Book Title: Purusharthsiddhyupay
Author(s): Amrutchandracharya, Munnalal Randheliya Varni
Publisher: Swadhin Granthamala Sagar

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Page 372
________________ सहलेखनाप्रकरण पद्म जय का यह निश्चय होवे, मरना अब तो निश्चित है । उसी समय रागादि छोड़कर वो सल्लेखन करता है || कायकषाय त्यागने से नहि, आत्मघात कहलाता है । करनेवाले तवकषायज होता है ।। १७७ ॥ आत्मघात ३१५ अन्वय अर्थ --- आचार्य कहते हैं कि मरणेऽवश्यंभाविनि ] जब व्रती सल्लेखनाधारीको यह निश्चय हो जाय कि हमारा अब मरना निश्चित है अर्थात् लक्षणों आदिसे मालूम पड़ता है कि अब हम जोवित नहीं रह सकते अन्तिम समय है तब [ रागादिमन्तरेण कषायसदकेखनानुकरणमाथे व्याप्रियमाणस्य ] रागद्वेषके बिना अर्थात् भविष्य में किसीकी आकांक्षा आदि न करके ( बिना चाह ? जो कषायों को छोड़नेका प्रयत्न करता है और निकट एवं अनादिके साथी शरीरसे भी राग ( कषाय ) छोड़ता है उसके | आत्मातो नास्ति ] 'आत्मघात' नामक पाप ( दोष ) नहीं लगता अर्थात् वह 'आत्मघाती महापापी' नहीं बनता यह भाव है ॥ १७७॥ भावार्थ - आत्मघात ( कषायपूर्वक यत्न करके भरना) वही करता है जो तोव्रकाय हो अर्थात् असह्य कोन हो या ख्यातिलाभ पूजाकी उत्कट अभिलाषा हो या कोई साधना करना हो या पायपुति करना हो, तभी वह अपने प्राणप्रिय जीवनको भी व्यर्थ हो खो देता है । इस प्रकार मरण करनेवालेको निःसन्देह आत्मघात या इच्छामरणका दोष लगता है और फलस्वरूप उसको दुर्गति होती है । परन्तु जो इसके विपरीत मरण करता है अर्थात् जीवनका असाध्य अन्तिम समय समझकर धर्मलाभ करनेके लिये अथवा जानेवाली परचीज में व्यर्थ ही राग ( कषाय ) को छोड़ने के लिये अन्न, जल, औषधादि सब छोड़कर निर्मोह ( वीतराग ) होता है तथा सिर्फ आत्मध्यानमें चित्त या उपयोगको लगाता है, स्वर्गादि या नामवरीको इच्छा नहीं रखता वह आत्मघाती कदापि नहीं हो सकता, क्योंकि उसका मरण निःस्वार्थं होता है, किसीके दवाउरे आदिमें आकर वह वैसा नहीं करता यह तात्पर्य है । इस प्रकार सल्लेखना जीवनको शुद्ध करनेका एक अपूर्व उपाय है ( कषायकी मन्दता या अभावका करना है ), किन्तु जीवनको अशुद्ध करनेका उपाय ( तीव्रकषाय करनारूप ) नहीं है । रागादिharrisो छोड़ना जीवका कर्तव्य है क्योंकि वे जीवका स्वभाव नहीं हैं-विभाव या विकार हैं जो कि संयोगी पर्याय में ऊपर-ऊपर होते उनके साथ तादात्म्यसंबंध ( एकत्व ) नहीं होता किम्बहुना आत्मघात होनेके भयसे उसको नहीं छोड़ना चाहिये, किन्तु निर्भय होकर सल्लेखना अवश्य करना चाहिये यह उपदेश है अस्तु । १. आत्मघात अपराध । ४६ जिस प्रकार कोई चतुर व्यापारी दुकान में आग लग जाने के समय अघोर न होकर दुकानको बुझाने या बचानेका प्रयत्न करता है किन्तु जब दुकान बचतो नहीं दोखतो तब अपने हुंडो,

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