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पुरुषार्थ
तिक सम्बन्ध है तादात्म संबंध नहीं है ऐसा भेदविज्ञान यदि हो जाय तो वह सम्यक् श्रद्धानं व सम्यज्ञान कहलाया, उसमें विपरीत मान्यता न रहेंगी । सो ऐसा होना अनादिसे नहीं समझा है तभी जीव भूल कर मिथ्यानी मियादृष्टि हो गया है ।
नोट - इसके सिवाय, जो जीव शुभराग ( भक्ति स्तुति, दया, परोपकार दान पूजादि ) को मोक्षका कारण मानता है एवं पुष्पबंधको हितकारी मानता है, अर्थात् परसे आत्मकल्याणका होना मानता है वह भी feपरीत श्रद्धावाला मिष्या दृष्टि है, यतः पावके अनुसार अपने ही होता है पर
द्वारा नहीं, यह शाश्वतिक नियम हैं ऐसा दृढ़ श्रद्धान करना चाहिये |
९. निर्जराके विषय में अमनिवारण
शास्त्रीय भाषा में निर्जराके दो भेद कहे गये हैं ( १ ) औपक्रमिक या औद्योगिक ( २ ) अनोपक्रमिक या वैसिक अथवा सविपाक या अविपाक । किन्तु देशी भाषा में ( १ ) अकामनिर्जरा ( सकाम निर्जरा, ये नवे शब्द ( नाम मालूम पड़ते हैं और इनका अर्थ भी अस्पष्ट प्रतीत होता है इसलिये तरह २ का किया जाता है, इनकी संगति ऊपरके नामोंसे नहीं बैठती है ।
इस प्रसंग में हमारा विचार निम्न प्रकार है उस पर विचार करना चाहिये ठीक मालूम हो तो मानना भी चाहिये, इसमें पक्षपातका कोई काम नहीं है, तत्त्वनिर्णय में समदृष्टि होना चाहिये ।
[१] अकामका हिन्दी अर्थ, कामकी नहीं, अथवा व्यर्थ निष्प्रयोजन होता है, जिससे मनोरथ पूर्ण न हो, ऐसी निर्जरा (कमका अभाव ) कषायकी मन्दता होने पर होती है अर्थात् जब कभी पराधीनता । कैद मादि ) होनेके समय किसीको अपने ऐश आरामको या भोगोपभीगकी चौजोंकी इच्छा न हो एवं विकल्प न हो किन्तु शान्त चित रहे, तब उसकी मन्दकयायके फूलसे उसके कितने ही पापकर्म कमजोर जाते हैं और feate a नहीं होता ( यही निजराका रूप है ) तथा कितनेही पुण्यकर्मो ( भवनत्रिक देवोंकी आयु आदि ) का बंध होता है, यह विशेषता होती है, किन्तु मोक्षकी प्राप्ति ( साध्यकी सिद्धि ) नहीं होती । अतएव वह व्यर्थ एवं वह संवर पूर्वक नहीं होती, जिससे संसारकी संतति ( परंपरा ) बन्द हो । इम सब त्रुटियों के कारण
कामरूप या निरर्थक है, उसकी अकाम संज्ञा सार्थक सिद्ध होती है विचार किया जाय । ऐसी निर्णय मिथ्यादृष्टि व सम्यग्दृष्टि दोनोंके पराधीनतामें होना संभव है व हो सकती है, सिर्फ बंध में कुछ भेद रहेगा, यह कल्पनावासी देवायुका यंत्र करेगा अन्य देवायुका नहीं, कारण कि वह शुद्ध श्रद्धालु होता है और मिथ्यादृष्टि शुद्ध श्रद्धालु होता है ।
[२] सकाम निर्जरा, इसका अर्थ कामको या मतलवकी निर्जरा है अर्थात् प्रयोजन सहित है । सो ऐसी निर्जरा सम्यग्दृष्टिके ही हो सकती है, कारण कि उसके वह निर्जरा तपद्वारा अर्थात् इच्छाओंके न होने से वीतरागता द्वारा होती है ( रागादिकको मंदतासे नहीं उनके अभावसे होती है, अतएव वह संवर पूर्वक होने से संसारकी सन्ततिको मिटाती ( छेदती ) है, यह वास्तविक भेद है, उससे मोक्ष होता है ( साध्यकी सिद्धि होती हैं ? अतएव उसका सकाम नाम सार्थक सिद्ध होता है, यद्यपि कामका अर्थ इच्छा भी होता है किन्तु उससे मोश नहीं होता, उसके अभाव से मोक्ष होता है इस प्रकार संगति बैठती हैं । विचार किया जाय, तो इसमें कोई बाधा नहीं आती। वैसे तो बंधका कारण, चाहे कल्पवासी देव हों या भवनत्रिके देव हों