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७ सुमतिसामिचरियं ।
साहूणमेसणिज्जं दव्वं सह खेत- कालगुणजुतं । देन्तो पावर पुरिसो भोगे कालोचियाऽणं ॥ ६३ ॥ पररमणिरुवदंसणसुहाइ जो णेय पत्थइ कयाइ । ण य निंदर पररूवं पुरिसो सो होइ रूवस्सी ॥ ६४ ॥ जो उण रूत्रमपणं समाउलो जिंदई य पररूत्रं । सो होइ कुरूवो माणुसत्तणे हुंडठाणे ॥ ६५ ॥ पढमाभासी महुरो पियंकओ विजय खंतिसंपष्णो । जणमणणयणाणंदो सुहओ सम्वत्थ सो होइ ॥ ६६ ॥ सव्वस्स वंचणपरो कुरो कुल- रूवगव्वि दुस्सीलो । सन्त्रस्तुव्वेयैकरो य दूहवो जायइ मणूसो ॥ ६७ ॥ वगारे वह णाणीणं विणय-दाणसंजुत्तो । अज्झावयणे व सुभे वट्टन्तो होइ मेहावी ॥ ६८ ॥ परिणीय-अन्तराइय- णाणुवघाए य वट्टर अभिक्खं । अत्रमण्णेन्तो य सया सुयजेहं होइ दुम्मेहो ॥ ६९ ॥ दंड-कस-सत्थ-रज्जू-गय-तोमर-खग्ग- मोग्गरादीहिं । दुक्खं उप्पाएंतो जीवाणं होड़ बहुवियणो ॥ ७० ॥ पतीए तणुकसाओ अणुकंपा- दाण-सीलगुणक लिओ | जीवाण रक्खणपरो होइ सुही जीवलोयम्मि ॥ ७१ ॥ अणवरयणाणदाणेण संजुओ होइ बहुसुओ लोए । मुक्खो उण विवरीओ अप्पहियं पि हु ण याणेइ ॥ ७२ ॥ जो माप वियुज्जुत्तो गुरूण भत्तिगओ । सो पावेइ जहिच्छं विज्जं तीए फलं चैव ॥ ७३ जो उण र्णिदेव गुरुं हिवड़ य गोरखं विमग्गेंतो । तस्स जई कह वि विज्जा होइ, फलं ण उण से देइ ॥ ७४ ॥ जो मायावी पिसुणो वंचणसीलो तहा कयग्यो य । तस्सुत्रकथं पणस्सइ, विवरीयगुणस्स संठाइ ॥ ७५ ॥ जो उवाए बट्टइ परस्स लच्छी कहंचि पत्ता वि । तस्स पलायइ दुक्खज्जिया वि धणसंपया विउला ॥ ७६ ॥ जो पय भयाए जह कह वि जतीजणे पयच्छेइ । फामुयदाणं तस्स यऽथिरा त्रि लच्छी थिरा होइ ॥ ७७ ॥ जो दण जइजणं अण्णं काणच्छिऊण सद्भावो । णिब्बोल्लइ माइल्लो सो वकमुहो णरो होइ ॥ ७८ ॥ तवतणुयंगाण सया जो पुरिसो भणइ विप्पियमहण्णो । सो पूइमुहो जायइ कुंटो पुण पेण्हिघाएणं ॥ ७९ ॥ मंटा वडभा य सया साहूणमणज्जकारिणो होति । विच्छोयकारयाणं ण पयाण थिरत्तणं होइ ॥ ८० ॥ क्खीण सावयाण य विच्छोयं ण य करेइ जो पुरिसो । जीवेसु य कुणइ दयं तस्स अवच्चाई जीवंति ॥ ८१ ॥ जो पररंधाई दियाइं दिट्ठाई जंपर अणज्जो । छायाभंसपसत्तो जबंधी होइ जियलोए ॥ ८२ ॥
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असुयं पि सुयं भास, तह य विरुद्धाई कहइ लोयस्स । पिसुणो परततिल्लो सो बहिरो होइ मूओ य ॥ ८३ ॥ डहणं-कण-घायण-छेयणेहिं दुक्खं जियाण पकरेंतो । बहुरोगी होइ णरो, विवरीओ जायइ अरोगो ॥ ८४ ॥ जो कुण महापावी जंतूणं कह चि अवयवविणासं । सो चिय तयंगविगलोऽसंपुण्णंगो य पावीओ (?) ॥ ८५ ॥ जो देइ फायं अवसरम्मि साहूण ओसहोईयं । सो होइ धणड्ढो महियलम्मि कित्ती थिरा तस्स ॥ ८६ ॥ जो कुण अंतरायं परस्सणासं जणस्स अवलवइ । सो पात्रइ दोगचं सयलजणपरिहत्रमुयारं ॥ ८७ ॥ गुरु साहुवयणकारी दढव्बओ सच्चसंघणापरमो । सो गज्झवओ जाया, पात्रमई होइ विवरीओ ॥ ८८ ॥ जो जणइ य जणपीडं णिच्चुम्बिग्गो य हीणदेहो य । पडणीओ जिणसं अनंतसंसारिओ भणिओ ॥ ८९ ॥ संकाइसल्लरहियं सम्मत्तं जस्स होइ भुत्रणम्मि । तस्स परित्तो जायइ संसारो मुकयकम्मस्स ॥ ९० ॥ जस्स उण णाण- दंसण- चरणाई मणे जहुत्तकारिस्स । तस्स णरस्सावस्सं हवंति सग्गा-पत्रग्ण त्ति ॥ ९१ ॥
१ सोहेइ सू । २ व्वेवकरो जे । ३ उप्पायतो जे ४ यरी सु । ५ इ बहुवि वि सू । ६ पट्टिघा जे ७ ण य क सू ।
८ अंतराई सू । ९
'पीलं निच्चु जे ।
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