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पुरुषार्थसिधुपाय बदनामी भी होत जगत में कृष्णारष्टि उनपर रहती 1 नधि उनकी रहती है, नहीं दया क्षणभर रहती' ॥ ६५ ॥ पापबंध भी होत निरंतर दुखी सदा से रहते हैं।
पापवीज दुःखोंका जाने हिंसामे जो रमते है। अन्वय अर्थ---आचार्य कहते हैं कि [ यस्मात् प्रागविधाप्तात् विना मांसस्थ उत्पत्तिः न इष्यते ] जब कि विना जीवोंके मारे ( घाते ) मांसकी उत्पत्ति नहीं होती या हो सकता है ऐसा नियम है। [ सस्मात् मांसं भजत: हिंसा अनिषारिता प्रसरति ] तब मांसके खाने वालोंके हिसाका होना अनिवार्य है अर्थात् हिंसा अवश्य २ होती है ।। ६५ ।।
भावार्थ-हिंसापाप सब पापोंमें प्रधान या मूल है, उसीके सब भेद हैं यह पहिले काहा जा चुका है। परन्तु वह हिंसा दो तरह की होती है अर्थात् एक स्वाश्रित { आत्माके भावप्राणोंका
त हानस ) दुसरो पराश्रित अर्थात् अन्य जीवोंका घात होनेसे। ऐसी स्थिति में मांस सम्बन्धी हिंसा पराश्रित हिंसा समझना चाहिये क्योंकि मांसको उत्पत्ति, अन्य सजीवोंके मारनेसे (शिका. रसे होती है-उनका शरीरपिंड हो तो मांस कहलाता है अतएव जन्ब मांसभोजो जीव उसका सेवन करते हैं तब तदाश्रित असंख्याते जीवोंका घात ( हिंसा ) निरन्तर होता रहता है तथा सांस भोजी महान् करस्वभाव वाले निर्दयी तामस प्रकृतिके हा करते हैं उनके हृदय में दयाका संचार या दयाको भावना ( धारा) बिलकुल नहीं रहती इत्यादि फलस्वरूप उस हिसासे वे खोटा ( कुति आदि ) कर्मबंध करते हैं और उसके उदय आने पर वे महान् दुःख भोगते हैं और उस समय रागद्वेष या इष्ट अनिष्टरूप विकल्प या भाव होनेसे नवीन बंध होता है इस तरह दुःख और बंधको श्रृंखला अनन्त काल तक चालू रहती है इसलिये मांस आदिके सेवन करनेसे होने वाला पाप, बंधका मूल कारण सिद्ध होता है ऐसा समझकर विवेकी जोव उसका त्याग ही कर देते हैं।
विशेषार्थ---प्रकृति या नामकर्मकी रचनाके अनुसार प्रायः जीवोंको आकृति और खुराक भिन्न २ प्रकारको देखने में आती है। मनुष्यजातिकी आकृति स्वभावत: नरम व शान्त रहती है अतएव उसकी खुराक (आहार ) भी साधारण.....सादो ( अन्न खानेको ) होती है उनकी खुराक मांस नहीं है अन्न है। मांसका खामा दानवों का है, मानवोंका नहीं है। थलचर पशुओं ( गाय, भैंस आदि ) का आहार घास-पत्ता है । नखवाले पशुओं ( सिंहादि का आहार ऋरस्वभाव वाले होने से, मांस है। पक्षियों ( नभचरों) का आहार, फल पुष्पादि है । तब उक्त प्राकृतिक नियमको उल्लंघन कर मांस खाने वाला मनुष्य महान् अपराधी सिद्ध होता है और उसे परभव में या कभी २ इसो भयमें कठोर सजा मिलती है ।
___ मांस कितना अशुचि पदार्थ है, जिसके देखने मासे घृणा उत्पन्न होतो है, दुर्गन्धि आती है, मक्खियां भिनकती हैं, खानेवाले दुष्ट क्रूर परिणामी होते हैं। अतएव किसी भी अवस्थामें वह खाने योग्य बस्तु नहीं है, अस्तु । इसीका और खुलासा आगे प्रश्नोत्तरके रूपमें किया जाता है ।। ६५ ।। १. धारा नहीं चलती।