________________
HTRImusiimimar
w adidakuulokhara
যমিছু
१. निश्चय और व्यवहारका खुलासा
( स्वरूप व संधि व सम्बन्ध ) (१) निश्चय कर) यहा योगों का दावा है, ए मामभेद तो है ही। इसी तरह लक्षणभेद भी बताया आता है, उसको ध्यान देकर समझना चाहिये और परस्पर दोनोंकी संगति भी बैठालना चाहिये सभी बुद्धिमानी है । देखिये लक्षण भेद...
(१) 'स्वाश्रितो निश्चयः' एवं 'पराश्रितो' व्यवहारः' ऐसा कहा है अथवा (२) 'भूतार्थो निश्चयः' एवं 'अभूतार्थो व्यबहार:'
अथवा (३) 'शुखरूपः निश्चयः' एवं 'अशुद्धरूपः व्यवहारः'
अथवा (४) 'अभेदरूपः मिश्चयः' एवं 'भेदरूपः व्यवहारः'
अथवा (५) 'अखंडरूपः निश्चयः' एवं 'खंडरूम, ब्यबहारः
अथवा (६) 'एकत्वरूपः निश्चयः' एवं 'अनेकत्वरूपः व्यवहारः'
अथवा (७) 'विभकरूपः निश्चयः' एवं "अविभक्तरूपः व्यवहारः'
अथवा (८) 'स्वसंवेदनरूप: निश्चयः' एवं परसंवेदनरूपः व्यवहारः'
अथवा (९) 'अनेकात्मको निश्चयः' एवं एकान्तात्मको व्यवहार
अथवा (१०) 'साध्यरूपो लिश्चयः'
'साधनरूपो व्यवहारः (११) 'उपयरूपो निश्चयः' एवं 'उपायरूपो व्यवहारः' (१२) 'ज्ञानरूपो निश्चयः 'वचनरूपो व्यवहारः'
अथवा {१३) 'सामान्यरूपो निश्चयः' एवं 'विशेषरूपो व्यवहार (१४) निविकारो निश्चयः' एवं 'सविकारो व्यवहारः'
अथवा (१५) 'निरूवाधिको निश्चयः' एवं 'सोपाधिको व्यवहार:'।
इत्यादि अनेक प्रकारके लक्षण ( निश्चय-व्यवहारके ) आचाोंने बताए है। जो कथन करने या समझानेको शैली है। परन्तु लक्ष्यों कोई भेद या फरक मा विरोध नहीं होता, यह जैनन्याय (स्याद्राद)को सास विशेषता है। स्याद्वादका विषय सर्वधा अनेकान्तरूप पदार्थ ( वस्तु ) है, एकान्तरूप वस्तु नहीं है, जिससे विरोध उपस्थित हो। अतएव विरोधको मिटाना स्थावादका प्रयोजन है और मिश्रा या संधिको स्थापित करना या आह्वान करना उसका लक्ष्य है। बड़े-बड़े अनादिकालके विरोध उससे क्षणभरमें दूर हो जाते है। इसीसे निश्चय और व्यवहारका विरोध भी मिटाया गया है, । नोट-यहाँ लक्ष्य और लाणका कथन जुदा-जुदा होनेसे ब्यबहार समझना चाहिये, निश्चय नहीं ।
अथवा
अथवा
maiIAS
mewwww...mmm.ma...........
१. पर्यायाश्रितो व्यवहारः, पराश्रितो व्यवहारः, मेदानता व्यवहार: ऐसे मुख्य ३ मेद व्यवहार के हैं ।
niyan
Jl. Kishanila Rolmam