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चउप्पन्नमहापरिसचरिय।
असुयं पि सुयं भासइ, तह य विरुद्धाइ कहइ लोयस्स । पिसुणो परतत्तिल्लो सो बहिरो होइ मूओ य ।। कर्मविपाके १८३ अह एको चिय दोसो गुणसयकलियस्स होइ रोरस्स । जं पसहं चिय दिटुं 'अत्थि' त्ति जणो परिकलेइ ॥ दरिद्रप्रशंसायाम् ३२२ ६३१ महवा ‘दोसाहितो राओ चिय गुरुयरो' ति पडिहाइ । जेण पउत्तो गुरुणो वि होइ पडिबंधहेउ त्ति ॥
रागपरिहारे ३३४ ७९७ अहिजाई सयलकलाकलावकलिय हिओवएसयरं । संक्डइ मंदभायाण णो सुमित्तं कलत्तं च ॥
मित्रे २२५ ११० अहिलसइ जो ण घेत्तूण परसिरि णियवहुत्तसंतुट्ठो । सो ससिरीए वि मुच्चइ 'अव्ववसाइ' त्ति कलिऊण ॥
शौर्ये २९३ २९१ आइम्मि सयलरसर्वजणेहि जुत्तं पयड्ढियपमोयं । पाणहणं परिणामम्मि विसयसोक्खं विसऽष्ण व ॥
विषयविरागे २१८ ६६ आगंतुगभूसणभूसियस्स णिच्चपरिसीलणीयस्स । चितिज्जतं कि कि पि सोहणं हयसरीरस्स? ॥
देहासारतायाम् ५. २२९ आवइपडियस्स वि सुवुरिसस्स उव्वहइ तह वि ववसाओ । विरहियववसायं पुण लच्छी वि ण महइ अहिलसि ॥ उद्यमे २३८ २१४ भावज्जण-रक्खण-खय-वयातिउव्विग्गमाणसो अत्थी । अधणो सऽस्थत्तणणिव्युतीए दूरं समब्भहिओ ॥
दरिद्रप्रशंसायाम् ३२२ ६३५ आहिउत्तो जया पस्से ण किंचि सुहमप्पणो । जुज्झियव्वं तया होइ फुडमेसो उवक्कमो ॥
नीतौ १८५ ७४ इय अगणियणिययकुलकमाण पम्मुक्कलज्जियव्वाण । खलमहिलाणं ण हु णवर कुवुरिसाणं पि अह मग्गो ॥ नारीनिन्दायाम् २१९ ७२ इय अर्धवम्मि जीए धुवे विणासम्मि सम्वदेहीण । को णाम बालिसो जो उवेक्खए अप्पणो अप्प १ ॥
आत्मार्थे २३६ १९८ इय अप्पडियारे हयविहिम्मि संसारवत्तिणो जीवा । वट्टति तस्स आणाए, तत्थ को कीरउ उवाओ?॥
दैवे ६७ १२१ इय एवं दालिई णिदिज्जइ दुन्वियढमणुएहिं । अञ्चंतभोयसंपयथड्ढुद्धयदुट्ठचित्तेहि ॥
दारिद्धप्रशंसायाम् ३२२ ६३८ इय कित्तियं च भण्णइ ?,जे केइ दुहस्स हेयवो भणिया । ते संभवंति णिययं णराण रमणीण संगेण ॥ नारीनिन्दायाम् १८० १३ इय कूड-कवड-माया-पवंच-बिब्बोय-कामभरियाण । णामं पि जे ण गेण्हंति णवर महिलाण ते धण्णा ॥ इय केच्चिरं व किपागफलसरिच्छम्मि तुच्छभोयसुहे । सत्तण चिट्ठियवं असारसंसारवासम्मि ? ॥
विषयविरागे २५६ १३० इय कोवेणं सयले जयम्मि जे जंतुणो समहिहूया । इह परलोए वि णराण ताण ण हु होति सोक्खाई ॥ क्रोधपरिहारे २७७ ७५ इय जइ वि तस्स कजम्मि वह वि दिज्जइ सिरं पयत्तेणं । तह वि कयाइ ण तीरइ पिसुणो सुयणेण घेतण ॥ दुर्जने ३१८ ५९८ इय जह जह चितिजइ देहस्स थिरत्तणं सुइत्तं च । तह तह विहइ सब्बं पवणुच्छित्तं व सरयब्भं ॥ देहासारतायाम् १५३ ५४ इय जुय-समिलादिटुंतदुल्लहे पावियम्मि मणुयत्ते । जो ण कुणइ धम्म सो खिवेइ णियभायणे छारं ॥
धर्मकरणे २५३ ९३ इय जे णिच्छियमइणो अवहत्थियसुहजसोहसोडीरा । विण्णायगुणविसेसा ताण सिरी देइ सणिज्झं ॥
