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पुरुषासिधुपाम इसका उचित समाधान आचार्य करते हैं । एवं न विशेषः स्यात् उन्दररिपुहरिणशावकादीनाम् । नैवं, भवति विशेषस्तेषां मूविशेषेण ॥१२०।।
पद्य
परिप्रहमें भी भेद होता है, नहीं एकसा होता है। तीन मन्द इत्यादिक बहुविध, फल वैसा ही लगता है ।। इसीलिये बिस्की अरु बच्चा हिरणों के परिणामों में ।
तीधमन्दता देखी जाती-उनके स्वाश्वपदार्थों में ॥१२०॥ अन्वय अर्थ--आचार्य कहते हैं कि मूर्छा ( रागादि )को परिग्रह मारनेपर भी [ एवं उन्दररिपुहरिणशावकादीनां विशेषः नस्यात् 1 यदि बिल्ली और हरिणके बच्चेके परिग्रहमें कोई भेद ( अन्तर ) न रहेगा-एकमा माना जायमा ऐसा वादीका तर्क ठीक नहीं है। आगे उसोका खंडन करते हैं । नैवं, तेषां मूस्छविको विषः भवकिलादीका हातक सही है, क्योंकि बिल्ली और हरिणके बच्चेकी मूर्छा ( परिग्रह में बड़ा अन्तर ( भेद ) पाया जाता है और प्रत्यक्ष देखने में भी वैसा आता है कि एकसी मूर्छा नहीं होती। जिसका खुलासा भावार्ध में आगेके श्लोकमें बताया जाता है ।।१२०।।
भावार्थ-मुच्र्छा, तोव, तीब्रतर, तीव्रतम और मन्द, मन्दत्तर, मन्दतम आदि अनेक प्रकारको होती है अतएव परिग्रह भी अनेक प्रकारका समझना चाहिये । देखो बिल्लोके अत्यन्त तोब मूर्छा होती है, तभी वह मारखानेपर भी अपना शिकार ( चूहा या दूध आदि )को नहीं छोड़ती और हरिणका बच्चा जरा भी आहट आनेपर अपना खाध ( घास वगैरह ) और स्थान छोड़कर भाग जाता । है अतः उसके मन्दमूर्छा है । इति । इसोका स्पष्टीकरण (परिग्रहमें भेद ) आगे आचार्य स्वयं कर रहे हैं । अस्तु ॥१२०॥ आचार्य आगे परिग्रहृमें होनाधिकता बसलाते हैं ।
हरितणांकूरचारिणि मन्दा मृगशावके भवति मूनँ । उन्दरनिकरोन्माथिनि मार्जारे सैव जायते तीवा ।।१२१॥
पद्य हरितधासके खानेवाले भूगर्भ मूछा कम होती। चूह समूह मिटानेवाली बिल्ली का बहु धरती ॥ अत: उसासे हिंसा होती, कमबढ़ भेद रूप जामी । परिमाइमूल दुःखका कालाय, स्पाया अहिंसा पहिचानी ।। १२३॥