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पुरुषार्थसिद्धधुपाथ असत्य अनेक प्रकारके होते हैं ? इसका उत्तर संक्षेपमें यह है कि उसको महा या बड़ा ( स्थूल ) असत्य खासकर त्यागना चाहिये । उसका नाम 'असत्य-असत्य' है अथवा आजकलके शब्दों में सफेद . झठ' कहते हैं। जिसमें सत्यका अंश भी न हो सर्वथा असत्य हो व दंड मिलने के योग्य हो, धोखा देना मात्र हो । उसका दृष्टान्त व स्वरूप आगे ३ या ४ भेद श्लोक नं. ९२.२३,९४ आदिमें बताया जायगा उस महाअसत्यके असल में ३ भेद हैं (१। हैको नहीं कहने रूप ( सत्का अपलाप करना ) (२) नहींको है कहने रूप { असत प्रलापका का दुछ कहने रूप ( अन्यथा प्रलापरूप) तीनों असत्य लोको निन्दनीय, दंडनीय, त्यजनीय है, अतएव व्रतो उनका उपयोग करना बन्द कर देते हैं। वही एकदेश त्याग है अर्थात बड़ेका त्याग कर देना है तथा एकदेशका उपयोग करना है अर्थात् छोटे या प्रयोजनभूत असत्यका रहने देना है । अणुव्रती छोटा असत्य बोल सकता है, उसकी उसे छूट है, जो आगे बताया जायमा । साधारणरूपसे सत्याणुव्रती तीन तरहका सत्य बोलता है (१) सत्य सत्य अर्थात् जो बस्तु जिस देशको हो, जिस काल को हो, जिस संख्या की हो; जिस .. आकारकी हो, उसको उसी तरह ( ज्योंको त्यो कहना, प्रथम या पहिला भेद, सत्य सत्य है। (२) दूसरा भेद-असत्य सत्य है, जिसमें कुछ असत्य है व कुछ सच है जैसे चावल मिलनेपर भात... बनाते हैं, यह कहा जाय । यहाँपर वर्तमान में चावलका होता सत्य है परन्तु भातका होना असत्य है। इसीतरह तीसरा भेद 'सत्य असत्य है । वह ऐसा कि अभी या शामको रुपया देवेंगे, ऐसा वायदा करके पशामको रुपया न भेजकर दूसरे दिन सुबह ( प्रातःकाल ) रुपया भेजना कालातिकम क्ष्य अमत्य क रुपया भेजना रूप सत्य दोनों मिलाकर 'सत्या-सत्य' भेद जानना । इमों प्रकार द्रव्य असत्य, क्षेत्र असत्य, काल असत्य, भाव असत्य ऐसे भी भेद समझना चाहिये। । सागारधर्मामूत अध्याय ४ श्लोक ४१ । ४२ देखो ) परन्तु असत्य-असत्य कभी नहीं बोले इत्यादि ।। ११ ।। व्यवहारको अपेक्षा असत्यका पहिला भेद बताया जाता है ।
नास्तिरूप असत्य असत्य (महा असत्य) कथन स्वक्षेत्रकालभावैः सदपि हि यस्मिनिषिध्यत्ते वस्तु । तत्प्रथममसत्यं स्यानास्ति. यथा देवदत्तोऽत्र ॥९२॥
पद्य
सस्को असद बताना यह तो प्रथम 'असत्य' कहाता है। देवदासके होने पर मी 'नहीं' यहाँ यससाता है। वर्तमानमें उसी क्षेत्रमें, मनुपर्याय सहित वह है। तो भी कहना यहाँ महीं है-महा असत्य बहाता है ॥१२॥
१. स्वचतुष्टय या ज्ञानगोचर। २. परचतुष्टय या वचनगोचर।