Book Title: Purusharthsiddhyupay
Author(s): Amrutchandracharya, Munnalal Randheliya Varni
Publisher: Swadhin Granthamala Sagar

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Page 473
________________ . MM2-24 ...... . ... ॥ . . ... ........ .. . . .......on l imited . . " FREESAREET AR ४६२ सुमन सिद्धार B पृष्ठ पंकि facणी में RERA अशुद्ध कुलिंगो। जोत्रो देखने से प्यारी हो ........ P शुब कुलिंगो जोवो। पेलने प्यारी बड़ा बराबर बनता है बड़ी .......... विशेष बनला " ....... . .. १७० '... १७३ १७४ १७५ संयोगो संयोगी टिप्पणी कृता व्यवहार ध्यनहर स्वभाषसे स्थभावसे अभिन्न छोड़ देना छोड़ देना) समझता समझना पिएस मिछये आत्मा का आत्मा की जीवों को जीवों को द्रव्यग दृश्यगत पराकर पर पा . एकता ता एकता या स्वरूप गिरीतता है ( स्वरूप विपरीतता है। রুণরা इतना निश्वयमावलंबी निश्चयावलंबी निश्चय व्यवहार निश्चय व्यवहार जहां जीव के वहां जीवके, पाई आती है। पाई जाती है यह धर्म है १५ साथ कारण भाववरित्र भावनारिष किसी जीवका किसी बड़े जीवका बिचित्रमा विधिवता प्राणाधात प्राणघात সাক্ষাদান प्राणघात मोट--इस पेज की टिप्पणी का सम्बन्ध ७८ पेज के उकच से है। १७७

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