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शिक्षासप्रकरण
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२... स्वामि कार्तिकेय
१---देशाधकाशिक २अनर्थदंडत्यागवत २...सामायिक ३.--भोगोपभोगपरिमाणवत ३.-प्रोषधोपवास
४.--अतिथिसंविभाग+ ३...उमास्वामि महाराज २-दिग्द्रत
.....भोगीपभोग एरिमाण २--देशवत
२-प्रोषधोपवास ३.अनर्थदंडत्यागवत ३-- अतिथि संविभाग
४-सामायिक ४-अमृतचन्द्राचार्य
१-दिम्बत
१.-..-सामायिक २- देशवत
२-प्रोषधोपवास ३-अनर्थदंडत्यागवत ३...-भोगोपभोगरिमाण
४-वैय्यावृत्य+ ) नोट-श्रीसमन्तभद्राचार्य । स्थविर ) और स्वामिकातिकेयका मत प्रायः एकसा है सिर्फ शिक्षा में
में वापिकार्तिकेय अतिथिसंविभाग नाम लिखते हैं जिसका अर्थ वैधावृत्य ही होता है नाम भेद है। 'गुणव्रत में कोई भेद नहीं है दोनों आचार्य एक-सा ही मानते हैं । गुणवतमें उमास्वाभि व अमृतचन्द्राचार्यका मत प्रायः एक-सा है। शिक्षाव्रतमें भी माममात्रका भेद है। उमास्वामि अतिथिसंविभाग लिखते हैं अमृतचन्द्राचार्य-वैय्यावृत्य लिखते हैं दोनों। आचार्य गुणवत एकसे ही मानते हैं कोई भेद नहीं है। आगे चौथे अतिथिसंविभाग या वेयावृत्य शिक्षावतका स्वरूप बताया जाता है ।
विधिना दातृगुणवता द्रव्यविशेषस्य जातरूपाय । स्वपरानुग्रहहेतोः काव्योऽवश्यमतिथये भागः ॥१६७॥
पद्य
विधिपूर्वक अरु दातृगुणों सह, प्रध्य विशेष दान करना । मुनिको और श्रेष्ठतियों को-स्वपर अनुग्रह हित देना ॥ है शिक्षा यह वैश्यावृत्तकी----धात्रक इसको सिर धरते ।
अतिथि विभाग इसीकी संज्ञा, भेद नहीं इसमें करते ॥१६॥ १. तत्स्वार्थसूत्रकारने 'विधिद्रव्यदातुपात्रविशेषासद्विशेषः' सूत्र ही लिख दिया है ।।३९।। अध्याय ७
श्लोक नं. ११३ रन थावकाचारमें-- नवपुण्यः प्रतिपतिः सप्तगुणसमाहिसेन शुद्धेन । अपनारंभाणामार्याणामिष्यते दानम ||११३॥ प्रतिपत्ति:..-आदरसत्कार या
आहारदेना आदि बय्यावृत्तिः ।