Book Title: Purusharthsiddhyupay
Author(s): Amrutchandracharya, Munnalal Randheliya Varni
Publisher: Swadhin Granthamala Sagar

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Page 449
________________ RAMIme आत्म-निवेदन, अपना परिचय ( प्रशस्ति ) भाषाकारका वक्तव्य सागर जिलाकी गोद में, इक ग्राम पाटन' नाम है। तहसील बंडा क्षेत्र, पश्चिम दिशामें धाम है।।१।। उस ग्रामक प्रख्यात मुखिया, सिंघई नन्हें लाल थे। उनके....बंशीधर पुत्रसे, जन्मे जु 'मुन्नालाल' थे ।। २।। माता उन्हीं की राधिका' जस नाम तम गुणवती थी। उनके गरभसे जन्म लोना, जो गृहो में श्रेष्ठ थीं ॥ ३॥ वे पुण्यशाली जीव थे, जिनने चलाया 'रथ' वहाँ । जिनमन्द्र बृहत बनायके-प्रतिष्ठा कराई थी महाँ ॥४॥ अरु जाति उनको 'गोलापूरब' गोव घिलीय था। उसमें जु जन्मा कथानायक, भाई मझला नाम था ।।५।। थे तीन भाई सहोदर, अरु बड़े 'राजाराम' थे। मझले जु मुन्नालाल हैं, संजले जु'तुलसीराम' थे ।।६।। शिक्षा हुई देहातमें, जैह चार कक्षाएं रहीं। फिर जिला में आकर उन्होंने संस्कृत शिक्षा गही॥७॥ व्याकरण अरु कोश काव्य, सुधर्म त्याथ पढ़ा बहुत । सिद्धान्तका अभ्यास करने मुरेना पहुंचे तुरत ।। ८ ।। इस भावि शिक्षा प्राप्तकर कुछ वर्ष अध्यापन किया। फिर स्वयं ही वह छोड़कर व्यापारको अपना लिया ।।९।। नितकर्म पूजा पाठ अरु स्वाध्याय करना मुख्य था। धार्मिक समाजिक कार्यमें भी भाग लेना ध्येय था !॥१०॥ लेखन कलामें रुचि थी तब प्रथम रचना की स्वतः । 'भाषा स्वयंभू' स्तोत्रकी जो विद्यमान इतः ततः ॥११॥ 'मनमोहनीटोका' सुखद छहढालको कीनी बृहत् । बह भी प्रकाशित हो चुको, अब मांग है उसकी बहत ॥१२॥ १. अन्तर्गत। २, गारज, हाथियों के द्वारा चलनेवाला- पंचकल्याणक प्रतिष्ठा कराई थी सम्बत् १९४६ में नवीन मन्दिर बनवाकर जो अभी भी सुरक्षित है।

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