________________
:
He
पुरुषार्थपा
East होगा या बड़ा गया कि इसे क्या हो गया है ? आचर्य में पड़ गया। लेकिन हिम्मत करके उसको पीठपर रखा तथा बस्ती में ले जाकर बवाई कराई किन्तु वह मर गया । घर वापिस लौटा और उसके घरवालोंको खबर दी व सब हाल कह सुनाया, सब लोग समझ गये कि यह सब खराब या अशुद्ध विकारों खाने-पीने का नतीजा है अर्थात् उसकी गलती फल है। बस, इसी प्रकार व्यवहारनय । अशुद्धनय | के आलम्बन लेनेका फल मिलता है ( वरवादी होना ) और निश्चयनयके आलम्बनका फल ( आबादी या रक्षा मिलता है ऐसा संक्षेप में समझना चाहिये ।
यही कथंचित्
ता व
तुल
||||
उपसंहार
व्यवहारके दो भेद हैं ( १ ) मिध्यादृष्टिका व्यवहार, जिसको मिथ्या व्यवहार कहते हैं ( २ ) सम्यग्दृष्टिका व्यवहार जिसको सम्यक् व्यवहार कहते हैं, भिन्न २ तरहका होता है। मिध्यादृष्टिका. व्यवहार मूलमें भूलरूप है अर्थात वह भेद ज्ञान रहित है, संयोगी पर्यायके साथ एकत्वरूप है । और सभ्य दृष्टिका व्यवहार मूलमें भूलरूप नहीं है किन्तु भेदज्ञान सहित है तथापि सरागरूप अशुद्ध है अतएव वह हेय ही हैं इसीसे वह कथंचित् उपादेय भी ( होनदशामें ) माना जाता है, जो मज बूरीकी निशानी है, या बलात्कार के समान है । तभी तो वह सम्यग्दृष्टि उससे भी अरुचि या अ योग करता है उसका स्वामी नहीं बनता इत्यादि । ऐसे भव्य सम्यग्दृष्टि जीवको ही व्यवहारनयसे मोक्षमार्गी कहा जा सकता है किन्तु मिथ्यादृष्टि जोवको कदापि ( व्यवहारनयसे भी ) मोक्षमार्गी नहीं कहा जा सकता और यह सब श्रद्धापर ( भावपर ) निर्भर है, किया या आचरणपर निर्भर नहीं है किम्बहुना, इस तथ्यको निष्पक्ष होकर ठीक २ समझना चाहिये ||८||
1
नोट-दर्शन ज्ञान चारित्र ( धर्म ) तीनों निश्चय और व्यवहाररूप होते हैं अतएव तीनों में जो भूल या भ्रम है उसको निकालना चाहिए तभी आत्मकल्याण होगा, अन्यथा नहीं, यह ध्यान रहे इति ।