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पुरूषार्थसिद्धपुपायं
पृष्ठ
पनि
अशुद
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एलोकमें
माव्यात्सा सर्वविक्तोत्तीर्ण सर्ववित्तीत्तीर्ण अनादि होने में
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शुद्ध भव्यात्मा सर्वविवोत्तीर्ण सवितात्तीर्ण अन्त होनेसे सो किया भोका बही हो सकता है जिसको भोग्य का ज्ञान हो ॥ ६८ ॥ पंचास्तिकाय समाहित . मोह-अज्ञानभाव
जो
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कहा अन्तमें
टिप्पणी
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aramparmanaom.. : १.० १.१.
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समवेत अज्ञानभाम करता है धरता है और रखना
धरना है ओरके करना लगानं निकालकर ज्यादती व्यवहारी
निकालकर अयवती व्यवहररी
होता
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सम्यक और व्यवहारसम्यादर्शन अरोप अध्याय कारना वीतरागसे प्राप्त न होने नीचे ऊँच भुलाना हो
सम्यक निकाल दो-दुवारा लिखा गया है। आरोप प्रथम अध्याय करना वीतरागतासे प्राप्त होने नीचे ऊँचे समय भुलाना चाहे
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सर्वज्ञामषित बन आय
सर्वजभाषित बन डाय यह