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________________ . . ५१ बबमाणसामिपरिय। __ एकम्मि सण्णिवेसे [१ गयाणं] गणहारिणा [भणियं] -किमज भोयणं अज ! तुम्हाण अभिरुइयं । तेहिं भणियं-पायसो। गोयमेण भणियं-चिट्ठह मुहुर्ततरमेत्य पएसे जाव अहं घेत्तूणागच्छामि । तह चेय पडिवण्णमेएहि । मुहुत्तराओ संपत्तो पवरपायव(स)स्स पत्तयं भरेऊण । भणिया य ते-उवविसह, मुंजह ति। तओ ते परोप्पर वयणाई पलोएऊण पहसिया। 'कहमेक्कस्स भोयणं पण्णरससयाणं संपज्जिही ?, अहवा किमम्हाण वियारेण ?, जं चेय गुरू समाइसइ तं तह चेय अणुट्ठियव्वं' [? ति चिंतिऊण] णिविट्ठा जहाणुकमेणं, कह ? णवरि य हिययभितररहसवमुद्धन्तसुद्धपरिणामो । विसउल्लसंतघणपुलयमासलिय[........]तणुभाओ॥ ६८९ ॥ आढत्तो पक्खिविउं विसट्टकुंदेंदुकंतिकयसोहं । संपुण्णसालितंदुलकलियं वरपायसं सहसा ॥ ६९०॥ अह सव्वाण समभहियपीतिसंपत्ततित्तितोसाण । पण्णरसाणं पि सयाण अच्छरीयं जणन्तेण ॥ ६९१ ॥ इय अक्खीणमहाणसलच्छी(दी)अणुहावओ मुर्णिदेण । मुंजाविऊण भुत्तं महरिसिणा अप्पणा पच्छा ॥ ६९२॥ तो ते तावसगणा ठूण तं गणहारिणो महापहावं लद्धिविहवं अप्पाणं जूरिउं पयत्ता-बहूयकालं अम्हेहि अप्पा पयारिओ किलेसबहुलेणं, कह ? जस्सेरिसप्पहावा सिस्सा अण्णे वि गुणमहग्घविया । सो उग तिलोयअञ्चन्भुउ ति मण्णे गुरू को वि ॥६९३॥ जोगम्मि य वरसिस्से गुरुणो संकमइ सयलविण्णाणं । इय अणुमाणाहिंतो एयस्स गुरू गुरू को वि॥ ६९४ ॥ तम्हा अवितहमेयं जं भणियमिमेण 'मह गुरू अण्णो' । अण्णह अणुवासियगुरुकुलस्स कत्तो इमा सिद्धी ? ॥६९५॥ बच्चामो तस्स वयं भुवणकयाणुग्गहस्स जयगुरुणो । चलणाण जए संसारसायरुत्तारण --- (१यराणं)॥६९६॥ इय ते सम्मइंसणसंपयसंपत्तचित्तमुहझाणा । संपत्ता जयगुरुणो आसण्णसमोसरणभूमी ॥ ६९७ ॥ तओ दुराउ चिय पलोइऊण रुपमयपायारवलयं दिपन्तमणिकुंडलुप्पयन्त ---------- विह'दिव्वंसुयपरियप्पियचिंधमालालंकियं जयगुरुणो समोसरणं हिययपहरिमुल्लसन्तसुहज्झवसायाण समुप्पण्णं तइयपश्यासं'सियतावसपंचसयाणं केवलणाणं । ----------- समासण्णयरत्तणओ जयगुरुणो धम्मदेसणाणिमित्तवियम्भिओ सजलजलहररवाणुयारी दूराइसंठियदुंदुहिणीसणो सयलजणाणंदयारी वाणीरवो । तं च सोऊण दुइयपइयासंसि-------- -(यतावसपंचसयाणं) समुप्पण्णं केवलं णाणं, अण्णाणं जिणमुहयंददसणपणट्टकम्मतमसमूहाणं । तओ समुप्पण्णपण्णरससयकेवलिपरियाओ(यरिओ) पविट्ठो जयगुरुपायमूलं । ते वि केवलिणो केवलिपरिसासमुह --------न्ता भणिया य गोयमेणं-जयगुरुं बंदह त्ति । भयवया भणियं-गोयमा! मा केवलिआसायणं कुणसु । गोयमेण चिंतियं-एए मए चेव बोहिया, णवरमेएसिं चेव केवलसमुप्पत्ती जाया, पयासिओ हं चरमदेहो । त्ति चिंताउरस्स गणहारिणो भयवया भणियं-गोयमा ! मा संतप्प, तुमं पि चरमदेहो आसण्णसिद्धिलंभो य, किंतु मण्णेहबंधणकम्मावरणपडिक्खलियं केवलं ण समुप्पज्जइ, ता मा विसायं गच्छसु चि । [गोयमसामिणो अहावयारहणा २४] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001442
Book TitleChaupannamahapurischariyam
Original Sutra AuthorShilankacharya
AuthorAmrutlal Bhojak, Dalsukh Malvania, Vasudev S Agarwal
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2006
Total Pages464
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size14 MB
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