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আমি নিল में लीन रहता है, रमण करता है। इसीलिए मुमुक्षु उसके लिए उत्सुक व लालायित रहते हैं, ऐसा समझना चाहिये, यह सर्वोत्कृष्ट पदार्थ है और प्राप्तव्य है, उपादेय है।
सारांश-परसंबोगसे छूट जाना अर्थात् निष्परिग्रह हो जाना हो मोक्ष है, जबतक थोड़ा भी परका संयोग रहेगा तबतक मोक्ष नहीं होगा, परिग्रही मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकते यह पक्का है । परिग्रह अन्तरंग व बहिरंग दो तरहका होता है। जब वह छूटता है सभी मोक्ष होता है। छूटनेका नाम ही मोक्ष है, धातुका यही अर्थ है ।।२२३।। आचार्य-मुक्तात्मा स्वरूपको और भी खुलासा बताते हैं ।
अन्यमतका खंडन करते हैं कृतकृत्यः परमपदे परमात्मा सकलविषयविषयात्मा । परमानन्दनिमग्नो ज्ञानमयो नन्दति सदैव ।।२२४॥
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जहां नहीं कुछ बाकी रहता, करमेको परमात्माके । सकल पदारथ जाने जाते, एककाल उस झाभीके ।। परम अतीनियसुख मिलता है कभी न अन्त होत जिसका।
ज्ञानानन्द स्वाद लेसा है, काल अनन्स मोक्षपदका २२४ ।। अन्वय अर्थ-आचार्य कहते हैं कि परमात्मा परमपदे कृतकृत्यः ] मुक्तात्मा मोक्षमें कृतकृत्य होजाता है अर्थात् निर्विकल्प मिन्द होजाता है, उसे कुछ करनेको शेष नहीं रहता तथा [ सकलविषयविषयारमा ] त्रिलोकवर्ती सम्पूर्ण पदार्थोंको युगवत् ( एक ही समयमें ) सर्वथा जान लेता है ( सर्वज्ञ होनेसे ) और [ परमानंदनिमग्नः ] सर्वोत्कृष्ट ( निराकुल ) अनंत सुखको भोगता है तथा [ ज्ञानमयः ] सर्वोत्कृष्ट ज्ञानगुण सम्पन्न होता है अर्थात् केवलज्ञानी रहता है और ऐसा होकर ! सदैव नंदति ] हमेशा अनन्तकालतक परिपूर्ण रहता है ( ज्योंका त्यों बना। रहता है ॥ २२४ ॥
__ भावार्थ-मोक्ष अवस्था आत्माको सर्वोत्कृष्ट उच्च व अन्तिम अवस्था है याने अनुपम व अद्वितीय पद है। जहांपर अनंतकालतक कोई परिवर्तन नहीं होता अर्थात् अनंतदर्शन, अनंतज्ञान, अनंतसुख, अनंतबल रहता है। नैयायिकों आदिकी तरह आत्माके विशेष नौगुणोंका (ज्ञान
१. परिपूर्ण जो सबकर चुका हो ।
सर्वज्ञ, सबपक्षार्थीका ज्ञाता। ३. उत्कृष्ट सुख । ४. केवलज्ञानगुण सहित । ५. बुद्धयादिविशेहगुपयोच्छेदः मोक्ष इति नैयायिकः ।