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अह्मचर्याणवते
२६५ रहती हैं और उनका स्थायित्व नहीं हैं...सिर्फ वर्तमान जीवनलक ही वे रहती हैं। जैसे कि ( १ ) जो पठन पाठन ब संध्यावन्दन पूजा आदि कार्य करता है, वह ब्राह्मण कहलाता है। ( शोलसंतोषो । (२) जो हथयार आदि चलाता है देशको रक्षा व शासन करता है वह क्षत्रिय कहलाता है । ( उग्रस्वभावी तेज ) (३) जो चीजोंका क्रय विक्रय या संचय करता है वह वैश्य कहलाता है । ( सहनशील ] (४) जो सबकी सेवावृत्ति करता है वह शूद्र कहलाता है इत्यादि ( दीनवृत्ति) । परन्तु ये सब खानदानी या कुलपरम्पराकी चीजें नहीं है। जीवन में हर कोई कैसे कर्म ( व्यापार ) कर सकता है व करते हैं तब स्थायित्व ( नित्यत्व ) कहाँ रहता है। ऐसी स्थिति में जाति आदि अनित्य चीजों का अहंकार क्यों करना ? नहीं करना चाहिये। फिर भी ब्राह्मण मूलमें चार तरह के होते हैं--( १ ) कुलकृत ब्राह्मण कुलमें उत्पन्न हुए । ( २ ) शानकृत-विशेषशानी-पठनपाठन करनेवाले श्रोत्रिय वेदपाठी। (३ ) क्रियाकृत कर्मकाण्डो ( याज्ञिक ) ( ४ ) सपकृत-तपस्या करनेवाले। मत्स्यपुराणमें १० भेद माने गये हैं, उनमें नीचकर्मी भो बतलाए हैं । अतएव ये जाति कृत भेद थोथे हैं अमान्य हैं। कम से हर एक जैसा चाहे बन सकता है। गुणकृत्त भेद जो कपर बसलाये हैं सम्यग्दृष्टि आदि वे सब समुचित व मान्य हैं व हो सकते हैं । भरतमहाराजने गुणकृत ब्राह्मणोंकी ही स्थापना की थी ऐसा समझना, किम्बहुना । लोकाचार रूविरूप होता है वह मिथ्या है अस्तु । तर्क और उसका खण्डन या युक्तिपूर्वक समाधान किया जाता है ।
अनंगकोडाके विषय में यदपि क्रियते किंचिन्मदनोद्रेकोदनगरमणादि । तत्रापि भवति हिंसा रागाश्रुत्पत्तितंत्रत्वात् ॥१०९॥
पञ्च
बेद उदयकी उत्कटताले जो अनंगमें रमसा है। उससे भी हिंसा होती है झामादिक गुण मशाता है ।। इससे उसका भी क्षय करना मैथुनका है वह संगी।
कारण राग एक है उसका अत: न करो उसे अंगी ।।१०९३ १. जन्मसे जाति माननेपर लोग अहंकारी बन जाते हैं, पुजापा कराते हैं तथा आलसी प्रमादी बन जाते
है । खानदानी । जन्मजात ) बमकर अत्याचार अन्याय करते हैं, गुणों व कमो ( आवरणों को नहीं बढ़ाई । मूर्ख कदाचारी होनेपर भी परमात्माका अंश मानते हैं, अत: जन्मसे जाति नहीं मानी जाती;
गुणकर्मसे मानना चाहिये। २. उद्रेक - तीब्रोदय वेदका वेग । ३. कामसेवनके अंगों ( योनि से भिन्न अंगों या स्थानोंको अनंग कहते हैं। ४, अधीन या आश्रय । ५. साथी। ६. स्वीकार।