Book Title: Purusharthsiddhyupay
Author(s): Amrutchandracharya, Munnalal Randheliya Varni
Publisher: Swadhin Granthamala Sagar

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Page 466
________________ परिशिष्ट राम या शुभराम ही है दूसरा कुछ नहीं। साथमें श्रद्धाम ( सम्यक् व मिध्या ) भी सहायक रहता है यह विल कुल खुलासा है। इस निर्णयकी पुष्टिमें पं० भूधरदासजीका निम्नलिखित पथ है--- पंचमहात्रत संचरण, समिति पंच परकार । ras च इन्द्रिय विजय, धार निर्जरा सार ||१०|| वारह भावना सम्बन्धी । सार, असार का अर्थ क्रमशः 'सकाम व अकाम है, यथा धार निर्जरा सार, सार-संवर पूर्वक जो ही है । वही निर्जरा सार कही अविपाक निर्जरा सो हूँ । उदय भये फल देय निर्जर, सो सविपाक कहाये । तासों जियका काज न सरि है, सो सब व्यर्थ हि जाये ||१०|| ४५५ नोट --- यहां पर भी काजका अर्थ काम मतलब - फलसहित है वनाम सकाम है तथा व्यर्थ का अर्थ are है या निष्फल है. सो हमारे अर्थकी पुष्टि बराबर होती है सन्देह नहीं करना चाहिये । सार असारके प्राचीन शब्दों में फेरफार करके सकाम अकाम शब्द नये बनाए गये हैं । उसीका अर्थसंदरपूर्वक निर्जरा सार ( सकाम ) है और बिना संवर हुए निर्जरा असार ( अकाम ) है यह खुलासा है। फलतः पुराने शब्द वर्ष 'अरि कर एक यो समझना चाहिये। संगति बिठालना जरूरी है। ( वृहज्जनवाणीसंग्रह देखी ) १०. आगमभाषा व अध्यात्मभाषाका खुलासा आगम और अध्यात्म ये दोनों आरमाके स्वभाव हैं अर्थात् दोनों प्रकारके भाव आत्मामें होते हैं । अतएव न भावों को कहनेवाले वन, बोली या भाषाका नाम ही आगम भाखा या अध्यात्म भाषा है, दूसरा कोई अर्थ नहीं है वस्तु । ( १ ) आगमस्वभावका अर्थ विकल्परूप स्वभाव है और २ ) अध्यात्मFarrant अर्थ, frfenल्पस्वभाव है। तदनुसार विकल्प या भेदोंकी बतानेवाली भाषा या बोली आगमभाषा कहलाती है । और निविकल्प या अभेद को बताने वाली बोली या भाषा, अध्यात्म भाषा कहलाती है, यह सारांश है | इसको सर्वत्र घटित कर लेना चाहिये । भेदरूप कथन करना आगमभाषा है, और अभेदरूप कथन करना अध्यात्मभाषा है। दोनोंका यह खुलासा है । विस्तार के साथ जहां पर कारणकार्यभाव, निमित उपादानता, निमित्तनैमित्तिकता आदि का कथन किया जाय, वह आगम भाषा है । सूत्ररूप विना भेंद के कथन करना अध्यात्मभाषा है । ११. द्रव्यदृष्टिसे जीवका शुद्ध-अशुद्ध स्वभाव १-- एक अखंड ज्ञायकाकार ( भेद रहित ) जोनका शुद्ध स्वभाव है, यह निश्चयका कथन है । उसी का नाम अध्यात्मभाषा है । तथा २ – उक्त अखंड में ही दर्शन- ज्ञान चारित्रका भेद ( खंड) करना जीवका अशुद्ध स्वभाव है, उसका कथन करना आगमभाषा है। इसी तरह पर्यायकी अपेक्षासे भेद करके कथन करना, निमित्तकी अपेक्षा भेद करके कथन करना, सब आगमभाषा है ।

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