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शिक्षावतप्रकरण
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क्षीणकर बैगम्यक संस्कार डालता है एवं क्रमशः शुद्धोपयोगको प्राप्तकर मोक्ष व उत्तम सुखको प्राप्त करता है। लेकिन बीच में कर्मधाराके सबबसे अचिपूर्वक बाह्य व्रत संयमरूप निमित्तोंको भी मिलाता है और स्वभावतः ( विना यत्नके ) कभी वीतरागताको प्राप्त करता है अस्तु । निमित्तों को निमित समझते हुए सुनको होन दशामें कथंचित् उपादेय समझना चाहिये किम्बहुना । सम्यग्दर्श नादि गुण आत्माके यत्नसाध्य । नैमित्तिक ) नहीं हैं ऐसा निश्चयसे समझना चाहिये, क्योंकि देसा मानने से वस्तुको स्वतंत्रता नष्ट होती है जो वस्तुका स्वभाव है इत्यादि दोष आता है।
सारांश-व्यवहारमयसे प्रोयधव्रताको भोगापभोमके बाह्यसाधन इन्द्रियोंको व अन्तरंग साधन कषायोंको या इन्द्रियोंवेः पियोंकोचक नियममा नाहिये तभो इन्द्रियसंयम व प्राणि संयम पल सकता है। फलस्वरूप गुति व समितियों का भी वह सभ्यासरूपसे पालन करे जिससे आगे विशेष लाभ होगा अस्तु । यह व्यवहारमयसे आचार्य महाराजका उपदेश है ।।१५८-१५२।। आगे आचार्य उपसंहाररूप कथन करते हैं, जिसमें निश्चय और व्यवहारका खुलासा है----
इत्थमशेषितहिंसः प्रयाति स महाबतित्यमुपचारात् ! उदयति चरित्रमोहे लभते न तु संयमस्थानम् ॥१६॥
पद्य
पूर्वविधिले जिस श्रावकने हिंसाको त्यागा है मिस । व्यवहरनयसे उसे कहा है महानप्तीके सदश मिस ॥ निश्चयनग्रसे महायती साहि, जबतक प्रत्याख्यान कषाय।
सकलावती नहिं हो सकता है देशयता अणुमतको पाय अन्वय अर्थ.... प्राचार्य कहते हैं कि इत्यमशेषितहिंस.स] पूर्वोक्त विधिसे जिसने अणुव्रत पालते हुए भी प्रोषधोपवासके समय पूर्ण हिंसाका त्याग किया है वह [ उपचाशत् महानतिनं भयाति] उपचारसे अति व्यवहारनबसे महानतीपनेको प्राप्त करता है-अर्थात् निश्चयनयसे वह महायसी नहीं हो सकता, कारण कि [ चरित्रमोह उदयति तु संगमस्थानं न लभते ] चारित्रमोहनीके भेद प्रत्याख्यानावरण कषाय के उदय रहते हुए कोई जीव संयमस्थानको अर्थात् सकलवतको ( मुनि
१. सकलवतयारी--- गुणस्थानवर्ती मुनिपदको प्राप्त नहीं कर सकता, जहाँ प्रत्याख्यानावरणकषायका
अभाव होता है या उदय नहीं है। उनले च-दसमिनिकापायाणां दखाण तहिंदियाण पंचतु।
धारणपालणणिग्गहचागजमो संघमो भणियो ।।४६५॥ मो० जी० अर्थ-श्रत धारण करना, समितियोंको पालना, कषायोंका निग्रह करना, अनर्थदण्डोंका त्याग करना,
इन्द्रियोंको वश में करना ( विजय पाना ) संया कहलाता है जो छठवें गणस्थानमें ही हो सकता है, पात्र मुणस्थानमें नहीं हो सकता।