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________________ चप्पन्न महापुरिसचरिय ऋणस्वीकार प्रस्तुत ग्रन्थका समर्पण मैंने माननीय राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्रप्रसादजीको किया है । इसके लिये उन्होंने कृपापूर्वक जो अनुमति दी है एतदर्थ मैं उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करता हूँ । ६२ प्रस्तुत संपादनमें प्रयुक्त दूसरी सुसंज्ञक प्रति स्व. सूरिसम्राट् विजयनेमिसूरीश्वरजोके भंडारकी है। जो इनके शिष्य-प्रशिष्य आचार्य श्रीविजयोदयसूरिजी तथा आचार्यश्रीविजयनन्दनसूरिजी की कृपासे हमारे पास लंबे समय तक रही । वि. सं. १९९८ में पुरातत्त्वाचार्य मुनिश्री जिनविजयजीके साथ जेसलमेर में रहकर प्रस्तुत ग्रंथका सर्वप्रथम परिचय प्राप्त करनेका सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ था । जे संज्ञक प्रतिकी पाण्डुलिपि उन्होंने पू. पा. मुनिश्री पुण्यविजयजीको दी थी, जो मुझे मिली । एतदर्थ मैं उक्त आचार्योंके प्रति हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ । पूज्यपाद आगमप्रभाकर मुनिश्री पुण्यविजयजीके विषयमें तो मैं क्या लिखूं ? इस ग्रन्थके सम्पादनमें उद्भूत शंकासमाधानमें तथा प्रूफ आदिके देखनेमें उनकी जो अमूल्य सहायता मुझे मिली है उसके लिए मैं किन शब्दों में उनके प्रति अपना आभार व्यक्त करूँ ? बचपनसे लेकर आज दिन तक मुझ पर उनके अनेक ऋणोंका कोमल-मधुर भार सदैव लदता रहा है । हृदयमें एकमात्र यही आकांक्षा बनी रहती है कि ज्ञानयोगी इन गुरुवरेण्यका ऋणभार सदा वृद्धिंगत होता रहे ! इस भार मैं एक प्रकारके मानसिक हल्केपन और प्रसन्नताका अनुभव करता रहा हूँ । इस प्रस्तावना को सुव्यवस्थित करनेमें भारतीय दर्शनशास्त्रोंके गहरे अभ्यासी पण्डित प्रवर श्रीदलसुखभाई मालवणयाने तत्तत्स्थानों में परामर्श करके मुझे मार्गदर्शन कराया एवं प्रस्तावनाके आखिरी प्रूफ देखनेमें जो कष्ट उठाया है इसके लिए मैं उनका अत्यन्त आभारी हूं। इस प्रस्तावनाका हिन्दी भाषान्तर ( इस पेरग्राफके सिवाय ) जैन शास्त्राचार्य प्राध्यापक श्रीशान्तिलाल भाईने किया है एतदर्थ मैं उनका भी ऋणी हूँ । अन्तमें इसके प्रकाशक प्राकृत टेक्स्ट सोसायटीके प्रति मैं आभार प्रदर्शित करना अपना कर्तव्य समझता हूँ । भारतीय संस्कृति एवं मनीषाके अंगभूत प्राकृत जैन ग्रन्थोंके प्रकाशनका भगीरथ कार्य इस संस्थाने अपने ऊपर लिया है । हमारे राष्ट्रपति पूज्य राजेन्द्रप्रसादजीको सत्प्रेरणा से यह संस्था अपने अभीप्सित कार्यमें अवश्य सफल होगी ऐसी आशा रखता हूँ । ता. २६ जनवरी १९६१ प्राकृत ग्रन्थपरिषद् जैनउपाश्रय, लुणसावाडा अहमदाबाद Jain Education International For Private & Personal Use Only विद्वज्जनविनेय पं. अमृतलाल मोहनलाल भोजक www.jainelibrary.org
SR No.001442
Book TitleChaupannamahapurischariyam
Original Sutra AuthorShilankacharya
AuthorAmrutlal Bhojak, Dalsukh Malvania, Vasudev S Agarwal
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2006
Total Pages464
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size14 MB
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