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भास्मनिवेदन 'श्रावकका नित कर्तव्य' लिखकर सजग कीना गृहोको । अब लक्ष्य उनका प्रकट करने इस अनूपम कृतिको ।।१३१६ 'पुरुद्धिमानी गोका गु भारप्रकाशनी।। कह देंगे प्रायः श्रेष्ठजन, यह अन्धकारबिनाशनी ॥१४॥
दोहा तत्व जो इसमें भरा है, ग्रन्थ अनेक समाहि। भविजन बुधजन पाठकर भवसागर तर जाहिं ।। अल्पज्ञानके हेतुसे भुल भई जो होय । वृद्ध जान करियो क्षमा स्वारथ नाहिं जु कोय 14 गुरु गणेशके निकटमें विद्या पढ़ी अनेक । पूर्ण मनोरथ नहिं हुआ शल्प एक पर एक ।। चौदश भादों मासको शुक्ला सोम सुजान । उन्निस सौ श्रेसठ जहाँ सन् विष्टाब्द प्रभान ।। सम्वत् सहस दो बोरा है, सागर नगर महान् । अल्पबुद्धिः 'मुन्ना' रची, टीका सुखकी खाम ।
टीकाकाल विक्रम सम्बत् उन्निस सौ, अरु पचासको साल ! अगहनकारी द्वादशी, उपजो भारत लाल ।।
जन्मकाल मेमि कमल कुमार दोई हैं, मेरे बच्चे। इन्द्रानीके उदर-खसे, प्रकटित अच्छे ।। धनजनसे परिपूर्ण, वातके हैं वे सच्चे । व्यसन आदिसे दूर, झगड़के हैं वे कच्चे ।।
वर्तमानकाल
१. ईस्वी सन्।