Book Title: Purusharthsiddhyupay
Author(s): Amrutchandracharya, Munnalal Randheliya Varni
Publisher: Swadhin Granthamala Sagar

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Page 470
________________ शुद्धाशुद्धपत्र पंकि अशुन शुन जीयाद्रब्यका साधारण लक्षण है, सूच्यंगुलके ( जा बहुपरमाणुओंसे बनता है । जीवद्रव्यका असाधारण लक्षण २ है। धनांगुलके । ( जो बहुपरमाणुओंस बनता है ) सोतिज्ञ अज्ञातरूप ज्ञानरूप होगा मिश्या व्यवहारका मिथ्यात्त्व व्यवहारधर्मका मंत्रा मंत्री लंदानुकूल सत्यता परमान्दो और करहते हैं ( व्यवहार कार्यपर्याय में द्रव्यका आरोप है। ऋजुसुसून तदनुकूल मान्यता परमानन्दो क्योंकि कहते हैं (३) व्यवहार प्रब्यमें कार्यपर्यायका आरोप है। ऋजुसूत्र सद्भुत लगना है लगता है (२[ व्यवहारनय नामनिर्दश विशेषा और कि वह पिनसुखता पास्यव्यवहाररूप मानना व्यवहरनय नामनिर्देश विशेषता और मिजशुद्धता कास्मिध्यवहार मामता

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