Book Title: Purusharthsiddhyupay
Author(s): Amrutchandracharya, Munnalal Randheliya Varni
Publisher: Swadhin Granthamala Sagar

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Page 471
________________ ANJALI ... ...... पुरूषार्थसिद्धपुपायं पृष्ठ पनि अशुद ४७ एलोकमें माव्यात्सा सर्वविक्तोत्तीर्ण सर्ववित्तीत्तीर्ण अनादि होने में n iu शुद्ध भव्यात्मा सर्वविवोत्तीर्ण सवितात्तीर्ण अन्त होनेसे सो किया भोका बही हो सकता है जिसको भोग्य का ज्ञान हो ॥ ६८ ॥ पंचास्तिकाय समाहित . मोह-अज्ञानभाव जो - ~ कहा अन्तमें टिप्पणी mo aramparmanaom.. : १.० १.१. Kru समवेत अज्ञानभाम करता है धरता है और रखना धरना है ओरके करना लगानं निकालकर ज्यादती व्यवहारी निकालकर अयवती व्यवहररी होता ।।।।।।....... .................... - Purwarem "NXE सम्यक और व्यवहारसम्यादर्शन अरोप अध्याय कारना वीतरागसे प्राप्त न होने नीचे ऊँच भुलाना हो सम्यक निकाल दो-दुवारा लिखा गया है। आरोप प्रथम अध्याय करना वीतरागतासे प्राप्त होने नीचे ऊँचे समय भुलाना चाहे १०२ २४ सर्वज्ञामषित बन आय सर्वजभाषित बन डाय यह

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