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प्रस्तावना
११. प्रतिवासुदेवको पराजित करनेसे पहले ही विजय बलदेवकी प्रव्रज्याका (पृ. ११४ ) निर्देश है।
१२. सम्मेतशैल और अष्टापदगिरि एक-दूसरेसे भिन्न हैं यह बात प्राचीन-अर्वाचीन समग्र जैन साहित्यमें विख्यात है। यहाँ भी ग्रन्थकारने इन दोनोंका प्रचलित भिन्न भिन्न नामोंसे उल्लेख किया है, फिर भी एक स्थान पर अष्टापदगिरिक बदले सम्मेतशैल लिखा है । वह पाठ इस प्रकार है- 'एवं विहरमागस्स सम्मेयसेलवंदणणिमित्तमुप्पण्णा मती । पयट्टो सागरदत्तसत्थवाहेण समयं । पणमिऊगं च भगिओ सागरदत्तेग-भयवं! कहिं पुग तुम्हेहि गन्तव्वं ? मुणिणा भणियं-वंदणणिमित्तमहावयगिरि ।' (पृ. २४८) इसके आगे भी पृ. २४९ में मुनिके अष्टापद पर्वत पर जानेकी बात आती ही है । अतः मुनिको अष्टापद पर ही जाना था और वहीं वे गये भी, यह स्पष्ट है; परन्तु ऊपरके पाठमें अष्टापदके ख्यालसे ही 'सम्मेतसेल' लिखा गया है । कहावलीमें इस स्थान पर सम्मेतशैलका ही निर्देश है। इससे रचना किस शीघ्रतासे हुई होगी उसका कुछ आभास मिलता है। साथ ही 'सम्मेयसेल' एवं 'अट्ठावयगिरि इन दो शब्दप्रयोगोंके बीच केवल ६७ अक्षरोंका ही व्यवधान है, जिससे ऐसा अनुमान किया जा सकता है कि ग्रन्थकी रचनाके पश्चात् लेखकको पुनः आद्यन्त पढ़ जानेका अवसर नहीं मिला है।
___ ग्रन्थकी रचना गद्य-पद्यात्मक है । पद्य-भागमें सुभाषित गाथाएँ तो आती ही हैं, परन्तु उनके अतिरिक्त कथा-प्रसंग भी इस विभागमें आते हैं। अधिकांश पद्य-विभाग आर्या छन्दमें है। फिर भी कतिपय पद्य आर्याक विविध प्रकारोंमें तथा दण्डक आदि विभिन्न छन्दोंमें भी निबद्ध हैं।
इसमें गद्यका प्रयोग होने पर भी कहीं कहीं पद्यगन्धी गद्य प्रतीत होता है । ऐसे पद्यगन्धी गद्यमें आर्याके एक अथवा एकाधिक चरणके अतिरिक्त दूसरे किसी छन्दके अंशकी प्रतीति नहीं होती । ऐसे गद्यके नमूने नीचे दिये जाते हैं। सुरवर-णररिद्विवण्णणागरुयं ।
आर्याद्वितीयचरण पृ. ४ पंक्ति ३० लेसुद्देसेण तुह मए सिटुं ।
२१० उवउत्ता दंसणे य णाणे य ।
८९ ....रपंकखुत्ताण भवियसत्ताणं
९४ हाहारवसद्दबहिरियदियंत । एवं च ते वणयरा तीए सव्वायरेण विणिउत्ता। आर्या पूर्वार्ध ३१२ तह परिणओ करिंदो रोसेणायंबिरच्छिवत्तणओ। ,
२८५ विशिष्ट भाषाप्रयोग
___यहां प्राकृत भाषामें उवृत्तस्वरोंके संधि-लोप-श्रुति-श्रुतिभेदादिप्रयोग, उद्वृत्तस्वरमें 'व' आगमप्रयोग, ऐकारका प्रयोग, समसंस्कृतप्रयोग, सिद्धसंस्कृतप्रयोग, विभक्तिव्यत्यय, विभक्तिलोप और वर्णव्यत्यय आदि अनेक प्रयोग उपलब्ध होते हैं, जिनमेंसे बहुतसे प्रयोग आचार्य श्रीहेमचन्द्रसूरिने अपने प्राकृतव्याकरणमें 'आर्षम्', 'बहुलम्' और मतांतरसे स्वीकृत किये हैं। इन सबकी तालिकाएँ अभ्यासीके अवलोकनार्थ यहाँ दी जाती हैं। उबृ तस्वरसंधिके प्रयोगलोयट्ठी लोयट्टिई लोकस्थितिः
पृ. ७३, २७२ पुवट्टिईओ पूर्वस्थितयः
३७ 'स्थितिम्
२०५ टि० सहस्सट्ठी सहस्सट्टिई सहस्रस्थितिः
१४८ टि०
पुबडीओ
'ड्रीं
ट्ठिई
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