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पत्र
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गाथा
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पंक्ति - ११
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उपन्न महापुरिसरिय
(पद्यविभाग )
णाणुरगइ बवएसविहिविदिण्णणपाणेहिं ||
aaहर अण्णह चिय
सुरवरस हत्थ पम्मुक्कविविह्मणिकिरणरंजियदियंता । कत्तो लायण्णुदलणपचलो
सोच्चि कालो जायइ तवस्स इह पंडिया पसंसति । सामत्थं जत्थ समत्थवीरिए होइ जंतूणं ॥ २७० ॥ अहिंदियत्थसामत्थयाजुओ
वीरियसझो जायइ तवो त्ति तणुमित्तसाह्णो णेय । हिययविचितियसरह सपव्वज्जा'
एयं पि इमाए चेव होइ
( गद्यविभाग )
सह समागएण अंतेउरम हल्लएण
रयणवुट्ठी पुण्णाणुबंधसंसिणी उच्छा मा एवं भणसु
इनके अतिरिक्त दृष्टिदोषादिकारणवश अशुद्धि रह गई हो तो उसके लिए में क्षमाप्रार्थी हूँ। आशा है, पाठक उसे सुधारकर पढेंगे ।
ग्रन्थ और ग्रन्थकार
जैनागम समवायांगके सूत्र ५४ में चौवन उत्तम पुरुषोंका जो उल्लेख है वह इस प्रकार है—
"भरहेरवसु णं वासेसु एगमेगाए उस्सप्पिणीए ओसप्पिणीए चउवन्नं चउवन्नं उत्तमपुरिसा उप्पजिंसु वा उप्पजंति वा उप्पज्जिस्संति वा । तं जहा - चउवीसं तित्थयरा, बारस चक्कवट्टी, नव बलदेवा, नव वासुदेवा । "
अर्थात् भरत और ऐरवत क्षेत्रमें प्रत्येक उत्सर्पिणी और अवसर्पिणीमें ५४-५४ उत्तम पुरुष उत्पन्न हुए हैं, होते हैं और होंगे । वे हैं - २४ तीर्थकर, १२ चक्रवर्ती, ९ बलदेव, और ९ वासुदेव ।
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प्रस्तुतग्रन्थमें वर्तमान अवसर्पिणीके उन ५४ उत्तमपुरुषोंका - महापुरुषोंका चरित वर्णित है । वर्तमान अवसर्पिणीमें शांतिनाथ, कुंथुनाथ और अरनाथ ये तीन व्यक्ति चक्रवर्ती भी है और तीर्थकर भी । अत एव प्रस्तुत ग्रन्थमें वस्तुतः ५१ महापुरुषों का चरित वर्णित है । विषयसूचि देखनेसे ज्ञात होगा कि इन ५१ महापुरुषोंका चरित भी ४० चरितों में समाविष्ट है । इसका कारण यह है कि एक महापुरुषके चरितवर्णन के प्रसंग में पिता-पुत्र या बड़े-छोटे भाईके संबंधसे अन्य महापुरुषका चरित भी आ जाता है । अत एव प्रस्तुत ग्रन्थके मुख्य प्रकरण ५४ नहीं; किन्तु ४० ही है ।
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