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प्रस्तावना
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एवं लिखानेवाले व्यक्ति आदिको देखने पर इतना तो कहा जा सकता है कि आदर्श प्रतिमें इन दा गाथाओंका अभाव होनेसे ही इस 'सू' प्रतिमें वे उद्धृत नहीं हुई होंगी। सम्भव है कि आदर्श प्रतिमें अथवा उसकी पूर्वपरम्पराकी प्रतिमें किसी प्रकारकी असहिष्णुताके कारण ये गाथाएँ न भी ली गई हों, परन्तु इतना निश्चित है कि ग्रन्थकारका संक्षिप्त परिचय देनेवाली ये गाथाएँ स्वयं ग्रन्थकार द्वारा ही रचित हैं।
इस प्रकार निर्वृतिकुलीन मानदेवसूरिके शिष्य शीलाचार्य, शीलांक अथवा विमलमतिने प्रस्तुत ग्रन्थकी रचना की है। ग्रन्थकार एवं उनके गुरुके विषयमें कोई विशेष जानकारी उपलब्ध नहीं होती, फिर भी इस ग्रन्थका सम्पादन करते समय ग्रन्थकारके बारेमें जो कुछ थोड़ी-बहुत सामग्री उपलब्ध हुई है वह मैं नीचे प्रस्तुत करता हूँ
आचार्य पद प्राप्त करनेसे पूर्व एवं उसके पश्चात् ग्रन्थकारका नाम क्रमशः विमलमति और शीलाचार्य रहा होगा और 'शीलांक' तो स्वयं ग्रन्थकारके द्वारा अपने लिए पसन्द किया गया उपनाम प्रतीत होता है। यद्यपि प्रस्तुत ग्रंथके अन्तमें 'शील + अंक' द्योतक कोई शब्द प्रयोग तो उपलब्ध नहीं होता, तथापि विबुधानन्द नाटकके अन्तमें (पृ. २७) 'सच्छीलवान् रङ्गः' लिखकर ग्रन्थकारकी वृत्ति शील अंक सूचित करनेकी ज्ञात होती है। केवल इसी एकमात्र स्थानके कारण उनका उपनाम शीलांक पड़ा हो ऐसा नहीं कहा जा सकता । सम्भव है, शीलांक पदसे निर्दिष्ट दूसरी भी रचनाएँ उन्होंने की हों।
श्रीहेमचन्द्राचार्य रचित देशीनाममालाकी टीकामें आनेवाले 'कडंभु घटस्यैव कण्ठ इति शीलांकः' (पृ. ८८) तथा 'बोंड चूचुकम् ,बोंटणं इति शीलांकः' (पृ. २५०) इन दो उद्धरणोंसे इतना तो निश्चित होता है कि शीलांक नामके किसी विद्वान्ने या तो देशीनाममाला लिखी थी या फिर किसी देशी शब्दकोशके ऊपर टीका लिखी थी। शीलांक नामके अनेक विद्वान् हुए हैं। आजतकके उपलब्ध साहित्यको देखते हुए ऐसा प्रतीत होता है कि अन्य शीलांकोंकी रचनाका विषय आगम साहित्य है, जबकि प्रस्तुत ग्रन्थकारका विषय कथा, चरित्र, नाटक आदि है। इसके अलावा प्रस्तुत ग्रन्थमें देशी शब्दोंका प्राचुर्य भी है । इससे ऐसा अनुमान किया जा सकता है कि हेमचन्द्राचार्य द्वारा उल्लिखित शीलांक चउत्पन्नमहापुरिसचरियके रचयिता शीलांक ही होने चाहिए। जिस प्रकार उपर्युक्त अवतर गोंसे सूचित शीलांककी कोई देशीनाममाला अथवा उसकी टीका उपलब्ध नहीं होती उसी प्रकार दूसरे ग्रन्थ भी प्रस्तुत ग्रन्थकारने लिखे अवश्य होंगे, परन्तु वे अब मिलते नहीं हैं। यद्यपि शीलांक नामक विद्वान्की अन्य कृतियाँ उपलब्ध होती हैं, किंतु प्रस्तुत ग्रन्थकारसे उन-उन कृतियोंके लेखक अभिन्न हैं यह बतलानेवाला कोई प्रमाणभूत आधार इस समय हमारे पास नहीं है।
शीलांक वा शीलाचार्यके सम्बन्धमें भारतीय एवं पाश्चात्य विद्वानोंने कुछ आनुमानिक विचार' प्रदर्शित किये हैं। उसी नामके एक विद्वान् द्वारा रचित प्रस्तुत ग्रन्थका सम्पादन करते समय उपयुक्त पूर्वभूमिकाके आधार पर जो बातें ज्ञात हुई हैं उनका निर्देश करना यहाँ उपयुक्त होगा। इस समय शीलांक अथवा शीलाचार्यने निम्न ग्रन्थोंकी रचना की है- ऐसे उल्लेख मिलते हैंग्रन्थ
कर्ता १. विशेषावश्यकभाष्यवृत्ति
शीलांक-कोट्याचार्य (निर्देशः प्रभावक चरित्र) २. आचारांग-सूत्रकृतांगटीका
शीलाचार्य-तत्त्वादित्य-शीलांक ३. चउम्पन्नमहापुरिसचरिय
शीलाचार्य-विमलमति-शीलांक १ डॉ. पिशल सम्पादित और भाण्डारकर ओरिएण्टल इन्स्टिटयूट, पूनासे प्रकाशित ।
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