासुदेवः १३१, १३२ पुष्वविदेह क्षेत्रम् २९, ३२, १०६, १४८, १४९, १६२, २५०, २५४ पुहइपाल राजा ३१ पुहई पुंडरिगिणि नगरी ३२, ३३, १४९, ३२४ पुंडरी वासुदेवः राजा ३२४, ३२५ देवी १८३ पूरण राजा १८२ सामुद्रिका २७९, २८० पेढाल उपवनम् २८२ पोइणीखेड | नगरम् १५३, १५९-६१, पोमिणीखेड पोक्खरी लिपिः पोयण नगरम् १९, ९५, ९९, पोयणपुर । १००, १४६, २४५, ३३१ पोराणपुर नगरम् २५४ पोलास जीर्णगृहम् २८८ दर्शनम् सनिवेशः २७५. राजपुत्री १८-२६ ब्राह्मणपुत्री २२१ राजा राजा २१८, २२२, २२७, २२७, २४१ चक्रवर्ती २१०, २११, २१८, २२१, २२४, २२७, २३०, २३१, २३२, २३६, २४०-२४४ देवलोकः ८४, ९७, १६२, २०९ राजपुत्री श्रमणी च ३८, ४२, ४८ राज्ञी बंभलोय बंभी १६४ नाम किम् । पत्रम् पसेणइ २६१ ३०४ पहत्थ पहावती पहावतो राजपुत्री पहास तीर्थम् पंकप्पभा निरक: ५१, २५६ पंकापहा वनम् राजा १८२ निधिः ४३, २१० पंडुकंबल मेरुशिला पाणय देवलोकः ८४, ९२, १४८, १७२, २५६,२५७, २६४ पारासर परिव्राजकः ३०४ पालउद्रग्राम ग्रामः, लेखकप्रशस्तौ ३३५ पालित्तय ग्रन्थकारः पावा नगरी पास । तीर्थकरः २६०, २६१, पासयंद २६९, २७५ पाससामि पियदसणा श्रेष्ठिपुत्री श्रेष्ठिपुत्री १५४, १५९, १६१, १६२ पियंगुलया श्रेष्ठिपुत्रीसखी श्रीष्ठपुत्रासखा २३१ पिसाय ८४ पिहुसेण राजपुत्रः ३०४ निधिः ४४, २१० पीढ राजपुत्रः श्रमणश्च ३२, ३४, ३८ पुक्खरदीव द्वीपः पुक्खरद्ध द्वीपः पुक्खरवरदीवद्ध द्वीपः २५१ पुक्खलावई. क्षेत्रम् ३०, ३२, ७६, १४९ पुण्णभद्द । श्रेष्ठी पुन्नभद्द ११३ सार्थवाहपुत्रः पुप्फकरंडय उद्यानम् ९८ पुप्फचूल राजा २१८, २१९, २२४, २०१ पुष्फदत तीर्थकरः ९१, ९२ लिपिः पूयणा बारवई-ती नगरी ११७, १९४, १९८, १९९, २०१, २०४, २०५. राजपुत्रो मुनिश्च ३२, ३४ बाहुबली पिंगल बिहीसण बुद्ध राजपुत्रो राजा श्रमणश्च ३८, ४०, ४१, ४४-४८ राक्षसवंशीयः १७५ भगवान् बुद्धः १६० परावर्तितनामा १५९, श्रेष्ठिपुत्रः १६० धेष्ठिपुत्रः २२९-२३२ गजलक्षणशास्त्रनिर्माता ३० बुद्धदास बउलमती बब्बरी राज्ञी लिपिः बुद्धिल बुन्ह बल राजा बलदेवः, १८३-१८७, कृष्णभ्राता १९०, १९३, १९४, १९९, २००, २०३-२०५ " १८०, १८३, १९७, २००-२०२, २०८, १८ भइरवायरिय मान्त्रिकः ११८-१२० भद बलदेवः ११७, १२८ भद्दसाल वनम् भदिलपुर नगरम् ९२, १९४, १९५ भरह क्षेत्रम् १, ५, ३०, ३४, ३५, ३५,४०, ४३,४४, ५५, ५६, ६२,६६,६५, बलदेव Page #426 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमं परिशिष्टम् । ३४३ नाम किम् ? पत्रम् नाम किम् ! महाविदेह क्षेत्रम् महावीर तीर्थकरः महावीरिय राजा महासीह (सिव) , महासुक देवलोकः ९३, ९५, ९९, देशः 20. भरह मइसागर अमात्यपुत्रः १२१. १२२ ममहा देशः १४७, १८७-१८९, २३३ मगहापुर नगरम् २३२ मघव चक्रवर्ती मंज्झदेस ३१७ मज्झिम सन्निवेशः मणियंग कल्पवृक्षः मणिरह राजपुत्रः मणोरम उद्यानम् २१२, मणोरमा राज्ञी १४९ मत्तंग कल्पवृक्षः मदनिका दासी २६, २७ राजपुत्री राज्ञी च १८२, २०५ मयणमंजुया विद्याधरपत्नी १५९ मयंगतीर २१५ मयंगतीरा नदी २१२ मरुदेव कुलकरः १० मरुदेवा कुलकरपत्नी ३४, ३५, ३५, ४१, ४२ मरुदेवी कुलकरपत्नी १०, ३४, नदी ६८ मद्दी माम किम् ? पत्रम् ६९, ७२.७४, ८७, ९१, ९४, १०३, ११४, ११६, ११७, १२९, १३०, १३, १४२, १४७, १६०, १६७, १६८, १७४, १७६, १७८,१७९, १८७,२०६३ २३४, २४३ भरह चक्रवर्ती ४, ३८-४१, ४३, ४४, ४७-५०, ६३, ९७, ३२३ भरह नाट्यशास्त्रनिर्माता ३८ राजपुत्रः, रामभ्राता १७५ भरहखंड क्षेत्रम् १३१ भरुयच्छ नगरम् १७२ भवणरुक्ख कल्पवृक्षः भागवय प्रत्रजितलिङ्गम् भागवय दर्शनम् भागीरह राजपुत्रः ७०-७१ भागीरही नदी भाणु राजा १३३ भाणुवेग विद्याधरपुत्रः भारद्दाम ब्राह्मण: गणधरः भारह क्षेत्रम् १, ५१, ५५, ६२, ८३,८६, ८८, ९१-९३, ९५, १०४, १०५, ११५, ११७, १२९, १३१, १३३, १३४, १३८, १४९, १५२, १६४,१६८, १६९, १७२, १७४, १७५, १७७-१८०, २१०,२१२, २४५, २५७, २७०, २७१ भिंग कल्पवृक्षः भीम+सेण राजपुत्रः १८२ भूय ८४ भूयदिण्ण मातङ्गः २१५ भुयलिवी लिपिः भोगभूमि देशः भोगमालिणी दिक्कुमारी भोगवई भोगकरा राजा १८४.-१८९ महासेण राजा महिला नगरी १६५, १६९, १७७ मिहिला । महिहर राजपुत्रः महिंदसीह राजपुत्रः १३८-१४०,१४२ महु प्रतिवासुदेवः १३१, १३२ महुणिहाइ कृष्णवासुदेवः १९०, १९१ महुमई २१४ महुमहण कृष्णवासुदेवः १८३, १९१ महुमासच्छण उत्सवः २६४ महुयरिगीय नाटयप्रकारः २११, २४३ महुरा+उरी नगरी १८३, १८९ महेसर १६२ महोरंग देवः ८४ मंगला राज्ञी मंगलावई क्षेत्रम् मंदर पर्वतः ३६, १६९, २७१ मंदाइणी नदी २७८ मंदाइणीकच्छ बनम् मंदिर नगरम् मागह ४३, ४४ माणदेव भ्रमणः, ग्रन्थकारप्रशस्ती श्रेष्ठी १४२ १४८ ३०२ मरुभूइ-ति पुरोहितपुत्रः २४५, २४६, २९७ २४९ मल्लदेव अमात्यः, लेखक- ३३५ तीर्थम् प्रशस्ती वनम् पर्वतः विद्या १८८ देव मल्लि+सामि तीर्थकरः १६९-१७२ महप्पद विमानम् २५६ महसेण महाकच्छ राजपुत्रः महाकाल निधिः ४४, २१० महाजस राजा महातमप्पहा | नरकः ५१, २४३, २९९ महातमा महापउम निधिः ४४, २१० चक्रवर्ती १७४ महापीढ राजपुत्रः श्रमणश्च ३२, ३४, ३८ महाबल राजपुत्रो राजा च १६ १६९ महामति श्रमण: १४८ माणव निधिः ४४, २१० माणिभद्द __वणिक् ११, १२, १६ माणुसोत्तर मायंगी मालवंत पर्वतः माहणकुंड ग्रामः २७० माहव कृष्णवासुदेवः माहिद देवलोकः ८४, ९७, २०५ मिगावई राज्ञी मित्तवम्म क्षत्रियः १७ मियावई-ती राज्ञी श्रमणी च ३०३, २०२ १८१ मिरिह राजपुत्रः परिव्राजकव भोय Page #427 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४४ चउप्पन्नमहापुरिसरियं । नाम म? पत्रम नाम किम् ! पत्रम् नाम किम् ! पत्रम् १८ १७ लक्ष्मीधर लच्छिमती लच्छी ललियंगय लवणसमुद्द लंका लंत लीलादेवी राजपुत्रः १८, २६, २७ राज्ञो २५१ ३०. २८.३०, २५४ समुद्रः नगरी १७५ देवलोकः ८४ वणिक्पत्नी, लेखक- ३३५ प्रशस्ती राजपुत्री १०८, १०९. लिपिः नगरम् लीलावती लोयपयासा लोहग्गल मिरियी मिरीइ २७० मिरीची मिरीयी महिला | नगरी १६५, १६९, मिहिला मुट्टिय मलः १८३, १८९ मुणिचंद श्रमणः ११७ २०५ मुणिसुव्वअन्य तीर्थकरः १७२-१७७ मुद्धभट्ट ब्राह्मणः मूला प्रेष्ठिपत्नी २८९, २९. मूलाग सन्निवेशः मेरक प्रतिवासुदेवः १२७, १२८ पर्वतः ५१, ७२, २८८ राजा मेहकुमार देवः ४३, ७३, २६२ राजपुत्रो श्रमणश्च ३०८-- ३१५ मेहणाय देवः १२० मेहणिणाय राक्षसवंशीयः १७५ मेहमालि देवः २६२, २६६ मेहमालिणी दिक्कुमारी मेहरह राजपुत्रः १४९ मेहवई दिक्कुमारी मेहंकरा मेरु मेह रयणागर १५४ वैद्यः ३१ रहणेउरचकवालपुर नगरम् राजशेखरः राजा राजीमती राजपुत्री राम बलदेवः, कृष्णभ्राता १८५, १८८, २००, २०४ राम+भद्द बलदेवः, दशरथपुत्रः १७५, १७६ रामा राज्ञी 'रायगिह नगरम् ४, ९५, ९८, १६८, १७२, १७८, २३३, २८०, ३०४, ३०५, ३०७ रायमई-ती राजपुत्री १९२, १९३, २०५, २०६ रावण प्रतिवासुदेवः १७५ रामण दससिर राष्ट्रकूट कुलम् २२ देवः रिठणेमि तीर्थकरः २०२, २०७, २०९, २५७ रिट्ठावती नगरी रिट्ठासुर देवः १८३, १८९ रिछ । पिडिसत्तु] राजा पयावह राजा शिवमन्दिरम् रुप्पा रेणुया राजपुत्री तापसपत्नी च २९६ १५९ वइरजंघ राजपुत्रो राजा च ३० वइरणाभ-ह राजपुत्रश्चक्रवती ३२१, श्रमणश्च ३२-३४, ४१ वइरदत्त राजा दइरसेण राजा तीर्थकरश्च ३२, २३ बक्खार पर्वतः वग्ध पल्लीपतिः ६०, ६१ वच्छमित्ता दिकुमारी वच्छा परित्राजिका २३० । वजणाह | राजा मुनिश्च २५१-२५४ बजाहिव । बज्वदेव देवः वज्जवीरिअ राजा २५१ वज्जवेग विद्याधरः १५९ वज्जाउह इन्द्रः राजपुत्रो राजा च १४८, १४९ बणकिसलइया राजपुत्रीसखी २२५, २२६ वही वरमाण तीर्थकरः १, १९. १००, १०३, २१, २७२, २८१, २९२, ३०४ प्रामः २८१ वद्धमाणसामि तीर्थकरः २७८, २८२, २८३,२८८,२९४,२९७, २९९,३०५,३०८,३१३, ३२८, ३३१, ३३२, ३२५ बप्पा राशी बप्पिण नगरम् ३१२ बम्मा+एवी राज्ञी २५७, २५८,२६. बरदाम तीर्थम् देवः रुद रुद्दाययण उद्यानम् रहवल्लाह विद्याधरः रक्खस रक्खसी विद्या रतकबल मेरुशिला रमणिज्ज क्षेत्रम् १४८ रयणणाहिपुर नगरम् १३३ रयणपुर नगरम् ११३, १४७, १६२ स्यणप्पभा-हा नरकः ५, ५१, ११४ रयणप्पहा विद्याधरपुत्री १५९, १६० रयणमाला राशी १४८ रयणवई-ती श्रेष्ठिपुत्री २३०, २१२, २३३, २३५, २३९ रयणसंचयपुरी नगरी १४८ रयणसंचया श्रेष्ठिपत्नी रयणसेहर राजा ११३. १९१ रेवय रोहिणी रोहिणेय उद्यानम् राज्ञी १८३,१९५,१९९ बलदेवः, कृष्णभ्राता २०२ २३२ लक्षण वासुदेवः १७५, १७६ लक्खणसत्य-1 सामुद्रिकशास्त्रम् २७९ पंनिया लक्खणा राशी ४ Page #428 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमं परिशिष्टम् । ३१५ नाम किम् ? पत्रम १०५ - २०५ विचित्तवीरिअ राजपुत्रो राजा च १८२ विचित्ता दिक्कुमारी विजय . विमानम् ५१, ७५ श्रमणः बलदेवः १०५ राजा विजयवती राज्ञी विजयसेण राजा भ्रमण: १४४ १७७ " नाम किम् ? पत्रम् वरघणु अमात्यपुत्रः २१२, २१९ २२२, २२६-२३०, २३२, २३३,२३७, २३८,२४०, २४१ वरयत्त गणधरः वरंगा नदी वरुण देवः वरुणवम्म क्षत्रियः बरुगा पुरोहितपुत्रवधुः २४५ वलाहय वश्राम कागदीयप्रतिलेखकः ३३५ वसंतउर-पुर नगरम् १०, ११, १६, २२६, ३१७ वसंततिलया राजपुत्रीसखी १०८-११० वसु राजा १०४ वसुदेव राजा १८२-१८५, १९५, १९७-२०० वसुभाग परिव्राजक: २२८ वसुमई-ती राजपुत्री २८९-२९२ वसुमती राज्ञी १०५ ११३ पर्वतः विजया राज्ञी २५२ विजियारि राजा विज्जाहरपत्र छेद्यकलाशास्त्रनिर्माता ३२६ नाम किम् ? पत्रम् विस्सभूइ-ति राजपुत्रः ९८, १९ पुरोहितः २४५ विहाण द्यूतशास्त्रनिर्माता ३८ विझाडई अटवी २०५, ३०९ वीयसोया नगरी वीर+य पल्लीपतिः ६१, ६२ वीर+ग, य सामन्तः१८०,१८१,१८२ वीर तीर्थकरः २८३, २८५, २९७, ३०३, ३३३ राजा वीरणाह तीर्थकरः २८४ वीरवद्धमाणसामि वीरभद्द श्रेष्टिपुत्रः १५४-१५९, १६१, १६२ वीरमई नारीस्वानः श्रेष्ठिपुत्रः १५५ वीससेण राजा १३८, १४०, १४९ वेगवती विद्याधरपत्नी १५९ वेजयंत विमानम् ७९, ८८, ९१, १३३, १६९ वेत्तमती २१४ वेयड्ढ़ पर्वतः १६, ४०, १४०, १४२, १४६, १४८, १५९, १६०, २०५, २३४, २५० वेयड्ढगिरिकुमार वेयालिणी विद्या वेसमण सार्थवाहः यक्षः विज्जुकुमार विज्जुगति विज्जुदाढ विज्जुप्पभ विज्जुसिहा विढ विणमि देवः । विद्याधरराजा विद्याधरः पर्वतः विद्याधरराज्ञी २३४ तपस्वी . २८१ राजपुत्रो विद्याधरराजा च नदी १६८ २४५ ८ देवः . १४६ शीलाइ प्रस्तुतग्रन्थकारः . वसुंधरा पुरोहितपुत्रवधुः वसुंधरी राज्ञी १४८ बाउकुमार देवः ७३, ८८ बाउभूइ गणधरः ३०२ वाणरविज्जा विद्या १७५ वाणारसी नगरी ८६, १७४, १७९, २४०, २५७, २५८ वाधुवल अमात्यः, लेखकप्रशस्ती ३३५ वाराणसी नगरी २१५ वारिसेणा दिकुमारी वारण अत्रम् १८९ वालि वानरवंशीयः १७५ वालुयप्पभा नरकः बासिठ गोत्र - गणधरश्च ३०३ वासुदेव कृष्णवासुदेवः १८३, १८४, १८९-१९१, १९७, १९८ बासुपुज्ज तीर्थकरः १०४, ११५ विउळमति श्रमणः विठलवाहण राजा क्उिला श्रमणी विचित्त भ्रमण: Jain Education Intern al विणयणंदण श्रमणः विणयवई राजपुत्री विणयवई-ती श्रेष्ठिपुत्री १५४, १५६ विणीयणयरी| नगरी ३८, १, ४४, विणीया ४६, ४८, ५१ विण्ड राजा विदुर राजपुत्रः १८२ विदेह क्षेत्रम् विबुधानन्द नाटकम् विमल तीर्थकरः ११५,११७,१२९ विमलमइ अमात्यः १६, २८ विमलमति प्रस्तुतग्रन्धकारः विमलवाहण कुलकरः वियत्त गणधरः विसाल परिव्राजकः विसाहदि राजपुत्रः विसाहभूइ युवराजः विसाहा विद्याधरपुत्री २२५ विसाहिल परिव्राजकः विस्सणंदि राजा . ३०३ स सइवायरिय परिव्राजकः ११२, १२० सक सक्करप्पभा नरक: सच्च पुरोहितः २१५, २१६ सच्चभामा ब्राह्मणपत्नी १४७ सच्चवीरिय राजा सच्चा इन्द्राणी सचा राज्ञी १९१, १९२ सच्चभामा । MMM. Page #429 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाम किम् ! पत्रम् संब देवः r . चउप्पन्नमहापुरिसचरियं । नाम किम् ? पत्रम् संखउर नगरम् ९६, ९९, ११७, १२४, १५४ संगमअ-य देवः १, २८३, २८५, २८६, २८८, २८९,२९३ संडिल्लायण ब्राह्मणः २१४ संतणु राजा १८२ संति+सामि तीर्थकरः १३७, १४६, १५०.-१५२ राजपुत्रः- १८४, २०२ संबल संभव तीर्थकरः ७२, ७३, ७५ संभू मातापुत्रः श्रमणश्च २१५, २१६ संवर राजा साए नगरम् सागरचंद श्रेष्टिपुत्रः सायरचंद सागरदत्त श्रेष्ठी १६१, १६२ सागरदत्त श्रेष्ठिपुत्रः २२९-२३२ सायरदत्त सागरदत्त सार्थवाहः २४८, २४९ सामा राज्ञी ११५ सायर राजा १८२ सायरदत्त सार्थवाहः ३१ श्रेष्ठी सारस्सय सालवाहणस्थाणि राजसभा १३८ सालिगाम ग्रामः ५३ सालिभह अश्वशास्त्रनिर्माता ३. सावत्थी नगरी ७२, १३७,३०४ सिणवल्लिय प्रामः १४६ सिद्धत्थ वनम् राजा बलदेव- २०४, २०८ सारथिदेवः वर्द्धमानस्वामिमा- २७५, तृस्वसातनयदेवः २८०, नाम किम्? पत्रम् सिद्धादेश सांवत्सरिकः १८ सिद्धायरिय श्रमणः २८, ३२ सिरी राज्ञी १५२ सिरिकता कुलकरपत्नी राजपुत्री राज्ञी च ३० राजपुत्री २२५, २२६ सिरिगुत्त राजा १०६, १०८ सिरिद्दह प्रामः २१४ सिरिपन्वय पर्वतः सिरिप्पह विमानम् सिरिमती २२६ सार्थवाहपुत्री २३९ सिरिविजय राजा १४६-१४८ सिरिसेण १४७ २०६ सिलावती क्षेत्रम् सिव राजा १३४ ३३१ सिवमंदिर नगरम् २३४ सिवा+देवी राज्ञी १८३, १९३, २०७ सिहिणंदिया राज्ञी १४७ सिंघपुरी नगरी सिंघलंदीव द्वीपः १५४, १५९-१६१ सिंधुणिक्खुड प्रदेशः सिंधुदत्ता देवीकन्या सिंधुदेवी देवी सीओया नदी सीयल तीर्थकरः ९२, ९३, १८० सीया नदी १६, ३०, १४८, सद्वितंत प्रन्थः सर्णकुमार देवलोकः ८४, ९५, १३७, १४५ चकवर्ती १३८-१४२, १४४ २१५, २१६ समामत्ता लिपिः सत्तुग्ध राजपुत्रः सत्तुंजय पर्वतः २०७ समरकेसरी राजपुत्रः ११२ समर सीह राजा १११, ११२ समुद्द पुरुषलक्षणशास्त्रनिर्माता ३८ समुद्दविजअन्य राजा १८२-१८९, १९३ सम्मेय पर्वतः ५४, ७४, ७५, सम्मेयगिरि | ८२, ८५, ८७, ९०-९२, सम्मेयसेल | ९४, ११६, १३०, १३३, १४९, १५२, १६३, १७१, १४३, १७७, २४८,२६९ सयधणु सयबल सयर चक्रवर्ती ५५, ६३-६५, ७०, ७१ सयंचम श्रमण: संयंपभा देवी २८, ३०, ३१ सयंभू वासुदेवः १२७, १२८ सयाणिय राजा २८९, २९१,२९२ सरस्सई-ती नदी १८६, १८७ सवर इन्द्रजालशास्त्रनिर्माता ३८ सव्वजसा राज्ञी १२९ सव्वट्ठसिद्ध विमानम् ३४, ८९ सवरयण निधिः ४४, २१० सवाण(णु)भूइ श्रमणः सहदेव राजपुत्रः १८२, १८८ सहदेवी राज्ञी १३८ सहसंब वनम् ५१, ७३, ७५ सहस्सक्ख राजपुत्रः सहस्सबाहु सहस्संसु " ५५, ५६,६३ सहस्साउह १४८, १४९ सहस्सार देवलोकः ८४, ११५, १२९, २५० निधिः ४४,२१० श्रेष्ठी १५४, १५६, १५७ ६२० राजा ४० २७० " राज्ञी रामपत्नी १७५, १७६ सीराउह बलदेवः, कृष्णभ्राता २०४, २०० सीलवई श्रेष्ठिपत्मी ३१ क्षत्रियपत्नी ५७-५९,६२ सीलंक | प्रस्तुतग्रन्थकारः सोलायरिय २६९, ३३५ सीह पल्लीपतिः ५५, ५८, ५९ सीहपुर नगरम् २०५ सीहरह राजा १८२ सोहराय २४१ सोहसेण १२९ २८१ सिद्धत्था सिद्धभट्ट सिद्धयत्त सिद्धवड राज्ञी ब्राह्मणः वणिक २९० वृक्षः गोत्रम् . Page #430 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमं परिशिष्टम् । नाम किम् ? पत्रम् नान किम् । पत्रम् ___ नाम किम् ? पत्रम् २५३ सेणिय सुकच्छ सुकंटय सुक्क २३२ . सुगंधि क्षेत्रम् चौराधिपः देवलोकः क्षेत्रम् वानरवंशीयः वानरराजा राज्ञी २५१ सुग्गीव सेयकूड सेयवड सेयविया सेयंवर सेयंस सोम सोमणस सुजसा सुजप्पह सुट्टिय १३४ २५० विमानम् राजा ३०४, ३०७,३०८, ३१५, ३१६, ३२० पर्वतः प्रवजितलिङ्गम् १७३ नगरी प्रवजितलिङ्गम् तीर्थकरः १८० राजा १३१ पर्वतः ३६ राजा ब्राह्मणपत्नी राजा १८२ नगरम् ११७, १८२ देवलोकः ५, १६, ३०, ३४, ३५, ४०, ४१, ७२, ७३, ७९, ८३, राजा वनम् १० सोमप्पभ १८२ सुगंदा सोमा यक्षः ४३ श्रमणः राज्ञी २१६, २१७ अमात्यः ३१ अमात्यपत्नी राज्ञा १४६, १४७ बलदेवः १३४, १३६ राजा १५३ सोरिय सोरियपुर सोहम्म सुणासीर सुणासीरा सुतारा सुदंसण देश सुदसणा राज्ञी १४४, १४७,२०५,२११, २१६, २५९,२८३, २९२ सोहम्मवडेंसय विमानम् ३५, १४२ स्तम्भतीर्थ नगरम् , लेखकप्रशस्तौ ३३५ २५४ सर्पः | राजा २७८, २७९ ८६ सुदाढ सुपइट सुपइट्ठिय सुपास सुप्पणहा सुप्पभ-ह सुबाहु राज्ञी १७५ राजा १८० राजसेवकः सुमेह दिक्कुमारी सुयदेवया देवी सुयसागर श्रमणः २५० सुरगुरु २५० सुरसरिया नदी ३११ सुरिददत्त १०६ सुरूवा कुलकरपत्नी सुलक्खणा ब्राह्मणपत्नी वणिक्पत्नी ७६ सुलसा , १८३, १९४ सुवच्छा दिक्कुमारी सुवष्णकुणार देवः सुवण्णजंघ राजा सुवण्णभूमि देशः सुवण्णवालिया नदी २७४ सुदेग ४४ सुव्वय तीर्थकरः सुव्चया श्रमणी १११ राजी १३३ श्रमणी १५९ सुसीमा सुसेण सेनापतिः ४२, ४३ सुसेल १७५ सुहम्म गणधरः सोहम्म । सुहंकरा नगरी २५१ सुहावह पर्वतः १६९ सुहुमवालिया नदी २९९ राजपुत्री श्रमणी च ३८, ४४, ४० सुर राजा १३८ १५२ विद्याधरराजा सूरपण्यत्ति जैनागमः सूरसेण देशः सेज्जस ___४१ तीर्थकरः ९३, ९५, १०३, १०४ सेणा राज्ञी शकुनशास्त्रनिर्माता ३८ राज्ञी पर्वतः तीर्थकरः ८६, ८८ राक्षसवंशीया नारी १७५ बलदेवः १३१, १३२ राजपुत्रो