पुरुषार्थ १३८ ५ इय जो वि भाइ भइणी भजा सयणो व्व णेहपडिबद्धो । ण हु मच्चुगोयरगयं सो वि परित्ताइउं तरइ ।।
मृत्यौ २३५ १९२ इय णिग्गुणे सरीरम्मि णवरि एसो गुणो जए पयडो । जं सव्वदुक्खमोक्खं सुद्धं धम्म समजिणई ॥
देहसारे ५० २३१ इय णिचं चिय णमुणियधणाइवासंगवाउलमतीओ । परजणजणियावण्णो जती दरिदो ति ण विसेसो ॥ निर्दव्यप्रवज्यानिन्दायाम् ३२१६१८ इय णिन्भरगुरुसम्भावपसरवीसंभवड्ढियसुहल्ली । अण्णोण्णजंपिएहिं वि जयम्मि मिहुणाई पार्वति ॥
दाम्पत्यसुखे २९ ८९ इय णियचरिएहि चिय पुरिसा गजति कुल-गणसमेया । मज्जाइकमणेणं जेणं लहुएति अप्पाणं ।।
मर्यादायाम् ६४ ७६ इय णिरयणिवायं कोहदोसेण ताण, विलगयमुयारं संजमुजोयजोय । णरयपडणभीरू बुद्धिमं भाविऊणं, पइदिणमिह कुजा कोहवायाणभंग ॥
कोधपरिहारे ३३२ ७७३ इय जिंदणिजचरियाओ जिंदणिजाणुरत्तचित्ताओ। वेसाणिहेण संसारवाउराओ वियंभंति ॥
गणिकायाम् ३१४ ५५७ इय दीहट्ठिणिवेसियचम्मसिराजालचरण-जंघासु । वरकमलदलंगुलि-करिकरोरुकरणी दुरताणं ॥
नारीदेहनिन्दायाम् १७० १७ इय पिययम पि सिढिलेति, अहव अत्यं, मुयंति णियदेसं । माणभंसं ण कुणंति कह वि जे होति सप्पुरिसा ॥ स्वमाने ५७ ३३ इय बहुसो संसारम्मि वियरमाणाण कम्मवसयाण । मुहि-सत्तु-मित्त-पुत्तत्तणाई जीवाण पार्वति ॥
निर्वे दे २१३ ३८ इय मंसमसुइसंभवसमुन्भवं दीसमाणमसुई च । को छिवइ करयलेणावि, दूरओ भक्खणं तस्स ।।
मांसपरिहारे १९३ १६८ इय मुणिऊणेवविहमसारसंसारविलसियं सहसा । अथिरम्मि विसयसोक्खम्मि भणह वह कीरउ थिरासा? ॥ विषयविरागे २१७ ५२ इय वयवुढि चिय होइ कारण ईसाहणथम्मि । उजोयइ पुण्णससी, ण इंदुलेहा जयं सरल ।। यौवनवयस्तपोनिषेधे २९१ २६९ इय वियलियगुरुतेओ जइ जाओ कालपरिणइवसेण । अस्थमइ परं सूरो वि 'मइलणं ण सहइ पयावी' ॥
तेजःक्षये १६ १७१ इय सलिलबुब्बुयुब्भडसंझाराओवमम्मि जीयम्मि । विसयसुहेसु थिरासा कह कीरउ जाणमाणेहि ? ॥
विषयविरागे २४८ ३७ इय सम्बभूयदयदाणकारणो जो जयम्मि सो धम्मो । जत्थ ण दया मुणिजइ जयम्नि सो केरिसो धम्मो? ॥
दयायाम् २६२ २०७ इय सम्बस्स वि मरणे साहीणे तस्स किं ण पजतं । जस्स पहु-मित्तकज्जुज्जयस्स संपडइ मरियम्व! ।।
सुसेवकमरणे २३३ १६९ इय सव्वं चिय लन्भइ जयम्मि जं किंचि होइ दुल्लभं । एक मोत्तुं करिणाह! वीयरागुग्गय धम् ॥
जैनधर्म २४९ ५४ इय सोयाओ क्यकम्मपरिणई भाविऊण विणियत्ता । बहुसो चिय जणणि-सुयत्तणाई सुलहाई संसारे ॥
निवेदे १९७ २०२ इह अप्पमाइणो होति सयलसंचितियत्यवित्थारा । सविसयगुणसंपत्तीओ अप्पमाया हि जायंति ॥
अप्रमादे ३१६ ५६६ इह जाइ-जरा-जम्मण-मरणुव्वत्तणपरंपराकलिए 1 जलकल्लोल व्व भमंति जंतुणो भवसमुद्दम्मि ॥
निवेदे २३५१८३ Jain Education International For Private & Personal Use Only
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