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सप्तमं परिशिष्टम् ।
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जिणवयणमुणियतत्ताण सयलकिरियाकलावसंजत्ति । संजणइ जोधणे घेव संजमो बलसमत्थाण ॥
संयमे २१७ ५३ जीयं णिरत्ययं होइ सुयणु ! पियसंगमेण रहियस्स । इह जोव्वर्ण पहाणं तत्थ वि पियसंगमसुहाई ॥
प्रियसंयोगे १५६ १२, जीवाइपयत्यऽन्भासणेकववसायनिच्छियमइतं । बहुविहपवित्तसत्थऽस्थवित्थराराहणं होई ॥ तं पि पसण्णे गुरुयणमणम्मि बहुविमलसत्थणिम्माए । पयडियसमतण-मणि-लेठ्ठ-कंचणे समसुह-दुहम्मि ॥ होइ गुरू सुपसण्णो तचित्ताराहणेण विणएण । तस्स विणयस्स विग्धं करेइ माणो वियंभंतो॥
गुरुपर्युपास्तौ ४९ २२०-२२ जीवावेइ मरतं. अण्णं मारेइ, मरइ सह तेण । को मुणइ जुवइचरिय विसेसओ सीलरहियाणं ॥
नारीनिन्दायाम् ५९ ३५ जीवो अणादिबहुभवकालजियगरुयकम्मसंताणो । परिभमइ दुहसयावत्तदुग्गमे भवसमुद्दम्मि ॥
निर्वे दे २४७ २२ जे अस्थ-काम-धम्मा काउं तरुणत्तणम्मि कीरति । परिणयवयस्स ते चेय होंति गिरिणो ब्व दुघा ॥
तारुण्ये २१८ ६२ जेण जहिच्छं सच्छंदविलसिउम्मग्गगामिणो मूढा । अच्छंति चत्तपरलोयकयहियायरणवावारा ॥ बहुदुक्खलक्खसंजणियवियणसंतावतारयमणग्छ । गुरुयणवयणं घोटेंति णेय अगय व दिजंत ॥
मूढे २३५ १८६-८७ जेण जुवाणत्ते णियसरूयसोहग्गगम्विएण दढं । परिसकिज्जइ उम्मुहवित्थारियणयणमग्गेण ॥ वेणेय जराजजरपरिणामोअल्लतणुविहारण । भण्णसासत्तकरेण णीसह वेविरंगेण ॥
जरायाम् २४७ १६-१७ जेणऽष्णभवंतरमुवगयस्स वग्धी सुयस्स णिययस्स । मंसमसइ ति तुहा अओ परं कि य कट्टयरं ? ॥
निवेदे १९६ १९. जे संसारालंकारकारणं महियलम्मि ते केइ । उप्पजति सरूवेण पुण्णरासि व्व सप्पुरिसा ॥
महापुरुषे ८६ . जे होति महापुरिसा ते ठिइभंग कुणंति ण कया वि । उवलद्धो कि केण वि मग्गुत्तिण्णो रहो रविणो ! ॥ मर्यादायाम् ६३ ७२ जे होति महापुरिसा ते परकज्जुज्जया सया होति । णियकर्ज पुण तं ताण जं परत्थाण णिव्वहणं ।
महापुरुषे ११२ ६३ जो भासि भमिरभमरंजणुजलो कसणकेसपच्भारो । सो चेय विसयवोसट्टकासकुसुमप्पहो होइ ॥
निवेंदे २४७ २. जो उण भकिंचणो चिय गिण्हति दिक्खा णिरत्थया तस्स । धणसंपत्ती गेहं तेण विणा होइ वणवासो ॥ निद्रव्यप्रवज्यानिन्दायाम् ३२११६ यो उण शिंदेइ गुरुं णिण्हवइ य गोरवं विमग्गेतो । तस्स जइ कह वि विजा होइ फलं ग उण से देइ ॥ कर्मविपाके १४ जो उण रूवमएणं समाउलो जिंदई य पररूवं । सो होइ कुरूवो माणुसत्तणे हुंडसंठाणे ॥
कर्मविपाके ८१ ६५ ओ उण सयलणरीसरपरिणामाऽसज्झदारुणो भुवणे । लच्छीमओ महायस ! पुरिस लहुएइ सयराहं ॥
लक्ष्मीमदे ७० १८१ जो उवएस पावम्मि देइ सो वेरिओ, ण संदेहो । जो कुणइ धम्मबुद्धिं सो तस्स जणो परमबंधू ॥