मुनिश्च ३२, ३४, ३८ अमात्यः २८ अमात्यपुत्रः अमात्यः सुबुद्धि . " २४० सुंदरी हणुयंत वानरवंशीयः हत्थिणाउर नगरम् १३८, १४९, १५२, १५३, १६५, १८९, २०६, २१५, २१६ हरगण नटः १६ हरि कृष्णवासुदेवः १८३, १८४ हरिणाणण | देवः हरिणेगमेसि] ३५, १८३, १९५, २ हरिणेगवेसि २७१ हरिवरिस क्षेत्रम् १८१ हरिवंस | वंशः १८०, १८२, हरिकुल १८३, २००, २०९ हरिसेण चक्रवर्ती १७८, १७९ हलहर बलदेवः, १९१, २०२, कृष्णभ्राता २०४, २०८ हलाउह , १९७, २००, २०२-२०४, २०७ इलि " २०१, २०३ हलीस , २०४, २०४ हंसी लिपिः ३८ हारिय गो गणधरव ३०३ हिमवंत पर्वतः ७१, २०५, ३११ राजा १८२ नगरी १४८ राज्ञी २१६ १६५-१६७ चक्रवर्ती २०५ सुभगा सुभद्दा सुभूम सुभोम सुभोगा सुमइ-ति सुमंगला सुमित्त दिक्कुमारी तीर्थकरः ७९, ८२, ८३ राज्ञी १०, ३७, ३८ २८१ " १७२ वन्या नारी ५८, ५९, सुमित्ता सेणावद Page #431 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयं परिशिष्टम् 'चउप्पन्नमहापुरिसचरिय'अन्तर्गतानां विशेषनाम्नां विभागशोऽनुक्रमणिका । परिशष्टेऽस्मिन् विशेषनाम्नां ये विभागाः परिकल्पितास्तेऽधस्तादुल्लिख्यन्त इति तत्तद्विभागदिक्षुभिस्तत्तदकाङ्कितो विभागोऽबलाकनीयः ।। १ अमात्यास्तत्प- १४ प्रन्थकाररिवारश्च -शास्त्रकाराः २ अवतारौ १५ चक्रवर्तिनः ३ उत्सवा: १६ चैत्य-मन्दिर४ कल्पवृक्षाः -गृहाणि ५ कुलकरास्त- १७ चौराधिपस्परिवारश्च -पल्लीपतयः ६ कृष्णवासुदेव- १८ छन्दोनाम नामानि १९ जैनागमाः ७ क्रीडानाम - २० तीर्थकराः ८ क्षत्रियाः क्षत्रिय- २१ तीर्थाणि पत्नी च २२ दर्शने ९ क्षेत्राणि २३ दास-दासी-चेटी१. गणधराः सखी-दूताः ११ गणिका २५ दिक्कुमार्यः १२ गुहे २५ दिव्यास्त्रे १३ प्रन्थ-शास्त्राणि २६ द्वोपाः २७ देव-देवीन्द्र- ३९ पर्वताः ५२ राजगृहपाटकः ६५ विद्याधर-विद्यान्द्राण्यः ४० पल्ली. ५३ राजसभा धरराजानस्तेषां२८ देवलोकाः ४१ पुरोहितास्तत्परि- ५४ राजा-युवराजाः परिवारब २९ देश-प्रदशाः वारश्च तेषां परिवारब ६६ विमानानि ३० नगर-नगरी-ग्राम- ४२ प्रतिवासुदेवाः ५५ लिप्यः ६७ वृक्षनाम सन्निवेशाः ४३ प्रवजितलिले ५६ लेखको ६८ वैद्यौ ३१ नटः ४४ बलदेव(कृष्ण- ५७ वणिक्-प्रेष्ठि ६९ श्रमण-श्रमण्यौ ३२ नदी-द्रह-समुद्राः भ्राता)नामानि गृहपतयस्तेषां ७० सः परिवारश्च ४५ बलदेवाः ३३ नरकाः ५८ वनचरः १६ ब्राह्मणास्तत्परि ७१ सामुद्रिक३४ नाटकम् वारश्च ५९ वनोद्यानोपवना सांवत्सरिको ३५ नाटयप्रकार: ४७ माली ऽटव्यः ३६ निधयः ७२ सारथी ३७ पक्षिनाम १८ मातङ्गस्तत्परिवा-६० वन्या नारी ७३ सार्थवाहास्त ६१ वंश-जाति-कुल३८ परिव्राजक-प्ररि ... परिवारश्च ४९ मेरुशिलानामानि श्रमणकुल-गोत्राणि व्राजिका-पासण्डा-ऽऽजीवकर्षि- ५० यक्षाः ___७४ सेनापति-सामन्ताः ६२ वानरवंशीयाः तापस-तापसपुत्र- ५१ राक्षसवंशीयनर ६३ वासुदेवाः सामन्तपत्नी च तापसपत्न्यः नाये: ६४ विद्याः ७५ सौकरिकः सुबुद्धि १ अमात्यास्तत्परिवारश्च विमलमइ सुणासीर सुणासीरा अभयकुमार गंदा णागदेव सुबुद्धि मल्लदेव वरधणु वाधुवल पसाचंद मइसागर २ अवतारी णारसिंह बुद्ध इंदूसव ३ उत्सवाः कोमुई कोमुईछण महुमासच्छण - ४ कल्पवृक्षाः मणियंग आइण्ण चित्तरस चित्तंगय जोइस तुडियंग दीवयसिह भवणक्ख भिग मत्तंग Page #432 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयं परिवाछन् । द्वितीयं परिशिष्टम् । . ५ कुलकरास्तत्परिवारश्च णाभि णाहि पडिरूवा अभिचंद चक्खुकता चक्खुमं चंदकंता चंदजसा जसस्सी पसेणइ मरुदेव मरुदेवा मरुदेवी विमलवाहण सिरिकता सुरूवा ६ कृष्णवासुदेवनामानि हरि केसव गोविंद चक्काउह जणद्दण णारायण दामोयर महुणिहाइ महुमहण माहव वासुदेव .७ क्रीडानाम ८ क्षत्रियाः क्षत्रियपत्नी च आमलखेड जमाली मित्तवम्म वरुणवम्म सीलवई ९ क्षेत्राणि अवरभरह अवरविदेह उत्तरकुरा एरवय गंधिलाई देवकुरा पुक्खलावई पुष्वविदेह भरह भरहखंड भारह मंगलावई रमणिज्ज सिलावती सुकच्छ सुगंधि हरिवरिस ___१० गणधराः अग्गिभूइ इंदभूइ उसभसेण हारिय १० गणधराः गोयम भारद्दा गोयमसामि । वरयत्त जयहर वाउभूह कासव कोडिण्ण कोसिय वासिट्ठ सुहम्म सुहम्मसामि सोहम्म ११ गणिका १३ ग्रन्थ-शास्त्राणि तिलोयसुंदरी १२ गुहे खंडप्पवाया तिमिसगुहा सङ्गीतशास्त्र तरंगमइया पउमचरिय पढमाणुओग लक्खणसत्थपंजिया सद्वितंत अंगिरस कच्चायण गइंद चित्तरह समुद्द १४ प्रन्थकार-शास्त्रकाराः शीलाक भरह विमलमति सवर -विहाण सालिभद णग्गह णल धष्णंतरि पालित्तय सोलंक सिलायरिय सेणावह Page #433 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ___ १५० ३५० चउप्पन्नमहापुरिसचरियं । उप-महाऽरिसचरि । १५ चक्रवर्तिनः मर कणयरह कणयाह जय बंभयत्त भरह मघव महापउम सर्णकुमार सयर संति सुभूम । सुभोम | हरिसेण १६ चैत्य-मन्दिर-गृहाणि १७ चौराधिप-पल्लीपतयः १८ छन्दोनाम दुवह अरहतासणय गुणसिलय सीह पोलास रुदाययण कंटय वग्ध वीरय । १९ जैनागमाः उत्तरज्झयण जंबुद्दीव[पण्णत्ती] णायधम्मकहा दिट्ठिवाय सुरपण्णत्ति संति+सामि उसह कुंथु खेमकर संभव अजिअ अणंतह भभिणंदण अयलसामि भर अरिटुणेमि २० तीर्थकराः णमि पास+यंद, सामि णामेयसामि पुष्पदंत णेमि+णाह मल्लि मल्लिसामि नेमिनाथ महावीर पउमप्पभ मुणिसुव्वअ-य रिट्ठणेमि वहरसेण बदमाण+सामि वासुपुज्ज विमल वीर+णाह वीरवदमाणसामि धम्म सीयल सुपास सुव्वय सेज्जंस सेयंस चंदप्पभ-ह जुयाइजिण २१ तीर्थाणि २२ दर्शने बहस्सतिमत भागवय पहास मागह वरदाम २३ दास-दासी-चेटी-सखी-दूताः वसंततिलया कविला चउरिआ चतुरिका चंदलेहा जसमती पियंगुलया मदनिका सुमुह सुवेग २४ दिक्कुमार्यः सुवच्छा भणिदिया तोयधारा पुष्पमाला बलाहगा भोगमालिणी भोगवई भोगकरा मेहमालिणी मेहबई मेहंकरा वच्छमित्ता बारिसेणा विचित्ता सुभोगा सुमेहा Page #434 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयं परिशिष्टम् । २५ दिव्याने २६ द्वीपाः भागेय वारुण जंबुद्दीव गंदीसर धायइसंड पुक्खरदीव । पुक्खरद्ध पुक्खरवरदीवा सिंघलदीव २७ देव-देवीन्द्रेन्द्राण्यः पिसाय पूयणा भूय अग्गिकुमार अव्वाबाह असियक्त असुरकुमार आइच्च ईसाण उवाहिकुमार कवल किण्णर विपुरिस केटव गद्दतोय गह गंगदत्ता गंधव्व चमर चमरासुर । चंद चुल्लहिमवंतगिरिकुमार जक्ख णक्खत्त णागकुमार तुसिय थणियकुमार दद्दुरक दियवर दिसाकुमार दीवकुमार महोरग मेहकुमार मेहणाय मेहमालि रक्खस वज्जदेव वही वरुण वाउकुमार विज्जुकुमार वेयड्ढगिरिकुमार वेसमण संबल सारस्सय सिंधुदत्ता सिंधुदेवी सुयदेवया सुवष्णकुमार हरिणाणण हरिणेगमेसि हरिणेगवेसि दुग्गा सक सच्चा घणय धरणराइ धरणाहिब । धरणिद रिट्ठासुर ललियंगय जलण जलणप्पद सयंपभा संगम संगमय केसि २८ देवलोकाः अच्चुय अणुत्तरोववाइय आणय आरण ईसाण गेवेज्ज गेवेज्जय लंत सहस्सार बंभलो। बंभलोय महासुक्क माहिद सुक्क पाणय सोहम्म २९ देश-प्रदेशाः कासिगाविसय अडवइल अवंति सिंधुणिक्खुद्ध सुदंसण कासी इक्खागभू इक्खागभूमि उत्तरसिंधुणिक्खुद उत्तरावह कलिंग कासभूमि गंगाणिक्खुड गंधार जोणगविसय दढभूमि दंडाज्य(व्य)पथक बहली भोगभूमि मगहा मज्झदेस कुसट्ट कोसल कोसंबी अंघ सुवष्णभूमि सूरसेण आणट्ट दसण्ण Page #435 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५२ चउप्पन्नमहापुरिस परियं । ३० नगर-नगरी-ग्राम-सन्निवेशाः चेय भउज्झा | भोज्झ । अचलग्गाम अणहिलपाटक भवराजिया आणंदपुर आसमद्द ए(व)यगाम कच्छ कणयखल कम्मारगाम कंचणपुर कंपिल्ल कंपिल्लपुर कायंदी कुणाला कुसुमपुर कुंडग्गाम कुंडपुर कोट्ठग कोल्लाग कासंबी खितिपइट्ठिय। खिप्पइट्ठिय खेमपुरी गयउर गयपुर । गंधसमिद्ध चमरवंचा चंदउर चंदउरी चंपा जंभिय गंदिग्गाम तक्खसिला तामलित्ती तिलया तीर(खत्तिय)णयर दक्खिणमहुरा दसण्णउर धवलक्कक पालउद्रग्राम पावा पुरिमताल पुडरिगिणि पोइणीखेड पोमिणीखेड पोयण पोयणपुर बहुल बारवई । बारवती। भद्दिलपुर भरुयच्छ मगहापुर मज्झिम महिला मिहिला महुरा महुराउरी मंदिर माहणकुंड मूलाग रहणेउरचक्कवालपुर रायगिह रयणणाहिपुर रयणपुर रयणसंचयपुरी रिठावती लंका लोहगल वल्माण बप्पिण वीयसोया संखउर साएअ सालिग्गाम सावत्थी सिणवल्लिय सिरिद्दह सिवमंदिर सिंघपुरी सीहपुर सुभगा सुहंकरा सेयविया सोरियपुर स्तम्भतीर्थ हत्थिणाउर वसंतउर। बसंतपुर । वाणारसी| वाराणसी विणीयणयरी विणीया ३१ नटः हरगणः ३२ नदी-द्रह-समुद्राः ३३ नरकाः उम्मुग्गा गंगा जउणा मयंगतीर मयंगतीरा मंदाइणी लवणसमुह वरंगा वेत्तमती सरस्सई सरस्सती सीओया सीया सुरसरिया सुवण्णवालिया सुहुमवालिया अपइट्ठाण तमप्पहा धूमप्पभा धूमा पंकप्पभा । पंकप्पहा । महातमप्पहा। महातमा रयणप्पभा रयणप्पहा वालुयपहा दसण्णा भागीरही सकरप्पभा ३४ नाटकम् ३५ नाट्यप्रकारः ३६ निधयः ३७ पक्षिनाम विबुधानन्द महुयरिगीय जडाउ काल णिसप्प पंडुअ पिंगल महाकाल महापउम माणव सव्वरयण Page #436 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयं परिशिष्टम् । ३५३ वच्छा भग्गिा । जमयग्गि भच्छंदम ३८ परिव्राजक-परिव्राजिका-पासण्डा-ऽऽजीवकर्षि-तापस-तापसपुत्र-तापसपल्यः गोसाल जमयरिंग मिरिइ गोसालय । मिरियी बीवायण मिरी गोसाल परसुराम मिरीची चंडकोसिभ पारासर मिरीयी। जम भइरवायरिय रेणुया वसुभाग विसाल विसाहिल सइवायरिय कमढ कविल णिसह तुंगिय सम्मेय सम्मेयगिरि सम्मेयसेल ३९ पर्वताः मेरु बक्खार वलाहय विज्जुप्पम सेयकूड सोमणस भट्टाक्य अंबरतिलय उज्जयंत उबेत उसभड उसहकूड दसण्णय कणयगिरि कालिंजर खीर गंधमायण चुल्लहिमवंत जलणगिरि मंदर सिरिपव्वयं हिमवंत । वेयड्ढ माणुसोत्तर मालवंत सतुंजय सुसेल सुहावह ४० पल्ली कालजिन्भा अणुंधरी कमढ ४१ पुरोहितास्तत्परिवारश्च मरुभूह वरुणा मरुभूति । वसुंधरा विस्सभूति ४२ प्रातवासुदेवाः ४३ प्रव्रजितलिने ४४ बलदेव(कृष्णभ्राता)नामानि हलहर • आसग्गीव तारय महु भागवय सेयंबर मेरक दमियारि णिसुंभ पल्हाभ जरासंघ । जरासंधि जरासिंधु जरासेंघ रावण हलाउह हलि रोहिणेय बलि रामण दससिर सीराउद्द हलीस ४५ बलदेवाः अपराजिय भयल भाणंद शंदिमित्त बल बलएव । राम । रामभद। विजय सुदंसण सुप्पभ सुप्पह । - - मग्गिबोम ४६ ब्राह्मणास्तत्परिवारश्च दामोयर बंधुमई । देवसम्म बंधुमती | नानजी ४७ मल्लो चाणूर मुठ्यि कविल । कविलग | कोसिय अण्णयत्त मम्गिभूइ संडिलायण सिदभट्ट सुलक्षणा सोमा उसहदत्त देवाणंदा धरणिजद भारद्दाम मुद्धमट्ट थावर Jain Education prational Page #437 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५४ चउप्पन्नमहापुरिसचरियं । ४८ मातङ्गस्तत्परिवारश्च ४९ मेरुशिलानामानि ५० यक्षाः ५१ राक्षसर्वशीयनर-नार्यः ५२ राजगृहपाटकः ५३ राजसभा अणहिया अइपंडुकंबल किरिमाल कुंभयण्ण जागलंदा सालवाहणऽस्थाणि चित्त भइरत्तकंबल खरदूसण वेसमण बिहीसण भूयदिण्ण सुठ्ठिय पंडुकंबल मेहणिणाय रत्तकंबल सुप्पणहा संभू ५४ राज-युवराजाः तेषां परिवारश्च चित्रलेखा चुलणा दसण्ण दसण्णभद्द पुरिससीह चेल्लणा अइबल अक्खोह अखोह अग्गिसिह अजायसत्तु अज्जुण जण्हु जण्हुकुमार जया कणगमई। कणगमती| कणयमती कत्तविरिय कमलसिरी कयवम्म करेणुदत्त कविल कंस कंसासुर कालिंदी कुमारपाल कुलिसबाहु कुंती कोती कुंभ मंगला मिगावई मियावई मियावती मिरिह मिरियी मिरी मिरीची मिरीयी पुहइपाल पुहई पुंडरी पूरण बउलमती बन्धुमती बल बलभद्द अणंगवई अणंगसुंदरी दसरह दहिवाहण दीह दुज्जोहण दुलहराय देवई । देवती । देवी धयरठ घर धरण धारिणी जराकुमार जरातणय जरासुय जलणवीरिय जंबई जंबवती बंधुमई बभ जाला जियसन्तु बभी " केकई पउम पउमावती अणाहिठ्यि अभयकुमार अभिणंदिया अभिचंद अमियवाहण अयल अरविंद अर्जुनदेव अवराइय असोयचंद भसोयभद्द अंबुवीरिय आइच्चजस आससेण ईसाणचंद कोसला खंडभद्द जीवजसा जुहिठिल णउल णमि णरसेण खेमकर पज्जुण्ण पज्जोय गंदा मेहकुमार मेहरह रयणमाला राजशेखर राजीमती रामा रायमई। रायमती रिखुपडिसत्तु रुप्पा रेणुया रोहिणी लक्खणा लक्ष्मीधर लच्छिमती लच्छी लीलावती वइरजंघ वइरदत्त वइरसेण লাহু बज्जावि गयसुकुमाल गंगदत्त गंगेय गंधारराइ गंधारी गुणचंद घणरह चकाउह चन्द्रापीट चंदउत्त चंदकता चंदणा चंदप्पभा चंदसीह बाहुबली भरह भागीरह भाणु भीमसेण भोय मणिरह मणोरमा मद्दी महाकच्छ महाजस महापीढ महाबल पयावई शंदिणी पयावति णंदिवद्धण पसष्णचंद णंदिसेण पसेणइ तारा तिसलादेवी पहत्थ तेयवीरिय पहावती तेलोक्कसुंदरी थिमिम थिमियसागर पिहुसेण दइच्चय पीढ दढरह पुप्फचूल पुष्फबई दढवम्म पुष्फरती उग्गसेण उदयण महावीरिय महासीह (सित्र) महासेण महिहर महिंदसीह कच्छ कडय कडयावई " वज्जवीरिअ वज्जाउह बप्पा Page #438 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयं परिशिष्टम् । सिरिकता सुग्गीव वम्मा वम्माएवी सुरिंददत्त सुजसा सुणंदा सुवण्णजंघ वसु वसुदेव वसुमई वसुमती । सिरिगुत्त सिरिमनी सिरिविजय सिरिसेण सुतारा सुदंसण सुदंसणा सुव्वया सुसीमा सुंदरी सिरी वसुंधरी विउलवाहण विचित्तवीरिअ विणयवई विण्हू विदुर विसाहणंदि विसाहभूइ विस्सणंदि विस्सभूइ विस्सभूति वीर वीससेण सच्चवीरिय सच्चा सच्चभामा सत्तुग्ध समरकेसरी समरसीह समुद्दविजअ समुद्दविजय । सयधणु सयबल सयाणिय सव्वजसा सहदेव सहदेवी सहस्सक्ख सहस्सबाहु सहस्संसु सहस्साउह संतणु संब संवर सामा सायर सिद्धत्थ सिद्धत्था सिव सुपइट सुपाठ्य सेजस विजय विजयवती विजयसेण विजया विजियारि विणमि सिवा सिवादेवी । सिहिणंदिया सीहरह सीहराय सीहसेण सुबाहु सुभद्दा सुमंगला सुमित्त सेणा सेणिय सोम सोमप्पभ सोरिय हिमवंत सुमित्ता ५५ लिप्यः ५६ लेखको आयरिसी आणंद वधाम उडी खसाणिया गंधवी जक्ती जवणी गंदीणयरा दोमिली परकम्मी पोखरी बब्बरी बभी भूयलिवी लोयपयासा संण्णामत्ता हंसी खडवियडा खरोट्ठी ५७ वणिक-श्रेष्ठि-गृहपतयस्तेषां परिवारश्च असोगदत्त असोयदत्त णिण्णामिया धण धणपवर धणय पियदसणा जय जिणधम्म जिणयास णंदण गंदा शंदिसेण णाइल णागसिरी पुरंदरदत्त पुरिसदत्त बुद्धदास बुद्धिल महेसर सागरचंद सायरचंद सागरदत्त ईसरदत्त उसहदत्त रयणवई । रयणवती । रयणसंचया लीलादेवी विणयवई विणयवती। वीरभद्द वीरमई संख केसव " गुणपुंजय गुणायर सिद्धयत्त सीलवई सुलक्षणा सुलसा पुण्णभद्द माणिभद्द मूला चंदणदास . ५८ वनचरः कुरंगय अट्ठियकाणण कायबयवण कायबयारण्ण कोसंबवण विझाडई सहसंव खीरवण णदण शंदणवण दडयारण्ण ५९ वनोद्यानोपवना-ऽटव्यः पंडग महसेण पुप्फकरंडय मंदाइणीकच्छ पेढाल रइकुलहर मणोरम रेवय सोमणस Page #439 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५६ चउप्पन्नमहापुरिसचरियं । ६० वन्या नारी सुमित्ता इक्खाग ६२ वानरवंशीयाः वालि सुग्गीव हणुयंत इक्खुवंस ६१ वंश-जाति-कुल-श्रमणकुल-गोत्राणि कोरिण्ण पल्लोवाल कोसिय राष्ट्रकूट गोयम वासिट्ट संख चिलिस हरिकुल हरिवंस । नेम्वुयकुल हारिय कासव डोह कुरुकुल कउरबकुल अर्णतविरिय ६३ वासुदेवाः दत्त दुविछ पुरिससीह पुरिसोत्तिम पुंडरी लक्षण पण्णत्ती मायंगी रक्खसी ६४ विद्याः वाणरविज्जा वेयालिणी तिविठ्ठ सयंभू अग्गिसिह अणंगमई अणं गमती अमियतेय असणिघोस असणिवेग कणयतिलया किरणवेग ६५ विद्याधर-विद्याधरराजानस्तेषां परिवारश्च चंदवेग भाणुवेग चित्तगइ मयणमंजुया जलणसिह रइवल्लह णटुम्मत्तय रयणप्पहा णमि वजवेग विसाहा वेगवती विज्जुगति विज्जुदाढ विज्जुसिहा विणमि खंडा गंधव्वर अवराइय | अवरातिय | कंतप्पह जलकंत ६६ विमानानि जंबुद्मावत्त पुप्फुत्तर गलिणीगुग्म महप्पह ददुरंक विजय पउमगुम्म वेजयंत अइमुत्त गुणायर अभिणंदण चंदणा उप्पल चित्त उसहसेण जगणंदण कटुय जंबुणाम करिसण जुगंधर किरणवेग दमवर गुणचंद धम्मघोस ७० सर्पाः ७१ सामुद्रिक-सांवत्सरिको ६७ वृक्षनाम ६८ वैद्यौ सचट्ठसिद्ध सिद्धवड जीवाणंद सिरिप्पह रस सुज्जप्पह सोहम्मवडेंसय ६९ श्रमण-श्रमण्यः माणदेव विउलमति संभू पसण्णचंद मियावई । विउला सिद्धायरिय पीढ मियावती। विजय सुठ्ठिय बंभी मुणिचंद विजयसेण सुयसागर बाहु सुरगुरु बाहुबली मेहकुमार विणयणंदण सुब्वया महापीठ वइरणाम सयपभ महामति वइरणाह । सव्वाण(णु)भूह ७२ सारथी ७३ सार्थवाहास्तत्परिवारश्च ७४ सेनापति-सामन्ताः ७५ शौकरिकः समन्तपत्नीच अभयमती काल कालसोयरिय पभावती पुण्णभद्द पहावती वेसमण सागरदत्त वीरग वीरय सिरिमती सुसेण दरी पूस भट्ठिय चंडकोसिय सुदाढ सिद्धादेश वीर Page #440 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयं परिशिष्टम् 'चउप्पन्नमहापुरिसचरिय'अन्गर्गतानां देश्य-प्राकृतशब्दानां सङ्ग्रहः पत्रांक पत्रांक पत्रांक ५७, १२४, ३२९ २६२, २६६ उयाउ उल्लाल उल्लिहड उल्लेहड उलोय उल्लोल उपक्कम ११० २६५, २८८ ३१९ ६४ १८५ उवठ्यि १३ ० - आवरिल्ल (दे०) २०८, २५६ आवल्लय , २७८ टि. आवीढ आसपास (दे०) ३३२ आसंदिया इंदग्गला २०. टि. इंदासणि ईसद्धसिय उक्किटिठ ४० टि. उक्कुइय (दे०) १२ उक्कुरुड , उच्चड १९८ उच्छरिय ३२८ उज्जलिल्ल उड उहिअ (दे०) उत्तावल, १४२ उत्तुण+त+तण (दे०) ६२, ६९, ३०३, ३१ ३२१ - २२१ अकोलउत्त २०८ अक्खणिय ११० अचासणा%Dअच्चासणया अड्डयालिय (द.) ३१९ टि. अड्डुयालिय , अणवत्तणीय १८१ अत्थक (दे०) अदाय , २४८, ३०० अद्धत , २३०, २९६, ३२३ अप्पलेव अप्पंपरी हूय १५८ अप्पुय २८८ अप्फरिय (दे०) ३१९ अप्फाल अप्फुण्ण २६५ अभिट्ट २४१ अयड , अरिसा अरुणि १८४ अलंबिओआलंबभो अलिकय अवणंत अवल्लय (दे०) अवहोवास अवीय अविन अब्बाय असाहार असाहारण २४२ अहोरण (दे०) अंगुत्थल+य (दे०) अंतल्लि २६१ अंतॉल भागी-आगिई आभास अन्भास भामेल्लिय भायल्लय (दे०) ११. ३१९ २५८ १४४ उवर ५५, १७०, ११, १८० उवह ८३, २८६, ३२० उवहित्त २६७ उवहुत्त २४८ उवाह १०६, १०९, १२२ उवासग १६१ उवाहु २७६,२७९ उविलण-उविलण १९३ उचलणिया ३१८ उन्बलिया ३१८ टि. उन्विडिम (दे०) १०८, १६७, १७०, .. २६०, २८५, ३११ उव्वुण्ण (दे०) २६३ ऊसलिय , २६० टि. एक्कल्ल-गल्ल (दे०) १९, १४४, २०२ एकल्लपुडिंगय , १२, १३९ एगट्ठीया एगट्ठिया १४७ ओअल्लि (दे०) भोच्छुहंत ओजल्लया (दे०) ३०६ भोढणय १०६ ओमालिय १८१ टि. भोयढ़ २६८ ओयल्ल (दे०) २५१ ओयल्लिय , २६९ ओरल्ली , १७२, १८८,१९२,२०३, २४२,२५९,२६८,३०१ २६. १४६ २९२ उत्थल्ल (दे.) २२६ उत्यभण १३८ उ धुल+य (दे०) १२, १२४ उपण्ण उप्पण्ण १९३ उप्पडिम २५९ उप्पंक (दे०) उप्पावावि उप्पित्थ (दे०) ६३,९६, ९८, १३२, २८५ उप्पिय ११७ उप्पील (दे०) ६३, ६४, १३४, १६५, २०८, ३१७, ३२८ उप्पेहड , ८८, १९३, २५४ उप्फेसा , उब्बोलिम, उन्भडिय उभिट्ट (दे.) २३७ उम्मच्छ " २३५ २०० १.