Book Title: Purusharthsiddhyupay
Author(s): Amrutchandracharya, Munnalal Randheliya Varni
Publisher: Swadhin Granthamala Sagar

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Page 396
________________ মিস भावार्थ- भोमोपभोग ( खानापीना आदि ) का परिमाण (सीमा) करना शीलवतीका कर्तव्य है, वह स्वेचछाचारी नहीं रह सकता, उसके प्रायः सभी कार्य मर्यादित हो जाते हैं। तब वह अपना भोजन पान भी यदाता नहीं करता। सबसे पहिले वह सचिसका और उसमें भी एकेन्द्रिय जीवोंकी हिंसाका त्यागी होता है। यों तो अप्रयोजनभूत त्रसहिसाका त्याग उसके पहिलं ही हो जाता है, परन्तु अप्रयोजनमत स्थावर हिंसाका भो त्याग बह करने लगता है यह विशेषता हो जाती है फिर भी मुख्यतया बह पेश्तर अपने खानेपीनेकी चीजोंसे एवं स्वयं न खानेसे परहेज रखता है किन्तु अधिक क्षेत्र नहीं बढ़ाता अर्थात् दूसरोंको न खिलानेका उसके नियम नहीं रहता । वह स्वयंका अर्थात् कृतका त्यागी होता है। वह अभी सचित्तत्याग प्रतिमा ( पांचवी) काधारी नहीं है, अतएव उसको सचित्त सम्बन्ध आदि होनेपर अतिचार ही लगता है. अनाचार नहीं होता। ऐसी स्थिति में यदि सचित्त त्यागी पाँचची प्रातिमाधारी पूर्वोक्त कार्य करे तो वह अनाचारी समझा जायगा, अतिचारी नहीं कहलायगा ऐसा समझना चाहिये यह सारांश है अस्तु । यहाँ प्रश्न 'सचित्ताहार'को अतिचारमें शामिल क्यों किया, वह तो अनाचार है, कारण कि उसमें जीवोंका साक्षात् विधात ( हिंसा ) होता है ? इसका समाधान इस प्रकार है कि वह एकदेश अहिंसक है सबंदेश अहिंसक नहीं है अतएव एकदेश भंग होना अतिचार कहलाता है यह लक्षण घटित होता है। अर्थात जिन चीजोंका त्याग नहीं करता, उनको ही सचित्तरूपमें वह स्तेमाल करता है मगल एतेश अलि र नागौर जिनका त्याग कर देता है, उनको ग्रहण नहीं करता अतएव एकदेश अहिंसावत पलता है इत्यादि सचित्ताहारको अतिचारमें शामिल किया गया है । यहाँपर अधिक विस्तार नहीं करना चाहिये अन्यथा निर्वाह होना कठिन व असाध्य हो जायगा इत्यादि । विचार किया जाय । सचित्तत्याग प्रतिमाघारी, सम्पूर्ण सचित्तका त्यागी होसा है, परिमाण ( सीमा ) नहीं करता, अतएव सचित्त चीज एक भी नहीं खाता पीता, हाँ अचित्त कर ग्रहण कर सकता है इति । नोद-भोगोपभोगका परिमाण या त्याग करनेवाले जीव यह हमेशा ख्याल रखते हैं कि जिनमें हिंसा अधिक हो व लाभ कम हो-जैसे हरी । गीली ) शाक वगैरह { फूलवाली शाक गढन्त बीजवाली शाक इत्यादि ) नहीं खाते परन्तु जिनका त्याग न किया हो, उनका स्तमाल वे बराबर करते हैं अस्तु । वैसे तो बत, द्रव्य और भाव दो सापेक्ष होला है अर्थात् वही पूर्णश्वत कहलाता है जिसमें द्रव्य त्याग व भावत्याग दोनों हों, परन्तु उसके अभाव में द्रव्य या भाव कोई एक खंडित हो तो वह अतिचार सहित बस कहलाता है यह तात्पर्य है ॥१९शा ___ आगे अतिथिसंविभाग या वैयावृत्त्य नामक चौथे शिक्षाव्रतके पाँच अतिचार बताते हैं । परदातव्यपदेशः सचित्तनिक्षेपतत्पिधाने च। कालस्यातिक्रमणं मात्सर्य चेत्यतिथिदाने ॥१९४॥ १. उक्तं च सचित्तनिक्षेपापियानपरव्यपदेशमात्सर्यकालातिकमाः ।। ३६ ॥ तक भू० भ०७ 1 ४९

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