परमार्थबान्धवे ४५ १५० जो उवघाए बट्टइ परस्स लच्छी कहंचि पत्ता वि । तस्स पलायइ दुक्खज्जिया वि धणसंपया विउला ॥ कर्मविपाके ८, ७६ जो एस देव ! सोभो सो सोओ सयलपावपसरस्स । अबुहेहि सयाऽऽयरिओ परिहरिओ पंडियजणेणं ॥ वाहीण परं ठाणं, मूलं अरतीए, सोक्खपडिवक्खो । अण्णाणपढमचिंध णरयदुवार गुणविणासो ॥ बाहेइ सयलकजाई एस, परिहरइ उत्तमविवेयं । धम्म-ऽत्थ-काम-मोक्खाण विग्घहेऊ महापावो ॥
शोके ६९ १६९-७१ जो कारवेइ पडिमं जिणाण जियराग-दोस-मोहाणं । सो पावइ अण्णभवे भवमहणं धम्मवररयणं ॥ . जिनप्रतिमानिर्माणे १५३ जो कुणा अंतरायं परस्सणासं जणस्स अवलवइ । सो पावइ दोगचं सयलजणपरिहवमुयारं ॥
कर्मविपाके ८१ ८७ . जो कुणइ महापावो जंतूणं कह वि अवयवविणासं । सो चिय तयंगविगलोऽसंपुष्णगो य पावीओ (1)॥
८१ ८५ जो कोउएण इच्छइ दट्टुं णरए दुहेक्कणिम्माए । एकदियह पि रज सो कुणउ अचेयणो निययं ॥ राज्यश्रीनिन्दायाम् १८९ २९ जो चिय एकस्स खलो सो चिय अण्णस्स सज्जणो होइ । कह 'सुयणो' त्ति थुभिज्जइ . णिदिजइ कह 'खलो काउं ॥ दुर्जन-सुजनविवेके २ जो अणइ य जणपीड णिच्चुदिग्गो य हीणदेहो य । पडणीओ जिणसंघे अणंतसंसारिओ होइ ।।
कर्मविपाके ८१ ८९ जो जम्मि चेव जायम्मि होइ णियकम्मपरिणइवसेण । सो रमइ तहिं चिय तेण अभयदाणं पसंसंति ॥
दयायाम् २१५ ४६ जो णिग्गच्छइ मणि-रयण-कणयकलियं पि उग्झिऊण सिरि । अत्थित्तारिच्चाई सो पव्वतिओ फुडं भणिो। समृद्धप्रमज्याप्रशंसायाम् जो तुरय-वसह-महिसाइयाण णिलंछणं सया कुणइ । उकडमोहो य सया जीवो संढत्तणमुवेइ ॥
कर्मविपाके ८० ६. जो दठूण जइजणं अण्ण काणच्छिऊण सढभावो । णिन्बोल्लइ माइलो सो वंकमुहो गरो होइ ॥ जो देइ फासुयं अवसरम्मि साहूण ओस हाईयं । सो होइ धणड्ढो महियलम्भि कित्ती थिरा तस्स ॥ जो पयइभइयाए जह कह वि जतीजणे पयच्छेइ । फासुयदाणं तस्स यऽथिरा वि लच्छी थिरा होइ ॥ जो पररंधाई अदिट्ठयाई दिहाई जंपइ अणज्जो । छायांभंसपसत्तो जचंधो होइ जियलोए ॥ जो प्या-सकाराइ-दाण-सम्माण-कित्तिकलणाए । कीरइ तवो ग सो होइ तस्स व्याणपजतो ॥
तपसि २८. जो मायावी पिसुणो वंचणसीलो तहा कयग्यो य । तस्सुवकयं पणस्सइ, विवरीयगुणस्स संठाइ ॥
कर्मविपाके ८१ जोयणसयाओ तह समहियाजो लक्खेइ आमिसं सउणो । यो चेव मरणकाले पासाबंधं ण लक्खेइ ॥ मो वि पियसंगमाभो सुहाहिमाणो हवेज अंतूण । सो वि वियोगाणलसंगदूसिओ दड्ढमाणहओ ॥
नि दे १.५ जोवण-मयणुम्मत्तेहि विसयतण्हाविमोहियमणेहिं । जं कीरइ इह पुरिसाहमेहिं तं णिरयगइमूलं ॥ .
विषयविरागे जोग्वणमयणुम्मिलंतपडगंडयलवयणससिबिंद । णिम्बवणकारणं कि कयाइ गरयम्गितवियाणं? ॥
नारीदेहनिन्दायाम् २८ ७२ Jain Education National For Private & Personal Use Only
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