१ १८२ ५२ १०५ १८३ २५. २०२ Page #441 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५८ चउम्पन्नमहापुरिखचरिय। पत्रांक पत्रांक पत्रांक २२२ २११ १८१ ३१८ चीरी चुडुली (दे.) चोतीस चोत्तीस छउय (दे०) छकण्णा , छहण्णकालिय छठ्ठाहकालिय छडणय (दे.) छवय छछई (दे.) ९७ टि. १०८ १६२ ३२५ टि. ३२५ १८६ . खोडी " . २६२ छिक्क " २९३ २१९. २२३, २३१ २२० २१३ २०८० . २३३ ५२, ५३ १३९ ओरालि , ४२, १३९ ओलग्गा , भोल्लिय , २०३ ओवालिय ओसरिय , १५४ ओसरी , १५४ ओसुहेल्ल (दे०) ओहरिय , २५१ कट्ठिा ३०४ कडप्प (दे०) २०० कडवडअ १८७ कडिल्ल (दे०) ८८, १३९, १२९ टि०, २०८, २८७ कडुयाल+अ (दे०) ८८, २११ टि. कडुयाविय , कणियार १५३ कतरिप्पहार १२० कत्तोच्चिय कप्फाड (दे०) ३११ कब्बड १६९ करणि (दे०) १७. करवत्त २१९, २५० करसणिय २४२ करिएवय कंठ कालेज्ज (दे०) १७० किच्चा , ३०६, ३१४ किरिण २५८ कुक्कुड (दे.) १४६, २५० कुडगी , कुद्दिअ , १८९ कुहणी , कूआखंभ १५८ कूयखंभ १५८ कूरवडअ १८७ कोइय १७५ कोलउक्त २०८ टि. कोलि कोल्हुय (दे०) कोहाड २६२ टि. कोंगी १८५, १८६, २६६ खडफडा (दे०) २१९ . २१९ टि. १२. खड्डोलय , २१४ खणखणा २९५ खब्बड १६९ टि. खल खली २१६ टि. खत्र खिप्पइट्ठिय-खिइपइष्ट्रिय खील खेट्टरी (दे०) ३०२, ३१८ २६२ खोर , १८६, २६३ गद्दभ " २३३, ३३३ गलच्छण , गलथल्लिय १५८ गंड २११ गंडय २२१ गुंदल ३६, ४० गोरी २१५ गोसुण गोसुणह घराघरी २२८ घुणत १४४ घुपणेट्ट १४४ टि. चक्कल (दे.) १८६, २८१ चक्कलिय , ११०, १८९, २४२ चक्किय २१९ चडप्फडत (दे०) १४९ चडयर " १४२ चट्टण ११० चप्पिय (दे०) ७०.टि. चमढिय , २४१ चमेडा ३०५ चरु (द.) २२८ चवक्कार चंचिल्लिय-चेल्लिय (दे०) २४६, २६३ चंडिज्ज . २९७ चंपिय (दे०) ७७ चिक्खल्ल, २१४, २८६ चित्तल " २०३ टि. चिलिचिल १७० २५४ चिलिस १६५ चीरिया For Private &Personal use N ०१ जण्णयत्तिया (द.) जलहा जल्ल (दे.) जहाह जहिट्टिय झलज्झलंत (दे.) झलसंताव , झलज्झल झल्लिया झंपिय (दे०) झिल्लिया झुलक्किय (दे०) झुलंकिय , डंडि डोड १८०, २८२. २८२ १९९, २२२ टि. १७१, १९९ ३२१ १६६ २२१ २६८ १५८ २९४ २८. २८० टि० १२६ णडिय , णंगर गाउम णागलंद णागलिंद णारोट्ट (दे.) णिक्कुण , णिज्जूहय, णिलक्क , णिव्वर णिव्वाणि (दे.) णिविच्च , णिबूढि णिहाय (दे०) १९८ ५९, ६०, १६. २९७ " ३२९ खडिप्फढा uional २६७ www.jainenbrary.org Page #442 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयं परिशिष्टम् । ३५९ पत्रांक पत्रांक पत्रांक बृहक्क १७० २२६ ३०४, ३०७ १४१ २५४ ११ २३८, २९८, ३१० ११, ५७, ९५, ३०१ २५४ २४२ १३५ पज्जुत्त+य पज्जोहार पट्टाढा (दे०) पडलग " पड़हच्छ , पडहत्य , पडार पढीर , पत्तल , पत्थारी , पनि पभिइ पम्हुतु (दे०) पयल्लिय २३४ ९३, १७१, २३३ , टि. १८१, २२७, २७२ २४० पयंगय १५९ तोड १८३ ११३ १०१ णिहुअ (दे०) २१२ णिहेलण , २५५, २९२ णुवण्ण , २३६ णूविय तच्चत-अच्चत ४८ तविल्ल तणकार तणीकार १८५ तत्ती (दे०) २२१ तलवग १८६, १८७ तल्लिच्छ (दे.) १३८, २६४ -तल्लुब्वेल्ल , २३१ तार्चिता-तरिचता १३१ टि. तियल्लिय (दे.) १९६ तीरा १२४, १२५ तुडी (दे०) २५२ १४४ थक्क (दे०) १४१, २३३ थट्ट , १९६, २१३, ३०८ थिल्ल (दे०) २३ थुडक्किय, १९६ थोर , २२३ थोरिय दर (दे०) ३१३ दंतवलही १०८ दंडणी-दंडणीइ ३७ टि. दिक्करि-दिग्गज २५७ दिक्करिया (६०) १२१,१५७ दुज्जया-दुज्जयया दुष्परियल्ल (दे०) १४४, १४५, १६७, १९४, १९६ धणिय १६६,१७५, १८., १०१ २५१ धणुयही २६३ थाहा (दे०) 'धीउल्लिया , धूमलिय पइरिक्क (दे०). पक्कल , पक्खुल पच्चोणी (दे.) पच्छयण , १६२ पच्छाहरय १०६ भज्ज-पइय भल्लुया भवियायण २३५ भुन्भुय मग्गय २३३, २४० मडयि (दे०) मंडब , मण्ण अण्ण मतय २०४ मती २१४ मन्भसंत अब्भसंत २८२ मरट्ट (दे०) १५० मरमरा+सह २२७ मरोग-अरोग ९ टि. मल्हंत (दे०) २६. मसक्क महत्तण १३५ मयालदिवस महल्ल+य (दे०) १४, १६१, १९३ महाल महयाल ११३ टि. मंगुल (दे०) २७७ मंभीसत माणल्लय मावित्त १९७ टि. मासल १३९, २५१, २५३, २८७ ३००, ३९६ मासलिल्ल २३५ मुच्छलिय ३१३ टि. मुद्धड (दे०) १२० मेज्झमोक्कल (दे०) रडि १२ रणरणय (दे०) १०, २२१, २३९ रफभ १४. रसिआल ३१७ रंधणी १४४ राहिल्ल ९५, १६, १०८, १८९, २३४, ३०० राहिव ३०५ टि. रिछोली (दे०) १२६, १४, २६८ २३० १८६ परयाण (दे०) परहुय , परायणा-परायणया ७४ परिहच्छ (दे०) १८८, १९२, २७८, २९५ परिहण+य, ११२, १८० परिहलिय १३७ पल्हत्थियाबंध पसय (दे०) ७३, २२७ पसारय पंकिल्ल पंभल (दे.) पाडुय । १९०, ३१८ पाण+वाडय" २२८, २२९ पिंगला - २५४ २२७, २६६ पुष्वट्ठी-पुवट्ठि पेज्जाल (दे.) १९२, २२६ पेढाल , १८६, २०८ पेहुण , २४१, २४२ पोट्ट (दे०) पोत्तवाड २३८ फुलंधुय (दे०) २५७, २८२ फोप्फस .. बलाणय , बंदिय+ण बाएत्तालीस बुक्कार (३०) ६०, ६१, ८० ३१४ पुल्लि १४३ पोक्का २२६ २११ १४३ . सुटुंत Page #443 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६० चउप्पन्नमहापुरिसीरियं ।। पत्रांक पत्रांक पत्रांक २२१ २७३ १९१ १८८ १९३ १०० संमेड २८६, २८८, २९४ संसाइय (दे.) १८२ सावय , १९३ साहुली , २७६ सिडिंग , १८६, २६३ सिलिंब , ०३, १५६ सिल्हिय सिहिण (दे.) १८६, २३०, २३४ सुढिय , सुग्णवेश २२३ सुर्लकिअ-भुलं( मुलं) सुहल्ली (दे०) १८० सुहेल्लिया , ३०२ सूआरसूअयार १०६ सेट्ठिणी २८९ सेयाल सेवाल २५९. सोण्यास हक्खुत्त २६० २२२, २२३, २२६ ใง له २३. له १९६ لم वीली , २८१ रेल्लिअ (दे०) १८५ रोर , रोल+अ " १७३ टि०, १८७ लगडा , लल्लक्क , ६०, ८०, २२२, २४१, २४२ लल्लि , ३०२ लेसुरडय २४३ टि. लेसुरुडय २४३ लेहारिय लेहाल (दे.) २०६ लोयट्ठी-लोयट्ठि ७३, २७२ लोहिल्ल १८६ वडइल्ल (दे.) २०८ वद्दल ॥ २१. वरहुया , ८८ वरालय २०८ वरिल्ल (दे०) २१५ बलहिया , १०७ वल्लहा वल्लहया २२० टि., ३२०, ३३६ टि. वल्लहिय १८३ वल्लाएल्ल (दे.) ववत्थंभ , बहु २६२ वहूय ३२४, ३२५, ३२७, ३२८ वहोलिया (दे.) वार २३२ वारेज्ज (दे.) वाहलिया , ८८ विओल+य,, १८६, १९९, २११,२८९ विच्चल विच्छा .. १६०,२०९ २०९,२२१, २९१ विडिचिय, २५१ विकृरिल्ल . २७१ विडिरिल्ल, لس वियज्झ-वि+दग्ध , -विदाध विरल्ल विलइयव २५० विवल्लस्थ ૧૮૮ विवल्लत्थिय विसट्ट (द.) ९३, १८४, १९१, १९२, १९४, १९८,२०३, २०६ विसहत , विहरण ३१३ विहाइल्ल २५१, २७२ विहाय विहाविल्ल विजिज्जमाण १४३ विट (दे०) २२७, २७८ बुण्ण , ६५, ६६, १३८, २००, २६३, ३०९ २२२ वेल्लहल ३६, ४२, २४७, २८७ वेल्लावेल्ली वैसाहन्वइसाह ५१, ९२, ११५ टि., १३३ टि०, १५२ टि. वोसविय २५५ सक्करिल्ल २२९ सच्छह (दे०) २६७, २९. समय समसीस (दे.) समसीसिय , समसीसी , ३०७ समी-समिइ ७१, २०६ टि. समुचुग्ग (दे.) ३३० सरीरट्ठी सरीरट्ठिा २०५ टि. सहस्सट्ठी-सहस्सट्ठिइ ११८ टि. संकडिल्ल (दे.) २३२ संथाण १४२ لمی इच्छ हत्यिहा १८८ हरियंदपुर-पुरी ३०, २३० हलबोल (दे०) १३, १५८, १९४, २१३ हलबोलिय , २१२, २३८ २१४ १२२ ५९ २८४ हलहलारव-राव हल्लफल (दे०) हल्लप्फल " हल्लिर , हल्लीस , हल्लोहल, हल्लोहल्ल , हारिल्ल हित्य हियवय हुयासय १८२ १९०, ३२८ २३४ २३८ १४१ १०८, १८९ ५९, २८२. २३१ २५८ Page #444 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थ परिशिष्टम् 'चउप्पन्नमहापुरिसचरिय'अन्तर्गतः अपभ्रंशसङ्ग्रहः सयणु परियणु [सयणु परियणु] बंधुवाँग पि, भिच्चयणु सुहि सज्जणु वि घरि कलत्तु आणावडिच्छउं । अत्थुम्ह किल धरइ जाव ताव पुण्णेहि समग्गलु ॥ (अर्थप्राधान्ये पत्र-३ गा०३९) पिय भणुकूली धरि सरइ, अण्णु भुवणि जसवडहउ वज्जइ । एत्य समप्पइ मोक्ख सुहूं, मोक्खे सोक्छु कि कवलेहि खज्जइ ! ।। (कामप्राधान्ये पत्र-३ गा०४४) संसारे असारए माणुसहो केण वि तेण सहुँ घडइ । जम्मडु अणिच्छए दइवहो केण वि उप्परि सुहरासिहे चडइ ॥ (कालनिवेदकगीतम् पत्र-१३ गा०४०) भुवण भूसिउ [भुवण भूसिउ] कउ सुहालोओ, पह पयडिय दलियु तमो उइड मित्तो दोसंतकारओ। पडिबुझेवि ठाहि तुहं गुणणिहाण ! णियकज्जसजओ ॥ (सूर्योदये कालनिवेदकगीतम् पत्र-१३ गा०४८) पयडरूवहो [पयडस्वहो] सिद्धमंतस्स, को भग्गए ठाइ तहो सयल लोउ णिदणह लग्गहो, पुच्छंतह अप्पणउं जाइआई बहुजणियस्वहो । जसु जोईसरु अप्पणिहि, भज्जइ किपि करेवि, तं फुडवियडकित्तगउं, इयरु किं जाणइ कोइ? ॥ (प्रहेलिका पत्र-१२० गा...) वेसाहियउं अइ सिय केणइ अलद्धमज्झ, जुवइचरिउ जइ सिय अइकुडिलमग्ग, सालवाहणस्थाणि जइ सिय कइसयसंकुल, महासरु जइ सिय पोंडरीयसमाउल, वरणयरु जइ सिय दीहसालालकिय, बाहुबलिमुत्ति जइ सिय महासत्ताहिट्ठिय, अहिंस जइ सिय बहुमय, जिणपवयणु जह सिय बहुसावयाहिटिय, जिणवाणि जइ सिय सध्वसत्ताणुगय, कालिंदीजलप्पवाहु जइ सिय हरिबलमलियणाग[य] । (अटवीवर्णना पत्र-१३८-३९) अलिउलचलपम्हउडवियासियसुमणदलो, उन्भडमहुमासो वि वियंभइ भूसियभुवणयलो । उभिण्णचूयणवपल्लवकिसलयसद्दलए, 'को पिउ बजेवि वञ्चइ?' कूविउ कोइलए ॥ जइ दइयविओए विवज्जइ ता कहे दुजरिउ, इय चिंतयंतो कलयंठिओ 'तुह तुह' उच्चरिओ। इय एव वियंभियमणहरबहुविहचञ्चरिओ, णिसुणंतु जणद्दणो लीलए वियरइ सच्चरिओ॥ (चर्चरीगीतम् पत्र १९१ गा.११३, १५४) Page #445 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पञ्चमं परिशिष्टम् 'चउप्पन्नमहापुरिसचरिय'अन्तर्गतो वर्णकसंग्रहः पत्राङ्क पत्रा لی ہی اس २८७ २६१ اسی अटवीवर्णना. १११, १३८, १३९, २०३, २२२, २५३ अप्सरसा कामप्रार्थनावर्णना २८७ अप्सरोवर्णना अरण्यवर्णना ३११ अष्टापदवर्णना ३२३ इभ्यवर्णना गच्छवासिसाधुगणवर्णना १३, १४ प्रीष्मवर्णना ११, १२, ९३ चतुर्दशस्वप्नवर्णना २५७-५८ चन्द्रोदयवर्णना जलकान्तविमानवर्णना ३२९ जिनस्नात्रवर्णना २३४-३५ दवानलवर्णना दैवीवर्षावर्णना. २६६-६७ निशाचरवर्णना २८५ नृपतिवर्णना ६, ३२८ पल्लीवर्णना २४० वसन्तचर्चरी-मजनवर्णना १९१ वसन्तवर्णना ६. ७, ८८, १९०-९१, __ २३८, २६२, २६३, २८६ वाणारसीवर्णना २५७ विजयिनृपनगरप्रवेशवर्णना २४२ विरहिणीवर्णना १०८-१ विलासिजनसन्ध्याकार्यवर्णना २११ विविधक्रीडावर्णना शरद्वर्णना श्रावक-साधुसन्ध्याकार्यवर्णना २१०-११ षड्ऋतुवर्णना १३९ समवसरणवर्णना ८३, २९९-३००, पार्श्वजिनजन्मवर्धापनक-यौवनवर्णना २६० पार्श्वजिनजन्माभिषेकवर्णना २५९-६० प्रभावतीवर्णना प्रासादवर्णना प्रियमिलनोत्सुकनारीवर्णना २३९ मुनिवर्णना २५३ मेरुवर्णना २५९ युद्धवर्णना १८८, २४१ युद्धसज्जयोधवर्णना १८५-८६ युवतीनां प्रदोषव्यापारवर्णना २६५ राजकुमारवर्णना ૨૨૧ राजकुमारीदेहवर्णना राजमार्गशोभावर्णना ३२८ राज्ञीदेहवर्णना राज्ञीवर्णना २४६ रूपमुग्धनारीसमूहवर्णना २०८ वर्धमानजिननिर्वाणोत्सववर्णना ३३३ वर्षावर्णना १२, १५०, २०३ १.८ २२६-२७, २४० सरोवरवर्णना सुश्रेष्ठिवर्णना सूर्यास्तवर्णना सूर्योदयवर्णना हस्तिवर्णना २६४ २६५, २८७-८८ २४६ षष्ठं परिशिष्टम् 'चउप्पन्नमहापुरिसचरिय' अन्तर्गताः स्तुति-वन्दनाः पत्राङ्क गाथाङ्क पत्राङ्क गाथाङ्क वर्धमानजिनवन्दना , स्तुतिः पत्रात गाथाङ्क अरिष्टनेमिजिनस्तुतिः १९४ १७४-७७ " " २०७ २७९-१३ ऋषभजिनवन्दना , स्तुतिः ३५ १०६-८ ३५-३६ ११०-१५ ३६ ११९-२० १ ११-२० २८३ १२९-३६ ३१७ ५८५-८६ जिनस्तुतिः पार्श्वजिनस्तुतिः ४२ १२५-३३ ४६.१७७-८० ३२३ ६५२-५५ २३५ १८१-८२ २६८ ३०५-१२ २६९ ३२८-३९ श्रुतदेवता (सरस्वती)- वन्दना ३३३ ७८६-८८ १-२ २२-२९ Page #446 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सप्तमं परिशिष्टम् 'चउप्पन्नमहापुरिसचरिय'अन्तर्गतानां सुभाषितगाथानां सङ्ग्रहः पत्राङ्कगाथाङ्क मइदुक्करतवकरणे वि णेय तं तारिसं फलं तस्स । भावविसुद्धीए विणा जो हु तवो सो छुहामारो॥ भावशुद्धिरहिततपोनैष्फल्ये २८० ९५ भइदुलह मणुयत्तं विसमा कम्माण परिणइ दुरंता। लहिऊण विवेयमओ तं कीरउ जं असामण्णं ॥ सुकृतकरणे २८ ८. भक्कोसतालणुज्जयजणम्मि णियजीयसंसए वि दढं। धम्मन्भंसणभीरू खमंति तेणेह महरिसिणो॥ क्षमायाम् ३३२ ७६३ अच्चंतणेहणिन्भरपरब्वसासंघजणियपसरस्स। इटवियोगा जायंति देववसओ ण कस्सेह ॥ वियोगे २३६ २०१ भट्टग्माणोवगया परदुक्खुप्पायणम्मि य पसत्ता। बहुमोह-ऽष्णाणपरा जीवा तिरियत्तणमुवेति ॥ कर्मविपाके . ५५ अणभिप्पेयम्मि वि संघडंति, विहडंति सम्मए वि जणे। चलविज्जुविलसियाई व णेय पेम्माई वि थिराइं॥ स्नेहानित्यत्वे २१७ ५१ अणवरयजणणिभोयणवियारसंवढियस्स देहस्स । मेज्झस्स सुइतणकारणेण तम्मति बालजणा॥ देहासारतायाम् १४३ ५१ अणवरयजहिच्छियसंपडतभोगेहिं लालिओ जीवो। सग्गम्मि, ण उण तित्ती जलणस्स व हव्वणिवहेणं ॥ विषयविरागे १२६ ३३ अणवरयणाणदाणेण संजुओ होइ बहुसुओ लोए। मुक्खो उण विवरीओ अप्पहियं पि हु ण याणेइ ॥ कर्मविपाके ८१ ७२ अणवेक्खिऊण कज्जं जसं च जीयं च जे पयति । कज्जारमेसु सया ताश सिरी देइ सपणेज्झं ॥ उद्यमे ९६ १२ भणहे चिय सामथम्मि जंतुणो जुज्जए समुज्जमिउं । वियलम्मि इंदियत्थे काउं ग य तीरए कि पि॥ धर्मकरणे २५२ ८२ अणुकूले पडिकूलं परम्मुहे सम्मुहं चलसहावं । पेम्मं महिलाहिययं ण याणिमो 'कह णु संठविमो ?'॥ नारीनिन्दायाम् १११ १९ अणुकूलो जइ कस्स वि हवेज्ज सहि ! सुकयपरिणइवसेण । तो ववहरइ जहिच्छ पिउ व्व देवो ण संदेहो ॥ ___ देवे ११० ३७ अणुवत्तह पिच्चं पयइसज्जणे दुज्जणे य तह चेव । णियपयइमणुसरंताण ताण कि कीरइ विसेसो! ॥ दुर्जन-सुजनविवेके २ ३० अण्णाणी कोहट्ठा कटुमहोगमणमिच्छणो(गो) होइ । इय कारुण्णं वच्चंति कोहगहियम्मि महरिसिणो । क्षमायाम् ३३२ ७६४ सष्णोष्णकज्जवइयरकज्जभरारुहणचंपियं हिययं । ऊससइ णवर मणुयाण तणयमुयंदसच्चवणे ॥ पुत्रे ७६ . अण्णोष्णकज्जवइयरसहसंतावतावियं हिययं । णिव्वाइ णवर दइयासहर(रि)समवलोयणजलेण ।। नारीप्रशंसायाम् २८ ८३ अण्णो तुम सरीराओ णीहओ अक्खओ अमुत्तो य । रोगहरं पुण देहो, रे प्रिय ! मा खिज्जसु तयत्थं ॥ देहासारतायाम् १४४ ५९ अत्थं वयंति, सेवंति खलयणं, जीवियं पि तोलेंति । माणभंस पि कुणंति माणिणो जुवइसंगेणं ॥ नारीनिन्दायाम् ६. अम्पकसाया दाणेक्कसंगया खंति-मद्दवसमेया। पयतीए भद्दया जे य होंति ते जंति मणुयत्तं ॥ कर्मविपाके ८० ५६ भप्पवहाए णियय होइ बलं उत्तुणाण भुवणम्मि। णियपक्खबलेणं चिय पडइ पयंगो पदीवम्मि । अविनये ६३ ६९ अप्पाणं पि ण तारइ गरुयऽप्पा ताव चिहउ इहऽष्णो । ईसि पि बलग्गो लोहपिंडए बाइ निरुत्तं ॥ कुगुरौ ३१२ ५३५ अप्पाणमप्पण चिय लहुया सलहंति जं तयं जुत्तं । इहरा गुणाणुवेक्खो को अण्णो तं पसंसेउ ? ॥ भात्मश्लाघानिरासे ४७ १९. भन्भुद्धरणसमत्था जयम्मि जायंति ते महासत्ता । जेहिं परिगलियपावाई तक्खणं होंति भुवणाई ॥ महापुरुषे १३३ १ अमयमयसिसिरकिरणं चंदं णिव्ववियसयलजियलोय । ण सहति हत्थिदसणा कमला वि य णिययदोसेणं ॥ गुणामहणे ४५ १५१ अमुणियकिच्चा-ऽकिच्चाइरित्तसंवरणचित्तचरियाओ । संचारिमकिचाउ व्व मूढचित्ताण पच्चक्खं ॥ गणिकायाम् ३१४ ५५४ अलियऽभक्खाणरओ णियडिमहाकवडवंचणाकुसलो । साहसपावणिसेवी महिलाभावत्तणमुवेइ ॥ कर्मविपाके ८० ५९ अवणेइ कलुसभावं सुंदर! ससिरोरुहस्स हिययस्स । कारेइ मई धम्मे जराए सरिसो सुही पत्थि ॥ अरायाम् ३० ९४ 'अवयारी किर वेरि' त्ति होइ एक्कम्मि चेय सो जम्मे । कोहो उण होइ दढं दोसु वि जम्मेसु अवयारी ॥ क्रोधपरिहारे ३३२ ७६६ अवरंगणासमागमपयडियराओ दिणक्खए सूरो । कमसोसरंतकरसंगसामदेहं दिवं मुयइ ॥ तेज-क्षये ४६ १६४ अवहरइ ठिई, परिहरइ पोरुस, चयइ कुलववत्थंभ । सोयमहायहगहिओ पुरिसो किं कि ण आयरह! ।। शोके ६९१२ भसढो खंतिसमेओ सुसहावो अप्पमोहगुणकलिओ। जीवो जायइ पुरिसो विरसे संसारकंतारे ॥ कर्मविपाके ८० ५८ असुइणिहाणे देहे सव्वासुइसंगमेकणिश्वदिए । चितिज्जतं पि दढं सुइत्तगं तस्स कह होउ ! ॥ देहासारतायाम् १४३ भसुइम्मि गलियबहुछियम्मि मूलुत्तरुज्झियगुणम्मि । देहीण हयसरीरम्मि को गुणो सइ कयाघम्मि! ।। देहासारतायाम् १७० भसुइविणिग्गमणिद्धमणविवरदेसम्मि गुरुणियंबम्मि । कंदप्पकेलिरइहरसरिच्छबुद्धी अहवाण ॥ नारीदेहनिन्दायाम् १७. Page #447 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६४ चउप्पन्नमहापरिसचरिय। असुयं पि सुयं भासइ, तह य विरुद्धाइ कहइ लोयस्स । पिसुणो परतत्तिल्लो सो बहिरो होइ मूओ य ।। कर्मविपाके १८३ अह एको चिय दोसो गुणसयकलियस्स होइ रोरस्स । जं पसहं चिय दिटुं 'अत्थि' त्ति जणो परिकलेइ ॥ दरिद्रप्रशंसायाम् ३२२ ६३१ महवा ‘दोसाहितो राओ चिय गुरुयरो' ति पडिहाइ । जेण पउत्तो गुरुणो वि होइ पडिबंधहेउ त्ति ॥ रागपरिहारे ३३४ ७९७ अहिजाई सयलकलाकलावकलिय हिओवएसयरं । संक्डइ मंदभायाण णो सुमित्तं कलत्तं च ॥ मित्रे २२५ ११० अहिलसइ जो ण घेत्तूण परसिरि णियवहुत्तसंतुट्ठो । सो ससिरीए वि मुच्चइ 'अव्ववसाइ' त्ति कलिऊण ॥ शौर्ये २९३ २९१ आइम्मि सयलरसर्वजणेहि जुत्तं पयड्ढियपमोयं । पाणहणं परिणामम्मि विसयसोक्खं विसऽष्ण व ॥ विषयविरागे २१८ ६६ आगंतुगभूसणभूसियस्स णिच्चपरिसीलणीयस्स । चितिज्जतं कि कि पि सोहणं हयसरीरस्स? ॥ देहासारतायाम् ५. २२९ आवइपडियस्स वि सुवुरिसस्स उव्वहइ तह वि ववसाओ । विरहियववसायं पुण लच्छी वि ण महइ अहिलसि ॥ उद्यमे २३८ २१४ भावज्जण-रक्खण-खय-वयातिउव्विग्गमाणसो अत्थी । अधणो सऽस्थत्तणणिव्युतीए दूरं समब्भहिओ ॥ दरिद्रप्रशंसायाम् ३२२ ६३५ आहिउत्तो जया पस्से ण किंचि सुहमप्पणो । जुज्झियव्वं तया होइ फुडमेसो उवक्कमो ॥ नीतौ १८५ ७४ इय अगणियणिययकुलकमाण पम्मुक्कलज्जियव्वाण । खलमहिलाणं ण हु णवर कुवुरिसाणं पि अह मग्गो ॥ नारीनिन्दायाम् २१९ ७२ इय अर्धवम्मि जीए धुवे विणासम्मि सम्वदेहीण । को णाम बालिसो जो उवेक्खए अप्पणो अप्प १ ॥ आत्मार्थे २३६ १९८ इय अप्पडियारे हयविहिम्मि संसारवत्तिणो जीवा । वट्टति तस्स आणाए, तत्थ को कीरउ उवाओ?॥ दैवे ६७ १२१ इय एवं दालिई णिदिज्जइ दुन्वियढमणुएहिं । अञ्चंतभोयसंपयथड्ढुद्धयदुट्ठचित्तेहि ॥ दारिद्धप्रशंसायाम् ३२२ ६३८ इय कित्तियं च भण्णइ ?,जे केइ दुहस्स हेयवो भणिया । ते संभवंति णिययं णराण रमणीण संगेण ॥ नारीनिन्दायाम् १८० १३ इय कूड-कवड-माया-पवंच-बिब्बोय-कामभरियाण । णामं पि जे ण गेण्हंति णवर महिलाण ते धण्णा ॥ इय केच्चिरं व किपागफलसरिच्छम्मि तुच्छभोयसुहे । सत्तण चिट्ठियवं असारसंसारवासम्मि ? ॥ विषयविरागे २५६ १३० इय कोवेणं सयले जयम्मि जे जंतुणो समहिहूया । इह परलोए वि णराण ताण ण हु होति सोक्खाई ॥ क्रोधपरिहारे २७७ ७५ इय जइ वि तस्स कजम्मि वह वि दिज्जइ सिरं पयत्तेणं । तह वि कयाइ ण तीरइ पिसुणो सुयणेण घेतण ॥ दुर्जने ३१८ ५९८ इय जह जह चितिजइ देहस्स थिरत्तणं सुइत्तं च । तह तह विहइ सब्बं पवणुच्छित्तं व सरयब्भं ॥ देहासारतायाम् १५३ ५४ इय जुय-समिलादिटुंतदुल्लहे पावियम्मि मणुयत्ते । जो ण कुणइ धम्म सो खिवेइ णियभायणे छारं ॥ धर्मकरणे २५३ ९३ इय जे णिच्छियमइणो अवहत्थियसुहजसोहसोडीरा । विण्णायगुणविसेसा ताण सिरी देइ सणिज्झं ॥ पुरुषार्थ १३८ ५ इय जो वि भाइ भइणी भजा सयणो व्व णेहपडिबद्धो । ण हु मच्चुगोयरगयं सो वि परित्ताइउं तरइ ।। मृत्यौ २३५ १९२ इय णिग्गुणे सरीरम्मि णवरि एसो गुणो जए पयडो । जं सव्वदुक्खमोक्खं सुद्धं धम्म समजिणई ॥ देहसारे ५० २३१ इय णिचं चिय णमुणियधणाइवासंगवाउलमतीओ । परजणजणियावण्णो जती दरिदो ति ण विसेसो ॥ निर्दव्यप्रवज्यानिन्दायाम् ३२१६१८ इय णिन्भरगुरुसम्भावपसरवीसंभवड्ढियसुहल्ली । अण्णोण्णजंपिएहिं वि जयम्मि मिहुणाई पार्वति ॥ दाम्पत्यसुखे २९ ८९ इय णियचरिएहि चिय पुरिसा गजति कुल-गणसमेया । मज्जाइकमणेणं जेणं लहुएति अप्पाणं ।। मर्यादायाम् ६४ ७६ इय णिरयणिवायं कोहदोसेण ताण, विलगयमुयारं संजमुजोयजोय । णरयपडणभीरू बुद्धिमं भाविऊणं, पइदिणमिह कुजा कोहवायाणभंग ॥ कोधपरिहारे ३३२ ७७३ इय जिंदणिजचरियाओ जिंदणिजाणुरत्तचित्ताओ। वेसाणिहेण संसारवाउराओ वियंभंति ॥ गणिकायाम् ३१४ ५५७ इय दीहट्ठिणिवेसियचम्मसिराजालचरण-जंघासु । वरकमलदलंगुलि-करिकरोरुकरणी दुरताणं ॥ नारीदेहनिन्दायाम् १७० १७ इय पिययम पि सिढिलेति, अहव अत्यं, मुयंति णियदेसं । माणभंसं ण कुणंति कह वि जे होति सप्पुरिसा ॥ स्वमाने ५७ ३३ इय बहुसो संसारम्मि वियरमाणाण कम्मवसयाण । मुहि-सत्तु-मित्त-पुत्तत्तणाई जीवाण पार्वति ॥ निर्वे दे २१३ ३८ इय मंसमसुइसंभवसमुन्भवं दीसमाणमसुई च । को छिवइ करयलेणावि, दूरओ भक्खणं तस्स ।। मांसपरिहारे १९३ १६८ इय मुणिऊणेवविहमसारसंसारविलसियं सहसा । अथिरम्मि विसयसोक्खम्मि भणह वह कीरउ थिरासा? ॥ विषयविरागे २१७ ५२ इय वयवुढि चिय होइ कारण ईसाहणथम्मि । उजोयइ पुण्णससी, ण इंदुलेहा जयं सरल ।। यौवनवयस्तपोनिषेधे २९१ २६९ इय वियलियगुरुतेओ जइ जाओ कालपरिणइवसेण । अस्थमइ परं सूरो वि 'मइलणं ण सहइ पयावी' ॥ तेजःक्षये १६ १७१ इय सलिलबुब्बुयुब्भडसंझाराओवमम्मि जीयम्मि । विसयसुहेसु थिरासा कह कीरउ जाणमाणेहि ? ॥ विषयविरागे २४८ ३७ इय सम्बभूयदयदाणकारणो जो जयम्मि सो धम्मो । जत्थ ण दया मुणिजइ जयम्नि सो केरिसो धम्मो? ॥ दयायाम् २६२ २०७ इय सम्बस्स वि मरणे साहीणे तस्स किं ण पजतं । जस्स पहु-मित्तकज्जुज्जयस्स संपडइ मरियम्व! ।। सुसेवकमरणे २३३ १६९ इय सव्वं चिय लन्भइ जयम्मि जं किंचि होइ दुल्लभं । एक मोत्तुं करिणाह! वीयरागुग्गय धम् ॥ जैनधर्म २४९ ५४ इय सोयाओ क्यकम्मपरिणई भाविऊण विणियत्ता । बहुसो चिय जणणि-सुयत्तणाई सुलहाई संसारे ॥ निवेदे १९७ २०२ इह अप्पमाइणो होति सयलसंचितियत्यवित्थारा । सविसयगुणसंपत्तीओ अप्पमाया हि जायंति ॥ अप्रमादे ३१६ ५६६ इह जाइ-जरा-जम्मण-मरणुव्वत्तणपरंपराकलिए 1 जलकल्लोल व्व भमंति जंतुणो भवसमुद्दम्मि ॥ निवेदे २३५१८३ Page #448 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सप्तमं परिशिष्टम् । ३६५ इंदियजएण विणओ, त्रिणएण गुरू, तओ वि सत्थऽत्थो । तत्तो वि गुरुविवेओ कजा-अकजेसु होइ फुडो॥ होति विवेएण गुणा भुवणभितरविदत्तमाहप्पा । गुणवंतयम्मि जायइ जणाणुराओ असामण्णो ॥ तं णत्यि जे ण सिम्झइ जणाणुराएण तिहुयणे सयले । तम्हा सिक्खसु विणयं कल्लाणपरंपरामूलं ॥ विनये ७०-७१ १८७-८९ इंसि पि विणासो होज जस्स संगाहि सो ण तं कुणइ । को णाम कालकूडं कवलइ कवलेहिं जीयत्थी? ॥ नारीनिन्दायाम् ३११ ५१५ ईसीसिवलंतच्छिपेच्छिय सुंदरीण सवियारं । इह संभाविज्जइ कि कयाइ गरयग्गिणिव्ववर्ण? ॥ उत्तट्ठमयसिलिंगच्छि! कीस मूढत्तणेणमंतरसि । अत्ताणं पियसंगमसुहाण जणपत्थणिजाण? ॥ प्रियसंयोगे १५६ १३ उत्तत्तरणयकलसोरुमिलियबक्कलियथोरथणवढें । वीसामत्थामं कि कयाइ भवजलधिवुड्डाण ॥ नारीदेहनिन्दायाम् २८ ७४ उत्तुंग-पीण-पेढालसिहिणतडवियडमंडणिल्लेण । मणयं ण होइ ताणं कयंतजीहावलीढस्स ॥ - - २५६ १२५ उदओ सकम्मपरिणइवसेण बहुविहकिलेसलद्धो वि । होइ महापुरिसाणं पि णूणमसुहप्फलविवाओ । कर्मविपाके २१० १ उपजइ को वि महाणिहि व्व परहियपसाहणुज्जुत्तो । णिद्दलियगरुयविग्धोवसग्गवग्गो महासत्तो ॥ महापुरुषे २४५ १ उपज भवपकम्मि कोइ परहियणिबद्धववसाओ । तप्पंकंकविमुक्को कमलं पिव णिम्मलच्छाओ ।। " ८ १ उपजत पयाणं पुण्णेहि महीए के वि सप्पुरिसा । कप्पतरुणोंकुरा इव हियइच्छियदिण्णफलविवरा ॥ उप्पजति पयाणं पुण्णेहिं जणाम्म ते महासत्ता । जे णियजसेण भुवणं भरंति णिव्ववियजियलोया ।। उप्पण्णो चिय कोहो सहसा णियआसयं विणिहइ । अणडड्ढारणिकट्ठो जलणो किं डहइ दारुचयं? ॥ क्रोधे ३३२ ७६२ उप्पत्तिकारणं उण इमस्स देहस्स जं जयपसिद्ध । तं चिंतिय पि विउसाण भायगं होइ लजाए ॥ देहासारतायाम् १५३ ५० उवभुंजती अण्णेण पहुसिरी णेय तीरए सोढुं । कि कोइ सहइ दटुं णियदइयं अण्णहत्थगय? ।। शौर्ये २९७ २८८ उवयारेहिं परो चिय घिप्पइ, अग्छति ते तहिं चेव । इयरम्मि पवत्तता पेमाभावं पयासेंति ॥ स्नेहे १२७ ३९ उवयारो होइ परम्मि सुयणु !, अह सहइ सो तहिं चेव । सम्भावपेसले पुण जणम्मि सो कइयवे पडइ ॥ उपसंहरइ सई चिय तेयं, अबलत्तणं लहइ सूरो । ‘णियचे? च्चिय धीराण णवर हे विणासम्मि । तेजाक्षये ४६ १६५ उवहिस्स मुह रेवा सययं विझस्स ओप्पइणियंबं । सव्वमणायारधराण मित्त! महिलाण सम्माइ । नारीनिन्दायाम् ९ २७ उब्वेव-भया-ऽहंकारवजिओ णिम्ममो णिरासंसो । महमोहसल्लरहिओ जइ न रोरो सुहावेइ ।। दरिद्रप्रशंसायाम् ३२२ ६३२ एकत्य कह वि परिमोइया वि अण्णत्थ लग्गइ खणेणं । दूरेण होउ सुहिया महिला कथारिसाह व्व ।। नारी निन्दायाम् ९ २३ एक्कग्गामे विसए ब्व अहव णयरम्मि जो समुप्पण्णो । दळूण बिएसे तं सुहि ब्व मण्णति सप्पुरिसा ।। राष्ट्रवान्धवे २४१ २१९ एक्केक्कमुच्चिणंतो खिष्णो ब्व णराण कालजोएणं । जलणो व्व हयक्यतो जुगव अह णेउमुज्जुत्तो ॥ कृतान्ते एक्केण विणा रविणा सायमवत्यंतरं जयं णीयं । लद्धखणेण तमेणं, 'तेयंसी सव्वहा जयइ' ।। तेजःक्षये ४६ १७० एगिदियाइजीवाण घायणे मंसभक्खणे णिरओ । मज्जपसत्तो य तहा अप्पाऊ जायइ मणुस्सो ।। कर्मविपाके ८० ६१ एतत् कार्य परुन्मे नियतिपरिणतं चैषमोऽन्यद् विधेयं, एतत् त्वथैव कृत्यं झटिति निपतितं साम्प्रतं कार्यमेतत् । सर्वातस्त्यक्तखेदं जगति परिणतानित्थमेतान् पदार्थान् , विस्तीर्ण दीर्घहस्तो लिखति जनमनधित्रगुप्तः प्रमाटि ॥ कृतान्ते २७ ३८ एते वि बहुपदीवा सूरुग्गमजायणिप्फुरपयावा । गाघंति, पसिद्धमिणं 'गुणाहिओ इयरमंतरइ' ॥ तेजःप्रसरे ४६ १७४ एवं पि अत्यि, अण्णं पि अस्थि, तं णत्यि जं इहं णस्थि । अण्णोण्णविरुद्धाई पि होति महिलामणे विउले ।। नारीनिन्दायाम् ६२ ५६ एयाए महियले कमलिणीदलोवगयणीरतरलाए । लच्छीए पयारिजति णिविवेय चिय जयम्मि ॥ लक्ष्मीचापल्ये २५२ ८४ एस चिय गेहगती, कि कौरउ ?, जे कुलुग्गयाणं पि । महिलासंगो मइलेइ, साडय तेल्लघडउ व ॥ नारीनिन्दायाम् २१९ ६९ एस च्चिय पेम्मगती अणवेक्खियदोस-गुणवियारम्मि । णियडम्मि लहुं लग्गति वल्लि ब्व वियंभियप्पसरा ॥ स्नेहे २१४ १ एस सहावो खलकंटयाण बहुमम्ममेयकारीणं । दूराओ वजण अहव खेडरीए वयणभंगो ॥ दुर्जने ३१८ ५९६ एसा अच्चंताबद्धमूलसुविणिच्चला वि चलणम्मि । करिणो कण्णचमेड व्वऽकारणण्णण्णमभिलसति ॥ अणुरायणिन्भरा वि हु पयत्तमंतोववासिया वि दढं । णासह कयंजलिवुडं पणया वि पओससंझ व्व ॥ पमुहरसियावसाणे विरायविरसा चलुन्भडसहावा । पिसुणपगईण पोइ ब्व होइ णो णिच्चला धणियं ॥ पडुपवणवमुवल्लिरपडायती वि कह वि होज थिरा । ण उणो एसा अणुरत्तपयइपरिवालिया वि दढं । 'पयईए दिपमाणा वि गुणमच्चतमणहरपया वि । पजंतजलणजाल ब्व णवर जलिऊण 'विज्झाइ ॥ गंभीरुभहपरिपुण्णवियडपत्ता पर्याड्ढयप्पसरा । रित्ता जायइ भरिया वि सरयसरिय व्व कालेण ॥ पइदिणपडिचरणसओववि(रि)ज्जमाणा सुणिम्ममत्तेसा । परपुट्ट ब परिचयइ णिच्चपोसिज्ज माणा वि ॥ इय एयाए तणग्गावलंबिजललवसहावतरलाए । इह अस्थि रायलच्छोए भणसु को वाण जूरविओ? ॥ राज्यश्रीनिन्दायाम् ३०५ ४६०-६७ एसा विजए लच्छी सोहइ मग्गट्ठियाण पुरिसाण । इयराणं पुण सिग्धं णासइ आसयविणासेगं ॥ मर्यादायाम् ६३ १ 'एसो चिय परमत्यो जं दीसइ भुजई य संसारे'। एवं कयववसाया भमंति संसारकंतारे ॥ संसारासारतायाम् १२९ . कचं कुणति णियय उवरोहं णेय कस्सइ जणंति । गुणवंतयाण कप्पो भमराण व होइ कमलेसु ॥ गुणिनि ६५ . कम्मक्खएण मोक्खो, तस्स खओ अणुहवेण तवसा वा । उभयं पि संपति महं गुणो वि दोसो ति अबुहाण ॥ निवेदे १४४ ॥ चतमणहरपया रिता जायई व परिचयइ । Page #449 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६६ घउप्पन्नमहापुरिसबरियं । कम्म रोइज्माणाहि बंधए, तं च णिरयगहहेउ । णिरयदुहभीरुणा कोहवेरिणो तेण मेयध्वं ॥ कोपपरिहारे ३३२.६१ कयसमकएण पहुहोइ णिवुई तेयणिजियजयाण । वायामेत्तुत्तविओ विजेण पंचाणणो दलइ ॥ महापुरुषे १६५ . कर-चरण-णयण-चयणोवलक्खिया माणुसा कलिजति । मंसासणेण ते चेय रक्खसाणं ण भिजति ॥ मांसपरिहारे १९१ १६६ करयलधरिय दढदसणकट्टियं मंसमहिलसंतस्स ! सुणयस्स माणुसस्स य को व विसेसो!, भणसु स्य! ॥ मांसपरिहारे १५३ १६५ करिणीरहिउ बकरी, कंतिय रहिउ ब्व जह निसाणाहो । तह होइ जोव्वणं सुबुरिसस्स रहियं पणइणीए ॥ प्रियतमासुखे १९२ १५३ करुणमवेक्खंति दढं दुक्वाहिगए जणे महापुरिसा । कारुण्णयापहाणं जयम्मि धम्म पसंसंति ॥ दयायाम् ३२४ ६४ कलिलाविलमसुन्मेयपिंडखंडम्मि सिहिणजुयलम्मि । उत्तत्तकणयकलसोबमाणमण्णाणणडियाण ॥ नारीदेहनिन्दायाम् १७. १४ कस्स ण जायइ कोऊहलाउलं हिययमन्भुयुम्हवियं । रयणायरं व दडे सुचरियचरियाणि वा सोउं? ॥ सुचरितश्रवणे कस्स व समग्गसयलिदियत्थसंजणियसयलसोक्खाई । जायंति णिययकम्माणुहावओ णेय मणुयस्स? ॥ पुण्योदये २३६ २०० कह कह वि दिज्जइ मणो वेवंतुप्पित्थहित्थहियएहिं ! खलवेरियाण पुरयो रणे य तह कन्वकरणे य॥ दुर्जने २ ३६ कह कह वि पराहतो(2 यत्तो) पयत्तसोक्खाणमिदियत्थाण । अप्पायत्तं कयकुसलकारि को मुयइ मोक्खसुहं ! ॥ मोक्षे २१८ ५९ कह कह वि विसयवग्गुग्गवागुरासंगणिग्गया अम्हे । कहमिच्छामो पडिउं तत्थेव पुणो कुरंग व्व? ॥ श्रामण्यस्थिरीकरणे १९७ २०७ कह कह वि विसयसंपत्तिपत्तसोक्खो खणं सुही होइ । पियविरह-अप्पियजणसंपओयजणिय दुहं लहइ ॥ विषयपरिहारे २४७ २६ कह कीरउ तम्मि बले कुमार। हिययम्मि सासया बुद्धी । जे रोयणियरकलिय खगेण विबलत्तणमुवे ॥ बलानित्यत्वे २५२ ८३ कह सहइ परिभवं सो जो सइ सत्तौए कह वि परियरिओ? । बलमण्णपरिहवो वि य, तेओ तिमिरं व किं हणइ !॥ सबले १८१ २२ काउं तवो ह तीरइ ककसवयणेण जंतुणा पूर्ण । किं वहिकणो कत्थइ जलेइ परिंधणविहूणो ? यौवनवयस्तपोनिषेधे २९, २६८ काऊण पणं जीय तुलाए जे णिक्खिवंति अप्पाणं । ते साहति सकजं, संकति देव्वो वि ताण फुडं ॥ पुरुषार्थे १३८ ४ कान्त्या चन्द्रमसं जिगाय सुमुखी नीलोत्पलं चक्षुषा, गत्या हसमशोकपल्लवगुणं पाण्याकृतिबधिते । सच्चामीकरचारुकुम्भयुगवत् तन्व्याः स्तनौ राजतः, श्रोणीमन्मथमन्दिरोरुयुगलं स्तम्भायतेऽस्याः स्फुटम् ॥ नारीदेहसौन्दयें २४ २५ कापुरिसाणं विसमो विसमसरो, ण उण धीरपुरिसाणं । मंसम्मि खग्गधारा तिण्हा, ण उणाइ बजम्मि ॥ कामपरिहारे १२६ ३२ कामेण विणा धणसंपया वि पुरिसाण जायति अणत्थो । सीलं रक्खंतीए विहवाए जोव्वणभरो व्व ॥ कामे ३ १२ कारिमकयाणुरायाण चित्तमत्थं परत्तमाणीणं । वेसाण कवडीणं वसंगओ को जए चुको? ॥ गणिकायाम् ३१४ ५१८ काळायरू ण साहेइ डज्झमाणं घणंधयारे वि । भूयल्लियं पि पुरिसं णिययगुण श्चिय पयासेंति ॥ गुणिनि २३९ २२० किसि-गोरक्खा-चाणिज-सेवकज्जुज्जओ धणत्थी हु । कालं गमेइ दुक्खं, ण उणाऽणत्थी तहा पुरिसो । दरिद्रप्रशंसायाम् ३२२ ६३६ कि अस्थि कोइ भुवणम्मि जस्स जायंति णेय पावाई । णियकम्मपरिणईए जम्मण-मरणाई संसारे? ॥ निवेदे ६६१०९ किं कस्स केण कीरइ संसारे पयतिणिग्गुणे विरसे ?। परिणमइ सकम्मं चिय अण्णो पर पडइ वयणिजे । निवेदे किं जुत्तं विमलकुलुन्भवस्स वीसंमणेहगहियरस । थेवस्स सुहस्स कए कुलम्मि मसिकुच्चयं दाउं॥ परस्त्रीपरिहारे ८१८ किं तह मोहियमहणा विरसे संसारसागरे घोरे । विसयसुहासाणडिएण खिजिये खीणपुण्णेहि ॥ विषयपरिहारे १९ २३ कि ताण जए मणुयत्तणेण!, कि जीविएण विहवेण? । जाण ण जायइ तणमा गुणनिलओ सइ सुहावासो॥ पुत्रे ७६ किंतु महावसणेण णिचं णिब्बडइ सत्तगुणसारो । वजणिवाए वि पडिच्छिरस्स गिरिणो व्व माहप्पं ॥ सहिष्णुतायाम् ६८ १५. किं तुगिमाए तालस्स दृढपक्खीहिं विहयसीसस्स । परपरिभवं सहतस्स होइ कि गरुयया लोए ?॥ परिभवे १८१ २३ किं तेणिह जाएण वि तणलहुसरिसेण दिट्टणटेण ? । जस्स ण जायइ लोओ गुण-दोसवियारणक्खणिओ ॥ गुणिनि कि होऽसौ क्वचिदपि, शङ्कित इति वा?, श्रुतोऽपि वा लोके! । योऽनायेया भविष्यति न खण्डितः कर्मणां गत्या ॥ देवे १७ कि रयणीए, दिवसेण किंव?, किं वोभएण? ण हुजत्थ । दइएण समं जायइ समागमो जीयणाहेणं ॥ प्रियसंयोगे ११२ .. कुणइ वियारं अविणट्ठिया वि हाल व्य महिलिया लोए । जं पुण कुणइ विणट्ठा तं किर कह तीरए वोत्तुं ! ॥ नारीनिन्दायाम् ६१ ५२ कुणइ वियारं कालो वि गेय पुरिसाण गुणमहग्घाण । 'सिसिरतणं ण सिसिरो वि कुणइ जलणस्स पहवंतो' ॥ सत्पुरुष ६८ १५५ कुणिमाहारपसत्ता आरंभ-परिग्गहेसु गुरुएसु । पंचिदियवहजुत्ता रोहमहापावपरिणामा ॥ एए गच्छति सया णरय कंडुज्जु(ज)एण मग्गेण । अण्णे वि महापावा सोयरिया तह य रायाणो॥ कर्मविपाके ८० ५३-५४ केण ममत्थप्पत्ती, कह व इओ तह पुणो वि गंतव्य । जो एत्तियं पि चितेइ एत्थ सो कह ण णिग्विणो? ॥ निवेदे १.५ के व विलासा पसरियसहावदुग्गंधगंधदेहाण । मणुयाण कारिमाणियसरीरसोहाण मणुयत्ते? ॥ देहासारतायाम् २१७ ५७ के व बिलासा भवणम्मि?, तस्स हिययस्स निव्वुई कत्तो । जस्स ण समसुहसुहिया पिया य घरिणी घरे वसइ ॥ नारीप्रशंसायाम् २८ ८४ को णाम पालिसो सयलरिद्धिसंभोयसमुदयविसेसं । उज्झइ पञ्चक्खगय परोक्खकजम्मि मूढमणी ॥ संसारप्रशंसायाम् ३१३ ५४६ को तीए गुणो मणुयाण मणहराए वि रायरिद्धीए? । जत्थ परमत्थबंधवजणस्स सोक्खं ण संजणिय ।। लक्ष्मीभोगे २१७ ४८ कोमलमुणालवेल्लहलबाहुलइयाजुयं ससिमुहीणं । कि होइ कयाइ वि णरयपडणपडिभणसमत्य ? ॥ नारीदेहनिन्दायाम् २८ ७३ कोववसओ पुरिसो अप्पाणं चिय बहेइ पढमयरं । जत्थुप्पण्णो तं चेय इंधर्ण धूमकेउ ब्व ॥ क्रोधे २७७ ७३ Page #450 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सप्तमं परिशिष्टम् । ३६७ निवेदे १४३ ४५ देहानित्यत्वे २५५ १२३ स्नेहे १५८ ३४ मांसपरिहारे १४९ ५ शोकपरिहारे ६९ १७८ धर्मकरणे १२२ १३ कृतान्ते ५५ १ · महापुरुषे १५३ . अर्थप्राधान्ये ३ नारीनिन्दायाम् २७ ३७ दुर्जन-सुजनविवेके २ ३५ महापुरुषे - १४६ १ क्रोधपरिहारे २७७ ७२ पितृलक्ष्मीभोगे ५६ ८ दाने ११९ ८ कर्मविपाके ८१ ८८ ४०. खणपरिणामसहावे लायणे जोवणे य रूवे य । भणुबंधकारण कि पि गस्थि येवं पि कुसलाण ॥ खणभंगुरम्मि भुवणे भावा सगडाइणो जियाण जहा । जति विणास भइरक्खिओ वि देहो तहा अथिरो ॥ खणमेत्तम्मि वि विरहम्मि बस्स जीय पि समतुल्लमिणं । कह छहिज्जइ तं सुयणु | माणुस भग जियतेहि ॥ खणमेत्तं तुह तित्ती, अण्णो पुण चयइ जीविय जीवो । तम्हा उ प्र जुत्तमिण चडफडतं विवाएउं ॥ खरपवणपहयकुवलयदलजललवतरलचंचलतरेसु । संजोय-जीव-जोवण-धणलव-णेहेसु को सोओ? ॥ खरपवणाहयकुवलयदलतरलं जीवियं च पेम्नं च । जीवाण जोव्वणं धणसिरी य धम्मै दयं कुणह ॥ खडिजइ विहिणा ससहरो वि सूरस्स होति अस्थमण । हदिग्वपरिणईए कवलिजइ को ण कालेण? ॥ गन्भाहाणाउ चिय चिंधेहि णिवेइया महासत्ता । जायंति केइ ते जेहिं णिन्वुयं आयइ जयं पि ॥ गहएइ णिहिगओ वि हु अत्थो धणइत्तयं न संदेहो । हिययणिलुको वि पिओ ण कारणं कि विलासाण ? ॥ गलता नेत्रेण सदा कोमलमिव लक्ष्यते मनः स्त्रीणाम् । चेटासु तदेव पुनः वज्रकणीकायते नियतम् ॥ गुणगहणेणं सुयणो, दोसे परिभाविऊण इयरो वि । जइ दोण्ह वि तुट्ठिकरं कव्वं ता कि ण पजतं? ॥ गुणिणो सुकुलसमुन्भवपरकजसमुजया महासत्ता । ते के वि जए जायंति जेहिं भुवणं अलंकरियं ॥ गुरुकोवजलणजालाकलावसविसेसकवलियविवेभो । ण वियाणइ अपाणं परं व परमत्थओ लोओ ॥ गुरुचलणकता पाउया वि परिभोगओ जणति जिंदं । लच्छी उण तस्विरहा वयणिजं कुणइ जणयस्स ।। गुरुयणप्या पेम्मै भत्ती सम्माणसंभवो विणओ । दाणेण विणा ण हु णिव्वडंति सच्छम्मि वि जणम्मि । गुरु-पाहुवयणकारी दढब्बओ सच्चसंधणापरभो । सो गज्झवओ जायइ, पावमई होइ विवरीओ ॥ घटयति विघटयति पुनः कुटुम्बकं स्नेहमर्थमनवरतम् । भवितव्यतैव लोके, न खेदनीय मनस्तेन ।। घडियं पि विघडइ चिय पेम्म, दूरट्टियं पि संघडइ । भणिइविसेसपउत्ता वाणी दूइ च. ण हु चोजं ।। घणघडियविहडियण्णष्णवष्णरायाण तणुइजुवईणं । सुरधणुरेहाणं पिव पडिबंध कुणउ को व बुहो?॥ घणसंघडत-विहडतकयपरायत्तकारणसुहासा । बहुअणियविप्पलंभा छलंति कामा पिसाय व्व ।। चइऊण गरुयदप्पं विणेथे सिक्खेसु, णम्मयं भयसु । विणओणयाण पुत्तय ! जायंति गुणा महग्धविया ॥ चवला मइलणसीला सिणेहपडिपूरिया वि तावेई । दीवयसीह ब महिला लद्धप्पसरा भयं देइ ॥ चंदस्स चंदिमाए, रईए मयणस्स, कमल-कमलाण । जेण कओ संजोओ अज वि सो चेव सुयणु । विही ॥ चित्तगओ वि पिययमो कि पि ] तरलेइ माणसावेयं । अंगेहि सरस-पिय-कोमलेहि किं पुण सरूवेण? ॥ चितिजंतमणिटुं गन्भाहाणाइकारणमिमस्स । संवद्धणं पि उवरट्ठियस्स जं तं कहं भणिमो? ॥ चुंबति कवोले दाणलोहदरिसियमयविरस्था(च्छी)ओ । मायंगाण वि पसरंतभसलवलयावलीओ व्व ॥ चेट्टइ नियंगलाह परपाणप्पहरणेण जो मूढो । सो वालुयवर(१)गम्मि वि दढत्तणे कुणइ नियबुद्धिं ॥ छति अंबर साणुरायगुणसंसिया ससोहाओ। तरणिकिरणावलीओ व अत्थमंतस्स पइदियहं ॥ छंडइ लज परिहरइ पोरुसं ण हु धरेइ मज्जाय । दीणत्तगं पवजइ उज्झइ मित्तं कलत्तं च ॥ णीयघरेसु वि भिक्खं भमेइ लंघेइ उइयमायारं । के कं न करेइ नरो लोए उयररिंगणा तविओ? ॥ जइ कह वि णाम जचंधएहिं चंदो ण चैव सच्चविओ। कि तस्स सिरी पयडा भुवणालोय ण भूसेइ ? ॥ जइ ण को वेरग्गो मणुयाण जरापराहवेणं पि । ता तरुणिजणयसंभावणयाए भणियाण वि ण जाओ । जइणो संजमजोयम्मि अप्पमाउज्जयस्स जइ कह वि । जाएज्ज जीवघाओ तह वि अहिंसा मुणेयव्वा ।। जइ भसइ तो भसिग्नइ, थुम्वइ गुणकित्तणेण य थुणेतो । कुणइ सई चिय लोओ खल-सुयणे, ताण को दोसो ? ॥ जइया पुण विलिदियवेयल्लविइण्णणीसहसरीरो । इय उठ्ठिउं पि तइया ण तरइ, कि कुणउ कायव्वं ? ॥ जइ वि ण णेहो ण य पणयपसरसभाववड्ढिउल्लावो | तह वि अपुव्वागमणे इयरो वि समाउलो होइ । जणणि-जणयाणमसुई गोसद पाविऊण जो पढमं । पच्छा कलल-ऽब्बुय-मंसपेसिवृहकमुप्पण्णो ॥ जणणिकयाहारवियारकलुसकयपाणवित्तितद्दियहं । असुइम्मि गम्भवासे मुत्त-पुरीसामयामज्झे । संवढिओ कमेणं अमेज्झमज्झम्मि तकयाहारो । भरिओ अइमुत्त-पुरीस-मेय-मंस-ऽट्ठि-रुहिराण ॥ यस-फेफसं-इंत-कालेज-मज-बीभच्छपिच्छलत्थुरिओ । देहो दुग्गंधपवाहणंयरणिद्धवणसारिच्छो ॥ तयमेत्तबज्झसारो अंतो मुक्त-त-विट्ठपडहत्थो । कणयमयस्स सरिच्छो मज्झामेज्झस्स कलुसस्स ॥ जणणित्तणम्मि जो हिययपहरिसुव्वेल्लणेहरसियाए । पालिज्जइ वयणणिहित्तयणच्छीरेण पुणरुत्तं ॥ सो पेय विन्भमुन्भूयहावभावेहिं भयणणडियाए । रामिजइ पियदइयत्तणम्मि कयकम्मवसयाए ॥ अत्तेण सेविया वि हु जायंति पमायलद्धमाहप्पा । भोया भोय व फणीण जंतुणो जीयणासाय ॥ वाण्याम् २४५ नारीनिन्दायाम् २१७ ५. कामपरिहारे २१७ ५५ विनये . १८४ नारीनिन्दायाम् ८ २२ देवे ११. ३६ प्रियतमे २१ १६ देहासारतायाम् ५० २२४ गणिकायाम् ३१४ ५४९ मांसपरिहारे १९३ १६४ गणिकायाम् ३१४ ५५. बुभुक्षायाम् १२ ४४-४५ गुणाग्रहणे १५ १५५ नरायाम् २३५ १९१ अप्रमादे . ३१६ ५६८ दुर्जन-सुजनविवेके २ ३१ जरायाम् २९२ २७२ अतिथौ १.९ ३३ देहासारतायाम् १७० २-६ निर्वेदे १९६ १९३-९४ कामपरिहारे २१८६. Page #451 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६८ चउप्पन्नमहापुरिसचरियं । जत्थुप्पण्णो सयछिजज्जरं सव्वहा समीहंतो । तं चिय दाझं घुणकीडउ व्ध सुयणं खलो खवइ ।। दुर्जने ३१८ ५९४ जम्मो णिरत्थओ तीए जीए महिलाए मम्मणुल्लावो । रमिऊण धूलिधवलो पुत्तो णामहइ अकम्मि ॥ जलकलुसकलिलभरियंडसच्छहे लोयणम्मि रायंधो । सच्छप्पयकमलदलद्धविन्भमुष्पेक्खणक्खणिओ ॥ नारीदेहनिन्दायाम् १७० १. जलणस्स दारुणिवहेहिं णेय, जह जलणिहिस्स सलिलेहिं । तह संतोसो ण हु होइ जंतुणो कामभोगेहिं ॥ कामपरिहारे २१८ ६३ जस्स उण णाण-दसण-चरणाई मणे जहुत्तकारिस्स । तस्स परस्सावस्सं हवंति सग्गा-ऽपवग्गा वि ॥ कर्मविपाके १ ९१ जस्स कएणं तम्मसि णिचमकज्जाई कुणसि रे जीव! । मुत्त-पुरीसाहारस्स रोगणिलयस्स पावस्स ॥ चितिजंताऽणिट्ठा तस्सेसा पावपरिणई णिययं । असुइ व भूइपुंज व्व होइ किमियाण णिवहो च ॥ देहासारतायाम् ५. २२७-२८ जस्स किलिस्सति कए विसय सुहासाहिलासलोहेण । तं पि सरीरं खणभंगिपवणविहुयं व णिबफलं ॥ २३५ १८८ जस्स ण सदा भत्ति व पवयणे चित्तसुद्धया णेय । बहवं पि किलिस्सतस्स तस्स तं जायइ णिरत्यं ॥ तपोनष्फल्ये २८० ९४ जस्स ण संतोसो वरविलासरसियाहिं सुरपुरंधीहिं । सो चेय कह णु मयणो माणुसभोगेहिं तिप्पीहि ? ॥ कामपरिहारे २१८ ६१ जस्स ण सुहेण सुहियं दइयं, ण य दुक्खदुक्खियं होई । समसन्भावसिणेहं ण नस्स किं तस्स जम्मेण ? प्रियसंयोगे १५६ १६ जस्सऽणुकूला पियदसणा [य] मियु-मंजुभासणसयोहा । सयलगुणाहाणं घरसिरि घ घरिणी सुहं तस्स ॥ नारीप्रशंसायाम् २९ ८५ अस्स परिओस-रोसा वि णि'फला जंति जंतुणो भुवणे । उच्छुपसूयस्स व णिप्फलेण किं तस्स जम्मेण ? ॥ ___ जन्मनैरर्थक्ये २२८ १२७ जह अमुणियसहत्थो कन्वं काऊण महइ मइमूढो । तह अकयकुसलकम्मो इच्छइ परमेसरसुहाई ॥ धर्मकरणे २५५ ११५ जह उग्गओ रवी जयलम्मि ण खणं पि णिच्चलो होइ । तह तारुण्णं जीवाण होइ ण थिरं मुहुत्तं पि ॥ यौवनास्थैयें २४७ ३१ जह ऊसरम्मि वविऊण कोइ मूढो विमग्गए साली । तह णाणुचिण्णधम्मो मग्गइ सोक्खाई भोत्तूणं ॥ धर्मकरणे २५५ ११४ जह जलइ पायवो णेय अप्पयं मूलपसरवइरित्तो । तह धम्मो धम्मत्थीण होइ ण विणा दयाए फुड ॥ दयायाम् २६१ २०२ जह जलहिम्मि णिहित्तेण कह वि कुम्मेण लद्धमुवरितलं । तह लद्धं मणुयत्तं मए णिबुडेण संसारे ॥ मानवभवदौर्लभ्ये २५३ ९२ जह जीवियं तुह पियं णिययं तह होइ सव्वजीवाणं । पियजीवियाण जीवाण रक्ख जीयं सजीयं व ॥ दयायाम् १४९ ३ जह णयरं ण लहइ वियडगोउरहारविरहियं सोहं । धम्मुज्जुयाण ण लहइ तहेव धम्मो दयाए विणा ॥ दयायाम् २६२ २०५ जह णिण्णयाओ उवहिम्मि ण य णियत्तंति णिवडियाओ पुणो । तह ण पुणो पल्लदृति तणुम्मि स्वाइसोहग्गं ॥ जरायाम् २४७ ३० जह पवणपेल्लिओ सुक्कदारुछारो दिसोदिसि विगओ । ण मिलइ पुणो वि तह वोलियं खु मणुयाण माणुस्सं ॥ मानवभवदौर्लभ्ये २४८ ३६ जह पवरचित्तभित्ती सलिलुप्पुसिया ण देइ परभायं । तह जर-मरणालिद्धं तणू वि सोहं ण पावेइ ॥ जरायाम् २४७ २९ जह पव्वाया कुसुमाण मालिया णेय लहइ परिभोयं । तह विसइच्छं क्यपरिणयंगलट्ठी ण पावेइ । जरायाम् २४८ ३५ जह पाविडं ण तीरइ परमाणुचओ दिसा(सो)दिसि विगओ । गुरुयरपवणाइद्धो तहेव विगयं खु मणुयत्तं ॥ मानवभवदौर्लभ्ये २५२ ९१ बह बीएण विणा होइ णेय सयला वि सासनिष्फत्ती । तह धम्मत्थीण ण होइ णूण धम्मो दयाए विणा ॥ दयायाम् २६२ २०३ जह रहवर-तुरय-गइंदसंकुलं साहणं विणा पहुणो । सोहं ण देइ, धम्मो दयाए रहिओ तह जतीण ॥ दयायाम् २६२ २०४ जह सलिलं वारिहरुण्णतीए ण विणा कहिं पि संपडइ । तह धम्मो पाणिदयाए विरहिओ णेय संपडइ ॥ दयायाम् २६२ २०६ जह सुविणयम्भि रोरस्स रयणलंभो तुडीए संपडिओ । सो च्चिय णिहाविरमम्मि दुल्लहो तह व मणुयत्तं ॥ मानवभवदौर्लभ्ये २५२ ९. जह सुसियपायवे णेय होंति वेल्लबलपल्लवुप्पीला । विसयविलासा जायंति णेय तह परिणए देहे ॥ जरायाम् २४७ ३३ जह हन्ववहस्स सिहा णिव्वाणा ण य पुणो बि पजलइ । तह चेट्ठा वि हु सयलिदियाण विगया ण संघडइ ॥ जरायाम् २४८ ३४ जह हियभितरगुरुपयत्तकज्जुजओ वि गयवियलो । पावइ ण इच्छियदिसं धम्मेण विणा तहा जंतू ॥ धर्मकरणे २५५ ११२ जं आसि दुरालोय फुरियपयावस्स मंडलं रविणो । उबत्तिजइ सायम्मि 'तेयरक्खा जए गहई '॥ तेजःक्षये ४६ १६६ जं चिंतिजइ हियएण नेव, जुजइ ण चेव जुत्तीहिं । विहडण-संघडणपरो तं पि हयासो विही कुणइ ॥ __ दैवे २३ २५ जं जत्थ जया जुजइ काउं तं तह कुणंति बुहसंघा । किं कुणइ दारकुंभम्मि कोइ बालो वि हव्ववहं ? ॥ उचितकार्य २९१ २६४ जं जत्थ जेण जइया पावेयचं सुहं व दुक्खं वा । करहं व रज्जुगहियं बला तहिं गति कम्माई ॥ दैवे २१४ ४४ जे जेण जहा जइया सुहमसुहं वा समज्जियं कम्मं । तं तस्स तहा तइया तयाणुरूवं फलं देइ ॥ कर्मविपाके ६० ४२ जं परलोयविरुदं लोओ ववहरइ मुक्कमज्जाओ । तत्थ णिमित्तमणजा विसया विसभोयणसमाणा ॥ विषयासारतायाम् ४८ २०३ जं संजमुज्जमावजियं चरितं बहूहि वासेहिं । तं तूलं व खणेणं कोहो णिहइ जलणो ब्व ॥ कोधपरिहारे ३३२ ७६९ जा घेप्पइ खग्गं भंजिऊण रिउणो सिरम्मि दुक्खेहिं । सा रायसिरी अणहेण भणसु कह मुच्चइ समेण? ॥ शौर्य २४२ २७२ जा जीवंताणं चिय भुजइ पुत्तेहिं बंधुवग्गेहिं । सा लच्छी देइ धिई, मयस्स उण णस्थि उ विसेसो ॥ पितृलक्ष्मीभोगे ५६ १. जा दुहिय त्ति कलेऊण चुंबिया सरसवयणकमलम्मि । स चेय पुणो जम्मंतरम्मि दइय त्ति हेण ॥ निर्वेदे १९६ १९५ जाया जस्स सयासाओ उवह कहमप्पणो वि उप्पत्ती । धूमद्धत ब्व दारं तं चिय सुयणं खलो उहह ॥ दुर्जने ३१८ ५९५ जाव पियत्तणसंजणियचाडपरियम्महिययपरिओसा । णियदइया वि हु क्यपरिणयाण विवरम्मुहा होइ ॥ जरायाम् २३५ १९० जा ससुरासुर-किष्णर-विज्जाहर-णरसुरेहि घेप्पंती, । सा आणा बंधुसु खल्इ णवर येवो अलंकारो ॥ बान्धवाशाभङ्गशोभायाम् १४ १४९ Page #452 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सप्तमं परिशिष्टम् । ३६९ जिणवयणमुणियतत्ताण सयलकिरियाकलावसंजत्ति । संजणइ जोधणे घेव संजमो बलसमत्थाण ॥ संयमे २१७ ५३ जीयं णिरत्ययं होइ सुयणु ! पियसंगमेण रहियस्स । इह जोव्वर्ण पहाणं तत्थ वि पियसंगमसुहाई ॥ प्रियसंयोगे १५६ १२, जीवाइपयत्यऽन्भासणेकववसायनिच्छियमइतं । बहुविहपवित्तसत्थऽस्थवित्थराराहणं होई ॥ तं पि पसण्णे गुरुयणमणम्मि बहुविमलसत्थणिम्माए । पयडियसमतण-मणि-लेठ्ठ-कंचणे समसुह-दुहम्मि ॥ होइ गुरू सुपसण्णो तचित्ताराहणेण विणएण । तस्स विणयस्स विग्धं करेइ माणो वियंभंतो॥ गुरुपर्युपास्तौ ४९ २२०-२२ जीवावेइ मरतं. अण्णं मारेइ, मरइ सह तेण । को मुणइ जुवइचरिय विसेसओ सीलरहियाणं ॥ नारीनिन्दायाम् ५९ ३५ जीवो अणादिबहुभवकालजियगरुयकम्मसंताणो । परिभमइ दुहसयावत्तदुग्गमे भवसमुद्दम्मि ॥ निर्वे दे २४७ २२ जे अस्थ-काम-धम्मा काउं तरुणत्तणम्मि कीरति । परिणयवयस्स ते चेय होंति गिरिणो ब्व दुघा ॥ तारुण्ये २१८ ६२ जेण जहिच्छं सच्छंदविलसिउम्मग्गगामिणो मूढा । अच्छंति चत्तपरलोयकयहियायरणवावारा ॥ बहुदुक्खलक्खसंजणियवियणसंतावतारयमणग्छ । गुरुयणवयणं घोटेंति णेय अगय व दिजंत ॥ मूढे २३५ १८६-८७ जेण जुवाणत्ते णियसरूयसोहग्गगम्विएण दढं । परिसकिज्जइ उम्मुहवित्थारियणयणमग्गेण ॥ वेणेय जराजजरपरिणामोअल्लतणुविहारण । भण्णसासत्तकरेण णीसह वेविरंगेण ॥ जरायाम् २४७ १६-१७ जेणऽष्णभवंतरमुवगयस्स वग्धी सुयस्स णिययस्स । मंसमसइ ति तुहा अओ परं कि य कट्टयरं ? ॥ निवेदे १९६ १९. जे संसारालंकारकारणं महियलम्मि ते केइ । उप्पजति सरूवेण पुण्णरासि व्व सप्पुरिसा ॥ महापुरुषे ८६ . जे होति महापुरिसा ते ठिइभंग कुणंति ण कया वि । उवलद्धो कि केण वि मग्गुत्तिण्णो रहो रविणो ! ॥ मर्यादायाम् ६३ ७२ जे होति महापुरिसा ते परकज्जुज्जया सया होति । णियकर्ज पुण तं ताण जं परत्थाण णिव्वहणं । महापुरुषे ११२ ६३ जो भासि भमिरभमरंजणुजलो कसणकेसपच्भारो । सो चेय विसयवोसट्टकासकुसुमप्पहो होइ ॥ निवेंदे २४७ २. जो उण भकिंचणो चिय गिण्हति दिक्खा णिरत्थया तस्स । धणसंपत्ती गेहं तेण विणा होइ वणवासो ॥ निद्रव्यप्रवज्यानिन्दायाम् ३२११६ यो उण शिंदेइ गुरुं णिण्हवइ य गोरवं विमग्गेतो । तस्स जइ कह वि विजा होइ फलं ग उण से देइ ॥ कर्मविपाके १४ जो उण रूवमएणं समाउलो जिंदई य पररूवं । सो होइ कुरूवो माणुसत्तणे हुंडसंठाणे ॥ कर्मविपाके ८१ ६५ ओ उण सयलणरीसरपरिणामाऽसज्झदारुणो भुवणे । लच्छीमओ महायस ! पुरिस लहुएइ सयराहं ॥ लक्ष्मीमदे ७० १८१ जो उवएस पावम्मि देइ सो वेरिओ, ण संदेहो । जो कुणइ धम्मबुद्धिं सो तस्स जणो परमबंधू ॥ परमार्थबान्धवे ४५ १५० जो उवघाए बट्टइ परस्स लच्छी कहंचि पत्ता वि । तस्स पलायइ दुक्खज्जिया वि धणसंपया विउला ॥ कर्मविपाके ८, ७६ जो एस देव ! सोभो सो सोओ सयलपावपसरस्स । अबुहेहि सयाऽऽयरिओ परिहरिओ पंडियजणेणं ॥ वाहीण परं ठाणं, मूलं अरतीए, सोक्खपडिवक्खो । अण्णाणपढमचिंध णरयदुवार गुणविणासो ॥ बाहेइ सयलकजाई एस, परिहरइ उत्तमविवेयं । धम्म-ऽत्थ-काम-मोक्खाण विग्घहेऊ महापावो ॥ शोके ६९ १६९-७१ जो कारवेइ पडिमं जिणाण जियराग-दोस-मोहाणं । सो पावइ अण्णभवे भवमहणं धम्मवररयणं ॥ . जिनप्रतिमानिर्माणे १५३ जो कुणा अंतरायं परस्सणासं जणस्स अवलवइ । सो पावइ दोगचं सयलजणपरिहवमुयारं ॥ कर्मविपाके ८१ ८७ . जो कुणइ महापावो जंतूणं कह वि अवयवविणासं । सो चिय तयंगविगलोऽसंपुष्णगो य पावीओ (1)॥ ८१ ८५ जो कोउएण इच्छइ दट्टुं णरए दुहेक्कणिम्माए । एकदियह पि रज सो कुणउ अचेयणो निययं ॥ राज्यश्रीनिन्दायाम् १८९ २९ जो चिय एकस्स खलो सो चिय अण्णस्स सज्जणो होइ । कह 'सुयणो' त्ति थुभिज्जइ . णिदिजइ कह 'खलो काउं ॥ दुर्जन-सुजनविवेके २ जो अणइ य जणपीड णिच्चुदिग्गो य हीणदेहो य । पडणीओ जिणसंघे अणंतसंसारिओ होइ ।। कर्मविपाके ८१ ८९ जो जम्मि चेव जायम्मि होइ णियकम्मपरिणइवसेण । सो रमइ तहिं चिय तेण अभयदाणं पसंसंति ॥ दयायाम् २१५ ४६ जो णिग्गच्छइ मणि-रयण-कणयकलियं पि उग्झिऊण सिरि । अत्थित्तारिच्चाई सो पव्वतिओ फुडं भणिो। समृद्धप्रमज्याप्रशंसायाम् जो तुरय-वसह-महिसाइयाण णिलंछणं सया कुणइ । उकडमोहो य सया जीवो संढत्तणमुवेइ ॥ कर्मविपाके ८० ६. जो दठूण जइजणं अण्ण काणच्छिऊण सढभावो । णिन्बोल्लइ माइलो सो वंकमुहो गरो होइ ॥ जो देइ फासुयं अवसरम्मि साहूण ओस हाईयं । सो होइ धणड्ढो महियलम्भि कित्ती थिरा तस्स ॥ जो पयइभइयाए जह कह वि जतीजणे पयच्छेइ । फासुयदाणं तस्स यऽथिरा वि लच्छी थिरा होइ ॥ जो पररंधाई अदिट्ठयाई दिहाई जंपइ अणज्जो । छायांभंसपसत्तो जचंधो होइ जियलोए ॥ जो प्या-सकाराइ-दाण-सम्माण-कित्तिकलणाए । कीरइ तवो ग सो होइ तस्स व्याणपजतो ॥ तपसि २८. जो मायावी पिसुणो वंचणसीलो तहा कयग्यो य । तस्सुवकयं पणस्सइ, विवरीयगुणस्स संठाइ ॥ कर्मविपाके ८१ जोयणसयाओ तह समहियाजो लक्खेइ आमिसं सउणो । यो चेव मरणकाले पासाबंधं ण लक्खेइ ॥ मो वि पियसंगमाभो सुहाहिमाणो हवेज अंतूण । सो वि वियोगाणलसंगदूसिओ दड्ढमाणहओ ॥ नि दे १.५ जोवण-मयणुम्मत्तेहि विसयतण्हाविमोहियमणेहिं । जं कीरइ इह पुरिसाहमेहिं तं णिरयगइमूलं ॥ . विषयविरागे जोग्वणमयणुम्मिलंतपडगंडयलवयणससिबिंद । णिम्बवणकारणं कि कयाइ गरयम्गितवियाणं? ॥ नारीदेहनिन्दायाम् २८ ७२ Jain Education National Page #453 -------------------------------------------------------------------------- ________________ घउप्पन्नमहापुरिसपरिम। ओ सुयबहुमाणपरो विषयुग्जुत्तो गुरुण भत्तिगओ । सो पावै अहिच्छ विजं तीए फलं चेव ॥ कर्मविपाके १ ७३ उहण-उंकण-घायण-छयणेहि दुक्खं जियाण पकरेंतो । बहुरोगी होइ गरो, विवरीभो जायइ अरोगो॥ कर्मविपाके १४ ण गणेइ गुरू, ण गणेइ मायरं, णेय गोरवं, ण भयं । ण य लज, ण य हे, ण बंधव, णेय मजायं ॥ ण कयं, णायकय चिय, ण य मित्त, णेय कुल-गणायारं । अस्थो णिरत्थओ चिय, माणबहियस्स पुरिसस्त्र ।। मानस्यागे ४९ २१७-१८ ण गणेइ णिरयवियणाभो, णेय लज, ण गोरवं, ण कुलं । विसयविसमोहियमई कज्जा ऽकज्ज ण लक्खेह ॥ विषयविरागे १७ २०० ण गुणेहिं. णेय रूवेण, गोवयारेण, गेय जीएणं । घेप्पड़ महिलाण मणो चवलो पवणुधुयधभो व ॥ नारीनिन्दायाम् १२७ १. त्थि पंथनेयाउ परा वयपरिणई, गेय रुंददारिदसमो वि हु परिहयो । मरणयाहि ण हु जायइ अण्णभयं परं, वेयणा वि ण छुहाए समा किर जंतुणो ॥ जोव्यणसिरि सोहागय, महिमाण परकमो कुल सीलं । लज्ज बलावलेवओ, खणेण एका पणासेइ ॥ क्षुधायाम् २२० ७७-७८ ण भणियमेत्तं चिय हियमहिच्छुणा तं तहेब घेत्तव्वं । जाव ग दिलु पञ्चक्खमप्पणा किमिह मह कजं ! ॥ नीतौ २४५ ३ ण य अण्णबलं बलिणो समागय भुयबलं च मोत्तूण । हरिणो करिकुंभवियारणम्मि किं परबलावेक्ता ! ॥ शौर्य २९४ ३.८ ण य कुसलयम्मकजुज्जम विणा होति जीवलोयम्मि । सोक्खाई हियचितियमणोरहुप्पाइयासाई॥ धर्मकरणे २५५ १११ गयणाई जाई लीलापलोयणोप्पियमयाई तरुणीण । आसि पुणो क्यविरमम्मि ताई अगारिसाई व ॥ निर्वेदे २४७ १८ णयभायणम्मि संपडइ सयलगुणरिद्धिसंभवो पूणं । गयरहियाणं पुण संगओ वि ण थिरतगं महद ॥ नीती २९५ ३२१ णयरहिओ भयदरिसि व्व मंतिसत्थो हु जास्सिो होइ । सिद्धी वि तारिस चिय पहुणो कजाण संपडा। अमात्ये २९४ ३.. ण य बिहवो ण म जाई ण पहुक्तं कारणं असल्याए । भवणम्मि भत्थिणो जन्स एंति सो पुग्णहेउ ति ॥ दाने २९१ २५५ गरयदुवार :वसणेककुलहरं सयलपरिहवाबासो । महिलायणसंबंधो चारगबंधी च पुरिसाण ॥ नारी निन्दायाम् . १८ गरयम्मि_णिययकयकम्मवसपरदासपणामियप्पाणो । अगुहवइ विविहसम्याहिघायसंजणियवियणाभो ॥ निवेदे २४७ २३ गरसीहेणं सीहो, मंतेण फणी तहकुसेण करी । महिलामणो प तीरइ केणावि गिरंकुसो घरि ॥ नारीनिन्दायाम् ९ २५ गवघटणकचिदामोरुभूसिओ वियडरमणपन्भारो । अइधोरणस्यपायालवडणरक्खक्लमो कि सो!॥ नारीदेहनिन्दायाम् २८ ७६ णवरमिह ते कयत्था, ते चिय धण्णा य जीयलोयम्मि । जे. मोहणोसहीणं रमणीण ण गोयरे पडिया ॥ नारीनिन्दायाम् ५. २७ ण सहइ माणभंस इयरो इयरं पि, कि पुण महप्पा ? । 'णियभज्जागयपरिहवकलंकिओ कि पि ववसेइ' ॥ स्वमाने १७५ २ ण हु कि पि अकहणिज मित्ते सम्भावणेहमइयम्मि । भिण्णे वि देहमेत्तण अस्स चित्तण न वि मेओ ॥ तह वि ण जुज्जइ णियचरियसाहणं सुवंसजायाण । “गिस्सारा होति गुणा साहिप्पता सइ चेव' ॥ नीतौ १४० ३६-३. ण हु होइ कह वि णासो रे जीव! समज्जियाण कम्माणं । ता महसु जं समावडइ दुक्खजायं अणुब्बिग्यो । निर्वे दे १४४ ५७ णाणुवगरणे वट्टइ णाप्पीण विणय-दाणसंजुत्तो । अग्झावयणे व सुमे बट्टतो होइ मेहावी ॥ कर्मविपाके १८ णापुण्णभाइणो मंदिरम्मि णिलियसयलदारिदा । बहुवष्णविविहमणिसवलमणहरा पडइ वसुहारा ॥ अतिथी २२५ १०८ णिकइयवम्मि पेम्मे पिययम! विरहो अलद्धमाहप्पो । अह विरहो, ण हु पेम्मो, सारसमिहुणेण दिलुतो ॥ स्नेहे १५८ ३. णिच्चमणिच्चे असुइम्मि दुग्गहे मंस-सोणियप्पवहे । देहम्नि वि पडिबंधाउ ब्बिसमा कामदंदोली ॥ देहासारतायाम् ५. २२६ णिजियतियससमूहं रूवं सच्चवह, कि गुणोहेण? । 'सब्बंगसुरहिणो मरुवयस्स कि कुसुमणियरेणं? ।। रूपे ११८ २ णिज्जियसेसुवमाणा परहियसंपाडणेकववसाया । जाति महापुरिसा पयाण पुण्णेहिं भुवणम्मि । महापुरुषे ९२ . णिम्भरमयड्ढवियलियकबोलमूलावलग्गदाणेहिं । दुजयजोहेहि च वारणेहि ण य वारिउं तरइ ॥ चडुलयरखरखुरुक्खयखमायद्धृयधूलिपसरेहिं । तुरयारोहेहिं वि णिसियसेट-खागुग्गहत्थेहिं ।। बहुजणियसुहसंघट्टणिहसणिब्बूढसमस्भारेहि । सावरणपहरणेहिं वि रहेहि रहियग्गजोहेहिं ॥ णिसियासिहत्थवग्गंतफारफुकारमुकहकेहिं । पाइकाण वि णिवहेहिं सवओ रुखपसरेहि ॥ उवएसफयरसायण-विज्जा-मंतोसहप्पयाणेहिं । उब्वरिउ ण हु तीरइ मरणाओ सुरा-ऽसुरेहि पि ॥ मृत्यौ २३५-३६ १९३-९७ णियचरियावजियगश्यकम्मदूसहविवागणिम्मविया । जीवाण पयतिविरसा अइदुक्खपरंपरा होइ । निवेदें णियनाइपचएणं खलसुणहो भसइ जइ वि अण्णस्स । तह वि णियसुदयाए पिसुर्ण सुयणा ण याणंति ॥ दुर्जन-सुजनविवेके २ ३४ णियमंसपोसणं जो इच्छइ परमंसभक्षणं काउं । सो कालकूडकवलणपरायणो जीविड महइ ।। मांसपरिहारे १९३ १६३ णियविसमकम्मकतारगहणपडिओ कुरंगपोओ ब्व । को कुवियकालकेसरिकमागओ चुकए जंतू ? ॥ कृतान्ते २१४ १२ णियसत्तिवजियाणं घरमहिलापालणे वि संदेहो । किं पुण जयसिरिगहणं हढेण जेऊण पडिवक्खं ? ॥ शौर्ये ५ ४८ णूण ण पेच्छंति इमं जाइ-जरा-विविवाहिदसणिलं । च्यविविहजंतुसंताणघायणं मच्चुमुहकहरं ॥ मृत्यौ २३५ १८५ गेइ बिसमं पि भूमि, मिच्छा वोत्तुं पियाणि सिक्खेइ । भिदइ गरुई लज पयोयणं किं ण कारेति ? ॥ परस्त्रीस्नेहे ८ १४ गेहणिमित्तं चिय होइ जंतुणो जणियकम्मणियरस्स । उप्पत्ती णिरयाइसु गतीसु गुरुदुक्खणियरासु ॥ स्नेहपरिहारे ३३४ ७९. हन्भरियं सन्भावणिन्भरं रूव-गुणमहग्धवियं । सममुह-दुक्खं अस्सऽत्यि माणुस सो सुह जिया। नारीप्रशंसायाम् ५५ २६ Page #454 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सप्तमं परिशिष्टम् । ३७२ गेहुच्छित्ती सव्वायरेण जा जुजए जइजणस्स । कह तस्स चेय कीरइ संधाणं जाणमाणेहि ॥ श्रामण्यस्थिरीकरणे १९७ ११० गेहो चिय जायह दढणिबंधणं जंतुणो बुहस्सावि । सविवेइणो वि कुसलुज्जमम्मि दढविग्घहेउ ति ॥ स्नेहपरिहारे ३३४ ७९३ व्हाण-विलेषण-भोयण-अच्छायण-पालणेहि परियरिभो । विहाइ तह वि हु हयदुजणो व देहो ण संदेहो ॥ देहासारतायाम् ५० २२५ तणसिहरलग्गसिण्हातुसारतरला इम थिय जणेइ । लच्छी पवरवियप्पाण णूणमसइ भ्य वेग्गं ॥ लक्ष्मीचापल्ये २१७ ४९ तक्तणुयगाण सया जो पुरिसो भणइ विप्पियमहण्णो । सो पूइमुहो जायइ. कुंटो पुण पण्हिपाएणं ॥ कर्मविपाके ८१ ५ तस्स हुजीयं जाएज माणिणो सहलयाए संबद्धं । जो जियइ सब्बयालं णियतेभोहयपरतेओ । शौर्ये २९३ १९२ तस्सेय णवर सहलं जयम्मि मरणं महाणुभावस्स । जस्स पहू अणियगुणाणुरायसोयं समुम्बहइ ।। सुसेवकमरणे २३३ १६८ व्ह जोवणं पि पवियसियसरयकोजयपसूयसारिच्छं । तस्विरमे उण विसया मयणुम्मच्छ पिछति ॥ विसयविरागे २३५ १८९ तह या उवप्पयाणं पि माणिणो माणमणमुबहह । गलियावलेवपिसुणो जेण सकप्पो तणीकारो ॥ नीती १८५ ७७ तं कि पि पडइ कजं पुवज्जियदुद्वदिव्वजोएणं । मरणे वि जेण गरहा जीयं पुण पावपरिणामो । दैवे ६५ १.६ तं कि पि माणुसं महिलाम्म संपइ विहिणिओएण । चिंताहियाई जम्मि उ णराण जायति सोक्साई॥ नारीप्रशंसायाम् ५७ २५ तं णस्थि चिय भुवणे वि सुबुरिसा दूरणिग्गयपयावा । महिलासंगेण सया विडंबणं जंण पावंति ॥ नारीनिन्दायाम् .. ४. ते पत्थि ज ण कीरइ धणलवलोहेण जीवलोयम्मि । सूरो वि हु अत्थमणे रहेण डो समुद्दम्मि ॥ लोमे ३३८ तं तारिस सु मरणं णवरं धम्माणुहावभो होइ । धम्माण वि जिणधम्मो णारय-तिरियुम्गदुहदलणो ॥ सुमरणे २५० ५७ तं विष्णाणं, सो बुद्धिपयरिसो, मलसमत्थया सा वि । जा उवओयं वचइ सयलगुणाहाणमणुयम्मि ॥ अतिथौ २९८ ३६९ ते सहइ कलाकुसलम्मि रूव-जोम्वण-महागुणग्धविए । ण हु जम्मि वि तम्मि वि माणुसम्मि रहकेलिविरसम्मि ॥ . स्नेहे १५६ २२ ता तुंगो मेरुगिरी, मयरहरी ताव होइ दुत्तारो । ता विसमा कजगई, नाव ण धीरा पवजंति ॥ पुरुषार्थे १३८ । ता मरियम्वं जइ तह विवेइणो होइ जेण जायति । ण उणो पुणो वि कुगतीलंभुन्भडियाई दुक्खाई॥ सुमरणे २५० ५६ सिरियतणे वि वाहण-उहणं-उंकण-कणकप्पणादीणि । अणुहवइ विविहदुक्खाई खुप्पिवासापरिस्संतो ॥ निवेदे २४७ २४ तिळसंबदत्तणकयसणेहपसरा खलत्तपरिणामा । महिला चकियसाल व्व कस्स णो मइलणं कुणइ ? ॥ नारीनिन्दायाम् २१९ ७० तिव्वं तवसंतावं सहेइ क्यपरिणया, ण बालतणू । आयवदंसणमेत्तेण सुसइ गोदयगयं वारि ॥ यौवनवयस्तपोनिषेधे २९१ २६५ तिहुयणसलाहणिज्जा लच्छी, आणा य णरसिरुन्बूढा । एयाणेककं पि हु सुदुजय, किं पुण समूहो? ॥ ऐश्वर्ये .. १८. ते केइ होति भुवणोवरम्मि कप्पतरुणो महासत्ता । जेसिं पारोहो वि हु परहियकरणक्खमो धणियं ॥ महापुरुषे १८. १ हे के वि जए जायंति पुव्वपुण्णाणुहावगुणकलिया । जाणुप्पत्तीए इमो सुणिव्वुओ होइ जियलोओ ॥ ते णवर महापुरिसा जे य अणजेण सोयपसरेण । ण वसीकया कयाइ वि जाणियसंसारपरमत्था ॥ शोके ६९ १७४ ते दो वि राग-दोसा संसारावडणकारणं जेण । अणिवारियसामत्था भणिया ससुरासुरगुरूहि ॥ राग-द्वेषयोः ३३४ ७९६ ते पहु। मया वि ण मया, भहवा ते चेव णवर जीवंति । मरणेण जाण णिबहइ सामिसुह-मित्तकज्जोहो । सुसेवकमरणे २३३ १६६ ते पुण जयम्मि धण्णा जे जिणवरभासिय मुणेऊण । अणिगूहियणियसामत्थमुज्जया धम्मचरणम्मि ॥ धर्मकरणे २५६ १२९ ते पुत्ता जे पिउणो चिण्णेण पहेण सति पयजति । तेसि गुणगहणेगं पिया वि सलहिजइ जयम्मि ॥ पुत्रे ६. ७ तेचनिमित्तं पीलेइ वालु जह व कोइ मइ मूढो । तह धम्मेण विणा केइ सोक्खकजे किलिस्संति ॥ धर्मकरणे २५५ ११३ ते होंति सत्तवता ते संतो ते महायसा भुवणे । जे गति सिरिं सुपइढिरण सप्पुरिसमग्गेण ॥ सद्व्यये ६३ ३ थेवं पि विरहदुक्खं ण सहइ, गरुय पि चणं सहइ । वट्टइ सोमालिम-जरढियाउ दइए समप्पंति ॥ स्नेहे १५७ २८ दइयविरहे वि जा धरइ जामिणी तीए मतिलणमणग्धं । इय कलिऊण व दिवसो सह रविणा सायमत्थमिओ ॥ स्वजनविरहे १६ १६८ दइयाविओयदुक्खं पुहवीलंभो वि णेय णासेइ । ववगयरजदुहं पुण सुमित्तलंभो पणासेइ ॥ मित्रे २३० २०० दट्ठोभिउडिभासुरकरालधाराफुरतकरवाले । पविसति माणखंडणभएण रणसंकडिल्लम्मि ॥ स्वमाने ५० ३. दड्ढस्स हुयवहेणं सो चेव महोसहं महापवियं । तह तुह दसणविहुरे पुणो वि तुह दंसणं चेव ॥ प्रियविरहे १.८ १. दप्पियपडिवक्खं पति सामो भीरुत्तणप्फलो होइ तरुणजरस्स व जुजइ समोसह कोवकरणाय ।। नीतौ १८५ ७५ दरदसियभवणोववणकाणणुप्पाइउन्भडसुहासा । स्यब्वणयरसोहब पेच्छमाणस्स वि पलाइ॥ बहुविहगयंदगंब्यलगलियमयसलिलपंकखुत्त व । भहियं पक्खलइ महाणरिंदगुरुमंदिरेसु पि ॥ अणवरयकमलसंचरणलागणाळग्गकंटयं व खणं । कत्या पयं णिवेसइ ण णिभरं अज्ज वि खणं पि ॥ संपण्णमूलदढदंडकोसमंडलवियासपउरम्मि । दियसावसाणकमलं व मुयइ मणुयं महियलम्मि ॥ श्य दिणयरमुत्तीए व बहुविहसंकेतिलद्धपसराए । एयाए को ण तविओ जयम्मि लच्छीए सच्छंदं ! ॥ लक्ष्मीचापल्ये २५१ ८५-८९ दंड-कस-सत्थ-रज्जू-य-तोमर-खग्ग-मोग्गराधीहि । दुक्ख उप्पाएंतो जीवाणं होइ बहुवियणो । कर्मविपाके ८१ ७. दंसेइ गरुयसन्भावणिन्भरं पेम्मपरिणई महिला । णियजाइपच्चएणं अणं चिय किं पि चितेइ ॥ नारीनिन्दायाम् ॥ ५२ दाणं दविणेण विणा ण होइ, दविणं च धम्भरहियाणं । धम्मो विणयविहूणाण, माणजुत्ताण विणओ वि॥ मानपरिहारे ११९ ९ . Page #455 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७२ चउप्पन्नमहापुरिसचरियं । " दियह चिय प्ररगुणविहवदंसणे ठाइ मुच्छिउ न्च खलो । तेलोकरजलमे वि शवर दोसे दिहि पत्तो ॥ दुर्जने ३१८ ५९. दीणाण समुदरणं, भयम्मि रक्खा, गुरुम्मि तह विणओ । दप्पु राण समर्ण, दाणं दारिदतवियाणं ॥ सव्वस्स पियंत्यया बंधुसिणेहो कयण्णुया सम्छ । सप्पुरिसाण महायस | सययं चिय होइ, कि भणिमो? ॥ . सत्पुरुषे ६७ १६-१७ दुक्खयाण सुहवावडाण जीवाण जीवलोगम्मि । होति जहिच्छं भोगा सुपत्तदाणाणुहावेणं ॥ __ दाने १६२ ६१ दुक्खपडियारहेउम्मि तम्मि को विसयसंभवे सोक्खे । अणुबंधं कुणति णरोऽवसाणविरसम्मि संसारे? ॥ विषयविरागे १७५ २८ दुक्खस्स उध्वियंतो हंतूण परं करेसि पडियारं । पाविहिसि पुणो दुक्खं बहुययरं तण्णिमित्तेण ॥ दयायाम् १४९ ४ दुष्टहजणाणुराएण गरुयपेमाणुबंधपसरेण । एवंविहम्मि काले सलाहजइ मित्त | मरणं पि ॥ प्रेमपात्रासंयोगे १.७ ८ दुल्लहलभम्मि जणे जस्स अवुष्णेहि होइ अणुबंधो । गिरिसरियासलिलेण व पइदियह तेण सुसियब्वं ।। दुस्सीलेहि सुएहि पि लहइ वयणिजयं पिया सययं । 'किरणा तवंति भुवणं लोओ सूरस्स स्सेइ' ॥ कुपुत्रे ६४ ७४ दूरं कारुण्ण-सुइत्तणाई लज्जा य होति मुक्काई । धम्मो दया य पूणं मंसमसंतेण मणुएण ॥ मांसपरिहारे १९३ १६७ दूरे पच्चासत्ती, सणमवि जस्स दुलहं होइ । संसारुत्तरणसह णाम पि हु सो जए जियइ ॥ महापुरुषे १२९ १ देयाइसु 'जीय, निएसु, सामि! सम्माणसु' त्ति भणिऊण | अणुचरिओ जो सामित्तगम्नि विणओणयंगेण ॥ सो चेव भिचभावं समागओ कम्मपरिणइवसेण । अंतोपसरियगुरुमच्छरेण निभच्छिओ पेच्छ ।। निर्वे दे १९६ १९६-९७ देवत्तणे वि दट्ठ महिड्ढि-सकाइणो सुरसमूहा । जणियाहिओग्गमीसावसाइयं लहइ बहुदुक्ख ॥ २४७ २७ देवायत्ते जम्मम्मि कह गु गरुयाण फुरइ माहप्पं । ववसायसहाया तं कुणंति ते जं जगन्महियं ॥ महापुरुषे १६९ १ देव्वस्स मस्थए पाडिऊण सव्वं सहति कापुरिसा । देव्वो वि ताण संकइ जाणं तेभो परिप्फुरद ॥ पुरुषार्थे ११८ . देहेण णिसण्णासण्णवाहिवियणाकयंतकलिएण । धुवमधुवेण लब्भइ मोक्खसुई कि ण पज्जत्तं? ॥ . देहसारतायाम् २१७ ५८ दोगचं पि ण णजइ, ण गणिजइ आवई वि गस्ययरी । हिययस्स णिन्बुइकरो जाण सुओ गुणगणाहारो॥ सुपुत्रे ६ दोगच्चं पि ण णजइ विहवे लालाण कारणमणग्वं । सयलसुहाण णिहाणं पुण्णेहि जणो जणं लहइ ॥ नारीप्रशंसायाम् २८ .८२ दो चेव णवर णीतीओ होति हियइच्छिया गुणा जत्थ । सामं व विणयपिसुणं दंडो व पयाववित्थारो ॥ नीतौ ६१ ८७ दोसा ण जत्थ जायंति, होति हियइच्छिया गुणा जत्थ । अणणुण्णाएण वि तं गुरुम्मि सुवि(यि) होइ करणीय ॥ गुरुसुश्रूषायाम् २९९ ३७५ धण्णा पार्वति जए चउव्विहं धम्ममासयविसुद्धं । सावय 1 जिणपण्णत्तं संसारुत्तारणसमत्थं ॥ धर्म ७८ १७ धम्मसुइविउलमूलभवस्स मइनेहसलिलसित्तस्स । चारित्तरुंदकंद-क्खमाइसाह-प्पसाहस्स ॥ छट्ट-ट्ठम-दसम-दुवालसाइतवचरणबहलपत्तस्स । णरवइ-सुरिंदधणसंपयाइकुसुमोहगहणस्स ॥ उत्तमणरचरियमहादुमस्स गुण-मोक्खफलसमिद्धस्स । सवणच्छाया वि फुड ण होइ पुण्णेहि रहियस्स ॥ सुचरितश्रवणे ४ ५०-५२ धम्मो सुसेविभो होइ कारणं अत्थ-काम-मोक्खाणं । तेण विणा किं सिज्झउ, कारणओ कजसिद्धि ति ॥ धर्मकरणे ११३ . धि! तसि मणुयाणं जे मणुयभवं पि णाम लक्ष्ण । विसयाहिलासवेलवियमाणसा गति णियजम्मं ॥ विषयविरागे २५६ १२८ धीरतणं पिछडिति, देति दुक्खस्स गवरमपाणं । कज्जा-ऽकजं ण मुणंति सोयगहिया जए पुरिसा ॥ शोकपरिहारे ६९ १५३ धीरपरिग्गहगल्यं जाणइ चक्कम्मिउं कुलपसूओ । आयार-णयहरे पहुघरम्मि संवडिओ य सया ।। कुलीनत्वे ४५ १५७ धी। संसारो, जहियं उवइसइ जणो परस्स वसणम्मि । सो चिय तव्वेल चिय रुयइ सकरुण रुयावेतो ॥ परोपदेशपाण्डित्ये ६९ १४६ पइसमय चिय विसरइ बल-मेहा-का-जोवण-गुणेहिं । आउबलेणं च तहा तेण सरीरं ति किं भणिमो ? ॥ देहासारतायाम् ५. २३० पक्खीण सावयाण य विच्छोयं ण य करेइ जो पुरिसो । जीवेसु य कुणइ दयं तस्स अवच्चाई जीवंति ॥ कर्मविपाके १ ८१ पच्चक्खं चिय सुन्वति राम-रामण-णलाइणरणाहा । संपत्ता वसणसयाई रमणिवासंगवामूढा ॥ नारीनिन्दायाम् ३१ ५१७ पडिगीय-अंतराइय-णाणुवघाए य वट्टइ अभिक्खं । अवमण्णेतो य सया सुयजेढे होइ दुम्मेहो ॥ कर्मविपाके ८१ ६९ पढम जणंति सोक्खं साउत्तणजणियमणहरं भोया । किंपागफलासाइयरस ब पच्छा विणासंति ॥ विषयविरागे २१८ ६५ पढमाभासी महुरो पियंवओ विणय-खंतिसंपण्णो । जणमण-णयणाणंदो सुहओ सम्बत्थ सो होइ । कर्मविपाके ८१ ६६ पत्ताहासेहि ण किंचि कजमेत्थं बहूहि मिलिएहिं । 'उज्जोयं कुणइ मणी कायमणीमज्झयारम्सि' ॥ कुगुरौ ३१२ ५३४ पयडेइ ससहरो चिय अणिच्चयं तिहुयणस्स तदियहं । बोलेंति जस्स दियहा एक्सस्वेण ण हुदो वि ॥ दैवे ६९ १६६ पयतीए नइ वि कुडिला चलचित्ता जइ वि दुग्गहसहावा । तह वि सुहाण णिहाणं महिलारयणं महियलम्मि ॥ नारीप्रशंसायाम् १८० ३ पयतीए णिग्गुणो चिय देहो देहीण पत्थि संदेहो,। भरिओ मुत्त-पुरीसाइयस्स मेज्झस्स कलुसस्स ॥ वस-मस-रुहिर-फोफस-कलमलभरियस्स दुरहिगंधस्स । अविवेइणो इमस्स वि मंडण-परिकम्मणक्खणिया । देहासारतायाम् १४३ ४८-४९ पयतीए तणुकसाओ अणुकंपा-दाण-सोल-गुणकलिओ । जीवाण रक्खणपरो होइ सुही जीवलायम्मि ॥ कर्मविपाके १५ परजणहियत्थकजे समुज्जया जणियविविहविग्धा वि । णिवाहंति चिय तं पुणो वि णूणं महापुरिसा ।। महापुरुषे २७. परपेरिया सलोहा अगणियणिययाववायसंदोहा । तेल्लियकुसि व्व महिला खलस्स वयणं पणामेइ ॥ नारीनिन्दायाम २१९ १ पररमणिस्वदंसणसुहाइ जो णेय पत्थइ कयाइ । ण य दिइ पररूत्रं पुरिसो सो होइ रुवस्सी ॥ कर्मविपाके ८१ ६४ Page #456 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सप्तमं परिशिष्टम् । ३७३ परलोयणिप्पिवासा तं तं कुब्र्वति मोहिया जीवा । णर-णरय-तिरियभावे जं जं अहियत्तणे पडइ ॥ निर्वेदे १४४ ५६ परलोयणिन्भया दुल्लह पि लघृण माणुसं जम्मं । अण्णाणमोहिया ण य कुगंति धम्मम्मि णिययमणं ॥ अज्ञाने २३५ १८४ परवसणम्मि सुहेणं संसाराणिञ्चयं कहइ लोओ । णियबंधुयणविणासे सव्वस्स चलंति बुद्धीओ ॥ परोपदेशपाण्डित्ये ६८ १४५ परहियकज्जेकरया चिंतामणि-कप्पपायवन्भहिया । उप्पजति पयाणं पुण्णेहिं जए महापुरिसा ॥ महापुरुषे ११५ . परिचितिओ वि सहसा अंग णिध्ववइ पिययमो णवरं । अण्णं पि य किं पि रसंतरं तु दिट्ठो उण जणेइ ॥ प्रियसंयोगे १.९ ३२ परिछिदिउं ण तीरइ पुब्धि जो गरुयवढियपयावो । सो चेव आकलिज्जइ सायमवस्थाकलणहेऊ ॥ तेजःक्षये ४६ १६७ परिभोयमेत्तसंकेतविसविवायं व तक्खणं जंतू । आसीविसो न विसया सेविजंता खय ऐति ॥ विषयविरागे २१८ ६. परिमंदमारुउब्वेल्लकयलिदलतरलजीवियब्वम्मि । इह माणुसम्मि जम्मे कह व सयण्णो कुणउ राय ? ॥ रागपरिहारे २५६ १२७ परिसीलणीयरुइरे रोग-जरा-मरणपीडिए णिचं । खणविसरारुसहावे देहे कह कीरउ थिरासा? ॥ देहासारतायाम् १४३ ५३ 'परिहरसु विसयसंग, उज्झसु असमंजसं, तवं चरसु' । इय भणइ व णिहुयं सुयणु | कण्णमूलागय पलिय ॥ जरायाम् ३. ९५ पवणुच्छलंतसहमहल्लकल्लोलभीसणारावं । मयरहरं पि हु पविसति ण उण माणं विराहेति ।। स्वमाने ५७ ३२ पवणुद्धाइयभीसणजालोलिकरालिए हुयवहम्मि । माणभंसणभीया सहसा सलहत्तणमुवेति ॥ पन्चज्जा किल णिकिंचणाइया, जस्स ते चिय परेकं । 'वणवाससमाणाणहेलणस्स किं तस्स दिक्खाए!'॥ निद्रव्यप्रवज्यानिन्दायाम् ३२१ ६१७ पसरयइ चिय खलाण परोक्यारेककरणरसियम्मि । अवलोइयम्मि सुयणम्मि अमरिसो पयइदोसेण ॥ दुर्जने २८४ १५१ पसुसरिसो होइ गरो विसयसुहासापिसायसञ्चविओ । मूढो अंधो व्व सया हियमहियं वा ण याणेति ॥ गायरइ धम्मचरण, जिंदइ गुरु-देवयं, भयं मुयइ । ण गणेइ गेह-गोरव-लज, ण य विणय-मजायं ॥ विषयविरागे ४८ २०१-२ पंडिच्चं जाई पोरसं च कुल-सील-गुणववत्थंभो । विहडंति जीए संगण, दुकय णवर संठाइ ॥ ण सहेइ सीलसारं, बंधुं परिहरइ, सुपुरिसं हणइ । णाणापयारवंचणसमुजया जा सया लोए ॥ ण गणेइ कयं, ण गुणे, दक्खिणं णावबुज्झइ कयाइ । ण य पोरुसं, ण विज, ण य लज, णेय मज्वायं ॥ जा असमंजसकरणुज्जया सया जा खलत्तणफला य । सा रायसिरी माणुण्णयाण कह सम्मया होइ?॥ राग्यश्रीनिन्दायाम् ४८ २०९-१२ पाडेइ महावत्ते पियरं धूया पओहरारंभे । वड्ढंती अणुवरिसं सरिय व्व तडं ण संदेहो ॥ दुहितरि १५४ ५ पाणं गेयं गट्टे मयणाहि घणत्थणीओ महिलाभो । एयाई संति जत्थ य सो सग्गो, सेसयं रणं ॥ कामे ३ ४५ पायवडियं पि दूरागय पि लेह व सयलगहियत्थं । फालेऊण समुज्झति दूरमकयण्णुयाओ दर्द ॥ गणिकायाम् ३१४ ५५१ पावं कुणमाणस्स वि ण कया वि कुणति साहुणो कह वि । इह कीरंतं पावं पुणों वि समहिट्ठए पुरओ ॥ सत्पुरुषे २१६ ४० पिपतिपुरद्य श्वो वा जराधुणोत्कीर्णदेहसारोऽपि । धर्म प्रति नोद्यच्छति वृद्धपशुस्तिष्ठति निराशः ॥ धर्मकरणे १८९ पिय अणुकूली घरि सरइ, अण्णु भुवणि जसवडहउ वजइ । एत्य समप्पइ मोक्खमुहूं, मोक्खे सोक्खु कि कवलेहि खज्जइ कामे ३ पीडिबंतो वि मओ मयारिणा कि व कुणउ बलहीणो? । 'सतविहणो सव्वस्स सहइ गुरुपरिभवमसग्झं'। निर्बले १८१ २१ पुणरवि तए चिय इमं खवियध्वं जं पुरा समायरियं । सवसेण वरं खवियं बहुणिजरमप्पदुक्खं च ॥ निवेंदे १४ ६२ पुण्णधणाणं धम्मो लच्छी पुत्तेसु गुणमहग्घेसु । इयराण पुण अयसो देरं च रिणं च संकमइ ॥ पितृलक्ष्मीभोगे ५६ पुग्णेहिं पुण्णरासि व्व केइ कालकमेण जायंति । जाणुष्पत्तीए च्चिय भरहमिणं जायइ सणाहं ॥ महापुरुषे १५२ १ पुत्तत्तणम्मि जो गेहणिन्भर लालिओऽण्ण-पाणेहिं । आलिंगिओ य मलकलुसिओ वि परिचुंबिउं वयणं ॥ सो चिय अण्णभवंतरसत्तुसणायगरुयरोसेण । विणिवाइओ समं सुणिसियासिधारापहारेहि ॥ निवेंदे १९६ १९१-९२ पुत्तेहि जस्स भुजइ रायसिरी मंडलग्गणिम्माया । सो चिय णवर कयत्थो, कयपुण्णो सो चिय जयम्मि ॥ पितृलक्ष्मीभोगे ५६ ५ पुत्तो होऊण पिया, पिया वि होऊण पुत्तो होइ । माया वि होइ धूया, धूया वि हु होइ जणणि त्ति ॥ सामी वि होइ दासो, दासो होऊण सामिओ होइ । संसारे णियकम्मावएसपसरस्स जंतुस्स ॥ नि दे १९६ १८८-८९ पुरिसाण णमो जे णिजिणति संसारसायरे घोरे । मय-मयणबाणजणणेकपचले जुवइबिब्बोए ॥ कामपरिहारे ९९ २४ पुन्वज्जियपुण्णविपच्चमाणवसजायगरुयमाहप्पा । ते केइ जए जायंति जेहि भुवणं महग्यवियं ॥ महापुरुषे ८३ . पुत्वज्जियसुकयमहाफलोहसंभारभावियावयवा । ते होंति कप्पतरुणो जेसि छाया वि णिव्यवइ ॥ पेम्माणुरायरसिए दिटे गुरुणेहणिन्मरे दइए । किं किं ण करेइ जणो समथिओ पंचबाणेण? ॥ प्रियदर्शने ५७ २४ बहुजणपयत्तपाडणकरणवसपयत्तकयजयासाओ । हीरति अग्गओ चिय जाओ जूइयरकत्त व ॥ गणिकायाम् ३१४ ५५२ बहुजाइ-जरा-जम्मण-मरणुव्वत्तणपरंपराकलिए । बहुविहविहडण-संघडणजणियापयविरहसंजोए ॥ सुर-मणुय-तिरिय-णारयसकम्नपरिणामजणियजम्मम्मि । राय-विरायंतरसंपडतसुह-दुहविसेसम्मि ॥ पिय-माय-भाय-भइणी-भजामायण्डियाए णडिएहिं । बहुसो परिहिंडतेहि तम्मियं जंतुहरिणेहि ॥ निर्वे दे २१३ ३५-३७ बहुसुकयसहस्सेहि वि ण तीरए खलयणस्स घेत्तण । हिययमसुद्धसहावस्स णिययकज्जुज्जयमतीयं ॥ दुर्जने ३१८ ५९१ बहुसुकपकरुहिरालयम्मि बीभच्छदसणिज्जम्मि । पमुहरसिए रइसुहे विरामविरसम्मि को राओ? ॥ विषयविरागे २१७ ५४ Jain Edt For Privale & Personal Use Only Page #457 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७४ चउप्पन्नमहापुरिसचरियं । बंधुयणुम्वेवकरी सयलदुहापायकारणमणजा । मरणरयणि ब्व महिला चितिज्जती भयं देह ॥ नारीनिन्दायाम् ९ १४ बंधुयणो ससुरहर जणणी सहपंसुकीलिओ भत्ता । एहिं जुया जुबईहिमाषया संपया चेव ॥ युवतीनो मुखानि ५८ ३४ बालतवखवियदेहा दाणसई सील-संजमसमग्गा । जे हॉति सम्मदिट्ठी ते जीवा जंति दियलोयं ॥ कर्मविपाके बालेऽस्ति यौवनाशा, स्पृहयति यौवनमपीह वृद्धत्वम् । मृत्यूत्सजगतोऽयं वृद्धः किमपेक्ष्य निर्धर्मः ॥ धर्मकरणे १८ ९. बिन्बोयसलिलभरियं कवडमहावत्तवंचणामयरं । महिलामणमयरहरं अज्ज वि पुरिसा ण थाहेति ॥ नारीनिन्दायाम् ९ २६ भवसायरम्भि णियकम्मजणियदुक्खोहवसणपडहत्थे । तियसा वि समत्था होति णेय णिवडतमुद्धरित्रं ॥ देवे ५७ २२ भसणकयत्थो साणो, सीहो उण हणइ कोइओ संतो । णियबीरियाणुसारेण पसमणं होइ गरुयाण ॥ शौये १७५ . भीष्मोऽसौ युधि व शक्तिमनाः स्वच्छन्दमृत्युर्यतः, पार्थोऽपीश्वरकेशवार्पितबलो राधेयरक्षा रवेः । पौलस्त्योऽतिबलो भवादनुगुणा द्रोणादयोऽप्यन्यतो, यद् वीर्य सहज हरेरिव सदा तद् वीर्यवान् श्वाप्यते ॥ सत्त्वे २० १३ भुवणोयरम्मि वियडे भुवणम्भुदरणजायववसाया । उप्पज्जति सई चिय ते जेहि जयं महग्धवियं ॥ महापुरुषे १७२ १ भुंजइ जहिं चिय फुडं तं चिय भंजेह भायणमसुद्धो । पिसुणो सदुष्टभावेण कि पि अण्णं कलेऊण ॥ दुर्जने ३१८ ५९३ भुजंता वि अहिच्छ तणया अपघंति संपयं पिउणो । जणणीए थणं सुइर पि सहइ पुत्तो थिय पियंतो ॥ पितृलक्ष्मीभोगे भुजेइ जत्थ त चिय प्रावर भिदेह भायणमणचो(जो)। णियचेट्टाए सइ दीबउ ब्व गेहक्खयं कुणइ ॥ दुर्जने ८ १९. भूय-भविस्समाणघणपाणिदुहुन्भडणिबिडभुवणए, पयणुकुसग्गलग्गजलबिंदुजलोवमम्मि जीविए । कुवियकयंतवियडमुहकंदरकवलियजंतुणिवहए, बहुपरवाहिविविहसंजोयविणासियसुहसमूहए । जो दीसइ गोसग्गए, दिणावसाणम्मि णेय सो पुणो वि । अच्छउ ताव पोसओ, विचित्तचरिओ हु एस जियलोरभो॥ निदे ३१३-१४ ३९-४० मेओ य कुडिलवंचणपणासितुत्तम्मसुहडमाहप्पो । पिसुणत्तणप्फलो होइ साहुपुरिसाण मज्झम्मि ॥ नीतौ १८५ ७६ मज्जाइएसु एएसु जो जई मयपमायठाणेसु । जाएज अप्पमाई तमिदियस्था ण लंघेति ॥ अप्रमादे ३१६ ५६९ मज्जाइकमणरओ जोव्वणमहुबोहिओ जणियराओ । सणियं ओसरइ मओ सुंदरि! णिहाए वि(व) जराए ॥ जरायाम् . ९६ 'मज्म कए एस ददं कुद्धो अजिणइ कम्ममसुहं' ति । णिययावराहनीय व्व तेण लज्जति महरिसिणो ॥ क्षमायाम् ३३२ ७६५ मणय पिणेय विसहइ सूरो तेयस्सिणं वियंभंतं । जेण मलिउं मियंकं पच्छा भुवणं पयासेइ ॥ शौर्ये ९५ १ मणुयत्तणं विवेयं सुकुलुप्पत्ती विसिट्ठसंसग्गी । लजं गुरुयणति च चयइ विसएहिं वेलविओ ॥ विषयविरागे ९९ १९ मन्त्रैयोंगरसायनैरनुदिन शान्तिप्रदैः कर्मभिर्युक्त्या शास्त्रविधानतोऽपि भिषजा सबन्धुभिः पालितः । अभ्यर्वसुभिर्नयेन पटुना शौर्यादिभी रक्षितः, क्षीणे त्वायुषि किं क्वचित् कथमपि त्रातु नरः शक्यते ॥ मृत्यौ २६ ३५ मयणधियारो वियरइ णिरंकुसो जोवणम्मि सक्सेिस । मयणाहि-पंचमुग्गारभावसंधुकिओ णिययं ।। यौवने १५६ २० मरणम्मि बंधवाणं लोओ णिदेइ णवर संसारं । परिदेविऊण सब्बो कुणइ पयत्तण घरकम्मं ॥ संसारासक्ती ६६११. मरणं पि ताण छज्जा जयम्मि असमं महाणुभावाणं । कुदेंदु-कासविसओ जाण जसो भमइ भुवणम्मि । यशसि २५३ १६. महिदाणं पि हु सुंदरि । ण तहा तुर्द्वि जणेइ यियस्स । पियसम्भावोप्पियखइरबीडयं जह सुहावेइ ॥ स्नेहे १०९ ३५ महिलाण वि होइ चिय सरस सोहागसुंदरं रूवं । ते चिय धीराइगुणेहि जाइ मेयं सुवुरिसाण ॥ शौर्ये २९३ २८९ मंटा वडमा य सया साहणमणजकारिणो होति । विच्छोयकारयाणं ण पयाण थिरत्तणं होई ॥ कर्मविपाके १८० मंस-ऽद्वि-सिरा-चम्मावब(नोदसंपत्तभुयकरायारे । कंकेल्लिल्यापल्लवविण्णाणं णाणरहियाण ॥ नारीदेहनिन्दाम् १७० १३ माउं जाति समुद्दो, पुणो पयारेण केण मेरू वि | सो पत्थि चिय भुवणे वि कोइ जो मिणइ जुवइमणं ॥ नारीनिन्दायाम् ६२ ५८ माणगहियस्स चित्तं जायइ ' एसो वि माणुसो चेव । ता किं कएण एयस्स होइ दीणत्तणफलेण!' ।। माने १९ २२३ माणमयमोहियमई तं तं चिय कुणइ जेण बहुवियणे । पुरिसदेसिवसेणं जिरणुसओ घंघले पडइ ।। मानपरिहारे १८ २१६ माणमहागहगहिओ अवमण्णियसेसपुरिससोडीरो । मरइ रणम्मि परत्थं णिरत्ययं कुणइ मणुयत्तं ॥ " ४८ २१५ माणुग्णयाण वि फुड सामं गश्यत्तणं पयासेति । दंडसहाणं इहरा जराण हीणतण कुणति ॥ स्वमाने ६४ ८६ माणुस्सम्मि वि दारिददोसदोहग्गसियावयवो । जम्मं विसयासासंपडतदुहिओ समागमइ ॥ विषयविरागे १४७ २५ माया पिया य पुत्ता भज्जा सयणो य णेहपडिपुण्णो । जम्मे जम्मे चिय होंति णवर को तेसु पडिबंधो?॥ निर्वे दे १३४ । मारुयविहट्टियं णेय होइ जह तरुदलं खणं पि थिरं । तह विविवाहिकलियं जियाण जीयं जए न विरं ॥ " २१४ ३२ मासो वि वरं चत्तारि जस्स गुणरत्तियाओ जायंति । सिंगारेणं च विणा ओ अत्यो होति किं तेण ! ॥ कामे ३ ४१ मिच्छाणुयत्तिणीओ मिच्छापरियड्ढियाणुरायाओ । दुन्विणयपंडियाओ सुपंडियं पि हु विडंबंति ।। गणिकायाम् ३१४ ५५५ मुत्त व्व पुण्णरासी जयम्मि जायंति ते महासत्ता । जम्मेण जाण जायंति णिचुया सयलजियलोया ॥ महापुरुषे १०४ . मुत्ततासुइणिरुभरियदीयसरिसम्मि उवरवियरम्मि । तिवलीरेहालंकियमुट्ठीगेझं ति पडिहाइ ।। नारीदेहनिन्दायाम् १७. १५ मूलं धम्मस्स जयम्मि अप्पमाइत्तणं जए पढमं । अइयव्य जइणा तेण सयलगुत्तिदियस्थेण ॥ अप्रमादे ३१५ ५६५ मोतूण पक्खवायं सुइरं कलिऊण सत्तबुद्धीए । भोएहि सुहं जइ होइ किंचि ता साहसु फुडत्यं ॥ विषयविरागे ९९ १६ Page #458 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२ सप्तम परिशिष्टम् । ३७५ रजमकाजावासो, दारं गरयस्स, सुक्यपडिपंथो । दुक्खपरंपरहेऊ, पुणरुत्तमणत्थसंबंधो ॥ राज्यश्रीनिन्दायाम् १८१ २० रज पिचलं जा कह वि जणइ अणियाहिमाणसोक्खाई । एकम्मि चेव जम्मम्मि णेह णिहणं भवसयाई । २१७ ५० रणं पि होइ बसिम जत्थ जणो हिययवलहो वसइ । पियविरहियाण वसिमं पि होइ अडईए सारिच्छं । प्रियसंयोगे १२७ ३७ रविणा विणा तमोहेण णहयलं मइलिय मिरवसेसं । ‘णिहुओ ता होति खलो परस्स खलियं ण जा लहा॥ दुर्जने ४६ १६९ रंभोरुगन्भसच्छहजंघाजुवलं पि पंकयमुहीण । कम्नवसय णरं किं धरेइ गरयम्नि निवडत ? ॥ नारीदेहनिन्दायाम् २८ ७७ रायउल-तकरा-ऽऽरक्खिय-ऽग्गि-णीरेण अवहियम्मि धणे । जे दुक्ख होइ धणीण तस्स भाइ ण जिल्लोहो ॥ दारिद्रयप्रशंसायाम् ३२२ ६३७ रायाहितो जायइ हो सम्वत्थ जंतुणो धणियं । जो हो सो राओ, जो राओ तत्थ दोसो वि॥ रागपरिहारे ३३४ ४९५ रुठ्ठो पढम हिययतरन्भकुल्लसियतिब्वसताबो । अप्पाणे चिय णिहर रोइशाणोवगयचित्तो ॥ क्रोधे ३३२ ४६. कहिरदमंसपेसीदलग्गचम्मावछाइए अहरे । परिणयबिंबफलुपेक्खणम्मि राईण विण्णाण ॥ नारीदेहनिन्दायाम् १७. " रूढपणय पि पेम्म बिहडइ पडिकूलयाए महिलाणं । इय भाविऊण सुंदरि ! पियाणुकूल वबहरेखा ॥ स्नेहे १.१ ३. रूपं सा च मनोहरा चतुरता वक्त्रेन्दुकान्तिः स्फुटा, विन्बोका हृदयङ्गमाः स्मितसुधागौं च तदभाषितम् । लावण्यातिशयः सखे । पुनरसौ तस्प्रेक्षित सस्पृहम् , मुग्धायाश्चरितं नितान्तसुभग तत् केन विस्मयते । ॥ मुग्धायाम् २१ १८ वं सुकलुप्पत्ती कलासु कुसलत्तणं विणयजुत्तं । पढमालवणमगम्वो न होइ थेवेहिं पुण्णेहिं । पुण्ये १५५ रे जीव । तई सई चिय रइया दुक्खाण एस रिछोली । अमुणतेणाणथं घण-जब्बोण-जाइमत्तेणं ॥ निर्वे दे १४ रोगणिमित्त पावं, पावनिमित्त तु असुभया जोगा । अण्णाणमोहियमती ताण निमित्तं तुम जीव। ॥ निर्वे दे लच्छी बहुच्छल चिय, जीय बहुवसणसंकडकडिल्ले । पहियं जियाण तह जोवण पि विरसम्मि संसारे ॥ लद्धे विहु मणुयत्ते खेत्ताइसमग्गजोयजुत्ते वि । जाय पुणो वि दुलहो जयम्मि जिणभासिओ धम्मो ॥ जनधर्मे । लम्भति खवियपडिवक्वपक्वलक्खा वि रजसंभोया । ण उणो संसारायडपडणुद्धरणक्खमो धम्मो ॥ " २४९ ५१ सम्भत्ति मणहरोवणयपवरसुरसुंदरीसणाहाई । इंदत्तणाई. उणो णरेहिं मोक्खप्फलो धम्मो ॥ " २४९ ५३ लन्भंति रुइरकरि-तुरय-संदणुदामपतपाइका । णिव्वाणकारणं ण य कहिं पिजिणभासिओ धम्मो ॥ लन्भंति रूव-सोहग्गकलियविण्णाणणाणविजाओ। ण उणो भवज लहिनिबुडमाणजणतारणो धम्मो ॥ लम्भंति लोललोयणछडप्पहुभासियावयंसाओ । दइयाओ रूव-सोहागमालिणीओ, ण जिणधम्मों ॥ " २४९ ४८ लन्भंति विविहमणि-कणय-रयण-भवणोवहोयसंजुत्ता । रिद्धिविसेसा, ण उणो कहि पि जिणभासिओ धम्मो ॥ ललकणिस्यवियणाउ घोरसंसारसायकव्वहणं । जीए कएण तुलिज्जति जयइ सा पिययमा लोए ॥ नारीप्रशंसायाम् लल्टकमुक्कबुकारपहरणिभिन्नसुहडसंघाए । मरणं पि रणम्मि वरं भडाण, ण हु खलजणुप्फेसा ॥ शौर्ये ६. . लहिऊणं मणुयभवं सोग्गइगमणेककारणमणग्छ । माणिकं पिव दुलहं विसयपसंगेण हारवियं ॥ विरागे ९९ १८ लंधिज्जइ मयरहरी, अप्पा खिप्पइ भिगुम्मि घोरम्मि । पइसिजइ गुरुजालाकरालिए हुयवहे लिए ॥ दुक्खजिओ चइज्जइ तणं व तुलिऊण अत्थसंघाओ । अप्पा दिजई अयसस्स खग्गधाराए व जहिच्छं । लघिजइ सुहिवयणं, ण गणिजइ गुरुयणो कुलं सीलं । लंजा वि परिचइज्जइ सह बंधुयणेण णीसंकं ॥ कि बहुणा ?, हयसंसारसायरुव्वहणदुक्खपटिबंधो । आयामिजइ दइयस्स कारणा माणुसस्स जए । स्नेहे १२४ १९-२२ चायण-रूव-ओन्वण-सरीर-संघयण-कंति-सोहाओ । जीवाण जीवियं तह बलं च पतिसमयमोसरइ ॥ निर्वे दे १४३ ४३ . लायण्ण रूवं जोव्वणं च महिलागुणा य सोहग्गं । माणसिणीण माणेण णिययमंगे विलिज्जति ॥ मानपरिहारे ४८ २१९ लोए वि वण्णियं 'अप्पमाइणो होई अत्यसिद्धी' । किं पुण जइणो पढमें जं अंगं धम्मसिद्धौए ? ॥ अप्रमादे ३१६ ५६७ बच्चइ अहिं जहि चिय घेत्तुं धण्णो सुधम्मपच्छयगं । पावइ तर्हि तहिं च्यि सुहमउलं णस्थि संदेहो ॥ धर्मकरणे १६२ . बच्चइ जहिं अहिं चिय भोगपिवासाए विडिओ पुरिसो । पावइ तहिं तहिं चिय पुणेहिं विणा पर किलेसं ॥ दुर्भगे ११३ ६९ वनप्रकोष्ठकरजापचपेटघातनिपिष्टदन्तिदशनोत्कटमौक्तिकोषः । सिंहः पहायविकलोऽपि दलत्यरातीनन्तर्गतं ननु सदैककमेव सत्वम् ॥ सत्वे २. वणियाण बंभणाण य करसणियाण य कमागया वित्ती । विकमभोजा जायइ पुहई पुण णरवरिंदाण ॥ शौर्ये २४२ २७१ वयणं वयणं चिय होइ केवलं सयलअत्थपरिहोणं । णिब्वडइ भुयबलेणं जयम्मि पुरिसाण माहप्पं ॥ " १३२ १६ परमिह खाइरअंगारतावियं लोहणिम्मियावयवं । उक्गहिऊण सुत्तं महिलं ण उणो सरायमिणं ॥ नारीनिन्दायाम् ६२ ५७ ववगयजोब्वणगश्यत्तणेण णिहुयाइं पयइधवलाई । सस्सलिलाई व सरए जराए आयंति हिययाई ॥ जरायाम् ३. ९७ वक्हरइ अण्ण[ह] यि सुद्धसहावो जयम्मि साहुजणो । मण्णइ तमण्णंह चिय दुट्ठसभावो खलयणो ति ॥ दुर्जने २९० २४४ बसणम्मि ऊसवम्मि य एकसहावा हवंति सप्पुरिसा । 'जारिसमो चिय' उपए भत्थमणे तारिसो सूरो'॥ सहिष्णुतायाम् ६८ १५१ वरणम्मि समावडिए पयई ण हु कह वि सुपुरिसों मुयइ । 'राहुमुहगहियमुक्को वि तषइ सूरो धरावीढं' ॥ बसणसयसंकडिल्लम्मि त्रिवइ संसारसायरे महिला । जीवतं चिय पुरिसं, मय पिंजरए दुरतारे ॥ नारीनिन्दायाम् ॥ ५॥ Page #459 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७६ उप्पन्नमहापुरिखचरियं । ॥ वस्तूपाश्रय सौन्दर्यादपूर्वगुणमाप्नुयात् । रूच्छं मौतिकतामेति शुक्तिमध्यगतं जलम् ॥ वाहिसयपीडिया जियान जर मरण-सोयतवियाणं । दोगच्चररिहनुध्वेश्याग भाग कडू पण गिब्वे दिगए लम्भ सिरी कड़ा वि पलाइ दुब्विणीयान पीसेसगुणाद्वाणं विणओ चिय जीवलोयम्मि || विणयुज्जुयाण कित्ती विउसाऽऽणणपहयसहजयपडहो । धम्मो भत्यो कामो कलाओ बिज्जा य विणयाओ ॥ विप्फुरइ ताव देव्वो विहडण संघडणकरणतल्लिच्छो । जा ण तुलिजर साहसधणेहिं णिहसेकसारेहिं ॥ वियसंतदल उडुम्मिल्लमालईसवलकुंतल कलावो । किं णरंयवडणधरणेक्कपञ्चलो जायइ पियाण ? ॥ बिसपाहि हीरइ मणो जेसि पुरिसाहमान विरसेहिं परिगलियहमिवेचतणेण ते होतऽसप्पुरिसा ॥ विसमदसापडियस्स विजहरू जनिमपुरियारस्स जइ ण फलद संपली किती उण राह बि संपइ ॥ सिमसिमोहियाणं राममहागहपणसणाणं । होइ पडणं पराणं अवस्स बहुवेयणे गरए ॥ विसय सुहलालसाणं सुमग्गमंदायराण पुरिसाण । अमुणियसारविसेसाण गलड् इत्थद्वियं अमयं ॥ विसयाण कए पुरिसा विडंबणं तं जयम्मि पति । जं साहिउं ण तीरइ वेवंतुप्पित्यहियएहि ॥ विख्याण पसादो सो दुसियगुरुतीलगुणण परिहरइ हिये, अहियं बहुमह जं जो मूडो ॥ जिस-मिया दो वि भणति अर्थतमंतरं विसा सह भुतं हाइ विसं विसया सरिया मि बहुसो वि॥ चिदिव्य जयंतवण-वियरावाण गियर चिय धीराण होइ वसणम्मि गुसहाभो ॥ विहति चंडमास्यपगोरिल्या गजिकण पणनिवहा । उजविण गाइ हथ्ये व विज्या ॥ चिबाण ययन्थानं होई कुलकलंक कारणमणः सुतिमती विव चिता धूया धष्णाग गहु जाया ॥ विहिणो वसेण वहति देव | देवा वि देवलोयम्मि । 'अमर' त्ति णाममेत्तेण, जेण आउक्खयमुवेति ॥ सहावो जो वि धीराण सुंदरी होइ इयरागं पुणणे विनिव्यापी ॥ बीसंभजगियगहिए पदभावपेमपसरम्मि उपचारो कीर माणुसम्मि कतोएवं एवं १ ॥ वेरमणुसरंता दिंतु विलासिणीओ वरमुणिणो । किं पुण हियए ताण वि थणणयणाडंबरं फुरइ ? ॥ बेरमुवघायजणए उवयारी बंधवो सया होई । कज्जावेक्खाए जओ मित्ता- मित्तत्तणम (व) वत्था ॥ गुगु वा महाणुभावेहिं समायरिय पालेति तं तह बिग यह ण चिसोले विसंवद युगे चि पुरिसा या चूडामणि विवखाया। सयलजसलहणिजा दुम्मेति सिरेण भुषणमि ॥ इसरे जं विचिगुणं सहिऊण समुच्छलेति तुच्छष्ण दुम्बलक्खपरिग्गगहिया सलह म भुषणमि ॥ सर्व मया पायस्य कारणं परपचवायरस को होज विने दूरभो ण जो तं परिचय ॥ सणणं दुग्गं आउहं च कजं कुणंति धीरस्स । धीरत्तणरहियाणं णराणमप्पव्वहणिमित्तं ॥ सद्दा पुन्वसिद्धा अत्था सिर्द्धतसायरुच्छलिया । मालागारस्स व होज्ज मज्झ जइ को वि गोफगुणो ॥ सदम्मे पक्षिपती गुरुचरणाराहणं च जिनसेवा समाया होति येवेदि पुणेहिं ॥ सप्पुरिख थिय वसने सति गये विभग्गयपथाचा धरणि श्चिय सइइ जए वजणिवार्य ण उण सं ॥ सप्पुरिसि च णिव्वडर आवया, ण उण ध्ययपुरिसम्मि । 'लक्खिज्जइ मलिणं ससहरम्मि, ण उणो विडप्पम्मि ॥ सम्भावसेस महाणुभावाण जायद जमि आसयन्सेप अहवा मुहासो होइ फलं ॥ समवती एस गो एयस्स पण वत्सहोजए कोई पैसो वि णत्थि सुपुरिस सदेवमनुमा सुरे सोए ॥ गावे एस बजे दुब्बले व ईसरमग प य विउ ण य मुक्तं, ण य सण ण एगामि ॥ वाले, पण परिणयं पेय मज्झिमं ण खलं ग य जगमवि मुंबई, पावभई रोदरिणामो संपज्जतसमीहियकज्जाण वि एस सयलदेवाण । अवहरइ जीवियं, माणुसेहिं कि कीरइ इमस्स ! ॥ समसिहरद्विवराईए दसएसजायभावान सिकुसुमप्पेक्सणेण राम परिष्फुरद ॥ समुहमिलिएकमेवाण आसण संसय सहाओ जायद रणम्मि जिसमे भवाण मोजून नियविरियं ॥ सयणु परियणु [? सयणु परियणु ] बंधुवग्गं पि । भिच्चयणु सुहि सज्जणु वि घरि कलत्तु आणावडिच्छउं । अत्थुम्ह किल धरइ जाव ताव पुण्णेहिं समग्गलु ॥ सयला वि गुणा सहला जयभिम जायंति पत्तसंपत्ता । वण्णक्कम व्व सुविहत्तभित्तिसंघत्त परभाया ॥ सपना जे आणि संतलालसा मुहरे सण्णाविहाचिवत्था वयपरिणामम्मि ते चैव ॥ सविवेउत्तमजणवज्जियाओ मज्जायमुकलज्जाओ । हिययाणुकूलववसिय भणिएहि जणं विमोहति ॥ सदस्य एस मध्यू विमोयकरणम्मि पचलो धणियं संजोयं ण उणो कुमइ पालणं पावपरिणामी ॥ सव्वस्स वि एस गई जं कयमण्णस्स रागवसएणं । तं परिणमइ सई चिय पुव्वज्जियकम्मदोसेणं ॥ सम्पत वि एस गई होही काले जीवतोयमि गियकम्मऽजयवस्तु किथ रु १ ॥ सत्स निर्वदे १०५ ४ विनये ७० १८६ १७ ***~ " " पुरुषार्थे १३८ २ नारीदेहनिन्दायाम् २८ ७० विषयविरागे ९९ २० " पुरुष २३८२१३ विषयविरागे १७० १८ ९९ २२. ९८ १५. ४८ २०४ ४७ १९९ ६१ ४६. ६९ १६४ १५३ २ 29 ७० १८५ दैवे दुहितरि दैवे ६९ १६३ धैर्ये १२६ ३१३ लै १९७ ३८. कामे ३४३ मित्रामित्रविबैके ४४ १४१ प्रतिपन्नपालने १११ ५२. गुणिनि निर्गुणे च ६३ ७४-७५ नारीनिन्दायाम् ३११ ५१६ धेये ६१ ४९ विद्याप * ५४ सुभगे १५९ ४३ सहिष्णुतायाम् ६८ १५२ ६८ १५४ सद्विचारे ३२६६८७ " कृतान्ते ६९ १५९-६२ नारीदेहनिन्दायाम् १७० १२ पी ६१ ४७ अर्थप्राधान्ये ३ ३५ पात्रे २९८ ३६८ जरायाम् २४७ १९ गणिकायाम् ३१४५५६ मृत्यौ ६७ १२८ निर्वेदे १४४ ५८ मृत्यौ ६७ १२७ Page #460 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सप्तमं परिशिष्टम् । ३७७ सब्वाण वि एस गती जयम्मि भावाण संभवंताणं । संसारे बहुविदुक्खलक्ख-खयसोक्खपसरम्मि ॥ निर्वेदे २१७ १५ सव्वायरकइवय(यव)संपउत्तभणियध्वपेसलिलाओ । जायंति बंधणं णेहबंधपरिमूढचित्ताण ॥ गणिकायाम् ३१४ ५५३ सव्वेण वि मरियध्वं जाएण जिएण केणइ निहेण । सयलम्मि जीयलोयम्मि गूणमेस चिय जयठिई ॥ मृत्यौ २५० ५५ सम्बो वि आणइ हिये, अप्पा सव्वस्स बालहो होइ । किंतु विणासणकाले विवरीयमई नरो हवइ ॥ विपरीतमतौ ४५ १५९ ससणेहं सुद्धसहावयाए ववहरइ अण्णहा सुयणो । अण्णह कप्पेइ खलो सदुट्ठभावेण दुट्ठमती ॥ दुर्जने ३१८ ५९२ सहयारमंजरिं वजिऊण महमहियपरिमलुग्गारं । अहिलसइ अक्ककलिय कहिं पि कि महुयरजुवाणो? ॥ सुनारीस्नेहे २१ १९ सहवड्डियाण संजणियभोयण-इच्छायणेहिं अविसेतै । आजम्मं पडिवणं णिव्वहइ महाणुभावाण ॥ प्रतिपन्नपालने २४१ २४८ संकाइसल्लरहियं सम्म जस्स होइ भुवणम्मि । तस्स परितो आयइ संसारो सुकयकम्मस्स ॥ कर्मविपाके १९. संघासो होइ परोप्परेण संतोस-धणसमिद्धीण । को समहिओ गुणेहिं सुद्धा-ऽसुद्धाइजणिएहि ? ॥ सुद्धत्तणेण जायइ समुज्जलो तत्थ णवर संतोसो । धणविहवो उण जायइ णिहसे कसणो तमोहो ब्व ॥ संतोषे ३२२ ६३३-३४ संजुजइ जिरवाएण भत्तिजुत्तो गुणेण जो जेण । अणलक्खिओ वि गुरुणा तं चेय गुणं पउंजेज ॥ गुरुसुरूषायाम् २९९ ३७४ संझन्भराय-जलयुब्युभोवमे जोव्वणम्मि मणुयाण । को पडिबंधो गहुवाहिवेयणोवद्दविल्लम्मि ॥ यौवनानित्यत्वे २५२ ८१ संतं पि हि वयणिज्जं परस्स ण भणंति सजणा णिययं । इयरे मुत्तूण गुणे दोसमसंतं पि फ्यडेंति ॥ दुर्जन-सुजनविवेके ४५ १५४ संपाडियसयलसमीहियत्थवित्थारखड्ढियाणंदं । कस्स व पुण्णेहिं विणा पवरणिहाणं घरमईइ ? ॥ अतिथौ २२५ १०९ संसारपूरणेणं आयइ जाएण एत्थ किं तेण ? । जस्स ण भरेइ भुवर्णतराई कित्ती वियंभंती ॥ की? ५७ २९ संसारमहाडइगरुयविसयमायण्हियाए णडिएहिं । इह अमुणियसुहयरसेहिं खिजियं जंतुहरिणेहिं ॥ संसारासारतायाम् २८ ६९ संसारमावसंतस्स कि पि तं पडइ माणिणो कजं । जं छोइयु ण युजइ ण य कहिलं गेय मरिसेउं ॥ • स्वमाने ८ २१ संसारम्मि असारम्मि केइ ते णवर होति सप्पुरिसा । जाण परमत्थकज्जुज्जयाग जम्मो सलहणिज्जो ॥ महापुरुषे ७५ . संसारवत्तिमंतो गुण कसाया कसंति जंतुगणं । अंधीकुणंति सव्वं गय व पवियंभियवियारा ॥ अवहरिऊण सरूवं एते पररूपधारिणं काउं । ऐति समुम्मग्गेणं मंत व परव्वसं काउं ॥ कषायपरिहारे ३३२ ७७०-७१ संसारसारभूओ पुत्तो चिय होइ सयलजियलोए । जस्स ण जायइ एक्को वि तस्स मणुयत्तणं विहलं ॥ पुत्रे ७६ . संसारुव्विग्गमहाडईए भमिरस्स जंतुहरिणस्स । कस्स ण जायइ भीसणकयंतबाहाओ मरियव्वं ? ॥ कृतान्ते २३६ १९९ संसारे बहुविहदुहकिलेससयसंकुले असारम्मि । को णाम कयविवेओ रमेज सुहसंगवामूढो ? ॥ संसारासारतायाम् २९१.२५८ सा णवर सिरी दुक्खजिया वि महमहइ जीवलोम्मि । घेतूण बला सुइरं जा भुज्जइ पुत्तवग्गेणं ॥ पितृलक्ष्मीभोगे ५६ ४ साहंति असिटुं पि हु चरियाई कुलं महाणुभावाणं । 'कि कहइ केयई णिययपरिमलं भमरविलयाणं' ॥ कुलीनत्वे २३९ २१९ साहीणे मोक्खपहे सुहपरिणामे य णियसमुत्थाणे । मूढत्तणेण लोओ विसए पत्थेइ बहुदोसे ॥ विषयविरागे ९९ २१ साहुणमेसणिजं दव्वं सइ खेत्त-कालगुणजुत्तं । देतो पावइ पुरिसो भोगे कालोचियाणंते ॥ कर्मविपाके ८१ ६३ सील-दय-खंतिजुत्ता दयावरा मंजुभासिणो पुरिसा । पाणवहाउ णियत्ता दीहाऊ होति संसारे ॥ सुइरं चितिचंतं पि यसरीरम्मि णत्थि तं किं पि । अवलंबिऊण जं फुरइ रायचित्तं मणुस्साण ॥ देहासारतायाम् १७. ८ सुत्तुम्मत्त-पमत्त बाले महिलायणे ब्व जो पुरिसो । पहरेइ णिदियायरणणिदिओ सो अदट्ठव्वो ॥ नीतौ २०२ २४१ सुद्धं पत्तं तारेइ जाणवत्तं व भवजलाहितो । णो बहवे पासाण व्व जे सई चेय मजति ॥ सुगुरौ ३१२ ५३३ सुयणस्स होइ सुयणो खलस्स पिसुणतणं पि पयडेइ । कज्जावेक्खाए जओ खल-सुयणाणं पइट्ठाण ॥ दुर्जन-सुजनविवेके २ ३२ सुरवइचावं वियलइ खणमेत्तं भूसिऊण गयणयलं । संझा वि तक्खणं चिय फिट्टइ कालाणुभावेण ॥ देवे ६९ १६५ सुविहत्ततिवलिगंभीरणाहिमज्झो वि सुंदरंगीण । णियकम्मपरिणईए ताणं भणयं पि किं कुणइ ?॥ नारीदेहनिन्दायाम् २८ ७५ सुहकम्मकंदवावियविसट्टसुकिसलयाण गरुयाण । पुरिसाण संभवो ताण जाण उवमा ण संभवइ ॥ महापुरुषे ९३ . सुह-दुक्खपरिणईवसविसेससंपायणेकरसियाण । कम्माण पलायइ को व अत्तणो संविढताणं? ॥ __ देवे २१४ ४३ सुहय 1. तुमाओ अहियं णिययं चिय वल्लहं महं जीयं । तइ गच्छंते गच्छइ तयं पि, ता कीस में मुयसि! ॥ स्नेहे १५८ २९ सुहि-पुत्त-मित्त-बंधव-सन्निहिय-सहोयरस्स ण हु रक्खा । पडियस्स मच्चुणो वयणदंतजंतंतरालम्मि ॥ मृत्यौ २५६ १२६ सूर-ऽग्गि-रयणतेयाऽविणिजिओ दूरवियरियपयावो । जोव्वणतमो वियंभइ मोहसहाओ धरणिमग्गे ॥ यौवने ७. १८५ सूरस्स वि धरणि-णहंतरालविप्फुरियगरुयतेयस्स । एकदिणे चिय णिययं उयय-ऽत्यमणाई जायंति ॥ दैवे ६९ १६. सूरुग्गमेण णासंति तारया, होइ णिप्पहो चंदो । 'किं कि ण करेइ जए तेयप्फुरणं वियंभंतं ?' ॥ तेजोरक्षायाम् ४६ १५३ सोएण समं ण वसंति देव ! लच्छी जसो य कित्ती य । सोक्खं च रई लीला विसएसु मणो णिरावरणो ॥ शोके ६९ १७५ सा जम्मो जो मणुयत्तणम्मि, तं माणुसं जहिं बिहवो । सो विहवो जस्स पियं, तं च पियं जस्स य पिएहि ॥ प्रियसंयोगे १८० ५ Jain Education inycational Page #461 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७८ बउप्पन्नमहापुरिसपरियं । सो पत्थि चिय भुवणे वि को वि जो सलह तस्स माइप्पं । सच्छंदचारिणो सब्ववैरिणो हयक्यंतस्स। सीयंति सव्वसत्थाई तस्थ, ण कमंति मंतिणो मंता । अहिपहपहरणम्मि तम्मि कि पोरुसं कुणइ ? ॥ ण बळेण तस्स केणइ पडियारो, णेय तंतजुत्तीए । आसेहिं रहवरेहि य, भरथो वि णिरत्थो तत्थ ॥ इय-य-रहवर-पाइकचकपज्जुत्तपहरणेहिं पि । काऊण परित्ताणं ग य तीरइ जंतुणो मरणे ॥ इंतुं जीवाण घणं दढसोंडुइंडभीसणाभोओ । वियरइ घोरकयंतो विसंकलो मत्तहत्थि ब्च ॥ इंतूणं परपाणे अप्पाणं जो करेइ सप्पाणं । अप्पाणं दिवसाणं कएण गासेइ अप्पाणं ॥ हियए अणिच्छमाणोणे) वि गुरुयणे जत्थ होइ ण विरोहो । होइ सयत्थो कुसलस्स आयरो तम्ति कायब्वे ॥ हिथयट्ठियदइयवसेण दुग्गओ गेइ दीहरं दियहं । रयणीए पिययमालावमुइयहियओ सुहं सुयइ ॥ हिययं च धीरयासंजुयं ति को अण्णउण्णई सहइ । करकोडिगोयराणं तरूण किं दुकरं करिणो ? ॥ . हिययाई णेहरसियाण कमळदलकोमलाई. महिलाणं । ताई चेव विरत्ताण होंति करवत्तकढिणाई ॥ 'हेटाहुत्तं वच्चइ कसायसहिओ, तए विणा उड्डे' । इय मुणिऊणं उज्झंति तेण वीरा कसायचयं ॥ होइ गरुयाण बसणं ण उणो इयराण सुप्पसिद्धमिणं । ससि-सूर ञ्चिय घेप्पंति राहणा, ण उण ताराओ'। होइ जणसलहणिज्जो पिया वि पुत्तेहिं भुंजमाणीए । खरपवणुङ्ख्यधयचंचलाए सइ रायलच्छीए ॥ होइ विणीओ गरुओ, गुरुत्तणं संपयाए पढमंगं । अविणीओ वि हु लहुओ, लहुतणं आवईए पयं ॥ ७ ११८-२० मृत्यौ २५६ १२४ कृतान्ते १९७ १.१ मांसपरिहारे १४९ २ गुरुमुश्रूषायाम् २९८ ३५३ नारीप्रशंसायाम् २९ ८६ शौर्ये २९३ २९० नारीनिन्दायाम् २१९. ४ कषायपरिहारे ३३२ ७७२ सहिष्णुतायाम् ६८ १५३ पितृलक्ष्मीभोगे ५६ ६ अविनये ६३ ७. Page #462 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाथा १५. ५३१ ३०३ ७२ ६३ २९. - १२० २२० १९ १७६ hd अष्टमं परिशिष्टम् 'उप्पन्नमहापुरिसचरिय' अन्तर्गताः सूक्तिरूपा गाथांशाः मुक्ति पत्राक अप्पाणमप्पण चिय लहुया सलहंति ।। अंधल्यपयासो णेय होइ दिणयरसएणं पि । ५२. आयवदंसणमेत्तेण सुसइ गोवयगय वारि । २९१ इह कीरतं पावं पुणो वि समहिए पुरओ। २१० ईसि पि बलग्गो लोहपिंडए बुझ्द णिरुत्तं । ३१२ उज्जोयइ पुण्णससी ण इंदुलेहा जयं सयलं । २९१ उज्जोयं कुणइ मणी कायमणीमज्झयारम्मि । ३१२ उययाहिंतो णीहरइ तेयजुत्तो दियसणाहो । २९४ उवलदो किं केण वि मग्गुत्तिण्णो रहो रविणो? । करकोडिगोयराणं तरूण किं दुकरं करिणो ! । २९३ करगहियकंकणे दप्पणेण किं कज्जमइमूढ। । कालायलं ण साहेइ डज्झमाणं घणंधारे । २२९ किरणा तवंति भुवणं लोओ सूरस्स रूसेइ । कि एकम्मि कयाइ वि कोसे संठाइ खग्गजुयं ? । २९३ कि कहइ केयई णिययपरिमलं भमरविलयाण ? । २३९ कि कि ण करेइ जए तेयप्फुरणं वियंभतं? । कि कुणइ दारुकुंभम्मि कोइ बालो वि हव्ववहं ? । किं कोइ कुणइ केसरि-फरीण मयजूहसामित्तं ? । किं कोइ सहइ टुं णियदइयं अण्णहत्थगय? । कि तमणियरं सूरो ण हणइ तव्वेलजाओ वि? । १६६ किंतु 'विणासणकाले विवरीयमई नरो हवइ' । ४५ कि तुंगिमाए तालस्स दुट्ठपक्खोहिं विहयसीसस्स ? । १८१ किं वहिकणो कथइ जलेइ पउरिंधणविहूणो? । कुलिस णिद्दलइ गिरी, कयाइ णो मट्टियापिंडो । कुसलकरणेहि मुज्झइ पायं पडिकूलकयचित्तो। ३२४ कुसलं गयाहिवइणो सीहविरोहम्मि कि होइ!। को णाम कालकूडं कवलइ कवलेहिं जीयत्थी ? | गुणाण रजइ जणो, ण रूवस्त्र । १८६ गुणाहिओ इयरमंतरह। गुरुत्तणं संपयाए पढमंगं । जायइ जं जस्स तं तस्स । जारिसओ चिय उयए अत्थमणे तारिसो सूरो । जीयं पि पणंति परस्स झत्ति णिक्खेवयं खु रक्खता। २७४ जुवईए जविजंतस्स जोवण होइ सकयत्थं । ३१३ जोगम्मि य वरसिस्से गुरुणो संकमइ सयलविण्णाणं । ३२७ जो जणइ अप्पणो चिय भयाई सो कह परं जिणइ ? । २९४ जो ण कुणइ धम्म सो खिवेइ णियभायणे छारं । पत्थि किल सा अवस्था कम्मवसा जा ण संपडइ गत्थि पंथखेयाउ परा वयपरिणई । २९३ . 41. v १५९ २९१ २९२ २२ २६८ २७३ ६५८ १८५ ५१५ ३११ १४४ ६८ ४४ ५४३ ६९४ २५३ Page #463 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउप्पन्नमहापुरिसचरि। पत्राङ्क गाथा १६५ PG ५८५ २१९ २६६ १६६ १७. १९६ १५२ ३१९ २९५ ३१२ ५३८ -- . . . १८४ २८. सक्ति णियचे? च्चिय धीराण णवर हेडं विणासम्मि । णियपक्लबलेणं चिय पडइ फ्यंगो पदीचम्मि । णियभज्जागयपरिहवकलंकिमओ कि पि वक्सेइ । णियमजायमपत्तो क्याइ कि रविरहो वलइ । . णिस्सारा हति गुणा साहिप्पंता सई चेत्र । णिहसे सत्तं चिय संठवेइ अथिरं पि थिरचित्तं । णिहुओ ता होति खलो परस्स खलियं ण जा लहइ । णेय रंददारिदसमो वि हु परिहवो। तं णतिय संविहाणं संसारे जण संपडइ । तं ' हयमाणो पुरिसो कल्लाणपरंपरं रहइ'। तिब्वाय दुमो च्चेव सहइ, णो किसलउम्मेओ। तेयरक्खा जए गरुई। तेयंसी सहा जयइ । दाढुज्झिताऽहिगहणेण मंतिणो कि पि सामत्थं ? । धरणि च्चिय सहइ जए वजणिवाय, ण उण तंतू । परपरिभ सहतस्स होइ किं गश्यया लोए ?। परसंसिया चिराओ वि णियपइं जाइ पइभत्ता । पासयणिबद्ध पिव आयड्ढइ पुन्धकयकम्मं । पीई जह सजणस्स एकरया दुक्खं विसंघडिजइ, दुक्खं चिय बिहाडेया घडइ । भावविसुद्धीए विणा जो हु तवो सो छुहामारो । मइलगं ण सहइ पयावी। मरणयाहि ण हु जायइ अण्णभयं परं । मंसम्मि खग्गधारा तिण्हा, ण उणाइ रज्जम्मि । मारेइ य मरंतं । मूल्लियं पि पुरिसं णिययगुण च्चिय पयासेंति । राहुमुहगडियमुक्को वि तवइ सूरो धरावीढं । लक्खिज्जइ मलिणं ससहरम्मि, ण उणो विडप्पम्मि । लच्छी पडिकूलइ अहव्यो ।। लजइ जणे पायं पारद्धपरिहारी । लहुत्तणं आवईए पयं । वायाए भडण महिलियाण, ण उणो सुवुरिसाण । विरहियवदसायं पुण लच्छी वि ण महइ अहिलसिउं । वेयणा वि ण छुहाए समा किर जंतुणो । सच्छासयाणुरोहेण सुवुरिसा कि व ण करेंति ? । सत्तविहूणो सव्वस्स सहइ गुरुपरिभवमसज्झं । सरिसत्तणं ण पावेंति कायमणिणो महमणीर्ण । सव्यंगसुरहिणो मरुवयस्स किं कुसुमणियरेण ? । ससि-सूर चिय घेप्पंति राहुणा, ण उण ताराओ । साहति असिढे पि हु चरियाई कुलं महाणुभावाणं । सिसिरत्तणं ण सिसिरो वि कुणइ जलणस्स पहवंतो। सुण्णे उलम्मि दीवयदाणं भण किं गुणं लहइ ? । हरिणो करिकुंभवियारणम्मि कि परबलावेक्खा? । - ११ २२० . . - २२० . rur १५६ १५४ » ११९ ७ २१४ mr . . १५४ २१ १४१ १५३ -wmur ४ १५५ ३३४ ७९१ ३.८ २९४ Page #464 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Jan Education international For Privale 2 Personal use only www.jainelibrary.com