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ग्रन्थसमर्पण
स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपतिपद को विभूषित करनेवाले, सादगीसे रहनेवाले और धार्मिकस्वभाववालों के हितकारी, अनेक कार्यमें संलग्न होते हुए भी जिन्होंने राष्ट्रीय दृष्टिसे मागधी और प्राकृत भाषा की उन्नति का चिन्तन करके प्राकृत ग्रन्थपरिषद् (प्राकृतटेक्स्टसोसायटी) की स्थापना की,तथा जो विज्ञ हैं, गुणज्ञ हैं और विद्वानोंके बहुमान्य हैं ऐसे पुण्यनाम राजेन्द्रप्रसादजीके करकमलों में यह महापुरुषोंका चरितग्रन्थ, भोजक कुलमें उत्पन्न, अणहिलपुर (पाटण) निवासी मोहनलाल का पुत्र मैं पंडित अमृत नमस्कारपूर्वक विनयावनत होकर बहुमानसे समर्पित करता हूँ । भारतीका जय हो !
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