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चउप्पन्नमहापुरिसचरियं ।
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दियह चिय प्ररगुणविहवदंसणे ठाइ मुच्छिउ न्च खलो । तेलोकरजलमे वि शवर दोसे दिहि पत्तो ॥
दुर्जने ३१८ ५९. दीणाण समुदरणं, भयम्मि रक्खा, गुरुम्मि तह विणओ । दप्पु राण समर्ण, दाणं दारिदतवियाणं ॥ सव्वस्स पियंत्यया बंधुसिणेहो कयण्णुया सम्छ । सप्पुरिसाण महायस | सययं चिय होइ, कि भणिमो? ॥ . सत्पुरुषे ६७ १६-१७ दुक्खयाण सुहवावडाण जीवाण जीवलोगम्मि । होति जहिच्छं भोगा सुपत्तदाणाणुहावेणं ॥
__ दाने १६२ ६१ दुक्खपडियारहेउम्मि तम्मि को विसयसंभवे सोक्खे । अणुबंधं कुणति णरोऽवसाणविरसम्मि संसारे? ॥ विषयविरागे १७५ २८ दुक्खस्स उध्वियंतो हंतूण परं करेसि पडियारं । पाविहिसि पुणो दुक्खं बहुययरं तण्णिमित्तेण ॥
दयायाम् १४९ ४ दुष्टहजणाणुराएण गरुयपेमाणुबंधपसरेण । एवंविहम्मि काले सलाहजइ मित्त | मरणं पि ॥
प्रेमपात्रासंयोगे १.७ ८ दुल्लहलभम्मि जणे जस्स अवुष्णेहि होइ अणुबंधो । गिरिसरियासलिलेण व पइदियह तेण सुसियब्वं ।। दुस्सीलेहि सुएहि पि लहइ वयणिजयं पिया सययं । 'किरणा तवंति भुवणं लोओ सूरस्स स्सेइ' ॥
कुपुत्रे ६४ ७४ दूरं कारुण्ण-सुइत्तणाई लज्जा य होति मुक्काई । धम्मो दया य पूणं मंसमसंतेण मणुएण ॥
मांसपरिहारे १९३ १६७ दूरे पच्चासत्ती, सणमवि जस्स दुलहं होइ । संसारुत्तरणसह णाम पि हु सो जए जियइ ॥
महापुरुषे १२९ १ देयाइसु 'जीय, निएसु, सामि! सम्माणसु' त्ति भणिऊण | अणुचरिओ जो सामित्तगम्नि विणओणयंगेण ॥ सो चेव भिचभावं समागओ कम्मपरिणइवसेण । अंतोपसरियगुरुमच्छरेण निभच्छिओ पेच्छ ।।
निर्वे दे १९६ १९६-९७ देवत्तणे वि दट्ठ महिड्ढि-सकाइणो सुरसमूहा । जणियाहिओग्गमीसावसाइयं लहइ बहुदुक्ख ॥
२४७ २७ देवायत्ते जम्मम्मि कह गु गरुयाण फुरइ माहप्पं । ववसायसहाया तं कुणंति ते जं जगन्महियं ॥
महापुरुषे १६९ १ देव्वस्स मस्थए पाडिऊण सव्वं सहति कापुरिसा । देव्वो वि ताण संकइ जाणं तेभो परिप्फुरद ॥
पुरुषार्थे ११८ . देहेण णिसण्णासण्णवाहिवियणाकयंतकलिएण । धुवमधुवेण लब्भइ मोक्खसुई कि ण पज्जत्तं? ॥ .
