Book Title: Purusharthsiddhyupay
Author(s): Amrutchandracharya, Munnalal Randheliya Varni
Publisher: Swadhin Granthamala Sagar

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Page 477
________________ ७६० पृष्ठ ३१० ३१७ ३२३ ३२७ ३२८ ३३४ ३३८ ३३९ ३४२ ३४३ ३५७ 20 ३६५ ३६८ ४ ३४५ २४ ६४९ ९ ३५३ २५ ३५४ ४ ३६९ NAWADA (MAHA PASHTRA) पंकि १८२ १७ ६ છુ २९ ४ २६ १६ २९ २६ ११ ११ १७ २४ ३६० २५ ५ * १६ * x x x x x २६ २४ ५ ३७३ २६ ३७८ ३८० ३८१ १४ २६ ३ २० १ अशुद्ध कर तब सामायिक व्रतीका उपवास उदरपूर्ति बनना मित नहीं कारण पुरुषार्थी परम दोनों पूर्ण सम स्वभाव पान समय रभना क्षति लगान लाते हैं विगड़ना मिल्य जरासि चरित्र पुरुषार्थ या लगने होने में प्रयोजना Team & Ca कर्य जिनको अतः मलकारण पुरुषार्थसिद्धप शुख करतब सामायिक में तोको [ उपवास उदरपूर्तिको बचना हो चिस महि कारण-प्रमाण पुरुषार्थी होकर पर दोनों ई पूर्णतः समभाव अपात्र सम रखना अतः लगान लाता है बिगाड़ना जिय जरसि चारित्र पुरुषार्थ या लगाने होलसे प्रयोजनवश कार्य उनको यतः मूलकारण

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