देहसारतायाम् २१७ ५८ दोगचं पि ण णजइ, ण गणिजइ आवई वि गस्ययरी । हिययस्स णिन्बुइकरो जाण सुओ गुणगणाहारो॥
सुपुत्रे ६ दोगच्चं पि ण णजइ विहवे लालाण कारणमणग्वं । सयलसुहाण णिहाणं पुण्णेहि जणो जणं लहइ ॥ नारीप्रशंसायाम् २८ .८२ दो चेव णवर णीतीओ होति हियइच्छिया गुणा जत्थ । सामं व विणयपिसुणं दंडो व पयाववित्थारो ॥
नीतौ ६१ ८७ दोसा ण जत्थ जायंति, होति हियइच्छिया गुणा जत्थ । अणणुण्णाएण वि तं गुरुम्मि सुवि(यि) होइ करणीय ॥ गुरुसुश्रूषायाम् २९९ ३७५ धण्णा पार्वति जए चउव्विहं धम्ममासयविसुद्धं । सावय 1 जिणपण्णत्तं संसारुत्तारणसमत्थं ॥
धर्म ७८ १७ धम्मसुइविउलमूलभवस्स मइनेहसलिलसित्तस्स । चारित्तरुंदकंद-क्खमाइसाह-प्पसाहस्स ॥ छट्ट-ट्ठम-दसम-दुवालसाइतवचरणबहलपत्तस्स । णरवइ-सुरिंदधणसंपयाइकुसुमोहगहणस्स ॥ उत्तमणरचरियमहादुमस्स गुण-मोक्खफलसमिद्धस्स । सवणच्छाया वि फुड ण होइ पुण्णेहि रहियस्स ॥
सुचरितश्रवणे ४ ५०-५२ धम्मो सुसेविभो होइ कारणं अत्थ-काम-मोक्खाणं । तेण विणा किं सिज्झउ, कारणओ कजसिद्धि ति ॥ धर्मकरणे ११३ . धि! तसि मणुयाणं जे मणुयभवं पि णाम लक्ष्ण । विसयाहिलासवेलवियमाणसा गति णियजम्मं ॥
विषयविरागे २५६ १२८ धीरतणं पिछडिति, देति दुक्खस्स गवरमपाणं । कज्जा-ऽकजं ण मुणंति सोयगहिया जए पुरिसा ॥
शोकपरिहारे ६९ १५३ धीरपरिग्गहगल्यं जाणइ चक्कम्मिउं कुलपसूओ । आयार-णयहरे पहुघरम्मि संवडिओ य सया ।।
कुलीनत्वे ४५ १५७ धी। संसारो, जहियं उवइसइ जणो परस्स वसणम्मि । सो चिय तव्वेल चिय रुयइ सकरुण रुयावेतो ॥ परोपदेशपाण्डित्ये ६९ १४६ पइसमय चिय विसरइ बल-मेहा-का-जोवण-गुणेहिं । आउबलेणं च तहा तेण सरीरं ति किं भणिमो ? ॥ देहासारतायाम् ५. २३० पक्खीण सावयाण य विच्छोयं ण य करेइ जो पुरिसो । जीवेसु य कुणइ दयं तस्स अवच्चाई जीवंति ॥ कर्मविपाके १ ८१ पच्चक्खं चिय सुन्वति राम-रामण-णलाइणरणाहा । संपत्ता वसणसयाई रमणिवासंगवामूढा ॥
नारीनिन्दायाम् ३१ ५१७ पडिगीय-अंतराइय-णाणुवघाए य वट्टइ अभिक्खं । अवमण्णेतो य सया सुयजेढे होइ दुम्मेहो ॥
कर्मविपाके ८१ ६९ पढम जणंति सोक्खं साउत्तणजणियमणहरं भोया । किंपागफलासाइयरस ब पच्छा विणासंति ॥
विषयविरागे २१८ ६५ पढमाभासी महुरो पियंवओ विणय-खंतिसंपण्णो । जणमण-णयणाणंदो सुहओ सम्बत्थ सो होइ ।
कर्मविपाके ८१ ६६ पत्ताहासेहि ण किंचि कजमेत्थं बहूहि मिलिएहिं । 'उज्जोयं कुणइ मणी कायमणीमज्झयारम्सि' ॥
कुगुरौ ३१२ ५३४ पयडेइ ससहरो चिय अणिच्चयं तिहुयणस्स तदियहं । बोलेंति जस्स दियहा एक्सस्वेण ण हुदो वि ॥
दैवे ६९ १६६ पयतीए नइ वि कुडिला चलचित्ता जइ वि दुग्गहसहावा । तह वि सुहाण णिहाणं महिलारयणं महियलम्मि ॥ नारीप्रशंसायाम् १८० ३ पयतीए णिग्गुणो चिय देहो देहीण पत्थि संदेहो,। भरिओ मुत्त-पुरीसाइयस्स मेज्झस्स कलुसस्स ॥ वस-मस-रुहिर-फोफस-कलमलभरियस्स दुरहिगंधस्स । अविवेइणो इमस्स वि मंडण-परिकम्मणक्खणिया । देहासारतायाम् १४३ ४८-४९ पयतीए तणुकसाओ अणुकंपा-दाण-सोल-गुणकलिओ । जीवाण रक्खणपरो होइ सुही जीवलायम्मि ॥
कर्मविपाके १५ परजणहियत्थकजे समुज्जया जणियविविहविग्धा वि । णिवाहंति चिय तं पुणो वि णूणं महापुरिसा ।।
महापुरुषे २७. परपेरिया सलोहा अगणियणिययाववायसंदोहा । तेल्लियकुसि व्व महिला खलस्स वयणं पणामेइ ॥
नारीनिन्दायाम २१९ १ पररमणिस्वदंसणसुहाइ जो णेय पत्थइ कयाइ । ण य दिइ पररूत्रं पुरिसो सो होइ रुवस्सी ॥
कर्मविपाके ८१ ६४ Jain Education International For Private & Personal Use Only
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